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पाकिस्तान में बदहाली के बीच पीएम नरेंद्र मोदी पर बहस क्यों
16-Jan-2023 12:06 PM
पाकिस्तान में बदहाली के बीच पीएम नरेंद्र मोदी पर बहस क्यों

नई दिल्ली, 16 जनवरी ।  पाकिस्तान में इन दिनों सोशल मीडिया पर भारतीय प्रधानमंत्री का एक वीडियो वायरल हो रहा है.

इस वीडियो को पाकिस्तानी पत्रकार इरशाद भाटी ने शेयर करते हुए लिखा है, ''जब दुश्मन मज़ाक उड़ाए और आदर न दे तो ज़िंदा रहने से ज़्यादा अच्छा मर जाना होता है.''

इस वीडियो में नरेंद्र मोदी कह रहे हैं, ''भाइयों-बहनों, हमने पाकिस्तान की सारी हेकड़ी निकाल दी. उसे कटोरा लेकर दुनिया भर में घूमने के लिए हमने मजबूर कर दिया है.''

पाकिस्तानी सांसद और इमरान ख़ान की पार्टी के नेता आज़म ख़ान स्वाति ने पीएम मोदी के इस वीडियो को ट्वीट करते हुए लिखा है, ''देखिए भारत के प्रधानमंत्री मोदी पाकिस्तान के बारे में क्या कह रहे हैं. अगर थोड़ी भी इज़्ज़त नहीं बची है तो कोई बात नहीं. पाकिस्तान को बचाने का एक ही उपाय है इमरान ख़ान को वापस लाना.''

पत्रकार नायला इनायत ने भी इस वीडियो को शेयर करते हुए लिखा है, ''पीटीआई वाले वीडियो को शेयर कर रहे हैं कि मोदी शहबाज़ शरीफ़ की सरकार के बारे में कह रहे हैं, लेकिन यह वीडियो 2019 का है और तब इमरान ख़ान ही प्रधानमंत्री थे.''

पाकिस्तान के विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो ने पिछले महीने भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ख़िलाफ़ विवादित टिप्पणी की थी.

पीएम नरेंद्र मोदी के इस वीडियो पर भारत में पाकिस्तान के उच्चायुक्त रहे अब्दुल बासित ने अपने वीडियो ब्लॉग में कहा है, ''प्रधानमंत्री मोदी अपने वीडियो क्लिप में कह रहे हैं कि उन्होंने पाकिस्तान को कटोरा लेकर देश दर देश जाने पर मजबूर कर दिया है.

मोदी कह रहे हैं उन्होंने पाकिस्तान को इस मुकाम तक पहुँचा दिया है. ये तो अलग बात है कि पीएम मोदी ने पाकिस्तान को इस हद तक पहँचाने में क्या किया, लेकिन इसके हम ज़्यादा कसूरवार हैं. हर पाकिस्तानी को दुख तो होता है. जब भी कोई प्राकृतिक आपदा आती है तो पाकिस्तान दूसरे देशों की तरफ़ देखने लगता है.''

बिलावल ने पीएम मोदी को 'गुजरात का कसाई' कहा था. अब जब पाकिस्तान का ख़ज़ाना ख़ाली हो गया है और प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ विदेशी दौरे कर क़र्ज़ मांगते चल रहे हैं, ऐसे में पाकिस्तान के भीतर एक बहस चल रही है कि पड़ोसी भारत से संबंध ठीक करना ज़रूरी है.

पाकिस्तान में मोदी की तारीफ़

पाकिस्तान के राजनीतिक और रक्षा विश्लेषक शहज़ाद चौधरी ने 13 जनवरी को पाकिस्तान के अंग्रेज़ी अख़बार 'द एक्सप्रेस ट्रिब्यून' में एक लेख लिखा था.

इस लेख में उन्होंने लिखा है, ''पाकिस्तान में नरेंद्र मोदी तिरस्कृत नाम हो सकते हैं, लेकिन उन्होंने इंडिया को ब्रैंड बनाया है और इससे पहले ऐसा कोई नहीं कर पाया था. सबसे अहम बात यह है कि भारत जो महसूस करता है वो करता है और उस हद तक जाता है. अमेरिका का भारत एक सहयोगी है और हम पाकिस्तानी केवल कोसने में लगे रहते हैं. हम एक भ्रम में रहते हैं और हक़ीक़त से काफ़ी दूर.''

