राष्ट्रीय
इंडोनेशिया के सुलोवेसी द्वीप में शनिवार को आए भूकंप के बाद राहतकर्मी वहाँ मलबे में फँसे लोगों की तलाश कर रहे हैं.
समाचार एजेंसी रॉयटर्स के मुताबिक़ इस भूकंप में कम से कम 45 लोगों की मौत हो गई है, सैकड़ों लोग घायल हो गए हैं और हज़ारों लोग डर के मारे घर छोड़कर भागने पर मजबूर हो गए है.
इतना ही नहीं, भूकंप के बाद मलबे में कई लोगों के दबे होने की आशंका भी है, जिनकी तलाश जारी है.
इंडोनेशिया की आपदा राहत एजेंसी ने बताया कि रिक्टर पैमाने पर 6.2 तीव्रता के भूकंप के बाद पश्चिमी सुलोवेसी प्रांत के मामूजू और माजेने ज़िलों में 5.0 तीव्रता का भूकंप आया लेकिन इसमें जानमाल के नुक़सान की कोई ख़बर नहीं है.
एजेंसी के प्रमुख डानी मॉनार्डो ने इंडोनेशिया के कोंपास टीवी को बताया कि मलबे में दबे पीड़ितों के लिए तलाश जारी है.
एजेंसी के मुताबिक़ भूकंप के कारण 820 से ज़्यादा लोग घायल हुए हैं और 15 हज़ार लोगों को सुरक्षित बचा लिया गया है.
चश्मदीदों ने बताया कि कई लोगों को पहाड़ों में शरण लेनी पड़ी है तो कइयों को भीड़भाड़ वाले बचाव केंद्र में रहने पर मजबूर होना पड़ा है. (bbc.com)
नई दिल्ली, 16 जनवरी| भारत के 59.22 फीसदी लोग नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री के रूप में पसंद करते हैं जबकि इसकी तुलना में पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को इस पद पर देखने की इच्छा रखने वालों का प्रतिशत केवल 25.62 है। ये आंकड़े आईएएनएस सी-वोटर के नेशन 2021 सर्वे में सामने आए हैं।
सर्वे के अनुसार, इन दो उम्मीदवारों की दौड़ में प्रधानमंत्री पद के लिए मोदी न केवल सबसे अधिक पसंद किए गए उम्मीदवार हैं, बल्कि वे राहुल गांधी से कहीं आगे भी हैं।
उड़ीसा और हिमाचल प्रदेश में 80 प्रतिशत से अधिक लोग मोदी को प्रधानमंत्री के रूप में पसंद करते हैं। हैरानी की बात ये है कि पूर्वोत्तर राज्यों में भी इसका ऐसा ही ऊंचा प्रतिशत 75.68 प्रतिशत है।
दूसरी ओर राहुल गांधी को प्रधानमंत्री के रूप में पसंद करने वालों की अप्रूवल रेटिंग बेहद कम है। यह ओडिशा में 7.36 प्रतिशत, हिमाचल प्रदेश में 10.20 प्रतिशत और पूर्वोत्तर राज्यों में 10.96 है। हालांकि उन्हें केरल में काफी उंची 54.28 प्रतिशत अप्रूवल रेटिंग मिली है। इसी राज्य से वह लोकसभा के लिए चुने गए हैं। इसके बाद दूसरी सबसे बड़ी रेटिंग उन्हें तमिलनाडु में 48.26 प्रतिशत मिली है।
पश्चिम बंगाल में 62.19 प्रतिशत उत्तरदाता मोदी को प्रधानमंत्री के रूप में पसंद करते हैं, जबकि 28.38 प्रतिशत उत्तरदाता राहुल गांधी को पसंद करते हैं।
मोदी जम्मू-कश्मीर में भी लोकप्रिय हैं, वहां उन्हें 46.74 प्रतिशत लोग इस पद पर पसंद करते हैं, जबकि 34.15 प्रतिशत राहुल गांधी को पसंद करते हैं।
10 राज्यों कर्नाटक, छत्तीसगढ़, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, उत्तराखंड, महाराष्ट्र, झारखंड और बिहार की बात करें तो यहां लगभग 65 फीसदी लोग राहुल गांधी की बजाय मोदी को प्रधानमंत्री के तौर पर पसंद करते हैं।
वहीं दिल्ली में 61.75 प्रतिशत लोग मोदी को और केवल 22.98 प्रतिशत लोग राहुल गांधी को इस पद पर देखना पसंद करते हैं। तेलंगाना में मोदी के लिए यह प्रतिशत 60.32 फीसदी है।
उत्तर प्रदेश में भी मोदी, राहुल से बहुत आगे हैं। 56.21 प्रतिशत लोग मोदी को प्रधानमंत्री के रूप में पसंद करते हैं, जबकि राहुल गांधी को 29.48 प्रतिशत लोग ही इस पद पर देखना चाहते हैं।
आश्चर्यजनक रूप से पंजाब में मोदी और राहुल गांधी को एक जैसा 29.5 प्रतिशत समर्थन मिला है।
कुल मिलाकर केरल और तमिलनाडु को छोड़कर किसी भी अन्य राज्य या केंद्र शासित प्रदेश ने राहुल गांधी को इस 2 उम्मीदवारों की दौड़ में पसंद नहीं किया। 15 राज्यों में राहुल गांधी की अप्रूवल रेटिंग 25 प्रतिशत से नीचे है, जबकि 4 राज्यों में तो यह रेटिंग 20 प्रतिशत से नीचे है।
बता दें देश भर में 30 हजार से अधिक उत्तरदाताओं के बीच सर्वेक्षण किया गया था, जिसमें सभी 543 लोकसभा क्षेत्र शामिल थे। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 16 जनवरी| लोकसभा के मौजूदा सांसदों से कितने लोग संतुष्ट हैं। सीवोटर सर्वे से पता चला है कि केरल और देश के उत्तरी पूर्वी राज्यों में इस बात को लेकर बराबर का मुकाबला है। जबकि हरियाणा और पुड्डुचेरी में लोग अपने सांसदों से संतुष्ट नहीं है। सर्वेक्षण के अनुसार, केरल में, 37.31 प्रतिशत लोग लोकसभा के मौजूदा सांसदों से संतुष्ट हैं, जबकि 42.87 प्रतिशत लोग कुछ हद तक संतुष्ट हैं और केवल 16.44 प्रतिशत लोग बिल्कुल खुश नहीं हैं। केरल में ये स्तर 63.7 प्रतिशत है। पूर्वोत्तर के राज्य इस मामले में 61.3 प्रतिशत पर हैं और थोड़ा पिछड़ रहे हैं।
दिलचस्प बात यह है कि हिमाचल प्रदेश में 50.7 प्रतिशत लोग मौजूदा सांसदों से संतुष्ट हैं, जो अन्य राज्यों की तुलना में सबसे अधिक है। हालांकि यहां 25.22 प्रतिशत लोग कुछ हद तक संतुष्ट हैं और 21.42 प्रतिशत लोग ऐसे हैं जो बिल्कुल ही संतुष्ट नहीं हैं। इसके चलते रैंकिंग में हिमाचल पिछड़कर तीसरे नंबर पर आ गया है।
आंध्र प्रदेश में 45.15 प्रतिशत लोग अपने लोकसभा सांसदों से संतुष्ट हैं। रैंकिंग में ये चौथे स्थान पर है।
पूरे देश में देखें तो 31.52 प्रतिशत लोग अपने सांसदों से बहुत संतुष्ट हैं, जबकि 26.05 प्रतिशत लोग कुछ हद तक संतुष्ट हैं। हालांकि, 32.99 फीसदी लोग बिल्कुल भी संतुष्ट नहीं हैं।
45.96 प्रतिशत के साथ गुजरात के लोगों ने अपने मौजूदा सांसदों के साथ संतुष्टि का दूसरा उच्चतम स्तर दर्ज किया है, जिसके बाद ओडिशा 41.65 प्रतिशत पर है।
जम्मू-कश्मीर के नवगठित केंद्र शासित प्रदेश में, 42.27 प्रतिशत लोग अपने मौजूदा सांसदों से बहुत संतुष्ट हैं, जबकि 27.6 प्रतिशत लोग संतुष्ट नहीं हैं। रैंकिंग में ये 16वें स्थान पर पिछड़ गया है।
हरियाणा और पुड्डुचेरी में लोगों ने अपने मौजूदा लोकसभा सांसदों के प्रति असंतोष जताया है। हरियाणा में 54.25 प्रतिशत लोग अपने सांसदों से बिल्कुल भी संतुष्ट नहीं हैं, जो कि अखिल भारतीय स्तर पर गैर संतुष्टि का उच्चतम स्तर है।
31.07 प्रतिशत पर असम और 31.2 प्रतिशत पर महाराष्ट्र भी अपने मौजूदा सांसदों के साथ लोगों की संतुष्टि के संदर्भ में लगभग बराबरी पर है। हालांकि, असम में 20.07 फीसदी लोग केरल और पूर्वोत्तर राज्यों के बाद अपने मौजूदा सांसदों से संतुष्ट नहीं हैं।
दिल्ली में, 31.14 प्रतिशत लोग अपने मौजूदा सांसदों से बहुत संतुष्ट हैं, जबकि 34.73 प्रतिशत लोग बिल्कुल संतुष्ट नहीं हैं।
देश के सभी 543 लोकसभा क्षेत्रों में 30,000 से अधिक लोगों के बीच ये सर्वेक्षण किया गया। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 16 जनवरी | कोविड-19 महामारी के इस समय में लगभग 41.66 प्रतिशत लोग सभी राज्यों में केन्द्र के ओवरऑल प्रदर्शन से संतुष्ट हैं। यह बात आईएएनएस सी-वोटर स्टेट नेशन 2021 सर्वे में सामने आई है।
इस सर्वे के अनुसार, ओडिशा में 75.02 प्रतिशत लोग केंद्र सरकार के प्रदर्शन से बहुत संतुष्ट हैं, जबकि 16.4 प्रतिशत लोग कुछ हद तक संतुष्ट हैं और केवल 8.3 प्रतिशत लोग ही ऐसे हैं जो असंतुष्ट हैं। इस तरह सर्वे में केंद्र सरकार के काम को लेकर संतुष्टि का कुल स्तर 83.12 फीसदी है।
इसी तरह तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में 60 प्रतिशत से अधिक लोग केंद्र के प्रदर्शन से बहुत संतुष्ट हैं।
लेकिन दिलचस्प बात यह है कि पूर्वोत्तर राज्यों में 45.16 फीसदी लोग केंद्र सरकार से बहुत संतुष्ट हैं, जबकि 38.93 फीसदी कुछ हद तक संतुष्ट हैं, कुल मिलाकर संतुष्टि का नेट स्तर 68.93 फीसदी है।
हालांकि तमिलनाडु और पंजाब में केंद्र का प्रदर्शन नकारात्मक है। पंजाब एकमात्र ऐसा राज्य है जो केंद्र सरकार से बेहद असंतुष्ट है, यहां यह प्रतिशत -30.9 है।
उत्तर प्रदेश में भी स्थिति ऐसी ही है, यहां 40.23 फीसदी लोग केंद्र से संतुष्ट हैं, लेकिन 42.15 फीसदी लोग इससे संतुष्ट नहीं हैं। केरल में भी 41.08 प्रतिशत लोग केंद्र सरकार के प्रदर्शन से संतुष्ट नहीं हैं। हरियाणा में 39.55 प्रतिशत लोग केंद्र के प्रदर्शन से संतुष्ट नहीं हैं, जबकि 32.1 प्रतिशत लोग बहुत संतुष्ट हैं और 25.44 प्रतिशत लोग कुछ हद तक संतुष्ट हैं।
जम्मू-कश्मीर में 43.64 फीसदी लोग केंद्र सरकार के प्रदर्शन से संतुष्ट हैं, 22.79 फीसदी लोग कुछ हद तक संतुष्ट हैं और 30.88 फीसदी लोग इससे असंतुष्ट हैं।
पूरे देश को लेकर बात करें तो 41.66 प्रतिशत लोग केंद्र से बहुत संतुष्ट हैं, वहीं 24.67 प्रतिशत कुछ हद तक संतुष्ट हैं और 29.83 प्रतिशत लोग इससे संतुष्ट नहीं हैं। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 16 जनवरी | ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाले मुख्यमंत्री साबित हुए हैं और उनके बाद दिल्ली के अरविंद केजरीवाल और आंध्र प्रदेश के वाई.एस. जगन मोहन रेड्डी हैं। ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस पर भाजपा के हमले के बावजूद बतौर सीएम अपनी विश्वसनीयता बरकरार रखी है। आईएएनएस सी-वोटर स्टेट ऑफ द नेशन 2021 सर्वे में इस बात का खुलासा हुआ है।
देश के सबसे लंबे समय तक पद पर काबिज रहे मुख्यमंत्रियों में से एक पटनायक ओडिशा में 78.81 प्रतिशत लोगों के समर्थन के साथ पहले स्थान पर हैं। वही, भाजपा शासित उत्तराखंड के त्रिवेंद्र सिंह रावत देश में सबसे खराब प्रदर्शन करने वाले मुख्यमंत्री हैं और राज्य में केवल 0.41 प्रतिशत लोग ही उनका समर्थन करते हैं।
