राष्ट्रीय
नई दिल्ली, 30 जनवरी | मध्य दिल्ली क्षेत्र में इजराइल दूतावास के पास कम तीव्रता वाले आईईडी विस्फोट के एक दिन बाद, राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) संभवत: मामले में केस दर्ज कर सकती है। एनआईए ने भी विस्फोट स्थल का निरीक्षण किया था। सूत्रों ने शनिवार को यह जानकारी दी। एनआईए अधिकारियों के एक दल ने शुक्रवार शाम विस्फोट स्थल का दौरा किया था और साइट से सामग्री एकत्र की थी। मार्ग और विस्फोट में शामिल व्यक्तियों की पहचान करने के लिए एनआईए अधिकारियों की टीम ने क्षेत्र की पूरी मैपिंग भी की।
सूत्रों के मुताबिक, एनआईए ने दिल्ली पुलिस के अधिकारियों और बम दस्ते के साथ भी बातचीत की।
सूत्र ने कहा कि एजेंसी जल्द ही विस्फोट की घटना पर मामला दर्ज कर सकती है।
दिल्ली पुलिस के अनुसार, औरंगजेब रोड पर इजराइल दूतावास के पास सुबह 5.05 बजे के आसपास कम तीव्रता का बम विस्फोट हुआ। विस्फोट में तीन वाहनों की खिड़की के शीशे क्षतिग्रस्त हो गए। विस्फोट में कोई घायल नहीं हुआ था।
सूत्र ने कहा कि एनआईए विस्फोट में प्रयुक्त बम के बारे में भी पता लगाने की कोशिश करेगी, क्योंकि उसे विस्फोट स्थल से अमोनिया नाइट्रेट और बॉल बेयरिंग कण मिले हैं। (आईएएनएस)
-रिचर्ड महापात्रा
नोवेल कोरोना वायरस (कोविड-19) महामारी को एक साल हो चुका है और लोगों के बाजारों की ओर लौटने से हमें अपने जीवन में सामान्य स्थिति बहाल होने का अहसास हो रहा है। लेकिन एक हमारे मन में एक असहज भाव बना हुआ है, जो हमें डराता रहता है।
पड़ोस की किराने की दुकान से लेकर शॉपिंग मॉल्स तक में लगे कर्मचारियों की संख्या में कमी स्पष्ट रूप से समझी जा सकती है। ये हालात चौथी औद्योगिक क्रांति के बाद की स्थितियों से मेल खाते हैं।
हमने पूर्व में ऐसी तीन प्रमुख क्रांतियों को अनुभव किया है : पहली, औद्योगिक क्रांति जिसमें हमारी उत्पादन प्रक्रिया के मशीनीकरण के लिए पानी और भाप का उपयोग किया गया था; दूसरी, जिसमें भारी उत्पादन को संभव बनाने के लिए बिजली का उपयोग किया गया था; और तीसरी, हमारे जीवन और समय के डिजिटलीकरण के साथ काम करने से जुड़ी है।
चौथी क्रांति तीसरी पर ही आधारित है और हमारे संवाद, उपयोग या उत्पाद से जुड़ी हर वस्तु के स्वाचलन (आटोमेशन) की ओर बढ़ रही है। महामारी का प्रकोप तेजी से फैला है।
वहीं महामारी की तरह ही, चौथी क्रांति भी अप्रत्याशित है। शुरुआती तीन की तुलना में, यह क्रांति हर तबके, क्षेत्र और देश को प्रभावित करेगी।
इस क्रांति की एक दशक पहले से चर्चा हो रही थी- अक्सर इसे काल्पनिक बताकर खारिज कर दिया जाता था। लेकिन वर्तमान में इसकी पैठ जमाने की तेज रफ्तार के कारण खासी चर्चाएं हो रही हैं। हालांकि हम सुनिश्चित नहीं हैं कि यह कैसे हमें प्रभावित करेगी।
महामारी ने इसके लिए सही प्रोत्साहन देने वाला माहौल उपलब्ध कराया है। एक विश्व जो कम से कम सामाजिक संपर्क के साथ आगे बढ़ रहा है, वहां पर स्वचालन से अनुकूलन का रास्ता तैयार हो रहा है।
महामारी के बाद के दौर में, दुनिया का असंगठित और अकुशल कार्यबल सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ है। इससे भारत जैसे देश के लिए, जहां 90 प्रतिशत से ज्यादा कार्यबल असंगठित क्षेत्र में हैं, असमानता की स्थिति और भी गंभीर हो जाएगी। कई लोग चौथी क्रांति को कामगारों के लिए ‘दोहरी विनाशकारी’ करार देते हैं।
सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी के अनुसार, अप्रैल में रोजगार गंवाने वाले 12.2 करोड़ भारतीयों में से 75 प्रतिशत छोटे कारोबारी और दिहाड़ी मजदूर थे। कारोबार के सामान्य स्तर पर आने के साथ, विश्व ने अपने कामकाज का तरीका बदल लिया है।
नए विश्व में ज्यादा अकुशल असंगठित कामगारों की जरूरत नहीं होगी, क्योंकि मशीनों और स्वचालित प्रणालियों ने ज्यादा दक्षता के साथ उनकी जगह ले ली है। वहीं वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम द्वारा पेश फ्यूचर ऑफ जॉब्स, 2020 रिपोर्ट में कहा गया : “43 प्रतिशत व्यवसायों के सर्वेक्षण से संकेत मिलता है कि वे तकनीक एकीकरण के चलते अपने कार्यबल में कमी करने की तैयारी में हैं, 41 प्रतिशत की विशिष्ट कार्यों के लिए अपने यहां ठेकेदारों का उपयोग बढ़ाने की योजना है और सिर्फ 34 प्रतिशत की तकनीक एकीकरण के चलते अपने कार्यबलों की संख्या में विस्तार की योजना है।”
2025 तक, चौथी क्रांति हमें कुछ इस तरह प्रभावित करेगी : “मानव और मशीनों द्वारा किए गए वर्तमान कार्यों पर लगने वाला समय समान होगा।” इस क्रांति की “तेज गति” कुछ ऐसी है, जिससे स्पष्ट रूप से भविष्य में अकुशल और कम कौशल वाले लोगों के लिए नौकरियां पैदा होना बंद हो जाएंगी।
इसका मतलब है कि भारी भरकम असंगठित कार्यबल को रखना महज निरर्थक होगा।
जैसा कि उक्त रिपोर्ट का अनुमान है, कार्यों के इंसान से मशीनों की ओर हस्तांतरित होने के परिणाम स्वरूप 2025 तक 8.5 करोड़ लोग अपनी नौकरियां गंवा देंगे। दूसरी तरफ, 9.7 करोड़ नई नौकरियां सिर्फ सही कौशल वाले लोगों और मशीनों के लिए ही उपयुक्त होंगी। इस प्रकार, नई व्यवस्था में आर्थिक संकट की तुलना में नौकरियों से ज्यादा लोगों का विस्थापन देखने को मिलेगा, जैसा हमने अभी अनुभव किया है।
लाखों लोगों के कार्यबल में जुड़ने, लेकिन उनके लिए अवसर नहीं होने की स्थिति में क्या होता है? भारत में वर्तमान हालात के बारे में कहा जा सकता है कि यहां का आर्थिक विकास रोजगार विहीन है। कल्पना कीजिए, स्वचालन अभियान से अवसर और भी घटने जा रहे हैं।
भारत विकास के वितरण में सबसे ज्यादा असमानता की स्थिति वाले दुनिया के प्रमुख देशों में से एक है। इससे पहले से ही परेशान लोग और भी प्रभावित होंगे। कुल मिलाकर यह विभाजन और भी गहरा हो गया है। (downtoearth.org.in/hindistory)
-एहतशाम खान
नई दिल्ली/नागपुर. यौन उत्पीड़न से जुड़े दो मामलों पर अपने विवादास्पद आदेशों के चलते जस्टिस पुष्पा वी. गनेडीवाला को बॉम्बे हाईकोर्ट का स्थायी जज बनाने की अपनी सिफारिश को सुप्रीम कोर्ट ने कथित रूप से वापस ले लिया है.
जस्टिस गनेडीवाला ने एक सत्र न्यायालय के आदेश को संशोधित किया था जिसमें एक व्यक्ति को एक नाबालिग के यौन हमले का दोषी ठहराया गया था. उन्होंने फैसला दिया था कि 'किसी नाबालिग को निर्वस्त्र किए बिना, उसके वक्षस्थल को छूना, यौन हमला नहीं कहा जा सकता.'
सुप्रीम कोर्ट ने गनेडीवाला के इस फैसले पर रोक लगा दी है. चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया एसए बोबडे की अध्यक्षता वाले सर्वोच्च न्यायालय के तीन सदस्यीय कॉलेजियम ने बॉम्बे हाईकोर्ट के स्थायी जज के रूप में जस्टिस गनेडीवाला की सिफारिश की थी, लेकिन बाद में इस प्रस्ताव को रद्द कर दिया. सूत्रों के मुताबिक सुप्रीम कोर्ट को मजबूरन अपनी सिफारिश वापस लेनी पड़ी.
ये तीन फैसले संदेहास्पद
जस्टिस गनेडीवाला ने एक फैसले में कहा था कि POCSO Act के तहत जब तक आरोपी पीड़िता से स्किन टच नहीं करता उसको यौन शोषण नहीं माना जाएगा. कपड़े के ऊपर से छूना अपराध नहीं होगा. इस फैसले को अटॉर्नी जेनरल के के वेणुगोपाल ने निजी तौर पर सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है. उनका कहना है कि ऐसे फैसले से गलत परंपरा बनेगी.
दूसरे फैसले में जस्टिस गनेडीवाला ने कहा कि किसी बच्ची का हाथ पकड़ कर आरोपी अपने पैंट का ज़िप खोलता है तो इससे यौन शोषण नहीं होगा. तीसरे फैसले में जस्टिस गनेडीवाला ने बलात्कार के एक निचिली अदालत के फैसले को पलट दिया और कहा कि बलात्कार के कोई सबूत नहीं मिले है. इस फैसले को भी संदेह की नजर से देखा जा रहा है.
कन्नौज, 30 जनवरी | उत्तर प्रदेश के आगरा-लखनऊ एक्सप्रेस वे पर सौरिख के पास शनिवार को एक तेज रफ्तार कार आगे चले रहे ट्रक में घुस गयी, जिससे कार सवार तीन लोगों की मौत हो गई। साथ ही एक गंभीर रूप से घायल हो गया है। कन्नौज के पुलिस अधीक्षक प्रशांत वर्मा ने बताया कि कन्नौज के सौरिख के पास आगरा लखनऊ एक्सप्रेस वे पर कोहरे में तेज रफ्तार कार आगे चल रहे ट्रक में कार घुस गई। हादसे में कार सवार तीन लोगों की मौत हो गयी। एक गंभीर रूप से घायल है जिसे अस्पताल में भर्ती कराया गया है। वहीं एक को गंभीर हालत में अस्पताल में भर्ती कराकर उपचार कराया जा रहा है। कार सवार लोग दिल्ली से लखनऊ लौट रहे थे।
सूचना पर पहुंचे उत्तर प्रदेश औद्योगिक विकास प्राधिकरण (यूपीडा) के सुरक्षा अधिकारी मनोहर सिंह यादव और उनके साथियों ने कार की खिड़की को काटकर घायलों को बाहर निकाला।
इसके बाद एंबुलेंस से ट्रामा सेंटर सैफई भिजवाया। रास्ते में अजीत सिंह, पंकज सिंह और मनीष वर्मा की मौत हो गई। वही कंचन सिंह गंभीर घायल हैं। उनका उपचार इटावा सैफई अस्पताल में चल रहा है।
(आईएएनएस)
अहमदाबाद. उत्तर प्रदेश के अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के लिए मकर संक्रांति के खास मौके पर रामजन्मभूमि तीर्थक्षेत्र ट्रस्ट की ओर से गुजरात से प्रथम चरण में 100 करोड़ रुपये का चंदा दिया गया है. इसके साथ ही राम मंदिर निर्माण के लिए मांगे जाने वाले चंदे के दूसरे चरण की शुरुआत भी कर दी गई है. गुजरात के दूसरे चरण में 19445 गांवों से चंदा जुटाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है.
