राष्ट्रीय
-शेख कयूम
श्रीनगर, 18 जनवरी | घाटी के कश्मीरी पंडित समुदाय के साथ जो हुआ उसमें और हिटलर द्वारा यहूदियों के साथ किए गए उत्पीड़न में एक भयावह समानता है।
उनके लिये 1990 में हुई हत्याओं से खुद को अलग रखने के लिए यह वैसा ही था जैसे 'वे यहूदियों को मार रहे थे लेकिन मैं यहूदी नहीं था', लिहाजा मुझे कुछ नहीं होगा।
स्थानीय पंडितों की हत्या की शुरूआत 14 सितंबर, 1989 को टीका लाल तपलू की दिन-दहाड़े हुई हत्या के साथ शुरू हुई थी। उन्हें श्रीनगर शहर में उनके घर में ही आतंकवादियों ने मार डाला था। तपलू की हत्या ने चौंका तो दिया था, लेकिन स्थानीय पंडितों को गहरा आघात नहीं पहुंचाया था। बल्कि उन्होंने यह कहकर एक-दूसरे को सांत्वना देने की कोशिश की थी कि तपलू को इसलिए मार दिया गया क्योंकि वह कश्मीर में भाजपा के नेता थे।
इस हत्या के बाद 4 नवंबर 1989 को पूर्व न्यायाधीश नीलकंठ गंजू की दिनदहाड़े हत्या कर दी गई थी। वे श्रीनगर के व्यस्त हरि सिंह हाई स्ट्रीट बाजार में जम्मू-कश्मीर बैंक की शाखा से अपनी पेंशन लेने गए थे, उसी समय आतंकवादियों ने उन पर हमला किया और मौके पर ही उनकी मौत हो गई थी।
गंजू वही जज थे जिन्होंने जेकेएलएफ के संस्थापक मकबूल भट को फांसी की सजा सुनाई थी। कश्मीरी पंडितों ने फिर तर्क दिया कि यह हत्या बदला लेने के लिए की गई।
वर्तमान में जम्मू में रहने वाले राजिंदर सप्रू (बदला हुआ नाम) कहते हैं, "इन 2 हत्याओं के बाद मैं इसी भरोसे में था कि 'वे यहूदियों को मार रहे थे और मैं यहूदी नहीं था'। आतंकवादियों की 'आजादी' की मुहिम को रोकने में मेरी कोई भूमिका नहीं थी। ऐसे में वे मुझे नुकसान पहुंचाकर उन्हें क्या हासिल होगा? 1990 की शुरूआत तक मैं यही सोचता रहा।"
इसके बाद भी दूरसंचार विभाग के एक कर्मचारी और बाद में खाद्य एवं आपूर्ति विभाग के सहायक निदेशक की हत्या कर दी गई। ये सप्रू के समुदाय के थे लेकिन तब भी उन्हें लगा कि उनकी जान को खतरा नहीं है। लेकिन 1990 की शुरूआत से गंभीर और परेशान करने वाली खबरें सामने आने लगीं।
सशस्त्र कट्टरपंथी लोग ऐसे इस्लामिक राज्य की स्थापना की लड़ाई में व्यस्त थे, जहां गैर-मुस्लिमों के लिए कोई जगह नहीं थी। हालांकि स्थानीय मुसलमानों ने अपने पंडित पड़ोसियों को निशाना बनाए जाने का विरोध किया, लेकिन वे मुस्लिम सशस्त्र आतंकवादियों के कट्टरपंथी विश्वास के आगे असहाय थे।
वैसे तो कश्मीर पंडितों का पलायन पहले ही शुरू हो गया था, जब श्रीनगर के शेर-ए-कश्मीर इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज की स्टाफ नर्स सरला भट का अपहरण कर हत्या कर दी गई थी। उनके शव को श्रीनगर के करन नगर इलाके में सड़क पर फेंक दिया गया था, साथ ही उसके साथ एक सूचना लिखकर रखी गई कि वह एक पुलिस मुखबिर थी। नर्स के परिजनों ने कहा कि उसकी हत्या होने से पहले उसके साथ दुष्कर्म किया गया था। यह कश्मीर पंडित के लिए स्पष्ट संदेश था कि इस धर्म के लोग यहां से चले जाएं।
सरकार उनकी रक्षा करने में असमर्थ थी। वह यहां अपना अधिकार जमाने के लिए जूझ रही थी क्योंकि आतंकियों ने वहां हालात बिगाड़ रखे थे।
सप्रू कहते हैं, "हमारी तुलना में शहरों में रहने वाले पंडितों के लिए यह तुलनात्मक रूप से आसान था कि वे अपना सामान पैक करें और कश्मीर छोड़ दें। लेकिन हम ग्रामीण इलाकों में रहने वाले पंडितों के पास मवेशी थे, खेती की जमीन और बाग थे। सब कुछ इतनी जल्दी नहीं छोड़ा जा सकता था। मेरे मुस्लिम पड़ोसियों ने मेरी मदद करने की पूरी कोशिश की, लेकिन वे बंदूक की नोंक पर रखे युवाओं के आगे असहाय थे। मैंने अपनी संपत्ति पड़ोसी को सौंप दी और अपनी पत्नी, दो बेटियों और एक बेटे के साथ गांव छोड़ दिया।"
कश्मीर के एक गांव में रहने वाले अवतार कृष्ण रैना कहते हैं, "हम जम्मू शहर में प्रवासी पंडितों के लिए बने शिविर में से एक में एक तम्बू में रहते थे। मेरे घर में 10 कमरे थे, जबकि जिस तम्बू में हम रह रहे थे उसमें हमारे पैर फैलाने के लिए भी पर्याप्त जगह नहीं थी।"
कश्मीर यूनिवर्सिटी में समाजशास्त्र पढ़ाने वाली डॉ. फराह कहती हैं, "प्रवासी पंडितों की पहली पीढ़ी और उनके बाद की पीढ़ी के लोगों में अपनी मातृभूमि पर वापस लौटने को लेकर विचार अलग हैं। जिस पंडित ने चोट सही, अपना घर छोड़ा वह आज भी स्थानीय मुसलमानों और पंडितों के बीच के सौहार्द को समझता है। लेकिन पंडितों की युवा पीढ़ी वहां पर्यटकों की तरह जा सकती है, वहां के निवासी की तरह नहीं।"
खैर घर लौटने का इंतजार कर रहे अधिकतर कश्मीरी और उनके दोस्त-पड़ोसी अब उस उम्र के पार हो गए हैं, जिसमें वे एक-दूसरे को शायद ही पहचान सकें। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 18 जनवरी | देश की राजधानी दिल्ली की सीमाओं पर किसानों का आंदोलन 55वें दिन भी जारी है। कृषि सुधार पर तकरार के बीच आंदोलन की राह पकड़े किसानों की अगुवाई करने वाले यूनियन और सरकार में नौ दौर की वार्ता हो चुकी है, फिर भी मन नहीं मिला है। ऐसे में अन्नदाता 18 जनवरी (सोमवार) को महिला किसान दिवस के रूप में मना रहे हैं। आज के दिन कृषि में महिलाओं की अतुलनीय भूमिका और विरोध प्रदर्शन और हर क्षेत्र में महिला एजेंसी का सम्मान करने के उद्देश्य से इस कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है।
सोमवार को महिलाओं द्वारा ही मंच का प्रबंधन किया जाएगा और इस दिन सभी वक्ता महिलाएं होंगी। समाज में महिलाओं के योगदान को प्रदर्शित करते हुए अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित किए जाएंगें।
दरअसल नये कृषि कानूनों को लेकर किसानों के मन में पैदा हुई आशंकाओं का समाधान तलाशने के लिए किसान यूनियनों के नेताओं ने सरकार से कई दौर की वार्ता की, लेकिन सभी बातचीत विफल रही। अब 19 जनवरी को फिर अगले दौर की वार्ता होगी।
कृषि और संबद्ध क्षेत्र में सुधार लाने के मकसद से केंद्र सरकार ने कोरोना काल में कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) कानून 2020, कृषक (सशक्तीकरण एवं संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा करार कानून 2020 और आवश्यक वस्तु (संशोधन) कानून 2020 लाए।
हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने इन कानूनों के अमल पर रोक लगा दी है और मसले के समाधान के लिए विशेषज्ञों की एक कमेटी का गठन कर दिया है।
किसान यूनियन सुप्रीम कोर्ट की कमेटी के पास जाने को तैयार नहीं है और सरकार के साथ वार्ता के जरिए ही समाधान चाहते हैं। ऐसे में वार्ताओं का दौर जारी रहने के इस क्रम में सरकार और किसान यूनियन का मन मिलने का इंतजार है। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 18 जनवरी : किसानों द्वारा 26 जनवरी को ट्रैक्टर रैली के खिलाफ दिल्ली पुलिस की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट मने कहा कि दिल्ली में प्रवेश का मामला कानून और व्यवस्था का है, इसका निर्धारण पुलिस करेगी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम आज सुनवाई टाल रहे है.आप कानून के हिसाब से कार्रवाई करें. CJI ने ए पी सिंह को कहा कि दिल्ली में कौन आएगा कौन नही ये पुलिस तय करेगी. हम पहली अथॉरिटी नहीं हैं. बताते चलें कि ए पी सिंह ने रामलीला मैदान में प्रदर्शन की इजाजत मांगी थी.
वहीं चीफ जस्टिस ने AG को कहा कि आप ये क्यों चाहते है कि आपको कोर्ट से आदेश मिले. आप अपने अधिकारों का इस्तेमाल करें. उन्होंने कहा हम बुधवार को मामले की सुनवाई करेंगे. सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ने ए पी सिंह से पूछा दूसरे किसान संगठन कहां हैं. दवे के बताया कि वो पेश हो रहे है. इस पर सीजेआई ने कहा कि मामले पर बुधवार को सुनवाई करेंगे.