शहज़ाद चौधरी ने लिखा है, ''रूस पर कड़े अमेरिकी प्रतिबंध हैं. लेकिन भारत अपनी शर्तों पर रूस से तेल ख़रीद रहा है. केवल ख़रीद ही नहीं रहा है बल्कि पड़ोसियों को निर्यात भी कर रहा है और डॉलर कमा रहा है.

इसके बावजूद दुनिया के दोनों सैन्य शक्ति रूस और अमेरिका भारत को अपना सहयोगी बता रहे हैं. क्या यह राजनयिक तख़्तापलट नहीं है? इससे यह पता चलता है कि भारत कितना प्रासंगिक है. भारत आज पूरी दुनिया के लिए प्रासंगिक है.

भारत दुनिया की पाँचवीं बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है और ब्रिटेन भारत से पीछे हो गया है. भारत का लक्ष्य 2037 तक दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने का है.''

शहज़ाद चौधरी ने लिखा है, ''भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 600 अरब डॉलर का है और इस मामले में भी दुनिया भर में चौथे नंबर पर है. पाकिस्तान के पास अभी महज़ 4.5 अरब डॉलर विदेशी मुद्रा बची है. पिछले तीन दशकों से भारत की अर्थव्यवस्था चीन के बाद सबसे तेज़ी से बढ़ रही है.

1992 में भारत का विदेशी मुद्रा भंडार महज़ 9.2 अरब डॉलर था. यह 2004 में बढ़कर 100 अरब डॉलर हो गया था. 2014 में मनमोहन सिंह जब तक प्रधानमंत्री रहे तब तक भारत का विदेशी मुद्रा भंडार बढ़कर 252 अरब डॉलर हो गया था. मोदी के शासन में यह बढ़कर 600 अरब डॉलर हो गया और अर्थव्यवस्था का आकार भी बढ़कर तीन ट्रिलियन डॉलर का हो गया.''

शहज़ाद चौधरी की टिप्पणी पर पाकिस्तान में पक्ष और विपक्ष दोनों से प्रतिक्रिया आ रही है. शहज़ाद चौधरी के लेख को ट्विटर पर शेयर करते हुए थिंक टैंक साउथ एशिया सेंटर के निदेशक उज़ैर यूनुस ने लिखा है, ''भारत से रिश्ते सुधारना वक़्त की ज़रूरत है, लेकिन इस कड़वी सच्चाई को इस्लामाबाद और रावलपिंडी में अनदेखा किया जाएगा.''

वहीं शहज़ाद चौधरी के लेख से असहमति जताते हुए भारत में पाकिस्तान के उच्चायुक्त रहे अब्दुल बासित ने लिखा है, ''मेरा मानना है कि पाकिस्तान से ज़्यादा भारत को कश्मीर और पाकिस्तान के मामले में फिर से सोचने की ज़रूरत है. आज की तारीख़ में भारत ज़्यादा घमंड में है और उसी वजह से पूरा इलाक़ा अस्थिर है. पाकिस्तान को चाहिए कि वह कश्मीर पर अडिग रहे.''

अब्दुल बासित के इस ट्वीट के जवाब में पाकिस्तानी पत्रकार फ़रीहा एम इदरीस ने लिखा है, ''यही सवाल मेरा भी है. इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता कि हमें भारत के साथ संबंधों पर सोचने की ज़रूरत है, लेकिन अचानक पाकिस्तान के लोग इसे क्यों प्रमोट करने लगे हैं?''

इसके जवाब में शहज़ाद चौधरी ने लिखा है, ''तनाव लेने की ज़रूरत नहीं है. ऐसा होने नहीं जा रहा है. हमें वैसे भी यथास्थिति पसंद है. कोई भारत को लेकर नीति बदलने नहीं जा रहा है. हम अपनी चीज़ों को व्यवस्थित नहीं कर सकते हैं. डरने की ज़रूरत नहीं है. इंशाअल्लाह.''

