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कोरोना संकट से जूझते नाइजीरिया ने निकाली नयी नौकरियां
30-Jan-2021 12:27 PM
कोरोना संकट से जूझते नाइजीरिया ने निकाली नयी नौकरियां

कोरोना संकट से जूझ रहा नाइजीरिया आर्थिक संकट भी झेल रहा है जिसकी वजह से लाखों नौकरियां चली गई हैं. सरकार ने लोकनिर्माण के क्षेत्र में तीन महीने के रोजगार की पहल की है, लेकिन राजनीतिक हलकों में इस पर विवाद है.

  (dw.com)
    
आठ साल पहले अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद नाइजीरिया की एक युवा ग्रेजुएट एनी आदेजो ने होटलों और स्कूलों से लेकर नौसेना और पुलिस बल तक, हर जगह छान मारी लेकिन उन्हें कहीं भी नौकरी नहीं मिली. वे अब भी बेरोजगार हैं. राजधानी अबूजा में अपने घर पर बैठी, प्रौढ़ शिक्षा और बिजनेस की पढ़ाई कर चुकीं 34 साल की आदेजो का कहना है, "कभी मुझे बोला जाता है कि मेरा कोर्स उस जॉब के लायक नहीं है... कभी बोलते हैं कि मेरे पास अनुभव नहीं है."

कोरोना महामारी की वजह से अफ्रीका की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देश नाइजीरिया में भी बेरोजगारी बढ़ी है. पिछले पांच साल में इसकी दर करीब 14 प्रतिशत हो चुकी है, जिसके चलते सरकार ने नौकरियां पैदा करने के लिए एक व्यापक लोकनिर्माण योजना शुरू की है. स्पेशल पब्लिक वर्क्स (एसपीडब्ल्यू) कार्यक्रम के तहत, देश के करीब साढ़े सात लाख बेरोजगार युवाओं को तीन महीने की प्लेसमेंट के साथ 20 हजार नाइरा (51 डॉलर) की मासिक तनख्वाह दी जाएगी. ट्रैफिक संचालन और सड़क की मरम्मत जैसे कम-कुशल रोजगारों में वैसे तो आदेजो की दिलचस्पी नहीं है, फिर भी उन्होंने आवेदन करने का मन बना लिया है. उनका कहना है, "मैं खाली बैठे रहना नहीं चाहती हूं."

दुनिया में सबसे ज्यादा युवा आबादी वाले देशों में एक, नाइजीरिया में करीब एक करोड़ चालीस लाख युवाओं को नौकरियों से हाथ धोना पड़ा है. संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के मुताबिक नाइजीरिया की बीस करोड़ की आबादी में हर तीसरे से अधिक व्यक्ति 24 साल या उससे कम उम्र का है. ये आंकड़े युवाओं की बेरोजगारी को लेकर सरकार की चिंता तो दिखाते हैं लेकिन आलोचकों का कहना है कि एसपीडब्ल्यू प्रोग्राम देश की उन ढांचागत समस्याओं से मुखातिब नहीं है जहां तेल-संपदा ने एक छोटे से अभिजात वर्ग को तो संपन्न बनाया है लेकिन रोजगार पैदा करने में वो विफल रही है.

दक्षिण पश्चिम नाइजीरिया में इबादान विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर अबियोदुन फोलावेवो कहते हैं, "ये विचार तो सराहनीय है लेकिन समंदर में एक बूंद जितना है. लिहाजा समस्या का हल नहीं, ये एक जुगाड़ है." उनका कहना है कि सरकारों को नौकरियां बांटने की बजाय व्यापारिक गतिविधियों को फलने फूलने के लिए सही स्थितियां बनाए रखनी चाहिए, इस तरह वो लेबर की मांग बढ़ा सकती है. "एक बार चीजें पटरी पर आ जाएं तो नौकरियां भी निकलेंगी. क्योंकि वे चीजें नदारद हैं, लिहाजा सरकार को ये सब करना पड़ रहा है."

गरीबी से लड़ाई
राज्य-केंद्रित रोजगार सृजन के कदमों के तरफदार लोग भी एसपीडब्लू को लेकर अपना संदेह जताते हैं. इस महीने के शुरुआती दिनों में राष्ट्रपति मुहम्मदु बुहारी ने ये कार्यक्रम लॉन्च किया था. व्यापक रोजगार योजना के पक्षधर सेंट्रल बैंक के पूर्व डिप्टी गवर्नर ओबेदियाह माइलाफिया का कहना है कि प्रमुख ढांचागत परियोजनाओं में निवेश, आगे चलकर उच्च कौशल वाले रोजगार पैदा कर सकता है. उनका कहना है, "मैं इसे खासतौर पर बहुत उत्साहवर्धक नहीं मानता हूं क्योंकि लोक-निर्माण योजना अनियत व्यवस्था से बहुत आगे की चीज है." 2019 में बुहारी के खिलाफ राष्ट्रपति का चुनाव लड़ने वाले माइलाफिया ने थॉमस रॉयटर्स फाउंडेशन को बताया, "लोक निर्माण प्रणालियों का मतलब है रेलवे नेटवर्क, हाईवे और आवास से जुड़ी परियोजनाओं का निर्माण और उन परियोजनाओ में बहुत से युवाओं को मिलने वाला रोजगार."

