अंतरराष्ट्रीय
जर्मनी की नई गठबंधन सरकार हर साल विदेशों से चार लाख कुशल श्रमिकों को अपने देश में आकर्षित करना चाहती है. ऐसा कर वह प्रमुख क्षेत्रों में जनसांख्यिकीय असंतुलन और श्रम की कमी दोनों से निपटना चाहती है.
गठबंधन सरकार में शामिल फ्री डेमोक्रेट्स (एफडीपी) के संसदीय दल के नेता क्रिस्टियान डुइर ने बिजनेस पत्रिका विर्टशॉफ्ट्स वोखे से कहा, "कुशल श्रमिकों की कमी अब तक इतनी गंभीर हो गई है कि यह नाटकीय रूप से हमारी अर्थव्यवस्था को धीमा कर रही है,"
डुइर ने आगे कहा, "हम एक आधुनिक आव्रजन नीति के साथ सिर्फ एक बूढ़े होते कार्यबल की समस्या को नियंत्रित कर सकते हैं. हमें विदेशों से चार लाख कुशल श्रमिकों के निशान तक जल्द से जल्द पहुंचना होगा."
बूढ़े होते कर्मचारी
चांसलर ओलाफ शॉल्त्स की एसपीडी, डुइर की उदारवादी एफडीपी और पर्यावरण को अपने एजेंडे पर रखने वाली ग्रीन पार्टी ने यूरोपीय संघ के बाहर के देशों के कुशल श्रमिकों के लिए एक अंक प्रणाली जैसे उपायों पर अपने गठबंधन कॉन्ट्रैक्ट में सहमति जाहिर की है और जर्मनी में काम करने को और अधिक आकर्षक बनाने के लिए राष्ट्रीय न्यूनतम वेतन को 12 यूरो प्रति घंटे तक बढ़ाया है.
जर्मन आर्थिक संस्थान का अनुमान है कि इस साल श्रम बल में तीन लाख से अधिक लोगों की कमी आएगी, क्योंकि श्रम बाजार में नए युवाओं के आने की तुलना में अधिक बूढ़े कर्मचारी रिटायर हो रहे हैं.
यह अंतर 2029 में साढ़े छह लाख से अधिक होने की उम्मीद है. जिससे 2030 में कामकाजी उम्र के लोगों की संचित कमी लगभग 50 लाख हो जएगी. कोरोना वायरस महामारी के बावजूद पिछले साल रोजगार में जर्मनों की संख्या बढ़कर लगभग 4.5 करोड़ हो गई.
दशकों से कम होती जन्म दर और असमान प्रवासन के बाद से ही सिकुड़ती हुई श्रम शक्ति जर्मनी की सार्वजनिक पेंशन प्रणाली के लिए एक जनसांख्यिकीय संकट खड़ा कर रही है.
एए/सीके (रॉयटर्स)
काबुल, 22 जनवरी | अफगानिस्तान में तालिबान के नेतृत्व वाली सरकार ने एक महिला प्रदर्शनकारी को उसके घर से जबरन गिरफ्तार करने से इनकार किया है। खामा प्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, बुधवार को तमाना जरयब परयानी ने एक वीडियो क्लिप में कहा कि तालिबान लड़ाके दरवाजे पर दस्तक दे रहे हैं और उन्हें और उनकी बहनों को ले जाना चाहते हैं।
गवाहों का हवाला देते हुए, कुछ पश्चिमी मीडिया रिपोटरें ने दावा किया कि तालिबान के सहयोगी अपार्टमेंट में घुस गए और परयानी और उसकी तीन बहनों को हिरासत में ले लिया।
परयानी उन 20 अफगान महिलाओं में से एक थीं, जिन्होंने तालिबान सरकार द्वारा घोषित हिजाब पहनने की बाध्यता का विरोध किया था।
विकास पर प्रतिक्रिया देते हुए, आंतरिक मंत्रालय ने गिरफ्तारी से इनकार किया और कहा कि कोई भी तालिबान कर्मी परयानी के अपार्टमेंट में नहीं घुसा।
तालिबान के प्रवक्ता जबीउल्लाह मुजाहिद ने कहा कि वीडियो फर्जी है और प्रदर्शनकारी ने विदेश में शरण लेने के लिए क्लिप बनाई है। (आईएएनएस)
पृथ्वी की असीम गहराई में मौजूद गर्भ खौलते तरल से भरा है. 4.5 अरब साल पहले पृथ्वी के अस्तित्व में आने के बाद से इसका गर्भ लगातार ठंडा पड़ता जा रहा है, वो भी अब तक अनुमानों से कहीं ज्यादा तेजी से.
