कारोबार
लोकप्रियता एवं मांग विदेशों में भी
रायपुर, 20 अगस्त। एडप्रयास की डायरेक्टर श्रीमती ममता पाण्डेय द्वारा मौली धागों (स्वदेशी रक्षा सूत्र) से बनी राखियाँ को उपयोग किये जाने हेतु विगत 7 वर्षों पूर्व एक सराहनीय पहल प्रारंभ की गई थी। इसमें स्कूल कॉलेजों के विद्यार्थियों एवं महिला समितियों को मौली राखी बनाने का प्रशिक्षण किया जाता रहा है।
मौली राखीं पर्यावरण हितैषी प्रकृतिक समानों से बनाई जाती है जिसमें रूद्राक्ष, तुलसी, सामान्य मोतियां, शिप आदि का प्रयोग किया जाता है। इसी तरह लुम्बा राखियों में पुजा की सुपारी का प्रयोग किया जाता है जो भाभियों को पहनाने के लिए है।
लोगों के बीच मौली राखी की लोकप्रियता व माँग निरंतर बढ़ती रही है। इस वर्ष मौली राखियों की मांग विदेशों से भी हो रही है, मौली स्वदेशी धागे की खास बात यह भी है कि वात पित्त व कफ जैसे शारीरिक विकारों को दूर करने में यह पौराणिक काल से इस्तेमाल की जाता रहा है। धार्मिक अनुष्ठानों में, इसे हाथों की कलाई पर बांधना शुभ माना जाता है।
मौली राखी बनाने का काम हर वर्ष महिलाओं व लड़कियों द्वारा किया जाता रहा है इस वर्ष मौली राखियां बनाने के कार्य में, सत्य सांई हेल्प वे, मुक बधरी बालिका आवासीय विद्यालय, नूतन चौक, बिलासपुर स्थित मूक-बधीर केन्द्र के छात्राओं दिप्ती कश्यप, प्रतिभा साहू, दीपांजली, प्रिया धुरी, सरोज, हेमलता, हेमपुष्पा, चित्रलेखा, आरती देवगन, आरती केंवट का योगदान रहा।
ये बच्चियां भले ही सुनने व बोलने से वंचित है लेकिन इन्होंने अपनी मेहनत से आकर्षक मौली राखियां बनाकर अपनी योग्यता दिखाई है। इन बच्चों को मौली राखी बनाने का प्रशिक्षण स्वयं ममता पांडेय द्वारा सेंटर में जाकर दिया गया था।
इन बच्चों ने उत्साह के साथ इस कार्य को करते रहे हैं। भाई-बहन के स्नेह व प्यार के पर्व रक्षाबंधन पर, अधिक से अधिक भाई-बहन मौली राखियां खरीदकर इस कल्याणकारी उद्देश्य में सहयोग करते रहे हैं।
श्रीमती ममता पाण्डेय इस वर्ष मौली राखियों की बिक्री से प्राप्त राशि जनहित के कार्य हेतु सहयोग करनें का लक्ष्य रखा है।