ओडिशा में, 68.57 प्रतिशत लोग पटनायक के काम से बहुत संतुष्ट हैं, जबकि केवल 10 प्रतिशत लोग संतुष्ट नहीं हैं और 20 प्रतिशत लोग कुछ हद तक संतुष्ट हैं।
दिल्ली में, मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को 77 प्रतिशत लोगों का समर्थन हासिल है, जिसमें 57 प्रतिशत कहते हैं कि वे बहुत संतुष्ट हैं, 31 प्रतिशत कहते हैं कि वे संतुष्ट हैं और केवल 11 प्रतिशत का कहना है कि वे उनसे संतुष्ट नहीं हैं।
वाईएसआर कांग्रेस पार्टी के आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी 66.83 प्रतिशत की समर्थन रेटिंग के साथ तीसरे स्थान पर हैं। राज्य में सर्वेक्षण में शामिल केवल 16 फीसदी लोगों ने कहा कि वे उनके कामकाज से संतुष्ट नहीं हैं।
संयोग से, शीर्ष तीन में शुमार सभी मुख्यमंत्री गैर-भाजपा/गैर-कांग्रेस शासित राज्यों से हैं।
उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत सबसे निचले पायदान 23 वें स्थान पर हैं। केवल 26 प्रतिशत लोगों का कहना है कि वे उनके काम से संतुष्ट हैं। 49 फीसदी लोगों ने कहा कि वे रावत के प्रदर्शन से नाखुश हैं जबकि बाकी ने कहा कि उन्हें उनका कामकाज बस ठीक लगता है।
अन्य दो मुख्यमंत्री जिन्हें खराब रैंकिंग मिली है, वे क्रमश: हरियाणा और पंजाब के हैं।
हरियाणा में, लगभग 23 प्रतिशत लोग मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के प्रदर्शन से बहुत संतुष्ट हैं, इसके बाद पंजाब में 22 प्रतिशत लोग मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह के काम से बहुत संतुष्ट हैं। जहां पंजाब के मुख्यमंत्री को विशुद्ध रूप से 9.81 प्रतिशत समर्थन मिला है, वहीं उनके हरियाणा के समकक्ष को 8.2 प्रतिशत लोगों का समर्थन मिला है।
केरल, महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्रियों को सर्वेक्षण में क्रमश: चौथा, पांटवा और छठा स्थान मिला है।
पश्चिम बंगाल में जल्द ही चुनाव होने वाले हैं। वहां की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की लोकप्रियता 52 प्रतिशत समर्थन के साथ बढ़ रही है। हालांकि, जल्द ही चुनावी समर में जा रहे एक अन्य राज्य तमलिनाडु में मुख्यमंत्री के. पलानीस्वामी को केवल 30 प्रतिशत लोगों का सणर्थन मिला और वह इस सूची में 19 वें स्थान पर हैं।
देश भर में 30,000 से अधिक उत्तरदाताओं के बीच यह सर्वेक्षण किया गया। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 16 जनवरी| प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का करिश्मा पूरे देश के अधिकांश राज्यों में बरकरार है, जिसमें 44.55 प्रतिशत लोग उनका समर्थन कर रहे हैं। ओडिशा, गोवा और तेलंगाना इस चार्ट में शीर्ष पर हैं। आईएएनएस सी-वोटर स्टेट ऑफ द नेशन 2021 सर्वे में यह खुलासा हुआ है।
यह सर्वेक्षण देश भर के 30,000 से अधिक उत्तरदाताओं के बीच किया गया था, जिसमें सभी 543 लोकसभा क्षेत्र शामिल हैं।
सर्वेक्षण में दावा किया गया है कि मोदी का करिश्मा अभी भी कई राज्यों में बरकरार है, जिसमें ओडिशा के लोग उनका सबसे अधिक समर्थन कर रहे हैं, इसके बाद गोवा और तेलंगाना हैं।
इसमें खुलासा हुआ कि ओडिशा में 78.05 प्रतिशत लोग मोदी के काम से बहुत संतुष्ट हैं, जबकि 14.03 प्रतिशत लोग कुछ हद तक प्रधानमंत्री के प्रदर्शन से संतुष्ट हैं, और 7.73 प्रतिशत लोग बिल्कुल भी संतुष्ट नहीं हैं। राज्य में मोदी को विशुद्ध रूप से 84.35 प्रतिशत समर्थन मिला।
इसी तरह, गोवा और तेलंगाना में भी मोदी का आकर्षण क्रमश: 80.35 प्रतिशत और 72.03 प्रतिशत के विशुद्ध समर्थन के साथ बरकरार है। उत्तराखंड में मोदी को 45.77 प्रतिशत लोगों का समर्थन मिला।
हालांकि, पंजाब में लोग प्रधानमंत्री के काम से कम से कम संतुष्ट हैं। सर्वेक्षण में कहा गया है कि पंजाब में 20.75 प्रतिशत लोग मोदी से बहुत संतुष्ट हैं, जबकि 14.7 कुछ हद तक संतुष्ट हैं और 63.28 प्रतिशत लोग बिल्कुल संतुष्ट नहीं हैं। पंजाब में मोदी को विशुद्ध रूप से 27.83 प्रतिशत लोगों का समर्थन मिला।
तमिलनाडु में, मोदी की विशुद्ध स्वीकृति केवल 3.1 प्रतिशत है जिसमें केवल 12.59 प्रतिशत लोगों ने कहा कि वे प्रधानमंत्री के प्रदर्शन से संतुष्ट हैं।
केंद्र शासित प्रदेशों में, प्रधानमंत्री को विशुद्ध रूप से 31.99 प्रतिशत का समर्थन मिला।
भाजपा शासित उत्तर प्रदेश में, मोदी को 23.48 प्रतिशत समर्थन मिला है, 45.56 प्रतिशत ने कहा कि कहा कि वे उनसे बहुत संतुष्ट हैं, जबकि 15.89 कुछ हद तक संतुष्ट हैं और 37.97 प्रतिशत लोग बिल्कुल संतुष्ट नहीं हैं।
केरल में, मोदी को विशुद्ध रूप से 21.84 प्रतिशत लोगों का समर्थन हासिल है, जिसमें 33.2 प्रतिशत ने कहा कि वे प्रधानमंत्री के प्रदर्शन से बहुत संतुष्ट हैं और 27.72 प्रतिशत ने कहा कि वे कुछ हद तक संतुष्ट हैं। केरल में 39.05 प्रतिशत लोगों ने कहा कि वे प्रधानमंत्री द्वारा किए गए कार्यों से संतुष्ट नहीं हैं। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 16 जनवरी| आईएएनएस सी-वोटर स्टेट ऑफ द नेशन 2021 के सर्वे में सामने आया है कि देश में सबसे अच्छा प्रदर्शन उन राज्यों ने किया है, जहां ना तो एनडीए की सरकार है और ना ही कांग्रेस की। संतुष्टि के स्तर में ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक 78 प्रतिशत अप्रूवल रेटिंग के साथ इस सूची में टॉप पर हैं। वहीं इसके बाद दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल 77 प्रतिशत के साथ दूसरे नंबर पर हैं।
सबसे हैरानी की बात यह है कि कृषि कानूनों के विरोध की सफलता का श्रेय भले ही पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह को दिया जा रहा है लेकिन उन्हें बहुत ही कम महज 9 प्रतिशत की अप्रूवल रेटिंग मिली है।
कांग्रेस शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने अच्छा प्रदर्शन किया है। इसमें छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को संतुष्टि तालिका में सबसे अधिक 55 प्रतिशत से अधिक अप्रूवल रेटिंग मिली है।
सबसे अच्छे मुख्यमंत्री की इस दौड़ में भाजपा शासित राज्यों-गोवा, हरियाणा और उत्तराखंड के मुख्यमंत्री ऐसे हैं जिनको संतुष्टि के स्तर पर मिली अप्रूवल रेटिंग के आंकड़े एक अंक के हैं। उत्तराखंड के त्रिवेंद्र सिंह रावत को बहुत कम 0.41 प्रतिशत रेटिंग मिली, वहीं हरियाणा के मनोहर लाल खट्टर को 8.2 प्रतिशत और गोवा के प्रमोद सावंत को केवल 4.9 प्रतिशत रेटिंग मिली।
दूसरी ओर केरल और आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्रियों ने संतुष्टि के पैमाने पर बहुत अच्छा प्रदर्शन किया और दोनों ने 60 प्रतिशत से अधिक का स्कोर किया। केरल में सीपीआई (एम) के नेतृत्व वाले वाम लोकतांत्रिक मोर्चे के पिनाराई विजयन का शासन है और आंध्र प्रदेश में वाईएसआर कांग्रेस पार्टी के वाई.एस.जगन मोहन रेड्डी की सरकार है।
हैरानी की बात है कि तेलंगाना के मुख्यमंत्री के.चंद्रशेखर राव ने अच्छा प्रदर्शन नहीं किया है और उनकी अप्रूवल रेटिंग 22 प्रतिशत है। जबकि वह बहुमत के साथ सरकार में आए और स्थानीय निकाय चुनावों में भी उन्होंने अच्छी टक्कर दी।
एक और आश्चर्य तृणमूल कांग्रेस की ममता बनर्जी लेकर आई हैं। चुनावों के बेहद करीब पश्चिम बंगाल में वे अपना जलवा कायम रखे हुए हैं। भले ही वह सूची में टॉप पर नहीं है लेकिन उन्हें संतुष्टि के स्तर पर 52 प्रतिशत की अप्रूवल रेटिंग मिली है। तीसरे कार्यकाल के लिए लड़ने को तैयार बनर्जी को भाजपा कड़ी टक्कर दे रही है।
बीजेपी के एकमात्र मुख्यमंत्री जो लोकप्रियता और संतुष्टि चार्ट पर पकड़ बनाए हुए हैं, वो हैं मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान। संतुष्टि तालिका में वे 50 प्रतिशत का आंकड़ा छूने में सफल रहे हैं, जबकि भाजपा का अन्य कोई मुख्यमंत्री ऐसा नहीं कर पाया।
सबसे ज्यादा चौंकाने वाले नतीजे तो उत्तर प्रदेश में मिले, जहां भाजपा के पोस्टर बॉय योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री हैं। वे लॉकडाउन की पूरी अवधि के दौरान कानून और व्यवस्था बनाए रखने में सक्षम रहे। वे अभी भी बहुत अच्छी स्थिति में नजर आते हैं लेकिन सर्वे में उन्हें काफी कम केवल 35 प्रतिशत अप्रूवल रेटिंग ही मिली। जबकि केजरीवाल और पटनायक उनसे दोगुनी रेटिंग पाने में सफल रहे।
यहां तक कि हाई-प्रोफाइल मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को भी बिहार में 36 प्रतिशत रेटिंग ही मिली, जबकि उन्हें बिहार में 'सुशासन कुमार' के रूप में जाना जाता था।
यह सर्वे देश की सभी 543 सीटों के 30 हजार से अधिक लोगों के बीच सर्वेक्षण किया गया है। (आईएएनएस)
रनवीर सिंह
शिमला, 16 जनवरी। हिमाचल प्रदेश में फर्जी डिग्री मामले में फंसी एपीजी यूनिवर्सिटी के खिलाफ सीआईडी ने अब जांच के दायरे को बढ़ा दिया है. एक हफ्ते से ज्यादा समय हो गया है और सीआईडी की टीम जांच के लिए राज्य से बाहर है. शुरूआती दौर में दिल्ली में दबिश देने के बाद जांच टीम ने यूपी का रूख किया है. सूत्रों के अनुसार, जांच टीम ने उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर और अलीगढ़ में छानबीन की है. जिन छात्रों को डिग्रियां दी हई हैं, उस संबंध में तथ्य खंगाले जा रहे हैं और पूछताछ भी की जा रही है.
