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नई दिल्ली, 6 अक्टूबर (आईएएनएस)| देश के 76 प्रतिशत लोगों को लगता है कि समाचार चैनलों पर उचित बहस (डिबेट) न होकर अनावश्यक झगड़ा होता है। आईएएनएस सी-वोटर मीडिया कंजम्पशन ट्रैकर के हालिया निष्कर्षों में यह बात सामने आई है।
सर्वेक्षण में 76 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने माना कि विचारों के सार्थक आदान-प्रदान के बजाय टेलीविजन डिबेट पर झगड़ा अधिक होता है।
उत्तरदाताओं का विचार है कि ये बहस अक्सर पहले विश्व युद्ध की शैली पर आधारित होती हैं, जिसमें स्पष्ट रूप से पहचाने जाने वाले लड़ाके (वाद-विवादकर्ता) दूसरी तरफ के व्यक्ति पर और भी अधिक जोर से चीखने-चिल्लाने में विश्वास रखते हैं।
आईएएनएस सी-वोटर के सर्वेक्षण में उत्तरदाताओं से पूछा गया कि क्या वे वास्तव में मानते हैं कि टीवी न्यूज चैनल पर वास्तविक बहस की तुलना में लड़ाई-झगड़ा और चीख-पुकार अधिक होती है। इस पर सर्वे में शामिल 76 प्रतिशत ने सहमति व्यक्त की।
इनमें से 77.1 पुरुष उत्तरदाताओं ने सहमति दिखाई, वहीं 74.9 महिला उत्तरदाता इस बात से सहमत दिखाई दीं।
जब इन सवालों को सामाजिक समूहों के समक्ष रखा गया था तो दिलचप्स आंकड़े सामने आए। इनमें उच्च जाति से संबंध रखने वाले 79.7 प्रतिशत हिंदू, जबकि 94 प्रतिशत ईसाई इस बात से सहमत हैं।
इसके अलावा 78 प्रतिशत से अधिक मुसलमानों ने माना कि चैनलों पर कोई सार्थक बहस नहीं होती है, जबकि 71.6 प्रतिशत ओबीसी और 73.9 प्रतिशत एससी और एसटी वर्ग के लोगों ने कहा कि बहस से ज्यादा झगड़ा देखने को मिलता है।
शहरी क्षेत्र में लगभग 75 प्रतिशत और ग्रामीण क्षेत्रों में लगभग 77 प्रतिशत लोग सोचते हैं कि टीवी डिबेट में बहस से कहीं अधिक झगड़ा देखने को मिलता है।
अगर आयु वर्ग की बात की जाए तो 18 से 44 आयु वर्ग में औसतन 75 प्रतिशत लोगों को लगता है कि कोई सार्थक बहस नहीं होती है।
कोविड-19 महामारी ने भारत के नए मीडिया परिदृश्य को दर्शाया है। देश में 54 प्रतिशत लोगों ने स्वीकार किया है कि वह टीवी समाचार चैनलों को देखकर थक चुके हैं। वहीं 43 प्रतिशत भारतीय इस बात से असहमत हैं।
इस सर्वेक्षण में सभी राज्यों में स्थित सभी जिलों से आने वाले 5000 से अधिक उत्तरदाताओं से बातचीत की गई है। यह सर्वेक्षण वर्ष 2020 में सितंबर के आखिरी सप्ताह और अक्टूबर के पहले सप्ताह के दौरान किया गया है।
गुवाहटी, 6 अक्टूबर (आईएएनएस)| असम पुलिस भर्ती घोटाले के प्रमुख अभियुक्तों में से एक असम के पूर्व डीआईजी प्रसांता कुमार दत्ता को पुलिस ने मंगलवार को भारत-नेपाल सीमा से हिरासत में लिया गया। इसकी जानकारी पुलिस ने दी। पुलिस प्रवक्ता ने कहा, "सीआईडी असम द्वारा जारी लुक आउट सकरुलर के बल पर दत्ता को हिरासत में लिया गया है। उन्हें अभी पश्चिम बंगाल पुलिस को सौंप दिया गया है। बाद में असम पुलिस उन्हें गुवाहाटी लाएगी।"
20 सितंबर को पुलिस भर्ती घोटाला सामने आने के बाद दत्ता, पूर्व भाजपा नेता दिबन डेका के साथ फरार हो गए थे।
असम पुलिस ने पूर्व डीआईजी से जुड़ी जानकारी साझा करने वालों को 1 लाख रुपये के इनाम का देने का फरमान जारी किया था।
हालांकि, भाजपा नेता डेका ने 30 सितंबर की रात को बारपेटा जिले के पथरचक्रुची में पुलिस को आत्मसमर्पण कर दिया था, जिसके बाद राज्य की सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने उन्हें पार्टी से निकाल दिया।
इस घोटाले से जुड़े महिला समेत 33 लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया है।
नई दिल्ली, 6 अक्टूबर (आईएएनएस)| दुनिया में जिस प्रकार से कोविड-19 महामारी का प्रसार हुआ है और इसे लेकर कई रहस्य भी अभी बरकरार हैं, इसके मद्देनजर विशेषज्ञ इस बात पर जोर दे रहे हैं कि विश्व को अब एक प्रभावी जैव सुरक्षा फ्रेमवर्क तैयार करना होगा ताकि भविष्य में जैविक खतरों से जुड़े मुद्दों को बारीकी से देखा जा सके। विकासशील देशों के लिए अनुसंधान एवं सूचना प्रणाली (आरआईएस) के महानिदेशक डॉ. सचिन चतुर्वेदी ने इस विषय पर मंगलवार को आयोजित एक वेबीनार में कहा, कोविड-19 के बाद जैविक खतरों के मुद्दों को बारीकी से देखना होगा। सबसे पहले एक वैश्विक और लचीला लेकिन मजबूत जैव सुरक्षा फ्रेमवर्क तैयार करना होगा जो सार्वजनिक स्वास्थ्य हस्तक्षेपों की पूरी श्रृंखला को कवर करेगा।"
चतुर्वेदी ने आगे कहा, "इसमें वैज्ञानिक अनुसंधान, प्रारंभिक चेतावनी, नीति निर्माण, कार्यान्वयन, मूल्यांकन और जैव आपदा से मजबूती से निपटने की क्षमता तैयार करना शामिल होगा। इसके अलावा जैविक युद्ध के लिए राष्ट्रीय स्तर पर तैयारियों की मदद करने के लिए बायोसाइंस विशेषज्ञता और ज्ञान नेटवर्क को तत्काल विकसित करना होगा।"
उन्होंने कहा कि भारत ने 26 मार्च 2020 को जैविक हथियार सम्मेलन (बीडब्ल्यूसी) को अधिक प्रभावी बनाने के लिए इसके संस्थागत ढांचे को अधिक से अधिक मजबूत बनाने का आह्वान किया।
बकौल चतुर्वेदी, "इसके अलावा, भारत ने पिछले कई वर्षों में लगातार एसटीआई और निरस्त्रीकरण के मुद्दे को उठाया है। यह एक प्रकार से 2017 में 18 अन्य देशों के साथ दिए गए अपने प्रस्ताव को ही आगे बढ़ाने की प्रक्रिया है जिसके तहत भारत ने सैन्य प्रयोजनों के लिए इन प्रौद्योगिकियों के उपयोग से संबंधित चुनौतियों का पता लगाने की आवश्यकता को सामने रखा था।"
चतुर्वेदी ने कहा कि उस प्रस्ताव में विश्वास को बहाल करने और निरस्त्रीकरण सत्यापन और हथियारों के नियंत्रण की लागत को कम करने के लिए नई प्रौद्योगिकियों के उपयोग का भी आह्वान किया था। कई विकासशील देशों ने भारत का समर्थन किया।
