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-अनुराग भारद्वाज
सन 1953 में आई ‘दो बीघा ज़मीन’ ने दुनिया भर के फ़िल्मकारों का ध्यान अपनी ओर खींचा था. इस फिल्म के जरिये पहली बार हिंदुस्तानी सिनेमा में ‘निओ-रिअलिस्म’ की तस्वीर पेश हुई थी. इतालवी सिनेमा से प्रेरित ‘नियो-रिअलिस्म का नज़दीकी हिंदी रूपांतरण ‘नव-यथार्थवाद’ हो सकता है. इस फिल्म के निर्देशक थे बिमल रॉय जिन्होंने हिंदुस्तानी सिनेमा को एक नया रास्ता दिखाया.
दूसरे विश्व युद्ध में फ़ासीवाद ने इटली के समाज की परतें उधेड़ कर रख दी थीं. मुसोलिनी के डर से जहां अन्य फ़िल्मकार सब हरा-हरा ही दिखा रहे थे तो रॉबर्ट रोसेलिनी, वित्तोरियो डी सिका और विस्कोन्ती जैसे कुछ फिल्मकार भी थे जो समाज में उपजे वर्ग संघर्ष को दिखा रहे थे. ‘नव-यथार्थवाद’, शोषित और शाषक के बीच का द्वंद दिखाता है. यही द्वंद मैक्सिम गोर्की के उपन्यास ‘मदर’ या अप्टन सिंक्लैर के ‘जंगल’ में भी दिखता है.
भारतीय परिपेक्ष्य में इस संघर्ष को सबसे पहले दिखाती बिमल रॉय की ‘उदेर पाथेय’(1944) ने बंगाली सिनेमा में तूफ़ान ला दिया था. स्वभाव से शांत रहने वाले बिमल रॉय को फ़िल्म पत्रकार बुर्जोर खुर्शीदजी करंजिया ने ‘साइलेंट थंडर’ की उपमा दी थी.
उनकी पुत्री रिंकी भट्टाचार्य की क़िताब ‘बिमल रॉय- अ मैन ऑफ़ साइलेंस’ में वे सारे पहलू हैं जो बिमल दा की ज़िंदगी को छूकर निकले. जैसे बिमल दा ने निर्माता निर्देशक बीएन सरकार की निगहबानी में न्यू थिएटर्स (कोलकाता) से बतौर कैमरामैन अपना फ़िल्मी सफ़र शुरू किया था. पीसी बरुआ निर्देशित और केएल सहगल अभिनीत ‘देवदास’ फ़िल्म के वे फोटोग्राफर रहे. 40 के दशक में न्यू थिएटर्स और बंगाल सिनेमा का बिखराव हो रहा था. न्यू थिएटर्स के लिए बनाई गईं उनकी फिल्में जैसे ‘अंजनगढ़’, ‘मंत्रमुग्ध’ और ‘पहला आदमी’ फ्लॉप हो गयीं. ‘उदेर पाथेय’ के हिंदी रीमेक ‘हमराही’ (1945) ने औसत व्यवसाय किया. हां, बिमल रॉय की बतौर डायरेक्टर बहुत तारीफ हुई और इसमें पहली बार रबींन्द्रनाथ टैगोर के ‘जन गण मन’ गीत को लिया गया. अपनी किताब में रिंकी भट्टाचार्य आगे लिखती हैं, ‘मुंबई में ‘पहला आदमी’ के प्रीमियर पर मिली प्रतिक्रिया ने उन्हें और निराश कर दिया था, वो भारी मन से कोलकाता लौट गए.’
अब आगे जो क़िताब में नहीं है, वह यूं है कि क़िस्मत को कुछ और ही मंज़ूर था. उन दिनों हिंदी सिनेमा पर बंगाली प्रभाव बढ़ रहा था. बिमल दा के अनन्य मित्र हितेन चौधरी ने अभिनेता अशोक कुमार से मिलकर उन्हें बॉम्बे टाकीज़ की एक फ़िल्म 25000 रु बतौर मेहनताना निर्देशन के लिए दिलवा दी. बॉम्बे टाकीज़ की स्थापना देविका रानी के पति हिमांशु रॉय और, संगीतकार मदन मोहन के पिता रायबहादुर चुन्नीलाल ने की थी. बिमल दा ने बॉम्बे टाकीज़ के लिए ‘मां’ (1952) फ़िल्म का निर्देशन किया जो अमेरिकी फ़िल्म ‘ओवर द हिल्स’ से प्रेरित थी. फिल्म ज़बरदस्त हिट हुई और फिर बिमल दा हमेशा के लिए मुंबई के होकर रह गए. बाद में अशोक कुमार के ही कहने पर उनके प्रोडक्शन हाउस ‘फ़िल्मिस्तान’ के तले उन्होंने ‘परिणीता’(1953) का निर्देशन किया.
इन फिल्मों की सफलता से हौसला बढ़ा तो उन्होंने ‘बिमल रॉय प्रोडक्शन्स’ की स्थापना कर ‘दो बीघा ज़मीन’ बनायी. इस फ़िल्म के बनने के पीछे अगर कोई शख्स था, तो वे थे, ऋषिकेश मुखर्जी. हुआ यह कि 1952 में मुंबई में अंतरराष्ट्रीय फ़िल्म फ़ेस्टिवल हुआ जिसमें ‘बायसाइकिल थीव्स’ और ‘रोशोमन’ जैसी फिल्मों का मंचन हुआ था. इन फ़िल्मों का ऐसा प्रभाव हुआ कि लौटते वक़्त बिमल दा और अन्य सभी ख़ामोश थे. तभी ऋषिकेश मुखर्जी उनसे बोले कि वे ऐसी फिल्में क्यूं नहीं बनाते. बिमल दा ने कहानी के न होने का अभाव बताया, तो ऋषि दा ने तुरंत कहा कि उनके पास एक कहानी है - ‘रिक्शावाला’. हालांकि यह कहानी महज़ कुछ ही पन्नों की थी. ऋषि दा ने इस पर 24 पन्नों की स्क्रिप्ट तैयार करके बिमल दा को फ़िल्म बनाने के लिए मजबूर कर दिया.
दुसरे विश्व युद्ध की पृष्ठभूमि में वित्तोरियो डी सिका की ‘बायसाइकिल थीव्स’ एक पिता और पुत्र की कहानी है जो अपनी चोरी की गयी साइकिल को खोजने निकले हैं. अगर साइकिल न मिली तो पिता नौकरी नहीं कर पायेगा जिससे परिवार पर संकट आ जाएगा. ‘दो बीघा ज़मीन’ में पिता (बलराज साहनी) अपने बेटे के साथ कोलकाता आकर गांव में दो बीघा ज़मीन को बचाने के लिए साइकिल रिक्शा चलाता है. दोनों ही फिल्मों में ‘पिता’ हार जाते हैं!
बिमल दा की सिनेमाई सोच को समझने के लिए इस फिल्म से जुड़ा एक क़िस्सा जानना ज़रूरी है. बॉम्बे टाकीज़ के मालिक इसके कलाकारों के चयन को लेकर संतुष्ट नहीं थे. उनके मुताबिक़ पंजाब से ताल्लुक रखने वाले बलराज साहनी कुछ ज़्यादा ही गोरे थे और निरूपा रॉय फिल्मों में देवियों का किरदार निभाती थीं. दोनों का ग्रामीण परिवेश में फिट बैठना कुछ अटपटा था. बिमल दा अड़ गए. शायद इसलिए कि बलराज साहनी समाजवादी विचारधारा से प्रभावित थे. फ़िल्म भी सर्वहारा की ज़िंदगी पर आधारित थी. लिहाज़ा बिमल दा के मुताबिक़ बलराज किरदार के साथ न्याय करने की कुव्वत रखते थे.
समाजवाद से प्रेरित और सिनेमा से सर्वहारा की आवाज़ उठाने वाले बिमल दा पर कमर्शियल यानी व्यावसायिक फ़िल्में बनाने का ज़बरदस्त दवाब था. उनका कमाल था कि बॉक्स ऑफिस की ज़रूरत को ध्यान में रखते हुए भी वे अपने मनपसंद विषयों पर फिल्म बना लेते थे. ‘नौकरी(1954) और ‘मधुमती’(1958) इसी का नतीजा थीं. ‘मधुमती’ बॉम्बे टाकीज़ की फ़िल्म ‘महल’ (1949) से प्रेरित थी. इसके एडिटर बिमल दा ही थे. ‘पुनर्जन्म’ की अवधारणा पर बनी ‘मधुमती’ हिंदुस्तान के सिनेमा में मील का पत्थर है जिसने हिंदी सिनेमा ही नहीं, हॉलीवुड को भी ‘रीइंकारनेशन ऑफ़ पीटर प्राउड’ बनाने के लिए प्रेरित किया था. आगा हश्र कश्मीरी की कहानी ‘यहूदी की लड़की’ से प्रेरित उन्होंने ‘यहूदी’ बनाई. जात-पांत और छूत-अछूत के मुद्दे पर ‘सुजाता’ (1959) हो गया लोकतंत्र पर व्यंग करती ‘परख’(1960), या फिर स्त्री केंद्रित ‘बंदिनी’ (1963), ये सारी फिल्में उनकी रेंज दिखाती हैं. इत्तेफ़ाक है कि बॉम्बे टाकीज़ ने इसी विषय पर ‘अछूत कन्या’ बनाई थी, जिसमें देविका रानी ने ये किरदार निभाया था. दोनों ही कमाल की फिल्में हैं. पर टीस इस बात की है कि दोनों ही में तथाकथित ‘नीची जाति’ की लड़की को बलिदान करते हुए दिखाया गया है. गोकि सहानभूति के ज़रिये ही बराबरी पर आया जा सकता है.
बिमल दा शरतचंद के साहित्य से इतने प्रभावित थे कि उनकी कहानियों पर उन्होंने तीन फ़िल्में बनायीं. ‘देवदास’, ‘परिणीता’ और ‘बिराज बहू’. जानकारों का मानना है कि उनकी बनाई ‘देवदास’ शरत बाबू की कहानी के सबसे नज़दीक है. कुछ हद तक दिलीप कुमार की ‘ट्रेजेडी किंग’ की छवि के लिए ‘देवदास’ और ‘यहूदी’ भी ज़िम्मेदार हैं.
बिमल दा सिर्फ फ़िल्मकार ही नहीं थे. अपने आप में एक संस्था थे. उन्होंने सलिल चौधरी, ऋषिकेश मुखर्जी, ऋत्विक घटक, कमल बोस, नुबेंदु घोष, रघुनाथ झालानी और गुलज़ार जैसे नायाब लोग हिंदी सिनेमा को दिए. गुलज़ार और बिमल दा के ‘बंदिनी’ के दौरान मिलने की दास्तां आप इस वीडियो के ज़रिये जान सकते हैं. गुलज़ार के लिए वे डायरेक्टर या गुरू से बढ़कर पिता समान थे. उन्होंने शायरी की ज़ुबान में बिमल दा पर एक पोट्रेट भी लिखा है और अपनी क़िताब ‘रावी पार’ में बिमल दा के साथ हुए अंतिम दिनों की बातचीत का मार्मिक ब्यौरा भी दिया है.
आख़िर ऐसा क्या था एक कैमरामैन के महान डायरेक्टर बनने में जो आज भी हमें उनकी फ़िल्में देखते वक़्त विस्मृत कर देता है? शायद इसका जवाब भी उनकी बेटी की दूसरी क़िताब ‘द मैन हु स्पोक इन पिक्चर्स’ में श्याम बेनेगल के इंटरव्यू में मिलता है. बेनेगल बताते हैं कि कैमरे को लेकर बिमल दा की समझ कमाल की थी. फोटोग्राफी में रोशनी के प्रभाव को जितना बख़ूबी उन्होंने दिखाया है उसका मुकाबला बहुत कम फिल्मकार कर सकते हैं. याद कीजिये ‘बंदिनी’ का वह दृश्य जिसमें कामिनी (नूतन) के मन में द्वंद है कि क्या उसे किसी औरत का क़त्ल कर देना चाहिए. इस सीन में नायक के सामने लोहार काम कर रहे हैं और वेल्डिंग मशीन से निकलता ताप उसके चेहरे पर रोशनी बनकर गिर रहा है. दूसरे ही सीन में डायरेक्टर को यह दिखाना था कि कामिनी ने दूध के ग्लास में ज़हर मिलाया है. इसको दर्शाने के लिए उन्होंने ज़हर की शीशी और ग्लास की तस्वीरों को एक साथ मिला दिया है!
