अंतरराष्ट्रीय
-ज़ुबैर अहमद
वाशिंगटन,16 जनवरी | 20 जनवरी बुधवार को 78 वर्षीय जोसेफ़ रॉबनेट बाइडन जूनियर विश्व के सबसे शक्तिशाली देश अमेरिका के राष्ट्रपति बन जाएंगे. राष्ट्रपति ट्रंप के समर्थकों के हमले के डर के कारण राजधानी वाशिंगटन डीसी में सुरक्षा के बंदोबस्त तगड़े होंगे. कहा जा रहा है कि इराक़ या अफ़ग़ानिस्तान में भी अमेरिकी सैनिकों की संख्या उतनी नहीं होगी जितनी इस अवसर पर वाशिंगटन डीसी में होगी.
हालाँकि इस बार शपथ समारोह सुरक्षा और महामारी के कारण फीका रहेगा, लेकिन इसके बावजूद इस बार भी 20 जनवरी को समारोह के दौरान दुनिया अमेरिका की परंपरागत चमक-दमक और रौनक देखेगी. ये समारोह अमेरिका की कामयाबी और खुशहाली को शो-केस करने का भी एक अवसर होता है.
लेकिन इन समारोहों को देखकर कौन कहेगा कि अमेरिका सिर से पैर तक कर्ज़ में डूबा हुआ है और इसकी आने वाली दो पीढ़ियाँ कर्ज़ चुकाने में गुज़ार देंगी.
ऐसे में जो बाइडन ने अपने कार्यकाल की शुरुआत से पहले ऐसा कदम उठाने की बात कही है जिससे अमेरिका पर कर्ज़ और बढ़ जाएगा.
गुरुवार को बाइडन ने लगभग 2 खरब डॉलर के एक आर्थिक पैकेज की घोषणा की, जिसका उद्देश्य महामारी से लड़ना, नागरिकों को टीका लगवाना, कम आय वालों की नगदी से सहायता करना, छोटे व्यापारियों की मदद करना और पूरी अर्थव्यवस्था को गति देना है. इसे फ़ेडरल बैंक फाइनेंस करेगा.
क़र्ज़ में डूबा अमेरिका
गुरुवार को किये गए पैकेज के ऐलान से पहले, पिछले नौ महीनों में दिए गए आर्थिक पैकेज में से सरकार 3.5 खरब डॉलर ख़र्च चुकी है. महामारी की रोकथाम और बड़े पैकेज के रोल आउट करने के बावजूद विकास दर कमज़ोर है और महामारी तेज़ी से फैल रही है. गुरुवार तक 3,75,000 अमेरिकी इस बीमारी से अपनी जान गंवा चुके हैं और हर दिन औसतन 4,000 लोग इसका शिकार हो रहे हैं.
ग़रीब जनता परेशान है. छोटे व्यापारी निराश हैं. बेरोज़गारी एक बार फिर से बढ़ रही है. इस लिहाज़ से इस पैकेज की लोगों को सख़्त ज़रुरत है. ये एक ऐसी कड़वी दवा है जिसे पीना देश के लिए ज़रूरी है, इस आशा में कि देश की सेहत बहाल हो जाएगी. लेकिन इसका उल्टा असर भी हो सकता है.
प्रोफेसर स्टीव हैंकि जॉन्स हॉपकिन्स विश्वविद्यालय में एप्लाइड अर्थशास्त्र के एक प्रसिद्ध शिक्षक हैं और राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन की आर्थिक सलाहकार परिषद के सदस्य रह चुके हैं. उन्होंने जो बाइडन के नए आर्थिक पैकेज पर अमेरिका से बीबीसी को ईमेल द्वारा बताया कि इससे सरकार का क़र्ज़ और भी बढ़ेगा. वो कहते हैं, "अमेरिकी सरकार को खर्च में वृद्धि की क़ीमत चुकानी पड़ेगी. राष्ट्रीय ऋण में वृद्धि कर ख़र्च को फ़ाइनैंस किया जाएगा"
पिछले साल दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था अमेरिका का सकल घरेलू उत्पाद 21. 44 खरब डॉलर था लेकिन इसका राष्ट्रीय ऋण 27 खरब डॉलर था. अगर ये क़र्ज़ देश की 32 करोड़ आबादी में बाँट दिया जाए तो हर नागरिक के नाम 23,500 डॉलर का क़र्ज़ होगा. इसका अर्थ ये हुआ कि अमेरिका ने अगर अपनी पूरी अर्थव्यवस्था बेच दी, तब भी वो अपने पूरे क़र्ज़ को अदा नहीं कर पाएगा.
कौन है इसका ज़िम्मेदार?
अमेरिकी आर्थिक विशेषज्ञ कहते हैं कि देश के बढ़ते क़र्ज़ के लिए राष्ट्रपति ट्रंप ज़िम्मेदार हैं. उनके अनुसार ट्रंप ने सत्ता में आने से पहले क़र्ज़ को कम करने का वादा किया था लेकिन इसे पूरा नहीं किया गया.
राष्ट्रपति ट्रंप के चार साल में देश का क़र्ज़ 7.8 ख़रब डॉलर के हिसाब से बढ़ा. जब राष्ट्रपति ने 2016 में चुनाव जीता था तो उस समय प्रशासन का क़र्ज़ 19.95 ट्रिलियन डॉलर था. 31 दिसंबर, 2020 तक, राष्ट्रीय ऋण 27.75 ट्रिलियन डॉलर तक पहुँच गया
प्रो पुब्लिका नाम की एक पत्रिका में पिछले हफ़्ते छपे एक लेख के अनुसार ट्रंप के कार्यकाल के दौरान संघीय वित्त महामारी के आने से पहले भी गंभीर स्तिथि में था. ये एक ऐसे समय में हुआ जब अर्थव्यवस्था में उछाल आ रहा था और बेरोज़गारी ऐतिहासिक रूप से निम्न स्तर पर थी. ट्रंप प्रशासन के स्वयं के विवरण के अनुसार महामारी के पहले ही राष्ट्रीय ऋण का स्तर "संकट" में था.
इस संकट की वजह थी ट्रंप द्वारा टैक्स में कटौती और सरकारी खर्च में रोक न लगाना, जैसा कि वॉशिंगटन पोस्ट अख़बार ने हाल में लिखा, "ट्रंप ने 2017 में टैक्स में भारी कटौती की और गंभीर खर्च पर कोई संयम नहीं बरता जिसके कारण राष्ट्रीय ऋण में ज़रुरत से ज़्यादा इज़ाफा हुआ." याद रहे कि ट्रंप ने कॉर्पोरेट टैक्स 35 प्रतिशत से घटाकर 21 प्रतिशत कर दिया था.
लेकिन राष्ट्रपति ट्रंप के रिकॉर्ड का बचाव करने वाले तर्क देते हैं कि उनके काल में अमेरिका ने क़र्ज़ लिए तो इसका फायदा भी नज़र आया - आर्थिक विकास की दर में बढ़ोतरी हुई, महँगाई कम हुई, बेरोज़गारी में रिकॉर्ड तोड़ कमी आयी और ब्याज़दर कम हुए. दक्षिणपंथी अर्थशास्त्री कहते हैं कि राष्ट्रपति बराक ओबामा और उनसे पहले राष्ट्रपति जॉर्ज बुश के दौर में सब से अधिक क़र्ज़ बढ़े.
जोहान्स केपलर यूनिवर्सिटी, ऑस्ट्रिया के कुछ शिक्षकों ने अमेरिकी राष्ट्रपतियों द्वारा खर्च के रिकॉर्ड पर एक रिसर्च पेपर तैयार किया है जिसके अनुसार ओबामा के दौर में खर्च बढ़े थे और इससे पहले जॉर्ज बुश के दौर में और ज़्यादा भी ऐसा ही हुआ था क्योंकि राष्ट्रपति बुश के दौर में अमेरिका ने अफ़ग़ानिस्तान और इराक़ के ख़िलाफ़ सैन्य अभियान शुरू किया था जो सालों तक चला.
लेकिन अब कर्ज़ और अधिक बढे हैं, जैसा कि प्रो पुब्लिका के लेख में दावा किया गया, "हमारा राष्ट्रीय ऋण उस स्तर पर पहुंच गया है जो द्वितीय विश्व युद्ध के अंत में था. याद रहे कि 75 साल पहले युद्ध के कारण कर्ज़ बढ़ा था, ट्रंप के दौर में कोई सैन्य अभियान नहीं शुरू किया गया. द्वितीय विश्व युद्ध के क़र्ज़ों की खाई से निकलना आसान था क्योंकि सरकार के पास मेडिकेयर और सोशल सिक्योरिटी जैसे मोटे खर्च वाली ज़िम्मेदारी नहीं थीं"
बाइडन के बेटे हंटर टैक्स मामलों को लेकर जांच के दायरे में
बाइडन का रुख़ भारत से जुड़े कई मसलों पर ट्रंप से है अलग
ताज़ा पैकेज के लिए क़र्ज़ कौन देगा और इसके नतीजे क्या होंगे?
अमेरिका में जॉन्स हॉपकिन्स विश्वविद्यालय के प्रसिध्य अर्थशास्त्री स्टीव हैंकि ने बीबीसी से बातचीत में कहा कि ताज़ा कर्ज़ फेडरल रिजर्व (भारत में सेंट्रल बैंक आरबीआई जैसी वित्तीय संस्था) देगा.
