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काठमांडू, 13 जुलाई। नेपाल के विभिन्न हिस्सों में पिछले चार दिनों में बाढ़ और भूस्खलन में 61 लोग मारे गए हैं जबकि 41 लोग लापता हो गए हैं। पश्चिमी नेपाल का मायागड़ी जिला 27 मौतों से सबसे ज्यादा प्रभावित है। लापता लोगों को खोजने के लिए अधिकारियों और पुलिस कर्मियों के साथ खोज और बचाव अभियान जारी है। जिले में सैकड़ों लोग विस्थापित हुए हैं क्योंकि भूस्खलन से उनके घर बह गए हैं। उन्होंने अब स्थानीय स्कूलों और सामुदायिक केंद्रों में शरण ली है।
मंसुवा बीके, जिन्होंने अब माईगाड़ी जिले के बिम में एक स्थानीय स्कूल में शरण ले रखी है, उन्होंने एएनआई को बताया कि मेरा बच्चा अभी छह महीने का है। हम स्कूल में शरण ले रहे हैं। मेरे परिवार में मेरा बच्चा और मैं ही बचे हैं। मैंने उसे अपने हाथों में पकड़ लिया और फिर भूस्खलन से मेरा घर बह गया।
भूस्खलन से प्रभावित मायागड़ी के धौलागिरि ग्राम परिषद के ग्राम परिषद अध्यक्ष थमसरा पुन ने कहा, पहले चरण में हमने घायलों को बचाया जो पूरा होने में हमें लगभग 30-35 घंटे लगे। अब हम लापता लोगों के लिए अपना खोज अभियान जारी रख रहे हैं, जिनके बारे में माना जा रहा है कि वे मलबे में दबे हुए हैं।... और जो मृत हैं उनकी पहचान और उनके दाह संस्कार की भी व्यवस्था कर रहे हैं। स्थानीय निकाय प्रतिनिधि ने कहा कि हमारे दो वार्ड भूस्खलन के कारण पूरी तरह से बह गए हैं।
मानसून के मौसम में हिमालय राष्ट्र में भूस्खलन और बाढ़ एक आम घटना है। 12 जुलाई तक, लगभग एक हजार लोग अपने घरों से विस्थापित हो गए हैं और आस-पास के स्कूलों में शरण ली है और दानदाताओं के समर्थन पर भरोसा कर रहे हैं।
मायागड़ी जिले के मुख्य जिला अधिकारी ज्ञाननाथ ढकाल ने एएनआई को बताया, उस क्षेत्र में अब कोई भी असहाय नहीं है - वे सभी स्कूलों और सामुदायिक भवनों में स्थानांतरित कर दिए गए हैं। 70-80 सुरक्षाकर्मियों को लेकर तलाशी अभियान जारी है और यह समाप्ति की ओर है और राहत प्रदान करने का काम भी शुरू हो गया है।
इस सप्ताह के शुरू में नेपाल के मौसम पूर्वानुमान विभाग ने देश भर में इस सप्ताह के पहले तीन दिनों के लिए भारी भारिश की भविष्यवाणी की थी। बुलेटिन में डिवीजन ने तराई बेल्ट में कम दबाव की रेखा के पास मानसून होने की चेतावनी दी थी, जिसके परिणामस्वरूप वर्षा होनी की बात कही गई। (jagran)
मौतें-19, एक्टिव-909, डिस्चार्ज-3153
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 13 जुलाई। प्रदेश में कोरोना मरीज 4 हजार से पार हो चुके हैं। बीती रात मिले 150 नए पॉजिटिव के साथ प्रदेश में कोरोना मरीज बढक़र 4 हजार 81 हो गए हैं। इसमें 19 की मौत हो चुकी है। 909 एक्टिव हैं, जो एम्स समेत अलग-अलग अस्पतालों में भर्ती हैं। वहीं 3 हजार 153 मरीज ठीक होकर अपने घर भी लौट चुके हैं, सैंपलों की जांच जारी है।
प्रदेश में कोरोना मरीज बढऩे के साथ ही मौतें भी जारी है। कल दुर्ग और रायपुर अंबेडकर अस्पताल में एक-एक कोरोना मरीज की मौत हो गई। दुर्ग का मरीज कोरोना के साथ सेप्टिक शॉक व अन्य बीमारियों से पीडि़त था। वहीं रायपुर का 41वर्षीय मरीज हृदयाघात के साथ कोरोना से संक्रमित था। प्रदेश में सिर्फ
कोरोना से 6 एवं कोरोना के साथ अन्य बीमारियों से 13 मौत हो चुकी है। अस्पतालों में भर्ती कुछ और मरीजों की हालत गंभीर बताई जा रही है।
राजधानी रायपुर समेत प्रदेश में कोरोना मरीज अब तेजी के साथ बढ़ते जा रहे हैं। बीती रात प्रदेश में एक साथ 150 नए पॉजिटिव पाए गए। इसमें अकेले रायपुर जिले से 96 रहे। जांजगीर-चांपा से 17, कांकेर से 9, सरगुजा से 5 एवं बालोद, बिलासपुर, कोरिया, बस्तर व नारायणपुर से 3-3 रहे। इसके अलावा धमतरी से 2 एवं दुर्ग, कबीरधाम, बलौदाबाजार, गरियाबंद, रायगढ़, बलरामपुर से 1-1 मिले। ये सभी मरीज एम्स समेत आसपास के कोरोना अस्पतालों में भर्ती कराए जा रहे हैं। उनके आसपास या संपर्क में आने वालों की पहचान जारी है।
स्वास्थ्य अफसरों का कहना है कि रायपुर समेत प्रदेश के कुछ जिलों में कोरोना मरीज ज्यादा संख्या में सामने आ रहे हैं। हालांकि प्रदेश में भर्ती मरीज डिस्चार्ज भी किए जा रहे हैं। कल 83 मरीज डिस्चार्ज हुए हैं। लोगों को खुद जागरूक होकर अपने आसपास के लोगों को भी जागरूक करना जरूरी है। कोरोना से बचाव के लिए मास्क पहनना और सामाजिक दूरी बनाकर रखना और ज्यादा जरूरी है। कहीं ना कहीं चूक से बीमारी तेजी के साथ फैल रही है। ऐसे में लोग सतर्कता के साथ अपने बचाव में अवश्य आगे आएं।
नई दिल्ली, 13 जुलाई। हार्दिक पटेल को गुजरात प्रदेश कांग्रेस कमेटी का कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त किए जाने के बाद कुछ अखबारों ने इसे सोनिया गांधी के करीबी कहे जाने वाले अहमद पटेल की गुजरात की राजनीति पर पकड़ कमजोर होने का संकेत बताया है।
इकोनॉमिक टाइम्स अखबार ने लिखा है कि कांग्रेस पार्टी ने इस पीढ़ीगत बदलाव के जरिए एक मजबूत संदेश देने की कोशिश की है। साथ ही यह नियुक्ति कांग्रेस पार्टी अध्यक्ष के पूर्व राजनीतिक सलाहकार अहमद पटेल की गुजरात कांग्रेस की राजनीति पर पकड़ कमजोर होने का संकेत भी है।
रिपोर्ट के अनुसार, कांग्रेस पार्टी के सीनियर नेताओं के बीच इस निर्णय से असंतोष का माहौल बना हुआ है जबकि प्रदेश बीजेपी के नेताओं को चिंता हो रही है कि हार्दिक पटेल ना सिर्फ पाटीदारों के, बल्कि सूरत के हीरा उद्योग से जुड़े प्रवासियों के भी वोट खींच सकते हैं। कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने यह स्पष्ट कर दिया है कि हार्दिक पटेल की नियुक्ति का निर्णय राहुल गांधी ने लिया है जो पार्टी में एक नई ऊर्जा डालने का उनका प्रयास है।
दिल्ली के एक बड़े कांग्रेसी नेता ने इकनॉमिक टाइम्स से कहा, हार्दिक पटेल को कार्यकारी अध्यक्ष बनाए जाने का फैसला बहुत ही सधा हुआ फैसला है। वे बहुत ही सक्रिय नेता हैं और जमीनी स्तर पर कांग्रेस को खड़ा करने में सहायक साबित होंगे। इसलिए उन्हें एक महत्वपूर्ण पद दिया गया है, पर ये प्रदेश कांग्रेस का सबसे बड़ा पद नहीं है।
नियुक्ति के बाद हार्दिक पटेल ने कहा, मैंने पार्टी के सभी वरिष्ठ नेताओं से बात की। कुछ ने मुझे ख़ुद बुलाया और सभी मेरे इस पद पर नियुक्त होने से खुश हैं। हर किसी का मुझे समर्थन है। आखिरकार हम सब चाहते हैं कि गुजरात में एक बार फिर कांग्रेस की सरकार बने।
इकोनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, हार्दिक पटेल पिछले कुछ समय से लगातार कांग्रेस पार्टी की अध्यक्षा सोनिया गांधी से मिल रहे थे। हार्दिक ने गुजरात में जमीनी स्तर पर कांग्रेस के लिए काम करने की इच्छा भी जाहिर की थी।
रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से लिखा है कि कांग्रेस पार्टी हार्दिक पटेल को राष्ट्रीय स्तर का पद देना चाहती थी लेकिन उन्होंने इससे इनकार कर दिया और कहा कि अभी वे राज्य स्तर पर ही काम करना चाहते हैं। (bbc.com/hindi)
नई दिल्ली, 13 जुलाई (वार्ता)। उच्चतम न्यायालय ने केरल के तिरुवनंतपुरम स्थित श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर के प्रबंधन पर त्रावणकोर के पूर्ववर्ती राजपरिवार के अधिकार को सोमवार को बरकरार रखा।
न्यायमूर्ति उदय उमेश ललित की अध्यक्षता वाली दो सदस्यीय खंडपीठ ने त्रावनकोर रॉयल परिवार की अपील मंजूर कर ली। राज परिवार ने केरल उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती दी थी।
तिरुवनंतपुरम के जिला जज की अध्यक्षता वाली कमिटी फिलहाल मंदिर की व्यवस्था देखेगी। गौरतलब है कि शीर्ष अदालत में केरल के तिरुवनंतपुरम स्थित श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर में वित्तीय गड़बड़ी को लेकर प्रबंधन और प्रशासन का विवाद नौ सालों से लंबित था। मंदिर के पास करीब दो लाख करोड़ रु. की संपत्ति है।
-विष्णु नागर
जिस दिन यह टिप्पणी लिख रहा हूँ उस दिन पता नहीं क्यों सुबह से ही हेमंत कुमार का गाया और बचपन में और विशेषकर स्वतंत्रता दिवस तथा गणतंत्र दिवस पर कई बार सुना यह गाना मन में बारबार गूँजता रहा- ‘इन्साफ की डगर पे बच्चो दिखाओ चल के’। कोई प्रत्यक्ष कारण नहीं है इसका, फिर भी न जाने क्यों मेरे साथ उस दिं ऐसा हुआ। ऐसा भी नहीं है कि इसे पहली बार रेडियो या टीवी पर सुना हो, इसलिए यह मन में गूँज रहा हो। कभी-कभी मेरे साथ ऐसा होता है। कभी मौका मिला तो ऐसी चीजें यू ट्यूब पर सुन लेता हूँ हालांकि उसे कई-कई बार सुनकर भी मन नहीं भरता लेकिन आज इस गाने के मन में गूँजने का कारण क्या यह है कि मैं किसी संयोग से अपने बचपन में लौट आया हूँ? लगता तो नहीं मगर पता नहीं। 1961 में जब दिलीप कुमार-वैजयंती माला की फिल्म ‘गंगा जमुना’ आई थी-जिसका यह गाना है- तब मैं 11 साल का था और मेरे कस्बे में फिल्म का प्रचार करने के लिए स्थानीय अमीन सयानी साहब नई आई फिल्म की खूबियों का बखान करते हुए गली-गली में तांगे में घूमा करते थे। वे थे, तो लगभग अनपढ़ मगर फिल्म के प्रचार का अंदाज उनका इतना जोरदार होता था कि ऐसा हो नहीं सकता था कि उनके प्रचार के बाद कोई सड़ी से सड़ी फिल्म देखने से भी अपने को बचा पाए।
तब पता नहीं था कि यह गाना सुकूनभरी और भरोसा दिलानेवाली आवाज में किसने गाया है और इसे लिखा किसने है, उस उम्र में यह जानने की उत्सुकता भी नहीं होती थी लेकिन शायद हेमंत कुमार की आवाज से भी ज्यादा या यूं कहें कि उनकी आवाज के साथ शकील बदायूंनी के ये बोल बहुत अपील करते थे, इसलिए भी कि यह गाना खासकर बच्चों को संबोधित था। तब स्कूलों में पंडित नेहरू को चाचा नेहरू कहलवाया जाता था और नारा लगवाया जाता था- चाचा नेहरू जिंदाबाद। मुझे तब सचमुच लगता था कि नेहरूजी मेरे चाचा हैं, भले ही मैंने उन्हें दूर से भी कभी देखा नहीं था और शाजापुर जैसे छोटे से पिछड़े कस्बे में उनके आने की कोई उम्मीद भी नहीं थी। जब नेहरूजी नहीं रहे तो पड़ोसी के रेडियो पर उनकी शव यात्रा का वर्णन सुनकर मैं खूब रोया था-शायद किसी नेता के लिए पहली और आखिरी बार। तब लगता था कि जैसे यह गाना नेहरूजी की ओर से हमें दिया गया संदेश है, इसलिए बहुत द्रवित करता था।
अभी-अभी फिर से इसे सुना तो यह गाना फिर से बहुत अच्छा लगा, जबकि पंडित प्रदीप के लिखे और लता मंगेशकर द्वारा गाये जिस गाने को सुनकर नेहरू खूब रोये थे- ‘ओ मेरे वतन के लोगो जरा आँख मे भर लो पानी’ वह गाना न तब मुझे अपील करता था, न अब, जबकि उसी दौरान हुए चीनी हमले के समय मैंने अपने तीन-चार दोस्तों के साथ जूते पालिश करके सेना के जवानों के लिए चंदा जमा करके राष्ट्रीय सुरक्षा कोष में जमा किया था। पिछले न जाने कितने वर्षों से देशभक्ति के बहुत से गीत फालतू लगने लगे हैं। ‘मेरे देश की धरती सोना उगले, उगले हीरा-मोती’ टाइप गीत तो क्षमा कीजिए न तब बर्दाश्त होते थे, न अब। मनोज कुमार ने भावुकताभरी फिल्मी देशभक्ति से नाम बहुत कमाया मगर उनकी सिनेमाई देशभक्ति कभी अच्छी नहीं लगी। उसके बाद भी नकली देशभक्ति का व्यावसायिक उछाल बहुत आता रहा, जिसने चिढ़ को और बढ़ाया ही।