सीएम ने लिया फीडबैक
जानकारी के अनुसार यूपी के बाद टीम फिर से दिल्ली में डेरा जमाएगी. जांच को लेकर मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने भी फीडबैक लिया है. 13 जनवरी को सीएम ने सीआईडी के एडीजीपी एन. वेणुगोपाल से अब तक की जांच के बारे में फीडबैक लिया है. इस बाबत किसी अधिकारी की तरफ से कोई बयान नहीं आया है, हालांकि एन.वेणुगोपाल ने बीते हफ्ते कहा था कि जांच को लेकर डीजीपी संजय कुंडू ही जानकारी देंगे.
इन पहलूओं पर जांच
सूत्रों की माने तो 4 सदस्यीय टीम यूनिवर्सिटी के पूर्व छात्रों से पूछताछ कर रही है. एलएलबी के शैक्षणक सत्र 2014-17 के दौरान जिन छात्रों को डिग्रियां दी गई हैं, उसको लेकर छानबीन की जा रही है. सीआईडी को शक है कि ज्यादातर छात्रों ने केवल कागजों में एडमिश्न ली थी और क्लास में नजर नहीं आए. गत दिनों शिमला में सीआईडी ने एक कोर्स के छात्र से पूछताछ की थी. उससे पूछा गया था कि दिल्ली क्षेत्र के जिन छात्रों को डिग्रियां दी गई हैं, क्या वो छात्र उसके क्लासमेट हैं या नहीं. छात्र ने उन्हें पहचानने से इनकार किया था. सीआईडी ने एक प्रशनावली तैयार की है, उन छात्रों से कोर्स ,क्लासमेट और टीचर्स से लेकर अन्य तमाम तरह के प्रश्न पूछे जाएंगे, ताकि इस बात का पता चल सके कि उन्होंने सही मायनों में यहां पर पढ़ाई की है या फिर फर्जी तरीके से डिग्री हासिल की है. मुख्यत: बी.टेक,लॉ और बीबीए कोर्स के पासऑउट छात्रों से पूछताछ की संभावना है.
कई डिग्रियां फर्जी
सूत्रों ने पहले खुलासा किया था कि सीआईडी जांच में अब तक एपीजी यूनिवर्सिटी की लगभग 45 डिग्रियां फर्जी पाई गई हैं. जांच जारी है और फर्जी डिग्रियों संख्या बढ़ सकती है. बीएएलएलबी, एलएलबी और बीबीए कोर्सिज की डिग्रियां फर्जी होने की सूचना है. बीएएलएलबी के 2013 बैच की 2, एलएलबी के 2014 की 26 और इसी बैच में दो छात्रों की फर्जी एडमिशन भी सामने आई है. इसके अलावा 2015 बैच के बीबीए कोर्स की 11 डिग्री फर्जी पाई गई हैं. इसके अलावा बीटेक,एमबीए,फैशन डिजाइनिंग,बीएचएम समेत अन्य कई कोर्सों की जांच भी जारी है. अब दिल्ली और यूपी से कुछ पुख्ता सबुत मिलने की उम्मीद है.
ई-मेल के जरिए गवाही
जानकारी ये भी है कि इस मामले में जो एक गवाह है,उसने ई-मेल के जरिए अपना बयान दर्ज किया था. ये गवाह एपीजी विश्वविद्यालय का पूर्व शिक्षक है और अभी राज्य से बाहर होने के चलते ये बयान ई-मेल के जरिए दिया गया था.
2 मई 2020 को हुई थी FIR
बता दें कि इस मामले में एपीजी विवि पर फर्जी डिग्रियां बनाने और बेचने का आरोप है. एपीजी के खिलाफ सीआईडी पुलिस स्टेशन भराड़ी में 2 मई 2020 को FIR दर्ज हुई है. IPC की धारा 465, 467, 471, 120B और 201 के तहत मामला दर्ज किया गया है, जिस पर जांच चल रही है.
एक पूर्व छात्र के बयान भी दर्ज
सूत्रो के अनुसार, एपीजी विवि के एक पूर्व छात्र ने सीआईडी के पास अपने बयान दर्ज करवाए थे. एपीजी ने जो रिकार्ड दिया है, उसके अनुसार 2014-2017 सत्र में एलएलबी कोर्स में यूनिवर्सिटी की ओर से 33 डिग्रियां दी गई, लेकिन इस पूर्व छात्र के बयान के अनुसार, उसके साथ केवल 9 छात्र ही पढ़े हैं. ये पूर्व छात्र वर्तमान में नौकरी करता है और इसने शैक्षिणक सत्र 2014-17 में एलएलबी का कोर्स किया है. छात्र के बयान सीआईडी थाना में दर्ज करवाए गए हैं.
सूरत, 16 जनवरी। 10वीं क्लास की एक छात्रा ने आत्महत्या कर ली है. कहा जा रहा है कि माता-पिता के डांटने के बाद बच्ची ने ये कदम उठाया. दरअसल परेंटेस ने उन्हें पढ़ाई न करने को लेकर डांट लगाई थी. छात्रा के इस कदम से आसपास के लोग बेहद हैरान हैं. फिलहाल पुलिस ने मामले की जांच शुरू कर दी है.
मेहसाणा के मूल निवासी प्रकाशभाई पटेल अपने परिवार के साथ डिंडोली के आलोक रेजीडेंसी क्षेत्र में रहते हैं. गुरुवार को परिवार के लोग घर से बाहर छत पर थे. तभी उनकी बेटी ने अचानक एक जहरीली दवा खा ली. घटना की जानकारी मिलते ही परिवार के लोग उन्हें अस्पताल ले कर गए. लेकिन अस्पताल पहुंचते ही छात्रा की मौत हो गई.
क्या है पूरा मामला
मृतक बेटी के पिता फोटो कॉपी का बिजनेस करते हैं. जबकि मां एक गृहिणी है. जानकारी के मुताबिक मां ने अपनी बेटी की शिक्षक की मौजूदगी में होमवर्क न करने के लिए फटकार लगाई. इस घटना के बाद, नाराज बेटी इतनी परेशान हो गई कि उसने आत्महत्या करने का फैसला कर लिया.
जांच शुरू
जानकारी के मुताबिक पूरा परिवार छत पर पतंग उड़ा रहा था. तभी छात्रा ने घर में कोई ज़हरीली दवा पी ली. घटना के बाद पूरा परिवार शोक में डूबा है. जबकि डिंडोली पुलिस ने आगे की जांच शुरू कर दी है.
एनडीटीवी की पूर्व पत्रकार निधि राज़दान शुक्रवार को सोशल मीडिया से लेकर मेनस्ट्रीम मीडिया तक हर जगह सुर्ख़ियों में हैं.
निधि के सुर्ख़ियाँ बटोरने की वजह थी उनका एक ट्वीट.
शुक्रवार को ट्वीट कर निधि ने इस बात की जानकारी दी कि उनके साथ एक ऑनलाइन धोखा हुआ है जिसके तहत उन्हें हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में एसोसिएट प्रोफ़ेसर की नौकरी की पेशकश की गई थी.
लेकिन वो सब कुछ एक धोखा था. उन्होंने उसी नौकरी के लिए एनडीटीवी से इस्तीफ़ा भी दे दिया था.
उन्होंने अपने ट्वीट में लिखा था, "मैं एक बहुत ही गंभीर फ़िशिंग हमले का शिकार हुई हूँ."
तो आख़िर क्या होती है फ़िशिंग?
फ़िशिंग एक तरह का ऑनलाइन फ़्रॉड है जिसके ज़रिए लोगों को अपनी निजी जानकारियां जैसे बैंक डिटेल्स या पासवर्ड शेयर करने के लिए कहा जाता है.
इस जालसाज़ी में शामिल लोग ख़ुद को बिल्कुल सही और प्रतिष्ठित कंपनी का प्रतिनिधित्व बताते हैं और सामने वाले को अपनी बातों का यक़ीन दिलाकर उनसे उनकी निजी जानकारियां हासिल कर लेते हैं.
इस तरह के ऑनलाइन हमलावर आपको टेक्स्ट मैसेज भेजते हैं, आपसे मेल के ज़रिए संपर्क करते हैं या फिर सीधे आपको फ़ोन भी कर सकते हैं.
फ़िशिंग के शिकार लोगों को लगता है कि मैसेज, मेल या फ़ोन कॉल उनके ही बैंक या सर्विस प्रोवाइडर की तरफ़ से आया है.
अक्सर इसके शिकार लोगों को कहा जाता है कि उन्हें अपने बैंक खाते के एक्टिवेशन या सिक्योरिटी चेक के लिए कुछ जानकारियाँ देनी होंगी.
उन्हें कहा जाता है कि अगर आपने वो जानकारियाँ नहीं दीं तो आपका खाता बंद किया जा सकता है.
ज़्यादातर मामलों में इस धोखाधड़ी से अंजान लोग अपने निजी डिटेल्स शेयर कर देते हैं.
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उन्हें उस वेबसाइट में जाकर अपनी निजी जानकारियां डालने के लिए कहा जाता है.
जैसे ही निजी जानकारी लोग डालते हैं, साइबर अपराधी उनका इस्तेमाल करके आपको आसानी से लूट लेते हैं. उन फ़ेक वेबसाइट्स में मॉलवेयर इंस्टॉल किया रहता है जो आपको निजी जानकारियों को चुरा भी लेता है.
लोगों को धोखा देकर उनसे पासवर्ड और इस तरह की निजी जानकारियां हासिल करना अभी भी दुनिया भर में साइबर अपराधियों का यह सबसे आसान तरीक़ा है.
ऑनलाइन जालसाज़ी से कैसे बचें?
लेकिन आपके पास इस तरह के फ़र्ज़ीवाड़े से बचने का भी हमेशा रास्ता रहता है.
अनजान जगहों से आने वाले फ़ोन कॉल, मेल और मैसेज से हमेशा सतर्क रहें ख़ासकर उन हालात में जब आपसे संपर्क करने वाला आपको आपके नाम से संबोधित नहीं करता है.
बड़ी कंपनियां कभी भी आप से आपकी निजी जानकारियां फ़ोन या मेल के ज़रिए नहीं मांगती हैं.
उन मेल और टेक्स्ट मैसेज से और भी सतर्क रहें जिसमें आपको कोई लिंक क्लिक करने के लिए कहा जाता है.
