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ऋषि सुनक ब्रिटेन के प्रधानमंत्री पद की रेस में लिज़ ट्रस से कैसे पिछड़ गए
05-Sep-2022 9:41 PM
ऋषि सुनक ब्रिटेन के प्रधानमंत्री पद की रेस में लिज़ ट्रस से कैसे पिछड़ गए

ब्रिटेन के प्रधानमंत्री चुने जाने की दौड़ में ऋषि सुनक की क़ाबिलियत और लोकप्रियता के बावजूद उनकी हार कमोबेश तय थी.

उनकी प्रतिद्वंद्वी और देश की विदेश मंत्री लिज़ ट्रस पोल्स में उनसे कहीं आगे थीं.

भारतीय मूल के उम्मीदवार ऋषि सुनक, जो हाल तक ब्रिटेन के वित्त मंत्री थे, अगर प्रधानमंत्री चुने जाते तो ये एक ऐतिहासिक क्षण होता.

उनसे पहले भी दक्षिण एशियाई मूल के नेता ब्रिटेन में बड़े पदों पर आए हैं.

वो मंत्री भी बने हैं और मेयर भी, जैसे प्रीति पटेल इस देश की गृह मंत्री हैं और सादिक़ खान लंदन के मेयर. लेकिन प्रधानमंत्री के पद का दावेदार अब तक कोई नहीं हुआ था.

डॉक्टर नीलम रैना यूनिवर्सिटी में पढ़ाती हैं. वो कहती हैं, "भारत की तुलना में इस देश की संसद में धार्मिक और जातीय अल्पसंख्यक समुदायों का प्रतिनिधित्व कहीं ज़्यादा है. लेकिन ऋषि का चुना जाना ऐतिहासिक इसलिए होता क्योंकि उनकी नस्लीय पहचान अलग है."

दुनिया भर में भारतीय मूल के नेताओं की एक लंबी सूची है जो मॉरीशस, गुयाना, आयरलैंड, पुर्तगाल या फिजी जैसे कई देशों के या तो प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति रह चुके हैं या हैं.

42 वर्षीय ऋषि सुनक का नाम इस सूची में जुड़ सकता था. सुनक ब्रिटेन के वित्त मंत्री भी रह चुके हैं. इस पद पर कोविड महामारी से कामयाबी से निपटने पर उन्होंने काफ़ी नाम कमाया था. अगर वो जीत जाते तो शायद उस नज़रिये को भी ठोस तरीक़े से स्थापित कर देता कि विश्व भर में ब्रिटिश समाज विविधता की एक बड़ी मिसाल है.

ऋषि सुनक हिंदू हैं और धार्मिक तौर तरीक़े भी अपनाते हैं. 2015 में संसद का पहली बार चुनाव जीतने के बाद उन्होंने गीता पर हाथ रखकर शपथ ली थी.

भारतीय मूल के लोग उनकी जीत के लिए प्रार्थना कर रहे थे. उनमें से एक ऋषि के शहर साउथैंप्टन के निवासी 75 वर्षीय नरेश सोनचाटला भी थे जो ऋषि को बचपन से जानते हैं. नरेश सोनचाटला ने कहा, "मुझे लगता था ऋषि प्रधानमंत्री बनेंगे. लेकिन वो नहीं बन पाए. मुझे लगता है इसकी वजह उनकी चमड़ी का रंग हो सकता है."

अगस्त के महीने में बीबीसी हिंदी की एक टीम ने ब्रिटेन के अपने दौरे में ये पाया कि नरेश सोनचाटला की तरह एशियाई मूल के लोगों में इस बात का आम तौर से डर था कि ऋषि को उनकी चमड़ी का रंग उन्हें प्रधानमंत्री बनने से रोक सकता है.

समुदाय के डर की ख़ास वजह थी कंज़र्वेटिव पार्टी के सदस्यों की सोच. पार्टी के 160,000 से अधिक सदस्यों को अपना वोट देकर ऋषि सुनक और लीज़ ट्रस किसी एक लीडर को चुनना था. इस चुनाव के नतीजे से ये साफ़ हो गया कि कंज़र्वेटिव पार्टी अभी किसी ग़ैर गोरे को प्रधानमंत्री चुनने के लिए तैयार नहीं है.

पार्टी के 97 प्रतिशत सदस्य गोरे हैं और 50 प्रतिशत से अधिक पुरुष. कुल सदस्यों में से 44 प्रतिशत वो सदस्य हैं, जिनकी उम्र 65 साल से ज़्यादा है.

ऋषि पसंद क्यों नहीं आए?
कंज़र्वेटिव पार्टी की युवा पीढ़ी ऋषि के पक्ष में नज़र आती है लेकिन वरिष्ठ सदस्यों में झुकाव लिज़ ट्रस की तरफ़ है. पिछले महीने कुछ बूढ़े सदस्यों ने बीबीसी हिंदी टीम से यहाँ तक कह दिया था कि वो ऋषि को पसंद ज़रूर करते हैं लेकिन उनका वोट लिज़ ट्रस को जाएगा. पार्टी में वरिष्ठ सदस्यों की संख्या अधिक होने के कारण पार्टी का अधिकतर मत लिज़ ट्रस को पड़ा.

लेकिन ऋषि की चमड़ी का रंग ही उनकी हार का अकेला कारण नहीं हो सकता. संजय सक्सेना लंदन में बार्कले बैंक के एक वरिष्ठ अधिकारी हैं.

उनके अनुसार, पार्टी के लोगों ने दोनों नेताओं की आर्थिक नीतियों और प्रोग्राम को देख कर ही अपना मत दिया होगा.

