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मिस्र में फेसबुक गर्ल समेत कई कार्यकर्ता रिहा लेकिन दमन जारी
23-Jul-2021 5:42 PM
मिस्र में फेसबुक गर्ल समेत कई कार्यकर्ता रिहा लेकिन दमन जारी

जेल में बंद जानेमाने एक्टिविस्टों की रिहाई के बावजूद मिस्र में विरोधियों की दुश्वारियां कम नहीं हुई हैं. ताजा गिरफ्तारियां बताती हैं कि मिस्र में सत्ता के आलोचकों का दमन जारी है.

   डॉयचे वैले पर जेनिफर होलाइस की रिपोर्ट

इस सप्ताह ईद अल-अदहा का त्यौहार काहिरा की जेलों में बंद करीब 40 कैदियों के लिए अच्छी खबर लेकर आया. उन्हें रिहाई मिल गयी. इनमें से तीन मशहूर पत्रकार और तीन मानवाधिकार कार्यकर्ता थे. हालांकि इन रिहाइयों का मतलब ये नहीं है कि उन्हें बरी कर दिया गया है. चालीसों आरोपियों को इस साल के अंत में किसी समय अदालत में होने वाली सुनवाइयों के लिए हाजिर रहना होगा.

रिहाई का स्वागत लेकिन चिंताएं भी
ताजा रिहा हुए कार्यकर्ताओं में देश की जानीमानी फेसबुक गर्ल एसरा आब्देल-फतह भी हैं. 43 साल की ब्लॉगर और नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामांकित एसरा ने विचाराधीन कैदी के रूप में करीब दो साल जेल में काटे. उन पर "फर्जी खबर फैलाने और राज्य विरोधी गतिविधियों” का आरोप था. सत्ता के तीखे आलोचक पत्रकार गमाल अल-गमाल भी रिहा कर दिए गए. वह चार साल तुर्की में रहकर एक टीवी शो को होस्ट करते थे, फेसबुक पर भी सक्रिय हैं. इस साल की शुरुआत में उन्हें काहिरा अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर पहुंचते ही हिरासत में ले लिया गया था.

वॉशिंगटन डीसी में मिडल ईस्ट पॉलिसी के तहरीर इन्स्टीट्यूट में कार्यकारी निदेशक रामी याकूब ने डीडब्लू को फोन पर बताया, "मैं गर्मजोशी से इन रिहाइयों का स्वागत करता हूं. इनमें से दो लोगों को मैं एक दशक से भी अधिक समय से करीब से जानता हूं. मैं बता नहीं सकता कि कितना खुश हूं, लेकिन मैं ये भी मानता हूं कि ये कोई स्थायी समाधान नहीं है. मुझे खुशी है कि हम लोग इन्हें छुड़ा पाए लेकिन अब भी बहुत से लोग बंद हैं.”

एक ओर रिहाई दूसरी ओर कड़ी कार्रवाई
कार्यकर्ताओं और पत्रकारों की हालिया रिहाई के बीच मिस्र में विरोधियों का दमन भी जमकर हो रहा है. इस हफ्ते, मिस्र के अखबार अल-अहराम के पूर्व एडिटर इन चीफ अब्देल नासेर सलामा को आतंकवाद और फर्जी खबर चलाने के आरोपों में हिरासत में ले लिया गया. पिछले सप्ताह, मिस्र की सर्वोच्च आपराधिक अदालत में एक मुकदमा छह अन्य कार्यकर्ताओं और पत्रकारों के खिलाफ जारी था. इनमें पूर्व सांसद जयाद अल-एलाइमी भी हैं.

मुस्लिम ब्रदरहुड संगठन के सदस्यों के खिलाफ भी मिस्र कोई नरमी नहीं दिखाता. उसे 2013 में आतंकवादी गुट करार दिया गया था. इसी जून में उसके 12 सदस्यों की मौत की सजा बहाल रखने का फैसला सुनाया गया. उनके परिवारों ने फैसले के खिलाफ विरोध जताने और लोगों का ध्यान खींचने के लिए सोशल मीडिया पर #StopEgyExecutions हैशटैग के साथ अभियान छेड़ दिया है.