अमेरिका के सीनेटर क्रिस फोर्ड, सहायक सचिव, यूएस स्टेट डिपार्टमेंट, ब्यूरो ऑफ इंटरनेशनल सिक्योरिटी एंड नॉन-प्रोलिफरेशन (आईएसएन), ने भी ट्वीट किया कि हम बीडब्ल्यूसी पर हस्ताक्षर करने वाले देशों की प्रतिबद्धताओं के महत्व पर बल देते हैं। कोविड-19 महामारी सभी जैविक जोखिमों को कम करने के लिए बीडब्ल्यूसी से जुड़े सभी पक्षों की प्रतिबद्धताओं के महत्व को रेखांकित करती है। साथ ही इस जरूरत को भी बताती है कि इस क्षेत्र में सहयोग कैसे बढ़ाया जाए।
-- आईएएनएस
पटियाला (पंजाब), 6 अक्टूबर (आईएएनएस)| कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने मंगलवार को कहा कि यह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की मर्जी है कि उन्हें हाथरस की घटना में एक 'अंतर्राष्ट्रीय साजिश' दिखाई देती है, लेकिन मैं तो इसे एक बड़ी व्यक्तिगत त्रासदी के रूप में देखता हूं। एक मीडिया कॉन्फ्रेंस में राहुल ने एक सवाल के जवाब में कहा, "यह योगी आदित्यनाथ की मर्जी है कि वह इस घटना को लेकर किसी भी तरह की कल्पना कर सकते हैं, लेकिन मैं जो देखता हूं, वह यह है कि एक प्यारी सी लड़की को बेरहमी से मार डाला गया और अब उसके परिवार को धमकाया जा रहा है।"
कांग्रेस सांसद ने कहा कि उन्हें यह दिलचस्प लगा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस घटना के बारे में एक शब्द भी नहीं कहा।
राहुल और प्रियंका गांधी वाड्रा के हाथरस जाने के दौरान उप्र पुलिस द्वारा धक्कामुक्की की गई थी। साथ ही बड़ी संख्या में कांग्रेस कार्यकर्ताओं के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई। इस पर राहुल गांधी ने कहा कि उन्होंने और उनकी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने जो सहा, यह उस दर्द के आगे कुछ भी नहीं है, जिससे पीड़ित परिवार गुजर रहा है।
उन्होंने कहा कि वास्तव में उन्हें धकेला गया था। उन्होंने यह भी कहा कि उप्र में पुलिस द्वारा उन्हें धकेला जाना कोई बड़ी बात नहीं है।
राहुल ने कहा कि उनका और उनकी पार्टी का काम भारत के लोगों के हितों की रक्षा करना था, यही वजह है कि वह हाथरस गए और पंजाब में भी किसानों के साथ खड़े हुए। फिर चाहे इसके लिए उन्हें धक्के खाने पड़ें या लाठियां।
उन्होंने कहा, "कल्पना करें कि आपके बेटे या बेटी को इस तरह से मारा जा रहा है और आपके परिवार को विरोध करने, न्याय की मांग करने पर निशाना बनाया जा रहा है। मैंने इस घटना को इसी तरह महसूस किया और इसीलिए अन्याय के खिलाफ खड़ा हुआ। बात सिर्फ हाथरस की पीड़िता और उसके परिवार की नहीं, बल्कि देश की उन हजारों-लाखों महिलाओं की है, जिनके साथ लगभग हर दिन दुष्कर्म होते हैं।"
यह पूछ जाने पर कि कृषि बिल पर मतदान के दौरान वह संसद में मौजूद क्यों नहीं थे, तो राहुल ने कहा कि वह एक बेटा भी हैं और अपनी मां के प्रति उनके भी कुछ कर्तव्य हैं।
उन्होंने कहा कि उस दिन उनकी मां को मेडिकल जांच के लिए विदेश जाना पड़ा था। पारिवारिक कारणों से उनकी बहन, मां के साथ नहीं जा सकी थीं, इसीलिए उनका जाना उनकी जिम्मेदारी थी।
--आईएएनएस
हाथरस, 6 अक्टूबर (आईएएनएस)| उत्तर प्रदेश के हाथरस में युवती के साथ कथित सामूहिक दुष्कर्म के बाद मारपीट में चोट लगने के कारण उसकी मृत्यु होने के बाद नेताओं का लगातार जमवड़ा लगा है। इसी क्रम में मंगलवार को केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता राज्यमंत्री रामदास आठवले भी मृतका के घर पहुंचे। उन्होंने काफी देर तक परिजनों से बातचीत कर घटना की जानकारी ली। इस दौरान उन्होंने पार्टी की तरफ से पीड़ित परिवार को पांच लाख रुपये देने की घोषणा की है।
रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया के अध्यक्ष रामदास आठवले ने कहा कि, "इस मामले की सीबीआई जांच की अनुशंसा हो गई है, साथ ही उत्तर प्रदेश सरकार एसआईटी भी जांच करा रही है। ऐसे में कोई भी दोषी बच नहीं पाएगा।" उन्होंने कहा कि, "पीड़ित परिवार ने हाथरस के जिलाधिकारी के खिलाफ कार्रवाई की मांग की है। मैं भी इसके लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से बात करूंगा।"
आठवले ने कहा कि, "यहां की यह घटना मानवता पर कलंक है। हम डीएम के खिलाफ कर्रवाई के लिए मुख्यमंत्री से बात करेंगे।" इसके साथ ही उन्होंने अपनी पार्टी के फंड से पीड़ित परिवार को पांच लाख रुपया देने की घोषणा की है। उन्होंने कहा कि, "मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने परिवार को 25 लाख रुपया देने तथा परिवार के एक सदस्य को नौकरी देने को कहा भी है।"
मंत्री ने कहा कि, "प्रदेश में सपा व बसपा के समय भी दलितों पर अत्याचार होते रहे हैं, इसलिए विपक्ष को इस पर राजनीति करने की जगह सुधार के लिए सुझाव देना चाहिए। इस पर राजनीति नहीं की जानी चाहिए। जो भी लोग हाथरस कांड के आरोपी हैं, उन्हें सजा मिलनी चाहिए।"
--आईएएनएस
नयी दिल्ली, 06 अक्टूबर (वार्ता) बहुजन समाज पार्टी के नेता कुंवर दानिश अली ने उत्तर प्रदेश की योगी सरकार पर तीखा प्रहार करते हुए कहा कि हाथरस की घटना के बहाने प्रदेश में दंगा कराने की अंतरराष्ट्रीय साजिश का पर्दाफाश करने वाली सरकार को अब यह भी साफ कर देना चाहिए कि दुष्कर्म पीड़िता को रात के अंधेरे में जलाने वाले किस देश के एजेंट थे।
अमरोहा से लोकसभा सांसद श्री अली ने मंगलवार को ट्वीट कर योगी सरकार से तीखे सवाल पूछे। उन्होंने कहा''योगीजी, अब जब आपने हाथरस दुष्कर्म कांड के बहाने प्रदेश में दंगा कराने के अंतरराष्ट्रीय षड्यन्त्र का ‘पर्दाफ़ाश’ कर ही दिया है तो देश को यह भी बता दें कि जिन लोगों ने लड़की को रात के अंधेरे में जलाया वे लोग किस देश के एजेंट हैं? ”
उन्होंने कहा “ विदेश मंत्रालय ने 48 घंटे गुजरने के बाद भी आपके ‘पर्दाफ़ाश’ का नोटिस क्यों नहीं लिया? आप केंद्र सरकार से माँग करें कि वो ऐसे ‘दुश्मन’ देशों से अपने राजनयिक संबंध समाप्त करने की तुरंत घोषणा करे क्योंकि जो भी देश हमारे मुल्क में अफरा तफरी फैलाने के लिये फंडिंग करता है उससे हम किसी भी प्रकार का संबंध क्यों रखें?''
