मनोरंजन
मौजूदा हालातों के कारण देश में बाकी इंडस्ट्रीज के साथ-साथ मनोरंजन इंडस्ट्री में भी काफी बदलाव देखने को मिल रहे हैं। जहां एक तरफ लॉकडाउन में मिली रियायतों के बाद अब एक बार फिर से फिल्मों से जुड़ा काम शुरू हो चुका है। वहीं दूसरी तरफ अभी फिल्में सिनेमा घरों में रिलीज करने के लिए मेकर्स को लंबा इंतजार करना होगा। यही कारण है कि इन सबके बीच मेकर्स अपनी फिल्मों को थिएटर्स में रिलीज करने के इंतजार के बजाए अब ओटीटी रिलीज का रास्ता अपना रहे हैं। इसी के चलते हाल ही में नेटफ्लिक्स ने एक-दो नहीं बल्कि गुंजन सक्सेना और लूडो समेत पूरी 17 ओरिजन फिल्मों और वेब सीरीज का ऐलान कर दिया है।
देश में मौजूदा हालातों के कारण कई लोग अपने घर पर ही समय बिता रहे हैं। ऐसे में ओटीटी प्लैटफॉर्म अपने दर्शकों के मनोरंजन में कोई कमी नहीं छोडऩा चाह रहे हैं। यही कारण है कि अब फिल्मों की ओटीटी रिलीज एक ट्रेंड बन गया है। हाल ही में नेटफ्लिक्स पर एक साथ 17 बेव सीरीज और और फिल्मों का ऐलान हुआ है। ये ऐलान बड़े ही दिलचस्प तरीके से हुआ है। बुधवार को सोशल मीडिया पर प्तष्टशद्वद्गह्रठ्ठहृद्गह्लद्घद्यद्ब& ट्रेंड कर रहा था। जिसके जरिए जाह्नवी कपूर, राजकुमार राव, अनुराग कश्यप, काजोल, नवाजुद्दीन सिद्दीकी समेत कई स्टार्स ने नेटफ्लिक्स से सवाल किया था कि वो कब तक सबकुछ छुपाकर रखेगा और अब उसे ऐलान कर देना चाहिए। (न्यूज18)
बॉलीवुड के शानदार एक्टर राजकुमार राव के फैंस के लिए अच्छी खबर है। राजकुमार की अगली फिल्म का ऐलान हो गया है। तेलुगू की हिट फिल्म के हिंदी रीमेक में राजकुमार राव का दमदार रोल देखने को मिलेगा, ये एक थ्रिलर फिल्म होगी। हिट का निर्देशन सैलेश कोलानू ने किया था, वहीं हिंदी रीमेक को भी वही डायरेक्ट करेंगे। फिलहाल फिल्म प्री प्रोडक्शन स्टेज पर है और उम्मीद की जा रही है कि अगले साल तक ये रिलीज भी हो जाएगी।
राजकुमार राव की इस फिल्म को दिल राजू और कुलदीप राठौर प्रोड्यूस कर रहे हैं। हिट साउथ की सुपरहिट फिल्म में से एक है और अब उम्मीद है कि इसका हिंदी रीमेक भी दर्शकों को काफी पसंद आएगा। राजकुमार राव के साथ इस फिल्म में अभिनेत्री कौन होंगी इसकी फिलहाल घोषणा होना बाकी है।
राजकुमार राव के हाथ में इस समय काफी फिल्में हैं, लूडो के अलावा रूही-अफजा और छलांग फिल्म में भी वो नजर आएंगे। रूही-अफजा में राजकुमार राव के साथ जाह्नवी कपूर नजर आएंगी। लूडो में अभिषेक बच्चन, राजकुमार राव, फातिमा सना शेख, आदित्य राय कपूर भी दिखाई देंगे।
राजकुमार राव ने बॉलीवुड में कई बेहतरीन फिल्मों में काम किया है। साल 2019 में उनकी फिल्म मेड इन चाइना रिलीज हुई थी, इसके अवाला वो शिमला मिर्ची में भी नजर आए थे। इन दिनों साउथ की कई फिल्मों का रीमेक बन रहा है, शाहिद कपूर की फिल्म कबीर सिंह और उनकी आने वाली फिल्म जर्सी भी साउथ फिल्म का ही हिंदी रीमेक है।
एक्टर सुशांत सिंह राजपूत के निधन को एक महीना पूरा गया है। पुलिस ने अपनी कार्रवाई में इसे एक सुसाइड का मामला मानाा है। लेकिन सुशांत के फैन्स अभी भी इस जांच को अधूरा मानते हैं।वो सुशांत मामले में सीबीआई जांच की मांग कर रहे हैं। बीजेपी नेता रूपा गागुंली भी इन फैन्स के साथ खड़ी नजर आ रही हैं। वो लगातार इस मामले में सीबीआई दखल चाहती हैं।
अब रूपा गांगुली ने सोशल मीडिया पर कई ट्वीट कर सुशांत मामले को अलग एंगल दे दिया है। रूपा गांगुली ने दावा कर दिया है कि सुशांत सिंह राजपूत को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में बुलाया गया था। रूपा ने उसकी एक तस्वीर भी शेयर की है। लेकिन वहीं उन्होंने इस बात पर सवाल खड़े किए हैं कि जब पूरा बॉलीवुड पीएम से मुलाकात करने गया था, तब सुशांत वहां मौजूद नहीं थे। रूपा को ये बात कचोट रही है।
वो ट्वीट कर कहती हैं-सुशांत पीएम के शपथ समारोह में मौजूद थे। लेकिन वो उन तस्वीरों में नजर नहीं आ रहे जो दिसंबर 2018 से पहले या उसके आसपास ली गई थीं। क्या वो उस मीटिंग में मौजूद थे? किस ने बनाई थी ये लिस्ट? वहीं एक और ट्वीट में रूपा ने सवाल दागा-दिसंबर 2018 और जनवरी 2019 के बीच पीएम ने कितनी बार बॉलीवुड से मुलाकात की। क्या उन मुलाकातों में सुशांत थे? पीएम और बॉलीवुड सितारों के बीच इन मीटिंग्स का आयोजन कौन करवाता था। पीएम से मिलने का एक प्रोटोकॉल है, मुझे पूरा विश्वास है कि सुशांत जैसा तेज और होनहार कलाकार को इस मीटिंग से दूर नहीं रखा जाता।
वहीं रूपा गांगुली ने अपने ट्वीट के जरिए पीएम मोदी की सराहना भी की क्योंकि उन्होंने सुशांत को अपने शपथ समारोह कार्यक्रम का हिस्सा बनाया। वो कहती हैं- हमारे पीएम हमेशा ही होनहार और तेज दिमाग वाले लोगों से मिलना पसंद करते हैं। ये उस वक्त की फुटेज है जब पीएम का शपथ समारोह चल रहा था और वहां सुशांत भी मौजूद थे।
मालूम हो कि रूपा गांगुली जिस मीटिंग की बात कर रही हैं वो पिछले साल जनवरी में हुई थी। उस खास मुलाकात में करण जौहर,शाहिद कपूर, रणवीर सिंह, विक्की कौशल, आलिया भट्ट् जैसे तमाम सितारे माजूद थे। लेकिन किसी भी फोटो में सुशांत की मौजूदगी दर्ज नहीं की गई। अब इसी बात को रूपा गांगुली मुद्दा बना रही हैं और बॉलीवुड के एक तबके को सवालों के जाल में घेरने की कोशिश कर रही हैं। (आजतक)
सारा अली खान का ड्राइवर भी कोरोना पॉजिटिव पाया गया है। सारा ने इंस्टाग्राम पर एक पोस्ट के जरिए यह जानकारी दी। उन्होंने अपने पोस्ट में लिखा, मैं आपको सूचित करना चाहती हूं कि हमारे ड्राइवर की कोरोना टेस्ट की रिपोर्ट पॉजिटिव आई है। बीएमसी को इसके बारे में तुरंत सतर्क कर दिया गया और उसे एक क्वारंटाइन सेंटर में भेज दिया गया। मेरे परिवार के लोग और घर के सारे स्टाफ की जांच रिपोर्ट निगेटिव आई है और वे आवश्यक सावधानी बरत रहे हैं। मुझे और मेरे परिवार की मदद और गाइडलाइंस देने के लिए बीएमसी का धन्यवाद। सभी सुरक्षित रहें!