बहरहाल ‘जब इन्साफ की डगर पे’ गीत प्रचलित था, उस दौर में जो बच्चे थे या किशोर थे, उनमें से कई आज इस देश के भाग्यविधाता बने हुए हैं। उस दौर के मोदीजी तो आज देश के प्रधानमंत्री हैं। इन सबने मिलकर देश को जहाँ पहुँचा दिया है, उस जगह पर आकर आज के बच्चों को यह गीत शायद हास्यास्पद ही लगेगा और वे कहेंगे कि क्या पापा (मम्मी) आप बोर कर रहे हो। इस गाने में शकील बदायूं ने नेहरू युग के स्वप्नों, आकांक्षाओं को पिरोया है। इस गीत से पता चलता है कि तब नेता होना गंदी बात नहीं मानी थी, इसीलिए शायद बच्चों से कहा गया है- ‘नेता तुम्हीं हो कल के’। आज तो फिल्मी गानों में भी नेता बनने की बात व्यंग्य में ही कही जा सकती है। आज नेता गली-गली में हैं, उन्होंने डटकर-बेखटके कमाया है, खूब ठाठ हैं उनके, वे चुनाव भी बार-बार जीत जाते हैं मगर जनता के मन में उनके प्रति धेलेभर की भी इज्जत नहीं है। उस दौर के जिन बच्चों से शकील बदायूंनी और हेमंत कुमार ने ‘इन्साफ की डगर पे’ चलने की उम्मीद की थी, उनके लिए जुल्म की डगर पर चलना ही असली इन्साफ है, सच्चाइयों के बल पे आगे बढऩे की जिनसे उम्मीद आशा थी, वे झूठ और बेईमानी का हाथ मजबूती से पकड़ चुके है। जिन्हें संसार को बदलना था, उन्हें संसार ने बदल दिया है पूँजी की सेवा करने के लिए।जिन्हें तनमन की भेंट देकर भारत की लाज बचाना था, वे अपनी इज्जत लुटाने में लगे हैं। अपनों के लिए तो ठीक है मगर परायों के लिए, सबके लिए, न्याय की बात करना उनके लिए असंभव है। इन्सानियत के सर पर इज्जत का ताज नहीं कचरा रखा जा रहा है। बहुत कुछ इस बीच खो गया है, इसलिए इस बीच यह गीत भी खो गया है और इन्साफ की डगर भी।
साल का पेड़ और उसके पत्ते कई राज्यों के आदिवासियों के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं। इसे सराई का पेड़ भी कहते हैं, जिसकी छत्तीसगढ़ में बहुत उपयोगिता है। लोग इस पेड़ को पूजनीय मानते हैं। यह पेड़ बहुत बड़ा होता है और इसकी लकड़ी बहुत भारी होती है। इसलिए इसका उपयोग घर की कई चीज़ों को बनाने के लिए किया जाता है। चाहे घर में लगाने के लिए लकड़ी हो (कड़ेरी) या दरवाज़े और खिड़कियां बनानी हों, इस लकड़ी से हर तरह का सामान बनाया जाता है। घर में लकड़ी जलाने के लिए भी इसका उपयोग किया जाता है। इन सब उपयोगिताओं में से और एक उपयोगिता यह है कि साल के पत्तों से दोना और पत्तल बनाए जाते हैं।
छत्तीसगढ़ में पत्तल में खाना खाया जाता है और इसे यहां पत्री बोलते हैं। इसमें सब्ज़ी भी रखी जाती है, जिसे दोना कहते हैं। दोना और पत्तल बनाने के लिए साल के वृक्ष से पहले पत्ते तोड़कर लाते हैं। बांस की लड़की भी लाई जाती है, जिसे पतले-पतले हिस्सों में काट लेते हैं। यह बांस के टुकड़े धागे का काम करते हैं और इसी से साल के पत्तों को सिलाया जाता है। दोना को बड़ा बनाते है ताकि भोजन ना गिरे। दोना की सिलाई ऐसे ही होती है।
ऐसे पत्तों से बने दोना पत्तल का फायदा यह है कि ये पत्ते गाँव के जंगलों में आसानी से मिल जाते हैं जिन्हें घर पर बना सकते हैं। यह बनाने के लिए हुनर और मेहनत की ज़रूरत होती है। आदिवासी बखूबी अपने आसपास के मिलने वाले सामग्रियों का उपयोग करना जानते ही हैं। यह पर्यावरण के लिए भी फायदेमंद है, क्योंकि इससे पर्यावरण प्रदूषित नहीं होता है। खाना खाने के बाद सभी दोना पत्तल को एक जगह इकट्ठा करते हैं और यह बरसात के दिनों में सड़कर खाद बन जाता है। इस खाद का उपयोग लोग अपने खेतों में करते हैं।
सरकार को भी दोना-पत्तल को आगे बढ़ाने के बारे में सोचना चाहिए, क्योंकि शहरों और प्रकृति के संतुलन के लिए ये अच्छा विकल्प है।
इसका उपयोग बड़े पैमाने पर त्यौहारों और शादियों में भी किया जाता है, जहां मेहमानों की अधिक संख्या के साथ-साथ कचरा भी ज़्यादा होने की सम्भावना होती है। बाज़ार से थालियां खरीदने के बदले में लोग साल के ये दोने और पत्तल बनाना पसंद करते हैं। बाज़ार से ये चीज़ें खरीदना महंगा काम है और दोना-पत्तल से पैसे भी बच जाते हैं। आज की प्लास्टिक की दुनिया में लोग कई इलाकों में प्लास्टिक के छोटे-छोटे बर्तन खरीदते हैं। इससे पर्यावरण, पशुओं, नदियों के साथ-साथ हमारी भी हानि होती है। ऐसे लोगों को जो प्लास्टिक इस्तेमाल करते हैं, गाँव वालों से सीखना चाहिए कि हम अपने जीवन पर्यावरण की सुरक्षा के हिसाब से कैसे जिएं।
कई आदिवासी गाँवों में यह परंपरा होती है कि अगर गाँव में कोई काम होता है, चाहे वह किसी के घर में शादी हो या त्यौहार या कुछ बनाना हो, पूरा गाँव मदद करने के लिए हाज़िर होता है। चाहे लकड़ी लाना हो, चाहे पत्तल तोड़ना हो या कुछ और। गाँव के सभी लोग इसमें निपुण होते हैं। पीढ़ी-दर-पीढ़ी लोग एक-दूसरे की मदद करते आ रहे हैं।
सरकार को भी दोना-पत्तल को आगे बढ़ाने के बारे में सोचना चाहिए, क्योंकि शहरों और प्रकृति के संतुलन के लिए ये अच्छा विकल्प है। लोग प्लास्टिक से बने बर्तनों का उपयोग करते हैं। अगर हम गाँवों में दोना-पत्तल का उत्पादन करते हैं, तो इसे गाँव के लोगों को भी रोज़गार मिल सकता है। सरकार को गाँव के लोगों को ट्रेनिंग देने की ज़रूरत है ताकि गाँव जागरूक होकर अपने पैरों पर खड़ा हो सके। इसके अलावा प्लास्टिक के बर्तनों पर कड़ाई से प्रतिबंध लगाना चाहिए और उसे लागू करना चाहिए जिससे हमारा पर्यावरण भी बचा रहे और हम भी बचे रहें।
यह लेख राकेश नागदेव ने लिखा है, जो छत्तीसगढ़ से हैं और इस लेख को इससे पहले आदिवासी लाइव मैटर में प्रकाशित किया जा चुका है।
हार्डकोर नक्सली डेविड की निशानदेही पर नांदगांव पुलिस की कामयाबी
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
राजनांदगांव, 13 जुलाई। नक्सल मोर्चे में राजनांदगांव पुलिस ने नक्सलियों के कारतूसों का एक बड़ा खेप बरामद किया है। वहीं पुलिस ने दर्जनभर वायरलेस सेट भी नक्सल डंप से निकाले हैं। पुलिस को यह कामयाबी हार्डकोर नक्सली डेविड के निशानदेही पर पूछताछ के बाद मिली है। एसपी जितेन्द्र शुक्ला ने सोमवार को मीडिया से चर्चा करते हुए बताया कि घायल हालत में मिला दूर्दांत नक्सली डेविड ने पुलिस को नक्सल संगठन से जुड़ी कई अहम जानकारियां दी है। उसकी निशानदेही पर पुलिस ने गातापार और बाघनदी क्षेत्र के आधा दर्जन इलाकों में दबिश देकर जिंदा कारतूस की खेप जब्त की है। बताया गया है कि पुलिस ने गातापार क्षेत्र के धोबेदल्ली, मांगीखोली और छुईपानी तथा बाघनदी क्षेत्र के कन्हारटोला और शेरपार से अलग-अलग हथियारों के 975 जिंदा कारतूस जब्त किया है।
मिली जानकारी के मुताबिक जब्त कारतूसों में एके-47 के 45, 09 एमएम के 345, एसएलआर के 169, 303 के 162, 12 बोर के 15, 22 बोर के 135 तथा चाईना मॉडल बंदूक के 114 जिंदा कारतूस शामिल है। बताया गया कि डेविड ने पुलिस को जानकारी में यह भी बताया कि दर्जनभर मोटोरोला के वायरलेस सेट भी नक्सलियों ने छुपाया था। उसे भी जब्त कर लिया गया है। इसके अलावा पुलिस ने 6 नग डेटोनेटर, वॉकाटॉकी क्लिीप 14 नग, 23 नग चार्जर समेत नक्सल साहित्य भी जब्त किया गया है। बताया गया है कि एमएमसी जोन के इंचार्ज और सीसी मेम्बर दीपक तिलतुमड़े की डायरी भी पुलिस के हाथ लगी है। जिसमें नक्सलियों के बीच चल रही अंदरूनी खींचतान और कई तरह की नाराजगी का उल्लेख है। बताया जा रहा है कि नक्सलियों ने यह डंप स्टील डिब्बे में छुपाकर रखा था।
एसपी ने बताया कि डंप सामान मिलने से नक्सलियों को बड़ा झटका लगा है। एमएमसी जोन में उत्पात मचाने के इरादे से जिंदा कारतूसों को गढ़ाया गया था। पुलिस ने घायल नक्सली डेविड से फिलहाल प्रारंभिक पूछताछ में यह जानकारी जुटाई है। पुलिस का कहना है कि आगे भी डेविड के जरिये नक्सलियों के कई राज का पर्दाफाश पुलिस करेगी।
बीजिंग/जिनेवा/नई दिल्ली, 13 जुलाई (वार्ता)। वैश्विक महामारी कोरोना वायरस का कहर दिनोंदिन तेजी से पांव पसारते जा रहा है और दुनियाभर में इससे संक्रमित होने वाले लोगों की संख्या 1.28 करोड़ के पार पहुंच गयी है जबकि मृतकों की संख्या पांच लाख 68 हजार से ऊपर हो गई है।
कोविड-19 के मामले में अमेरिका दुनिया भर में पहले, ब्राजील दूसरे और भारत तीसरे स्थान पर बरकारार है। वहीं इस महामारी से हुई मौतों के आंकड़ों के मामले में अमेरिका पहले, ब्राजील दूसरे और ब्रिटेन तीसरे स्थान पर है जबकि भारत का मृतकों की संख्या के मामले में आठवें स्थान पर है।
अमेरिका की जॉन हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी के विज्ञान एवं इंजीनियरिंग केन्द्र (सीएसएसई) की ओर से जारी किये गये आंकड़ों के अनुसार विश्व भर में कोरोना संक्रमितों की संख्या 1,28,77,551 हो गई है जबकि 5,68,528 लोगों ने जान गंवाई है।
विश्व महाशक्ति माने जाने वाले अमेरिका में कोरोना से अब तक 3,304,142लोग संक्रमित हो चुके हैं तथा 1,35,190 लोगों की मौत हो चुकी है। ब्राजील में अब तक 1,864,681 लोग इसकी चपेट में आ चुके हैं जबकि 72,100 लोगों की मौत हो चुकी है।
भारत में पिछले 24 घंटों के दौरान कोरोना संक्रमण के 28,699 नए मामले सामने आए हैं और अब कुल संक्रमितों की संख्या बढक़र 878,254 हो गई है। इसी अवधि में कोरोना वायरस से 500 लोगों की मृत्यु होने से मृतकों की संख्या बढक़र 23,174 हो गई है। देश में इस समय कोरोना के 301,609 सक्रिय मामले हैं और अब तक 553,471 लोग इस महामारी से निजात पा चुके हैं।
रूस कोविड-19 के मामलों में चौथे नंबर पर है और यहां इसके संक्रमण से अब तक 726,036 लोग प्रभावित हुए हैं तथा 11,318 लोगों ने जान गंवाई है। पेरु में लगातार हालात खराब होते जा रहे है वह इस सूची में पांचवें नम्बर पर पहुंच गया है। यहां संक्रमितों की संख्या 326,326 हो गई तथा 12,829 लोगों की मौत हो चुकी है। संक्रमण के मामले में चिली विश्व में छठे स्थान पर आ गया हैं। यहां अब तक कोरोना वायरस से 3,15,041 लोग संक्रमित हुए हैं और मृतकों की संख्या 6,979 है।
कोरोना संक्रमण के मामले में मेक्सिको ने ब्रिटेन को पीछे छोड़ दिया है। यहां पर इससे अब तक 2,99750 लोगों संक्रमित हुए हैं तथा 35,006 लोगों की मौत हुई है। ब्रिटेन संक्रमण के मामले में आठवें नंबर पर आ गया है। यहां अब तक इस महामारी से 2,91,154 लोग संक्रमित हुए हैं तथा 44,904 लोगों की मृत्यु हो चुकी है। दक्षिण अफ्रीका कोरोना से प्रभावित होने के मामले में स्पेन और ईरान से आगे निकल गये हैं। वहीं खाड़ी देश ईरान ने यूरोपीय देश स्पेन को कोविड-19 से संक्रमित होने के मामले में पीछे छोड़ दिया है। दक्षिण अफ्रीका में कोरोना से अब तक 2,76,242 लोग संक्रमित हुए हैं तथा 4,079 लोगों की मौत हो चुकी है। वहीं ईरान में संक्रमितों की संख्या 2,57,303 हो गई है और 12,829 लोगों की इसके कारण मौत हुई है। वहीं स्पेन में कोरोना संक्रमितों की संख्या 253,908 है जबकि 28,403 लोगों की मौत हो चुकी है। पड़ोसी देश पाकिस्तान में कोरोना से अब तक 2,48,872 लोग संक्रमित हुए हैं तथा 5,197 लोगों की मौत हो चुकी है।
यूरोपीय देश इटली में इस जानलेवा विषाणु से 2,43,061 लोग संक्रमित हुए हैं तथा 34,954 लोगों की मौत हुई है। सऊदी अरब में कोरोना संक्रमण से अब तक 232,259 लोग प्रभावित हुए हैं तथा 2,223 लोगों की मौत हो चुकी है। तुर्की में कोरोना संक्रमितों की संख्या 2,12,993 हो गयी है और 5,363 लोगों की मौत हो चुकी है। फ्रांस में कोरोना संक्रमितों की संख्या 208,015 हैं और 30,007 लोगों की मौत हो चुकी है। जर्मनी में 1,99,919 लोग संक्रमित हुए हैं और 9071 लोगों की मौत हुई है।
बंगलादेश में 183,795 लोग कोरोना की चपेट में आए हैं जबकि 2,352 लोगों की इस बीमारी से मौत हो चुकी है। कोरोना वायरस से बेल्जियम में 9,782, कनाडा में 8,829, नीदरलैंड में 6,156, स्वीडन में 5526, इचडोर में 5,047, मिस्र 3,858, इंडोनेशिया 3,606, इराक 3,150, स्विट्जरलैंड में 1,968, रोमानिया में 1,884, अर्जेंटीन में 1845, बोलीविया में 1,807, आयरलैंड में 1746 और पुर्तगाल में 1660 लोगों की मौत हो चुकी है।
नई दिल्ली, 13 जुलाई (वार्ता)। देश में कोरोना संक्रमण की विकरालता बढ़ती जा रही है और लगातार दूसरे दिन भी रिकॉर्ड साढ़े 28 हजार से अधिक मामले सामने आये हैं जिससे संक्रमितों का आंकड़ा 8.78 लाख के करीब पहुंच गया है।
केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की ओर से सोमवार को जारी आंकड़ों के मुताबिक देश भर में पिछले 24 घंटों के दौरान कोरोना संक्रमण के 28,701 नए मामले सामने आए हैं जो एक दिन में सर्वाधिक है और इससे संक्रमितों की संख्या 8,78,254 हो गई है। इससे पहले रविवार को भी 28,637 मामले आये थे
