राष्ट्रीय
कोलकाता, 29 जनवरी| केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की कोलकाता की दो दिवसीय यात्रा से कुछ घंटे पहले तृणमूल कांग्रेस के विधायक राजीब बनर्जी ने शुक्रवार को पश्चिम बंगाल विधानसभा से इस्तीफा दे दिया। इससे पहले बनर्जी ने 22 जनवरी को राज्य के वन मंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया था। बनर्जी हावड़ा डोमजूर विधानसभा क्षेत्र से विधायक थे। उन्होंने विधानसभा में स्पीकर बिमान बनर्जी से मुलाकात की और अपना इस्तीफा दे दिया।
उन्होंने कहा, "मैं पश्चिम बंगाल विधान सभा के सदस्य के रूप में इस्तीफा दे रहा हूं। पश्चिम बंगाल के लोगों के लिए काम करना मेरे जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि रही है। मैं अपने करीब 10 साल के कार्यकाल को पूरा किया है, जिसके लिए मैं आभारी हूं।"
अटकलें लगाई जा रही हैं कि बनर्जी 31 जनवरी को अमित शाह की रैली के दौरान भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में शामिल हो सकते हैं। वहीं तृणमूल कांग्रेस के एक अन्य विधायक वैशाली डालमिया शाह की मौजूदगी में भाजपा में शामिल हो सकते हैं। डालमिया को तृणमूल से निलंबित कर दिया गया था। (आईएएनएस)
-रजनीश कुमार
नेपाल की राजधानी काठमांडू से चितवन की दूरी लगभग 170 किलोमीटर है.
वहाँ जाने के लिए एक टैक्सी किया. टैक्सी के तौर पर स्कॉर्पियो मिली. टैक्सी ड्राइवर लक्ष्मण लौडारी भारत समेत सऊदी अरब में 10 साल तक रहे हैं. लक्ष्मण ने काठमांडू से चितवन आने-जाने के लिए लगभग 11 हज़ार भारतीय रुपए लिए. अगर दिल्ली में इतनी दूरी के लिए यही टैक्सी करते, तो लगभग चार हज़ार रुपए देने पड़ते.
लक्ष्मण से पूछा कि इतना ज़्यादा पैसा क्यों ले रहे हैं?
इस पर लक्ष्मण ने हँसते हुए कहा, "मुझे सरकार लूट रही है और हम जनता को लूट रहे हैं. आपको पता है मैंने ये स्कॉर्पियो कितने में ख़रीदी है? दो साल पहले सेकंड हैंड ये स्कॉर्पियो लगभग 22 लाख भारतीय रुपए में ख़रीदी थी. भारत में तीन लाख रुपए और लगा देता तो दो नई स्कॉर्पियों ख़रीद लेता. अब ये मत पूछिएगा कि इतना पैसा क्यों चार्ज कर रहे हैं."
लक्ष्मण ग़ुस्से में कहते हैं, हमसे सरकार केवल वसूली करती है और देती कुछ नहीं है."
दरअसल, नेपाल में सरकार मोटर वीइकल टैक्स बोरा भरकर लेती है. नेपाल सरकार भारत से गाड़ी ख़रीदने पर एक्साइज, कस्टम, स्पेयर पार्ट्स, रोड और वैट मिलाकर कुल 250 फ़ीसदी से ज़्यादा टैक्स लेती है. इस वजह से यहाँ गाड़ियाँ भारत की तुलना में लगभग चार गुनी महंगी मिलती हैं.
बाइक की क़ीमत भी नेपाल आसमान छू रही है. नेपाल सरकार का कहना है कि ये लग्ज़री कैटिगरी में हैं, इसलिए ज़्यादा टैक्स लगाए जाते हैं.
हालाँकि नेपाल में पब्लिक ट्रांसपोर्ट इतनी भी अच्छी नहीं है कि इन्हें लग्ज़री समझा जाए.
काठमांडू यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र के प्रोफ़ेसर विश्व पौडेल कहते हैं, "जब तक नेपाल में राणाशाही रही, तब तक यहाँ के लोगों को खुलकर जीने नहीं दिया गया. राणाशाही को नेपालियों के सुख-सुविधा में जीने देना पसंद नहीं था. वहीं चीज़ें आज भी जारी हैं."
"मोटर-गाड़ी पर 250 से 300 प्रतिशत तक टैक्स लगाने का कोई मतलब नहीं है. अच्छा होता कि सरकार इसके बदले टोल टैक्स लेती और सड़क बनाने पर ज़्यादा ज़ोर देती. काठमांडू से वीरगंज की दूरी 150 किलोमीटर से भी कम है और वहाँ से ट्रकों को आने में दो दिन का वक़्त लता है. नेपाल में सड़कों की हालत बहुत बुरी है."
विश्व पौडेल कहते हैं कि सरकार को राजस्व बढ़ाने का कोई और ज़रिया समझ में नहीं आता इसलिए बेमसझ और बेशुमार टैक्स लगाती है.
वो कहते हैं, "नेपाल विदेशी मुद्रा के लिए टैक्स और विदेशों में काम कर रहे अपने नागरिकों पर निर्भर है. यहाँ निवेश के नाम पर सन्नाटा है. कोई निवेश भी करने आता है, तो बुनियादी सुविधाएँ नहीं हैं. सड़क, बिजली, पानी, स्किल्ड लेबर और सुगम सरकारी तंत्र नहीं है. एक मानसिकता ये भी है कि कोई विदेशी कंपनी आएगी, तो देश पर क़ब्ज़ा कर लेगी. ऐसे में कौन निवेश करेगा."
विश्व पौडेल कहते हैं कि नेपाल की सरकार नहीं चाहती है कि नागरिकों को सस्ते में सामान मिले. बात केवल कार और बाइक की नहीं है. यहाँ खाने-पीने के सामान भी उतने ही महँगे हैं. एक कप चाय के लिए कम से कम 14 भारतीय रुपए देने होंगे.
नेपाल का एक स्थानीय बाज़ार
रेस्तरां में खाने जा रहे हैं, तो एक हज़ार रुपए से कम नहीं लगेंगे. यहाँ मटन 900 रुपए किलो है. अभी आलू का सीज़न है, लेकिन यहाँ नेपाली रुपए में आलू 45 रुपए किलो है और प्याज 90 रुपए किलो है.
भारत की आरबीआई की तरह नेपाल में राष्ट्र बैंक है. नेपाल राष्ट्र बैंक के पूर्व कार्यकारी निदेशक नरबहादुर थापा कहते हैं कि क़ीमतों की तुलना भारत से करने का कोई मतलब नहीं है.
थापा कहते हैं, "हम लैंडलॉक्ड देश हैं. हम समंदर से जुड़े नहीं हैं. नेपाल के कुल अंतरराष्ट्रीय व्यापार का 65 फ़ीसदी से ज़्यादा भारत से होता है. वो भी एकतरफ़ा है. हम आयात ज़्यादा करते हैं. निर्यात के नाम पर कुछ कृषि उत्पाद हम भारत से बेचते हैं. ऐसे में देश को चलाने के लिए राजस्व जुटाने का विकल्प भारी टैक्स के आलावा कुछ दिखता नहीं है."
नरबहादुर थापा कहते हैं, "नेपाल की अर्थव्यवस्था का आकार लगभग 35 अरब डॉलर का है. इसमें सबसे ज़्यादा योदगान सर्विस और कृषि सेक्टर का है. मैन्युफैक्चरिंग न के बराबर है. हम नेपाल की तुलना बांग्लादेश से भी नहीं कर सकते हैं. बांग्लादेश के पास समंदर है. मेरे पास तो भारत के अलावा कोई विकल्प ही नहीं है. चीन है, तो अभी चीज़ें विकसित नहीं हो पाई हैं."
हालाँकि विश्व पौडेल कहते हैं कि बांग्लादेश अगर रेडिमेड कपड़ा बनाने में अव्वल हो सकता है, जेनरिक दवाइयाँ बनाने में भारत के बाद दूसरे नंबर पर आ सकता है, तो नेपाल ऐसा क्यों नहीं कर सकता है.
वो कहते हैं, "एक तो यहाँ राजनीतिक माहौल नहीं है. ढंग से पढ़े-लिखे नेपालियों को यहाँ एक अच्छी नौकरी नहीं मिल सकती. अगर कोई बिहारी खाड़ी के देशों में नौकरी करता है, तो वो एक साल कमाकर बिहार में अपना अच्छा घर बना लेता है. वही काम नेपाली नहीं कर सकता. नेपाली को घर बनाने में कम से कम एक करोड़ रुपए ख़र्च करने होंगे."
नेपाल ऑटोमोबिल डीलर असोसिएशन के अध्यक्ष कृष्ण प्रसाद दुलाल कहते हैं कि टैक्स से देश चल रहा है, तो भारी टैक्स लगाया जा रहा है. दुलाल कहते हैं, "नेपाल में पिछले 40 सालों से कोई नई सड़क नहीं बनी. सरकार बहाना करती है कि टैक्स नहीं लगाएँगे, तो सड़क पर गाड़ियाँ बढ़ जाएँगी. अब ये तो अजीब बात है कि पिछले चार दशक से सड़क नहीं बनाओ और गाड़ियाँ कम करने के लिए भारी टैक्स लगा दो."
दुलाल कहते हैं, "ये जनता को बताते हैं कि नेपाल में गाड़ियाँ ज़्यादा हो गई हैं, जबकि सच ये है कि नेपाल में सड़कें कम हैं. ये 300 फ़ीसदी टैक्स ले रहे हैं. इन्हें सड़क बनाने पर ध्यान देना चाहिए था. लेकिन सारे प्रोजेक्ट लटके पड़े हैं."
"राजनीतिक अस्थिरता थमने का नाम नहीं ले रही. ऐसे में विकास कहाँ से होगा. 90 फ़ीसदी गाड़ियाँ भारत से नेपाल में आती हैं. अब बजाज और टीवीएस बाइक की एसेंबलिंग नेपाल में ही शुरू होने जा रही है. हालाँकि इसका फ़ायदा जनता को शायद ही मिले. इसके लिए ज़रूरी है कि सरकार टैक्स कम करे."
नेपाल
दुलाल कहते हैं कि यहाँ टैक्सी का किराया इसलिए भी ज़्यादा है, क्योंकि स्पेयर पार्ट्स पर 40 फ़ीसदी का टैक्स लगता है. सड़कें ख़राब हैं, तो सर्विसिंग जल्दी करानी पड़ती है. जाम भयानक लगता है.