लेकिन अगर आपको पूरा यक़ीन नहीं है कि आपको मेल भेजने वाला या फ़ोन करने वाला असली और वास्तविक है या नहीं तो सबसे बेहतर है कि आप कंपनी को ख़ुद फ़ोन करें और इसके लिए फ़ोन नंबर भी वही इस्तेमाल करें जो कि बैंक स्टेटमेंट, फ़ोन बिल या डेबिट कार्ड के पीछे लिखा हो. (bbc)
साल की शुरुआत से ही केरल के वायनाड जिले के काम्मना गांव में एक अजीब लेकिन परिचित भय व्याप्त है। यह भय कुछ-कुछ कोविड-19 जैसा ही है। इस बार वायरस भी अलग है और होस्ट (वायरस का शिकार) भी।
कम्मना के रहने वाले साजी जोसेफ कहते हैं, '' मुझे नहीं पता कि मेरी पांच में से तीन जर्सी गायों को ये बीमारी कब और कैसे हुई। जनवरी के पहले सप्ताह में अचानक तेज बुखार के साथ उनके शरीर पर गांठें दिखाई देने लगीं। एक सप्ताह के भीतर, वे कमजोर हो गए। कम दूध उत्पादन से मुझे रोजाना 700 रुपये का नुकसान हो रहा है।''
गांव के अन्य 200 डेयरी किसान भी इसी तरह की समस्या से जूझ रहे हैं। यहां तक कि संक्रमित बैल और भैंस भी गाड़ियां खींचने या कृषि कार्य करने में असमर्थ हैं।
गांठदार त्वचा रोग (लम्पी स्किन डिजीज: एलएसडी)
स्थानीय पशु चिकित्सकों ने इसे गांठदार त्वचा रोग (एलएसडी) के रूप में पहचाना है। यह एक वायरल बीमारी है, जो मवेशियों में लंबे समय तक अस्वस्थता का कारण बनती है। यह पूरे शरीर में दो से पांच सेंटीमीटर व्यास के नोड्यूल (गांठ) के रूप में पनपता है। खास कर, सिर, गर्दन, लिंब्स और जननांगों के आसपास।
गांठ धीरे-धीरे बड़े और गहरे घाव बन जाते है। एलएसडी वायरस मच्छरों और मक्खियों जैसे खून चूसने वाले कीड़ों द्वारा आसानी से फैलता है। यह लार, दूषित पानी और भोजन के माध्यम से भी फैलता है। पशु चिकित्सकों का कहना है कि इस बीमारी का अभी कोई इलाज उपलब्ध नहीं है। भारत में यह पहली बार देखा जा रहा है।
अफ्रीका से भारत
ऐतिहासिक रूप से, एलएसडी अफ्रीका तक ही सीमित रहा है, जहां यह पहली बार 1929 में खोजा गया था। लेकिन हाल के वर्षों में यह अन्य देशों में फैला है। 2015 में तुर्की और ग्रीस जबकि 2016 में इसने बाल्कन, कॉकेशियान देशों और रूस में तबाही मचाई।
जुलाई 2019 में बांग्लादेश पहुंचने के बाद से, यह एशियाई देशों में फैल रहा है। फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गेनाइजेशन (एफएओ) के एक जोखिम मूल्यांकन रिपोर्ट के अनुसार, यह बीमारी 2020 के अंत तक सात एशियाई देशों, चीन, भारत, नेपाल, ताइवान, भूटान, वियतनाम और हांगकांग में फैल चुकी है। इसके अलावा, दक्षिण-पूर्व एशिया के कम से कम 23 देशों में एलएसडी का खतरा मंडरा रहा है।
भारत में दुनिया के सबसे अधिक, 303 मिलियन मवेशी हैं. यहां यह बीमारी सिर्फ 16 महीनों के भीतर 15 राज्यों में फैल चुकी है. अगस्त 2019 में, ओडिशा से एलएसडी का पहला संक्रमण रिपोर्ट हुआ था। अध्ययन से पता चलता है कि देश में वायरस पहले से ही म्यूटेट हो सकता है। जबलपुर में वेटरनरी साइंस एनिमल हसबेंड्री कॉलेज की असिस्टेंट प्रोफेसर वंदना गुप्ता ने पाया है कि वायरस का यह स्वरूप ओडिशा में पाए गए पहले वायरस के स्वरूप से अलग है।
वह चेतावनी देती है, “हमें तत्काल रोकथाम की रणनीति अपनाने की आवश्यकता है। यह बीमारी अन्य देशों में कैसे व्यवहार करती है, इसकी तुलना में यहां अलग तरीके से व्यवहार कर सकती है। चूंकि एलएसडी वायरस शीप और गोट पॉक्स से संबंधित है, हमें यह समझने की जरूरत है कि क्या यह भेड़ और बकरियों में भी फैल सकता है।”
प्रसार पर लापरवाही
एलएसडी की संक्रामक प्रकृति और अर्थव्यवस्था पर इसके बुरे प्रभाव, जैसे दूध उत्पादन में कमी, गर्भपात और बांझपन आदि को देखते हुए, वर्ल्ड ऑर्गेनाइजेशन फॉर एनीमल हेल्थ (ओआईई) ने इसे नोटीफाएबल डिजीज (कानूनन सरकारी अधिकारियों तक इसकी रिपोर्ट करना) घोषित किया है। इसका मतलब है कि किसी देश को रोग के किसी भी प्रकोप के बारे में ओआईई को सूचित करना होगा, ताकि उसके प्रसार को रोका जा सके। फिर भी, देश में एलएसडी के वास्तविक प्रसार या किसानों के आर्थिक नुकसान को ले कर पशुपालन और डेयरी विभाग (डीएएचडी) के पास कोई वास्तविक आंकड़ा उपलब्ध नहीं है।
अनुमान बताते हैं कि दिसंबर, 2019 में सिर्फ केरल में कम से कम 5,000 मवेशी एलएसडी संक्रमण के शिकार हुए। जब डाउन टू अर्थ (डीटीई) ने डीएएचडी में पशुधन स्वास्थ्य के प्रभारी विजय कुमार से संपर्क किया, तो उन्होंने कहा, "कुल पुष्टि हुए पॉजिटिव केसेज में से 30 से 40 प्रति इस बीमारी से प्रभावित अवस्था में हैं। चूंकि यह अन्य त्वचा रोगों से मिलता जुलता है, इसलिए लोग समझ नहीं पाते कि क्या ये वाकई लम्पी स्किन डिजीज है।“
केरल में एलएसडी प्रसार को नियंत्रित करने के लिए सक्रिय कदम उठाए जा रहे हैं। राज्य के डेयरी विकास मंत्री के राजू ने डीटीई को बताया कि सरकार ने सभी जिलों में मवेशियों की लगातार स्वास्थ्य जांच सुनिश्चित की है और बीमारी के उन्मूलन पर ध्यान केंद्रित कर रही है। हालांकि, के राजू कहते हैं कि असल चुनौती भारत में एलएसडी के खिलाफ किसी विशिष्ट टीका का नहीं होना है। पशु चिकित्सक बस महामारी प्रोटोकॉल का पालन कर रहे हैं।
कम्मना में डेयरी किसानों से पशु-शेड में कीटाणुनाशक का छिड़काव दिन में कई बार करने को कहा गया है। मृत जानवर को मिट्टी में गाड़ने की सलाह दी गई है। साथ ही, बीमारी के मामूली लक्षण दिखने पर भी पशु को क्वरंटाइन में रखने की सलाह दी गई है।
डीएएचडी में पशुपालन आयुक्त, प्रवीण मलिक कहते हैं, "भारत में यह बीमारी कहां से शुरु हुई, इसे ले कर हम निश्चित नहीं हैं। संभवत: ये प्रसार सीमा पार से अवैध तरीके से लाये जाने वाले मवेशियों के माध्यम से हुआ हो। हमने नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वेटरीनरी एपिडेमियोलॉजी एंड डिजीज इंफॉर्मेटिक्स से इस बीमारी के फैलने में योगदान देने वाले सभी कारकों का अध्ययन करने का अनुरोध किया है।"
एफएओ के एक स्टडी के मुताबिक: “बांग्लादेश में पशु प्रोटीन की आपूर्ति और मांग के बीच अंतर और भारत में पशुधन की कीमतों में असमानता, को देखते हुए पशुओं के अनौपचारिक निर्यात की घटनाएं देखी गई है। भारत से नेपाल के कई जिलों में पशु भेजे जाते है, खास कर बिहार की सीमा से पैदल आ-जा कर भी ये काम किया जाता है। संभवतः यह भी संक्रमण फैलने का कारण बना हो।”
बहरहाल, जो भी कारण हो, विश्लेषकों का कहना है कि भारत से बीमारी का उन्मूलन आसान नहीं होगा।
तमिलनाडु वेटनरी एंड एनीमल साइंसेज यूनिवर्सिटी, चेन्नई के प्रोफेसर पी. सेल्वाराज कहते है कि अगर शुरुआती कुछ दिनों के भीतर पशु का इलाज किया जाए तो इस बीमारी की जांच की जा सकती है। लेकिन ज्यादातर लोग मवेशियों में त्वचा रोगों को महत्व नहीं देते हैं। वे आगे कहते हैं कि काटने वाली मक्खियों, मच्छरों जैसे कीट भारत की उष्णकटिबंधीय जलवायु परिस्थितियों में वैसे भी अधिक पाए जाते हैं। बेमौसम बारिश और बाढ़ इनके विकास के लिए अनुकूल वातावरण प्रदान करेंगे, जिससे इस संक्रामक रोग के वाहक बने वैक्टर जल्द खत्म नहीं किए जा सकेंगे।
जाहिर है, इसका देश पर विनाशकारी प्रभाव पड़ेगा, जहां अधिकांश डेयरी किसान या तो भूमिहीन हैं या सीमांत भूमिधारक हैं और दूध उनके लिए सबसे सस्ते प्रोटीन स्रोत में से एक है। (downtoearth)
गौरव गुलमोहर
उत्तर प्रदेश के जिला प्रतापगढ़-रायबरेली सीमा से गुजरने वाली शारदा सहायक नहर में स्तनधारी गंगा डॉल्फिन को धारदार हथियार और लाठी-डंडों से मारने का वीभत्स वीडियो ने देशभर के लोगों को परेशान कर दिया था। लेकिन जब डाउन टू अर्थ ने पड़ताल किया तो पाया कि घटना में मारी गई डॉल्फिन गर्भवती थी।
डाउन टू अर्थ ने 8 जनवरी को अपनी रिपोर्ट में क्षेत्रीय वन अधिकारी और नवाबगंज थाना प्रभारी दोनों से बात की थी, लेकिन दोनों अधिकारियों ने यह नहीं बताया था कि डॉल्फिन गर्भवती थी।
ग्राम प्रधान मनोज कुमार सिंह ने डाउन टू अर्थ को बताया कि उनके पास एक फोटो है, उसमें डॉल्फिन और छोटे डॉल्फिन का शव नजर आ रहा है। यह फोटो 31 दिसम्बर को मारी गई डॉल्फिन के पोस्टमॉर्टम के समय का है। डॉल्फिन और उसके बच्चे के शव के साथ वाली फोटो पुलिस विभाग में भी कुछ लोगों के पास मौजूद है।
मामले की सच्चाई जानने के लिए हमने दुबारा क्षेत्रीय वन अधिकारी आर. के. सिंह से बात की। वे कहते हैं कि "गांव वाले ऐसा बता रहे हैं कि दूसरी डॉल्फिन भी थी लेकिन उसका कोई सिग्नल ट्रेस नहीं हो रहा है। बाकी वहां पानी बहुत कम था, मौके पर दूसरी डॉल्फिन होने की गुंजाइश ही नहीं थी।"
डाउन टू अर्थ ने आर. के. सिंह से 31 दिसम्बर को मारी गई डॉल्फिन के गर्भवती होने की बात पूछी तो उन्होंने जानकारी नहीं होने की बात की। लेकिन पोस्टमार्टम स्थल पर तो आप रहे होंगे? इस सवाल के जवाब में वे कहते हैं कि "पोस्टमॉर्टम के समय जिला वन अधिकारी, कुछ एनजीओ और पशु डॉक्टर भी मौजूद थे। हम इतनी गहराई से उसके (डॉल्फिन) के पेट में नहीं झांक रहे थे। लेकिन डॉक्टर ने जो देखा होगा उसे लिखा होगा। हमें ज्यादा पता नहीं है। मैं तो जेसीबी लाकर, गड्ढा खुदवा कर दफन करने का इंतजाम कर रहा था।"
नवाबगंज थाना क्षेत्र के वन दरोगा भइया रामपांडेय ने भी डॉल्फिन के गर्भवती होने की बात पर कॉल काट दिया। वहीं, नवाबगंज थाना प्रभारी ने बताया कि "इसके बारे में हमको असलियित नहीं पता है। इसके बारे में फारेस्ट वाले बता पाएंगे। डेड बॉडी हमने वन विभाग को सौंप दी थी, वे ले गए। अभी पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी हमें नहीं मिली है। हम वन विभाग वालों से रिपोर्ट मांगेंगे।"
एक वाइल्ड लाइफ साइंटिस्ट ने मामला शासन-प्रशासन से जुड़ा होने के कारण अपना नाम न छापने की शर्त पर बताया, "एक गर्भवती डॉल्फिन को मारने वालों पर कोई अलग से धारा नहीं जुड़ेगी, लेकिन ऐसी स्थिति में क्राइम की इंटेसिटी बढ़ जाती है। यह इस बात पर निर्भर करता है कि वन विभाग उसका केस किस तरह बनाते हैं। चूंकि डॉल्फिन शेड्यूल-वन का जानवर है और राष्ट्रीय जलीय जीव भी है तो गम्भीर अपराध की श्रेणी में आता है। वैसे सामान्यतः शेड्यूल-वन की श्रेणी के जानवरों को मारने पर सात साल की न्यूनतम सजा होती ही है।"