वो कहते हैं, "मैं इस देश में पिछले 20 साल से रह रहा हूँ. मैंने विविधता देखी है, महसूस किया है. भारतीय मूल के लोगों को बड़े पदों पर जाते देखा है. मैं नहीं समझता कि ऋषि की हार उनकी चमड़ी के रंग के कारण हुई है. लिज़ ने प्रधानमंत्री बनने पर तुरंत टैक्स कटौती का जो वादा किया है, वो आम जनता को आकर्षित कर रहा था और पार्टी के वोटर वही हैं, जो टैक्स के बढ़ने से प्रभावित हुए थे."

कुछ विशेषज्ञ पहले से ही कह रहे थे कि लिज़ ट्रस के वादे आम जनता को लुभाने वाले थे, जिसके कारण पार्टी के लोगों ने उन्हें वोट दिया.

लिज़ ने, जो देश की विदेश मंत्री भी हैं, परिवारों की मदद करने के इरादे से कॉर्पोरेशन टैक्स में एक नियोजित वृद्धि को रद्द करने का वचन दिया था.

ऋषि सुनक ने अप्रैल में देश के वित्त मंत्री की हैसियत से नेशनल इंश्योरेंस या राष्ट्रीय बीमा वृद्धि की थी. लिज़ ने वचन दिया था कि वो इस बढ़ोतरी को वापस लेंगी. उनका तर्क दिया था कि उच्च कर अर्थव्यवस्था में "संभावित रूप से विकास को रोक रहे हैं."

ऋषि के संतुलित वादे
ऋषि सुनक का तर्क था कि वो 'तुरंत राहत' मिलने वाले वादों के बजाय पहले अर्थव्यवस्था को मज़बूत करेंगे, जिसके कारण टैक्स में फ़ौरन कटौती मुमकिन नहीं. ऋषि सुनक का कहना था कि वो झूठे या कभी न पूरे होने वाले वादे करके जनता को गुमराह नहीं करना चाहते थे. उन्होंने कई बार कहा कि उन्हें हार मंज़ूर है लेकिन जनता से बेईमानी नहीं.

ब्रिटेन में आम धारणा यह है कि ऋषि सुनक बहुत ही अमीर और पॉश हैं, जो आम लोगों से उनके फ़ासले का मुख्य कारण बन गया है.

हाल के एक सर्वे के अनुसार ब्रिटेन के 250 सबसे अमीर परिवारों में उनकी गिनती होती है. लेकिन क्या वो पैदाइशी अमीर थे? उनका जन्म सॉउथैंप्टन शहर में एक मध्यम वर्ग परिवार में हुआ.

पिता डॉक्टर और माता एक केमिस्ट थीं. बचपन में सॉउथैंप्टन के एक मंदिर में उनका उनका आना-जाना रहता था, जहाँ के लोगों ने बताया कि वो एक साधारण परिवार से हैं. यहाँ शिक्षा पर अधिक ज़ोर था. वो अमीर बने तो अपनी मेहनत से.

अपनी वेबसाइट पर ऋषि लिखते हैं, "मेरे माता-पिता ने बहुत त्याग किया ताकि मैं अच्छे स्कूलों में जा सकूं. मैं भाग्यशाली था कि मुझे विनचेस्टर कॉलेज, ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय और स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय में अध्ययन करने का मौक़ा मिला."

ऋषि ने इंफ़ोसिस के संस्थापक नारायण मूर्ति की बेटी अक्षता मूर्ति से 2009 में बेंगलुरु में शादी की थी. अब इनके दो बच्चे भी हैं. कहा जाता है कि उनकी घोषित 73.0 करोड़ पाउंड की संपत्ति की मालकिन उनकी पत्नी हैं.

ऋषि सेल्फ़-मेड हैं, वो अपनी वेबसाइट पर कहते हैं, "मैं एक सफल व्यावसायिक करियर का आनंद लेने के लिए भाग्यशाली रहा हूँ. मैंने एक बड़ी निवेश फर्म की सह-स्थापना की, जो सिलिकॉन वैली से लेकर बेंगलुरु तक की कंपनियों के साथ काम कर रही है."

ऋषि से नाराज़ पार्टी
कुछ लोग ये भी कहते हैं कि पार्टी के कई सदस्य इस बात से ऋषि से नाराज़ हैं कि उन्होंने बोरिस जॉनसन की पीठ में छुरा घोंपा. इस साल जुलाई में ऋषि के अपने वित्त मंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद ही कई मंत्रियों ने बोरिस जॉनसन की कैबिनेट को छोड़ दिया था जिसके बाद उन्हें प्रधानमंत्री पद से इस्तीफ़ा देना पड़ा.

इसके बाद नए प्रधानमंत्री के चुनाव के पहले राउंड में आठ उम्मीदवार सामने आए थे. आख़िरी राउंड से पहले सभी राउंड में पार्टी के सांसदों को वोट देना था, जिन्होंने ऋषि और लिज़ को चुना था. लोगों का कहना है कि बोरिस जॉनसन ने ऋषि को आगे बढ़ाने में उनकी काफ़ी मदद की थी. ऋषि के इस्तीफे के बाद से अब तक बोरिस जॉनसन ने उनसे बात नहीं की है.

भले ही कंज़र्वेटिव पार्टी किसी ग़ैर गोरे को प्रधानमंत्री बनाने के लिए तैयार न हो, देश की जनता इसके लिए तैयार नज़र आती है.

देश भर में ऋषि सुनक की लोकप्रियता लिज़ ट्रस से कहीं अधिक महसूस होती है. अगर ये आम चुनाव होता तो ऋषि सुनक आसानी से जीत जाते. शायद ऋषि सुनक और उनके समर्थकों को 2024 के आम चुनाव का इंतज़ार रहेगा. (bbc.com/hindi)

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