राष्ट्रीय
नई दिल्ली, 28 जनवरी| केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण, ग्रामीण विकास, पंचायत राज तथा खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने गुरुवार को सीड ट्रेसिबिलिटी मोबाइल एप लांच किया, जिससे असली बीज की पहचान हो पाएगी। केंद्रीय मंत्री ने कहा कि मोबाइल एप के माध्यम से असली बीजों की जानकारी मिल पाएगी और किसान धोखाधड़ी से बच पाएंगे। कार्यक्रम में तोमर ने गुण नियंत्रण एवं डीएनए प्रयोगशाला का शुभारंभ भी किया। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि खेती के क्षेत्र में बीज की बड़ी महत्ता है, ऐसे में बीज के क्षेत्र में काम करने वालों की काफी अहम जवाबदेही होती है।
पूसा स्थित राष्ट्री य बीज निगम (एनएससी) के मुख्यालय में आयोजित इस समारोह में एनएससी के अध्यक्ष सह प्रबंध निदेशक वनोद कुमार गौड़ ने भारत सरकार के लिए लगभग नौ करोड़ रुपये के लाभांश का चेक केंद्रीय मंत्री तोमर को सौंपा।
इस अवसर पर तोमर ने शंकरन द्वारा संपादित पुस्तक एनएससीस 'जर्नी इन द सर्विस आफ फार्मर्स' नामक पुस्तिका का विमोचन किया।
कृषि मंत्री ने कहा कि एनएससी के पास भूमि का काफी बड़ा रकबा है, जिसका अधिकाधिक उपयोग किया जाना चाहिए। एनएससी कम दाम पर गुणवत्तायुक्त बीज किसानों को उपलब्ध करा रहा है, यह देश के लिए बड़ा काम है, जिसे आगे बढ़ाया जाना चाहिए। उन्होंने इस दिशा में प्रगति के लिए एक रोडमैप बनाने का सुझाव दिया।
कार्यक्रम में कृषि राज्यमंत्री परषोत्तम रूपाला ने कहा कि कृषि की शुरुआत बीज से होती है, इसलिए वेरायटी सीड्स की ज्यादा मात्रा में किसानों को सस्ते दामों में उपलब्ध हो यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए।
कृषि राज्यमंत्री कैलाश चौधरी ने कहा कि खाद्यान्न की आत्मनिर्भरता में किसानों व वैज्ञानिकों के साथ-साथ एनएससी का भी बड़ा योगदान है। उन्होंने कहा कि नई लैब व एप से किसानों को काफी लाभ होगा।
मंत्रालय की ओर से दी गई जानकारी के अनुसार, वर्ष 2019-20 में एनएससी की कुल आय 1085.44 करोड़ रुपये रही है और कर पूर्व लाभ 60.88 करोड़ रुपये रहा।
(आईएएनएस)
चंडीगढ़, 28 जनवरी| पंजाबी अभिनेता से सामाजिक कार्यकर्ता बने दीप सिद्धू, जिनका नाम गणतंत्र दिवस पर दिल्ली में हुई हिंसा में सामने आया है, कथित तौर पर लापता हो गए हैं। उन्हें 26 जनवरी को किसानों की भीड़ के बीच आखिरी बार देखा गया था, जो ट्रैक्टर मार्च के नियोजित मार्ग का उल्लंघन करते हुए लालकिले तक जा पहुंची थी। सिद्धू पर आरोप है कि उन्होंने ही प्रदर्शनकारियों को लालकिले की प्राचीर से धार्मिक झंडा फहराने के लिए उकसाया था। सिख धर्म के प्रतीक निशान साहिब को स्थापित करने के लिए लोगों को उकसाने के आरोपों के बाद से उनका कोई पता नहीं लग पाया है।
सिद्धू को अभिनेता और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सांसद सनी देओल का करीबी भी बताया जा रहा है। उन्होंने लालकिले से एक फेसबुक लाइव के दौरान कहा था, "हमने केवल विरोध प्रदर्शन करने के लिए अपने लोकतांत्रिक अधिकार का प्रयोग करते हुए लालकिले पर निशान साहिब झंडा फहराया है।"
उन्होंने यह भी कहा कि लालकिले से राष्ट्रीय ध्वज नहीं हटाया गया है।
एक अन्य वीडियो में सिद्धू को लालकिले से बाइक पर भागते देखा गया है।
दिल्ली हिंसा में मुख्य आरोपी सिद्धू के साथ गैंगस्टर से सामाजिक कार्यकर्ता बने लक्खा सिधाना को भी मुख्य आरोपी बनाया गया है।
सिधाना एक अपराधी से राजनेता बने हैं और 2012 के विधानसभा चुनाव लड़ने से पहले वह कई मामलों में बरी हो गए थे। उन्होंने पीपुल्स पार्टी ऑफ पंजाब के उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ा था, जिसका नेतृत्व मनप्रीत सिंह बादल ने किया था, जो वर्तमान में पंजाब में कांग्रेस सरकार में वित्तमंत्री हैं।
किसान नेताओं ने फिलहाल सिद्धू और सिधाना दोनों से दूरी बना ली है।
हालांकि सिद्धू ने किसान यूनियन के नेताओं पर लोगों से सलाह लिए बिना फैसले लेने और खुद का बचाव करने का आरोप लगाते हुए अपने हालिया वीडियो में कहा, "मैं देख रहा हूं कि मेरे खिलाफ गलत प्रचार और नफरत फैलाई जा रही है।"
उन्होंने कहा, "हजारों लोग वहां (लाल किला) पहुंचे थे, लेकिन कोई भी किसान नेता वहां मौजूद नहीं था। किसी ने भी हिंसा नहीं की और किसी भी सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान नहीं पहुंचाया। उन्होंने अपना विरोध दर्ज कराने के लिए निशान साहिब और एक किसान झंडा फहराया।"
किसान यूनियन के नेताओं की ओर से उन्हें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) का आदमी बताए जाने पर उन्होंने कहा कि केवल एक सच्चा व्यक्ति ही लालकिले पर झंडा फहराएगा।
उन्होंने कहा, "आप मुझे आरएसएस का आदमी, भाजपा का आदमी कह रहे हैं। क्या कोई आरएसएस का आदमी लालकिले पर झंडा फहराएगा? इसके बारे में सोचिए। क्या कोई कांग्रेसी ऐसा कर पाएगा? नहीं। केवल एक शुद्ध और सच्चा व्यक्ति ही ऐसा करेगा।"
एक वीडियो में उन्होंने स्पष्ट किया कि वह कहीं भागे नहीं हैं और सिंघु बॉर्डर पर ही हैं।
पंजाब के मुक्तसर जिले में 1984 में जन्मे सिद्धू तीन विवादास्पद कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन से जुड़े हैं।
उनकी पहली पंजाबी फिल्म 'रमता जोगी' 2015 में रिलीज हुई थी। 2018 में उनकी दूसरी फिल्म 'जोरा दास नंबरिया' हिट रही थी। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 28 जनवरी| भारत ने गुरुवार को निर्धारित वाणिज्यिक अंतर्राष्ट्रीय उड़ानों के संचालन के निलंबन को 28 फरवरी तक बढ़ा दिया है। एक आधिकारिक बयान में कहा गया, "यह प्रतिबंध अंतर्राष्ट्रीय ऑल-कार्गो संचालन और डीजीसीए द्वारा अनुमोदित विशेष उड़ानों पर लागू नहीं होगा।"
बयान के अनुसार, "हालांकि, अंतर्राष्ट्रीय उड़ानों को सक्षम प्राधिकारी द्वारा चुनिंदा मार्गो पर स्थिति के आधार पर अनुमति दी जा सकती है।"
वर्तमान में, भारत ने कई देशों के साथ 'एयर बबल' समझौतों पर हस्ताक्षर किया है।
इस प्रकार की व्यवस्था दोनों देशों के नागरिकों को किसी भी दिशा में यात्रा करने की अनुमति देती है।
कोविड -19 के प्रसार की वजह से देशव्यापी तालाबंदी के कारण 25 मार्च, 2020 को यात्री हवाई सेवाओं को निलंबित कर दिया गया था।
हालांकि, घरेलू उड़ान सेवाएं 25 मई से फिर से शुरू कर दी गई थीं। (आईएएनएस)
जफर अब्बास
नई दिल्ली, 28 जनवरी| दिल्ली पुलिस ने गणतंत्र दिवस के मौके पर ट्रैक्टर रैली के लिए निर्धारित मार्ग का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ कार्रवाई तेज कर दी है। पुलिस ने प्राथमिकी में ट्रैक्टर सहित ऐसे 30 वाहनों को सूचीबद्ध किया है, जिन्होंने निर्धारित मार्ग का उल्लंघन किया।
पुलिस अब इन वाहनों के मालिकों का पता लगाने में जुट गई है।
पुलिस के अनुसार, वाहनों ने जो मार्ग निर्धारित किया था, उसका उल्लंघन किया और इन वाहनों पर सवार लोगों ने हिसा फैलाई। इसके साथ ही उन्होंने 26 जनवरी को आधिकारिक ड्यूटी पर तैनात पुलिसकर्मियों पर जानलेवा हमले भी किए।
पुलिस ने कहा कि प्रदर्शनकारियों ने ड्यूटी पर मौजूद पुलिसकर्मियों से पिस्तौल, गोला बारूद और यहां तक कि गैस गन्स भी छीन लीं।
दिल्ली पुलिस की विशेष यूनिट्स क्राइम ब्रांच और स्पेशल सेल ने गणतंत्र दिवस के मौके पर राष्ट्रीय राजधानी में हुई हिंसा के सिलसिले में हिंसक प्रदर्शनकारियों और एफआईआर में नामजद लोगों के खिलाफ सबूत इकट्ठा करना शुरू कर दिया है।
दिल्ली पुलिस ने गणतंत्र दिवस की ट्रैक्टर रैली के दौरान हुई हिंसा के संबंध में एफआईआर में नामजद किसान नेताओं के खिलाफ एक लुकआउट सर्कुलर जारी किया है।
पुलिस ने कहा कि उनके पासपोर्ट को सरेंडर करने की प्रक्रिया भी शुरू की जाएगी, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि वे देश से बाहर न जाएं।
एफआईआर में किसान नेता राकेश टिकैत, दर्शन पाल, गुरनाम सिंह चढ़ूनी, राजिंदर सिंह, बलबीर सिंह राजेवाल, बूटा सिंह बुर्ज गिल, योगेंद्र यादव, मेधा पाटकर, अविक साहा और जोगिंदर सिंह सहित कुल 37 किसान नेताओं का नाम है। किसानों की ट्रैक्टर रैली के दौरान हुई हिंसा के संबंध में इन किसान नेताओं को नामजद किया गया है।
किसानों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की विभिन्न धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया है, जिसमें धारा 147, 148 (हिंसा या दंगा करने से संबंधित), 120 बी (आपराधिक साजिश) और 307 (हत्या का प्रयास) शामिल हैं।
आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, हिंसा में 394 पुलिसकर्मी घायल हुए हैं, जिनमें से अधिकांश अस्पताल में भर्ती हैं, जबकि कुछ गंभीर पुलिसकर्मियों को आईसीयू में भी भर्ती कराना पड़ा है। अभी तक 25 से अधिक आपराधिक मामले दर्ज किए गए हैं और 19 लोगों को गिरफ्तार किया गया है और 50 से अधिक प्रदर्शनकारियों को हिरासत में भी लिया गया है।
