राष्ट्रीय
तीन साल से कम वक़्त के अस्तित्व वाली कंपनियों को राजनीतिक चंदा देने की अनुमति नहीं होती है. ऐसा करना ग़ैर-क़ानूनी होता है.
मगर इलेक्टोरल बॉन्ड के ज़रिए ऐसी कम से कम 20 कंपनियों ने 103 करोड़ रुपये का चंदा दिया है.
द हिंदू ने इसी ख़बर को पहले पन्ने पर जगह दी है.
द हिंदू में छपी एक ख़बर के अनुसार, इनमें से पांच कंपनियां ऐसी हैं जिन्होंने जब अपना पहला इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदा उस वक्त उन्हें बने सालभर भी नहीं हुआ था.
वहीं सात कंपनियों की उम्र बॉन्ड्स खरीदते वक्त क़रीब एक साल थी और आठ कंपनियां ऐसी थीं जिन्हें बने हुए केवल दो साल ही हुए थे.
अख़बार लिखता है कि इनमें से कई कंपनियां 2019 में उस वक्त शुरू हुई थीं जब भारतीय अर्थव्यवस्था या तो सुस्ती से जूझ रही थी या फिर कोविड महामारी के असर से.
इन कंपनियों ने अपने बनने के कुछ वक्त बाद ही करोड़ों रुपयों के इलेक्टोरल बॉन्ड्स खरीदे.
अख़बार लिखता है कि बीते चार दशकों से मौजूदा क़ानून के अनुसार, नई बनी कंपनियां तीन साल पूरा करने से पहले चुनावी बॉन्ड्स या फिर किसी और तरीके से राजनातिक पार्टी को चंदा नहीं दे सकती हैं. (bbc.com)