इसमें टाइम और तेल की खपत भी ज़्यादा होती है. दुलाल कहते हैं कि अभी कोई उम्मीद नहीं दिखती कि सरकार इन पर टैक्स कम करेगी.
नेपाल में बिजली भी काफ़ी महंगी है. यहाँ के लोग 12 रुपए प्रति यूनिट से बिजली का बिल भरते हैं. सड़क किनारे जिन सैलूनों में भारत में 20 से 50 रुपए में हेयर कटिंग हो जाती है, वही हेयर कटिंग के लिए यहाँ 220 नेपाली रुपए देने पड़ते हैं. किताब, नोटबुक, कलम और दवाइयाँ में नेपाल में बहुत महंगी हैं.
मधेस में रोहतट के शिवशंकर ठाकुर काठमांडू के धोबीघाट इलाक़े में सड़क किनारे बाल काटते हैं. उन्होंने जब बाल काटने के बाद 220 रुपए लिए, तो मैंने कहा कि बहुत ही ज़्यादा ले रहे हैं. शिवशंकर ठाकुर ने कहा आप अंदाज़ा लगाइए हम इस झोपड़ी का किराया कितना देते हैं... मैंने कहा- दो हज़ार रुपए. शिवशंकर ठाकुर हँसने लगे और बोले कि इसका किराया 10 हज़ार है.
अगर आप नेपाल ये सोचकर घूमने आते हैं कि सस्ते में घूम लेंगे, तो निराशा हाथ ललेगी. पोखरा और सोलुखुंबु को सिंगापुर जितना महंगा बताया जाता है. सोलुखुंबु वही जगह है जहां से माउंट एवरेस्ट पर लोग चढ़ाई शुरू करते हैं. (bbc.com)
द हिंदू की ख़बर के मुताबिक़, भारत के पूर्व उप-राष्ट्रपति हामिद अंसारी ने कहा है कि बुनियादी उसूलों में गिरावट आई है और सरकारी अधिकारियों के शब्दकोष से धर्मनिरपेक्षता शब्द 'लगभग ग़ायब' हो गया है.
हामिद अंसारी ने अपनी आत्मकथा 'बाय मेनी ए हैप्पी एक्सीडेंट' में लिखा है कि "बुनियादी उसूलों की इस गिरावट में अन्य सामाजिक और राजनीतिक ताक़तों की नाकामी शामिल है, जिन पर इस गिरावट को रोकने की ज़िम्मेदारी थी."
हामिद अंसारी का मानना है कि समावेशी संस्कृति, भाईचारा और वैज्ञानिक सोच जैसे संवैधानिक मूल्य भी राजनीतिक पटल से धीरे-धीरे ग़ायब होते जा रहे हैं और उनकी जगह विपरीत मान्यताओं को बढ़ावा दिया जा रहा है.
उप-राष्ट्रपति बनने से पहले भारतीय विदेश सेवा में रहे हामिद अंसारी का तर्क है कि विधि के शासन पर गंभीर ख़तरा मंडरा रहा है और इसके पीछे सरकारी प्रतिष्ठानों की कार्य-कुशलता में कमी और मनमाने तरीक़े से फ़ैसले करने जैसी वजहें ज़िम्मेदार हैं.
उन्होंने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि लोकप्रियता की सफलता, किसी विचारधारा की सफलता नहीं बल्कि सत्ता हासिल करने और सत्ता में बने रहने की रणनीति है, फिर चाहे उसके लिए साज़िश करना पड़े, पूरे विपक्ष का अपराधीकरण करना पड़े और विदेशी ख़तरों का डर दिखाना पड़े. (bbc.com)
नई दिल्ली, 29 जनवरी। एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने राजदीप सरदेसाई, मृणाल पांडे और जफर आगा जैसे छह वरिष्ठ पत्रकारों के खिलाफ मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा दर्ज की गई एफआईआर के कदम की निंदा की है। इन पत्रकारों पर किसानों की गणतंत्र दिवस पर ट्रैक्टर परेड तथा उस दौरान हुई हिंसा की रिपोर्टिंग करने को लेकर एफआईआर दर्ज की गई है।
गिल्ड ने एफआईआर को ‘‘डराने-धमकाने, प्रताड़ित करने तथा दबाने’’ का प्रयास बताया। साथ ही मांग की है कि एफआईआर तुरंत वापस ली जाएं तथा मीडिया को बिना किसी डर के आजादी के साथ रिपोर्टिंग करने की इजाजत दी जाए। वक्तव्य में कहा गया कि एक प्रदर्शनकारी की मौत से जुड़ी घटना की रिपोर्टिंग करने, घटनाक्रम की जानकारी अपने निजी सोशल मीडिया हैंडल पर तथा अपने प्रकाशनों पर देने पर पत्रकारों को खासतौर पर निशाना बनाया गया।
गिल्ड ने कहा, ‘‘यह ध्यान रहे कि प्रदर्शन एवं कार्रवाई वाले दिन, घटनास्थल पर मौजूद प्रत्यक्षदर्शियों तथा पुलिस की ओर से अनेक सूचनाएं मिलीं। अत: पत्रकारों के लिए यह स्वाभाविक बात थी कि वे इन जानकारियों की रिपोर्ट करें। यह पत्रकारिता के स्थापित नियमों के अनुरूप ही था।’’
गिल्ड ‘‘उत्तर प्रदेश एवं मध्य प्रदेश पुलिस के डराने-धमकाने के तरीके की कड़ी निंदा करता है’’ जिन्होंने किसानों की प्रदर्शन रैलियों और हिंसा की रिपोर्टिंग करने पर वरिष्ठ संपादकों एवं पत्रकारों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कीं। गिल्ड ने कहा कि इन एफआईआर में आरोप लगाया गया है कि पत्रकारों के ट्वीट दुर्भावनापूर्ण थे और लाल किले पर उपद्रव का कारण बने। उसने कहा कि कि इससे ज्यादा कुछ भी सच्चाई से परे नहीं हो सकता है। उसने कहा, ‘‘उस दिन ढेर सारी सूचनाएं मिल रही थीं। ईजीआई ने पाया कि विभिन्न राज्यों में दर्ज ये प्राथमिकियां मीडिया को चुप कराने, डराने-धमकाने तथा प्रताड़ित करने के लिए थीं।’’
उसने कहा कि ये एफआईआर दस भिन्न प्रावधानों के तहत दर्ज की गई हैं जिनमें राजद्रोह के कानून, सांप्रदायिक सौहार्द्र बिगाड़ना, धार्मिक मान्यताओं को अपमानित करना आदि शामिल हैं।
इसके पहले नोएडा पुलिस ने कांग्रेस सांसद शशि थरूर और छह पत्रकारों के खिलाफ राजद्रोह समेत अन्य आरोपों में मामला दर्ज किया है। जिन पत्रकारों के नाम प्राथमिकी में हैं, उनमें मृणाल पांडे, राजदीप सरदेसाई, विनोद जोस, जफर आगा, परेश नाथ और अनंत नाथ शामिल हैं। एक अनाम व्यक्ति के खिलाफ भी एफआईआर दर्ज कराई गई है। (outlookhindi.com)
नई दिल्ली, 29 जनवरी। दिल्ली-हरियाणा के बीच स्थित सिंघु बॉर्डर पर तनाव की स्थिति पैदा हो गई है. सिंघु बॉर्डर किसान आंदोलन का मुख्य केंद्र है. ऐसी जानकारी है कि यहां किसानों का विरोध करते हुए भीड़ इकट्ठा हो गई है, जिसने यहां पर पत्थरबाजी की है और किसानों के टेंट उखाड़ दिए गए हैं. सिंघु पर किसान आंदोलन के तहत हजारों किसान पिछले दो महीनों से मौजूद हैं, लेकिन गणतंत्र दिवस को निकाली गई ट्रैक्टर रैली के उग्र हो जाने और फिर हिंसा होने के बाद स्थिति तनावपूर्ण बनी हुई है.
शुक्रवार की दोपहर तक यहां बड़ी संख्या में पुलिस फोर्स की तैनाती थी, लेकिन कुछ 200 के लगभग लोग यहां पहुंचे और पत्थरबाजी की और किसानों के टेंट उखाड़े. हालात बिगड़ने के बाद पुलिस को आंसू गैस के गोले छोड़ने पड़े और किसानों ने शांति बनाने की अपील की है. अभी यह साफ नहीं हो सका है कि इतने लोगों की भीड़ प्रदर्शनस्थल तक कैसे पहुंची है.
इस घटना में एक पुलिसकर्मी घायल हुआ है. सिंघु बॉर्डर के अलावा टिकरी बॉर्डर और दिल्ली-उत्तर प्रदेश के गाज़ीपुर बॉर्डर पर भी भारी सुरक्षा तैनात की गई है. गाज़ीपुर बॉर्डर पर राकेश टिकैत के किसान संगठन भारतीय किसान यूनियन ने गणतंत्र दिवस पर हुई हिंसा को लेकर एक 'महापंचायत' बुलाई है.
-आशीष भार्गव
सुप्रीम कोर्ट ने पीएमएलए ट्रिब्यूनल में खाली पदों को जल्द भरे जाने की मांग वाली जनहित याचिका पर केन्द्र सरकार को नोटिस जारी किया. कोर्ट ने चार हफ्ते में जवाब मांगा है. कोर्ट ने एडवोकेटअमित साहनी की याचिका पर नोटिस जारी किया है. राष्ट्रीय राजधानी में प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट के अपीलीय ट्रिब्युनल में चैयरपर्सन, सदस्यों और अन्य कर्मियों के रिक्त पदों को भरने के लिए केंद्र को निर्देश देने की मांग संबंधी एक जनहित याचिका सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हुई है. यह याचिका अधिवक्ता एवं कार्यकर्ता अमित साहनी ने दाखिल की है.
इसमें अगस्त, 2019 की मीडिया रिपोर्ट के हवाले से कहा गया है कि दिल्ली हाई कोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस सुनील गौड़ (अब सेवानिवृत्त) को इस ट्रिब्युनल का चैयरपर्सन नियुक्त किया जाना था. ट्रिब्युनल में स्वीकृत चार सदस्यों में से तीन सदस्यों के पद भी रिक्त हैं.
जस्टिस गौड़ को जस्टिस मनमोहन सिंह का सितंबर, 2019 में कार्यकाल पूरा होने के बाद कार्यभार संभालना था, लेकिन इस नियुक्ति की अधिसूचना जारी नहीं हुई और उसके बाद से चैयरपर्सन का पद खाली है. साथ ही ट्रिब्युनल में स्वीकृत चार सदस्यों में से तीन सदस्यों के पद भी रिक्त हैं.