फ़िल्म का सेट बनाने के बजाय बिमल रॉय आउटडोर लोकेशन को ज़्यादा तरजीह देते थे. मसलन, ‘दो बीघा ज़मीन’ में हावड़ा ब्रिज पर शूटिंग करना उन दिनों वाक़ई कमाल की बात थी. उस वक़्त का सिनेमा जहां अतिरेक से लबरेज़ था तो वहीं बिमल दा ने किरदारों को हकीक़त की ज़मीन पर ही रखा. किसी को ‘लार्जर देन लाइफ’ नहीं बनाया. उनका कहानियों का चयन एक तरफ साहित्यिक था, जैसे रबींद्रनाथ टैगोर की ‘काबुलीवाला’ (बतौर प्रोडूसर) और शरत बाबू का ‘देवदास’, तो दूसरी तरफ ‘सुजाता’ या ‘दो बीघा ज़मीन’ ऐसी समकालीन कहानियां थीं जिनमें सर्वहारा इंसान समाज में अपना वजूद ढूंढ रहा था.
निर्विवाद रूप से सत्यजीत रे भारत के सबसे महान फ़िल्मकार हुए हैं और बिमल दा को उनसे एक पायदान नीचे खड़ा होना पड़ता है. शायद इसलिए कि सत्यजीत रे के सामने कमर्शियल फ़िल्म बनाने की मज़बूरी नहीं थी. उन्होंने बिमल दा की तरह ये समझौते नहीं किए. और दूसरा, बिमल दा जल्द ही दुनिया से विदा हो गए. आपको ताज्जुब होगा यह जानकर कि उन्हें हिंदी नहीं आती थी.(satyagrah)
-भारत डोगरा
हिंदी सिनेमा को प्रायः फार्मूला फिल्मों से जोड़कर देखा जाता है, पर समय-समय पर अनेक गंभीर फिल्मों ने बहुत सार्थक मुद्दे भी उठाए हैं। आज कोविड-19 के दौर में संक्रमण रोग चर्चा में हैं तो संक्रमण रोगों पर बनी अनेक सार्थक हिंदी फिल्में याद आती हैं।
चेतन आनन्द की विख्यात फिल्म नीचा नगर ने स्लम बस्ती में फैले संक्रमण रोग को अन्याय और विषमता से जोड़कर देखा। एक बहुत रसूख वाले बिल्डर की नजर एक ऐसी जमीन पर बड़ी इमारत बनाने की थी जिसकी कीमत बहुत बढ़ रही थी। पर इसके लिए जरूरी था कि एक गंदे नाले का बहाव स्लम बस्ती की ओर कर दिया जाए। ऐसा करने पर स्लम बस्ती में संक्रमण रोग फैल जाता है।
इस फिल्म को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कृत किया गया। कामिनी कौशल का फिल्मी सफर इस फिल्म से ही आरंभ हुआ, और विख्यात संगीतकार रवि शंकर के लिए भी यह फिल्मी जगत में प्रवेशद्वार था। इस रोग की त्रासद स्थितियों को, बहुत कठिन हालात में निर्धन लोगों की एकजुटता और साहस को फिल्म में प्रभावशाली ढंग से दिखाया गया है।
वी. शान्ताराम ने एक कालजयी फिल्म बनाई थी ‘डाक्टर कोटनिस की अमर कहानी’ जो एक महान डाक्टर के प्रेरणादायक जीवन पर आधारित थी। डाक्टर कोटनिस बहुत प्रतिकूल स्थितियों में चीन के लोगों का साथ देने के लिए वहां द्वितीय विश्व यु़द्ध के दौरान पहुंचे और वहां अन्य उपलब्ध्यिों के साथ उन्होंने अपने जीवन को खतरे में डालकर भी चीनी सैनिकों और गांववासियों को संक्रामक रोग से बचाया। यही बेहद प्रेरणादायक वास्तविक जीवन की कहानी इस फिल्म में दिखाई गई है। डाक्टर कोटनिस की यादगार भूमिका वी. शान्ताराम ने स्वयं की है।
‘नीचा नगर’ और ‘डाक्टर कोटनिस की अमर कहानी’ दो ऐसी फिल्में हैं जो सार्थक हिंदी सिनेमा के इतिहास में अपना स्थान सदा बनाए रखेंगी। लगभग छः-सात दशक बीत जाने के बाद भी इन फिल्मों को देखा जाता है और इन्हें भरपूर प्रशंसा भी मिलती है।
ओ.पी. रलहन की लोकप्रिय फिल्म ‘फूल और पत्थर’ (धर्मेंद्र, माला सिन्हा) वैसे तो एक अपराधी के सुधार की कहानी है, पर इस कहानी में निर्णयक मोड़ एक संक्रमण रोग के समय ही आता है। एक गैंगस्टर की भूमिका में धर्मेंद्र को एक गांव के धनी परिवार के हीरे-जवाहरात चुराने के लिए भेजा जाता है, पर इस मौके पर गांव में प्लेग फैल जाता है और अन्य गांववासियों सहित धनी-परिवार हीरे-जवाहरात लेकर गांव से भाग जाता है। धर्मेंद्र को हीरे तो नहीं मिलते, पर इस धनी परिवार की एक विधवा बहू मिलती है (मीना कुमारी), जिसे धनी परिवार ने यहां प्लेग से मरने के लिए छोड़ दिया है। इस फिल्म में सुधार और त्याग का महत्त्वपूर्ण संदेश है। अचानक प्लेग की चपेट में आए गांव से भागते लोगों और उजड़े हुए वीरान गांव का चित्रण बहुत असरदार ढंग से हुआ है।
संक्रामक रोगों से जुड़े स्टिग्मा के कारण प्रायः हिंदी फिल्म के नायक को इन रोगों से दूर रखा गया है, पर राज कपूर ने अपनी लोकप्रिय फिल्म ‘आह’ में तपेदिक के मरीज की भूमिका बहुत असरदार ढंग से निभाई थी। नायक कोे इलाज के लिए अनेक महीने सैनेटोरियम में भी गुजारने पड़ते हैं और हंसी खुशी की दुनिया से उसे अचानक पूरे अकेलेपन और वीराने में धकेल दिया जाता है। अपने बहुत लोकप्रिय संगीत के कारण भी यह फिल्म चर्चित रही।
अनेक फिल्मों में नायक तो नहीं पर उसके परिवार के किसी व्यक्ति को संक्रामक रोग (प्रायः तपेदिक या टीबी) से ग्रस्त पाया गया और नायक को इलाज के लिए बड़े प्रयास करते हुए दिखाया गया। गुरुदत्त निर्देशित फिल्म बाजी में देव आनन्द को इसी तरह की भूमिका में अपनी तपेदिक से ग्रस्त बहन के लिए बहुत प्रयास करते हुए दिखाया गया। अनुराधा और आनन्द में क्रमशः बलराज साहनी और अमिताभ बच्चन का सेवा भावना से प्रेरित डाक्टरों के रूप में दिखाया गया तो निर्धन, संक्रामक रोगों से त्रस्त मरीजों के लिए बहुत चिंतित हैं।
आज भी जब डाक्टरों को सेवाभाव से कार्य करने की प्रेरणा देनी होती है तो इन तीन फिल्मों को देखने के लिए प्राय कहा जाता है - ‘अनुराधा’ ‘आनन्द’ और ‘डाक्टर कोटनिस की अमर कहानी’।
‘एक डाक्टर की मौत’ फिल्म में ऐसे डाक्टर की कहानी है जो कुष्ठ रोग (लेप्रोसी) से बचाव केे लिए अथक प्रयास करता है, पर इसका श्रेय दूसरों को दिया जाता है।
‘माई ब्रदर निखिल’ में एक एड्स प्रभावित रोगी की, और उसके बनते-बिगड़ते रिश्तों की मार्मिक कहानी है।
इस तरह के अनेक उदाहरण दिए जा सकते हैं कि संक्रामक रोगों जैसे फार्मूला फिल्मों से दूर के विषय की उपेक्षा हिन्दी सिनेमा ने नहीं की है और इस विषय पर अनेक सार्थक फिल्में बनी हैं। उम्मीद है कि कोविड-19 जैसे बहुचर्चित रोग के विभिन्न आयामों पर भी भविष्य में कुछ यादगार फिल्में हिंदी और अन्य भाषाओं में बन सकेंगी।
‘नीचा नगर’ और ‘डाक्टर कोटनिस की कहानी’ जैसी फिल्मों को कलात्मक फिल्मों की श्रेणी में रखा जाता है जबकि ‘आह’ (राज कपूर, नरगिस) और ‘फूल और पत्थर’ (धर्मेंद्र, माला सिन्हा) जैसी फिल्मों को लोकप्रिय, बड़े सितारों वाली, बाक्स-आफिस पर धन बटोरने वाली फिल्मों की श्रेणी में रखा जाता है। इन दोनों तरह की फिल्मों ने अपने-अपने ढंग से संक्रामक रोगों के महत्त्वपूर्ण पहलुओं को उठाया है और उनके बारे में समझ और संवेदनशीलता बढ़ाने में योगदान दिया है।
ऐसी फिल्मों और फिल्म निर्माताओं का योगदान सराहनीय है, पर साथ में यह नहीं भूलना चाहिए कि हिन्दी फिल्म जगत की कुल फिल्मों में ऐसी सार्थक फिल्मों का प्रतिशत बहुत कम है। ऐसी सार्थक फिल्मों का प्रतिशत बढ़ सके और वे अधिक दर्शकों तक पंहुच सकें, इसके लिए अभी बहुत कुछ करने की जरूरत है और जहां इन प्रयासों में सरकारों का भी महत्त्वपूर्ण योगदान हो सकता है, वहां सार्थक फिल्मों की महत्त्वपूर्ण भूमिका समझने वाले सभी लोगों को आपसी सहयोग से ऐसे प्रयास बढ़ाने चाहिए। हाल के समय में सार्थक, उद्देश्यपूर्ण फिल्मों की संख्या में कमी आई है। ऐसी अधिक फिल्में बन सकें इसके लिए बहुपक्षीय प्रयास जरूरी हैं।(navjivan)
-पुलकित भारद्वाज
राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट के बीच की अंदरूनी खींचतान चरम पर पहुंच चुकी है. इस बात का अंदाज पायलट के उस मैसेज से लगाया जा सकता है जो उन्होंने अपने ऑफिशियल ग्रुप में रविवार रात को भेजा था. सूत्रों के मुताबिक इसमें उन्होंने तीस कांग्रेसी और निर्दलीय विधायकों का समर्थन अपने पक्ष में होने की बात कही थी. जबकि उनके समर्थक इससे पहले ही राजस्थान में अशोक गहलोत सरकार के अल्पमत में आने की घोषणा कर चुके थे.
कांग्रेस से सचिन पायलट के बाग़ी हो जाने के कयासों को तब और हवा मिल गई जब रविवार को उन्होंने अपने करीबी और मध्यप्रदेश में कांग्रेस को बड़ा झटका दे चुके ज्योतिरादित्य सिंधिया से एक लंबी मुलाकात की. सिंधिया के अलावा पायलट के भारतीय जनता पार्टी के कुछ अन्य नेताओं से भी मुलाकात की सूचना है. इस पर ज्योतिरादित्य सिंधिया ने ट्वीट कर कहा था कि - मुझे इस बात का दुख है कि मेरे साथी रह चुके सचिन पायलट को राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने परेशान करते हुए हाशिए पर पहुंचा दिया है. यह दिखाता है कि कांग्रेस में प्रतिभा और योग्यता को बहुत कम महत्व मिलता है.
इससे पहले जब ज्योतिरादित्य सिंधिया के भारतीय जनता पार्टी में शामिल होने के बाद कांग्रेस के अधिकतर छोटे-बड़े नेता उन्हें जमकर आड़े हाथ ले रहे थे, तब सचिन पायलट ने एक बहुत संतुलित सा ट्वीट कर लोगों का ध्यान अपनी तरफ़ खींचा था. उन्होंने लिखा था कि ‘ज्योतिरादित्य सिंधिया को कांग्रेस से अलग होते देखना दुखद है. काश चीजों को पार्टी के अंदर ही मिल-जुलकर सुलझा लिया गया होता.’ उनके इस संदेश को कांग्रेस आलाकमान के लिए नसीहत के तौर पर देखा गया जो पार्टी के नए नेताओं की शिकायतों को कथित पर लगातार अनसुना कर रहा है.
यूं तो सचिन पायलट और अशोक गहलोत के बीच की तनातनी 2018 के विधानसभा चुनाव के बाद से किसी से नहीं छिपी है जब छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश की ही तरह राजस्थान में भी कांग्रेस पार्टी अपना परचम फहराने में सफल रही थी. तब कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष होने के नाते पायलट अपनी अगुवाई में मिली इस जीत के इनाम के तौर पर मुख्यमंत्री पद चाहते थे. लेकिन राजनीति के जादूगर कहे जाने वाले अशोक गहलोत ऐन मौके पर बाजी मार ले गए. तभी से सचिन पायलट, राजस्थान में मुख्यमंत्री गहलोत और उनके नेतृत्व वाली सरकार को घेरने का कोई मौका छोड़ते नहीं दिखे हैं.
