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हिन्दुस्तान-पाकिस्तान सरहद के दोनों ओर गिने-चुने ताकतवर लोगों की सरकारी और फौजी नफरत या रणनीति के बीच पाकिस्तान की 19 बरस की आयशा के सीने में हिन्दुस्तानी दिल धडक़ता है। उसके दिल के ट्रांसप्लांट के बिना उसका अधिक वक्त जिंदा रहना मुमकिन नहीं था, और हिन्दुस्तान के चेन्नई के अस्पताल और डॉक्टरों ने यह ट्रांसप्लांट किया, और इस ऑपरेशन के लिए पाकिस्तान में रकम भी इकट्ठा नहीं हो पाई थी, हिन्दुस्तानी डॉक्टरों और अस्पताल में एक ट्रस्ट की मदद से आयशा को नई जिंदगी देने की यह पहल और कोशिश की है। बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक ऐश्वर्यम ट्रस्ट अब तक 175 हार्ट ट्रांसप्लांट में मदद कर चुका है, और दूसरे बहुत से इलाज और ऑपरेशन में भी।
हिन्दुस्तान और पाकिस्तान के बीच जो सरहदी तनातनी चल रही है, उसके पहले तक लोगों की सीधी आवाजाही थी, ट्रेन और बस से लोग आते-जाते थे, और अनगिनत पाकिस्तानियों को हिन्दुस्तान की बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं से नई जिंदगी मिलती थी। जब तक सरकारों के बीच तनातनी नहीं हुई, तब तक हिन्दुस्तान में जनता को यह कभी नहीं लगा कि पाकिस्तानियों को हिन्दुस्तान में इलाज क्यों मिले। लेकिन जब सरकारों, फौजों, और राजनीतिक दलों को खाई खोदना सुहाने लगा, तो फिर जनता के बीच भी नफरत के फतवे तैरने लगे। इलाज की बात तो अलग रही, जो रोजाना के हर किस्म के कारोबार की बात थी, और दोनों देशों के बीच आपसी मुनाफे का जो हाल था, उसे भी राजधानियों में बैठे लोगों की राजनीति और रणनीति ने खराब कर दिया। दोनों मुल्कों के बीच करोड़ों लोगों की सरहद पार रिश्तेदारी है, उनका भी आना-जाना बंद सरीखा हो गया। अब किसी और मुल्क से होते हुए भारत और पाकिस्तान के बीच आवाजाही हो पाती है, और वह भी बड़ी सिमट गई है। दोनों देश सरहद पर फौजी खर्च बर्बाद किए जा रहे हैं, बर्फ लदी सरहद पर हर बरस जाने कितने ही जवान शहीद या कुर्बान हो जाते हैं, लेकिन राजधानियों को रिश्ते सुधारना नहीं सुहा रहा है। तनाव को इस दर्जे पर ले जाया गया है कि फिल्म और टीवी के कारोबार में भी सरहद पार के लोगों का आकर काम करना रोक दिया गया है, और जो जनता दोनों तरफ के फिल्म, संगीत को पसंद करती है, उसे भी मन मारकर चुप रहना पड़ता है।
लोगों को याद होगा कि जब सुषमा स्वराज हिन्दुस्तान में विदेश मंत्री थीं, तब पाकिस्तान में भारत की एक गीता नाम की लडक़ी जाने किस तरह वहां गुम हो गई थी, और वहां के एक बहुत बड़े समाजसेवक, अब्दुल सत्तार ईधी परिवार की देखरेख में थी, और वहां पर वह हिन्दू धर्म का पालन भी करती थी, और उस परिवार ने उसे बेटी की तरह अपनाया हुआ था। सरहद के दोनों तरफ इंसानियत की खूबी कही जाने वाली ऐसी बहुत सी कहानियां बिखरी हुई हैं, और इनसे दोनों तरफ इंसानों का एक-दूसरे पर भरोसा बना हुआ है। दिक्कत सिर्फ राजधानियों में बसे हुए नेताओं और फौजी अफसरों को है जिनको अपने घरेलू दिक्कतों से उबरने के लिए भी सरहद पर तनातनी और पड़ोसी से रिश्ते बिगाडऩे में सहूलियत लगती है। नतीजा यह है कि दोनों देशों के गरीबों की रोटी के हक बेचकर फौजों पर खर्च किया जा रहा है, और हवा में दुश्मन पेश करके अपने-अपने लोगों को हवा में लाठी चलाने की खुशी मुहैया कराई जा रही है।
हम फिर आयशा की बात पर लौटें, तो इन दोनों मुल्कों की हकीकत यही है। किस तरफ के डॉक्टर, किस तरफ के मरीज, किस तरफ किसी मरीज से मिला हुआ दिल, किस तरफ जमा की गई रकम, इनमें से कुछ भी आड़े नहीं आता, और भले लोग बिना किसी भेदभाव के, किसी धर्म या मजहब का ख्याल किए बिना एक-दूसरे के काम आते हैं। हम यहां पर इस बात और बहस में भी जाना नहीं चाहते कि कौन किसके अधिक काम आते हैं, और कौन किसके कम। लेकिन सच तो यह है कि एक फिल्म, बजरंगी भाईजान, की कहानी की तरह दोनों तरफ के लोग एक-दूसरे की मदद करने को अपनी जान देने पर भी उतारू रहते हैं, और असल जिंदगी की ढेरों कहानियां इस फिल्म की तरह हैं। सरहद के दोनों तरफ और दोनों धर्मों के लोगों में से गिनती में ऐसे लोग कम ही हैं जो कि नफरत के फतवों पर जिंदा रहते हैं, ऐसे लोग खबरों में सुर्खियां अधिक पाते हैं, और नफरती टीवी चैनल इन्हीं की हेट-स्पीच पर सवार होकर गलाकाट मुकाबला करते हैं, लेकिन इससे दोनों मुल्कों के कारोबार की बचत नहीं हो पा रही, और गरीबों की बड़ी रकम तनातनी में बर्बाद भी हो रही है। आज जब दुनिया के कुछ देशों के बीच की सरहद मिटाकर उन्हें एक किया जा रहा है, उस वक्त हिन्दुस्तान और पाकिस्तान के बीच की दीवार ऊंची की जा रही है। इस नौबत को अगर समझदारी से खत्म किया जाए, तो शायद दोनों तरफ हर गरीब बच्चे को रोजाना एक गिलास दूध मिल पाएगा।
तमिलनाडु के जिस ट्रस्ट, जिस अस्पताल, और जिन डॉक्टरों ने यह ऑपरेशन किया है, और जिस मरीज से यह दिल मिला होगा, इन सबका योगदान दोनों देशों के बीच रिश्ते सुधारने में बहुत बड़ा है। ये लोग न तो सरहद पर हैं, न मुल्कों की राजधानियों में हैं, लेकिन इनकी रहमदिली और दरियादिली से एक नौजवान लडक़ी को नई जिंदगी मिली है, और दोनों तरफ के अमन-पसंद लोगों को अपनी बात आगे बढ़ाने की एक वजह भी मिली है। हम इस एक हार्ट ट्रांसप्लांट को महज एक जिंदगी देने वाला नहीं मानते, हम इसे सरहद के आरपार सद्भावना बढ़ाने का एक मौका भी मानते हैं, और जिन लोगों का इंसानियत के बेहतर पहलुओं पर भरोसा हो, उन्हें ऐसे मामले बढ़ाते भी रहना चाहिए। जिस तरह फिल्म बजरंगी भाईजान देखने वालों को यह समझ पड़ता है कि सीमा के कंटीले तार दोस्ती और मोहब्बत को नहीं रोक पाते हैं, भला काम करने की नीयत को नहीं रोक पाते हैं, ठीक वैसी ही भावना और मदद अभी के इस ट्रांसप्लांट में सामने आई है। हमारी दोनों ही मुल्कों से यह गुजारिश है कि फौजी तनातनी से परे आम जनता की आवाजाही, कारोबार, खेल, फिल्म, टीवी, और साहित्य सरीखे मामलों को सरकारी दखल से अलग रखें, और इंसानों के बीच बेहतर आपसी रिश्ते एक दिन सरकारों को भी साथ बैठकर सुलह करने को मजबूर कर सकते हैं। यह एक अलग बात है कि कोई सुलह न होना इन सरकारों को अधिक सुहा रहा होगा, लेकिन हम इसी बात पर आज की चर्चा खत्म करना चाहेंगे कि चेन्नई के अस्पताल में हिन्दुस्तानी दिल पाने वाली पाकिस्तानी युवती इन दोनों मुल्कों के बीच एक किस्म का पुल बनी है, और इस पर चलकर बेहतर रिश्तों की आवाजाही होनी चाहिए। (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक)
नई दिल्ली, 29 अप्रैल । लोकसभा चुनाव के लिए दूसरे चरण का मतदान समाप्त हो चुका है और तीसरे चरण का मतदान 7 मई को होना है। इस सबके बीच सभी पार्टियां अपने चुनाव प्रचार में पूरी ताकत झोंक चुकी है। भाजपा और कांग्रेस के स्टार प्रचारकों के चुनाव प्रचार के तरीकों को देखें तो आपको इसमें खासा फर्क नजर आएगा।
दोनों पार्टी के जो सबसे बड़े स्टार प्रचारक चेहरे हैं, उनके कार्यक्रमों को ही देख लें तो आपको इसका अंदाजा लग जाएगा।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार इस भीषण गर्मी में भी एक दिन में कई चुनावी रैलियों को संबोधित कर रहे हैं। वहीं, राहुल गांधी की बात करें तो वह एक दिन में एक या दो रैलियों को संबोधित कर रहे हैं। वह भी हर दिन ऐसा नहीं कर रहे हैं। पीएम मोदी रैलियों के संबोधन के बाद रोड शो भी करते हैं। इसके साथ ही सरकार के कई कार्यक्रमों में पीएम मोदी शिरकत भी करते रहते हैं।
दूसरी एक और चीज गौर करने वाली है कि पीएम मोदी की रैली और रोड शो उन क्षेत्रों में होती है, जहां अगले चरण में चुनाव होना होता है। वहीं, राहुल गांधी की रैली को लेकर ऐसा कुछ ट्रेंड देखने को नहीं मिला है। इसका एक बेहतर उदाहरण ऐसे देख सकते हैं।
ओडिशा के केंद्रपाड़ा में राहुल गांधी की 28 अप्रैल को रैली हुई। जबकि, ओडिशा में 4 चरण से लोकसभा सीटों पर चुनाव होना शुरू होगा और इस केंद्रपाड़ा की सीट पर 7वें और अंतिम चरण में मतदान होना है।
इस केंद्रपाड़ा सीट का चुनावी इतिहास भी देखें तो आपको समझ में आ जाएगा कि इस लोकसभा चुनाव के प्रचार को लेकर कांग्रेस कितनी सीरियस है।