गाजीपुर बॉर्डर से किसानों को हटाने के पुलिस के प्रयास के बाद अब उत्तर प्रदेश से और किसान आंदोलन में शामिल होने के लिए चल पड़ हैं. सिर्फ किसान ही नहीं बल्कि छह पत्रकारों के खिलाफ भी राजद्रोह का केस दर्ज किया गया है.
डॉयचे वैले पर चारु कार्तिकेय का लिखा-
गुरुवार रात दिल्ली और उत्तर प्रदेश के बीच गाजीपुर बॉर्डर से किसानों को हटाने की पुलिस और प्रशासन ने पूरी कोशिश की. वहां बिजली और पानी की आपूर्ति बंद कर दी गई, किसान नेताओं को उस जगह को खाली करने का नोटिस दिया गया और करीब 10,000 पुलिसकर्मियों को तैनात कर दिया गया. हालांकि किसान धरने पर डटे रहे.
भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत टेलीविजन पर बोलते बोलते रो पड़े और यह दृश्य देख कर उत्तर प्रदेश से और बड़ी संख्या में किसान उनका साथ देने दिल्ली के लिए निकल पड़े. शुक्रवार सुबह होते होते गाजीपुर बॉर्डर पर किसानों और उनके समर्थकों की भीड़ बढ़ गई और मजबूर हो कर पुलिसकर्मियों को वहां से हटा लिया गया.
उत्तराखंड और हरयाणा से भी कई किसान गाजीपुर बॉर्डर की तरफ निकल चुके हैं. किसान संगठनों ने आंदोलन को जबरन खत्म करने के सरकार के इस प्रयास की निंदा की और कहा कि आंदोलन अभी भी जारी है. सिंघु बॉर्डर पर यह साबित करने के लिए करीब 15 किलोमीटर लंबी सद्भावना रैली निकाली गई. हालांकि अब वहां भारी संख्या में पुलिस और अर्ध-सैनिक बलों को तैनात कर दिया गया है. विपक्षी राजनीतिक पार्टियां भी किसानों को समर्थन दे रही हैं.
राष्ट्रीय लोक दल के नेता जयंत चौधरी राकेश टिकैत का साथ देने अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं के साथ गाजीपुर बॉर्डर पहुंचे. आम आदमी पार्टी भी किसान आंदोलन को समर्थन की घोषणा कर चुकी है और पार्टी के कई नेता आज अलग अलग बॉर्डरों पर जा कर किसानों को अपने समर्थन का प्रदर्शन करेंगे. किसानों के साथ एकजुटता का प्रदर्शन करने के लिए कम से कम 16 पार्टियों ने शुक्रवार को संसद में हुए राष्ट्रपति के अभिभाषण का बहिष्कार किया.
पत्रकारों के खिलाफ राजद्रोह के मामले
दूसरी तरफ 26 जनवरी को किसान परेड के दौरान हुई हिंसा के संबंध में उत्तर प्रदेश पुलिस ने नोएडा के एक थाने में कांग्रेस सांसद शशि थरूर और कम से कम छह पत्रकारों के खिलाफ राजद्रोह और अन्य आरोपों के तहत मामले दर्ज किए हैं. इन पत्रकारों में राजदीप सरदेसाई, मृणाल पांडे, जफर आगा, परेश नाथ, अनंत नाथ और विनोद जोस शामिल हैं. पुलिस का कहना है कि इन सभी के खिलाफ भ्रामक खबरें फैलाने की शिकायत मिली थी.
इन सभी के खिलाफ सिर्फ नोएडा में ही नहीं, बल्कि भोपाल में भी एक एफआईआर दर्ज की गई है. एडिटर्स गिल्ड ने इन एफआईआरों की निंदा की है और इन्हें स्वतंत्र मीडिया को डराने, परेशान करने और दबाने की कोशिश बताया है.
शुक्रवार से दिल्ली में संसद के बजट सत्र की भी शुरुआत हुई. देखना होगा कि इन घटनाओं का सत्र पर क्या असर पड़ता है.
चीन के साथ विभिन्न हिस्सों में बढ़ते सीमा विवाद के बीच अब बांग्लादेश के साथ भी विवाद उभरने लगा है. त्रिपुरा में सीमा पर कंटीले तारों की बाड़ लगाने का काम चल रहा था, पर बांग्लादेश की आपत्तियों के बाद उसे रोकना पड़ा है.
डॉयचे वैले पर प्रभाकर मणि तिवारी का लिखा-
पूर्वोत्तर में बसा भारत का त्रिपुरा राज्य उत्तर, दक्षिण और पश्चिम में बांग्लादेश से घिरा है और इसकी 856 किमी लंबी सीमा उस देश के साथ लगी है. यहां पहले भी सीमा पर विवाद होता रहा है और सीमा पार से घुसपैठ व तस्करी के आरोप लगते रहे हैं. मौजूदा विवाद के बाद इलाके में कायम तनाव को ध्यान में रखते हुए धारा 144 लागू कर दी गई है.
सीमा पर विवाद
दक्षिण त्रिपुरा जिले के सीमावर्ती इलाके सबरूम में भारतीय सीमा पर कंटीले तारों की बाड़ लगाने का काम चल रहा था. लेकिन बांग्लादेशी सुरक्षा बल बांग्लादेश बार्डर गार्ड्स (बीजीबी) ने इस पर आपत्ति जताई और काम रोक दिया. सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) और बीजीबी के बीच फ्लैग मीटिंग के बावजूद इस मुद्दे पर गतिरोध जस का तस है. उसके बाद सीमा से पांच सौ मीटर के दायरे में लोगों के जमावड़े पर रोक लगा दी गई है. पुलिस के एक अधिकारी ने बताया, "इलाके में कंटीले तारों की बाड़ लगाने के मुद्दे पर विवाद के बाद इसका काम रोक दिया गया है. सबरूम सब-डिवीजन के तहत आइलामारा सीमा पर इस घटना के बाद इलाके के लोगों में डर और नाराजगी है.”
स्थानीय लोगों का कहना है कि बीजीबी सीमा पर कंटीले तारों की बाड़ लगाने की भारत की योजना के खिलाफ है. इस घटना के बाद इलाके में बाजार और दुकानें बंद हैं. इलाके के लोगों ने इसके खिलाफ विरोध प्रदर्शन भी किया है. एक स्थानीय व्यक्ति नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया, "अंतरराष्ट्रीय सीमा पर आइलामारा से सबरूम बाजार तक के इलाके में सीमा पर कोई बाड़ नहीं लगी है. इसका लाभ उठा कर सीमा पार से लोग अवैध रूप से त्रिपुरा पहुंच जाते हैं. इसके अलावा इस सीमा के जरिए सीमा पार से तस्करी की गतिविधियां भी लगातार तेज हो रही हैं.”
बीजीबी ने इससे पहले उत्तर त्रिपुरा में भी अंतरराष्ट्रीय सीमा पर कंटीले तारों की बाड़ लगाने का विरोध किया था. राज्य के कई सीमांत इलाकों में बाड़ लगाने का काम पूरा हो गया है. लेकिन सबरूम सब-डिवीजन के तहत 5.58 किमी लंबी सीमा समेत कई इलाकों में यह काम अब तक नहीं हुआ है.
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने बीती 12 जनवरी को राज्य के मुख्य सचिव को पत्र भेज कर सबरूम सब-डिवीजन के तहत अंतरराष्ट्रीय सीमा पर यह काम फरवरी तक पूरा करने का निर्देश दिया था. सबरूम को चटगांव बंदरगाह से जोड़ने वाली सड़क पर फेनी नदी पर बने मैत्री ब्रिज को जल्दी ही खोला जाना है. इसी वजह से सरकार को यहां बाड़ लगाने की जल्दी है. उसी के मुताबिक काम शुरू हुआ था. लेकिन बीजीबी की आपत्ति के बाद उसे रोक देना पड़ा. फेनी नदी दक्षिण त्रिपुरा से निकल कर बांग्लादेश होते हुए बंगाल की खाड़ी में गिरती है.
इलाके का मालिक कौन
बीएसएफ के आईजी (त्रिपुरा फ्रंटियर) सुशांत नाथ का कहना है कि बीजीबी की आपत्तियों की वजह से कुछ इलाकों में बाड़ लगाने का काम रोक देना पड़ा है. फ्लैग मीटिंग के बावजूद गतिरोध जस का तस है. नाथ बताते हैं, "विभिन्न स्तर पर इस विवाद को सुलझाने की कोशिशें चल रही हैं. उम्मीद है गतिरोध शीघ्र दूर कर लिया जाएगा." वैसे जिस इलाके में बाड़ लगाई जा रही थी, बांग्लादेश उसे विवादास्पद मानता है. इस मुद्दे पर पहले भी कई बार बैठकें हो चुकी हैं. इससे पहले त्रिपुरा में बीते साल नवंबर में महानिदेशक स्तर की बैठक में बीजीबी और बीएसएफ ने आपसी तालमेल बढ़ाने पर जोर देते हुए सीमा पार से होने वाली तस्करी और दूसरे अपराधों पर अंकुश लगाने पर सहमति जताई थी.
बीएसएफ के एक वरिष्ठ अधिकारी बताते हैं, "पहले हुए इंदिरा-मुजीब समझौते के तहत बीते कई वर्षों से सीमा पर कंटीले तारों की बाड़ लगाने का काम चल रहा है. लेकिन कुछ इलाके ऐसे हैं जहां असली सीमा से 150 गज की दूरी पर बाड़ लगाना संभव नहीं था. ऐसे में दोनों देशों के अधिकारियों ने आपसी सहमति से फैसला किया कि उन इलाकों में जीरो लाइन पर सिंगल तार की बाड़ लगाई जाएगी. उसी के मुताबिक काम शुरू हुआ था.” उस अधिकारी का कहना था कि अब तक यह साफ नहीं है कि आखिर बीजीबी को इस पर आपत्ति क्यों है.
दूसरी ओर, बीजीबी की दलील है कि उनको मुख्यालय से जो नक्शा मिला है उसके मुताबिक काम नहीं हो रहा था. बीएसएफ ने इस बारे में हमारे पत्र का कोई जवाब दिए बिना ही काम शुरू कर दिया. इसी वजह से वहां काम रोक दिया गया. इस मुद्दे पर दोनों देशों के बीच बातचीत के जरिए सहमति होने पर ही काम शुरू करने की अनुमति दी जाएगी. रक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि बांग्लादेश अंतरराष्ट्रीय सीमा निर्धारण के भारत के नक्शे को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है. यही पूरे विवाद की जड़ है.
