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हरियाणा के सोनीपत में अशोका यूनिवर्सिटी के छात्र कैंपस में जातिगत जनगणना को लेकर और संस्थान में आरक्षण लागू करने को लेकर धरने पर बैठे हैं.
इस खबर को द टेलीग्राफ ने अपने यहां जगह दी है.
हालांकि यूनिवर्सिटी के एक सह-संस्थापक ने जातिगत जनगणना से इनकार किया है. अख़बार के मुताबिक़ कथित तौर पर कुछ प्रदर्शनकारी छात्रों ने ‘ब्राह्मण-बनियावाद मुर्दाबाद’ जैसे नारे भी लगाए हैं.
सोशल जस्टिस फॉर्म (एसजेएफ) कैंपस में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग और अल्पसंख्यक समुदाय के छात्रों का प्रतिनिधित्व करता है.
एसजेएफ ने 20 मार्च को कैंपस में अनिश्चितकालीन धरना शुरू किया, जिसे 26 मार्च को मेन गेट के बाहर शिफ्ट कर दिया गया.
अख़बार के मुताबिक़ एसजेएफ का कहना है कि दो तिहाई छात्रों ने एडमिशन के दौरान स्वेच्छा से अपना डेटा दिया है, जिसका विश्लेषण करने से पता चलता है कि यूनिवर्सिटी के 2300 छात्रों में से सिर्फ़ सात प्रतिशत ही दलित, आदिवासी या ओबीसी हैं.
एक प्राइवेट यूनिवर्सिटी होने के चलते अशोका अपने यहीं एडमिशन और शिक्षक भर्ती में आरक्षण लागू नहीं करता है.
एसजेएफ से जुड़े एक छात्र का कहना है कि कैंपस में बहुत ही कम दलित, आदिवासी और ओबीसी शिक्षक हैं.
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर अशोका यूनिवर्सिटी के कुछ वीडियो भी वायरल हो रहे हैं. इन वीडियोज में छात्रों को जातिगत जनगणना और आरक्षण लागू करो और ब्राह्मण-बनियावाद जैसे नारे लगाते हुए सुना जा सकता है.
एक्स पर एक पोस्ट में एसजेएफ ने समझाया कि उन्होंने सफलतापूर्वक ब्रांडिग पर मास्टर क्लास के फाउंडर संजीव बिखचंदानी की 22 मार्च को दोपहर 12 बजे होने वाले क्लास नहीं चलने दी.
उनका कहना है कि कई दिनों तक धरना करने के बाद वीसी हमारे मांगों पर चर्चा करने के लिए.
‘ब्राह्मण-बनियावाद मुर्दाबाद’ के नारे की सोशल मीडिया पर भी ख़ूब आलोचना हुई और इसे लेकर यूनिवर्सिटी ने भी बयान जारी किया.
यूनिवर्सिटी की तरफ़ से बयान में कहा गया कि वह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और बहस के साथ-साथ आपसी सम्मान को भी बहुत महत्व देता है और यूनिवर्सिटी किसी भी व्यक्ति या समूह के ख़िलाफ़ नफ़रत की अभिव्यक्ति की निंदा करता है.
हालांकि एसजेएफ का कहना है कि ब्राह्मण-बनियावाद नारे का मतलब इस समाज या जाति से आने वाले लोगों को टारगेट करना नहीं है, बल्कि यह सोशल हेरारकी से जुड़ा है . (bbc.com/hindi)