संक्रमण के तेजी से बढ़ रहे मामलों के बीच राहत की बात यह है कि इससे स्वस्थ होने वालों कह संख्या भी लगातार बढ़ रही है। पिछले 24 घंटों के 18,850 रोगी स्वस्थ हुए हैं, जिन्हें मिलाकर अब तक कुल 5,53,471 रोगमुक्त हो चुके हैं। देश में अभी कोरोना संक्रमण के 3,01,609 सक्रिय मामले हैं। पिछले 24 घंटों के दौरान 500 लोगों की मौत से मृतकों की संख्या 23,174 हो गई है।
कोरोना महामारी से सर्वाधिक प्रभावित महाराष्ट्र में पिछले 24 घंटों में संंक्रमण के सर्वाधिक 7827 नये मामले दर्ज किये गये जिससे संक्रमितों का आंकड़ा 2,54,427 पर पहुंच गया है। इसी अवधि में 173 लोगों की मौत हुई है जिसके कारण मृतकों की संख्या बढक़र 10,289 हो गयी है। वहीं 1,40,325 लोग संक्रमणमुक्त हुए हैं।
संक्रमण के मामले में दूसरे स्थान पर पहुंचे तमिलनाडु में पिछले 24 घंटों के दौरान संक्रमण के मामले 4244 बढक़र 1,38,470 पर पहुंच गये हैं और इसी अवधि में 68 लोगों की मौत से मृतकों की संख्या 1966 हो गयी है। राज्य में 89,532 लोगों को उपचार के बाद अस्पतालों से छुट्टी दी जा चुकी है।
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में कोरोना महामारी की स्थिति अब कुछ नियंत्रण में है और यहां संक्रमण के मामलों में वृद्धि की रफ्तार थोड़ी कम हुई है। राजधानी में अब तक 1,12,494 लोग कोरोना की चपेट में आये हैं तथा इसके कारण मरने वालों की संख्या 3371 हो गयी है। यहां 89,968 मरीज रोगमुक्त हुए हैं।
देश का पश्चिमी राज्य गुजरात कोविड-19 के संक्रमितों की संख्या मामले में चौथे स्थान पर है, लेकिन मृतकों की संख्या के मामले में यह महाराष्ट्र और दिल्ली के बाद तीसरे स्थान पर है। गुजरात में संक्रमितों का आंकड़ा 40 हजार के पार पहुंच गया है और अब तक 41,820 लोग वायरस से संक्रमित हुए हैं तथा 2,045 लोगों की मौत हुई है। राज्य में 29,162 लोग इस बीमारी से स्वस्थ भी हुए हैं।
दक्षिण के राज्य कर्नाटक में 38,843 लोग संक्रमित हुए हैं तथा 684 लोगों की इससे मौत हुई है। राज्य में 15,409 लोग स्वस्थ भी हुए हैं।
आबादी के हिसाब से देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में कोरोना संक्रमण के अब तक 36,476 मामले सामने आए हैं तथा इस वायरस से 934 लोगों की मौत हुई है जबकि 23,334 मरीज ठीक हुए हैं।
दक्षिण के एक और राज्य तेलंगाना में भी कोरोना संक्रमण के मामले बहुत तेजी से बढ़ रहे हैं। तेलंगाना में संक्रमितों की संख्या 34,671 हो गयी है और 356 लोगों की मौत हो चुकी है जबकि 22,482 लोग अब तक इस महामारी से ठीक हो चुके है।
पश्चिम बंगाल में 30,013 लोग कोरोना वायरस से संक्रमित हुए हैं तथा 932 लोगों की मौत हुई है और अब तक 18,581 लोग स्वस्थ हुए हैं। आंध्र प्रदेश में संक्रमितों की संख्या में तेजी से वृद्धि होने के कारण यह सर्वाधिक प्रभावित की सूची में राजस्थान से ऊपर आ गया है। राज्य में 29,168 लोग संक्रमित हुए हैं तथा मरने वालों की संख्या 328 हो गयी है। राजस्थान में भी कोरोना संक्रमितों की संख्या 24,392 हो गयी है और अब तक 510 लोगों की मौत हो चुकी है, जबकि 18,103 लोग पूरी तरह ठीक हुए है। हरियाणा में 21,240 लोग कोरोना वायरस से संक्रमित हुए हैं तथा 301 लोगों की मौत हुई है।
इस महामारी से मध्य प्रदेश में 653, पंजाब में 199, जम्मू-कश्मीर में 179, बिहार में 143, ओडिशा में 64, उत्तराखंड में 47, असम में 35, केरल में 31, झारखंड में 30, पुड्डुचेरी में 18, छत्तीसगढ़ में 19, गोवा में 14, हिमाचल प्रदेश में 11, चंडीगढ़ में आठ, अरुणाचल प्रदेश, मेघालय और त्रिपुरा में दो-दो तथा लद्दाख में एक व्यक्ति की मौत हुई है।
सिविल ड्रेस में शहर का जायजा लेने निकले थे एसपी
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
राजनांदगांव, 13 जुलाई। राजनांदगांव शहर की अंदरूनी गलियों और बस्ती की सुरक्षा का जायजा लेने पहुंचे एसपी जितेन्द्र शुक्ला के दो पहिया वाहन बुलेट के सामने शराब पीकर बोतल फेंकना तीन युवकों को महंगा पड़ गया। बुलेट में शाम को बसंतपुर के क्लब चौक से गुजर रहे एसपी शुक्ला के बुलेट के सामने सरेराह शराब पी रहे तीन युवकों में से एक ने बोतल फेंक दी। एकाएक वाहन के सामने बोतल फेंकने से एसपी भी हड़बड़ा गए। युवकों के इस हरकत से एसपी तीन युवकों को दौड़ाया। इससे पहले युवक कुछ समझ पाते तब तक एसपी की सूचना पर बसंतपुर पुलिस की अलग-अलग टीमें मौके पर पहुंच गई।
बताया जाता है कि क्लब चौक में आमतौर पर शाम ढलते ही नशेडिय़ों का डेरा लग जाता है। इस इलाके के युवा शाम को नशे में धूत रहते हैं। अक्सर यहां से गुजरने वाली महिलाओं को छींटाकसी का भी सामना करना पड़ता है। बताया जा रहा है कि एसपी ने सरगर्मी से तीनों युवकों की तलाश करने का निर्देश दिया। कुछ घंटों के अंदर ही तीन युवक पुलिस की सपड़ में आ गए।
बताया जा रहा है कि एसपी जितेन्द्र शुक्ला हर शाम को सिविल ड्रेस में बुलेट में शहर की सुरक्षा व्यवस्था पर निगरानी रखने के लिए अलग-अलग इलाकों में पहुंचते हैं। वर्दी में नहीं होने की वजह से एसपी को पहचानना मुश्किल होता है। इसी बहाने एसपी शहर की आबोहवा से रूबरू होकर पुलिसिंग में कसावट लाने के अभियान पर चल रहे हैं। बताया जा रहा है कि शराब पीने के बाद तीनों ने सडक़ में बोतल फेंक दी। इस दौरान एक बड़ा हादसा हो सकता था।
मिली जानकारी के मुताबिक बसंतपुर पुलिस ने तीनों युवकों के खिलाफ अपराध दर्ज किया है। वहीं खुलेआम शराब पीने के मामले में आबकारी एक्ट के तहत कार्रवाई की गई है।
भोपाल, 13 जुलाई (वार्ता)। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने आज अपने मंत्रियों के बीच विभागों का वितरण कर दिया।
आधिकारिक सूत्रों के अनुसार श्री चौहान ने जनसंपर्क, सामान्य प्रशासन, नर्मदा घाटी विकास, विमाानन एवं ऐसे अन्य विभाग, जो किसी अन्य मंत्री को नहीं सौंपे हैं, अपने पास रखे हैं।
डॉ नरोत्तम मिश्रा गृह, जेल, संसदीय कार्य और विधि विभाग संभालेंगे। गोपाल भार्गव लोक निर्माण, कुटीर और ग्रामोद्योग विभाग देखेंगे। तुलसीराम सिलावट जल संसाधन, मछुआ कल्याण तथा मत्स्य विभाग की जिम्मेदारी निभाएंगे।
वन विभाग विजय शाह को सौंपा गया है, जबकि वित्त, वाणिज्यिक कर और योजना आर्थिक एवं सांख्यिकी विभाग जगदीश देवड़ा के हवाले किया गया है। बिसाहूलाल सिंह खाद्य, नागरिक आपूर्ति एवं उपभोक्ता संरक्षण विभाग देखेंगे।
श्रीमती यशोधराराजे सिंधिया खेल एवं युवा कल्याण, तकनीकी शिक्षा कौशल विकास एवं रोजगार विभाग संभालेंगी। भूपेंद्र सिंह नगरीय विकास एवं आवास विभाग और सुश्री मीना सिंह आदिम जाति कल्याण, अनुसूचित जाति कल्याण विभाग का नेतृत्व करेंगे।
किसान कल्याण एवं कृषि विकास विभाग कमल पटेल, लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी एदल सिंह कंसाना, राजस्व एवं परिवहन गोविंद सिंह राजपूत, खनिज साधन एवं श्रम बृजेंद्र प्रताप सिंह और चिकित्सा शिक्षा एवं भोपाल गैस त्रासदी राहत एवं पुनर्वास विश्वास सारंग को आबंटित किया गया है।
श्रीमती इमरती देवी महिला एवं बाल विकास विभाग, डॉ प्रभुराम चौधरी लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग, डॉ महेंद्र सिंह सिसोदिया पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग, प्रद्युम्न सिंह तोमर ऊर्जा विभाग और प्रेम सिंह पटेल पशुपालन, सामाजिक न्याय एवं नि:शक्तजन कल्याण विभाग की जिम्मेदारी संभालेंगे।
ओमप्रकाश सकलेचा सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम, विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग, सुश्री उषा ठाकुर पर्यटन, संस्कृति और आध्यात्म विभाग तथा अरविंद भदौरिया सहकारिता, लोक सेवा प्रबंधन विभाग देखेंगे।
डॉ मोहन यादव उच्च शिक्षा, हरदीप सिंह डंग नवीन एवं नवकरणीय ऊर्जा, पर्यावरण और राज्यवर्धन सिंह दत्तीगांव औद्योगिक नीति एवं निवेश प्रोत्साहन विभाग की जिम्मेदारी निभाएंगे।
राज्य मंत्री भारत सिंह कुशवाह उद्यानिकी एवं खाद्य प्रसंस्करण (स्वतंत्र प्रभार) तथा नर्मदा घाटी विकास विभाग देखेंगे। राज्य मंत्री इंदर सिंह परमार को स्कूल शिक्षा (स्वतंत्र प्रभार) तथा सामान्य प्रशासन और रामखेलावन पटेल को पिछड़ा वर्ग एवं अल्पसंख्यक कल्याण (स्वतंत्र प्रभार), विमुक्त घुमक्कड़ एवं अर्धघुमक्कड़ जनजाति कल्याण (स्वतंत्र प्रभार) एवं पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग सौंपा गया है।
राज्य मंत्री श्री रामकिशोर कांवरे को आयुष (स्वतंत्र प्रभार), जल संसाधन, राज्य मंत्री बृजेंद्र सिंह यादव को लोक स्वास्थ्य एवं यांत्रिकी, राज्य मंत्री गिर्राज डंडोतिया को किसान कल्याण तथा कृषि विकास, राज्य मंत्री सुरेश धाकड़ लोक निर्माण विभाग और राज्य मंत्री ओपीएस भदौरिया को नगरीय विकास एवं आवास विभाग की जिम्मेदारी सौंपी गयी है।
श्री चौहान ने दो जुलाई को 20 कैबिनेट और आठ राज्य मंत्रियों को शामिल करते हुए मंत्रिमंडल का विस्तार किया था। इसके बाद से ही मंत्रियों के बीच विभागों के वितरण का इंतजार किया जा रहा था।
मुनीष पांडे
नई दिल्ली, 13 जुलाई। राजस्थान में सियासी संकट के बीच मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के करीबियों पर आयकर विभाग का शिकंजा कसना शुरू हो गया है। आयकर विभाग के 200 से अधिक अधिकारियों और कर्मचारियों ने दिल्ली और राजस्थान के कई जगहों पर छापेमारी की है। यह छापेमारी अशोक गहलोत के करीबी धर्मेंद्र राठौड़ और राजीव अरोड़ा के ठिकानों पर की गई है।
सीएम अशोक गहलोत के करीबी और ज्वैलरी फर्म के मालिक राजीव अरोड़ा के ठिकानों पर सोमवार सुबह आयकर विभाग की टीम पहुंची। उनके घर और दफ्तरों पर छापेमारी चल रही है। खास बात है कि इस छापेमारी की सूचना स्थानीय पुलिस को नहीं दी गई थी। आयकर विभाग की टीम केंद्रीय रिजर्व पुलिस के साथ छापेमारी को अंजाम दे रही है।
राजीव अरोड़ा के अलावा धर्मेंद्र राठौड़ के आवास और दफ्तर पर आयकर विभाग की टीम छापेमारी कर रही है। धर्मेंद्र अरोड़ा को भी सीएम अशोक गहलोत का करीबी बताया जाता है। सूत्रों का कहना है कि राजीव अरोड़ा और धर्मेंद्र राठौड़ से देश के बाहर किए गए ट्रांजेक्शन के बारे में पूछताछ की जा रही है।
गहलोत के बेटे के बिजनेस पार्टनर पर ईडी की छापेमारी
सीएम अशोक गहलोत के बेटे वैभव गहलोत के बिजनेस पार्टनर रविकांत शर्मा पर प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने छापेमारी की है। रविकांत शर्मा से विदेश से आए करोड़ों रुपये के बारे में पूछताछ की जा रही है। पिछले दिनों ही ईडी ने रविकांत शर्मा को नोटिस भेजा था।
कांग्रेस ने छापेमारी पर उठाए सवाल
राजीव अरोड़ा और धर्मेंद्र अरोड़ा के करीब 24 ठिकानों पर चल रही छापेमारी पर कांग्रेस ने सवाल उठाए हैं। कांग्रेस ने बीजेपी पर गहलोत सरकार को अस्थिर करने का आरोप लगाया। साथ ही कांग्रेस ने बिना स्थानीय पुलिस को सूचना दिए आयकर विभाग की छापेमारी पर भी सवाल पूछा।
बीजेपी ने किया आरोपों से इनकार
बीजेपी प्रवक्ता संबित पात्रा ने आजतक से बात करते हुए कांग्रेस के आरोपों से इनकार कर दिया है। संबित पात्रा का कहना है कि कोरोना के कारण आयकर विभाग ने छापेमारी रोकी थी। अब फिर से आयकर विभाग की कार्रवाई कर रही है। इस छापेमारी और राजस्थान के सियासी संकट का कोई लेना-देना नहीं है।
आयकर विभाग की टीम ने जिन राजीव अरोड़ा के ठिकानों पर छापेमारी की है, वह राजस्थान कांग्रेस का आर्थिक मैनेजमेंट भी देखते हैं। इस छापेमारी के कई सियासी मायने निकाले जा रहे हैं। कांग्रेस, बीजेपी पर हमलावर है और गहलोत सरकार को अस्थिक करने का आरोप लगा रही है।
नई दिल्ली, 12 जुलाई। कोविड-19 की दवा बनाने के काम में जुटी एक मेडिकल रीसर्च संस्था ने माना है कि उसने ख़ुफ़िया तरीके से तेलमोल कर हैकर्स को 11.4 लाख की फिरौती दी है.