विहिप के उत्तर गुजरात प्रांत के मंत्री व अभियान के संयोजक अश्विन पटेल के मुताबिक प्रथम चरण में राम मंदिर निर्माण के लिए चंदा लेने के लिए अलग अलग क्षेत्रों के कामकाजी लोगों और व्यवसायियों से संपर्क किया गया है. इस दौरान राम मंदिर निर्माण के लिए लोगों का उत्साह देखने लायक था. राम मंदिर निर्माण के लिए अब तक गुजरात से 100 करोड़ रुपए की राशि हासिल की जा चुकी है.
विहिप के उत्तर गुजरात प्रांत के व अभियान के प्रचार प्रमुख हितेन्द्रसिंह राजपूत के अनुसार ‘राष्ट्रीय स्वाभिमान की पुन: प्रतिष्ठा’ नारे के साथ अभियान का दूसरे चरण की शुरुआत की जा चुकी है. अहमदाबाद में पालडी क्षेत्र स्थित विहिप कार्यालय में पदाधिकारियों व कार्यकर्ताओं ने राम मंदिर निर्माण के लिए चंदा देकर इस चरण की शुरुआत की. संतों के नेतृत्व में चलने वाले अभियान में संत भी विशेषतौर पर गरीब-वंचित क्षेत्रों में जाकर हिन्दू समाज को निधि समर्पण के लिए अपील करेंगे.
वीएचपी और आरएसएस की होगी अहम भूमिका
रामजन्मभूमि मंदिर निर्माण निधि संग्रह समिति की देखरेख में चलने वाले इस अभियान के दूसरे चरण में विश्व हिन्दू परिषद (वीएचपी), राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) और विचार संस्थाओं के कार्यकर्ता घर-घर जाकर प्रत्येक हिन्दू को राम मंदिर निर्माण कार्य में जोड़ने का काम करेंगे.
-पूजा छाबड़िया
तारा कौशल ने अपनी रिसर्च के सिलसिले में कई बलात्कारियों का इंटरव्यू किया और इसका उन पर गंभीर असर पड़ा है.
उन्होंने 2017 से बलात्कारियों के इंटरव्यू पर आधारित अपने रिसर्च की शुरुआत की. इसके बाद वे अवसाद की चपेट में आयीं, उनके दिमाग़ ने काम करना बंद कर दिया और कई दिन तो वह बस रोती रहीं.
एक शाम उन्होंने नोएडा के अपने फ्लैट के बेडरूम में खुद को बंद कर लिया. तारा उस शाम को याद करती हैं, "मेरे पार्टनर साहिल दरवाज़े पर खड़े थे. वह बार बार पूछ रहे थे कि ठीक तो हो, लेकिन मैं अंदर लगातार रो रही थी. तब मुझे लगा कि मुझे थेरेपी की ज़रूरत है."
वैसे भी रिसर्च शुरू करने से पहले तारा यौन हिंसा का आघात झेल रही थीं. वे जब 16 साल की थीं तब से इस मुद्दे पर बात कर रही हैं. उन्होंने अपने माता-पिता को बताया, "जब मैं चार साल की थी, तब माली ने मेरे साथ बलात्कार किया था."
यह सुनकर तारा के माता-पिता अवाक रह गए थे. लेकिन तारा के लिए यह अपने अंदर चल रहे तूफ़ान को बाहर निकालने जैसा था. इसके बाद से अपने साथ हुई यौन हिंसा के बारे में वह लगातार बोल रही हैं, पब्लिक डिबेट में हिस्सा ले रही हैं, दोस्तों से चर्चा कर रही हैं और अब किताब भी लिख रही हैं.
तारा ने बताया, "उस घटना की कुछ कुछ यादें हैं. मैं उसका नाम जानती हूं. वह कैसा लगता था ये जानती हूं. मुझे उसके घुंघराले बाल और मेरी ब्लू ड्रेस पर ख़ून लगना याद है." जब वह बड़ी होने लगीं तो उन्होंने हर दिन होने वाले दूसरे यौन उत्पीड़नों के बारे में सोचना शुरू किया. वह यह जानना चाहती थीं कि आख़िर ऐसा क्यों होता है?
उन्होंने बीबीसी को बताया, "मेरी किताब 'व्हाय मेन रेप' मेरी व्यक्तिगत और पेशेवर यात्रा का नतीजा है. इस दौरान मुझे मानसिक आघात भी सहना पड़ा है."
छिपे बलात्कारी की पहचान
दिसंबर, 2012 में दिल्ली की चलती बस में फिज़ियोथेरेपी की छात्रा के साथ हुई गैंगरेप की घटना के बाद से भारत में बलात्कार और यौन हिंसा पर काफ़ी चर्चा हुई है. इस घटना के कुछ ही दिनों के भीतर आंतरिक ज़ख़्मों के चलते पीड़िता की मौत हो गई थी. मामले के चार दोषियों को मार्च, 2020 में फांसी की सज़ा हुई. यौन अपराध पर सख़्ती के बावजूद बलात्कार के मामले लगातार बढ़ रहे हैं.
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक 2018 में भारत में कुल 33,977 बलात्कार हुए. इसका मतलब यह है कि भारत में प्रति 15 मिनट में बलात्कार की एक घटना होती है. हालांकि इन मुद्दों पर काम करने वाले एक्टिविस्टों की मानें तो वास्तविक संख्या कहीं ज़्यादा होगी क्योंकि कई मामले दर्ज नहीं किए जाते हैं.
तारा उनके बारे में जानना चाहती थीं जिन्हें कभी बलात्कार का दोषी नहीं ठहराया गया, जिन पर कभी बलात्कार के मामले दर्ज नहीं हुए. वह इस कोशिश में देश भर में नौ लोगों से मिलीं, जिन पर बलात्कार के आरोप लगे ज़रूर लेकिन इन लोगों से कभी आधिकारिक पूछताछ नहीं हुई.
तारा ने अपनी किताब में लिखा है, "मैंने उनके घर के माहौल को समझने में समय लगाया. उनका इंटरव्यू लिया. उन्हें, उनके परिवार और दोस्तों को समझने की कोशिश की. मैं अंडरकवर अपना काम कर रही थी- इसके लिए मैंने अलग नाम, ईमेल और फेसबुक आईडी का इस्तेमाल किया."
अंडरकवर काम करने के दौरान उन्हें अपना टैटू छिपाना पड़ा और इस दौरान उन्होंने हमेशा परंपरागत कुर्ते और जीन्स ही पहने. इतना ही नहीं वह अपने साथ एक अनुवादक भी रखती थीं, जिसका परिचय वह अपने बॉडीगार्ड के तौर पर देती थीं. वह अपना परिचय ऑस्ट्रेलिया में रहने वाली एक अनिवासी भारतीय के तौर पर ज़ाहिर करती थीं जो एक फ़िल्म के रिसर्च के सिलसिले में आम लोगों के जीवन को जानने की कोशिश कर रही है.
तारा कौशल ने लिखा है, "मैं 250 सवाल पूछा करती थी और सभी के लिए एक जैसी बातों पर नज़र रखती थी. लेकिन मैंने कभी उन्हें यह नहीं बताया कि मैं उन लोगों को पढ़ने की कोशिश कर रही हूं, ऐसा करने पर वे बलात्कारी के तौर पर चिन्हित होने लगते."
सहमति की समझ का अभाव
तारा इस दौरान किसी भी अप्रिय स्थिति का सामना करने लिए भी तैयार थीं. वह अपनी पॉकेट में पेपर स्प्रे (मिर्ची वाला स्प्रे) रखती हैं, इसके अलावा स्थानीय स्तर पर इमर्जेंसी कॉन्टैक्ट की व्यवस्था रखती थीं. साथ ही व्हाट्सऐप पर एक सपोर्ट ग्रुप भी बनाया हुआ था जिसमें वह अपनी लाइव लोकेशन शेयर करती थीं.
हालांकि उन्होंने यह अनुमान नहीं लगाया था कि अंतरंग सवालों के जवाब देते वक्त तीन लोग अश्लील हरकत करने लगेंगे.
उत्तर भारत के एक शख़्स ने जाड़े की धूप में छत के बरामदे पर बैठकर क्या कुछ किया था, इस बारे में तारा ने लिखा है, "छोटे क़द का वो आदमी मेरे सामने बैठा था. मैं जितने लोगों से मिली वह उनमें सबसे शातिर यौन अपराधी (ये उसने खुद स्वीकार किया) था. उसने अपने छोटे से गांव की कई महिलाओं को अपनी हवस का शिकार बनाया था."
"उसे जेल में होना चाहिए था या फिर समाज से निष्कासित होना चाहिए था लेकिन वह अपने समुदाय का प्रभावी शख़्स बना हुआ था. छत के बरामदे पर वह मेरे सवालों से ही उत्तेजित हो गया था और अश्लील हरकतें करने लगा था."
इन अनुभवों का तारा के मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा असर देखने को मिला.
तारा ने बीबीसी को बताया, "जब मैंने इन इंटरव्यू को पूरा किया तब मुझे महसूस हुआ कि इस आघात से निपटने के लिए मुझे थेरेपी की ज़रूरत है. मैं काफी अवसाद में आ गई थी. कई रातें तो ऐसी रही है जब मैंने नींद में ही अपने पाटर्नर को काटते हुए कहा कि मुझे छेड़ना बंद करो."
हालांकि अंत में तारा को यह मालूम चला, "इन पुरुषों को सहमति की कोई समझ नहीं थी और ना ही उन्हें ये मालूम था कि बलात्कार क्या होता है?"
जब तारा ने अपनी रिसर्च शुरू की तो उन्होंने जेंडर आधारित हिंसा को लेकर सोशल मीडिया पर महिलाओं से बात की.
तारा ने बताया, "इन महिलाओं से बात करके मुझे दो पुरुषों के बारे में पता चल गया. लेकिन अन्य सात लोगों को तलाशना काफ़ी मुश्किल भरा रहा. मुझे स्थानीय पुलिस, स्थानीय मीडिया, गैर सरकारी संगठनों और जासूसी करने वाली एजेंसियों से भी संपर्क करना पड़ा."
तारा के साथ बातचीत करने वाले लोगों में अधिकांश ने बलात्कार ही नहीं कई बलात्कारों की बात स्वीकार की. हालांकि सज़ा झेल रहे बलात्कारियों से बात नहीं करने का फ़ैसला तारा ने पहले ही कर लिया था.
तारा ने बताया, "मेरे लिए, जेल बलात्कार करने वाले पुरुषों का प्रतिनिधित्व नहीं करता. लोग प्रायद्वीप पर नहीं होते हैं, लोगों के आसपास के माहौल को समझे बिना उनके बारे जानना, आपको पूरी जानकारी नहीं दे सकता."
हालांकि तारा कौशल से उलट शैफील्ड हालाम यूनिवर्सिटी में अपराध विज्ञान की लेक्चरर डॉ. मधुमिता पांडेय ने बलात्कार मामलों में सज़ा झेलने वालों को अपनी रिसर्च का विषय बनाया.
उन्होंने अपनी रिसर्च दिल्ली में दिसंबर, 2012 में हुए गैंगरेप के बाद शुरू की. उन्होंने बताया, "बलात्कारियों को शैतान क़रार दिया गया और उनके ख़िलाफ़ सामूहिक आक्रोश था. उनके अपराध से हमलोग इतने भयभीत हुए कि उन्हें अपने से अलग, अपनी संस्कृति से अलग दूसरा मानने लगे थे."
