सरगुजा

पीएचडी के मामले में संत गहिरा गुरु यूनिवर्सिटी फिसड्डी
18-Jun-2023 9:00 PM
पीएचडी के मामले में संत गहिरा गुरु यूनिवर्सिटी फिसड्डी

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता 
अंबिकापुर,18 जून।
संत गहिरा गुरु विश्वविद्यालय अंबिकापुर सरगुजा संभाग के 8 जिलों का प्रतिनिधित्व करता है, इसके अंतर्गत 85 महाविद्यालय कार्यरत हैं। अब इसे विडंबना कहा जाए कि शोध के मामले में यह विश्वविद्यालय पूरी तरह नाकारा साबित हो रहा है। हालत यह हो गई है कि पिछले 4 साल से यह विवि पीएचडी  प्रवेश का नोटिफिकेशन तक जारी नहीं कर पाया है। स्थिति यह है कि विश्वविद्यालय द्वारा 2018 में प्री पीएचडी हेतु आवेदन मंगाया गया था जिसकी परीक्षा जुलाई 2019 में आयोजित की गई थी तथा 29 अक्टूबर को प्री पीएचडी का परीक्षा परिणाम घोषित किया गया था। 

मार्च 2022 में कोर्स वर्क में एडमिशन हुआ और अप्रैल 2022 से कोर्स वर्क प्रारंभ हुआ था। 03 दिसंबर 2022 को कोर्स वर्क की परीक्षा आयोजित की गई जिसका परिणाम  20 अप्रैल 2023 को घोषित किया गया,  लेकिन अभी तक पीएचडी के विद्यार्थियों के पंजीकरण की प्रक्रिया शुरू नहीं हो सकी है।

गौरतलब है कि बिना पंजीकरण के इन विद्यार्थियों  का भविष्य अधर में लटका हुआ है, यहां तो यह होना चाहिए था कि वे अब तक वह अपना शोध कार्य पूरा कर डॉक्टर बन जाते लेकिन यह दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि विश्वविद्यालय  अपने विद्यार्थियों के भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रहा है।

 इस विश्वविद्यालय से संबंधित तमाम महाविद्यालयों में ढेर सारे शोध केंद्र खुले हुए हैं बहुत सारे पीएचडी गाइड पंजीकृत है, लेकिन नियमित प्रवेश प्रक्रिया और शोध कार्य के अभाव में उनका कोई भी योगदान नहीं हो पा रहा है जिसके चलते विद्यार्थियों के साथ साथ प्रोफेसरों का भी बौद्धिक व अकादमिक नुकसान हो रहा है। 

सरगुजा विश्वविद्यालय में नए वाइस चांसलर के आने के बाद एक उम्मीद जगी थी की शायद अब शोध कार्य पटरी पर आ जाएगा लेकिन नतीजा सिफर रहा। पूरा विश्वविद्यालय आपसी गुटबंदी में उलझा हुआ है, उसकी विद्यार्थियों के हित और और अकादमिक उत्कृष्टता में कोई रुचि नहीं है। 

सरगुजा विश्वविद्यालय के साथ ही दुर्ग विश्वविद्यालय की स्थापना हुई थी अगर दोनों की तुलना कर देखें तो आज दुर्ग विश्वविद्यालय शोध के मामले में एकदम नियमित है और अकादमिक उत्कृष्टता का प्रतिमान स्थापित कर रहा है, वहीं सरगुजा विश्वविद्यालय अपने सबसे महत्वपूर्ण गतिविधि शोध पर कोई भी ध्यान देने के लिए तैयार नहीं है।
 सरगुजा अंचल के विद्यार्थियों को और ऐसे प्राध्यापकों को जिनकी पीएचडी नहीं हुई है, उन्हें दर-दर की ठोकरें खाना पड़ रहा है। सरगुजा विश्वविद्यालय की स्थापना आदिवासी अंचल के विद्यार्थियों व कॉलेजों को अकादमिक रूप से सक्षम बनाने हेतु की गई थी, लेकिन यह मात्र बीए-एमए की डिग्री बांटने वाला वि.वि. बनकर रह गया है। 

कई प्रोफेसर ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि इस विवि की स्थापना के पहले जब कॉलेजों की संबद्धता बिलासपुर से थी, तब शोध आदि की स्थिति ज्यादा अच्छी थी अब तो बद से बदतर हो चुकी है। 

प्रोफेसरों से इस स्थिति में सुधार के लिए उनके योगदान पर जब चर्चा की गई तो उन्होंने कहा कि यदि विवि चाहे तभी वे कुछ योगदान कर सकते हैं। एक नौजवान प्रोफेसर ने तो चुटकी लेते हुए कहा कि राजीव गांधी पीजी कॉलेज में सोलह शोध केंद्र और बत्तीस से अधिक रिसर्च गाइड हैं, लेकिन शोध छात्र पांच छह भी मिल जाएं तो चमत्कार समझिए।  

 छात्र नेता ज्ञान तिवारी ने बताया कि बहुत से छात्र नेट-सेट पास कर घूम रहे हैं, प्रोफेसरों से बात कीजिए तो वे विश्वविद्यालय की अकर्मण्यता से हताश नजर आते हैं। 
ज्ञान तिवारी ने बताया कि यदि विवि इस सत्र से पीएचडी कोर्स को नियमित नहीं करता तो बड़ा आंदोलन किया जाएगा। कुलाधिपति, शिक्षामंत्री तक बात पहुंचाई जाएगी, यदि इससे भी बात नहीं बनेगी तो प्रति सप्ताह वीसी का घेराव किया जाएगा।

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