महामारी के चलते एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री पूरी तरह से उथल-पुथल हो चुकी है। जहां कुछ फिल्मों की शूटिंग रुकी है वहीं कुछ फिल्में पूरी होने के बावजूद भी रिलीज नहीं हो पाई हैं। तो इस फिल्म की रिलीज भी रुक गई। अजय देवगन की फिल्म मैदान के बाद अब वरुण धवन की फिल्म कुली नं 1 को भी अगले साल रिलीज करना तय किया गया है।
पंजाब की कटरीना कैफ शहनाज गिल के सितारे बुलंदियों पर हैं। शहनाज गिल को बिग बॉस 13 ने जबरदस्त फेम दिया। शहनाज गिल बिग बॉस के वक्त से ही लोगों की फेवरेट बनी हुई हैं। लोगों के बेशुमार प्यार की बदौलत शहनाज गिल ने इंस्टा पर 5 मिलियन फॉलोअर्स अचीव कर लिए हैं।
इसी खुशी को जाहिर करते हुए शहनाज गिल ने इंस्टा स्टोरी पर फैंस के लेटर और तोहफों को शेयर किया है। 5 मिलियन फॉलोअर्स होने पर फैंस ने शहनाज को कई सारे तोहफे, केक भिजवाए। अपने प्रशंसकों का प्यार पाकर शहनाज की खुशी का ठिकाना नहीं है लेकिन उन्होंने फैंस से खास अपील करते हुए कहा कि वे गिफ्ट के पीछे अपने पैसों को यूं बर्बाद ना करें।
शहनाज ने इंस्टा स्टोरी पर फैंस को खास मैसेज दिया है। शहनाज ने ऑडियो मैसेज में कहा- मुझे पता है आप मुझे लोग मुझसे बहुत प्यार करते हो। मेर लिए अच्छे अच्छे गिफ्ट भेजते हो। लेकिन मुझे बहुत दुख भी होता है। मुझे लगता है कि आप पैसे क्यों खर्च कर रहे हो। प्लीज अपने पैसे बर्बाद मत करो। मुझे ये अच्छा नहीं लगता है। वैसे ही मुझे पता है आप लोग मुझे प्यार करते हो। मुझे गिफ्ट मत भेजा करो। शहनाज ने ये भी कहा कि वे मान गई हैं कि वे मोस्ट लवड गर्ल हैं।
शहनाज के वर्कफ्रंट की बात करें तो उनका नया गाना रिलीज होने वाला है। इस गाने को टोनी कक्कड़ ने गाया है। 17 जुलाई को ये सॉन्ग रिलीज किया जाएगा। फैंस के बीच शहनाज के नए गाने को लेकर काफी बज बना हुआ है। गाने का नाम कुर्ता पायजामा है। इसका लुक पोस्टर रिलीज हो चुका है। इससे पहले शहनाज सिद्धार्थ शुक्ला के साथ म्यूजिक वीडियो में नजर आई थीं।
बॉलिवुड की सबसे सुपरहिट और लोकप्रिय फिल्मों की बात की जाएगी तो उसमें बाहुबली सीरीज का नाम जरूर होगा। इस फिल्म के हर किरदार को लोगों का भरपूर प्यार मिला था। इन किरदारों में एक कटप्पा भी था जो साउथ के ऐक्टर सत्यराज ने निभाया था। हालांकि अब पता चला है कि इस किरदार के लिए संजय दत्त को लिया जाना था।
बताया जाता है कि जब कटप्पा के रोल के लिए संजय दत्त से संपर्क किया गया था तो उस समय वह जेल में अपनी सजा काट रहे थे। इस कारण उन्होंने यह रोल छोड़ दिया था लेकिन सोचिए, अगर संजय को कटप्पा का किरदार निभाना पड़ता तो कैसे लगते।
भले ही संजय दत्त ने कटप्पा का रोल छोड़ दिया हो लेकिन सत्यराज ने भी इस किरदार को अमर बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। फैन्स जब भी बाहुबली को याद करेंगे उन्हें कटप्पा का किरदार हमेशा दिमाग में ताजा बना रहेगा।
वैसे संजय दत्त को निगेटिव किरदारों में काफी पसंद किया गया है। संजय ने अग्निपथ में कांचा चीना का किरदार निभाया था जिसे काफी पसंद किया गया था। हाल में पानीपत में अहमद शाह अब्दाली के किरदार में भी वह काफी जंचे थे।
बाहुबली में शिवगामी का किरदार राम्या कृष्णन ने निभाया था। हालांकि पहले यह किरदार श्रीदेवी को ऑफर हुआ था। वैसे राम्या ने भी शिवगामी का किरदार बेहतरीन तरीके से निभाया था। (नवभारत टाईम्स)
मुंबई, 14 जुलाई । बॉलीवुड के माचो मैन संजय दत्त और सुनील शेट्टी डब्बे वालों की मदद के लिये आगे आये हैं।
कोरोना वायरस संकट काल में बॉलीवुड सेलेब्स ने जरुरतमंदों और गरीबों की हर संभव मदद की। संजय दत्त और सुनील शेट्टी ने भी लोगों की मदद के लिए हाथ आगे बढ़ाया है। उन्होंने मुंबई के डब्बा वालों को राशन किट उपलब्ध करवाने में अपनी ओर से सहायता दी है। मंत्री असलम शेख ने ट्वीट कर लिखा, मुंबई की जान डब्बा वाला को हमारी जरुरत है अभी। हमारे डब्बावाले भाईयों और उनके परिवार को ड्राई राशन किट पहुंचाने में संजय दत्त, सुनील शेट्टी, रेडियो सिटी इंडिया और मुझे ज्वॉइन करें।
असलम शेख के इस ट्वीट पर सुनील शेट्टी ने रिएक्ट किया है। उन्होंने इस पहल की सराहना करते हुए लिखा, आपको और भी ताकत..बहुत अच्छी पहल असलम भाई। सुनील शेट्टी ने कहा,यह पहल असलम भाई और संजू द्वारा शुरू की गई है। मुझे उनके साथ हाथ मिलाने में कोई आपत्ति नहीं थी। प्रेमा चा डब्बा के साथ जुडऩे से यह और भी खूबसूरत हो जाता है। हमारे पास अभी तीन महीने का प्लान है। हमारा टारगेट 5 हजार परिवारों तक मदद पहुंचाना है।(वार्ता)
-अनुराग भारद्वाज
सन 1953 में आई ‘दो बीघा ज़मीन’ ने दुनिया भर के फ़िल्मकारों का ध्यान अपनी ओर खींचा था. इस फिल्म के जरिये पहली बार हिंदुस्तानी सिनेमा में ‘निओ-रिअलिस्म’ की तस्वीर पेश हुई थी. इतालवी सिनेमा से प्रेरित ‘नियो-रिअलिस्म का नज़दीकी हिंदी रूपांतरण ‘नव-यथार्थवाद’ हो सकता है. इस फिल्म के निर्देशक थे बिमल रॉय जिन्होंने हिंदुस्तानी सिनेमा को एक नया रास्ता दिखाया.
दूसरे विश्व युद्ध में फ़ासीवाद ने इटली के समाज की परतें उधेड़ कर रख दी थीं. मुसोलिनी के डर से जहां अन्य फ़िल्मकार सब हरा-हरा ही दिखा रहे थे तो रॉबर्ट रोसेलिनी, वित्तोरियो डी सिका और विस्कोन्ती जैसे कुछ फिल्मकार भी थे जो समाज में उपजे वर्ग संघर्ष को दिखा रहे थे. ‘नव-यथार्थवाद’, शोषित और शाषक के बीच का द्वंद दिखाता है. यही द्वंद मैक्सिम गोर्की के उपन्यास ‘मदर’ या अप्टन सिंक्लैर के ‘जंगल’ में भी दिखता है.
भारतीय परिपेक्ष्य में इस संघर्ष को सबसे पहले दिखाती बिमल रॉय की ‘उदेर पाथेय’(1944) ने बंगाली सिनेमा में तूफ़ान ला दिया था. स्वभाव से शांत रहने वाले बिमल रॉय को फ़िल्म पत्रकार बुर्जोर खुर्शीदजी करंजिया ने ‘साइलेंट थंडर’ की उपमा दी थी.
उनकी पुत्री रिंकी भट्टाचार्य की क़िताब ‘बिमल रॉय- अ मैन ऑफ़ साइलेंस’ में वे सारे पहलू हैं जो बिमल दा की ज़िंदगी को छूकर निकले. जैसे बिमल दा ने निर्माता निर्देशक बीएन सरकार की निगहबानी में न्यू थिएटर्स (कोलकाता) से बतौर कैमरामैन अपना फ़िल्मी सफ़र शुरू किया था. पीसी बरुआ निर्देशित और केएल सहगल अभिनीत ‘देवदास’ फ़िल्म के वे फोटोग्राफर रहे. 40 के दशक में न्यू थिएटर्स और बंगाल सिनेमा का बिखराव हो रहा था. न्यू थिएटर्स के लिए बनाई गईं उनकी फिल्में जैसे ‘अंजनगढ़’, ‘मंत्रमुग्ध’ और ‘पहला आदमी’ फ्लॉप हो गयीं. ‘उदेर पाथेय’ के हिंदी रीमेक ‘हमराही’ (1945) ने औसत व्यवसाय किया. हां, बिमल रॉय की बतौर डायरेक्टर बहुत तारीफ हुई और इसमें पहली बार रबींन्द्रनाथ टैगोर के ‘जन गण मन’ गीत को लिया गया. अपनी किताब में रिंकी भट्टाचार्य आगे लिखती हैं, ‘मुंबई में ‘पहला आदमी’ के प्रीमियर पर मिली प्रतिक्रिया ने उन्हें और निराश कर दिया था, वो भारी मन से कोलकाता लौट गए.’
अब आगे जो क़िताब में नहीं है, वह यूं है कि क़िस्मत को कुछ और ही मंज़ूर था. उन दिनों हिंदी सिनेमा पर बंगाली प्रभाव बढ़ रहा था. बिमल दा के अनन्य मित्र हितेन चौधरी ने अभिनेता अशोक कुमार से मिलकर उन्हें बॉम्बे टाकीज़ की एक फ़िल्म 25000 रु बतौर मेहनताना निर्देशन के लिए दिलवा दी. बॉम्बे टाकीज़ की स्थापना देविका रानी के पति हिमांशु रॉय और, संगीतकार मदन मोहन के पिता रायबहादुर चुन्नीलाल ने की थी. बिमल दा ने बॉम्बे टाकीज़ के लिए ‘मां’ (1952) फ़िल्म का निर्देशन किया जो अमेरिकी फ़िल्म ‘ओवर द हिल्स’ से प्रेरित थी. फिल्म ज़बरदस्त हिट हुई और फिर बिमल दा हमेशा के लिए मुंबई के होकर रह गए. बाद में अशोक कुमार के ही कहने पर उनके प्रोडक्शन हाउस ‘फ़िल्मिस्तान’ के तले उन्होंने ‘परिणीता’(1953) का निर्देशन किया.