Haryana: Rajasthan Congress MLAs Inder Raj Gurjar, PR Meena, GR Khatana, and Harish Meena among others, at a hotel in Manesar. (Video released from Sachin Pilot's office of MLAs supporting him) pic.twitter.com/IHToT5tkiR
— ANI (@ANI) July 13, 2020
(सचिन पायलट समर्थक विधायक : सचिन पायलट ने शेयर किया वीडियो )
लेकिन जानकार कहते हैं कि जो उठापटक इस समय राजस्थान में देखने को मिल रही है उसके तार हाल ही में हुए राज्यसभा चुनावों से जुड़ते हैं. इस चुनाव में भाजपा ने राजस्थान में नाटकीय ढंग से अपने विधायकों के संख्या बल को दरकिनार करते हुए एक की बजाय दो प्रत्याशी मैदान में उतार दिए थे. तब यह संभावना जोर-शोर से जताई गई थी कि राज्यसभा चुनाव के साथ भारतीय जनता पार्टी मध्यप्रदेश की ही तरह राजस्थान में भी सत्ता पलटने की कोशिश कर सकती है. उसकी इस कवायद में पायलट खेमे का सहयोग मिलने के भी कयास लगाए गए. लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ. इसके लिए जानकारों ने मुख्यमंत्री गहलोत के रणनीतिक कौशल को श्रेय दिया. लेकिन बात तब बिगड़ी जब स्पेशल ऑपरेशनल ग्रुप (एसओजी) ने बीते शुक्रवार इस बारे में पूछताछ करने के लिए सचिन पायलट को एक पत्र लिखा.
अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक, राजस्थान की तरफ़ से भेजे गए इस पत्र में धारा 124 ए, 120 बी के तहत मामले की जांच करने और इस संदर्भ में सचिन पायलट के बयान लेने की बात कही गई है. पायलट इसी बात पर भड़क गए. उन्होंने इस पत्र को अपने स्वाभिमान पर चोट बताया. उन्होंने बयान दिया कि ‘एसओजी का नोटिस उचित नहीं है. धारा 124 ए के तहत पूछताछ आत्मसम्मान पर चोट है. पुलिस इस केस की आड़ में फोन टैप कर सकती है जो कतई उचित नहीं है. यह क़दम एक रणनीति के तहत उठाया गया है.’ इसके बाद से सचिन पायलट ने कांग्रेस नेताओं के फ़ोन उठाने बंद कर दिए. वहीं, अशोक गहलोत समर्थकों का कहना है कि ऐसा ही एक पत्र एसओजी ने मुख्यमंत्री के नाम भी भेजा था. लेकिन सिर्फ पायलट का इस बात पर भड़कना ‘चोर की दाढ़ी में तिनका’ वाली कहावत को सही साबित करता है.
राजस्थान कांग्रेस से जुड़े सूत्र इस पूरे मामले पर कहते हैं कि लंबे समय से मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अपने मंत्रिमंडल का विस्तार करना चाहते थे. लेकिन इसके लिए वे सचिन पायलट के पार्टी प्रदेशाध्यक्ष पद से हटने का इंतजार कर रहे थे ताकि वे नए मंत्रियों के चयन या पुराने मंत्रियों को हटाए जाने पर ज़्यादा हस्तक्षेप न कर सकें. कुछ ऐसी ही स्थिति विभिन्न राजनीतिक नियुक्तियों को लेकर भी बनी हुई थी. लेकिन अब गहलोत की राह आसान होती दिख रही है.
दरअसल इस पूरी खींचतान के मद्देनज़र पार्टी ने आज जयपुर में कांग्रेस विधायक दल की बैठक बुलाई है जिसमें आने के लिए सभी विधायकों को व्हिप जारी कर दिया गया है. कांग्रेस महासचिव और पार्टी के प्रदेश प्रभारी अविनाश पांडेय ने इस बारे में बयान दिया है कि इस बैठक में न आने वाले विधायकों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी. उधर, बागी रुख अपनाए हुए राजस्थान कांग्रेस के मुखिया और उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट ने अपने समर्थकों के साथ इस बैठक में हिस्सा लेने से साफ इनकार कर दिया है. जानकारी के अनुसार कांग्रेस के 107 विधायकों में से 102 विधायक इस बैठक में भाग लेने के लिए पहुंच चुके हैं. ऐसे में पायलट और उनके समर्थक विधायकों के ख़िलाफ़ अनुशासनात्मक कार्रवाई होना तय है. ऐसा शायद न भी होता अगर मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया की वजह से कांग्रेस हाईकमान पहले ही अपमान का घूंट नहीं पी चुका होता.
विश्लेषकों के मुताबिक ऐसी स्थिति में पायलट के सामने तीन विकल्प बचते हैं. और तीनों में से एक भी उनके लिए फ़ायदे का सौदा नज़र नहीं आता. पहला तो यही कि इतना सब होने के बाद भी वे कांग्रेस से ही जुड़े रहें. इसके लिए वे पार्टी हाईकमान से जमकर मोल-भाव करने की कोशिश कर सकते हैं. लेकिन सूत्रों का कहना है कि बात इतनी बढ़ जाने के बाद ऐसा हो पाना मुश्किल है. फ़िर अशोक गहलोत भी ऐसा आसानी से होने देने से रहे. हालांकि इसके लिए गहलोत को हाईकमान को इस बात का यकीन दिलाना होगा कि राजस्थान में किसी भी हाल में वे सत्ता की चाबी को अपने हाथ से नहीं फिसलने देंगे. यदि वे ऐसा कर पाए तो ज़ाहिर तौर पर इससे पार्टी और प्रदेश सरकार में सचिन पायलट का क़द घटेगा और संगठन पर भी उनकी पकड़ कमज़ोर होगी. अभी तक प्रदेश कांग्रेस में पायलट का क़द दूसरे नंबर का माना जाता है. लेकिन इस पूरे घटनाक्रम के बाद उनकी क्या स्थिति क्या होगी, इस बारे में अभी निश्चित तौर पर कुछ भी नहीं कहा जा सकता है.
सचिन पायलट के सामने दूसरा विकल्प यह बचता है कि वे भी ज्योतिरादित्य सिंधिया की तरह भाजपा में शामिल हो जाएं. रविवार शाम तक ऐसी संभावना जताने वाली ख़बरें जमकर सामने आई थीं और सोमवार को भी राजस्थान के प्रमुख अख़बारों के पहले पन्ने पर छाई रहीं. लेकिन पायलट ने बयान ज़ारी कर यह क़दम उठाने से इन्कार कर दिया है. इसके पीछे बड़ी वजह तो यही है कि राजस्थान में दल-बदलू नेता की छवि के साथ लंबा राजनैतिक सफ़र तय करना अब तक मुश्किल ही रहा है. फ़िर जानकारों की मानें तो यदि सचिन पायलट चाहें तो भी भारतीय जनता पार्टी उन्हें अपने साथ जोड़ने में कम ही दिलचस्पी दिखाएगी. इसके कई कारण हैं:
वरिष्ठ पत्रकार अवधेश आकोदिया इस बारे में हमें बताते हैं कि ‘मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया से भारतीय जनता पार्टी ने इसलिए हाथ मिलाया क्योंकि वे वहां सरकार गिराने की स्थिति में थे. जबकि राजस्थान विधानसभा का गणित पायलट को ऐसा करने की इजाज़त नहीं देता.’ ग़ौरतलब है कि राजस्थान के कुल 200 विधायकों में से 107 विधायक सत्ताधारी दल कांग्रेस से आते हैं. इनमें बहुजन समाज पार्टी के छह विधायक भी शामिल हैं जो पिछले साल कांग्रेस में शामिल हो गए थे. इनके अलावा राज्य के 13 निर्दलीय, भारतीय ट्राइबल पार्टी (बीटीपी) के दो, सीपीएम के दो और राष्ट्रीय लोकदल (आरएलडी) के एक विधायक का भी समर्थन अब तक प्रदेश की अशोक गहलोत सरकार को हासिल रहा है. वहीं भाजपा की बात करें तो राजस्थान में उसके पास 72 विधायक हैं और उसे राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (आरएलपी) के तीन और विधायकों का समर्थन हासिल है. इस तरह उसके पास कुल 75 विधायक ही हैं.
बकौल आकोदिया, ‘यदि 30 विधायकों के साथ होने के सचिन पायलट के दावे को सही मान लें तो जैसा कि सामान्य तौर पर होता है सरकार को अस्थिर करने के लिए इन सभी विधायकों को इस्तीफ़ा देना होगा. तब विधानसभा में बचे विधायकों की संख्या रहेगी 170 और बहुमत के लिए आवश्यक होंगे 85 विधायक. यानी पूरी खींचतान करने के बाद भी भाजपा को सरकार बनाने के लिए दस और विधायकों की आवश्यकता पड़ेगी जिसे पूरा कर पाना टेड़ी खीर है. और बाद में इन सीटों के लिए बाद में जो उपचुनाव होंगे उसमें भी पार्टी के लिए जोख़िम ही रहेगा. इसलिए भाजपा के लिए तो यही बेहतर नज़र आता है कि वह दूर खड़े रहकर पूरा तमाशा देखे. वहीं जानकारी के मुताबिक 109 विधायक अभी तक गहलोत कैंप में पहुंच चुके हैं जो कि सामान्य बहुमत (101) से भी ज़्यादा हैं.’
फ़िर, एक से एक दिग्गज नेताओं से भरी भारतीय जनता पार्टी की राजस्थान इकाई में किसी बाहरी नेता के लिए पैर रखने की भी जगह नज़र नहीं आती. राजस्थान में भारतीय जनता पार्टी इस समय कई छोटे-बड़े गुटों में बंटी हुई है. इनमें सबसे बड़ी धुरी पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ख़ुद हैं. कहा जाता है कि राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा में सिर्फ़ राजे ही हैं जो पार्टी के मौजूदा शीर्ष नेतृत्व यानी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह की आंखों में आंख डालकर बात कहने का माद्दा रखती हैं.
भाजपा से जुड़े सूत्रों की मानें तो भाजपा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह के नेतृत्व से नाख़ुश धड़ा अगले लोकसभा चुनाव से पहले उन पर दबाव बनाने के लिए वसुंधरा राजे की मदद ले सकता है. शायद यह भी एक प्रमुख कारण है कि राजस्थान विधानसभा चुनाव में पार्टी की हार के बाद भाजपा हाईकमान राजे को कमजोर करने में कोई कसर छोड़ता नहीं दिख रहा है. ऐसे में राजस्थान की राजनीति पर नज़र रखने वाले जानकार अभी से यह जानने में खासी दिलचस्पी दिखाते हैं कि करीब सवा तीन साल बाद होने वाले विधानसभा चुनाव में राजे क्या रुख़ अपनाएंगी! इस समय राजस्थान में भारतीय जनता पार्टी के 72 विधायकों में से पचास से ज्यादा ऐसे माने जाते हैं जिनके लिए ‘वसुंधरा ही भाजपा’ हैं. राजस्थान से आने वाले भाजपा के सभी 25 सांसदों में से कमोबेश आधों की भी यही स्थिति बताई जाती है.
अवधेश आकोदिया के मुताबिक ‘यदि भाजपा ने राजस्थान में वसुंधरा राजे की बजाय किसी और नेता को मुख्यमंत्री बनाने की सोची भी तो पार्टी में इस तरह की तोड़-फोड़ देखने को मिल सकती है जैसी कांग्रेस में भी नहीं है.’ यानी कुल मिलाकर राजे भाजपा हाईकमान ना तो राजे को तीसरी बार मुख्यमंत्री बनाकर और ज़्यादा ताकतवर करने का ख़तरा मोल ले सकता है और ना ही मुख्यमंत्री ना बनाकर उन्हें नाराज़ करने का. चूंकि अगले लोकसभा और राजस्थान विधानसभा चुनावों में अभी ठीक-ठाक समय बाकी है सो विश्लेषकों का कहना है कि इस समय राजे को लेकर ‘वेट एंड वॉच’ ही सबसे सही रणनीति हो सकती है, क्योंकि अगले चुनावों तक न जाने कितने समीकरण बनेंगे और बिगड़ेंगे. ऐसे में सचिन पायलट को साथ जोड़कर भाजपा आलाकमान दुविधा के उस जिन्न से अभी शायद ही जूझना चाहेगा जो अगले कुछ साल के लिए बोतल में बंद है.
