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अमेरिकी चुनावः क्यों अहम है ट्रांज़िशन प्रॉसेस?
25-Nov-2020 5:05 PM
अमेरिकी चुनावः क्यों अहम है ट्रांज़िशन प्रॉसेस?

प्रवीण शर्मा

हफ़्तों तक चली खींचतान के बाद अमेरिका की जनरल सर्विस एडमिनिस्ट्रेशन (जीएसए) के सामने यह सुनिश्चित हो गया है कि प्रेसिडेंट इलेक्ट जो बाइडन को राष्ट्रपति चुनावों में जीत मिल गई है.

दूसरी ओर, मौजूदा राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भी नए प्रशासन के लिए ट्रांज़िशन प्रक्रिया शुरू करने की इजाज़त दे दी है. लिहाज़ा अमेरिका में बाइडन प्रशासन के लिए ट्रांज़िशन प्रक्रिया अब शुरू हो गई है.

अमेरिका में राष्ट्रपति पद पर बैठने की तैयारी काफ़ी जटिल और बेहद महत्वपूर्ण है.

क्या होता है प्रेसिडेंशियल ट्रांज़िशन?
राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के चुनाव जीतने और शपथ ग्रहण समारोह के बीच के समय को ट्रांज़िशन कहा जाता है. यह ट्रांज़िशन चुने गए राष्ट्रपति की नॉन-प्रॉफ़िट ट्रांज़िशन टीम करती है. यह टीम कैंपेन टीम से अलग होती है और इसका अपना स्टाफ़ और बजट होता है.

जवाहरलाल नेहरू (जेएनयू) यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ़ इंटरनेशनल स्टडीज़ में प्रोफ़ेसर के पी विजयलक्ष्मी बताती हैं, "अमेरिका में सभी राज्यों को 24 दिसंबर तक अपने यहां के चुनाव के नतीजों को सर्टिफ़ाई करना ज़रूरी है. 20 जनवरी को इनॉगरेशन डे है."

प्रोफ़ेसर विजयलक्ष्मी कहती हैं, "अमेरिका में जनरल सर्विस एडमिनिस्ट्रेशन (जीएसए) एजेंसी औपचारिक रूप से ट्रांज़िशन प्रॉसेस को शुरू करती है और प्रेसिडेंट इलेक्ट की टीम को मदद देती है. इस प्रॉसेस के दौरान नए आने वाले राष्ट्रपति अपनी कैबिनेट को तय करते हैं."

पूर्व राजनयिक और गेटवे हाउस की डायरेक्टर नीलम देव कहती हैं, "अमेरिका में भारत की तरह से कोई एक चुनाव आयोग नहीं है. वहां हर राज्य अपने यहां वोटों की गिनती करता है और इनके नतीजे बताता है. मौजूदा वक़्त में जिस तरह से वहां ट्रंप ने हार स्वीकार नहीं की, ऐसे में नए राष्ट्रपति के आने की प्रक्रिया का पुख्ता होना ज़रूरी है. इस वजह से यह ट्रांज़िशन प्रॉसेस बेहद अहम है."

वरिष्ठ अर्थशास्त्री और अमेरिकी मामलों के जानकार डॉक्टर जी बालाचंद्रन सामान्य भाषा में इस पूरी प्रक्रिया के बारे में बताते हैं.

वे कहते हैं, "20 जनवरी तक ट्रंप राष्ट्रपति हैं और वे जो चाहें कर सकते हैं. रात 12 बजे 21 जनवरी के शुरू होने के साथ ही राष्ट्रपति बाइडन हो जाएंगे. अमेरिका कोई छोटा-मोटा देश नहीं है. अफ़ग़ानिस्तान, इराक़ समेत कई देशों में उनका एक्शन चल रहा है."

बालाचंद्रन कहते हैं, "ऐसे में राष्ट्रपति बनने से पहले ही बाइडन को दुनियाभर में हो रही चीज़ों और अमेरिकी कामकाज की जानकारी पहले से होनी चाहिए. ऐन मौक़े पर उनके सामने अगर चीज़ें आएंगी तो उनके लिए फ़ैसले ले पाना मुश्किल होगा."

वे कहते हैं, "ऐसे में राष्ट्रपति बनने के बाद बाइडन के सामने किसी तरह की दिक़्क़त न आए और सत्ता का हस्तांतरण आसानी से हो सके इसलिए तमाम जानकारियां उन्हें और उनकी टीम को दी जाने लगी हैं."

डॉक्टर बालाचंद्रन कहते हैं, "सीआईए और दूसरी एजेंसियों से सभी ख़ुफ़िया और दूसरी अहम जानकारियां उन्हें दी जाने लगी होंगी."