इन फिल्मों की सफलता से हौसला बढ़ा तो उन्होंने ‘बिमल रॉय प्रोडक्शन्स’ की स्थापना कर ‘दो बीघा ज़मीन’ बनायी. इस फ़िल्म के बनने के पीछे अगर कोई शख्स था, तो वे थे, ऋषिकेश मुखर्जी. हुआ यह कि 1952 में मुंबई में अंतरराष्ट्रीय फ़िल्म फ़ेस्टिवल हुआ जिसमें ‘बायसाइकिल थीव्स’ और ‘रोशोमन’ जैसी फिल्मों का मंचन हुआ था. इन फ़िल्मों का ऐसा प्रभाव हुआ कि लौटते वक़्त बिमल दा और अन्य सभी ख़ामोश थे. तभी ऋषिकेश मुखर्जी उनसे बोले कि वे ऐसी फिल्में क्यूं नहीं बनाते. बिमल दा ने कहानी के न होने का अभाव बताया, तो ऋषि दा ने तुरंत कहा कि उनके पास एक कहानी है - ‘रिक्शावाला’. हालांकि यह कहानी महज़ कुछ ही पन्नों की थी. ऋषि दा ने इस पर 24 पन्नों की स्क्रिप्ट तैयार करके बिमल दा को फ़िल्म बनाने के लिए मजबूर कर दिया.
दुसरे विश्व युद्ध की पृष्ठभूमि में वित्तोरियो डी सिका की ‘बायसाइकिल थीव्स’ एक पिता और पुत्र की कहानी है जो अपनी चोरी की गयी साइकिल को खोजने निकले हैं. अगर साइकिल न मिली तो पिता नौकरी नहीं कर पायेगा जिससे परिवार पर संकट आ जाएगा. ‘दो बीघा ज़मीन’ में पिता (बलराज साहनी) अपने बेटे के साथ कोलकाता आकर गांव में दो बीघा ज़मीन को बचाने के लिए साइकिल रिक्शा चलाता है. दोनों ही फिल्मों में ‘पिता’ हार जाते हैं!
बिमल दा की सिनेमाई सोच को समझने के लिए इस फिल्म से जुड़ा एक क़िस्सा जानना ज़रूरी है. बॉम्बे टाकीज़ के मालिक इसके कलाकारों के चयन को लेकर संतुष्ट नहीं थे. उनके मुताबिक़ पंजाब से ताल्लुक रखने वाले बलराज साहनी कुछ ज़्यादा ही गोरे थे और निरूपा रॉय फिल्मों में देवियों का किरदार निभाती थीं. दोनों का ग्रामीण परिवेश में फिट बैठना कुछ अटपटा था. बिमल दा अड़ गए. शायद इसलिए कि बलराज साहनी समाजवादी विचारधारा से प्रभावित थे. फ़िल्म भी सर्वहारा की ज़िंदगी पर आधारित थी. लिहाज़ा बिमल दा के मुताबिक़ बलराज किरदार के साथ न्याय करने की कुव्वत रखते थे.
समाजवाद से प्रेरित और सिनेमा से सर्वहारा की आवाज़ उठाने वाले बिमल दा पर कमर्शियल यानी व्यावसायिक फ़िल्में बनाने का ज़बरदस्त दवाब था. उनका कमाल था कि बॉक्स ऑफिस की ज़रूरत को ध्यान में रखते हुए भी वे अपने मनपसंद विषयों पर फिल्म बना लेते थे. ‘नौकरी(1954) और ‘मधुमती’(1958) इसी का नतीजा थीं. ‘मधुमती’ बॉम्बे टाकीज़ की फ़िल्म ‘महल’ (1949) से प्रेरित थी. इसके एडिटर बिमल दा ही थे. ‘पुनर्जन्म’ की अवधारणा पर बनी ‘मधुमती’ हिंदुस्तान के सिनेमा में मील का पत्थर है जिसने हिंदी सिनेमा ही नहीं, हॉलीवुड को भी ‘रीइंकारनेशन ऑफ़ पीटर प्राउड’ बनाने के लिए प्रेरित किया था. आगा हश्र कश्मीरी की कहानी ‘यहूदी की लड़की’ से प्रेरित उन्होंने ‘यहूदी’ बनाई. जात-पांत और छूत-अछूत के मुद्दे पर ‘सुजाता’ (1959) हो गया लोकतंत्र पर व्यंग करती ‘परख’(1960), या फिर स्त्री केंद्रित ‘बंदिनी’ (1963), ये सारी फिल्में उनकी रेंज दिखाती हैं. इत्तेफ़ाक है कि बॉम्बे टाकीज़ ने इसी विषय पर ‘अछूत कन्या’ बनाई थी, जिसमें देविका रानी ने ये किरदार निभाया था. दोनों ही कमाल की फिल्में हैं. पर टीस इस बात की है कि दोनों ही में तथाकथित ‘नीची जाति’ की लड़की को बलिदान करते हुए दिखाया गया है. गोकि सहानभूति के ज़रिये ही बराबरी पर आया जा सकता है.
बिमल दा शरतचंद के साहित्य से इतने प्रभावित थे कि उनकी कहानियों पर उन्होंने तीन फ़िल्में बनायीं. ‘देवदास’, ‘परिणीता’ और ‘बिराज बहू’. जानकारों का मानना है कि उनकी बनाई ‘देवदास’ शरत बाबू की कहानी के सबसे नज़दीक है. कुछ हद तक दिलीप कुमार की ‘ट्रेजेडी किंग’ की छवि के लिए ‘देवदास’ और ‘यहूदी’ भी ज़िम्मेदार हैं.
बिमल दा सिर्फ फ़िल्मकार ही नहीं थे. अपने आप में एक संस्था थे. उन्होंने सलिल चौधरी, ऋषिकेश मुखर्जी, ऋत्विक घटक, कमल बोस, नुबेंदु घोष, रघुनाथ झालानी और गुलज़ार जैसे नायाब लोग हिंदी सिनेमा को दिए. गुलज़ार और बिमल दा के ‘बंदिनी’ के दौरान मिलने की दास्तां आप इस वीडियो के ज़रिये जान सकते हैं. गुलज़ार के लिए वे डायरेक्टर या गुरू से बढ़कर पिता समान थे. उन्होंने शायरी की ज़ुबान में बिमल दा पर एक पोट्रेट भी लिखा है और अपनी क़िताब ‘रावी पार’ में बिमल दा के साथ हुए अंतिम दिनों की बातचीत का मार्मिक ब्यौरा भी दिया है.
आख़िर ऐसा क्या था एक कैमरामैन के महान डायरेक्टर बनने में जो आज भी हमें उनकी फ़िल्में देखते वक़्त विस्मृत कर देता है? शायद इसका जवाब भी उनकी बेटी की दूसरी क़िताब ‘द मैन हु स्पोक इन पिक्चर्स’ में श्याम बेनेगल के इंटरव्यू में मिलता है. बेनेगल बताते हैं कि कैमरे को लेकर बिमल दा की समझ कमाल की थी. फोटोग्राफी में रोशनी के प्रभाव को जितना बख़ूबी उन्होंने दिखाया है उसका मुकाबला बहुत कम फिल्मकार कर सकते हैं. याद कीजिये ‘बंदिनी’ का वह दृश्य जिसमें कामिनी (नूतन) के मन में द्वंद है कि क्या उसे किसी औरत का क़त्ल कर देना चाहिए. इस सीन में नायक के सामने लोहार काम कर रहे हैं और वेल्डिंग मशीन से निकलता ताप उसके चेहरे पर रोशनी बनकर गिर रहा है. दूसरे ही सीन में डायरेक्टर को यह दिखाना था कि कामिनी ने दूध के ग्लास में ज़हर मिलाया है. इसको दर्शाने के लिए उन्होंने ज़हर की शीशी और ग्लास की तस्वीरों को एक साथ मिला दिया है!
फ़िल्म का सेट बनाने के बजाय बिमल रॉय आउटडोर लोकेशन को ज़्यादा तरजीह देते थे. मसलन, ‘दो बीघा ज़मीन’ में हावड़ा ब्रिज पर शूटिंग करना उन दिनों वाक़ई कमाल की बात थी. उस वक़्त का सिनेमा जहां अतिरेक से लबरेज़ था तो वहीं बिमल दा ने किरदारों को हकीक़त की ज़मीन पर ही रखा. किसी को ‘लार्जर देन लाइफ’ नहीं बनाया. उनका कहानियों का चयन एक तरफ साहित्यिक था, जैसे रबींद्रनाथ टैगोर की ‘काबुलीवाला’ (बतौर प्रोडूसर) और शरत बाबू का ‘देवदास’, तो दूसरी तरफ ‘सुजाता’ या ‘दो बीघा ज़मीन’ ऐसी समकालीन कहानियां थीं जिनमें सर्वहारा इंसान समाज में अपना वजूद ढूंढ रहा था.