एक रिसर्चर के तौर पर डॉ. मधुमिता ने उस धारणा पर काम करने का फ़ैसला लिया जिसमें माना जाता है कि बलात्कारी पुरुषों में महिलाओं के प्रति कहीं ज़्यादा परंपरागत और दमनकारी दृष्टिकोण मौजूद होता है.
वह जानना चाहती हैं, "क्या ये पुरुष वाक़ई में महिलाओं के प्रति अपनी सोच में इतने अलग होते हैं, जितना हम मान रहे हैं?"
कोई भी बलात्कारी हो सकता है
डॉ. मधुमिता ने दिल्ली की तिहाड़ जेल में बंद 100 से ज़्यादा बलात्कारियों का साक्षात्कार किया है. इन सब लोगों की अपनी अपनी कहानियां हैं.
एक सामूहिक बलात्कार की सज़ा झेल रहे शख़्स ने कहा कि वह हादसे के तुरंत बाद भाग निकला था. मंदिर के एक सफ़ाई कर्मचारी ने बताया कि पांच साल की बच्ची के साथ बलात्कार करने के लिए उसे उकसाया गया था. वहीं एक युवा ने दावा किया कि आपसी सहमति से उसने संबंध बनाए थे, लेकिन लड़की के परिवार वालों ने जब दोनों को एक साथ देख लिया तब उस पर बलात्कार का आरोप लगाया गया.
डॉ. मधुमिता को पांच साल की बलात्कार पीड़िता के बारे में जब मालूम हुआ तो उन्होंने पीड़िता के परिवार से मिलने का फ़ैसला लिया.
डॉ. मधुमिता ने कहा, "बेटी के साथ बलात्कार की ख़बर मिलने के बाद पिता मानसिक तौर पर विक्षिप्त हो गए और परिवार को छोड़कर कहीं चले गए. लेकिन मां पुलिस के पास पहुंची. न्याय की बहुत उम्मीद नहीं होने के बाद भी उन्होंने सभी पेपरवर्क करके मामला दर्ज कराया."
डॉ. मधुमिता महिलाओं के प्रति इन पुरुषों की सोच को समझना चाहती थीं ताकि उन्हें यौन हिंसा की सोच का पता चल सके.
उन्होंने बताया, "अपराध की प्रकृति में अंतर के बावजूद एक बात कॉमन देखने को मिली, समाज में पुरुषों को जिस तरह का विशेषाधिकार मौजूद है उसका असर दिखा."
उन्होंने भी देखा कि बलात्कार पीड़िताओं पर दोष डाल रहे हैं और उनमें सहमति की समझ का अभाव है. अपनी रिसर्च के माध्यम से मधुमिता ने तारा की तरह ही एक प्रचलित धारणा का खंडन किया कि 'बलात्कारी आमतौर पर परछाइयों में छिपे अजनबी होते हैं.'
मधुमिता ने बताया, "लेकिन इस मामले में ज़्यादातर लोग पीड़िताओं के पहचान वाले थे. इसलिए कोई कैसे बलात्कारी हो जाता है, इसे समझना आसान होता है, ये लोग कोई असाधारण लोग नहीं होते हैं."
पुराने आंकड़े भी इस बात की पुष्टि करते हैं कि ज़्यादातर मामलों में बलात्कारी पीड़िता की पहचान वाले होते हैं. नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक 2015 में 95 प्रतिशत मामलों में ऐसा होता है. हालांकि इस मुद्दे पर काम कर रहे लोगों के मुताबिक इस वजह से भी सभी बलात्कार के मामले दर्ज नहीं होते.
सामाजिक न्याय के लिए काम करने वाली संस्था प्रोजेक्ट 39 ए के कार्यकारी निदेशक डॉ. अनूप सुरेंद्रनाथ ने बताया, "बलात्कार के सभी मामले दर्ज नहीं होते क्योंकि अधिकांश में बलात्कारी पहचान वाले होते हैं. इसके चलते पीड़िता और उनके परिवार वालों पर अपराध की शिकायत दर्ज नहीं कराने के लिए कई तरह के दबाव काम करने लगते हैं."
ज़्यादातर वही मामले दर्ज होते हैं, जिसमें अपराध जघन्य होते हैं और वे सुर्खियों में आते हैं.
मौत की सज़ा है निदान?
भारत दुनिया का कोई अकेला देश नहीं है जहां इतने बड़े स्तर पर बलात्कार की घटनाएं होती हैं लेकिन कइयों का मानना है कि पितृसत्तात्मक समाज और असमान लैंगिक अनुपात के चलते स्थिति बद से बदतर हो रही है.
बीबीसी के भारतीय संवाददाता सौतिक बिस्वास कहते हैं, "ताक़त प्रदर्शित करने के लिए बलात्कार को एक हथियार की तरह इस्तेमाल करने का चलन बढ़ा है और इसके ज़रिए समाज के दबे कुचले लोगों को भयभीत किया जाता है."
"बलात्कार के मामलों को दर्ज करने के लिहाज़ से स्थिति बेहतर हुई है. लेकिन भारत में आपराधिक न्याय व्यवस्था काफ़ी हद तक राजनीतिक दबाव में काम करती है इसमें कई बार अभियुक्तों को सज़ा नहीं मिलती है, यही वजह है कि बलात्कार के कम मामलों में ही सज़ा होती है."
हालांकि 2012 में दिल्ली में हुई गैंगरेप की घटना के बाद क़ानूनों को कहीं ज़्यादा सख़्त किया गया है. जघन्य मामलों में दोषियों को मौत की सज़ा का प्रावधान भी किया गया है. लेकिन तारा और डॉ. मधुमिता, दोनों को लगता है कि मौत की सज़ा का प्रावधान समस्या का दीर्घकालीन हल नहीं है.
डॉ. मधुमिता का कहना है, "मेरा पूरा यक़ीन सुधार और पुनर्वास में है. हमें अपना ध्यान समाज में बदलाव की ओर लाना चाहिए जिससे देश में महिलाओं और पुरुषों के बीच एकसमान स्तर का ढांचा बन पाए."
तारा इससे सहमति जताते हुए कहती हैं, "हमें इस अपराध के एक्टिव एजेंट पर नए सिरे से ध्यान फोकस करना होगा, ये एक्टिव एजेंट पुरुष हैं. हम उन्हें कैसे रोक सकते हैं? इसके लिए हमें उन्हें बचपन से बेहतर शिक्षा देनी होगी."
तारा ने जिन पुरुषों का इंटरव्यू किया है उनमें समाज के सभी तबके के लोग शामिल थे लेकिन किसी को भी स्कूली स्तर पर सेक्स एजुकेशन नहीं मिली थी.
तारा बताती हैं, "शिक्षा तो नहीं मिली लेकिन उन्हें अपने दोस्तों के साथ, पॉर्न फ़िल्मों और सेक्स वर्करों से आधी अधूरी जानकारी मिली."
कइयों ने अपने बचपन में ऐसी हिंसा को देखा भी था. तारा ने लिखा है, "सभी मामलों में लोगों ने पिता को मां को पीटते हुए देखा था. उन्हें प्यार नहीं मिला था, पिता या घर के बड़े पुरुषों के हाथों से उन्हें कई बार मार पड़ी थी."
उन्होंने रिसर्च के अंत में लिखा है कि पुरुष जन्म से ही विशेषाधिकार के साथ बड़ा होता है.
पुरुष बलात्कार क्यों करते हैं?
डॉ. मधुमिता ने बताया, "इसका कोई एक जवाब नहीं है क्योंकि बलात्कार एक कॉम्प्लेक्स क्राइम है. हर मामला अपने आप में अलग होता है और यह काफ़ी सब्जेक्टिव भी है. कुछ लोग गैंग रेप में शामिल होते हैं तो कुछ पीड़िता की पहचान वाले होते हैं तो कुछ एकदम अनजान को बलात्कार का शिकार बनाते हैं. बलात्कारी भी कई तरह के होते हैं - गुस्से में आकर बलात्कार करने वाले, क्रूरता के साथ दूसरों को पीड़ा पहुंचाने की नीयत से बलात्कार करने वाले और कई बलात्कार करने वाले सीरियल रेपिस्ट."
डॉ. मधुमिता के मुताबिक ये बलात्कारी कोई भी हो सकता है - पति, सहकर्मी, नज़दीकी दोस्त, डेट पर मिलने वाला दोस्त, क्लासमेट, प्रोफेसर.
डॉ. मधुमिता ने बताया, "देश के आम लोगों की तरह मैं भी सोचती थी कि जेल के अंदर मैं क्या सवाल जवाब करूंगी. यह धारणा बॉलीवुड फिल्मों के जेल देखकर बनी थी. मुझे लगता था डरावने दिखने वाले पुरुष होंगे - जिनके चेहरे पर कटे का निशान हों और धारीदार कपड़े पहने होंगे. ये लोग मेरे से दुर्व्यवहार कर सकते हैं, या अभद्रता भरे कमेंट्स पास कर सकते हैं जो मुझे बुरा लगेगा, यह सब सोच मुझे डर भी लगता था."
लेकिन जल्दी ही डॉ. मधुमिता को लगा कि ये ऐसे लोगों का समूह नहीं है. उन्होंने बताया, "जितना मैं उन लोगों से बात करने लगी, उनकी कहानियां सुनने लगीं तब वे मुझे विचित्र नहीं लगने लगे. यह हम सबको समझने की ज़रूरत है."
डॉ. मधुमिता के मुताबिक जेंडर वायलेंस के मुद्दे के निदान के लिए समाज को सामूहिक तौर पर आत्म अवलोकन करने की ज़रूरत है. वह ब्रिटिश प्रोफेसर लिज़ कैली की यौन उत्पीड़न की अवधारणा का ज़िक्र करते हुए कहती हैं जिसके मुताबिक यौन उत्पीड़न एक निरंतरता है जिसमें अलग अलग तरह की यौन हिंसाएं एक दूसरे से गुंथी होती हैं.
डॉ. मधुमिता ने बताया, "हमारे आसपास मौजूद पुरुष ख़तरनाक हो सकते हैं, यह विचार डराने वाला है लेकिन नया नहीं है. हम एक पितृसत्तात्मक समाज में रहते हैं. कोई आपका रेप नहीं करता है लेकिन वह अपना प्रभुत्व कई दूसरी तरह से ज़ाहिर करता है. समाज के लिए यह बिलकुल सामान्य बात है."
डॉ. मधुमिता के मुताबिक रोज़मर्रा के जीवन में महिलाओं के साथ भेदभाव पर चर्चा नहीं होती. कार्यस्थल से लेकर सड़कों पर होने वाले उत्पीड़न की ओर संकेत करते हुए डॉ. मधुमिता बताती हैं कि जब तक स्थिति नियंत्रण से बाहर नहीं हो जाती तब तक कोई ध्यान नहीं देता.
वह पूछती हैं, "हमें गुस्सा आता है जब पता चलता है कि बलात्कारी ने पीड़िता के कपड़ों पर टिप्पणी की है और उसे बलात्कार करने के बहाने के तौर पर इस्तेमाल किया है. लेकिन हम इससे इतने भयभीत क्यों होते हैं? हमें इस पर अचरज क्यों होता है कि हम हर दिन जिस व्यवहार को सामान्य बताते हैं वही बढ़ते बढ़ते कहीं चरम रूप में ज़ाहिर होता है."
डॉ. मधुमिता ने बताया, "जब मैं बलात्कारी से बातचीत पूरी कर लेती थी, तो उसकी सामाजिक शब्दावली पर ध्यान देती थी. अपराध करने के लिए बनाया गया उसका बहाना, उस सामाजिक कथन को बताता है जिसमें वह बड़ा हुआ होता है."
डॉ. मधुमिता अब भारत में बलात्कारियों को लेकर सोच बदलने वाली पुनर्वास कार्यक्रम से जुड़ी हैं.
उन्होंने बताया, "मैं भारत में यौन अपराधियों के लिए पुनर्वास प्रशिक्षण कार्यक्रम देखना चाहती हूं जो बलात्कार से जुड़े मिथकों और महिलाओं के प्रति प्राचीन दृष्टिकोण को बदलने के लिए अन्य गतिविधियों के साथ व्यक्तिगत और सामूहिक स्तर पर सत्र आयोजित हों."