इसके अलावा भी देखें तो ज्योतिरादित्य सिंधिया का भाजपा के रंग में ढल जाना उनके समर्थकों को ज़्यादा इसलिए नहीं अखरा क्योंकि सिंधिया परिवार की जड़ें पूर्व राजमाता विजया राजे के जमाने से ही जनसंघ और भारतीय जनता पार्टी से जुड़ी रही हैं. जबकि सचिन पायलट का दूर-दूर तक किसी भी तरह का कोई रिश्ता भाजपा से नहीं रहा है. फ़िर ज्योतिरादित्य सिंधिया केंद्रीय मंत्रिमंडल में जगह पाकर संतुष्ट नज़र आ सकते हैं. वहीं, सचिन पायलट का ध्यान केंद्र के बजाय प्रदेश की राजनीति पर ज़्यादा है. ऊपर से सचिन की पत्नी सारा जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला की बेटी और उमर अब्दुल्ला की बहन हैं. इन दोनों ही नेताओं को मोदी सरकार ने धारा-370 के हटाने के बाद से ही नजरबंद कर रखा था. लेकिन कुछ महीने पहले जिस तरह पहले फारूख़ अबदुल्ला और फ़िर उमर अब्दुल्ला की अचानक रिहाई हुई, उसे कुछ लोगों ने पायलट को भी खुश करने की भाजपा की कवायद के तौर पर देखा. लेकिन विश्लेषकों के एक बड़े वर्ग का मानना है कि अब्दुल्ला परिवार की वजह से सचिन पायलट और भारतीय जनता पार्टी के बीच किसी सहज राजनीतिक रिश्ते की गुंजाइश कम ही नज़र आती है.
अब सचिन पायलट के सामने बचा तीसरा और आख़िरी रास्ता है एक नई पार्टी बनाने का. राजस्थान युवा कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता आयुष भारद्वाज इस बारे में कहते हैं कि ‘आज़ादी के बाद से ही राजस्थान में किसी तीसरे मोर्चे का कोई प्रभावशाली वज़ूद नहीं रहा है. हमारे प्रदेशाध्यक्ष से पहले भी प्रदेश के कई कद्दावर नेताओं ने ऐसा करने की कोशिश की और उन्हें मन मसोस कर ही रहना पड़ा.’ वे आगे जोड़ते हैं, ‘सामान्य समझ से भी देखें तो विधायकों को भारतीय जनता पार्टी में शामिल होने से कुछ न कुछ आर्थिक या राजनीतिक लाभ मिल सकता है. लेकिन सिर्फ़ सचिन पायलट के साथ जाने के लिए कौन अपनी विधायकी को दांव पर लगाना चाहेगा, कहना मुश्किल है. उन्होंने जाने-अनजाने अपनी छवि एक मनमौजी नेता के तौर पर स्थापित कर ली है जिस पर भरोसा करते हुए बड़ा फ़ैसला लेना कोई आसान काम नहीं.’
बहरहाल, बीते कुछ सालों में ऐसे कई मौके आए जब पायलट ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की पेशानी पर बल ला दिए थे. यह सही है कि गहलोत सरीखे परिपक्व नेता के लिए चुनौती बनना पायलट की बड़ी उपलब्धि मानी जा सकती है. लेकिन अपने लंबे राजनीतिक अनुभव की मदद से गहलोत हर बार उन पर इक्कीस ही साबित होते रहे. राजनीतिक विश्लेषकों का इस बारे में मानना है कि जब भी सचिन पायलट ने गहलोत पर छोटी बढ़त हासिल की, उन्होंने उसे अपनी जीत समझा. जबकि असल में वे ऐसा करके गहलोत के जाल में फंसते जा रहे थे. गहलोत ने उन्हें पटकने के लिए सही समय का इंतजार किया. जबकि पायलट ने हर मौके पर अतिउत्साहित होकर अपनी अपरिपक्वता ज़ाहिर की.
पार्टी से जुड़े एक वरिष्ठ सूत्र नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं, ‘पायलट गहलोत के बिछाए ऐसे व्यूह में फंस चुक जिसमें घुसना तो आसान है, लेकिन निकलना नहीं. पायलट को ये बात तभी समझ लेनी चाहिए थी जब सत्ता में आने के बाद ही उनके कई विश्वस्त नेता पाला बदलते हुए गहलोत की तरफ़ झुकते चले गए थे. लेकिन पायलट इसमें नाकाम रहे और शायद अब उन्हें इस बात का ही ख़ामियाज़ा भुगतना पड़ सकता है.’(satyagrah)
नई दिल्ली, 14 जुलाई। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा है कि अगर ठोस क़दम नहीं उठाया गया तो कोरोना वायरस की महामारी बद से बदतर होती जाएगी.
WHO प्रमुख डॉ टेड्रोस एडनॉम गेब्रियेसस ने कहा कि दुनिया के कई सारे देश कोरोना से निपटने के मामले में ग़लत दिशा में जा रहे हैं. डॉ टेड्रोस ने कहा कि कोरोन वायरस से संक्रमण के नए मामले बढ़ रहे हैं और इससे साबित होता है कि जिन एहतियात और उपाय की बात की जा रही है, उनका पालन नहीं किया जा रहा है.
उत्तरी और दक्षिणी अमरीका इस महमारी की चपेट में अभी सबसे बुरी तरह से हैं. अमरीका में स्वास्थ्य विशेषज्ञों और राष्ट्रपति ट्रंप में चल रही तनातनी के बीच संक्रमण के नए मामले लगातार तेज़ी से बढ़ रहे हैं.
जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी के डेटा के अनुसार अमरीका अभी कोरोना की मार सबसे ज़्यादा झेल रहा है. यहां अब तक 33 लाख लोग संक्रमित हो चुके हैं और एक लाख 35 हज़ार से ज़्यादा लोगों की मौत हो चुकी है.
WHO ने क्या कहा?
सोमवार को जिनेवा में प्रेस वार्ता के दौरान डॉ टेड्रोस ने कहा कि दुनिया भर के नेता जिस तरह से महामारी से निपटने की कोशिश कर रहे हैं उससे लोगों का भरोसा कम हुआ है.
डॉ टेड्रोस ने कहा, ''कोरोना वायरस अब भी लोगों का नंबर वन दुश्मन है लेकिन दुनिया भर की कई सरकारें इसे लेकर जो क़दम उठा रही हैं, उससे ये आभास नहीं होता है कि कोरोना को ये गंभीर ख़तरे की तरह नहीं ले रही हैं.''
डॉ टेड्रोस ने कहा कि सोशल डिस्टेंसिंग, हाथ धोना और मास्क पहनना इस महामारी से बचने के कारगर तरीक़े हैं और इन्हें गंभीरता से लिए जाने की ज़रूरत है.
उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा कि निकट भविष्य में ऐसा लगता नहीं है कि पहले की तरह सब कुछ सामान्य हो जाएगा. डॉ टेड्रोस ने कहा, ''अगर बुनियादी चीज़ों का पालन नहीं किया गया तो एक ही रास्ता है कि कोरोना थमेगा नहीं और वो बढ़ता ही जाएगा. यह बद से बदतर होता जाएगा.''
WHO के आपातकालीन निदेशक माइक रायन ने कहा कि अमरीका में लॉकडाउन में ढील और कुछ इलाक़ों को खोलने से संक्रमण के और तेज़ी से फैलने का डर है.
लातिन अमरीका में एक लाख 45 हज़ार से ज़्यादा लोगों की जान कोरोना से जा चुकी है. कहा जा रहा है कि मौत का आँकड़ा और बढ़ेगा क्योंकि पर्याप्त टेस्टिंग नहीं हो रही है. इनमें से आधी से ज़्यादा मौतें ब्राज़ील में हुई हैं.
ब्राज़ील के राष्ट्रपति जायर बोलसोनारो सख़्त लॉकडाउन के ख़िलाफ़ रहे थे. बल्कि वो लॉकडाउन का मज़ाक उड़ाते थे और बाद में ख़ुद ही संक्रमित पाए गए.
डॉ रायन ने कहा कि लॉकडाउन से भारी आर्थिक नुक़सान हो रहा है लेकिन कुछ ख़ास जगहों पर लॉकडाउन संक्रमण रोकने के लिए बहुत ज़रूरी है.
उन्होंने दुनिया भर की सरकारों से आग्रह किया कि वे स्पष्ट और मज़बूत रणनीति अपनाएं. उन्होंने यह भी कहा कि नागरिक भी इसकी गंभीरता को समझें और गाइडलाइन्स का पालन करें.
वैक्सीन या इम्युनिटी के बारे में क्या कहा?
डॉ रायन ने कहा, ''हमें वायरस के साथ कैसे जीना है और इसे सीखना होगा. यह उम्मीद करना कि वायरस को ख़त्म किया जा सकता है या कुछ महीनों में प्रभावी वैक्सीन तैयार हो जाएगी, यह सच नहीं है.
उन्होंने कहा, ''अभी तक पता नहीं है कि कोरोना वायरस से ठीक होने वालों में इम्युनिटी बन रही या नहीं और अगर बन भी रही है तो ये नहीं पता है कि कब तक प्रभावी रहेगी.
सोमवार को लंदन के किंग्स कॉलेज के वैज्ञानिकों ने अपनी एक रिपोर्ट जारी की थी और इसमें बताया था कि कोरोना से ठीक हुए मरीज़ों में बनी इम्युनिटी छोटी अवधि की लिए हो सकती है.
वैज्ञानिकों ने 96 लोगों पर अध्ययन किया कि कैसे शरीर एंटीबॉडीज के ज़रिए स्वाभाविक रूप से कोरोना का सामना करता है और यह कितने दिनों तक टिकता है. मतलब अभी तक स्पष्ट नहीं है कि कोरोना पीड़ित मरीज़ ठीक होने के बाद कब तक ठीक रह सकते हैं. इस स्टडी में शामिल सभी लोगों में मिले एंटीबॉडीज कोरोना वायरस को रोक सकते थे लेकिन तीन महीने की अवधि में इनका स्तर कम होने लगा था.