निर्विवाद रूप से सत्यजीत रे भारत के सबसे महान फ़िल्मकार हुए हैं और बिमल दा को उनसे एक पायदान नीचे खड़ा होना पड़ता है. शायद इसलिए कि सत्यजीत रे के सामने कमर्शियल फ़िल्म बनाने की मज़बूरी नहीं थी. उन्होंने बिमल दा की तरह ये समझौते नहीं किए. और दूसरा, बिमल दा जल्द ही दुनिया से विदा हो गए. आपको ताज्जुब होगा यह जानकर कि उन्हें हिंदी नहीं आती थी.(satyagrah)
-भारत डोगरा
हिंदी सिनेमा को प्रायः फार्मूला फिल्मों से जोड़कर देखा जाता है, पर समय-समय पर अनेक गंभीर फिल्मों ने बहुत सार्थक मुद्दे भी उठाए हैं। आज कोविड-19 के दौर में संक्रमण रोग चर्चा में हैं तो संक्रमण रोगों पर बनी अनेक सार्थक हिंदी फिल्में याद आती हैं।
चेतन आनन्द की विख्यात फिल्म नीचा नगर ने स्लम बस्ती में फैले संक्रमण रोग को अन्याय और विषमता से जोड़कर देखा। एक बहुत रसूख वाले बिल्डर की नजर एक ऐसी जमीन पर बड़ी इमारत बनाने की थी जिसकी कीमत बहुत बढ़ रही थी। पर इसके लिए जरूरी था कि एक गंदे नाले का बहाव स्लम बस्ती की ओर कर दिया जाए। ऐसा करने पर स्लम बस्ती में संक्रमण रोग फैल जाता है।
इस फिल्म को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कृत किया गया। कामिनी कौशल का फिल्मी सफर इस फिल्म से ही आरंभ हुआ, और विख्यात संगीतकार रवि शंकर के लिए भी यह फिल्मी जगत में प्रवेशद्वार था। इस रोग की त्रासद स्थितियों को, बहुत कठिन हालात में निर्धन लोगों की एकजुटता और साहस को फिल्म में प्रभावशाली ढंग से दिखाया गया है।
वी. शान्ताराम ने एक कालजयी फिल्म बनाई थी ‘डाक्टर कोटनिस की अमर कहानी’ जो एक महान डाक्टर के प्रेरणादायक जीवन पर आधारित थी। डाक्टर कोटनिस बहुत प्रतिकूल स्थितियों में चीन के लोगों का साथ देने के लिए वहां द्वितीय विश्व यु़द्ध के दौरान पहुंचे और वहां अन्य उपलब्ध्यिों के साथ उन्होंने अपने जीवन को खतरे में डालकर भी चीनी सैनिकों और गांववासियों को संक्रामक रोग से बचाया। यही बेहद प्रेरणादायक वास्तविक जीवन की कहानी इस फिल्म में दिखाई गई है। डाक्टर कोटनिस की यादगार भूमिका वी. शान्ताराम ने स्वयं की है।
‘नीचा नगर’ और ‘डाक्टर कोटनिस की अमर कहानी’ दो ऐसी फिल्में हैं जो सार्थक हिंदी सिनेमा के इतिहास में अपना स्थान सदा बनाए रखेंगी। लगभग छः-सात दशक बीत जाने के बाद भी इन फिल्मों को देखा जाता है और इन्हें भरपूर प्रशंसा भी मिलती है।
ओ.पी. रलहन की लोकप्रिय फिल्म ‘फूल और पत्थर’ (धर्मेंद्र, माला सिन्हा) वैसे तो एक अपराधी के सुधार की कहानी है, पर इस कहानी में निर्णयक मोड़ एक संक्रमण रोग के समय ही आता है। एक गैंगस्टर की भूमिका में धर्मेंद्र को एक गांव के धनी परिवार के हीरे-जवाहरात चुराने के लिए भेजा जाता है, पर इस मौके पर गांव में प्लेग फैल जाता है और अन्य गांववासियों सहित धनी-परिवार हीरे-जवाहरात लेकर गांव से भाग जाता है। धर्मेंद्र को हीरे तो नहीं मिलते, पर इस धनी परिवार की एक विधवा बहू मिलती है (मीना कुमारी), जिसे धनी परिवार ने यहां प्लेग से मरने के लिए छोड़ दिया है। इस फिल्म में सुधार और त्याग का महत्त्वपूर्ण संदेश है। अचानक प्लेग की चपेट में आए गांव से भागते लोगों और उजड़े हुए वीरान गांव का चित्रण बहुत असरदार ढंग से हुआ है।
संक्रामक रोगों से जुड़े स्टिग्मा के कारण प्रायः हिंदी फिल्म के नायक को इन रोगों से दूर रखा गया है, पर राज कपूर ने अपनी लोकप्रिय फिल्म ‘आह’ में तपेदिक के मरीज की भूमिका बहुत असरदार ढंग से निभाई थी। नायक कोे इलाज के लिए अनेक महीने सैनेटोरियम में भी गुजारने पड़ते हैं और हंसी खुशी की दुनिया से उसे अचानक पूरे अकेलेपन और वीराने में धकेल दिया जाता है। अपने बहुत लोकप्रिय संगीत के कारण भी यह फिल्म चर्चित रही।
अनेक फिल्मों में नायक तो नहीं पर उसके परिवार के किसी व्यक्ति को संक्रामक रोग (प्रायः तपेदिक या टीबी) से ग्रस्त पाया गया और नायक को इलाज के लिए बड़े प्रयास करते हुए दिखाया गया। गुरुदत्त निर्देशित फिल्म बाजी में देव आनन्द को इसी तरह की भूमिका में अपनी तपेदिक से ग्रस्त बहन के लिए बहुत प्रयास करते हुए दिखाया गया। अनुराधा और आनन्द में क्रमशः बलराज साहनी और अमिताभ बच्चन का सेवा भावना से प्रेरित डाक्टरों के रूप में दिखाया गया तो निर्धन, संक्रामक रोगों से त्रस्त मरीजों के लिए बहुत चिंतित हैं।
आज भी जब डाक्टरों को सेवाभाव से कार्य करने की प्रेरणा देनी होती है तो इन तीन फिल्मों को देखने के लिए प्राय कहा जाता है - ‘अनुराधा’ ‘आनन्द’ और ‘डाक्टर कोटनिस की अमर कहानी’।
‘एक डाक्टर की मौत’ फिल्म में ऐसे डाक्टर की कहानी है जो कुष्ठ रोग (लेप्रोसी) से बचाव केे लिए अथक प्रयास करता है, पर इसका श्रेय दूसरों को दिया जाता है।
‘माई ब्रदर निखिल’ में एक एड्स प्रभावित रोगी की, और उसके बनते-बिगड़ते रिश्तों की मार्मिक कहानी है।
इस तरह के अनेक उदाहरण दिए जा सकते हैं कि संक्रामक रोगों जैसे फार्मूला फिल्मों से दूर के विषय की उपेक्षा हिन्दी सिनेमा ने नहीं की है और इस विषय पर अनेक सार्थक फिल्में बनी हैं। उम्मीद है कि कोविड-19 जैसे बहुचर्चित रोग के विभिन्न आयामों पर भी भविष्य में कुछ यादगार फिल्में हिंदी और अन्य भाषाओं में बन सकेंगी।
‘नीचा नगर’ और ‘डाक्टर कोटनिस की कहानी’ जैसी फिल्मों को कलात्मक फिल्मों की श्रेणी में रखा जाता है जबकि ‘आह’ (राज कपूर, नरगिस) और ‘फूल और पत्थर’ (धर्मेंद्र, माला सिन्हा) जैसी फिल्मों को लोकप्रिय, बड़े सितारों वाली, बाक्स-आफिस पर धन बटोरने वाली फिल्मों की श्रेणी में रखा जाता है। इन दोनों तरह की फिल्मों ने अपने-अपने ढंग से संक्रामक रोगों के महत्त्वपूर्ण पहलुओं को उठाया है और उनके बारे में समझ और संवेदनशीलता बढ़ाने में योगदान दिया है।
ऐसी फिल्मों और फिल्म निर्माताओं का योगदान सराहनीय है, पर साथ में यह नहीं भूलना चाहिए कि हिन्दी फिल्म जगत की कुल फिल्मों में ऐसी सार्थक फिल्मों का प्रतिशत बहुत कम है। ऐसी सार्थक फिल्मों का प्रतिशत बढ़ सके और वे अधिक दर्शकों तक पंहुच सकें, इसके लिए अभी बहुत कुछ करने की जरूरत है और जहां इन प्रयासों में सरकारों का भी महत्त्वपूर्ण योगदान हो सकता है, वहां सार्थक फिल्मों की महत्त्वपूर्ण भूमिका समझने वाले सभी लोगों को आपसी सहयोग से ऐसे प्रयास बढ़ाने चाहिए। हाल के समय में सार्थक, उद्देश्यपूर्ण फिल्मों की संख्या में कमी आई है। ऐसी अधिक फिल्में बन सकें इसके लिए बहुपक्षीय प्रयास जरूरी हैं।(navjivan)
बॉलीवुड एक्टर सोनू सूद प्रवासी मजदूरों को बस, ट्रेन और फ्लाइट के जरिए उनके घर पहुंचाने का काम अभी तक कर रहे हैं। अभिनेता के इस कदम की सभी लोग खूब सराहना कर रहे हैं। सोनू सूद से अब भी लोग ट्विटर के जरिए मदद मांग रहे हैं। सोनू सूद प्रवासी मजदूरों और कामगारों के लिए अब पूरी तरह से मसीहा बन चुके हैं। अब इससे भी एक कदम आगे बढ़ सोनू सूद घर जाते वक्त घायल हुए और जिनकी मौतें हुईं, उनके परिवार की मदद करेंगे।
प्राप्त जानकारी के मुताबिक, सोनू सूद और उनकी टीम ऐसे 400 प्रवासी मजदूरों और कामगारों के परिवार मदद करेगी जिनकी अपने घर लौटते वक्त मौत हो गई या फिर वह घायल हो गए। सोनू और उनकी दोस्त नीति गोयल अब इन परिवारों की आर्थिक मदद, बच्चों की पढ़ाई का खर्चा उठाएगी। इन मजदूरों और कामकारों के परिवार के पास आय का कोई जरिया नहीं है।