26 जनवरी को पुलिस पर हमला करने और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वाले हिंसक प्रदर्शनकारियों की पहचान करने के लिए पुलिस सभी उपलब्ध तस्वीरों और वीडियो फुटेज का विश्लेषण कर रही है। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 28 जनवरी| प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरुवार को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से विश्व आर्थिक मंच के दावोस संवाद को संबोधित करते हुए कहा कि जिस देश में दुनिया की 18 प्रतिशत आबादी रहती है, उस देश ने कोरोना पर प्रभावी नियंत्रण करके पूरी दुनिया को बड़ी त्रासदी से भी बचाया है। कोरोना शुरू होने के समय मास्क, पीपीई किट, टेस्ट किट हम बाहर से मंगाते थे। आज हम न सिर्फ अपनी घरेलू जरूरतें पूरी कर रहे हैं बल्कि इन्हें अन्य देशों में भेजकर वहां के नागरिकों की सेवा भी कर रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि आज भारत ही है जिसने दुनिया का सबसे बड़ा कोरोना वैक्सीनेशन प्रोग्राम भी शुरू किया है। पहले फेज में हम अपने 30 मिलियन हेल्थ और फ्रंटलाइन वर्कर्स का वैक्सीनेशन कर रहे हैं। भारत की स्पीड का अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि सिर्फ 12 दिन में भारत अपने 2.3 मिलियन से ज्यादा हेल्थ वर्कर्स को वैक्सीनेट कर चुका है। अगले कुछ महीनों में हम अपने करीब 300 मिलियन बुजुर्ग और को-मोरबिडिटी वाले मरीजों के वैक्सीनेशन का टारगेट पूरा कर लेंगे।
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि जब दुनिया के अनेक देशों में एयरस्पेस बंद था, तब एक लाख से ज्यादा नागरिकों को उनके देश पहुंचाने के साथ ही भारत ने 150 से ज्यादा देशों को जरूरी दवाइयां भी भेजीं। अनेक देशों के हेल्थ कर्मचारियों को भारत ने ऑनलाइन ट्रेनिंग दी। भारत की ट्रेडिशनल मेडिसिन आयुर्वेद कैसे इम्युनिटी बढ़ाने में सहायक है, हमने दुनिया को इस बारे में गाइड किया।
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, "आज भारत, कोविड की वैक्सीन दुनिया के अनेक देशों में भेजकर, वहां पर वैक्सीनेशन से जुड़े इंफ्रास्ट्रक्च र को तैयार करके, दूसरे देशों के नागरिकों का भी जीवन बचा रहा है और ये सुनकर विश्व आर्थिक मंच में सभी को तसल्ली होगी कि अभी तो सिर्फ दो मेड इन इंडिया कोरोना वैक्सीन दुनिया में आई हैं, आने वाले समय में कई और वैक्सीन आने वाली हैं। ये वैक्सीन्स दुनिया के देशों को और ज्यादा बड़े स्केल पर, ज्यादा स्पीड से मदद करने में हमारी सहायता करेंगी।"(आईएएनएस)
नई दिल्ली, 28 जनवरी| भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू) के नेता राकेश टिकैत गुरुवार को दिल्ली-उत्तर प्रदेश सीमा पर स्थित गाजीपुर में किसानों के प्रदर्शन स्थल पर भावुक हो गए और आरोप लगाया कि प्रशासन उनके आंदोलन को कुचलने की कोशिश कर रहा है। गणतंत्र दिवस पर 'किसान गणतंत्र परेड' के दौरान शहर के कई हिस्सों में हुई हिंसा के सिलसिले में दिल्ली पुलिस की एफआईआर में नामित टिकैत ने दो दिन बाद विरोध स्थल पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई।
उन्होंने कहा, "हम तैयार थे शांतिपूर्वक आत्मसमर्पण करने के लिए, लेकिन प्रदर्शनकारी किसानों को पीटने के लिए भाजपा के स्थानीय विधायकों को बुलाया गया।"
उन्होंने कहा, "यह हमारे खिलाफ एक साजिश है। अगर पुलिस ने हम पर गोलियां भी चलाईं, तो भी मैं आत्मसमर्पण नहीं करूंगा।"
टिकैत ने यह भी कहा कि वह आत्महत्या कर लेंगे, लेकिन वह अब आत्मसमर्पण नहीं करेंगे।
मीडिया से बात करते हुए, भावुक टिकैत ने कहा कि प्रशासन उनके शांतिपूर्ण आंदोलन को समाप्त करने के लिए किसानों के खिलाफ षड्यंत्र करने की कोशिश कर रहा है।
उन्होंने कहा, "हम यहां तीन कृषि कानूनों के विरोध में प्रदर्शन करने आए थे और उन्हें वापस लेने की मांग कर रहे थे।"
उन्होंने आरोप लगाया कि भाजपा के लोग किसानों को मारने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने कहा, "यह देश के किसानों के साथ अन्याय है। तीन कानूनों को निरस्त किया जाना चाहिए और हमारा आंदोलन तब तक चलता रहेगा, जब तक तीनों कानूनों को वापस नहीं लिया जाता है।"
उन्होंने कहा, "मैं किसानों के हक के लिए लड़ता रहूंगा।"
गाजियाबाद प्रशासन ने किसानों को प्रदर्शन स्थल खाली करने के लिए नोटिस दिया है।
इससे पहले दिन में, गाजीपुर विरोध स्थल पर पुलिस कर्मियों और सुरक्षा बलों की भारी तैनाती देखी गई, जहां किसान पिछले साल 26 नवंबर से डेरा डाले हुए हैं। (आईएएनएस)
-विवेक मिश्रा
पाकिस्तान ने अंतरराष्ट्रीय फोरम में अपना पक्ष मजबूत करने के लिए एक लंबे इंतजार के बाद बासमती चावल का जीआई पंजीकरण किया है लेकिन जानकारों का कहना है कि भारत पर इसका कोई असर नहीं पड़ेगा।
पानीपत की अनाज मंडी में बासमाती धान बेचने आया किसान, अपनी फसल के बिकने का इंतजार कर रहा है। फोटो: विकास चौधरी पानीपत की अनाज मंडी में बासमाती धान बेचने आया किसान, अपनी फसल के बिकने का इंतजार कर रहा है। फोटो: विकास चौधरी
पाकिस्तान ने एक दशक से भी ज्यादा इंतजार के बाद बासमती चावल को ज्योग्राफिकल इंडिकेशन (जीआई) टैग दिया है। पाकिस्तान का यह कदम भारत के उस आवेदन के बाद उठाया गया है, जिसमें भारत ने यूरोपियन यूनियन में पाकिस्तान से अलग अपने बासमती के लिए विशेष जीआई टैग की मांग की गई थी।
भारत ने मई, 2010 में अपने यहां सात राज्यों में हिमाचल प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, उत्तराखंड, दिल्ली के बाहरी क्षेत्रों, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और जम्मू-कश्मीर के कुछ भागों में बासमती को जीआई टैग दिया था।
किसी उत्पाद को उसके उत्पत्ति की विशेष भौगोलिक पहचान से जोड़ने के लिए जीआई टैग दिया जाता है ताकि वह उत्पाद अलग और खास बन सके। पाकिस्तान के बासमती चावल उत्पादक इसकी मांग लंबे समय से कर रहे थे। दरअसल पाकिस्तान में जीआई पंजीकरण के लिए कानून की जद्दोजहद करीब दो दशक से चल रही थी, जिसे हाल ही में अमलीजामा पहनाया गया है।
पाकिस्तानी प्रधानमंत्री के वाणिज्य एवं निवेश मामलों के सलाहकार अब्दुल रज्जाक दाउद ने 26 जनवरी, 2021 को अपने ट्वीट में लिखा है कि मुझे खुशी है कि पाकिस्तान ने ज्योग्राफिकल इंडिकेशन एक्ट, 2020 के तहत बासमती चावल को जीआई में पंजीकृत कर लिया है।
आधिकारिक ईयू जर्नल में बताया गया है कि 11 सितंबर, 2020 को भारत ने अपने यहां पैदा होने वाली बासमती के लिए विशेष भौगोलिक पहचान (एक्सकलूसिव ज्योग्राफिकल इंडिकेशन) के लिए आवेदन किया था। भारत ने अपने बासमती की अहमियत बनाए रखने के लिए यूरोपियन यूनियन में पाकिस्तान से अलग होकर ज्योग्राफिकल इंडिकेशन (जीआई) टैग की मांग की थी।
वहीं, बासमती का जीआई पंजीकरण न होने के कारण भारत के इस आवेदन के बाद पाकिस्तान को यह चिंता सताने लगी थी कि जीआई टैग के बिना उसका बासमती कहीं अंतरराष्ट्रीय बाजार में पूरी तरह से बाहर न हो जाए, क्योंकि 2006 में ईयू की अनुमति के बाद भी पाकिस्तान ने अब तक अपने बासमती को जीआई टैग में पंजीकृत नहीं किया था। उनका जीआई कानून बीते दो दशक से लंबित था।
अब पाकिस्तान में जीआई एक्ट, 2020 के तहत जीआई रजिस्ट्री बनाई गई है जो कि जीआई पंजीकरण का काम करती है। रज्जाक दाऊद ने ट्वीट में आगे लिखा है कि इस कदम से हमारे उत्पाद का बेजा इस्तेमाल नहीं हो सकेगा। साथ ही अंतरराष्ट्रीय बाजार में उनके बामसती को संरक्षण भी मिलेगा। उन्होंने अपने लोगों से इंटलेक्चुअल प्रॉपर्टी ऑर्गेनाइजेशन के तहत रजिस्ट्रेशन के लिए उत्पादों के सुझाव भी मांगे हैं।
जीआई टैग किसी उत्पाद को बाजार में उसके विशेष होने का कानूनी संरक्षण भी देता है।
भारत-पाकिस्तान दायरे में हिमायल के कुछ खास भौगोलिक निचले क्षेत्रों में ही बासमती पैदा होती है। इस भौगोलिक क्षेत्र की जलवायु ही इसे एक अनूठा स्वाद -सुगंध और आकार देती है, जिसकी अच्छी कीमत अंतरराष्ट्रीय बाजार में है। कई ऐसे चावल अब दुनिया भर में पैदा होते हैं जो लंबे दाने वाले होते हैं लेकिन उनमें कोई विशेष सुगंध नहीं होती है। इसलिए बासमती का महत्व अब भी बना हुआ है।
पाकिस्तान के इस कदम का भारत पर क्या कोई असर होगा?
बासमती चावल के निर्यातक और चमन लाल सेतिया एक्सपोर्ट्स लिमिटेड के चेयरमैन विजय कुमार सेतिया ने डाउन टू अर्थ से बातचीत में कहा कि 2006 में जीई टैग को लेकर भारत-पाकिस्तान का मामला यूरोपियन यूनियन में पहुंचा था। वहां, पर जीआई टैग मान्यता के लिए भारत ने अपने बहुत ही खास और वैज्ञानिक मानकों पर बासमती उत्पादकों में सात राज्यों की सूची दी थी जबकि पाकिस्तान ने अपने बहुत ही छोटे भौगोलिक हिस्से में पैदा होने वाली बासमती के लिए सिर्फ 14 जिलों के नाम ही गिनवाए थे।
अब पाकिस्तान ने इन्हीं 14 जिलों में, जहां बासमती पैदा की जाती है उसको अपने देश में जीआई मान्यता दे दी है। सेतिया ने कहा कि यह भारत के लिए काफी अच्छा है क्योंकि उन्होंने अपनी सीमा परिभाषित कर दी है और भारत का बहुत बड़ा भू-भाग है जो बासमती जीआई के दायरे में है। ऐसे में अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारत की बासमती का दबदबा बना रहेगा। अंतरराष्ट्रीय लड़ाई में भी पाकिस्तान शायद भारत से अब कमजोर भी पड़ जाए।
क्या जीआई टैग के पंजीकरण से भीतरी कलह सुलझेगी?