भारत सरकार ने 'गंगा डॉल्फिन' को राष्ट्रीय जलीय जीव के रूप में मान्यता दी है। गंगा में पाई जाने वाली डॉल्फिन को अंतरराष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (आईयूसीएन) द्वारा लुप्तप्राय घोषित किया गया है। गंगा डॉल्फिन शेड्यूल-वन की श्रेणी का जलीय जीव है। शेड्यूल-वन में वही पशु-पक्षी, जीव-जंतु रखे जाते हैं जो विलुप्तप्राय होते हैं। इन जानवरों के संरक्षण के लिए मारने वालों पर गम्भीर धाराएं लागू होती हैं।
पर्यावरण पारिस्थितिकी (इको-सिस्टम) में सन्तुलन बनाये रखने में डॉल्फिन की अहम भूमिका होती है। डॉल्फिन पर हुए अध्ययन में पता चलता है कि डॉल्फिन अन्य जलीय जीवों की अपेक्षा अधिक शीघ्र सीखने व इंसानों से संवाद करने वाला जलीय जीव होता है। (downtoearth)
आने वाले दिनों में सफेद कपास की बजाय रंगीन कपास उगा करेंगी। फाइल फोटो: सलाहुद्दीनआने वाले दिनों में सफेद कपास की बजाय रंगीन कपास उगा करेंगी। फाइल फोटो: सलाहुद्दीन आने वाले दिनों में सफेद कपास की बजाय रंगीन कपास उगा करेंगी। फाइल फोटो: सलाहुद्दीन
अगर आप ये सोचते हैं कि प्राकृतिक कपास केवल सफेद रंग का होता है, तो ये खबर आपको आश्चर्य में डाल सकती है। भारत रंगीन कपास की व्यावसायिक खेती के लिए इसके बीजों की प्रजाति जारी करने से कुछ ही महीने दूर है। शोधकर्ता 16301डीबी और डीडीसीसी1 का फार्म ट्रायल कर रहे हैं। इन प्रजातियों से भूरे रंग के कपास का उत्पादन होगा।
इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चरल रिसर्च (आईसीएआर) के कपास पर ऑल इंडिया को-ऑर्डिनेटेड रिसर्च प्रोजेक्ट (एआईसीआरपी-कॉटन), कोयम्बटूर का नेतृत्व कर रहे एएच प्रकाश कहते हैं, "इस साल 21 अप्रैल को आईसीएआर की कमेटी की वार्षिक बैठक होगी, जिसमें इस कपास की व्यवहार्यता का मूल्यांकन किया जाएगा और इसके बाद इसकी प्रजातियों को व्यावसायिक खेती के लिए जारी किया जाएगा।" दूसरे संस्थानों और कृषि विश्वविद्यालयों के साथ मिलकर ये एजेंसी सुनिश्चित कर रही है कि इस कपास के उत्पादन में निरंतरता बनी रहे।
कपास की 16301डीबी प्रजाति को आईसीएआर की सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ कॉटन रिसर्च (सीआईसीआर), नागपुर ने विकसित किया है। दुनियाभर में सबसे ज्यादा उगाये जा रहे गोसोपियम हरसटम की पांच रंगीन कपास की प्रजातियों के मूल्यांकन के बाद इस कपास की प्रजाति विकसित की गई है।
वहीं, डीडीसीसी-1 प्रजाति को एग्रीकल्चरल साइंस यूनिवर्सिटी, धारवाड़ (कर्नाटक) ने विकसित किया है। भारत और अन्य उपोष्णकटिबंधीय देशों में पाई जानेवाली जी अरबोरियम प्रजाति के 6 रंगीन कपास के मूल्यांकन के बाद ये प्रजाति विकसित की गई है। प्रकाश ने कहा कि 15 अन्य रंगीन कपास की प्रजातियों को लेकर परीक्षण चल रहा है और इनके परिणाम अलग-अलग चरणों में हैं।
रंगीन कपास को दोबारा पुनर्जीवित करने में कामयाबी एआईसीआरपी की तीन दशकों की मेहनत का परिणाम है। भारत में 5000 साल पहले रंगीन कपास का इस्तेमाल होता था। विज्ञानियों का मानना है कि सिंधु घाटी सभ्यता में रंगीन कपास का इस्तेमाल किया जाता था। कृषि विज्ञान से जुड़ा वैदिक कालीन ग्रंथ वृक्ष आयुर्वेद में भी रंगीन कपास का जिक्र मिलता है। सिंधु घाटी सभ्यता में मुख्य तौर पर गहरा भूरा और भूरा से खाकी, सफेद और हरे रंग के कपास का इस्तेमाल किया जाता था।
अंग्रेजों के वक्त और आजादी से कुछ साल पहले तक तटीय आंध्रप्रदेश के बारिश वाले इलाकों में जी-अरबोरियम कपास की दो प्रजातियां कोकानाडा1 और कोकनाडा2 उगाई जाती थीं तथा भूरे रेशम को प्रीमियम उत्पाद के रूप में जापान निर्यात किया जाता था। उन्नीसवीं और बीसवीं सदी में असम में बादामी भूरा कपास और जी-हरबैसियम प्रजाति के हल्के धूसर कुमता कपास की खेती कर्नाटक में होती थी। यहां तक कि मशहूर ढाका मुस्लिन भी पारंपरिक तौर पर जी-अरबोरियम प्रजाति के कपास के रंगीन फाइबर और सफेद कपास को मिलाकर बनाया जाता है।
इसके विपरित, अभी हर तरफ मौजूद सफेद कपास की आमद भारत में महज 100 साल पहले हुई है। लेकिन, औद्योगिक क्रांति के कारण ये कपास ख्यात हो गया। आधुनिक कपड़ा फैक्टरियों को लंबा और मजबूत धागे की जरूरत थी, जो रंगीन कपास से नहीं मिल पाया। साथ ही रासायनिक रंगाई ने भी रंगीन कपास को अप्रासंगिक बना दिया।
अभी नेशनल जीन बैंक ऑफ कॉटन ने कपास की लगभग 6000 प्रजातियों के जर्मप्लाज्म को संरक्षित कर रखा है। यहां 50 से ज्यादा रंगों के कपास की प्रजातियां हैं, जिन्हें मैक्सिको, मिस्र, पेरू, इजराइल, पूर्ववर्ती यूएसएसआर और अमेरिका से स्वदेशीय तरीके से संग्रह किया गया है। लेकिन इनमें से केवल कुछेक प्रजातियों की ही खेती अभी की जाती है और वह भी मुठ्ठीभर जनजातीय समुदाय मध्य भारत के नर्मदा बेसिन में इसे उगाते हैं।
लंबा इंतजार
विज्ञानियों का कहना है कि रंगीन कपास के अस्तित्व को बचाने का एक ही उपाय है कि इसकी प्रजातियों के जीन समूहों को सुधार कर इतना मजबूत और लंबा किया जाए कि आधुनिक टेक्सटाइल मशीनों में इसका इस्तेमाल किया जा सके। लेकिन नयी अनुवंशिक प्रजाति तैयार करने में काफी वक्त लगता है और इसकी प्रक्रिया थकाऊ है।
एआईसीआरपी के अधीन खंडवा के बीएम कृषि कॉलेज के पौधा प्रजनक देवेंद्र श्रीवास्तव बताते हैं, पहले चरण में इच्छुक विशेषताओं वाले कपास की रंगीन और सफेद प्रजातियों का चुनाव किया जाता है। इसके बाद छोटे गमलों में इनका संकरण कराया जाता है। इससे नई प्रजातियां तैयार होती है, जिनमें अलग तरह की विशेषताएं होती हैं। इनमें से कुछ विशेषताएं वांछित होती हैं और कुछ नहीं।
वांछित विशेषताओं वाली प्रजातियों के साथ यही प्रक्रिया फिर दोहराई जाती है। इसी तरह सालों तक संकरण का दौर चलता है ताकि वो प्रजाति तैयार हो सके, जिसमें सभी तरह की विशेषताएं स्थाई हो। मतलब कि वांछित विशेषताओं वाली ऐसी प्रजाति विकसित हो जाये, जिसको अगली पीढ़ी को हस्तांतरित किया जा सके।
इसका अगला चरण सामान्य तौर पर तीन वर्षों का होता है, जिसमें विज्ञानी स्थाई प्रजातियों की पैदावार, लंबाई, मजबूती और रंग की गुणवत्ता को बारीकी से जांच करते हैं। खेतों में परीक्षा इसका अंतिम चरण होता है, जिसमें कपास की इस विकसित प्रजाति को अलग-अलग जलवायु स्थिति वाले क्षेत्रों में स्थित खेतों के छोटे से हिस्से में उगाया जाता है ताकि वास्तविक दुनिया में इसके प्रदर्शन का मूल्यांकन किया जा सके।
पहला संतोषजनक रंगीन कपास केएस 94-2 था, जिसे साल 1996 में जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय खंडवा कैम्पस ने जारी किया था। बादामी भूरे रंग के कपास की प्रजाति कम उत्पादन के कारण फेल हो गई। साल 2000 में केंद्रीय कृषि मंत्रालय के कपास पर टेक्नोलॉजी मिशन के तहत कई तरह के रंगीन कपास की प्रजातियां तैयार की गईं। लेकिन किसी भी प्रजाति में वो मजबूती या लंबाई नहीं थी, जैसी कपड़ा उद्योग को चाहिए। साल 2013 में सीआईसीआर ने गहरे भूरे रंग के कपास की संकर प्रजाति एमएसएच 53 तैयार की। इसे जी हरसटम और जी बरबाडेंस के साथ दो जंगली प्रजातियों जी रैमोंडी और जी थर्बर प्रजातियों में क्रॉस ब्रीडिंग कराकर तैयार किया गया था। ऐसा संभवतः पहली बार हुआ था कि जंगली प्रजातियों के बीच क्रॉस ब्रीडिंग कराकर कपास की नई प्रजाति विकसित की गई थी। ये प्रजाति अभी तक प्रयोग के स्तर पर नहीं पहुंची है।
उद्योग के लिए तैयार
आधुनिक टेक्सटाइन उद्योग में वैसा कपास पसंद किया जा रहा है जिसके फाइबर की लम्बाई 25-29 एमएम हो। फिलहाल दो प्रजाति 16301डीबी व डीडीसीसी1 को व्यावसायिक तौर पर जारी करने के योग्य माना जा रहा है। इनके धागे की लंबाई 23-24 एमएम है, जो मीडियम कैटेगरी में आती है और हथकरघा उद्योग द्वारा इस्तेमाल किया जा सकता है। इन धागों की मजबूती 20-23 जी/टीईएक्स (प्रति 1000 मीटर में ग्राम के हिसाब से) है, जो टेक्सटाइल उद्योग के मानक के अधीन है। इसका उत्पादन भी अधिक होता है। एक हेक्टेयर में इस प्रजाति से 1200-1800 किलोग्राम कपास का उत्पादन होता है जबकि सफेद कपास का उत्पादन प्रति हेक्टेयर 466 किलोग्राम है।
हालांकि, इन प्रजातियों का सबसे अधिक फायदा ये है कि इससे पर्यावरण पर कम प्रभाव पड़ता है और इसके उत्पादन में खर्च भी कम होता है। भारत में कुल कृषि उत्पादन में जितने कीटनाशक का इस्तेमाल किया जाता है, उसका आधा हिस्सा केवल सामान्य सफेद कपास के उत्पादन में इस्तेमाल हो जाता है। इसकी तुलना में रंगीन कपास की प्रजातियां इस तरीके से तैयार की गई हैं कि वो कीड़े के हमले से बच जाती है और कम कीटनाशक की जरूरत पड़ती है।
इसके अलावा इन्हें रंगने की जरूरत या तो एकदम कम पड़ती है या बिल्कुल भी नहीं। रंगने में ज्यादा पानी और जहरीले रसायन की जरूरत पड़ती है। सबसे अहम बात कि प्राकृतिक तौर पर रंगीन कपास किसानों की अनुवंशिक रूप से संशोधित बीटी कॉटन पर निर्भरता कम करती है, जो (बीटी कपास) किसानों के लिए काफी खर्चीला साबित हुआ है और बड़े पैमाने पर कपास की खेती करने वाले देश पर इसका पर्यावरणीय प्रभाव भी पड़ता है।
अब तक रंगीन कपास को जैविक होने के बावजूद बढ़िया कीमत नहीं मिलती है। कपड़ा उद्योग में भी इसके इस्तेमाल को लेकर दिलचस्पी नजर नहीं आती है। इस प्रजाति के कपास के धागे की लम्बाई और मजबूती तो मसला है ही, मार्केट यार्ड में रंगीन कपास को स्टॉक कर रखने या अलग से बेचने के लिए विशेष सुविधा भी नहीं मिलती है।
लेकिन, उपभोक्ताओं में पर्यावरण को लेकर बढ़ती जागरूकता को देखत हुए इसकी मांग बढ़ रही है। पिछले कुछ सालों में यूरोप के कुछ देशों में प्राकृतिक रूप से रंगीन कपास की मांग बढ़ी है और अनुमान है कि हर साल 5-6 लाख गांठ की सप्लाई हो रही है। बाजार में रंगीन कपास की बढ़ती मांग से लगता है कि इसका कारोबार वापस पटरी पर लौटेगा।
"इसमें कीड़े नहीं लगते, आग नहीं लगती और ऊन की तरह मुलायम है"
हैली फॉक्स अमेरिका की कपास प्रजनक (ब्रीडर) हैं, जिन्होंने रंगीन कपास की पहली प्रजाति विकसित की है। इस कपास को मशीन में डालकर धागा बुना जा सकता है। डाउन टू अर्थ ने हैली फॉक्स से बात की-
प्राकृतिक तौर पर रंगीन कपास को लेकर आपने कब शोध शुरू किया और आपको इसकी प्रेरणा कहां से मिली?