इनमें से एक सजायाफ्ता मुजरिम मोहम्मद अल-बेलतगी भी हैं जो 2011 की मिस्र की क्रांति के प्रमुख किरदार रहे हैं. उनकी पत्नी सना अब्द अल-गवाद ने एक चिट्ठी लिखी है, जिसकी प्रति डीडब्लू को भी हासिल हुई है. उसमें उन्होंने मिस्र की हुकूमत पर हिरासती के बुनियादी मानवाधिकारों को खारिज करने का आरोप लगाया है.

चिट्ठी में लिखा है, "हाल में सैन्य हुकूमत ने मेरे पति को मौत की सजा सुनाई है, जबकि मेरे पति दर्जनों दूसरे नेताओं और कार्यकर्ताओं के साथ सालों से धीमी और व्यवस्थागत मौत की ओर धकेले जाते रहे हैं. उनसे जिंदगी के सबसे बुनियादी हक और जीवित रहने के तमाम जरिए भी छीन लिए गए हैं.”

ह्यूमन राइट्स वॉच का अनुमान है कि मिस्र की जेलों में इस समय करीब 60 हजार लोग राजनीतिक मामलों में बंद हैं. सबसे ज्यादा मौत की सजा और फांसी देने वाले देशों की, एमनेस्टी इंटरनेशनल की 2020 की सूची में भी मिस्र का नंबर पहला है. मिस्र में, 2019 में 32 लोगों को फांसी दी गई थी लेकिन 2020 में तीन गुना यानी 107 लोग फांसी पर लटका दिए गए.

मिस्र के दोस्त अमेरिका ने भी जतायी चिंता
हिरासत में लेने और अभियोग लगाने की हाल की घटनाओं ने ध्यान भी खींचा है. मिस्र के सबसे शक्तिशाली दोस्त अमेरिका का ध्यान भी गया है. पिछले सप्ताह, अमेरिकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता नेड प्राइस ने मिस्र के जानेमाने खोजी पत्रकार और ईजिप्शियन इनीशिएटिव फॉर पर्सनल राइट्स (ईआईपीआर) के महानिदेशक, होसाम बाहगत की राजनीति से प्रेरित गिरफ्तारी पर चिंता जताई थी.

एक प्रेस ब्रीफिंग में प्राइस ने कहा, "हम मानते हैं कि सभी लोगों को अपने राजनीतिक विचार जाहिर करने और शांतिपूर्वक मिलने-जुलने और परस्पर संगठित होने की इजाजत मिलनी चाहिए. एक सामरिक भागीदार के रूप में हमने अपनी चिंताओं से मिस्र की सरकार को अवगत करा दिया है और आगे भी हम ऐसा करते रहेंगे.” प्राइस ने ये भी स्पष्ट किया कि "अमेरिका सुरक्षा, स्थिरता और जो भी हमारे दूसरे हित हों- उनके नाम पर मानवाधिकारों को नजरअंदाज नहीं करेगा. अपने मूल्यों और अपने हितों की हमारे लिए बहुत बड़ी अहमियत है और ये सरकार एक की खातिर दूसरे का बलिदान नहीं कर सकती है.”

प्रेस कॉन्फ्रेंस में जब ये पूछा गया कि क्या ये मुद्दा मिस्र को मिलने वाली हथियारों की खेप को भी प्रभावित कर सकता है तो इस पर प्राइस का कहना था, "ऐसे फैसले करते हुए हम हर स्थिति में मानवाधिकारों की हिफाजत के मामलों को भी बहुत करीब से देखते हैं.”

अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने उम्मीदवार के रूप में भी कमोबेश यही बात, अपने पूर्ववर्ती डॉनल्ड ट्रंप के खास करीबी बन चुके मिस्र के राष्ट्रपति के बारे में कही थी कि उन्हें अब और "ब्लैंक चेक” नहीं मिलेंगे.

मिस्र के पास हैं तुरुप के पत्ते
चाथम हाउस मिडल ईस्ट ऐंड नॉर्थ अफ्रीका प्रोग्राम में एसोसिएट फैलो मोहम्मद अल दहशान ने डीडब्लू को फोन पर बताया, "अंतरराष्ट्रीय दबाव पड़ेगा तो मिस्र के राष्ट्रपति अल-सिसी और सरकार को अपना व्यवहार बदलने पर मजबूर होना पड़ेगा. लेकिन सच्चाई ये है कि इस मामले में कोई गंभीर कोशिश दिखती नहीं है.”

वह कहते हैं, "पिछली दफा मिस्र की सरकार को अपने मानवाधिकारों पर खाता दुरुस्त करने को लेकर आधी-अधूरी कोशिश तो हुई लेकिन उसे आगे जारी नहीं रखा गया. मिस्र को भी पता चल गया कि वो महज दिखावा था.”

अमेरिका से आने वाले किसी दबाव के खिलाफ खुद को तैयार रखने के लिए मिस्र के पास तुरूप के पत्ते हैं. आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में मिस्र को भरोसेमंद सहयोगी माना जाता है, अमेरिका के जंगी जहाजों और सैन्य पोतों को स्वेज नहर से गुजरते हुए तवज्जो मिलती है, अमेरिकी सैन्य विमान मिस्र की हवाई सीमा में बेरोकटोक आ जा सकते हैं. इसके अलावा मध्य-पूर्व (पश्चिम एशिया) संघर्ष में मिस्र एक अहम मध्यस्थ की भूमिका भी निभाता है. हाल में अमेरिकी विदेश मंत्री एंथनी ब्लिंकेन ने फलस्तीनी इस्लामी ग्रुप हमास और इस्राएल के बीच शांति समझौता कराने के लिए मिस्र की तारीफ भी की थी.

नयी संभावित दोस्तियां
और भी देखें तो मिस्र के पास शक्तिशाली सहयोगियों की कमी नहीं है. जैसा कि तहरीर इन्स्टीट्यूट के रामी याकूब इशारा करते हैं, "अमेरिका का मिस्र के साथ रिश्ता, दोतरफा और बहुआयामी है. अमेरिकी हित इसी में हैं कि मिस्र कहीं रूस, फ्रांस या चीन से हथियार न खरीदने लगे.”

याकूब के मुताबिक अमेरिका से नज़रें न फेर लेने के लिए मिस्र को बाध्य करने वाले और भी तरीके हैं. वह बताते हैं, "मिस्र को मदद की सख्त दरकार है- मिसाल के लिए इथोपिया के साथ द ग्रांड इथोपियन रेनेसां डैम, गेर्ड के मुद्दे को लेकर या शैक्षणिक ग्रांटों और कार्यक्रमों का आवंटन और शायद ऐसी ही और सॉफ्ट पावर अप्रोचों को बढ़ावा दिया जा सकता है.” याकूब कहते हैं, "इस तरह और भी दूसरी सॉफ्ट पावर के तरीके काम आ सकते हैं. मैं यह नहीं कहता कि वे उतने असरदार होंगे लेकिन ये सहयोग बनाए रखने वाले तमाम औजारों के पैकेज का हिस्सा बनेंगे. किसी एक चीज या कोई एक डर दिखाने से काम नहीं चलेगा.”

कुछ भी हो, ये देखने लायक होगा कि काहिरा मानवाधिकार को एक नये ट्रेडमार्क में बदल पाता है या नहीं. या नयी रिहाइयां त्योहारी अवसरों की किसी छूट की तरह ही रह जाएंगी. (dw.com)

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