गौरतलब है कि पुलिस ने हाथरस की घटना की आड़ में सांप्रदायिक हिंसा भड़काने के प्रयास में 19 मुकदमे दर्ज किये है और इस सिलसिले में पांच लोगों को हिरासत में लिया है।
वहीं बसपा सुप्रीमो मायावती ने योगी सरकार को विपक्ष पर सांप्रदायिक दंगे की साजिश रचने का आरोप लगाने के बजाय हाथरस पीड़िता के परिवार को न्याय दिलाने में दिलचस्पी लेने की सलाह दी है।
आजाद जितेन्द्र
वार्ता
पटना, 6 अक्टूबर (आईएएनएस)| बिहार विधानसभा चुनाव में झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) ने राष्ट्रीय जनता दल (राजद) से अपने प्रभाव वाले 12 विधानसभा सीटों की मांग की है। कहा जा रहा है कि इस दावेदारी को लेकर झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन जल्द ही राजद नेता तेजस्वी यादव से बात करेंगे। झामुमों के सूत्रों के मुताबिक, पार्टी ने महागठबंधन में 12 सीटों की मांग की है।
झामुमो के सचिव विनोद पांडेय ने कहा, "झारखंड के मुख्यमंत्री मंगलवार या बुधवार को तेजस्वी यादवजी से बात करेंगे। झामुमो उन क्षेत्रों में चुनाव लड़ेगा, जहां हमारा मजबूत आधार है। झारखंड में हम सत्तारूढ़ गठबंधन का नेतृत्व कर रहे हैं, जहां राजद भी एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।"
उन्होंने कहा, "हमारी इच्छा बिहार में भी मजबूत महागठबंधन की है। हेमंतजी और तेजस्वीजी दोनों परिपक्व हैं और वे ऐसा फैसला लेंगे, जो धर्मनिरपेक्ष ताकतों को मजबूत करेगा।"
इस बीच, राजद के सांसद मनोज झा ने कहा कि राजद और झामुमो की नैसर्गिक दोस्ती है। झारखंड सरकार में राजद भी शामिल है। उन्होंने कहा कि सीटों की संख्या को लेकर तो वे नहीं बताएंगे, लेकिन दोनों दलों के नेता परिपक्व हैं और सीटों को लेकर कहीं कोई विवाद नहीं होगा।
बिहार की 243 विधानसभा सीटों में से महागठबंधन में हुए फैसले के मुताबिक, राजद 144 सीटों पर चुनाव लड़ेगा और कांग्रेस 70 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। भाकपा (माले) को 19 सीटें, भाकपा को 6 और माकपा 4 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारेगी। राजद अपने कोटे से ही झामुमो को भी सीट देगा।
--आईएएनएस
पटना, 6 अक्टूबर (आईएएनएस)| बिहार चुनाव को लेकर मंगलवार को राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के घटक दलों के बीच सीट बंटवारे की घोषणा कर दी गई। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इसकी घोषणा करते हुए कहा कि राजग में शामिल भाजपा के हिस्से में 121 सीटें, जबकि जदयू के हिस्से में 122 सीटें आई हैं। पटना में आयोजित राजग के संयुक्त प्रेस कांफ्रेंस में मुख्यमंत्री ने कहा कि भाजपा को 121 सीटें दी गई हैं, जबकि जदयू के हिस्से में 122 सीटें आई हैं। उन्होंने कहा कि जदयू अपने कोटे से हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) को सात सीटें दी हैं, जबकि भाजपा अपने कोटे से विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) को सीटें देगी। उन्होंने कहा कि भाजपा और वीआईपी में बात अंतिम चरण में हैं।
उन्होंने कहा, "कोई क्या बोल रहा है, उससे मतलब नहीं है। हमलोग मिलकर काम कर रहे हैं और आगे भी करेंगे।"
इससे पहले भाजपा के बिहार प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल ने दोहराया कि राजग बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में चुनाव मैदान में है।
पटना में आयोजित राजग के संयुक्त प्रेस कांफ्रेंस में भाजपा के बिहार प्रभारी भूपेंद्र यादव, भाजपा के बिहार चुनाव प्रभारी देवेंद्र फड़णवीस, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल, जदयू के प्रदेश अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह और बिहार के उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी सहित कई नेता उपस्थित रहे।
--आईएएनएस
लखनऊ, 6 अक्टूबर (आईएएनएस)| उत्तर प्रदेश के हाथरस की 19 वर्षीय दलित लड़की की मौत के बाद पिछले एक हफ्ते में लगभग हर राजनेता ने पीड़िता के घर तक पहुंचने की कोशिश की है। वहीं खुद को दलितों का निर्विवाद नेता कहने वाली बसपा सुप्रीमो मायावती की मामले से अनुपस्थिति चौंकाने वाली है।
वैसे वह नियमित रूप से इस घटना के बारे में ट्वीट कर रही हैं और कार्रवाई की मांग कर रही है, लेकिन घटनास्थल पर उनकी अनुपस्थिति ने उनके अपने निर्वाचन क्षेत्र में एक गलत संदेश भेजा है।
वैसे जो लोग मायावती को सालों से देख रहे हैं, उनके लिए मायावती का ऐसा व्यवहार आश्चर्यचकित करने वाला नहीं है। वे अपने खुद के कार्यकाल में भी उन लोगों से मिलने के लिए बाहर नहीं निकली थीं, जो उस समय अत्याचारों के शिकार हुए थे।
ऐसी घटनाओं पर नजर डालें तो 2014 में बदायूं में दो दलित चचेरी बहनों को दुष्कर्म के बाद एक पेड़ से लटका दिया गया था, तब भी मायावती उनके शोक संतप्त परिवारों से मिलने के लिए अपने घर से बाहर नहीं निकलीं थीं। जबकि उस समय बसपा विपक्ष में थी और समाजवादी पार्टी सत्ता में थी। ऐसे में मायावती दलितों के बीच अपने आधार को मजबूत करने के लिए इस घटना का बखूबी इस्तेमाल कर सकती थीं। लेकिन उन्होंने एक बयान जारी कर अपनी जिम्मेदारी पूरी कर ली थी।
बसपा अध्यक्ष के करीबी सूत्रों का दावा है कि मायावती को धूल से एलर्जी है, इसलिए वह ग्रामीण इलाकों में नहीं जाती हैं। सक्रिय राजनीति करने वालों के आगे ऐसा कारण हालांकि टिकता नहीं है। इसके अलावा मायावती अपनी पार्टी में किसी पर इतना भरोसा भी नहीं करतीं कि ऐसे मौकों पर वे उसे अपने प्रतिनिधि के तौर पर भेज सकें, बल्कि पार्टी में कोई नेता ज्यादा सक्रिय होने की कोशिश करता है तो उसे बाहरा का रास्ता दिखा दिया जाता है। यही वजह है कि कभी भी बसपा का जिला स्तर पर कोई विरोध प्रदर्शन या अन्य कार्यक्रम नहीं दिखाई देता है।
बसपा के एक वरिष्ठ विधायक कहते हैं, "बहनजी के साथ एक समस्या है कि वह पुराने समय में ही जी रही हैं और उन्हें यह महसूस नहीं हो रहा है कि चीजें बदल गई हैं। दलितों की नई पीढ़ी सत्ता में भागीदारी चाहती है। इस पर अगर कोई भी उन्हें सुझाव देने की कोशिश करता है, तो यह ईशनिंदा से कम नहीं है।"
यही वजह है कि अब भीम आर्मी के प्रमुख चंद्रशेखर आजाद को उप्र में बढ़त मिली है, जो धीरे-धीरे ही सही, उप्र की दलित राजनीति में अपनी जगह बना रहे हैं। उदाहरण के लिए, हाथरस की घटना में आजाद ग्राउंड जीरो पर पहुंचे और पीड़ित परिवार के साथ घंटों तक रहे, जबकि मायावती ने ट्वीट कर अपनी चिंता व्यक्त कर दी। जाहिर है, उस ट्वीट को अधिकांश दलितों ने देखा भी नहीं होगा।