1 जून को नेटवॉकर नाम के एक आपराधिक हैकर्स समूह ने सैन फ्रांसिस्को में यूनिवर्सिटी ऑफ़ कैलिफोर्निया पर डिजिटल हमला किया था.
उन्होंने यूनिवर्सिटी के कंप्यूटर्स पर मैलवेयर डाल दिया था जिसे फैलने से रोकने के लिए यूनिवर्सिटी के तकनीकी कर्मचारियों ने यूनिवर्सिटी के सभी कंप्यूटर्स का कनेक्शन काट दिया.
एक अनाम सूत्र से मिली ख़बर की मदद से फिरौती के लिए डार्कवेब पर हुई इस पूरी बातचीत का बीबीसी गवाह बना.
साइबर मामलों के जानकार कहते हैं कि एफ़बीआई, यूरोपोल और ब्रिटेन के नेशनल साइबर सिक्योरिटी सेंटर की चेतावनी के बावजूद पूरी दुनिया मे फिरौती के लिए इस तरह की बातचीत हो रही है, कभी छोटी रकम के लिए तो कभी बड़ी रकम के लिए.
बीते दो महीनो में कम से कम दो और यूनिवर्सिटी पर हुए रैनसमवेयर हमलों के लिए नेटवॉकर हैकर समूह ज़िम्मेदार है.
पहली नज़र में देखें तो डार्कवेब पर मौजूद इस हैकर समूह का पन्ना एक आम कस्टमर सर्विस वेबसाइट की तरह ही दिखता है. इसमें एक तरफ एफ़एक्यू या फ्रिक्वेन्टली आस्क्ड क्वेश्चन (आम तौर पर पूछे जाने वाले सवाल) भी दिए गए हैं और साथ में अपने सॉफ्टवेयर के फ्री सैम्पल का ऑफ़र और एक लाइव चैट की सुविधा दी गई है.
लेकिन इसमें एक तरफ एक तरह की काउंटडाउन टाइमर भी है जिस पर लगातार समय कम होता जाता है. जैसे-जैसे समय कम होता है हैकर्स फिरौती की रकम दोगुनी करते हैं या फिर मैलवेयर के ज़रिए जो डेटा इकट्ठा किया है उसे मिटा देते हैं.
यूनिवर्सिटी को जून की पांच तारीख को अपने कम्प्यूटर पर ये मैसेज मिला था - लॉग-इन करने की तरीका- ईमेल के ज़रिए या फिर कम्प्यूटर की स्क्रीन पर दिए नोट के ज़रिए लॉग-इन करें.
छह घंटे बाद यूनिवर्सिटी ने हैकर्स के फिरौती की रकम अदा करने के लिए अधिक वक्त मांगा और साथ उनसे ही ये गुज़ारिश भी की वो इस हैक से जुड़ी पोस्ट अपने सार्वजनिक ब्लॉग से हटा लें.
हैकर्स को इस बात की जानकारी पहले से ही थी कि यूनिवर्सिटी को अरबों डॉलर मिलते हैं और इसलिए उन्होंने 30 लाख डॉलर की फिरौती की मांग रखी.
लेकिन यूनिवर्सिटी की तरफ से बातचीत कर रहे एक बाहरी विशेषज्ञ ने उन्हें बताया कि कोरोना वायरस महामारी के कारण यूनिवर्सिटी की माली स्थिति अच्छी नहीं है. उन्होंने हैकर्स से गुज़रिश की कि वो उन्हें केवल सात लाख अस्सी हज़ार डॉलर ही दे सकते हैं.
एक पूरा दिन चली इस बातचीत के बाद यूनिवर्सिटी ने कहा कि वो अपने सभी संसाधनों का इस्तेमाल कर क़रीब 10.2 लाख डॉलर जोड़ सका है. लेकिन हैकर्स ने 15 लाख डॉलर से कम कोई भी रकम स्वीकार करने से इनकार कर दिया.
कुछ घंटों बाद यूनिवर्सिटी ने फिर हैकर्स से संपर्क किया और कहा कि वो बहुत अधिक हुआ तो 11,40,895 डॉलर ही उन्हें दे सकते हैं.
इसके एक दिन बाद 116.4 बिटक्वाइन खरीदे गए और उन्हें नेटवॉकर हैकर समूह के ई-वॉलेट में भेजा गया, जिसके बाद यूनिवर्सिटी को रैनसमवेयर डिक्रिप्शन सॉफ्टवेयर मिल सका.
अब यूनिवर्सिटी एक तरफ अपने प्रभावित कम्प्यूटर्स को दुरुस्त करने की कोशिश कर रही है और दूसरी तरफ एफ़बीआई को इस मामले की जांच में सहयोग भी कर रही है.
यूनिवर्सिटी ने बीबीसी को बताया कि, "जो डेटा एनक्रिप्ट किया गया था वो लोगों की भलाई के लिए हो रहे कुछ अकादमिक काम से जुड़ा था. इसलिए हमें फिरौती की रकम दे कर इस डेटा को अनलॉक करने का सॉफ्टवेयर लेने का ये मुश्किल फ़ैसला लेना पड़ा. ये कहना सही नहीं होगा कि बातचीत के दौरान जो कुछ कहा गया वो पूरी तरह से सही था."
हालांकि नो मोर रैनसम नाम का प्रोजेक्ट चला रहे यूरोपाल के जेन ओप जेन ऊर्थ कहते हैं, कि "पीड़ितों को किसी भी सूरत में फिरौती नहीं देनी चाहिए. इससे अपराधियों का हौसला बढ़ता है और वो इस तरह की गतिविधि जारी रखते हैं. इसकी जगह उन्हें पुलिस को इसकी जानकारी देनी चाहिए ताकि अपराध को जड़ से ख़त्म किया जा सके."
साइबर सिक्योरिटी कंपनी एमसीसॉफ्ट में थ्रेट एनालिस्ट ब्रेट कैलो कहते हैं कि "जिन संस्थाओं के सामने के सामने इस तरह की स्थिति आ जाती है उनके सामने कम ही रास्ते बचते हैं. हो सकता है कि फिरौती देने के बाद भी उन्हें बस ये झूठा आश्वासन ही मिले की उनका डेटा मिटा दिया गया है."
"लेकिन मुद्दे की बात ये है कि एक आपराधिक गैंग ऐसा डेटा क्यों मिटाएगा जिससे वो बाद में लाभ कमा सके?"
अधिकतर रैनसमवेयर एक तरह का जाल होती हैं और जानकार मानते हैं कि आपराधिक गैंग इस तरह के स़ॉफ्टवेयर का इस्तेमाल अधिक करना पसंद करते हैं जिनसे किसी कम्प्यूटर से एक ही बार में पूरा डेटा डाउनलोड हो जाए.
प्रूफप्वाइंट के साइबर सिक्योरिटी विशेषज्ञों ने कहा था कि उन्होंने पाया है कि जून महीने में कोविड-19 जांच के नतीजे जैसे विषयों के साथ कम्प्यूटर हैक करने के उद्देश्य से क़रीब 10 लाख ईमेल भेजे गए हैं. ये ईमेल अमरीका, फ्रांस, जर्मनी, ग्रीस और इटली में मौजूद संस्थाओं को भेजे गए हैं.
जानकार कहते हैं कि संस्थाओं को बार-बार कहा जा रहा है कि वो बीच-बीच में अपने पूरे डेटा का बैकअप लेते रहें.
लेकिन प्रूफ़प्वाइंट के रायन कालेम्बर कहते हैं कि, "तकनीकी विशेषज्ञों के लिए भी यूनिवर्सिटी चुनौतीपूर्ण जगह होती है. यहां छात्रों की संख्या और उनकी आबादी हमेशा बदलती रहती है साथ ही अलग-अलग सांस्कृतिक पृष्ठभूमि से लोग आते हैं जो रोज़ाना जानकारियां शेयर करते हैं. ऐसे में यहां यूज़र्स और कम्प्यूटर्स को सुरक्षित करने अपने आप में एक बेहद जटिल काम है."(bbc)
जयपुर, 13 जुलाई। महिला कॉमेडियन को सोशल मीडिया पर बलात्कार की धमकी देने और उनके ख़िलाफ़ अपशब्द इस्तेमाल करने के मामले में गुजरात पुलिस ने शुभम मिश्रा नाम के एक युवक को गिरफ़्तार किया है.
रविवार देर रात गुजरात की वडोदरा पुलिस ने मामले का संज्ञान लेते हुए गाली-गलौच करने और बलात्कार की धमकी देने वाला वीडियो सोशल मीडिया पर पोस्ट करने के मामले में शुभम मिश्रा को पकड़ लिया है.
पुलिस ने सोशल मीडिया पर जानकारी दी है कि "शुभम के ख़िलाफ़ क़ानूनी कार्रवाई की जाएगी. पुलिस ने कहा कि आईपीसी और आईटी एक्ट की उचित धाराओं के तहत एफ़आईआर दर्ज की जाएगी."
क्या है पूरा मामला?
ये मामला क़रीब साल भर पुराने महिला कॉमोडियन अग्रिमा जोशुआ के एक वीडियो से जुड़ा है. इसमें वो छत्रपति शिवाजी महाराज की मूर्ति के बारे में टिप्पणी कर रही हैं.
ये वीडियो एक लाइव कार्यक्रम के दौरान शूट किया गया था.
हाल के दिनों में उनका ये वीडियो एक बार फिर से सोशल मीडिया पर शेयर किया जाने लगा, जिसके बाद उन्हें सोशल मीडिया पर धमकियां मिलने लगीं.
अग्रिमा ने वीडियो अपनी टाइमलाइन से हटा लिया और इसके लिए महाराष्ट्र के सीएम उद्धव ठाकरे, प्रदेश के गृह मंत्री अनिल देशमुख, राज ठाकरे और नितिन राउत समेत सभी लोगों से माफ़ी मांगी.
सोशल मीडिया पर उन्होंने लिखा, "छत्रपति शिवाजी महाराज को मानने वालों की भावनाओं को ठेस पहुंचाने के लिए मैं माफ़ी चाहती हूं. उस महान नेता के प्रशंसकों से मैं माफ़ी मांगना चाहती हूं. मैंने अपना वीडियो हटा लिया है."
लेकिन ये मामला उनकी माफ़ी पर नहीं थमा. गुजरात के शुभम मिश्रा नाम के एक युवक ने उन्हें भद्दी गालियां देते हुए सोशल मीडिया पर वीडियो पोस्ट किया.
वीडियो में शुभम मिश्रा जो कुछ भी कह रहा है वो बेहद आपत्तिजनक है.
शनिवार को कॉमेडियन कुणाल कामरा ने ये वीडियो महिला आयोग के साथ सोशल मीडिया पर शेयर किया था और सवाल किया था कि "क्या ये वीडियो आपको चिंतित नहीं करता, ये व्यक्ति महिला कॉमेडियन को भद्दी गालियां दे रहा है जबकि महिला कॉमेडियन ने विवादित वीडियो हटा लिया है और इस मामले में माफ़ी भी मांग ली है."
इस पर महिला आयोग ने कहा था कि "महिला सुरक्षा को लेकर हम प्रतिबद्ध हैं. इस मामले में आयोग की चेयरपर्सन ने गुजरात पुलिस को शुभम मिश्रा के ख़िलाफ़ तुरंत कार्रवाई करने के लिए कहा है जो वीडियो में महिला कॉमेडियन को गाली देते दिख रहे हैं."
रविवार को अभिनेत्री स्वरा भास्कर ने भी महाराष्ट्र के गृह मंत्री अनिल देशमुख को टैग करते हुए लिखा, "कोई जोक कितना भी आपत्तिजनक क्यों न हो लेकिन क्या इसके लिए किसी महिला को खुलेआम रेप की धमकी दिया जाना उचित है? शुभम मिश्रा दो महिलाओं के बलात्कार की धमकी दे रहा है जो आईपीसी की धारा 503 के तहत अपराध है. क्या आप पुलिस को इस मामले में कार्रवाई करने के आदेश देंगे?"
इसके उत्तर में अनिल देशमुख ने लिखा, "छत्रपति शिवाजी महाराज ने हमें सिखाया है कि हम महिलाओं की इज़्ज़त करें. अगर कोई महिला के ख़िलाफ़ आपत्तिजनक भाषा का इस्तेमाल करता है और उन्हें धमकी देता है तो उसके लिए भी क़ानून है."
उन्होंने महाराष्ट्र साइबर पुलिस को इस वीडियो की वैधता की जांच करने के लिए कहा और मुंबई पुलिस को इस मामले में गिरफ़्तार करने का आदेश दिया.
केवल कुणाल कामरा और स्वरा भास्कर ही नहीं बल्कि और भी कई लोग इस पूरे मामले में महिला कॉमेडियन के पक्ष में आवाज़ उठाते दिखे.