"सुबह जगने से लेकर रात सोने तक, हर वक्त मेरे दिमाग़ में यही चल रहा होता है. इससे मुझे काफ़ी उम्मीद मिलती है." (bbc.com)
इंदौर, 29 जनवरी| मध्य प्रदेश के इंदौर में नगर निगम का अमानवीय चेहरा सामने आया है, यहां बुजुर्गों को निगम के कर्मचारियों ने जानवरों की तरह ठूंसकर कचरा गाड़ी में भरा और उन्हें शहर से बाहर छोडने जा पहुंचे। यह सब स्वच्छता के नाम पर हुआ। इस घटनाक्रम का वीडियो सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रहा है। नगरीय प्रशासन मंत्री भूपेंद्र सिंह ने दो कर्मचारियों को बर्खास्त कर दिया है। इन दिनों राज्य के अन्य हिस्सों की तरह इंदौर में भी कड़ाके की सर्दी पड़ रही है। बड़ी संख्या में बेसहारा बुजुर्ग सड़क किनारे रात काटने को मजबूर हैं, इन बुजुर्गों को नगर निगम के कर्मचरियों ने स्वच्छता के नाम पर निगम के वाहन में ठूंसकर जानवरों की तरह भरा गया और उन्हें शहर से बाहर पड़ोसी जिला देवास छोड़ा गया। जब गांव वालों ने इसका विरोध किया तो निगम कर्मियों ने उन्हें सड़क पर उतारने के बाद फिर वाहन में बैठाया। इस पूरे घटनाक्रम का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है।
बताया जा रहा है कि कई बुजुर्ग ऐसे हैं जो ठीक से चल भी नहीं सकते। नगर निगम की आयुक्त प्रतिभा पाल का कहना है कि यह मामला संवेदनशील है, जांच होगी और जिसकी भी लापरवाही पाई जाएगी, उसके खिलाफ कार्रवाई होगी।
कांग्रेस के मीडिया विभाग के अध्यक्ष और पूर्व मंत्री जीतू पटवारी ने बुजुर्गों को वाहन में ले जाने का वीडियो साझा करते हुए लिखा है, मां अहिल्या की नगरी को शर्मसार कर दिया। पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता दुर्गेष शर्मा का कहना है कि शिवराज सरकार में मानवता हुई शर्मसार, बुजुर्गों को, अपंगों को इंदौर से नगर निगम की गाड़ी में भेड़-बकरी की तरह भरा गया।
राज्य के नगरीय प्रशासन मंत्री भूपेंद्र सिंह ने इंदौर में बुजुर्गों के साथ हुई घटना पर सख्त कार्रवाई करते हुए एक अधिकारी और एक कर्मचारी की सेवा समाप्त कर दी है। सभी सम्मानीय बुजुर्गो को रैन बसेरा भेज दिया गया है। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 29 जनवरी| खुफिया ब्यूरो के प्रमुख और दिल्ली पुलिस आयुक्त एस.एन. श्रीवास्तव ने शुक्रवार को राष्ट्रीय राजधानी में हुए 'कम तीव्रता के विस्फोट' के बारे में गृहमंत्री अमित शाह को जानकारी दी। यह विस्फोट इजरायली दूतावास के समीप हुआ। आईबी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, "विस्फोट की जांच पर नजर रखी जा रही है। अभी कुछ भी नहीं कहा जा सकता है।"
राष्ट्रीय राजधानी में इजराइल दूतावास के पास शुक्रवार को कम तीव्रता का विस्फोट हुआ। सूत्रों के अनुसार, विस्फोट शहर के बीचों-बीच एपीजे अब्दुल कलाम रोड पर हुआ।
एक वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी ने कहा, "हमें एक बम विस्फोट के बारे में पुलिस नियंत्रण कक्ष में एक कॉल मिली।"
शाम करीब 5.05 बजे विस्फोट केतुरंत बाद फायर ब्रिगेड, स्वात और फोरेंसिक टीम घटनास्थल पर पहुंची।
एक अधिकारी ने कहा, "हम इस मामले को देख रहे हैं। कई पुलिस टीमों को घटनास्थल पर भेज दिया गया है। विस्फोट में प्रयोग की गई सामग्री का पता लगाना अभी बाकी है।"
पुलिस इलाके के सीसीटीवी फुटेज देख रही है।
अधिकारी ने कहा, "घटना में अब तक कोई घायल नहीं हुआ है।"
विस्फोट उस समय हुआ, जब बीटिंग र्रिटीट समारोह के कारण इलाके में कड़ी सुरक्षा व्यवस्था थी, जिसका समापन विजय चौक पर चार दिवसीय गणतंत्र दिवस समारोह के रूप में हुआ। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 29 जनवरी| इंडियन रेलवे कैटरिंग एंड टूरिज्म कॉरपोरेशन (आईआरसीटीसी) द्वारा संचालित दो तेजस एक्सप्रेस ट्रेनें - नई दिल्ली-लखनऊ और मुंबई-अहमदाबाद को कोरोना के मद्देनजर बंद कर दिया गया था। अब रेलवे लगभग 10 महीने बाद 14 फरवरी से इन ट्रेनों को फिर से बहाल कर देगा। आईआरसीटीसी ने एक बयान में कहा कि बढ़ती यात्री मांग को पूरा करने के लिए पहली कॉर्पोरेट ट्रेन, तेजस एक्सप्रेस के संचालन को फिर से शुरू करने के लिए सभी तैयार है।
उन्होंने कहा, "दोनों ट्रेनें 14 फरवरी से परिचालन शुरू करने वाली हैं।"
आईआरसीटीसी ने कहा कि एक नए शेड्यूल के साथ रेल मंत्रालय से मंजूरी मिलने के बाद ट्रेनों का संचालन फिर से शुरू किया जा रहा है।
बयान में कहा गया कि यह सुनिश्चित करने के लिए सभी दौर की तैयारी की है कि चल रही महामारी के बीच ट्रेनों ने एक बार सेवाओं और सुरक्षा और स्वास्थ्य प्रोटोकॉल के स्तर के संदर्भ में लोगों की अपेक्षा से मेल खाना शुरू कर दिया।
यह भी कहा गया है कि सभी सीटों के लिए बुकिंग प्रति सप्ताह चार दिनों के लिए खोली जाएगी, यानी शुक्रवार, शनिवार, रविवार और सोमवार।
लखनऊ से नई दिल्ली का किराया 870 रुपये है और कानपुर से नई दिल्ली का किराया 780 रुपये है।
उन्होंने कहा, "डायनेमिक किराया मूल्य निर्धारण पद्धति के तहत, अधिकतम किराया की अधिकतम 30 प्रतिशत तक 10 प्रतिशत वृद्धिशील सीमा होगी। किराया में और वृद्धि नहीं होगी।"
इस ट्रेन के लिए 30 दिनों की अग्रिम आरक्षण अवधि (एआरपी) होगी।
प्रत्येक तेजस एक्सप्रेस में 700 से अधिक यात्रियों की क्षमता होगी और यात्रियों को कोरोना सुरक्षा किट प्रदान की जाएगी, जिसमें हैंड सैनिटाइजर की एक बोतल, एक मास्क और एक जोड़ी दस्ताने होंगे।(आईएएनएस)
नई दिल्ली, 29 जनवरी| राष्ट्रीय राजधानी में इजराइल दूतावास के पास एक कम तीव्रता के बम विस्फोट के बाद देश भर के सभी हवाई अड्डों और सरकारी इमारतों के लिए हाई अलर्ट जारी कर दिया गया है, अधिकारियों ने शुक्रवार को यह जानकारी दी। केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (सीआईएसएफ) के एक अधिकारी ने कहा, "देश भर के सभी हवाई अड्डों और सरकारी इमारतों के लिए हाई अलर्ट जारी कर दिया गया है।"
अधिकारी ने कहा कि सभी हवाई अड्डों पर चेकिंग कड़ी होगी।
दिल्ली पुलिस के अधिकारियों के अनुसार, कम तीव्रता का विस्फोट शाम 5.05 बजे 5 एपीजे अब्दुल कलाम रोड पर उच्च सुरक्षा वाले क्षेत्र में हुआ। यह क्षेत्र जिंदल हाउस के पास है।
पुलिस इलाके के सीसीटीवी फुटेज देख रही है। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 29 जनवरी| सोवरेन क्रेडिट रेटिंग पर आर्थिक सर्वेक्षण 2020-21 में कहा गया है कि यह रेटिंग भारतीय अर्थव्यवस्था के मूल सिद्धांतों को नहीं दर्शाती हैं। वित्त मंत्रालय के मुख्य आर्थिक सलाहकार कृष्णमूर्ति वी. सुब्रमण्यम द्वारा तैयार किए गए दस्तावेज में कहा गया है कि भारत की सोवरेन क्रेडिट रेटिंग अर्थव्यवस्था की वास्तविक स्थिति को नहीं दर्शाती है।
दस्तावेज में सोवरेन क्रेडिट रेटिंग को पक्षपाती करार दिया है। कहा गया है कि इन क्रेडिट रेटिंगों से विदेशी पोर्टफोलियो निवेशों के प्रवाह को भी नुकसान होता है।
सर्वेक्षण में सवाल किया गया कि क्या भारत की संप्रभु क्रेडिट रेटिंग अपने मूल सिद्धांतों को भी दर्शाती है और कम से कम दो दशकों की अवधि में इसकी कम रेटिंग में परिलक्षित भारत के मूल सिद्धांतों के एक प्रणालीगत मूल्यांकन का प्रमाण मिला है।
आर्थिक समीक्षा में सुझाव दिया गया है कि भारत की वित्तीय नीति को पक्षपातपूर्ण रेटिंग के आधार पर सीमित नहीं किया जाना चाहिए, बल्कि इसे विकास पर केंद्रित होना चाहिए, जो गुरुदेव रविन्द्रनाथ टैगोर की भावना- मन बिना किसी भय के- को दर्शाती हो।
इसमें कहा गया है कि भारत की राजकोषीय नीति को पक्षपाती और व्यक्तिपरक संप्रभु क्रेडिट रेटिंग द्वारा नियंत्रित किए जाने के बजाय विकास के विचारों द्वारा निर्देशित किया जाना चाहिए।
इसलिए सभी विकासशील देशों से आह्वान किया गया है कि वे सोवरेन क्रेडिट रेटिंग पद्धति से संबंधित इस पक्षपात को समाप्त करने के लिए एक साथ आएं और इसे अधिक पारदर्शी बनाएं। भारत ने जी-20 में क्रेडिट रेटिंग के मामले को उठाया है।
सोवरेन क्रेडिट रेटिंग के इतिहास में ऐसा अब तक नहीं हुआ है कि दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था को निवेश के लिए सबसे निम्न श्रेणी (बीबीबी/बीएए3) दी गई हो। चीन और भारत इसके अपवाद हैं। अर्थव्यवस्था के आकार तथा कर्ज वापस करने की क्षमता के आधार पर पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था एएए रेटिंग दी गई थी।
भारत की सोवरेन क्रेडिट रेटिंग अर्थव्यवस्था की वास्तविक स्थिति को नहीं दर्शाती है। विभिन्न कारकों की सोवरेन क्रेडिट रेटिंग के प्रभाव की तुलना में देश को कम रेटिंग दी गई है। इन कारकों में शामिल हैं-जीडीपी विकास दर, महंगाई दर, सरकारी कर्ज (जीडीपी के प्रतिशत के रूप में), चालू खाता धनराशि (जीडीपी के प्रतिशत के रूप में), लघु अवधि के विदेशी कर्ज (विदेशी मुद्रा भंडार के प्रतिशित के रूप में), विदेशी मुद्रा भंडार पर्याप्ता अनुपात, राजनीतिक स्थिरता, कानून का शासन, भ्रष्टाचार पर नियंत्रण, निवेशकों की सुरक्षा, कारोबार में सुगमता और सोवरेन जवाबदेही को पूरा करने में विफलता।
यह स्थिति न सिर्फ वर्तमान के लिए बल्कि पिछले दो दशकों के लिए भी सत्य है। (आईएएनएस)
रांची, 29 जनवरी| झारखंड उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को चारा घोटाला मामले में जेल में बंद राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद की जमानत याचिका पर सुनवाई की और इसे 5 फरवरी तक के लिए टाल दिया। अदालत ने बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री की जमानत याचिका पर जवाब दाखिल करने के लिए केंद्रीय जांच ब्यूरो को समय दिया, जो कई चारा घोटाला मामलों में दोषी ठहराए जाने के बाद जेल गए थे।
