ताजा खबर

राजपथ-जनपथ : देवेंद्र का विरोध भी शुरू
27-Mar-2024 5:08 PM
राजपथ-जनपथ :  देवेंद्र का विरोध भी शुरू

देवेंद्र का विरोध भी शुरू 
कांग्रेस ने एक बार फिर रायपुर के बाद बिलासपुर सीट से अनपेक्षित  नाम देकर सबको चौंका दिया है। पार्टी ने कोल स्कैम केस में आरोपी भिलाई के विधायक देवेन्द्र यादव को बिलासपुर से उम्मीदवार बना दिया है। देवेन्द्र की अग्रिम जमानत अर्जी हाईकोर्ट खारिज कर चुकी है। बावजूद इसके उन्हें टिकट देने से परहेज नहीं किया गया। 

सुनते हैं कि पार्टी के भीतर यादव समाज से एक प्रत्याशी उतारने के लिए तकरीबन सहमति रही है। इसके लिए बिलासपुर सीट का चयन किया गया क्योंकि वहां यादव समाज के वोटरों की संख्या सबसे ज्यादा है। पार्टी नेताओं ने सबसे पहले विष्णु यादव का नाम सुझाया था। वो पार्षद रह चुके हैं। 

विष्णु यादव का नाम नेता प्रतिपक्ष डॉ. चरणदास महंत ने सुझाया था, और बाद में बिहार रहवासी पार्टी के राष्ट्रीय सचिव व छत्तीसगढ़ के सहप्रभारी चंदन यादव नया नाम लेकर आ गए। उन्होंने देवेन्द्र यादव का नाम आगे कर दिया। देवेन्द्र को प्रत्याशी बनाने के पीछे तर्क दिया गया कि एनएसयूआई और युवक कांग्रेस के अहम पद पर रहते हुए प्रदेश भर में उनकी टीम है। फिर क्या था पूर्व सीएम भूपेश बघेल और अन्य नेताओं ने भी देवेंद्र के नाम पर रजामंदी दे दी। 

हालांकि देवेन्द्र को प्रत्याशी बनाने से कितना फायदा होगा, यह तो अभी साफ नहीं है। मगर यादव समाज के भीतर ही दबे स्वर में उनका विरोध हो रहा है। वजह यह है कि देवेन्द्र बिहार मूल के हैं। यही नहीं, बिलासपुर में वो कभी सक्रिय नहीं रहे, और न ही किसी सामाजिक कार्यक्रम में गए। यादव समाज से जुड़े लोग मानते हैं कि पूर्व विधानसभा प्रत्याशी भुनेश्वर यादव, या विष्णु यादव सहित कई ऐसे मजबूत नाम हैं, जो कि भाजपा के लिए मुश्किल पैदा कर सकते थे। देवेंद्र यादव किस तरह प्रचार करते हैं, और उन्हें अपनी बिरादरी का कितना समर्थन मिलता है यह तो आने वाले दिनों में पता चलेगा। 

क्वांटिफाइबल डाटा काम कर गया
पिछली सरकार की ओर से कराये गए सर्वे में ओबीसी यादव समाज का दूसरे नंबर पर स्थान था। यह रिपोर्ट तब सरकार ने सार्वजनिक नहीं की। तब के राज्यपाल ने मांगा तब भी नहीं दी। मगर खोजी पत्रकारों ने उसकी डिटेल निकाल ली। इसमें पता चला कि साहू समाज की संख्या सर्वाधिक है और यादव समाज की उसके बाद दूसरे नंबर पर। इस छिपाई गई रिपोर्ट में आए आंकड़े को कांग्रेस सरकार ने बड़ी गंभीरता से लिया है। शायद इसीलिए बिलासपुर से उसने भिलाई के विधायक देवेन्द्र यादव को टिकट दे दी है। देवेंद्र यादव का बिलासपुर से कभी दूर-दूर तक नाता नहीं रहा। बस सभा समारोहों में पहुंचते रहे। देवेंद्र यादव को टिकट देकर कांग्रेस ने यह संदेश भी दिया है कि सीबीआई, ईडी की छापेमारी से उनके कार्यकर्ता घबराने वाले नहीं हैं। भाजपा प्रत्याशी तोखन साहू उसी लोरमी इलाके से हैं, जहां से उपमुख्यमंत्री अरुण साव आते हैं। बिलासपुर में भाजपा को 28 हजार मतों की बढ़त थी। पर यहां से जीते हुए बहुत वरिष्ठ अमर अग्रवाल को मंत्री नहीं बनाया गया है। वे रमन सिंह के कार्यकाल में वर्षों तक स्वास्थ्य, वित्त और राजस्व जैसे महत्व के विभाग देख चुके हैं। उनके समर्थक तोखन साहू को लेकर बहुत अधिक उत्साहित नहीं हैं। भाजपा ने दूसरे नंबर की जाति होने के बावजूद 11 में से किसी भी सीट से यादव को टिकट नहीं दी है। ऐसा कांग्रेस ने कर दिया है। देवेंद्र यादव बिलासपुर निकालें या न निकालें मगर उनकी उम्मीदवारी प्रदेश की बाकी सीटों पर असर करने वाली है।