डॉयचे वैले पर लुइजा राइट की रिपोर्ट-
पृथ्वी की उत्पत्ति के समय पूरी धरती खौलते मैग्मा से लबालब थी. वक्त के साथ धरती धीमे धीमे ठंडी होने लगी, लेकिन पृथ्वी के गर्भ (कोर) में उष्मा खोने की यह प्रक्रिया आज भी जारी है.
पृथ्वी के तेजी से ताप खोने की प्रक्रिया की जो वैज्ञानिक समझ अब तक पेश की जाती रही, उसे अब एक नए शोध ने चुनौती दी है. 15 जनवरी को प्रकाशित नए शोध में धरती के ठंडे होने की रफ्तार को पुराने अनुमानों से कहीं ज्यादा तेज बताया गया है.
स्विट्जरलैंज, जर्मनी, अमेरिका और जापान के रिसर्चरों की इस खोज के मुताबिक पृथ्वी के गर्भ से गर्मी को बाहर निकालने में विकिरण बड़ी भूमिका निभाता है. लेकिन अब तक इस भूमिका को नजरअंदाज किया जाता रहा है.
पृथ्वी पर जो जमीन और समंदर हैं, वो धरती का सबसे बाहरी भाग है. इसके नीचे क्रस्ट कही जाने वाली परत आती है. क्रस्ट के नीचे मेंटल कही जाने वाले दो मोटी होते हैं. एक अपर मेंटल और दूसरा लोअर मेंटल. लोअर मेंटल के कवच के भीतर तरल अवस्था में पृथ्वी का गर्भ है. वैज्ञानिकों का मानना है कि लोअर मेंटल, ब्रिजमैनाइट नाम के खनिज से बना है. ब्रिजमैनाइट शब्द भौतिक विज्ञानी पेर्सी ब्रिजमैन के नाम पर रखा गया है. वैज्ञानिकों को लगता है कि पृथ्वी पर सबसे ज्यादा मात्रा में मौजूद खनिज ब्रिजमैनाइट ही है.
इटीएच ज्यूरिख में भूविज्ञानी के प्रोफेसर मोतोहिको मुराकामी कहते हैं, "हमें पता चला है कि ब्रिजमैनाइट की ताप संवाहक क्षमता यानी थर्मल कंडक्टिविटी वैल्यू पहले कम आंकी गई. मुराकामी और उनके साथियों का दावा है कि ब्रिजमैनाइट की ताप संवाहक क्षमता पूर्वानुमान से डेढ़ गुना ज्यादा है.
मुराकामी कहते हैं, "कोर से गर्मी का ट्रांसफर पूर्वानुमान के मुताबिक कही ज्यादा किफायती ढंग से होता है, इसका मतलब यह है कि गर्भ अनुमान के मुकाबले कहीं ज्यादा तेजी से ठंडा हो रहा है.
शोध का मुश्किल विषय
विज्ञान और वैज्ञानिक अभी तक भूगर्भ तक नहीं पहुंच सके हैं. यही वजह है कि उसके बारे में सटीक खोज करना आसान नहीं है. वैज्ञानिक अब तक जियोफिजिकल रिसर्च डाटा की मदद से लैब में पृथ्वी के गर्भ का मॉडल तैयार करते हैं. प्रयोग इसी मॉडल पर किए जाते हैं.
मुराकामी और उनकी टीम ने ब्रिजमैनाइट को सिंथेसाइज कर यह प्रयोग किया. सिथेंटिक मिनरल ऐसा खनिज है जिसे प्रकृति से लेने के बजाए वैज्ञानिक लैब में बनाते हैं. इस प्रयोग में जिस सिथेंटिक ब्रिजमैनाइट का प्रयोग किया गया वह इंसानी हाथ में आसानी से फिट हो सकने लायक आकार का है.
ब्रिजमैनाइट के इस नमूने को एक छोटे से चैंबर में रखा गया. फिर उसे हीरे की दीवारों से कंप्रेस किया गया. इस दौरान सैंपल को एक लेजर से गर्म भी किया गया. फ्रांस के नेशनल सेंटर फॉर साइंटिफिक रिसर्च की जियोफिजिस्ट कारीन सिंगलॉख के मुताबिक लेजर बीम हीरे की दीवारों को पार कर सैंपल को गर्म करती है.