सोनू सूद और उनकी टीम उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड के अधिकारियों के संपर्क में है और मृतक और घायल मजदूरों और कामगारों की जानकारी मांगी है। इस जानकारी में उनके परिवारों का पता और बैंक की जानकारी भी शामिल होंगी, जिससे की डायरेक्ट उनके अकाउंट में आर्थिक सहायता राशि को ट्रांसफर किया जा सकेगा। इसके अलावा सोनू सूद और उनकी टीम इन मजदूरों और कामगारों के बच्चों की शिक्षा और उनके घर बनवाने के लिए आर्थिक मदद करेंगे।
हाल ही में सोनू सूद ने कहा, आप उस वक्त सफलता हासिल करते हैं जब आप कि किसी की मदद करते हैं, नहीं तो आप असफल हैं। इकॉनोमिक टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक सोनू सूद और उनकी टीम 8 जून तक 21000 प्रवासी मजदूरों को उनके घर पहुंचा चुके हैं।
देशभर में कोरोना वायरस का प्रकोप 4 से भी ज्यादा महीने से जारी है। देशभर में कोरोना वायरस के मामले आए दिन बढ़ते ही जा रहे हैं। इसी बीच बॉलीवुड पर भी कोरोना का प्रकोप शुरू हो गया है। लोगों को इस खतरनाक बीमारी के बारे में आगाह करने वाले अमिताभ बच्चन परिवार समेत कोरोना की चपेट में आ गए हैं। उनके अलावा बॉलीवुड इंडस्ट्री से और केसेज भी आने शुरू हो गए हैं।
अमिताभ बच्चन के कोरोना पॉजिटिव पाए जाने के बाद अभिषेक बच्चन ने अपना कोरोना टेस्ट करवाया और वे भी कोरोना पॉजिटिव निकले। इसके बाद बच्चन परिवार के बाकी सदस्यों का भी कोरोना टेस्ट किया गया।
इसमें एक्ट्रेस ऐश्वर्या राय बच्चन और आराध्या बच्चन भी कोरोना पॉजिटिव पाई गईं। बच्चन परिवार में बस जया बच्चन ही कोरोना निगेटिव पाई गईं।
बॉलीवुड एक्टर अनुपम खेर का परिवार भी कोरोना वायरस की चपेट में आ गया है। एक्टर ने खुद इस बात की जानकारी ट्विटर पर एक वीडियो शेयर करते हुए दी।
उन्होंने बताया कि उनकी मां दुलारी खेर और भाई राजू खेर भी कोरोना वायरस संक्रमित पाए गए हैं। इसके अलावा अनुपम खेर के घर से उनकी भाभी और भांजी की भी रिपोर्ट कोरोना पॉजिटिव निकली है।
टीवी सीरियल कसौटी जिंदगी की फेम एक्टर पार्थ समथान ने भी अपना कोरोना का टेस्ट कराया और उनकी रिपोर्ट पॉजिटिव आई। इसके बाद से कसौटी जिंदगी की सीरियल की शूटिंग को रोक दिया गया है।
उंगली फेम एक्ट्रेस रेचल व्हाइट कोरोना वायरस की चपेट में आ गई हैं। ट्विटर के जरिए उन्होंने इस बात की जानकारी साझा की है। वे फिलहाल होम क्वारनटीन में हैं।
बालाजी टेलीफिल्म्स की एग्जिक्यूटिव वाइज प्रसिडेंट तनुश्री दासगुप्ता भी कोरोना वायरस पॉजिटिव पाई गई हैं। उन्होंने अपनी हेल्थ को लेकर अपडेट दिया है। वे अस्पताल में एडमिट हैं और जल्द छूटेंगी। (आजतक)
देश और दुनिया में कोरोना का कहर दिन, प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। केंद्र सरकार, राज्य सरकार और कई सरकारी और गैर सरकारी संस्थाएं कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के काम में लगी हुई हैं। इस महामारी से निपटने के लिए बहुत से लोगों ने अपनी तरफ से सरकार की मदद करने की कोशिश की है।
फिल्म इंडस्ट्री के फेमस डायरेक्टर रोहित शेट्टी भी कोरोना काल में कोरोना वारियर्स की मदद करने की लगातार कोशिश की है। हाल ही में उन्होंने मुंबई में खाकीधारी कोरोना वारियर्स की मदद के लिए अपनी तरफ 11 होटल उपलब्ध कराए हैं। इस बात की जानकारी रोहित शेट्टी ने नहीं बल्कि मुंबई के पुलिस कमिशनर परम बीर सिंह ने ट्वीट कर दी है।
उन्होंने ट्वीट किया है कि, 'हम रोहित शेट्टी को धन्यवाद देते हैं, जो कोरोना महामारी की शुरुआत से ही खाकी वर्दीधारी महिला और पुरुष पुलिसकर्मियों के लिए निरंतर समर्थन करते रहे हैं। उन्होंने मुंबई में हमारे ऑन ड्यूटी कर्मियों के लिए असीमित उपयोग के लिए 11 होटलों की सुविधा दी है।' इससे पहले भी रोहित शेट्टी मुंबई पुलिस के ऑन ड्यूटी कोरोना वॉरियर्स के लिए 8 होटल उपलब्ध करा चुके हैं
कोरोना पॉजिटिव अमिताभ बच्चन और अभिषेक बच्चन की सेहत अभी ठीक है। नानावती अस्पताल ने हेल्थ बुलेटिन जारी करते हुए कहा है कि अमिताभ और अभिषेक बच्चन की सेहत अभी स्थिर है और दोनों को अस्पताल की आइसोलेशन यूनिट में रखा गया है। कुछ देर पहले जानकारी सामने आई कि जया बच्चन और ऐश्वर्या राय बच्चन की रिपोर्ट नेगेटिव आई है। लेकिन अब इस सबके चलते रिकॉर्डिंग के लिए मशहूर साउंड एंड विजन डबिंग स्टूडियो को भी कुछ समय के लिए बंद कर दिया गया है।
फिल्म एनालिस्ट कोमल नाहटा के अपने ट्विट में जानकारी दी है कि बीते दिनों अभिनेष बच्चन ने अपनी वेब सीरिज ब्रीद इनटू द शैडो के लिए यहां रिकॉर्डिंग की थी। बीती रात उनकी रिपोर्ट पॉजिटिव आने के बाद यह बड़ा फैसला लिया गया है। (जी न्यूज)।
बॉलीवुड एक्टर सुशांत सिंह राजपूत के निधन के बाद नेपोटिज्म पर जमकर बहस हो रही है। लेकिन अध्ययन सुमन का मानना है कि इंडस्ट्री में नेपोटिज्म नहीं बल्कि गुटबंदी बड़ी समस्या है। उन्होंने दावा किया कि उनसे लगभग 14 फिल्में छीन ली गईं। इसके साथ ही अध्ययन सुमन ने कहा कि यह चीजें शुरू से चली आ रही हैं लेकिन किसी ने ध्यान नहीं दिया।
बॉलीवुड बबल के साथ इंटरव्यू में अध्ययन सुमन ने कहा, इंडस्ट्री में सालों से पावर डायनैमिक्स और गुटबंदी है। यह मेरे साथ भी हुआ है। मुझे 14 फिल्मों से निकाला गया। मेरी फिल्मों के बॉक्स ऑफिस कलेक्शन को गलत तरीके से पेश किया गया। लोगों ने इस पर पहले ध्यान नहीं दिया। यह दुर्भाग्य की बात है कि इन सब चीजों के बारे में लोगों को अहसास कराने के लिए सुशांत सिंह राजपूत को सुसाइड जैसा कदम उठाना पड़ा।
अध्ययन ने कहा कि बॉलीवुड में कैंप्स टैलेंटेड एक्टर्स को आगे बढऩे नहीं देते हैं। उन्होंने कहा, लोग आंख बंद कर नेपोटिज्म के खिलाफ लड़ रहे हैं और बात कर रहे हैं। मैं कहना चाहूंगा कि नेपोटिज्म पर लड़ाई मत करिए बल्कि इंडस्ट्री में मौजूद गुटबंदी, कैम्स और उन प्रोडक्शन हाउस के खिलाफ लडि़ए, जो प्रतिभासाली स्टार्स को अपनी जगह नहीं बनाने देते हैं।
इससे पहले एक इंटरव्यू के दौरान अध्ययन सुमन ने कहा था कि स्टार किड होते हुए काम न मिलना काफी डिप्रेसिंग होता है। कहीं न कहीं केवल एक स्टार या एक्टर को ही ब्लेम नहीं करना चाहिए। ऑडियंस भी इसमें शामिल होती है। सच यह है कि ऑडियंस भी नेपोटिज्म फैलाने वाले लोगों का सपोर्ट करती है। तभी तो ये लोग बड़े बनते हैं और माफिया गैंग चलाने लगते हैं।
अध्ययन ने कहा था, मैं खुद इस गैंग का कहीं न कहीं हिस्सा रहा हूं। हालांकि, मैं उस व्यक्ति का नाम नहीं लेना चाहता। हां, यह जरूर बताना चाहता हूं कि वह मेरे से मिला, अपना पर्सनल नंबर भी दिया। लेकिन मेरे फोन का उसने आज तक जवाब नहीं दिया। तो समझिए कि ऐसा नहीं होता कि आप आउटसाइडर हैं, इसलिए आपका फोन नहीं उठाया जाता। मेरे पास नौ साल तक काम नहीं था और इन सालों में किसी ने मेरा फोन नहीं उठाया। 2011 से 2015 तक मैं डिप्रेशन से जूझ रहा था। (लाइव हिन्दुस्तान)
अपने समय की बेहद खूबसूरत अभिनेत्री और पूर्व मिस इंडिया संगीता बिजलानी ने हाल ही में अपना 60वां जन्मदिन मनाया। उनका जन्म 9 जुलाई 1960 को मुंबई में हुआ था। उन्हें देखकर, यह कहना मुश्किल होगा कि वह 60 साल की हैं, क्योंकि आज भी संगीता ने खुद को बहुत फिट और सुंदर रखा है। शुरुआत से ही वह अपनी प्रोफेशनल लाइफ से ज्यादा अपनी पर्सनल लाइफ को लेकर चर्चा में रही हैं।
