विचार / लेख

यूरोप से बहुत कुछ सीख सकते हैं हमारे नेता
08-Jul-2024 4:49 PM
यूरोप से बहुत कुछ सीख सकते हैं हमारे नेता

 डॉ. आर.के. पालीवाल

हम भारतीय नकल करने में विश्व गुरु हैं। आजादी के पहले पढ़े लिखे अधिकांश लोग अंग्रेजों जैसी वेशभूषा पहनकर, छुरी कांटे से खाना खाकर और उनकी तरह सफेद ड्रेस पहन क्रिकेट खेलकर अंग्रेजों की हर संभव नकल करने में गर्व महसूस करते थे लेकिन अंग्रेजों की मेहनत, देश भक्ति और अन्य अच्छाइयों को भारतीय लोग तब कम ही अपनाते थे। गांधी इस मामले में अपवाद हुए हैं जिन्हें बहुत जल्द यह समझ में आ गया कि अंग्रेजों की कपड़ों आदि की बाहरी नकल करना मूर्खता है अपितु इस कौम और पश्चिमी सभ्यता की केवल अच्छी चीजों, यथा अनुशासन एवम अध्ययनशीलता आदि गुणों को आत्मसात करने की जरुरत है। कालांतर में गांधी से प्रेरित होकर सरदार पटेल, डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद और जवाहर लाल नेहरु ने भी अपनी तडक़ भडक़ वाली अंग्रेजी जीवन शैली को तिलांजली देकर सादगी और राष्ट्र समर्पण की शिक्षा लेकर आजादी के आंदोलन को जन जन तक पहुंचाने में गांधी के सहयोगी की भूमिका का सफल निर्वहन किया था।

   नकल करने की यह स्थिति हमारे स्वभाव में कमोवेश अभी भी है लेकिन दुर्भाग्य से हम यूरोप की अच्छी परंपराओं की नक़ल नहीं करते। हमारे नेता तो इस मामले में सबसे बदतर हैं।हमारे लोकसभा चुनावों के साथ ही यूरोप में यूनाइटेड किंगडम और नीदरलैंड में भी चुनाव हुए हैं और इन दोनों देशों में लगभग चौदह साल सत्ता में रहने के बाद सत्ताधारी दलों के हाथ से सत्ता की कमान दूसरे नेताओं के पास गई है। यू के में कंजरवेटिव पार्टी की करारी हार के बाद भारतीय मूल के प्रधानमंत्री सुनक की जगह लेबर पार्टी की सरकार बनी है और नीदरलैंड में चौदह साल प्रधानमन्त्री रहे मार्क रूटे की सरकार बदली है। मार्क रूटे को लगातार चौदह साल नीदरलैंड का प्रधानमन्त्री रहने के बाद सादगी के साथ मुस्कुराते हुए अपने विरोधी को सत्ता सौंपकर साइकिल से अपने घर जाते हुए देखना अंदर तक भिगो देता है। लंबे समय तक प्रधानमंत्री रहने के बाद न कोई तामझाम उनके विराट व्यक्तित्व से चिपका और न कोई अहंकार या मातम का भाव उनके चेहरे पर दिखाई दिया। यही गुण किसी व्यक्ति को महान और आदरणीय बनाते हैं। गीता में इसी तरह की विभूतियों के लिए स्थितप्रज्ञ की उपाधि दी गई है। यू के के निवर्तमान प्रधानमन्त्री सुनक ने भी न प्रधानमन्त्री रहते हुए कभी पद या अहंकार का भौंड़ा प्रदर्शन किया और पद छोड़ते हुए भी उनके चेहरे पर मातमी भाव नहीं आया। उन्होंने भी सादगी के साथ मुस्कुराते हुए पद से त्यागपत्र दे दिया।इसके बरक्स यदि हम अपने नेताओं के तामझाम और अहंकार को देखते हैं तो हमे शर्म का अहसास होता है। वे जीत पर अहंकार से सीना फुलाते हैं, बड़े बड़े अभिनंदन समारोह और रोड शो आयोजित कराते हैं और हार का ठीकरा दूसरों के सिर फोड़ते हैं।सरपंच और पार्षद से शुरू होकर विधायकों और सांसदों के अहंकार और तामझाम के किस्से मंत्री, मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री तक आते आते सातवें आसमान पर पहुंच जाते हैं।

चाहे प्रधानमन्त्री के लिए विशेष विमान खरीदने की बात हो या मुख्यमंत्री के लिए हेलीकॉप्टर और मंत्रियों के लिए कारों के काफिले की  कोई किसी से कम नहीं रहना चाहता। यही हाल मंत्रियों, विधायकों और वरिष्ठ अधिकारियों के विशाल बंगलों में होने वाली मरम्मत का है जिसका करोड़ों में पहुंचना आम बात है भले ही वह कांग्रेसी हो, समाजवादी हो या भाजपा अथवा आम आदमी पार्टी के बड़े नेताओं का बंगला हो। हाल ही में मध्यप्रदेश में ऐसी ही एक योजना के लिए अ_ाइस हज़ार पेड़ों की बलि देने की योजना बनाई गई थी जिसे जनता के भारी विरोध से निरस्त करना पड़ा।त्रिपुरा और गोवा के पूर्व मुख्यमंत्री मानिक सरकार और मनोहर पर्रिकर जैसे कुछ नेताओं को अपवाद स्वरूप छोडक़र अधिकांश जन प्रतिनिधियों के जलवे देखने लायक होते हैं। हमारे नेताओं को यूरोप के नेताओं से सादगी के साथ देश सेवा सीखनी चाहिए तभी हमारा समाज उनका अनुकरण कर बेहतर समाज बन सकता है।

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