जम्मू, 18 जनवरी | 65 वर्षीय प्यारे लाल रैना की ख्वाहिश वापस कश्मीर में लौटने की है, ये वह जगह है जहां उन्होंने जन्म लिया था, अपनी जिंदगी के कुछ बेहतर साल गुजारे थे।
रैना का परिवार उन्हीं 4,000 से अधिक परिवारों में शामिल है, जिन्हें सन 1989 में घाटी में हुई हिंसा के बाद जम्मू से 25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित जगती की ओर पलायन करना पड़ा था, जहां कश्मीरी पंडितों की बस्ती थी।
जम्मू में रैना के परिवार जैसे तमाम परिवारों के लिए गुजर-बसर करना काफी मुश्किल हो गया था। आठ साल पहले जगती में अच्छे से बसने से पहले इन्हें कई मशक्कतें करनी पड़ी, कई जगह किराए के मकानों में रहना पड़ा।
जगती में उन्हें रहने के लिए दो कमरे मिले, जहां उन्हें आराम से रहने का एक मौका मिला, लेकिन कश्मीरी पंडितों की इस कॉलोनी को लोगों द्वारा उपेक्षा की नजरों से देखा जाता था। मकान टूटे-फूटे थे, पाइपों से पानी रिसने की वजह से घरों की दीवारें हमेशा नम रहा करती थीं।
रैना कहते हैं, "जगती में कश्मीरी पंडितों के कुछ घरों की स्थिति तो बहुत ही खराब थी क्योंकि यहां पानी के रिसने की एक समस्या थी। हमें साफ पानी नहीं मिलता था। इन्हें ठीक करने में हमारी कोई मदद भी नहीं की गई थी।"
घाटी में उग्रवादी हिंसाओं के बाद सन 1990 के दशक की शुरूआत में करीब तीन लाख कश्मीरी पंडितों ने यहां से पलायन किया था। इनमें से कुछ तो मजबूरन जम्मू में पंडितों के लिए बनाए गए शिविरों में रहने लगे थे, जहां लोगों की काफी भीड़ थी। हालांकि रैना को सिर्फ रहने की जगह की ही चिंता नहीं सता रही थी। अपनी पत्नी के बीमार पड़ने के बाद उन्होंने तीन साल पहले अपना काम भी रोक दिया। उनकी दोनों बेटियां अपनी मास्टर्स की पढ़ाई पूरी कर ली हैं, लेकिन बेरोजगार हैं।
उन्होंने आगे कहा, "हम अब थक चुके हैं। सरकार हमारे लिए कुछ भी नहीं कर रही है। मैंने सारी उम्मीदें गंवा दी है। मेरी एक बेटी ने एमबीए की पढ़ाई की है और दूसरी बेटी ने एमसीए किया है, लेकिन दोनों के पास काम नहीं है।"
रैना का कहना है कि वह एक ऐसे दिन का ख्वाब देखते हैं, जब पंडित कश्मीर में वापस से लौट सके, लेकिन इसके लिए सरकार को गंभीर होना पड़ेगा और उनकी वापसी के लिए कदम उठाने होंगे।
वह आगे कहते हैं, "हम जब से जम्मू से वापस आए हैं, तब से लेकर अब तक हालात कुछ खास नहीं बदले हैं, कोई विकास नहीं हुआ है। हम तीस साल से अपनी वापसी की बात सुन रहे हैं। हम लौटने को पूरी तरह से तैयार भी हैं, लेकिन सरकार इसे लेकर कुछ भी नहीं कर रही है।"
रैना के घर से कुछ ही दूरी पर पिंटूजी का घर है, जो जगती में रहने वाले एक अन्य कश्मीरी पंडित हैं। उनका कहना है कि घाटी से पलायन के बाद से सरकार उनकी उम्मीदों को पूरा करने में विफल रही है और अब समुदाय के सदस्यों को उनके लौटने की योजना पर काम करना चाहिए।
वह कहते हैं, "सरकार कश्मीरी पंडितों के पुनर्वास को लेकर गंभीर नहीं है। पंडितों की वापसी के लिए एक ठोस नीति बनाए जाने की जरूरत है और इस पर कश्मीरी पंडितों के प्रतिनिधियों के विचारों को भी शामिल किया जाना आवश्यक है।"
कश्मीर के बाहर बसे कश्मीरी पंडितों को अब बस इसी बात की उम्मीद है कि उनकी समस्या का जल्द से जल्द समाधान हो और उन्हें अपनी घर वापसी का मौका मिले।
--आईएएनएस
श्रीनगर, 18 जनवरी | कश्मीरी पंडितों के जेहन से 19 जनवरी 1990 का दिन कभी नहीं निकल सकता, यह वही दिन है, जब घाटी में बढ़ती उग्रवाद से अपनी जान बचाने के लिए कश्मीरी पंडितों को अपना घर बार छोड़ना पड़ा था। अपने क्षेत्र से निकले समुदाय के लिए सबसे बड़ी चिंता उनके प्रवास के बाद उनकी पहचान को बचाना था, हालांकि जम्मू में एक सामुदायिक रेडियो स्टेशन ने इन बिखरे हुए कश्मीरी पंडितों को जोड़ने में मदद की और आज भी कर रहा है।
एक सरकारी सर्वेक्षण द्वारा देश में नंबर एक सामुदायिक रेडियो स्टेशन के रूप में 'रेडियो शारदा' को विस्थापित समुदाय के लिए एक कड़ी की तरह माना जाता है। पूरी तरह से कश्मीरियों द्वारा चलाए जा रहे सामुदायिक रेडियो स्टेशन के माध्यम से वह अपने समुदाय के सदस्यों के साथ संपर्क में है और अपनी भाषा और संस्कृति को संरक्षित कर रहा है।
कश्मीरी पंडित प्रवासी रमेश हंगलू को सामुदायिक रेडियो स्टेशन की स्थापना का विचार लंदन में एक मुस्लिम पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर प्रवासी से आया था, उन्होंने ब्रिटेन में बसे पीओके के मीरपुरी समुदाय के लिए लंदन में एक ऐसा ही रेडियो स्टेशन स्थापित किया था।
जम्मू एवं कश्मीर का पहला सामुदायिक रेडियो स्टेशन रेडियो शारदा दुनिया भर में बिखरे कश्मीरी समुदाय को अपनी जड़ों से जोड़ने और कश्मीरी भाषा और संस्कृति को बनाए रखने में मदद करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
हंगलू ने कहा, "रेडियो शारदा ऐसे सभी कश्मीरी भाषी लोगों के लिए है, जहां कश्मीरी लोग रहते हैं। हमें उन 112 देशों का फीडबैक मिला है जहां रेडियो शारदा को सुना जाता है।"
गौरतलब है कि साल 1990 में करीब तीन लाख कश्मीरी पंडितों ने घाटी में उग्रवाद के बाद अपना घर-बार छोड़ दिया था। अपनी जमीन, संपत्तियों को पीछे छोड़ कर वे जम्मू में प्रवासी शिविरों में बस गए।
कश्मीरी भाषा में अपने पूरे कंटेंट के साथ सामुदायिक रेडियो स्टेशन जम्मू में एक बस्ती कॉलोनी से पंडित समुदाय के सदस्यों द्वारा निर्मित, संचालित और प्रस्तुत की जाती है। इसके लॉन्च होने के छह साल बाद इंटरनेट पर उपलब्ध सामुदायिक रेडियो स्टेशन को भारत सरकार के सूचना और प्रसारण सर्वेक्षण द्वारा देश के नंबर एक सामुदायिक रेडियो स्टेशन का स्थान दिया गया है। रेडियो शारदा ने 2019 में दो राष्ट्रीय पुरस्कार भी जीते हैं।
घाटी से पलायन करने के तीन दशक बाद कश्मीरी पंडित पूरी दुनिया में बिखरे हुए हैं, लेकिन उन्हें उम्मीद है कि एक दिन वे कश्मीर लौटेंगे। इस बीच वे अपनी भाषा और संस्कृति को संरक्षित कर रहे हैं, और रेडियो शारदा इसके लिए एक ऐसी ही पहल है।
रेडियो शारदा में प्रोग्रामर मंजू रैना ने कहा, "हमारे पास भाषा को बढ़ावा देने के लिए एक मंच नहीं था, लेकिन अब हमारे पास एक मंच है। हमारे बच्चों के लिए भाषा सीखना महत्वपूर्ण है।"
--आईएएनएस
जम्मू, 18 जनवरी | जनवरी 1990 में उस भयानक रात के बाद श्रीनगर में अपना घर छोड़ने के बाद 70 साल के अवतार कृष्ण रैना के लिए दुनिया पहले जैसी नहीं रही।
उन दिनों को याद करते हुए रैना कहते हैं, "मुझे नहीं लगता था कि पुराने घाव कभी इतने लंबे समय तक इतनी गहरी चोट पहुंचा सकते हैं। मैं अब भी अक्सर नींद में झटके से जाग उठता हूं जैसे उस रात के वो भयानक नारे अब भी मेरे घर के बाहर लग रहे हैं। हम श्रीनगर के आली कदल इलाके में अपने मुस्लिम पड़ोसियों के बीच शांति से रहते थे। मैं अपने सबसे अच्छे दोस्त अफजल के साथ बड़ा हुआ था, जो मेरी मां के साथ ऐसे बैठता था, जैसे वो उनका दूसरा बेटा हो। मां भी उसे अपने दूसरा बेटा मानती थी।"