क्यों अहम है ये नतीजे
जर्मनी की बायरूथ यूनिवर्सिटी में इनर अर्थ पर रिसर्च करने वाले गैर्ड श्टाइले-नॉयमन कहते हैं, "अब तक का ज्ञान तो यही कहता आया है कि ठोस धरती पर ताप के परिवहन में विकिरिण कोई खास भूमिका नहीं निभाता है."
श्टाइनले-नॉयमन शोध का हिस्सा नहीं हैं लेकिन डीडब्ल्यू से बातचीत में उन्होंने कहा, "मुराकामी के प्रयोग इस बात की पुष्टि करते हैं कि विकिरण, पृथ्वी के कोर से मेंटल तक, ताप के परिवहन को करीब 50 फीसदी तक बढ़ा सकता है, यानि पूरी पृथ्वी के गर्मी खोने की रफ्तार को तेज कर सकता है."
लेकिन कुछ बातें अब भी साफ नहीं हुई हैं. फ्रांसीसी वैज्ञानिक सिंगलॉख कहती हैं, "भूगर्भ के ठंडे होने से मेंटल के व्यवहार में क्या फर्क पड़ता है."
पृथ्वी भीतर से तेजी से ठंडी भी हो रही है तो भी मौजूदा जलवायु संकट पर इसका कोई असर नहीं दिखता है. वैज्ञानिकों के मुताबिक ग्रहों के ठंडा होने की यह प्रक्रिया अरबों साल तक चलती है, जबकि बाहरी वातावरण के तापमान में उछाल दशकों की समयसीमा के भीतर होता है. (dw.com)
संयुक्त राष्ट्र ने यमन के एक डिटेंशन सेंटर पर सऊदी के नेतृत्व वाले गठबंधन की ओर से किए गए एयर स्ट्राइक की निंदा की है. इस हवाई हमले में 70 से अधिक लोग मारे गए हैं.
हूती विद्रोहियों के आंदोलन का गढ़ माने जाने वाले सादा के डिटेंशन सेंटर पर शुक्रवार को ये हमला किया गया.
मरने वालों का सटीक आंकड़ा स्पष्ट नहीं है लेकिन मेडिसिन्स साँ फ्रंतिए (एमएसएफ) ने कहा कि हमले में कम से कम 70 लोग मारे गए हैं, हालांकि ये संख्या और भी बढ़ने की बढ़ने की आशंका है.
संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने कहा कि "इस तरह के हमलों को रोकने की ज़रूरत है". साथ ही उन्होंने हमलों की जांच करने की बात पर भी ज़ोर दिया है.
सऊदी अरब के नेतृत्व वाले गठबंधन की सेना 2015 से हूती विद्रोहियों से लड़ रही है.
इस युद्ध में 10,000 से अधिक बच्चों सहित दसियों हज़ार नागरिक मारे गए या घायल हुए हैं. लाखों लोग विस्थापित हुए हैं और बड़ी आबादी अकाल और भूखमरी के कगार पर खड़ी है.
बीबीसी मध्य पूर्व संवाददाता एना फ़ोस्टर के मुताबिक़ हवाई हमले के कुछ घंटे बाद भी बचावकर्मी मलबे से शवों को बाहर निकाल रहे. (bbc.com)
पश्चिम एशिया जलवायु संकट की कड़ी मार झेल रहा है. ऐसे में इलाके के देशों के बीच सहयोग अनिवार्य हो चला है. क्या इस्राएल और जॉर्डन के बीच हुआ अक्षय ऊर्जा और पानी की अदलाबदली का समझौता इस दिशा में पहला कदम माना जा सकता है?
डॉयचे वैले पर तानिया क्रेमर की रिपोर्ट-
जलवायु समझौते के तहत जॉर्डन, इस्राएल को सौर ऊर्जा देने की तैयारी कर रहा है और बदले में उसे इस्राएल से पानी मिलेगा. ये रजामंदी दोनों देशों के बीच एक जलवायु सहयोग सौदे का आधार है. दोनों देशों ने 1994 में शांति समझौता कर लिया था. इस साहसिक सौदे के तहत, पानी की कमी से जूझता जॉर्डन करीब 600 मेगावॉट सौर ऊर्जा, इस्राएल को निर्यात करेगा और इस्राएल उसे बदले में 20 करोड़ घन मीटर विलवणीकृत पानी मुहैया कराएगा.
इस आशय के प्रस्ताव पर हुए दस्तखत के दौरान प्रकाशित हुई मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक संयुक्त अरब अमीरात की एक कंपनी जॉर्डन में एक सौर फार्म बनाएगी, जिसमें इस्राएल को जोड़ने वाली ट्रांसमिशन लाइन भी होगी. यह काम 2026 तक पूरा होगा. इस बीच इस्राएल ने अपने भूमध्यसागरीय तट पर पानी के विलवणीकरण के पांच प्लांट चालू कर दिए हैं. दो और संयंत्र बनाने की योजना है.