एक उच्चस्तरीय पैनल ने देश के 23 आईआईटी में शिक्षकों की भर्ती में आरक्षण नीति को हटाने की सिफारिश की है. उसकी दलीलें भी हैरान करने वाली हैं. क्या सरकार इस कमेटी की सिफारिशें मान लेंगी, सबकी निगाहें उसके फैसले पर है.
डॉयचे वैले पर शिवप्रसाद जोशी का लिखा-
केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय की ओर से गठित कमेटी की अध्यक्षता आईआईटी दिल्ली के निदेशक वी रामगोपाल राव ने की. और बतौर सदस्य इसमें आईआईटी कानपुर के निदेशक, आईआईटी बंबई और आईआईटी मद्रास के रजिस्ट्रार, सामाजिक न्याय और सशक्तिकरण मंत्रालय, आदिवासी मामलों के मंत्रालय, कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग और शारीरिक विकलांगता विभाग के प्रतिनिधि भी शामिल थे. पिछले साल जून में सरकार को ये रिपोर्ट सौंप दी गयी लेकिन पिछले महीने ही आरटीआई के जरिए ये सार्वजनिक हुई है. रिपोर्ट मे कमेटी ने कहा है कि आईआईटी को आरक्षण से छूट मिलनी चाहिए क्योंकि वे राष्ट्रीय महत्त्व के संस्थान हैं और शोधकार्य में शामिल हैं. उसके मुताबिक वैश्विक स्तर पर एक्सीलेंस, आउटपुट, शोध और शिक्षण जैसे मामलों में टॉप संस्थानों से प्रतिस्पर्धा के लिए जरूरी है कि आरक्षण पर ध्यान देने के बजाय ऐसे उपाय किए जाएं जिनसे निर्धारित लक्ष्यों को पूरा किया जा सके.
आरक्षण की व्यवस्था को सुचारू रूप से लागू करने की सिफारिशें देने के लिए कमेटी बनायी गयी थी. लेकिन उसकी सिफारिशों का लब्बोलुआब उल्टा ही था कि आरक्षण हटाओ क्योंकि एक तो दलित वर्गों से योग्य उम्मीदवार नहीं मिलते दूसरे अकादमिक एक्सीलेंस के लिहाज से भी ये ठीक नहीं. दलित बुद्धिजीवियों और एक्टिविस्टों के बीच लंबे समय से अकादमिक ढांचे में कथित सवर्णवादी रवैये की तीखी आलोचना होती रही है. ऊंची जातियां अक्सर मेरिट का सवाल उठाती हैं लेकिन सदियों से समाज में चले आ रहे उस सिस्टेमेटिक भेदभाव को संज्ञान में नहीं लिया जाता जिसकी वजह से दलित पिछड़े रह जाते हैं. और तो और उच्च शिक्षा में दाखिले और उच्च पदों पर नियुक्तियों में उनकी संख्या के आंकड़े भी अपनी कहानी कह देते हैं. क्या आरक्षण की वजह से एक्सीलेंस प्रभावित होती है, ये सवाल तो खूब पूछा जाता है लेकिन इसमें अंतर्निहित विडंबना को शायद ही गंभीरता से लिया जाता है.
आरक्षण और प्रतिभा का सवाल
केंद्रीय शिक्षण संस्थान अधिनियम के चौथे पैराग्राफ के मुताबिक उत्कृष्टता वाले संस्थानों, शोध संस्थानों और राष्ट्रीय और सामरिक महत्त्व के संस्थानों को शिक्षकों की नियुक्ति में जाति आधारित आरक्षण लागू करने से छूट मिली हुई है. ऐसे अभी आठ संस्थान हैं. अब देश के 23 आईआईटी को भी इस दायरे में लाने की मांग की जा रही है. फिलहाल इन संस्थानों में विज्ञान और प्रौद्योगिकी विषयों के लिए असिस्टेंट प्रोफेसर स्तर पर भर्ती में आरक्षण की व्यवस्था है. एसोसिएट प्रोफेसर और प्रोफेसर जैसे वरिष्ठ पदों पर आरक्षण का कोटा लागू नहीं किया जाता है. एंट्री लेवल यानी असिस्टेंट प्रोफेसर लेवल पर भी अगर आरक्षित वर्गों के योग्य उम्मीदवार नहीं आते हैं तो एक साल के बाद उन सीटों को आरक्षण मुक्त किया जा सकता है. 2008 के एक सरकारी आदेश के बाद से ये व्यवस्था लागू है. इन्ही संस्थानों के मानविकी और प्रबंधन पाठ्यक्रमों के लिए तीनों पदों पर आरक्षण की व्यवस्था लागू है. इस सिस्टम की वजह से आईआईटी में शिक्षकों के बीच विविधता में गिरावट भी आई है. 2018 में शिक्षा मंत्रालय ने संसद में जो आंकड़े पेश किए थे उनके मुताबिक 23 आईआईटी के 8856 शिक्षण पदों में से 6043 पर नियुक्तियां हो चुकी थी जबकि 2813 खाली थे. शिक्षकों के छह हजार से अधिक पद भरे जा चुके हैं लेकिन इनमें से सिर्फ 149 एससी और 21 एसटी श्रेणी से हैं. यानी सिर्फ तीन प्रतिशत.
जेएनयू के सेंटर फॉर पॉलिटिक्ल स्टडीज में असिस्टेंट प्रोफेसर हरीश एस वानखेड़े का कहना है कि कमेटी की ये रिपोर्ट सूक्ष्म स्तर पर ये जतलाने की कोशिश करती है कि आरक्षण के जरिए आने वाले उम्मीदवार मेरिटविहीन होंगे और इस तरह "योग्यता” के मापदंड के साथ समझौता हो सकता है. द वायर में एक लेख में वानखेड़े कहते हैं कि नयी आर्थिक नीतियों में उच्च शिक्षा में सामाजिक न्याय को लागू करने के प्रति एक हिचक दिखायी देती है. "ऐतिहासिक गल्तियों को ठीक किए बिना इन संस्थानों के लिए कोई भी नीति निर्देश बेअसर ही रहेगा. इस बात की सख्त जरूरत है कि दोनों मोर्चों पर काम हो, ‘मेरिटोक्रेटिक' यानी योग्यता के आधार पर फैसले करने वाली फैकल्टी को अपनी ओर खींचा जाए और उसे सामाजिक रूप से अधिक समावेशी भी बनाया जाए.”
कैसे मिलेगा एससी एसटी छात्रों को प्रोत्साहन
अब सवाल ये है कि अगर एससी एसटी के शिक्षक निर्धारित संख्या में पहले ही कम हैं तो फिर किस आधार पर पैनल ये मान बैठा है कि आरक्षण लागू करने से अकादमिक गुणवत्ता से समझौता हो रहा है. क्वालिटी बनी रहनी चाहिए थी क्योंकि उच्च वर्गों के प्रतिनिधि तो अपने अपने पदों पर आसीन हैं ही तो फिर रैंकिंग में भी पीछे नहीं रहना चाहिए था. कमेटी की दलील के आधार पर थोड़ी देर के लिए मान लें कि आरक्षण की वजह से कथित योग्य उम्मीदवार न मिलने से सीटें खाली रह जाती हैं तो ये दलील भी दमदार नजर नहीं आती क्योंकि सरकार ने उस नियम में भी एक छूट दी हुई है. शिक्षा मंत्रालय ने वरिष्ठ फैकल्टी पदों पर भी आरक्षण लागू करने का आदेश दिया था. अब सवाल ये है कि क्या केंद्र सरकार इन संस्थानों की दलील को मानते हुए आरक्षण हटा लेगी या ऐसी व्यवस्था के लिए संस्थानों को प्रेरित करेगी कि एससी एसटी समुदायों से भी छात्र पीएचडी और शोध कर पाएं और आगे चलकर फैकल्टी के रूप में अपनी सेवाएं दे सकें.
आंकड़ों के मुताबिक सभी आईआईटी में 2015 से 2019 के दौरान औसतन करीब नौ प्रतिशत एससी छात्र और दो प्रतिशत एसटी छात्र ही पीएचडी में दाखिला ले पाए थे. उच्च शिक्षा में ये विभाजन साफ दिख रहा है और दलितों की पहुंच उस सीढ़ी तक हो ही नहीं पा रही है जिसके बाद उन्हें अध्ययन से अध्यापन की ओर बढ़ जाना चाहिए था. शिक्षकों की कमी का एक पहलू ऊंची पढ़ाई के लिए विदेश चले जाने वाले छात्रों से भी जुड़ा है. जाहिर है इस मामले में भी अगड़ी जातियों के छात्रों के पास कहीं ज्यादा अवसर और संसाधन हैं. वे ऊंची पढ़ाई कर विदेशी संस्थानों में ही या तो उच्च स्तर के शोध कार्य से जुड़ जाते हैं या वहीं किसी शैक्षणिक या अन्य अकादमिक गतिविधि का हिस्सा बन जाते हैं. उन्हें लगता है कि विदेशी संस्थानों और विदेशी विश्वविद्यालायों में संभावनाएं, अवसर, आकर्षण और अकादमिक माहौल देश के संस्थानों की अपेक्षा बेहतर है. उन्हें लौटा लाने के कोई सुझाव या सिफारिश ऐसे पैनलों की ओर से नहीं देखी गयी है. अगर की गयी है तो ऐसा कोई तंत्र नहीं है कि जिसके जरिए ये कोशिश सार्वजनिक हो सके और उच्च शिक्षा से जुड़े अन्य आकांक्षियों का मनोबल बढ़ाया जा सके. ऐसे समय में जब प्रतिभाएं विदेशों में जा रही हैं और अक्सर लौटकर वापस नहीं आ रही हैं तो क्या भारत के शिक्षा संस्थानों को योग्य उम्मीदवार न मिलने की एक वजह ये भी है?
समाज में भेदभाव का असर शिक्षा संस्थानों पर
अब उस सवाल पर लौटें कि आखिर पीएचडी सीटों में दलित वर्गों के छात्र कम क्यों हैं. एक वजह तो वही संस्थागत भेदभाव है जो किसी अकादमिक परिसर या राजनीतिक गलियारों में ही नहीं हैं बल्कि सदियों से समाज, परिवार, विचार, रूढ़ि और संस्कृति में धंसा हुआ है. पीएचडी तो बहुत दूर और बहुत ऊपर की बात हो जाती है जब हम पाते हैं कि दलितों के समक्ष सबसे पहले रोजी रोटी का संकट कितना सघन और पेचीदा रहा है. आंकड़ों के मुताबिक अखिल भारतीय सालाना औसत आय एक घर के एक लाख 13 हजार रुपये से कुछ अधिक बतायी जाती है. एससी और एसटी घरों की आय इसका दशमलव आठ और दशमलव सात गुना कम है. नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे 4 में 50 प्रतिशत एससी घरों और 71 प्रतिशत एसटी घरों को अन्य वर्गों की अपेक्षा निर्धनतम पाया गया है.
