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रायपुर, 14 फरवरी। गुरूदेव श्रीश्री रवि शंकर ने बताया कि सरस्वती कोई व्यक्ति नहीं है। चेतना का वह तत्व जो कभी नीरस नहीं होता बल्कि जीवन के उत्साह और सार से परिपूर्ण होता है, वह सरस्वती है। देवी सरस्वती ज्ञान, संगीत और ध्यान का अवतार हैं। विद्या की देवी सरस्वती का स्वरूप एवं संकल्पना विश्व में अद्वितीय है।
उन्होंने बताया कि यदि हम देवी सरस्वती के प्रतीकात्मक स्वरुप को देखें तो उनके एक हाथ में वीणा है और दूसरे हाथ में पुस्तक है। पुस्तक बाएं मस्तिष्क की गतिविधियों का प्रतिनिधित्व करती है, और वीणा, जो संगीत संकाय का प्रतिनिधित्व करती है वह रचनात्मक पक्ष को दर्शाती है और दाएं मस्तिष्क को सक्रिय करती है। उनके हाथ में जप माला है जो जीवन के ध्यान संबंधी पक्ष को दर्शाती है।
उन्होंने बताया कि शिक्षा गान (संगीत), ज्ञान (बौद्धिक ज्ञान), और ध्यान (ध्यान) इन तीनों तत्वों से ही परिपूर्ण हो सकती है। केवल जब कोई इन तीनों में पारंगत हो, तभी आप किसी को शिक्षित या सभ्य कह सकते हैं। हमें यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि बच्चे संगीत और योग सीखें और हमें यह भी सुनिश्चित करना होगा कि उनमें वैज्ञानिक सोच भी हो।
उन्होंने बताया कि जैसे-जैसे वे बड़े हों, उनमें जिज्ञासु मन और वैज्ञानिक सोच बनाए रखने के लिए प्रश्न पूछने के लिए प्रोत्साहित करें। माँ सरस्वती का वाहन हंस दर्शाया गया है। ऐसा कहा जाता है कि यदि हंस के सामने दूध और पानी का मिश्रण रखा जाए तो वह पानी और दूध को अलग कर देगा।
उन्होंने बताया कि यह विवेक की शक्ति का प्रतीक है, जिसका उपयोग करके हम जीवन के अनुभवों से सकारात्मक शिक्षा लेते हैं और नकारात्मकता को पीछे छोड़ देते हैं। आप देखेंगे कि देवी सरस्वती के साथ मोर भी है। मोर हर समय नृत्य नहीं करता बल्कि बारिश से ठीक पहले नृत्य करता है और अपने शानदार रंग प्रदर्शित करता है। यह सही ज्ञान को सही स्थान और सही समय पर व्यक्त करने की क्षमता को दर्शाता है।
उन्होंने बताया कि देवी सरस्वती वह चेतना हैं जो विभिन्न प्रकार की विद्याओं से स्पंदित होती हैं। वे आध्यात्मिक प्रकाश का स्रोत हैं तथा सभी अज्ञानता को दूर करने वाली है। देवी सरस्वती सभी ज्ञान का स्रोत हैं। वे वीणा वादन करती हैं। वीणा मानव शरीर का प्रतिनिधित्व करती है।