पाकिस्तान की महंगाई कम करने में भारत मददगार

पाकिस्तान में कई लोग मांग कर रहे हैं कि भारत से कारोबारी रिश्ता बहाल करना चाहिए और इससे बढ़ती महंगाई को काबू में किया जा सकता है.

पाकिस्तान में खाने-पीने के सामानों के दाम बेतहाशा बढ़ रहे हैं. दाम बढ़ने के पीछे वजहें ट्रांसपोर्टेशन लागत, सामान की उपलब्धि, मांग और आपूर्ति के बीच बढ़ता गैप और एक्सचेंज रेट हैं.

पाकिस्तान ब्यूरो स्टैटिस्टिक्स यानी पीबीएस के डेटा के अनुसार, 20 किलोग्राम के आटे का पैकेट कराची में तीन हज़ार रुपए में मिल रहा है जबकि इस्लामाबाद में 1300 रुपए में.

पोर्ट सिटी कराची में गेहूं की पैदावार नहीं होती है और यहाँ सिंध से गेहूं आता है जो कि आते-आते बहुत महंगा हो जाता है. इस्लामाबाद में प्याज़ 240-280 रुपए किलो मिल रहा है और बाक़ी शहरों में 180 से 220 रुपए तक.

फ़लाही अंजुमन होलसेल वेजीटेबल मार्केट सुपर हाइवे के अध्यक्ष हाजी शाहजहां ने डॉन से कहा है कि भारत से प्याज़ समेत कई सब्ज़ियां आयात करने की अनुमति देनी चाहिए. उन्होंने कहा कि वाघा बॉर्डर से आयात बहुत आसान और सस्ता है. हाजी ने कहा कि भारत की तुलना में दूसरे देशों से आयात ट्रांसपोर्टेशन में ज़्यादा ख़र्च के कारण महंगा हो जाता है.

पाकिस्तान के लोग यह दलील भी दे रहे हैं कि भारत और चीन में भी तनाव है, लेकिन भारत ने चीन से व्यापार नहीं बंद किया है. दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार 100 अरब डॉलर पार कर चुका है.

कूटनीतिक रिश्ता और कारोबार

चीन से सीमा पर तनाव के बीच भारत में भी कुछ राजनीतिक पार्टियां मांग कर रही थीं कि चीन से कारोबारी रिश्ता तोड़ लेना चाहिए.

नीति आयोग के पूर्व चेयरमैन और जाने-माने अर्थशास्त्री अरविंद पनगढ़िया ने कहा था कि अगर भारत चीन से कारोबारी रिश्ता ख़त्म करता है तो भारी नुक़सान होगा.

समाचार एजेंसी पीटीआई से अरविंद पनगढ़िया ने पिछले महीने कहा था, ''इस मोड़ पर चीन के साथ ट्रेड वॉर में जाना भारत की आर्थिक वृद्धि दर को नुक़सान पहुंचाने वाला साबित होगा. यह आर्थिक मोर्चे पर एक नासमझी भरा फ़ैसला होगा.''

पनगढ़िया अभी कोलंबिया यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र के प्रोफ़ेसर हैं. उन्होंने कहा था, ''दोनों देश ट्रेड पाबंदी का गेम खेल सकते हैं, लेकिन चीन की अर्थव्यवस्था 17 ट्रिलियन डॉलर की है और भारत की तीन ट्रिलियन डॉलर की. ऐसे में चीन की चोट ज़्यादा भारी होगी.

जो चीन को सज़ा देने के लिए कारोबार बंद करने की बात कर रहे हैं वो स्थिति को हक़ीक़त में समझ नहीं रहे हैं. चीन से बड़ी अर्थव्यवस्था अमेरिका की है, लेकिन अमेरिका भी चीन से कारोबारी संबंध तोड़ नहीं पा रहा है.''

