विचार / लेख

आकाशवाणी के वे दिन और वे साहित्यकार
03-Oct-2024 2:08 PM
आकाशवाणी के वे दिन और वे साहित्यकार

-अपूर्व गर्ग

टीवी रेडियो के इस हिंसक दौर में कभी दूरदर्शन का सुरीला संगीत याद आता है कभी विविध भारती के मिश्री से मीठे गीत। अमीन सायानी साहब तो आज भी सबके दिल में बसे हुए हैं।

आकाशवाणी का एक दौर या कहिये नेहरू से इंदिरा युग ऐसा भी था जब रेडियो के वायुमंडल में हिंदी साहित्य की भीनी-भीनी महक सर्वत्र थी।

हिंदी साहित्य जिन साहित्यकारों से रोशन था उनकी उपस्थिति और स्वर्णिम प्रकाश से आकाशवाणी दमकती थी।

आकाशवाणी के आभामंडल में पंतजी चाँद की तरह चमकते रहे तो ढेर सारे साहित्यकारों ने अपनी गरिमामय उपस्थिति से आकाशवाणी को खूबसूरत और समृद्ध किया। इनमें भगवतीचरण वर्मा, इलाचंद्र जोशी, अज्ञेय, नरेंद्र शर्मा, अमृतलाल नागर, उदय शंकर भट्ट ,बच्चन, रामचंद्र टंडन, सर्वेश्वर दयाल सक्सेना, लक्ष्मी नारायण लाल, विश्वम्भर मानव कैलाश चंद्र वर्मा, रमा नाथ अवस्थी, शांति मेहरोत्रा, विमला रैना, कमलेश्वर, नर्मदा सवार उपाध्याय, प्रफुल्ल चंद्र राजहंस। इन लोगों ने रेडियो की नौकरी की।

उसके अलावा हज़ारी प्रसाद द्विवेदी ,नन्द दुलारे बाजपेयी, मैथलीशरण गुप्त, दिनकर, महादेवी वर्मा और अज्ञेय जी का सहयोग आकाशवाणी लेती रही, मिलता रहा।

रेडियो के सांस्कृतिक कार्यक्रमों को उन्नत करने, गरिमापूर्ण बनाने के उद्देश्य से सूचना प्रसारण मंत्रालय ने सुमित्रा नंदन पंत से आग्रह किया, उन्हें मनाया । वो इलाहाबाद थे दिल्ली जाना नहीं चाहते थे। आकाशवाणी ने पंत जी को दिल्ली से सम्बद्ध कर इलाहाबाद केंद्र से ही उनकी सेवाएं ली।

पंत जी के लेखन में व्यवधान न हो इस बात का भी आकाशवाणी ने ध्यान रखकर उन्हें सिर्फ तीन दिन वो भी शाम को आकाशवाणी केंद्र दफ्तर में जाने की स्वतंत्रता दी। अप्रैल 1957 तक करीब सात वर्षों तक पंत जी ने चीफ प्रोडूसर के पद पर नौकरी की।

इस बीच वे लगातार आकाशवाणी से स्वतंत्र होना चाहते पर आकाशवाणी जानता था उनके साथ पंत के होने का मतलब ।आकशवाणी ने बराबर आग्रह कर मनाकर उन्हें सम्मान के साथ अपने साथ रखा।

बाद में पंतजी नौकरी से मुक्त होकर ऑनररी एडवाइजर के तौर पर आकाशवाणी से जुलाई 1967 तक जुड़े रहे।

आकाशवाणी में हिंदी कार्यक्रमों के सांस्कृतिक उत्थान, उनके प्रसारण और विकास में पंतजी की ऐतिहासिक भूमिका है।

आकाशवाणी के डायरेक्टर जनरल रहे और सुप्रसिद्ध नाटककार जगदीश चंद्र माथुर ने लिखा है ‘पंतजी ने आकाशवाणी को जो कुछ दिया उसका आकाशवाणी ही नहीं भारतवर्ष के वर्तमान सांस्कृतिक इतिहास में विशेष महत्व है।’

सुप्रसिद्ध साहित्यकार अमृतलाल नागर आकशवाणी में लेखक प्रोड्यूसर के तौर पर काम कर चुके हैं । अपने ही अंदाज और अपनी ही शर्तों के साथ उन्होंने नौकरी की और आकशवाणी ने उनके सम्मान और गरिमा में कोई कमी न आने दी।

भाखड़ा नांगल बाँध सम्बन्धी पहले राष्ट्रीय प्रोग्राम की डॉक्यूमेंट्री, पंद्रह अगस्त और छब्बीस जनवरी की परेड की लाइव कमेंट्री कर कभी नागर जी अपने साहित्यिक रंग बरसा कर छा गए थे ।

नागरजी ने लिखा है ‘जब अफसर ‘सृजनशीलता’ को अपनी समझदार भरा सहयोग देता है तो रेडियो प्रोग्रामों के प्रस्तुतीकरण की सफलता में चार चाँद लग जाते हैं।’

क्या दौर था ,क्या दिन थे जब सत्ता साहित्यकारों का महत्व समझती, सम्मान करती थी।

चलते-चलते एक बार फिर दूरदर्शन के इंदिरा- कमलेश्वर वाकये की याद दिला दूँ !

इंदिरा गाँधी जानती थीं कि कमलेश्वर उनके आलोचक हैं इसके बावजूद 1980 में इंदिराजी ने कमलेश्वर को ‘दूरदर्शन ’ में एडिशनल डायरेक्टर जनरल के रूप में बड़ी जिम्मेदारी दी। इस सिलसिले में जब कमलेश्वर इंदिरा के सामने पहुंचे तो उन्होंने पूछा- ‘क्या आपको मालूम है कि मैंने ही 'आंधी' लिखी थी?’ इंदिरा का जवाब था- ‘हां, पता है।’ तुरंत ही इंदिरा गाँधी ने यह भी कहा- ‘इसीलिए आपको ये जिम्मेदारी (दूरदर्शन निदेशक) दे रही हूं।’ इंदिरा ने कहा- ‘ऐसा इसलिए ताकि दूरदर्शन देश का एक निष्पक्ष सूचना माध्यम बन सके।’

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