सुप्रीम कोर्ट के वकील और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल लालू प्रसाद के लिए पेश हुए।
राष्ट्रीय जनता दल के नेता के वकील ने कहा कि उनके मुवक्किल ने जेल की आधी सजा पूरी कर ली है और इसलिए उन्हें मामले में जमानत दी जानी चाहिए। वकील ने कहा कि लालू प्रसाद 42 महीने और 23 दिनों से जेल में रहे, जो तत्काल मामले में उन्हें दी गई सात साल की जेल की अवधि का आधा है।
लालू प्रसाद को चारा घोटाले के तीन मामलों में जमानत मिल गई है। वह दुमका कोषागार से फर्जी निकासी के मामले में जेल में है। (आईएएनएस)
कोलकाता, 29 जनवरी| केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के अधिकारियों की एक टीम ने शुक्रवार को प्रसिद्ध जादूगर पी.सी. सरकार जूनियर के घर पर छापा मारा। यह छापे जूनियर टावर ग्रुप के चिटफंड घोटाले के संबंध में मारे गए। सूत्रों के मुताबिक, संघीय जांच एजेंसी ने शहर के पूर्वी मेट्रोपॉलिटन (ईएम) बायपास स्थित जादूगर के मुकुंदपुर आवास के परिसरों पर छापे मारे।
केंद्रीय एजेंसी के अधिकारी और सरकार के परिवार के सदस्य दोनों छापे की इस घटना को लेकर चुप्पी साधे रहे। जादूगर के मुकुंदपुर स्थित घर के अलावा, सीबीआई टीम ने जांच के सिलसिले में तीन और ठिकानों पर भी छापा मारा।
सूत्रों ने कहा कि सरकार ने कथित तौर पर टॉवर समूह के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए और उनके ब्रांड एंबेसडर बन गए। जादूगर और चिट फंड कंपनी के बीच सौदे के विवरण और कुछ लेनदेन की जांच के लिए तलाशी अभियान चलाया गया था। (आईएएनएस)
श्रीनगर, 29 जनवरी| दक्षिण कश्मीर के पुलवामा जिले के त्राल क्षेत्र में शुक्रवार को आतंकवादियों और सुरक्षा बलों के बीच मुठभेड़ में तीन अज्ञात आतंकवादी मारे गए हैं। आतंकवादियों और सुरक्षा बलों के बीच गोलाबारी शुक्रवार की दोपहर को तब शुरू हुई , जब सेना ने इलाके की घेराबंदी की और इलाके में आतंकवादियों की मौजूदगी के बारे में एक विशेष सूचना के आधार पर तलाशी अभियान शुरू किया।
जैसे ही सुरक्षा बल उस स्थान पर पहुंचे, जहां आतंकवादी छिपे थे, वे भारी मात्रा में गोलीबारी करने लगे, जिससे मुठभेड़ शुरू हो गई।
यह पुलिस और सेना का संयुक्त अभियान था। गोलाबारी अब रुक गई है और सुरक्षा बल इलाके की तलाशी कर रहे हैं। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 29 जनवरी| एजेंसी ने शुक्रवार को कहा कि केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने अहमदाबाद में सोने की तस्करी के मामले में दो पूर्व कस्टम अधिकारियों और पांच अन्य निजी व्यक्तियों को गिरफ्तार किया है। एजेंसी ने आरोपियों के आवासीय और आधिकारिक परिसर में इस सप्ताह के शुरू में छापेमारी भी की है।
सीबीआई ने अहमदाबाद के पांच निजी व्यक्तियों और दो सुपरिटेंडेंट्स ऑफ कस्टम्स, एयर इंटेलिजेंस यूनिट, सरदार वल्लभभाई पटेल अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे के खिलाफ अहमदाबाद के सीमा शुल्क विभाग के प्रधान आयुक्त से शिकायत पर मामला दर्ज किया।
सीबीआई की एफआईआर में नामित सीमा शुल्क अधिकारियों की पहचान सोमनाथ चौधरी और सुजीत कुमार के रूप में की गई है। (आईएएनएस)
-ललित मौर्य
कोरोना महामारी के चलते 2020 में 3,900 करोड़ वक्त का भोजन वितरित नहीं हो पाया था
कोविड-19 और उसके चलते होने वाले लॉकडाउन के कारण 199 देशों के करीब 160 करोड़ विद्यार्थी प्रभावित हुए हैं। यह मामला सिर्फ उनकी शिक्षा का ही नहीं है यह उनके पोषण से भी जुड़ा है, क्योंकि दुनिया के कई हिस्सों में स्कूल बच्चों को जरुरी पोषण और भोजन उपलब्ध कराते हैं।
भारत की मिड डे मील योजना भी उनमें से एक है। जिसके अंतर्गत बच्चों को पोषण प्रदान करने के लिए स्कूलों में मुफ्त भोजन की व्यवस्था की जाती है। अनुमान है कि स्कूलों के बंद होने के कारण 150 देशों के 37 करोड़ बच्चों को स्कूल में भोजन नहीं मिल पाया था। यह जानकारी हाल ही में यूनीसेफ और वर्ल्ड फूड प्रोग्राम द्वारा सम्मिलित रूप से जारी रिपोर्ट में सामने आई है।
यदि 2019 के लिए जारी आंकड़ों पर गौर करें तो इनके अनुसार दुनिया के 55 देशों में स्थिति सबसे ज्यादा बदतर है। यहां के 13.5 करोड़ लोग खाद्य संकट का सामना कर रहे हैं, जबकि 200 करोड़ लोगों को अभी भी पर्याप्त, सुरक्षित और पौष्टिक भोजन नहीं मिल रहा है। ऐसे में कोविड-19 महामारी ने स्थिति को और बदतर बना दिया है। अनुमान है कि इस महामारी के चलते 2020 के अंत तक और 12.1 करोड़ लोग खाद्य संकट का सामना करने को मजबूर हो जाएंगे।
गौरतलब है कि अब तक दुनिया भर में कोविड-19 महामारी के 10 करोड़ से ज्यादा मामले सामने आ चुके हैं, जबकि इसके कारण 21 लाख से ज्यादा लोगों की जान जा चुकी है। भारत में भी इस महामारी के एक करोड़ से ज्यादा मामले सामने आ चुके हैं।
कैसे मिलेगा पोषण, 3,900 करोड़ वक्त का भोजन नहीं हुआ वितरित
दुनिया भर में 5 वर्ष से छोटे करीब 14.4 करोड़ बच्चे अपनी उम्र के लिहाज से ठिगने हैं, जबकि इस महामारी के कारण उनकी संख्या में 34 लाख का और इजाफा कर देगा। इसी तरह 5 से 19 वर्ष की 7.4 करोड़ बच्चियां और 11.7 करोड़ लड़के लम्बाई के हिसाब से पतले हैं। ऐसे में स्कूलों में मिलने वाला भोजन उनके पोषण के लिए कितना जरुरी है इस बात को आप खुद ही समझ सकते हैं।
जब इस बीमारी की दवा बन चुकी है तो सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए स्कूलों को खोलना भी महत्वपूर्ण हो जाता है। हालांकि जब स्कूल बंद थे तो कई जगहों पर बच्चों को राशन घर ले जाने और उनके खातों में जरुरी धनराशि डालने की व्यवस्था की गई थी। जिसके तहत जरूरतमंदों को पर्याप्त मदद मिलते रहे। पर इन सबके बावजूद 2020 में 3,900 करोड़ वक्त का भोजन वितरित नहीं हो पाया था। इन सभी ने उपायों ने खाद्य सुरक्षा में महत्वपूर्ण योगदान दिया था, पर फिर भी यह कोई लम्बी अवधि तक चलने वाले समाधान नहीं हैं।
ऐसे में स्कूलों को सुरक्षित रूप से पुनः खोलने पर प्राथमिकता दी जानी चाहिए। स्कूलों में भोजन की व्यवस्था पोषण वितरण का सबसे अधिक प्रभावी उपाय है, जो न केवल बच्चों को शिक्षित करता है साथ ही उनके स्वास्थ्य में भी सुधार करने में मददगार होता है। स्कूलों में भोजन की व्यवस्था बच्चों को स्कूल जाने के लिए प्रेरित करती है। यह योजना समाज के गरीब तबके के साथ-साथ बच्चियों की शिक्षा और स्वास्थ में भी योगदान करती है। ऐसे में इस कोरोना संकट के बाद स्कूलों में इन पर विशेष ध्यान देने की जरुरत है। जिससे समाज का उज्जवल भविष्य सुनिश्चित हो सके। (downtoearth.org.in)
-ललित मौर्य
इस इंडेक्स में भारत को कुल 40 अंक दिए गए हैं| यदि 2019 के लिए जारी इंडेक्स को देखें तो उसमें भारत को 41अंकों के साथ 80वें पायदान पर रखा था
आज जारी करप्शन पर्सेप्शन्स इंडेक्स 2020 में भारत को 180 देशों की सूची में 86वें पायदान पर रखा गया है। गौरतलब है कि हर साल दुनिया भर में भ्रष्टाचार की स्थिति को बताने वाला यह इंडेक्स ट्रांस्पेरेन्सी इंटरनेशनल द्वारा जारी किया जाता है। इस इंडेक्स में भारत को कुल 40 अंक दिए गए हैं। वहीं 2019 के लिए जारी इंडेक्स को देखें तो उसमें भारत को 41 अंकों के साथ 80वें पायदान पर रखा था। जो दिखाता है कि देश में भ्रष्टाचार की स्थिति में कोई खास बदलाव नहीं आया है।
यदि अन्य दक्षिण एशियाई देशों की बात करें तो भूटान की स्थिति सबसे ज्यादा बेहतर है, वो 68 अंकों के साथ 24वें स्थान पर है। इसके बाद मालदीव का नंबर है जो 43 अंकों के साथ 75वें स्थान पर है। इसके बाद भारत (86), श्रीलंका (94), नेपाल (117), पाकिस्तान (124) और फिर बांग्लादेश (146) का नंबर आता है जोकि दक्षिण एशिया का सबसे भ्रष्ट देश है।
यदि इंडेक्स की मानें तो पिछले करीब एक दशक में अधिकांश देशों ने भ्रष्टाचार से निपटने की दिशा में कोई खास प्रगति नहीं की है। दुनिया के करीब दो तिहाई देशों के अंक 50 से कम हैं। इस इंडेक्स को 1 से 100 अंकों के बीच में बांटा गया है, जिसमें 100 का मतलब सबसे कम भ्रष्ट जबकि 1 का मतलब सबसे ज्यादा भ्रष्ट है। हालांकि किसी भी देशो को 100 में से 100 अंक नहीं मिले हैं।
डेनमार्क और न्यूज़ीलैंड हैं सबसे साफ सुथरी छवि वाले देश
इस इंडेक्स में कुल 88 अंकों के साथ न्यूज़ीलैंड और डेनमार्क को पहले स्थान पर रखा गया है जोकि दुनिया के सबसे साफ सुथरी छवि वाले देश हैं। इनके बाद फिनलैंड, सिंगापुर, स्वीडन और स्विट्जरलैंड सम्मिलित रूप से तीसरे स्थान पर हैं, इन सभी को 85 अंक मिले हैं। जबकि इसके विपरीत कुल 12 अंकों के साथ अफ्रीकी देश दक्षिण सूडान और सोमालिया को सबसे भ्रष्ट देश घोषित किया गया है। वहीं 67 अंकों के साथ अमेरिका 25वें और 42 अंकों के साथ चीन 78वें पायदान पर है।
कोरोना भी नहीं है भ्रष्टाचार मुक्त
आज दुनिया जिस तरह से कोविड-19 से जूझ रही है उससे निपटने के लिए एक जुटता की जरुरत थी। पर रिपोर्ट से पता चला है कि कोविड-19 के खिलाफ जारी जंग में भी भ्रष्ट्राचार अपनी पैठ बना चुका है। बात चाहे कोरोना की जांच की हो या उसके उपचार की हर जगह रिश्वत और भ्रष्टाचार व्याप्त है। पिछले 9 महीनों में 1,800 से अधिक लोगों ने कोविड-19 और उससे सम्बंधित मुद्दों में भ्रष्टाचार की शिकायत की है और कानूनी कानूनी सलाह केंद्रों से संपर्क किया है।
ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की प्रमुख डेलिया फरेरा रूबियो के अनुसार कोविड-19 केवल स्वास्थ्य और अर्थव्यवस्था से जुड़ा संकट नहीं है, यह भ्रष्टाचार से जुड़ा संकट भी है। जिसे नियंत्रित करने में हम नाकाम रहे हैं।"