दरअसल, इस सीट पर 17 आम चुनाव हो चुके हैं और इसमें से 1 बार कांग्रेस की झोली में यह सीट आई है। यह एक जीत कांग्रेस को यहां 1952 में मिली थी। इस सीट को वर्तमान में बीजद (बीजू जनता दल) का गढ़ माना जाता है। इस सीट पर तीन बार बीजू पटनायक ने लोकसभा चुनाव जीता और इसका प्रतिनिधित्व किया। इसी सीट से बीजद के ही बैजयंत पांडा ने 2009 और 2014 में जीत दर्ज की और 2019 में इस सीट पर बीजद के अनुभव मोहंती जीते। लेकिन, अब दोनों भाजपा में हैं।
इस बार बैजयंत पांडा इस सीट से बीजेपी के लिए चुनाव लड़ रहे हैं और मजबूत स्थिति में हैं। ऐसे में यहां राहुल गांधी की अभी सभा होना चौंकाने वाला ही है।
पार्टी ने राहुल गांधी से यहां रैली कराने का निर्णय किन परिस्थितियों में लिया, यह तो कांग्रेस का आंतरिक विषय है। लेकिन, अगर राजनीति को समझने वालों की मानें तो यह पार्टी का बेहद ही खराब निर्णय है। क्योंकि एक पार्टी के तौर पर कोई कैसे यह निर्णय कर सकता है कि इतने लंबे समय तक चलने वाले आम चुनाव में कब और कहां प्रचार करना है, इसकी सही रणनीति ना हो।
(आईएएनएस)
मधुबनी, 29 अप्रैल । बिहार के झंझारपुर लोकसभा के लौकहा में चुनावी जनसभा को संबोधित करते हुए गृह मंत्री अमित शाह ने विपक्षी पार्टियों को जमकर घेरा।
रैली को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि पिछड़े वर्ग की अगर कोई सबसे बड़ी घोर विरोधी पार्टी है तो वह कांग्रेी है। आज लालू यादव अपने बेटे को मुख्यमंत्री बनाने की चाहत में उसी कांग्रेस की गोद में जा बैठे हैं। जो मंडल कमीशन के कारण आरक्षण मिला, वो 1957 में मिल जाता। लेकिन, कांग्रेस ने काका कालेलकर की रिपोर्ट को रोक कर रखा और मंडल कमीशन का विरोध किया।
उन्होंने कहा कि आज एनडीए ने पिछड़े वर्ग से आए नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बनाया है। अगर इंडी गठबंधन सरकार गलती से भी आ गई तो क्या लालू यादव प्रधानमंत्री बन सकते हैं? स्टालिन और राहुल गांधी पीएम बन सकते हैं क्या? ये लोग एक-एक साल के लिए प्रधानमंत्री बनेंगे। एक साल लालू यादव प्रधानमंत्री बनेंगे, फिर एक-एक साल कोई और नेता और आखिर में थोड़ा कार्यकाल बचेगा तो राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनने का अवसर मिलेगा।
उन्होंने कहा कि पीएम मोदी ने कोरोना से बचाव के लिए देश के सभी लोगों को टीका लगवाया, लेकिन, तब राहुल गांधी लोगों से कहते थे कि टीका मत लगवाइए, यह 'मोदी टीका' है। कर्पूरी ठाकुर यहीं से विधायक हुआ करते थे। पिछड़े वर्ग से आने वाले कर्पूरी ठाकुर को कांग्रेस और राजद ने कभी सम्मान नहीं दिया। लेकिन, मोदी सरकार ने उन्हें भारत रत्न से नवाजा।
अमित शाह ने कहा कि पीएम मोदी को तीसरी बार प्रधानमंत्री बनाने का मतलब बिहार के अंदर से जातिवाद और भ्रष्टाचार को खत्म करना है। पीएम मोदी की सोच है कि देश के खजाने की पाई-पाई गरीबों को मिले। विपक्ष धारा 370 को 70 साल से बच्चे की तरह संभालकर बैठी थी। पीएम मोदी ने इसे समाप्त करके कश्मीर को हमेशा के लिए भारत का बना दिया।
उन्होंने आगे कहा कि इनके शासनकाल में आए दिन बम धमाके होते थे, लेकिन, कोई कुछ नहीं बोलता था। जब ऊरी और पुलवामा में बम धमाका हुआ तो 10 दिन के अंदर पाकिस्तान के घर में घुसकर एयर स्ट्राइक और सर्जिकल स्ट्राइक करके आतंकवाद का सफाया किया गया। मोदी सरकार इस देश को आतंकवाद और नक्सलवाद से मुक्त कराना चाहती है। पीएम मोदी का नेतृत्व ही आतंकवाद से बचा सकता है।
(आईएएनएस)
नई दिल्ली, 29 अप्रैल । सुप्रीम कोर्ट ने संदेशखाली में जमीन हड़पने और जबरन वसूली के मामलों की अदालत की निगरानी में चल रही सीबीआई (केंद्रीय जांच ब्यूरो) जांच के खिलाफ पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा याचिका दायर करने पर सवाल पूछा है।
न्यायमूर्ति बीआर गवई की अध्यक्षता वाली पीठ ने राज्य सरकार से पूछा कि कुछ निजी व्यक्तियों के हितों की रक्षा के लिए उसने याचिका क्यों दायर की?
पीठ में शामिल न्यायमूर्ति संदीप मेहता ने राज्य सरकार द्वारा विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) दायर करने पर सवाल उठाते हुए कहा कि कलकत्ता उच्च न्यायालय ने केवल भूमि हथियाने और अन्य आरोपों की जांच का आदेश दिया था।
राज्य सरकार के रुख को स्पष्ट करते हुए, वरिष्ठ अधिवक्ता जयदीप गुप्ता ने कहा कि याचिका उच्च न्यायालय के आदेश में निहित कुछ निष्कर्षों और अनुचित टिप्पणियों के खिलाफ दायर की गई है।
इस पर न्यायमूर्ति मेहता ने कहा, "यदि आप असंतुष्ट हैं, तो उच्च न्यायालय जा सकते हैं और टिप्पणियों को हटाने की मांग कर सकते हैं।"
राज्य सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने अतिरिक्त जानकारी दाखिल करने के लिए मामले के स्थगन की मांग की।
सिंघवी ने कहा, "क्या दो या तीन सप्ताह के बाद इस पर विचार किया जा सकता है, क्योंकि यह जानकारी प्रासंगिक होगी।"
इसी तर्ज पर, गुप्ता ने कहा, “हम केवल एक सप्ताह का समय मांग रहे हैं। हम कुछ सामग्री रिकॉर्ड पर रखना चाहते हैं।”
इस पर न्यायमूर्ति मेहता ने कहा, "आपको एसएलपी के साथ ऐसा करने से किसने रोका?"
जुलाई में गर्मी की छुट्टियों के बाद मामले को स्थगित करते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि शीर्ष अदालत के समक्ष लंबित याचिका का उपयोग "किसी भी अन्य उद्देश्य " के लिए नहीं किया जाएगा, इसमें कलकत्ता उच्च न्यायालय के समक्ष लंबित कार्यवाही को लम्बा खींचना भी शामिल है।
10 अप्रैल को अपने एक आदेश में, कलकत्ता उच्च न्यायालय ने सीबीआई को उस उद्देश्य के लिए एक विशेष जांच दल (एसआईटी) गठित कर मामले की जांच का निर्देश दिया।
मुख्य न्यायाधीश टी.एस. शिवगणनम और न्यायमूर्ति हिरण्मय भट्टाचार्य की खंडपीठ ने जांच एजेंसी से उच्च न्यायालय को एक विस्तृत रिपोर्ट सौंपने को कहा था। इसके बाद उच्च न्यायालय अगली कार्रवाई पर फैसला करेगा।
संदेशखाली में अवैध भूमि कब्जाने और जबरन वसूली के संबंध में कलकत्ता उच्च न्यायालय के समक्ष कई जनहित याचिकाएं (पीआईएल) दायर की गईं हैं। इसमेें तृणमूल कांग्रेस से निलंबित शेख शाहजहां को मुख्य आरोपी बनाया गया है।
(आईएएनएस)
जनता करती है सवाल, मुख्यमंत्री देते हैं जवाब
'छत्तीसगढ़' संवाददाता
रायपुर, 29 अप्रैल। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री इन दिनों चुनावी सभाओं और बैठकों में व्यस्त हैं, पर इसके बीच वो समय निकालकर जनता से सीधे बात भी कर रहे हैं। लगभग हर दिन वो मोबाइल से खुद फोन लगाते हैं और सामने वाले को अपना परिचय देकर हाल-चाल पूछते हैं। खासकर महिला समूहों से बात करते समय वो महतारी वंदन योजना के पैसे मिलने का फीडबैक जरूर लेते हैं। जिनके पास फोन जाता है, वो इतने सरल-सहज मुख्यमंत्री की बात सुनकर खुद भी सहज हो जाता है और अपने मन में भरे सवाल भी पूछता है। मुख्यमंत्री उनके हर सवाल का जवाब देते हैं। समाज के अंतिम छोर से अपनी सरकार के कामकाज के फीड बैक लेने का यह तरीका चर्चा का केंद्र है।
मुख्यमंत्री का एक वीडियो वायरल हो रहा है, जिसमें मुख्यमंत्री से एक महिला प्रधानमंत्री आवास पर सवाल कर रही है, तो दूसरी महिला स्वास्थ्य विभाग के वैकेंसी के बारे में पूछ रही है, जिसका मुख्यमंत्री मुस्कुरा कर आचार संहिता के बाद सभी काम होने का भरोसा दिलाते हैं। यहां वे भारतीय जनता पार्टी के पक्ष में मतदान की अपील करते भी दिख रहे हैं।
व्यापारी और छापेमारी
प्रदेश की 7 सीटों पर चुनाव प्रचार रफ्तार से चल रहा है। कांग्रेस, और भाजपा के प्रत्याशी सभा-सम्मेलनों में शिरकत कर रहे हैं। इन सबके बीच सरगुजा में भाजपा ने व्यापारी सम्मेलन रखा था। पिछले कई दिनों से सम्मेलन को सफल बनाने कोशिशें चल भी रही थीं।
सम्मेलन की तैयारियों के बीच अंबिकापुर में आधा दर्जन व्यापारियों के यहां सेंट्रल जीएसटी का छापा डल गया। इससे व्यापारी नाखुश तो थे ही, लेकिन सम्मेलन में शामिल हुए। भीड़ के लिहाज से व्यापारी सम्मेलन काफी सफल रहा। सम्मेलन में भाजपा प्रत्याशी चिंतामणी महाराज के साथ ही प्रदेश के महामंत्री (संगठन)पवन साय ने शिरकत की।
सम्मेलन में छापेमारी को लेकर व्यापारियों का दर्द छलक ही गया। उन्होंने सीधे तौर पर तो कुछ नहीं कहा, लेकिन जीएसटी से जुड़ी विसंगतियों को दूर करने की गुजारिश की। भाजपा के नेता व्यापारियों की उमड़ी भीड़ को देखकर खुश थे, क्योंकि विधानसभा चुनाव के ठीक पहले सम्मेलन में सौ व्यापारी भी नहीं आए थे। अब व्यापारियों का कितना समर्थन मिलता है, यह तो चुनाव नतीजे आने के बाद ही पता चलेगा।
यहूदियों की याद !!!