एक इस्राएली-जॉर्डन-फलिस्तीनी पर्यावरण एनजीओ- ईकोपीस मिडल ईस्ट के सह-संस्थापक और इस्राएली निदेशक गिडोन ब्रोमबर्ग कहते हैं, "दोनों देशों के लिए ये फायदे का सौदा है और जलवायु सुरक्षा पर लीक से हटकर बन रहे सोच का एक आदर्श नमूना भी.”
सहयोग के लिए आवश्यक जमीन तैयार करने और जलवायु परिवर्तन पर ज्यादा क्षेत्र केंद्रित नजरिया देने के लिए इस संगठन को श्रेय जाता है. दिसंबर 2020 में ईकोपीस ने "ग्रीन ब्लू डील फॉर द मिडल ईस्ट” नाम से एक विस्तृत योजना प्रकाशित की थी जिसमें सीमा पार जलवायु सुरक्षा की वकालत की गई है और जॉर्डन, इस्राएल और फलिस्तीनी भूभाग पर जोर दिया गया है.
ईकोपीस के जॉर्डन में निदेशक याना अबु तालेब ने एक बयान में कहा, "यह समझौता हमारे क्षेत्र में देशों के बीच स्वस्थ अंतर्निर्भरता का एक नया मॉडल बना रहा है.” नफ्थाली बेनेट की अगुआई में नयी इस्राएली सरकार ने जॉर्डन के साथ रिश्तों की बेहतरी को अपनी प्राथमिकता बनाया है. इससे पहले इस्राएल ने संयुक्त अरब अमीरात और दूसरे अरब देशों के साथ रिश्तों को सामान्य बनाने की दिशा में अब्राहम संधि पर हस्ताक्षर भी किए थे.
सौर ऊर्जा के रूप में राजनीतिक लाभ?
लाल सागर के एक छोटे से फैलाव से लगे जॉर्डन के पास लंबी तटीय रेखा नहीं हैं जिस पर वो खारे पानी को साफ करने वाले बहुत सारे प्लांट लगा सके. हुकूमत इसीलिए लंबे समय से पानी की खरीद के लिए इस्राएल पर निर्भर रहती आई है. तालेब इस नये समझौते को राजनीतिक हिसाब-किताब बराबर करने के एक नये अवसर के रूप में देखते हैं क्योंकि जॉर्डन के पास अब इस्राएल को वापस बेचने के लिए एक बेशकीमती चीज है और इसके चलते उसे इस्राएल पर एक राजनीतिक बढ़त भी हासिल हुई है.
क्योंकि इस्राएल ने 2030 तक अपनी 30 फीसदी ऊर्जा का उत्पादन नवीनीकृत स्रोतों से करने का लक्ष्य निर्धारित किया है और उसके पास बड़े स्तर के सौर ऊर्जा संयंत्र लगाने के लिए पर्याप्त जगह भी नहीं है जबकि जॉर्डन के पास विशाल कड़क धूप वाली रेगिस्तानी जमीन है जो विशालकाय सौर ऊर्जा उपकरण लगाने के लिए बिल्कुल उपयुक्त है.
तालेब ने डीडबल्यू को बताया, "जॉर्डन अक्षय ऊर्जा का इलाकाई अड्डा बन सकता है. वह पूरे इलाके को अक्षय ऊर्जा बेच सकता है ना कि सिर्फ इस्राएल को. और कल्पना कीजिए- हमें तमाम जलवायु सुरक्षा हासिल हो रही है, तमाम आर्थिक फायदे भी देश को मिल रहे हैं.”
जलवायु परिवर्तन से जूझता इलाका
इस्राएल पहले ही जलवायु परिवर्तन को राष्ट्रीय सुरक्षा का मसला बता चुका है. ब्रोमबर्ग के मुताबिक ये चिंता निश्चित रूप से इस समझ से बनी होगी कि खतरा पूरे इलाके को है. ब्रोमबर्ग कहते हैं, "इस्राएल खुद को एक अंतरराष्ट्रीय भूमिका में देखना चाहता है, जलवायु मुद्दों पर और, विश्व नेता के तौर पर. उसे अंतरराष्ट्रीय बिरादरी को दिखाना भी है सो उन संकल्पों और प्रतिबद्धताओं का निर्वहन भी करना होगा.”