वर्ष 2006 में ईयू के सामने भारत ने बासमती की गुणवत्ता को सर्वोपरि रखते हुए जीआई सूची से उस वक्त राजस्थान को भी बाहर कर दिया था, जबकि मध्य प्रदेश बासमती के जीआई टैग को लेकर कुछ वर्षों से अपना दावा कर रहा है। जानकारों का कहना है कि यदि बासमती का दायरा विशेष और जलवायु मानकों पर सीमित नहीं होगा और एक के बाद एक राज्य दावा करेंगे तो बासमती की गुणवत्ता प्रभावित हो जाएगी और अंतरराष्ट्रीय बाजार में एक बड़ा झटका लगेगा। इसी तरह से पाकिस्तान यदि अब अपने जीआई टैग के भौगोलिक दायरे को बढ़ाने की कोशिश करेगा तो अंतरराष्ट्रीय बाजार में उसे भी एक बड़ा झटका मिल सकता है। हालांकि, पाकिस्तान के भीतर यदि कोई जिला अब नए सिरे से जीआई क्लेम करेगा तो कलह वहां भी बढ़ सकती है। (downtoearth.org.in)
-मालिनी चक्रवर्ती
नोवल कोरोनावायरस बीमारी (कोविड-19) महामारी और इस वजह से हुए लॉकडाउन के मद्देनजर अर्थव्यवस्था में अपेक्षित कमजोरी आई, जिससे केंद्र सरकार के कर राजस्व संग्रह में भारी गिरावट आई है।
समाचार रिपोर्टों के मुताबिक, 24.23 लाख करोड़ रुपये के केंद्रीय बजट 2020-21 के मुकाबले कर संग्रह में 5 लाख करोड़ रुपये की कमी हो सकती है। धीमी अर्थव्यवस्था ने पिछले वर्षों के कर संग्रह को प्रभावित किया, इस वर्ष अर्थव्यवस्था का अभूतपूर्व संकुचन इस स्थिति को और बदतर बनाने वाला है।
राजस्व में इतनी बड़ी कमी न केवल केंद्र के लिए बल्कि राज्यों के लिए भी चिंता का कारण है। कुछ अर्थों में, केंद्रीय कर संग्रह में कमी राज्यों के लिए और भी अधिक महत्व रखती है, क्योंकि उनके पास कर राजस्व बढ़ाने का दायरा बहुत कम होता है।
जीएसटी (गुड्स एंड सर्विस टैक्स) के कारण समस्या और भी गंभीर हो गई है क्योंकि राज्यों को कई राज्य स्तरीय करों को छोड़ना पड़ा है। इस प्रकार, केंद्र द्वारा एकत्र किए गए कर राजस्व की मात्रा की अहमियत राज्यों के लिए महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि यह काफी हद तक निर्धारित करता है कि कितना पैसा राज्यों के साथ साझा किया जाएगा।
लेकिन मामला सिर्फ इतना भर नहीं है कि केन्द्र के कर में से राज्यों को कितना मिलता है। महत्वपूर्ण मुद्दा यह भी है कि केंद्र कर राजस्व कैसे उत्पन्न करता है।
यहां कर राजस्व में कमी जिस वजह से हो रही है, वह काफी चिंताजनक है। कंट्रोलर जनरल ऑफ अकाउंट (सीजीए) के नवीनतम आंकड़ों से पता चलता है कि 2019 में समान अवधि की तुलना में पिछले साल अप्रैल से नवंबर के बीच सकल कर संग्रह में 12.6 प्रतिशत की गिरावट आई थी। हालांकि, करों के सभी घटक समान रूप से प्रभावित नहीं हुए हैं।
जहां कॉर्पोरेट टैक्स, आयकर और सीमा शुल्क कर संग्रह में क्रमश: 35 प्रतिशत, 12 प्रतिशत और 17 प्रतिशत की गिरावट आई है, वहीं अप्रैल-नवंबर, 2019 की तुलना में उत्पाद शुल्क संग्रह लगभग 48 प्रतिशत बढ़ गया है। पिछले वर्ष मार्च और मई के महीनों में पेट्रोल और डीजल पर लगाए गए केंद्रीय उत्पाद शुल्क में बढ़ोतरी के कारण ये वृद्धि हुई है।
उत्पाद शुल्क संग्रह के इस वृद्धि का दिलचस्प पहलू यह है कि जहां इससे केंद्र को अधिक राजस्व उत्पन्न करने में मदद मिली, वहीं यह राज्यों को ज्यादा मदद नहीं करता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि ईंधन पर उत्पाद शुल्क में तीन घटक शामिल हैं, जिनमें से केवल एक बेसिक ड्यूटी राज्यों के साथ साझा की जाती है।
बजट और गरीब
शेष दो घटक - अतिरिक्त उत्पाद शुल्क (सड़क और बुनियादी ढांचा उपकर) और विशेष अतिरिक्त उत्पाद शुल्क - सेस और अधिभार हैं और इसलिए राज्यों के साथ साझा करने योग्य नहीं हैं।
चूंकि केंद्र सरकार ने बेसिक ड्यूटी को स्थिर रखते हुए केवल विशेष अतिरिक्त उत्पाद शुल्क में वृद्धि की है, इससे केंद्र के उस हिस्से को बढ़ावा दिया है, जिसे राज्य के साथ शेयर नहीं किया जाना है।
पोस्ट-हाइक एक्साइज ड्यूटी की संरचना पर करीब से नजर डालने से पता चलता है कि पेट्रोल के मामले में इसका लगभग 91 प्रतिशत राज्यों के साथ साझा करने योग्य नहीं है, जबकि डीजल के मामले में यह 85 प्रतिशत है। इसका मतलब यह है कि राज्यों के कर राजस्व का हिस्सा समग्र केंद्रीय संग्रह में कमी के कारण प्रतिकूल रूप से प्रभावित हो जाता है, वे तब भी लाभ नहीं पाते हैं जब कुछ घटक अच्छी तरह से रिकवरी करते हैं।
यह कोई इकलौता उदाहरण नहीं है। पिछले कुछ वर्षों में, केंद्र अपने कर राजस्व को बढ़ाने के लिए उपकर और अधिभार पर निर्भर रहा है। परिणामस्वरूप, केंद्रीय कर राजस्व में राज्यों की हिस्सेदारी घट रही है।
यह समस्या इस तथ्य से समझी जा सकती है कि 2000-01 में केंद्रीय सकल कर राजस्व में सेस और सरचार्ज का हिस्सा 3% था, जो 2019-20 में बढ़कर 15.6 प्रतिशत हो गया। 2020-21 में इसके और बढ़ने की संभावना है।
विश्लेषकों का यह सुझाव है कि सरकार को आगामी बजट में कोविड-19 उपकर (सेस) लगाना चाहिए। लेकिन ये उपकर केवल केंद्र को अधिक राजस्व जुटाने में मदद करेगा, जबकि राज्यों को कुछ भी हासिल नहीं होगा।
यह देखते हुए कि राज्य ही हैं, जो महामारी संकट के खिलाफ लड़ाई का नेतृत्व कर रहे हैं, यह वक्त है कि केंद्र उनके साथ अधिक संसाधन साझा करे। इसलिए, यह जरूरी है कि केंद्र उपकर और अधिभार पर अपनी निर्भरता कम करे।
इसके बजाय, राजस्व में संभावित गिरावट की भरपाई करने के लिए, नई कर दरों को पेश किया जा सकता है, विशेष रूप से उन सुपर-रिच पर, जिनकी आय महामारी से अपेक्षाकृत कम प्रभावित हुई है। यह न केवल अधिक कर राजस्व उत्पन्न करने में मदद करेगा, बल्कि यह भी सुनिश्चित करेगा कि राज्यों को कर का उचित हिस्सा मिले।
(यह लेख सेंटर फॉर बजट एंड गर्वनेंस अकाउंटबिलिटी के सहयोग से प्रकाशित किया गया है) (downtoearth.org.in)
-निखिल इनामदार
लॉकडान के दौरान जब 2020-21 की पहली तिमाही में जीडीपी 23.9 प्रतिशत और दूसरी तिमाही में 7.5 प्रतिशत गिरी तो कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था को राहत देने वाला क्षेत्र था. लेकिन इससे भारत के अधिकतर किसानों की आमदनी पर कोई फर्क नहीं पड़ा.
महाराष्ट्र के नासिक के नयागांव में अपनी दो एकड़ ज़मीन पर लाल प्याज़ उगाने वाले भरत दिघोले के लिए बीता साल मुश्किलों भरा था. भारी पैदावार की वजह से दाम गिर गए थे और फिर सितंबर में सरकार ने प्याज़ के निर्यात पर रोक लगा दी थी.
दिघोले महाराष्ट्र प्याज़ उत्पादक एसोसिएशन के अध्यक्ष भी हैं. अपने खेत के पास बने छोटे से घर के आंगन में चाय पीते हुए दिघोले कहते हैं, "अप्रैल 2020 में मैंने प्याज़ उसी भाव में बेची जिस भाव पर मेरे पिता ने साल 1995 और 1997 में बेची थी. मैं पैसा कैसे कमाऊंगा? हमारी लागत बढ़ गई है और सरकार की नीतियों ने व्यापार बहुत मुश्किल कर दिया है."
सरकार ने नए साल के पहले दिन प्याज़ का निर्यात फिर से शुरू किया जिसके बाद एक क्विंटल प्याज़ के दाम 500 रुपये तक चढ़कर 1,800-2,000 रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंच गए. ये किसानों के लिए अच्छी ख़बर है लेकिन अब दिघोले के सामने एक और चुनौती है- बोमौसम बरसात से फसल बचाने की.
दिघोले के खेत से करीब बीस किलोमीटर दूर दीपक पाटिल के खेतों में बारिश से हुई बर्बादी साफ़ नज़र आती है.
उन्हें आशंका है कि 15 प्रतिशत तक फसल बर्बाद हो गई है. उन्हें 25 लाख का क़र्ज़ चुकाना है और बीते चार-पांच सालों से उनकी किस्मत भी बहुत अच्छी नहीं रही है. ये ऐसी परिस्थिति है जिसके लिए पाटिल तैयार नहीं हैं.
"2016 के बाद से हमें एक के बाद एक झटका लग रहा है. पहले नोटबंदी हुई जिसमें सरकार ने 80 प्रतिशत तक मुद्रा बाज़ार से वापस ले ली. उस साल कोई ख़रीदार ही नहीं था क्योंकि एजेंटों का पैसा घिर गया था. उसके अगले साल फसल अच्छी नहीं हुई, फिर इस साल लॉकडाउन लग गया जिसने सप्लाई चेन को तोड़ दिया और अब ये बेमौसम बरसात. हमारी आय ख़त्म हो गई है."
क्या होगा प्रधानमंत्री के वादे का?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का साल 2016 में किसानों की आय दोगुनी करने का वादा और ज़मीनी सच्चाई एक दूसरे के ठीक उलट हैं. अब लगता है कि ये वादा पूरा होना आसान नहीं होगा.
साल 2012-13 के बाद से किसानों की आय से जुड़ा एनएसएसओ का डाटा उपलब्ध नहीं है. लेकिन बीबीसी रियलिटी चैक के मुताबिक साल 2014 और 2019 के बीच कृषि से जुड़ी मज़दूरी की दर में गिरावट आई है.
टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ़ सोशल साइंसेज़ के स्कूल ऑफ़ डेवलपमेंट स्टडीज़ में नाबार्ड के चेयर प्रोफ़ेसर आर रामकुमार मानते हैं कि साल 2016 और 2020 के बीच वास्तव में खेती से जुड़ी आय में बढ़ोत्तरी के बजाए गिरावट आई होगी. वो इसके लिए कृषि के ख़िलाफ़ व्यापारिक शर्तों में बदलाव और सरकार की तर्कहीन नीतियों को ज़िम्मेदार मानते हैं.
कोविड महामारी ने हालात और ख़राब ही किए हैं. बीते साल अज़ीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी की तरफ से किए गए एक सर्वें में पता चला था कि बड़ी तादाद में किसान या तो अपनी फसल बेच ही नहीं पाए थे या उन्हें कम दाम में बेचने को मजबूर होना पड़ा था.
किसानों के साथ हमारी बातचीत में भी सर्वे के इन नतीजों की पुष्टि हुई. किसानों का कहना था कि वो दोहरी मार झेल रहे हैं क्योंकि महामारी की वजह से सप्लाई चेन टूटने से मज़दूरी और लागत पर होने वाला ख़र्च बढ़ गया है.
प्रोफ़ेसर रामकुमार कहते हैं कि मौजूदा हालात को देखते हुए किसानों की आय का साल 2024 तक दोगुना होना संभव नहीं दिखता. सरकार ने अपने वादे को पूरा करने के लिए 2024 तक की नई समयसीमा तय की है.
नए कृषि क़ानूनों से क्या होगा?
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण 1 फ़रवरी को बजट पेश करेंगी. कृषि की आय बढ़ाने के लिए केंद्र सरकार को कृषि से जुड़ी नीतियों में सुधार करना होगा.
प्रोफ़ेसर रामकुमार कहते हैं, "सरकार को कृषि से जुड़ी सब्सिडी के लिए सकारात्मक रवैया अपनाना होगा और ये सुनिश्चित करना होगा कि छोटे और मझोले किसानों के लिए उत्पादन लागत ना बढ़े. इसके साथ ही सरकार को न्यूनतम समर्थन मूल्य भी बढ़ाना होगा."
किसान तीन नए कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ दो महीनों से दिल्ली में विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं. न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी हासिल करना उनकी प्रमुख मांगों में से एक है. इस मुद्दे पर सरकार और किसानों के बीच विश्वास बिलकुल टूट गया है.
रामकुमार कहते हैं, "सरकार को बजट में कम से कम अगले पांच साल के लिए तीन हज़ार से पांच हज़ार मंडियों में निवेश करने का वादा करना चाहिए ताकि किसानों का विश्वास फिर से हासिल किया जा सके."
ये वो मुद्दा है जिस पर नीति निर्माता भी विभाजित हैं. मुक्त बाज़ार का समर्थन करने वाले अर्थशास्त्री तीन कृषि क़ानूनों को पुरानी व्यवस्था को ख़त्म करने के लिए ज़रूरी मानते हैं. वे कृषि क्षेत्र में निजी सेक्टर के दख़ल की वकालत करते हैं.
फिलहाल इस पर बिचौलियों का प्रभुत्व है. लेकिन रामकुमार और देवेंद्र शर्मा जैसे कृषि नीति विशेषज्ञ मानते हैं कि मौजूदा व्यवस्था को कमज़ोर करने और किसानों को बाज़ार के हवाले करने से पहले से कमज़ोर कृषक समुदाय संकट के समय और भी कमज़ोर होगा.
वित्त मंत्री के हाथ में मुश्किल काम है. फ़रवरी 2019 में केंद्र सरकार ने प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि शुरू की थी जिसके तहत किसानों को सालाना छह हज़ार रुपये की मदद दी जाती है. केयर रेटिंग एजेंसी के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस कहते हैं किसानों के प्रदर्शन को देखते हुए 'किसानों को दी जाने वाली सालाना आर्थिक मदद में इज़ाफ़े' की उम्मीद है.
भारत की 1.3 अरब आबादी में से आधे लोग जीवनयापन के लिए खेती पर निर्भर हैं. इन्हें अस्थायी आर्थिक सहयोग देना अपने उत्पाद के व्यापार के बेहतर मौके देने का विकल्प नहीं हो सकता. भारतीय अर्थव्यवस्था के पटरी पर लौटने के लिए भी ये ज़रूरी है. (bbc.com)
-रविंदर सिंह रॉबिन
जुगराज के गाँव और परिवार में पहले तो जीत की ख़ुशी और लाल क़िले पर खालसा झंडे को लहराने का एक उत्साह दिख रहा था, लेकिन बाद में वो पुलिस कार्रवाई के डर में बदल गया.