रैना अब जम्मू शहर में रहते हैं। वहीं उनके बच्चे बड़े हुए। उनकी बेटी डॉक्टर है और बेटा मुंबई में सॉफ्टवेयर इंजीनियर है। अपने जैसे सैंकड़ों अन्य कश्मीरी पंडितों के साथ दूसरी जगह शरण लेने के 2 साल बाद ही रैना ने अपनी पत्नी को खो दिया था।
उस खौफ को याद कर नम आंखों से रैना कहते हैं, "मेरी त्रासदी यह है कि मैंने न केवल अपने घर और दोस्तों को खो दिया। बल्कि मैंने इंसान की भलाई करने की बात से ही विश्वास खो दिया।"
कश्मीरी पंडितों के पलायन ने स्थानीय हिंदुओं और मुसलमानों दोनों को नुकसान पहुंचाया। क्योंकि वह ऐसी जगह थी जहां दोनों भाईचारे से रहते थे और ईद हो या महा शिवरात्रि उन दोनों के त्योहार थे। पुराने श्रीनगर शहर में हरि पर्बत पहाड़ी के ऊपर शेख हमजा मखदूम के धार्मिक स्थल के पड़ोस में शारिका देवी का मंदिर इस बात की गवाही देता है। जहां मुसलमानों और स्थानीय पंडितों ने इन दोनों जगहों पर प्रार्थनाएं कीं। यही वजह है कि 1990 से पहले तक इन समुदायों के लिए एक-दूसरे के बिना जीवन जीने की कल्पना करना भी असंभव था।
फिर इसके बाद जनवरी 1990 में जो हुआ उसने 'आजादी' के नारे लगाने का मकसद तो हासिल कर लिया लेकिन कश्मीरी पंडितों ने अपना घर और चूल्हा खो दिया, वहीं स्थानीय मुसलमानों ने अपनी बेगुनाही खो दी। इसके बाद आम कश्मीरी के लिए फिर चाहे वो हिंदू हों या मुस्लिम, उनके लिए दुनिया फिर कभी पहले जैसी नहीं रही।
स्थानीय मुसलमानों को उन लोगों ने दुख पहुंचाया जो उनकी उदात्त परंपराओं और धार्मिक सहिष्णुता के आदशरें से नफरत करते थे। वहीं स्थानीय हिंदू तो अपने ही देश में शरणार्थी बनने पर मजबूर हो गए।
रैना कहते हैं, "हमने अपनी मातृभूमि खो दी। अपने ही देश में शरणार्थी के रूप में रहने की त्रासदी केवल कश्मीरी पंडित ही समझ सकते हैं। भले ही मेरे बच्चों का भविष्य सुरक्षित है, लेकिन उन्होंने अपनी जड़ें खो दी हैं।"
क्या कश्मीर कभी वैसा हो पाएगा जैसा जनवरी 1990 से पहले था? यह हो सकता है, लेकिन उन लोगों के दिलों और दिमागों के घाव शायद कभी ठीक न हो पाएं क्योंकि कुछ घाव कभी भी पूरी तरह से ठीक नहीं होते हैं।
--आईएएनएस
चंडीगढ़, 18 जनवरी | हरियाणा पुलिस की क्राइम ब्रांच ने वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के घोटालेबाजों के खिलाफ एक समन्वित कार्रवाई में रविवार को 89 लोगों को गिरफ्तार किया। पुलिस के मुताबिक, फर्जी चालान बिल घोटाले में शामिल फर्जी फर्मो के पंजीकरण से संबंधित चार बड़े गिरोहों का भंडाफोड़ किया, जिन्होंने सरकारी खजाने को 464.12 करोड़ रुपये से अधिक की धोखाधड़ी की।
जालसाजों का गठजोड़ हरियाणा ही नहीं, बल्कि पूरे देश में सक्रिय था।
जीएसटी फर्जी चालान घोटाले पर कार्रवाई से 112 करोड़ रुपये से अधिक की वसूली और फर्जी जीएसटी आइडेंटिफिकेशन नंबर (जीएसटीइंशन) का पदार्फाश भी हुआ है।
अब तक कुल 72 पुलिस केस दर्ज किए गए हैं, जिनमें 89 आरोपियों को क्राइमब्रांच ने गिरफ्तार किया है। कुल गिरफ्तारी के अलावा गोविंद शर्मा, गौरव, अनुपम सिंगला और राकेश अरोड़ा पर 40 मामले दर्ज हैं।
पुलिस महानिदेशक मनोज यादव ने कहा कि इन व्यक्तियों ने धोखाधड़ी ई-वे बिलों (माल के परिवहन के लिए जीएसटी से संबंधित चालान) के माध्यम से माल की वास्तविक आपूर्ति के बिना कई फर्मों और कंपनियों को धोखाधड़ी चालान जारी किए और जीएसटीआर-3बी फॉर्म के माध्यम से जीएसटी पोर्टल पर फर्जी आयकर ऋण पात्रता की सुविधा दी।
यह भी पता चला है कि फर्जी जीएसटी चालान, ई-वे बिल और फर्जी बैंक ट्रांजेक्शन की मदद से इन गिरोहों द्वारा करोड़ों रुपये के फर्जी आयकर क्रेडिट पास किए गए हैं।
पानीपत और आसपास के इलाकों में सक्रिय गोविंद गैंग से संबंधित फर्जी फर्मों के खिलाफ कुल 21 एफआईआर 2019 में दर्ज की गई थी जबकि 2018 से 2019 के बीच जीएसटी चोरी में शामिल अन्य तीन गिरोहों पर मुकदमा दर्ज किया गया था।
पुलिस अब तक इन गिरोहों के आयकर ऋण को 80 करोड़ रुपये से अधिक के लिए अवरुद्ध कर चुकी है।
--आईएएनएस
नई दिल्ली, 18 जनवरी | देश के अधिकांश वरिष्ठ नागरिकों का मानना है कि अर्थव्यवस्था की मौजूदा स्थिति उन सबसे बड़े मुद्दों में शामिल है, जिनका भारत को तुरंत समाधान करने की जरूरत है। मैक्स समूह इकाई अंतरा द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण के मुताबिक, दूसरी शीर्ष चिंता बेरोजगारी है।
इसके अलावा, कोरोनावायरस संक्रमण और सामाजिक अलगाव का डर लॉकडाउन के दौरान वरिष्ठ नागरिकों के लिए दो बड़ी चिंताएं थीं।
सर्वे में आधे से ज्यादा बुजुर्गो ने कहा कि भारत ने कोविड-19 महामारी को संभालने की पूरी कोशिश की है।
दुनिया भर में एक स्थापित और स्वीकार्य उद्योग होने के बावजूद, वरिष्ठ नागरिकों की देखभाल सेवाएं अभी भी भारत में एक प्रारंभिक चरण में हैं।
अंतरा के एमडी और सीईओ रजित मेहता ने कहा, उनकी (वरिष्ठ भारतीयों) की जरूरतें और आकांक्षाएं काफी आगे आ गई हैं। वे अब अर्थव्यवस्था में सक्रिय योगदानकर्ता बनना चाहते हैं, गरिमा के साथ जीवन व्यतीत करना चाहते हैं।
--आईएएनएस
विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने रिपब्लिक टीवी के अर्नब गोस्वामी और व्यूअरशिप रेटिंग एजेंसी, ब्रॉडकास्ट ऑडिएंस रिसर्च काउंसिल (बार्क) के पूर्व सीईओ पार्थो दासगुप्ता के बीच हुई कथित बातचीत को लेकर कई सवाल खड़े किए हैं.
अंग्रेज़ी अख़बार द हिन्दू ने मुंबई पुलिस की चार्जशीट का हवाला देते हुए लिखा है कि इन दोनों की बातचीत वॉट्सऐप चैट के रूप में लीक हुई है. रविवार को विपक्षी नेताओं ने कहा कि इस बातचीत से कई तरह की चिंताएं सामने आई हैं और इनकी विस्तृत जाँच की जानी चाहिए.
रविवार को कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने कहा, "मुंबई पुलिस की चार्जशीट में जो वॉट्सऐप चैट सामने आई है उससे अपने आप में राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर गंभीर सवाल खड़े होते हैं. किस प्रकार से वित्तीय धोखाधड़ी हुई, उसमें देश के बड़े से बड़े पदों पर बैठे कौन से लोग शामिल थे, कैसे जजों को ख़रीदने की बात हुई और मंत्रिमंडल में कौन सा पद किसको मिलेगा उसका निर्णय पत्रकारों द्वारा किया गया ये सारी बातें हैं. मुंबई पुलिस का आरोपपत्र एक हज़ार पन्नों का है और हम इसका अध्ययन कर रहे हैं. हम इस पर विस्तार से प्रेस कॉन्फ्रेंस करेंगे."
वहीं पूर्व सूचना एवं प्रसारण मंत्री मनीष तिवारी ने पूरे मामले की जांच जेपीसी यानी संयुक्त संसदीय समिति से कराने की मांग की है. मनीष तिवारी ने कहा है कि अगर मीडिया रिपोर्टिंग में आ रही बातें सही हैं तो बालाकोट एयर स्ट्राइक और 2019 के आम चुनाव के बीच ज़रूर कोई संबंध है.
पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने भी इस मामले में ट्वीट कर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से पूछा है, "क्या असल स्ट्राइक से तीन दिन पहले एक पत्रकार (और उसके दोस्त) को बालाकोट में जवाबी हमले के बारे में पता था? यदि हाँ, तो इस बात की क्या गारंटी है कि उनके स्रोतों ने पाकिस्तान के साथ काम करने वाले जासूसों या मुखबिरों सहित अन्य लोगों के साथ भी जानकारी साझा नहीं की होगी? राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ी गोपनीय निर्णय की जानकारी सरकार-समर्थक पत्रकार को कैसे मिली?" (बीबीसी)
धारवाड़, 17 जनवरी । कनार्टक के स्कूल की सहपाठियों के साथ गोवा घूमने और पुराने दिनों को याद करने की योजना 11 महिलाओं के लिए जीवन का आखिरी सफर साबित हुआ। सभी की सड़क हादसे में मौत हो गई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हादसे पर दुख जताया है।
हादसे में मृत सभी 11 महिलाएं देवनगरे स्थित सेंट पॉल स्कूल के 1989 बैच की छात्रा थीं और यह समूह जिस मिनी बस से जा रहा था उसकी शुक्रवार को कनार्टक के इतिगत्ति गांव के पास लॉरी से टक्कर हो गई।
पीएम मोदी ने प्रकट की संवेदना
पीएम नरेंद्र मोदी ने हादसे में मारे गए लोगों को श्रद्धांजलि देते हुए कहा, 'दुख ही इस घड़ी में हम शोकाकुल परिवारों के साथ हैं। मैं घायलों के जल्द स्वस्थ होने की प्रार्थना करता हूं'
पुलिस के मुताबिक पूर्व छात्राओं ने तीन दिन की गोवा यात्रा की योजना बनाई थी और इनमें से दो के साथ उनकी बेटियां भी थी। 14 पूर्व छात्राएं शु्क्रवार सुबह देवनगरे से रवाना हुई थीं। इनमें से 13 देवनगरे जिला मुख्यालय के कस्बे की ही थीं जबकि एक महिला बेंगलुरु की थी।
पुलिस ने बताया कि वे एक सहपाठी को धारवाड़ से लेने जा रही थी तभी यह हादसा हो गया। उन्होंने बताया कि वाहन के चालक और खलासी को रानेबेन्नूर से पकड़ा गया है। हादसे में ट्रक ड्राइवर और पांच अन्य महिलाएं घायल हुई हैं। पुलिस ने बताया कि दो घायलों की गंभीर स्थिति है और एक महिला को हवाई जहाज की मदद से बेंगलुरु के अस्पताल में स्थानांतरित किया गया है। पुलिस ने बताया कि मामला दर्ज कर घटना की जांच की जा रही है। (एजेंसी)
लखनऊ, 17 जनवरी | उत्तर प्रदेश पुलिस के आतंकवाद निरोधक दस्ते ने वित्तीय धोखाधड़ी का पता चलने के बाद राज्य में तीन स्थानों और दिल्ली में पांच स्थानों पर तलाशी अभियान चलाया, जिसमें एटीएम कार्ड का उपयोग किए बिना दिल्ली में बैंकों से लाखों के लेनदेन किए गए। रविवार को एक अधिकारी ने इस बात की जानकारी दी। पुलिस महानिरीक्षक, एटीएस, जी.के. गोस्वामी ने कहा कि मोबाइल फोन का उपयोग कर एक नए प्रकार की धोखाधड़ी की गई।
उन्होंने कहा, यह भी सामने आया कि ये नंबर फर्जी पहचान पत्र के साथ संचालित किए जा रहे थे।
अधिकारियों ने कहा कि पहले तलाशी राज्य के संभल, अमरोहा और मुरादाबाद में की गई, जहां से कुछ गुप्त दस्तावेज बरामद किए गए।
बाद में, दिल्ली में पांच स्थानों पर छापे मारे गए। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 17 जनवरी | दुनिया के सबसे बड़े वैक्सीन निर्माताओं में से एक सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (एसआईआई) के कार्यकारी निदेशक, सुरेश जाधव के अनुसार, नोवल कोरोनावायरस के खिलाफ कोविशिल्ड के अलावा चार और वैक्सीन पर काम किया जा रहा है। जाधव ने एक वेबिनार के दौरान बताया कि फर्म नोवल कोरोनावायरस के खिलाफ पांच वैक्सीन पर काम कर रही है, जिसमें कोविशिल्ड भी शामिल है।
गौरतलब है कि इसे आपातकालीन उपयोग रोल-आउट के लिए मंजूरी मिलने के बाद शनिवार को बड़े पैमाने पर टीकाकरण अभियान शुरू किया गया।
उन्होंने कहा, "एक (वैक्सीन) के लिए हमें आपातकालीन स्वीकृति मिल गई है, तीन अन्य क्लिनिकल अध्ययन के विभिन्न चरणों में हैं, जबकि एक ट्रायल के प्रीक्लिनिकल चरण में है।"
एसआईआई ने भारत और अन्य देशों के लिए अपने संभावित कोविड-19 वैक्सीन के निर्माण के लिए नोवावैक्स इंक के साथ साझेदारी की है।
अमेरिकी ड्रग डेवलपर के साथ एक समझौते के तहत पुणे स्थित ड्रगमेकर नोवावैक्स के वैक्सीन उम्मीदवार की सालाना दो सौ करोड़ खुराकें विकसित करेगा।
दवा निर्माता वैक्सीन के एंटीजन घटक का भी निर्माण करेगा।
एसआईआई ने अपने कोरोनावायरस वैक्सीन के निर्माण और आपूर्ति के लिए यूएस आधारित कोडेजेनिक्स के साथ भागीदारी की है।
फर्म का पहला कोविड वैक्सीन एस्ट्राजेनेका / ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के मास्टरसीड से विकसित किया गया है।
भारत बायोटेक के कोवैक्सिन के साथ इसे भी आपातकालीन उपयोग ऑथराइजेशन के लिए इसे 3 जनवरी को भारत के ड्रग नियामक द्वारा स्वीकृति दी गई थी।
हालांकि, दोनों दवा निर्माताओं को उनके क्लिनिकल ट्रायल में कम पारदर्शी डेटा और दवा लाइसेंसिंग की उचित प्रक्रिया को पूरा किए बिना स्वीकृति प्राप्त करने के लिए आलोचना की जा रही है।
इन आलोचनाओं पर टिप्पणी करते हुए जाधव ने कहा कि ऐसा पहले भी किया जा चुका है।
जाधव ने कहा, "यह पहली बार नहीं है जब मानवता पर दांव लगाया गया है। अफ्रीका में चार साल पहले इबोला का प्रकोप जब हुआ था और एक कनाडाई फार्मास्युटिकल फर्म द्वारा इसका वैक्सीन जो सिर्फ पहले चरण को पूरा कर चुका था और दूसरे चरण के ट्रायल से गुजर रहा था, तभी विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने उसको मंजूरी दी थी। लिया गया जोखिम रंग लाया और वैक्सीन ने इबोला को नियंत्रित करने में मदद की।"
उन्होंने आगे कहा, "साल 2009 में जब एच1एन1 महामारी फ्लू हुआ, तो हमें क्लिनिकल परीक्षणों के सभी चरणों को पूरा करने के बाद इसके विकास के लिए और वैक्सीन लगाने के लिए 1.5 साल लग गए, लेकिन पश्चिम में दवा निर्माताओं ने ऐसे उत्पादों की मार्केटिंग सात महीने से भी कम समय में की। तब किसी ने उनसे सवाल नहीं किया। फिर अब ये अचानक शोरगुल क्यों?" (आईएएनएस)
शिमला, 17 जनवरी | भीषण ठंड में भारत के सबसे बुजुर्ग मतदाता माने जा रहे श्याम शरण नेगी (103) ने हिमाचल प्रदेश में पंचायती राज चुनावों के पहले चरण में कल्पा में रविवार को मतदान किया। उन्होंने 1951-52 के आम चुनाव में भी भाग लिया था। राज्य की राजधानी से लगभग 275 किलोमीटर दूर कल्पा में वोट डालने के बाद नेगी ने कहा, "मैंने कभी भी वोट देने का मौका नहीं छोड़ा और मैं इस चुनाव में वोट देने से खुश हूं।"
उन्होंने युवा मतदाताओं से हमेशा लोकतांत्रिक प्रक्रिया में भाग लेने का अनुरोध किया।
लोकतंत्र में कट्टर आस्था रखने वाले बुजुर्ग ने कभी भी किसी भी चुनाव में, चाहे वह लोकसभा हो, विधानसभा हो या पंचायत हो, अपना वोट डालने से नहीं चूके हैं।
सेवानिवृत्त स्कूल शिक्षक नेगी साल 1951 में चुनाव ड्यूटी पर थे और उन्होंने चिनी निर्वाचन क्षेत्र में अपने मताधिकार का प्रयोग किया, बाद में क्षेत्र का नाम बदलकर किन्नौर रखा गया।
उस समय देश में अन्य स्थानों से आगे पर्वतीय राज्य के बफीर्ले क्षेत्रों में मतदान होता था।
उपायुक्त हेमराज बैरवा ने नेगी का उनके घर से 400 मीटर दूर स्थापित किए गए बर्फ से ढके मतदान केंद्र पर जोरदार स्वागत किया।
बैरवा ने मीडिया से कहा, "नेगी को भारत का सबसे बुजुर्ग मतदाता माना जाता है। यह महत्वपूर्ण अवसर है कि वह वोट डालने के लिए बिना किसी सहायता के मतदान केंद्र तक पहुंचने के लिए अपने घर से पूरे रास्ते पैदल आए। वोट डालने के बाद, उन्होंने समझाया कि मतदान करना क्यों महत्वपूर्ण है।"
उन्होंने कहा कि, स्थानीय अधिकारियों को उनसे मिलकर खुशी महसूस हुई।
नेगी अपने पोते और परिवार के अन्य सदस्यों के साथ मतदान केंद्र पर आए। उन्होंने मतदान के बाद अपने उंगली पर लगा इंक दिखाया।
राज्य में त्रिस्तरीय पंचायती राज चुनाव के पहले चरण में 1,200 से अधिक पंचायतों में चुनाव हो रहे हैं।