WHO ने अपनी प्रेस वार्ता में कहा कि इस बात के सबूत मिले हैं कि 10 साल से कम उम्र के बच्चे कोविड-19 से आंशिक तौर प्रभावित हुए जबकि जो 10 से ऊपर हैं उनमें भी इसी तरह के लक्षण दिखाई दिए. बच्चे वायरस का संक्रमण किस स्तर तक फैला सकते हैं ये अभी जानना बाक़ी है.(bbc)
नई दिल्ली, 14 जुलाई। वैश्विक महामारी कोरोना कोरोना के दौरान में राजधानी दिल्ली के हमदर्द विश्वविद्यालय स्थित अस्पताल ने 84 नर्सों को सिर्फ इसलिए नौकरी से निकाल दिया क्योंकि उन्होंने बुनियादी सुविधाओं की मांग की थी। इस अस्पताल को कोरोना मरीजों के लिए चिंह्नित किया गया है। यहां की नर्सें कोरोना ड्यूटी के दौरान लम्बे अर्से से पीपीआई किट्स, ए-95 मास्क, व्यवहारिक काम के घंटे, पीने का पानी, क्वारंटीन करने की सुविधाएं और हेल्थ पॉलिसी की मांग कर रही थीं।
लेकिन नर्सों और अस्पताल स्टाफ की मांगों पर विचार करने के बजाए अस्पताल प्रशासन ने नर्सों का कांट्रेक्ट की रद्द कर दिया। खासतौर से उन नर्सों को निशाना बनाया गया है जो आने वाले दिनों में स्थाई स्टाफ होने वाली थीं। इतना ही नहीं इन नर्सों में वह एक नर्स भी शामिल है जो कोरना पॉजिटिव पाए जाने के बाद 3 जुलाई से क्वारंटीन में है। अस्पताल इसके साथ ही नर्सों की भर्ती का विज्ञापन भी जारी कर दिया है
हमदर्द अस्पताल में काम करने वाली नर्स गुफराना खातून ने बताया कि, “अस्पताल प्रबंधन हमारी मांगों को लेकर बेहद असंवेदनशील रहा। हमने कोई असाधारण चीज नहीं मांगी थी। अस्पताल हमसे एक ही पीपीई किट में 12 घंटे काम कराना चाहता था, इससे हमारी सेहत पर प्रभाव पड़ रहा था। पीपीआई किट में 12 घंटे तो दूर, 3-4 घंटे से ज्यादा रहना मुश्किल होता है। हमें पीने का पानी तक मुहैया नहीं कराया जा रहा है।”
गुफराना खातून कोरोना पॉजिटिव पाई गई हैं और 3 जुलाई से क्वारंटीन में हैं, इसी दौरान उसे बरखास्त कर दिया गया। उन्होंने बताया कि, “अस्पताल में लैब है लेकिन अपनी जांच कराने के लिए भी हमें पैसे देने पड़ते हैं। मैंने जब इस बारे में अस्पताल की नीति के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि नर्सों को 50 फीसदी पैसे देने होंगे। मैंने अपने टेस्ट के लिए 1200 रुपए दिए। जबकि स्टाफ की जांच मुफ्त होनी चाहिए। हम तो कोरोना वार्ड में ड्यूटी के दौरान ही संक्रमित हुए हैं। अगर मैंने पैसे देकर अपनी जांच नहीं कराई होती तो मुझ से यह संक्रमण और लोगों तक पहुंच सकता था।”
अस्पताल ने कई सीनियर नर्सों को बरखास्त कर दिया है ताकि उन्हें परमानेंट न किया जा सके। अस्पताल की पॉलिसी के मुताबिक जिन नर्सों ने 5 साल या अधिक समय तक काम किया है उन्हें स्थाई किया जाता है। जिन नर्सों को बरखास्त किया गया है उनमें से अधिकतर ने 3 से 6 साल तक काम किया है।
अस्पताल ने 11 जुलाई को जारी बरखास्तगी के पत्र में कहा है कि नर्सों को इसलिए निकाला जा रहा है क्योंकि वे बिना अनुमति के ड्यूटी से गैरहाजिर थीं। लेकिन वास्तविकता यह है कि इनमें से कई 11 जुलाई को भी ड्यूटी पर थीं और गुफराना खातून तो क्वारंटीन है। एक नर्स ने बताया कि “हम तो लगातार हाजिरी लगा रहे थे और हमारे पास इसका रिकॉर्ड भी है कि कोरोना आने के बाद से हमने कोई छुट्टी नहीं ली है।”
नर्सों का कहना है कि अस्पताल का फैसला एकतरफा है क्योंकि 2 जुलाई को ही मैनेजमेंट ने एक सर्कुलर जारी किया था जिसमें कोरोना महामारी के दौरान हमदर्द को कोरोना के लिए चिह्नित अस्पताल घोषित किए जाने की जानकारी देने के साथ ही कहा गया था कि इस दौरान कोई भी नर्स या डॉक्टर छुट्टी नहीं लेना और न ही इस्तीफा देगा और न ही निजी कारणों से बिना वेतन छुट्टी पर जाएगा।
लेकिन, अस्पताल प्रबंधन नर्सों के आरोपों को खारिज करता है। उसका कहना है कि नर्सों को नौकरी से नहीं निकाला गया है बल्कि उनका कांट्रेक्ट खत्म हो गया है। अस्पताल के कार्यकारी मेडिकल सुप्रिंटेंडेंट डॉ सुनील कोहली ने कहा कि, हम अच्छे कर्मचारियों को पुरस्कृत करते हैं और कर्मचारी रखने का अधिकार तो अस्पताल के पास ही है। उन्होंने बताया कि जिन नर्सों में कोरोना के लक्षण थे उनकी जांच मुफ्त में की गई है। इसके अलावा अगर कोई और अस्पताल कर्मचारी अपना टेस्ट कराना चाहता है तो उसे 50 फीसदी पैसा देना होता है। अगर कर्मचारी पॉजिटिव पाया जाता है तो उसका पैसा रिफंड कर दिया जाता है। पॉजिटिव पाए गए सभी कर्मचारियों का मुफ्त इलाज भी होता है।
डॉ कोहली ने सारे आरोपों को खारिज किया, अलबत्ता पीने के पानी की मांग को सही बताया। उन्होने कहा कि दुरभाग्य से यह पुरानी समस्या है और हम इसका समाधान निकाल रहे हैं। हम एक धर्मार्थ अस्पताल हैं और मुनाफे में नहीं रहते हैं। उन्होंने बताया कि नर्सें कोविड भत्ते मांग कर रही हैं और इस बारे में प्रशासन को बता दिया गया था लेकिन मैनेजमेंट ने इस मांग को नहीं माना।
हमदर्द नर्सों का मामला सामने आने के बाद युनाइटेड नर्स एसोसिएशन ने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और श्रम मंत्री गोपाल राय को पत्र लिखकर मामले में दखल देने की मांग की है। पत्र में बताया गया है कि आईसीयू में हर 6 मरीजों पर सिर्फ एक नर्स है। जबकि नर्सिंग गाइडलाइंस के मुताबिक गंभीर मामलों में मरीज-नर्स का औसत 1:1 होना चाहिए।
गोपाल राय के दफ्तर ने इस बारे में कहा है कि वे मामले को देख रहे हैं। वहीं करेल के राज्यसभा सांसद बिनॉय विश्वम ने भी दिल्ली के मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर 84 नर्सों को नौकरी से निकाल जाने का मुद्दा उठाया है।(navjivan)
Jhuki Jhuki Si Nazar.. Bekrar h ke Nahi..Sung by Avi Trikha Gazal Of Jagjit Singh ji
Superstar Avi Trikha(YouTube channel)
काठमांडू, 13 जुलाई। नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के एक बयान से विवाद खड़ा हो गया है. उन्होंने कहा कि भगवान राम का जन्म नेपाल में हुआ था.
अपने सरकारी आवास पर कवि भानुभक्त की जन्मदिन पर हुए समारोह में केपी ओली ने ये बयान दिया. भारत और नेपाल के बीच पहले से ही तनाव चल रहा है.
केपी शर्मा ओली ने दावा कि असली अयोध्या नेपाल के बीरगंज के पास एक गाँव है, जहाँ भगवान राम का जन्म हुआ था.
नेपाल में राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी के नेता कमल थापा ने प्रधानमंत्री केपी ओली के बयान पर कड़ी आपत्ति जताई है.
उन्होंने कहा कि किसी भी प्रधानमंत्री के लिए इस तरह का आधारहीन और अप्रामाणित बयान देना उचित नहीं है. उन्होंने अपने ट्वीट में कहा, "ऐसा लगता है कि पीएम ओली भारत और नेपाल के रिश्ते और बिगाड़ना चाहते हैं, जबकि उन्हें तनाव कम करने के लिए काम करना चाहिए."
भारत और नेपाल में पिछले कुछ महीने से तनाव चल रहा है. नेपाल ने 20 मई को अपना नया नक्शा जारी किया था जिसमें लिपुलेख, लिम्पियाधुरा और कालापानी को अपना इलाक़ा दिखाया था. ये तीनों इलाक़े अभी भारत में हैं लेकिन नेपाल दावा करता है कि ये उसका इलाक़ा है.
इसके बाद से दोनों देशों में तनाव बढ़ता गया. हालांकि इससे पहले भारत ने पिछले साल नवंबर में जम्मू-कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेश बनाए जाने के बाद अपना नक्शा अपडेट किया था. इस नक्शे में ये तीनों इलाक़े थे. भारत का कहना है कि उसने किसी नए इलाक़े को नक्शे में शामिल नहीं किया है बल्कि ये तीनों इलाक़े पहले से ही हैं.
पिछले दिनों भारतीय मीडिया की भूमिका को लेकर भी नेपाल में कड़ी नाराज़गी जताई गई थी. कई भारतीय चैनलों ने प्रधानमंत्री केपी ओली और चीनी राजदूत होउ यांकी को लेकर सनसनीख़ेज़ दावे किए. कुछ चैनलों ने यह स्टोरी चलाई कि ओली को हनी ट्रैप में फंसा दिया गया है.
नेपाल ने इन रिपोर्ट पर कड़ी आपत्ति दर्ज कराई और केबल ऑपरेटरों से कहा कि ऐसे भारतीय न्यूज़ चैनलों को अपनी ज़िम्मेदारी समझते हुए प्रसारण से रोके.
नेपाल के विदेश मंत्री प्रदीप ज्ञावली ने कहा कि उन्होंने भारत में नेपाल के राजदूत नीलांबर आचार्य को भारतीय विदेश मंत्रालय के सामने कड़ी आपत्ति दर्ज कराने के लिए कहा है.
नीलांबर ने कहा कि भारतीय मीडिया नेपाल और भारत के द्विपक्षीय संबंधों को और ख़राब कर रहा है. हालांकि चीन की राजदूत की सक्रियता को लेकर नेपाल में विरोध भी दर्ज हुआ है. नेपाल में विपक्ष से लेकर मीडिया तक में सवाल उठा कि घरेलू राजनीति में किसी राजदूत की ऐसी सक्रियता ठीक नहीं है. मुलाक़ातों का यह दौर पिछले ढाई महीने से चल रहा है. (bbc)
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
भिलाई नगर, 13 जुलाई। जिले में देर रात मिली रिपोर्ट में 7 कोरोना पॉजिटिव मरीजों की पुष्टि हुई है। सभी साथ संक्रमित बीएसएफ के जवान हैं। इनकी पॉजिटिव टेस्ट रिपोर्ट ट्रू नॉट प्रणाली से प्राप्त हुई है। इस प्रकार आज दिन भर में 22 मरीज मिले हैं।
जिला स्वास्थ्य एवं चिकित्सा अधिकारी डॉक्टर गंभीर सिंह ठाकुर ने बताया कि देर रात प्राप्त रिपोर्ट में 7 संक्रमित मरीज मिले हैं । सभी 7 मरीज बीएसएफ के जवान है। इन सभी मरीजों का टेस्ट जिला अस्पताल में स्थापित ट्रू नॉट मशीन से किया गया है। सभी सातों जवान पूर्व से ही क्वॉरेंटाइन किए गए थे। रिपोर्ट पॉजिटिव आने के बाद सभी जवानों को कोविड-19 हॉस्पिटल में दाखिल करने की तैयारी की जा रही है। इसके पूर्व दोपहर में मिली रिपोर्ट में मिली रिपोर्ट में जिले से 15 मरीजों के संक्रमित होने की पुष्टि की गई थी। जिले में भी लगातार कोरोना मरीजों की संख्या बढ़ रही है। पहली बार है जिले में एक ही दिन में 22 मरीज मिले हैं।
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
बिलासपुर, 13 जुलाई। पूर्व विधायक व जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जे) के विधायक अमित जोगी ने आरोप लगाया है कि कोरोना के नाम पर स्व. अजीत जोगी की अत्येष्टि व दशगात्र के कार्यक्रम में प्रशासन ने लोगों को उनके अंतिम दर्शन से वंचित रखा वहीं अब सत्ताधारी दल कांग्रेस अपने राजनीतिक कार्यक्रम ‘चाय पर चौपाल’ कार्यक्रम में भीड़ जुटाने के लिये गांव-गांव सरकारी अधिकारी नियुक्त कर भीड़ इकट्ठी करने के लिये मुनादी करा रही है और स्व. जोगी से जुड़े भोले-भाले लोगों को लॉलीपॉप देकर बलपूर्वक तोडऩे में लगी है। क्या कोरोना के डर की जगह जोगी ने ले ली है, जो मंत्रालय छोडक़र मंत्री मरवाही घूमने लगे हैं? यह प्रशासनिक दुरुपयोग व अस्वस्थ राजनीति है किन्तु जोगी परिवार का मरवाही से सम्बन्ध दल तक नहीं दिलों तक है, यही हमारी ताकत है।
अकेले रायपुर जिले में 87