क्यों की जाती है ट्रांज़िशन प्रॉसेस?
प्रोफ़ेसर विजयलक्ष्मी कहती हैं, "ट्रांज़िशन प्रॉसेस इसलिए की जाती है ताकि तीन नवंबर को चुनाव होने से 20 जनवरी को राष्ट्रपति पद का शपथ लेने के साथ ही वे तुरंत काम शुरू कर सकें. साथ ही बीच की अवधि में भी काम रुकने नहीं चाहिए. इसीलिए यह प्रॉसेस थोड़ी लंबी होती है."

पार्टनरशिप फ़ॉर पब्लिक सर्विस का सेंटर फ़ॉर प्रेसिडेंशियल ट्रांज़िशन अमेरिका में राष्ट्रपति पद के उम्मीदवारों और उनकी टीमों को नए प्रशासन या राष्ट्रपति के दूसरे टर्म की नींव रखने में मदद देने के लिए जानकारियां और संसाधन मुहैया कराने का एक निष्पक्ष ज़रिया है.

यह सेंटर ट्रांज़िशन को लागू करने में मदद देता है. यह नए राजनीतिक नेतृत्व को तैयारी में मदद देता है और नई राजनीतिक नियुक्तियों को सरकारी नेतृत्व के साथ काम करने के संबंध में गाइडेंस देता है.

यह सेंटर निवर्तमान राष्ट्रपतियों को दूसरे टर्म के लिए तैयारी में भी मदद देता है और अगर कोई नया राष्ट्रपति चुना जाता है तो ऐसी स्थिति में यह निवर्तमान राष्ट्रपति को सत्ता के आसान हस्तांतरण के लिए ज़रूरी कदमों के बारे में भी सलाह देता है.

इस सेंटर ने 2020 के लिए प्रेसिडेंशियल ट्रांज़िशन गाइड जारी की है. इसमें नए नेतृत्व के लिए ट्रांज़िशन के तमाम पहलुओं का ज़िक्र किया गया है.

इस गाइड में कहा गया है कि अगर ट्रांज़िशन प्रक्रिया ठीक से की जाए तो यह नए प्रशासन की सफलता की नींव साबित होती है. दूसरी तरफ़, अगर इसे ठीक से न किया गया हो तो नए प्रशासन के लिए रिकवर करना मुश्किल हो जाता है.

पहले या दूसरे टर्म के लिए ट्रांज़िशन की योजना बनाने का काम चुनाव की तारीख़ से पहले ही शुरू हो जाना चाहिए. इसके लिए एक संगठन तैयार करना, लक्ष्य तय करना और अपनी प्राथमिकताओं को हासिल करने के लिए ज़रूरी क़दम उठाना शामिल है.

नीलम देव कहती हैं, "नए राष्ट्रपति और उनकी टीम को सभी अहम चीज़ों के बारे में ब्रीफ़ किया जाता है."

वे कहती हैं, "भले ही बाइडन चुने गए हैं और ट्रांज़िशन प्रॉसेस शुरू हो चुकी है, लेकिन अभी भी राष्ट्रपति ट्रंप फ़ैसले ले सकते हैं और उनके फ़ैसलों में बाइडन दख़ल नहीं दे सकते हैं."

नए राष्ट्रपति के लिए ट्रांज़िशन के मुख्य लक्ष्य
ट्रांज़िशन की प्रक्रिया में व्हाइट हाउस और राष्ट्रपति के एग्जिक्यूटिव ऑफ़िस की स्टाफ़िंग का एक अहम किरदार होता है.

इसके अलावा 4,000 से ज़्यादा प्रेसिडेंशियल नियुक्तियां की जाती हैं जिनमें से 1,200 से अधिक नियुक्तियां ऐसी होती हैं जिन पर सीनेट की मंज़ूरी ज़रूरी होती हैं.

साथ ही इस प्रक्रिया में नए प्रशासन के लिए एक पॉलिसी प्लेटफ़ॉर्म तैयार करना भी शामिल होता है जो कि कैंपेन में किए गए वादों पर आधारित होता है.

इसमें एग्जिक्यूटिव क़दमों, एक मैनेजमेंट एजेंडा, एक बजट प्रस्ताव और संभावित क़ानूनों की योजना बनाना भी शामिल होता है.

प्रोफ़ेसर विजयलक्ष्मी कहती हैं, "ट्रांज़िशन बेहद अहम होता है क्योंकि इस दौरान नए मंत्री नियुक्त किए जाते हैं. हर विभाग में सबसे वरिष्ठ ब्यूरोक्रेट्स को ज़िम्मेदारी दी जाती है कि वे नए आ रहे लोगों को ब्रीफ़ करें."

कैंपेन के दौरान पेश की गई नीतियों को लागू करने के लिए 100 से 200 दिन की योजना की तैयारी भी इस ट्रांज़िशन प्रक्रिया का हिस्सा होती है.