इसका नतीजा क्या होगा इस पर प्रो हैंकि प्रकाश डालते हैं, "इसका मतलब ये है कि अतिरिक्त महँगाई बढ़ने का समय नज़दीक है. गहरे कर्ज की खाई में जाने के अलावा, नए सरकारी ख़र्चों के बोझ को कुछ नए करों को उठाना पड़ेगा, और नए करों के बोझ से निजी क्षेत्र में जीवन मुश्किल हो जाएगा." (https://www.bbc.com/hindi)
न्यूयॉर्क, 16 जनवरी | कश्मीर से ताल्लुक रखने वाले परिवार की बेटी समीरा फाजिली उन भारतीय अमेरिकियों की सूची में शामिल हो गई हैं, जिन्हें अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन की ए-टीम में नियुक्त किया गया है। फाजिली को नेशनल इकानॉमिक काउंसिल के डायरेक्टर के रूप में नियुक्त किया गया है।
जो बाइडेन के नए प्रशासन के कार्यभार संभालने के कुछ दिन पहले ही फाजिली को व्हाइट हाउस के वरिष्ठ अधिकारियों में शामिल किया गया है।
इस हफ्ते की शुरुआत में बाइडेन की ट्रांजिशन टीम ने फाजिली का परिचय देते हुए और उनके प्रोफेशनल काम के बारे में बताते हुए लिखा था कि फाजिली अटलांटा के फेडरल रिजर्व बैंक में थीं, जहां उन्होंने एंगेजमेंट फॉर कम्युनिटी एंड इकानॉमिक डेवलपमेंट के डायरेक्टर के तौर पर काम किया। ओबामा-बाइडेन प्रशासन में, फाजिली ने व्हाइट हाउस की नेशनल इकानॉमिक काउंसिल में एक वरिष्ठ नीति सलाहकार के रूप में और घरेलू वित्त और अंतर्राष्ट्रीय मामलों के लिए अमेरिकी ट्रेजरी विभाग में एक वरिष्ठ सलाहकार के रूप में कार्य किया था। इससे पहले वह येल लॉ स्कूल में कानून की क्लिनिकल लेक्च रर थीं।
फाजिली अपने पति और 3 बच्चों के साथ जॉर्जिया में रहती हैं। वे येल लॉ स्कूल और हार्वर्ड कॉलेज से स्नातक हैं। समीरा फाजिली कश्मीर में जन्मे डॉक्टर दंपति मुहम्मद यूसुफ फाजिली और रफीका फाजिली की बेटी हैं, जो मूल रूप से गोजवाड़ा क्षेत्र के हैं। (आईएएनएस)
जिनेवा, 16 जनवरी | विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के महानिदेशक ट्रेडोस एडहोम घेब्रेयेसिस ने कोविड-19 वैक्सीन तक सभी की पहुंच निष्पक्ष रखने का आग्रह किया है। उन्होंने कहा है कि वह "अगले 100 दिनों में हर देश में टीकाकरण होते देखना चाहते हैं"। समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, शुक्रवार को एक वर्चुअल प्रेस कॉन्फ्रेंस में ट्रेडोस ने जोर देकर कहा कि मध्यम और निम्न-आय वाले देशों को भी संरक्षित करने के लिए समान रूप से कोशिशें की जानी चाहिए।
टीकाकरण की शुरूआत करने वाले देशों में ऊंची आय वाले देशों द्वारा असमान प्रतिनिधित्व किया जा रहा है। डब्ल्यूएचओ प्रमुख ने कहा कि हमें पिछली महामारी से मिले सबक को नहीं भूलना चाहिए।
ट्रेडोस ने कहा कि जब एड्स की दवाएं पहली बार आईं तो वे केवल अमीर देशों में उपलब्ध थीं जब तक कि स्वास्थ्य अधिवक्ताओं, समाज और मैन्यूफेक्चर्स ने ऐतिहासिक रूप से कम लागत वाली एंटी-रेट्रोवायरल दवाएं नहीं लाईं। उन्होंने याद किया कि एच1एन1 महामारी ने 2009-2010 में दुनिया को प्रभावित किया था और जब तक कम आय वाले देशों को यह वैक्सीन मिली, तब तक महामारी खत्म हो चुकी थी।
ट्रेडोस ने कहा, "हम नहीं चाहते कि ऐसा फिर से हो। मैं अगले 100 दिनों में हर देश में टीकाकरण को देखना चाहता हूं, ताकि स्वास्थ्य कर्मचारियों और ज्यादा जोखिम वाले लोगों को सबसे पहले सुरक्षित किया जाए। हम जिस दुनिया में रहते हैं वह एक निष्पक्ष दुनिया नहीं है। ऐसे में कोवैक्स सुविधा हमारे लिए निष्पक्षता तक पहुंचने का एक तरीका है।"
डब्ल्यूएचओ के अनुसार, जर्मनी, चीन, रूस, ब्रिटेन और अमेरिका समेत कई देशों में वर्तमान में 236 उम्मीदवार वैक्सीन विकसित किए जा रहे हैं। इनमें से 63 वैक्सीन क्लीनिकल ट्रायल के चरण में हैं। (आईएएनएस)
लंदन, 16 जनवरी | नॉर्वे में कोविड -19 फाइजर-बायोएनटेक एमआरएनए वैक्सीन लेने के बाद 23 बुजुर्ग मरीजों की मौत की चौंकाने वाली खबर सामने आने पर देश ने मामलों में विस्तृत जांच शुरू किया है। प्रतिष्ठित ब्रिटिश मेडिकल जर्नल (बीएमजे) ने शुक्रवार की रिपोर्ट में कहा कि, सामने आई मौतों के बाद नॉर्वे में डॉक्टरों को फाइजर-बायोएनटेक वैक्सीन प्राप्त करने वाले बुजुर्ग मरीजों का अधिक गहन मूल्यांकन करने के लिए कहा गया है।
नार्वेजियन मेडिसिन्स एजेंसी (एनओएमए) के मेडिकल डायरेक्टर, स्टीमर मैडसेन ने बीएमजे को बताया, "यह एक संयोग हो सकता है, लेकिन फिलहाल हम निश्चिंत नहीं है।"
उन्होंने आगे कहा, "इन मौतों और वैक्सीन के बीच कोई निश्चित संबंध नहीं है।"
एजेंसी ने अब तक 13 मौतों की जांच की है और निष्कर्ष निकाला है कि एमआरएनए टीकों की सामान्य प्रतिकूल प्रतिक्रियाएं, जैसे कि बुखार, मतली और दस्त से कुछ कमजोर रोगियों पर वैक्सीन का बुरा प्रभाव पड़ा।
मैडसेन के हवाले से कहा गया, "यह संभावना हो सकती है कि ये सामान्य प्रतिकूल प्रतिक्रियाएं, जो कि स्वस्थ, युवा रोगियों में खतरनाक नहीं हैं, वह बुजुर्गों में बीमारी को बढ़ा सकती हैं।"
उन्होंने कहा, "हम अब डॉक्टरों से टीकाकरण जारी रखने के लिए कह रहे हैं, लेकिन बहुत बीमार लोगों का अतिरिक्त मूल्यांकन करने के लिए कहा गया है।"
वहीं फाइजर ने अपने बयान में कहा, "फाइजर और बायोएनटेक बीएनटी 162 बी 2 लेने के बाद रिपोर्ट की गई मौतों से अवगत हैं। हम सभी प्रासंगिक जानकारी एकत्र करने के लिए एनओएमए के साथ काम कर रहे हैं।"
उन्होंने आगे कहा, "सभी रिपोर्ट की गई मौतों का एनओएमए द्वारा पूरी तरह से मूल्यांकन किया जाएगा कि क्या ये घटनाएं वैक्सीन से संबंधित हैं या नहीं। नार्वे सरकार मरीजों के स्वास्थ्य को अधिक ध्यान में रखने के लिए उनके टीकाकरण निर्देशों को समायोजित करने पर भी विचार करेगी।"
जर्मनी में पॉल एर्लिच इंस्टीट्यूट भी कोविड-19 टीकाकरण के तुरंत बाद 10 मौतों की जांच कर रहा है।
नॉर्वेजियन मीडिया एनआरके की रिपोर्ट के अनुसार, "सभी मौतें नर्सिग होम में बुजुर्ग व अन्य बुजुर्ग मरीजों की हुई हैं। सभी की उम्र 80 साल से अधिक है और उनमें से कुछ 90 से अधिक हैं।" (आईएएनएस)
-अरुल लुईस
संयुक्त राष्ट्र, 16 जनवरी | भारत में दुनिया के सबसे अधिक प्रवासी हैं, यह संख्या लगभग 1.8 करोड़ है, जिनका जन्म तो भारत में हुआ, लेकिन वह रहते विदेश में हैं। यह खुलासा डिपार्टमेंट ऑफ इकोनॉमिक्स एंड सोशल अफेयर्स में यूएन पोपुलेशन डिविजन के निदेशक जॉन विलमॉट ने किया है।
इंटरनेशनल माइग्रेशन रिपोर्ट 2020 पेश करते हुए शुक्रवार को उन्होंने कहा कि अमेरिका प्रवासियों के लिए शीर्ष मेजबान देश है, जहां उनमें से 5.1 करोड़ लोग या दुनिया के कुल जीवित लोगों में से 18 प्रतिशत वहां रह रहे हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि, 2000 और 2020 के बीच, विदेशों में प्रवासी आबादी का आकार दुनिया के लगभग सभी देशों और क्षेत्रों के लिए बढ़ा है, जिसमें भारत उस अवधि के दौरान लगभग 1 करोड़ का सबसे बड़ा लाभ प्राप्त करता है, जो 2000 में तीसरे स्थान से 2020 में पहले स्थान पर आ गया है।
इस रिपोर्ट में प्रवासियों के बारे में भी विस्तृत जानकारी दी गई है, जिसमें छात्र और विदेश जाने वाले लोग भी शामिल हैं।
भारत से प्रवास के बारे में बताते हुए यूएन पोपुलेशन अफेयर्स के अधिकारी क्लेयर मेनोज्जी ने कहा, "भारतीय प्रवासी सबसे जीवंत गतिशील दुनिया में से एक है .. यह सभी क्षेत्रों में, सभी महाद्वीपों में मौजूद है।"
उन्होंने कहा, "भारतीय प्रवासी भिन्न रूपों में हैं, मुख्य रूप से ऐसे व्यक्ति शामिल हैं जो कर्मचारी हैं, इनमें छात्र भी हैं, और वे लोग जो पारिवारिक कारणों से स्थानांतरित हुए हैं।"
मेनोज्जी ने कहा कि, खाड़ी देशों में पैदा हुए भारत में जन्मे प्रवासियों की टुकड़ी उन देशों की आर्थिक समृद्धि में केंद्रीय भूमिका निभा रही है।
उन्होंने कहा, "वह उत्तरी अमेरिका और कनाडा, अमेरिका और ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया में भी व्यापक रूप से मौजूद हैं।"
उन्होंने कहा, "और यदि आप अमेरिका में उदाहरण के लिए देखें, तो मैं भारत में पैदा होने वाले कुछ ऐसे व्यक्तियों की शिक्षा के बारे में जानता हूं, जिन्होंने उच्च शिक्षा हासिल की है, कुछ ने इसके तीन गुणा या यहां तक कि पोस्ट-डॉक्टरल और इसके बाद भी शिक्षा हासिल की है।"
उन्होंने कहा कि "यह गलतफहमी है कि प्रवास अवसर की कमी की प्रतिक्रिया है।"
जबकि कुछ संदर्भों में यह सच भी हो सकता है, "यह गतिशीलता का भी संकेत है, एक व्यक्ति के पास अवसरों का पीछा करने का विकल्प होता है।" (आईएएनएस)
वॉशिंगटन, 16 जनवरी | दुनिया में कोरोनावायरस के संक्रमण के मामलों की कुल संख्या 9.37 करोड़ और इस घातक वायरस के कारण मरने वालों की संख्या 20 लाख से अधिक हो चुकी है।
जॉन्स हॉपकिंस यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर सिस्टम साइंस एंड इंजीनियरिंग (सीएसएसई) के शनिवार सुबह के नए आंकड़ों के मुताबिक वर्तमान में दुनिया में मामलों की संख्या 93,787,372 और मौतों की संख्या 2,006,987 है।
दुनिया में सबसे अधिक 2,35,20,563 मामले और 3,91,922 मौतों के साथ अमेरिका सबसे बुरी स्थिति में है। 1,05,27,683 मामलों के साथ भारत दूसरे स्थान पर है। यहां अब तक 1,51,918 मौतें हो चुकी हैं। ब्राजील में 83,93,492 मामले और 2,08,246 मौतें हुईं हैं। मामलों की संख्या में ब्राजील तीसरे नंबर पर है और मौतों की संख्या में दूसरे नंबर पर है।
10 लाख से अधिक मामले वालों देश में ब्राजील (8,393,492), रूस (34,83,531), ब्रिटेन (33,25,642), फ्रांस (29,31,396), तुर्की (2,373,115), इटली (23,52,423), स्पेन (22,52,164), जर्मनी (2,023,801), कोलम्बिया (18,70,179), अर्जेंटीना (17,83,047), मेक्सिको (15,88,369), पोलैंड (14,22,320), ईरान (13,18,295), दक्षिण अफ्रीका (13,11,869), यूक्रेन (11,83,963) और पेरू (10,48,662) हैं।
ऐसे देश जिनमें 20 हजार से ज्यादा मौतें हुईं हैं, उनमें मेक्सिको (1,37,916), ब्रिटेन (87,448), इटली (81,325), फ्रांस (70,090), रूस (63,558), ईरान (56,621), स्पेन (53,314), कोलंबिया (47,868), जर्मनी (45,705), अर्जेंटीना (45,227), पेरू (38,564), दक्षिण अफ्रीका (36,467), पोलैंड (32,844), इंडोनेशिया (25,484), तुर्की (23,664), यूक्रेन (21,479) और बेल्जियम (20,294) हैं। (आईएएनएस)
कोविड-19 महामारी के दौरान ही एक बार फिर चीनी विदेश मंत्री वांग यी दक्षिणपूर्व एशिया के चार देशों के दौरे पर निकल गये हैं. इंडोनेशिया, फिलीपींस, ब्रुनेई से पहले वह म्यांमार पहुंचे.
वैसे तो दक्षिणपूर्व एशिया के इन तमाम देशों के साथ संबंधों को मजबूत करना अपने आप में एक बड़ा काम है लेकिन बाइडेन प्रशासन के 20 जनवरी को अमेरिकी प्रशासन की बागडोर संभालने और उसके चलते पैदा होने वाली संभावनाओं को कम कर के नहीं आंका जा सकता. चीन के लिए दक्षिणपूर्व एशिया की वही महत्ता है जो भारत के लिए दक्षिण एशिया की है या रूस के लिए सेंट्रल एशिया की. लिहाजा चीन का अपने कूटनीतिक किले को अभेद्य बनाने की कवायद लाजमी लगती है. हालांकि बात इतनी भी सीधी नहीं है.