अगर मायावती को लगता है कि दलितों के पास बसपा के अलावा कोई विकल्प नहीं है तो ये शायद उनकी भूल साबित होगी। उनकी जगह भीम आर्मी अपनी पकड़ बना रही है।
भीम आर्मी में शामिल हुए बसपा के एक पूर्व नेता कहते हैं, "चंद्रशेखर अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं के लिए केवल एक फोन कॉल की दूरी पर हैं। वह हमेशा उपलब्ध रहते हैं, जबकि मायावती के तो किसी से मिलने की उम्मीद ही नहीं की जा सकती। ना ही उन्होंने पार्टी में कोई दूसरा नेता उभरने दिया। ऐसे में संकट के समय हम उन पर निर्भर नहीं रह सकते। अब उनके भाई आनंद और भतीजे आकाश भी उन्हीं के नक्शेकदम पर हैं और यह बसपा को उसके अंत तक ले जाएगा।"
--आईएएनएस
नयी दिल्ली ,06 अक्टूबर (वार्ता) लोक जनशक्ति पार्टी(लोजपा) के बिहार विधानसभा चुनाव में अकेले दमखम दिखाने के फैसले तथा जनता दल(यूनाइटेड) के खिलाफ अपने उम्मीदवार उतारने की चुनौती और भारतीय जनता पार्टी(भाजपा) के समर्थन की घोषणा से यह सवाल उठ रहा है कि चिराग पासवान नीत लोजपा क्या इस बार प्रदेश में ‘किंगमेकर’ की भूमिका में रहेगी अथवा कोई खेल बिगाड़ेगी।
बिहार विधानसभा की 243 सीटों के लिए 28 अक्टूबर को हाेने वाले चुनाव में भाजपा और जद(यू) के बीच ‘फिफ्टी-फिफ्टी’ के फार्मूले पर सहमति बन गयी है।
सूत्रों के मुताबिक भाजपा और जद(यू)मंगलवार को सीटों के बंटवारे और अपने उम्मीदवारों की औपचारिक घोषणा कर सकते हैं।
इस बीच लोजपा ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को उनकी पार्टी के खिलाफ उम्मीदवार उतारने की धमकी दी है , हालांकि पार्टी ने यह भी कहा है कि वह भाजपा के खिलाफ नहीं है।
कुछ राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि भले ही श्री कुमार राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन(राजग) से लोजपा को अलग कर दें , लेकिन चिराग का रूख स्पष्ट है और वह अकेले के दम पर अपनी पार्टी की ताकत को आजमाना चाहते हैं। इसके अलावा भाजपा के पास चिराग से विरोध मोल लेने का कोई तर्क भी नहीं है , क्योंकि वह (चिराग) प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व को सहजता से स्वीकार करते हैं। उन्हाेंने यह भी कहा कि लोजपा के इस रूख का मतलब यह भी है कि भाजपा-जद (यू) गठबंधन की कसौटी अब शुरू होगी।
विश्लेषकों का कहना है कि अगर भाजपा चुनाव में जद(यू) से अधिक सीटें जीतती है, तो मुख्यमंत्री पद पर उसका वाजिब दावा भी होगा , हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि श्री कुमार एक अनुभवी राजनेता हैं जो राजनीतिक मतभेदों के बीच सहजता से तालमेल का उन्हें पुराना अनुभव है।
उन्होंने कहा कि भाजपा के समक्ष पिछले साल महाराष्ट्र में विषम चुनौती सामने आयी थी , जब शिवसेना ने मुख्यमंत्री का पद हासिल करने के लिए संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन(संप्रग) का हाथ थाम लिया था । उन्होंने यह भी दावा किया कि निश्चित रूप से यह नहीं कहा जा सकता कि चुनाव के पहले मौजूदा गठबंधन चुनाव के बाद भी कामय रहेगा अथवा नहीं।
टंडन जितेन्द्र
वार्ता
पटना, 6 अक्टूबर (आईएएनएस)| बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान कई नए गठबंधन बन रहे हैं। इसी क्रम में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के साथ चुनाव मैदान में उतरे राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा) के प्रमुख व पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा ने मंगलवार को कहा कि हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) भी जल्द ही इस गठबंधन में शामिल हो जाएगी। पटना में मंगलवार को एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए कुशवाहा ने कहा, "ओवैसी जी की पार्टी से भी बात हुई है। ओवैसी जी की पार्टी भी दो-चार दिनों में इस गठबंधन में शामिल हो जाएगी।"
इस गठबंधन में देवेंद्र यादव की पार्टी समाजवादी जनता दल (डेमोक्रेटिक) पहले से ही शामिल है।
उन्होंने कहा कि आगे आने वाले दिनों में इन पार्टियों के नेता आपस में मिलकर गठबंधन का नाम और बाकी चीजें तय करेंगे। उन्होंने कहा कि पहले चरण के चुनाव के लिए नामांकन भरने की अंतिम तिथि 8 अक्टूबर है। उन्होंने कहा कि एक-दो दिनों में प्रत्याशियों की सूची जारी की जाएगी।
इस मौके पर पूर्व मंत्री नरेंद्र सिंह के पुत्र और पूर्व विधायक अजय प्रताप सिंह ने भी अपने कई समर्थकों के साथ रालोसपा की सदस्यता ग्रहण की।
--आईएएनएस
नई दिल्ली, 6 अक्टूबर (आईएएनएस)| दिल्ली की एक अदालत ने मंगलवार को अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में कोयला राज्यमंत्री रहे दिलीप रे और पांच अन्य को कोयला ब्लॉक आवंटन मामले में दोषी ठहराया। कोर्ट ने कहा कि इन लोगों ने एक साथ साजिश रची, ये बात बिना किसी संदेह के साबित होती है। यह मामला 1999 में कोयला मंत्रालय की 14वीं स्क्रीनिंग कमेटी द्वारा झारखंड के गिरिडीह जिले में 105.153 हेक्टेयर कोयला खनन क्षेत्र के आवंटन से संबंधित है।
दिलीप रे के अलावा, कोयला मंत्रालय के दो पूर्व वरिष्ठ अधिकारी - प्रदीप कुमार बनर्जी और नित्यानंद गौतम भी दोषी पाए गए हैं। इसके अलावा कोर्ट ने कास्त्रोन टेक्नोलॉजीज लिमिटेड के पूर्व सलाहकार (प्रोजेक्ट्स) और इसके निदेशक महेंद्र कुमार अग्रवाल को भी दोषी पाया है।
दिल्ली के राउज एवेन्यू कोर्ट के विशेष न्यायाधीश भरत पाराशर ने झारखंड के कोल ब्लॉक आवंटन के मामले में दिलीप रे को आपराधिक साजिश का दोषी पाया। दिलीप रे 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में कोयला मंत्री थे।
अदालत ने उन्हें 120बी (आपराधिक साजिश) 409 (आपराधिक विश्वासघात) और भारतीय दंड संहिता की 420 (धोखाधड़ी) और भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम की विभिन्न धाराओं के तहत अपराध का दोषी ठहराया है।
इसके अलावा, महेश कुमार अग्रवाल और कैस्ट्रॉन माइनिंग लिमिटेड को भी 379 (चोरी की सजा) और भारतीय दंड संहिता के 34 के तहत अपराध के लिए दोषी ठहराया है। दोषियों के खिलाफ सजा का ऐलान 14 अक्टूबर को होगा।
मामले में 51 गवाहों के बयान दर्ज किए गए थे।
अभियोजन पक्ष के अनुसार, मामले में पाए गए तथ्य और परिस्थितियां स्पष्ट रूप से साबित करती हैं कि निजी पार्टियां और सरकारी सेवक आपराधिक साजिश रचने में एक साथ मिले हुए थे।