पहले और दूसरे चरण का चुनाव निपटने के बाद भाजपा ने पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर को रायपुर लोकसभा का जिम्मा दिया है। चंद्राकर बस्तर क्लस्टर के प्रभारी थे। इसमें कांकेर, बस्तर, और महासमुंद की सीट आती है। तीनों जगह चुनाव हो चुके हैं। ऐसे में पार्टी अजय चंद्राकर का उपयोग रायपुर, और अन्य सीटों पर कर रही है।
चंद्राकर का चुनाव प्रचार की शुरुआत में सिंधी समाज के नेताओं के साथ बड़ी बैठक की। इस बैठक में सिंधी समाज के संघर्ष को याद दिलाया, और सिंधियों की तुलना यहूदियों से की। उन्होंने कहा बताते हैं कि जिस तरह यहूदियों और फरीसियों को अपना वतन छोडक़र दर-दर भटकना पड़ा था। उसी तरह आजादी के बाद नेहरू-लियाकत समझौते के तहत सिंधी समाज को सिंध छोडऩा पड़ा।
उन्होंने हिंदुस्तान में आने के बाद संघर्ष किया, और विशेषकर व्यापारिक जगत में अपना अलग मुकाम हासिल किया। अजय की इतिहास पर अच्छी पकड़ है, और उन्होंने जब सिंधियों को उनके पूर्वजों के संघर्ष को याद दिलाया, तो कार्यक्रम में मौजूद समाज के लोगों ने खूब तालियां बजाई। अजय चंद्राकर ने सिंधी समाज के शत प्रतिशत मतदान पर जोर दिया।
राजधानी से नाखुश पायलट
प्रदेश कांग्रेस के प्रभारी सचिन पायलट रायपुर लोकसभा में कांग्रेस प्रत्याशी के चुनाव प्रचार से नाखुश हैं। उन्होंने एक बैठक में कह दिया कि रायपुर में तो कांग्रेस का माहौल ही नहीं दिख रहा है। जबकि रायपुर से जोरदार प्रचार होना चाहिए था, ताकि इसका असर आसपास की सीटों पर भी दिखे।
चर्चा है कि रायपुर लोकसभा प्रत्याशी विकास उपाध्याय, और मेयर एजाज ढेबर की बिल्कुल भी नहीं बनती। एक तरह से दोनों के बीच बोलचाल भी बंद है। ढेबर के करीबी पार्षद भी कोई रुचि नहीं दिखा रहे हैं।
पायलट ने हिदायत दी है कि सभी रायपुर नगर निगम के सभी 10 जोन में कार्यक्रम होना चाहिए। इन कार्यक्रमों में वो खुद भी शामिल होंगे। अब पायलट की फटकार का थोड़ा बहुत असर देखने को मिल रहा है। कुछ जगह पोस्टर लगना शुरू हो गया है। आगे किस तरह का प्रचार होता है, यह तो जल्द फैसला होगा।
बचाव के एवज में प्रस्ताव
पीएससी -21 में हुई अनियमितता के साथ अफसर नेता पुत्र,पुत्रियों और दामादों के चयन की जांच सीबीआई को सौंप दी गई है। सीबीआई अफसर जांच शुरू करने ही वाले हैं। इसे देखते हुए चयनित और उनके परिजन अपने अपने तरीके से बचाव में लग गए हैं। हाल में चयनित पति-पत्नी, अपने पिता को लेकर पूर्व मंत्री और विधायक से मिलने गए। और अपने चयन को साफ सुथरा बताते हुए फंसा दिए जाने की बात कही। और विधायक जी से मदद मांगी । तीनों ने यहां तक कह दिया कि आप चाहो तो हम भाजपा में शामिल हो जाएंगे।
मॉडल ऑफ द स्टोरी, यह है कि क्या चयन में वाकई में लेनदेन हुआ था। क्या ये लोग अयोग्य रहे और चयन हो गया। या जमकर पेपर लीक या फिर इंटरव्यू बोर्ड में सेटिंग रही आदि आदि। और भाजपा में शामिल होने का ऑफर देकर क्या ये बच जाएंगे। जैसे कि इलेक्टोरोल बॉण्ड, और अन्य घोटाले वाले भाजपा में शामिल या चंदा देकर बच निकले, कहीं वैसा तो नहीं इरादा नहीं था। लेकिन इस जांच की गारंटी मोदी ने दी थी। इसलिए नेताजी ने कोई आश्वासन नहीं दिया।
सहज हैं पार्टी बदलने वाले?
दूसरे दलों, विशेषकर कांग्रेस छोडक़र जाने वालों में कई पूर्व विधायक और पंचायत तथा नगर-निगमों के मौजूदा पदाधिकारी शामिल हैं। अब ये भाजपा में तो आ गए हैं लेकिन उनको कोई बड़ी जिम्मेदारी नहीं दी जा रही है। इन दिनों भाजपा के राष्ट्रीय सह-संगठन मंत्री शिवप्रकाश प्रदेश के दौरे पर हैं। उन्होंने इस स्थिति को भांप लिया है।
चुनाव संचालकों और जिला अध्यक्षों को वे बैठकों में हिदायत दे रहे हैं कि जो नए लोग शामिल हुए हैं उनको भी सक्रिय किया जाए, काम दिया जाए। संगठन के सामने दुविधा यह है कि यदि नए-नए पार्टी में शामिल लोगों को अधिक वजन दिया गया तो वर्षों से पार्टी के लिए समर्पित कार्यकर्ताओं को अपनी उपेक्षा महसूस होगी। कांग्रेस से भाजपा में गए एक नेता का कहना है कि यहां काम करने का तरीका कांग्रेस से अलग है। जरूरी नहीं है कि हर बड़े कद का आदमी मंच पर बैठे, उन्हें सामने लगी कुर्सी में भी बैठना पड़ सकता है। दूसरी बात, पार्टी बदलने से पहले उन्होंने अपने समर्थक कार्यकर्ताओं से कोई सलाह-मशविरा नहीं किया था। ऐसे बहुत से लोग हैं जो उनके फैसले से असहमत हैं। इनके बीच जाने में अभी संकोच हो रहा है।
राजधानी में चुनाव बहिष्कार
दूरदराज के गांवों में सडक़ पानी बिजली जैसी मूलभूत सुविधा की गुहार लगाते-लगाते लोग थक जाएं और विरोध में चुनाव बहिष्कार करने की चेतावनी दें तो बात वाजिब लगती है लेकिन राजधानी रायपुर में भी ऐसी हालत है। चंगोराभाठा इलाके के सत्यम विहार कॉलोनी के लोगों ने खराब सडक़, बेतरतीब बिजली पोल व जाम नालियों के मुद्दे पर चुनाव बहिष्कार का बैनर टांग दिया है। उनका कहना है कि सात-आठ साल हो गए वे इसी स्थिति में हैं। पार्षद, विधायक, सांसद सबसे फरियाद कर चुके, लेकिन समस्या हल नहीं हुई। सब नेता चुनाव के समय आते हैं-भैया, दीदी, माता, बोलकर हाथ जोड़ते हैं और आश्वासन देकर चले जाते हैं। अब बहिष्कार के अलावा कोई रास्ता नहीं दिखाई देता। रायपुर को राजधानी होने के साथ-साथ स्मार्ट सिटी का दर्जा भी मिला हुआ है। एक तरफ नया रायपुर और रायपुर शहर की वीआईपी सडक़ें चकाचक दिखाई देती हैं तो दूसरी तरफ सडक़, नाली बदहाल हैं।
आ गया है बासी खाने का उत्सव
गर्मी के दिनों में बोरे-बासी खाना छत्तीसगढ़ के लोगों की आदत में शामिल है। इसे भले ही गरीबों का भोजन कहा जाए इसके फायदे से कोई भी तबका अनजान नहीं हैं। राजनीतिक फायदे के लिए ही सही, पिछली कांग्रेस सरकार ने जिन छत्तीसगढ़ी परंपराओं और आदतों को उभारा था, उनमें बोरे-बासी भी एक था। एक मई अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस पर खास तौर पर बोरे-बासी खाने का प्रदेशभर में अभियान चलता था। सोशल मीडिया पर लोग बासी-बोरे खाते हुए फोटो शेयर करते दिखे थे। क्या मंत्री, क्या विधायक, क्या कलेक्टर, क्या एसपी..सबकी सोशल मीडिया पर तस्वीरें आती रही हैं। अब प्रदेश में सरकार बदल चुकी है। लोग बासी-बोरे खाते हुए तस्वीरें भले ही न डालें, मगर पीढिय़ों से खाए जाने वाले बासी-बोरे की गुणवत्ता में सरकार बदलने से कोई बदलाव नहीं आया है। स्वाद और गुण वही है। रात में भिगोये भात का पानी सुबह निकालकर नया पानी डालें, जरूरत के मुताबिक नमक डालें- अचार, मठा या चटनी लें। प्याज खाते हों तो थोड़ा उसे भी डाल लें। फिर देखिये खाकर, स्वाद वही मिलेगा...। गर्मी में फायदेमंद भी है। सुनने में यह जरूर आया है कि कुछ जिलों के गढक़लेवा के मेनू से बासी-बोरे को हटाया जा चुका है। इसलिए इधर-उधर न भटकें। यह घर पर ही आसानी से तैयार हो जाता है।
6 अप्रैल 2024 को राजधानी तेल अवीव सहित इसराइल के कई हिस्सों में हजारों लोग प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू की सरकार के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन के लिए सडक़ों पर उतर आए।
बीते साल 7 अक्तूबर को हमास के लड़ाकों के इसराइल में हमले के बाद इस 6 महीने पूरे हो गए थे। इन प्रदर्शनों के जरिए इसराइली जनता, सरकार की कार्रवाई के प्रति अपनी नाराजगी जाहिर कर रही थी।
इसराइल के अनुसार सात अक्तूबर को इसराइल पर हुए इस हमले के दौरान 1200 से अधिक इसराइली मारे गए थे और 250 लोगों का अपहरण कर लिया गया था जिनमें अधिकांश आम नागरिक थे।
प्रदर्शनकारी हमले से निपटने और बंधक बनाए गए 130 लोगों को छुड़ाने में सरकार की विफलता से नाराज़ थे। दुनिया के कई देश हमास के सैनिक धड़े को आतंकवादी संगठन घोषित कर चुके हैं।
कई लोग चाहते हैं कि इसराइली प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू इस्तीफा दें और देश में चुनाव करवाए जाएं। विदेशी नेताओं की ओर से भी प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू की गाजा में सैनिक कार्रवाई की आलोचना हो रही है।
गाजा में हमास द्वारा नियंत्रित स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार इसराइली हमले में लगभग 33000 फ़लस्तीनी मारे गए हैं। गाजा में बिगड़ती मानवीय स्थिति को लेकर भी चिंता व्यक्त की जा रही है जिसके चलते इसराइल का घनिष्ठ सहयोगी अमेरिका भी प्रधानमंत्री नेतन्याहू पर युद्धविराम के लिए दबाव डाल रहा है।
अमेरिका ने यहां तक कह दिया है कि वो इसराइल को हथियार सप्लाई के लिए कुछ शर्तें लादने की सोच रहा है। मगर इसराइली प्रधानमंत्री ने संघर्ष विराम से इनकार कर दिया है। अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडन ने कहा है कि वो प्रधानमंत्री नेतन्याहू के गाजा मामले से निपटने के तरीके से सहमत नहीं हैं।
इसलिए इस हफ्ते दुनिया जहान में हम यह जानने की कोशिश करेंगे कि इसराइली प्रधानमंत्री नेतन्याहू का नेतृत्व कितना सुरक्षित है?