कोविड-19 वैक्सीन को लेकर दुनिया के बड़े देशों के बीच एक नयी होड़ सी लगती दिख रही है. हर देश और उसकी बड़ी फार्मा कंपनियों ने दावे ठोकने चालू कर कर दिए हैं कि उनकी बनाई वैक्सीन सबसे कारगर है. इस बात पर ध्यान कम दिया जा रहा है कि ब्रिटेन और जापान जैसे देशों में कोविड-19 के वायरस के नए स्ट्रेन मिल गए हैं और पर्यावरण के मुताबिक रूपांतरित होने या म्यूटेट होने की क्षमता रखने वाले कोविड को हराने के लिए वैक्सीन खुराकों में भी तेजी से बदलाव लाने होंगे. बहरहाल, वांग यी ने 3 लाख वैक्सीन खुराकें देने की घोषणा की, जिसे म्यांमार ने सहर्ष स्वीकार कर लिया. जर्जर स्वास्थ्य व्यवस्था से जूझ रहे म्यांमार के लिए यही काफी है. गौरतलब है कि म्यांमार ने सबसे पहले भारत से वैक्सीन भेजने का अनुरोध किया था. चीन इसे व्यापारिक और सॉफ्ट पावर चुनौती मान कर भारत से पहले वैक्सीन पहुंचाना चाहता है. लगता है कि वह ऐसा कर भी लेगा.
चीनी विदेश नीति की एक खास बात है उसका ट्रांजेक्शनल रूप. दोस्ती और धंधे के बीच चीन हमेशा धंधे को वरीयता देता है. यह दुनिया के अधिकांश देशों की विदेश नीतियों से काफी अलग है जहां मूल्यपरक और नियम्बद्ध विदेशनीति के कड़े मानदंड हैं. भारत, जापान, जर्मनी जैसे देशों में विदेशनीति के निर्धारण के पीछे व्यापार, सामरिक सहयोग, मानव और तकनीकी संसाधन विकास के अलावा दूरगामी मानवीय और सामाजिक मूल्यों और सिद्धांतों को मजबूती देने पर भी जोर दिया जाता रहा है. दूसरी तरफ चीन अक्सर अच्छे सम्बंधों के बहाने अपने व्यापारिक हितों को आड़े तिरछे तरीके से साध ले जाता है. यही वजह है कि जब डॉनल्ड ट्रंप जैसा उद्योगपति नेता चीन से धंधे की बात करने पर आया तो चीन के होश उड़ गए और ट्रेड युद्ध की नौबत आ गई.
बहरहाल, धंधे की बात करें तो चीन की बेल्ट ऐंड रोड परियोजना पर दोनों पक्षों के बीच चर्चा हुई. वांग यी की यात्रा से ठीक पहले दोनों देशों के बीच एक मसौदे पर सहमति हुई थी जिसके तहत म्यांमार के दूसरे सबसे बड़े शहर मांडले और पोर्ट सिटी क्याकफू के बीच एक रेलवे लिंक की स्थापना होगी. फिलहाल इस संदर्भ में व्यावहारिकता का अध्ययन करने पर सहमति हुई है. चीन की मांडले में रेलवे ट्रैक बनाने और उसे क्याकफू से जोड़ने की इच्छा किसी परोपकारी विचार का नतीजा नहीं हैं. वजह यह है कि क्याकफू में चीन ने करोड़ों डालर का निवेश कर रखा है. चीन वहां पर गहरे समुद्री पोर्ट प्रोजेक्ट को अंजाम देने में पिछले एक दशक से अधिक से जुटा है. क्याकफू को व्यापार संबंधी जरूरतों से जोड़ने के लिए मांडले एक बड़ी मदद कर सकता है लेकिन दोनों के बीच दूरी 650 किलोमीटर से ज्यादा है और रास्ता दुर्गम नहीं तो सुगम तो बिल्कुल नहीं है. यही वजह है कि दोनों शहरों के बीच रेलवे लाइन बिछाने की जरूरत चीन को आन पड़ी.
बीजिंग ओलंपिक
कैसे अमेरिका को चुनौती देने वाली महाशक्ति बन गया चीन
मील का पत्थर, 2008
2008 में जब दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था आर्थिक मंदी से खस्ताहाल हो रही थी, तभी चीन अपने यहां भव्य तरीके ओलंपिक खेलों का आयोजन कर रहा था. ओलंपिक के जरिए बीजिंग ने दुनिया को दिखा दिया कि वह अपने बलबूते क्या क्या कर सकता है.
चीन की दूरगामी योजना है कि क्याकफू को मांडले के रास्ते चीन के सुदूर दक्षिणी प्रान्त युन्नान से जोड़ा जाय. युन्नान और क्याकफू के बीच पहले से ही गैस पाइपलाइन चल रही है. ऐसे में रेल लिंक बनाने की योजना चीन को म्यांमार के रास्ते हिंद महासागर और बंगाल की खाड़ी तक सीधा रास्ता देगी. सिर्फ संसाधन ही नहीं लोगों का भी आना जाना हो सकेगा. चीन इस काम को अंजाम देने के लिए किसी भी हद तक जाएगा क्योंकि उसे मालूम है कि भारत और अमेरिका दोनों से निपटने के लिए हिंद महासागर में सीधी दखल और पकड़ बनाना जरूरी है.
अपनी यात्रा के दौरान चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने रोहिंग्या मसले पर म्यांमार की मदद करने का वादा भी किया. और हो भी क्यों ना? दोनों ही देश अल्पसंख्यक समुदायों के मानवाधिकारों के हनन के मामलों को लेकर अंतरराष्ट्रीय समुदाय की आलोचनाओं का शिकार हुए हैं. ऐसे में वांग यी का म्यांमार को समर्थन राष्ट्रपति विन म्यिन्त, आंग सान सू ची और उनके समर्थकों के लिए एक बड़ी राहत की वजह है.
दरअसल, अमेरिका में जो बाइडेन प्रशासन के आने की खबर से म्यांमार समेत तमाम मानवाधिकारों के मुद्दे पर लचर रिकार्ड रखने वाले देशों में खलबली का माहौल है. माना जा रहा है कि एक डेमोक्रेट होने के नाते बाइडेन प्रशासन और उसके तमाम उच्चाधिकारियों का ध्यान मानवाधिकार हनन, पर्यावरण संरक्षण, मुक्त व्यापार, लोकतांत्रिक मूल्यों, नियमबद्ध क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था के मुद्दों पर ज्यादा होगा. डॉनल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति कार्यकाल के दौरान म्यांमार और कंबोडिया जैसे देशों की पौ बारह हो गयी थी क्योंकि ट्रंप ने उदारवादी अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था के तीनों मूलभूत पहलुओं पर से सिर्फ ध्यान ही नहीं हटाया था बल्कि एक समय पर तो वह इन तीनों के विरोध में ही खड़े दिख रहे थे. ये तीन मूलभूत पहलू हैं, खुली और उदारवादी अंतरराष्ट्रीय बाजार व्यवस्था, अंतरराष्ट्रीय संगठनों का समर्थन, और लोकतांत्रिक मूल्यों को समर्थन.
क्या चीन पर आर्थिक रूप से बहुत ज्यादा निर्भर है भारत?
सर्वे में शामिल लगभग आधे लोगों को लगता है कि भारत की चीन पर बहुत अधिक आर्थिक निर्भरता है. वहीं 27 फीसदी को लगता है कि ऐसा नहीं है.
ट्रंप के जाने से ऊहापोह की स्थिति म्यांमार में तो है ही चीन का मन भी बाइडेन प्रशासन के नित नये चुने जा रहे मंत्रिमंडल सदस्यों और उच्चाधिकारियों का नाम सुन कर खट्टा हो रहा है. ओबामा प्रशासन के दौरान अमेरिका की एशिया पिवट नीति में खासा योगदान देने वाले कर्ट कैंपबल जैसे लोगों के बाइडन प्रशासन में एशिया की जिम्मेदारी से कम से कम यह तो साफ है कि चीन के अच्छे दिन तो फिलहाल आने से रहे. ऐसे में एक ही नाव में सवार देशों को इकट्ठा करने में कोई बुराई नहीं हैं. और इस लिहाज से वांग यी की म्यांमार यात्रा का बहुत सामरिक महत्व है.
दिलचस्प बात यह है कि चीन का मयांमार को रोहिंग्या मुद्दे पर समर्थन एक तरफ दोस्ताना कदम नहीं था. बदले में म्यांमार के राष्ट्रपति को भी चाहे अनचाहे कहना ही पड़ा कि म्यांमार चीन को तिब्बत, ताइवान, और शिनजियांग के मुद्दे पर अपना समर्थन देता है.
दक्षिणपूर्वी एशिया के देशों के साथ ‘इस हाथ दे, उस हाथ ले' की चीन की ट्रांजेक्शनल नीति फिलहाल तो कारगर है पर मूल्यविहीन नितियां काठ की वो हांडियां हैं जो शायद ज्यादा दिन अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था की भट्ठियों का ताप झेल नहीं पायेंगी.
(राहुल मिश्र मलाया विश्वविद्यालय के एशिया-यूरोप संस्थान में अंतरराष्ट्रीय राजनीति के वरिष्ठ प्राध्यापक हैं.)
उत्तरी इटली में पार्मा शहर के पास एक भूलभुलैया है. कहते हैं कि यह यूरोप की सबसे बड़ी भूलभुलैया है. एक प्रसिद्ध भूलभुलैया लखनऊ में भी है, लेकिन पार्मा वाले से अलग वह इमारत में बनी है और उससे अलग तो है ही.
यूरोप की सबसे बड़ी भूलभुलैया बांसों की भूलभुलैया है. यूं तो हर कहीं जगह जगह पर मक्के के खेतों में भूलभुलैया बने मिल जाते हैं लेकिन यूरोप की सबसे बड़ी भुलभुलैया के रास्ते तीन किलोमीटर में फैले हैं और इसका क्षेत्रफल है 70 हजार वर्ग मीटर. इस लिहाज से "लाबिरिंतो डेला मासोने" यूरोप की सबसे बड़ी भूलभुलैया है. पेशे से प्रकाशक रहे फ्रांको मारियो रिची ने इस भूलभुलैया का सपना तब देखा था जब वे नौजवान थे, तीस साल पहले. दरअसल पार्मा शहर के बाहर उनका एक वीकएंड हाउस हुआ करता था. वहां उनके दोस्त और उनके प्रकाशन गृह से जुड़े लेखक अर्जेंटीना के खॉर्गे लुइस बोर्गेस भी आकर रहा करते थे.
बोर्गेस की रचनाओं का एक विषय लेवरिंथ भी था. 1899 में जन्मे बोर्गेस की 55 साल के होते होते आंखों की रोशनी पूरी तरह चली गई थी. फोंटानेलाटो में अपने वीकएंड हाउस में उनका हाथ पकड़ इधर उधर ले जाते रिची को इस बात का अहसास हुआ कि जीवन में अनिश्चितताएं कितनी महत्वपूर्ण होती हैं, जब आप चीजों को देख न सकें या उनका आभास न कर सकें. और इसी अहसास से फ्रांको मारियो रिची के उस सपने का जन्म हुआ जिसे उन्होंने बाद में अपनी निजी जमीन पर साकार किया.
एक सपना बनी हकीकत
फ्रांको मारियो रिची अपने अनुभवों को दुनिया के बहुत से दूसरे लोगों के साथ साझा करना चाहते थे, उन्हें जिंदगी की भूलभुलैया की याद दिलाने के लिए एक कृत्रिम भूलभुलैया में ले जाना चाहते थे. तो अपनी जमीन पर उन्होंने बांस के लगभग दो लाख पेड़ लगाए. जो लोग गांवों में रहते हैं और जिनके पास बांस के बगीचे हैं उन्हें पता है कि बांस के पेड़ बहुत तेजी से बढ़ते हैं, हमेशा हरे भरे रहते हैं और 15 मीटर तक बढ़ सकते हैं. और बांस के पेड़ अगर बड़े इलाके में फैले हों तो उनके झुरमुट में कोई भी रास्ता भूल सकता है.
फ्रांको मारियो रिची की भूलभुलैया में घुसने का एक रास्ता है और निकलने का भी. लेकिन उनके बीच इतने सारे रास्ते हैं कि आदमी उनमें खो ही जाता है. सारे रास्ते एक जैसे लगते हैं और लोगों को लगता है कि उन्हें तो यह रास्ता पता है और फिर लगता है कि यह तो बिल्कुल ही अलग जगह है. बिल्कुल अलग. पता ही नहीं चलता कि वे कहां हैं और वहां से बाहर कैसे निकलें. "लाबिरिंतो डेला मासोने" एक ज्यामिति डिजाइन पर आधारित है और रोमन दौर की याद दिलाता है. सीधे सीधे रास्ते हैं जो 90 डिग्री के कोण पर मुड़ते हैं. इसीलिए उन्हें याद रखना और मुश्किल हो जाता है.