अभिनेता प्रकाश राज ने शुभम मिश्रा का एक और वीडियो ट्वीट करते हुए लिखा, "ये पहले भी इस तरह की धमकियां दे चुका है. इसे गिरफ़्तार किया जाना चाहिए. अधिकारियों पर दवाब बनाना जारी रखें ताकि इस व्यक्ति के ख़िलाफ़ कड़ी कार्रवाई की जाए."
त्रिशा शेट्टी ने लिखा, "अनिल देशमुख जी साबित करें कि आप महिलाओं के ख़िलाफ़ हिंसा के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाएंगे."
पत्रकार फाये डिसूज़ा ने भी शुभम मिश्रा का वीडियो मुंबई पुलिस को ट्वीट किया और लिखा कि "ये बलात्कार की धमकी है, कृपया ज़रूरी कार्रवाई करें."(bbc)
राजनांदगांव , 13 जुलाई। छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव जिले में महिलाओं के स्वसहायता समूह गांव के गोठान में केंचुआ खाद बनाने में लगे हैं. इससे उनको कमाई होना भी तय है, और केंचुआ-खाद से धरती रसायनों से भी बचेगी. ऑर्गेनिक खेती के लिए छत्तीसगढ़ महतारी का योगदान.
कांग्रेस का कहना है कि 109 विधायकों का साथ है.
जयपुर, 13 जुलाई। राजस्थान में कांग्रेस की मौजूदा सरकार संकट में है. शनिवार को प्रदेश के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने बीजेपी पर आरोप लगाया था कि वो उनकी सरकार गिराने में लगी हुई है.
उन्होंने कहा था कि एक तरफ़ वो कोरोना से लड़ने पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं तो दूसरी ओर बीजेपी ऐसे वक़्त में भी सरकार को अस्थिर करने में लगी हुई है. उन्होंने बीजेपी पर विधायकों की सौदेबाज़ी का आरोप लगाया था.
कथित ख़रीद-फ़रोख़्त को लेकर स्पेशल ऑपरेशन ग्रुप यानी एसओजी जांच में भी लगी हुई है. पुलिस के एसओजी ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, उपमुख्यमंत्री सीएम सचिन पायलट और सरकार के मुख्य सचेतक महेश जोशी को पूछताछ के लिए बुलाया भी था. लेकिन
अब राजस्थान की कांग्रेस सरकार अशोक गहलोत बनाम सचिन पायलट हो गई है. जैसे कि मध्य प्रदेश में कमलनाथ बनाम ज्योतिरादित्य सिंधिया हो गई थी और वहां की सरकार से कांग्रेस को हाथ धोना पड़ा था.
समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार सचिन पायलट सोमवार को कांग्रेस विधायक दल की बैठक में शामिल नहीं होंगे. सचिन ने कहा है कि उनके साथ कांग्रेस के 30 विधायक हैं और अशोक गहलोत की सरकार अल्पमत में है. सचिन पायलट अभी दिल्ली में हैं और राजस्थान में कांग्रेस विधायक दल की बैठक होने जा रही है. कांग्रेस विधायक दल की बैठक के बाद प्रेस कॉन्फ़्रेंस कर सकती है. कांग्रेस का कहना है कि अशोक गहलोत के साथ 109 विधायकों का समर्थन है.
सचिन पायलट अपने समर्थक विधायकों के साथ दिल्ली आ गए हैं. पार्टी के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल ने हालांकि किसी संदर्भ का उल्लेख नहीं किया है लेकिन उन्होंने ट्वीट किया है, "अपनी पार्टी को लेकर चिंतित हूँ. क्या हम तब जागेंगे जब हमारे अस्तबल से घोड़े निकाल लिए जाएंगे."
राजस्थान में दिसंबर, 2018 में चुनाव जीतने के साथ ही कांग्रेस में खींचतान शुरू हो गई थी. मुख्यमंत्री पद को लेकर अशोक गहलोत और सचिन पायलट आमने-सामने आ गए थे.
हालांकि तब अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री और सचिन पायलट को उपमुख्यमंत्री बनाया गया था. इसके बाद दोनों के बीच कुर्सी को लेकर खींचतान समाप्त हो गई थी लेकिन अब क़रीब डेढ़ साल बाद एक बार फिर से राजस्थान कांग्रेस में इन दोनों शीर्ष नेताओं की बीच तनाव बढ़ता हुआ दिख रहा है.
तो क्या अब राजस्थान में भी वहीं होने जा रहा है जो मध्य प्रदेश में मार्च के महीने में हुआ था. मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया और कमलनाथ के बीच पार्टी के अंदर मुख्यमंत्री की कुर्सी और दूसरे मसलों को लेकर खींचतान चल रहा था.
आख़िरकार ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस छोड़ कर बीजेपी का दामन थाम लिया और मध्य प्रदेश की कमलनाथ सरकार गिर गई थी.
ज्योतिरादित्य सिंधिया ने राजस्थान के घटनाक्रम पर ट्वीट कर सचिन पायलट के प्रति अपना समर्थन जताया है. उन्होंने ट्वीट कह कहा, "अपने पुराने सहयोगी सचिन पायलट को राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की ओर से दरकिनार और सताए जाने को लेकर दु:खी हूँ. यह दिखाता है कि कांग्रेस में प्रतिभा और क़ाबिलियत के लिए बहुत कम जगह है."
कांग्रेस छोड़ेंगे सचिन पायलट?
क्या वाक़ई सचिन पायलट ज्योतिरादित्य सिंधिया की राह पर चलने वाले हैं?
वरिष्ठ पत्रकार नीरजा चौधरी इससे इत्तेफ़ाक नहीं रखती हैं. वो कहती हैं, "नहीं लगता कि सचिन पायलट पार्टी छोड़ेंगे. हालांकि वो पार्टी में घुटन होने की बात कहते रहे हैं और साथ में पार्टी के पुनरुत्थान की भी बात करते रहे हैं."
उन्होंने कहा, "अभी यह साफ़ नहीं है कि क्या होने वाला है. सचिन पायलट दिल्ली में हैं और हाईकमान से मुलाक़ात होने की बात हो रही है. लेकिन राजस्थान पुलिस ने जिस तरह से अपने उपमुख्यमंत्री के ख़िलाफ़ नोटिस दिया गया है, उससे साफ़ संकेत गया है कि ये हद हो गई है और पानी सिर से गुजर गया है. यह तनाव तो काफ़ी लंबे समय से चल रहा है."
वरिष्ठ पत्रकार विवेक कुमार इस पर कहते हैं, "सचिन पायलट पार्टी में रहेंगे या नहीं यह विधायक दल की बैठक में उनकी मौजूदगी पर निर्भर करता है. अगर वो बैठक में पहुँचते हैं तो यह माना जाएगा कि वो पार्टी में रहने वाले हैं और समझौता करने की स्थिति में है लेकिन अगर वो बैठक में नहीं आते हैं तब यह कहा जा सकता है कि वो उस स्थिति तक पहुँच गए हैं जहाँ से अब उनकी वापसी नहीं होने वाली है."
नीरजा चौधरी कहती हैं, ''सचिन पायलट चाहते थे कि उन्हें मुख्यमंत्री बनाया जाए. राहुल गांधी ने सचिन पायलट को यही कह कर भेजा था कि राजस्थान जीत कर आओ फिर मुख्यमंत्री बनाऊंगा लेकिन जब मौक़ा आया तो अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री बनाया गया.''
''गहलोत की अच्छी छवि है और अनुभवी भी हैं लेकिन इस बार सचिन पायलट ने काफ़ी मेहनत की थी. कहीं न कहीं सचिन पायलट को एक कोने में तो धकेला ही जा रहा है. ऐसे हालात में मुख्यमंत्री को बड़प्पन दिखाने की ज़रूरत है.''
विवेक कुमार कहते हैं कि जैसी राजनीति करते हुए सचिन पायलट ने राजस्थान में अपनी ज़मीन बनाई है, उसे देखते हुए नहीं लगता कि वापस समझौता करेंगे. वो कांग्रेस में रहेंगे तो फिर मुख्यमंत्री पद से नीचे नहीं मानेंगे नहीं तो फिर बीजेपी या थर्ड फ्रंट के बारे में सोचेंगे.
थर्ड फ्रंट से उनका मतलब जाट-गुर्जर गठबंधन से हैं. वो कहते हैं कि सचिन को ज़्यादातर जाट नेता समर्थन कर रहे हैं. हालांकि ये समीकरण अभी थोड़ी दूर की कौड़ी है और थोड़ा मुश्किल है लेकिन जाट-गुर्जर गठबंधन की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है.
वो सचिन पायलट की तुलना वसुंधरा राजे से करते हुए कहते हैं कि जैसे वसुंधरा ने अपनी जगह बनाई है, वैसे ही सचिन पायलट ने भी अपनी जगह बनाई है.
सचिन पायलट और ज्योतिरादित्य सिंधिया की शख़्सियत में बुनियादी फर्क
सचिन पायलट और ज्योतिरादित्य सिंधिया को एक वक़्त कांग्रेस में नई पीढ़ी के उभरते हुए नेताओं के तौर पर देखा जाता था. दोनों के पिता राजेश पायलट और माधवराव सिंधिया भी राजनीति में समकालीन थे और अपने-अपने राज्यों में कांग्रेस के प्रमुख चेहरे थे.
लेकिन मध्य प्रदेश में पार्टी में हुई खींचतान के बाद आख़िरकार कभी राहुल गांधी के क़रीबी माने जाने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया ने बीजेपी का रुख़ कर लिया.
नीरजा चौधरी इन दोनों ही युवा नेताओं की तुलना पर कहती हैं, "ज्योतिरादित्य सिंधिया राजघराने से आते हैं लेकिन सचिन पायलट को उनकी पिता की मौत के बाद ज़रूर पार्टी में एंट्री मिली थी लेकिन उसके बाद जो भी उन्होंने हासिल किया है, वो अपने दम पर किया है.''
''दोनों की शख्सियत में यह अंतर है कि सचिन पायलट की छवि एक ज़मीनी काम करने वाले नेता की है जो गाँव में जाकर किसी खाट पर भी सो जाएगा. सिंधिया काफ़ी होशियार और क़ाबिल हैं लेकिन उनकी पृष्ठभूमि राजघाने की है और साथ में बीजेपी की भी पृष्ठभूमि उनके परिवार की रही है. उनके परिवार का जुड़ाव बीजेपी से ज़्यादा है लेकिन फिर भी वो राहुल गांधी के काफ़ी क़रीबी रहे हैं. हालांकि उन्होंने अपने क्षेत्र में पिछले कुछ सालों में काफ़ी घूमा है."
मौजूदा समय में राजस्थान और मध्य प्रदेश की राजनीतिक परिस्थितियों में क्या असमानता और समानता है? क्या राजस्थान में मध्य प्रदेश जैसे हालात बन सकते हैं?
नीरजा चौधरी कहती हैं, "राजस्थान में कांग्रेस के पास स्पष्ट बहुमत है. कांग्रेस के लिए राजस्थान में गुडविल भी है. दूसरी तरफ़ मध्य प्रदेश में सीटों का अंतर काफ़ी कम था और शिवराज सिंह चौहान के लिए गुडविल था. सबसे अहम बात यह कि वहाँ कांग्रेस के अंदर में कमलनाथ, दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच सालों से घमासान था. वहाँ पार्टी के अंदर में गुटबाजी पुरानी थी. लेकिन राजस्थान में ऐसा सालों से नहीं है बल्कि अभी 2018 से ही यह टकराव शुरू हुआ है."
कांग्रेस में असंतोष क्यों?
कांग्रेस के अंदर युवा नेतृत्व और पुराने क्षेत्रिय नेताओं के बीच तालमेल नहीं होने के सवाल पर वो कहती हैं, "ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि हाई कमान अब हाई कमान नहीं रहा. मध्य प्रदेश में लंबे समय से यह दिख रहा था कि क्या होने जा रहा है और राजस्थान में भी दिख रहा है कि क्या हो रहा है लेकिन हाई कमान इसमें अपनी भूमिका नहीं निभा पाया है.''
''सोनिया गांधी ने पिछले साल से फिर से कमान संभाला है और उन्होंने अपनी पुरानी टीम पर भरोसा जताया हुआ है. उनकी पुरानी टीम नए लोगों के साथ तालमेल नहीं बिठा पा रही है. उन्हें साथ लेकर नहीं चल पा रही है और जो नए लोग हैं वो पुरानी किस्म की राजनीति नहीं चाहते हैं."