संस्थानों में दाखिला लेने के बाद भी इन वर्गों के छात्रों को किस किस्म के सामाजिक भेदभाव और अन्य दुश्वारियों का सामना करना पड़ता है ये भी किसी से छिपा नहीं हैं. एम्स दिल्ली में ऐसी शिकायतों के बाद सुखदेव थोराट कमेटी की रिपोर्ट इस बार में बताती हैं. राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग की रिपोर्टो में दलित वर्गों के छात्रों और शिक्षकों के साथ होने वाले भेदभाव की घटनाओं को उजागर किया जाता रहा है. उच्च शिक्षा के दायरे में भेदभाव के मुद्दे पर बहुत सी न्यायिक आदेश, कमेटियां और विधायी व्यवस्थाएं भी हैं. उच्च शैक्षणिक और प्रशिक्षण संस्थानों में समान अवसर प्रकोष्ठ को लेकर दिशानिर्देश बनाने को लेकर भी कोताही दिखती है.
समावेशी शिक्षा का माहौल बनाकर ही शिक्षण संस्थानों की स्थिति सुधारी जा सकती है. जर्मनी में छात्रवृत्ति और लोन के मिश्रित सरकारी पहल से आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के छात्रों को उच्च शिक्षा में लाने में सफलता मिली है. शिक्षा संस्थानों में प्रतिस्पर्धी माहौल बनाने और उन्हें विश्वस्तर का बनाने के लिए बुनियादी ढांचे को बेहतर बनाना होगा और इसके लिए शिक्षा में पर्याप्त निवेश जरूरी है. उच्च शिक्षित भारतीयों के लिए विदेशों में रोजगार ढूंढने के बदले देश में नए अवसर बनाने की जरूरत है. जब सबके लिए नौकरी होगी तो आरक्षण की बहस खत्म हो जाएगी.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम को संबोधित करते हुए वैश्विक कंपनियों को देश में निवेश करने का आमंत्रण दिया है. मोदी ने कंपनियां से देश में नीतिगत सुधारों का लाभ उठाते हुए निवेश करने की अपील की.
डॉयचे वैले पर आमिर अंसारी का लिखा-
मोदी ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए स्विट्जरलैंड के दावोस में चल रहे विश्व आर्थिक मंच के शिखर सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि देश ने कोरोना महामारी से लड़ने के लिए सभी बाधाओं को दूर किया. उन्होंने देश की कोरोना महामारी से लड़ने की प्रतिक्रिया की तारीफ करते हुए कहा कि अब तक दो वैक्सीन देश में बनाई गई हैं और जल्द ही कई और वैक्सीन आने जा रही हैं.
मोदी ने कहा कि देश में बनी वैक्सीन 150 देशों को निर्यात की जा चुकी है और दुनिया को और टीके उपलब्ध कराए जाएंगे. उन्होंने जोर देकर कहा कि महामारी के दौरान हमने न सिर्फ अपने लोगों की जान बचाई बल्कि वैश्विक जिम्मेदारी भी निभाई है. भारत ने अपने पड़ोसी देशों के अलावा ब्राजील को भी भारत में बनी वैक्सीन भेजी है.
मोदी ने देश में कोरोना से लड़ने के लिए तकनीक के इस्तेमाल के बारे में बोलते हुए कहा, "हमने कोविड-19 विशिष्ट स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे के विकास करने पर जोर लगाया, मानव संसाधन को कोरोना से लड़ने के लिए प्रशिक्षित किया, जांच और ट्रैकिंग के लिए तकनीक का भरपूर इस्तेमाल किया."
आत्मनिर्भर भारत पर जोर
आत्मनिर्भर भारत के मुद्दे पर बोलते हुए मोदी ने कहा कि यह वैश्वीकरण को मजबूती दिलाएगा. विश्व आर्थिक मंच में बहुराष्ट्रीय कंपनियों के प्रतिनिधियों को ऑनलाइन संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि वे दुनिया के कारोबारी समुदाय को भरोसा देना चाहते हैं कि अब आर्थिक मोर्चे पर हालात तेजी से सुधरेंगे.
मोदी ने कहा अब भारत आत्मनिर्भर बनने के संकल्प के साथ आगे बढ़ रहा है. भारत की आत्मनिर्भरता की यह आकांक्षा वैश्वीकरण को नए सिरे से मजबूत करेगी. उन्होंने उम्मीद जताई कि इस इस अभियान को इंडस्ट्री 4.0 से भी बहुत बड़ी मदद मिलेगी.
मोदी ने कहा, "विशेषज्ञ बता रहे हैं कि इंडस्ट्री 4.0 के चार मुख्य कारक होने वाले हैं-कनेक्टिविटी, ऑटोमेशन, आर्टिफिशयल इंटेलिजेंस या मशीन लर्निंग और रियल टाइम डाटा. आज भारत दुनिया के उन देशों में से है जहां सबसे सस्ता डाटा उपलब्ध है, जहां के दूर-दराज के इलाकों में मोबाइल कनेक्टिविटी और स्मार्ट फोन उपलब्ध है."
उन्होंने कहा कि वे आश्वस्त है कि इस अभियान को उद्योग जगत से भी मदद मिलेगी. लेकिन भारत में अमेरिकी राजदूत रहे केनेथ जस्टर ने आत्मनिर्भर भारत को लेकर बीते दिनों चिंता जताई थी. उन्होंने कहा था अमेरिकी कंपनियों के अलावा दूसरी कंपनियों को चीन में कारोबार करने में दिक्कत आ रही है. भारत के पास दूसरा विकल्प बनने का अच्छा मौका है. लेकिन इसे पूरा करने के लिए भारत को और अधिक कदम उठाने होंगे.
दावोस संवाद को दुनिया के कई बड़े नेता संबोधित कर चुके हैं जिनमें रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन, जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग समेत कई अन्य नेता शामिल हैं.
नई दिल्ली, 29 जनवरी। दिल्ली पुलिस ने गुरुवार को राष्ट्रीय राजधानी के बाहरी इलाके बुराड़ी के डीडीए मैदान से प्रदर्शनकारी किसानों को हटा दिया। वे नवंबर के अंत से ही यहां डेरा डाले हुए थे। पुलिस ने बताया कि बुराड़ी से 30 किसान सिंघु सीमा पर चले गए हैं और 15 अन्य को 26 जनवरी को प्रदर्शनकारियों द्वारा हिंसा में संलिप्तता के शक में हिरासत में लिया गया है।
बुराड़ी ग्राउंड पहले किसानों को विरोध प्रदर्शन के लिए दिया गया था, लेकिन अधिकांश किसान सिंघु, टीकरी और गाजीपुर सीमा पर इकट्ठा हो गए। इस ग्राउंड में कम ही प्रदर्शनकारी रहे।
यह घटनाक्रम इन तीन सीमाओं पर पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच बढ़ते तनाव के बाद हुआ है। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 29 जनवरी| देश की राजधानी दिल्ली में गणतंत्र दिवस पर हुई हिंसा के बाद उत्तर प्रदेश के किसान संगठन भारतीय किसान यूनियन (लोकशक्ति) ने आंदोलन से खुद को अलग कर लिया है। भाकियू (लोकशक्ति) के नेता ने गुरुवार को केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर से मिलकर उन्हें एक पत्र सौंपा, जिसमें उन्होंने अपना धरना वापस लेने की बात कही है। केंद्रीय कृषि मंत्री से उत्तर प्रदेश के एक और किसान संगठन भाकियू (एकता) के राष्ट्रीय अध्यक्ष हुकम चंद शर्मा भी मिले। उन्होंने कृषि मंत्री के पास किसानों की समस्याएं रखीं और आंदोलन कर रहे किसानों के साथ बातचीत कर समस्याओं का समाधान करने की गुहार लगाई।
भाकियू (लोकशक्ति) के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्यौराज सिंह ने केंद्रीय गृहमंत्री और कृषि मंत्री के नाम सौंपे पत्र में कहा कि किसानों की मांगों को लेकर उनका संगठन पिछले दो महीनों से राष्ट्रीय प्रेरणा स्थल नोएडा पर शांतिपूर्ण तरीके से धरनारत था। लेकिन गणतंत्र दिवस पर कुछ शरारती तत्वों ने किसान आंदोलन के नाम पर दिल्ली में जो उत्पात मचाया और तिरंगे का जो अपमान किया उस घृणित घटना को देखते हुए भाकियू (लोकशक्ति) ने खुद को आंदोलन से अलग करते हुए 27 जनवरी को धरना समाप्त कर दिया।
भाकियू (एकता) के राष्ट्रीय अध्यक्ष हुकम चंद शर्मा ने आईएएनएस को बताया कि उनका संगठन तीन कृषि कानूनों के विरोध में चल रहे आंदोलन में शामिल नहीं है, लेकिन वह आंदोलन की राह पकड़े किसानों के साथ बातचीत के जरिए मसले का समाधान चाहते हैं। उन्होंने कहा कि गणतंत्र दिवस पर लालकिला पर किसानों की आड़ में धार्मिक झंडा फहराकर किसानों को बदनाम किया गया है।
शर्मा ने बताया कि उन्होंने केंद्रीय कृषि मंत्री से के सामने किसानों की समस्याएं रखीं। उन्होंने मंत्री को सौंपे पत्र में किसानों को फसलों का वाजिब दाम नहीं मिलने की बात कही है। (आईएएनएस)
पटना, 28 जनवरी| बिहार में लोकजनशक्ति पार्टी (लोजपा) के एकमात्र विधायक राजकुमार सिंह के जदयू के कार्यकारी अध्यक्ष अशोक चौधरी से मिलने के बाद सियासत में आई गर्मी अभी कम भी नहीं हुई थी कि गुरुवार को असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लमीन (एआईएमआईएम) के बिहार के सभी पांच विधायकों ने नीतीश कुमार से मुलाकात की। एआईएमआईएम के पांचों विधायक मुख्यमंत्री आवास पहुंचे और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मुलाकात की। उनके साथ मंत्री विजय कुमार चौधरी भी साथ थे। इस मुलाकात के बाद राज्य की राजनीति एकबार फिर गर्म हो गई है।
