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जय वीरू फिर साथ, पर लेट हो गए
साइंस कॉलेज मैदान में सीएम के शपथ ग्रहण समारोह में शिरकत करने पूर्व सीएम भूपेश बघेल, और पूर्व डिप्टी सीएम टीएस सिंहदेव एक ही गाड़ी से गए। वापसी में वो प्रदेश प्रभारी सैलजा के अस्थाई निवास सी-9 में पहुंचे।
दोनों को एक ही गाड़ी से उतरते देख वहां मौजूद कांग्रेस के नेता हैरान रह गए। एक सीनियर नेता की टिप्पणी थी कि ऐसा तालमेल चुनाव से पहले दिखाते तो प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बन जाती।
कांग्रेस सरकार के पांच साल में दोनों के बीच शीत युद्ध चलता रहा। इसका असर सरकारी कामकाज पर भी पड़ा। दोनों के समर्थकों के बीच टकराव देखने को मिला। जिसका सीधा असर चुनाव नतीजों पर भी पड़ा। अब हार से सबक लेते हुए जय-वीरू की जोड़ी फिर बनती है या नहीं, यह देखना है।
त्रिदेव काम पर लगे
शपथ लेने के बाद बुधवार को सीएम विष्णुदेव साय, और दोनों डिप्टी सीएम अरुण साव व विजय शर्मा पहले मंत्रालय गए, और विधिवत कार्यभार ग्रहण करने के बाद कुशाभाऊ ठाकरे परिसर पहुंचे।
तीनों नेताओं ने प्रदेशभर से आए नेताओं और कार्यकर्ताओं से मेल-मुलाकात की। इसके बाद तीनों एक साथ बंद कमरे में वहां भोजन किया। और फिर प्रशासनिक कामकाज को लेकर घंटे भर मंत्रणा हुई।
चर्चा है कि अफसरों की पोस्टिंग से लेकर कैबिनेट के विषयों पर आपस में चर्चा की। इस दौरान संगठन का कोई नेता वहां नहीं था। इसके बाद रात करीब 12 बजे तीनों निकले, और फिर कार्यकर्ताओं से मिलने के बाद रवाना हो गए।
मंत्रिमंडल और असमंजस
सीएम, दो डिप्टी सीएम के शपथ लेने के बाद मंत्रियों के शपथ को लेकर भी चर्चा चल रही है। दोनों डिप्टी सीएम पहली बार के विधायक हैं। लिहाजा, नए विधायक उत्साहित, और उम्मीद से नजर आए।
पूर्व मंत्रियों, और सीनियर विधायकों को मंत्रिमंडल में जगह मिलेगी या नहीं, यह साफ नहीं है। चर्चा है कि कुछ पूर्व मंत्रियों ने तो अपनी संभावनाओं को लेकर पूर्व सीएम डॉ. रमन सिंह से भी बात की। मगर रमन सिंह भी ज्यादा कुछ कहने की स्थिति में नहीं है।
हालांकि पार्टी संगठन के एक बड़े नेता ने कुछ नेताओं से कहा है कि मंत्रिमंडल में नए के साथ-साथ पुराने अनुभवी चेहरों को भी जगह दी जाएगी।
मगर यह स्पष्ट है कि कई पुराने चेहरे ऐसे हो सकते हैं जिन्हें मंत्री न बनाया जाए। वजह यह है कि सिर्फ 10 मंत्री बनाए जा सकते हैं, जबकि 13 पूर्व मंत्री जीतकर आए हैं। देखना है कि मंत्रिमंडल में किसको जगह मिलती है।
कर्ज माफ न होने की चिंता