विवेक कुमार भी मानते हैं कि ऐसा केंद्रिय नेतृत्व के प्रभावी नहीं होने की वजह से हो रहा है. क्षेत्रीय नेताओं को लगता है कि राज्यों में उनके नाम पर वोट आ रहा है. अब जैसे राजस्थान में सचिन पायलट को लगता है कि यहाँ की जीत उनकी पाँच साल की मेहनत का नतीजा है और उनके साथ न्याय नहीं हो रहा. वैसे ही मध्य प्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया को लगता रहा. मुख्य कारण कांग्रेस में अंसतोष का यही है. वहीं दूसरी तरफ़ बीजेपी में किसी भी क्षेत्रीय नेता को इस बात की ग़लतफ़हमी नहीं है कि उनके नाम पर वोट आ रहे हैं."(bbc)
-आकार पटेल
संयुक्त राष्ट्र ने शासन के जिन सिद्धांतों को परिभाषित किया है उसके मुताबिक सभी व्यक्ति, संस्थान और संस्थाएं (निजी और सार्वजनिक) और सरकार भी उन कानून के तहत प्रतिबद्ध है जो सार्वजनिक तौर पर बनाए गए हैं, समान रूप से लागू हैं और स्वतंत्र रूप से उनका न्याय कर सकते हैं और इनमें अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकारों और मानकों का पालन होता है।
भारत कानून पर आधारित एक देश है हमारे संविधान का अनुच्छेद 21 कहता है, "कोई भी व्यक्ति कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार अपने जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित नहीं होगा।" सरकार इसके पालन के लिए कानूनन बाध्य है। इस नियम को तोड़ना, कानून को तोड़ना और अपराध करना है।
लेकिन आज भारत में जो हो रहा है वह कानून का राज नहीं है। हम एक कानून विहीन देश हो गए हैं, और मैं ऐसा सिर्फ गुस्से या हताशा में नहीं कह रहा हूं। मैं ऐसा अपने आसपास होने वाली घटनाओँ के आधार पर ऐसा कह रहा हूं। एक ऐसा व्यक्ति जो अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर संगीन से संगीन अपराध से भी दोषमुक्त होता रहा वह आत्मसमर्पण करता है और इससे पहले कि वह कुछ राज खोलता पुलिस हिरासत में ही उसे गोली मार दी जाती है। उस पर संविधान के मुताबिक मुकदम नहीं चलाया जाता और किसी भी प्रक्रिया को अपनाए बिना ही उसे मृत्युदंड दे दिया जाता है।
लेकिन सिर्फ यही एक आधार नहीं जिसके कारण में देश को काननू विहीन कह रहा हूं। उत्तर प्रदेश में हुआ यह कोई पहला एनकाउंटर नहीं है। योगी आदित्यनाथ ने जब से उत्तर प्रदेश की कमान संभाली है तब से राज्य में 119 ऐसी घटनाएं हो चुकी हैं और हजाओं घटनाएं अन्य जगहों पर हुई हैं। और आने वाले समय में भी होती ही रहेंगी। एक पिता और उसके बेटे को सिर्फ इसलिए मार दिया गया क्योंकि उन्होंने अपनी दुकान खोल रखी थी। ऐसा सिर्फ भारत में हो रहा है। दूसरे कानून विहीन देशों में भी ऐसा होता है, यह भी सत्य है। जिन लोगों के हाथ में सत्ता है वे कानून विहीन देशों में ऐसा करते रहेंगे।
लेकिन भारत जैसे देश में सरकार तक को कानून के बारे में जानकारी नहीं है। नरेंद्र मोदी सरकार ने एक कानून बनाकर गाय-भैंसों की मांस के लिए बिक्री पर रोक लगा दी। मोदी जी गाय से प्रेम करते हैं लेकिन उन्हें नहीं पता है कि उनके पास ऐसा करने का अधिकार नहीं है। कारण, यह मामला संविधान के मुताबिक राज्यों का अधिकार है न कि केंद्र सरकार का। लेकिन कानून बनाते समय केंद्र सरकार को यह पता नहीं था। और, जब सुप्रीम कोर्ट ने इस ओर इशारा किया तो इस कानून को वापस ले लिया गया।
कानून विहीन देशों में ऐसा ही होता है। सरकारों को कानून की ही जानकारी नहीं है तो वे खुद कानून का पालन कैसे करेंगी? कई बार राज्य सरकारों को भी नहीं पता होता है, और कुछ मामलों में तो सुप्रीम कोर्ट को कानून की जानकारी नहीं होती। ओडिशा ने एक कानून बनाकर 1967 में धर्मपरिवर्तन पर रोक लगा दी। लेकिन यह संविधान के अनुच्छेद 25 का उल्लंघन था। संविधान सभा में हुई बहसों के साफ जाहिर है कि अनुच्छेद 25 के तहत धर्म परिवर्तन की गारंटी दी गई है। ओडिशा हाईकोर्ट ने इस कानून को खारिज कर दिया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने तर्कहीन आधार पर हाईकोर्ट के फैसले को पलट दिया। इसका नतीजा यह हुआ कि कम से कम दस राज्यों में ऐसा कानून बन गया और यूपी ऐसा करने वाला 11वां राज्य है।
योगी आदित्यनाथ इस बात को जानकर चौंक उठेंगे कि उन्होंने राज्य की पुलिस को जो करने का निर्देश दिया वह संविधान के मुताबिक एक अपराध है और उन्हें इसकी सजा मिलनी चाहिए। लेकिन मोदी की ही तरह वह भी ऐसा सोचते हैं कि गाय वाला कानून बनाकर वह सही कर रहे हैं क्योंकि भारतीय संस्कृति तो यही है।
कानून विहीन देशों और राज्यों में ऐसा होता रहता है। अदालतें बेकार हो चुकी हैं, जजों को कानून की पूरी जानकारी नहीं है, निचली अदालतें राष्ट्र द्रोह जैसे मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसलों को नहीं मान रही हैं, विधायक मिलते नहीं हैं, निर्वाचित प्रतिनिधि कानून का पालन नहीं करते और पुलिस किसी की भी हिरासत में हत्या कर देती है।
ऐसा होता है, और यही नया भारत है।(navjivan)
पुलिस न्यायपालक की बजाय उत्पीड़क
-मृणाल पाण्डे
संवैधानिक लोकतंत्र का मतलब क्या है? एक ऐसा लोकतंत्र जहां जनता की चुनी विधायिका संविधान में उल्लिखित अधिकारों और कर्तव्यों की पृष्ठभूमि में कानून का पालन सबके लिए एक जैसा जरूरी बनाए। भय बिनु होय न प्रीति के अनुसार, कानून किताबों तक ही सिमटा न रहे बल्कि जमीन पर लागू होता और दिखता भी रहे, इसी के लिए दंड विधान के हथियार से लैस सरकारी पुलिस बल की संकल्पना भी गई। औपनिवेशिक भारत में पुलिस थाने जनता की जरूरतों से नहीं उपजे थे बल्कि विदेशी हुक्मरानों की ताकत के प्रतीक की बतौर कायम किए गए थे। इसलिए यातना देकर सच (या झूठ) उगलवाना पुलिसिया प्रणाली का एक भाग बन गया जो अब तक त्यागा नहीं गया है। इस तरह अंग्रेज हमको जाते-जाते एक सुसंगत न्याय प्रणाली और पुख्ता अदालतें भले दे गए हों, पर जनता के प्रति खुद को जवाबदेह मानने वाली ईमानदार पुलिस हमको उनसे विरासत में नहीं मिली। पर आजादी के 70 बरसों में हर रंग की सरकारें आईं और गईं, हम फिर भी पुलिस को अधिक न्याय प्रिय, अधिक ईमानदार और जनता के प्रति जवाबदेह क्यों नहीं बना पाए?
हाल में उत्तर प्रदेश के एक दुर्दांत अपराधी विकास दुबे और उसके लोगों द्वारा आठ पुलिस वालों की सरेआम हत्या करके फरार हो जाना दिखाता है कि हमारे यहां अपराधियों के दिल में पुलिस का भय लगभग मिट चला है। जो ब्योरे प्रकाश में आए हैं, वे दिखा रहे हैं कि एक जमाने में जहां पुलिस अपने मुखबिरों के नेटवर्क की मदद से अपराधियों की पकड़-धकड़ करती थी, अब पुलिस के कई थानों के अधिकारी खुद बड़े अपराधियों के मुखबिर बनकर उनको अपने इलाके की पुलिस द्वारा दबिश की पूर्व सूचना पहुंचा कर फरार होने में मदद कर रहे हैं। पूछने पर पुराने बड़े अफसर भी इसकी तसदीक करते हैं कि पिछले कुछ दशकों से देश के लगभग हर राज्य में जनता के लिए पुलिस बार-बार न्यायपालक की बजाय उत्पीड़क की भूमिका में सामने आने लगी है।
यह सही है कि राजनीतिक सरपरस्ती के दबाव से कई बार जानकारी होते हुए भी पुलिस को ज्ञात अपराधियों की तरफ तोता-चश्मी अख्तियार करनी पड़ती है। पर इसकी वसूली वह कस कर आम जनसे क्यों करती है? जनता, खास कर औरतों, दलितों और अल्पसंख्यकों को आज अपनी पुलिस खौफ का पर्याय नजर आती है। उधर जीवन में (और फिल्मों में भी) राजनीतिक संरक्षण प्राप्त अपराधी पुलिस या विधायक जी से कई बार करीबी दोस्तों की तरह बरताव करते दिखते हैं। इस विभाजित मानसिकता की ही वजह से अधिकतर थाने हैवानियत के गढ़ बन गए हैं। यकीन न हो तो आम लोगों से पूछिए जिनको हमारी जेल के तीन महीनों की बजाय थानों में पूछताछ के तीन दिन और अदालती चक्कर इतने भयावह लगते हैं कि अधिकतर कमजोर वर्गों के लोग रपटें दर्ज कराने के लिए थाना-कचहरी जाने से झिझकते हैं। नेशनल कैंपेन अगेन्स्ट टॉर्चर संस्था के अनुसार, 2019 में पुलिस हिरासत में 1,723 मौतें हुईं। इनमें से 125 मामलों के अध्ययन से उनका निष्कर्ष है कि अधिकतर (94 फीसदी) मौतें उत्पीड़न से हुई लगती हैं।
कभी सबकी खबर देने और सबकी खबर लेने का दावा करता रहा मुख्यधारा मीडिया इन दिनों या तो गोदी मीडिया बनकर सुरक्षित बन गया है या फिर छंटनियों से बेतरह असुरक्षित है। दोनों स्थितियों में विशुद्ध खोजी रपटें देने से वह बचता रहता है जब तक कि वे विपक्ष के खिलाफ न हों। विधायक के सरेआम कत्ल (ताजा मामला बागपत का है) जैसी स्टोरी भी जब मीडिया में उभरती है, तो कुछ घंटों के लिए पुलिस सुधारों पर हमारे खबरिया चैनलों और संपादकीय पन्नों में कई (1977-81 तक बैठी पुलिस कमीशन या 99 की रिबेरो कमिटी या 2000 की पद्मना भैया कमिटी या 2006 की प्रकाश सिंह कमिटी के) प्रस्तावित पुलिस सुधारों के लंबित रहने और पुलिस के राजनीतिकरण पर चर्चे गरम होते हैं। फिर बातचीत किसी और मुद्दे पर मोड़ दी जाती है। सोशल मीडिया और गैर सरकारी जनसेवी संस्थाओं में लाख खोट हों, उनका बड़े से बड़ा आलोचक भी यह मानता है कि वे आज जनता को (और अखबारों को भी) मुख्यधारा के बहुसंख्य गोदी मीडिया की तुलना में जान पर खेल कर भी प्रशासकीय अन्याय, भ्रष्टाचार और अत्याचार के सचित्र जमीनी ब्योरे लगातार देती रहती हैं। नतीजतन हाल के महीनों में, खासकर जब से महामारी निरोधक-2005 का कानून और सख्त बनाया गया है, मीडिया कर्मियों पर पुलिस का कोप बार-बार कई राज्यों में कहर बनकर टूट रहा है। जानने के हक और उस पर मंडराते खतरों पर शोध कर रही दिल्ली की संस्था (राइट्स एंड रिस्क एनालिसिस) का आकलन अभी एक प्रतिष्ठित डिजिटल खबरिया पोर्टल पर छपा है। उसके अनुसार, तालाबंदी यानी 25 मार्च से 31 मई के बीच पत्रकारों के खिलाफ 22 प्राथमिकियां दर्ज कराई गईं। 55 पत्रकारों को या तो अपनी खबरों को लेकर कानूनी नोटिस मिला है या उनसे पुलिस ने पूछताछ की है और 10 को हिरासत में लिया गया। विडंबना यह कि लगभग सारी रपटें व्यवस्था की खामियों को उजागर कर रही थीं जिनका खुद सरकार और स्थानीय प्रशासन को संज्ञान लेकर समुचित कार्रवाई करनी चाहिए थी। अगर वे गलत साबित हों तो बहुत अच्छा लेकिन अगर सच हैं तो उनसे कई सामान्य लोगों पर खतरा बनता है। एक रपट तालाबंदी के दौरान अभयारण्य में वन तस्करी बढ़ने पर थी। दो मामलों में पत्रकारों के फेसबुक के वीडियो पर प्राथमिकी दर्ज हुई जो तालाबंदी के दौरान जिलों में राशन व्यवस्था की गड़बड़ियों पर थे। एक पत्रकार ने सरकारी हस्पतालों में कोविड के सुरक्षा उपकरणों पर सवाल उठाए तो उससे स्पेशल टास्क फोर्स ने पूछताछ की। स्थानीय मुसहरों द्वारा तालाबंदी के दौरान भुखमरी की रपट पर मालिक और पत्रकार- दोनों को सराहना की बजाय जिले के डीएम की तरफ से कारण बताओ नोटिस आ गया।
इन बातों के उजास में विकास दुबे जैसे 50 से अधिक मामलों के आरोपी द्वारा की गई आठ पुलिस कर्मियों की नृशंस हत्या का मामला जैसे-जैसे बढ़ रहा है, बरसों से चली आई उसकी नाना राजनीतिक दलों, स्थानीय पुलिस और प्रशासन से नजदीकियां और जनता की उपेक्षा भी सामने ला रहा है। कोई व्यक्ति पुलिस की वर्दी पहनकर बाहर आता है, तो उससे उम्मीद बनती है कि अब वह जाति, धर्म या इलाकाई कबीलावादी आग्रहों से परे रहेगा। होता इसके उलट है क्योंकि हमारी राजनीति में कबीलावादी आग्रह लगातार बढ़ रहे हैं। चूंकि भर्ती से लेकर प्रोन्नति तक सब कुछ जाति, धर्म और सत्तारूढ़ दल के इलाकाई सरोकारों से तय होता है, इसलिए जो लोग सत्तारूढ़ दल के आग्रहों से बाहर हैं, उनको कमतर नागरिक मानकर उनसे दुर्व्यवहार करने की एक अलिखित खुली छूट वर्दीधारियों को मिल जाती है।
यहां पर पुलिस की भीतरी दारुण दशा पर भी लिखना ही होगा। आखिर, कोविड के दौरान इसी बल ने मानवीयता और करुणा की मिसालें भी दी हैं और फ्रंटफुट पर काम करते हुए उनमें से कई शहीद भी हुए हैं। इसलिए उनको दोष देकर यह फाइल बंद नहीं की जा सकती। दो मान्य जनसेवी संस्थाओं- कॉमन कॉज और लोकनीति द्वारा जारी रपट के अनुसार, 2012- 16 के बीच देश के कुल पुलिस बलों के 6.4 हिस्से को सेवा अवधि के दौरान दोबारा ट्रेनिंग मिल पाई थी। कोविड के बीच भी शुरू में जब उनको मुहल्लों की पहरेदारी दी गई तो अधिकतर को न तो जरूरी रक्षा उपकरण दिए गए और न ही रोग की बाबत जानकारी कि संक्रमण से खुद वे किस तरह बचें।
रखवालों की रखवाली के कुछ मान्य नियम-कायदे हर लोकतंत्र के विधान में बनाए गए हैं। हर बदलाव के साथ उनमें और उसी के साथ-साथ उनको लागू कराने वालों में समय-समय पर तरमीम करते रहना भी प्रशासन का एक बुनियादी उसूल है। कोविड की शुरुआती दौर की चूक में इसी वजह से कई पुलिसवाले काल कवलित हुए। इससे पहले रेप और समलैंगिकता के कानूनों में वक्त के मुताबिक बदलाव लाते हुए भी सभी सरकारी सशस्त्रबलों को कानून की सही जानकारी और कामकाज की व्यावहारिक शैली की बाबत लगातार समयानुसार प्रशिक्षण मिले और उनके कामकाज करने के तरीकों ही नहीं, उनकी मानसिक दशा की भी प्रोफेशनल पड़ताल भी हो। यह सनातन सवाल है। रोमन कवि जुवेनाल ने सदियों पहले पूछा था- कानून के रखवालों की रखवाली कौन कानून करता है?(navjivan)
क्या ऑनलाइन शिक्षा की आड़ में किया जा रहा है धंधा !