इधर, एआईएमआईएम के प्रदेश अध्यक्ष अख्तरूल ईमान ने इस पर राजनीति नहीं करने की सलाह दी है। उन्होंने कहा कि इस मुलाकात का कोई अलग मतलब नहीं निकाला जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि हम विधायक अपनी समस्याओं को लेकर मुख्यमंत्री से नहीं मिलेंगे तो क्या किसी दुकानदार से मिलेंगे।
उन्होंने कहा कि पार्टी के सभी विधायक सीमांचल में विकास के लिए मुख्यमंत्री से मुलाकात करने गए थे। उन्होंने कहा कि सरकार संतुलित विकास का दावा कर रही है, जबकि सीमांचल का विकास नहीं हुआ है।
उल्लेखनीय है कि पिछले साल हुए बिहार विधानसभा चुनाव में एआईएमआईएम ने सीमांचल की 5 सीटों पर कब्जा किया है। (आईएएनएस)
-हितेश टिक्कू
जम्मू, 28 जनवरी| उत्तर कश्मीर के हंदवाड़ा के एक युवा नेता ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा को पत्र लिखकर माता भद्रकाली मंदिर के विकास के साथ ही केंद्र शासित प्रदेश में आध्यात्मिक पर्यटन के विस्तार और कश्मीरी पंडितों की वापसी की मांग की है।
हंदवाड़ा के एक युवा नेता मुदस्सिर तांत्रे की ओर से लिखे गए एक पत्र में हंदवाड़ा में बेहतर बुनियादी ढांचे की मांग की गई है, जहां विख्यात माता भद्रकाली मंदिर भी है, जो जम्मू-कश्मीर के सबसे पुराने हिंदू तीर्थस्थलों में से एक है।
पत्र में इस ओर भी ध्यान दिलाया गया है कि बुनियादी सुविधाओं और अन्य जरूरी सुविधाओं की कमी के कारण ही श्रद्धालु मंदिर में आने के इच्छुक नहीं हैं।
तांत्रे ने सरकार से अमरनाथ यात्रा की तरह ही भद्रकाली तीर्थ क्षेत्र पर भी ध्यान देने का आग्रह किया है, ताकि हंदवाड़ा देश के आध्यात्मिक पर्यटन मानचित्र का एक हिस्सा बन जाए, जो बदले में क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था व विकास को बढ़ावा देगा और बेरोजगार युवाओं के लिए रोजगार पैदा करेगा, जो आंतकवादी गतिविधियों के सबसे बड़े पीड़ित हैं।
उन्होंने अपने पत्र में कहा, "भद्रकाली मंदिर की आध्यात्मिक पर्यटन स्थल के रूप में शुरुआत के साथ ही पास की बुंगस घाटी को अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन स्थल के रूप में समग्र रूप से विकसित किया जा सकता है, जिससे पूरे उत्तरी कश्मीर को विकास के नक्शे पर लाया जा सकता है।"
प्रधानमंत्री मोदी को संबोधित एक अन्य पत्र में तांत्रे ने लिखा, "हमारी विनती है कि माता भद्रकाली मंदिर को जल्द से जल्द विकसित किया जाए और इसकी खोई हुई महिमा को बिना किसी देरी के बहाल किया जाए। माता भद्रकाली मंदिर विभिन्न समुदायों के बीच भाईचारे का गवाह है।"
पलायन कर चुके कश्मीरी पंडितों की वापसी सुनिश्चित करने का आग्रह करते हुए पत्र में कहा गया है, "मदर कश्मीर अपने बच्चों के बिना अधूरी है।"
पत्र में कहा गया है, "माता के मंदिर से आध्यात्मिक आह्वान को अनसुना नहीं करना चाहिए। गरिमा के साथ कश्मीरी पंडितों की वापसी को यथाशीघ्र शुरू किया जाना चाहिए।"
पर्यटकों के लिए सुविधाओं की अपील करते हुए पत्र में कहा गया है, "बुंगस घाटी अपनी बेमिसाल सुंदरता के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध है, लेकिन पर्यटकों और ट्रेकर्स के लिए सुविधाएं शून्य हैं। इस जगह पर विशाल पर्यटक आकर्षण हैं। इस ऐतिहासिक जगह के साथ कई ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, आदिवासी और वैश्विक यादें जुड़ी हुई हैं।"
उन्होंने प्रधानमंत्री और राज्यपाल सिन्हा से यह आग्रह भी किया कि जल्द से जल्द पट्टान के बुनियादी ढांचे के विकास को शुरू किया जाए। (आईएएनएस)
लखनऊ, 28 जनवरी| देश की राजधानी दिल्ली में यूपी की राममंदिर की झांकी को पहला स्थान मिला है। मुख्यमंत्री योगी के निर्देश पर श्रीराम मंदिर की झांकी की प्रतिकृति को प्रदेश में गांव-गांव में घुमाया जाएगा। दिल्ली के राजपथ पर गणतंत्र दिवस की परेड में पहला स्थान पाने वाली राम मंदिर झांकी को लेकर उत्तर प्रदेश सरकार ने बेहद अहम फैसला लिया है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने गणतंत्र दिवस पर उत्तर प्रदेश की श्रीराम मंदिर की झांकी को देश की सर्वश्रेष्ठ झांकी का पुरस्कार मिलने को गर्व का क्षण बताया है। योगी आदित्यनाथ ने खुशी जताते हुए कहा कि यह प्रदेश के लिए प्रसन्नता और गर्व का अवसर है। झांकी के इस प्रतिरूप को प्रदेश में भी दिखाया जाएगा। जहां-जहां से यह झांकी गुजरेगी, वहां जनता इसका स्वागत करेगी और पुष्पवर्षा की जाएगी। अब सरकार इस झांकी की प्रतिकृति का भ्रमण प्रदेश के गांव-गांव तक में कराएगी।
उत्तर प्रदेश सरकार की श्रीराम मंदिर मॉडल की झांकी देश में सर्वोत्तम रही। राजपथ में झांकी में प्रथम पुरस्कार पहली बार प्रदेश के खाते में आया है। इसे गौरव का क्षण बताते हुए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अब प्रदेश भर में इस झांकी का भ्रमण कराने का निर्देश दिया।
उत्तर प्रदेश प्रदेश सरकार के सूचना विभाग ने इस बार अयोध्या में निमार्णाधीन श्रीराम मंदिर मॉडल की झांकी निकाली।
दिल्ली में गुरुवार को केंद्रीय युवा कल्याण एवं खेल मंत्री किरेन रिजूजू ने उत्तर प्रदेश के सूचना विभाग को पुरस्कार सौंपा। शाम को लखनऊ लौटकर मुख्यमंत्री के सरकार आवास पर अपर मुख्य सचिव सूचना डॉ. नवनीत सहगल और सूचना निदेशक शिशिर ने मुख्यमंत्री को पुरस्कार सौंपा। अपर मुख्य सचिव ने बताया कि झांकी में प्रदेश की बेहद संपन्न विरासत और संस्कृति की झलक दिखाई गई है। अयोध्या में बनने वाले राम मंदिर मॉडल के अलावा रामायण के प्रमुख दृश्य और रामायण की रचना करते हुए महर्षि वाल्मीकि भी आकर्षण का केंद्र रहे। शबरी के झूठे बेर खाते हुए प्रभु श्रीराम के साथ अन्य दृश्यों और संगीत के जरिए सामाजिक समरसता का संदेश देने की कोशिश की गई है। सूचना निदेशक ने इस उपलब्धि को टीमवर्क का नतीजा बताया। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 28 जनवरी | गणतंत्र दिवस पर लाल किले पर प्रदर्शनकारी किसानों के उपद्रव के दौरान जहां इस राष्ट्रीय धरोहर को भारी नुकसान पहुंचा, वहीं कई ऐतिहासिक पुरावशेष गायब भी हुए हैं। घटना के बाद भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग की ओर से तैयार रिपोर्ट में इसका खुलासा होने के बाद केंद्रीय संस्कृति मंत्री प्रहलाद सिंह पटेल ने दिल्ली पुलिस को खोजने के निर्देश दिए हैं। मंत्री ने उम्मीद जताई है कि पुलिस जल्द अवशेषों को बरामद करेगी। केंद्रीय संस्कृति एवं पर्यटन राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) प्रहलाद सिंह पटेल ने अपने आवास पर मीडिया से बातचीत में बताया कि, "लालकिले के बाहर लाइट के जितने भी इंस्ट्रूमेंट थे उन्हें तोड़ दिया गया है। पहली मंजिल पर इंटरपिटेशन सेंटर बन रहा था, जिसके 6-7 ब्लॉक्स को नष्ट कर दिया गया है। जिस मुख्य स्थान से झंडा फहराया जाता है, वहां पर रखे दो ऐतिहासिक कलश गायब हैं। लालकिले के मुख्य द्वार को भी तोड़ा गया है और भी कई पुराशेषों को नुकसान पहुंचाया गया है।"
केंद्रीय मंत्री ने बताया कि ऐतिहासिक अवशेष बेशकीमती होते हैं, जिनकी भरपाई नहीं की जा सकती। लाल किले में तोड़फोड़ से हुए आर्थिक नुकसान का आंकलन किया रहा है। उन्होंने बताया कि रिपोर्ट पुलिस को सौंप दी गई है, जिसके आधार पर पुलिस सख्त कार्रवाई करेगी और गायब हुए पुरातात्विक अवशेषों को बरामद करेगी। (आईएएनएस)
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चंडीगढ़, 28 जनवरी | पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने किसान नेताओं के खिलाफ लुकआउट नोटिस जारी करने को 'बिल्कुल गलत' करार देते हुए गुरुवार को कहा कि किसानों को फ्लाइट रिस्क के खतरे के रूप में देखना न केवल अतार्किक है, बल्कि यह निंदनीय भी है। सिह ने सवाल दागते हुए कहा, "वे कहां भाग जाएंगे?" सिंह ने कहा कि उनमें से अधिकांश छोटे किसान हैं, जिनके पास जोतने के लिए कम जमीन है। उन्होंने कटाक्ष करते हुए कहा कि ये तो छोटे भूमि धारक हैं, ये विजय माल्या, नीरव मोदी, ललित मोदी और मेहुल चोकसी जैसे बड़े व्यापारी नहीं हैं, जो पिछले कुछ वर्षों में अरबों रुपये लूटकर भाग गए थे।
