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अज़रबैजान का दावा, आर्मीनिया का लड़ाकू विमान दूसरी बार मार गिराया
18-Oct-2020 8:07 PM
अज़रबैजान का दावा, आर्मीनिया का लड़ाकू विमान दूसरी बार मार गिराया

अज़रबैजान की फ़ौज ने घोषणा की है कि उसने आर्मीनिया के दूसरे एसयू-25 विमान को जेबरैल के क्षेत्र में मार गिराया है. हालांकि उन्होंने सबूत के तौर पर कोई तस्वीर, वीडियो या फिर कोई दूसरा प्रमाण नहीं पेश किया है.

आर्मीनिया के रक्षा मंत्री ने दोनों ही बार विमान के मार गिराए जाने की बात से इनकार किया है. अज़रबैजान ने यह भी कहा है कि आर्मीनिया ने सीमा के उत्तरी हिस्से में उसके क्षेत्र में गोलीबारी की है. यह क्षेत्र तोवुज़ शहर के नज़दीक है.

हालांकि इस हमले की पुष्टि के तौर पर भी किसी ने कोई प्रमाण नहीं देखा है. आर्मीनिया के रक्षा मंत्रालय ने कहा है किसी ने भी उस क्षेत्र में गोलीबारी नहीं की है.

आर्मीनियाई फ़ौज ने आरोप लगाया है कि शांति समझौते की शुरुआत होने से ठीक पहले रेड क्रॉस ने घायलों को लड़ाई के मैदान से हटाने का प्रस्ताव रखा था लेकिन अज़रबैजान ने इससे इनकार कर दिया.

दोनों ही तरफ से इस तरह की बयानबाजी हो रही है जिसकी कोई पुष्टि नहीं की जा सकती है. लेकिन समय समय इसके बारे में बताते रहना जरूरी है क्योंकि दोनों ही देश ना सिर्फ़ लड़ाई के मैदान में लड़ रहे है बल्कि वे हर संभव तरीके से सूचनाओं की लड़ाई (इनफॉरमेशन वार) में भी जुटे हुए हैं.

उधर, आर्मीनिया ने मरने वाले अपने जवानों की सूची में 40 नए नाम जोड़े हैं. अब आर्मीनिया के कुल 673 जवान मारे जाने वालों की सूची में शामिल हो गए हैं. वहीं दूसरी तरफ़ अज़रबैजान ने लड़ाई में मारे गए जवानों की अपनी सूची जारी नहीं की है.

अज़रबैजान और आर्मीनिया की जंग में पाकिस्तानी स्पेशल फोर्स

पाकिस्तान ने आर्मीनिया की ओर से लगाए इस आरोप को ख़ारिज कर दिया है कि पाकिस्तानी स्पेशल फोर्स अज़रबैजान की सेना के साथ मिलकर आर्मीनिया के ख़िलाफ़ लड़ाई में हिस्सा ले रही है.

पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने इस मामले में स्पष्टीकरण दिया है. पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने एक बयान जारी कर आर्मीनिया के प्रधानमंत्री निकोल पाशिन्यान की टिप्पणी को 'आधारहीन और अनुचित' बताया गया है.

15 अक्टूबर को आर्मीनिया के प्रधानमंत्री निकोल पाशिन्यान ने रूसी समाचार एजेंसी रोसिया सेगोदन्या को दिए एक इंटरव्यू में कहा था कि तुर्की की सेना के साथ मिलकर पाकिस्तान की स्पेशल फोर्स आर्मीनिया के ख़िलाफ़ नागोर्नो-काराबाख़ में जारी लड़ाई में शामिल है.

उनसे पूछा गया कि क्या उनके पास इस बात का कोई प्रमाण है कि अज़रबैजान की सेना को विदेशी सैन्यबलों का भी साथ मिल रहा है.

इस पर निकोल पाशिन्यान ने कहा कि "कुछ रिपोर्ट्स यह बताती हैं कि जंग में पाकिस्तानी फौज का विशेष दस्ता भी शामिल है. मेरा मानना है कि तुर्की के सैनिक इस लड़ाई में शामिल हैं. अब ये बात जगज़ाहिर हो चुकी है क्योंकि अंतरराष्ट्रीय मीडिया में इस बारे में लिखा जा रहा है."

पाकिस्तान का खंडन

पाकिस्तान ने इस बात का खंडन करते हुए बयान दिया है कि आर्मीनिया इस तरह के ग़ैर-जिम्मेदाराना प्रोपेगैंडा के माध्यम से अज़रबैजान के ख़िलाफ़ अपनी ग़ैर-क़ानूनी कार्रवाई को छिपाने की कोशिश कर रहा है, इसे तुरंत रोका जाना चाहिए.