लेकिन ये भूलभुलैया इतनी भी बड़ी नहीं कि उससे बाहर न निकला जा सके और लोग घबड़ाने लगें. लोग यहां जितने कन्फ्यूज होते हैं, उतने ही मंत्रमुग्ध भी. इमरजेंसी की स्थिति में वे मदद मांग सकते हैं. भूलभुलैया में जगह जगह पर पहचान के लिए पोजिशन मार्क लगे हैं. फोन करके खोए हुए लोग अपनी पोजिशन बताते हैं और उसके बाद भूलभुलैया के डायरेक्टर एदुआर्दो पेपीनो उन्हें खुद लेने पहुंचते हैं और बाहर लेकर आते हैं. वे बताते हैं, "इस भूलभुलैया का मूल अर्थ बहुत ही गंभीर और महत्वपूर्ण है. यह हमारे जीवन का प्रतीक है, ऐसी ही मुश्किल चीजों से हमारा वास्ता अपने जीवन में पड़ता है और ऐसे ही मुश्किल रास्तों से हम गुजरते हैं और आखिर में हमें अपनी मुक्ति का रास्ता मिल ही जाता है."
पर्यटकों के लिए म्यूजियम
भूलभुलैया के केंद्र में एक इमारत है या यूं कहें नियो क्लासिकल इमारतें. इनमें एक म्यूजियम है जिसमें वो सारी कलाकृतियां प्रदर्शित हैं जो फ्रांको मारिया रिची ने अपने जीवन में इकट्ठा कीं. इसके अलावा उनका किताबों का कलेक्शन और वे सारी किताबें जो उनके प्रकाशन ने 50 सालों में छापी, वहां देखी जा सकती है. भूलभुलैया हमेशा से इंसानों को मंत्रमुग्ध करती रही हैं. उनका जिक्र प्राचीन काल से लेकर ग्रीक गाथाओं और साहित्य में भी मिलता है. यह जगह दिवगंत इतालवी प्रकाशक और संपादक फ्रांको मारिया रिची की विरासत का हिस्सा है. वे नायाब कला कृतियों पर विशेष पुस्तकें प्रकाशित करते थे, साथ ही वो आर्ट मैगजीन एमएमआर भी निकालते थे. उनके कला संग्रह में पांचवीं सदी की कलाकृतियां भी शामिल हैं.
फ्रांको मारिया रिची ने 82 साल की उम्र में सितंबर 2020 में आखिरी सांस ली. भूलभुलैया उनके आखिरी प्रोजेक्ट्स में एक है. उनकी पत्नी लॉरा कासालिस बताती हैं, "ये फ्रांको का सपना है. चीजों को करने का उनका अलग ही अंदाज था. उन्होंने अपनी जिंदगी में वो सब किया जो कोई सोच भी नहीं सकता." और अब लोग उनके भूलभुलैये में जाकर वहां टहलने, खोने और जिंदगी के बारे में सोचने का मजा ले सकते हैं. समय है तो म्यूजियम की सैर और भूख लगे या कॉफी पीने का मन हो तो बिस्त्रो, कॉफीहाउस और स्थानीय भोजन परोसने वाला रेस्तरां भी वहां मौजूद है. यूरोप की सबसे बड़ी भूलभुलैया में खो जाने का अनुभव भी निश्चित तौर पर बहुत ही मजेदार और रोमांचक है.
जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल की रूढ़िवादी पार्टी सीडीयू की पार्टी कांफ्रेस बर्लिन में शुरू हो गई है. शनिवार को पार्टी प्रमुख का नाम तय करने के लिए मतदान होगा जो मैर्केल का वारिस ढूंढने की दिशा में पहला कदम है.
सीडीयू यानी क्रिश्चियन डेमोक्रैटिक यूनियन में नेतृत्व पद के लिए मुकाबला काफी व्यापक हो गया है. पार्टी के बैलेट पेपर पर तीन उम्मीदवारों के नाम हैं. पहला नाम आर्मीन लाशेट का है जो जर्मनी के सबसे ज्यादा आबादी वाले राज्य नॉर्थ राइन वेस्टफेलिया के मुख्यमंत्री हैं. उनके अलावा कॉर्पोरेट लॉयर फ्रीडरीष मैर्त्स और विदेश नीती के जानकार नॉर्बर्ट रोएटगन भी इस दौड़ में हैं.
पार्टी में मतदान जर्मन राजनीति के लिहाज से अहम साल की बिल्कुल शुरुआत में हो रहा है. इसी साल सितंबर में चुनाव होने वाले हैं. चांसलर अंगेला मैर्केल इस चौथे कार्यकाल के खत्म होने के बाद अपनी रिटायरमेंट का एलान कर चुकी हैं.
चांसलर की उम्मीदवारी पर ऊहापोह
पारंपरिक रूप से सीडीयू का नेता अपनी पार्टी के साथ ही बवेरियाई सहयोगी पार्टी सीएसयू के चुनावी अभियान का नेतृत्व करने के साथ ही चांसलर का उम्मीदवार भी होता है. हालांकि इस बार चुनावी साल में सीडीयू/सीएसयू का नेतृत्व करने के लिए दूसरे उम्मीदवार भी सामने आए हैं.
इनमें खासतौर से सीएसयू के नेता मार्कुस जोएडर का नाम लिया जा रहा है जो बवेरिया के मुख्यमंत्री हैं और जर्मनी के सबसे लोकप्रिय राजनेताओं में एक हैं.
जर्मनी के जेडडीएफ चैनल के कराए एक ओपिनियनल पोल के शुक्रवार को जारी नतीजे बताते हैं कि सितंबर के चुनाव में इस बार रूढ़िवादी पार्टियों की तरफ से कौन उम्मीदवार होगा, इसे लेकर अनिश्चितता बनी हुई है.
जर्मनी के अगले चांसलर के लिए जोएडर सबसे ज्यादा 54 फीसदी लोगों की पसंद हैं. स्वास्थ्य मंत्री येंस श्पान ने भी इन तीनों लोगों की तुलना में बेहतर प्रदर्शन किया है जो पार्टी के शीर्ष पद के लिए मैदान में हैं. उन्हें सर्वे में शामिल 32 फीसदी लोगों का समर्थन मिला है. मैर्त्स और रोएटगन को 29-29 फीसदी जबकि लाशेट उनसे बस थोड़े से ही पीछे यानी 28 फीसदी लोगों की पसंद हैं. चांसलर पद के लिए सीडीयू/सीएसयू के संयुक्त उम्मीदवार का फैसला मार्च में होने की उम्मीद की जा रही है.
ऑनलाइन मीटिंग और डिजिटल वोटिंग
बर्लिन में शुरू हुआ दो दिन का अधिवेशन दो बार पहले ही टाला जा चुका है. पार्टी कांफ्रेंस में कुल 1,001 प्रतिनिधि ऑनलाइन रूप से हिस्सा ले रहे हैं और यह पहली बार है जब डिजिटल वोट के जरिए नए नेता का चुनाव होगा. जर्मनी की राजनीति के लिए यह बिल्कुल नया अनुभव है. पार्टी प्रमुख पद के लिए विजेता के नाम की आधिकारिक पुष्टि 22 जनवरी को पोस्टल वोटों के रूप में नतीजों की पुष्टि के बाद होगी.
मैर्त्स, लाशेट और रोएटगन तीनों ने ऑनलाइन वोटों के नतीजे स्वीकार करने का एलान किया है. इसका मतलब है कि चुनाव में हारने वाला शनिवार के बाद पोस्टल वोटों में जीत के लिए अभियान नहीं चलाएगा. नया नेता आनेग्रेट क्रांप कारेनबावर की जगह पार्टी के प्रमुख का पद हासिल करेगा. कारेनबाउअर को मैर्केल के रिटायरमेंट के बाद उनका उत्तराधिकारी बनाने की घोषणा की गई थी लेकिन वे पार्टी के भीतर इस मसले पर आम सहमति बनाने में नाकाम रहीं और खुद को इस दौड़ से अलग करने का फैसला कर लिया. शुक्रवार को पार्टी के अधिवेशन में आनेग्रेट क्रांप कारेनबावर, मैर्केल और जोएडर का भाषण होना है.
एनआर/आईबी (डीपीए)
बीजिंग, 16 जनवरी | सेना के साथ संबंधों के चलते कुछ चीनी कंपनियों पर अमेरिका द्वारा प्रतिबंध लगाए जाने पर चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने ट्रंप प्रशासन को जमकर फटकार लगाई है। प्रवक्ता ने कहा है कि यह दुनिया को दिखाता है कि वह अपने से कम कमजोर लोगों के साथ क्या कर रहे हैं। समाचार एजेंसी सिन्हुआ के मुताबिक प्रवक्ता झाओ लिजियन ने शुक्रवार को प्रेस ब्रीफिंग में कहा कि "चीनी फर्मों के खिलाफ संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा बार-बार प्रतिबंध लगाए जाने का चीन कड़ा विरोध करता है। अमेरिका का यह कदम बाजार की प्रतिस्पर्धा और अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यापार के सिद्धांतों के खिलाफ है।"
उन्होंने कहा कि अमेरिकी कदम ने दोनों देशों के बीच सामान्य आर्थिक, व्यापार और निवेश सहयोग में हस्तक्षेप किया है। साथ ही संयुक्त राज्य अमेरिका में विदेशी कंपनियों द्वारा निवेश करने और वहां व्यापार संचालित करने के विश्वास को कम कर दिया है, जो आखिर में अमेरिकी कंपनियों और निवेशकों को नुकसान पहुंचाएगा।
झाओ ने कहा कि ट्रंप प्रशासन ने एक बार फिर दुनिया को दिखाया है कि एकतरफावाद, दोहरे मापदंड और अपने से कमजोर को दबाना क्या होता है।
झाओ ने कहा, "चीन चीनी इण्डस्ट्रीज के वैध अधिकारों और उनके हितों की रक्षा के लिए जरूरी उपाय करेगा और कानून के अनुसार अपने अधिकारों और हितों की रक्षा करने में चीनी इण्डस्ट्रीज का पूरा समर्थन करेगा।"
--आईएएनएस
न्यूयॉर्क, 16 जनवरी | अमेरिका के राष्ट्रपति पद के लिए चुने गए जो बाइडन ने शुक्रवार को स्वास्थ्य नीति विशेषज्ञ विदुर शर्मा को अपनी कोविड-19 रिस्पांस टीम के परीक्षण सलाहकार के रूप में नामित किया।
शर्मा राष्ट्रपति के लिए चुने गए बाइडन और उपराष्ट्रपति के लिए चुनी गईं भारतीय मूल की कमला हैरिस के प्रशासन में एक प्रमुख पद के लिए नवीनतम भारतीय-अमेरिकी उम्मीदवार हैं। वह सर्जन जनरल-नॉमिनी विवेक मूर्ति और कोविड-19 टास्क फोर्स के सदस्य अतुल गवांडे और सेलीन गाउंडर जैसे कोरोनावायरस के खिलाफ लड़ाई से जुड़े अन्य लोगों की सूची में शामिल होंगे।
शर्मा पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा के प्रशासन में भी अहम जिम्मेदारी संभाल चुके हैं, जब बाइडन उपराष्ट्रपति थे।
उस कार्यकाल में वह ओबामा के के हस्ताक्षर कार्यक्रम को लागू करने के लिए काम करने वाले घरेलू नीति परिषद के एक स्वास्थ्य नीति सलाहकार के तौर पर कार्यरत थे। वह उक्त कार्यक्रम के तहत सभी के लिए स्वास्थ्य बीमा सुनिश्चित करने वाले लोगों में एक रहे हैं, जिन्हें ओबामाकेयर के रूप में जाना जाता है।
हालांकि राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने कार्यकाल के दौरान ओबामाकेयर को समाप्त करने की कोशिश की, मगर शर्मा ने संगठनों के एक समूह प्रोटेक्ट ऑवर केयर के उप अनुसंधान निदेशक के तौर पर मोर्चा संभाले रखा।
उन्होंने स्वास्थ्य क्षेत्र के संगठनों को सलाह देने का काम भी बखूबी किया है।
व्हाइट हाउस कोविड-19 रिस्पांस टीम के लिए शर्मा और अन्य नामों की घोषणा करते हुए हैरिस ने कहा, मैं इन समर्पित लोक सेवकों के साथ मिलकर काम करने के लिए तत्पर हूं।
--आईएएनएस
उत्तर कोरिया ने अब एक नये किस्म की बैलिस्टिक मिसाइल से पर्दा उठाया है, जिसे वहाँ का सरकारी मीडिया ‘दुनिया का सबसे शक्तिशाली हथियार’ बता रहा है.