अमरिंदर सिंह ने केंद्र से आग्रह किया कि वह दिल्ली पुलिस को तुरंत लुकआउट नोटिस वापस लेने का निर्देश दिया जाए।
मुख्यमंत्री ने गणतंत्र दिवस के दौरान हुई हिंसा के लिए दर्ज की गई प्राथमिकी में किसान नेताओं को नामजद करने पर दिल्ली पुलिस पर सवाल भी उठाया। सिंह ने कहा कि उनके खिलाफ कोई सबूत न होने के बावजूद उन पर मामले दर्ज किए गए हैं।
पंजाब के मुख्यमंत्री ने कहा, "आप सभी किसान नेताओं को एक तितर-बितर हुए समूह या कुछ असामाजिक तत्वों की करतूत के लिए कैसे दोषी ठहरा सकते हैं, जिन्होंने लाल किले और राष्ट्रीय राजधानी के अन्य हिस्सों में हिंसा भड़काई।"
सिंह ने किसान नेताओं की तरफदारी करते हुए कहा कि उनमें से एक भी व्यक्ति को कथित तौर पर कोई भड़काऊ भाषण देने या किसी भी भड़काऊ काम में लिप्त नहीं पाया गया है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि अगर पुलिस के पास इन नेताओं में से किसी के हिंसा में शामिल होने का कोई सबूत है तो उसे सार्वजनिक किया जाना चाहिए।
अमरिंदर सिंह ने केंद्र से 26 जनवरी की घटनाओं की स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच सुनिश्चित करने का आग्रह किया, ताकि असली दोषियों की पहचान की जा सके और उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जा सके। (आईएएनएस)
भोपाल, 28 जनवरी | मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अनुसूचित जाति, जनजाति और पिछड़ा वर्गों की तरह सामान्य वर्ग के लिए आयोग बनाने का ऐलान किया है। इस आयोग का नाम क्या होगा यह नहीं बताया गया है। मुख्यमंत्री चौहान ने कहा है कि निर्धन सामान्य वर्ग के लोगों को 10 प्रतिशत आरक्षण दिया जा रहा है, अब इस वर्ग के लिए आयोग भी बनाया जाएगा। यह आयोग सामान्य वर्ग के लेागों के लिए काम करेगा। उन्होंने आगे कहा कि हर वर्ग का ध्यान रखना सरकार की जिम्मेदारी है। प्रदेश में एससी एसटी और ओबीसी आयोग पहले से काम कर रहे हैं, अब सरकार ने सवर्ण आयोग के गठन का फैसला किया है
ज्ञात हो कि पिछले विधानसभा चुनाव से पहले चौहान ने सवर्ण वर्ग को लेकर एक विवादित बयान दिया था, जिसका जमकर विरोध किया गया था और भाजपा के सत्ता से बाहर होने का बड़ा कारण इस बयान को ही माना गया था। तब चौहान ने आरक्षित वर्ग को मिलने वाले आरक्षण का समर्थन कर अपरोक्ष रुप से सामान्य वर्ग पर हमला बोला था। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 28 जनवरी (आईएएनएस)| रिपब्लिक टीवी की मूल कंपनी ने टाइम्स नाउ की एंकर नविका कुमार के खिलाफ दिल्ली की एक अदालत में मानहानि का मुकदमा दायर किया है, जिसमें रिपब्लिक टीवी और उसके संस्थापक के खिलाफ कथित व्हाट्सएप चैट मामले को लेकर अपमानजनक टिप्पणी करने का आरोप लगाया गया है। रिपब्लिक टीवी के एडिटर-इन-चीफ और संस्थापक अर्नब गोस्वामी के चैट से संबंधित 18 जनवरी को नविका कुमार द्वारा दिए गए बयानों के बारे में एआरजी आउटलियर मीडिया प्राइवेट लिमिटेड ने शिकायत दर्ज कराई।
शिकायतपत्र की पृष्ठ संख्या 49 में कहा गया है, "नविका कुमार ने रिपब्लिक मीडिया नेटवर्क के संस्थापक पर राजकीय गोपनीयता भंग कर राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरे में डालने का आरोप लगाते हुए बेबुनियाद और निराधार दावे किए, जिससे नेटवर्क की सद्भावना खतरे में पड़ गई और पूरे संगठन को खतरे में डाल दिया गया।"
कंपनी ने दलील दी कि अपमानजनक शो में सैटेलाइट टेलीविजन में प्राइम टाइम पर लाइव टेलीकास्ट के अलावा 85,000 से अधिक दृश्य थे, और शिकायतकर्ता कंपनी की जो मानहानि हुई, उसकी भरपाई मुश्किल है।
आगे कहा गया है कि यह न केवल तथ्यों और स्पष्ट झूठ का एक पूर्ण निर्माण है, बल्कि एक बड़े सार्वभौमिक दर्शकों के लिए एक अपमानजनक बयान भी है, ताकि वे अपने मन को पूर्वाग्रहित कर सकें और उन्हें पूरी तरह से भ्रामक प्रसारण के माध्यम से प्रभावित कर सकें।
शिकायतकर्ता ने आगे कहा, "टीआरपी घोटाला मामले में, मुख्य रूप से व्हाट्सएप चैट मामले में मुंबई पुलिस की चार्जशीट के दस्तावेजों का दुरुपयोग किया गया है।"
एआरजी आउटलेयर मीडिया प्राइवेट लिमिटेड ने यह भी कहा कि अभियुक्त ईष्र्या करती है और शिकायतकर्ता की कंपनी की सफलता की बराबरी करने लिए अभियुक्त की ओर से इस तरह का मानहानि शो प्रसारित किया जाता है।
कंपनी ने अदालत से शिकायत का संज्ञान लेने और भारतीय दंड संहिता की धारा 499 (मानहानि) और 500 (मानहानि के लिए सजा) के तहत अपराध के लिए कानून के अनुसार आरोपियों को सजा देने का अनुरोध किया है।
पटियाला हाउस कोर्ट में इस मामले की सुनवाई 2 फरवरी को होगी।
गाजीपुर बॉर्डर (दिल्ली), 29 जनवरी | गाजीपुर बॉर्डर स्थित किसानों के धरनास्थल पर सुबह से ही हाईवोल्टेज ड्रामा जारी है, जहां एक तरफ दोपहर बाद से ही तनाव की स्थिति बनी हुई थी, वहीं देर रात बॉर्डर से अचानक सुरक्षाकर्मियों को हटा लिया गया है। फिलहाल बॉर्डर पर सभी पीएसी जवानों को क्यों हटाया गया है, इसकी जानकारी अभी तक सामने नहीं आ पाई है। हालांकि सुरक्षाकर्मियों द्वारा कहा गया कि सुबह से ड्यूटी पर तैनात थे, अब जाने के लिए बोला गया है।
गणतंत्र दिवस पर हुई हिंसा के बाद से गजीपुर बॉर्डर पर मौजूद किसानों में तनाव की स्थिती बनी हुई थी। बॉर्डर होने के कारण दिल्ली पुलिस और गाजियाबाद पुलिस प्रशासन ने स्थिति को संभालने के लिए भारी सुरक्षाकर्मियों को तैनात किया था।
हालांकि रात डेढ़ बजे तक बॉर्डर से सभी वरिष्ठ अधिकारी जा चुके हैं, वहीं अब सुरक्षाकर्मियों को भी हटा लिया गया है। दोपहर बाद से ही कयास लगाए जा रहे थे कि बॉर्डर पर कुछ बड़ा होने वाला है, लेकिन फिलहाल स्थिति सामान्य नजर आ रही है।
फिलहाल बॉर्डर पर किसान फिर से लौटने लगे हैं, वहीं किसान नेता राकेश टिकैत के समर्थन में आसपास के इलाकों से भी लोग आने लगे हैं। (आईएएनएस)
मंगलुरु, 29 जनवरी | आरएसएस के वयोवृद्ध नेता कल्लादक प्रभाकर भट ने गुरुवार को एक बार फिर कर्नाटक के मंगलुरु के उल्लाल शहर की तुलना पाकिस्तान से कर चर्चा में आए। उन्होंने कहा, उल्लाल विधानसभा क्षेत्र मंगलुरु में एक मिनी पाकिस्तान बन गया है। जब तक इस क्षेत्र में हिंदू लोग मुसलमानों से ऊपर नहीं उठेंगे, तब तक वे बहुसंख्यक हिंदुओं पर हावी रहेंगे।
आरएसएस नेता ने उल्लाल विधानसभा क्षेत्र के मतदाताओं से आग्रह किया कि वे हमेशा मुस्लिम विधायक चुनने के बजाय हिंदू विधायक को चुना करें।
परिसीमन की कवायद के बाद उल्लाल विधानसभा क्षेत्र का नाम मंगलौर निर्वाचन क्षेत्र रखा गया, जिसका प्रतिनिधित्व कर्नाटक के पूर्व मंत्री यू.टी. खादर कर रहे हैं, जो लगातार चार बार कांग्रेस के टिकट पर जीत चुके हैं। इस निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व उनके दिवंगत पिता यू.टी. फरीद भी करते रहे हैं। वह 1972 के बाद से चार बार कांग्रेस के टिकट पर जीते।
मंगलुरु और उडुपी जिले की 20 सीटों में से मंगलुरु (उल्लाल) एकमात्र ऐसी सीट है, जिसे बरकरार रखने में कांग्रेस सफल रही है।
मीडिया से बात करते हुए भट ने कहा कि सिर्फ पाकिस्तान में मुसलमान अपने समुदाय के लोगों को ही चुनते हैं और यहां तक कि हिंदू बहुल सीटों पर भी वे ही जीत जाते हैं।
उन्होंने कहा, दुर्भाग्य से भारत में ऐसा नहीं होता है। यहां तक कि जहां हिंदू ज्यादा हैं, वहां भी अन्य समुदायों के नेता जीत जाते हैं।
पिछले साल नवंबर में भट ने उल्लाल की तुलना पाकिस्तान से कर विवाद खड़ा कर दिया था। तब उन्होंने राज्य के हिंदुओं से आग्रह किया था कि वे हिंदू संस्कृति की रक्षा के लिए और अधिक बच्चे पैदा करें और राज्य में कहीं भी छोटा पाकिस्तान न बनाने दें। (आईएएनएस)
कोलकाता, 28 जनवरी| भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान और वर्तमान भारतीय क्रिकेट बोर्ड (बीसीसीआई) के अध्यक्ष सौरव गांगुली की गुरुवार को सफल एंजियोप्लास्टी की गई और इसके बाद उनकी हालत स्थिर है। अपोलो अस्पताल ने गुरुवार को इसकी पुष्टि की। मंगलवार रात बेचैनी और सीने में दर्द की शिकायत के बाद गांगुली को बुधवार को अपोलो अस्पताल ले जाया गया था।