-रजीउद्दीन अकील
कोरोना महामारी के डर के कारण पूरे देश में छोटे बच्चों के स्कूलों से लेकर विश्वविद्यालयों तक में ऑनलाइन पढ़ाई होने लगी है। बाजार की शक्तियों द्वारा तय एजेंडे को सरकार से लेकर शिक्षा के सभी स्तरों के प्रशासन तक पूरा करने में लगे हैं। यह सब तब है जबकि डिजिटल विभाजन हर जगह है और कई जगह तो परिवारों के पास संतुलित, हाई स्पीड इंटरनेट या अपेक्षित डिवाइस भी नहीं हैं। चूंकि पढ़ाई और परीक्षाओं की निश्चित डेडलाइन हैं, इसलिए उन्हें पूरा करने के खयाल से ईमेल अटैचमेंट के तौर पर हजारों असाइनमेंट शिक्षकों और विद्यार्थियों के बीच जा-आ रहे हैं। भारत के लोग होशियार हैं और किसी भी स्थिति का सामना जुगाड़ से कर लेते हैं। असाइनमेंट पूरा कर शिक्षकों को जो मेल किए जा रहे हैं, वे आम तौर पर ‘हाथ से लिखे स्कैन्ड उत्तर’ होते हैं और वे भी दूसरों के ईमेल एड्रेस से। इन सबको लेकर किसी तरफ से कोई शिकायत होती भी नहीं दिख रही है।
चूंकि कोई नियमित परीक्षा नहीं हो सकती इसलिए विश्वविद्यालय किताब खोलकर परीक्षा देने-जैसी ऑनलाइन/ऑफलाइन तौर-तरीके आजमा रहे हैं। इसमें किसी विषय की परीक्षा तीन घंटे में तो होती है- इसी अवधि में प्रश्न डाउनलोड करने होते हैं और उनके उत्तर अपलोड किए जाते हैं। अगर ईमेल काम नहीं कर रहे हैं, तो यह विकल्प भी आजमाया जा रहा है कि सेमेस्टर के अंत में होने वाली परीक्षाओं को असाइनमेंट के तौर पर दे दिया जाए और उनके उत्तर कुरियर से मंगवाए जाएं। उन लोगोंकी प्रशंसा करनी चाहिए जो जरूरत होने पर कमजोर नेटवर्क के बाद भी कनेक्ट हो जा रहे हैं, भले ही इसके लिए उन्हें अपने कच्चे मकान की छत या किसी पेड़ पर चढ़ जाना पड़े!
कैसे-कैसे जुगाड़ किए जा रहे, उसके कुछ उदाहरण जानने-देखने चाहिएः
शिक्षक किसी पेड़ की डाल या मचान पर चढ़कर नेटवर्क से कनेक्ट हो रहे हैं और क्लास ले रहे हैं।
विद्यार्थी और शिक्षक पड़ोसियों से डाटा उधार ले रहे हैं। बंगाल में अम्फान चक्रवात के बाद ऐसा खास तौर से देखा गया।
नेटवर्क कनेक्शन वाले एक ही लैपटॉप या मोबाइल फोन का इस्तेमाल बच्चे, उनके अभिभावक और यहां तक कि उनके रिश्तेदार भी ऑनलाइन क्लास के लिए कर रहे हैं।
इस तरह, महामारी के बावजूद, यथाशीघ्र विभिन्न कोर्सों को पूरा करने और परीक्षाएं संचालित करने के आदेश दिए गए हैं ताकि अगले सेमेस्टर के लिए एडमिशन बिना विलंब पूरे किए जा सकें। इन सबको युद्धस्तर पर पूरा करने की जल्दबाजी है और फिर भी लगता नहीं कि महामारी की वजह से पैदा हुए संकट से उबरने के लिए ये सब अस्थायी उपाय हैं। कोरोना का खौफ रहे या नहीं, लगता है, हम नए चलन के तौर पर पूरी तरह अराजनीतिक डिस्टेंस लर्निंग की लंबी अवधि में जा रहे हैं।
कोरोना का भय और सोशल डिस्टेन्सिंग ऑनलाइन पढ़ाई के मापदंड का बहाना बन गया है। इसका मतलब है, विद्यार्थियों को कैंपस में आने की अनुमति नहीं होगी- आखिर, विद्यार्थी अधिकारवादी शासन के खिलाफ हर जगह दृढ़ता से खड़े भी हो रहे थे। यह भी उतना ही आश्चर्यजनक, असंगत और परस्पर विरोधी है कि वैसे शिक्षक जो वैसे तो ऑनलाइन टीचिंग और परीक्षाओं का विरोध कर रहे थे, वे भी वेबिनार और इन्स्टाग्राम शो में अचानक काफी सक्रिय हो गए हैं। लाइव कैमरे के सामने कुछ मिनट की प्रसिद्धि क्या सचमुच इतनी आकर्षक है कि दीर्घावधि वाले असर पर विचार भी नहीं किया जा रहा है? यह खास तौर पर भारत में हो रहा है। अमेरिका समेत कई देशों से संकेत मिल रहे हैं कि शिक्षक और छात्र क्लासरूम शिक्षा की ओर वापस आने को आतुर हैं, जूम पर कुछ हफ्तों ने ही ऑनलाइन शिक्षा के लालच से लोगों को मुक्त कर दिया है। लग रहा है कि अगला सेमेस्टर देर से शुरू होगा और जब इसकी शुरुआत होगी, तो यह (लंबे क्लास के लिए) ऑनलाइन और (छोटे सेमिनारों के लिए) सामान्य का मिश्रण होगा। ऐसा आने वाले महीनों में होना चाहिए और वह भी कोविड-19 की स्थिति देखकर, न कि अंधाधुंध डिजिटल बमवर्षा-जैसा जो आजकल हम देख रहे हैं। इन सब में शिक्षा का भारी-भरकम व्यापार शामिल है जो संकट की वजह से अपने लाभ में कटौती बर्दाश्त नहीं कर सकता। डिजिटल प्लेटफॉर्म के लिए यह वस्तुतः फायदा उठाने वाला अवसर है।
पुराने, समझदार समय में इस तरह की भयानक महामारी का दौर होता, तो गर्मी की छुट्टियों के दिन बढ़ा दिए जाते और महामारी का प्रकोप कम होने और सामान्य स्थिति बहाल होने की प्रतीक्षा की जाती। ऐसा ही कुछ मेडिकल और इंजीनियरिंग कॉलेजों ने किया भी है। उन्होंने गर्मी की छुट्टी पहले घोषित कर दी और इसकी अवधि बढ़ा दी। जब वे खोलने की हालत में होंगे और सामान्य ढंग से काम करने लगेंगे, तब परीक्षाएं लेने की उनकी योजना है- जब ये कराने की हालत नहीं है, तो इसमें शर्म कैसी! अगर महामारी से लोगों की मौत जारी रही और लंबे समय तक या पूरे टर्म के लिए सोशल डिस्टेन्सिंग की जरूरत पड़ ही जाए, तब उपयोग में समझी जा सकने वाली प्राइवेसी चिंताओं के बावजूद कुछ दिनों के लिए वेब-आधारित प्लेटफॉर्म वाले ऑनलाइन क्लास को उचित कदम कहा जा सकता है। आखिर, एक सरकारी सर्कुलर में भी गोपनीय डाटा की सुरक्षा के संबंध में चिंताओं के मद्देनजर सरकारी कामों के लिए जूम के उपयोग को लेकर चेतावनी दी ही गई है।
यह समझने की जरूरत है किशै क्षिक संस्थान सीखने, पढ़ने, प्रयोग करने, विचारों के आदान-प्रदान, बहस करने, सवाल उठाने और विरोधी रुख रखने की जगह है- ये सब शिक्षा व्यवस्था के महत्वपूर्ण हिस्से हैं। डिजिटल स्रोत शिक्षा के काफी महत्वपूर्ण सहायक हैं या उनका कुशल तरीके से उपयोग किया जा सकता है लेकिन वे आमने-सामने की बातचीत, पढ़ाने और सीखने-सिखाने के विकल्प नहीं हो सकते। ऑनलाइन परीक्षाएं- ओपन बुक परीक्षा (ओबीई) या घर से लिखकर दी जाने वाली (टेक होम) परीक्षा- पूरी तरह बेकार ही होगी। अधिकारी और समाज जितनी जल्दी इसे समझेंगे, उतना ही अच्छा है।(navjivan)
सबसे ज्यादा 96 रायपुर से
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 12 जुलाई। आज रात 8.45 तक 150 कोरोना पॉजिटिव मरीजों की पहचान की गई है। इसमें रायपुर से 96, जांजगीर-चांपा 17, कांकेर 9, सरगुजा 5, बालोद, बिलासपुर, कोरिया, बस्तर और नारायणपुर 3-3, धमतरी 2, दुर्ग, गरियाबंद, कबीरधाम, बलौदाबाजार, रायगढ़, और बलरामपुर से 1-1 मरीज की पहचान हुई है।
प्रदेश में आज 83 मरीज स्वस्थ होकर डिस्चार्ज हुए। एक्टिव मरीजों की संख्या 909 है।
-अजीत साही
जैसे ही किसी देश का लीडर राष्ट्रवाद या धर्म का नाम लेकर सरकारी कदम उठाए आपको फ़ौरन पता करना चाहिए - इसकी नेतागिरी ख़तरे में है क्या?
दरअसल तुर्की के राष्ट्रपति अर्दोगन के साथ यही हो रहा है.
तुर्की की अर्थव्यवस्था बदहाल है. इस साल तुर्की की करेंसी, जिसे लीरा कहते हैं, तेरह फ़ीसदी गिर चुकी है. पिछले साल ये बीस फ़ीसदी गिरी थी. उसके पिछले साल भी बीस फ़ीसदी गिरी थी. किसी देश की करेंसी की वैल्यू जब गिरती है तो पूरे देश पर उसका बहुत बुरा असर होता है. एक ओर विदेशी क़र्ज़ की अदायगी और महँगी हो जाती है. और दूसरी ओर विदेश से इंपोर्ट होने वाला सामान और भी महँगा हो जाता है. इससे महंगाई भी बढ़ती है और लोगों की आर्थिक संपन्नता भी कम होती है. यानी ग़रीबी बढ़ती है.
सरकारी आँकड़ों के हिसाब से तुर्की में महंगाई की दर बारह फ़ीसदी है. ये आँकड़ा भी फ़र्ज़ी है. असली दर इससे कहीं अधिक है. पिछले साल तुर्की की सरकार ने महंगाई की दर बीस फ़ीसदी बताई थी. लेकर अमेरिकी अर्थशास्त्री स्टीव हैंक (twitter: steve_hanke) का अनुमान है कि पिछले साल तुर्की में महंगाई की असली दर 43% के आसपास थी. ज़ाहिर सी बात है कि लोगों की आय उस अनुपात में नहीं बढ़ती है जितनी महंगाई बढ़ती है. पिछले साल जो दस हज़ार मिल रहे थे वो आज पाँच हज़ार के बराबर हो चुके हैं.
तुर्की में बेरोज़गारी भी चरम पर है. कल ही तुर्की के Statitical Institute ने बताया कि देश का हर चौथा नौजवान बेरोज़गार है. सरकार के मुताबिक बेरोज़गारी की दर तेरह फ़ीसदी है. ये भी फ़्रॉड आँकड़ा है. दरअसल कोरोनावायरस के दौर में अर्दोगन ने प्राइवेट कंपनियों में छंटनी पर रोक लगा दी है. लेकिन साथ ही सैलरी न देने की इजाज़त दे दी है. तो आज की तारीख में लाखों तुर्क बगैर पगार के घर बैठे हैं लेकिन आँकड़ों में नौकरीशुदा हैं. ज़ाहिर है महीनों बाद ये नौकरी पर नहीं लौट नहीं पाएंगे और आज नहीं तो कल, बेरोज़गार गिने जाएँगे. इसी महीने के आँकड़े बता रहे हैं कि रोज़गार दर 5% घट कर 41% पर आ गई है. यानी पाँच में दो तुर्क ही नौकरीशुदा है.
पिछले तीन-चार सालो से तुर्की में उद्योग और व्यापार में भी काफ़ी मंदी आई है. मुनाफ़ों में भारी गिरावट आई है. विदेश निवेश पीछे हट रहा है. देशी कंपनियाँ भी व्यापार के विस्तार से चूक रही हैं. भवन निर्माण यानी construction industry तुर्की के जीडीपी का दस फ़ीसदी है. ये सेक्टर भी भयानक दौर से गुज़र रहा है. देश में लॉकडाउन करने के बावजूद अर्दोगन की हिम्मत नहीं हुई कि construction पर रोक लगाई जाए. लिहाज़ा कई मज़दूर कोरोना की चपेट में आ गए. इससे मज़दूरों में नाराज़गी है. अर्दोगन के विरोध में प्रदर्शन भी हुए हैं.
2003 में पहली बार चुनाव जीत कर सत्ता हासिल करने के बाद अर्दोगन ने अर्थव्यवस्था बढ़ाने के लिए उधार लेकर जम कर पैसा ख़र्च किया. पहले पाँच साल तो अर्थव्यवस्था बढ़ी भी. लेकिन फिर रफ़्तार धीमे होने लगी. आज सरकार और निजी कंपनियों का क़र्ज़ पाँच लाख करोड़ डॉलर हो चुका है. ये रकम देश की जीडीपी का दो-तिहाई है. इसकी अदायगी कर पाना न सरकार और न ही निजी कंपनियों के बस की बात है. तुर्की पर दबाव बन रहा है कि वो International Monetary Fund से उधार लेकर अपनी माली हालत सुधारने की कोशिश करे. लेकिन IMF से लोन लेने का मतलब होगा कि सरकार पर और सरकारी कंपनियों पर होने वाले ख़र्चों में कटौती हो. वो भी अर्दोगन के बस की बात नहीं है. तुर्की में सरकारी भ्रष्टाचार भी चरम पर है. Transparency International के मुताबिक भ्रष्टाचार से लड़ाई में पिछले साल दुनिया के 180 देशों में तुर्की 78 नबंर पर था. इस साल वो गिर कर 91 नंबर पर पहुँच गया. यानी सिर्फ़ एक साल में भ्रष्टाचार ख़ासा बढ़ गया है. 2010 में ये 56 नंबर पर था. यानी दस साल में भ्रष्टाचार लगभग दोगुना हो चुका है.
इन सब कारणों से अर्दोगन का विरोध बढ़ रहा है. पिछले साल तुर्की के सबसे बड़े और सबसे अधिक आबादी वाले शहर इस्तांबुल में मेयर के चुनाव में अर्दोगन की पार्टी AKP की हार हो गई. अर्दोगन ने उस फ़ैसले को मानने से मना कर दिया और चुनाव अधिकारियों पर दबाव बना कर तीन महीने बाद दोबारा चुनाव करवाया. दूसरे चुनाव में तो पार्टी और अर्दोगन को और भी मुंह खानी पड़ी. कई और शहरों में अर्दोगन की पार्टी को बुरी हार मिली है.