कोर्ट में कहा गया कि ब्रम्हाडीह कोयला ब्लॉक राष्ट्रीयकृत कोयला खदान नहीं था और कोयला मंत्रालय द्वारा आवंटित की जाने वाली कैप्टिव कोयला ब्लॉकों की चिन्हित सूची में भी शामिल नहीं था।
वरिष्ठ लोक अभियोजक ए.पी. सिंह ने अदालत को बताया था कि ब्रम्हाडीह कोयला ब्लॉक निजी पार्टियों को आवंटित किया जाने वाला एक चिन्हित कैप्टिव कोल ब्लॉक नहीं था। यहां तक कि स्क्रीनिंग कमेटी भी इसे किसी भी कंपनी को आवंटित करने पर विचार करने के लिए सक्षम नहीं थी।
अभियोजन पक्ष ने कहा कि दिलीप रे ने खुद कोयला मंत्रालय के दिशानिर्देशों को मंजूरी दी थी कि अगर ओपन कास्ट में वार्षिक उत्पादन क्षमता 1 एमटीपी से कम है तो लौह और इस्पात या स्पंज आयरन के उत्पादन में लगी कंपनी को कोई भी कोयला ब्लॉक आवंटित नहीं किया जाएगा। हालांकि, कैस्ट्रोन टेक्नोलॉजीज लिमिटेड के मामले में, उन्होंने इन दिशानिर्देशों को कमजोर करने पर सहमति जता दी, ताकि इसमें शामिल निजी पार्टियों को अनुचित लाभ मिल सके।
--आईएएनएस
चेन्नई, 6 अक्टूबर (आईएएनएस)| भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) दिसंबर 2020 से पहले अपने नए रॉकेट 'स्मॉल सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (एसएसएलवी)' को लॉन्च करने की दिशा में काम कर रहा है। एक वरिष्ठ अधिकारी ने मंगलवार को यह जानकारी दी।
उन्होंने यह भी कहा कि इसकी सबसे बड़ी मोटर- ठोस ईंधन वाली बूस्टर मोटर की जांच के लिए आवश्यक परीक्षण नवंबर में किया जाएगा।
इसरो के विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर (वीएसएससी) के निदेशक एस. सोमनाथ ने आईएएनएस को बताया, "एसएसएलवी लॉन्च पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल सी49 (पीएसएसवी सी49) की उड़ान के बाद श्रीहरिकोटा रॉकेट पोर्ट पर पहले लॉन्च पैड से होगा। पीएसएलवी सी49 की उड़ान के बाद लॉन्च पैड को एसएसएलवी के अनुरूप बनाया जाना है।"
सोमनाथ ने कहा कि अगले महीने पीएसएलवी सी49 लगभग 10 उपग्रहों (सैटेलाइट) के साथ उड़ान भरेगा। रॉकेट भारत के रिसैट-2बीआर2 और अन्य वाणिज्यिक उपग्रहों को ले जाएगा। इसके बाद दिसंबर में पीएसएलवी सी50 जिसैट-12आर सैटेलाइट के साथ उड़ान भरेगा। सोमनाथ ने कहा कि रॉकेट को विभिन्न केंद्रों से आने वाली विभिन्न प्रणालियों के साथ श्रीहरिकोटा में इकट्ठा किया जा रहा है। यह दूसरे लॉन्च पैड से उड़ान भरेगा।
सोमनाथ ने कहा, "ड्राइंग बोर्ड से पैड लॉन्च करने में लगने वाला समय लगभग ढाई साल है। एसएसएलवी एक तीन चरण/इंजन रॉकेट है, जो सभी ठोस ईंधन (सॉलिड फ्यूल) द्वारा संचालित है।"
इस 34 मीटर के रॉकेट में 120 टन का भार उठाने की क्षमता होगी। रॉकेट में विभिन्न कक्षाओं में कई उपग्रह प्रक्षेपित करने की भी क्षमता है। एसएसएलवी लो अर्थ ऑर्बिट (एलईओ) के लिए 500 किलोग्राम पेलोड और सूर्य-तुल्यकालिक कक्षा (एसएसओ) के लिए 300 किलोग्राम वजन ले जा सकता है।
सोमनाथ के अनुसार, रॉकेट को विकसित करने में लगभग 120 करोड़ रुपये का खर्च आया है।
उन्होंने कहा, "एसएसएलवी के लिए विशेष बात यह है कि इसमें लोकल कंपोनेंट के साथ बिल्कुल नई इलेक्ट्रॉनिक प्रणाली है।"
सोमनाथ ने कहा कि एसएसएलवी को विकसित करने की लागत कम है और नए रॉकेट के लिए केवल पीएसएलवी रॉकेट के तीसरे चरण को अपनाया गया है।
एक उपग्रह को लॉन्च करने की प्रति किलोग्राम लागत इसरो के अन्य रॉकेट पीएसएलवी के समान होगी।
उन्होंने कहा कि एसएसवी के लिए पहला पेलोड पहले ही बुक हो चुका है और कुछ और पेलोड देखे जा रहे हैं, क्योंकि रॉकेट में 500 किलोग्राम तक की क्षमता है।
--आईएएनएस
पटियाला (पंजाब), 6 अक्टूबर (आईएएनएस)| राहुल गांधी ने अपने बचपन की यादों को ताजा करते हुए कि बताया कि कैसे मुट्ठीभर सिखों ने उनके परिवार की रक्षा की थी, जब 1977 में उनकी दादी इंदिरा गांधी संसदीय चुनाव हार गई थीं। राहुल गांधी ने मंगलवार को कहा कि उन्हें लगता है कि उन पर पंजाब और पंजाबियों का कर्ज है। राहुल गांधी ने याद करते हुए कहा, "घर में कोई नहीं था, सिवाय उन सिखों के, जिन्होंने मेरी दादी की रक्षा की।"
यह पूछे जाने पर कि पंजाबियों को उन पर भरोसा क्यों करना चाहिए, राहुल ने यहां एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि पंजाब के लोगों को उनके कार्यो को देखना चाहिए और उनके राजनीतिक करियर को देखना चाहिए, जिसमें वह हमेशा किसी भी अन्याय से पीड़ित लोगों के साथ खड़े रहे हैं।
राहुल ने कहा कि उन्होंने पंजाबियों से बहुत कुछ सीखा है, जिसका वह आभार प्रकट करते हैं। राहुल ने कहा कि उन्हें हमेशा यह महसूस होता है कि उन्हें पंजाब के लोगों का कर्ज चुकाना है।
उन्होंने कहा कि उनकी तमिलनाडु के लोगों के लिए भी ऐसी ही भावनाएं हैं।
राहुल ने कहा कि वह अब पंजाब आए, क्योंकि उन्हें लगा कि मोदी सरकार की ओर से राज्य के साथ घोर अन्याय किया जा रहा है और वह सहज रूप से हमेशा कमजोर और पीड़ितों के साथ खड़े रहते हैं।
--आईएएनएस
पटना, 6 अक्टूबर (आईएएनएस)| भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के बिहार प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल ने मंगलवार को स्पष्ट कहा कि बिहार में नीतीश कुमार का नेतृत्व स्वीकार करने वाले ही राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) का हिस्सा रहेंगे। यहां पत्रकारों से चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि बिहार के मुख्यमंत्री और जदयू अध्यक्ष नीतीश कुमार ही बिहार राजग के नेता हैं और गठबंधन में सारी चीजें नीतीश के नेतृत्व में हो रही हैं।
उन्होंने इसे स्पष्ट करते हुए कहा कि भाजपा भी बिहार में नीतीश कुमार के नेतृत्व में ही चुनाव लड़ रही है।
जायसवाल ने कहा, "राजग में वही रहेंगे जो नीतीश जी के नेतृत्व को राज्य में स्वीकार करते हैं।"
माना जा रहा है कि जायसवाल ने यह साफ संदेश लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) को दिया है। दरअसल, लोजपा अध्यक्ष चिराग पासवान ने स्पष्ट कहा है कि उन्हें नीतीश का नेतृत्व स्वीकार नहीं है, हालांकि उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ रहने की बात कही थी।
जायसवाल ने कहा कि नीतीश कुमार को फिर से मुख्यमंत्री बनाने के लिए भाजपा सहित राजग के सभी घटक दलों के कार्यकर्ता पूरी मेहनत कर रहे हैं।
--आईएएनएस
एमएनपी/एसजीके
नयी दिल्ली, 06 अक्टूबर (वार्ता) उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि देश में सांसदों/विधायकों के खिलाफ ज्यादातर लंबित आपराधिक मामलों में पुलिस भय के कारण कार्रवाई नहीं करती जो चिंता का विषय है।