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 13 जुलाई । स्वास्थ्य विभाग ने जानकारी दी कि आज रात 8 बजे तक 184 नए कोरोना पॉजिटिव मरीजों की पहचान हुई है। 49 स्वस्थ्य होकर डिस्चार्ज हुए हैं। राज्य में कुल पॉजिटिव मरीजों की संख्या 4265 है और एक्टिव मरीजों की संख्या 1044 हैं।
184 नए पॉजिटिव मरीजों में रायपुर 87, राजनांदगांव 26, दुर्ग 25, मुंगेली 9, गरियाबंद 8, धमतरी 7, बेमेतरा और कबीरधाम 4-4, बिलासपुर 3, बलौदाबजार 2, बालोद, महासमुंद, रायगढ़, जांजगीर-चांपा, सरगुजा, कोरिया, जशपुर, नारायणपुर, और जीपीएम में 1-1 मरीजों की पहचान हुई है।
साढ़े 3 लाख जब्त, महामारी एक्ट के तहत भी कार्रवाई
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
बिलासपुर, 13 जुलाई । सिविल लाइन पुलिस ने शहर के बाहरी इलाके में एक बड़े होटल पर दबिश देकर व्यवसायी परिवार के 21 लोगों को जुआ खेलते हुए पकड़ा है। इनमें पिता पुत्र भी शामिल हैं। इनसे 3 लाख 51 हजार रुपये और दो दर्जन मोबाइल फोन जब्त किये गये हैं।
सिविल लाइन थाना प्रभारी सुरेन्द्र स्वर्णकार ने बताया कि उसलापुर स्टेशन के समीप स्थित अलका एवेन्यू के भीतर स्थित रॉयल पार्क में बड़ी संख्या में इकट्ठा होकर जुआ खेलने की खबर मिलने पर कल रात छापा मारा गया था। टीम ने जिन लोगों को पकड़ा है उनमें से अधिकांश शहर के प्रमुख बाजारों में व्यवसायी अथवा उनके बेटे हैं। सभी के खिलाप जुआ एक्ट के अलावा कोविड-19 को देखते हुए महामारी अधिनियम की धारा 188 के अंतर्गत भी कार्रवाई की गई है। पकड़े गये लोगों में रोशन डिडवानी, आकाश कुमार, अमित गुप्ता, कपिल कुकरेजा, भावेश टहिल्यानी, कान्हा चौधरी, संजय डोड़वानी, अविनाश नारवानी, जय सिरवानी, नीरज सोनी, मोहित लालवानी, सौरभ बजाज, प्रशांत कटेलिहा, महेश लालचंदानी, मंदीप गांधी, किशोर कुकरेजा, गौरव रावलानी, लखन जोनवानी, प्रवीण देवांगन, मोहन दगड़े और गुबिना सिंह शामिल हैं।
श्रीनगर, 13 जुलाई (वार्ता)। उत्तर कश्मीर के बांदीपोरा में सुरक्षा बलों ने लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी) के लिए काम करने वाले चार सहयोगियों को हथियार और गोलाबारूद के साथ गिरफ्तार किया है।
पुलिस प्रवक्ता ने सोमवार को बताया कि खुफिया जानकारी के आधार पर बांदीपोरा के चन्दरगिर में पुलिस के साथ 12 राष्ट्रीय राइफल्स और केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल की 45वीं बलाटियन ने संयुक्त तलाश अभियान के दौरान एलईटी की सहायता करने वाले एक आतंकवादी को गिरफ्तार कर लिया। आरोपी की पहचान शराफत अहमद डार के रूप में हुई है और वह चंदरगीर को रहने वाला है। सुरक्षा बलों ने उसके पास से एक ग्रेनेड सहित कुछ अन्य सामान बरामद किए।
उन्होंने बताया कि बांदीपोरा में साधुनारा में एक अन्य तलाश अभियान के दौरान पुलिस के साथ 13वीं राष्ट्रीय राइफल्स और सीआरपीएफ की 45वीं बटालियन ने आतंकवादियों के तीन सहयोगियों को गिरफ्तार किया है। आरोपियों की पहचान मुदसिर अहमद ख्वाजा, अब्दुल कयूम मारगो और इशफाक अहमद डार के रूप में हुई है और तीनों साधुनारा के रहने वाले हैं। उनके पास से दो जिंदा ग्रेनेड, एक एके मैगजीन और एके-47 के 25 कारतूस बरामद किया गया है।
उन्होंने कहा कि पकड़े गए चारो आतंकवादी सहयोगी लश्कर के सक्रिय आतंकवादियों को रसद, समर्थन और आश्रय देने के रूप में उनकी सहायता करते हैं। हाजिन पुलिस थाने में उनके खिलाफ कानून के तहत संबंधित धाराओं के अंतर्गत मामला दर्ज कर लिया है और चारों से पूछताछ की जा रही है।
मास्को, 13 जुलाई । रूस के सुदूरवर्ती इलाके में राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के खिलाफ लोगों का गुस्सा बढ़ता जा रहा है। इस इलाके के बेहद लोकप्रिय गवर्नर की गिरफ्तारी के बाद हजारों स्थानीय लोग सडक़ों पर उतर आए हैं और पुतिन के इस्तीफे की मांग कर रहे हैं। प्रदर्शनकारी पुतिन इस्तीफा दो के नारे लगा रहे हैं और स्थानीय गवर्नर सर्गेई फुरगाल की रिहाई की मांग कर रहे हैं। गवर्नर को कई हत्याओं के संदेह में अरेस्ट किया गया है।
ये विरोध प्रदर्शन चीन से सटे सीमाई इलाके खबरोव्स्क और कई अन्य कस्बों में हुए हैं। वर्ष 2036 तक पुतिन के सत्ता में बने रहने का रास्ता साफ होने के बाद रूसी सुरक्षा सेवा के लोगों ने बड़े पैमाने पर अभियान चलाया है। बताया जा रहा है कि पुतिन समर्थक उम्मीदवार को हराकर सर्गेई वर्ष 2018 में सत्ता में आए थे। अब उनके खिलाफ अब तक सबसे बड़ा तलाशी अभियान चलाया गया है।
इससे पहले पिछले हफ्ते एक प्रसिद्ध रक्षा पत्रकार को कथित तौर पर चेक गणराज्य के लिए जासूसी करने के आरोप में गिरिफ्तार किया गया था। यही नहीं मानवाधिकार कार्यकर्ता मिखाइल खोदोरकोवस्की के घर पर छापा मारा गया था। मिखाइल ने संविधान के खिलाफ प्रदर्शन की योजना बनाई थी। पश्चिमी विश्लेषकों का कहना है कि यह गिरफ्तारी इस बात का इशारा करती है कि पुतिन ने खेल करके वोट हासिल किए हैं और ये कभी भी उनके लिए संकट का सबब बन सकता है।
पुतिन प्रशासन के लोगों का कहना है कि जनमत संग्रह में जनता ने उन पर जोरदार भरोसा जताया है। जनमत संग्रह का यह परिणाम ऐसे समय पर आया है जब रूसी राष्ट्रपति की रेटिंग बहुत नीचे चली गई है। 6 लाख की आबादी वाला खबरोव्स्क शहर आमतौर पर बेहद शांत शहर है लेकिन गवर्नर की गिरफ्तारी के बाद माहौल बिगड़ गया है। शनिवार को करीब 35 हजार लोगों ने प्रदर्शन में हिस्सा लिया जो इस इलाके के इतिहास में सबसे बड़ा प्रदर्शन है।(navbharattimes)
नदियों में उफान से खेतों - घरों में घुसा पानी
लखनऊ, 13 जुलाई। उत्तर प्रदेश में नदियों का जल स्तर बढ़ने से वह अपना रौद्र रूप दिखा रही हैं। इस कारण कई जगह हालात बिगड़ रहे हैं। लोगों को सुरक्षित स्थानों पर भेजा जा रहा है। घाघरा का जलस्तर बढ़ने से बहराइच जिले के महसी तहसील के गांवों में पानी घुस आया है। इससे लोगों की परेशानी बढ़ गयी है।
नेपाल के पहाड़ों से लगातार बारिश का पानी आने से उत्तर प्रदेश में नदियों ने रौद्र रूप लेना शुरू कर दिया है। घाघरा नदी का रौद्र रूप दिखने लगा है। महसी तहसील के घाघरा नदी में तीन बैराजों का पानी पहुंच गया है। बैराजों से 2.83 लाख क्यूसेक पानी डिस्चार्ज हो रहा है। इससे घाघरा नदी का जलस्तर काफी बढ़ गया है। नदी का जलस्तर बढ़ने से 12 गांवों में बाढ़ का पानी भर गया है। इसमें दरिया बुर्द, चमरही, रेवतीपुरवा गांव की हालत बुरी है। ये तीनों गांव सरयू और घाघरा नदी के बीच में बसे हैं। इन गांव के ग्रामीणों को बाहर निकालने के लिए तहसील प्रशासन द्वारा प्रयास किए जा रहे हैं।
इधर जलस्तर बढ़ने के साथ ही टिकुरी ग्राम पंचायत में नदी ने कटान तेज कर दी है। नदी की धारा ने छह ग्रामीणों के मकान को आगोश में ले लिया है। बढ़ रहे जलस्तर के साथ नदी ने कटान तेज कर दी है। तहसील क्षेत्र के टिकुरी ग्राम पंचायत के मजरा ठकुराईनपुरवा में नदी ने कटान से तबाही मचायी है। घाघरा नदी की कटान में गांव निवासी कमलाशंकर, शिवनरायन, तेज, सुंदर समेत छह ग्रामीणों के मकान नदी में समाहित हो गए। वहीं इसी गांव में घाघरा की लहरों ने 25 से अधिक किसानों की कई सौ बीघा खेती योग्य जमीन नदी में समाहित कर ली।
एक ग्रामीण राहुल ने बताया कि हमारे मकान के साथ खेत भी डूब गए हैं। अब कुछ बचा नहीं है। यह हर साल की लीला है। इससे क्या किया जाए। हालात पर महसी के एसडीएम सुरेन्द्र नारायण त्रिपाठी ने बताया, "नेपाल के रास्ते से आने वाला पानी यहां पर नीचे बने मकानों को प्रभावित कर रही है। वहीं नीचे जो झोपड़ी बनी हैं वहां भी पानी घुसा है। लेकिन अब जलस्तर घट रहा है। सभी को सुरक्षित स्थानों पर भेजा जा रहा है। सभी को तिरपाल और आवश्यक सामाग्री दे दी गयी है। नानापारा में भी कुछ इलाके में पानी भर गया है। सभी की सुरक्षा की व्यवस्था हो रही है।"
इस बीच जल आयोग की रिपोर्ट के अनुसार आदमपुर रेवली तटबंध पर घाघरा के जलस्तर में लगातार वृद्धि हो रही है। रविवार को एल्गिन ब्रिज पर घाघरा का जलस्तर बढ़कर 106.636 सेंटीमीटर पहुंच गया है जो कि खतरे के निशान से 56 सेमी ऊपर है। उधर बलरामपुर में भी नदी का जलस्तर बढ़ गया है। गोंडा में घाघरा की लहरें उफान मार रही है। बलरामपुर में कई गांव के पास पानी पहुंच चुका है। अयोध्या में सरयू के जलस्तर में उतार-चढ़ाव से कटान का खतरा बढ़ गया है। तटवर्ती इलाकों में लोग सुरक्षित स्थानों पर जाने लगे हैं।
राहत आपदा विभाग की ओर से मिली जानकारी के अनुसार बहराइच में 1, महराजगंज में 1, गोरखपुर में 2, वाराणसी में 1, बलिया में 1, लखनऊ में 2 एनडीआरएफ की टीमें लगाई गयी है। राहत और बचाव का कार्य जारी है। जहां ज्यादा समस्या है, उस जिले के अधिकारी को अलर्ट किया गया है।(ians)
नई दिल्ली, 13 जुलाई। सूरत नगर निगम ने कपड़ा व्यापारियों को अपनी दुकानें खोलते वक्त वंदे मातरम और बंद करने के दौरान राष्ट्रगान गाने के लिए कहा है.
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, बीते शनिवार को जारी दिशानिर्देशों में एसएससी ने ये बातें कही हैं. कोविड-19 के कारण बंद किए गए शहर के कपड़ा व्यापार मार्केट को फिर खोलने की इजाजत दी गई है.
कोरोना संक्रमण के प्रसार को रोकने में लगे सूरत नगर निगम द्वारा इन निर्देशों में यह भी कहा गया है कर्मचारी और कामगार अपने काम के दौरान प्रेरक नारे जैसे कि ‘हारेगा कोरोना, जीतेगा सूरत’ और ‘एक लक्ष्य हमारा है, कोरोना को हराना है’ गाना जारी रखेंगे.
व्यापारियों से यह भी कहा गया है कि वे शपथ लेंगे कि ‘मैं महामारी रोकने के लिए सरकार द्वारा जारी सभी निर्देशों का पालन करूंगा और सभी सुरक्षा उपायों का पालन करूंगा और महामारी को फैलने से रोकने के लिए अपने स्तर पर सभी जरूरी चीजें करूंगा.’
राज्य के प्रमुख सचिव (स्वास्थ्य और परिवार कल्याण) जयंती रवि, एसएमसी अधिकारियों और फेडरेशन ऑफ सूरत टेक्सटाइल ट्रेडर्स एसोसिएशन (एफओएसटीटीए) के सदस्यों के साथ बैठक के बाद दिशानिर्देश जारी किए गए हैं.
सूरत के नगर आयुक्त बीएन पाणी ने कहा, ‘दुकानें खोलते समय ‘वंदे मातरम’ और दुकानें बंद करते समय ‘जन गण मन’ गाना राष्ट्रीय एकता बनाने और कोविड-19 महामारी से लड़ने के लिए एक युद्ध घोष करने के लिए है.’
सूरत देश में मैन मेड फाइबर (एमएमएफ) का केंद्र है. यहां पर लगभग 170 कपड़ा व्यापार बाजार हैं, जिसमें 65,000 से अधिक दुकानें हैं.
दिशानिर्देशों के कड़ाई से पालन के साथ कपड़ा बाजार सोमवार से सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे तक ऑड-इवन तरीके से खुलेगा.