स्थानीय मीडिया के अनुसार, उत्तर कोरिया के सर्वोच्च नेता किम जोंग-उन के सामने हुई एक परेड में इस बैलिस्टिक मिसाइल का अनावरण किया गया जिसे पनडुब्बी से भी लॉन्च किया जा सकता है.
उत्तर कोरिया ने यह कथित शक्ति प्रदर्शन अमेरिका के नव-निर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडन के शपथ ग्रहण से पहले किया है.
ख़बरों के अनुसार, इस परेड के बाद एक राजनीतिक बैठक भी हुई जिसमें किम जोंग-उन ने अमेरिका को ‘देश का सबसे बड़ा दुश्मन’ बताया.
उत्तर कोरिया की सरकारी एजेंसी ने जो तस्वीरें जारी की हैं, उनमें ब्लैंक एंड व्हाइट रंग की चार बड़ी मिसाइलें देखी जा सकती हैं.
इन तस्वीरों के आधार पर कई विश्लेषक ये कह रहे हैं कि ‘ऐसी मिसाइलें इससे पहले नहीं देखी गईं.'
उत्तर कोरिया की समझ रखने वाले विशेषज्ञ अंकित पांडा ने ट्विटर पर इस बैलिस्टिक मिसाइल का नाम लिखा है, “नया साल, नई पुकगुकसॉन्ग.”
पिछले साल अक्तूबर में उत्तर कोरिया ने आईसीबीएम नामक बैलिस्टिक मिसाइल लॉन्च की थी. उस मिसाइल को इससे भी बड़ी परेड में पेश किया गया था.
आईसीबीएम का आकार देखकर दुनिया के कई नामी जानकार चकरा गये थे. उत्तर कोरिया की वो मिसाइल अमेरिका के किसी भी हिस्से में परमाणु हमला कर सकती है.
उत्तर कोरिया ने हथियारों का यह ताज़ा प्रदर्शन सत्ताधारी वर्कर्स पार्टी के कार्यकाल के पाँच साल पूरे होने पर की. (बीबीसी)
पिछले महीने तुर्क, ईरानी और पाकिस्तानी अधिकारियों में इस्तांबुल-तेहरान-इस्लामाबाद रेल नेटवर्क को दोबारा चालू करने पर सहमति बन गई है. 2009 में शुरू की गई इस परियोजना का ट्रायल रन हो चुका है.
करीब 6,500 किलोमीटर लंबी इस रेल लाइन का 1,950 किलोमीटर हिस्सा तुर्की से 2,600 किलोमीटर ईरान से और 1,990 किलोमीटर पाकिस्तान से गुजरेगा. अधिकारियों का कहना है कि इस्तांबुल-तेहरान-इस्लामाबाद यानी आईटीआई रेल नेटवर्क को बहुत जल्द चालू कर दिया जाएगा. हालांकि यह चीन की महत्वाकांक्षी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव का हिस्सा नहीं है लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि आखिरकार यह उस में शामिल हो जाएगा.
अटलांटिक काउंसिल के साउथ एशिया सेंटर में ईरानी विशेषज्ञ फातेमेह अमान का कहना है कि अगर चीन और ईरान के बीच 400 अरब डॉलर की परियोजना पर डील हो जाती है तो चीन को आईटीआई जैसी परियोजनाओं की बहुत जरूरत होगी. इसके जरिए इलाके में कनेक्टिविटी का इस्तेमाल चीन को करना चाहेगा. अमान यह भी कहती हैं, "अगर चीन एशिया में अमेरिकी की भूमिका हथियाने में सफल हो जाता है तो उसे क्षेत्रीय देशों के बीच ज्यादा सहयोग की जरूरत होगी."
आसान सफर और बेहतर संपर्क
जानकारों का कहना है कि आईटीआई इन तीनों देशों के बीच संपर्क बढ़ाएगा और सफर को आसान करेगा. इस्तांबुल से इस्लामाबाद तक की यात्रा में समंदर के रास्ते से 21 दिन लगते हैं जो ट्रेन से महज 11 दिन में पूरी हो जाएगी. वारसॉ के वॉर स्टडी एकेडमी में वेस्ट एशिया एनेलिस्ट लुकास प्रिबिस्चेव्सकी का कहना है, "आईटीआई लंबी दूरी की बस सेवा की तुलना में सफर को आसान और सुरक्षित बनाएगा. यह तीर्थयात्रियों के लिए सफर को सस्ता और हवाई यात्रा की तुलना में ज्यादा मजेदार बना देगा."
अमान मानती हैं कि यह प्रोजेक्ट अगर काम करने लगा तो इसके कारण "तुर्की, ईरान और पाकिस्तान के बीच संपर्क नाटकीय रूप से बढ़ जाएगा. यह माल की ढुलाई, कंटेनरों की ढुलाई बढ़ाएगा और यात्रा का समय और खर्च घटेगा."
सुरक्षा का जोखिम
हालांकि इस यात्रा की सुरक्षा को लेकर कुछ सवाल उठ रहे हैं. इस्लामाबाद में विश्लेषक टॉम हुसैन इस परियोजना को लेकर सावाधान करते हैं, "बहुत सी अंतरराष्ट्रीय मालवाहक ट्रेन और गैस पाइपलाइन की परियोजनाएं राजनीतिक अस्थिरता के कारण इलाके में दशकों से धूल फांक रही हैं. इस वक्त भी आईटीआई का भविष्य दो अहम बातों पर निर्भर करेगाः ईरान से अमेरिकी प्रतिबंधों का हटना और अफगान युद्ध का ख्तम होना. इसके साथ ही रेल पोर्ट इंफ्रास्ट्रक्चर को आर्थिक रूप से मुफीद बनाने के लिए भारी निवेश की जरूरत होगी."
साथ ही सुरक्षा को लेकर भी जोखिम हो सकता है क्योंकि आईटीआई ऐसे इलाकों से गुजरेगी जो इस्लामी चरमपंथियों के चंगुल में है. इस्लामिक स्टेट का चरमपंथी गुट खासतौर से पाकिस्तान के पश्चिमी बलूचिस्तान प्रांत और ईरान में सक्रिय है. इसके साथ ही बलूचिस्तान के अलगाववादी भी नियमित रूप से प्रांत में सुरक्षाबलों को निशाना बनाते रहते हैं. यह प्रांत चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारे के लिहाज से बेहद अहम है.
प्रिबिस्चेव्सकी का कहना है, "सुरक्षा का जोखिम तो बहुत बड़ा है. आईटीआई चरमपंथियों का आसानी से निशाना बन सकता है." हालांकि इसके साथ ही उनका यह भी कहना है कि अधिकारी कुछ कदम उठा कर खतरे को कम कर सकते हैं.
अमान कहती हैं कि ईरान और पाकिस्तान के बलूचिस्तान इलाके में सीमा पार से होने वाले हमलों की जद में भी रेल सेवा आ सकती है, "हालांकि हमने देखा है कि आपसी आर्थिक हित सुरक्षा की स्थिति को बेहतर बनाने में भूमिका निभाते हैं." उनका कहना है कि इन देशों की सरकारों को यह सुनिश्चित करना होगा कि स्थानीय लोग इन परियोजनाओं से जुड़ें. अमान के मुताबिक, "इसके लिए राजनीतिक सुधारों और सुरक्षा की धारणा को बदलने की जरूरत होगी."
पैसे कहां से आएगा
भारी आर्थिक संकट देख रहा पाकिस्तान इस खर्चीली परियोजना के लिए पैसे कहां से लाएगा? देश की स्थानीय रेलसेवा बुरे हाल में है और बलूचिस्तान में रेल लाइनों को बेहतर बनाना एक बड़ी चुनौती होगी. प्रिबिस्चेव्स्की कहते हैं, "ईरान, पाकिस्तान और तुर्की के लिए यह सबसे किफायती परियोजना नहीं है लेकिन फिर भी यह जरूरी है. आने वाले सालों में हम इसके आर्थिक फायदे देखेंगे."
हुसैन का मानना है कि इस परियोजना को भारी पैमाने पर विदेशी और निजी निवेश की जरूरत होगी. यहीं पर चीन के बेल्ट एंड रोड एनिशिटिव को भूमिका निभानी होगी. यह आईटीआई में उसे प्रमुख भूमिका दे सकता है जैसा कि यह यूरेशियाई संपर्क में दे रहा है. हालांकि मीडिया रिपोर्टों में कहा जा रहा है कि चीन इस परियोजना को सिर्फ राजनीतिक समर्थन ही देना चाहता है. चीन चाहता है कि इस परियोजना का खर्च पाकिस्तान और तुर्की उठाएं.
नीदरलैंड्स में प्रधानमंत्री रुटे सरकार ने इस्तीफा दे दिया है. संसदीय जांच में पता चला कि सरकारी घोटाले में हजारों परिवारों पर गलत रूप से धोखाधड़ी का आरोप लगा कर बच्चों के लिए मिलने वाला भत्ता लौटाने पर मजबूर किया गया.
डॉयचेवैले पर चारु कार्तिकेय का लिखा-
प्रधानमंत्री मार्क रुटे और उनके सभी मंत्रियों ने शुक्रवार को इस्तीफा दे दिया है. इसकी वजह सरकार द्वारा बच्चों का ख्याल रखने के लिए दी जाने वाली माली मदद में हुआ एक घोटाला है. अब 17 मार्च को देश में चुनाव होंगे जिसके बाद नए गठबंधन का फैसला होगा. तब तक रुटे सरकार बतौर केयरटेकर भार संभालेगी.
पिछले महीने एक संसदीय जांच में पता चला था कि लगभग 10,000 परिवारों पर अनुचित रूप से धोखाधड़ी का आरोप लगा कर उन्हें सब्सिडी में हासिल किए हजारों यूरो सरकार को वापस देने पर मजबूर किया गया.
इसकी वजह से उन परिवारों की वित्तीय परिस्थितियों पर असर पड़ा और वे बेरोजगारी, दिवालियापन और यहां तक की तलाक की कगार तक पहुंच गए. रिपोर्ट में लगभग एक दशक तक चलने वाले इस घोटाले और उसके नतीजों को "अभूतपूर्व अन्याय" बताया गया. इस सप्ताह सरकार पर इस घोटाले को लेकर दबाव बढ़ गया. रुटे के गठबंधन के साझेदारों ने कहा कि सरकार के इस्तीफा देने की जरूरत पर गंभीरता से विचार होना चाहिए.
विपक्ष में बैठी लेबर पार्टी के नेता ने गुरुवार को पूरे मामले में उनकी भूमिका को लेकर अपने पद से इस्तीफा दे दिया. रुटे ने गुरुवार देर रात को अपनी पार्टी के मंत्रियों के साथ बैठक की और उसके बाद पत्रकारों को बताया कि उन्हें उम्मीद है कि शुक्रवार सुबह कैबिनेट की निर्धारित बैठक में उनकी सरकार के भविष्य का फैसला हो जाएगा. सत्तारुढ़ गठबंधन में शामिल दूसरी पार्टियों के मंत्रियों ने कहा कि उन्होंने अपना मत बना लिया है, लेकिन इसके आगे और कुछ कहने से इनकार कर दिया.
2012 के बाद देश में सरकार गिरने का यह पहला मौका है. उस समय रुटे ने पहली बार अपनी सरकार बनाई थी जो आर्थिक संकट के दौरान खर्च कम करने के कठिन उपायों पर मतभेदों को लेकर गिर गई थी. ताजा संकट ऐसे समय में आया है जब देश अगले संसदीय चुनावों से बस दो महीने दूर है. 17 मार्च को देश में संसदीय चुनाव होने हैं.
इस समय नीदरलैंड्स में कोरोना महामारी के समय की अभी तक की सबसे कठोर तालाबंदी लागू है. फिर भी संक्रमण के मामले बढ़ रहे हैं और रुटे और भी कड़े प्रतिबंधों पर विचार कर रहे हैं. गुरुवार को उनके इस्तीफे के बारे में पूछे गए सवालों के जवाब में रुटे ने कहा था कि अगर उनके मंत्रिमंडल को कार्यवाहक स्थिति में भी डाल दिया गया तो भी वे और उनके मंत्री कोविड-19 संकट के प्रबंधन के लिए पूरी तरह से सक्षम रहेंगे.(dw.com)
उत्तर कोरिया ने पनडुब्बी से लॉन्च होने वाली बैलिस्टिक मिसाइलों के साथ अपने नए हथियारों की परेड कराई है. परमाणु कार्यक्रमों से दूर जाने की दुनिया की मांग को अनदेखा कर किम जोंग उन अपनी सैन्य ताकतों को बढ़ाने में जुटे हैं.