अब जुगराज का अता-पता नहीं है और जुगराज के माता-पिता भी गाँव छोड़ कर कहीं चले गए हैं, पुलिस और मीडिया के सवालों का जवाब देने के लिए रह गए हैं जुगराज के दादा-दादी.
पंजाब के तरनतारन ज़िले के गाँव का 23 साल का नौजवान जुगराज सिंह वही नौजवान है, जिसने 26 जनवरी को किसानों की ट्रैक्टर परेड के दौरान लाल क़िले की प्राचीर पर खालसा झंडा लगा दिया था.
जब जुगराज के दादा से पूछा गया कि वो अपने पोते की हरकत के बारे में क्या सोचते हैं, तो उन्होंने कहा, "बहुत अच्छा लग रहा है ये बाबे दी मेहर है" यानी गुरुओं की मेहरबानी है.
जुगराज के दादा महल सिंह ने कहा कि जुगराज बहुत ही अच्छा लड़का है और उन्हें नहीं मालूम की जो घटना हुई वो किस तरह हुई, उन्होंने कहा कि जुगराज ने उन्हें कभी भी शिकायत का मौक़ा नहीं दिया.
26 जनवरी के दिन दिल्ली में हुई किसानों की रैली के दौरान कुछ प्रदर्शनकारी दिल्ली के लाल क़िले में घुस गए थे. उन्होंने वहाँ की प्राचीर पर चढ़ कर वहाँ सिखों का पारंपरिक झंडा 'निशान साहिब' फहरा दिया था.
इसके बाद पुलिस जुगराज समेत कई लोगों की तलाश कर रही है. लाल क़िले पर हुई हिंसा के बाद किसान नेताओं ने इसकी आलोचना की और कहा कि रैली में 'कुछ असामाजिक तत्व शामिल हो गए थे.'
इस पूरे घटनाक्रम को लेकर सत्तारूढ़ बीजेपी ने कहा कि गणतंत्र दिवस के दिन तिरंगे का अपमान हुआ है.
केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने इस घटना के बाद कहा, "दिल्ली में जिस तरह से हिंसा हुई उसकी जितनी भर्त्सना की जाए कम है. लाल क़िले पर तिरंगे का अपमान हुआ वो अपमान हिंदुस्तान सहन नहीं करेगा."
पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने लाल क़िले पर हुई घटना की निंदा की है और कहा है कि भारत सरकार को इस मामले की जांच कर दोषी को सज़ा देनी चाहिए.
हालांकि उन्होंने ये भी कहा है शांतिपूर्वक विरोध प्रदर्शन कर रहे किसान नेताओं को परेशान नहीं किया जाना चाहिए.
सोशल मीडिया पर भी कुछ लोग इस घटना को तिरंगे का अपमान बता रहे हैं.
इधर संयुक्त किसान मोर्चा ने प्रेस नोट जारी कर सरकार पर हिंसा भड़काने का आरोप लगाया है और कहा कि उनका लाल क़िले और दिल्ली के किसी भी दूसरे हिस्से में हुई हिंसा से कोई ताल्लुक़ नहीं है.
प्रेस नोट में कहा गया है कि "अभी तक यह प्रदर्शन शांतिपूर्ण तरीक़े से चल रहा था लेकिन इस आंदोलन को बदनाम करने की साज़िश अब जनता के सामने आ चुकी है. कुछ व्यक्तियों और संगठनों के सहारे सरकार ने इस आंदोलन को हिंसक बनाया. प्रेस नोट में दीप सिद्धु और सतनाम सिंह पन्नु की अगुवाई वाले किसान मज़दूर कमेटी का नाम मुख्य रूप से लिया गया है."
जुगराज के गांव का क्या है हाल
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गाँव वालों का कहना है कि पुलिस कई बार जुगराज के घर छापा मार चुकी है और ख़ाली हाथ लौट चुकी है, क्योंकि जुगराज और उसके माता-पिता पुलिस वालों को वहाँ नहीं मिले.
जुगराज के घर के बाहर ही मौजूद गाँव के एक बुज़ुर्ग प्रेम सिंह ने बताया कि उन्होंने टीवी पर देखा कि किस तरह एक नौजवान ने लाल क़िले पर खालसा झंडा लहरा दिया.
प्रेम सिंह कहते हैं, "जो लाल क़िले पर घटना हुई है वह दुर्भाग्यपूर्ण है लेकिन वो एक अच्छा लड़का है और उसको इस बात का अंदाज़ा नहीं था कि 26 जनवरी के दिन लाल क़िले पर इस तरह से झंडा फहराने का क्या नतीजा होगा. बहुत सारे लोगों ने खालसा झंडा अपने साथ रखा हुआ था, जैसा मैंने टीवी पर देखा. उनमें से किसी ने जुगराज को एक झंडा दे दिया था जो उसने लाल क़िले पर लगा दिया."
पारिवारिक पृष्ठभूमि
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गाँव के ज़्यादातर लोग यही कहते रहे कि जुगराज एक मेहनती और नेक दिल लड़का है.
गाँव में ही रहने वाले जगजीत सिंह ने बताया कि जुगराज 23 या 24 जनवरी को एक संगत के साथ दिल्ली के लिए रवाना हुआ था.
गाँव के लोगों का कहना है कि परिवार के पास बमुश्किल दो-तीन एकड़ ज़मीन है और परिवार कर्ज़ के बोझ से दबा हुआ है. यह भी बताया गया कि गाँव के कुछ दूसरे लड़कों के साथ साल के कुछ महीने वह चेन्नई में एक फ़ैक्टरी में काम किया करता था.
जुगराज की तीन बहनें हैं, जिनमें से दो की शादी हो चुकी है और तीसरी बहन परिवार के साथ ही रहती है.
जगजीत सिंह कहते हैं, "वो एक साफ़ दिल का और जिस्म से मज़बूत बच्चा था. उसे किसी ने ऐसा करने के लिए कहा और उसने इसके नतीजे के बारे में नहीं सोचा."
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गाँव के लोगों का मानना है कि इसके पीछे विदेशी फंडिंग की बात बेबुनियाद है. उनका कहना है कि इस बात की आसानी से जाँच की जा सकती है कि ऐसा कुछ नहीं हुआ.
जब इस बारे में तरनतारन के पुलिस अधीक्षक से बात की गई, तो उन्होंने इस पर टिप्पणी करने से यह कहते हुए इनकार कर दिया कि एफ़आईआर तरनतारन में दर्ज नहीं हुई है इसलिए वो बारे में कुछ नहीं कहेंगे.
किसान आंदोलन
तीन कृषि क़ानूनों को वापस लिए जाने की मांग को लेकर किसान दिल्ली की सीमा पर दो महीने से ज़्यादा समय से आंदोलन कर रहे हैं. 26 जनवरी को किसान संगठनों ने पुलिस से दिल्ली में ट्रैक्टर मार्च की अनुमति मांगी थी.
बाद में दिल्ली पुलिस ने एक ख़ास रूट पर ट्रैक्टर परेड की अनुमति दे दी थी. लेकिन 26 जनवरी के दिन प्रदर्शनकारी दिल्ली के कई इलाक़ों में घुस गए और कई जगह दिल्ली पुलिस के साथ उनकी झड़प हुई.
इसी क्रम में प्रदर्शनकारी लाल क़िले में भी घुस गए और वहाँ झंडा फहरा दिया. पुलिस को इस मामले में एक्टर दीप सिद्धू की भी तलाश है, जिन पर लोगों को भड़काने का आरोप है.
दिल्ली पुलिस ने इस मामले में कई किसान नेताओं पर भी मामला दर्ज किया है. दिल्ली पुलिस का कहना है कि प्रदर्शनकारियों के हमले में क़रीब 400 पुलिसकर्मी घायल हुए हैं. जबकि एक प्रदर्शकारी की मौत हो गई. (bbc.com)
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ़) की मुख्य अर्थशास्त्री गीता गोपीनाथ ने मोदी सरकार के विवादित कृषि क़ानूनों की तारीफ़ की है.
गीता गोपीनाथ के मुताबिक़, केंद्र सरकार की ओर से लाए गए क़ानूनों में किसानों की आय बढ़ाने की क्षमता है. हालांकि, उन्होंने यह भी कहा है कि कमज़ोर किसानों को सामाजिक सुरक्षा देने की ज़रूरत है.
वॉशिंगटन स्थित इस वैश्विक वित्तीय संस्थान से जुड़ीं गीता गोपीनाथ ने मंगलवार को कहा कि 'भारत में ऐसे कई क्षेत्र हैं, जहाँ सुधार की ज़रूरत है और कृषि क्षेत्र उनमें से एक है.'
भारत सरकार ने पिछले साल सितंबर में कृषि क्षेत्र से संबंधित तीन नए क़ानूनों को लागू किया था और इन्हें 'कृषि क्षेत्र में बड़े सुधारों' के रूप में पेश किया गया.
लेकिन किसान इन क़ानूनों के ख़िलाफ़ आंदोलन कर रहे हैं. कई राज्यों के किसान इनके ख़िलाफ़ प्रदर्शनों में शामिल हुए हैं. वो चाहते हैं कि तीनों क़ानून वापस लिए जाएं. किसानों और केंद्र सरकार के बीच बातचीत का भी अब तक कोई नतीजा नहीं निकल पाया और अब गणतंत्र दिवस पर हुई हिंसा के बाद स्थिति ने एक नया मोड़ ले लिया है.
ऐसे में गीता गोपीनाथ के इस ताज़ा बयान पर भी मिली-जुली प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है. बहुत से लोग यह सवाल उठा रहे हैं कि 'क्या गीता गोपीनाथ ने मोदी सरकार से हाथ मिला लिया है?'
गुरुवार सुबह गीता गोपीनाथ अपने ताज़ा बयानों की वजह से सोशल मीडिया पर चर्चा का विषय बनी रहीं.
मोदी सरकार के आगामी बजट को लेकर पूछे गए एक सवाल पर गीता गोपीनाथ ने यह भी कहा कि 'भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए, 2025 से पहले, कोविड-19 से पहले की स्थिति में पहुँच पाना मुश्किल होगा और भारत की आर्थिक वृद्धि विभिन्न क्षेत्रों में किए जाने वाले सुधारों पर निर्भर करेगी.'
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कौन हैं गीता गोपीनाथ?
अक्टूबर 2018 में गीता को आईएमएफ़ का प्रमुख अर्थशास्त्री नियुक्त किया गया था.
भारतीय मूल की गीता गोपीनाथ हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में इंटरनेशनल स्टडीज़ ऑफ़ इकोनॉमिक्स में प्रोफ़ेसर रही हैं. हार्वर्ड यूनिवर्सिटी की वेबसाइट के अनुसार, आईएमएफ़ के साथ काम करने के लिए उन्होंने अध्यापन-कार्य से फ़िलहाल छुट्टी ली हुई है.
गीता ने इंटरनेशनल फ़ाइनेंस और मैक्रो-इकोनॉमिक्स में रिसर्च की है.
आईएमएफ़ में इस पद पर पहुँचने वाली गीता दूसरी भारतीय हैं. उनसे पहले भारतीय रिज़र्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन भी आईएमएफ़ में प्रमुख अर्थशास्त्री रह चुके हैं.
साल 2017 में केरल सरकार ने गीता को राज्य का वित्तीय सलाहकार नियुक्त किया था. गीता का जन्म केरल में ही हुआ था.
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लेकिन जब केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने गीता की नियुक्ति की थी तो उस समय उन्हीं की पार्टी के कुछ लोग नाराज़ भी हुए थे.
गीता अमेरिकन इकोनॉमिक्स रिव्यू की सह-संपादक और नेशनल ब्यूरो ऑफ़ इकोनॉमिक रिसर्च (एनबीइआर) में इंटरनेशनल फ़ाइनेंस एंड मैक्रो-इकोनॉमिक्स की सह-निदेशक भी रही हैं.
गीता ने व्यापार और निवेश, अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संकट, मुद्रा नीतियों, कर्ज़ और उभरते बाज़ार की समस्याओं पर लगभग 40 रिसर्च लेख लिखे हैं.
गीता ने ग्रेजुएशन तक की शिक्षा भारत में पूरी की. गीता ने साल 1992 में दिल्ली विश्वविद्यालय के लेडी श्रीराम कॉलेज से अर्थशास्त्र में ऑनर्स की डिग्री प्राप्त की.
इसके बाद उन्होंने दिल्ली स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स से अर्थशास्त्र में ही मास्टर डिग्री पूरी की.
साल 1994 में गीता वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी चली गईं. साल 1996 से 2001 तक उन्होंने प्रिंसटन यूनिवर्सिटी से अर्थशास्त्र में पीएचडी पूरी की थी.
