विचार / लेख
-ध्रुव गुप्त
वैसे तो बुढ़ापा। खुद समस्याओं और शिकायतों का घर ही होता है लेकिन आमतौर पर बुजुर्गों की बड़ी समस्या और शिकायत यह होती है कि बच्चे बड़े या शादीशुदा हो जाने के बाद उनका सम्मान नहीं करते। उनकी बात कुछ हद तक वाजिब है। देश की सडक़ों, वृद्धाश्रमों, तीर्थस्थलों में बेसहारा वृद्धों की भारी भीड़ देखकर आज परिवार में उनकी हैसियत और स्थिति का अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है। लेकिन इस समस्या का एक और पहलू भी है।
एक बात बुजुर्गों को अपने आप से भी पूछना चाहिए कि बूढ़े होने के बाद वे खुद अपने बेटों और बहुओं, उनकी निजी जि़ंदगी, उनकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता और उनके नए विचारों का कितना सम्मान करते हैं? हर पीढ़ी के साथ जीवन की परिस्थितियां और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अवधारणायें बदलती हैं। हर आने वाला समय अपने पिछले समय से ज्यादा जटिल और उनसे निबटने के तरीके अलग होते हैं। पढ़े-लिखे, संवेदनशील, समझदार बुज़ुर्ग बदलते वक्त के साथ तालमेल बिठाकर अपनी संतानों के साथ सहज और दोस्ताना रिश्ता बना लेते हैं।
कठिनाई उन अशिक्षित अथवा अर्धशिक्षित, रूढि़वादी लोगों के साथ होती है जो अपने पुराने विचारों और रूढिय़ों के प्रति कट्टर ही नहीं होते, अपनी संतानों पर अपने दौर के अप्रासंगिक हो चले जीवन मूल्य थोपने की कोशिश भी करते हैं। उन्हें लगता है कि उनका वक्त सही था और आज जो हो रहा है, वह सब गलत है। ऐसे बुज़ुर्ग अपनी संतानों के लिए आर्थिक नहीं, मानसिक और भावनात्मक बोझ बन जाते हैं। परिवारों के विघटन की यह सबसे बड़ी वजह है।
परिवार में बुजुर्गों का सम्मान बना रहे, यह सिर्फ युवाओं की जिम्मेदारी नहीं है। जरूरी है कि बुजुर्ग भी समय के साथ चलना सीखें। वे अपने हिस्से का जीवन जी चुके, अब अपनी संतानों को उनके हिस्से का जीवन जीने दें। उनकी चुनौतियां, सोच, संघर्ष आपसे अलग हैं।
मां-बाप देवी-देवता हैं और उनकी हर बात बच्चों को शिरोधार्य होनी चाहिए-ये किताबी, अव्यवहारिक बातें हैं। वास्तविक जीवन में आपके व्यवहार ही परिवार में आपकी हैसियत और आपका सम्मान तय होगा। अगर आपको लगता है कि आपकी संतानों का रास्ता गलत है तो जऱा याद कर लें कि आपके दौर में आपके बुजुर्गों की नजर में आपका रास्ता भी गलत ही हुआ करता था।
बुज़ुर्ग मित्रों को अंतरराष्ट्रीय वृद्धजन दिवस की शुभकामनाएं !