सरकारी मीडिया का कहना है कि गुरुवार की रात सत्ताधारी पार्टी की एक अहम बैठक के बाद हुई सैन्य परेड में देश के नेता किम जोंग उन ने प्रमुख रूप से हिस्सा लिया. इस दौरान उन्होंने परमाणु हथियार और मिसाइल कार्यक्रमों को जितना संभव है उतना बढ़ाने की शपथ ली. उत्तर कोरिया के परमाणु कार्यक्रम को कई एशियाई देश और अमेरिका इलाके के लिए खतरे के रूप में देखते हैं. उत्तर कोरिया इसे अमेरिकी खतरे से लड़ने का सामान मानता है.
आठ दिनों तक चली वर्कर्स पार्टी की बैठक के दौरान किम जोंग उन ने देश की अर्थव्यवस्था में सुधार की योजना भी पेश की. अमेरिकी प्रतिबंधों और परमाणु कार्यक्रमों ने देश की अर्थव्यवस्था का बुरा हाल कर रखा है. महामारी से पीड़ित होने के कारण सीमा पर तालाबंदी है और प्राकृतिक आपदाओं ने उत्तर कोरिया की फसलें भी चौपट कर दी हैं.
नाकाम हुई कूटनीति
आर्थिक दिक्कतों के कारण किम जोंग उन के पास दिखाने के लिए अमेरिका के साथ ट्रंप के दौर में चली अपनी कूटनीति का कोई बेहतर नतीजा नहीं है. यह कूटनीति वैसे भी दो मुलाकातों के बाद नाकाम हो गई. उत्तर कोरिया को परमाणु हथियार कार्यक्रम छोड़ने के बदले प्रतिबंधों से छूट मिलने की बात थी लेकिन कुछ मुद्दों पर असहमति के कारण यह संभव नहीं हो सका. इसकी वजह से 9 साल के शासन में किम जोंग उन को कठिन वक्त का सामना करना पड़ा है.
परेड के दौरान दिए किम जोंग उन के बयानों का एक मकसद अमेरिका में आने वाल बाइडेन प्रशासन पर दबाव बढ़ाना हो सकात है. बाइडेन उत्तर कोरियाई नेता को "ठग" कह चुके हैं और वो उत्तर कोरिया की परमाणु क्षमताओं पर सार्थक रोक नहीं लगा पाने के लिए ट्रंप की आलोचना करते रहे हैं. किम जोंग उन ने बाचीत से इनकार नहीं किया है लेकिन कहा है कि द्विपक्षीय संबंध इस बात पर निर्भर करेंगे कि अमेरिका उत्तर कोरिया के प्रति अपनी खराब नीतियां छोड़ता है या नहीं.
उत्तर कोरिया के सरकारी टीवी चैनल ने शुक्रवार को परेड की तस्वीरें दिखाईं जिनमें हजारों आम लोग और सैनिक आतिशबाजी के बीच किम जोंग उन को एक इमारत से निकाल कर किम जोंग इल चौराहे पर बने मंच आते दिखे. फर की काली टोपी और चमड़े का कोट पहने किम जोंग उन ने मुस्कुराते हुए हाथ हिला कर जनता और सैनिकों का अभिवादन किया. सरकारी मीडिया में आई खबरें और वीडियो से ऐसा लगता है कि इस दौरान किम जोंग उन ने कोई भाषण नहीं दिया. इस दौरान सैन्य विमानों ने डार्क स्काई के फॉर्मेशन में वर्कर्स पार्टी का प्रतीक चिन्ह आसमान में बनाते हुए उड़ान भरी. हाथ में झंडे लेकर खड़े लोगों ने कोराना वायरस के खिलाफ घरेलू अभियान के बावजूद कोई मास्क नहीं पहन रखा था.
कैसे कैसे हथियार
परेड में देश के कई बेहद उन्नत हथियारों की नुमाइश हुई जिनमें पनडुब्बी से दागी जाने में सक्षम मिसाइलें सबसे प्रमुख थीं. समाचार एजेंसी केसीएनए ने इसे "दुनिया का सबसे ताकतवर हथियार" कहा है. उत्तर कोरिया ने जिस हथियार का पहले परीक्षण किया था उसकी तुलना में यह बड़ा दिखाई दे रहा था. इसके अलावा भी उत्तर कोरिया ने ठोस ईंधन से चलने वाले कई हथियार परेड में दिखाए जिन्हें मोबाइल या फिर लैंड लॉन्चर से दागा जा सकता है. इन हथियारों से उत्तर कोरिया जापान और दक्षिण कोरिया में हमले कर सकता है जिनमें अमेरिकी सेना के अड्डे भी शामिल हैं.
सरकारी मीडिया में जारी तस्वीरों में ऐसी कोई नहीं है जिनसे कि इंटरकॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल की पहचान की जा सके. इससे पहले अक्टूबर में भी सेना की एक परेड हुई थी जिसे अब तक की सबसे बड़ा कहा जाता है. इसमें उत्तर कोरिया ने इंटरकॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल का भी प्रदर्शन किया था. उत्तर कोरिया ने 2017 में ऐसी मिसाइलों का परीक्षण किया था जो अमेरिका तक मार करने में सक्षम हैं. वह कई सालों से ऐसी बैलिस्टिक मिसाइलों को तैयार करने की कोशिश में है जिन्हें पनडुब्बी से दागा जा सके. इन मिसाइलों को लेकर उसके पड़ोसी देशों में काफी चिंता है क्योंकि पानी के भीतर से दागे जाने के कारण इन्हें लक्ष्य पर गिरने से पहले पता लगा कर खत्म करना बहुत मुश्किल होगा. हालांकि कई विशेषज्ञ मान रहे हैं कि ये हथियार महज दिखावे के साबित हो सकते हैं. उनके मुताबिक इनके परीक्षण और तैनाती से पहले इन्हें और ज्यादा विकसित करने की जरूरत होगी.
उत्तर कोरिया इन हथियारों के अलावा जासूसी के उपग्रह और ध्वनि की गति से तेज चलने वाले हथियारों के निर्माण की तैयारी में भी जुटा है. अभी यह साफ नहीं है कि वह उन्हें स्वतंत्र रूप से विकसित कर रहा है या फिर उसे दूसरे देशों से भी मदद मिल रही है.
वाशिंगटन, 15 जनवरी | अमेरिका में 6 जनवरी को कैपिटल हिल हमले में शामिल, एक शख्स जिसने अपने चेहरे को नीले और लाल रंग से रंगा हुआ था और फर वाला हैट पहन रखा था, ने निवर्तमान राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से उसे क्षमा करने की अपील की है। हिंसा के दौरान जैकब एंथनी चैंसली की तस्वीरें इंटरनेट पर वायरल हो गई, जो कि ट्रंप द्वारा 2020 परिणाम के खिलाफ स्टैंड लेने के लिए लोगों से अपील करने के बाद हुई थी।
हिल न्यूज वेबसाइट के मुताबिक, चैंसली ने 9 जनवरी को अधिकारियों के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। उसने कई आरोपों का सामना किया, जिनमें जानबूझकर किसी भी प्रतिबंधित इमारत या मैदान में बिना किसी कानूनी अधिकार के प्रवेश करना और कैपिटल ग्राउंड पर हिंसक प्रवेश और अव्यवस्थित आचरण शामिल हैं।
क्षमा के लिए एक दलील देते हुए, चैंसली के वकील अल्बर्ट वॉटकिंस ने गुरुवार को एक स्थानीय समाचार आउटलेट को बताया कि "राष्ट्रपति के शब्दों और निमंत्रण का अर्थ कुछ तो अर्थ होगा।"
यह कहते हुए कि चैंसली 6 जनवरी की हिंसा में शामिल नहीं था, वाटकिंस ने कहा कि शांतिपूर्ण और कॉम्प्लीएंट फैशन को देखते हुए, जिसमें चैंसली ने खुद को शामिल किया, राष्ट्रपति के लिए यह उचित और सम्मानजनक होगा कि चैंसली और अन्य समान विचारधारा वाले, शांतिपूर्ण व्यक्यिों को क्षमा कर दें।
दंगों के ठीक तुरंत बाद, चैंसली ने एनबीसी न्यूज को बताया कि उसने कुछ गलत नहीं किया था। (आईएएनएस)
इस्लामाबाद, 15 जनवरी | पाकिस्तान के शिक्षा मंत्री शफकत महमूद ने शुक्रवार को इस बात की पुष्टि की है कि योजनानुसार कक्षा 9 से 12 तक की कक्षाएं 18 जनवरी से शुरू होंगी, जबकि देशभर के विद्यालयों में प्राइमरी की कक्षाएं 1 फरवरी से शुरू होंगी। द एक्सप्रेस ट्रिब्यून की रिपोर्ट के मुताबिक, नेशनल कमांड एंड ऑपरेशन सेंटर (एनसीओसी) की एक बैठक के बाद मीडिया से मुखातिब होते हुए उन्होंने कहा कि 1 से 8वीं तक की कक्षाएं 1 फरवरी से शुरू होंगी।
उन्होंने आगे कहा कि देश में स्वास्थ्य स्थिति की समीक्षा करने के बाद प्राइमरी कक्षाओं को फिर से शुरू करने का निर्णय लिया गया है।
4 जनवरी को शिक्षा के क्षेत्र से संबंधित मंत्रियों ने चरणबद्ध तरीके से शैक्षिक गतिविधियों को पुन: शुरू करने का ऐलान किया था। (आईएएनएस)
इस्लामाबाद, 15 जनवरी | मलेशियाई अधिकारियों ने शुक्रवार को कुआलालंपुर हवाई अड्डे पर पाकिस्तान इंटरनेशनल एयरलाइंस (पीआईए) के एक विमान को जब्त कर लिया। ऐसा विमान के लीज के बकाये का भुगतान नहीं करने की वजह से किया गया। जियो न्यूज की रिपोर्ट ने सूत्रों का हवाला देते हुए कहा, "एक स्थानीय मलेशियाई अदालत के आदेश पर पीआईए विमान को जब्त कर लिया गया।"
पीआईए ने 2015 में एक वियतनामी कंपनी से जब्त बोइंग -777 सहित दो विमान किराए पर लिए थे।
विमान को तब जब्त किया गया, जब यात्री इसमें पहले ही सवार हो चुके थे।
सूत्रों ने कहा कि विमान का 18 सदस्यीय स्टाफ भी जब्ती के कारण कुआलालंपुर में फंसा हुआ है, और अब प्रोटोकॉल के अनुसार 14 दिनों के लिए क्वारंटीन में रहना होगा।
एक ट्विटर पोस्ट में, पीआईए ने कहा, "यात्रियों की देखभाल की जा रही है और उनकी यात्रा के लिए वैकल्पिक व्यवस्था को अंतिम रूप दिया गया है।" (आईएएनएस)
अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडेन ने 1.9 लाख करोड़ डॉलर की योजना पेश की है. इसे वैक्सीन के प्रसार और महामारी के कारण आर्थिक संकट से जूझ रहे लोगों को राहत देने में खर्च किया जाएगा.
इस योजना को "अमेरिकन रेस्क्यू प्लान" कहा जा रहा है. जो बाइडेन ने अपने 100 दिन के कार्यकाल में 10 कोरड़ वैक्सीन लगाने का लक्ष्य तय किया है और यह प्रस्ताव उसे पूरा करने की दिशा में अहम भूमिका निभाएगा. इसके सात ही वसंत का मौसम आने तक अमेरिका के सारे स्कूलों को खोलने की दिशा में भी अहम प्रगति इसी योजना का हिस्सा है.
इसके साथ ही अर्थव्यवस्था को स्थिरता देने के लिए दूसरे दौर की मदद और स्वास्थ्य सेवाओं को महामारी से जूझने में ज्यादा सक्षम बनाना भी योजना में शामिल है. बाइडेन ने गुरुवार को देश को संबोधित करते हुए कहा, "इस वक्त इसके लिए काम करना ना सिर्फ आर्थिक रूप से अनिवार्यता है बल्कि यह हमारी नैतिक जिम्मेदारी भी है." इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि उनकी योजना पर अमल "इतना आसन नहीं होगा."