बिन्यामिन नेतन्याहू के सत्ता तक पहुंचने का सफऱ
1949 में तेल अवीव में एक धर्मनिरपेक्ष इसराइली परिवार में जन्मे बिन्यामिन नेतन्याहू की परवरिश यरूशलम और अमेरिका में हुई थी। 1967 में इसराइल लौट कर वो सेना में भर्ती हो गए।
लगभग तीस साल बाद 1996 में 46 की उम्र में उन्होंने चुनाव में लिकुड पार्टी का नेतृत्व करते हुए जीत हासिल की और इसराइल के प्रधामंत्री बने।
यूके की ससेक्स यूनिवर्सिटी में आधुनिक इसराइल अध्ययन के प्रोफेसर डेविड टाल कहते हैं कि नेतन्याहू बहुत ही महत्वाकांक्षी व्यक्ति हैं जो राजनीतिक सहयोगियों का इस्तेमाल कर के आगे बढ़ते रहे हैं। वो हमेशा विचारधारा से अधिक प्राथमिकता अपने हितों को देते आए हैं।
‘वो राजनीतिक विचारधारा की बात तो करते हैं लेकिन उनकी हरकतें देख कर नहीं लगता कि वो उस विचारधारा के अनुसार काम करते हैं। जरूरत पडऩे पर अपने निजी हितों को साधने के लिए वो अपनी विचारधारा के सिद्धांतों से किनारा करने में हिचकिचाते भी नहीं हैं।’
सत्ता से बाहर जाकर फिर की थी नेतन्याहू ने वापसी
पहली बार सत्ता में आने के तीन साल बाद ही उन्हें सत्ता से बाहर कर दिया गया। लेकिन 2009 में वो दोबारा सत्ता में लौटे और लगभग अगले दस सालों तक प्रधानमंत्री बने रहे। लेकिन फिर चुनावों के बाद उन्हें सत्ता से हाथ धोना पड़ा। 2022 में वो फिर चुनावी मैदान में उतरे। मगर इस बार एक महत्वपूर्ण बात यह हुई कि उनके खिलाफ भ्रष्टाचार के कई आरोप लगाए गए थे। जब चुनाव के नतीजे सामने आए तो उनकी लिकुड पार्टी बहुमत से दूर थी।
अब सरकार बनाने के लिए उन्हें ऐसे राजनीतिक सहयोगियों की जरूरत थी जो उनके साथ गठबंधन सरकार बनाने को तैयार हो जाएं। और उनके पास एक ही विकल्प था कि वो राष्ट्रवादी और अति दक्षिणपंथी राजनीतिक दलों से साथ गठबंधन बनाएं।
इससे उन्हें ना सिर्फ संसद में बहुमत मिल सकता था बल्कि अपनी कानूनी मुश्किलों से बाहर निकलने का रास्ता भी मिल सकता था।
डेविड टाल ने कहा कि, ‘उनके जेल जाने की प्रबल संभावना थी। उनके लिए जेल जाने से बचने का एक रास्ता यह था कि वो न्यायपालिका की व्यवस्था को ही बदलकर अपने पक्ष में कर लें। अति दक्षिणपंथी दलों के साथ गठबंधन करने से इसराइल को क्या नुकसान होगा इससे कहीं ज़्यादा डर उन्हें जेल जाने का था।’
नेतन्याहू की यह गठबंधन सरकार इसराइल में अब तक की सबसे अधिक दक्षिणपंथी सरकार थी।
न्यायपालिका में बदलाव करने के उनके फैसले के खिलाफ जोरदार विरोध-प्रदर्शन हुए। मगर वो राजनीतिक दांव-पेचों के जरिए जेल जाने से बच गए हैं लेकिन उन्होंने पर्दे के पीछे एक और ज़्यादा खतरनाक राजनीतिक खेल शुरू कर दिया।
नेतन्याहू और हमास
भूमध्य सागर के करीब इसराइल और मिस्र की सीमा के बीच स्थित 20 लाख की आबादी वाला फिलीस्तीनी क्षेत्र गाजा साल 2007 से चरमपंथी गुट हमास के नियंत्रण में है। हमास इसराइल का अस्तित्व नहीं मानता और उसके खिलाफ सशस्त्र विद्रोह के प्रति कटिबद्ध है।
हमास के सैनिक धड़े को इसराइल, अमेरिका, यूके, यूरोपीय संघ सहित कई देश आतंकवादी घोषित कर चुके हैं। डेविड टाल कहते हैं कि इसके बावजूद बिन्यामिन नेतन्याहू कतर से हमास को मिलने वाले पैसों की सप्लाई को नजरअंदाज करते रहे।
डेविड टाल की राय है कि वो गाजा में हमास के फलने-फूलने के लिए हर संभव काम करते रहे। ऊपरी तौर पर वह कहते रहे कि वो हमास का अंत करना चाहते हैं लेकिन इसके लिए उन्होंने कुछ नहीं किया।
कुछ रिपोर्टों के अनुसार, 2019 में नेतन्याहू ने अपनी लिकुड पार्टी के कुछ नेताओं के सामने कहा था कि फिलीस्तीनी प्रशासन को पीछे धकेलने के लिए हमास की मदद करना हमारी रणनीति का हिस्सा है ताकि गाजा के फ़लस्तीनियों को वेस्ट बैंक (पश्चिम तट) के फिलीस्तीनियों से अलग रखा जा सके।
हाल में नेतन्याहू ने कहा था कि मानवीय संकट को टालने के लिए उन्होंने हमास को होने वाली पैसों की सप्लाई नहीं रोकी थी। लेकिन वास्तव में उन्हें इससे एक राजनीतिक फायदा यह हो रहा था कि इस धन से हमास और पश्चिम तट में उसके प्रतिद्वंदी फिलीस्तीनी गुट फतह के बीच दुश्मनी को हवा मिल रही थी। इसके चलते स्वतंत्र फिलीस्तीनी राष्ट्र के लिए हमास और फतह का साथ आना मुश्किल था।
नेतन्याहू और उनके गठबंधन के अति दक्षिणपंथी सदस्य स्वतंत्र फिलीस्तीनी राष्ट्र के खिलाफ हैं।
डेविड टाल ने बताया कि, ‘लिकुड पार्टी हमेशा से फिलीस्तीनी राष्ट्र को अपने लिए खतरा मानती रही है क्योंकि उसके अनुसार पश्चिम तट इसराइल का हिस्सा है। नेतन्याहू कहते रहे हैं कि वो फिलीस्तीनी राष्ट्र नहीं बनने देंगे।’ 7 अक्तूबर को हुए हमलों के बाद नेतन्याहू सरकार की जवाबी कार्रवाई पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय की नजऱें हैं।
एक बड़ा काला दिन
7 अक्तूबर की सुबह हमास के कई हथियारबंद लड़ाके गज़ा की सीमा पार के इसराइल में घुस गये। इसराइल के अनुसार इन लड़ाकों ने इसराइल में कम से कम 1200 लोगों की हत्या की और 250 लोगों का अपहरण कर के गज़ा ले गए।
इस हमले के दौरान महिलाओं के साथ बलात्कार और यौन हमलों के सबूत बीबीसी ने देखे हैं। वॉशिंगटन स्थित ब्रूकिंग्स इंस्टीट्यूट में सेंटर फॉर मिडिल ईस्ट पॉलिसी के निदेशक नेतन साक्स कहते हैं कि वो दिन इसराइल के इतिहास का सबसे काला दिन था। जर्मनी में यहूदियों के जनसंहार के बाद पहली बार एक दिन में इतने यूहूदी लोग मारे गए थे।
‘यह इसराइल के सुरक्षातंत्र की चौंकाने वाली विफलता थी। हमले के समय इसराइली नेतृत्व की प्रतिक्रिया भी उतनी ही चौंकाने वाली थी। हमले से निपटने की कोई तैयारी दिखाई नहीं दी। हालांकि उस समय इसराइल अंदरूनी उथल-पुथल में फंसा हुआ था उसके बावजूद भी इसराइल की विफलता समझ से बाहर है।’
इस हमले के बाद बिन्यामिन नेतन्याहू के प्रति लोगों के रवैये में क्या फर्कपड़ा?
नेतन साक्स का कहना है कि उस समय नेतन्याहू प्रधानमंत्री थे और इसराइल के पूरे सुरक्षातंत्र के नेता थे इसलिए उसकी विफलता का दोष भी उन्हीं को जाता है। हमले के फौरन बाद बिन्यामिन नेतन्याहू ने वादा किया कि वो इसराइली बंधकों को छुड़वाएंगे और हमास का खात्मा करेंगे। उन्होंने गज़ा पर हमला कर दिया मगर नेतन साक्स कहते हैं कि दोनों उद्देश्य एक साथ हासिल करना मुश्किल है।
‘हमास बंधकों को मानवीय ढाल की तरह इस्तेमाल कर रहा है। बंधकों और गाजा की जनता को ख़तरे में डाले बिना उन तक पहुंचना मुश्किल है। इसलिए अब बंधकों को छुड़वाने के लिए हमास से समझौते के प्रयास चल रहे हैं। लेकिन इससे हमास को खत्म करने का उनका उद्देश्य खटाई में पड़ जाएगा।’
इसराइल को करना पड़ रहा है आलोचना का सामना
इस दौरान गाजा में हमले के चलते इसराइल को अंतरराष्ट्रीय समुदाय की आलोचना का सामना करना पड़ रहा है। गाजा के स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार इसराइल के हमले में अब तक 33000 लोग मारे गए हैं और भुखमरी की स्थिति पैदा हो सकती है। हाल में सात अंतरराष्ट्रीय सहायताकर्मियों के मारे जाने की वारदात की व्यापक निंदा हुई है। मगर क्या अंतरराष्ट्रीय समुदाय की राय का नेतन्याहू पर असर पड़ेगा?
