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कराटे से बढ़ रहा है पाकिस्तान की हजारा महिलाओं का आत्मविश्वास
12-Apr-2021 7:00 PM
कराटे से बढ़ रहा है पाकिस्तान की हजारा महिलाओं का आत्मविश्वास

पाकिस्तान के बलूचिस्तान में सैकड़ों हजारा महिलाएं अपनी सुरक्षा के लिए मार्शल आर्ट सीख रही हैं. उनका कहना है कि वो कराटे से बम-धमाके तो रोक नहीं सकतीं, लेकिन इससे उनका आत्मविश्वास जरूर बढ़ गया है.

(dw.com)

हजारा मुख्य रूप से शिया मुसलमान होते हैं लेकिन पाकिस्तान के दक्षिण-पश्चिमी प्रांत बलूचिस्तान की राजधानी क्वेटा शहर में वे दशकों से सांप्रदायिक हिंसा का सामना कर रहे हैं. वो शहर के अंदर दो अलग इलाकों में रहते हैं जिनके बाहर नाकों पर हथियारबंद गार्ड तैनात हैं. महिलाओं को भी लगातार पुरुषाओं से उत्पीड़न का सामना करना पड़ता है. भीड़ वाले बाजारों या सार्वजनिक यातायात में जबरदस्ती छूने की घटनाएं आम हैं.

20 साल की नरगिस बतूल कहती हैं, "हम कराटे से बम-धमाके तो नहीं रोक सकते, लेकिन आत्मरक्षा सीखने के बाद मैंने आत्मविश्वास महसूस करना सीख लिया है. यहां सब जानते हैं कि मैं क्लब जाती हूं. बाहर किसी की हिम्मत नहीं होती मुझे कुछ भी कहने की." बलूचिस्तान वुशु कुंग फु एसोसिएशन के प्रमुख इशाक अली के मुताबिक प्रांत में 25 से भी ज्यादा क्लब हैं, जिनमें करीब 4,000 लोग नियमित रूप से प्रशिक्षण ले रहे हैं.

कुल 500 लोगों को कराटे सिखा रहे शहर के दो सबसे बड़े प्रशिक्षण केंद्रों ने बताया कि उनकी अधिकांश छात्राएं हजारा लड़कियां हैं. उनमें से कई आगे जा कर प्रतियोगिताओं में भी हिस्सा लेती हैं और इस खेल से पैसे भी कमाती हैं. पाकिस्तानी समाज आज भी काफी रूढ़िवादी है जहां महिलाओं का खेलों में भाग लेना असामान्य है. बल्कि अकसर तो परिवार अपनी लड़कियों को इसकी इजाजत ही नहीं देते.

लेकिन मार्शल आर्ट टीचर फिदा हुसैन काजमी कहते हैं कि कई मामलों में लड़कियों को छूट दी जा रही है. वो कहते हैं, "सामान्य रूप से हमारे समाज में महिलाएं कसरत भी नहीं कर सकतीं...लेकिन आत्मरक्षा और परिवार की रक्षा के लिए उन्हें इजाजत दी जा रही है." इस बदलाव के लिए अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में मेडल जीतने वाली राष्ट्रीय स्तर की चैंपियन नरगिस हजारा और कुलसूम हजारा को भी श्रेय जाता है.

41-वर्षीय काजमी बताते हैं कि उन्होंने सालों पहले लाहौर में एक चीनी गुरु से कराटे सीखा था और उसके बाद बीते सालों में उन्होंने सैकड़ों महिलाओं को सिखाया है. वो हफ्ते में छह दिन दो घंटे प्रशिक्षण देने के लिए 500 रुपए लेते हैं, लेकिन उन महिलाओं को निशुल्क सिखाते हैं जिन्होंने आतंकवादी हिंसा में परिवार के किसी सदस्य को खोया है. उनकी 18 साल की छात्रा सईदा कुबरा कहती हैं, "हजारा समुदाय कई समस्याओं का सामना कर रहा है...लेकिन कराटे की वजह से हम सुरक्षित महसूस कर सकते हैं." 2013 में एक बम धमाके में कुबरा के भाई की मौत हो गई थी.

सीके/एए (एएफपी) 

 

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