अंतरराष्ट्रीय

पैसिफिक देशों के सामने सवालः चीन का प्रभाव मानें या अमेरिका का दबाव
08-Jun-2022 9:00 PM
पैसिफिक देशों के सामने सवालः चीन का प्रभाव मानें या अमेरिका का दबाव

 पढ़ें डॉयचे वैले पर राहुल मिश्र का लिखा-

चीनी विदेश मंत्री वांग यी और फिर ऑस्ट्रेलियाई विदेश मंत्री पेनी वांग के दौरों के बाद पैसिफिक आईलैंड फोरम की बैठक हुई. दुनिया इन द्वीपीय देशों की अहमियत समझ रही है. क्या वे खुद अपनी अहमियत समझ रहे हैं?

7 जून को दक्षिण- प्रशांत द्वीपसमूह देशों के संगठन पैसिफिक आइलैंड फोरम की एक अहम बैठक हुई जिसमें छह सदस्य देशों ने बाहरी और अंदरूनी दबावों से क्षेत्र को बचाने के लिए आपसी मतभेदों को भुला कर और साथ मिलकर काम करने का निश्चय किया.

18 सदस्यों वाले इस संगठन की स्थापना 1971 में तब हुई थी जब चीन इस क्षेत्र में अपने कदम बढ़ा रहा था. शीत युद्ध की पृष्ठभूमि में इस संगठन को अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड का साथ मिला. लेकिन बीते कुछ सालों में इस संगठन ने अपनी चमक-दमक और पकड़ खो दी. 2021 से तो इस संगठन की बैठक ही नहीं हो पाई, जिसकी बड़ी वजह रही मुखिया के चुनाव को लेकर मतभेद और आपसी विवाद.

छिपी हुई कोरल रीफ
साउथ पैसिफिक में ताहिती के तट के पास वैज्ञानिकों को एक स्वस्थ कोरल रीफ मिली है. यह 65 मीटर चौड़ा और तीन किलोमीटर लंबी है.

लेकिन चीन, अमेरिका-ऑस्ट्रेलिया की कूटनीतिक उठापटक के बीच पैसिफिक आइलैंड फोरम के देशों को यह अहसास होना लाजमी था कि अब नहीं जागे तो दो पाटों के बीच बुरी तरह पिसेंगे. शायद यही वजह है कि 12-14 जुलाई के बीच फिजी की राजधानी सुवा में इस संगठन के सदस्य मिल बैठ कर मतभेदों को दूर करने और संगठन में सुधार लाने को तैयार हो गए हैं.

चीन का प्रभाव गलत या अमेरिका का दबाव गलत?
पिछले लगभग दो दशकों में चीन ने दक्षिण प्रशांत के द्वीपसमूह देशों पर काफी ध्यान दिया है. व्यापक आर्थिक निवेश, व्यापार संबंधों और इंफ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में सहयोग से चीन के इन तमाम देशों से संबंधों में व्यापक परिवर्तन आये हैं. इनकी शुरुआत इस क्षेत्र के तमाम देशों के साथ कूटनीतिक संबधों की शुरुआत से हुई.

लेकिन दोस्ती बढ़ाने की इस तमाम कवायद के पीछे एक बड़ी वजह यह थी कि दक्षिण-प्रशांत के तमाम देश पहले पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (चीन) की बजाय रिपब्लिक ऑफ ताइवान को औपचारिक मान्यता दे कर उसके साथ संबंध बनाये हुए थे. पिछले लगभग एक दशक में यह स्थिति तेजी से बदली है और दक्षिण प्रशांत के कई देशों ने अपनी वफादारियां चीन से जोड़ ली हैं.

ताइवान में भी युद्ध की आशंका
ताइवान के कई लोगों को अब इसमें कोई संदेह नहीं है कि एक बड़ा पड़ोसी अपने छोटे पड़ोसी पर हमला कर सकता है. उनमें से कई लोगों का मानना ​​है कि चीन ताइवान पर कभी भी हमला कर सकता है और ऐसे में चूंकि उसे अपने अस्तित्व के लिए लड़ना है, इसलिए बेहतर होगा कि अभी से तैयारी शुरू कर दी जाए. इसे ध्यान में रखते हुए कई लोगों ने पहले ही बंदूक प्रशिक्षण में दाखिला ले लिया है.

जब यह गतिविधियां हो रही थीं तब शायद अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया को कोई फिक्र नहीं थी, लेकिन जब चीन इन देशों के साथ सामरिक और सैन्य सहयोग की पींगें बढ़ाने की गुपचुप कोशिश में लगा तो बात न गुपचुप रही और न ही इसमें चीन को सफलता मिली.

चीनी विदेश मंत्री की हाल ही में हुई दक्षिण-प्रशांत द्वीपसमूहों की यात्रा चीन की सैन्य सहयोग संबंधी समझौते न कर पाने से ज्यादा इस बात की गवाह है कि सैन्य मोर्चे पर देशों को साथ लाने में अभी वह समर्थ नहीं है. लेकिन चीन की कमजोरी के साथ-साथ यह इस बात को भी उजागर करती है कि अपने तमाम वादों और इरादों के बावजूद पिछले कई दशकों से अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया ने दक्षिण-प्रशांत के द्वीपसमूह देशों की ओर ध्यान नहीं दिया था.