न्यायालय ने कहा कि यह बहुत ही चिंताजनक मामला है और केंद्र को इस बारे में विचार करना चाहिए। शीर्ष अदालत ने ऐसे माननीयों के खिलाफ आपराधिक मामलों का विस्तृत ब्योरा उपलब्ध कराने तथा इस बारे में अंतिम निर्णय लेने का केंद्र सरकार को निर्देश दिया।
न्यायमूर्ति एन वी रमना की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने भाजपा नेता एवं वकील अश्विनी उपाध्याय की याचिका की सुनवाई के दौरान टिप्पणी की कि माननीयों के खिलाफ जो आपराधिक मामले लंबित हैं उसके बारे में केंद्र को अंतिम निर्णय लेना चाहिए।
केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉसिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलीलदी कि शीर्ष अदालत को सभी पुलिस महानिदेशकों को दिशानिर्देश जारी करना चाहिए ताकि यह ऐसे मामलों में आरोपी माननीयों को समय पर समन किया जा सके।
न्यायमित्र वरिष्ठ अधिवक्ता हंसारिया ने शीर्ष अदालत को सूचित किया कि न्यायालय के आदेशानुसार ज्यादातर उच्च न्यायालयों ने कार्य योजना सौंप दी है, लेकिन न्यायमूर्ति रमना ने कहा कि कुछ मामलों में स्पष्टता नहीं नजर आ रही है।
न्यायालय ने मामले की सुनवाई 10 दिनों के लिए स्थगित कर दी।
गौरतलब है कि श्री हंसारिया ने शीर्ष अदालत के पिछले माह के आदेश के परिप्रेक्ष्य में विभिन्न उच्च न्यायालयों की कार्ययोजना का विस्तृत ब्योरा दिया है। श्री हंसारिया ने हालांकि कहा है कि त्रिपुरा और मेघालय उच्च न्यायालयों ने अभी तक कोई कदम नहीं उठाये हैं।
न्याय मित्र की रिपोर्ट में कहा गया है कि कुछ उच्च न्यायालयों ने प्रत्येक जिले में सुबह शाम के सत्र में अदालत चलाने का सुझाव दिया है तो कुछ ने मजिस्ट्रेट स्तर पर विशेष अदालतों के गठन की वकालत की है।
अधिकांश उच्च न्यायालयों द्वारा वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के नियम बनाए गए हैं और शेष इन्हें अंतिम रूप देने की प्रक्रिया में हैं। न्याय मित्र ने कुछ उच्च न्यायालयों के रवैये पर असंतोष भी जताया है।
सुरेश जितेन्द्र
वार्ता
नई दिल्ली, 6 अक्टूबर (आईएएनएस)| सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को हाथरस की घटना को भयानक, चौंकाने वाला और असाधारण करार दिया। शीर्ष न्यायालय ने इस मामले में उत्तर प्रदेश सरकार से तीन पहलुओं पर एक हलफनामा मांगा है कि पीड़ित परिवार और गवाहों की रक्षा किस तरह की जा रही है। क्या इस मामले में परिवार ने अपनी सहायता के लिए वकील रखा है और इलाहाबाद उच्च न्यायालय की कार्यवाही का दायरा क्या है तथा वह इसका दायरा किस तरह बढ़ा सकता है। प्रधान न्यायाधीश एस.ए.बोबडे की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि अदालत सुनिश्चित करेगी कि मामले की जांच निर्विघ्न हो।
सीजीआई ने वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंग से कहा, "यह घटना भयानक है, चौंकाने वाली है . हम इसीलिए आपको सुन रहे हैं, क्योंकि यह घटना असाधारण है।"
इंदिरा जयसिंग ने मामले को दिल्ली स्थानांतरित करने पर जोर दिया। उन्होंने यह भी कहा कि मामले में कई प्रदर्शनकारियों के खिलाफ 27 प्राथमिकी दर्ज की गई हैं। साथ ही उन्होंने गवाहों को सुरक्षा दिए जाने पर भी जोर दिया।
उत्तर प्रदेश सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि अदालतों के बाहर कई तरह की बातें कही जा रही हैं और केंद्रीय एजेंसी द्वारा जांच करके ही इन्हें खत्म किया जा सकता है। मेहता ने कहा कि पीड़ित परिवार को पहले से ही पुलिस सुरक्षा मिली हुई है। गवाहों की भी सुरक्षा की जा रही है।
मेहता ने कहा, "तथ्यों की जानकारी के बिना अदालत में तर्क दिए जा रहे हैं।"
मामले में शीर्ष अदालत ने नोटिस जारी कर राज्य सरकार को तीन पहलुओं पर एक और हलफनामा दाखिल करने के लिए कहा है। साथ ही सुनवाई को अगले सप्ताह तक के लिए स्थगित कर दिया है।
बता दें कि शीर्ष अदालत की यह टिप्पणी एक सामाजिक कार्यकर्ता द्वारा दायर की गई जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान की गई। इसमें याचिकाकर्ता ने हाथरस की घटना की सीबीआई या एसआईटी से जांच कराने की मांग की है। हाथरस के बुलगड़ी गांव में 19 वर्षीय दलित किशोरी के साथ कथित तौर पर ऊंची जाति के लोगों ने सामूहिक दुष्कर्म किया था। युवती की मौत 29 सितंबर को दिल्ली के सफदर जंग अस्पताल हो गई थी।
नई दिल्ली, 6 अक्टूबर (आईएएनएस)| कुछ सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर मौजूद आधी से अधिक युवतियों ने ऑनलाइन उत्पीड़न या दुर्व्यवहार का सामना किया है। एक नए सर्वेक्षण में इस बात का पता चला है। भारत में बालिकाओं के अधिकारों और समानता के लिए काम करने वाले एक गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) प्लान इंटरनेशनल की ओर से किए गए एक सर्वेक्षण में यह आंकड़ा सामने आया है।
ऑनलाइन दुर्व्यवहार और उत्पीड़न के कारण लड़कियां सोशल मीडिया छोड़ने को मजबूर हो रही हैं। सोशल मीडिया को लेकर किए गए अध्ययन में कहा गया कि 58 प्रतिशत से अधिक लड़कियों ने किसी ना किसी प्रकार के दुर्व्यवहार का सामना किया है। प्लान इंटरनेशनल ने इस सर्वेक्षण में ब्राजील, भारत, नाइजीरिया, स्पेन, थाईलैंड और अमेरिका सहित 22 देशों में 15 से 25 वर्ष की 14,000 लड़कियों और युवतियों को चुना गया।
सर्वे में 58 फीसदी से ज्यादा लड़कियों ने माना है कि उन्हें ऑनलाइन दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ता है।
सर्वे में पाया गया है कि ऑनलाइन उत्पीड़न के कारण हर पांच में से एक (19 प्रतिशत) युवतियों ने सोशल मीडिया का उपयोग बंद कर दिया या फिर कम कर दिया। सोशल मीडिया पर उत्पीड़न झेलने के बाद हर 10 महिलाओं में से एक (12 प्रतिशत) ने सोशल मीडिया पर अपनी अभिव्यक्ति के तरीके को बदल दिया।
सोशल मीडिया पर महिलाओं पर हमले की घटनाएं आम बात हैं। फेसबुक पर हमले की घटनाएं सबसे आम थीं, जहां 39 प्रतिशत महिलाओं ने कहा कि उन्हें उत्पीड़न का सामना करना पड़ा। वहीं इंस्टाग्राम पर 23 प्रतिशत, व्हाट्सऐप पर 14, स्नैपचैट पर 10, ट्विटर पर 9 और टिकटॉक पर 6 प्रतिशत महिलाओं ने दुर्व्यवहार या उत्पीड़न का अनुभव किया है।
पोल के मुताबिक, लक्षित लड़कियों में से लगभग आधी लड़कियों को शारीरिक या यौन हिंसा की धमकी दी गई थी। इनमें से कई ने कहा कि दुर्व्यवहार ने उन्हें मानसिक रूप से प्रभावित किया और एक चौथाई ने शारीरिक रूप से असुरक्षित महसूस किया।