रिपोर्ट के अनुसार ज्यादातर आम नागरिक भ्रष्टाचार का शिकार बनते हैं। जब वो डॉक्टर को दिखाने या पुलिस शिकायत दर्ज करने जाते हैं तो उनसे इसके लिए रिश्वत की मांग की जाती है। आमतौर पर यह वो लोग होते हैं जिनके पास रिश्वत देने की क्षमता ही नहीं होती है। यह एक बड़ी समस्या है और इस पर तुरंत ध्यान देने की जरुरत है। (downtoearth.org.in)
-राजू सजवान
आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया है कि देश की जीडीपी में कृषि क्षेत्र की हिस्सेदारी में लगभग दो प्रतिशत की वृद्धि हुई है
वर्ष 2020-21 के आर्थिक सर्वेक्षण में अनुमान लगाया गया है कि भारत की जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) में 7.7 फीसदी की गिरावट दर्ज की जा सकती है। हालांकि अगले वित्त वर्ष 2021-22 में वास्तविक जीडीपी में 11 फीसदी की वृद्धि का अनुमान है।
आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया है कि वित्त वर्ष 2020-21 की दूसरी छमाही (अक्टूबर-मार्च) के दौरान वी शेप रिकवरी के संकेत हैं। यानी कि पहली छमाही में जो गिरावट दर्ज की गई थी, दूसरी छमाही में उसमें सुधार होने लगा है।
कोविड-19 महामारी के दौरान कृषि की विकास दर में 3.4 फीसदी की वृद्धि होने से जीडीपी में कृषि की हिस्सेदारी 17.8 फीसदी से बढ़ कर 19.9 प्रतिशत हो गई है। सर्वेक्षण रिपोर्ट के मुताबिक 2019-20 में जीडीपी में कृषि की हिस्सेदारी 17.8 प्रतिशत थी, जो 2020-21 में 19.9 प्रतिशत हो जाएगी। दिलचस्प बात यह है कि इससे पहले 2003-04 में कुल जीडीपी में कृषि की हिस्सेदारी 20.77 प्रतिशत थी। इसके बाद लगातार कृषि की हिस्सेदारी कम हो रही है।
यहां यह भी खास बात है कि 2000-01 से अगले दो साल तक जबरदस्त सूखा पड़ने के कारण् कृषि क्षेत्र में नकारात्मक वृद्धि हुई थी। इसके बाद 2003-04 में 9.05 प्रतिशत की जबरदस्त वृद्धि हुई थी।
आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया है कि कोविड-19 की वजह से देश भर में लागू लॉकडाउन का रबी की कटाई और खरीफ की बुवाई पर कोई असर नहीं पड़ा।
वी शेप रिकवरी शुरू
रिपोर्ट बताती है कि वित्त वर्ष 2020-21 की पहली छमाही में जीडीपी में 14.9 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई, जबकि दूसरी छमाही में 0.3 फीसदी की मामूली वृद्धि का अनुमान है। लेकिन इन दोनों ही छमाही में कृषि की विकास दर 3.4 प्रतिशत रही। पहली छमाही में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में 20.5 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई। जबकि पहली छमाही में सेवा क्षेत्र में दो तिहाई हिस्से वाले होटल, व्यापार, परिवहन एवं सूचना क्षेत्र में 31.5 प्रतिशत की कमी रही, हालांकि अगली छमाही में गिरावट में कमी आई और इन क्षेत्रों में कुल 12 फीसदी की कमी दर्ज की गई।
आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया है कि वैश्विक महामारी की वजह से दूसरे देशों की तरह भारत को संकट का सामना करना पड़ा। 2020-21 से पांच साल पहले तक भारत की औसत वृद्धि दर 6.7 प्रतिशत थी। 2021-22 में वास्तविक जीडीपी में तेज रिकवरी होने की संभावना है। जो 10 से 12 फीसदी तक रह सकती है, इसके बाद 2022-23 में 6.5 प्रतिशत, 2023-24 में 7 फीसदी वृद्धि का अनुमान है।
आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया है कि जीडीपी में नॉमिनल ग्रोथ 15.4 फीसदी होगी, जो आजादी के बाद से लेकर अब तक सबसे अधिक रिकॉर्ड होगी। रिपोर्ट के मुताबिक, अगले वित्त वर्ष के दौरान 1991 के बाद अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर सबसे ज्यादा रह सकती है, जबकि नॉमिनल ग्रोथ 1947 के बाद सबसे ज्यादा होगी। (downtoearth.org.in)
-विवेक मिश्रा
आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया है कि असंगठित मजदूरों का आंकड़ा तैयार करने के लिए कदम बढ़ाया जा रहा है, इससे उनके लिए बेहतर नीति बनाने में मदद मिलेगी।
केंद्र सरकार ने आर्थिक सर्वेक्षण 2021-22 में कोरोना महामारी को शताब्दी में एक बार होने वाली त्रासदी कहकर पुकारा है। साथ ही विस्तार से यह भी बताया है कि कैसे लॉकडाउन, सोशल डिस्टेंसिंग और बार-बार साबुन से हाथ धुलने के अभ्यास ने कोरोना संक्रमण को काबू किया है। सरकार के मुताबिक लॉकडाउन का आइडिया स्पैनिश फ्लू, सोशल डिस्टेंसिंग का आइडिया एचएवनएनवन संक्रमण और बार-बार हाथ धोने का विचार लुई पाश्चर से लिया गया है। हालांकि, सरकार ने आर्थिक सर्वेक्षण में यह कहा है कि लॉकडाउन के दौरान हुए देश के सबसे बड़े अंतरराज्यीय पलायन के बारे में उनके पास स्पष्ट तस्वीर नहीं है।
आर्थिक सर्वेक्षण में कोरोना संक्रमण पर काबू पाने के लिए वी-आकार में कोरोना संक्रमण का चढ़ना और उतरना दिखाया गया है और लॉकडाउन को विन-विन सिचुएशन वाला यानी जिसके कारण जिदंगियों को बचाया गया और आर्थिक गति को मध्यम से लंबी अवधि में धीरे-धीरे बढ़ाया भी गया। हालांकि चौंकाने वाला है कि सरकार ने कहा है कि लॉकडाउन के कारण अंतर्राज्यीय स्तर पर पलायन को विवश हुए असंगठित मजदूरों, उनके नौकरी जाने या उनके रहने के ठिकानों के खत्म होने की सरकार की जानकारी बहुत ही कम हैं।
इससे पहले सरकार ने लॉकडाउन के दौरान प्रवासी मजदूरों के पलायन की कुल संख्या एक करोड़ से ज्यादा बताई थी साथ ही लॉकडाउन के दौरान मरने वाले मजदूरों की संख्या पर अनभिज्ञता भी जाहिर की थी। आर्थिक सर्वेक्षण में एक करोड़ से ज्यादा की संख्या भी नहीं बताई गई है।
कोविड-19 ने देशभर में असंगठित मजदूरों को लॉकडाउन ने बुरी तरह से प्रभावित किया है। इनकी संख्या अखिल भारतीय स्तर पर शहरी कामगारों में करीब 11.2 फीसदी है। लॉकडाउन के दौरान एक बड़ी संख्या में इन मजदूरों को पलायन के लिए विवश होना पड़ा।
आर्थिक सर्वेक्षण 2021-2022 के मुताबिक 1 मई 2020 से 31 मई, 2020 के बीच 63.19 लाख प्रवासी मजदूरों ने श्रमिक स्पेशल ट्रेन के जरिए मई से अगस्त,2020 के दौरान यात्रा की। वहीं, राज्यों से राज्यों में होने वाले पलायन को लेकर बहुत ही सीमित जानकारी का हवाला देकर कोई संख्या नहीं बताई गई है। लॉकडाउन के कारण कितने प्रवासियों की नौकरी गई और उनका सुविधाएं खत्म हुई और उन्हें घर को लौटना पड़ा, इस मुद्दे पर अनभिज्ञता जाहिर की गई है।
सर्वेक्षण में कहा गया है कि प्रवासी मजदूरों के आंकडो़ं का न होने का प्रमुख कारण अंतरराज्यीय प्रवासी मजूदरों की परिभाषा बहुत ही बंधी हुई और सीमित है। श्रम एवं रोजगार मंत्रालय ने इस संबंध में कदम बढ़ाना शुरू कर दिया है। साथ ही प्रवासी के साथ असंगठित मजदूरों को डाटाबेस बनाया जा रहा है, जिससे प्रवासी मजदूरों को रोजगार मिलने में आसानी होगी। उनके हुनर को भी आंकड़ों के साथ जोड़ा जा रहा है। इससे असंगठित मजदूरों के लिए बेहतर नीति बनाने में भी मदद मिलेगी।
हालांकि, सर्वेक्षण में कहा गया है कि सरकार ने प्री-लॉकडाउन और लॉकडाउन की अवधि में मजदूरों के कल्याण के लिए कई पहल की हैं।
मसलन, प्रधानमंत्री गरीब कल्याण पैकेज (पीएमजीकेपी) के तहत वित्तीय सहायता के तौर पर बिल्डिंग एंड अदर कंसट्रक्शन वर्कर्स (बीओसीडब्लयू) उपकर के तहत जो पैसे वसूले गए थे उन्हें भवन व अन्य निर्माण मजदूरों को दिया गया। 31 राज्यों और संघ शासित प्रदेशों की तरफ से कुल 4973.65 करोड़ रुपये 2 करोड़ मजदूरों को बांटे गए। इसके तहत अलग-अलग राज्यों में 1000 रुपये से लेकर 6000 रुपये तक की नगदी सहायता मजदूरों को दी गई थी।
आर्थिक सर्वेक्षण के मुताबिक आत्मनिर्भर भारत योजना के तहत मुफ्त अनाज वितरण आपूर्ति का प्रावधान प्रवासी मजदूरों को पहले मई-जून यानी दो महीनों के लिए किया गया। इसके तहत 2 महीनों में कुल 3500 करोड़ रुपए (0.02 फीसदी जीडीपी के बराबर) की लागत का मुफ्त अनाज दिया गया। बाद में इसे विस्तारित कर दिया गया।
आत्म निर्भर भारत पैकेज के तहत मई-जून के दौरान प्रत्येक महीने 5 किलो चावल और गेहूं प्रति व्यक्ति को दिया गया। इससे उन 8 करोड़ प्रवासी मजदूरों को फायदा मिला जो राष्ट्रीय योजना एनएफएसए के दायरे में नहीं हैं। सर्वेक्षण के मुताबिक वितरण की अवधि को 31 अगस्त, 2020 तक भी बढ़ाया गया।
आर्थिक सर्वेक्षण में यह स्वीकार किया गया है कि लॉकडाउन के कारण गांव और घर को लौटे प्रवासी मजदूरों के सामने बड़ा रोजगार संकट था। जिसे मनरेगा और ग्रामीण कल्याण रोजगार योजना के तहत पूरा किया गया।
छह राज्यों में 125 दिनों के लिए ग्रामीण कल्याण रोजगार योजना 20 जून, 2020 को शुरू की गई थी। सर्वेक्षण के मुताबिक सामुदायिक स्तर पर भवन निर्माण और संरचनाओं के निर्माण को लेकर इस योजना में काम की गति दी गई ताकि प्रवासी मजदूरों को आजीविका हासिल हो।
20 जून से 22 अक्तूबर, 2020 तक कुल 40.34 करोड़ लोगों को काम दिया गया। इसमें बिहार के 32 जिले, झारखंड के 3 जिले, मध्य प्रदेस के 24 जिले, उड़ीसा के 4 जिले, राजस्थान के 22 जिले, उत्तर प्रदेश के 31 जिले शामिल थे। जिन राज्यों के जिलों में 25 हजार से ज्यादा प्रवासी मजदूर लौटे थे उन जिलों का चयन किया गया था। इसमें सबसे ज्यादा 159,697 जल संरक्षण के लिए संरचनाएं बनाई गईं।
आर्थिक सर्वेक्षण के दावों के इतर, लॉकडाउन के दौरान कई प्रवासी मजदूरों ने हजारो किलोमीटर पैदल यात्राएं की, भयंकर गर्मी के दौरान रास्तों में कई कष्ट उठाने पड़े। वहीं, इस दौरान कई श्रमिकों की मौत भी हो गई। (downtoearth.org.in)
2025 तक बाल मजदूरी को पूरी तरह मिटाने का संकल्प पूरा होता कम नजर आ रहा है. सच्चाई यह है कि दुनिया में अभी भी लाखों बच्चे श्रम करने को मजबूर हैं. कोरोना वायरस की वजह से उनकी जिंदगी और कठिन हुई है.