लेकिन श्रम राज्यमंत्री फेस्तुस केयामो का कहना है कि रोजगार की योजना एक आपातकालीन उपाय है जिसका लक्ष्य है, लंबी अवधि के आर्थिक प्रोत्साहन और ढांचागत कोशिशों के साथ साथ ज्यादा से ज्यादा लोगों की मदद. प्रोग्राम की अगुवाई कर रहे केयामो के मुताबिक, "अभी सरकार यही कर रही है वरना वे कैसे जीवित रहेंगे?" उनका कहना है, "सरकार एक सक्षम माहौल तो बना ही रही है, वो थोड़े से लोगों को ही सही, ऊपर उठाने और थोड़े से लोगों को ही सही, फौरी तौर पर कुछ दे पाने के तरीके भी ढूंढती है." वो कहते हैं कि इसे वार्षिक कार्यक्रम बनाने के लिए या इसे एक कृषि कार्यक्रम में तब्दील करने के लिए सरकार योजना को तीन महीने से अधिक समय के लिए बढ़ाने पर विचार कर रही है.

'मैं लगातार आवेदन करती रही'
केयामो का कहना है कि योजना के तहत कम पढ़े-लिखे और सबसे निचले सामाजिक आर्थिक वर्ग को लक्षित किया गया है. लेकिन उन करोड़ों सुशिक्षित युवाओं का काम इससे नहीं चलेगा जो अल्प-रोजगार से जुड़े हैं, पार्टटाइम काम करते हैं या अपने कौशल के अनुकूल काम नहीं कर पा रहे हैं. नाइजीरिया के सांख्यिकी ब्यूरो के मुताबिक देश में अल्प-रोजगार वाले युवाओं की बेरोजगारी दर 28.6 प्रतिशत है.

निर्माण क्षेत्र में रोजगार को प्रोत्साहन
2009 में विश्वविद्यालय से पासआउट और बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन विषय से मास्टर्स कर चुकीं नैन्सी ओटोकीना कुल मिलाकर दो साल से भी कम समय के लिए रोजगार में रह पायीं. मास्टर्स की पढ़ाई के लिए वो कॉलेज लौटीं लेकिन वो करने के बाद भी उन्हें कोई ढंग का काम नहीं मिला. 35 साल की ओटोकीना अब पांच साल के बेटे की मां हैं. वो कहती हैं, "मैंने सोचा था कि मास्टर्स कर लेने से मेरी संभावनाएं बढ़ जाएंगी. इसीलिए तो मैंने एमए किया था." नौकरी मिल जाए, इस उम्मीद में उन्होंने फिलहाल दूसरे बच्चे की प्लानिंग भी टाल दी है. उनका कहना है, "मैं बस नौकरियों के लिए लगातार आवेदन करती रहती हूं, करती रहती हूं."

राजनीतिक लाभ पाने का संदेह
एसपीडब्लू की छोटी मियाद पर सवाल उठाने के अलावा माइलाफिया और फोलावेवो जैसे कुछ आलोचकों को डर है कि सरकार इस कार्यक्रम को सत्तारूढ़ ऑल प्रोगेसिव्स कॉग्रेस (एपीसी) के समर्थकों को ईनाम बांटने का जरिया बना देगी. केयामो ने ऐसी आलोचनाओं का खंडन किया है. उनका दावा है कि चयन प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने और राजनीतिक पूर्वाग्रह से मुक्त रखने के लिए कड़े प्रावधान किए गए हैं.

उधर आदेजो को अपने आवेदन पर जवाब का इंतजार है. इस बीच वो अपने चर्च के प्रशासनिक कामों में स्वैच्छिक मदद कर रही हैं. सोशल मीडिया पर घरेलू सामान बेचकर वो अपना गुजारा चलाती हैं. उन्हें उम्मीद है कि आखिरकार एक दिन उन्हें नौकरी मिल ही जाएगी, "उम्मीद है कि मुझे बढ़िया नौकरी मिलेगी. मेरा सपना सेना या पुलिस में जाने का है."
एसजे/एमजे (रॉयटर्स थॉमसन फाउंडेशन)

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