साल 1982 में मैं एक स्वतंत्र कपास प्रजनक के साथ काम कर रही थी। उन्होंने रंगीन कपास की प्रजाति को ग्रीनहाउस में रखा था क्योंकि इनमें बीमारियों और कीड़ों से लड़ने की प्रबल क्षमता होती है। मैंने एक रंगीन कपास देखा, तो मुझे उससे धागे बनाने की इच्छा हुई। लेकिन भूरे रंग के कपास का फाइबर इतना सख्त था कि उससे धागा बुना नहीं जा सकता था। मैंने उनसे पूछा कि हमने इन प्रजातियों से ऐसे कपास क्यों नहीं उगाये, जिससे बेहतर फाइबर निकलता। इसपर उन्होंने कहा कि इसका कोई बाजार नहीं है। मैंने कहा कि फाइबर में सुधार कर हम इसका बाजार क्यों नहीं तैयार करते? उस वक्त उनकी उम्र कोई 70 साल थी और मैं 20 साल की थी। हम दोनों हंस पड़े और मैंने अपना काम शुरू किया, जो अब भी जारी है।
क्या आपके शोध से पहले रंगीन कपास अमेरिका में खेती का हिस्सा था?
हां, दरअसल शीतयुद्ध से पहले मूल रूप से अफ्रीकी गुलाम इसकी खेती करते थे। इसके बाद लुसियाना के आर्केडियन ने इसे उगाया। मेरे बॉस को ये बीज यूनाइटेड स्टेट्स डिपार्टमेंट आॅफ एग्रीकल्चर के सीड बैंक से मिला था। इस बीज को साल 1930 में अमेरिका के लुसियाना से संग्रह किया गया था। सच ये है कि यहां कुछ समय से रंगीन कपास का इस्तेमाल हो रहा था।
पेरू में रंगीन कपास का इस्तेमाल 7500 साल पहले हो रहा था। इसी वक्त मैक्सिको और सेंट्रल अमेरिका में भी कपास का इस्तेमाल हो रहा था। जहां तक मेरा अनुमान है कि भारत में 'खाकी' शब्द की उत्पत्ति इसी कपास से बने कपड़ों से हुई होगी। इस कपास का इस्तेमाल पारंपरिक तौर पर पूरे एशिया में साधू-संन्यासियों और धार्मिक लोगों के कपड़े बनाने के लिए होता था।
आपने फाइबर और कताई की गुणवत्ता में सुधार कैसे किया? क्या कपास की इन प्रजातियों से जैविक नुकसान को लेकर भी कोई चिंता है?
मैंने हर बीज को लेकर हथकरघा से फाइबर की कताई शुरू की थी और उन बीजों को लगाया, जिनका रंग बढ़िया और कताई आसानी से हो जाती थी। मैंने इनका परागन सफेद कपास के साथ कराया, जिनका फाहा सुंदर था। परागन से तैयार बीज को बोया और साल दर साल बेहतर बीजों का चुनाव किया। चूंकि कपास अपना परागन खुद करता है इसलिए बीजों के क्रास कंटेमिनेशन खतरा प्राय: नहीं रहता है।
आपके खरीदार कौन हैं और आपका खेत कितना बड़ा है?
साल 1990 तक प्राकृतिक रूप से रंगीन कपास की भरोसेमंद प्रजातियां तैयार कर ली थीं, जिन्हें जैविक तरीके से उगाया और मशीन से बुना जा सकता था। मेरा पहला ग्राहक जापान की कताई मिल था। इसके बाद मैंने अमेरिका व यूरोप के डिजाइनरों के साथ काम करना शुरू किया और फिर जल्दी ही दुनिया भर के मिलों को कपास बेचने लगी। एक समय मैं हजारों हेक्टेयर में कपास उगाती थी और दुनिया भर की 38 मिलों में सप्लाई करती थी।
बाजार का विस्तार बहुत तेजी से हुआ तथा पांच सालों में ही ये चरम पहुंच गया। इसके बाद इसका बाजार वैश्वीकरण के कारण धराशाई हो गया और जिन कताई मिलों को मैं कपास बेचती थी, उनका व्यापार खत्म हो गया। अभी मैं आर्डर के हिसाब से कपास की सप्लाई करती हूं। फिलहाल मैं जापान और अमेरिका की एक-एक कताई मिलों में कपास की सप्लाई करती हूं। इसके अलावा खुद भी कपड़े तैयार करती हूं।
क्या दूसरे देशों के शोधकर्ताओं ने कपास की इस प्रजाति के कुछ नमूने और उन्हें उगाने के लिए आपसे संपर्क किया है?
नहीं, मैं कोई शोध संस्था नहीं चलाती हूं बल्कि छोटा व्यापार करती हूं। दुःख की बात है कि मुझे किसी संस्थान से कोई सहयोग नहीं मिलता है। मैं अपने सभी शोध के लिए फंड का इंतजाम कपास और उससे निर्मित उत्पाद बेचकर करती हूं।
रंगीन कपास का बाजार कितना बड़ा है?
मुझे लगता है कि इस कपास की गुणवत्ता और इसके प्राकृतिक रंगों के चलते इसके बाजार की कोई सीमा नहीं है। इसमें कीड़े-मकोड़े और बीमारी नहीं लगते हैं; इसमें आग नहीं पकड़ती; ये सूक्ष्मजीवरोधी है; ये एकदम ऊन की तरह मुलायम है। इसे बहुत कम रंग करने या बिलकुल भी रंग करने की जरूरत नहीं पड़ती है। इससे ऊर्जा की खपत कम होती है, पानी बचता है और कूड़ा भी कम निकलता है। लेकिन सवाल है कि क्या इसके लिए बाजार है? मुझे ऐसा लगता है कि इस दिशा में काम प्रगति पर है। (downtoearth)
वॉट्सऐप ने अपने प्राइवेसी के नियमों और शर्तों में बदलाव किया है जिसके बाद बड़ी संख्या में लोग सिग्नल और टेलीग्राफ़ जैसे ऐप्स की ओर रुख़ कर रहे हैं.
इस बीच लाखों यूज़र्स के सिग्नल डाउनलोड करने की वजह से इसमें 'तकनीकी' गड़बड़ी आ गई. सिग्नल ने ट्विटर पर इसकी सूचना दी.
कई सिग्नल यूज़र्स ने बताया कि उन्हें मोबाइल और डेस्कटॉप दोनों पर मैसेज भेजने में दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है.