साल 2001 से 2005 तक गीता शिकागो यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट प्रोफ़ेसर थीं.
इसके बाद साल 2005 में हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट प्रोफ़ेसर के तौर पर उनकी नियुक्ति हुई.
साल 2010 में गीता इसी यूनिवर्सिटी में प्रोफ़ेसर बनीं और फिर 2015 में वे इंटरनेशनल स्टडीज़ एंड इकोनॉमिक्स की प्रोफ़ेसर बन गईं.
जब अमिताभ बच्चन ने की गीता पर टिप्पणी
"इतना ख़ूबसूरत चेहरा इनका, इकॉनमी के साथ कोई जोड़ ही नहीं सकता..."
अभिनेता अमिताभ बच्चन ने कुछ दिन पहले ही गीता गोपीनाथ के बारे में यह टिप्पणी की थी.
उन्होंने एक महिला प्रतिभागी से गीता गोपीनाथ के बारे में सवाल पूछते समय यह टिप्पणी की थी.
लेकिन सोशल मीडिया पर बहुत से लोगों ने इस बात पर ज़ोर दिया कि बच्चन की टिप्पणी कितनी 'सेक्सिस्ट' (महिलाओं के प्रति पूर्वाग्रह से भरी) है.
सोशल मीडिया पर अमिताभ बच्चन का एक वीडियो क्लिप वायरल हो गया.
हालांकि, गीता गोपीनाथ केबीसी में ख़ुद से जुड़ा सवाल पूछे जाने और अमिताभ की टिप्पणी को सुनकर बेहद ख़ुश नज़र आईं.
मगर बहुत सी महिलाओं ने लिखा कि अमिताभ की टिप्पणी बेहद सेक्सिट और मूर्खतापूर्ण थी.
जेंडर स्टडीज़ के क्षेत्र में इस बारे में लंबे वक़्त तक चर्चा होती रही कि महिलाओं को उनकी प्रतिभा और कामयाबी की जगह कैसे उनके चेहरे और शरीर से आँका जाता है. (bbc.com)
-मुरलीधरन काशीविश्वनाथन
शशिकला ने अपनी ज़िंदगी में अब तक कई मोड़ देखे हैं. उनकी ज़िंदगी उतार-चढ़ाव से भरपूर रही है. उन्होंने एक औसत गृहिणी से शुरुआत की थी और फिर वक्त के साथ तमिलनाडु की सबसे ताकतवर महिलाओं में से एक की सहायिका बन गईं.
1984 में शशिकला विनोद वीडियो विजन नाम से एक वीडियो पार्लर चलाया करती थीं. यह दुकान चेन्नई के अलवरपेट में थी. उनके पति नटराजन सरकार में जनसंपर्क अधिकारी थे और उस वक्त कड्डलुर ज़िले में उनकी तैनाती थी. उस समय आईएएस अफसर चंद्रलेखा कड्डलुर ज़िले की कलक्टर हुआ करती थीं.
चंद्रलेखा के कहने पर ही विनोद वीडियो को उस मीटिंग को फिल्माने का मौका मिला था, जिसमें जयललिता बोल रही थीं. इसी असाइनमेंट के दौरान वीके शशिकला जयललिता से पहली बार मिली थीं. यह एक सामान्य मुलाकात लग सकती है लेकिन इसके बाद की घटनाएं सामान्य नहीं रहने वाली थीं.
शशिकला का जन्म 1956 में हुआ था. जगह थी संयुक्त तंजौर ज़िले की तिरुतुरईपुंडी. पिता का नाम था विवेकानंदन और मां का नाम कृष्णावेणी. पांच साल की उम्र तक शशिकला वहीं रहीं. बाद में उनका परिवार मन्नरकुडी शिफ़्ट हो गया. उन्होंने सिर्फ़ दसवीं तक पढ़ाई की.
16 अक्टूबर 1973 को शशिकला की शादी एम नटराजन से हुई. यह शादी मन्नई नारायणस्वामी की मौजूदगी में हुई, जो तंजौर ज़िले के बेहद प्रभावशाली नेता थे. इस शादी में दोनों को आशीर्वाद देने तत्कालीन मुख्यमंत्री एम. करुणानिधि भी आए थे.
shashikala photo from AIADMK twitter page
जयललिता से मुलाकात के बाद शशिकला ने उनका विश्वास हासिल कर लिया और दिल्ली के दौरे में उनके साथ जाने लगीं. जयललिता उन दिनों राज्यसभा की सांसद थीं. मुख्यमंत्री एम जी रामचंद्रन के निधन के बाद दोनों बेहद करीब आ गईं.
राजाजी हॉल में एम जी रामचंद्रन का शव रखा गया था और जयललिता अलग-थलग खड़ी थीं. नटराजन ने बाद में मीडिया को बताया कि जयललिता को एमजी का अंतिम दर्शन नहीं करने दिया गया. एमजी रामचंद्रन के परिवार के लोगों ने जयललिता को घेर रखा था ताकि उन्हें अन्नाद्रमुक नाराज़ गुट के लोगों से बचाया जा सके.
1988 से शशिकला जयललिता के आवास पोएस गार्ड में स्थायी रूप से रहने लगीं. पोएस गार्डन में रहने के दौरान जयललिता की निर्भरता लगातार शशिकला पर बढ़ती चली गई.
एमजीआर के निधन के बाद अन्नाद्रमुक दो हिस्सों में बंट चुकी थी. फरवरी, 1988 में जयललिता के गुट ने जनरल बॉडी मीटिंग बुलाई.
इस मीटिंग के दौरान सिर्फ़ वही लोग पदाधिकारी बनाए गए, जिन्हें शशिकला और उनके पति का वरदस्त प्राप्त था. यहां तक कि जिन लोगों ने जयललिता का शुरू से साथ दिया था उन्हें भी दरकिनार कर दिया गया. तो यह था शशिकला का जयललिता पर प्रभाव.
1991 में जब जयललिता पहली बार मुख्यमंत्री बनीं तो हर काम के लिए वह शशिकला से सलाह लिया करती थीं. इसी समय से जयललिता को लोग अम्मा और शशिकला को चिन्नमा कहने लगे थे. शशिकला जयललिता के साथ साये की तरह लगी रहती थीं. इसके साथ ही एआईएडीएमके में शशिकला के भाइयों और पति नटराजन का दबदबा बढ़ना शुरू हो गया था.
शशिकला पर जयललिता का विश्वास इतना बढ़ गया था कि उन्होंने उनके रिश्तेदार वीएन सुधाकरन को अपना दत्तक पुत्र बना लिया. जयललिता ने बेहद धूमधाम से सुधाकरन की शादी करवाई. यह दुनिया की सबसे खर्चीली शादियों में से एक मानी गई और इस वजह से गिनीज़ बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में इसकी एंट्री हुई.
इस दौरान शशिकला के रिश्तेदारों के रंग बदलने शुरू हुए और उनके दुर्व्यवहार की खबरें मीडिया में आने लगीं. लोगों की उनसे नाराज़गी बढ़ी. कई सीनियर मंत्रियों ने पार्टी से दूरी बनानी शुरू कर दी. कहा जाता है कि इन सबके पीछे शशिकला का हाथ था.
1996 में जयलिलता चुनाव हार गईं. उन्हें अपनी सहेली शशिकला के साथ जेल जाना पड़ा. इस दौरान कुछ समय तक जयललिता शशिकला को नज़रअंदाज़ करने लगीं. लेकिन यह दूरी ज़्यादा देर नहीं टिकी.
एक बार फिर शशिकला का पोएस गार्डन हाउस में आना-जाना शुरू हो गया. इसके बाद का शशिकला का जादू जयललिता के सिर ऐसा चढ़ा कि पोएस गार्डन हाउस और पार्ट दोनों जगह उनके इशारे के बगैर पत्ता भी नहीं खड़कता था. जयललिता पर शशिकला का यह असर 2011 तक रहा.
2011 में जयललिता एक बार फिर तमिलनाडु की मुख्यमंत्री बनीं. इस दौरान उन्हें लगा कि शशिकला उनके ख़िलाफ़ साज़िश रच रही हैं. लिहाज़ा उन्होंने 19 दिसंबर 2011 को शशिकला और उनके परिवार के सभी सदस्यों को पार्टी से निकाल दिया.
शशिकला पोएस गार्डन से भी बाहर निकाल दी गईं. पति नटराजन समेत शशिकला के सभी रिश्तेदार- दिवाकरन, दिनाकरण, भास्करण, सुधाकरन, डॉ. वेंकटेशन, रामचंद्रन, रावनन और मोहन को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा गया.
लेकिन यह सब भी लंबा नहीं चला. तीन महीने बाद 28 मार्च, 2012 को शशिकला ने एक प्रेस रिलीज़ जारी किया. इसमें कहा गया कि उन्हें पार्टी में बनने रहने या सांसद, विधाक बनने में कोई दिलचस्पी नहीं हैं. वह सिर्फ जयललिता की सच्ची बहन बनी रहना चाहती हैं.
इस प्रेस रिलीज़ के जारी होने के बाद 31 मार्च को जयललिता ने सिर्फ़ शशिकला को पार्टी में एंट्री दी. और इसके बाद उनकी दोस्ती जयललिता की आख़िरी सांस तक चली.
पार्टी को परदे के पीछे से चलाती थीं शशिकला
शशिकला और जयललिता दोनों को 2014 में आय से अधिक संपत्ति जमा करने के मामले में जेल हुई थी. शशिकला जयललिता की सहायिका और सबसे करीबी थीं. लेकिन वह जयललिता के रहते कभी भी पार्टी में आगे नहीं आईं. हालांकि पार्टी में कई बार अहम वक्त में फैसले लेती रहीं.
एआईएडीएमके में हर कोई यह जानता था कि उनका कद क्या है. चुनावों में जब पार्टी के उम्मीदवार उतारे जाते थे तब नेताओं को पार्टी में उनके कद का पता चलता था.
जब 2002 में जयललिता मुख्यमंत्री नहीं बन सकीं तब ओ. पन्नीरसेल्वम का नाम शशिकला की सलाह पर ही आगे लाया गया. इस राजनीतिक घटनाक्रम के बाद जितने भी चुनाव हुए उनमें उम्मीदवार चयन के मामले में शशिकला की ही चली. पार्टी में हर स्तर पर उनका दबदबा था.
2016 में जब जयललिता अस्पताल में भर्ती हुईं तब यह आरोप लगाया गया कि सिर्फ शशिकला और उनके परिवार वाले ही उनसे मिल सकते थे. इसके अलावा किसी को जयललिता से मिलने की इजाज़त नहीं थी. दिसंबर में जयललिता के निधन के बाद आधी रात को पन्रीरसेल्वम के नेतृत्व में सरकार को शपथ दिलाई गई. पन्रीरसेल्वम को शशिकला के कहने पर ही सीएम बनाया गया था.
जब तक जयललिता जीवित थीं तब तक शशिकला के रिश्तेदारों को तवज्जो नहीं मिली. लेकिन उनके निधन के बाद वे सभी राजाजी हॉल में आकर उनके शव के पास खड़े रहे. इस वजह से उनकी भारी निंदा हुई.
जल्दी ही शशिकला का असली मकसद ज़ाहिर हो गया. जब ओ. पन्नीरसेल्वम सीएम थे तो भी एआईएडीएमके के मंत्रियों का पोएस गार्डन में शशिकला के यहां आना-जाना लगा रहता था. वे मंत्री शशिकला को पार्टी की बागडोर थामने के लिए उकसाते रहते थे. इस बारे में कई वीडियो और तस्वीरें मीडिया में छाई रही थीं.
जयललिता के निधन के कुछ दिनों बाद 10 दिसंबर को एक तमिल अखबार में एक पूरे पेज का विज्ञापन छपा.
इसमें लिखा था कि "अगर पुरुचि थलाइवी अम्मा को मालूम होता कि ज़िंदगी और मौत की लड़ाई में मौत जीत जाएगी तो वह इस दुनिया से विदा होने से पहले चिनम्मा को गद्दी पर बिठा जातीं."
इस विज्ञापन में किसी का नाम नहीं लिखा था. इसमें लिखा था- एक वफादार पार्टी कार्यकर्ता के अंत:करण की आवाज़.
लेकिन उसी दिन ओ. पन्नीरसेल्वम ने प्रेस रिलीज़ जारी कर कहा कि शशिकला पार्टी की जनरल सेक्रेट्री होंगी. पार्टी में सेना की तरह अनुशासन लाने के लिए यह ज़रूरी है. 29 जनवरी को पार्टी की जनरल बॉडी मीटिंग हुई और शशिकला अन्नाद्रमुक की सेक्रेट्री जनरल चुन ली गईं.
5 फ़रवरी, 2017 को ओ. पन्नीरसेल्वम ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया. शशिकला ने तत्कालीन गवर्नर विद्यासागर राव से मुलाकात कर कहा कि पार्टी में बहुमत उनके पास है और उन्हें सरकार बनाने का लिए बुलाया जाए. लेकिन गवर्नर ने कोई फैसला नहीं लिया. और इस बीच, कोर्ट ने फरवरी में आय से अधिक संपत्ति इकट्ठा करने के मामले में उनके खिलाफ फैसला सुना दिया.