बाइडेन ने ज्यादातर अमेरिकी लोगों को 1400 डॉलर का चेक देने का प्रस्ताव रखा है. यह हाल ही में प्रस्तावित 600 डॉलर के चेक से अलग होगा यानी कुल मिला कर लोगों को 2000 डॉलर की रकम मिलेगी जिसकी मांग बाइडेन कर रहे हैं. इसके साथ ही बेरोजगारी भत्ते को तात्कालिक रूप से थोड़ा बढ़ाया जाएगा. साथ ही नौकरी से हटाने और प्रतिष्ठानों को समय से पहले बंद करने पर लगी रोक सितंबर तक के लिए बढ़ाई जाएगी. दिसंबर में प्रस्तावित डेमोक्रैटिक नीति में सुझाए रास्तों पर चलते हुए देश में न्यूनतम मजदूरी 15 डॉलर प्रति घंटे की जा रही है और साथ ही कामगारों के लिए वेतन सही छुट्टी की संख्या और बच्चों वाले परिवारों के लिए टैक्स में छूट भी बढ़ेगी. महिलाओं के लिए काम पर जाना आसान होगा जिससे अर्थव्यवस्था के सुधार में मदद मिलेगी.
संसद से पास कराने की कवायद
आर्थिक रूप से लुभावना दिख रहा प्रस्ताव राजनीतिक रूप से कैसे आगे बढ़ेगा फिलहाल यह साफ नहीं है. संयुक्त बयान में संसद के निचले सदन की स्पीकर नैन्सी पेलोसी और सीनेट में डेमोक्रैटिक नेता चक शुमर ने बाइडेन की उदार प्राथमिकताओं के लिए तारीफ की है. उन्होंने यह भी कहा है कि वे अगले बुधवार को बाइडेन के शपथ ग्रहण के बाद संसद में इसे तेजी से पास कराने के लिए काम करेंगे.
हालांकि संसद के दोनों सदनों में डेमोक्रैटिक पार्टी के पास मामूली बढ़त है और रिपब्लिकन पार्टी कई मुद्दों पर उन्हें घेरने की कोशिश करेगी. इनमें न्यूनतम मजदूरी को बढ़ाने से लेकर राज्यों को ज्यादा धन देने जैसे मुद्दे हैं. इसके साथ ही इसमें व्यापार को दायित्व से मिलने वाली सुरक्षा को बढ़ाने जैसी उनकी प्राथामिकताओं को शामिल कराना भी होगा.
टेक्सस के रिपब्लिकन सीनेटर जॉन कॉर्निन ने ट्वीट किया है, "याद रखिए कि दोनों दलों ने 900 अरब डॉलर के राहत बिल को महज 18 दिन पहले ही कानून के रूप में पारित किया है." हालांकि बाइडेन का कहना है कि वह केवल शुरुआती भुगतान था. इसके साथ ही बाइडेन ने अर्थव्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए कई और बड़े उपायों का अगले महीने एलान करने का वादा किया है. बाइडेन का कहना है, "गंभीर मानवीय संकट साफ तौर पर दिख रहा है और बर्बाद करने के लिए वक्त नहीं है. हमें काम करना है और तुरंत काम करना है." बाइडेन लोगों को भरोसा दिला रहे हैं कि वे उनकी उम्मीदें पूरी करने में सफल होंगे. इसके साथ ही उनका यह भी कहना है कि इन सारे कदमों के बावजूद वक्त लगेगा.
पैसा कहां से आएगा
जो बाइडेन के राहत बिल के लिए पैसा कर्ज लेकर दिया जाएगा. महामारी का सामना करने के उपायों के कारण सरकार पर पहले से ही हजारों अरब डॉलर का कर्ज चढ़ चुका है. बाइडेन के सहयोगियों का कहना है कि अतिरिक्त खर्चों और कर्ज के जरिए वे अर्थव्यवस्था को गहरे दलदल में उतरने से बचा लेंगे. कर्ज पर ब्याज की दर कम है इसलिए उसका बोझ संभाला जा सकता है. बाइडेन लंबे समय से कहते आ रहे हैं कि अर्थव्यवस्था का उपचार बहुत जटिल रूप में कोरोना वायरस पर नियंत्रण से जुड़ा है.
उनकी यह सोच अमेरिका के सबसे मजबूत व्यापार संघ यूएस चेम्बर ऑफ कॉमर्स की सोच से मेल खाती है जो पारंपरिक रूप से डेमोक्रैटिक पार्टी की विरोधी रही है. गुरुवार को चेम्बर की तरफ से जारी बयान में कहा गया, "हमारी अर्थव्यवस्था को बहाल करने से पहले हमें निश्चित रूप से कोविड को हटाना होगा और इसके लिए टीकाकरण के काम को बहुत तेजी से लागू करना होगा." चेम्बर ने बाइडेन के बयान का स्वागत किया है. हालांकि इस पर समर्थन की मुहर नहीं लगाई है.
कहां खर्च होगा पैसा
बाइडेन ने योजना ऐसे वक्त में पेश की है जब विभाजित देश कोरोना संकट के भयानक दौर से गुजर रहा है. अब तक अमेरिका में कोविड की चपेट में आ कर 385,000 से ज्यादा लोग मर चुके हैं. गुरुवार को सरकार के आंकड़ों में बताया गया कि इस सप्ताह बेरोजगारी भत्ता मांगने वालों की संख्या में 965,000 का इजाफा हुआ. यह संख्या बता रही है कि संक्रमण में तेजी आ रही है और ऐसे में व्यापारी लोगों की नौकरी से छुट्टी कर रहे हैं. बाइडेन की योजना में 400 अरब डॉलर की रकम सीधे कोविड से लड़ने में जाएगी जबकि बाकी पैसा राज्यों और स्थानीय प्रशासन को मदद देने और आर्थिक राहत के उपायों में खर्च होंगे.
कोविड के लिए खर्च होने वाले पैसे में करीब 20 अरब डॉलर की रकम तो केवल टीकाकरण को ज्यादा मजबूती से फैलाने पर खर्च होगी. इनमें से 8 अरब डॉलर की रकम के लिए संसद पहले ही मंजूरी दे चुकी है. बाइडेन ने बड़े पैमाने पर टीकाकरण के केंद्र खोलने की योजना बनाई है. साथ ही दूरदराज के इलाकों के लिए मोबाइल टीकाकरण केंद्र बनाए जाएंगे. अमेरिका में अब तक वैक्सीन की 3 करोड़ डोज पहुंच चुकी हैं. देश के 1.1 करोड़ लोगों को वैक्सीन की दो में से एक डोज दी जा चुकी है. योजना में एक बड़ी रकम टेस्ट की सुविधा बढ़ाने पर भी खर्च होगी.
एनआर/आईबी (एपी)
दुबई, 15 जनवरी| दुबई में रहने वाली एक 15 वर्षीय भारतीय लड़की ने एक अभियान शुरू किया है जिसके माध्यम से उसने चार वर्षों से अधिक समय में 25 टन से अधिक ई-कचरे को रीसाइकल के लिए इकट्ठा करने में मदद की है। एक मीडिया रिपोर्ट में शुक्रवार को यह जानकारी दी गई। गल्फ न्यूज ने बताया कि जीईएमएस मॉडर्न एकेडमी की 10वीं कक्षा की छात्रा रीवा तुलपुले के मुताबिक, कई लोग पुराने उपकरण ऐसे ही फेंक देते हैं क्योंकि उन्हें रिसाइकल करने के विकल्पों की जानकारी नहीं होती है।
इसलिए, वह एकत्रित चीजों को सौंपने के लिए दुबई स्थित एनवायरोसर्व के साथ संपर्क में आई, जो दुनिया के सबसे बड़े इलेक्ट्रॉनिक्स रिसाइकिलर्स और प्रोसेसर में से एक है, जिसमें 2,000 से अधिक टूटे हुए लैपटॉप, टैब, मोबाइल फोन, प्रिंटर और कीबोर्ड शामिल थे।
उसके अभियान, वीकेयरडीएक्सबी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के माध्यम से जागरूकता बढ़ाने के बाद स्वयंसेवकों को सूचीबद्ध किया है।
गल्फ न्यूज ने किशोरी के हवाले से कहा, "जब हम घर से जा रहे थे, मैंने अपनी मां से पूछा था कि हम उन वस्तुओं का निपटान क्यों नहीं कर सकते हैं जिनकी हमें जरूरत नहीं है। उन्होंने मुझे बताया कि इनसे एक विशेष तरीके से निपटने की जरूरत है लेकिन हमें अच्छे से पता नहीं था कि कैसे किया जाय। इससे मुझे उत्सुकता हुई और मैंने इसमें कुछ रिसर्च करने का फैसला किया।" (आईएएनएस)
जकार्ता, 15 जनवरी| इंडोनेशिया के पश्चिम सुलावेसी प्रांत में शुक्रवार को रिक्टर पैमाने पर 6.2 तीव्रता का भूकंप आने के बाद कम से कम 35 लोग मारे गए। राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन एजेंसी ने यह जानाकरी दी। पश्चिम सुलावेसी प्रांतीय आपदा प्रबंधन एजेंसी के प्रमुख डारनो माजिद ने कहा, "मजेने जिले में नौ लोगों की मौत हो गई और मामजु जिले में 26 अन्य लोगों की मौत हो गई। कुल 35 लोगों की मौत हुई है।"
समाचार एजेंसी सिन्हुआ के अनुसार, 637 लोग घायल हुए और करीब 15,000 लोगों को 10 इवैक्युशन पोस्ट पर पहुंचाया गया।
भूकंप से बिजली, संचार, और सड़कें कटने के अलावा लगभग 300 घरों, होटलों, सरकारी भवनों, अस्पतालों और छोटे बाजारों को भी नुकसान पहुंचा है।
भूकंप बीती रात 2.28 बजे आया।
गुरुवार को, 5.9 तीव्रता के भूकंप के झटके उसी स्थान पर दोपहर 2.35 बजे महसूस किए गए थे।
मौसम विज्ञान, क्लाइमेटोलॉजी और भूभौतिकी एजेंसी ने उल्लेख किया कि गुरुवार से एक ही स्थान पर 28 बार भूकंप आए। (आईएएनएस)
न्यूयॉर्क, 15 जनवरी | न्यूयॉर्क राज्य के एक गांव में एक भारतीय मूल के व्यक्ति ने अपनी बेटी और सास की हत्या करने के बाद खुदकुशी कर ली। मीडिया रिपोर्टों में पुलिस के हवाले से यह जानकारी दी गई। रिपोर्टों के मुताबिक, 57 वर्षीय भूपिंदर सिंह ने अपनी 14 वर्षीय बेटी जसलीन कौर और अपनी सास मंजीत कौर की बुधवार की रात राज्य की राजधानी एल्बनी के पास कैसलटन ऑन हडसन में अपने घर में गोली मारकर हत्या करने के बाद खुदकुशी कर ली।
सीबीएस6 टीवी के मुताबिक, उसकी पत्नी 40 वर्षीय रशपाल कौर को हाथ में गोली लगी थी, लेकिन वह बचने में कामयाब रही।
एक पड़ोसी, जिम लंडस्ट्रॉम ने द एल्बनी टाइम्स-यूनियन अखबार को बताया कि घर पर शायद लड़ाई-झगड़ा हुआ था।
लंडस्ट्रॉम ने अखबार को बताया कि रशपाल कौर उन्हें और उनकी पत्नी को बताती थी कि "मेरे पास खाने के लिए कुछ नहीं है। वह मुझे कहीं जाने नहीं देते और मैं अपनी कार नहीं ड्राइव कर सकती।"
अखबार ने कहा कि पेय बेचने वाले एक स्टोर के मालिक 57 वर्षीय भूपिंदर सिंह पर 2016 में दुष्कर्म का आरोप लगाया गया था, लेकिन अगले साल उनके मुकदमे के बाद उन्हें बरी कर दिया गया था।
अखबार ने कहा कि जसलीन कौर की मौत काफी दुख भरी है और स्थानीय स्कूलों के अधीक्षक जेसन शेवर ने एक बयान में कहा कि "शब्द इस समय हमें महसूस होने वाले सदमे, दर्द और शोक को व्यक्त नहीं कर सकते हैं। हम सभी एक तेजतर्रार युवा लड़की की मौत के दुख से उबरने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।" (आईएएनएस)
गूगल ने ब्लॉग पोस्ट में कहा है कि उसने कर्ज देने वाले कुछ ऐप्स को उपयोगकर्ताओं की सुरक्षा के नियमों का उल्लंघन करने पर प्ले स्टोर से हटा दिया है. भारत में कुछ लोन ऐप्स बिना नियामक की मंजूरी के कर्ज दे रहे थे.