इस बीच वॉट्सऐप ने अपने प्राइवेसी के नियमों और शर्तों में बदलावों की अंतिम तारीख़ (डेडलाइन) आठ फ़रवरी से बढ़ाकर 15 मई कर दी है (बीबीसी)
नई दिल्ली, 16 जनवरी | केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने तीन नये कृषि कानून के मसले पर शीर्ष अदालत के फैसले का स्वागत करते हुए शुक्रवार को कहा कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित कमेटी जब बुलाएगी को सरकार उसमें अपना पक्ष रखेगी। नये कृषि कानून के विरोध में आंदोलन की राह पकड़े किसानों के प्रतिनिधियों के साथ नौवें दौर की वार्ता बेनतीजा रहने के बाद संवाददाताओं से बातचीत में केंद्रीय मंत्री तोमर ने कहा, "सुप्रीम कोर्ट ने जो निर्णय दिया है उसका भारत सरकार स्वागत करती है।"
देश की शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार द्वारा पिछले साल लागू तीन नये कृषि कानूनों के अमल पर रोक लगाते हुए इन कानूनों से संबंधित मसले का समाधान करने के लिए विशेषज्ञों की एक कमेटी गठित कर दी है।
कृषि मंत्री तोमर ने कहा, "सुप्रीम कोर्ट ने मध्यस्थता के लिए जो कमेटी बनाई वह जब भारत सरकार को बुलाएगी तो हम उस कमेटी के समक्ष भी अपना पक्ष प्रस्तुत करेंगे।"
हालांकि इस बीच सरकार ने सीधे किसानों के साथ वार्ता का दौर भी जारी रखा है और इस संबंध में किसान यूनियनों के साथ फिर 19 जनवरी को विज्ञान भवन में चर्चा होगी।
किसान यूनियनों के नेता केंद्र सरकार द्वारा लागू कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) कानून 2020, कृषक (सशक्तीकरण एवं संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा करार कानून 2020 और आवश्यक वस्तु (संशोधन) कानून 2020 को वापस लेने और न्यूनतम समर्थन मूल्य पर फसलों की खरीद की कानूनी गारंटी देने की मांग पर शुक्रवार की वार्ता के दौरान भी अड़े रहे।
किसान यूनियनों के साथ इस वार्ता में कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के साथ उपभोक्ता मामलों के मंत्री पीयूष गोयल और वाणिज्य एवं उद्योग राज्य मंत्री सोम प्रकाश भी मौजूद थे।
कृषि मंत्री ने बताय, "आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम पर विस्तार से चर्चा हुई। हमारे मंत्री जी (पीयूष गोयल) ने सभी यूनियन के सामने विस्तार से इस अधिनियम पर चर्चा कर उनकी शंकाओं का समाधान करने की कोशिश की, लेकिन चर्चा निर्णायक मोड़ पर नहीं पहुंच पाई।"
केंद्रीय मंत्री ने बताया कि यूनियन और सरकार दोनों ने मिलकर यह तय किया कि 19 जनवरी को फिर दोपहर 12.00 बजे बैठक कर विषयों पर चर्चा करेंगे।
कृषि मंत्री तोमर ने कहा किसान संगठनों के प्रतिनिधियों से सौहाद्र्रपूर्ण माहौल में वार्ता संपन्न हुई।
पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी किसान आंदोलन पर दिए बयान को लेकर पूछे गए सवाल पर केंद्रीय मंत्री तोमर ने कहा कि राहुल गांधी के बयान पर पूरी कांग्रेस हंसती है।
उन्होंने कहा, " 2019 में कांग्रेस पार्टी के मेनिफेस्टो में इस रिफॉर्म का उन्होंने वादा किया था। अगर उनको याद न हो तो वह अपना मेनिफेस्टो दोबारा पढ़ लें।"
तोमर ने कहा, "अगर उस मेनिफेस्टो मंे इस बात का उल्लेख है तो राहुल गांधी जी और सोनिया गांधी जी (कांग्रेस अध्यक्ष) को प्रेस के सामने आना चाहिए और यह स्वीकार करना चाहिए कि वे उस समय झूठ बोल रहे थे या आज झूठ बोल रहे हैं।"
इससे पहले राहुल गांधी ने ट्वीट के जरिए कहा, "देश के अन्नदाता अपने अधिकार के लिए अहंकारी मोदी सरकार के खिलाफ सत्याग्रह कर रहे हैं।"
कृषि मंत्री ने किसानों के साथ बातचीत में कहा कि, "हमें औपचारिक या अनौपचारिक समूह बनाकर कृषि सुधार कानून के विषय पर समाधान की चर्चा करनी चाहिए और चर्चा के दौरान जो भी सहमति बनेगी, उससे समाधान का मार्ग प्रशस्त हो सकता है। जिन मुद्दों पर सहमति नहीं होगी, उन प्रावधानों पर तर्कपूर्ण मंथन कर संशोधन करने का विचार किया जा सकता है।"
--आईएएनएस
नई दिल्ली, 16 जनवरी | दिल्ली पुलिस की साइबर सेल ने एक ऑनलाइन मल्टी-लेवल मार्केटिंग कैंपेन पर आकर्षक रिटर्न की पेशकश के साथ लोगों को धोखा देने वाले एक अंतराष्र्ट्ीय मालवेयर और धोखाधड़ी गिरोह का भंडाफोड़ किया है। पुलिस ने शुक्रवार को बताया कि उसने इस मामले में कुल 12 लोगों को गिरफ्तार किया है, जिनमें दो चीनी और एक तिब्बती नागरिक भी शामिल हैं।
पुलिस ने बताया कि आरोपी एक एमएलएम ऐप की आड़ में लोगों के उपकरणों में मालवेयर की सेंधमारी कर देते थे।
पुलिस की ओर से 13 जनवरी से शुरू की गई छापे की एक श्रृंखला में कुल 12 लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है, जिनमें दो महिला चीनी नागरिक चौहांग देंग दाओयॉन्ग (27) और वू जियाजी (54) शामिल हैं।
लगभग 40,000 ऐसे पुष्ट पीड़ितों की पहचान की गई है, जिनके साथ दो महीने के दौरान करोड़ों रुपये की धोखाधड़ी की गई है। गिरफ्तार किए गए चीनी नागरिकों से नकदी के रूप में 25 लाख रुपये बरामद किए गए हैं, जबकि विभिन्न खातों में जमा धोखाधड़ी की 4.75 करोड़ रुपये की राशि ब्लॉक कर दी गई है।
डीसीपी अनयेश राय ने खुलासा करते हुए बताया कि सब्सक्रिप्शन का जमा कराया गया पैसा 40 से ज्यादा कंपनियों में रूट होता था, जिसमें कई चाइनीज डायरेक्टर भी हैं। उन्होंने कहा कि हमने 13 जनवरी को दिल्ली में कई जगह छापा मारकर एक ऐप से जुड़े 12 लोगों को गिरफ्तार किया गया है, जिसमें दो चीनी नागरिक भी शामिल हैं।
बता दें कि मालवेयर का उपयोग कंप्यूटर पर महत्वपूर्ण जानकारी की चोरी करने या गोपनीय जानकारी में सेंध लगाने के लिए किया जाता है। कई मालवेयर अवांछनीय ईमेल भेजने और कंप्यूटर पर गोपनीय और अश्लील संदेश भेजने और प्राप्त करने का काम करते हैं। इसमें विशेष बात यह है कि इसका प्रयोग कई हैकिंग करने वाले (हैकर) अपने हित में करते हैं और उपयोक्ताओं को इसका पता तक नहीं चल पाता है कि उनके मेल से कौन सी संदेश सामग्री भेजी गई है।
--आईएएनएस
नई दिल्ली, 15 जनवरी | घरेलू लघु वीडियो प्लेटफॉर्म मोज ने शुक्रवार को घोषणा की कि उसके एप को गूगल प्ले स्टोर पर 100 मिलियन यानी 10 करोड़ से भी अधिक बार डाउनलोड किया गया है। मोज एप काफी कम समय में इतनी बड़ी उपलब्धि हासिल की, इतने अधिक यूजर्स तक पहुंचने में एप को लगभग 6 महीने लगे हैं।
कंपनी ने अपने बयान में कहा, "उन्नत सुविधाओं के एक समूह के अलावा, मोज एप शक्तिशाली निर्माण उपकरण के साथ उपयोगकर्ताओं के अपने समुदाय को सशक्त बनाता है, जो मजबूत संपादन क्षमताओं, एक विशाल संगीत पुस्तकालय, कैमरा फिल्टर और उच्च आकर्षक और मजेदार मूल सामग्री बनाने के लिए उपयोगकर्ताओं के लिए विशेष प्रभाव द्वारा समर्थित है।"
मोज को गुगल प्ले स्टोर पर 1 जुलाई, 2020 को लॉन्च किया गया था, जहां लगातार यह टॉप एप में शामिल रहा। आईओएस पर बेहद लोकप्रिय होने के कारण मोज को एप स्टोर पर शीर्ष 10 सोशल नेटवर्किं ग एप में स्थान दिया गया है। हाल ही में, इसे गुगल प्ले स्टोर द्वारा 2020 में 'बेस्ट एप फॉर फन' के रूप में मान्यता मिली है।
एप अंग्रेजी और कई भारतीय भाषाओं में उपलब्ध है।
--आईएएनएस
चंडीगढ़, 16 जनवरी | पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने शुक्रवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर राज्य की गरीब आबादी को मुफ्त कोरोना वैक्सीन प्रदान करने की अपील की है। मुख्यमंत्री ने कोविशिल्ड वैक्सीन की 204,500 खुराक की रसीद स्वीकार करते हुए प्रधानमंत्री को पंजाब में राज्य और केंद्र सरकारों के स्वास्थ्य कार्यकतार्ओं को प्राथमिकता के आधार पर वैक्सीन उपलब्ध कराने के लिए धन्यवाद भी दिया।
सिंह ने साथ ही प्रधानमंत्री से अनुरोध किया कि बीमारी के बोझ को कम करने के लिए गरीब आबादी को मुफ्त वैक्सीन प्रदान करने पर विचार किया जाना चाहिए।
केंद्र सरकार के सूत्रों का हवाला देते हुए कि स्वास्थ्यकर्मियों और फ्रंटलाइन वर्कर्स के अलावा शेष आबादी को मुफ्त टीका नहीं दिया जा सकता है, अमरिंदर सिंह ने अपने पत्र में कहा कि राज्य के लोग बहुत मुश्किल समय से गुजर रहे हैं। उन्होंने कहा कि कोरोनावायरस के कारण जहां आर्थिक गतिविधियां थम गई हैं, वहीं अर्थव्यवस्था अभी भी इस सदमे से उबर नहीं पाई है।
उन्होंने कहा, समाज के गरीब वर्गों के लिए टीकाकरण के लिए भुगतान करना मुश्किल होगा।
मुख्यमंत्री ने अपने पत्र में कहा कि अगले चरण में पालन करने के लिए फ्रंटलाइन वर्करों के साथ प्राथमिकता पर स्वास्थ्यकर्मियों के टीकाकरण को सुनिश्चित करने के लिए सभी जरूरी कदम उठाए गए हैं।
राज्य के पास टीके के परिवहन के साथ-साथ भंडारण की पर्याप्त क्षमता है। उन्होंने लिखा है कि टीकाकरण स्थलों की पर्याप्त संख्या की पहचान की गई है और सभी जरूरत की चीजों को लेकर भी तैयारी है।
सिंह ने इस बात को लेकर भी आश्वस्त किया कि टीकाकरण के लिए प्राथमिकता वाले लोगों की पहचान भी की जा चुकी है और प्रशिक्षित एवं पर्याप्त संख्या में टीमों को जुटाया गया है। उन्होंने कहा कि टीकाकरण प्रबंधन के लिए सभी टीमों को प्रशिक्षित किया गया है।
सिंह ने जोर दिया कि कोविड-19 महामारी लोगों की स्मृति में एक अद्वितीय आपदा रही है और लोगों को इस मुसीबत के समय राहत देते हुए गरीबों को मुफ्त में वैक्सीन प्रदान की जानी चाहिए।
इस बीच, एक आधिकारिक प्रवक्ता ने कहा कि अमरिंदर सिंह शनिवार की सुबह डिजिटिल माध्यम से लाइव आकर स्वास्थ्य कार्यकतार्ओं के टीकाकरण अभियान से जुड़ेंगे।
मुख्यमंत्री सुबह 11.30 बजे मोहाली से पंजाब के टीकाकरण अभियान को शुरू करेंगे। पंजाब में पहले चरण में कुल 59 टीकाकरण स्थल चिन्हित किए गए हैं।
--आईएएनएस
नई दिल्ली, 16 जनवरी | सुप्रीम कोर्ट तीनों कृषि कानूनों को चुनौती देने वाली और दिल्ली की विभिन्न सीमाओं पर डेरा डाले किसानों को हटाने संबंधी याचिकाओं पर सोमवार को सुनवाई कर सकता है। न्यायमूर्ति एल. नागेश्वर राव और विंसेंट सरन के साथ ही प्रधान न्यायाधीश एस. ए. बोबडे की अध्यक्षता वाली एक पीठ 18 जनवरी को याचिकाओं पर सुनवाई करेगी। इससे पहले 12 जनवरी को शीर्ष अदालत ने अगले आदेश तक तीनों कृषि कानूनों के कार्यान्वयन पर रोक लगा दी थी।
भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष भूपिंदर सिंह मान ने अदालत द्वारा नियुक्त विशेषज्ञ समिति से अपना नाम वापस ले लिया है।
मान ने गुरुवार को एक बयान में कहा था कि वह किसानों के हितों से समझौता नहीं करेंगे और इसके लिए वह कोई भी पद छोड़ने को तैयार हैं।
उन्होंने कहा कि आम जनता के बीच प्रचलित भावनाओं और आशंकाओं के मद्देनजर, वह पंजाब या देश के किसानों के हितों से समझौता नहीं करने के लिए कोई भी पद छोड़ने को तैयार हैं।
मान ने कहा, "मैं खुद को समिति से हटा रहा हूं और मैं हमेशा अपने किसानों और पंजाब के साथ खड़ा रहूंगा।"
मान के अलावा, शेतकरी संगठन (महाराष्ट्र) के अध्यक्ष अनिल घनवत, अंतर्राष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान से प्रमोद कुमार जोशी और कृषि अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी को शीर्ष अदालत ने विशेषज्ञ पैनल में नियुक्त किया है।
कृषि कानूनों के कार्यान्वयन पर रोक लगाते हुए, शीर्ष अदालत ने उम्मीद जताई है कि यह कदम गतिरोध को हल करने में मदद कर सकता है।
किसानों के प्रतिनिधियों ने शुक्रवार को केंद्र से कहा कि नए कृषि कानूनों पर उनकी शिकायतों के निवारण के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित चार सदस्यीय समिति उन्हें स्वीकार्य नहीं है। हालांकि वे सरकार के साथ परस्पर वार्तालाप जारी रखेंगे।
भारतीय किसान यूनियन (भाकियू) के नेता राकेश टिकैत ने केंद्रीय मंत्रियों नरेंद्र सिंह तोमर, रेल मंत्री पीयूष गोयल और राज्य मंत्री सोम प्रकाश के साथ नौवें दौर की बातचीत के दौरान लंच ब्रेक के बाद कहा, सरकार के प्रतिनिधियों के साथ हमारी बैठक के दौरान, हमने यह स्पष्ट किया कि सुप्रीम कोर्ट की ओर से गठित समिति स्वीकार्य नहीं है। हालांकि किसान केंद्र के साथ बातचीत जारी रखेंगे और बातचीत के जरिए हल निकालने की कोशिश करेंगे।
मुख्य रूप से पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के हजारों किसान नवंबर के अंत से दिल्ली की विभिन्न सीमाओं पर आंदोलन कर रहे हैं।
--आईएएनएस
वाट्सऐप ने नई प्राइवेसी शर्तों को लागू करने की डेडलाइन बढ़ा दी है. पहले वाट्सऐप ने कहा था कि आठ फ़रवरी तक जो लोग भी नई प्राइवेसी नियमों को नहीं स्वीकार करेंगे वो उसकी सेवा नहीं ले सकेंगे.