इस फैसले के मुताबिक शशिकला, इलावरासी और सुधाकरन जेल भेज दिए गए. इस तरह मुख्यमंत्री बनने की अपनी तैयारी से पहले ही शशिकला के राजनीतिक जीवन का अध्याय बंद हो गया.
अब शशिकला क्या करेंगी?
शशिकला ने ऐलान किया कि ई.के पलानीस्वामी तमिलनाडु के मुख्यमंत्री होंगे. उन्होंने जयललिता के स्मारक का दौरा किया, वहां कसम खाई और जेल चली गईं. उन्हें बेंगलुरू के प्रपन्न अग्रहार जेल में रखा गया.
शशिकला के जेल में रहने के दौरान उनके सभी रिश्तेदारों से पार्टी के बाहर का रास्ता दिखा दिया गया. इस दौरान टीटीवी दिनाकरन ने एएमएमके नाम की पार्टी शुरू की. जबकि ई के पलानीस्वामी ने ऐलान किया कि जेल से बाहर आने के बाद शशिकला का पार्टी में स्वागत नहीं किया जाएगा. सरकार ने पोएस गार्डन को भी अपने कब्ज़े में ले लिया और इसे स्मारक स्थल में तब्दील कर दिया गया.
शशिकला बुधवार ( 27 जनवरी, 2021) को जेल से रिहा हो गईं. कोरोना संक्रमण की वजह से उन्हें बेंगलुरू के अस्पताल में भर्ती कराया गया है. वहां वह कुछ दिनों तक रहेंगी. रिहा होने के दिन ही जयललिता के स्मारक का उद्घाटन हुआ. अब देखना यह है कि चेन्नई आने के बाद वह अन्नाद्रमुक पर फिर से अपना प्रभाव कायम कर पाती हैं या नहीं.
यह मुद्दा बहस का विषय बना हुआ है. राज्य में विधानसभा चुनावों में कुछ ही महीने बाकी हैं. वो जो भी फैसला लेंगी इस पर न सिर्फ़ उनका बल्कि उनसे जुड़े तमाम लोगों का भविष्य टिका होगा. (bbc.com)
नई दिल्ली, 28 जनवरी| कोरोनावायरस के मामलों में भारी गिरावट के साथ केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्ष वर्धन ने गुरुवार को कहा कि भारत ने सफलतापूर्वक महामारी पर काबू पाया है। कोविड-19 पर ग्रुप ऑफ मिनिस्टर्स की 23वीं बैठक में डॉ. वर्धन ने कहा, "प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा परिकल्पित 'सम्पूर्ण सरकार और सम्पूर्ण समाज' के दृष्टिकोण के साथ भारत ने सफलतापूर्वक महामारी पर काबू पा लिया है।"
देश में बीते 21 दिनों से दैनिक मामलों की संख्या 20,000 से कम दर्ज हो रही है और बीते 31 दिनों से मृतकों की संख्या भी 300 के नीचे बनी हुई है।
पिछले लगभग चार महीनों से इन संख्याओं में लगातार गिरावट देखने को मिल रही है। 17 सितंबर को संक्रमित मामलों की संख्या सबसे अधिक थी, जब एक ही दिन में 97,894 मामले दर्ज हुए थे।
इस उपलब्धि पर बात करते हुए उन्होंने कहा, "146 जिलों में पिछले 7 दिनों से, 18 जिलों में पिछले 14 दिनों से, 6 जिलों में पिछले 21 दिनों से और 21 जिलों में बीते 28 दिनों से कोई नया मामला नहीं आया है।" (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 28 जनवरी| कोचिंग संस्थानों को डिजिटल होने में मदद करने वाले ऑनलाइन एजुकेशन प्लेटफॉर्म-विनयूऑल ने कोचिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया के साथ अपनी साझेदारी की घोषणा की। इसके तहत जेईई प्रत्याशी आगामी ज्वाईंट इंजीनियरिंग एंट्रेंस मेन 2021 के लिए निशुल्क मॉक टेस्ट ले सकेंगे। यह परीक्षा 7 फरवरी को दोपहर 3 बजे से शाम 6 बजे तक चलेगी। इसके लिए भारत के सभी कोचिंग संस्थान अपने विद्यार्थियों का निशुल्क रजिस्ट्रेशन करा सकेंगे। मॉक जेईई प्लेटफॉर्म जेईई के नए प्रारूप पर आधारित है और यह विद्यार्थियों को वास्तविक परीक्षाओं की तैयारी करने का अवसर देगा।
मॉक टेस्ट के लिए साईन अप करने के लिए भारत के कोचिंग संस्थान प्रेपइंडिया डॉट विनयूऑल डॉट कॉम पर लॉग इन कर सकते हैं और विद्यार्थियों की ओर से रजिस्ट्रेशन करा सकते हैं। मॉक टेस्ट रजिस्ट्रेशन की अंतिम तिथि 2 फरवरी है।
इस मॉक टेस्ट परीक्षा की सामग्री फैकल्टी सदस्यों के विशेषज्ञ समूह द्वारा तैयार की गई है। जेईई मेन परीक्षा के नए प्रारूप के अनुसार, अब 5 की बजाय 10 पूर्णांक आधारित प्रश्न होंगे। विद्यार्थी को इन 10 प्रश्नों में से 5 प्रश्नों का जवाब देना होगा।
यह मॉक टेस्ट मौजूदा संरचना पर आधारित होगा, जो विद्यार्थियों को वास्तविक परीक्षा के नए प्रारूप का अनुभव लेने का मौका देगा। जेईई के अलावा विटईईइट, बिटसैट एवं अन्य इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षाओं की तैयारी करने वाले विद्यार्थी भी विनयूऑल पर उपलब्ध संसाधनों का लाभ ले सकते हैं।
परीक्षा के अंतिम परिणाम 8 फरवरी को जारी होंगे। विनयूऑल मॉक टेस्ट में भाग लेने वाले विद्यार्थियों के परिणाम ईमेल के माध्यम से भेजेगा और संस्थान वेबसाइट पर विजिट करके अपने विद्यार्थियों के परिणाम डाउनलोड कर सकते हैं।
अश्विनी पुरोहित एवं सौरभ व्यास द्वारा स्थापित, विनयूऑल ट्यूटर्स एवं कोचिंग संस्थानों को सब्सक्रिप्शन मॉडल पर एसएएएस (सास) प्लग एंड प्ले प्लेटफॉर्म प्रस्तुत करता है। विनयूऑल ट्यूटर्स एवं कोचिंग संस्थानों को पूरी तरह से डिजिटाईज होने में मदद करता है। यह क्लास शेड्यूलिंग, बैच मैनेजमेंट, उपस्थिति, लाईव क्लास, ऑनलाइन क्विज, एआई आधारित प्रशस्ति, ऑनलाईन कोर्स, ऑनलाईन प्लेटफॉर्म का निर्माण आदि टूल्स प्रदान करता है। दैनिक गतिविधियों के प्रबंधन के अलावा, ट्यूटर्स को इस प्लेटफॉर्म पर अपने कोर्स पूरी दुनिया में बेचने और अन्य ट्यूटर्स के साथ गठबंधन करने का अवसर भी मिलता है।
विनयूऑल से देश में अनेक कोचिंग संस्थान जुड़ चुके हैं। 15,000 से ज्यादा ट्यूटर ऑनलाइन पढ़ाने, क्विज संचालित करने, शंका निवारण करने और अपने कोर्स बेचने के लिए इस प्लेटफॉर्म का विस्तृत उपयोग कर रहे हैं। कोविड-19 महामारी के दौरान कंपनी के लाइव क्लास घंटों में भारी वृद्धि हुई और विनयूऑल प्लेटफॉर्म पर 11.3 करोड़ मिनट का अध्ययन ऑनलाइन कराया गया।
अश्विनी पुरोहित, सीईओ एवं सहसंस्थापक, विनयूऑल ने कहा, "यह मॉक टेस्ट जेईई मुख्य परीक्षा का प्रतिबिंब होगा और अनेक महत्वाकांक्षी विद्यार्थियों को परीक्षा के विभिन्न पहलुओं को समझने में मदद करेगा। विद्यार्थियों को शॉर्टकट्स, टिप्स, एवं ट्रिक्स का लाभ भी मिलेगा और उन्हें कॉन्सेप्ट मजबूत करने तथा मुख्य प्रवेश परीक्षा में प्रभावशाली तरीके से सवालों को हल करने के लिए आवश्यक टूल्स भी मिलेंगे।
मृत्युंजय नारायणन, प्रेसिडेंट, कोचिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया ने कहा, "आईआईटी-जेईई भारत में सबसे कठिन व मुख्य इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षाओं में से एक है। आने वाले महीनों में बोर्ड की परीक्षाएं भी आयोजित हो रही हैं। इसलिए हर विद्यार्थी के लिए जरूरी है कि वह प्रभावशाली कार्ययोजना के साथ तैयारी करे, ताकि ज्वाईंट एंट्रैंस एक्जामिनेशन मेन (जेईई मेन) में उसके प्रवेश की संभावनाएं बढ़ सकें।" (आईएएनएस)
भारत सरकार द्वारा टिक टॉक पर लगाए गए प्रतिबंध को स्थायी बनाने के बाद देश में कंपनी के करीब 2,000 लोगों की नौकरी जा सकती है. कंपनी का कहना है कि प्रतिबंध के हटने को लेकर उसे सरकार से कोई भी जानकारी नहीं मिल पा रही है.
चीन के साथ चल रहे सैन्य गतिरोध के बीच भारत सरकार ने जिन दर्जनों चीनी ऐपों पर प्रतिबंध लगाया था, उनमें टिक टॉक भी शामिल था. प्रतिबंध के बाद टिक टॉक को बहुत नुक्सान उठाना पड़ा क्योंकि भारत में करोड़ों लोग उसका इस्तेमाल करते थे. नुक्सान उठाने के बाद कंपनी ने एक बयान में कहा है कि वो भारत में अपने कर्मचारियों की संख्या कम कर रही है.
कंपनी ने बयान में कहा, "प्रतिबंध लगने के बाद पिछले सात महीनों में इस मुद्दे के समाधान को लेकर हमें सरकार से कोई जानकारी नहीं मिली है, जिसकी वजह से हमने गहरे दुख के साथ भारत में अपने कर्मचारियों की संख्या को घटाने का फैसला किया है." बयान में और कोई जानकारी नहीं थी लेकिन मीडिया रिपोर्टों में कहा गया है कि भारत में कंपनी के 2,000 से ज्यादा कर्मचारी हैं.
टिकटॉक ने अपने बयान में यह भी कहा कि उसे उम्मीद है कि भारत में करोड़ों उपभोक्ताओं, कलाकारों, कहानियां सुनाने वालों, शिक्षा देने वालों और अदाकारों के लिए उसे देश में टिक टॉक को फिर से लाने का मौका मिलेगा. भारत सरकार ने जून 2020 में 59 चीनी ऐपों को यह कह कर बैन किया था कि वो भारत की संप्रभुता और अखंडता के लिए खतरा थे. इसी सप्ताह इन ऐपों पर लगे बन को स्थायी कर दिया गया.
टिक टॉक चीनी इंटरनेट कंपनी बाइटडांस का ऐप है. बाइटडांस के भारत में एक और लोकप्रिय ऐप हेलो पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया था. यह प्रतिबंध उस समय लगाए गए थे जब भारत और चीन के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा पर लद्दाख की गलवान घाटी में दोनों देशों की सेनाओं के बीच एक हिंसक झड़प में 20 भारतीय सैनिक मारे गए थे. एलएसी पर गतिरोध अभी भी बना हुआ है और दोनों सेनाएं एक दूसरे के सामने डटी हुई हैं.
चीनी सरकार ने एक ताजा बयान में कहा है कि भारत राष्ट्रीय सुरक्षा के बहाने चीनी मोबाइल ऐपों को प्रतिबंधित कर रहा है. भारत में 50 करोड़ लोग इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं और यह चीन के बाद दूसरी सबसे बड़ी संख्या है. इस वजह से देश में ऐप उपभोक्ताओं का बाजार बहुत बड़ा है और तेजी से बढ़ते इस बाजार में चीनी ऐप बहुत लोकप्रिय हुए थे. कुछ कंपनियों ने तो विशेष रूप से भारत के लिए ही ऐप बना दिए थे.