नेतन साक्स ने कहा कि, ‘मुझे नहीं लगता कि नेतन्याहू और कई इसराइली लोग यह समझ पा रहे हैं कि पिछले 5-6 महीने में इसराइल की सामरिक स्थिति को कितना नुकसान पहुंचा है। वो नहीं जानते कि सामरिक रूप से यह कार्रवाई कितनी महंगी साबित होगी।’
बिन्यामिन नेतन्याहू जनता से आह्वान कर रहे हैं कि इस मुश्किल घड़ी में जनता को एकजुट होना चाहिए। मगर इस कार्रवाई का असर इसराइल के उन पश्चिमी देशों के साथ संबंध पर भी पड़ेगा जो उसे हथियार देते हैं।
विशेष संबंध
इस युद्ध से पहले अमेरिका इसराइल पर किस प्रकार का प्रभाव रखता था, दोनों के बीच विशेष संबंधों का क्या स्वरूप रहा है? यह समझने के लिए हमने बात की एरन डेविड मिलर से जो वॉशिंगटन स्थित कार्नेगी एंडोवमेंट फ़ॉर इंटनेशनल पीस में वरिष्ठ शोधकर्ता हैं।
वो कहते हैं कि अमेरिका इसराइल को हथियार देता है और संयुक्त राष्ट्र जैसे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उसका बचाव करता है। अमेरिका के दोनों प्रमुख राजनीतिक दलों के इसराइल के साथ घनिष्ठ संबंध रहे हैं। मगर दोनों देशों के बीच विशेष संबंधों का एक कारण यह है कि दोनों लोकतांत्रिक मूल्यों में विश्वास रखते हैं।
‘मध्य पूर्व एक अत्यंत अस्थिर क्षेत्र है। वहां इसराइल एक मात्र लोकतांत्रिक शक्ति है। हालांकि वहां लोकतंत्र आदर्श तो नहीं है लेकिन अगर वहां लोकतंत्र नहीं होता तो उसका अमेरिका के साथ विशेष संबंध इतने लंबे समय तक कायम नहीं रहता।’
कुछ लोगों की राय है कि अमेरिका में पचास लाख से ज़्यादा यहूदी रहते हैं और यह भी अमेरिकी प्रशासन द्वारा इसराइल के समर्थन का एक कारण है। एरन मिलर के अनुसार उससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण यह कारण है कि अमेरिका के इवैंजिलिकल ईसाई और यहूदियों के बीच साझा मूल्य और आस्थाएं हैं और वो इसराइल के समर्थक हैं।
वर्तमान राष्ट्रपति जो बाइडन इसराइल की गाजा में लड़ाई से आम नागरिकों को हो रहे जान-माल के नुकसान से नाराज हैं और उन्होंने इसराइल को चेतावनी दी है कि उसे अमेरिका से मिलने वाली सहायता इस बात पर निर्भर होगी कि वो गाजा में आम लोगों को सहायता पहुंचाने का रास्ता खोलने के लिए क्या ठोस कदम उठाता है।
नेतन्याहू आरोपों को खारिज कर रहे हैं
एरन डेविड मिलर ने कहा,‘राष्ट्रपति बाइडन की नेतन्याहू के प्रति नाराजगी बढ़ती जा रही है क्योंकि वो जानते हैं कि प्रधानमंत्री नेतन्याहू अपने कानूनी मसले को इसराइल और अमेरिका के हितों से अधिक प्राथमिकता दे रहे हैं।’
प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने उनके आरोपों का खंडन करते हुए कहा कि इसराइली जनता उनके साथ है और जानती है कि उसके लिए क्या अच्छा है। राष्ट्रपति बाइडन ने संघर्ष विराम की अपील करते हुए कहा कि गाजा में मानवीय सहायता का रास्ता खोला जाए। इससे पहले उन्होंने हमास से भी बंधकों को रिहा करने की अपील की थी मगर उन्होंने सीधे तौर पर इसराइल को हथियार सप्लाई बंद करने की बात नहीं की।
एरन डेविड मिलर के अनुसार अमेरिका का इसराइल पर प्रभाव जरूर है मगर अमेरिकी राष्ट्रपति इसराइली प्रधानमंत्री के साथ सीधा संघर्ष नहीं चाहते क्योंकि इसके उलटे नतीजे भी आ सकते हैं और राजनीतिक दृष्टि से यह महंगा साबित हो सकता है।
इसराइल के प्रति अमेरिका का रवैया कड़ा हो रहा है। वहीं दूसरी तरफ इसराइल में आम चुनाव दो साल बाद होने हैं मगर कई लोग जल्द चुनाव करवाने की बात भी कर रहे हैं।
नेतन्याहू को हटाने के प्रयास
यरूशलम स्थित दी इसराइली डेमोक्रेसी इंस्टीट्यूट की वरिष्ठ शोधकर्ता प्रोफेसर टमार हर्मन मानती हैं कि नेतन्याहू सरकार के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन कर रहे अधिकांश लोग बड़े शहरों के मध्यवर्ग के धर्मनिरपेक्ष तबके के हैं। इन लोगों ने नेतन्याहू के न्यायपालिका में सुधार का भी विरोध किया था इसलिए नेतन्याहू उनके विरोध को राजनीतिक अवसरवाद बता कर अनदेखा कर सकते हैं। लेकिन अब उनके साथ वो लोग भी जुड़ रहे हैं जिनके प्रियजनों का अपहरण करके गाजा में बंदी बना कर रखा गया है।
‘बहुत लोग बंधकों की रिहाई के लिए सरकार द्वारा उठाए गए कदमों से निराश और नाराज हैं इसलिए वो विरोध-प्रदर्शनों में शामिल हो गए हैं। लेकिन नेतन्याहू अब यह कह कर इसे खारिज कर सकते हैं कि यह लोग बंधकों की रिहाई के लिए नहीं बल्कि उनकी सरकार को गिराने के लिए विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं।’
लेकिन क्या सरकार के भीतर उनके नेतृत्व के खिलाफ विद्रोह हो सकता है? टमार हर्मन कहती हैं कि इसकी संभावना कम है क्योंकि 7 अक्तूबर के हमले के बाद नेतन्याहू ने मध्यपंथी नैशनल यूनिटी पार्टी के नेता बेनी गैन्ज को सरकार में शामिल कर लिया है।
‘नेतन्याहू को फिलहाल खतरा नहीं’
टमार हर्मन की राय है कि इससे सरकार में नेतन्याहू की स्थिति मजबूत हुई है क्योंकि नेशनल यूनिटी पार्टी पहले सरकार में शामिल होने को तैयार नहीं थी। उसके सरकार में शामिल होने से नेतन्याहू के नेतृत्व की वैधता बढ़ गयी है। गठबंधन सरकार में शामिल अति दक्षिणपंथी दल सत्ता में रहना चाहते हैं इसलिए वो भी फि़लहाल नेतन्याहू का साथ नहीं छोड़ेंगे यानी नेतन्याहू के नेतृत्व को फिलहाल वहां से कोई ख़तरा नहीं है।
फिलहाल तो गाजा में चल रही लड़ाई पर पूरा ध्यान केंद्रित है लेकिन इसराइल की लेबनान से लगी सीमा पर और ईरान के साथ भी संघर्ष सुलगने जा रहे हैं। अगर यह संघर्ष गाजा से बाहर फैल गया तो इसराइली जनता मतभेद भुलाकर एकजुट हो जाएगी।
टमार हर्मन ने कहा, ‘अगर ऐसा होता है तो पूरी स्थिति बदल जाएगी क्योंकि अगर उत्तर में लड़ाई छिड़ गई तो वो कहीं अधिक बड़ी होगी और सबके लिए अधिक ख़तरनाक होगी। और विरोध प्रदर्शन ख़त्म हो जाएंगे।’
तो अब लौटते हैं अपने मुख्य प्रश्न की ओर कि इसराइली प्रधानमंत्री नेतन्याहू का नेतृत्व कितना सुरक्षित है?