जलवायु परिवर्तन का गंभीर असर पहले ही इस्राएल और जॉर्डन के इर्दगिर्द समूचे मध्य पूर्व (पश्चिम एशिया) इलाके पर पड़ चुका है. तेल अवीव यूनिवर्सिटी में पर्यावरणीय अध्ययन के पोर्टर स्कूल के प्रमुख कोलिन प्राइस कहते हैं, "यह इलाका बाकी दुनिया की अपेक्षा तेजी से गरम हो रहा है. पिछले दो दशकों के दरमियान हमने देखा है कि समूचे भूमध्यसागर की तपिश में तेजी आई है और इस्राएल में भी. लिहाजा हमारी गर्मियां तो और गरम और लंबी होने लगी हैं.”
इस्राएल के मौसम विभाग के पेश किए हुए "एक गंभीर परिदृश्य” में इस सदी के अंत तक औसत तापमान में चार डिग्री सेल्सियस (7.2 डिग्री फारेनहाइट) की बढोतरी का आकलन किया गया है. उधर प्राइस के मुताबिक वृहद् भूमध्यसागरीय क्षेत्र में सदी के अंत तक बारिश में 20 फीसदी की गिरावट आ सकती है. वह कहते हैं, "यही तो हम कई देशों में देख रहे हैं- ग्रीस, इटली और स्पेन में. और इसकी वजह से जंगलों में आग की ज्यादा गंभीर घटनाएं होने लगी हैं.”
संयमित आशावाद की जरूरत
जॉर्डन भी हाल के वर्षों में ताजा पानी की आपूर्ति में भारी किल्लत से जूझ रहा है. राजधानी अम्मान में नागरिक अपनी छतों पर लगे टैंकों तक पानी पहुंचाने के आदी हो चुके हैं. याना अबु तालेब कहते हैं, "पूरा इलाका स्वाभाविक रूप से पानी की कमी का शिकार है. हमार पास बहुत सीमित सतही और भूजल संसाधन हैं और पानी की उपलब्धतता के मामले में इलाके के दूसरे देशों के बीच जॉर्डन सबसे गरीब देश है.”
लेकिन भारी कमी के और भी कारण हैं जैसे कि खराब जल-प्रबंधन और बढ़ती आबादी. पड़ोस के संघर्षरत देशों से हाल के वर्षों में करीब आठ लाख शरणार्थी जॉर्डन आ चुके हैं. देश के प्राकृतिक संसाधनों पर अतिरिक्त दबाव पड़ रहा है. पिछली गर्मियों में इस्राएल अपने पड़ोसी जॉर्डन को पानी की सालाना सप्लाई दोगुना कर पांच करोड़ घन मीटर सालाना करने पर सहमत हो गया था. और ये स्वागत-योग्य है. लेकिन नये समझौते के तहत उस मात्रा का चार गुना ही जॉर्डन में जा सकता है.
इस बीच रॉयटर्स समाचार एजेंसी की रिपोर्टों में बताया गया कि योजनागत प्रोजेक्ट को लेकर अम्मान में विरोध प्रदर्शन भड़क उठे थे क्योंकि एक तबका इस्राएल के साथ रिश्तों के "सामान्यीकरण” को नकारात्मक ढंग से ले रहा था. ऐसी रिपोर्टों के बावजूद ब्रोमबर्ग कहते हैं कि वो समझौते को लेकर सकारात्मक हैं- खासकर उसके कई हिस्से निजी सेक्टर के जिम्मे हैं और दान के पैसों पर निर्भर नहीं हैं.
ब्रोमबर्ग कहते है कि "दोनों पक्ष एक ही पायदान पर खड़े हैं, क्योंकि दोनों को एक-दूसरे से कुछ खरीदना भी है और कुछ बेचना भी है.” उनके मुताबिक पर्यावरणीय और राजनीतिक संदर्भों के लिहाज से भी "एहतियाती आशावाद के लिए अच्छी वजह है.” (dw.com)
ओमिक्रॉन वेरिएंट की वजह से नेपाल में एक बार फिर से कोरोना संक्रमण के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. स्वास्थ्य विशेषज्ञों को चिंता सताने लगी है कि ऐसे में हालात बेकाबू हो सकते हैं.
डॉयचे वैले पर लेखानंद पांडेय की रिपोर्ट-
नेपाल में कोरोना संक्रमण के मामले काफी तेजी से बढ़ रहे हैं. बीते मंगलवार को एक दिन में संक्रमण के 10,200 से ज्यादा मामले सामने आए. यह एक दिन में अब तक की सबसे बड़ी संख्या है. पिछले साल जब पूरी दुनिया में कोरोना वायरस का डेल्टा वेरिएंट तबाही मचा रहा था, तब मार्च 2021 में नेपाल में एक दिन में सबसे ज्यादा 9,300 मामले सामने आए थे. इस बार वह रिकॉर्ड टूट गया है.