सीके/एए (एपी)
औरंगबाद, 28 जनवरी। अठारह साल पहले अपने पति के रिश्तेदारों से मिलने के लिए पाकिस्तान गईं 65 वर्षीय हसीना बेगम अब भारत लौट पाई हैं। वहां पासपोर्ट खो जाने के बाद हसीना बेगम 18 साल तक लाहौर की जेल में बंद थीं। औरंगाबाद पुलिस ने इस मामले पर रिपोर्ट दर्ज कराई थी जिसके बाद वह मंगलवार को भारत लौट आईं। यहां लौटने पर उनके रिश्तेदारों और औरंगाबाद पुलिस अधिकारियों ने हसीना बेगम का स्वागत किया।
भारत आने पर बेगम ने कहा, मैं काफी मुश्किलों से गुजरी और अपने देश लौटने के बाद मुझे शांति का अहसास हो रहा है। मुझे लग रहा है जैसे मैं स्वर्ग में हूं। मुझे पाकिस्तान में जबरदस्ती कैद कर लिया गया था। उन्होंने कहा, मैं रिपोर्ट दर्ज करने के लिए औरंगाबाद पुलिस को धन्यवाद देना चाहती हूं।
बेगम के एक रिश्तेदार ख्वाजा जैनुद्दीन चिश्ती ने औरंगाबाद पुलिस को भी उनको देश वापस लाने में मदद के लिए धन्यवाद दिया। पुलिस से मिली जानकारी के अनुसार, औरंगाबाद के सिटी चौक थाना क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले राशिदपुर निवासी बेगम की शादी यूपी स्थित सहारनपुर निवासी दिलशाद अहमद से हुई।
बेगम ने पाकिस्तान में अदालत से आग्रह किया कि वह निर्दोष है जिसके बाद अदालत ने मामले में जानकारी मांगी। औरंगाबाद पुलिस ने पाकिस्तान को सूचना भेजी कि बेगम के नाम पर औरंगाबाद में सिटी चौक थानान्तर्गत एक घर रजिस्टर्ड है। जिसके बाद पाकिस्तान ने पिछले हफ्ते बेगम को रिहा कर दिया और उसे भारतीय अधिकारियों को सौंप दिया।
नई दिल्ली, 28 जनवरी | देश की राजधानी दिल्ली में गुरुवार सुबह भूकंप के हल्के झटके महसूस किए गए। रिक्टर पैमाने पर इसकी तीव्रता 2.8 मापी गई। पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के नेशनल सेंटर फॉर सिस्मोलॉजी के अनुसार, भूकंप का केंद्र पश्चिम दिल्ली के पास था और इसकी गहराई 15 किलोमीटर थी और ये सुबह 9.17 बजे महसूस किया गया।
अब तक किसी के हताहत होने या संपत्तियों को नुकसान की खबर नहीं है।
पृथ्वी विज्ञान के अनुसार, पांच से कम तीव्रता के भूकंप से बड़े पैमाने पर नुकसान की संभावना नहीं होती है। हालांकि कमजोर संरचनाओं के मामले में ऐसा नहीं है। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 28 जनवरी| भारत में पिछले 24 घंटों में कोरोनावायरस के 11,666 नए मामले सामने आए, जिसके बाद कुल मामलों की संख्या बढ़ कर 1,07,01,193 तक पहुंच गई। केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने गुरुवार को ये जानकारी दी। इसी दौरान देश में कोविड-19 से 123 लोगों की मौत हुई, जिसके बाद कुल मौतों का आंकड़ा 1,53,847 पहुंच गया।
पिछले 21 दिनों से देश में कोरोनावायरस के दैनिक मामले 20,000 से कम दर्ज हो रहे हैं। इसके अलावा, मरने वालों की संख्या पिछले 31 दिनों में 300 अंक से नीचे रही।
19 जनवरी को भारत में 10,064 नए मामले दर्ज किए गए थे, जो इस वर्ष अब तक का सबसे कम दैनिक आंकड़ा है।
मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, 1,03,73,606 लोग अब तक इस बीमारी से उबर चुके हैं। देश में सक्रिय मरीजों की संख्या फिलहाल 1,73,740 है। ठीक होने की दर 96.94 प्रतिशत है, जबकि मृत्यु दर 1.62 प्रतिशत है।
आठ राज्यों - केरल, महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु, छत्तीसगढ़, गुजरात, पश्चिम बंगाल और मध्य प्रदेश से लगभग 80 प्रतिशत दैनिक मामले सामने आ रहे हैं।
देश में दो कोविड टीकों के अनुमोदन के बाद 16 जनवरी से देशव्यापी टीकाकरण अभियान शुरू हुआ। अब तक पहले चरण में 23,55,979 लाभार्थियों को कोविद वैक्सीन की पहली खुराक मिल चुकी है। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 28 जनवरी| दिल्ली में ऐतिहासिक लाल किले को 31 जनवरी तक बंद करने के आदेश दे दिए गए हैं। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा एक आदेश जारी किया गया है, जिसमें कहा गया है कि लाल किला 27 जनवरी से 31 जनवरी तक पर्यटकों के लिए बंद किया जा रहा है। दरअसल, गणतंत्र दिवस को देखते हुए लाल किले को पहले ही बंद कर दिया गया था, लेकिन ये पर्यटकों और आम नागरिकों के लिए 27 जनवरी को खुलना था। हालांकि अब बंद की अवधि को बढ़ा कर 31 जनवरी कर दिया गया है।
लाल किले को किन कारणों से बंद किया जा रहा है इसका उल्लेख आदेश में नहीं किया गया है।
हाल ही में लाल किले परिसर में हुई हिंसा के बाद काफी नुकसान हुआ है, जिसका जायजा बुधवार को संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री प्रह्लाद पटेल ने लिया था और एएसआई से परिसर में हुई घटना पर रिपोर्ट भी मांगी थी।
दरअसल, गणतंत्र दिवस के मौके पर ट्रैक्टर परेड के दौरान लाल किले पर हालात काफी गंभीर बन गए थे। ट्रैक्टर परेड के दौरान किसानों के एक जत्थे ने लाल किला पहुंच कर काफी उपद्रव मचाया और परिसर में तोड़-फोड़ के साथ लाल किले पर अपने सिख धर्म का झंडा भी फहराया था।
हालांकि अनुमान लगाया जा रहा है कि मंगलवार को हुई हिंसा की वजह से लाल किले को काफी नुकसान पहुंचा है, जिसके कारण ही इसे बंद किया जा रहा है। (आईएएनएस)
-Sandhya Sekar
बंदर की एक प्रजाति बोनट मकाक ने भीख मांगने के तरीके सीख लिए हैं। इन्हें बांदीपुर टाइगर रिजर्व में आए पर्यटकों के सामने हाथ फैलाकर खाने की चीजें मांगते देखा जा सकता है।
छोटे बंदर खाने-पीने की चीजें मांगते हैं, जबकि बड़े बंदर पर्यटकों को डराकर चीजें झपट लेते हैं। मांगने के लिए ये बंदर बड़ी मासूमियत से लोगों की नजरों में देखते हैं और हाथ फैलाते हैं।
बोनट मकाक पर्यटकों पर दूर से निगरानी रखते हैं और जैसे ही खाने के साथ कोई पर्यटक दिखता है, ये अपने काम पर लग जाते हैं।
विज्ञान की भाषा में जानवरों के इस व्यव्हार को इंटेशनल कम्यूनिकेशन कहा जाता है। एक शोध में पहली बार इस व्यवहार के बारे में जानकारी इकट्ठी की गई है। जंगली जानवरों और इंसानों के बीच इस संवाद को काफी दुर्लभ श्रेणी का माना जा रहा है।
कर्नाटक के बांदीपुर टाइगर रिजर्व में पर्यटकों और यहां पाए जाने वाले बोनट मकाक यानी बंदर की एक विशेष प्रजाति के बीच नोंकझोंक रोज की बात हो गई है।
हालांकि, पर्यटन स्थल पर बंदर और इंसानों के बीच खाने को लेकर खींचतान कोई नई बात नहीं है, लेकिन बांदीपुर टाइगर रिजर्व में इन दिनों कुछ अनोखा घट रहा है। बड़े बंदर मौका पाते ही सामान छीन लेते हैं, लेकिन यहां मौजूद कुछ बंदरों ने हाथ फैलाकर खाने की चीजें मांगना सीख लिया है। वे अपने हाव-भाव से खुद को मासूम दिखाकर उन पर्यटकों के सामने हाथ फैलाते हैं जिनके हाथ में खाने-पीने की कोई चीज हो।
बोनट मकाक बंदरों की एक प्रजाति है जो कि दक्षिण भारत के जंगलों में बहुतायत में पाई जाती है। इसे बंदरों के, विश्व-स्तर पर, सबसे पुरानी प्रजातियों में से एक माना जाता है।
पर्यटकों पर अपना प्रभाव जमाने के लिए बंदर उनकी आंखों में देखते हैं और नजर मिलते ही हाथ फैला देते हैं। अगर कोई वहां से निकलना चाहे तो बंदर अपने हाव-भाव से सुनिश्चित करते हैं कि वे पर्यटकों की नजर के सामने बार-बार आएं।
“जंगल में रहने वाले बंदरों के लिए हाथ फैलाकर मांगना बिल्कुल एक नई बात लगती है। लोगों ने पालतू बंदर को अपने मालिको के साथ ऐसा व्यवहार करते तो देखा है, लेकिन वे बंदर बंधे होते हैँ। खुले जंगल में विचरने वाले बंदरों में यह एक नई बात है,” अनिन्द्या सिन्हा कहती हैं जो नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस स्टडीज में बतौर प्रोफेसर कार्यरत हैं। जानवरों के इस स्वभाव को लेकर उन्होंने दूसरे विशेषज्ञों के साथ मिलकर यह अध्ययन किया है।
चार महीने चले इस अध्ययन में सिन्हा के साथ अद्वेत देशपांडे और श्रीजाता गुप्ता ने बोनट मकाक बंदरों के दो समूहों को काफी नजदीक से देखा। यह बंदर टाइगर रिजर्व के रिसेप्शन के आसपास रहते हैं। रिजर्व में यहां रहने वाले बंदर अपेक्षाकृत इंसानों को अधिक करीब से देखते हैं। देशपांडे ने अपने अध्ययन के दौरान कम से कम 86 ऐसे मौके देखे जब कोई बंदर किसी पर्यटक से संवाद स्थापित करने की कोशिश कर रहा था।
बोनट मकाक बंदर के अलग-अलग रूप
बंदरों का स्वभाव देखने के लिए सिन्हा ने अपनी टीम से साथ बंदरों के 30 टोलियों पर नजर रखी। उन्होंने तकरीबन 1800 लोगों के साथ बंदरों का संवाद गौर से देखा। इस अध्ययन को मैसूर ऊंटी हाइवे पर पिछले 18 वर्षों से किया जा रहा है।
अध्ययनकर्ताओं ने बंदरों के अलग-अलग रूपों को देखा जिसमें खाना मांगने के स्वभाव में चार संकेत शामिल हैं। सबसे पहले ये खाने के लिए हाथ फैलाते हैं। इस तरह की प्रवृत्ति बंदरों में पहली बार देखी जा रही है।
दूसरे व्यवहार में देखा गया कि ये बंदर इंसान को देखकर कू-कू की आवाज निकालते हैं। इस संकेत का साफ अर्थ नहीं निकाला जा सका है, लेकिन संभवतः ये आवाज इंसानों का ध्यान खींचने के लिए लगाया जाता होगा। अध्ययनकर्ता यह भी अनुमान लगाते हैं कि बंदर अपना उत्साह बनाए रखने के लिए भी ऐसी आवाजें निकालते होंगे।
तीसरा प्रमुख व्यवहार बंदरों का इंसानों की नजर के सामने बने रहना है। हाथ फैलाकर मांगते समय बंदरों की कोशिश रहती है कि इंसान जिधर देखे वह उसी तरफ खड़े हो जाते हैं।
इसके अलावा, वे ऐसा इंसानों का ध्यान अपनी ओर खींचने के लिए करते हैं। जबतक खाना न मिल जाए वे इंसानों के इर्द-गिर्द घूमते रहते हैं।
मांगने की प्रवृत्ति सिर्फ छोटे बंदरों में पाई गई। इसके पीछे की वजहों के बारे में अध्ययनकर्ता मानते हैं कि इंसानों से छोटे बंदरों को बड़ों की अपेक्षा अधिक डर लगता है। खाने के लालच में वे छीनने के बजाए मांगने वाला रास्ता अपनाने लगे हैं।
हालांकि, अध्ययनकर्ताओं ने पाया कि कम उम्र के हर बंदर में मांगने की प्रवृत्ति नहीं है।
बंदरों के व्यवहार को अधिक गहराई से समझने के लिए अध्ययनकर्ताओं ने वॉलेंटियर की मदद से कई प्रयोग किए। कई बार वॉलेंटियर खाने के साथ बंदरों के पास से गुजरे और उनके व्यवहार का अध्ययन किया। हालांकि, बंदरों को उन्होंने खाना नहीं दिया। वन्य जीवों को इंसानों का खाना देने से उनमें कई समस्याएं उत्पन्न होती हैं जिससे उनका जीवनकाल भी छोटा हो सकता है।
इस प्रयोग में देखा गया कि बंदर से नजर मिलाने के बाद वे हाथ आगे बढ़ाकर खाना मांगने लगते हैं।
“कू-कू की आवाज बंदर हर उस इंसान को देखकर लगाते हैं जिसके हाथ में खाने का कोई सामान हो,” सिन्हा ने बताया।
