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कोविशील्ड: 14 करोड़ लोगों को देर से मिलेगी वैक्सीन की दूसरी डोज़, इससे फ़ायदा या नुक़सान?
15-May-2021 1:44 PM
कोविशील्ड: 14 करोड़ लोगों को देर से मिलेगी वैक्सीन की दूसरी डोज़, इससे फ़ायदा या नुक़सान?

-विनीत खरे

एक सरकारी पैनल ने सिफ़ारिश की है कि ऐस्ट्राज़ेनेका की कोविशील्ड वैक्सीन के दो डोज़ के बीच के अंतराल को बढ़ाकर 12 से 16 हफ़्ते का कर दिया जाए.

इस सिफ़ारिश से पहले कोविशील्ड की दो डोज़ के बीच छह से आठ हफ़्ते का अंतर रहता था. उससे पहले ये अंतराल चार से छह हफ़्ते था.

इस पैनल ने ये भी कहा कि जो लोग कोरोना से ठीक हो गए हैं, वो ठीक होने के छह महीने बाद वैक्सीन लगवाएं.

भारत में अभी तक 18 करोड़ लोगों को वैक्सीन लग चुकी है.

क़रीब 14 करोड़ लोगों को अब तक वैक्सीन की एक ही डोज़ मिली है जबकि चार करोड़ लोगों को दोनों डोज़ मिल चुकी है. यानी ताज़ा सिफ़ारिश का सीधा-सीधा असर 14 करोड़ लोगों पर होगा.

आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक़ कोरोना से देश में अभी तक दो लाख 62 हज़ार लोगों की मौत हो चुकी है, लेकिन आरोप है कि मरने वालों का सही आंकड़ा इससे कहीं अधिक है.

ये सिफ़ारिश ऐसे वक्त आई है जब कई राज्यों में कोरोना वैक्सीन की भारी कमी है, और सरकारें लोगों को वैक्सीन नहीं दे पा रहे हैं.

गुरुवार को नीति आयोग के सदस्य डॉक्टर विनोद पॉल ने एक संवाददाता सम्मेलन में दावा किया कि ये सिफ़ारिश विज्ञान पर आधारित हैं.

जब उनसे वैक्सीन की कमी के बारे में पूछा गया तो उन्होंने पूछा, "क्या आप हमारे वैज्ञानिक तरीकों पर भरोसा कर सकते हैं?"

करोड़ों लोगों को हो सकती है परेशानी
कोविशील्ड की दो डोज़ के बीच के अंतराल को 16 हफ़्ते तक बढ़ाने की "अचानक" की गई सिफ़ारिश पर पीपल्स हेल्थ मूवमेंट के ग्लोबल हेल्थ कोऑर्डिनेटर टी सुंदररमन ने बताया कि इस फ़ैसले से कई लोग परेशान होंगे.

वो कहते हैं कि उन्हें इस बारे में कई फ़ोन कॉल आ चुके हैं. वो कहते हैं, "बहुत सारे लोगों को इस हफ़्ते या अगले हफ़्ते वैक्सीन लगावानी होंगी. वो सोच रहे होंगे कि दूसरी डोज़ अभी ली जाए या बाद में."

इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल में इंटर्नल मेडिसिन के डॉक्टर सुरनजीत चैटर्जी के मुताबिक़ इस तरह "समय बदलते रहने से वैक्सीन में लोगों का विश्वास कम हो सकता है."

ग़ौरतलब है कि वैक्सीन की आपूर्ति के लिए तेज़ी से वैक्सीन का उत्पादन करने के दबाव से जूझ रहे सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ़ इंडिया के प्रमुख अदार पूनावाला ने इंडिया टुडे से कुछ दिन पहले एक साक्षात्कार में वैक्सीन की दो डोज़ के बीच की दूरी बढ़ाने की हिमायत की थी.

वहीं अमेरिका के शीर्ष संक्रामक रोग विशेषज्ञ डॉक्टर एंथनी फाउची ने समाचार एजेंसी एएनआई से बातचीत में वैक्सीन की कमी की वजह से दो वैक्सीन के बीच समय बढ़ाने को "तर्कसंगत तरीका" बताया था.

मार्च में मेडिकल जर्नल द लैंसट में छपे एक रिसर्च में भी इस बात की पुष्टि की गई कि दो डोज़ के बीच 12 हफ़्तों का अंतराल हो तो वैक्सीन का असर बढ़ता है.

लेकिन जानकार ये सवाल कर रहे हैं कि इस अंतराल को 16 हफ़्तों तक क्यों बढ़ाया गया.

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी ऐस्ट्राज़ेनेका वैक्सीन की दो डोज़ के बीच आठ से 12 हफ़्तों का समय रखने की बात कही है.

इस फ़ैसले के पीछे क्या वजह थी, क्या डेटा था, ये जानने के लिए हमने पैनल के कुछ सदस्यों से संपर्क करने की कोशिश की लेकिन उनसे हमारी बातचीत नहीं हो सकी.

पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन के प्रमुख के श्रीनाथ रेड्डी कहते हैं, "अभी वैक्सीन की बहुत कमी है. उन्होंने (पैनल ने) स्थिति का मुआयना किया है और 12-16 हफ़्तों की बात की है."

वो सवाल करते हैं, "16 हफ़्ते क्यों? दुनिया में सिर्फ़ स्पेन ही एकमात्र देश जहां वैक्सीन की दो डोज़ के बीच 16 हफ़्तों का अंतर है."

दो डोज़ के बीच 16 हफ़्तों तक का वक्त क्यों ?
इंद्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल में इंटर्नल मेडिसिन के डॉक्टर सुरनजीत चैटर्जी इस बात से हैरान हैं कि पैनल ने कहा है कि कोरोना से ठीक होने के छह महीने बाद आप वैक्सीन लगवाएं.

वो कहते हैं, "कोविड से आपकी इम्युनिटी बिगड़ जाती है. कोरोना से ठीक होने के दो से तीन महीने में वैक्सीन देने में कोई दिक्कत नहीं है लेकिन मैंने ऐसे मरीज़ देखे हैं जिनमें एंटीबॉडीज़ तीन महीने में गायब हो जाती है."

"अगर आपको कोविड हुआ है तो (वैक्सीन के लिए) दो-तीन महीने आप आराम से इंतज़ार कर सकते हैं लेकिन छह महीने को लेकर मुझे थोड़ा संदेह है."

ये साफ़ नहीं है कि पैनल ने छह महीने की सिफ़ारिश क्यों दी. क्या दो डोज़ के बीच दूरी बढ़ाने से स्थिति सुधरेगी?

नीति आयोग सदस्य डॉक्टर विनोद पॉल ने गुरुवार को अपनी प्रेस कॉन्फ़्रेंस में दो कोवfशील्ड डोज़ के बीच के अंतराल को बढ़ाने के पीछे ब्रिटेन का उदाहरण दिया.

ब्रिटेन में दिसंबर से ही दो डोज़ के बीच 12 हफ़्तों तक के वक्त का नियम लागू है.

ब्रिटेन के इस फ़ैसले की पीछे कोशिश थी कि देश की जनता के एक बड़े हिस्से तक कम से कम एक वैक्सीन तो पहुंचे, लेकिन जब ये फ़ैसला लिया गया था तब इस फ़ैसले पर काफ़ी सवाल उठे थे.

ये पूछा गया था कि कहीं दूसरी डोज़ देने तक पहली डोज़ का असर ख़त्म न हो जाए या वो बेकार न हो जाए.

लेकिन ब्रिटेन में हालात बेहतर हुए और मौत की संख्या कम हुई है. बाद में हुए रिसर्च में भी ब्रिटेन का फ़ैसला सही साबित हुआ.

डॉक्टर पॉल ने कहा कि दो वैक्सीन के बीच में समय सीमा को बदलने का पैनल का फ़ैसला समय-समय पर किए जाने वाले रिव्यू का हिस्सा है. उन्होंने कहा कि "अब हमें ब्रिटेन के रियल लाइफ़ अनुभव के बारे में पता है."

लंदन में ग्लोबल हेल्थ अलायंस, यूके, के डायरेक्टर डॉक्टर रजय नारायण कहते हैं, "ये स्थिति सिर्फ़ टीकाकरण की वजह से ही नहीं है. हम अभी भी लॉकडाउन में हैं - जब कोरोना के नए मामलों की रोज़ाना तादाद एक-दो हज़ार रह गई है और मरने वालों की संख्या दस से कम."

डॉक्टर नारायण के मुताबिक़ भारत में जीनोमिक्स पर काम करने की ज़रूरत है ताकि नए वायरस स्ट्रेन्स के बारे में जानकारी जुटाई जा सके.

वो पूछते हैं, "ये कैसे संभव है कि भारत इस्तेमाल होने वाली वैक्सीन ब्रिटेन में भी इस्तेमाल होती है, उसके बावजूद भारत में मैं ऐसे कई डॉक्टरों को जानता हूं जो वैक्सीन लगने के बाद भी संक्रमित हो गए. उन्होंने अपना दूसरा वैक्सीन डोज़ फ़रवरी या मार्च में लिया था और उन्हें कोविड हो गया. ऐसा क्यों हो रहा है? ब्रिटेन में ऐसा क्यों नहीं हो रहा है? मैं ब्रिटेन में ऐसे एक भी मामले के बारे में नहीं जानता."

हाल ही में दिल्ली के एक डॉक्टर की दो वैक्सीन डोज़ लेने के बावजूद मौत की खबर आई थी.

ऐस्ट्राजेनेका की डोज़ को लेकर लगातार भ्रम की स्थिति रही है.

अमेरीका में अभी भी ऐस्ट्राजेनेका की वैक्सीन उपलब्ध नहीं है और हाल ही में इस वैक्सीन को लेकर पर वहां विवाद भी पैदा हुआ था. (bbc.com)

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