सुपरस्टार सलमान खान के साथ उनका नाम सुर्खियों में था। यहां तक कि कुछ सूत्रों से पता चला है कि दोनों शादी भी करने वाले थे और कहा जाता है कि उनकी शादी के कार्ड भी छप चुके थे लेकिन आखिरी मौके पर संगीता ने शादी करने से इनकार कर दिया।
संगीता को बचपन से ही ग्लैमर वल्र्ड से प्यार था। उन्होंने वर्ष 1980 में मिस इंडिया का खिताब जीता। इन सब के बाद वह मॉडलिंग के साथ साथ फिल्मों में एक बड़ा नाम बन गई थीं। इस दौरान संगीता और अभिनेता सलमान खान एक-दूसरे को दिल दे बैठे थे। एक रिपोर्ट के मुताबिक, दोनों 27 मई 1994 को शादी करने वाले थे। संगीता के मुताबिक, सलमान ने खुद ही अपनी शादी की तारीख तय की थी।
संगीता और सलमान ने साल 1986 में एक दूसरे को डेट करना शुरू किया था, उस समय संगीता फिल्मों में नहीं आई थीं। खबरों की मानें तो दोनों करीब 10 साल से रिलेशनशिप में थे। यह भी माना जाता है कि उनका प्रेम भरा रिश्ता शादी तक पहुंच गया था। इतना ही नहीं, ऐसी भी खबरें थीं कि दोनों की शादी का कार्ड भी छप चुका है। सलमान ने खुद फिल्म निर्माता करण जौहर के लोकप्रिय चैट शो कॉफ़ी विद करण में यह बात कबूल की कि संगीता ने शादी का कार्ड छपवाया था लेकिन उन्होंने खुद इस शादी से इनकार कर दिया।
मुम्बई, 11 जुलाई । बॉलीवुड में जुबली कुमार के नाम से मशहूर राजेन्द्र कुमार ने कई सुपरहिट फिल्मों में अपने दमदार अभिनय से दर्शकों को मंत्रमुग्ध किया लेकिन उन्हें अपने करियर के शुरुआती दौर में कड़ा संघर्ष करना पड़ा था।
20 जुलाई 1929 को पंजाब के सिलाकोट शहर में एक मध्यम वर्गीय परिवार में जन्में राजेन्द्र कुमार अभिनेता बनने का ख्वाब देखा करते थे। जब वह अपने सपनों को साकार करने के लिये मुम्बई पहुंचे थे तो उनके पास मात्र पचास रुपए थे, जो उन्होंने अपने पिता से मिली घड़ी बेचकर हासिल की थी। घड़ी बेचने से उन्हें 63 रुपए मिले थे जिसमें 13 रुपए से उन्होंने फ्रंटियर मेल का टिकट खरीदा। मुंबई पहुंचने पर गीतकार राजेन्द्र कृष्ण की मदद से राजेन्द्र कुमार को 150 रुपए मासिक वेतन पर वह निर्माता-निर्देशक एच. एस. रवैल के सहायक निर्देशक के तौर पर काम करने का अवसर मिला। वर्ष 1950 में प्रदर्शित फिल्म, जोगन, में राजेन्द्र कुमार को काम करने का अवसर मिला। इस फिल्म में उनके साथ दिलीप कुमार ने मुख्य भूमिका निभायी थी।
वर्ष 1950 से वर्ष 1957 तक राजेन्द्र कुमार फिल्म इंडस्ट्री में अपनी जगह बनाने के लिये संघर्ष करते रहे। फिल्म जोगन के बाद उन्हें जो भी भूमिका मिली वह उसे स्वीकार करते चले गये। इस बीच उन्होंने तूफान और दीया, आवाज और एक झलक जैसी कई फिल्मों मे अभिनय किया लेकिन इनमें से कोई भी फिल्म बॉक्स ऑफिस पर सफल नहीं हुयी। वर्ष 1957 में प्रदर्शित महबूब खान की फिल्म उन्हें बतौर पारश्रमिक 1000 रुपए महीना मिला। यह फिल्म पूरी तरह अभिनेत्री नरगिस पर आधारित थी बावजूद इसके राजेन्द्र कुमार ने अपनी छोटी सी भूमिका के जरिये दर्शकों का मन मोह लिया। इसके बाद गूंज उठी शहनाई, कानून, ससुराल, घराना, आस का पंछी और दिल एक मंदिर जैसी फिल्मों में मिली कामयाबी के जरिये राजेन्द्र कुमार दर्शकों के बीच अपने अभिनय की धाक जमाते हुये ऐसी स्थिति में पहुंच गये जहां वह फिल्म में अपनी भूमिका स्वयं चुन सकते थे।
वर्ष 1959 मे प्रदर्शित विजय भटृ की संगीतमय फिल्म गूंज उठी शहनाई बतौर अभिनेता राजेन्द्र कुमार के सिने करियर की पहली हिट साबित हुई। वहीं, वर्ष 1963 में प्रदर्शित फिल्म मेरे महबूब की जबर्दस्त कामयाबी के बाद राजेन्द्र कुमार शोहरत की बुंलदियों पर जा पहुंचे। राजेन्द्र कुमार कभी भी किसी खास इमेज में नहीं बंधे। इसलिए, अपनी इन फिल्मों की कामयाबी के बाद भी उन्होंने वर्ष 1964 में प्रदर्शित फिल्म संगम में राजकपूर के सहनायक की भूमिका स्वीकार कर ली, जो उनके फिल्मी चरित्र से मेल नहीं खाती थी। इसके बावजूद राजेन्द्र कुमार यहां भी दर्शकों का दिल जीतने में सफल रहे।
वर्ष 1963 से 1966 के बीच कामयाबी के सुनहरे दौर में राजेन्द्र कुमार की लगातार छह फिल्में हिट रहीं। मेरे महबूब, जिन्दगी, संगम, आई मिलन की बेला, आरजू और सूरज सभी फिल्मों ने सिनेमाघरों पर सिल्वर जुबली या गोल्डन जुबली मनायी। इन फिल्मों के बाद राजेन्द्र कुमार के करियर में ऐसा सुनहरा दौर भी आया, जब मुम्बई के सभी दस सिनेमाघरों में उनकी ही फिल्में लगी और सभी फिल्मों ने सिल्वर जुबली मनायी। यह सिलसिला काफी लंबे समय तक चलता रहा। उनकी फिल्मों की कामयाबी को देखते हुए उनके प्रशंसकों ने उनका नाम ही, जुबली कुमार, रख दिया था।
राजेश खन्ना के आगमन के बाद परदे पर रोमांस का जादू जगाने वाले इस अभिनेता के प्रति दर्शकों का प्यार कम होने लगा। इसे देखते हुए राजेन्द्र कुमार ने कुछ समय के विश्राम के बाद 1978 में, साजन बिना सुहागन, फिल्म से चरित्र अभिनय की शुरुआत कर दी। राजेन्द्र कुमार के सिने करियर में उनकी जोड़ी सायरा बानो, साधना और वैजयंती माला के साथ काफी पसंद की गयी।
वर्ष 1981 में राजेन्द्र कुमार ने अपने पुत्र कुमार गौरव को फिल्म इंडस्ट्री में स्थापित करने के लिए लव स्टोरी का निर्माण और निर्देशन किया, जिसने बॉक्स आफिस पर जबरदस्त कामयाबी हासिल की। इसके बाद वह कुमार गौरव के करियर को आगे बढाने के लिए ‘नाम’ और ‘फूल’ जैसी फिल्मों का निर्माण किया लेकिन पहली फिल्म की सफलता का श्रेय संजय दत्त ले गए जबकि दूसरी फिल्म बुरी तरह पिट गई और इसके साथ ही कुमार गौरव के फिल्मी करियर पर भी विराम लग गया।
राजेन्द्र कुमार के फिल्मी योगदान को देखते हुए 1969 में उन्हें पदमश्री से सम्मानित किया गया। नब्बे के दशक में राजेन्द्र कुमार ने फिल्मों मे काम करना काफी कम कर दिया। अपने संजीदा अभिनय से लगभग चार दशक तक दर्शकों के दिल पर राज करने वाले महान अभिनेता राजेन्द्र कुमार 12 जुलाई 1999 को इस दुनिया को अलविदा कह गये। राजेन्द्र कुमार ने अपने करियर में लगभग 85 फिल्मों में काम किया। उनकी उल्लेखनीय फिल्मों में तलाक, संतान, धूल का फूल, पतंग, धर्मपुत्र, घराना, हमराही, पालकी, साथी, गोरा और काला, अमन, गीत, गंवार, धरती, दो जासूस, साजन की सहेली, बिन फेरे हम तेरे शामिल हैं।(वार्ता)
-पुण्यतिथि 12 जुलाई
मुंबई, 11 जुलाई । बॉलीवुड में प्राण ऐसे अभिनेता थे, जिन्होंने पचास और सत्तर के दशक के बीच फिल्म इंडस्ट्री पर खलनायकी के क्षेत्र में एकछत्र राज किया और अपने अभिनय का लोहा मनवाया।
प्राण का जन्म 12 फरवरी 1920 को दिल्ली में एक मध्यम वर्गीय परिवार में हुआ था। उनके पिता केवल कृष्ण सिकंद सरकारी ठेकेदार थे। उनकी कंपनी सडक़े और पुल बनाने के ठेके लिया करती थी। पढ़ाई पूरी करने के बाद प्राण अपने पिता के काम में हाथ बंटाने लगे। एक दिन पान की दुकान पर उनकी मुलाकात लाहौर के मशहूर पटकथा लेखक वली मोहम्मद से हुयी। वली मोहम्मद ने प्राण की सूरत देखकर उनसे फिल्मों में काम करने का प्रस्ताव दिया। प्राण ने उस समय वली मोहम्मद के प्रस्ताव पर ध्यान नहीं दिया लेकिन उनके बार-बार कहने पर वह तैयार हो गये।