बाकी दो चरण के मतदान 19 और 21 जनवरी को होंगे। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 17 जनवरी | दिल्ली में कोरोनावायरस की तीसरी लहर और उसका पीक समाप्त हो गया है। दिल्ली सरकार के मुताबिक अब दिल्ली में कोरोना की लहर जैसी कोई स्थिति नहीं है। बीते 24 घंटे के दौरान दिल्ली में केवल 246 व्यक्ति कोरोना संक्रमित पाए गए। इन्हीं 24 घंटों के दौरान दिल्ली में कोरोनावायरस से 8 व्यक्तियों की मृत्यु हुई है। खास बात यह है कि दिल्ली में अब कोरोना पॉजिटिविटी दर घटकर 0.36 फीसदी रह गई है। बीते नौ महीने से अधिक समय में कोरोना संक्रमण की यह सबसे कम पॉजिटिविटी रेट है। दिल्ली में बीते 24 घंटे के दौरान कोरोना संक्रमण का पता लगाने के लिए 67,463 टेस्ट किए गए। कोरोना टेस्ट में जहां 246 व्यक्ति पॉजिटिव पाए गए वहीं इस दौरान 385 कोरोना संक्रमित व्यक्ति स्वस्थ भी हुए हैं। दिल्ली के विभिन्न अस्पतालों में कोरोना रोगियों के लिए 11,088 बेड आरक्षित किए गए हैं। इनमें से फिलहाल 1101 बेड पर कोरोना रोगी हैं जबकि 9,987 बेड अभी भी खाली हैं।
दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन ने कहा, दिल्ली में पॉजिटिविटी रेट काफी कम हुआ है। कोरोना की तीसरी लहर अब समाप्त हो चुकी है। हालांकि अभी भी सावधानी बरतने की आवश्यकता है। सभी लोग मास्क जरूर लगाएं। पिछले डेढ़ महीने में कोरोना की स्थिति में काफी सुधार हुआ है। लोगों ने नियमों का सख्ती से पालन किया है जिसके कारण कोरोना में कमी आई है।
शनिवार को पूरी दिल्ली में 4,317 हेल्थ वर्कर्स को कोरोना वैक्सीन लगाई गई। दिल्ली में लगभग 8,100 हेल्थ वर्कर्स को कोरोना वैक्सीन लगाई जानी थी, लेकिन लगभग इसकी आधी संख्या में ही कोरोना वैक्सीन लगाई जा सकी। सत्येंद्र जैन ने कहा, पूरे देश में तय संख्या के मुकाबले लगभग 50 फीसदी लोगों को ही यह वैक्सीन लगाई जा सकी। दिल्ली में भी ऐसा ही रहा। जितने लोगों ने वैक्सीन के लिए पंजीकरण करवाया था उनमें से आधे लोग नहीं आए। वैक्सीन लगाने का यह स्वैच्छिक कार्यक्रम है। पंजीकरण के बावजूद किसी भी व्यक्ति को वैक्सीन लगाने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता।
स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन के मुताबिक फिलहाल दिल्ली नगर निगम के कर्मचारी हड़ताल पर हैं इसलिए नगर निगम के अस्पतालों को इस अभियान में शामिल नहीं किया गया है। अगले दौर में जब वैक्सीनेशन केंद्रों की संख्या बढ़ाई जाएगी तब एमसीडी के अस्पतालों को भी इस कार्यक्रम में शामिल किया जाएगा। (आईएएनएस)
-दीपाली जगताप
उद्धव ठाकरे सरकार में सामाजिक विकास मंत्री धनंजय मुंडे पर बलात्कार के आरोपों से राज्य की राजनीति में काफी हलचल है. धनंजय मुंडे गठबंधन सरकार में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के कोटे से मंत्री हैं.
महाराष्ट्र बीजेपी के अध्यक्ष चंद्रकांत पाटील और बीजेपी नेता किरीट सोमय्या ने धनंजय मुंडे से इस्तीफ़ा मांगा है.
वहीं राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के प्रमुख शरद पवार ने मुंडे पर लगे आरोपों को गंभीर बताया है.
हालांकि राज्य कांग्रेस, एनसीपी और शिवसेना की महिला नेताओं ने इस मुद्दे पर चुप्पी साध रखी है. ये महिला नेता औरतों पर अत्याचार, महिला अधिकार और राज्य में महिलाओं के कल्याण के लिए नीतिगत मुद्दों पर बोलती रही हैं लेकिन इस मामले पर सब चुप हैं.
राज्य में कांग्रेस, एनसीपी और शिवसेना की महिला नेताओं की चुप्पी पर सवाल उठ रहे हैं कि महिलाओं से जुड़े मुद्दों पर सड़कों पर उतरने वाली कहां ग़ायब हो गई हैं?
महिला मुद्दों पर भी राजनीति का चश्मा?
क्या महिला उत्पीड़न के मुद्दे को भी राजनीतिक चश्मे से देखा जाता है? क्या ये लोग इसलिए चुप हैं क्योंकि इस बार उनकी अपने गुट के नेता पर आरोप लगे हैं?
भूमाता ब्रिगेड की अध्यक्ष तृप्ति देसाई ने आरोप लगाया है कि धनंजय मुंडे मामले पर शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस की महिला नेताओं की चुप्पी उनकी निष्पक्षता पर सवाल खड़े करती है.
उन्होंने कहा, "धनंजय मुंडे पर एक महिला ने बलात्कार का आरोप लगाया है. पिछले चार दिनों से महाविकास अघाड़ी की किसी महिला नेता ने इस मुद्दे पर कुछ भी नहीं कहा है. यह काफी दुखद है और इन महिला नेताओं के दोहरे रवैये को जाहिर करता है."
तृप्ति देसाई सवाल उठाती हैं कि एनसीपी सांसद सुप्रिया सुले, राज्य की महिला एवं बाल कल्याण मंत्री यशोमति ठाकुर, शिवसेना नेता नीलम गोऱ्हे और दूसरी तमाम महिला नेताएं कहां गुम हो गई हैं?
उन्होंने कहा, "हमारे नेता महिलाओं के सशक्तिकरण से जुड़े मुद्दों पर अपनी सुविधा के हिसाब से बात करते हैं. अगर विपक्ष के नेता पर ऐसे आरोप हों तभी वे विरोध प्रदर्शन करेंगे."
हालांकि इस मामले में धनंजय मुंडे पर बलात्कार का आरोप लगाने वाली महिला के ख़िलाफ़ भी शिकायत दर्ज कराई गई है. बीजेपी के नेता कृष्णा हेगड़े और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के मनीष धुरी ने महिला के ख़िलाफ़ शिकायत दर्ज कराई है.
तृप्ति देसाई ने कहा, "महिला के ख़िलाफ़ शिकायत दर्ज होना भी चिंतित करने वाला पहलू है. हम उनसे पूछताछ की मांग करते हैं. लेकिन हमारा ये कहना है कि ऐसे मामलों में महिला नेताओं को बोलना चाहिए, भले आरोप उनके अपने ही दल के नेता पर क्यों ना लगे हों."
हालांकि राज्य में विपक्ष की भूमिका निभा रही बीजेपी की महिला मोर्चा ने इस मामले में निष्पक्ष जांच की मांग की है.
क्यों चुप हैं महिला नेता?
महाराष्ट्र में बीजेपी की राज्य उपाध्यक्ष चित्रा वाघ ने कहा, "पुलिस पर किसी तरह का राजनीतिक दबाव नहीं होना चाहिए. इस मामले में दोषियों का बचाव नहीं होना चाहे वह कितना भी बड़ा क्यों ना हो. जांच पूरी होने तक धनंजय मुंडे को मंत्रालय से हटाया जाना चाहिए."
"ऐसे मामलों में पीड़िता और परिवार पर दबाव डाला जा सकता है. सबूतों के साथ छेड़छाड़ हो सकती है. आरोपों को नष्ट किया जा सकता है. नैतिक आधार पर धनंजय मुंडे को मंत्री पद से इस्तीफ़ा दे देना चाहिए."
धनंजय मुंडे के इस्तीफ़े की मांग के साथ बीजेपी राज्य महिला मोर्चा 18 जनवरी से राज्य व्यापी धरना प्रदर्शन शुरू करने जा रहा है.
वैसे महाराष्ट्र में शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस तीनों दलों में कई महिला नेता मौजूद हैं. राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी में सुप्रिया सुले के अलावा विद्या चव्हान, रुपाली चाकनकर भी वरिष्ठ नेताओं में गिनी जाती हैं.
वहीं, कांग्रेस की यशोमति ठाकुर राज्य की महिला एवं बाल कल्याण मंत्री हैं जबिक स्कूली शिक्षा मंत्रालय का जिम्मा भी वर्षा गायकवाड़ के पास है.
शिवसेना की नीलम गोन्हेविधान परिषद की डिप्टी स्पीकर हैं. वहीं एमएलसी मनीषा कायंदे और प्रियंका चतुर्वेदी भी चर्चित चेहरा हैं. लेकिन इन लोगों ने इस मामले में अब तक कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है.
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'कोई धनंजय मुंडे का बचाव नहीं कर रहा है'
एनसीपी की वरिष्ठ नेता विद्या चव्हाण ने बीबीसी मराठी से कहा, "अब बात करने का कोई मतलब नहीं है. यह सब भयानक है. वे शादीशुदा हैं. विवाहेत्तर संबंध से उनके दो बच्चे हैं. अब एक अन्य महिला ने आरोप लगाए हैं. यह मामला काफी उलझा हुआ है. ये पूरा मामला क्या निकलता है, इसे देखना होगा. लेकिन कोई धनंजय मुंडे का बचाव नहीं कर रहा है. वैसे यह समझना होगा कि मुंबई में हनीट्रैप के मामले बहुत ज़्यादा देखने को मिलते हैं."
एनसीपी की सांसद सुप्रिया सुले ने मीडिया के सवालों का जवाब देते हुए कहा, "आरोपों के बाद मामले में कई ट्विस्ट आ चुके हैं. संवेदनशील मामला है. इस मामले में परिवार को भी समझना चाहिए. हमें पुलिस पर पूरा भरोसा है. पूछताछ के बाद हम इस पर बात करेंगे."
वहीं दूसरी ओर शिवसेना की महिला नेताओं ने इस मुद्दे पर मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे से बात की और मामले को काफी पेचीदा बताया.