7 अक्तूबर के बाद इसराइल द्वारा गाजा में छेड़ी गई लड़ाई से उत्पन्न मानवीय संकट के चलते अब अमेरिका, यूके और जर्मनी इसराइल को बिना शर्त समर्थन देने के बारे में हिचकिचाने लगे हैं।
बिन्यामिन नेतन्याहू देश के भीतर भी विरोध का सामना कर रहे हैं। लेकिन वहां मध्यावधि चुनाव के लिए इतना काफी नहीं है।
नेतन्याहू एक चालाक राजनेता हैं और राजनीतिक चुनौतियों से निपटने में माहिर हैं इसलिए फिलहाल तो नहीं लगता कि उनके नेतृत्व को गंभीर खतरा है।(bbc.com/hindi)
डॉ. आर.के. पालीवाल
वैसे तो ऊपरी तौर पर रूस यूक्रेेन युद्ध दो पड़ोसी देशों के बीच हो रहा युद्ध दिखाई देता है लेकिन इस युद्ध में यूक्रेन के साथ अमेरिका के नेतृत्व वाले नाटो सैन्य संगठन के यूरोपीय देश भी प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से शामिल हैं। इसे रूस और युक्रेन का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि कई दशक तक जुड़वा भाइयों की तरह सोवियत संघ की महाशक्ति के दो सबसे बड़े हिस्से रहे रूस और युक्रेन 1991 में सोवियत संघ के पतन के बाद आजाद देश बनने पर कई साल से तनावग्रस्त माहौल में रहने के बाद एक साल से ज्यादा समय से खूंखार जंग लड़ रहे हैं।
रूस अपने इस पड़ोसी के अमेरिका परस्त नाटो का हिस्सा बनने से नाराज है और युक्रेन रूस की दादागिरी सहने के बजाय यूरोप और अमेरिका के लोकतंत्र साथ रहने की जिद के कारण रूस की आंखों की किरकिरी बना हुआ है। यह कुछ कुछ भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव और युद्ध जैसा ही है। भारत और पाकिस्तान के बीच हुए युद्धों में भी पाकिस्तान को अमेरिका का वैसा ही समर्थन मिलता था जैसा रूस के खिलाफ युद्धरत युक्रेन को मिल रहा है।
इसी तरह इजराइल और फिलिस्तीन के बीच जारी कई दशक पुरानी जंग भी पिछले कई सालों के सबसे खतरनाक मोड़ पर पहुंच गई है। फिलीस्तीन के गुरिल्ला हमलावरों ने इजराइल के अंदरूनी इलाकों में घुसकर जिस जंग की शुरुआत की थी उसने इजराइल को इतना भडक़ाया कि फिलिस्तीन में भारी तबाही के बाद उस पर यह आरोप भी लगा कि सीरिया में ईरान के दूतावास पर हुए हमले में इजराइल ने ही ईरान के शीर्ष कमांडरों को मारा है। सीरिया में हुई इस घटना ने ईरान को भी सीधे इजराइल के साथ युद्धरत कर दिया। अब यह युद्ध भी इजराइल और फिलीस्तीन तक सीमित नहीं रहा। दुनिया के दो संवेदनशील भागों मे चल रहे इन दो युद्धों में अमेरिका हर तरह से अपने मित्र राष्ट्र युक्रेन और इजराइल के साथ खड़ा है। अभी हाल ही में अमेरिकी सीनेट ने युक्रेन और इजराइल की मदद के लिए भारी भरकम आर्थिक सहायता को मंजूरी दी है। इस मदद के बाद युक्रेन और इजराइल और ज्यादा ताकत से अपने दुश्मन देशों से दो दो हाथ करने की तैयारी करेंगे।
युद्ध और आग की यह स्वाभाविक प्रवृत्ति है कि वह थोड़ी सी हवा मिलने पर तेजी से फैलते हैं। युद्ध में जब धर्म विशेष का तत्व शामिल हो जाता है तब उसके फैलने की आशंका कई गुणा बढ़ जाती है। इजराइल और फिलिस्तीन के युद्ध में यही खतरा सबसे ज्यादा है। इस युद्ध में प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से इजराइल और फिलीस्तीन के साथ साथ सीरिया और ईरान का प्रवेश विशुद्ध रूप से धार्मिक आधार पर ही हुआ है जिसकी लपट अन्य इस्लामिक देशों तक भी फैल सकती है। इस दृष्टि से यह युद्ध रूस और युक्रेन के बीच चल रहे युद्ध से भी ज्यादा संवेदनशील है। इसलिए इसे रोकने के प्रयास ज्यादा तेज़ी से होने चाहिएं।
जिस समय पूरी दुनिया जलवायू परिर्वतन के भयावह दौर से जूझ रही है ऐसी स्थिति में कई बड़े देशों का युद्ध में शामिल होना जलवायू परिर्वतन के खतरे को ओर ज्यादा बढ़ाता है। एक तरफ युद्ध में इस्तेमाल होने वाले गोला बारूद से प्रकृति और पर्यावरण खराब होते हैं और दूसरी तरफ जिन संसाधनों का रचनात्मक उपयोग जलवायू परिर्वतन के दुष्प्रभावों को कम करने में हो सकता था उनका दुरुपयोग युद्ध के विध्वंश में होने से पर्यावरण के लिए आर्थिक संसाधनों की कमी होती है। दुर्भाग्य से युद्धरत देशों के शासक इतने संवेदनहीन हो गए हैं कि प्रकृति और पर्यावरण से उन्हें कोई लेना देना नहीं है। ऐसी स्थिति में संयुक्त राष्ट्र संघ ही विश्व की बड़ी आबादी के लिए एकमात्र आशा की किरण दिखाई देता है। दुर्भाग्य से अभी इन युद्धों में संयुक्त राष्ट्र संघ का प्रभावी हस्तक्षेप दिखाई नहीं दे रहा।
नई दिल्ली, 29 अप्रैल । केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के वीडियो से साथ छेड़छाड़ कर उसे वायरल करने के मामले में जांचकर्ता कांग्रेस की तेलंगाना इकाई को नोटिस जारी करने वाले हैं। सूत्रों ने सोमवार को यह जानकारी दी। वास्तव में, गृह मंत्री ने तेलंगाना में मुसलमानों के लिए आरक्षण समाप्त करने की प्रतिबद्धता जताई थी, लेकिन वीडियो से छेड़छाड़ कर यह जताने की कोशिश की गई कि वह सभी वर्गों के लिए आरक्षण समाप्त करने की बात कर रहे हैं।
सूत्रों ने बताया कि दिल्ली पुलिस की एक टीम तेलंगाना जाकर उन लोगों को नोटिस थमायेगी जिन्होंने इस फर्जी वीडियो को एक्स पर पोस्ट किया था। उन्होंने कहा, "चूंकि तेलंगाना कांग्रेस के आधिकारिक हैंडल से भी इसे पोस्ट किया गया था, इसलिए उन्हें भी नोटिस दिया जाएगा।"
इससे पहले भाजपा के आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने दावा किया था कि तेलंगाना कांग्रेस का एक धरा अमित शाह के छेड़छाड़ किये हुए वीडियो को वायरल कर रहा है जिससे बड़े पैमाने पर हिंसा भड़क सकती है।
सूत्र ने बताया, "मामले की जांच चल रही है। हम वीडियो के मूल तक पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं। जिन लोगों ने इसे पोस्ट किया है उनसे पूछताछ की जाएगी और जांच में शामिल होने के लिए उन्हें नोटिस दिये जायेंगे।"
भाजपा और केंद्रीय गृह मंत्रालय की शिकायत पर दिल्ली पुलिस की साइबर शाखा के आईएफएसओ ने मामले में एफआईआर दर्ज कर जांच शुरू कर दी है। आईपीसी की धारा 153, 153ए, 465,469 तथा 171जी, और आईटी एक्ट की धारा 66सी के तहत मामला दर्ज किया गया है।
एफआईआर में, जिसकी कॉपी आईएएनएस के पास उपलब्ध है, गृह मंत्रालय ने अपनी शिकायत में कहा है कि "फेसबुक और ट्विटर (अब एक्स) के यूजरों द्वारा कुछ छेड़छाड़ किये गये वीडियो" सर्कुलेट करने की जानकारी मिली है।
शिकायत में मंत्रालय ने वीडियो के लिंक भी साझा किये थे।
इस वीडियो के सामने आने के बाद विवाद पैदा हो गया था जिससे ऐसा लगता है कि गृह मंत्री अमित शाह की मंशा अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटा) ओर अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए आरक्षण समाप्त करने की है।
(आईएएनएस)
नई दिल्ली, 29 अप्रैल । दिल्ली उच्च न्यायालय ने सोमवार को उस जनहित याचिका (पीआईएल) पर विचार करने से इनकार कर दिया, जिसमें धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) की धारा 66 की व्याख्या पर सवाल उठाया गया था।
याचिका दायर करने वाले अशोक कुमार सिंह और एक अन्य व्यक्ति ने आरोप लगाया था कि प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) की धारा 66 के तहत शेयर की गई जानकारी के आधार पर एफआईआर के लिए पुलिस और सीबीआई सहित अन्य एजेंसियों को अनुचित तरीके से प्रभावित कर रही है।
याचिका में ईडी पर एफआईआर दर्ज करने के लिए एजेंसियों पर दबाव डालकर कई परस्पर विरोधी भूमिकाओं में काम करने का आरोप लगाया गया था। इसमें पीएमएलए में निर्धारित सीमाओं के उल्लंघन की बात कही गई।
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायमूर्ति मनमीत प्रीतम सिंह अरोड़ा ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि ऐसे व्याख्या संबंधी मुद्दों को उपयुक्त अदालत के समक्ष पेश किया जाना चाहिए।
ईडी के वकील ज़ोहेब हुसैन ने दलील दिया कि जनहित याचिका सार्वजनिक कल्याण के बजाय निजी हितों के बारे में है।
उन्होंने दावा किया कि याचिका एकल न्यायाधीश के समक्ष लंबित एक अलग याचिका में पहले से ही उठाई गई चिंताओं को प्रतिबिंबित करती है।
हुसैन ने कहा कि जनहित याचिका का इस्तेमाल व्यक्तिगत शिकायतों के समाधान के लिए नहीं किया जाना चाहिए। उन्होंने ऐसे कार्यों को कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग करार दिया।
दूसरी ओर, याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि किसी विशिष्ट कानूनी मुद्दे पर किसी क्लाइंट की वकालत करना, उसी मुद्दे को जनहित याचिका के रूप में उठाने से नहीं रोकता है।
अंततः, खंडपीठ का निष्कर्ष रहा कि मामले को एकल न्यायाधीश द्वारा प्रभावी ढंग से हल किया जा सकता है।
(आईएएनएस)
नई दिल्ली, 29 अप्रैल । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दो दिन के कर्नाटक दौरे पर हैं। जहां वह लोकसभा चुनाव प्रचार के मद्देनजर लगातार रैलियां कर रहे हैं। इसी बीच पीएम मोदी की बेहद खास फोटो सामने आई है।
दरअसल, कर्नाटक के सिरसी में उन्होंने अकोला की फल विक्रेता मोहिनी गौड़ा से मुलाकात की। इस दौरान पीएम मोदी ने उनका हौसला बढ़ाया और उनके काम की तारीफ भी की।
पीएम मोदी कर्नाटक के उत्तर कन्नड़ जिले के सिरसी में रविवार को एक रैली करने पहुंचे थे। इसी दौरान हेलीपैड पर पहुंचते ही उन्होंने सबसे पहले फल विक्रेता मोहिनी गौड़ा से मुलाकात की। इसकी तस्वीर भी सामने आई है, जो सोशल मीडिया पर छाई हुई है।
मोहिनी गौड़ा अकोला की एक फल विक्रेता हैं और वह अकोला बस स्टैंड पर पत्तों में लपेटे हुए फल बेचती हैं। उनकी एक अनोखी विशेषता है कि जब कुछ लोग फल खाकर पत्ते जमीन पर फेंक देते हैं, तो वह उन पत्ते को उठाकर कूड़ेदान में डाल देती हैं।
स्वच्छ भारत अभियान में योगदान देने वाले लोगों के लिए इससे बड़ा उदाहरण क्या हो सकता है कि पीएम मोदी ऐसे हर एक व्यक्ति को याद रखते हैं जो उनके इस अभियान में प्रेरक शक्ति के रूप में काम करते हैं।
बता दें कि कर्नाटक की 14 लोकसभा सीटों पर दूसरे चरण में 26 अप्रैल को वोटिंग हुई थी। बची हुई 14 सीटों पर 7 मई को तीसरे चरण में वोट डाले जाएंगे। चुनाव के नतीजे 4 जून को घोषित किए जाएंगे।
(आईएएनएस)