रिटायरमेंट की एज में कन्फर्मेशन 
इसीलिए तो कहा गया है कि सरकारी काम है। प्रशासनिक ढिलाई (एडमिनिस्ट्रेटिव लैकिंग) का इससे बड़ा उदाहरण नहीं हो सकता। खबर है कि छत्तीसगढ़ कैडर के 11 आईएफएस रिटायरमेंट  की एज में जाकर सर्विस में कंफर्म हुए हैं। इसमें उनकी स्वयं की नजरअंदाजी भी रही है। वर्ष 92-94 बैच के 11आईएफएस अफसर अब जाकर कन्फर्म हुए हैं। इनमें 92 बैच से वी.आनंद बाबू,(कौशलेंद्र कुमार ,वी शेट्टीपनवार दोनों रिटायर) ,93 से आलोक कटियार,94 से अरुण पांडे, सुनील कुमार मिश्रा,प्रेम कुमार,अनूप विश्वास,95 ओपी यादव, 97 संचित गुप्ता और 98 के अमरनाथ शामिल हैं। सभी लोग भी भूल गए, यह सोचकर कि बन गए हैं साहब। रिटायरमेंट के नजदीक आते ही एहसास हुआ तो सक्रिय हुए। अरण्य भवन से दिल्ली एककर कन्फर्मेशन करा लिया। अब कम से कम पीसीसीएफ का नया स्केल और पेंशन बेनिफिट तो मिल जाएगी। भले ही प्रमोशन न मिले।

होली के दूसरे दिन की चर्चा 
 होली के दूसरे दिन सभी लोग दफ्तरों में  खाली ठलहा बैठे थे। फिर क्या वही होना था, ट्रांसफर पोस्टिंग पर चर्चा कहा गया कि  2018 में जब कांग्रेस की सरकार बनी, तब दो आईपीएस अफसरों के खिलाफ एफआईआर हुए थे और दो को बिना कोई जिम्मेदारी दिए पुलिस मुख्यालय में बैठा दिया गया था। इनमें एक का वनवास तो कुछ महीने का था, लेकिन दूसरे को साल भर से ज्यादा समय लगा। भाजपा शासन में पिछले दिनों आईपीएस की जो लिस्ट जारी की गई है, उसमें बड़ी संख्या में आईपीएस की जिम्मेदारी तय नहीं है। उन्हें पुलिस मुख्यालय अटैच किया गया है। अब ये डीजीपी की जिम्मेदारी है कि वे किससे क्या काम लें। लेकिन कुछ अफसरों को बिना कोई जिम्मेदारी दिए खाली बैठा दिया गया। और जब मिल बैठेंगे यार तो क्या होगा जल्द  
स्पष्ट होगा।

गोंगपा के 10 उम्मीदवार
कांकेर छोडक़र छत्तीसगढ़ की अन्य सभी 10 सीटों पर गोंडवाना गणतंत्र पार्टी ने अपने उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतार दिए हैं। इनमें कुछ प्रत्याशी आदिवासी समाज से भी नहीं हैं। जैसे रायपुर के लाल बहादुर यादव और महासमुंद के फरीद कुरैशी। प्राय: यह देखा गया है कि एक व्यक्ति की ओर से खड़ी की गई पार्टी संस्थापक के जाने के बाद दम तोडऩे लगती है। इसमें छत्तीसगढ़ स्वाभिमान मंच के ताराचंद साहू और अब जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ के अजीत जोगी को याद किया जा सकता है। मगर, गोंडवाना गणतंत्र पार्टी को उनके बेटे तुलेश्वर सिंह मरकाम जिंदा रखने में कामयाब रहे हैं। वे पाली-तानाखार सीट से कांग्रेस प्रत्याशी को 500 मतों के मामूली अंतर से ही सही, पराजित करने में सफल रहे। हीरासिंह मरकाम के रहते रहते यह पार्टी टूट भी गई। उनके कई सबसे विश्वसनीय साथियों ने अलग होकर राष्ट्रीय गोंडवाना पार्टी बना ली। उर्मिला मार्को उनका सारा काम देखती थीं। जिनको वे अपनी बेटी मानते थे, उसने अलग रास्ता चुन लिया। टूटे हुए लोग आदिवासी वोटों का बंटवारा करने में सफल रहे और पाली-तानाखार सीट से गोंगपा दोबारा कभी जीत नहीं पाई। मगर इस बार वहीं से विधानसभा में इस दल की मौजूदगी है। यहां से कई बार के विधायक रहे भाजपा, कांग्रेस फिर भाजपा में जाने वाले रामदयाल उइके को तीसरे स्थान पर धकेल दिया। गोंगपा की यह सफलता कांग्रेस और भाजपा जैसे राष्ट्रीय दलों से बड़ी है। कहा जाता है कि ये कभी कार्पोरेट से वसूली नहीं करते। इनके खाते में इलेक्टोरल बांड भी नहीं आता। चुनाव लडऩे के लिए ये अपने समाज के लोगों से ही चंदा लेते हैं। कार्यकर्ताओं को रोजाना प्रचार के लिए हजार-पांच सौ का भुगतान भी नहीं करते। जहां रुकें, वहीं गांव के लोग चावल-सब्जी बनाकर खिलाते हैं। इनकी सारी लड़ाई जल-जंगल-जमीन और आदिवासी संस्कृति को बचाने के लिए है, जिसकी आज बहुत ज्यादा जरूरत है। आज कांग्रेस-भाजपा के अलावा कोई तीसरा दल विधानसभा में है तो वह एकमात्र गोंडवाना गणतंत्र पार्टी ही है।

राजसी होली...
देश में लोकतंत्र है, मगर राजसी विरासत की कई इलाकों में अब भी मान्यता है। इनमें से एक है बस्तर। राजपरिवार के कमल चंद्र भंजदेव होली पर इस तरह नगरभ्रमण के लिए निकले। यह एक परंपरा है, जिसे उन्होंने बरकरार रखा है।  ([email protected])

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news