शिवसेना की नीलम गोन्हे ने बीबीसी मराठी से कहा, "मामले के सामने आने के बाद मैंने मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे और पर्यावरण मंत्री आदित्य ठाकरे को इसकी जानकारी दी थी. उन्होंने कहा कि मामले की जांच चल रही है और सरकार उचित कार्रवाई करेगी." नीलम गोऱ्हे ने बताया कि ऐसे मामलों में पीड़िता को मदद की जरूरत होती है, हम उनकी शिकायत दर्ज कराने में या कानूनी मदद मुहैया कराते हैं लेकिन ये मामला अलग क्योंकि इसमें राजनीति भी शामिल है.
शिवसेना की एमएलसी मनीषा कायंदे ने बीबीसी मराठी से कहा, "ये मामला अचानक सामने आया और बहुत पेचीदा है. धनंजय मुंडे 2019 में अदालत में जा चुके हैं. शिकायत करने वाली महिला पर जिस तरह के आरोप लगे हैं उससे भी मामला उलझा है."
NEELAMGORHE
महिला आयोग की प्रमुख का पद खाली
बीबीसी मराठी ने महाराष्ट्र कांग्रेस की महिला नेताओं से इस मामले में प्रतिक्रिया लेने की कोशिश की लेकिन कोई बातचीत के लिए उपलब्ध नहीं हुईं.
वैसे उद्धव ठाकरे को सरकार में आए एक साल से ज़्यादा समय हो चुका है. लेकिन अभी तक राज्य महिला आयोग के चेयरपर्सन की नियुक्ति नहीं हुई है और ना ही कोई समिति का गठन हुआ है.
एनसीपी की नेता विद्या चव्हान ने बीबीसी मराठी से बताया, "हमने महिला आयोग के पदों को भरने के लिए एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार जी से बात की थी. हमने इस मामले में एक सूची भी दी है, लेकिन सरकार की ओर से अब तक कोई फ़ैसला नहीं हुआ है."
महिलाओं की कई शिकायतों का निपटारा महिला आयोग के ज़रिए किया जाता है. पीड़ितों की आवाज सुनने के लिए भी महिला आयोग एक उपयुक्त मंच है. लेकिन उद्धव ठाकरे सरकार में महिला आयोग की चेयरपर्सन का पद महीनों से खाली पड़ा हुआ है.
शिवसेना की एमएलसी मनीषा कायंदे ने बताया, "मैंने मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे और गृहमंत्री अनिल देशमुख को इस बारे में लिखा है. मैंने चेयरपर्सन की नियुक्ति के अलावा जल्द ही समिति के गठन का अनुरोध भी किया है." (bbc.com)
अहमदाबाद. उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने कहा कि अदालतों को ‘शासन प्रणाली की संस्थाओं’ के तौर पर सार्वजनिक जांच पड़ताल तथा आलोचनाओं को स्वीकार करना चाहिए. अहमदाबाद में आयोजित व्याख्यान को वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से संबोधित करते हुए शनिवार को साल्वे ने कहा कि न्यायाधीशों, न्यायिक मर्यादाओं और कार्यप्रणाली के तरीकों की आलोचना से अदालत नाराज नहीं होतीं और जिस लहजे में इस तरह की आलोचनाएं की जाती हैं वह हल्के फुल्के अंदाज में होनी चाहिए.
उन्होंने कहा, ‘आज हमने यह स्वीकार कर लिया है कि न्यायाधीश, या कहें अदालतें और खासकर संवैधानिक अदालतें शासन प्रणाली की संस्थाएं बन गई हैं और इस नाते उन्हें सार्वजनिक जांच पड़ताल तथा सार्वजनिक आलोचनाओं को स्वीकार करना चाहिए. साल्वे ने कहा, ‘हमने यह हमेशा माना है कि अदालतों के फैसलों की आलोचना की जा सकती है, ऐसी भाषा में की गई आलोचना भी जो विनम्र न हो. फैसलों की निंदा हो सकती है. क्या हम निर्णय निर्धारण की प्रक्रिया की निंदा कर सकते हैं? क्यों नहीं?’.
वरिष्ठ अधिवक्ता 16वें पीडी देसाई स्मृति व्याख्यान को संबोधित कर रहे थे जिसका विषय था ‘न्यायपालिका की आलोचना, मानहानि का न्यायाधिकार और सोशल मीडिया के दौर में इसका उपयोग’. व्याख्यान में उन्होंने कहा, ‘‘सूर्य की तेज रोशनी के उजाले तले शासन होना चाहिए. मेरा मानना है कि ऐसा वक्त आएगा जब उच्चतम न्यायालय सरकारी गोपनीयता कानून के बड़ी संख्या में प्रावधानों पर गंभीरता से विचार करेगा और देखेगा कि वे लोकतंत्र के अनुरूप हैं या नहीं.’
उन्होंने कहा 'एक क्षेत्र हैं, जहां मुझे लगता है कि न्यायाधीशों को सुरक्षा दी जानी चाहिए. और वह क्षेत्र है किसी संस्था की पर एक स्वतंत्र संस्था के रूप में चरित्र के साथ सिलसिलेवार हमले करना.' उन्होंने कहा कि अदालतों को उन लोगों के ट्वीट्स पर ध्यान नहीं देना चाहिए, जिनके पास बैठकर अपने मोबाइल फोन पर फैसले देने के अलावा बेहतर करने के लिए कुछ नहीं है. खासतौर से उन चीजों पर जिन्हें वे नहीं समझते हैं.
(भाषा इनपुट के साथ)
नई दिल्ली/देहरादून, 17 जनवरी | उत्तर प्रदेश के अयोध्या में नए राम मंदिर के निर्माण के लिए दान अभियान चल रहा है और उत्तराखंड के पूर्व मंत्री और कांग्रेस नेता नवप्रभात ने रविवार को लोगों से मंदिर के निर्माण के लिए चंदा देने की अपील की। उन्होंने कहा कि वह और उनके स्वयंसेवक जगह-जगह जाकर मंदिर निर्माण के लिए लोगों से पैसे दान करने का आग्रह करेंगे।
एक वीडियो बयान में, उन्होंने कहा, "मैं लोगों से स्वेच्छा से पैसे दान करने की अपील करता हूं। हम मिले पैसों के बारे में एक रजिस्टर में नोट करेंगे और कुल संग्रह को एसडीएम को सौंप देंगे, ताकि मंदिर ट्रस्ट को भेजा जा सके।"
श्री राम जन्मभूमि तीर्थक्षेत्र ट्रस्ट ने शुक्रवार को विश्व हिंदू परिषद के साथ मिलकर राम मंदिर के निर्माण के लिए धन जुटाने के लिए अपना दान अभियान शुरू किया।
नवप्रभात ने कहा कि उन्होंने अपने विधानसभा क्षेत्र विकासनगर में भाजपा का मुकाबला करने के लिए बूथ समितियों का गठन किया है। उन्होंने कहा, "भगवान राम राष्ट्रीय एकता के प्रतीक हैं और वे अकेले भाजपा के नहीं हैं। वह हर भक्त के हैं।"
कांग्रेस नेता ने कहा कि वह मस्जिद के लिए भी चंदा एकत्र करने का काम करेंगे, अगर समुदाय इसकी अनुमति देता है। अयोध्या के धनीपुर गांव में पांच एकड़ में मस्जिद का निर्माण प्रस्तावित है।
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने शुक्रवार को मंदिर निर्माण के लिए 5,00,100 रुपये का दान दिया था। दान अभियान 27 फरवरी तक जारी रहेगा। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 17 जनवरी | प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को दिवंगत तमिल फिल्म आइकन व पूर्व मुख्यमंत्री एम.जी. रामचंद्रन या 'एमजीआर' को उनकी 104वीं जयंती पर श्रद्धांजलि अर्पित की।
एक ट्वीट में, प्रधानमंत्री ने कहा, "भारत रत्न एमजीआर कई लोगों के दिलों में रहते हैं, चाहे वह फिल्म हो या राजनीति की दुनिया, उन्हें बहुत सम्मान मिला। अपने सीएम कार्यकाल के दौरान, उन्होंने गरीबी उन्मूलन की दिशा में कई प्रयास किए और महिला सशक्तीकरण पर भी जोर दिया। एमजीआर को उनकी जयंती पर श्रद्धांजलि।"
एम. जी. रामचंद्रन या एमजीआर 'मक्कल थिलकम' (लोगों के बीच सबसे आगे), और 'पुरैची थलाइवर' (क्रांतिकारी नेता) के नाम से प्रसिद्ध हैं। जहां पहला नाम तमिल फिल्म उद्योग में उनकी ऑनस्क्रीन भूमिकाओं के कारण दिया गया था, बाद वाला उन्होंने अपनी राजनीतिक उपलब्धियों के लिए अर्जित किया।
अभिनेता से नेता बने एमजीआर ने सी. एन. अन्नादुरई के नेतृत्व में द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (द्रमुक) के सदस्य के रूप में पहली बार राजनीति में प्रवेश किया था। बाद में उन्होंने अन्नाद्रमुक पार्टी गठित की।
एमजीआर का जन्म 17 जनवरी 1917 को कैंडी, श्रीलंका में एक मलयाली परिवार में हुआ था। उनके पिता मारुथुर गोपाला मेनन कैंडी के मजिस्ट्रेट के रूप में अपनी सेवानिवृत्ति के बाद पलक्कड़ जिले में अपने पैतृक गांव वडवानुर लौट आए। एमजीआर अपने परिवार की आर्थिक रूप से मदद करने के लिए एक नाटक मंडली में शामिल हो गए और 1936 में आई फिल्म 'सती लीलावती' से अपनी फिल्मी पारी की शुरूआत की थी। (आईएएनएस)
-मोहम्मद ग़ज़ाली
नई दिल्ली: राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने किसान नेता बलदेव सिंह सिरसा और पंजाबी एक्टर दीप सिद्धू समेत 40 लोगों को समन जारी कर रविवार को पूछताछ के लिए बुलाया है. अकाली दल के नेता सुखबीर सिंह बादल ने केंद्र सरकार की एजेंसी की इस कार्रवाई पर नाराजगी जताई है और आरोप लगाया है कि केंद्र सरकार नौवें दौर की वार्ता विफल होने के बाद अपने एजेंसियों के माध्यम से किसान नेताओं और किसान आंदोलन को समर्थन देने वालों को प्रताड़ित करना चाह रही है.