गाजियाबाद, 29 अप्रैल । केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के वायरल वीडियो को लेकर घमासान जारी है। गाजियाबाद के लोनी इलाके के विधायक नंदकिशोर गुर्जर ने भी पुलिस को शिकायत देकर कांग्रेस सांसद राहुल गांधी और कई अन्य नेताओं पर राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (एनएसए) के तहत कार्रवाई की मांग की है। विधायक का दावा है कि जिसने भी यह वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल किया है वह कांग्रेस के लिए काम करता है।
गाजियाबाद के लोनी विधानसभा क्षेत्र के विधायक नंदकिशोर गुर्जर ने बताया कि उन्होंने लोनी थाने में कांग्रेस नेता राहुल गांधी के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के लिए शिकायत दी है।
गुर्जर ने दावा किया कि प्रियांशी नाम के लड़के ने इस वीडियो को वायरल किया है। जब उससे पूछा गया तो उसने बताया है कि राहुल गांधी के कहने पर उसने केंद्रीय गृहमंत्री का एक ऐसा वीडियो वायरल किया है जिसमें उन्हें यह कहते हुए दिखाया गया है कि आरक्षण खत्म कर देंगे। इसके जरिये पूरे देश में जातीय संघर्ष की साजिश की गई है। इससे पहले भी ठाकुर- गुर्जर को, ब्राह्मण- ठाकुर को और अन्य जातियों को आपस में लड़ाने के प्रयास हो रहे थे। सपा के एक बड़े नेता ने बताया है कि यह उनकी सोची समझी रणनीति है, इसीलिए वे इन मुद्दों पर बात कर रहे हैं।
विधायक ने प्रशासन से इस मामले में ठोस कार्रवाई की मांग की है।
गौरतलब है की गृह मंत्री अमित शाह के एक कथित वीडियो को एडिट कर वायरल किया गया है। सोशल मीडिया के एक ग्रुप पर 16 सेकंड का वीडियाे डाला गया है जिसे फर्जी बताया गया है। वीडियो में दिखाया गया है कि अमित शाह ने एक चुनावी भाषण में कहा था कि अगर सरकार दोबारा बनती है तो आऱक्षण खत्म कर दिया जाएगा।
एसीपी लोनी सूर्यबली मोर्य ने बताया कि मामले में शिकायत मिल गई है और शिकायत के आधार पर जांच की जा रही है।
(आईएएनएस)
रांची, 29 अप्रैल । सुप्रीम कोर्ट ने मनी लॉन्ड्रिंग मामले में जेल में बंद झारखंड की निलंबित आईएएस पूजा सिंघल की जमानत अर्जी खारिज कर दी है। उनकी याचिका पर सोमवार को हुई सुनवाई और बहस के बाद अदालत ने उन्हें बेल देने से इनकार कर दिया।
पूजा सिंघल को झारखंड के खूंटी में मनरेगा घोटाले से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग केस में ईडी ने 11 मई 2022 को गिरफ्तार किया था। इसके पहले एजेंसी ने उनके आवास सहित विभिन्न ठिकानों पर छापेमारी की थी। इस दौरान उनके पति अभिषेक झा के सीए सुमन कुमार के आवास से 20 करोड़ रुपए नकद बरामद किए थे। जेल भेजे जाने के बाद झारखंड सरकार ने उन्हें निलंबित कर दिया था।
कोर्ट ने उन्हें पुत्री के इलाज के लिए कुछ दिनों के लिए जमानत दी थी, लेकिन बाद में उन्हें फिर सरेंडर करने का आदेश दिया गया था। इसके बाद सिंघल ने 12 अप्रैल 2023 को रांची ईडी की विशेष कोर्ट में सरेंडर किया था। तब से वह रांची के बिरसा मुंडा केंद्रीय कारागार में न्यायिक हिरासत में हैं।
मनी लॉन्ड्रिंग केस में उनके पति अभिषेक झा भी आरोपी हैं, लेकिन सुप्रीम कोर्ट से उन्हें अग्रिम जमानत मिली हुई है। पूजा सिंघल ने खराब स्वास्थ्य का हवाला देते हुए जमानत की गुहार लगाई थी। उनके वकील ने दलील दी थी कि पूजा सिंघल 585 दिनों से जेल में बंद हैं। ईडी ने उनके खिलाफ चार्जशीट दाखिल कर दी है। उनका स्वास्थ्य लगातार खराब चल रहा है। इसलिए उन्हें जमानत दी जाए।
(आईएएनएस)
रायपुर, 29 अप्रैल। राजधानी में गुंडे बदमाशो के हौसले बुलंद बने हुए हैं। अब गली मोहल्ले छोड़ सरकारी कॉलोनियों में बेखौफ घुसकर मारपीट कर लूट की घटनाओं को अंजाम दे रहे है।
बीती रात लोको रेलवे कॉलोनी में एक घटना हो गई। ड्यूटी से वापस लौटे रेल कर्मचारी को घर का ताला खोलते हुए 5-10 अज्ञात बदमाशों ने घर में घुसकर मारपीट के बाद मोबाइल लूटकर हुए फरार हो गए।
रेलवे कर्मचारी हार्दिक दास डीआरएम ऑफिस के पीआरओ सेक्शन में एमटीएस के पद पर पदस्थ हैं। दास को कई गंभीर चोटें आईं हैं। उनका इलाज चल रहा है ।दास की रिपोर्ट पर गुढियारी पुलिस पड़ताल कर रही बै।
दूध गर्म करते समय हादसा
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
भिलाई नगर, 29 अप्रैल। आज सुबह दूध गर्म करते वक्त अचानक सिलेंडर लीकेज हो गया, जिसके कारण मां और दो बच्चे सिलेंडर से निकल रही आग के चपेट में आने से झुलस गए।
इस हादसे में महिला का चेहरा और हाथ पैर झुलस गया, वहीं उसके दो बच्चे भी आग की चपेट में आए हैं।
भिलाई के सुपेला में रहने वाली आशा नायक अपने दो बच्चों के साथ किचन में दूध गर्म कर रही थी, इसी बीच अचानक से सिलेंडर में लीकेज होने लगा और देखते ही देखते आग निकलने लगी।
आशा आग की चपेट में आ गई, इसके बाद आशा चिल्लाने लगी। तेज आवाज सुनकर आस पड़ोस के लोग आशा नायक के घर पहुंचे और तत्काल आग को बुझाकर तीनों को सुपेला अस्पताल ले गए, जहां उसका इलाज किया जा रहा है।
रायपुर, 29 अप्रैल। प्रवर्तन निदेशालय (ED) के कार्यालय अब सीआईएसएफ के सुरक्षा घेरे में रहेंगे। हाल के महीनों में पश्चिम बंगाल और कुछ अन्य शहरों में ईडी अमले पर हुए हमलों को देखते हुए यह निर्णय लिया गया है । छत्तीसगढ़ में भी कांग्रेस शासन काल के दौरान धरने,प्रदर्शन और झूमाझटकी होते रहे हैं ।
देश भर में विपक्षी नेताओं पर हो रही कार्रवाई से उनके समर्थकों के विरोध प्रदर्शन और ईडी अधिकारियों पर हमले की लगातार बढ़ती घटनाओं के बाद केंद्रीय गृह मंत्रालय ने बड़ा फैसला लिया है। अब कई शहरों में ईडी दफ्तरों के बाहर केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (सीआईएसएफ) के जवानों की तैनाती की जाएगी। सूत्रों का मुताबिक ईडी के कोलकाता, रांची, रायपुर, जयपुर, जालंधर, कोच्चि और मुंबई कार्यालयों के बाहर सीआईएसएफ की तैनाती जल्द हो सकती है। वैसे ईडी के देशभर में 40 शहरों में ईडी आफिस हैं इनमें 21जोनल और 28 सब जो नल आफिस कार्यरत हैं।
सीआईएसएफ ही एकमात्र ऐसा केंद्रीय अर्धसैनिक बल है जिसे आमतौर पर प्रतिष्ठानों के बाहर तैनात किया जाता है। इसके हवाले एयरपोर्ट, मेट्रो से लेकर कई बड़ी कंपनियों के ऑफिस हैं।
कांग्रेस शासन काल में छत्तीसगढ़ में भी,पुजारी कांप्लेक्स स्थित उप जोनल कार्यालय में भी कांग्रेस के नेता कार्यकर्ताओं ने कई बार प्रदर्शन, घेराव धरने दिए थे। इतना ही नहीं महापौर निवास में जांच के लिए गए ईडी अफसरों से झूमाझटकी की गई थी। सूत्रों का कहना है कि आने वाले दिनों में ईडी और बड़ी कार्रवाई करने की तैयारी कर रहा है,इस दौरान विरोध और बढ़ने को देखते हुए गृह मंत्रालय ने ईडी को सीआईएसएफ का सुरक्षा घेरा बढ़ाने का फैसला किया है।
रायपुर कार्यालय की सुरक्षा को लेकर सूत्रों का कहना है कि सामान्य दिनों में कोई सुरक्षा जवान नहीं रहते। गेट खोलकर आसानी से अंदर जाकर वापस लौटा जा सकता है । किसी बड़ी कार्रवाई या पूछताछ के दौरान सीआरपीएफ के जवान तैनात किए जाते हैं । अब पूरी सुरक्षा कमान ही सीआईएएसएफ के पास रहेगी।
लोरमी में जनसभा
लोरमी, 29 अप्रैल। उपमुख्यमंत्री अरुण साव ने रविवार देर रात्रि तक मैराथन प्रचार कर लोरमी विधानसभा के सभी वनग्रामों को भाजपामय कर दिया है। ग्रामीणों ने भी कहा कि जिसने गरीबों के लिए आवास बनाया, मुफ्त चावल दिया, नल से जल पहुंचाया, हम उनको जिताएंगे।
डिप्टी सीएम श्री साव ने कहा कि, साय सरकार महिलाओं को हर महीने एक हजार रुपए दे रही है। आज तक किसी सरकार ने आपको पैसा नहीं दिया है। आपने कमल छाप को जिताया है, इसलिए पैसा मिल रहा है। ये एक हजार रुपए मिलता रहे, इसलिए 7 मई को कमल में बटन दबाना है। मोदी जी की सरकार बनाना है।
श्री साव ने आमसभा में उपस्थित बुजुर्गों को बताया कि, 70 साल के ऊपर के बुजुर्गों से फॉर्म भरवाया जाएगा। फिर 5 लाख रुपए तक मुफ्त में इलाज होगी। बीमार पड़ने पर इलाज की चिंता नहीं करनी पड़ेगी।
श्री साव ने अखरार, खुड़िया, बिजराकछार, मंजूरहा, डंगनिया, महामाई, निवासखार, बम्हनी, अतरिया, सुरही, कटामी, छपरवा, बिंदावल व अचानकमार में कहा कि, आपने कमल का बटन दबाकर विधायक और उपमुख्यमंत्री बनाया है। चुनाव के समय किया गया वादा पूरा किया है। महतारी वंदन के तहत एक हजार रुपए दिए हैं। दो साल का बकाया बोनस दिया और 3100 रुपए में धान की खरीदी की गई। ये सब मिले इसलिए कमल को चुनना है।
डिप्टी सीएम श्री साव ने कहा कि गांवों में बिजली, सड़क, पानी की समस्या का समाधान करना है। क्षेत्र के बेटा तोखन साहू को सांसद बनाना है। दिल्ली में आपका बेटा पहुंचेगा तो विकास तेज गति से होगी।
उपमुख्यमंत्री ने बताया कि, पंजा वाले फॉर्म भरा रहे है, वो झूठा फॉर्म है। पंजा के चक्कर में नहीं आना है। जो गरीबों के विकास के लिए काम किया, उन्हें मौका देना है।
श्री साव ने बताया कि, सौर ऊर्जा से बिजली मिलेगी। मैं व्यवस्था कर दिया हूं। वहीं ग्रामीणों ने इस बात पर खुशी जताई और ताली बजाकर आभार जताया।
श्री साव ने कहा कि, पीएम मोदी जी ने अयोध्या में राम मंदिर बनवाई है। श्री रामलला योजना के तहत अयोध्या की निशुल्क यात्रा करा रही है,चुनाव के बाद आप सभी को ट्रेन से यात्रा कराई जाएगी।
साव के साथ तखतपुर के वरिष्ठ विधायक धर्मजीत सिंह ने भी जनसंपर्क व आमसभा किया। वहीं लोरमी क्षेत्र के देवतुल्य भाजपा कार्यकर्ताओं ने भी उपमुख्यमंत्री के साथ गांवों में मैराथन प्रचार किया ।
रायपुर, 29 अप्रैल। बेमेतरा-सिमगा सीमा क्षेत्र के पास कठिया गांव में हुई सड़क दुर्घटना में हुई आठ लोगो की मौत पर मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने गहरा शोक व्यक्त किया है। घायलों के बेहतर इलाज के उन्होंने निर्देश दे दिए है।
सीएम ने अपने सोशल मिडिया हैंडल x पर लिखा है कि बेमेतरा-सिमगा सीमा क्षेत्र के पास कठिया गांव में हुई सड़क दुर्घटना में बेमेतरा के पथर्रा गांव के 8 लोगों के निधन एवं 20 लोगों के घायल होने की दुःखद सूचना प्राप्त हुई है।
घायलों के बेहतर इलाज के आवश्यक निर्देश ज़िला प्रशासन को दिए गए है।
मृतको के परिवार के प्रति गहरी शोक संवेदना एवं घायलों के शीघ्र स्वास्थ्य लाभ की कामना करता हूँ।
-आलोक पुतुल
छत्तीसगढ़ के बेमेतरा में हुए एक सड़क हादसे में 10 लोगों की मौत हो गई है. इस दुर्घटना में 22 अन्य घायल हैं, जिनमें से कई की हालत गंभीर बनी हुई है.