सूरत शहर में अब तक 6,727 कोरोना पॉजिटिव मामलेसामने आए हैं और 267 मौतें हुई हैं. स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों के अनुसार, 600 से अधिक हीरा पॉलिश करने वाले और 300 से अधिक कपड़ा व्यापारी कोरोना से संक्रमित हुए हैं.(thewire)
छग सशस्त्र बल के 2 जवान, 2 स्वास्थ्य कार्यकर्ता
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
भिलाई नगर, 13 जुलाई। जिले में आज फिर 15 कोरोना संक्रमित मरीजों की पुष्टि हुई है। जिसमें 2 जवान छत्तीसगढ़ सशस्त्र बल अमलेश्वर बटालियन से हैं। दो पाटन के सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता भी संक्रमित पाए गए हैं।
जिला स्वास्थ्य एवं चिकित्सा अधिकारी डॉ गंभीर सिंह ठाकुर ने बताया कि आज दोपहर प्राप्त रिपोर्ट में कुल 15 नए मरीजों की पुष्टि हुई है। जिसमें से 2 जवान छत्तीसगढ़ सशस्त्र बल अमलेश्वर बटालियन से हैं। दो पाटन के सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता जिसमें एक महिला एवं पुरुष शामिल हैं। इसके अलावा पाटन से ही एक मेडिकल स्टोर संचालक भी कोरोना पॉजिटिव पाया गया है।
इसके अलावा वैशाली नगर से एक महिला मरीज संक्रमित हैं। जबकि ग्राम बोरी गारका निकुम से एक महिला एवं 2 पुरुष संक्रमित पाए गए हैं। इसी प्रकार से ग्राम उतई दुर्ग से दो पुरुष की रिपोर्ट कोरोना पॉजिटिव आई है। ग्राम पंच देवरी कुम्हारी निवासी महिला की भी रिपोर्ट पॉजिटिव प्राप्त हुई है।
इसी प्रकार से दुर्ग के ग्राम मटरा पाटन की रहने वाली एक महिला की रिपोर्ट कोरोना संक्रमित आई है। ग्राम जांजगीरी की महिला के कोरोना संक्रमण की पुष्टि की गई है एक अन्य महिला के पॉजिटिव होना बताया गया है आज मिले 15 मरीजों में अधिकांश ग्रामीण क्षेत्रों से हैं शहरी क्षेत्र से केवल एक महिला मरीज व वैशाली नगर से है सर्वाधिक 6 मरीज पाटन क्षेत्र से हैं।
3 महिला समेत 12 विधायक लेंगे शपथ
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 13 जुलाई। प्रदेश में करीब डेढ़ साल बाद संसदीय सचिवों की नियुक्ति की जा रही है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल कल शाम 4 बजे 12 विधायकों को संसदीय सचिवों की शपथ दिलाएंगे। शपथ ग्रहण समारोह यहां मुख्यमंत्री निवास पर आयोजित किया गया है। चर्चा है कि 3 महिला विधायक भी संसदीय सचिव बनाए जा रहे हैं।
प्रदेश में कांग्रेस की सरकार करीब डेढ़ साल से चल रही है, लेकिन यहां संसदीय सचिवों की नियुक्ति नहीं हो पाई थी। जबकि विधायकों और कांग्रेस नेताओं की यह लगातार मांग बनी हुई थी। उनकी इस संबंध में पार्टी के बड़े नेताओं के बीच भी चर्चा चलती रही। अब यह साफ होने लगा है कि कल प्रदेश में संसदीय सचिवों की नियुक्ति हो जाएगी। संसदीय सचिवों के लिए कुछ विधायकों के नाम भी सामने आने लगे हैं।
शपथ लेने वाले संसदीय सचिवों में द्वारिकाधीश यादव, विनोद सेवनलाल चंद्राकर, चन्द्रदेव राय, सुश्री शकुन्तला साहू, विकास उपाध्याय, श्रीमती अंबिका सिंहदेव, चिंतामणी महाराज, यू.डी. मिंज, पारसनाथ राजवाड़े, इंदरशाह मण्डावी, कुंवरसिंह निषाद, गुरूदयाल सिंह बंजारे, डॉ. रश्मि आशीष सिंह, शिशुपाल सोरी और रेखचंद जैन शामिल है।
‘कंटेनमेंट जोन के आसपास जांच बढ़ाएं’
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 13 जुलाई। सांसद सुनील सोनी ने कहा है कि प्रदेश में कोरोना के मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं। ऐसे में राज्य सरकार को कोई ठोस कदम उठानी चाहिए। खासकर कंटेनमेंट जोन-आसपास लॉकडाउन कर वहां कोरोना जांच बढ़ायी जाए।
सांसद श्री सोनी ने ‘छत्तीसगढ़’ से चर्चा में प्रदेश में बढ़ते कोरोना संक्रमण पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि राजधानी रायपुर के 70 में से 60 वार्ड कोरोना से प्रभावित हो चुके हैं। इन वार्डों में नए-नए मरीजों के साथ कई जगहों पर कंटेनमेंट जोन बन गए हैं। इसी तरह प्रदेश के सभी 28 जिलों में भी कोरोना पॉजिटिव मिल चुके हैं। रायपुर समेत कुछ जिले ऐसे हैं, जहां आए दिन नए-नए मरीज सामने आ रहे हैं। इसमें डॉक्टर, नर्स, पुलिस के साथ अलग-अलग वर्ग के लोग संक्रमित मिल रहे हैं।
उन्होंने कहा कि पहले उनका पीएसओ पॉजिटिव मिला था। अब उनका ड्राइवर पॉजिटिव मिला है, लेकिन वे खुद बच गए हैं। इसकी वजह कोरोना गाइड लाइन का पालन है। वे लगातार मास्क लगाकर सामाजिक दूरी के साथ चल रहे हैं, जिसकी वजह से उनकी जांच रिपोर्ट निगेटिव आई है। उन्होंने कहा कि प्रदेश में जहां कोरोना केसेस ज्यादा हैं, वहां राज्य सरकार लॉकडाउन करें। नियमों का पालन न करने वालों पर वहां सख्ती बरतें। जहां कोरोना केसेस कम हैं, वहां मास्क लगाने और सामाजिक दूरी बनाने पर पूरी तरह से जोर दें, तब जाकर हम कोरोना को हरा पाएंगे।
सांसद श्री सोनी ने कहा कि प्रदेश में हर रोज दर्जनों कोरोना मरीज सामने आ रहे हैं। इसके बाद भी लोग सावधानी बरतने के बजाय सडक़ों पर बिना मास्क पहने चल रहे हैं। कोई सामाजिक दूरी भी नहीं बना रहे हैं। उनकी इस लापरवाही का नतीजा है कि बड़ी संख्या में लोग संक्रमित मिल रहे हैं। उनकी यह लापरवाही घातक है। ऐसे में कोरोना गाइड लाइन का कड़ाई से पालन कराया जाए।
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
भैयाथान, 13 जुलाई। सूरजपुर जिले के विकासखंड भैयाथान के ग्राम पंचायत गोविंदगढ़ में आज दोपहर बैल चराने के दौरान आकाशीय बिजली से एक नाबालिग की मौत हो गई जबकि 2 लोग गंभीर रूप से घायल हो गए। घायलों को सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र भैयाथान लाया गया।
जानकारी के अनुसार आज दोपहर 1 बजे गाज से गोविंदगढ़ निवासी आकाश सिंह (14) की मौत मौके पर ही हो गई जबकि शिवमंगल सिंह (35) व अशोक सिंह (16) घायल हो गए जिनको सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र भैयाथान लाया गया जहां उपचार जारी है। आज दोपहर क्षेत्र में तेज बारिस के साथ आकाशीय बिजली गिरी है। वहीं प्रत्यदर्शियों के अनुसार सभी लोग गोविंदगढ़ के बांध के नीचे छुरीडांड में बैल चरा रहे थे। इसी दौरान आकाशीय बिजली की चपेट में आने से एक की मौत हो गई जबकि दो लोग घायल हो गए।
‘छत्तीसगढ़’ न्यूज डेस्क
कांग्रेस राज्यसभा सदस्य और राष्ट्रीय प्रवक्ता पी.एल. पुनिया से आज ज्योतिरादित्य सिंधिया के बयान पर प्रतिक्रिया पूछी गई, जिसका जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि सचिन पायलट अब भाजपा में है। बाद में उन्होंने कहा एक वीडियो स्टेटमेन जारी करके यह स्पष्ट किया कि आज सुबह मीडिया ने सवाल किया कि सिंधियाजी ने आरोप लगाया है कि कांग्रेस पार्टी में सचिन पायलट की उपेक्षा हो रही है। इसके जवाब में मैंने सिंधियाजी के बारे में ही कहा था कि वे भाजपा में हैं, अब उनसे हमें सर्टिफिकेट लेने की जरूरत नहीं है। श्री पुनिया ने कहा कि गलती से सिंधियाजी के बजाय सचिन पायलट का नाम ले लिया गया, और मुझे भी यह अहसास नहीं हुआ कि मुझसे गलती हुई है। वास्तव में मैंने सिंधियाजी के बारे में कहा था, सचिन पायलट के बारे में नहीं। मुझे इस बात का अहसास है कि सचिन पायलटजी ने स्पष्ट रूप से बयान दिया है कि वे भारतीय जनता पार्टी में नहीं जा रहे।
अनंतनाग, 13 जुलाई। दक्षिणी कश्मीर के अनंतनाग में सोमवार को घेराबंदी और तलाश अभियान के दौरान सुरक्षा बलों और आतंकवादियों के बीच मुठभेड़ में दो आतंकवादी मारे गये और एक महिला घायल हो गई।
आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि आज तडक़े खुफिया सूचना मिलने के बाद राष्ट्रीय राइफल्स, केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल और जम्मू कश्मीर पुलिस के विशेष अभियान समूह ने अनतंनाग के सरीगुफवाड़ा में संयुक्त अभियान शुरू किया। इस दौरान सुरक्षा बलों ने इलाके से बाहर निकलने वाले सभी रास्तों को सील कर दिया गया और घर-घर जाकार तलाशी लेनी शुरू की। सुरक्षा बल के जवान जब एक मकान की ओर से बढ़ रहे थे, तभी वहां छिपे आतंकवादियों ने स्वचालित हथियारों से गोलीबारी शुरू कर दी। जवाबी कार्रवाई में सुरक्षा बलों ने भी गोलियां चलायी।
सूत्रों ने बताया सुरक्षा बलों की जवाबी कार्रवाई के बाद मुठभेड़ शुरू हो गयी। गोलीबारी में एक महिला अरिफा घायल हो गयी , जिसे अस्पताल ले जाया गया है। आसपास के घरों से लोगों को बचा कर सुरक्षित पर ले जाया गया है। आसपास के गांवों में कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए अतिरिक्त सुरक्षा बलों और पुलिस को तैनात कर दिया गया है।
उन्होंने बताया कि अभी तक मुठभेड़ में दो अज्ञात आतंकवादी मारे गए और घटनास्थल से दो एके-47 राइफल्स बरामद की गयी है। आसपास के गांवों में कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए अतिरिक्त सुरक्षा बलों और पुलिस को तैनात कर दिया गया है।
अंतिम रिपोर्ट मिलने तक अभियान जारी था।
इस दौरान किसी भी तरह की अफवाहों को फैलने से रोकने के लिए भारत संचार निगम लिमिटेड सहित अन्य सभी सेल्यूलर कंपनियों के इंटरनेट सेवा को एहतियात के तौर पर बंद कर दिया गया है। (वार्ता)
सुनील सोनी के ड्राइवर, पीएचक्यू के दो जवान भी संक्रमित
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 13 जुलाई। रायपुर जिले में कोरोना संक्रमण बढऩे के साथ ही आज दोपहर 67 नए पॉजिटिव मिले हैं। कल यहां 96 पॉजिटिव मिले थे। इस तरह दो दिन में रायपुर जिले में 163 नए पॉजिटिव सामने आए हैं और यह जिला एक तरह से हॉटस्पॉट माना जा रहा है। ये सभी मरीज अस्पताल में भर्ती किए जा रहे हैं। वहीं उनके आसपास संपर्क में आने वालों की पहचान की जा रही है।