बादल ने शनिवार को ट्वीट किया, "किसान नेताओं और किसान आंदोलन के समर्थकों को एनआईए और ईडी (प्रवर्तन निदेशालय) द्वारा पूछताछ करने के लिए बुलाकर उन्हें धमकाने के केंद्र के प्रयासों की कड़ी निंदा करते हैं. वे देशद्रोही नहीं हैं. 9वीं वार्ता विफल होने के बाद, यह बिल्कुल स्पष्ट हो गया है कि भारत सरकार केवल किसानों को थकाने की कोशिश कर रही है."
बता दें कि राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) ने प्रतिबंधित संगठन सिख फॉर जस्टिस (SFJ) से संबंधित एक मामले में न्यायिक दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 160 के तहत गवाह के रूप में पूछताछ के लिए लगभग 40 लोगों को बुलाया है. एक्टर दीप सिद्धू किसान आंदोलन का समर्थन और तीनों नए कृषि कानूनों का विरोध कर रहे थे. उन्हें भी आतंक निरोध एजेंसी के नई दिल्ली स्थित दफ्तर में पूछताछ के लिए बुलाया गया है. इनके अलावा जिन लोगों को समन भेजा गया है, उनमें गैर-लाभकारी खालसा एड के अधिकारी भी शामिल हैं.
कृषि कानून: कृषि मंत्री बोले, 'सुप्रीम कोर्ट के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता, दोनों पक्ष मिलकर हल निकालें तो अच्छा होगा'
खालसा एड, जो विरोध प्रदर्शन कर रहे किसानों को आवश्यक सहायता प्रदान कर रहा है, ने शनिवार को एक बयान जारी कर कहा है कि वह एजेंसी के साथ सहयोग करेगा. सिख फॉर जस्टिस अमेरिका में एक प्रतिबंधित संगठन है.
बयान में कहा गया है, "हम एनआईए द्वारा किसानों के विरोध में शामिल व्यक्तियों को जारी किए गए सम्मन के बारे में गहराई से जानने के लिए चिंतित हैं, बस ड्राइवरों से लेकर यूनियन नेताओं तक सभी को एनआईए के सामने पेश होने के लिए तलब किया गया है, जिसकी जांच 'राष्ट्र-विरोधी' के रूप में और आतंकवाद का समर्थन करने के रूप में की जा रही है. हमारी खालसा एड इंडिया टीम को भी तलब किया गया है और पूछताछ/ जांच की जा रही है ... हमारी टीम एनआईए द्वारा पूछे गए किसी भी प्रश्न का सहयोग करेगी और जवाब देगी."
भोपाल, 17 जनवरी | भगवान राम की नगरी अयोध्या में प्रस्तावित राम मंदिर निर्माण के लिए धन संग्रह का दौर जारी है। भाजपा की मध्य प्रदेश इकाई के अध्यक्ष और सांसद विष्णु दत्त शर्मा और उनकी धर्मपत्नी डॉ. स्तुति शर्मा ने अपने वेतन की एक माह की राशि का चेक मंदिर निर्माण के लिए समिति को सौंपा। भाजपा प्रदेशाध्यक्ष शर्मा ने अपने आवास पर श्रीराम जन्मभूमि निधि समर्पण अभियान के अंतर्गत अपने एक माह का वेतन एक लाख रुपये एवं उनकी धर्मपत्नी स्तुति शर्मा ने अपने एक माह का वेतन 61 हजार रुपये का चेक संग्रह कार्य में लगे लोगों को सौंपा।
शर्मा ने यह चेक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रांत प्रचार प्रमुख एवं निधि समर्पण अभियान के सह प्रमुख ओम प्रकाश सिसोदिया, विश्व हिंदू परिषद के प्रांत सह मंत्री एवं अभियान के प्रांत प्रमुख बृजेश चैहान, विश्व हिंदू परिषद के प्रांत संगठन मंत्री खगेंद्र भार्गव एवं विभाग मंत्री राजेश साहू को सौंपा। इस अवसर पर पार्टी के प्रदेश मीडिया प्रभारी लोकेन्द्र पाराशर उपस्थित थे। (आईएएनएस)
रजनीश सिंह
नई दिल्ली, 17 जनवरी | पिछले 29 वर्षों में देश के विभिन्न हिस्सों के साथ-साथ विभिन्न देशों में अमेरिकी शांति अभियानों के लिए किए गए अपने सफल अभियानों के बाद, रैपिड एक्शन फोर्स (आरएएफ) अब दंगों और इसी तरह की सार्वजनिक अव्यवस्था को पूरी तरह से 2023 तक दक्षिणी भारत के साथ-साथ गोवा में संभाल लेगी।
आरएएफ की 97वीं बटालियन को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कर्नाटक की अपनी यात्रा के दौरान नई जिम्मेदारी दी है, जहां मंत्री ने उम्मीद जताई कि बल "पूरे दक्षिण भारत में शांति बनाए रखने के लिए लोगों के साथ हमेशा कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा रहेगा।"
आरएएफ के सुरक्षा सेटअप को प्राप्त करने के उद्देश्य से, बल को कर्नाटक के शिवमोगा जिले में भद्रावती में एक नया भवन प्रदान किया जा रहा है।
एक आधिकारिक सूत्र ने कहा कि कर्नाटक सरकार ने लगभग 230 करोड़ रुपये की लागत से इसके निर्माण के लिए लगभग 50 एकड़ भूमि आवंटित की है। निर्माण 2023 के अंत तक पूरा होने का लक्ष्य है।
एडमिनिस्ट्रेशन ब्लॉक, रेसिडेंशियल लाइन, अस्पताल, केंद्रीय विद्यालय के साथ-साथ स्पोर्ट्स स्टेडियम का निर्माण यहां भवन के परिसर में किया जाएगा, जिसकी आधारशिला शनिवार को शाह ने रखी थी।
आरएएफ के इतिहास में एक नया अध्याय जुड़ गया है जो नई दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश के बाद दक्षिण भारत में अपने इस्टैब्लिशमेंट को प्राप्त करेगा।
आरएएफ, केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) का एक विशेष बल, समाज के सभी वर्गों के बीच विश्वास पैदा करने के लिए दंगों और दंगा जैसी स्थितियों से निपटता है और आंतरिक सुरक्षा ड्यूटी को संभालता है और सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखता है।
आरएएफ तीन लाख से अधिक कर्मियों के एक कार्यबल का हिस्सा है, जो एक सशस्त्र केंद्रीय अर्धसैनिक विंग है, जिसके पास देश की सीमाओं की रक्षा करने, आंतरिक सुरक्षा प्रदान करने और देश के लोगों का मनोबल बढ़ाने के साथ-साथ 250 से अधिक बटालियन हैं।
आरएएफ का उदय 11 दिसंबर, 1991 को नई दिल्ली में मुख्यालय के साथ हुआ था। दंगों, स्थितियों, भीड़ नियंत्रण, बचाव और राहत कार्यों और संबंधित अशांति जैसे दंगों से निपटने के लिए 7 अक्टूबर 1992 को यह पूरी तरह से चालू हो गया। (आईएएनएस)
मोहम्मद शोएब
नई दिल्ली, 17 जनवरी| आमतौर पर मध्यमवर्गीय मुस्लिम परिवारों में अभिवावकों को बच्चों के सरकारी नौकरी न मिलने का भ्रम होता है। जिसके कारण कई बच्चे अपनी पढ़ाई पूरी नहीं कर पाते और अक्सर अभिवावक अपनी बेटियों की जल्दी शादी करने की भी सोचते हैं। हालांकि ऐसे ही मध्यमवर्गीय एक परिवार की बेटी ने डीएसपी बन कर ये भ्रम तोड़ने का काम किया है।
इंदौर निवासी शाबेरा अंसारी मध्यप्रदेश के देवास में डीएसपी महिला प्रकोष्ठ पद पर तैनात है और पिता इंदौर के ही एक थाने में सब इंस्पेक्टर के पद पर तैनात हैं।
शाबेरा अंसारी की जिंदगी शुरूआत से सामान्य रही, वहीं कभी ज्यादा बड़े सपने भी नहीं रहे। स्कूल खत्म करने के बाद जब कॉलेज में गईं तो 19 साल की उम्र में शादी के रिश्ते आने लगे और मन मे ऐसा डर बैठा कि उस डर के कारण आज डीएसपी पद पर तैनात है और फिलहाल यूपीएससी की तैयारी भी कर रही है।
शाबेरा ने मध्यप्रदेश के इंदौर में सरकारी स्कूल से कुछ साल पढ़ाई की और सरकारी कॉलेज से बीए किया और कॉलेज वक्त से ही पीएससी की तैयारी शुरू की।
शाबेरा 2013 में सब-इंस्पेक्टर पद पर सेलेक्ट हुई और 2018 में उनकी तैनाती सीधी में प्रशिक्षु डीएसपी पद पर हुई।
दरअसल शाबेरा का परिवार मूलरूप से उत्तरप्रदेश के बलिया का रहने वाला है लेकिन पिता की पुलिस में नौकरी के कारण करीब 30 साल पहले इंदौर बस गए।
शाबेरा को पढ़ाई करने का बहुत शौक है, यही वजह है कि वह अब भी यूपीएससी की तैयारियों में लगी हुई हैं।
शाबेरा अंसारी ने आईएनएस को बताया, मै स्कूल वक्त से सामान्य अंक प्राप्त करने वाली छात्रा रही। एक बार गणित में फेल भी हुई।