लेकिन अब कंपनी का कहना है कि यूज़र्स को 15 मई तक का समय दिया गया है.
वाट्सऐप ने जब नई शर्तों से संबंधित नोटिफ़िकेशन भेजना शुरू किया तो दुनिया भर में इसकी आलोचना हुई.
इस समय दुनिया भर में क़रीब दो अरब लोग वाट्सऐप यूज़ करते हैं.
प्राइवेसी नियमों में बदलाव का मतलब था कि वाट्सऐप अपनी पेरेंट कंपनी फ़ेसबुक को कौन-कौन सा डेटा शेयर करेगा.
दुनिया भर में इसको हो रही आलोचना के बाद वाट्सऐप ने कहा था कि उसके नोटिफ़िकेशन को लेकर लोगों में कुछ भ्रम है.
वाट्सऐप के इस नोटिफ़िकेशन के बाद बहुत सारे लोगों ने सिगनल और टेलिग्राम जैसे दूसरे मैसेजिंग ऐप्स डाउनलोड करना शुरू कर दिया था.
वाट्सऐप ने कहा था कि वो अपने यूज़र्स का जो डेटा फ़ेसबुक के साथ शेयर करेगा वह कोई नई बात नहीं है और उसके पहले के नियमों में कोई परिवर्तन नहीं होने जा रहा है. (बीबीसी)
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पटना में एक पत्रकार के सवाल पर जवाब देते हुए अपना आपा खो दिया. पत्रकार ने इंडिगो एयरलाइंस के एक कर्मचारी की हत्या को लेकर सवाल किया था और राज्य में बिगड़ती क़ानून व्यवस्था के बारे में पूछा था.
नीतीश कुमार ने इस सवाल पर भड़कते हुए मीडिया को ही ‘केस का समाधान’ निकाल लेने को कहा. इसके अलावा उन्होंने पत्रकारों से पूछा कि आप किसका ‘समर्थन’ कर रहे हैं.
उन्होंने भड़कते हुए कहा कि ''पति-पत्नी की सरकार में 15 साल क्या होता रहा, उसे आप लोग हाईलाइट कीजिए''.
नाराज दिख रहे नीतीश कुमार ने पत्रकार के सवाल पर भड़कते हुए कहा, “जरा दूसरे राज्यों में भी चले जाइए. आप इतने महान व्यक्ति हैं और आप किसके समर्थक है, मैं आपको डायरेक्ट पूछ रहा हूँ. जिनको 15 साल तक राज मिला, पति-पत्नी के राज में इतना अपराध होता रहा, आप उसको क्यों नहीं हाईलाइट करते?”
इस घटना पर प्रतिक्रिया देते हुए राजद नेता तेजस्वी यादव ने ट्विटर पर लिखा है कि ''मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने हाथ उठा अपराधियों के सामने किया सरेंडर और कहा कोई नहीं रोक सकता अपराध. हड़प्पा काल में भी होते थे अपराध. जरा तुलना कर लीजिए.''
तेजस्वी यादव ने नीतीश कुमार पर हमला बोलते हुए आगे लिखा है कि ''उल्टा पत्रकार से पूछ रहे हैं क्या आपको पता है कौन है अपराधी और वो क्यों करते हैं अपराध?'' (बीबीसी)
रांची, 15 जनवरी | झारखंड के चतरा जिले में 15 लाख के इनामी नक्सली ने पुलिस के समक्ष सरेंडर कर दिया। पुलिस ने कहा कि नक्सली मुनेश्वर उर्फ मुकेश गंझू ने चतरा के पुलिस अधीक्षक ऋषभ झा और सीआरपीएफ कमांडेंट पवन बसन के समक्ष सरेंडर किया।
वह हत्या और आतंकी फंडिंग मामलें में राष्ट्रीय जांच एजेंसी(एनआईए) द्वारा वांछित था।
मुकेश नक्सली समूह तृतीया सम्मेलन प्रस्तुति समिति में दूसरे स्थान पर था। उसके सरेंडर को पुलिस के लिए एक बड़ी उपलब्धि माना जा रहा है।
सरेंडर के बाद, उसने कहा कि नक्सल समूह अपनी विचारधारा से भटक गया है। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 15 जनवरी | दिल्ली में किसानों और सरकार के बीच 9वें दौर की बैठक भी बेनतीजा रही। अगली बैठक 19 जनवरी को 12 बजे विज्ञान भवन में ही की जाएगी। हालांकि इस बार की बैठक में कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर, उपभोक्ता मामलों के मंत्री पीयूष गोयल और वाणिज्य एवं उद्योग राज्य मंत्री सोम प्रकाश ने किसान संगठनों के प्रतिनिधियों से सौहाद्र्रपूर्ण माहौल में बातचीत की। उन्होंने किसान संगठनों के प्रतिनिधियों का स्वागत किया एवं लोहड़ी तथा मकर संक्रान्ति की शुभकामनाएं भी दीं। मंत्रियों ने किसान संगठनों को आंदोलन के दौरान अनुशासन बनाये रखने के लिए धन्यवाद दिया और आंदोलन समाप्त करने के लिए पुन: आग्रह किया।
केंद्रीय मंत्री तोमर ने किसानों के साथ बातचीत करते हुए आगे कहा ,"हमें औपचारिक या अनौपचारिक समूह बनाकर कृषि सुधार कानून के विषय पर समाधान की चर्चा करनी चाहिए और चर्चा के दौरान जो भी सहमति बनेगी, उससे समाधान का मार्ग प्रशस्त हो सकता है।"
"जिन मुद्दों पर सहमति नहीं होगी, उन प्रावधानों पर तर्कपूर्ण मंथन कर संशोधन करने का विचार किया जा सकता है। लोकतंत्र में उच्चतम न्यायालय के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता है। अगर दोनों पक्ष मिल-बैठकर समाधान निकाल सकें तो अच्छा होगा।"
केंद्रीय मंत्री तोमर ने कानून के प्रावधानों पर किसान प्रतिनिधियों से बिन्दुवार चर्चा करने का पुन: जोर देकर आग्रह किया और कहा कि "अभी तक इन प्रावधानों पर बिन्दुवार चर्चा नहीं हो सकी है। हर राज्य की अलग-अलग परिस्थितियां हैं और बड़ी संख्या में किसानों ने इन कानूनों पर अपना समर्थन व्यक्त किया है।"
कृषि मंत्री ने यह भी कहा कि एमएसपी पर किसानों की उपज की खरीद के लिए इस खरीदी वर्ष के दौरान खरीदी/उपार्जन मंडियों की संख्या बढ़ाकर डेढ़ गुना कर दी गई है तथा मंडियों के उन्नयन के प्रस्ताव पर भी सरकार द्वारा सकारात्मक निर्णय लिए गए हैं।"
उपभोक्ता मामलों के मंत्री पीयूष गोयल ने आवश्यक वस्तु संशोधन अधिनियम पर चर्चा के दौरान बताया , "संशोधन द्वारा इस अधिनियम को और सशक्त तथा किसानों के लिए लाभकारी बनाया गया है। राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर खाद्यान्नों की खपत को ध्यान में रखकर ही इस अधिनियम में सरकार द्वारा उचित प्रावधान किए गए हैं।"
हालांकि बैठक खत्म होने के बाद किसान नेता राकेश टिकैत ने कहा कि, सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित कमेटी स्वीकार नहीं है, किसान कानून वापस लेने पर अड़े हैं। अगली बैठक पर भी इन्ही मुद्दों पर बात होगी। (आईएएनएस)
गुवाहाटी, 15 जनवरी | अरुणाचल प्रदेश की सीमा से लगे उत्तरी असम के बिश्वनाथ जिले में दो लोगों को मारने वाले भैंसे को आखिरकार सुरक्षाकर्मियों ने गोली मारकर ढेर कर दिया। अधिकारियों ने शुक्रवार को यह जानकारी दी। भैंसे ने गुरुवार को बिश्वनाथ जिले में एक युवक को मार डाला था, जबकि भैंसे के हमले में एक अन्य व्यक्तिकी शुक्रवार को मौत हो गई। इसके अलावा जंगली जानवर ने उसी क्षेत्र में दो अन्य लोगों को घायल कर दिया।
वन और पुलिस अधिकारियों के अनुसार, काजीरंगा नेशनल पार्क के जंगली भैंसे ने 55 वर्षीय एक ग्रामीण सुकुर अली पर हमला किया और दो अन्य को घायल कर दिया।
एक वन अधिकारी ने कहा कि भैंस के हमले में घायल हुए एक और व्यक्ति की मौत की सूचना मिलने पर वन विभाग और पुलिस के कर्मी गांव पहुंचे।
वन अधिकारी ने मीडिया से कहा, "शुरुआत में जंगली भैंसे को हमने काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान में धकेलने की कोशिश की, क्योंकि हमारी पहली प्राथमिकता हमेशा जंगली जानवरों की रक्षा करना है। लेकिन इसने हमारा पीछा किया और हमारे पास इसे आत्मरक्षा में गोली मारने के अलावा कोई विकल्प नहीं था।"
दोनों घायल व्यक्तियों को बाद में एक अस्पताल में भेज दिया गया।
जंगली जानवर ने गुरुवार को 43 साल के जयंत दास की हत्या कर दी, जिससे बिश्वनाथ जिले में लोगों का गुस्सा भड़क गया।
गुरुवार को बिश्वनाथ वन्यजीव प्रभाग के केंद्रीय रेंज कार्यालय और वन विभाग की एक कार पर सैकड़ों की संख्या में आक्रोशित लोगों ने आगजनी की।
ग्रामीणों ने पीड़ित परिवारों के लिए 50 लाख रुपये के मुआवजे की मांग की है। गुस्साई भीड़ को शांत करने में पुलिस और वन अधिकारियों को कड़ी मशक्कत करनी पड़ी। (आईएएनएस)
पटना, 15 जनवरी | नए कृषि कानूनों के विरोध में दिल्ली के बाहर चल रहे किसान आंदोलन के समर्थन में तथा पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतों में वृद्धि के विरोध में बिहार कांग्रेस ने शुकवार को पटना में राजभवन मार्च निकाला। प्रदेश कार्यालय से निकले इस मार्च को प्रशसन ने राजापुर पुल के पास ही रोक दिया गया। भाजपा की केन्द्र सरकार के तीन कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग को लेकर निकाले गए इस राजभवन मार्च में बड़ी संख्या में कांग्रेसी शामिल हुए। कांग्रेस नेताओं और उनके समर्थकों को पटना प्रशासन ने राजापुर पुल के पास आगे बढ़ने से रोक दिया।
इस दौरान प्रशासन को कांग्रेस नेताओं को रोकने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ी। कांग्रेस नेता लगातार केंद्र सरकार के खिलाफ नारेबाजी कर रहे थे और कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग कर रहे थे।
किसान अधिकार दिवस के तौर पर इस विशाल प्रदर्शन का नेतृत्व बिहार प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष डॉ. मदन मोहन झा एवं पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव पूर्व केन्द्रीय मंत्री तारिक अनवर ने किया।
कांग्रेस नेता राजापुर पुल के पास ही धरने पर बैठ गए। कांग्रेस नेताओं ने कहा कि किसान आंदोलन के 51 दिन पूरा होने के बाद भी किसानों की समस्या का समाधान अब तक नहीं हुआ है।
इस मार्च में भारतीय कांग्रेस कमेटी के सचिव डॉ. शकील अहमद खान, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष कौकब कादरी, विधान पार्षद प्रेमचंद्र मिश्रा, युवक कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष ललन कुमार यादव सहित कई नेता और कार्यकर्ता शामिल थे। (आईएएनएस)