ज़िलाधिकारी ने बीबीसी को बताया है कि ''बेमेतरा के पथर्रा गांव के रहने वाले लगभग 30 लोग एक पिकअप में सवार होकर, एक पारिवारिक कार्यक्रम से लौट रहे थे. कठिया गांव के पास देर रात उनकी पिकअप गाड़ी, पहले से सड़क पर खड़ी एक ट्रक में जा घुसी.''
''यह टक्कर इतनी ज़बरदस्त थी कि नौ लोगों की मौके पर ही मौत हो गई. मरने वालों में पांच महिलाएं और तीन बच्चे भी शामिल हैं. इसके अलावा 22 लोग गंभीर रूप से घायल हो गए.''
इस हादसे में घायल लोगों को स्थानीय ज़िला अस्पताल में भर्ती किया गया है, जबकि चार गंभीर लोगों को रायपुर स्थित एम्स में भर्ती किया गया है.
अस्पताल प्रबंधन का कहना है कि घायलों की हालत स्थिर बनी हुई है. (bbc.com/hindi)
बेंगलुरु, 29 अप्रैल। कर्नाटक में चामराजनगर लोकसभा क्षेत्र के इंदीगानाथा गांव में एक मतदान केंद्र पर सोमवार को कड़ी सुरक्षा के बीच मतदान कराया जा रहा है।
मतदान सुबह सात बजे शुरू हुआ और शाम छह बजे तक चलेगा।
इंदीगानाथना गांव के इस मतदान केंद्र पर 26 अप्रैल को मतदान के दौरान कुछ इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) के साथ तोड़फोड़ की खबरों के बाद निर्वाचन आयोग ने पुन: मतदान का आदेश दिया था।
लोकसभा चुनाव में मतदान करने या नहीं करने को लेकर दो समूहों के बीच झगड़े के बाद ईवीएम के साथ तोड़फोड़ की गई थी।
जिला प्रशासन के अनुसार, पहले ग्रामीणों ने पर्याप्त बुनियादी सुविधाएं नहीं होने का हवाला देते हुए मतदान के बहिष्कार का आह्वान किया था। हालांकि, स्थानीय प्रशासन के आश्वासन और प्रयासों के बाद मतदान कराया जा रहा है। (भाषा)
बेंगलुरु, 29 अप्रैल। कर्नाटक के चामराजनगर से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री वी श्रीनिवास प्रसाद का सोमवार को निधन हो गया। उनके परिवारिक सूत्रों ने यह जानकारी दी।
प्रसाद का बेंगलुरु के एक निजी अस्पताल में इलाज जारी था। वह 76 वर्ष के थे। प्रसाद के परिवार में उनकी पत्नी और तीन बेटियां हैं।
प्रसाद चामराजनगर से छह बार सांसद और मैसूरु जिले के नंजनगुड से दो बार विधायक चुने गए। वह पिछले कुछ समय से बीमार थे।
प्रसाद ने इस साल 18 मार्च को चुनावी राजनीति से संन्यास लेने की घोषणा की थी।
उन्होंने 1976 में तत्कालीन जनता पार्टी के साथ अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत की थी। इसके बाद 1979 में वह कांग्रेस में शामिल हो गए थे। भाजपा में शामिल होने से पहले वह जनता दल (सेक्युलर), जनता दल (यूनाइटेड) और समता पार्टी में भी रहे थे।
प्रसाद ने 1999 से 2004 तक पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में केंद्रीय उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण राज्य मंत्री के रूप में सेवाएं दी थीं। इसके बाद वह कांग्रेस में शामिल हो गए थे।
कांग्रेस में शामिल होने के बाद प्रसाद 2013 में विधायक चुने गए और सिद्धरमैया सरकार में उन्होंने राजस्व और धार्मिक बंदोबस्ती मंत्री का पद संभाला।
प्रसाद ने 2016 में कर्नाटक विधानसभा से इस्तीफा दे दिया और वह फिर से भाजपा में शामिल हो गए। उन्होंने 2017 में भाजपा के टिकट पर नंजनगुड उपचुनाव लड़ा था, लेकिन वह हार गए थे। इसके बाद वह 2019 में चामराजनगर से लोकसभा चुनाव में विजयी रहे थे। (भाषा)
नयी दिल्ली, 28 अप्रैल। दिल्ली के कैबिनेट मंत्री सौरभ भारद्वाज ने रविवार को कहा कि आम आदमी पार्टी (आप) को यकीन है कि उच्चतम न्यायालय मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को लोकसभा चुनाव में प्रचार करने की अनुमति देगा।
दिल्ली के कथित आबकारी नीति घोटाला से संबंधित धनशोधन मामले में अपनी गिरफ्तारी को चुनौती देने वाली केजरीवाल की याचिका पर उच्चतम न्यायालय सोमवार को सुनवाई करेगा।
भारद्वाज ने कहा, "हमें यकीन है कि इस देश में लोकतंत्र को बचाने और चुनाव प्रणाली की रक्षा के लिए उच्चतम न्यायालय निश्चित रूप से अरविंद केजरीवाल को प्रचार करने की अनुमति देगा।" (भाषा)
नयी दिल्ली, 28 अप्रैल। आम आदमी पार्टी ने दावा किया है कि तिहाड़ जेल प्रशासन ने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की पत्नी सुनीता केजरीवाल को उनके पति से 29 अप्रैल को मिलने की अनुमति नहीं दी है।
तिहाड़ जेल के आधिकारिक सूत्रों ने कहा कि दिल्ली की मंत्री आतिशी को अनुमति दे दी गई है जिन्होंने 29 अप्रैल को केजरीवाल से मिलने के लिए पिछले सप्ताह आवेदन किया था, जबकि सुनीता का आवेदन आज ही प्राप्त हुआ।
तिहाड़ जेल के एक सूत्र ने कहा, "केजरीवाल से सुनीता मिलती रही हैं और उन्हें अनुमति देने से इनकार करने का कोई सवाल ही नहीं है। हमें नियमों का पालन करना होगा और आतिशी की मुलाकात के लिए तैयारियां पहले ही कर ली गई हैं।"
हालांकि आप सूत्रों ने तिहाड़ जेल प्रशासन के दावे को खारिज किया।
पार्टी के एक पदाधिकारी ने कहा, ''सुनीता केजरीवाल और आतिशी के नाम सोमवार (29 अप्रैल) को मुख्यमंत्री से मुलाकात के लिए 27 अप्रैल को तिहाड़ प्रशासन को भेजे गए थे। जेल प्रशासन ने हमें अभी सूचित किया कि वे सुनीता केजरीवाल को सोमवार को मुख्यमंत्री से मिलने की अनुमति नहीं देंगे।’’
सोशल मीडिया मंच पर ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में पार्टी ने आरोप लगाया, "मोदी सरकार के इशारे पर तिहाड़ जेल प्रशासन ने सुनीता केजरीवाल की उनके पति अरविंद केजरीवाल से मुलाकात रद्द कर दी। मोदी सरकार अमानवीयता की सारी हदें पार कर रही है।"
पार्टी ने कहा, "सुनीता केजरीवाल को कल (सोमवार) उनसे मिलना था, लेकिन तिहाड़ प्रशासन ने अनुमति देने से इनकार कर दिया है। जेल प्रशासन ने अनुमति देने से इनकार करने का कोई कारण नहीं बताया है।"
पार्टी की ओर से कहा गया, "एक निर्वाचित मुख्यमंत्री के साथ आतंकवादी जैसा व्यवहार किया जा रहा है। मोदी सरकार को देश की जनता को बताना चाहिए कि वह सुनीता केजरीवाल जी को उनके पति अरविंद केजरीवाल जी से क्यों नहीं मिलने दे रही है।"
तिहाड़ जेल के एक अन्य सूत्र ने कहा कि जेल नियमावली के अनुसार एक कैदी सप्ताह में दो बार आगंतुकों से मिल सकता है और उनमें से दो एक समय में मिल सकते हैं।
आधिकारिक सूत्र ने कहा, "आतिशी के लिए टोकन नंबर और अन्य औपचारिकताओं को अंतिम रूप दे दिया गया है। सुनीता बाद में मिल सकती हैं।" (भाषा)