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अमरीका और अन्य देशों में जीवंत है छत्तीसगढ़ी गौरव
रायपुर, 19 दिसंबर। वैचारिक आधान- प्रदान के माध्यम को भाषा कहा जाता है। यह न केवल हमारे आभ्यंतर के निर्माण, उसके विकास अपितु हमारी सामाजिक संस्कृति की पहचान का परचम है। ऐसी ही हमारी मीठी भाषा है - छत्तीसगढ़ी भाषा।
नाचा गत वर्ष, इस वर्ष भी छत्तीसगढ़ी भाषा दिवस 28 नवम्बर 2022 को बड़े ही गर्व और उत्साह से मनाया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि हमारे सम्मानिय पद्मश्री डॉक्टर सुरेंद्र दुबे जी, जिनका नाम ही भाषा की परिभाषा है, जिन्होंने अपने कविताओं के माध्यम से छत्तीसगढ़ी भाषा को हर दिल में जीवंत किया हुआ है और जो छत्तीसगढ़ के पूर्व राज्यसभा सेक्रेटेरी रहते हुए छत्तीसगढ़ी भाषा का चहुओर प्रचार- प्रसार किया।
कार्यकम की हमारे दूसरे मुख्य अतिथि डॉक्टर चत्तिरंजन कर जी, जो पंडित रविशंकर शुक्ला विश्वविद्यालय के पूर्व - साहित्य एवं भाषा के अध्यापक एवं उच्चाधिकारी रहे है, जिनका छत्तीसगढ़ी भाषा में निरंतर योगदान अद्वितीय है ।
कार्यकम का संचालन एवं रूपरेखा श्रीमती मीनल मिश्रा जी - जो नाचा की इग्ज़ेक्युटिव वाइसप्रेसिडेंट, डेन्वर - स् से है और उसकी सहभागी श्रीमती शशि शाहू जी- जो सेक्रेटेरी शिकागो-स् से है, के द्वारा छत्तीसगढ़ी भाषा में ही किया गया। कार्यकाम के मुख्य संवाददाता श्री नीरज शर्मा जी जो, मेलबर्न -ऑस्ट्रेल्या से जुड़े और साथ ही श्री महेंद्र चंद्राकर जी जो कार्यकम में जो डेन्वर -अमेरिका से जुड़े।
जैसा कि हम सभी को विदित है - छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग विधेयक 28 नवम्बर 2007 को पारित किया गया था और उसी विधेयक के पास होने के उपलब्धि में हर साल 28 नवम्बर को राजभाषा दिवस के रूप में मनाया जाता है । छत्तीसगढ़ी राजभाषा का प्रकाशन 11 जुलाई 2008 को राजपत्र में किया गया तथा आयोग का गठन किया गया जिसके प्रथम सचिव पद्मश्री डॉक्टर सुरेंद्र दुबे रहे।
कार्यकम का आयोजन श्री गणेश कर जी एवं श्रीमती दीपाली जी मार्गदर्शन में सानिध्य किया गया । कार्यकम का आनंद ऑनलाइन के माध्यम से मीनल एवं शशि जी के छत्तीसगढ़ी संवाद, और उस में कविराज पद्मश्री सुरेंद्र दुबे जी की दार्शनिक दूरदर्शिता एवं हास्यछंद का आनंद दुनिया के कोने कोने से छत्तीसगढ़ीयो ने लिया।
आज राजभाषा दिवस में छत्तीसगढ़ के युवा भविष्य ने भी बड़ चड के हिस्सा लिया - आरव मिश्रा एवं नाईरा मिश्रा जो अपनी मिट्टी से दूर डेन्वर -स््र में रहते हुए भी अपनी संस्कृति को जीवित और संजो कर रखा है, दोनो ने एक एक छत्तीसगढ़ी कविता पडी। उनके बाद पार्थ नायक एवं अथर्व नायक - जो डेन्वर है, दोनो ने साथ मिल कर - मोर भुइयाँ के गुनगान कविता का पाठ किया ।