चुनाव अभियान की शुरुआत में ही जब तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने फिर से कर्ज माफी करने की घोषणा की तो इसे मास्टर स्ट्रोक माना गया। यह भी कहा गया कि इतना बड़ा ऐलान किसी राष्ट्रीय नेता ने क्यों नहीं किया। मगर जब सरकार भाजपा की बन गई है तो फिर किसानों को कर्ज का भुगतान करना पड़ेगा। इस खरीफ सीजन में कांग्रेस सरकार ने 13 लाख से ज्यादा किसानों को करीब 6100 करोड रुपए का कर्ज देने का लक्ष्य रखा था। बघेल की घोषणा के पहले 12 लाख से कुछ कम किसानों को करीब 5800 करोड़ का ऋण दिया जा चुका था। छत्तीसगढ़ में सोसाइटी में धान बेचने वाले पंजीकृत किसानों की संख्या 25 लाख के आसपास है। यानी 50 फीसदी किसान कर्जदार हैं। पर अब जब भाजपा सरकार अस्तित्व में आ गई है तो कर्ज लेने वाले किसानों को मायूस होना पड़ा है। कई लोगों ने माफी की उम्मीद में दो लाख या उससे अधिक रकम उठा ली थी। उनको बस दो बातों से तसल्ली हो सकती है कि धान का दाम कांग्रेस के वादे के आसपास ही 3100 रुपए प्रति क्विंटल मिल जाएगा और समर्थन मूल्य से ऊपर की राशि एकमुश्त मिलेगी जो पहले चार बार में मिलती थी। फिर 2 साल का रुका हुआ बकाया बोनस भी मिलेगा। कर्ज चुकाने लायक न सही, भार कम करने के लिए तो कुछ मिलेगा।
कुर्सी मोदी की, टेबल गवर्नर की..
बात यदि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हो तो वे भाषण दिये बिना भी चर्चा में रह सकते हैं। प्रधानमंत्री मोदी सुबह भोपाल में मंच पर थे। रायपुर के शपथ ग्रहण समारोह में भी तय कार्यक्रम के अनुसार वे ठीक 3.55 मिनट पर मंच पर पहुंच गए। उनके बैठने की जगह पर एक टेबल और माइक रख दी गई थी। पर मोदी को मालूम रहा होगा कि तय प्रोटोकॉल के मुताबिक सिर्फ शपथ समारोह होगा। कार्यक्रम राजभवन का है। टेबल देखकर वे असहज हुए। वे झुके और टेबल को बगल में बैठे राज्यपाल की ओर खिसकाने लगे। जैसे ही मोदी को झुकते देखा, मंच पर खड़े बाकी नेता चौंके। जेपी नड्डा और ओम माथुर उनकी ओर बढ़े। दूसरी तरफ विष्णु देव साय थे, सभी ने टेबल खींचने में मदद की। मोदी के ठीक पीछे सेक्यूरिटी ऑफिसर खड़े थे, लेकिन जब तक वे नजदीक पहुंचते टेबल खिसकाई जा चुकी थी।
वोट बढ़े पर सीटें नहीं मिलीं...
रायपुर में हुई कांग्रेस विधायकों की बैठक में प्रभारी कुमारी सैलजा ने कहा कि हमारे वोट प्रतिशत घटे नहीं हैं। वे पिछली बार की तरह 42 प्रतिशत ही रहे। इसलिए बहुत निराश होने की जरूरत नहीं है। सबने मेहनत की थी, लोकसभा चुनाव की तैयारी करें। बात ठीक ही है, मगर वोट प्रतिशत बढऩे का फायदा हर जगह भाजपा को मिला हो, ऐसा भी नहीं है। कांग्रेस को भी मिला। सरकार इसके बावजूद नहीं बन पाई। अब बालोद जिले की ही तीन सीटों को ही ले लें। आंकड़ों को देखने से मालूम होता है कि यहां भाजपा को इस बार 38.54 प्रतिशत वोट मिले हैं। ये वोट पिछली बार ( सन् 2018) से 9.78 प्रतिशत अधिक हैं। मतलब, बालोद जिले में भाजपा को करीब 10 फीसदी ज्यादा मतदाताओं का समर्थन मिल गया। इसके बावजूद यहां से उसे तीनों में एक सीट भी नहीं मिली, क्योंकि कांग्रेस का वोट प्रतिशत बढक़र 50.20 शून्य प्रतिशत चला गया। लोकसभा चुनाव की तैयारी करते वक्त कांग्रेस भाजपा दोनों को ही ऐसे ही आंकड़ों पर ध्यान देना पड़ सकता है।