2025 तक बाल श्रम पर रोक लगाने का लक्ष्य वैश्विक वास्तविकताओं से परे नजर आता है. बाल मजदूरी करने वाले बच्चे बदतर गरीबी और हाशिए पर धकेले जा सकते हैं. शिक्षाविदों के एक समूह ने अधिक यथार्थवादी लक्ष्यों के लिए आग्रह किया है. पिछले सप्ताह संयुक्त राष्ट्र ने साल 2021 को बाल श्रम उन्मूलन के अंतरराष्ट्रीय वर्ष के रूप में मनाने की शुरूआत की है. यूएन का कहना है कि इस दिशा में तत्काल कदम उठाए जाने की जरूरत है क्योंकि कोविड-19 के कारण अधिक बच्चे खतरे में आते दिख रहे हैं और सालों की प्रगति संकट में पड़ती दिख रही है.
शिक्षाविदों के मुताबिक उद्देश्य महामारी के पहले भी अवास्तविक था. कोरोना महामारी ने स्कूली शिक्षा को बाधित किया और इस दौरान दुनिया भर के लाखों बच्चों के लिए मुसीबतें बढ़ी हैं. ओपन डेमोक्रेसी द्वारा प्रकाशित एक खुले खत में 101 प्रोफेसरों और शोधकर्ताओं ने हस्ताक्षर किए हैं. उन्होंने खत में लिखा, "उन्हें काम से हटाने से कोई मदद नहीं मिलने वाली है और टूटी हुई जिंदगी को संवारने के लिए उन्होंने जो काम किया वह उन्हें गहरी भुखमरी की ओर ले जाता है."
शिक्षाविदों का कहना है कि इसके बजाय ऐसी नीतियां बनाई जानी चाहिए जो काम करने वाले बच्चों और उनके परिवारों को विभिन्न अनुभवों और इससे निपटने में मदद कर सके. साथ ही वैज्ञानिक अनुसंधान की भी उन्होंने सिफारिश की है. ट्रॉनहैम में नार्वे विज्ञान और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय में प्रोफेसर ततेक अबेबे के मुताबिक, "बाल श्रम के उन्मूलन का वर्तमान वैश्विक प्रयास गोरे, पश्चिमी, मध्यम वर्ग के बचपन के आदर्श के अनुभवों पर आधारित है."
हस्ताक्षर करने वालों में अबेबे भी शामिल हैं. वे कहते हैं, "यह इस विश्वास पर आधारित है कि बच्चों को स्कूल जाना चाहिए और उन्हें मजदूरी नहीं करनी चाहिए. हालांकि सच्चाई यह है कि दुनिया के अधिकांश हिस्सों में बच्चों का जीवन श्रम-मुक्त नहीं है." खत में कहा गया है कि उपयुक्त कार्य शैक्षिक लाभ ला सकता है और इसे प्रोत्साहित किया जाना चाहिए.
खत में दीर्घकालिक रणनीतियों को अपनाने के लिए कहा गया है जिनमें हानिकारक बाल श्रम को खत्म करने के तरीकों में सुधार करना शामिल है और बाल मजदूरी पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाने के प्रयासों के बजाय बच्चों की हालत सुधारने पर जोर देने को कहा गया है. एए/सीके (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)
हैदराबाद, 29 जनवरी| तेलंगाना के महबूबबाद जिले में शुक्रवार को तेज रफ्तार ट्रक की चपेट में आने से छह लोगों की मौत हो गई। मृतकों में तीन महिलाएं शामिल हैं जो वारंगल में शादी की खरीदारी करने के लिए गई थीं। हादसा महबूबबाद जिले के गुडरु मंडल में मैरीमिटा के पास हुआ। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार तेज रफ्तार ट्रक ने तीन पहिया वाहन को कुचल दिया।
टक्कर में ऑटो-रिक्शा पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गया।
इस बीच, मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव ने सड़क दुर्घटना में छह लोगों की मौत पर शोक व्यक्त किया। उन्होंने शोक संतप्त परिवारों के सदस्यों के प्रति संवेदना व्यक्त की।
मुख्यमंत्री ने पुलिस अधिकारियों से दुर्घटना के बारे में जानकारी ली और घायलों को तुरंत चिकित्सा मुहैया कराने के निर्देश दिए। (आईएएनएस)
कोलकाता, 29 जनवरी| केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की कोलकाता की दो दिवसीय यात्रा से कुछ घंटे पहले तृणमूल कांग्रेस के विधायक राजीब बनर्जी ने शुक्रवार को पश्चिम बंगाल विधानसभा से इस्तीफा दे दिया। इससे पहले बनर्जी ने 22 जनवरी को राज्य के वन मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया था। बनर्जी हावड़ा डोमजूर विधानसभा क्षेत्र से विधायक थे। उन्होंने विधानसभा में स्पीकर बिमान बनर्जी से मुलाकात की और अपना इस्तीफा दे दिया।
उन्होंने कहा, "मैं पश्चिम बंगाल विधान सभा के सदस्य के रूप में इस्तीफा दे रहा हूं। पश्चिम बंगाल के लोगों के लिए काम करना मेरे जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि रही है। मैं अपने करीब 10 साल के कार्यकाल को पूरा किया है, जिसके लिए मैं आभारी हूं।"
अटकलें लगाई जा रही हैं कि बनर्जी 31 जनवरी को अमित शाह की रैली के दौरान भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में शामिल हो सकते हैं। वहीं तृणमूल कांग्रेस के एक अन्य विधायक वैशाली डालमिया शाह की मौजूदगी में भाजपा में शामिल हो सकते हैं। डालमिया को तृणमूल से निलंबित कर दिया गया था। (आईएएनएस)
-रजनीश कुमार
नेपाल की राजधानी काठमांडू से चितवन की दूरी लगभग 170 किलोमीटर है.
वहाँ जाने के लिए एक टैक्सी किया. टैक्सी के तौर पर स्कॉर्पियो मिली. टैक्सी ड्राइवर लक्ष्मण लौडारी भारत समेत सऊदी अरब में 10 साल तक रहे हैं. लक्ष्मण ने काठमांडू से चितवन आने-जाने के लिए लगभग 11 हज़ार भारतीय रुपए लिए. अगर दिल्ली में इतनी दूरी के लिए यही टैक्सी करते, तो लगभग चार हज़ार रुपए देने पड़ते.
लक्ष्मण से पूछा कि इतना ज़्यादा पैसा क्यों ले रहे हैं?
इस पर लक्ष्मण ने हँसते हुए कहा, "मुझे सरकार लूट रही है और हम जनता को लूट रहे हैं. आपको पता है मैंने ये स्कॉर्पियो कितने में ख़रीदी है? दो साल पहले सेकंड हैंड ये स्कॉर्पियो लगभग 22 लाख भारतीय रुपए में ख़रीदी थी. भारत में तीन लाख रुपए और लगा देता तो दो नई स्कॉर्पियों ख़रीद लेता. अब ये मत पूछिएगा कि इतना पैसा क्यों चार्ज कर रहे हैं."
लक्ष्मण ग़ुस्से में कहते हैं, हमसे सरकार केवल वसूली करती है और देती कुछ नहीं है."
दरअसल, नेपाल में सरकार मोटर वीइकल टैक्स बोरा भरकर लेती है. नेपाल सरकार भारत से गाड़ी ख़रीदने पर एक्साइज, कस्टम, स्पेयर पार्ट्स, रोड और वैट मिलाकर कुल 250 फ़ीसदी से ज़्यादा टैक्स लेती है. इस वजह से यहाँ गाड़ियाँ भारत की तुलना में लगभग चार गुनी महंगी मिलती हैं.
बाइक की क़ीमत भी नेपाल आसमान छू रही है. नेपाल सरकार का कहना है कि ये लग्ज़री कैटिगरी में हैं, इसलिए ज़्यादा टैक्स लगाए जाते हैं.
हालाँकि नेपाल में पब्लिक ट्रांसपोर्ट इतनी भी अच्छी नहीं है कि इन्हें लग्ज़री समझा जाए.
काठमांडू यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र के प्रोफ़ेसर विश्व पौडेल कहते हैं, "जब तक नेपाल में राणाशाही रही, तब तक यहाँ के लोगों को खुलकर जीने नहीं दिया गया. राणाशाही को नेपालियों के सुख-सुविधा में जीने देना पसंद नहीं था. वहीं चीज़ें आज भी जारी हैं."
"मोटर-गाड़ी पर 250 से 300 प्रतिशत तक टैक्स लगाने का कोई मतलब नहीं है. अच्छा होता कि सरकार इसके बदले टोल टैक्स लेती और सड़क बनाने पर ज़्यादा ज़ोर देती. काठमांडू से वीरगंज की दूरी 150 किलोमीटर से भी कम है और वहाँ से ट्रकों को आने में दो दिन का वक़्त लता है. नेपाल में सड़कों की हालत बहुत बुरी है."
विश्व पौडेल कहते हैं कि सरकार को राजस्व बढ़ाने का कोई और ज़रिया समझ में नहीं आता इसलिए बेमसझ और बेशुमार टैक्स लगाती है.
वो कहते हैं, "नेपाल विदेशी मुद्रा के लिए टैक्स और विदेशों में काम कर रहे अपने नागरिकों पर निर्भर है. यहाँ निवेश के नाम पर सन्नाटा है. कोई निवेश भी करने आता है, तो बुनियादी सुविधाएँ नहीं हैं. सड़क, बिजली, पानी, स्किल्ड लेबर और सुगम सरकारी तंत्र नहीं है. एक मानसिकता ये भी है कि कोई विदेशी कंपनी आएगी, तो देश पर क़ब्ज़ा कर लेगी. ऐसे में कौन निवेश करेगा."