फ्रांस की लॉज़ेन विश्वविद्यालय के शेर्लोट कैंनेलौप बताते हैं कि इस तरह संवाद करने की क्षमता हासिल करने की वजह से जानवर इंसान तक संकेत के जरिए अपनी बात पहुंचा पाते हैं जिसकी वजह से उन्हें खाने के लिए काफी कुछ मिल जाता है। “सीखने की प्रक्रिया में जानवरों का इंसानों के साथ पुराना अनुभव काम आता है। जैसे कभी किसी इंसान ने किसी भाव को देखकर उन्हें खाने को दे दिया होगा, तब से वे इसे दोहराने लगे और इस क्रम में सीखते गए,” वह कहते हैं।
आखिर बंदरो ने कैसे सीखे ये सब इशारे
अफ्रिका के लंगूर कू-कू की आवाज निकालते हुए सुने गए हैं लेकिन बोनट मकाक इंसानों से सामने यह आवाज निकालता है। ऐसा पहले कभी नहीं देखा गया।
“जब लंगूर अपनी टोली से दूर हो जाता है तो ऐसी आवाज निकालकर सहायता मांगता है। बोनट मकाक पहली बार खाना मांगने के लिए इस आवाज का प्रयोग कर रहे हैं,” सिन्हा कहती हैं।
हाथ फैलाने की प्रवृत्ति को लेकर सिन्हा का मानना है कि ऐसा बंदरों ने आपस में कभी नहीं किया। खाना बांटने के लिए भी नहीं। हालांकि, शोधकर्ताओं को लगता है कि यह तरीका उन्होंने इंसानों को देखकर सीखा
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस स्टडीज (एनआईएएस) की जीवविज्ञानी सिन्धु राधाकृष्णा मानती हैं कि बंदर आमतौर पर इंसानों को डराते हैं ताकि वे खाना फेंक दें। इसी तरह नन्हे बंदरों ने खाना पाने का यह तरीका खोज निकाला होगा।
बांदीपुर में ही क्यों ऐसा करते हैं बोनट मकाक
सिन्हा का मानना है कि सिर्फ बांदीपुर ही नहीं बल्कि दूसरे स्थानों पर भी बोनट मकाक में ऐसी प्रवृत्तियां पाई जाती होंगी।
अध्ययन के प्रकाशित होने के बाद अध्ययनकर्ताओं को दूसरे स्थानों पर भी बंदरों के ऐसे व्यवहार की सूचनाएं मिलीं।
गुवाहाटी स्थित कॉटन कॉलेज के प्रोफेसर राधाकृष्णा और वारायण शर्मा बताते हैं, “हमें अनुमान है कि बंदरों में यह प्रवृत्ति किसी न किसी रूप में देश के कई और इलाकों में होंगी।”
सिन्हा ने बोनट मकाक के इस व्यवहार को इंटेशनल कम्यूनिकेशन की संज्ञा दी है। इस शोध में पहली बार इस व्यवहार के बारे में जानकारी इकट्ठी की गई है। जंगली जानवरों और इंसानों के बीच इस संवाद को काफी दुर्लभ श्रेणी का मान सकते हैं।
नोट- कृपया जंगली जीवों को भोजन न दें। कई शोध में सामने आया है कि इंसानों का ऐसा भोजन देना जंगली जीवों के जीवन काल कम कर सकता है। इस खाने से उनके भीतर आक्रात्मकता बढ़ती है। जंगली जीवों के लिए जंगल में प्राकृतिक रूप से मौजूद खाना ही सबसे अच्छा होता है। इस अध्ययन के दौरान भी किसी जंगली जीव को अध्ययनकर्ताओं ने खाने की चीजें नहीं दीं । (hindi.mongabay.com)
देवास. मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की देवास में आयोजित आमसभा के दौरान एक शख्स ने खुद को किसान बताकर अपने ऊपर मिट्टी का तेल डालकर और पीकर आत्मदाह करने का प्रयास किया. पुलिस ने बुधवार को यह जानकारी दी. अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक जगदीश डावर ने बताया कि आयोजन स्थल पर तैनात पुलिसकर्मियों ने उस व्यक्ति को माचिस जलाने से पहले पकड़ लिया और हिरासत में लेकर उसे उपचार के लिए अस्पताल में भर्ती कराया.
डावर ने बताया कि आत्महत्या का प्रयास करने वाले 48 वर्षीय व्यक्ति की पहचान देवास जिले के थाना पीपलरावां के कुमारिया गांव निवासी अनूप सिंह हाड़ा के रूप में हुई है. उन्होंने बताया कि अनूप हाड़ा और इसके बच्चों के खिलाफ अलग-अलग थानों में कई मामले दर्ज हैं. साथ ही उस पर इनाम भी घोषित है.
उन्होंने कहा कि सीहोर जिले के जावर थाने की पुलिस ट्रैक्टर चोरी के मामले की जांच के दौरान अनूप हाड़ा के तीन ट्रैक्टरों को संदिग्ध मानकर उठाकर ले गई थी. उन्होंने बताया कि इस मामले को लेकर इसने पुलिस पर जबरन तीन ट्रैक्टर उठाकर ले जाने का आरोप लगाया है. बुधवार को मुख्यमंत्री का ध्यान आकर्षित करने के लिए इसने उनकी सभा में मिट्टी का तेल पीकर और स्वयं पर उसे डालकर खुद को आग लगाने का प्रयास किया.
अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक ने बताया कि पुलिस इस व्यक्ति को हिरासत में लेकर अस्पताल में उसका उपचार करा रही है. पुलिस मामले की विस्तृत जांच कर रही है.
बता दें कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह बुधवार को देवास में थे. उन्होंने यहां विभिन्न विकास कार्यों का शिलान्यास और लोकार्पण किया. साथ ही सीएम ने यहां आमसभा को भी संबोधित किया. (भाषा से इनपुट)
गुवाहाटी, 28 जनवरी| असम की सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी ने बुधवार को घोषणा की कि वह मौजूदा सहयोगी बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट (बीपीएफ) के बजाय अपने नए सहयोगी युनाइटेड पीपुल्स पार्टी लिबरल (यूपीपीएल) के साथ गठबंधन कर आगामी विधानसभा चुनाव लड़ेगी। भाजपा ने असम गण परिषद (एजीपी) के साथ 2016 के बाद से एक साथ असम सत्तारूढ़ होने के बावजूद दिसंबर में बोडोलैंड टेरिटोरियल काउंसिल (बीटीसी) चुनाव में बीपीएफ के खिलाफ लड़ाई लड़ी। बीपीएफ के सर्वानंद सोनोवाल सरकार में तीन मंत्री हैं।
भूटान और अरुणाचल प्रदेश की सीमा से सटे उदलगुड़ी में एक सभा को संबोधित करते हुए भाजपा के वरिष्ठ नेता और राज्य के वित्त और स्वास्थ्य मंत्री हिमांता बिस्वा सरमा ने कहा कि उनकी पार्टी ने यूपीपीएल के साथ गठबंधन में विधानसभा चुनाव लड़ने का फैसला किया है ।
सरमा ने केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की मौजूदगी में नई दिल्ली में 27 जनवरी, 2020 को केंद्र सरकार के साथ बोडो शांति समझौते पर हस्ताक्षर की पहली वर्षगांठ मनाने के लिए आयोजित रैली में कहा, हम फरवरी में यूपीएल के साथ सीटों के बंटवारे की घोषणा करेंगे।
भाजपा ने बुधवार को भी पार्टी घोषणापत्र के लिए जनता की राय लेने के लिए मोबाइल वैन को हरी झंडी दिखाई।
मुख्यमंत्री सोनोवाल ने प्रदेश पार्टी अध्यक्ष रंजीत कुमार दास, सरमा और गुवाहाटी की सांसद महारानी ओजा की मौजूदगी में वैन को हरी झंडी दिखाकर रवाना किया।
पार्टी सूत्रों ने बताया कि 50 वैन सभी 126 विधानसभा क्षेत्रों में यात्रा कर जनता से जानकारी मांगेंगी।
असम, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, केरल और पुडुचेरी में विधानसभा चुनाव अप्रैल-मई में होने की संभावना है। (आईएएनएस)
चंडीगढ़, 27 जनवरी| हरियाणा सरकार ने बुधवार को दिल्ली से सटे सोनीपत, पलवल और झज्जर जिलों में वॉयस कॉल को छोड़कर मोबाइल नेटवर्क पर दूरसंचार और सभी एसएमएस सेवाओं को 28 जनवरी को निवारक उपाय के तौर पर शाम 5 बजे तक बढ़ा दिया। मंगलवार को दिल्ली में हुई हिंसा को देखते हुए यह आदेश जारी किया गया।
एक आधिकारिक प्रवक्ता ने कहा कि राज्य ने मोबाइल फोन पर व्हाट्सएप, फेसबुक और ट्विटर जैसे विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के माध्यम से दुष्प्रचार और अफवाहों के प्रसार को रोकने के लिए इंटरनेट सेवाओं के निलंबन का विस्तार करने का फैसला किया है। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 28 जनवरी| किसानों की ट्रैक्टर रैली के दौरान हंगामा, पुलिसकर्मियों के साथ झड़प, सार्वजनिक संपत्तियों को नुकसान पहुंचाए जाने और लालकिले पर धार्मिक झंडा फहराए जाने के अगले दिन आम आदमी पार्टी (आप) ने इन घटनाओं की निंदा करते हुए इसके लिए केंद्र में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी को जिम्मेदार ठहराया। दिल्ली के विधायक और पार्टी के पंजाब प्रभारी राघव चड्ढा ने बुधवार को संवाददाता सम्मेलन में कहा, कल हम सभी ने देखा कि दिल्ली में क्या हुआ और सबसे महत्वपूर्ण लाल किले पर। हमने हिंसा की निंदा की है और आगे ऐसा नहीं होना चाहिए।
हिंसा के लिए भाजपा को जिम्मेदार ठहराते हुए उन्होंने कहा कि कथित तौर पर धार्मिक झंडा फहराते पकड़े गए व्यक्ति दीप सिद्धू भाजपा के हैं। उन्होंने कहा, कल की हिंसा के मास्टरमाइंड दीप सिद्धू का पीएम नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह से गहरा संबंध है।
उन्होंने दावा किया कि आप यह साबित करेगी कि इस पूरी घटना के पीछे प्रधानमंत्री और कुछ केंद्रीय एजेंसियों का हाथ था, क्योंकि उन्होंने अभिनेता से राजनेता बने सनी देओल (गुरदासपुर से भाजपा सांसद) के साथ दीप सिद्धू की तस्वीर दिखाई थी।
चड्ढा ने आरोप लगाया, यह प्रधानमंत्री आवास पर ली गई तस्वीर है जो एक ऐसी जगह है, जहां कोई भी व्यक्ति प्रवेश नहीं कर सकता।
चड्ढा ने किसानों के विरोध के वास्तविक मुद्दों से लोगों का ध्यान भटकाने और भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार द्वारा बनाए गए तीन फार्म कानून के खिलाफ शांतिपूर्ण किसानों के विरोध प्रदर्शन को बदनाम करने के लिए हिंसा भड़काई गई और इसके लिए भाजपा पूरी तरह जिम्मेदार है।
आप नेता ने कहा, "बीजेपी को इस बात का खुलासा करना चाहिए कि वह दीप सिद्धू को क्यों बचा रही है।" (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 27 जनवरी| दिल्ली के दौरा कर बुधवार को वापस जाते समय महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस दिल्ली मेट्रो की सवारी कर एयरपोर्ट पहुंचे। इस दौरान उन्होंने महाराष्ट्र की उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली महाविकास अघाड़ी सरकार पर निशाना भी साधा। फडणवीस ने दिल्ली दौरे के दौरान केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी, स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन, कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर से भेंटकर महाराष्ट्र के विकास से जुड़े विभिन्न मुद्दों पर चर्चा की।
महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को जब इंदिरा गांधी इंटरनेशनल एयरपोर्ट वापस जाना था तो उन्होंने गाड़ी से जाने की जगह दिल्ली मेट्रो की सवारी की। नई दिल्ली से एयरपोर्ट एक्सप्रेस लाइन पकड़कर एयरपोर्ट पहुंचे। फिर यहां से फ्लाइट पकड़कर मुंबई रवाना हो गए।
देवेंद्र फडणवीस ने मेट्रो के अनुभव को लेकर कहा, आज एयरपोर्ट जाने के लिए दिल्ली मेट्रो की सवारी की। सड़क मार्ग की तुलना में मेट्रो से मैं जल्दी पहुंचा। कारशेड मामले पर महाविकास अघाड़ी सरकार द्वारा की गई गड़बड़ी को ध्यान में रखते हुए मैं नहीं जानता कि कब मुंबई में मेट्रो से एयरपोर्ट तक पहुंचूंगा। (आईएएनएस)