प्लान इंटरनेशनल की मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) ऐनी-बिर्गिट्टे अल्ब्रेक्टसेन के मुताबिक, सोशल मीडिया पर यह उत्पीड़न शारीरिक नहीं, लेकिन यह महिलाओं की अभिव्यक्ति की आजादी के लिए खतरा होते हैं।
खास बात यह है कि दुनिया भर की लड़कियों की ओर से फेसबुक, इंस्टाग्राम, टिक्टॉक और ट्विटर के लिए खुला पत्र लिखा गया है, जिन्होंने इसमें सोशल मीडिया कंपनियों को दुरुपयोग की रिपोर्ट करने के लिए और अधिक प्रभावी तरीके बनाने की अपील की है।
भोपाल, 6 अक्टूबर (आईएएनएस)| मध्य प्रदेश में विधानसभा उप-चुनाव का रंग धीरे-धीरे गहराने लगा है। सभाएं और जनसंपर्क का दौर तो जारी है ही, साथ में सोशल मीडिया पर तरह-तरह के वीडियो वायरल हो रहे हैं। ताजा वीडियो साड़ियों के बांटने का वायरल हुआ है। इसमें कथित तौर पर राज्यमंत्री बृजेंद्र यादव को साड़ियां बांटते हुए दिखाया गया है। इस वीडियो को कांग्रेस की आईटी सेल ने साझा किया है। राज्य में विधानसभा के उप-चुनाव से पहले विरोधी दलों के नेताओं को घेरने की तैयारी चल रही है। इसी क्रम में कांग्रेस की आईटी सेल ने यह वीडियो वायरल किया है, जिसमें कथित तौर पर मुंगावली से भाजपा के संभावित उम्मीदवार और मंत्री बृजेंद्र सिंह यादव साड़ियां बांटते नजर आ रहे हैं। इस वीडियो की आईएएनएस पुष्टि नहीं करता।
भाजपा की ओर से इसे आचार संहिता लागू होने से पहले कोरोना काल का बताया जा रहा है। वहीं कांग्रेस ने चुनाव आयोग से शिकायत करने की बात कही है।
ज्ञात हो कि इससे पहले अनूपपुर से भाजपा के संभावित प्रत्याशी और राज्य सरकार के मंत्री बिसाहू लाल सिंह का बच्चियों को नोट बांटने का वीडियो वायरल हुआ था। इस वीडियो को सिंह ने पुराना बताया था। उन्होंने माना था कि वे पहली बार जब मंत्री बनकर गांव आए थे तब उनका बच्चियों ने कलश लेकर स्वागत किया था। शगुन के तौर पर उन्होंने बच्चियों को दस और सौ के नोट दिए थे। उस समय आचार संहिता नहीं लगी थी।
नई दिल्ली, 6 अक्टूबर (आईएएनएस)| उच्चतम न्यायालय ने हाथरस सामूहिक दुष्कर्म मामले में आज जनहित याचिका पर सुनवाई की। कोर्ट ने इस मामले को भयानक बताया। सुनवाई से पहले राज्य सरकार ने अदालत में हलफनामा दाखिल किया। जिसमें कहा गया कि संभावित दंगों के कारण प्रशासन ने पीड़िता के परिवार को रात में शव का अंतिम संस्कार करने के लिए मना लिया था। भीम आर्मी चीफ चन्द्रशेखर आजाद ने आईएएनएस से बात करते हुए कहा कि, "सुरक्षा की वजह से क्या लोगों के राइट्स खत्म कर दिए जाएंगे? कानून व्यवस्था फिर किस लिए?" भीम आर्मी चीफ ने आगे कहा, "जब दिल्ली से जाने वाले लोगों के लिए सुरक्षा के इंतजाम हो सकते हैं, तो हिंसा भड़काने वाले लोगों को भी रोका जा सकता है। कौन लोग हिंसा करना चाहते हैं ? अभी तक पीड़ित परिवार की तरफ से कोई हिंसा नहीं कि गई। क्या सुरक्षा की वजह से लोगों के राइट्स खत्म कर दिए जाएंगे ? कानून व्यवस्था फिर किस लिए है?"
उन्होंने कहा कि, "मैंने पहली बार देखा है कि राम राज्य में पुलिस करती क्या है। पूरे देश में पुलिस का काम सबूत इकट्ठा करना होता है। भारत में खासतौर पर उत्तरप्रदेश में पुलिस का काम सबूत मिटाना है। शव को लेने के लिए पीड़ित परिवार ने सिग्नेचर नहीं किये, पीड़ित परिवार दिल्ली में और शव यूपी में चला जाता है, ये कैसे संभव?"
"पीड़ित परिवार की जो मांगें थीं, उनपर गौर क्यों नहीं हुआ, वो तो साथ चलने के लिए तैयार थे। पीड़ित परिवार की सहमति के बिना शव को ले जाना क्राइम है।"
लखनऊ, 6 अक्टूबर (आईएएनएस)| अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज में फोरेंसिक मेडिसीन विभाग ने प्रमाणित किया है कि हाथरस मामले में 19 वर्षीय दलित पीड़िता के साथ दुष्कर्म का कोई सबूत नहीं मिला है। ये सर्टिफिकेट उत्तर प्रदेश सरकार ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में हलफनामे के साथ प्रस्तुत किया है।
इसके मुताबिक, "पीड़िता के साथ वैजिनल और एनल इंटरकोर्स के कोई संकेत नहीं मिले हैं। शारीरिक हमले के जरूर सबूत मिले हैं जिसमें उसकी गर्दन और पीठ पर चोट के निशान पाए गए हैं।"
राज्य सरकार ये लगातार कहती आ रही है कि पोस्टमार्टम रिपोर्ट में दुष्कर्म की पुष्टि नहीं हुई थी। जबकि पीड़ित के परिवार ने जोर देकर कहा है कि लड़की के साथ दुष्कर्म हुआ था।
इसके अलावा इस मामले के आरोपियों के परिवार भी यही कहते आ रहे हैं कि कोई दुष्कर्म नहीं हुआ था और लड़की को उसके भाई ने पीटा था और चोट के निशान उसी के हैं।
कानपुर, 6 अक्टूबर (आईएएनएस)| उत्तर प्रदेश में एक अजीबोगरीब वाकया सामने आया है, जहां एक 18 वर्षीय युवक के पेट में तीन इंच लंबी लोहे की कील, सिलाई मशीन की सुई और पेचकस पाई गई है। उन्नाव के भटवा गांव के रहने वाले 18 साल के करण को पेट में तेज दर्द की शिकायत हुई और उसे रविवार को लखनऊ-कानपुरहाईवे पर स्थित एक मेडिकल फैसिलिटी ले लाया गया।
एक स्कैन के बाद, डॉक्टरों ने पेट में इन चीजों के होने का पता लगाया।
सोमवार को तीन घंटे की लंबी सर्जरी की गई, जिस दौरान डॉक्टरों ने लोहे के नुकीले औजार, तीन-तीन इंच की लोहे की 30 कील, एक कम धार वाला औजार, चार इंच लंबी लोहे की रॉड, सिलाई मशीन की चार सुई और एक पेचकस उसके पेट से निकाली।
मरीज के पिता, कमलेश, ने डॉक्टरों को बताया कि करण मानसिक रूप से परेशान था और उन्हें नहीं पता था कि उसने इन चीजों को कैसे और कब निगल लिए।
उन्नाव के शुक्लागंज इलाके में एक निजी अस्पताल में वरिष्ठ चिकित्सक राधा रमण अवस्थी ने कहा कि ऑपरेशन सफल रहा।
उन्होंने कहा, "रोगी मानसिक रूप से बीमार प्रतीत होता है। उसने हमारे सवालों का जवाब नहीं दिया कि लोहे के औजार उसके पेट में कैसे प्रवेश कर गए। उसके सेप्सिस के संपर्क में आने की आशंका है इसलिए अगले सात दिन महत्वपूर्ण होंगे। हम चौबीसों घंटे उसकी हालत पर नजर बनाए हुए हैं।"
मुंबई, 6 अक्टूबर (आईएएनएस)| बॉलीवुड अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मौत के बाद से सोशल मीडिया ट्रोलिंग का सामना कर रही मुंबई पुलिस ने अब विभिन्न प्लेटफॉर्म पर सोशल मीडिया ट्रोल्स को लेकर कार्रवाई करने का मन बना लिया है। एक अधिकारी ने यहां मंगलवार को यह जानकारी दी। साइबर सेल की पुलिस उपायुक्त रश्मि कारंदीकर ने कहा कि कई सोशल मीडिया अकाउंट धारक मुंबई पुलिस आयुक्त परमबीर सिंह को ट्विटर, इंस्टाग्राम, फेसबुक पर ट्रोल कर रहे हैं और उनके और पुलिस बल के खिलाफ अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल कर रहे हैं।