विश्व पौडेल कहते हैं कि नेपाल की सरकार नहीं चाहती है कि नागरिकों को सस्ते में सामान मिले. बात केवल कार और बाइक की नहीं है. यहाँ खाने-पीने के सामान भी उतने ही महँगे हैं. एक कप चाय के लिए कम से कम 14 भारतीय रुपए देने होंगे.
नेपाल का एक स्थानीय बाज़ार
रेस्तरां में खाने जा रहे हैं, तो एक हज़ार रुपए से कम नहीं लगेंगे. यहाँ मटन 900 रुपए किलो है. अभी आलू का सीज़न है, लेकिन यहाँ नेपाली रुपए में आलू 45 रुपए किलो है और प्याज 90 रुपए किलो है.
भारत की आरबीआई की तरह नेपाल में राष्ट्र बैंक है. नेपाल राष्ट्र बैंक के पूर्व कार्यकारी निदेशक नरबहादुर थापा कहते हैं कि क़ीमतों की तुलना भारत से करने का कोई मतलब नहीं है.
थापा कहते हैं, "हम लैंडलॉक्ड देश हैं. हम समंदर से जुड़े नहीं हैं. नेपाल के कुल अंतरराष्ट्रीय व्यापार का 65 फ़ीसदी से ज़्यादा भारत से होता है. वो भी एकतरफ़ा है. हम आयात ज़्यादा करते हैं. निर्यात के नाम पर कुछ कृषि उत्पाद हम भारत से बेचते हैं. ऐसे में देश को चलाने के लिए राजस्व जुटाने का विकल्प भारी टैक्स के आलावा कुछ दिखता नहीं है."
नरबहादुर थापा कहते हैं, "नेपाल की अर्थव्यवस्था का आकार लगभग 35 अरब डॉलर का है. इसमें सबसे ज़्यादा योदगान सर्विस और कृषि सेक्टर का है. मैन्युफैक्चरिंग न के बराबर है. हम नेपाल की तुलना बांग्लादेश से भी नहीं कर सकते हैं. बांग्लादेश के पास समंदर है. मेरे पास तो भारत के अलावा कोई विकल्प ही नहीं है. चीन है, तो अभी चीज़ें विकसित नहीं हो पाई हैं."
हालाँकि विश्व पौडेल कहते हैं कि बांग्लादेश अगर रेडिमेड कपड़ा बनाने में अव्वल हो सकता है, जेनरिक दवाइयाँ बनाने में भारत के बाद दूसरे नंबर पर आ सकता है, तो नेपाल ऐसा क्यों नहीं कर सकता है.
वो कहते हैं, "एक तो यहाँ राजनीतिक माहौल नहीं है. ढंग से पढ़े-लिखे नेपालियों को यहाँ एक अच्छी नौकरी नहीं मिल सकती. अगर कोई बिहारी खाड़ी के देशों में नौकरी करता है, तो वो एक साल कमाकर बिहार में अपना अच्छा घर बना लेता है. वही काम नेपाली नहीं कर सकता. नेपाली को घर बनाने में कम से कम एक करोड़ रुपए ख़र्च करने होंगे."
नेपाल ऑटोमोबिल डीलर असोसिएशन के अध्यक्ष कृष्ण प्रसाद दुलाल कहते हैं कि टैक्स से देश चल रहा है, तो भारी टैक्स लगाया जा रहा है. दुलाल कहते हैं, "नेपाल में पिछले 40 सालों से कोई नई सड़क नहीं बनी. सरकार बहाना करती है कि टैक्स नहीं लगाएँगे, तो सड़क पर गाड़ियाँ बढ़ जाएँगी. अब ये तो अजीब बात है कि पिछले चार दशक से सड़क नहीं बनाओ और गाड़ियाँ कम करने के लिए भारी टैक्स लगा दो."
दुलाल कहते हैं, "ये जनता को बताते हैं कि नेपाल में गाड़ियाँ ज़्यादा हो गई हैं, जबकि सच ये है कि नेपाल में सड़कें कम हैं. ये 300 फ़ीसदी टैक्स ले रहे हैं. इन्हें सड़क बनाने पर ध्यान देना चाहिए था. लेकिन सारे प्रोजेक्ट लटके पड़े हैं."
"राजनीतिक अस्थिरता थमने का नाम नहीं ले रही. ऐसे में विकास कहाँ से होगा. 90 फ़ीसदी गाड़ियाँ भारत से नेपाल में आती हैं. अब बजाज और टीवीएस बाइक की एसेंबलिंग नेपाल में ही शुरू होने जा रही है. हालाँकि इसका फ़ायदा जनता को शायद ही मिले. इसके लिए ज़रूरी है कि सरकार टैक्स कम करे."
नेपाल
दुलाल कहते हैं कि यहाँ टैक्सी का किराया इसलिए भी ज़्यादा है, क्योंकि स्पेयर पार्ट्स पर 40 फ़ीसदी का टैक्स लगता है. सड़कें ख़राब हैं, तो सर्विसिंग जल्दी करानी पड़ती है. जाम भयानक लगता है.
इसमें टाइम और तेल की खपत भी ज़्यादा होती है. दुलाल कहते हैं कि अभी कोई उम्मीद नहीं दिखती कि सरकार इन पर टैक्स कम करेगी.
नेपाल में बिजली भी काफ़ी महंगी है. यहाँ के लोग 12 रुपए प्रति यूनिट से बिजली का बिल भरते हैं. सड़क किनारे जिन सैलूनों में भारत में 20 से 50 रुपए में हेयर कटिंग हो जाती है, वही हेयर कटिंग के लिए यहाँ 220 नेपाली रुपए देने पड़ते हैं. किताब, नोटबुक, कलम और दवाइयाँ में नेपाल में बहुत महंगी हैं.
मधेस में रोहतट के शिवशंकर ठाकुर काठमांडू के धोबीघाट इलाक़े में सड़क किनारे बाल काटते हैं. उन्होंने जब बाल काटने के बाद 220 रुपए लिए, तो मैंने कहा कि बहुत ही ज़्यादा ले रहे हैं. शिवशंकर ठाकुर ने कहा आप अंदाज़ा लगाइए हम इस झोपड़ी का किराया कितना देते हैं... मैंने कहा- दो हज़ार रुपए. शिवशंकर ठाकुर हँसने लगे और बोले कि इसका किराया 10 हज़ार है.
अगर आप नेपाल ये सोचकर घूमने आते हैं कि सस्ते में घूम लेंगे, तो निराशा हाथ ललेगी. पोखरा और सोलुखुंबु को सिंगापुर जितना महंगा बताया जाता है. सोलुखुंबु वही जगह है जहां से माउंट एवरेस्ट पर लोग चढ़ाई शुरू करते हैं. (bbc.com)
द हिंदू की ख़बर के मुताबिक़, भारत के पूर्व उप-राष्ट्रपति हामिद अंसारी ने कहा है कि बुनियादी उसूलों में गिरावट आई है और सरकारी अधिकारियों के शब्दकोष से धर्मनिरपेक्षता शब्द 'लगभग ग़ायब' हो गया है.
हामिद अंसारी ने अपनी आत्मकथा 'बाय मेनी ए हैप्पी एक्सीडेंट' में लिखा है कि "बुनियादी उसूलों की इस गिरावट में अन्य सामाजिक और राजनीतिक ताक़तों की नाकामी शामिल है, जिन पर इस गिरावट को रोकने की ज़िम्मेदारी थी."
हामिद अंसारी का मानना है कि समावेशी संस्कृति, भाईचारा और वैज्ञानिक सोच जैसे संवैधानिक मूल्य भी राजनीतिक पटल से धीरे-धीरे ग़ायब होते जा रहे हैं और उनकी जगह विपरीत मान्यताओं को बढ़ावा दिया जा रहा है.
उप-राष्ट्रपति बनने से पहले भारतीय विदेश सेवा में रहे हामिद अंसारी का तर्क है कि विधि के शासन पर गंभीर ख़तरा मंडरा रहा है और इसके पीछे सरकारी प्रतिष्ठानों की कार्य-कुशलता में कमी और मनमाने तरीक़े से फ़ैसले करने जैसी वजहें ज़िम्मेदार हैं.
उन्होंने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि लोकप्रियता की सफलता, किसी विचारधारा की सफलता नहीं बल्कि सत्ता हासिल करने और सत्ता में बने रहने की रणनीति है, फिर चाहे उसके लिए साज़िश करना पड़े, पूरे विपक्ष का अपराधीकरण करना पड़े और विदेशी ख़तरों का डर दिखाना पड़े. (bbc.com)
नई दिल्ली, 29 जनवरी। एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने राजदीप सरदेसाई, मृणाल पांडे और जफर आगा जैसे छह वरिष्ठ पत्रकारों के खिलाफ मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा दर्ज की गई एफआईआर के कदम की निंदा की है। इन पत्रकारों पर किसानों की गणतंत्र दिवस पर ट्रैक्टर परेड तथा उस दौरान हुई हिंसा की रिपोर्टिंग करने को लेकर एफआईआर दर्ज की गई है।
गिल्ड ने एफआईआर को ‘‘डराने-धमकाने, प्रताड़ित करने तथा दबाने’’ का प्रयास बताया। साथ ही मांग की है कि एफआईआर तुरंत वापस ली जाएं तथा मीडिया को बिना किसी डर के आजादी के साथ रिपोर्टिंग करने की इजाजत दी जाए। वक्तव्य में कहा गया कि एक प्रदर्शनकारी की मौत से जुड़ी घटना की रिपोर्टिंग करने, घटनाक्रम की जानकारी अपने निजी सोशल मीडिया हैंडल पर तथा अपने प्रकाशनों पर देने पर पत्रकारों को खासतौर पर निशाना बनाया गया।
गिल्ड ने कहा, ‘‘यह ध्यान रहे कि प्रदर्शन एवं कार्रवाई वाले दिन, घटनास्थल पर मौजूद प्रत्यक्षदर्शियों तथा पुलिस की ओर से अनेक सूचनाएं मिलीं। अत: पत्रकारों के लिए यह स्वाभाविक बात थी कि वे इन जानकारियों की रिपोर्ट करें। यह पत्रकारिता के स्थापित नियमों के अनुरूप ही था।’’
गिल्ड ‘‘उत्तर प्रदेश एवं मध्य प्रदेश पुलिस के डराने-धमकाने के तरीके की कड़ी निंदा करता है’’ जिन्होंने किसानों की प्रदर्शन रैलियों और हिंसा की रिपोर्टिंग करने पर वरिष्ठ संपादकों एवं पत्रकारों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कीं। गिल्ड ने कहा कि इन एफआईआर में आरोप लगाया गया है कि पत्रकारों के ट्वीट दुर्भावनापूर्ण थे और लाल किले पर उपद्रव का कारण बने। उसने कहा कि कि इससे ज्यादा कुछ भी सच्चाई से परे नहीं हो सकता है। उसने कहा, ‘‘उस दिन ढेर सारी सूचनाएं मिल रही थीं। ईजीआई ने पाया कि विभिन्न राज्यों में दर्ज ये प्राथमिकियां मीडिया को चुप कराने, डराने-धमकाने तथा प्रताड़ित करने के लिए थीं।’’
उसने कहा कि ये एफआईआर दस भिन्न प्रावधानों के तहत दर्ज की गई हैं जिनमें राजद्रोह के कानून, सांप्रदायिक सौहार्द्र बिगाड़ना, धार्मिक मान्यताओं को अपमानित करना आदि शामिल हैं।
इसके पहले नोएडा पुलिस ने कांग्रेस सांसद शशि थरूर और छह पत्रकारों के खिलाफ राजद्रोह समेत अन्य आरोपों में मामला दर्ज किया है। जिन पत्रकारों के नाम प्राथमिकी में हैं, उनमें मृणाल पांडे, राजदीप सरदेसाई, विनोद जोस, जफर आगा, परेश नाथ और अनंत नाथ शामिल हैं। एक अनाम व्यक्ति के खिलाफ भी एफआईआर दर्ज कराई गई है। (outlookhindi.com)