वर्ष 1940 में प्रदर्शित फिल्म, यमला जट, से प्राण ने अपने सिने करियर की शुरुआत की। फिल्म की सफलता के बाद प्राण को यह महसूस हुआ कि फिल्म इंडस्ट्री में यदि वह करियर बनायेगें तो ज्यादा शोहरत हासिल कर सकते हैं। इस बीच भारत बंटवारे के बाद प्राण लाहौर छोडक़र मुंबई आ गये। इस बीच प्राण ने लगभग 22 फिल्मों में अभिनय किया और उनकी फिल्में सफल भी हुयी लेकिन उन्हें ऐसा महसूस हुआ कि मुख्य अभिनेता की बजाय खलनायक के रूप में फिल्म इंडस्ट्री में उनका भविष्य सुरक्षित रहेगा ।
वर्ष 1948 में उन्हें बांबे टॉकीज की निर्मित फिल्म, जिद्दी, में बतौर खलनायक काम करने का मौका मिला। फिल्म की सफलता के बाद प्राण ने यह निश्चय किया कि वह खलनायकी को ही करियर का आधार बनाएंगे और इसके बाद प्राण ने लगभग चार दशक तक खलनायकी की लंबी पारी खेली और दर्शको का भरपूर मनोरंजन किया।
वर्ष 1958 में प्रदर्शित फिल्म अदालत में प्राण ने इतने खतरनाक तरीके से अभिनय किया कि दर्शकों को पसीने आ गये। सत्तर के दशक में प्राण खलनायक की छवि से बाहर निकलकर चरित्र भूमिका पाने की कोशिश में लग गये। वर्ष 1967 में निर्माता -निर्देशक मनोज कुमार ने अपनी फिल्म, उपकार, में प्राण को मलंग काका का एक ऐसा रोल दिया जो प्राण के सिने करियर का मील का पत्थर साबित हुआ।
फिल्म, उपकार, में प्राण ने मलंग काका के रोल को इतनी शिद्दत के साथ निभाया कि लोग प्राण के खलनायक होने की बात भूल गये। इस फिल्म के बाद प्राण के पास चरित्र भूमिका निभाने का तांता सा लग गया। इसके बाद प्राण ने सत्तर से नब्बे के दशक तक चरित्र भूमिकाओं से दर्शको का मन मोहे रखा। सदी के खलनायक प्राण की जीवनी भी लिखी जा चुकी है, जिसका टाइटल, एंड प्राण, रखा गया है। पुस्तक का यह टाइटल इसलिए रखा गया है कि प्राण की अधिकतर फिल्मों में उनका नाम सभी कलाकारों के पीछे, और प्राण, लिखा हुआ आता था। कभी-कभी उनके नाम को इस तरह पेश किया जाता था, एबव ऑल प्राण।
प्राण ने अपने चार दशक से भी ज्यादा लंबे सिने करियर में लगभग 350 फिल्मों में अपने अभिनय का जौहर दिखाया। प्राण के मिले सम्मान पर यदि नजर डालें तो अपने दमदार अभिनय के लिये वह तीन बार सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता के फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। वर्ष 2013 में प्राण को फिल्म जगत के सर्वश्रेष्ठ सम्मान दादा साहब फाल्के पुरस्कार दिया गया था।
प्राण को उनके कैरियर के शिखर काल में कभी उन्हें फिल्म के नायक से भी ज्यादा भुगतान किया जाता था। फिल्म डॉन में काम करने के लिए उन्हें नायक अमिताभ बच्चन से ज्यादा रकम मिली थी। अपने दमदार अभिनय से दर्शकों को मंत्रमुग्ध करने वाले प्राण 12 जुलाई 2013 को इस दुनिया को अलविदा कह गये।(वार्ता)
माता-पिता की जान होते हैं उनके बच्चे। बॉलीवुड के एक्शन हीरो टाइगर श्रॉफ की मम्मी को भी अपने बच्चों से बेहद प्यार है। सोशल मीडिया पर एक्टिव रहती आयशा श्रॉफ अक्सर अपने बच्चों के साथ तस्वीरों को शेयर करती रहती हैं। टाइगर और कृष्णा के साथ उनकी अच्छी बॉन्डिंग है। हाल ही में उन्होंने टाइगर श्रॉफ की एक ऐसी फोटो शेयर की है, जिसको देखने के बाद किसी भी मां को दया के साथ प्यार भी आ जाएंगा। सोशल मीडिया पर इस तस्वीर को लोग पसंद कर रहे है।
आयशा श्रॉफ ने हाल ही में टाइगर श्रॉफ की एक थ्रोबैक तस्वीर शेयर की है, जिसमें वे जमीन पर सोते हुए देखे जा सकते हैं। तस्वीर में आप देख सकेंगे की जमीन पर टाइगर बिना बिस्तर के लेटे हैं। बेटे को इस तरह से सोता देख मां आयशा को प्यार आ गया और तस्वीर शेयर करते हुए उन्होंने कैप्शन दिया- मेहनत के बाद गहरी नींद आती है। मुझे तुम पर बेहद नाज है टाइगर श्रॉफ। इस तस्वीर पर सोशल मीडिया यूजर्स जमकर कमेंट कर रहे हैं।
आयशा समय-समय पर अपने इंस्टाग्राम पर थ्रोबैक तस्वीरों को शेयर करती रहती हैं। कुछ समय पहले आयशा ने जैकी श्रॉफ के साथ एक तस्वीर शेयर की थी। आयशा दिशा पाटनी के साथ भी खास बॉन्डिंग शेयर करती हैं।
वर्कफ्रंट की बात करें पिछली बार टाइगर श्रॉफ फिल्म बागी 3 में नजर आए थे। साल 2019 में टाइगर की फिल्म वॉर रिलीज हुई थी, जो उनके करियर की सबसे बड़ी फिल्म साबित हुई। फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर 300 करोड़ से अधिक का कारोबार किया था। वॉर में टाइगर और ऋतिक रोशन ने पहली बार साथ काम किया था। वहीं, जल्द टाइगर फिल्म हीरोपंती 2 में नजर आएंगे। इस फिल्म के लिए वह तैयारी कर रहे हैं। फिल्म को अगले साल जुलाई में रिलीज करने की तैयारी है। इस फिल्म का निर्देशन अहमद खान कर रहे हैं। (न्यूज18)
एक तरफ जहां दर्शक वॉर के बाद ऋतिक रोशन की अगली फिल्म के ऐलान के इंतजार में बैठे हैं, तो वहीं दूसरी ओर शाहरुख खान के फैंस उन्हें बड़े पर्दे पर देखने के लिए उतावले हो रहे हैं। ऐसे में दोनों के फैंस के लिए एक बड़ी खबर सामने आई है, जिसे जानकर वे बेहद खुश होने वाले हैं। खबर है कि ऋतिक रोशन की अगली फिल्म कृष 4 हो सकती है, जिसकी तैयारी बड़े जोर शोर से चल रही है। इस फिल्म के निर्माता-निर्देशक इसके प्री-प्रोडक्शन में जी जान से जुटे हैं और इन दिनों स्क्रिप्टिंग पर काफी काम चल रहा है।
साथ ही खबर ये भी है कि इस फिल्म के लिए ऋतिक ने शाहरुख से भी हाथ मिलाया है। खबर के अनुसार शाहरुख खान फिल्म कृष 4 में एक अहम भूमिका निभाने वाले हैं। खबर के अनुसार ऋतिक रोशन की इस फिल्म के ग्राफिक्स और विजुएल इफेक्ट्स की जिम्मेदारी शाहरुख की कंपनी रेड चिलीज एंटरटेनमेंट को दी गई है।
माना जा रहा है कि फिल्म में इस बार ऋतिक रोशन बनाम कई सुपर विलेन के बीच की जंग होगी। ऐसे में यह साफ है कि इन सुपर विलेन को बनाने की जिम्मेदारी शाहरुख खान को दी गई है। खबर तो ये भी है कि इस बार कृष 4 में जादू की भी वापसी होने जा रही है। बता दें, साल 2003 इस फिल्म का पहला पार्ट आया था, जिसका नाम कोई मिल गया था, इस फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर हंगामा मचा दिया था। इस फिल्म में जादू (एक एलियन) की एक अहम भूमिका थी, जो बच्चों के बीच काफी पॉपुलर भी हुआ था। (जी न्यूज)
स्वरा भास्कर के घर में लॉकडाउन के बीच ही शहनाईयां बजीं और पूरे परिवार ने जमकर एक साथ मस्ती की। दरअसल, लॉकडाउन के दौरान स्वरा भास्कर के मामा ने तय किया कि स्वरा की मामी को घर ले आया जाए और बस पूरा परिवार शादी की शहनाइयों में डूब गया। स्वरा ने एक इंस्टाग्राम पोस्ट में अपने घर में हुए जश्न की तस्वीरें साझा की और इन तस्वीरों में वो बेहद खूबसूरत लग रही हैं। स्वरा ने अपनी मामी की मेहंदी सेरेमनी पर सादी सी साड़ी पहनी।
स्वरा की ये तस्वीरें इंटरनेट पर तेज़ी से वायरल हो रही हैं।
स्वरा के घर शादी ठहाकों के बीच स्वरा परिवार के साथ काफी मस्ती करती नज़र आईं और ये तस्वीरें उनकी मस्ती का सुबूत हैं।
नई सदस्य स्वरा ने अपनी मामी के साथ तस्वीर शेयर करते हुए कहा कि फाईनली वो दिन आ ही गया जब आप आधिकारिक तौर पर मेरी मामी बन गईं।