19 साल की उम्र में रिश्ता आया तो मन मे डर बैठ गया। उसके बाद कुछ करने की ठानी और मुड़ कर नहीं देखा।
कॉलेज वक्त के दौरान पीएससी की पढ़ाई शुरू की और पहली परीक्षा में उसे क्लीयर भी कर दिया और उस वक्त से अब तक मैं पढ़ाई करती आ रही हूं।
शाबेरा ने आगे बताया, मेरी मां ने हमेशा मुझे स्पोर्ट किया। शुरूआती दौर में जहन में नहीं था कि पुलिस विभाग में ही जाना है। घर मे पिता पुलिस में होने के कारण बस थोड़ी दिलचस्पी हमेशा रही।
जानकर हैरानी होगी कि शाबेरा अपने पूरे खानदान में पहली महिला है जो सिविल सर्विसेज में है। शाबेरा अपने पूरे परिवार और समाज के लिए अब एक प्रेरणा बन चुकी हैं।
शाबेरा से परिवार के अन्य बच्चे भी उनकी पढ़ाई के बारे में पूछते हैं वहीं किस तरह वह भी यहां तक पहुंचे इसकी जानकारी भी लेते हैं।
शाबेरा स्कूली कार्यक्रमो में भी जाती हैं और बच्चों को प्रोत्साहित करतीं हैं। स्थानीय स्कूल और अन्य संस्थानों की तरफ से उन्हें बुलाया भी जाता है।
उन्होंने बताया, स्कूल्स में जाकर कार्यक्रमों में बच्चों का प्रोत्साहन बढ़ाने की कोशिश करती हूं। जिंदगी मे किस तरह आगे बढ़ना है ये बताने का भी प्रयास रहता है।
हालांकि कार्यकमों में छोटे छोटे बच्चे उनके साथ सेल्फी भी लेते हैं वहीं उनकी तरह कैसे बना जाए इसकी जानकारी भी लेते हैं।
मुस्लिम समाज से होने के कारण उनके पास समाज के ही जानकारों के भी फोन आते रहते हैं। ताकि वह उनके कार्यक्रम में जाकर समाज के बच्चों को प्रोत्साहित करें।
उन्होंने बताया, मुस्लिम समाज के बच्चों को भी अक्सर मैं समझाती रहती हूं खासतौर पर लड़कों को। मैं सभी से यही कहती हूं कि खुद पर भरोसा रखो और मन से पढ़ाई करो, मेहनत जरूर लंग लाएगी।
शाबेरा को अपने पिता से भी काफी सीखने को मिला, अब इसे संयोग कहे या नहीं। लेकिन लॉकडाउन के दौरान शाबेरा जिस थाने की प्रभारी रही उसी थाने में उनके पिता सेवा दे चुके हैं।
दरअसल उनके पिता उत्तरप्रदेश किसी काम से गये हुये थे, उसी दौरान लॉकडाउन लग गया और वह वहीं फंसे रहे गये। पिता को बेटी ने जैसे तैसे अपने पास बुला लिया। उसी दौरान पी एच क्यू ने आदेश जारी कर दिया गया कि जो जहां है वही अपनी सेवा देंगे।
हालांकि पिता के साथ काम कर उन्होंने उनसे काफी कुछ सीखा और साथ ही एक प्रकरण को भी सुलझया था। दोनों रात में गश्त पर पर भी निकला करते थे, हालांकि बेटी घर पहुंचने पर अपने पिता को खाना बना कर भी खिलाया करती थी।
हालांकि बिटिया के डीएसपी बनने के बाद अब पिता उन्हें अधिकारी की नजर से देखते हैं और उनसे उसी तरह बात करते हैं। शाबेरा अपने पिता को कई बार कह चुकीं है कि वह अधिकारी बाहर है घर पर नहीं। (आईएएनएस)
जयपुर, 17 जनवरी | राजस्थान के जालोर जिले में 11,000 वोल्ट के हाईटेंशन तार की चपेट में आने के बाद बस में आग लग गई, जिससे छह लोगों की मौत हो गई और सात घायल हो गए। घटना की जानकारी पुलिस ने रविवार को दी। बस शनिवार देर रात नाकोडा तीर्थयात्रा से अजमेर (इसके पास स्थित बेवर) जा रही थी, तभी यह हादसा हुआ। यात्रा के दौरान बस ने अपना रास्ता खो दिया था और गूगल मानचित्र का अनुसरण करते हुए एक छोटे से गांव में पहुंच गई।
गांव की संकरी गलियों से होते हुए अपना रास्ता बनाते हुए बस हाई टेंशन तार के संपर्क में आ गई।
कंडक्टर ने हाई टेंशन तार को हटाने की कोशिश की और करंट उसके माध्यम से बस में आ गई, जिससे बस में आग लगने से छह लोगों की मौत हो गई।
मृतकों में ड्राइवर और कंडक्टर भी शामिल हैं।
घायलों में से सात को जालोर जिला अस्पताल ले जाया गया, जबकि अन्य घायलों को प्राथमिक उपचार के बाद घर भेज दिया गया।
पुलिस अधिकारियों ने आईएएनएस को बताया कि, कई जैन परिवार नाकोड़ा मंदिर में पूजा-अर्चना करने के बाद अजमेर और बेवर लौट रहे थे। हालांकि गूगल मानचित्र का अनुसरण करते हुए और दूसरी बस का अनुसरण करते हुए बस जालोर से सात किलोमीटर दूर महेशपुरा गांव तक पहुंच गई।
बस में आग लगने के बाद पीछे से आ रही दूसरी बस रुक गई और उसके यात्री दर्दनाक हादसे को देखने के बाद मदद के लिए दौड़ पड़े।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने दुर्घटना पर दुख व्यक्त किया। (आईएएनएस)
उमरिया (मप्र), 17 जनवरी (आईएएनएस)| मध्य प्रदेश के उमरिया जिले में एक किशोरी के साथ हैवानियत की रूह कंपा देने वाली वारदात सामने आई है। किशोरी को पहले मनचलों ने अपनी हवस का शिकार बनाया, अपनों को सौंपा और इन दरिंदों के चंगुल से छूटी किशोरी ने जिससे मदद की उम्मीद की, उसी ने अपनी हवस का शिकार बना डाला। पुलिस ने इस मामले में आठ लोगों को गिरफ्तार कर लिया है। पुलिस से मिली जानकारी के अनुसार नगर की किशोरी 11 जनवरी को घर से सब्जी मंडी गई। इसी दौरान उसकी दो युवकों से मुलाकात हुई, यह युवक किशोरी को बहला-फुसला कर घुमाने भरौला और छटन के जंगल की ओर ले गए। उसके साथ सामूहिक दुष्कर्म किया गया और फिर उसे एक ढाबा में बंधक बनाकर रखा, अपने साथियों को सौंपा और यहां भी इसके साथ कई लोगों ने दुष्कर्म किया।
लड़की ने पुलिस को जो ब्यौरा दिया है उसके अनुसार आरोपियों से उसने मिन्नतें की तो आरोपियों ने उसे कटनी जाने के लिए ट्रक में बैठा दिया। ट्रक चालक ने भी उसे अपनी हवस का शिकार बनाया, फिर उसे विलायत कला-बड़वारा के टोल वैरियर पर छोड़ दिया। यहां से किशोरी ने उमरिया जाने के लिए ट्रक का सहारा लिया तो इस ट्रक के चालक ने भी उसकी बेवसी का लाभ उठाया और हवस का शिकार बनाया और उसे उमरिया छोड़कर भाग गया। कुल मिलाकर किशोरी को 9 लोगो ने अपनी हवस का शिकार बनाया।
पुलिस को किशोरी ने यह भी बताया है कि उसके साथ आकाश नामक युवक ने चार जनवरी को भी दुष्कर्म किया था। आकाश के कई साथी भी थे जिन्होंने उससे सामूहिक दुष्कर्म किया था।
उमरिया के पुलिस अधीक्षक विकास शाहवाल ने आईएएनएस को बताया है कि दुष्कर्म के दो प्रकरण दर्ज किए गए हैं। इन मामलों में नौ आरोपियों के खिलाफ धारा 376 और पॉक्सो एक्ट के तहत प्रकरण दर्ज किया गया, आठ आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया गया है। एक की तलाश जारी है।
नई दिल्ली, 17 जनवरी | प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने अपनी मनी लॉन्ड्रिंग जांच के सिलसिले में दो चीनी नागरिकों को गिरफ्तार किया है। ये केस पिछले साल अगस्त में दर्ज किया गया था। अधिकारियों ने रविवार को यह जानाकरी दी। जांच से जुड़े ईडी के एक अधिकारी ने आईएएनएस को बताया, "ईडी ने लुओ सांग उर्फ चार्ली पेंग और कार्टर ली को शुक्रवार को धन शोधन रोकथाम कानून (पीएमएलए) के तहत गिरफ्तार किया।"
अधिकारी ने कहा कि पेंग और ली पर सैकड़ों शेल कंपनियों के माध्यम से चीनी कंपनियों के लिए एक बड़ा हवाला ऑपरेशन चलाने का आरोप है।
अधिकारी ने कहा कि उन्हें शनिवार को अदालत में पेश किया गया और 14 दिनों के लिए ईडी की हिरासत में भेज दिया गया।
एजेंसी ने पिछले साल अगस्त में उनके खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग का मामला दर्ज किया था, जब आयकर विभाग ने छापे मारे थे और दावा किया था कि पेंग और अन्य चीनी नागरिक एक बड़ा हवाला ऑपरेशन चला रहे थे।
उन पर जासूसी रैकेट चलाने का भी आरोप है। दिल्ली पुलिस ने भी उनके खिलाफ मामला दर्ज किया था। (आईएएनएस)