राजधानी काठमांडू और आसपास के इलाके कोरोना वायरस के हॉटस्पॉट बन चुके हैं. सबसे ज्यादा मामले इन्हीं इलाकों से सामने आ रहे हैं. वायरोलॉजिस्ट का अनुमान है कि संक्रमण की सही संख्या रिपोर्ट किए गए आंकड़े से बहुत अधिक हो सकती है, क्योंकि कई सारे लोग जांच और इलाज के लिए अस्पताल नहीं आ रहे हैं. वायरोलॉजिस्ट का यह भी कहना है कि पिछले वेरिएंट की तुलना में ओमिक्रॉन वेरिएंट तेजी से लोगों को संक्रमित कर रहा है.
जनवरी की शुरुआत में, नेपाल के स्वास्थ्य विभाग की तरफ से जानकारी दी गई थी कि संक्रमण के कम से कम 22 फीसदी मामले ओमिक्रॉन वेरिएंट के थे. काठमांडू के सुकरराज ट्रॉपिकल हॉस्पिटल के क्लिनिकल रिसर्चर शेर बहादुर पुन ने डीडब्ल्यू को बताया कि यह आंकड़ा काफी ज्यादा हो सकता है. उन्होंने कहा कि अब यह पता लगाना मुश्किल हो रहा है कि आखिर इतनी तेजी से संक्रमण कैसे फैल रहा है, क्योंकि प्रयोगशालाओं में पूरी व्यवस्था नहीं है. इस वजह से यह साफ तौर पर पता नहीं चल पा रहा है कि तेजी से बढ़ते मामलों के लिए कौनसा वेरिएंट जिम्मेदार है. हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि नया वेरिएंट तेजी से फैल रहा है.
भारत से नेपाल पहुंचा ओमिक्रॉन
कोरोना वायरस से संक्रमित होने वाले लोगों की संख्या जनवरी के दूसरे सप्ताह से बढ़नी शुरू हुई. इससे पहले हर दिन एक सौ से भी कम लोग संक्रमित हो रहे थे. संक्रमित लोगों की संख्या काफी कम होने लगी थी. नेपाल के प्रमुख महामारी विज्ञानी कृष्ण प्रसाद पौडेल ने स्थानीय मीडिया को बताया कि संक्रमण की मौजूदा लहर पड़ोसी देश भारत में शुरू हुई. वहां तेजी से मामले बढ़े और इसके बाद यह नेपाल के सीमावर्ती इलाकों में पहुंचा. अब यह राजधानी काठमांडू तक पहुंच गया है.
हिमाल पत्रिका ने पौडेल के हवाले से लिखा, "ओमिक्रॉन वेरिएंट सामुदायिक स्तर पर फैल गया है. सीमावर्ती इलाकों के लगभग सभी लोग ओमिक्रॉन वेरिएंट की वजह से कोरोना वायरस से संक्रमित हुए." नेपाल और भारत के बीच 1,800 किलोमीटर लंबी सीमा रेखा है. हजारों लोग प्रतिदिन एक देश से दूसरे देश में आते-जाते हैं. भारत में हाल के दिनों में एक दिन में संक्रमण की दर दो लाख 27 हजार से ज्यादा तक पहुंच गई है.
महामारी विज्ञानी और रोग नियंत्रण के पूर्व निदेशक बाबूराम मरासिनी ने डॉयचे वेले को बताया कि दिसंबर महीने में आयोजित राजनीतिक सम्मेलनों की वजह से डेल्टा और ओमिक्रॉन दोनों वेरिएंट के मामले बढ़े.
स्थिति से निपटने के लिए तैयार हैं स्वास्थ्यकर्मी
दुनिया के अन्य देशों की तरह, नेपाल में भी ओमिक्रॉन वेरिएंट की वजह से स्वास्थ्य देखभाल से जुड़ी सेवाओं पर असर पड़ा है. डॉक्टर और अन्य स्वास्थ्यकर्मी भी कोरोना की चपेट में आ रहे हैं. काठमांडू में पांच सबसे बड़े सरकारी अस्पताल के 600 से ज्यादा स्वास्थ्यकर्मी हाल के हफ्तों में संक्रमित हुए हैं. डॉक्टरों ने एक बार फिर से आगाह किया है कि कोरोना संक्रमण के बढ़ते मामलों की वजह से इन अस्पतालों की सेवा प्रभावित हो सकती है. स्थानीय मीडिया में यह भी बताया गया है कि दवा की दुकानों में बुखार के लिए इस्तेमाल होने वाली पैरासिटामोल जैसी दवाओं की भी कमी है.