गूगल में उत्पाद, एंड्रॉयड सुरक्षा और गोपनीयता की उपाध्यक्ष सुजैन फ्रे ने ब्लॉग पोस्ट में लिखा, "हमने भारत में उपयोगकर्ताओं और सरकारी एजेंसियों द्वारा दिए गए फीडबैक के बाद सैकड़ों निजी लोन देने वाले ऐप्स की समीक्षा की है." हाल ही में रॉयटर्स द्वारा जांच में पाया गया था कि कम से कम 10 ऋण देने वाले ऐप्स ने गूगल के नियमों का उल्लंघन किया है. गूगल के नियम के मुताबिक प्ले स्टोर पर ऐसे किसी लोन देने वाले ऐप को नहीं डाला जा सकता है जो 60 दिन से कम का लोन देते हैं या फिर वे नियमित नहीं हैं.
जांच में यह भी बात सामने आई थी कि ऋण देने वाले ऐप्स ने कर्जदारों की सुरक्षा के लिए बनाए गए आरबीआई के नियमों को अनदेखा किया. गूगल ने उन ऐप्स की संख्या के बारे में विस्तार से नहीं बताया जो प्ले स्टोर से हटाए गए हैं. बिना किसी पूर्व सूचना के गूगल ने इन ऐप्स को प्ले स्टोर से हटाया है. गूगल ने कंपनियों से संपर्क किया है और उन्हें स्पष्ट करने के लिए कहा है कि क्या वे नियमों का पालन कर रहे हैं या नहीं. गूगल ने कहा कि अगर वे नियमों का पालन नहीं कर रहे हैं तो उन्हें प्ले स्टोर से हटा दिया जाएगा. कंपनियों को भेजे ईमेल में गूगल ने लिखा, "हम आपको इस ईमेल के मिलने के पांच दिनों के भीतर पुष्टि करने के लिए कहते हैं कि क्या आपको आरबीआई से एनबीएफसी (गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी) के रूप में मान्यता प्राप्त है या ऐसी सेवाओं की पेशकश करने के लिए सरकारी कानून के तहत पंजीकृत हैं, या किसी पंजीकृत एनबीएफसी या बैंक के नामित एजेंट के रूप में आपके ऐप पर सेवाएं दी जा रही हैं."
कंपनियों को भेजे ईमेल को रॉयटर्स ने देखा है. इस ईमेल में लिखा है, "अगर हमें इस ईमेल के पांच दिनों के भीतर आपसे यह पुष्टि नहीं मिलती है तो आपका ऐप गूगल प्ले से हटा दिया जा सकता है."
लोन ऐप वाले करते हैं परेशान!
फटाफट लोन देने देने वाले ऐप्स उस वक्त अधिकारियों की नजरों में आए जब उनके एजेंट द्वारा कर्जदारों को परेशान किया गया और कुछ कर्जदारों ने बेइज्जत होने के बाद खुदकुशी भी कर ली. आरोप है कि ऐप्स के एजेंट कर्ज वसूली करने के लिए गैर कानूनी तरीके अपनाते और कर्जदार को परेशान करते हैं और उन्हें पैसे लौटाने के लिए धमकी तक दे डालते. रॉयटर्स ने कम से कम 50 कर्ज देने वाले ऐप्स की समीक्षा की है, उसने पाया कि सभी ऐप्स कर्जदारों को फोन कॉन्टैक्ट तक पहुंच की इजाजत मांगते हैं, कर्जदारों का आरोप है कि इसका इस्तेमाल लोन चुकाने में देरी या भुगतान में चूक करने पर कर्ज वसूलने वाले एजेंट द्वारा किया जाता है.
गूगल का कहना है कि डेवलपर्स को केवल उन अनुमतियों का इस्तेमाल करना चाहिए जो मौजूदा सुविधाओं और सेवाओं को लागू करने के लिए जरूरी हैं.
इस बीच आरबीआई ने इस तरह के लोन देने वाले डिजिटल ऐप पर लगाम कसने के लिए एक वर्किंग समूह का गठन किया है. यह समूह इस तरह के ऐप के कामकाज के तरीकों की जांच करेगा. समूह को जांच के लिए तीन महीने का वक्त दिया गया है और इसके बाद वह अपनी रिपोर्ट आरबीआई को सौपेंगा.
लोन ऐप के एजेंटों द्वारा कथित तौर पर परेशान किए जाने के बाद तेलगाना में ही कम से कम छह लोगों ने खुदकुशी कर ली है. तेलंगाना पुलिस ने अब तक फटाफट लोन देने वाले ऐप्स से जुड़े चार चीनी नागरिकों को गिरफ्तार किया है.
एए/सीके (रॉयटर्स)
डॉनल्ड ट्रंप ने अपने कार्यकाल के आखिरी दिनों में चीनी कंपनियों के खिलाफ अपने अभियान का और विस्तार कर दिया है. रक्षा विभाग ने शाओमी समेत नौ और चीनी कंपनियों को चीनी सेना से संबंध रखने के संदेह में ब्लैकलिस्ट कर दिया है.
नौ कंपनियों की इस नई सूची में चीन की तीसरी सबसे बड़ी राष्ट्रीय तेल कंपनी चाइना नेशनल ऑफशोर ऑयल कॉर्प (सीएनओओसी) और हवाई जहाज बनाने वाली सरकारी कंपनी कमर्शियल एयरक्राफ्ट कॉर्पोरेशन ऑफ चाइना भी शामिल हैं. इस कार्रवाई के बाद अब अमेरिकी निवेशकों को इन कंपनियों में अपनी हिस्सेदारी खत्म कर लेनी होगी.
ट्रंप प्रशासन ने नवंबर 2020 में एक आदेश निकाला था जिसके तहत अमेरिकी निवेशकों के लिए नवंबर 2021 तक इस तरह ब्लैकलिस्ट की गई सभी चीनी कंपनियों में से अपनी हिस्सेदारी को खत्म करना अनिवार्य कर दिया गया था. सीएनओओसी को अलग से एक आर्थिक ब्लैकलिस्ट में भी डाल दिया गया है, जिसकी वजह से अमेरिकी कंपनियां अब सरकार की अनुमति के बिना उस कंपनी को ना कुछ निर्यात कर पाएंगी और ना प्रौद्योगिकी का हस्तांतरण.
दिसंबर 2020 में ही ट्रंप प्रशासन ने 60 चीनी कंपनियों को इस सूची में डाला था. शाओमी ने तुरंत टिप्पणी के लिए किए गए अनुरोध पर प्रतिक्रिया नहीं दी. मार्केट रिसर्च कंपनी गार्टनर की जानकारी के अनुसार शाओमी ने 2020 की तीसरी तिमाही में एप्पल को पीछे छोड़ दिया था और बिक्री के लिहाज से दुनिया की तीसरे नंबर की स्मार्टफोन कंपनी बन गई थी. हुआवे को जब अमेरिका ने ब्लैकलिस्ट किया था उसके बाद से कंपनी की बिक्री को नुकसान पहुंचा है.
सरकार के कदम के बाद गूगल ने भी हुआवे के स्मार्टफोनों को आवश्यक सुविधाएं देना बंद कर दिया था. इससे भी हुआवे को बहुत नुकसान पहुंचा था. इस से शाओमी का मार्केट शेयर बढ़ा था लेकिन अब उसके खिलाफ भी कार्रवाई कर दी गई है तो अब देखना होगा कि उसका क्या हाल होता है.
सीएनओओसी विवादित दक्षिणी चीन सागर में ऑफशोर ड्रिलिंग में शामिल रही है, जहां बीजिंग के वियतनाम, फिलीपींस, ब्रूनेई, ताइवान और मलेशिया के साथ विवाद हैं. अमेरिका के वाणिज्य मंत्री विल्बर रॉस ने एक बयान में कहा, "दक्षिण चीन सागर में चीन के लापरवाह व्यवहार, लड़ने को तैयार आचरण और अपनी सैन्य जरूरतों के लिए संवेदनशील बौद्धिक संपदा और प्रौद्योगिकी को हासिल करने की कोशिशें अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा और अंतरराष्ट्रीय समुदाय की सुरक्षा के लिए खतरा हैं"
रॉस ने यह भी कहा, "सीएनओओसी पीपल्स लिबरेशन आर्मी के लिए एक गुंडे की तरह काम करता है, चीन के पड़ोसी देशों को डराता है और चीनी सेना हानिकारक उद्देश्यों के लिए इस सरकारी-नागरिक-सैन्य मिलीभगत का लाभ उठा रही है." सीएनओओसी ने भी तुरंत कोई टिप्पणी नहीं की.
रॉस ने बताया कि चीन की सरकारी कंपनी स्काईरिजों को भी आर्थिक ब्लैकलिस्ट में जोड़ा जा चुका है क्योंकि कंपनी "विदेशी सैन्य प्रौद्योगिकी को हासिल करके उससे स्थानीय रूप देने की कोशिश कर रही थी." बीजिंग स्काईरिजों एविएशन की स्थापना उद्योगपति वांग जिंग ने की थी और 2017 में जब इसने यूक्रेन के सैन्य विमान इंजन बनाने वाली कंपनी मोटर सिच को खरीदने की कोशिश की तब अमेरिका ने इसकी आलोचना की थी. अमेरिका को चिंता थी कि विकसित एयरोस्पेस प्रौद्योगिकी अंत में सेना के हाथों में चली जाएगी.
सीके/एए (एपी)
इंडोनेशिया के सुलावेसी द्वीप पर शुक्रवार को भूकंप के तेज झटके महसूस किए गए. इस भूकंप से अब तक कई लोगों की मौत हो गई है और सैकड़ों घायल बताए जा रहे हैं. वीडियो में लोग भागते हुए और मलबे के नीचे दबे दिखे रहे हैं.
रिक्टर पैमाने पर 6.2 तीव्रता वाले भूकंप ने कई मकानों को जमींदोज़ कर दिया और सैकड़ों लोग घायल हो गए. भूकंप का केंद्र जमीन के 10 किलोमीटर नीचे बताया जा रहा है. अधिकारियों का कहना है कि भूकंप इंडोनेशिया के सुलावेसी द्वीप पर शुक्रवार रात 1.28 बजे आया जिसमें कई मकान तबाह हो गए, मलबे के नीचे बड़ी संख्या में लोग दब गए. गवर्नर के सचिव मोहम्मद इदरीस ने बताया कि दो अस्पताल और प्रांतीय सरकार के दफ्तर की इमारतें भी भूकंप की चपेट में आई हैं. इदरीस ने समाचार चैनलों से कहा, "अब तक हम छह लोगों की मौत की पुष्टि कर सकते हैं. हम लोगों को सुरक्षित निकाल कर गवर्नर के दफ्तर की इमारत में पहुंचा रहे हैं." इदरीस ने कहा, "हम लोग मलबे में दबे लोगों की आवाज सुन सकते हैं, लेकिन वे हिल नहीं पा रहे हैं." राष्ट्रीय खोज और बचाव एजेंसी के मुताबिक 600 से अधिक लोग घायल हुए हैं जिनमें करीब 200 लोग गंभीर रूप से घायल हैं.
हजारों बेघर
राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन का कहना है कि भूकंप के कारण 2,000 लोग बेघर हो गए हैं और भूकंप के बाद कम से कम तीन भूस्खलन हुए. राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन ने एक वीडियो जारी किया जिसमें एक छोटी बच्ची मलबे के नीचे दबी हुई है और दर्द से कराह रही है. वह मदद की गुहार लगाती दिख रही है. वीडियो में एक शख्स की आवाज सुनाई दे रही और वह कह रहा है, "वहां चार लोग हैं लेकिन हम कुछ नहीं कर सकते हैं क्योंकि हमारे पास भारी उपकरण मौजूद नहीं है." एक और वीडियो क्लिप में एक महिला बच्ची की ओर इशारा कर बता रही है कि "मेरी बच्ची वहां है."
भूकंप का केंद्र मजाने जिले से 6 किलोमीटर दूर बताया जा रहा है. भूकंप के झटके रात 1.28 बजे महसूस किए गए. इससे पहले गुरुवार को इसी इलाके में 5.9 तीव्रता का भूकंप आया था.
इंडोनेशिया 17,000 द्वीपों का देश है और वहां करीब 130 सक्रिय ज्वालामुखी हैं. यह प्रशांत में रिंग ऑफ फायर पर स्थित है जो भौगोलिक अस्थिरता वाला बड़ा इलाका है. यहां टेक्टोनिक प्लेटों के टकराव से नियमित भूकंप आते रहते हैं और ज्वालामुखी भी सक्रिय रहता है.
एए/सीके (रॉयटर्स, डीपीए)