रायपुर जिले में बीती रात तक 737 कोरोना मरीज रहे। आज दोपहर 67 नए मरीजों के साथ इनकी संख्या बढक़र 801 हो गई है। इसमें एक्टिव 375 से बढक़र अब 442 हो गए हैं और 359 ठीक होकर अपने घर लौट गए हैं। आज मिले कोरोना मरीजों में सांसद सुनील सोनी का ड्राइवर, बैंककर्मी, हेल्थकेयर वर्कर, पीएचक्यू के दो जवान समेत अलग-अलग वर्ग के लोग शामिल हैं।
जिला स्वास्थ्य अफसरों का कहना है कि जिले में कोरोना संक्रमण बढऩे के साथ ही उसके जांच का दायरा भी बढ़ा दिया गया है। खासकर पहले आए कोरोना मरीजों के प्राइमरी कॉन्टेक्ट वालों की जांच की जा रही है। जांच में पहले पॉजिटिव आए मरीजों के संपर्क वाले अब पॉजिटिव मिल रहे हैं। उनका कहना है कि कहीं-कहीं पर कोरोना की रैडंम जांच भी चल रही है। उनका मानना है कि राजधानी रायपुर समेत जिले में और भी कोरोना मरीज मिल सकते हैं।
तुर्की, 13 जुलाई। पोप फ्रांसिस ने कहा है कि इस्तांबुल के हागिया सोफिया को वापस मस्जिद में बदलने के तुर्की सरकार के फैसले से उन्हें दुख पहुँचा है। वेटिकन में एक सभा में बोलते हुए, रोमन कैथलिक गुरु पोप फ्रांसिस ने यह बयान दिया।
हागिया सोफिया का लगभग 1,500 साल पहले एक ईसाई चर्च के रूप में निर्माण हुआ था और 1453 में इस्लाम को मानने वाले ऑटोमन साम्राज्य ने विजय के बाद इसे एक मस्जिद में बदल दिया था।
यूनेस्को वल्र्ड हैरिटेज साइट - हागिया सोफिया को 1934 में आधुनिक तुर्की के निर्माता कहे जाने वाले मुस्तफ़ा कमाल पाशा ने देश को धर्मनिरपेक्ष घोषित करने के बाद, मस्जिद से म्यूजिय़म में तब्दील कर दिया था। लेकिन पिछले सप्ताह तुर्की की एक अदालत ने हागिया सोफिय़ा के संग्रहालय की स्थिति को यह कहते हुए रद्द कर दिया कि मस्जिद के अलावा किसी अन्य चीज़ के रूप में इसका उपयोग क़ानूनन संभव नहीं था।
पोप फ्रांसिस इस बदलाव पर बहुत ज़्यादा नहीं बोले। उन्होंने अपने शब्दों को सीमित रखते हुए कहा, मैं इस्तांबुल के बारे में सोच रहा हूँ। मैं सेंटा सोफिया के बारे में सोच रहा हूँ और मुझे बहुत दुख पहुँचा है। तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप अर्दोआन ने कहा कि हागिया सोफिया में 24 जुलाई को पहली नमाज पढ़ी जाएगी। हालांकि, हागिया सोफिया को मस्जिद में बदलने की घोषणा के कुछ समय बाद ही वहाँ से अजान सुनाई दी और तुर्की के तमाम मुख्य चैनलों पर इसे प्रसारित किया गया। हागिया सोफिया का सोशल मीडिया अकाउंट भी बंद कर दिया गया है।
तुर्की में कट्टर इस्लामवादी लंबे समय से हागिया सोफिया को मस्जिद में तब्दील करने की वकालत करते आए हैं जबकि तुर्की की सेक्युलर जमात हमेशा से इसके खिलाफ रही है।
अपने फैसले का बचाव करने के लिए तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप अर्दोआन ने कहा है कि तुर्की सरकार ने अपने अधिकारों का इस्तेमाल कर यह निर्णय लिया है और यह इमारत आगे भी मुस्लिम, गैर-मुस्लिम और अन्य विदेशी यात्रियों के लिए हमेशा की तरह खुली रहेगी।
हमारी आवाजों को सुना नहीं गया
पोप फ्रांसिस दुनिया के उन बड़े धार्मिक और राजनीतिक नेताओं में से एक हैं जिन्होंने तुर्की के इस निर्णय की निंदा की है।
वल्र्ड काउंसिल ऑफ चर्च ने तुर्की के राष्ट्रपति अर्दोआन से यह निर्णय पलटने की गुजारिश की है। रूस में स्थित चर्च, जो दुनिया के सबसे बड़े रूढि़वादी ईसाई समुदाय का महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है, उसने तुरंत खेद व्यक्त किया था कि तुर्की की अदालत ने हागिया सोफिय़ा पर आदेश देते समय उनके पक्ष का जऱा भी ध्यान नहीं रखा।
ग्रीस ने भी इसकी आलोचना की है। साथ ही यूनेस्को ने कहा है कि वल्र्ड हैरिटेज कमेटी अब इस इमारत की स्थिति की समीक्षा करेगी।
तुर्की के मशहूर लेखक और नोबेल विजेता ओरहान पामुक ने बीबीसी से बातचीत में कहा कि इस निर्णय के बाद कुछ तुर्क लोगों से उनका गौरव छिन जाएगा जो अब तक कहते रहे कि तुर्की एक सेक्युलर मुल्क़ है।
उन्होंने कहा, मेरे जैसे लाखों तुर्क मुसलमान हैं जो इस निर्णय के बिल्कुल खिलाफ हैं, लेकिन हमारी आवाजों को सुना ही नहीं गया।
हागिया सोफिय़ा - क्या है इतिहास?
गुम्बदों वाली यह ऐतिहासिक इमारत इस्तांबूल में बास्फोरस नदी के पश्चिमी किनारे पर है।
बास्फोरस वह नदी है जो एशिया और यूरोप की सीमा तय करती है, इस नदी के पूर्व की तरफ एशिया और पश्चिम की ओर यूरोप है।
सम्राट जस्टिनियन ने सन 532 में एक भव्य चर्च के निर्माण का आदेश दिया था। उन दिनों इस्तांबुल को कॉन्सटेनटिनोपोल या कस्तुनतुनिया के नाम से जाना जाता था।
यह बाइज़ैन्टाइन साम्राज्य की राजधानी था जिसे पूरब का रोमन साम्राज्य भी कहा जाता था। इस शानदार इमारत को बनाने के लिए दूर-दूर से निर्माण सामग्री और इंजीनियर लगाए गए थे। यह तुर्की के सबसे लोकप्रिय पर्यटन स्थलों में से एक है।
यह चर्च पाँच साल में बनकर 537 में पूरा हुआ। यह ऑर्थोडॉक्स इसाइयत को मानने वालों का अहम केंद्र तो बन ही गया, बाइज़ैन्टाइन साम्राज्य की ताक़त का भी प्रतीक बन गया। राज्यभिषेक जैसे अहम समारोह इसी चर्च में होते रहे।
हागिया सोफिया जिसका मतलब है पवित्र विवेक, करीब 900 साल तक ईस्टर्न ऑर्थोडॉक्स चर्च का मुख्यालय रही। लेकिन इसे लेकर विवाद सिफऱ् मुसलमानों और ईसाइयों में ही नहीं है। 13वीं सदी में इसे यूरोपीय ईसाई हमलावरों ने बुरी तरह तबाह करके कुछ समय के लिए कैथोलिक चर्च बना दिया था।
1453 में इस्लाम को मानने वाले ऑटोमन साम्राज्य के सुल्तान मेहमद द्वितीय ने कस्तुनतुनिया पर कब्ज़ा कर लिया, उसका नाम बदलकर इस्तांबुल कर दिया, और इस तरह बाइज़ैन्टाइन साम्राज्य का खात्मा हमेशा के लिए हो गया।
सुल्तान मेहमद ने आदेश दिया कि हागिया सोफिय़ा की मरम्मत की जाए और उसे एक मस्जिद में तब्दील कर दिया जाए। इसमें पहली जुमे की नमाज में सुल्तान ख़ुद शामिल हुए। ऑटोमन साम्राज्य को सल्तनत-ए-उस्मानिया भी कहा जाता है।
इस्लामी वास्तुकारों ने ईसाइयत की ज़्यादातर निशानियों को तोड़ दिया या फिर उनके ऊपर प्लास्टर की परत चढ़ा दी।
पहले यह सिफऱ् एक गुंबद वाली इमारत थी लेकिन इस्लामी शैली की छह मीनारें भी इसके बाहर खड़ी कर दी गईं।
17वीं सदी में बनी तुर्की की मशहूर नीली मस्जिद सहित दुनिया की कई मशहूर इमारतों के डिजाइन की प्रेरणा हागिया सोफिया को ही बताया जाता है।
पहले विश्व युद्ध में ऑटोमन साम्राज्य को बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा और साम्राज्य को विजेताओं ने कई टुकड़ों में बाँट दिया। मौजूदा तुर्की उसी ध्वस्त ऑटोमन साम्राज्य की नींव पर खड़ा है।
आधुनिक तुर्की के निर्माता कहे जाने वाले मुस्तफ़ा कमाल पाशा ने देश को धर्मनिरपेक्ष घोषित किया और इसी सिलसिले में हागिया सोफिया को मस्जिद से म्यूजियम में बदल दिया।
साल 1935 में इसे आम जनता के लिए खोल दिया गया तब से यह दुनिया के प्रमुख पर्यटन स्थलों में एक रहा है।
करीब डेढ़ हजार साल के इतिहास की वजह से तुर्की ही नहीं, उसके बाहर के लोगों के लिए भी हागिया सोफिय़ा बहुत अहमियत रखता है। ख़ासतौर पर ग्रीस के ईसाइयों और दुनिया भर के मुसलमानो के लिए।
तुर्की में 1934 में बने क़ानून के खिलाफ लगातार प्रदर्शन होते रहे हैं जिसके तहत हागिया सोफिया में नमाज पढऩे या किसी अन्य धार्मिक आयोजन पर अब तक पाबंदी थी। (bbc.com/hindi)
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 13 जुलाई। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा सोमवार को वीडियो कांफ्रेंस कर छत्तीसगढ़ के पार्टी के सांसदों से रूबरू हुए। चर्चा के दौरान केन्द्रीय मंत्री रेणुका सिंह पर जिलों की बैठक नहीं लेने पर जमकर नाराजगी दिखाई।
केन्द्र सरकार की योजनाओं को घर-घर पहुंचाने के पार्टी के अभियान की समीक्षा के दौरान श्री नड्डा ने केन्द्रीय राज्यमंत्री रेणुका सिंह परअभी तक जिलों की बैठक तक नहीं लेने पर नाराजगी जताई। रेणुका सिंह ने सफाई देने की कोशिश की कि बेटी की शादी की व्यस्तता की वजह से बैठक नहीं ले पाई।
इससे श्री नड्डा सहमत नहीं हुए। उन्होंने यहां तक कहा कि लगता है आप पार्टी कार्यक्रमों को गंभीरता से नहीं ले रही हैं। जबकि छत्तीसगढ़ में पार्टी की सरकार नहीं है और आप इस राज्य से केंद्र में एकमात्र मंत्री हैं। ऐसे में आपकी जिम्मेदारी ज्यादा है।
श्री नड्डा ने कांकेर सांसद मोहन मंडावी से आदिवासी इलाकों में सरकारी योजनाओं का हाल जाना। उन्होंने बाकी सांसदों से केन्द्रीय योजनाओं को घर-घर पहुंचाने के कार्यक्रमों पर विस्तार से चर्चा की। वीडियो कांफे्रंस में सभी सांसदों के अलावा राज्यसभा सदस्य सुश्री सरोज पांडेय और रामविचार नेताम भी जुड़े थे।
जयपुर, 13 जुलाई (भाषा)। राजस्थान में चल रही सियासी धक्कामुक्की के बीच बड़ी संख्या में कांग्रेस के विधायक मुख्यमंत्री आवास पर पहुंचे। विधायक दल की बैठक सुबह 10.30 पर होनी थी लेकिन यह दोपहर 12 बजे के बाद शुरू हुई। यहां सीएम गहलोत का समर्थन करने के लिए कांग्रेस के विधायकों के साथ केंद्रीय नेतृत्व द्वारा भेजे गए कांग्रेस के नेता भी नजर आए। सभी नेताओं ने वहां मीडिया की तरफ विजयी मुद्रा में इशारा किया। कांग्रेस लगातार इस बात का दावा कर रही है कि राजस्थान में गहलोत सरकार को कोई खतरा नहीं है। इसे सीएम गहलोत का पायलट के खिलाफ शक्ति प्रदर्शन माना जा रहा है।
राजस्थान के परिवहन मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास ने इससे पहले कहा कि गहलोत सरकार के पास जादुई आंकड़ा मौजूद है। राज्य सरकार कहीं नहीं जाएगी। पार्टी नेताओं के मुताबिक विधायक दल की बैठक में भाग लेने के लिए कांग्रेस के साथ साथ बीटीपी के दो, माकपा के एक, राष्ट्रीय लोकदल के एक विधायक सहित अनेक निर्दलीय विधायक पहुंचे हैं।