राष्ट्रीय
पूर्वोत्तर राज्य असम में लोकसभा और विधानसभा क्षेत्रों के परिसीमन पर सवाल उठ रहे हैं. विपक्ष का आरोप है कि राज्य की कुछ मुस्लिम बहुल सीटों का गणित बिगाड़ने के लिए ही बीजेपी सरकार ने यह कवायद शुरू कराई है.
डॉयचे वैले पर प्रभाकर मणि तिवारी की रिपोर्ट-
दरअसल, यह परिसीमन वर्ष 2001 की जनगणना के आधार पर होगा. राज्य में इससे पहले वर्ष 1976 में अंतिम परिसीमन 1971 की जनगणना के आधार पर किया गया था. अब विपक्ष पार्टियां सवाल उठा रही हैं कि आखिर परिसीमन की कवायद वर्ष 2011 की बजाय 2001 की जनगणना के आधार पर क्यों की जा रही है?
असम में फिलहाल विधानसभा की 126, लोकसभा की 14 और राज्यसभा की सात सीटें है. नए परिसीमन से मौजूदा विधानसभा सीटों की संरचना में बड़े पैमाने पर बदलाव होने की संभावना है. इस बीच, असम सरकार ने शनिवार को राज्य के चार जिलों को चार अन्य जिलों में विलय करने का फैसला किया. प्रशासनिक इकाइयों के पुनर्निर्धारण पर चुनाव आयोग की रोक लागू होने से ठीक एक दिन पहले यह फैसला लिया गया.
परिसीमन की कवायद
इससे पहले चुनाव आयोग ने परिसीमन की घोषणा करते हुए कहा कि यह संविधान के अनुच्छेद 170 के तहत अनिवार्य है. यह प्रक्रिया 2001 की जनगणना के आंकड़ों पर आधारित होगी. अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए सीटों का आरक्षण संविधान के अनुच्छेद 330 और 332 के अनुसार प्रदान किया जाएगा.
वर्ष 1971 में असम की आबादी 1.46 करोड़ थी जो 2001 में यह बढ़कर 2.66 करोड़ और 2011 में 3.12 करोड़ हो गई. केंद्र सरकार ने मार्च 2020 में जम्मू और कश्मीर, असम, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर और नागालैंड के लिए एक परिसीमन आयोग गठित करने की अधिसूचना जारी की थी.
विपक्ष के सवालों और आलोचनाओं के बीच असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने कहा है कि परिसीमन प्रक्रिया से राज्य के स्थानीय लोगों के हितों की रक्षा होगी. गुवाहाटी में उनका कहना था, परिसीमन प्रक्रिया आंकड़ों पर आधारित गैर-राजनीतिक प्रक्रिया होगी. यह प्रक्रिया भावनाओं पर नहीं बल्कि तर्क पर आधारित होनी चाहिए. उन्होंने उम्मीद जताई कि इस प्रक्रिया से आने वाले दिनों में असम के स्थानीय लोगों के हितों की रक्षा हो सकती है.
विपक्ष का सवाल
कांग्रेस समेत दूसरी विपक्षी पार्टियां परिसीमन के लिए 2001 की जनगणना को आधार वर्ष बनाने को लेकर सवाल उठा रही हैं. कांग्रेस ने परिसीमन की प्रक्रिया से जुड़े तौर-तरीकों पर नजर रखने के लिए एक कमेटी बनाई है. बदरुद्दीन अजमल के नेतृत्व वाले ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (एआईयूडीएफ) ने इसे सत्तारूढ़ बीजेपी का राजनीतिक एजेंडा बताया है. विपक्षी पार्टियों का आरोप है कि बीजेपी परिसीमन के जरिए खासकर निचले असम की कई मुस्लिम बहुल सीटों का गणित बिगाड़ सकती है.
राज्य में विपक्ष के नेता देवव्रत सैकिया ने परिसीमन प्रक्रिया का स्वागत करते हुए कहा है कि इसका लंबे अरसे से इंतजार था. लेकिन उनका सवाल है कि इसके लिए वर्ष 2001 की जनगणना के आंकड़ों का इस्तेमाल क्यों किया जा रहा है? इस तरह का फैसला लेने से पहले सरकार को इस बात पर विचार करना चाहिए कि क्या इससे कोई सार्थक उद्देश्य पूरा होगा?
जिलों का विलय
परिसीमन की प्रक्रिया शुरू होने के बाद चुनाव आयोग ने किसी तरह के प्रशासनिक फेरबदल पर रोक लगा दी थी. उसे ध्यान में रखते हुए मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने ठीक एक दिन पहले ही राज्य के चार जिलों का उनके पुराने जिलों में विलय कर दिया गया था. सरमा ने इसका ऐलान करते हुए कहा, "असम, समाज और प्रशासनिक आवश्यकताओं के हितों को ध्यान में रखते हुए भारी मन से यह फैसला लिया गया है. विश्वनाथ जिले का सोनितपुर में, होजई का नगांव में, बाजोली का बारपेटा में और तामुलपुर का बक्सा जिले में विलय किया जाएगा."
असम सरकार ने हाल के दिनों में ही इन जिलों को बनाया था. मुख्यमंत्री ने कहा कि वह इन जिलों के लोगों से माफी मांगना चाहते हैं. उन्होंने उम्मीद जताई कि लोग इन फैसलों के महत्व को समझेंगे. सरमा ने बताया कि राज्य के मंत्रियों की एक टीम इन जिलों का दौरा करेगी और प्रमुख संगठनों व नागरिकों के साथ बातचीत कर उन्हें फैसलों की वजह को बताएगी. उन्होंने कहा कि फैसले की वजहों का खुलासा सार्वजनिक रूप से नहीं किया जा सकता है. हालांकि उनका कहना था कि विलय किए गए चारों जिलों की पुलिस और न्यायिक व्यवस्था अपने कार्यालयों और अधिकारियों के साथ जारी रहेगी. (dw.com)