कारंदीकर ने कहा, "इन अकाउट्ंस में से अधिकांश फर्जी हैं .. हम इन सभी फर्जी अतकाउंट होल्डर्स के खिलाफ कार्रवाई करेंगे। पिछले महीने, एक अन्य अपराधी के खिलाफ एक एफआईआर दर्ज की गई थी जिसने शहर के पुलिस आयुक्त के आधिकारिक ट्विटर अकाउंट की एक माफ्र्ड छवि का इस्तेमाल किया था।"
सुशांत सिंह की मौत के लगभग 110 दिनों बाद यह सामने आया है। एम्स की रिपोर्ट में भी अभिनेता की हत्या की अटकलों को खारिज कर दिया गया।
एम्स की रिपोर्ट का सत्तारूढ़ महा विकास अघाड़ी की घटक शिवसेना-राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी-कांग्रेस द्वारा व्यापक रूप से स्वागत किया गया था, जिन्होंने मामले में राज्य सरकार और मुंबई पुलिस पर जिस तरह से निशाना साधा गया था, उसकी आलोचना की।
सिंह ने एम्स के निष्कर्ष पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा, "हम इससे बिल्कुल भी हैरान नहीं हैं .. यह कूपर अस्पताल की टीम ने भी यही कहा था।" वहीं, एमवीए के सहयोगियों ने पूरे ट्रोलिंग बिजनेस की एसआईटी जांच की मांग की है।
पुलिस सूत्रों ने कहा कि 14 जून को अभिनेता की मौत के बाद विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर बनाए गए लगभग 80,000-1,00,000 ऐसे 'फर्जी अकाउंट' हो सकते हैं और कुछ कथित तौर पर अब बंद किए जा रहे हैं।
साइबर पुलिस के प्रारंभिक विश्लेषण के अनुसार, मुंबई पुलिस को निशाने पर लेते हुए निंदनीय या अपमानजनक पोस्ट भारत और यहां तक कि यूरोप, स्कैंडिनेविया, दक्षिण-पूर्व एशिया और अन्य जगहों से अपलोड किए गए थे।
कांग्रेस प्रवक्ता सचिन सावंत और शिवसेना नेता किशोर तिवारी ने अभिनेता की मौत के बाद पिछले चार महीनों में सामने आई सोशल मीडिया ट्रोलिंग की जांच के लिए पुलिस की पहल की सराहना की है।
सावंत ने एक बयान में कहा, "मैं इस फैसले का स्वागत करता हूं .. जल्द ही मैं इस बारे में सरकार के साथ सोशल मीडिया अकाउंट पर बहुत महत्वपूर्ण जानकारी साझा करूंगा, जो सुशांत सिंह मामले में 'साजिश की थ्योरी' को बढ़ावा देने और महाराष्ट्र को बदनाम करने के लिए भाजपा आईटी टीम द्वारा पूरी तरह से जेनरेट किए गए थे।"
पुलिस इन मामलों में कुछ गिरफ्तारियां होने को लेकर आश्वस्त है, जिसमें पांच साल तक की जेल की सजा हो सकती है।
चेन्नई, 6 अक्टूबर (आईएएनएस)| अन्नाद्रमुक के 36 वर्षीय दलित विधायक ए. प्रभु की वास्तविक जीवन की प्रेम कहानी किसी फिल्म के क्लाइमैक्स की तरह मालूम पड़ती है क्योंकि उनके द्वारा अपनी 19 वर्षीय प्रेमिका से शादी रचाने के बाद से सनसनी है। लड़की एक ब्राह्मण परिवार से है। कल्लाकुरिची निर्वाचन क्षेत्र के सत्तारूढ़ अन्नाद्रमुक विधायक, ए. प्रभु ने लड़की के परिवार के कड़े विरोध के बावजूद सोमवार को कॉलेज छात्रा एस. सौंदर्या से शादी रचा ली।
शादी से नाराज एक स्थानीय मंदिर के पुजारी लड़की के पिता एस. स्वामीनाथन ने आरोप लगाया कि उनकी बेटी का अपहरण कर लिया गया था। उन्होंने आत्मदाह करने की धमकी दी और जिला पुलिस ने उनके खिलाफ आत्महत्या के प्रयास का मामला दर्ज किया।
कहा जाता है कि सौंदर्या अपने माता-पिता का घर छोड़कर निकल गई और शादी प्रभु के निवास पर हुई।
प्रभु के माता-पिता भी अन्नाद्रमुक से जुड़े हैं।
बाद में प्रभु ने इन अफवाहों का खंडन किया कि उन्होंने सौंदर्या का अपहरण कर जबरन शादी की हैं। उन्होंने सौंदर्या के माता-पिता को धमकी देने से भी इनकार किया।
प्रभु ने कहा कि पिछले कुछ महीनों से वह और सौंदर्या प्यार में थे।
उनके अनुसार, उनके परिवार ने औपचारिक रूप से स्वामीनाथन से शादी के लिए सहमति मांगी थी। हालांकि, स्वामीनाथन ने साफ मना कर दिया।
प्रभु ने कहा कि उन्होंने अपने माता-पिता के आशीर्वाद के साथ सौंदर्या से शादी रचाई है।
नई दिल्ली, 6 अक्टूबर (आईएएनएस)| उत्तर प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि कथित रूप से हाथरस में सामूहिक दुष्कर्म की शिकार हुई पीड़िता का अंतिम संस्कार रात में इसलिए किया गया क्योंकि ऐसी खुफिया सूचनाएं मिली थीं कि युवती और आरोपी दोनों के समुदायों के लाखों लोग राजनीतिक कार्यकर्ताओं के साथ उसके गांव में इकट्ठा होंगे। जिससे कानून-व्यवस्थाको लेकर बड़ी समस्या हो जाती। राज्य सरकार ने शीर्ष अदालत से मामले की जांच सीबीआई से कराने का निर्देश देने का भी आग्रह किया। इसने दावा किया कि निहित स्वार्थ वाले लोग निष्पक्ष जांच को विफल करने का प्रयास कर रहे हैं।
राज्य ने इस बात पर जोर दिया कि, "कुछ निहित स्वार्थो द्वारा नियोजित (मुद्दे पर) जातिगत विभाजन से उत्पन्न संभावित हिंसक स्थिति को छोड़कर, दाह संस्कार जल्दी करने के पीछे कोई बुरा इरादा नहीं हो सकता।"
राज्य के हलफनामे को अदालत में दायर किया गया था।
अपने हलफनामे में, राज्य ने पीड़िता के दाह संस्कार को उचित ठहराया - जिसकी मृत्यु 29 सितंबर को दिल्ली के एक अस्पताल में हुई थी और 30 सितंबर को देर रात 2.30 बजे उसका अंतिम संस्कार कर दिया गया क्योंकि "इस बात की आशंका थी कि प्रदर्शनकारी हिंसक हो सकते हैं।"
सरकार के हलफनामे में कहा गया है कि बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में भी फैसला सुनाए जाने को लेकर जिले में हाई अलर्ट था।
यह कहा गया कि हाथरस जिला प्रशासन को 29 सितंबर की सुबह से कई खुफिया जानकारी मिली थी, जिस तरह से दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में एक धरना आयोजित किया गया था और "पूरे मामले का फायदा उठाया जा रहा है और इसे एक जातिगत और सांप्रदायिक रंग दिया जा रहा है।"
इसने कहा कि ऐसी असाधारण और गंभीर परिस्थितियों में, जिला प्रशासन ने सुबह में बड़े पैमाने पर हिंसा से बचने के लिए उसके माता-पिता को मनाकर रात में सभी धार्मिक संस्कारों के साथ शव का अंतिम संस्कार कराने का फैसला लिया। पीड़िता का शव उसकी मौत और पोस्टमार्टम के बाद 20 घंटे से अधिक समय तक पड़ा रहा था।
उत्तर प्रदेश पुलिस ने कथित तौर पर 29 सितंबर को 19 वर्षीय पीड़िता के शव को दिल्ली के अस्पताल से निकाल लिया और हाथरस के बुलगड़ी गांव ले जाया गया। शोक संतप्त परिवार ने अधिकारियों से आग्रह किया कि वह अंतिम बार शव को घर ले जाने की अनुमति दें और यहां तक कि शव ले जाने वाली एम्बुलेंस को भी रोकने की कोशिश की। हालांकि, परिवार ने आरोप लगाया, वे अंतिम संस्कार के दौरान अपने घर में बंद थे।