पाकिस्तान ने अपने बयान में कहा है, "अज़रबैजान के राष्ट्रपति इल्हाम अलीयेव ने इस मसले पर साफ तौर पर कहा कि उनके देश की सेना अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए पर्याप्त तौर पर मज़बूत है और उसे किसी बाहरी सेना की जरूरत नहीं है."

हालांकि पाकिस्तान ने अपने बयान में यह साफ तौर पर कहा है कि वो अज़रबैजान को कूटनीतिक और राजनीतिक समर्थन देता रहेगा.

इससे पहले पाकिस्तान और तुर्की ने अज़रबैजान को नैतिक समर्थन देने की बात कही थी. वहीं, रूस दोनों देशों के बीच मध्यस्थता कर शांति कायम करने की कोशिशों में लगा हुआ है.

आर्मीनिया और पाकिस्तान के बीच संबंध

अज़रबैजान और तुर्की के साथ पाकिस्तान से करीबी रिश्ते हैं. शायद इस कारण उसके आर्मीनिया के साथ अच्छे संबंध नहीं हैं.

नागोर्नो काराबाख़ में जारी विवाद को लेकर पाकिस्तान मानता है कि आर्मीनिया ने अज़रबैजान के इलाक़े में कब्ज़ा किया है और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव के अनुसार इस विवाद का निपटारा होना चाहिए.

वहीं, आर्मीनिया के विदेश मंत्रालय के अनुसार भी पाकिस्तान के साथ उनके कूटनीतिक रिश्ते नहीं है.

आर्मीनिया का दावा, अज़रबैजान का इनकार

आर्मीनिया ने इससे पहले यह भी दावा किया था कि तुर्की केवल कूटनीतिक समर्थन नहीं कर रहा है, बल्कि सैन्य सहायता भी दे रहा है.

आर्मीनिया के प्रधानमंत्री निकोल पाशिन्यान ने बीबीसी वर्ल्ड सर्विस के साथ एक बातचीत में दावा किया था कि तुर्की के सैनिक अफ़सर और इंस्ट्रक्टर काराबाख़ में अज़रबैजान की सेना को सलाह दे रहे हैं और तुर्की ने अपने लड़ाकू विमान एफ़-16 भेजे हैं.

उन्होंने कहा था, "तुर्की पूरी तरह से अज़रबैजान की सैन्य मदद कर रहा है. तुर्की इसमें शामिल है." लेकिन तुर्की ने भी सैन्य मदद की बात को नकारा था और केवल नैतिक समर्थन को स्वीकार किया था.

आर्मीनिया और अज़रबैजान दोनों ही देश सोवियत संघ का हिस्सा रह चुके हैं. दोनों के बीच दशकों पुराना सीमा विवाद एक बार फिर भड़क उठा है. ताज़ा विवाद की शुरुआत भी दोनों देशों की तरफ से एक-दूसरे हमला करने के दावे के साथ हुई है.

नागोर्नो-काराबाख़ के बारे में कुछ बातें

ये 4,400 वर्ग किलोमीटर यानी 1,700 वर्ग मील का पहाड़ी इलाक़ा है.
पारंपरिक तौर पर यहां ईसाई आर्मीनियाई और तुर्क मुसलमान रहते हैं.
सोवियत संघ के विघटन से पहले ये एक सवायत्त क्षेत्र बन गया था जो अज़रबैजान का हिस्सा था.
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इस इलाक़े को अज़रबैजान के हिस्से के रूप में मान्यता दी जाती है, लेकिन यहां की अधिकांश आबादी आर्मीनियाई है.
आर्मीनिया समेत संयुक्त राष्ट्र का कोई सदस्य किसी स्व-घोषित अधिकारी को मान्यता नहीं देता.
1980 के दशक से अंत से 1990 के दशक तक चले युद्ध में 30 हज़ार से अधिक लोगों की जानें गईं. उस दौरान अलगावादी ताक़तों ने कुछ इलाक़ों पर कब्ज़ा जमा लिया.
उस दौरान अलगावादी ताक़तों ने नागोर्नो-काराबाख के कुछ इलाक़ों पर कब्ज़ा जमा लिया. 1994 में यहाँ युद्धविराम की घोषणा हुई थी, उसके बाद भी यहाँ गतिरोध जारी है और अक्सर इस क्षेत्र में तनाव पैदा हो जाता है.

1994 में यहां युद्धविराम हुआ जिसके बाद से यहां गतिरोध जारी है.
तुर्की खुल कर अज़रबैजान का समर्थन करता है.
यहां रूस का एक सैन्य ठिकाना है.(BBCNEWS)

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