पिछले कुछ सालो में अर्दोगन ने देश भर में अपने विरोधियों को जेल भेजना शुरू कर दिया. हज़ारों पत्रकार, यूनिवर्सिटी प्रोफ़ेसर, एक्टिविस्ट, वकील, और जजों को भी या तो नौकरी से निकलवा दिया है या जेल में डाल दिया है. तुर्की की न्यायपालिका आज अपनी स्वतंत्रता खो चुकी है. पिछले हफ़्ते Amnesty International के तीन मुलाज़िमों को अदालत ने आतंकवादी घोषित करके जेल की सज़ा सुना दी है.
अब तो आप जान गए कि अर्दोगन ने अचानक क्यों एक संग्रहालय को मस्जिद में तब्दील करने का फ़ैसला ले लिया.
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
महासमुंद, 12 जुलाई। महासमुन्द जिले में डकैती की योजना बनाते मध्यप्रदेश व उड़ीसा के 7 आरोपी गिरफ्तार किए गए हैं। अभी शाम 6 बजे जिला मुख्यालय कंट्रोल रूम में पत्रकार वार्ता में एसपी प्रफुल्ल कुमार ठाकुर ने इस मामले का खुलासा किया। आरोपियों से 1 नग ऑटोमेटिक पिस्टल, 1 नग मैग्जीन, 2 नग जिन्दा कारतूस व 1 नग देशी कट्टा, 2 नग जिन्दा कारतूस, घटना में प्रयुक्त स्कार्पियों वाहन व टाटा कंपनी की 10 चक्का ट्रक के अलावा 60 हजार रुपये नगद भी बरामद किया गया है। गिरफ्तार आरोपी मध्यप्रदेश में भी वॉन्टेड हैं और मध्यप्रदेश की एस.टी.एफ. भी आरोपियों की तलाश कर रही है।
पुलिस के अनुसार आज दोपहर ओडिशा की ओर से एक सफेद स्कार्पियों आती दिखी। उसमें कुछ लोग सवार थे। पुलिस को देखकर उक्त वाहन चालक बेरिकेटिंग को तोड़ते हुए सरायपाली की ओर भाग निकला। इस पर थाना सरायपाली के नवागढ़ बेरियर में तैनात टीम के जवानों ने भी नाकेबंदी की और सारंगढ़ के पास ओवरटेक कर वाहन रोका गया। पूछताछ करने पर स्कार्पियों के वाहन चालक ने अपना नाम सोनू बाल्मिकी जिला शाजापुर, मध्यप्रदेश और दूसरे ने अपना नाम कुरूध्वज तांडी ग्राम केन्दुपाली जिला नवापडा ओडिशा बताया। उन्होंने बताया कि अपने 5 अन्य साथियों के साथ उक्त स्कार्पियों एवं 10 चक्का ट्रक से आए हैंं और सरायपाली व सिघोड़ा के आस-पास खड़े तेल के टैंकरों एवं ट्रकों से डीजल चुराते हैंं। अपने सभी साथियों के साथ पेट्रोल पम्प को लूटने व रेकी करके किसी मालदार के घर में डकैती डालने की योजना भी बना रहे हैंं।
पुलिस ने तलाशी में उक्त स्कार्पियों में बैठे व्यक्ति कुरूध्वज ताण्डी के पास से 1 नग देशी कट्टा व 2 नग जिन्दा कारतूस बरामद किया। आरोपियों के अन्य 5 साथी ट्रक में बसना के रास्ते में पकड़े गये। पूछताछ में आरोपियों ने अपना नाम अनिश गौसिया नगर इन्दौर, जावेद उर्फ गोलू संजीव नगर हजराना, इस्माइल खान मालीखेडी जिला शाजापुर, ब्रज मोहन पता पोलाय थाना सुन्दरसिंह जिला शाजापुर, सौदान पिता भीमसिंग भिलाला जिला शाजापुर मध्यप्रदेश बताया है।
जांच के दौरान पता चला कि ट्रक में एक गुप्त चेम्बर बना है और 1000-1500 लीटर एस्ट्रा डीजल टंकी है। रात को आरोपी तेल के टैंकरों एवं ट्रकों से डीजल चोरी कर लेते हैंं। चोरी करने के दौरान टैंकर एवं ट्रक ड्राईवर यदि जाग जाता है तो उसे अपने पिस्टल की नोंक पर बंधक बना लेते हैं। ज्यादा विरोध करने पर हत्या तक कर देते हैंं। आरोपियों ने मध्यप्रदेश के इन्दौर में डीजल चोरी करने के दौरान ड्राईवर की हत्या करना स्वीकार किया है। तलाशी के दौरान ट्रक ड्राईवर मो. अनिश पिता जमील खान के कब्जे से 1 नग आटो मेटिक पिस्टल, 1 नग मैगजीन व 2 नग जिन्दा कारतूस बरामद किया गया है। आरोपियों से लोहे का सब्बल, हथौड़ा, छैनी, चाईनीज चाकू, स्टील का रॉड एवं नगदी 60 हजार रुपए बरामद किया गया है। मामले में थाना सरायपाली में धारा 394, 398, 399 भादवि कायम कर विवेचना में लिया गया है।
नई दिल्ली, 12 जुलाई(एजेंसी )। चीन के साथ सीमा मुद्दे को लेकर जारी विवाद के बीच भारतीय सेना एक बार फिर से 72 हजार एसआईजी 716 असॉल्ट रायफल्स अमेरिका से मंगाने जा रही है। असॉल्ट रायफल्स की दूसरी खेप के लिए ऑर्डर दिया जा रहा है। पहली खेप में 72 हजार रायफल्स का ऑर्डर पहले ही अमेरिका की तरफ से भारत को भेजा जा किया जा चुका है और उसे सेना की तरफ से नॉर्दर्न कमांड और अन्य ऑपरेशनल इलाकों में इस्तेमाल किया जा रहा है।
रक्षा सूत्रों ने समाचार एजेंसी एएनआई से बताया, "आर्म्ड फोर्सेज को दी गई फाइनेंशियल पावर के तहत हम 72 हजार और रायफल्स का ऑर्डर देने जा रहे हैं।" आतंकवाद निरोधी अभियान को धार देने के लिए भारतीय सेना को असॉल्ट रायफल्स की पहली खेप मिल चुकी है। भारत ने फास्ट ट्रैक प्रोक्योरमेंट (एफटीपी) कार्यक्रम के तहत रायफल्स की खरीददारी की है।
नई रायफल्स वर्तमान में सुरक्षाबलों की तरफ से इस्तेमाल किए जा रहे इंडियन स्मॉल आर्म्स सिस्टम (इन्सास) 5.56x45mm रायफल्स की जगह लेगी। इन्सास का प्रोडक्शन स्थानीय तौर पर ऑर्डिनेंस फैक्ट्री बोर्ड में ही किया जा रहा था।
योजना के मुताबिक, करीब डेढ लाख आयातित रायफल्स का इस्तेमाल आतंकवाद विरोधी अभियान और नियंत्रण रेखा पर फ्रंट लाइन ड्यूटी में होना था। जबकि, बाकी बलों को एके-203 रायफल्स दी जाएंगी, जिसे भारत और रूस ने अमेठी ऑर्डिनेंस फैक्ट्री में तैयार किया जाना है।
दोनों पक्षों की तरफ से कई प्रक्रियागत मुद्दों को चलते इस प्रोजेक्ट पर काम शुरू होना अभी बाकी है। भारतीय सेना पिछले कई समय से INSAS असॉल्ट रायफल्स को रिप्लेस करने की कोशिश कर रही थी लेकिन एक के बाद दूसरे कारणों के चलते ऐसा नहीं हो पा रहा था।
हाल में इन बंदुकों की कमी के चलते रक्षा मंत्रालय ने लाइन मशीन गन (एलएमजी) को इजरायल से मंगाने का ऑर्डर दिया था। भारत और चीन के बीच पूर्वी लद्दाख में आमने-सामने हैं और चीनी की सेना ने मई के पहले हफ्ते से ही बिना किसी उत्तेजना के करीब 20 हजार से ज्यादा जवानों को तैनात कर रखा है।
गुजरात के नगीनदास संघवी
एनडीटीवी के रवीश कुमार ने लिखा- बहुत दिनों बाद किसी के चरण छूकर आशीर्वाद लेने का मन किया है।
हमारे बीच कोई पत्रकार सौ साल पूरे कर रहा है, इसकी तो मुनादी होनी चाहिए। उत्सव मनाया जाना चाहिए। उनकी रचनाओं पर गोष्ठियां होनी चाहिए। उम्मीद है गुजरात की हवाओं में इस बात की खुश्बू होगी कि नगीनदास संघवी 10 मार्च को सौ साल पूरे करने जा रहा है।
संघवी साहब 19 साल की उम्र से ही पत्रकारीय लेखन कर रहे हैं तब उनका पहला लेख गुजरात की एक बेहद लोकप्रसिद्ध पत्रिका चित्रलेखा में छपा था। ताज़ा लेख नागरिकता कानून को लेकर है। जिसमें नगीनादास जी ने लिखा है कि भारत में 100 साल से रह रहे हैं लेकिन उनके पास साबित करने के लिए कोई दस्तावेज़ नहीं है। 3 मार्च को उन्होंने 11 लाख की सम्मान राशि ठुकरा दी और कहा कि यह पैसा दूसरे लेखकों को मिले। मोरारी बापू उन्हें सम्मानित करना चाहते थे।
100 साल की उम्र में भी नगीनदास जी स्वस्थ्य हैं। कोई गंभीर रोग नहीं है। 1919 के साल में पैदाइश हुई। गुजरात के भावनगर के भुंभली गांव में। मुंबई में बीमा कंपनी में काम किया। फिर राजनीतिक शास्त्र पढ़ाया। 32 साल बाद मीठी बाई कालेज से सेवानिवृत्त हो गए।
50 साल में संघवी साहब की कलम एक दिन नहीं रुकी। कभी संपादक से यह नहीं कहा कि आज लेखनहीं हो पाएगा। हर सप्ताह 5000 शब्द लिखने वाले संघवी साहब खुद टाइप करते हैं। उनके चार कॉलम छपते हैं। चित्रलेखा के अलावा दिव्य भास्कर की कलश पूर्ति में हर बुधवार को उनका कॉलम आता है। रविवार को तड़ ने फड़ नाम से कॉलम आता है। तड़ ने फड़ कालम में छपे लेख से कई किताबें भी बनी हैं।
चार किताबें अंग्रेज़ी में भी हैं।1. Gujarat: a political analysis 2. Gandhi: the agony of arrival 3. Gujarat at cross roads 4. A brief history of yoga.अमरीकन इतिहास और राजनीति पर उन्होंने नौ किताबो का गुजराती अनुवाद किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की राजकीय सफर पर भी उन्होंने किताब लिखी है। देश और दुनिया की राजनीति पर 30 परिचय पुस्तिकाएं लिखी हैं।
संघवी साहब ने हमेशा ही अपने कॉलम में वचिंत तरफ़ी की है। सेकुलर मूल्यों को बढ़ावा दिया है। निडर हैं। 26 जून 2019 के लेख में लिखते है कि.. ' राष्ट्र, राष्ट्रवाद और राष्ट्रभक्ति के बारे में प्रधानमंत्री की विचारधारा आरएसएस की है और वो बिल्कुल ग़लत है '। यह भी तथ्य है कि उन्हें पद्म श्री भी मोदी सरकार के दौर में ही मिला। लेकिन संघवी साहब की कलम कहां किसी का कहा मानती है। गुजरात में एक परंपरा देखने को मिली है। कांति भाई भट्ट के लेखन और लोकप्रियता से यह समझा है कि लेखक और पत्रकार घोर आलोचक होते हैं समाज और सत्ता के। यह बात मैं जनरल नहीं कह रहा है। सभी के लिए नहीं कह रहा लेकिन जिन नेताओं की आलोचना भी करते हैं वे भी इस बात का ख्याल करते हैं कि उनका वोटर पाठक भी होता है और वो पाठक कभी अपने लेखक का अपमान सहन नहीं कर सकता है।
मुझ तक जिस आर्जव के ज़रिए जानकारी पहुंची है, उनका बहुत शुक्रिया। उन्होंने इसके लिए आनलाइन मैगज़ीन में छपे लेख का अनुवाद किया ताकि हिन्दी का संसार भी नगीनदास जी के किस्सों से धन्य हो सके। संघवी साहब के लेखों के बारे में लिखा है कि " भावों से भरपूर और अंगत स्पर्श वाले लेख कभी देखने को नहीं मिलते, वे हमेशा तर्कबद्ध, सजावट मुक्त लेख लिखते है।" उनके बौद्धिक धैर्य और मौलिक चिंतन का उदाहरण ' रामायण नी रामायण ' लेखमाला में मिलते है। वह कहते है कि 13 जनवरी से 24 फरवरी 1985 के दौरान मुंबई के ' समकालीन ' में लिखी गई सीरीज का उद्देश्य वाल्मीकि रामायण की मूल कथा का सत्य बड़े आधारभूत तरीके से सबके सामने रखना था। धर्म की आड़ में अपने पेट भरनेवाले बाबा लोग जो ' भ्रम ' पैदा करते थे उसको दूर करना था। इस लेख का काफी विरोध हुआ था। जब अखबार के संपादक ने जवाब देने की जगह नहीं दी तो सांघवी साहब ने किताब छपवा दी। ' रामायण नी अंतर यात्रा ' नाम से । डॉ. अम्बेडकर के पुस्तक ' रिडल आफ राम ' की याद दिलाता हुए इस पुस्तक के हरेक पन्नों पर स्वतंत्र चिंतन दिखता है।
2019 में पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित नगीनदास संघवी को गुजरात के लोग ' नगीन बापा ' और ' बापा ' कह के बुलाते है।
कांति भाई भट्ट के बाद नगीन बापा गुजरात की पत्रकारिता के अदभुत उदाहरण हैं। नगीन बापा की शतकीय पारी शानदार रही है।
मैं आप सभी के लिए नगीन बापा के जीवन के बारे में टाइप करते हुए गौरवान्वित महसूस कर रहा हूं। हमारी पत्रकारिता को उनका आशीर्वाद मिले। सभी पत्रकारों को गौरव होना चाहिए कि उनके बीच एक ऐसा पत्रकार भी है जिसके सौ साल हो रहे हैं।
आप सभी नगीन बापा को बधाई दें। उनके स्वस्थ्य और सुंदर जीवन की कामना करें। उनके लिखे लेखों का पाठक बनें।
एक ऐसे दिन जब मुझे गोलियों से मार देने की धमकी दी जा रही है उस दिन नगीन बापा के सौ साल पूरे करने पर लिखते हुए महसूस हो रहा है कि मुझे भी उनके सौ साल मिले हैं।
इसलिए मुझे गुजरात से प्यार है।
बहुत दिनों बाद किसी के चरण छू कर आशीर्वाद लेने का मन किया है।
-रवीश कुमार