मरासिनी ने चेतावनी दी है कि ओमिक्रॉन वेरिएंट का लहर पिछले साल के मई के डेल्टा वेरिएंट की तरह खतरनाक साबित हो सकता है. देश की स्वास्थ्य प्रणाली प्रभावित हो सकती है. 2021 में नेपाल में एक दिन में संक्रमित होने वाले लोगों की संख्या 9,000 तक पहुंच गई थी और मौतों की संख्या 200 तक. ऑक्सीजन, अस्पताल में बेड और वेंटिलेटर की कमी सहित तुरंत इलाज न मिलने की वजह से सैकड़ों लोगों की मौत हो गई थी.
टीका लगवाना हुआ अनिवार्य
नई लहर को देखते हुए नेपाल की सरकार ने टीकाकरण को लेकर नया आदेश जारी किया है. इसमें कहा गया है कि 21 जनवरी से लोगों को सार्वजनिक कार्यक्रमों, रेस्तरां, होटल में जाने या हवाई जहाज से यात्रा करने से पहले यह साबित करना होगा कि उन्होंने टीका लगवा लिया है. अधिकारियों ने जनवरी के अंत तक सिनेमा घर, डांस बार, धार्मिक स्थल, सार्वजनिक पार्क और जिम जैसी जगहों को भी बंद कर दिया है. दुकानों में एक समय में 25 से ज्यादा लोगों को इकट्ठा होने की अनुमति नहीं है.
सरकार को महामारी से निपटने, टीकाकरण की धीमी रफ्तार, और सीमा पर जांच को लेकर पर्याप्त चौकसी न बरतने के लिए तीखी आलोचना का सामना करना पड़ रहा है. स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक, 18 जनवरी तक नेपाल के तीन करोड़ लोगों में से महज 40 फीसदी लोगों का ही पूरी तरह टीकाकरण हुआ है. जबकि, 53 फीसदी को अब तक एक खुराक लगी है. मरासिनी ने वैक्सीन-कार्ड नियम के आदेश पर सवाल उठाया है, क्योंकि अधिकांश आबादी को अभी तक पूरी तरह से टीका नहीं लगाया गया है. वह कहते हैं, "अगर हम अपनी आबादी के दो तिहाई लोगों का टीकाकरण कर चुके होते, तो ऐसा नियम लागू कर सकते थे. मौजूदा हालात में ऐसे नियमों का पालन करना मुश्किल है."
टीके की खुराक ‘गायब'
नेपाल ने जनवरी 2021 की शुरुआत में अपनी आबादी को टीका लगाना शुरू कर दिया था, लेकिन कुछ ही समय बाद टीकाकरण अभियान ठप हो गया क्योंकि टीके की पर्याप्त खुराक या सीरिंज नहीं थे. नेपाल के स्वास्थ्य सचिव रोशन पोखरेल ने डीडब्ल्यू को बताया कि आपूर्ति की कमी के कारण शुरुआती टीकाकरण अभियान में बाधा आई थी, लेकिन अब ऐसा नहीं है.
हालांकि, पोखरेल ने मंगलवार को एक संसदीय पैनल को बताया कि सरकारी स्टॉक से टीके की लगभग 25 लाख खुराक का हिसाब नहीं दिया जा सकता है. साथ ही, उन्होंने यह भी संकेत दिया कि इस खुराक का अवैध रूप से इस्तेमाल किया गया हो. उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया कि खुराक तक पहुंच रखने वाले लोगों द्वारा टीके का दुरुपयोग एक समस्या बन गया है. सरकार ने अभी तक टीके के दुरुपयोग की जांच नहीं की है. टीके की ये ज्यादातर खुराक देश ने खुद खरीदी थीं या अंतरराष्ट्रीय टीकाकरण अभियान के दौरान दान के तौर पर मिले थे.