अस्पताल ने अपने बयान में कहा, डॉ. आफताब खान और उनकी टीम में शामिल डॉ. अश्विन मेहता, डॉ. देवी शेट्टी, अजीत देसाई, डॉ. सरोज मोंडल और सप्तर्षि बसु ने 28 जनवरी, 2021 को कोलकाता के अपोलो ग्लेनेगल्स हॉस्पिटल्स में सौरव गांगुली का सफलतापूर्वक एंजियोप्लास्टी किया और दो स्टेंट लगाए गए। गांगुली की हालत स्थिर है और इस पर नजर रखी जा रही है।
भारत के पूर्व कप्तान को इस महीने की शुरूआत में अपने निजी जिम में वर्कआउट करने के दौरान ब्लैकआउट का सामना करना पड़ा था और उन्हें दो जनवरी को कोलकाता के वुडलैंड्स अस्पताल में भर्ती कराया गया था। गांगुली ने 7 जनवरी को अस्पताल से छुट्टी मिलने से पहले एंजियोप्लास्टी और अन्य संबंधित परीक्षण किए थे। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 28 जनवरी| रिपब्लिक टीवी की मूल कंपनी ने टाइम्स नाउ की एंकर नविका कुमार के खिलाफ दिल्ली की एक अदालत में मानहानि का मुकदमा दायर किया है, जिसमें रिपब्लिक टीवी और उसके संस्थापक के खिलाफ कथित व्हाट्सएप चैट मामले को लेकर अपमानजनक टिप्पणी करने का आरोप लगाया गया है। रिपब्लिक टीवी के एडिटर-इन-चीफ और संस्थापक अर्नब गोस्वामी के चैट से संबंधित 18 जनवरी को नविका कुमार द्वारा दिए गए बयानों के बारे में एआरजी आउटलियर मीडिया प्राइवेट लिमिटेड ने शिकायत दर्ज कराई।
शिकायतपत्र की पृष्ठ संख्या 49 में कहा गया है, "नविका कुमार ने रिपब्लिक मीडिया नेटवर्क के संस्थापक पर राजकीय गोपनीयता भंग कर राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरे में डालने का आरोप लगाते हुए बेबुनियाद और निराधार दावे किए, जिससे नेटवर्क की सद्भावना खतरे में पड़ गई और पूरे संगठन को खतरे में डाल दिया गया।"
कंपनी ने दलील दी कि अपमानजनक शो में सैटेलाइट टेलीविजन में प्राइम टाइम पर लाइव टेलीकास्ट के अलावा 85,000 से अधिक दृश्य थे, और शिकायतकर्ता कंपनी की जो मानहानि हुई, उसकी भरपाई मुश्किल है।
आगे कहा गया है कि यह न केवल तथ्यों और स्पष्ट झूठ का एक पूर्ण निर्माण है, बल्कि एक बड़े सार्वभौमिक दर्शकों के लिए एक अपमानजनक बयान भी है, ताकि वे अपने मन को पूर्वाग्रहित कर सकें और उन्हें पूरी तरह से भ्रामक प्रसारण के माध्यम से प्रभावित कर सकें।
शिकायतकर्ता ने आगे कहा, "टीआरपी घोटाला मामले में, मुख्य रूप से व्हाट्सएप चैट मामले में मुंबई पुलिस की चार्जशीट के दस्तावेजों का दुरुपयोग किया गया है।"
एआरजी आउटलेयर मीडिया प्राइवेट लिमिटेड ने यह भी कहा कि अभियुक्त ईष्र्या करती है और शिकायतकर्ता की कंपनी की सफलता की बराबरी करने लिए अभियुक्त की ओर से इस तरह का मानहानि शो प्रसारित किया जाता है।
कंपनी ने अदालत से शिकायत का संज्ञान लेने और भारतीय दंड संहिता की धारा 499 (मानहानि) और 500 (मानहानि के लिए सजा) के तहत अपराध के लिए कानून के अनुसार आरोपियों को सजा देने का अनुरोध किया है।
पटियाला हाउस कोर्ट में इस मामले की सुनवाई 2 फरवरी को होगी। (आईएएनएस)
चंडीगढ़, 28 जनवरी| गैंगस्टर से सामाजिक कार्यकर्ता बने लखबीर सिंह उर्फ लक्खा सिधाना का नाम गणतंत्र दिवस की किसान रैली के दौरान दिल्ली में हुई हिंसा के मुख्य आरोपियों में से एक के रूप में लिया जा रहा है, जो पंजाब के बठिंडा जिले के एक गांव का रहने वाला है। सिधाना ने किसान आंदोलन के जरिए अपनी राजनीति चमकाने का सपना देखा। वह किसानों के आंदोलन के माध्यम से राजनीति में बड़ा नाम कमाने की चाहत पाले हुए है।
बताया जा रहा है कि वह 25 नवंबर से ही राष्ट्रीय राजधानी की सीमाओं पर चल रहे आंदोलन में काफी सक्रिय रहा है और आंदोलन को गति देने के लिए उसका रुख भी आक्रामक रहा है।
सिधाना, जो किसी समय पर गैंगस्टर रह चुका है, वह अब खुद को एक सामाजिक कार्यकर्ता दर्शाकर राजनीति में प्रवेश करने का लक्ष्य रखे हुए है। 2012 के विधानसभा चुनावों से पहले उसे कई मामलों में बरी कर दिया गया था, जिसे पीपुल्स पार्टी ऑफ पंजाब के उम्मीदवार के रूप में चुना गया था, जिसका नेतृत्व कभी मनप्रीत सिंह बादल ने किया था, जो कि फिलहाल पंजाब में कांग्रेस सरकार में वित्त मंत्री हैं।
किसान नेताओं ने फिलहाल सिधाना से दूरी बना ली है और वे अब लाल किले पर हिंसा भड़काने के लिए उसे दोषी ठहरा रहे हैं।
सिधाना बठिंडा जिले के सिधाना गांव का रहने वाला है। एक समय पर वह शिरोमणि अकाली दल (शिअद) से भी जुड़ा रहा है।
उसे पहली बार 2004 में जेल की हवा खानी पड़ी थी और इसके बाद 2017 तक उसे कई बार सलाखों के पीछे जाना पड़ा।
इससे पहले सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर वह तब सुर्खियों में आया था, जब उसने मांग की थी कि अंग्रेजी के अलावा सभी आधिकारिक साइनबोर्ड पंजाबी में होने चाहिए।
सिधाना के अलावा पंजाबी अभिनेता से सामाजिक कार्यकर्ता बने दीप सिद्धू पर लाल किले में धार्मिक झंडा फहराने के लिए लोगों को भड़काने का आरोप है। सिद्धू को लाल किले में जुटी भीड़ में देखा गया था और उन पर आरोप लगाया गया कि उन्होंने ही प्रदर्शनकारियों को लाल किले की प्राचीर पर धार्मिक झंडा फहराने के लिए उकसाया।
पंजाब के मुक्तसर जिले में 1984 में पैदा हुए सिद्धू ने कानून की पढ़ाई की है।
उनकी पहली पंजाबी फिल्म 'रमता जोगी' 2015 में रिलीज हुई थी। 2018 में उनकी दूसरी फिल्म 'जोरा दास नुम्ब्रिया' हिट रही थी।
सिद्धू को अभिनेता और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सांसद सनी देओल का करीबी माना जाता है। कई आरोप लगने के बाद से वह लापता है। सिद्धू ने बिना किसी परामर्श के निर्णय लेने के लिए किसान नेताओं की आलोचना भी की है। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 28 जनवरी | भारत दुनिया में सबसे तेजी से 10 लाख टीकाकरण के आंकड़े को छूने वाला देश बन गया है। सरकार ने गुरुवार को यह जानकारी दी। केंद्र सरकार ने 11 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की टीकाकरण में दिखाई गई तेजी को लेकर सराहना भी की है।
केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव राजेश भूषण ने जानकारी देते हुए कहा कि हेल्थकेयर वर्कर्स सहित 25 लाख से अधिक लोगों को पिछले 13 दिनों में टीका लगाया गया है। उन्होंने कहा कि भारत कोरोना वैक्सीन के टीकाकरण को लेकर शुरुआत के केवल छह दिनों में ही दस लाख का आंकड़ा पार कर गया था, जो कि रफ्तार के मामले में सभी देशों में सबसे तेज है।
उन्होंने बताया कि अमेरिका ने 10 दिनों में, स्पेन ने 12 दिनों में, इजरायल ने 14 दिनों में, ब्रिटेन ने 18 दिनों में, इटली ने 19 दिनों में, जर्मनी ने 20 दिनों में और यूएई ने 27 दिनों में 10 लाख लोगों का टीकाकरण किया है।
भूषण ने कहा कि 11 राज्यों ने स्वास्थ्यकर्मियों के टीकाकरण कवरेज में बेहतर प्रदर्शन किया है और लक्षित लाभार्थियों में से 30 प्रतिशत से अधिक को कवर किया है।
इसमें लक्षद्वीप भी शामिल है, जिसमें 83.4 प्रतिशत लक्षित लाभार्थी (वैक्सीन के लिए टारगेट किए लोग) शामिल हैं। इसके बाद ओडिशा (50.7 प्रतिशत), हरियाणा (50 प्रतिशत) और अंडमान और निकोबार (48.3 प्रतिशत) शामिल हैं। स्वास्थ्य सचिव ने कहा, "यह एक सराहनीय उपलब्धि है।"
इसके अलावा मंत्रालय ने छह राज्यों को टीकाकरण अभियान में तेजी लाने की नसीहत भी दी है। यह वे राज्य हैं जहां टीकाकरण अभियान में सुधार और तेजी लाने की आवश्यकता है। इसमें झारखंड और दिल्ली भी शामिल है। झारखंड ने जहां अभी तक लक्ष्य का केवल 14.7 प्रतिशत टीकाकरण सुनिश्चित किया है, वहीं दिल्ली में भी महज 15.7 प्रतिशत लक्ष्य ही हासिल हो सका है।
राष्ट्रव्यापी टीकाकरण अभियान 16 जनवरी को शुरू हुआ था। टीकाकरण अभियान में भारत में निर्मित कोवैक्सिन और कोविशील्ड वैक्सीन दी जा रही है। शुरुआत में सरकार का लक्ष्य एक करोड़ स्वास्थ्य कर्मियों और दो करोड़ फ्रंटलाइन वर्कर्स का टीकाकरण करना है। (आईएएनएस)