अचानक आई याद
हुआ यूं कि मई महीने के आखिर में चीनी विदेश मंत्री वांग यी दक्षिण-प्रशांत के देशों के दस - दिवसीय दौरे पर निकले. अपने दौरे में वांग यी ने सोलोमन द्वीपसमूह, किरिबाती, सामोआ, फिजी, टोंगा, वानुआतू, पापुआ न्यू गिनी के साथ-साथ तिमोर लेस्त का भी दौरा किया. तिमोर पिछले काफी सालों से आसियान की सदस्यता लेने की कोशिश में है.

इन तमाम बैठकों के अलावा चीन और पैसिफिक आइलैंड देशों की दूसरी विदेश मंत्री स्तरीय बैठक में भी हिस्सा लिया. माइक्रोनेशिया कुक द्वीपसमूह और निआउ के मंत्रियों के साथ ऑनलाइन वार्ता भी की.

इन तमाम बैठकों के पीछे एक बड़ी योजना यह थी कि किसी तरह पूरे क्षेत्र के साथ सोलोमन द्वीपसमूह की तर्ज पर सुरक्षा समझौतों पर दस्तखत हो जाएं. वांग यी के दौरे की शुरुआत में मीडिया में चर्चा आम थी कि वांग यी इस दौरे में कुछ बड़ा करने वाले हैं.

अटकलें इस बात की भी लगाई गईं कि वांग यी शायद पूरे क्षेत्र के देशों के साथ एक बड़ा समझौता करने वाले हैं हालांकि उन समझौतों में क्या होगा यह बात साफ तौर पर सामने नहीं आई थी. लेकिन चीन के मंसूबे हकीकत में नहीं बदल पाए.

भारत और चीन की तुलना
थिंकटैंक ग्लोबल फायर पावर ने चीन को दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी सैन्य शक्ति माना है और भारत को चौथी. यह तुलना 46 मानकों पर परखने के बाद की गई है, जिनमें से 38 में चीन भारत से आगे है.

तमाम बातचीत के बावजूद दक्षिण-प्रशांत के कुछ देशों को लगा कि चीन से दोस्ती कुछ ज्यादा ही गाढ़ी हो रही है जिसके परिणाम हर लिहाज से गंभीर होंगे. आमराय न बन पाने की स्थिति में सुरक्षा समझौते की पेशकश खटाई में पड़ गयी और वांग यी को खाली हाथ लौटना पड़ा.

क्यों बढ़ गयी हैं अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया की चिंताएं?
सोलोमन द्वीपसमूह के साथ चीन के सुरक्षा समझौते से चूकी अमेरिकी और ऑस्ट्रेलियाई सरकारों को फिजी में इस बात की भनक लग गयी कि मामला गंभीर है और चीन की योजना प्रशांत द्वीपसमूहों में व्यापक सैन्य पकड़ बनाने की है. और अगर यह समझौते कारगर हुए तो चीन को दक्षिण-प्रशांत क्षेत्र से निकालना मुश्किल हो जाएगा.

इसी डर के चलते आनन-फानन में दक्षिण प्रशांत के तमाम देशों को समझा-बुझा कर चीन के साथ समझौता न करने की गुपचुप अपील की गयी जो रंग भी लायी. जहां इन समझौतों के फलीभूत न होने से चीन को निराशा हुई होगी तो वहीं शायद ऑस्ट्रेलिया को अपनी भूल का अहसास भी हुआ होगा. यह ऑस्ट्रेलिया का कूटनीतिक अपराधबोध ही था कि जिन छोटे-छोटे पड़ोसी देशों की याद पिछले कई सालों में उसे नहीं आयी, वहां नवनिर्वाचित विदेश मंत्री पेनी वांग अपने विदेशी दौरे पर फिजी पहुंच गईं.

इस तमाम घटनाक्रम में एक बात समान है. एक ओर चीन दक्षिण-प्रशांत के देशों को दोस्त और खुद को अच्छा भाई बताकर सुरक्षा समझौता करना चाहता था. तो दूसरी ओर ऑस्ट्रलियाई विदेश मंत्री ने भी दक्षिण-प्रशांत के देशों को परिवार बता कर उनसे नजदीकियां बढ़ाने की कोशिश की. इन सबसे अलग कुक द्वीपसमूह के प्रधानमंत्री मार्क ब्राउन ने पैसिफिक आइलैंड फोरम में सुधारों और संगठन के देशों के साथ मिलकर काम करने को यह कह कर परिभाषित किया कि एक सच्चा परिवार ही आखिरकार साथ रहता है.

अब कौन सा "परिवार" असली है और टिकाऊ भी, यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा. लेकिन यह बात साफ है किए परिवार के बहाने सामरिक और कूटनीतिक वार और पलटवार का खेल दक्षिण-प्रशांत में कई साल बढ़ चढ़ कर खेला जायेगा जिसमें पैसिफिक आइलैंड फोरम की भूमिका महत्वपूर्ण होगी.

डॉ. राहुल मिश्र सेंटर मलाया विश्वविद्यालय के आसियान केंद्र के निदेशक और एशिया-यूरोप संस्थान में अंतरराष्ट्रीय राजनीति के वरिष्ठ प्राध्यापक हैं. आप @rahulmishr_ ट्विटर हैंडल पर उनसे जुड़ सकते हैं)

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news