टीवी के पॉप्युलर कॉमेडी शो 'द कपिल शर्मा शो' को लॉकडाउन के दौरान दर्शकों ने काफी मिस किया। लेकिन अब मिड जुलाई से इस शो के नए एपिसोड्स टेलिकास्ट किए जाएंगे। शूटिंग शुरू हो चुकी है। खबर आ रही है कि शो के परफॉर्मर कृष्णा अभिषेक और भारती सिंह भी कुछ नया करने वाले हैं। हाल ही में कृष्णा ने एक पोस्ट शेयर की, जिसमें उन्होंने खुलासा किया कि वह भारती सिंह संग अपना एक नया शो लॉन्च करने वाले हैं। यह शो भी कॉमेडी का डोज़ दर्शकों तक पहुंचाएगा। दोनों की जोड़ी एक बार फिर दर्शकों को अलग अंदाज में हंसाने की कोशिश करेगी।
कृष्णा ने सोशल मीडिया पर अपने शो का फर्स्ट लुक जारी करते हुए लिखा कि बहुत लंबे समय बाद शूटिंग पर लौटे हैं। हर 10 मिनट में हाथ सैनिटाइज कर रहे हैं। सोशल डिस्टेंसिंग का भी तरीके से पालन किया जा रहा है। हर लंच या डिनर ब्रेक में कॉस्ट्यूम बार-बार धुलते हैं। स्टाफ पूरी तरह से पीपीई किट में कवर रहता है और हमारे साथ बिलकुल नहीं घुलता-मिलता। ये हमारा नया शो, फनहित में जारी।
कृष्णा अभिषेक 'द कपिल शर्मा शो' में सपना के किरदार में नजर आते रहे हैं। वहीं भारती भी कपिल के शो में कई किरदार निभाती हुई दिखाई दी हैं। कृष्णा ने इस नए शो में कॉमेडियन मुजीब भी नजर आने वाले हैं। ये तीनों ही इससे पहले भी कुछ शोज में साथ नजर आ चुके हैं। भारती और कृष्णा का यह नया शो भारती के पति और राइटर हर्ष लिंंबाचिया का प्रोडक्शन हाउस बना रहा है।
दिग्गज कॉमेडियन और एक्टर जगदीप ने बुधवार रात दुनिया को अलविदा कह दिया। 81 साल की उम्र में उनका देहांत हो गया। सूरम भोपाली के नाम से मशहूर जगदीप के निधन से बॉलीवुड गलियारों में शोक की लहर है। जगदीप का हिंदी सिनेमा में योगदान भुलाया नहीं जा सकता।
2019 में जगदीप को IIFA अवॉर्ड्स में विशेष सम्मान दिया गया था। जगदीप को हिंदी सिनेमा में उनके बेहतरीन योगदान के लिए आईफा अवॉर्ड से सम्मानित किया गया था। जगदीप को आउटस्टैंडिंग कंट्रीब्यूशन टू इंडियन सिनेमा का अवॉर्ड डायरेक्टर रमेश सिप्पी और एक्टर रणवीर सिंह ने दिया था। तब जगदीप आईफा के मंच पर व्हीलचेयर में बैठकर अवॉर्ड लेने पहुंचे थे। IIFA में सभी एक्टर्स ने मिलकर जगदीप को ट्रिब्यूट दिया था। स्टेज पर जगदीप के साथ उनके बेटे जावेद जाफरी, नावेद जाफरी और उनके पोते मीजान जाफरी मौजूद थे।
जगदीप को उनके कॉमिक रोल्स के लिए जाना जाता था। कॉमिक किरदार में जगदीप का कोई सानी नहीं था। उनकी कॉमिक टाइमिंग जबरदस्त थी। अपने करियर में जगदीप ने 400 से ज्यादा फिल्मों में काम किया था। कम उम्र से ही जगदीप ने इंडस्ट्री में काम करना शुरू कर दिया था। फिल्म शोले में उनके द्वारा निभाया गया किरदार सूरमा भोपाली आज तक लोगों के बीच पॉपुलर है। जगदीप का असली नाम सैय्यद इश्तियाक अहमद जाफरी था। उन्होंने अपने करियर की शुरुआत बीआर चोपड़ा की फिल्म अफसाना से बतौर चाइल्ड आर्टिस्ट की थी। अपने उम्दा रोल्स के लिए जगदीप को कई बार अवॉर्ड्स से सम्मानित किया गया था। उनका जाना फिल्म इंडस्ट्री के लिए बड़ी क्षति है। इस साल बॉलीवुड ने अपने कई बड़े कलाकारों को खोया है। इस फेहरिस्त में अब जगदीप का नाम भी जुड़ गया है। (आजतक)
सरोज खान के काम की जितनी तारीफ की जाए वो कम है। एक दिन ऐसा भी था जब 8 महीने की अपनी बेटी का शव को दफन करने के तुरंत बाद उन्होंने दम मारो दम की शूटिंग के लिए उसी शाम ट्रेन पकड़ ली थी।
सरोज खान अब इस दुनिया से दूर चली गई हैं, लेकिन बॉलिवुड को जितना उन्होंने दिया है उसे कभी भी भुलाया नहीं जा सकता। अपने करियर में 2000 से अधिक गानों को कोरियॉग्राफ कर चुकीं सरोज खान को '"The mother of Choreography in India' ' का टैग दिया गया है। हालांकि, सरोज खान के लिए यहां तक पहुंचने का सफर बहुत मुश्किल भरा रहा है। उन्होंने पर्सनल लाइफ में इतने बुरे दिन देखे हैं, जिसके बाद अक्सर लोग हार मान लेते हैं, लेकिन सरोज खान हार मानने वालों में से नहीं थीं। एक ऐसा ही किस्सा उनकी बेटी की मौत से जुड़ा है।
साल 2014 में अपने एक इंटरव्यू में उन्होंने अपनी लाइफ से जुड़ी इस दर्दनाक घटना को लेकर खुद बातें की थीं। सरोज खान ने 13 साल की उम्र में डांस मास्टर सोहनलाल से शादी रचाई जो उनसे करीब 28 साल बड़े थे। 14 साल में उन्हें बेटा भी हो गया, जिसका नाम उन्होंने राजू (हामिद खान) रखा। इसके बाद उन्हें एक बेटी हुई, जो महज 8 महीने ही जिंदा रही। सरोज खान ने अपने इंटरव्यू में इसी घटना का जिक्र करते हुए कहा था, मेरी बेटी 8 महीने और 5 दिन की थी, जब उसका निधन हो गया। उसे दफन करने के बाद उसी दिन शाम को 5 बजे मैंने फिल्म हरे रामा हरे कृष्णा के गाने दम मारो दम की शूटिंग के लिए ट्रेन पकड़ ली।
इसके बाद सरोज खान को सोहनलाल से एक और बेटी हुई, जिसका नाम कुकू रखा और फिर उनकी यह शादी टूट गई। हालांकि साल 2011 में सुकैना का भी निधन हो गया और एक बार फिर सरोज खान पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। हालांकि, इस दौरान पर लगातार काम करती रहीं सरोज खान। सोहनलाल से अलग होने के बाद सरोज खान ने इसके बाद सरदार रोशन खान से शादी की थी और उन्हें उनसे एक बेटी सुकैना हुईं। (नवभारत टाईम्स)
पापा ने कभी मेरे लिए काम नहीं मांगा
बॉलीवुड में नेपोटिज्म पर काफी डिबेट देखने को मिल रही है। कई मौकों पर तो एक दूसरे पर ही आरोप-प्रत्यारोप का खेल देखने को मिल रहा है। लेकिन कई स्टार किड्स ऐसे भी जो खुद को नेपोटिज्म की डिबेट से नहीं जोड़ते हैं। उन्हें लगता है कि उन्होंने अपनी जिंदगी में खासा संघर्ष किया है और अपनी मेहनत के बलबूते एक मुकाम हासिल किया है। ऐसी ही एक कलाकार हैं जॉनी लीवर की बेटी जैमी लीवर।
जैमी लीवन ने हाल ही में मिड डे को एक इंटरव्यू दिया था। इंटरव्यू में जैमी ने नेपोटिज्म पर खुलकर अपने विचार रखे थे। उन्होंने न सिर्फ खुद को स्टार किड्स से दूर किया था,बल्कि अपने संघर्ष के बारे में भी बताया। जैमी कहती हैं- जब लोग नेपोटिज्म की बात करते हैं, तब ये सभी स्टार किड्स पर लागू नहीं होता है। सभी स्टार किड्स को समान मौके नहीं मिलते हैं। मेरी जर्नी काफी अलग रही है। इंडस्ट्री में पक्षपात तो है, लेकिन नेपोटिज्म नहीं। जैमी की माने तो इंडस्ट्री में पक्षपात तो होता दिख जाता है। कुछ लोगों को स्पेशल ट्रीटमेंट दिया जाता है।
लेकिन ये सब बताने के बावजूद जैमी को लगता है कि उनकी जिंदगी दूसरों से अलग है। वो मानती हैं कि उनके पिता जॉनी लीवर ने अपनी जिंदगी में काफी धक्के खाए हैं। जैमी कहती हैं- मेरे पिता ने फिल्मों को अपनी जॉब की तरह देखा है, उन्होंने इसे अपनी जिंदगी नहीं माना। वो फिल्म की शूटिंग करते थे, फिर अपने घर आ जाया करते थे। उनकी जिंदगी तो परिवार और दोस्त थे। हम कभी भी किसी फिल्मी पार्टी का हिस्सा नहीं होते थे। हम किसी ग्रुप का हिस्सा नहीं रहे।
वहीं जैमी ने इस बात पर भी जोर दिया कि जॉनी लीवर ने कभी भी उनके लिए किसी दूसरे इंसान को फोन नहीं मिलाया। जैमी ने सभी जगह खुद ऑडिशन दे अपना मुकाम हासिल किया है। जॉनी लीवर ने कभी भी उनके लिए कोई मदद या फेवर नहीं मांगा। इस बात में तो कोई दो राय नहीं कि जैमी ने अपने करियर में संघर्ष किया है। उन्होंने अपनी कॉमेडी का लोहा कॉमेडी सर्कस शो में मनवाया था। उन्होंने कई शोज का हिस्सा बन अपनी पहचान बनाई है। अब जैमी एक लोकप्रिय चेहरा हैं जो अपनी मिमिक्री के लिए जानी जाती हैं। उन्होंने सोशल मीडिया पर कई फनी वीडियोज शेयर किए हैं। (आजतक)