ये सब तैयारियां पहले ही करना इस वजह से भी ज़रूरी होता है ताकि नया प्रशासन आते ही तेज़ी से काम शुरू कर सके.

कब शुरू होता है ट्रांज़िशन?
आमतौर पर ट्रांज़िशन की औपचारिक रूप से शुरुआत चुनाव के नतीजों के आने के बाद से होती है. 1963 के प्रेसिडेंशियल ट्रांज़िशन एक्ट के तहत जीएसए को चुने गए राष्ट्रपति की टीम को दफ़्तर और दूसरे संसाधन मुहैया कराने की ज़िम्मेदारी दी गई है. साथ ही सरकार सिक्योरिटी चेक के मक़सद से बैकग्राउंड चेक भी मुहैया कराती है.

2010 में इस क़ानून में हुए संशोधन के तहत प्रमुख पार्टी के उम्मीदवारों को ट्रांज़िशन के लिए सरकारी सहायता पहले ही शुरू करने की इजाज़त दे दी गई. इसमें इन्हें सरकारी दफ़्तरों, कंप्यूटरों और सर्विसेज को नॉमिनेटिंग कन्वेंशन के बाद से ही इस्तेमाल करने की इजाज़त दे दी गई. इस साल नॉमिनेटिंग कनवेंशन अगस्त में हुए थे.

क्या ट्रांज़िशन अवधि के दौरान बाइडन या उनकी टीम ट्रंप के फ़ैसलों में दख़ल दे सकते हैं? प्रोफ़ेसर विजयलक्ष्मी कहती हैं कि इस अवधि में बाइडन फ़ैसलों में कोई दख़ल नहीं दे सकते हैं.

वे कहती हैं, "ट्रंप एग्जिक्यूटिव ऑर्डर के ज़रिए फैसले ले सकते हैं."

प्रोफ़ेसर विजयलक्ष्मी कहती हैं कि अमेरिका में कोई केंद्रीय चुनाव आयोग नहीं है और वहां वोटों की गिनती करके अनौपचारिक तौर पर नतीजे आते हैं.

विजयलक्ष्मी कहती हैं कि चूंकि ट्रांज़िशन प्रॉसेस शुरू हो चुकी है, ऐसे में बाइडन के सामने प्राथमिकता कोविड-19 से निबटने और इसकी वैक्सीन के डेवेलपमेंट और डिस्ट्रीब्यूशन की होगी.

ट्रांज़िशन में इतना वक़्त क्यों लगता है?

आमतौर पर ट्रांज़िशन में 11 हफ़्तों का वक़्त लगता है. यह नवंबर की शुरुआत में मतदान की तारीख़ से शपथ ग्रहण की तारीख़ के बीच की अवधि होती है.

इनॉगरेशन डे 20 जनवरी को होता है. हालांकि, अगर चुनावों का नतीजा जल्द नहीं आता है तो ट्रांज़िशन की अवधि कम भी की जा सकती है.

प्रोफ़ेसर विजयलक्ष्मी कहती हैं कि इस साल क़ानूनी मसलों और वोटों की गिनती को लेकर पैदा हुए विवाद के चलते जीएसए यह प्रक्रिया शुरू नहीं कर पाया था. इस वजह से इसमें थोड़ी देरी हुई है.

ट्रांज़िशन का पैसा कहां से आता है?
ट्रांज़िशन की प्रक्रिया पूरी करने का पैसा सरकारी ख़ज़ाने और निजी फ़ंड्स से जुटाया जाता है. जीएसए प्रशासक के पास बाइडन की ट्रांज़िशन टीम के लिए 60 लाख डॉलर रिलीज करने का क़ानूनी अधिकार है.

माना जा रहा है कि इस रक़म के अलावा बाइडन ने भी निजी डोनेशंस के ज़रिए कम से कम 70 लाख डॉलर अपने ट्रांज़िशन के लिए जुटा लिए हैं.

भारत और अमेरिका के सिस्टम में अंतर
सत्ता हस्तांतरण में भारत के मुक़ाबले अमेरिका का सिस्टम अलग क्यों है, इस पर थिंक टैंक आईडीएसए में वेस्ट एशिया सेंटर की पूर्व प्रमुख डॉ. मीना सिंह रॉय कहती हैं, "अमेरिका में फ़ेडरल सिस्टम है, जबकि भारत में ऐसा नहीं है. हमारे यहां राज्यों को अमेरिका जितनी स्वायत्तता नहीं है. वहां चुनावों से संबंधित ज़्यादातर फ़ैसले राज्यों के हाथ में होते हैं."

डॉ. रॉय कहती हैं कि भारत में सिस्टम केंद्रीकृत है और ज़्यादातर चीज़ें केंद्र तय करता है. जबकि उनके यहां ऐसा नहीं है. अमेरिका का फ़ेडरल सिस्टम भारत से बिल्कुल अलग है. (bbc.com)

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