पाकिस्तान की दुश्वारी

शहज़ाद चौधरी ने लिखा है, ''पाकिस्तान और भारत के बीच गैप इतना बढ़ चुका है कि बराबरी करना असंभव है. भारत अब दक्षिण एशिया से बाहर के लक्ष्यों को लेकर चल रहा है. भारत की विदेशी नीति अब पाकिस्तान से आगे निकल चुकी है. भारत और चीन के बीच भले ही बाहर से देखने पर तनाव नज़र आता है, लेकिन दोनों देशों के बीच व्यापार 100 अरब डॉलर कब का पार हो चुका है और इसे 500 अरब डॉलर करने का लक्ष्य है.''

''भारत को कश्मीर में जो करना है, कर रहा है. दूसरी तरफ़ पाकिस्तान भारत से कृत्रिम तनाव कायम रख ख़ुद को दिवालिया नहीं बना सकता. हमें पड़ोसियों की आर्थिक गतिविधियों का फ़ायदा उठाना चाहिए.

अब वक़्त आ गया है कि हम भारत के प्रति अपनी नीति की समीक्षा करें. हमें आर्थिक तरक़्क़ी के लिए भारत और चीन दोनों के साथ मिलकर काम करना चाहिए. अगर हम वक़्त के साथ नहीं बदले तो इतिहास में किसी फ़ुटनोट की तरह रह जाएंगे.''

पाकिस्तान के पूर्व वित्त मंत्री मिफ़्ताह इस्माइल ने 14 जनवरी को पाकिस्तान के क़र्ज़ भुगतान पर वहाँ के अंग्रेज़ी अख़बार डॉन में एक लेख लिखा है.

इस लेख की शुरुआत में उन्होंने कहा है, ''पाकिस्तान पर दुनिया का क़र्ज़ क़रीब 100 अरब डॉलर है और इस वित्तीय वर्ष में 21 अरब डॉलर का क़र्ज़ चुकाना है. अगले तीन सालों तक क़रीब 70 अरब डॉलर का क़र्ज़ पाकिस्तान को चुकाना है.

तो अब से चार सालों तक क्या होगा? हमें 90 अरब डॉलर चुकाना है और 10 अरब डॉलर का जुगाड़ हो पाया है. दुर्भाग्य से हमारे पास क़र्ज़ चुकाने के लिए संसाधन नहीं हैं. हम क़र्ज़ लेकर दूसरा क़र्ज़ चुकाने में लगे हैं.''

मिफ़्ताह इस्माइल ने लिखा है, ''पाकिस्तान क़र्ज़ के जाल में अभी फँसता रहेगा. यह तब तक होगा जब तक हमारा निर्यात ज़्यादा नहीं होगा और चालू खाता घाटा कम नहीं होगा. अगर ऐसा होता है तभी यह संभव होगा कि हम बिना क़र्ज़ लिए क़र्ज़ चुका पाएंगे.

लेकिन पाकिस्तान के ये हालात बने कैसे? हम थोड़ा अतीत में जाते हैं. जब पाकिस्तान अल क़ायदा और उसके तालिबान समर्थकों के ख़िलाफ़ युद्ध में शामिल हुआ तो पश्चिम ने हमारा ज़्यादातर विदेशी क़र्ज़ राइट ऑफ़ कर दिया था. ऐसे में हमें क़र्ज़ों के भुगतान का दबाव नहीं रहता था और विदेशी मुद्रा की ज़रूरत उस तरह से नहीं होती थी.''

मिफ़्ताह इस्माइल ने लिखा है, ''2002 के बाद चालू खाता घाटे को पाटने के लिए विदेशी मुद्रा की ज़रूरत बढ़ी. हमारा आयात बढ़ रहा था और उसकी तुलना में निर्यात सिकुड़ता गया.

हमने कभी करंट अकाउंट सरप्लस नहीं रखा. हम एक से क़र्ज़ लेते रहे और उसे चुकाने के लिए दूसरे क़र्ज़ लेने लगे. ऐसे में हमने कभी क़र्ज़ का भुगतान किया ही नहीं बल्कि और बढ़ता गया. जनरल मुशर्रफ़ जब 2007-2008 में सत्ता में थे तो चालू खाता घाटा और बेतहाशा बढ़ा.'' (bbc.com/hindi)

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