एक ओर जहां देश की करीब आधी आबादी को अभी तक टीके की एक भी खुराक नहीं लगी है, वहीं दूसरी ओर पहुंच वाले लोगों ने बूस्टर शॉट भी ले लिए हैं. सरकार ने स्वास्थ्य क्षेत्र से जुड़े कर्मचारियों, सफाईकर्मियों, सरकारी अधिकारियों सहित फ्रंटलाइन वर्कर को बूस्टर शॉट देना शुरू कर दिया है. हालांकि, स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि इन खुराकों को उन लोगों के लिए प्राथमिकता दी जानी चाहिए जिनका अभी तक टीकाकरण नहीं हुआ है. (dw.com)
ऑब्स्टेट्रिक फिस्टुला एक ऐसी बीमारी बन गई है जिसकी वजह से महिलाओं की जिंदगी नर्क से भी बदतर हो रही है. इससे पीड़ित महिलाओं को तलाक, सामाजिक बहिष्कार और भेदभाव का सामना करना पड़ रहा है.
डॉयचे वैले पर एस खान की रिपोर्ट-
रेहाना कादिर दाद की उम्र 30 साल है. वह अपनी पढ़ाई पूरी कर पसंद की नौकरी करना चाहती थीं. हालांकि, तीसरे बच्चे के जन्म के दौरान ऑब्स्टेट्रिक फिस्टुला (प्रसूति नालव्रण) बनने की वजह से वह अपने सपनों को पूरा नहीं कर सकीं. दाद, पाकिस्तान के दक्षिणी सिंध प्रांत स्थित घोटकी के अली माहेर गांव की रहने वाली हैं. वह उन हजारों महिलाओं में से एक हैं जो ऑब्स्टेट्रिक फिस्टुला बनने से पीड़ित हुई हैं. यह एक वजायनल इंजरी है जो प्रसव के दौरान हो जाती है. इस इंजुरी की वजह से महिलाओं में योनी के जरिए पेशाब व मल लीक होने की समस्या हो सकती है.
इससे उन्हें शर्मिंदगी, स्वास्थ्य समस्याएं, सामाजिक अलगाव का सामना करना पड़ता है. आमतौर पर यह समस्या लंबे प्रसव या प्रसव में दिक्कत आने के दौरान यूरिनरी ट्रैक्ट या गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल ट्रैक्ट और जेनिटल ट्रैक्ट के बीच असमान्य गतिविधियों के कारण होती है. हालांकि इसका पूरी तरह इलाज संभव है. यह दर्द महिलाओं को सिर्फ शारीरिक रूप से ही प्रभावित नहीं करता बल्कि उन्हें परिवार और समाज से भी अलग कर देता है. पाकिस्तान में ऐसी महिलाओं को उनके घरों से निकाल दिया जाता है या सामाजिक रूप से बहिष्कृत कर दिया जाता है.
शादी बना ‘बुरा सपना'
पढ़ने की चाह रखने और अपनी जिंदगी में कुछ बड़ा करने का सपना संजोये दाद की शादी 2012 में कर दी गई थी. उन्होंने डॉयचे वेले को बताया कि आमतौर पर किसी की शादी उसकी जिंदगी में खुशी का सबसे बड़ा पल होता है, लेकिन उनके लिए यह ‘बुरा सपना' साबित हुआ. उन्होंने बताया कि उनका पति हमेशा उनका अपमान करता था. अक्सर उनके साथ हिंसा करता था. उन्होंने कहा कि वह पारिवारिक सम्मान के लिए अपने पति के दुर्व्यवहार को बर्दाश्त करती रहीं, लेकिन 2020 के नवंबर महीने में तीसरे बच्चे को जन्म देने के बाद उनकी जिंदगी नर्क से भी बदतर हो गई.
दाद ने बताया, "मेरी सर्जरी के समय काफी ज्यादा परेशानी हुई. मुझे स्थानीय अस्पताल में ले जाया गया था. यहां एक नर्स की गलती की वजह से मेरे शरीर से बहुत ही ज्यादा खून निकला. मुझे काफी ज्यादा दर्द हुआ. मुझे नहीं पता कि मेरे साथ क्या हुआ." दाद ने आगे कहा, "नर्स ने मेरे पति को मेरे बारे में बार-बार कहा कि उसे संक्रमण है और तुरंत किसी अच्छे डॉक्टर से दिखाने की जरूरत है. इसके बाद, मेरे पति ने मुझे अपमानित करना शुरू कर दिया. उसने मुझे पैर से मारा. मुझे नहीं पता था कि ऑब्स्टेट्रिक फिस्टुला क्या होता है, लेकिन मेरे गांव की एक महिला को भी यही समस्या थी."
क्या कहते हैं आंकड़े?
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, हर साल पूरी दुनिया में 50 हजार से एक लाख महिलाओं को ऑब्स्टेट्रिक फिस्टुला की समस्या का सामना करना पड़ता है. इस वजह से काफी महिलाएं बच्चे को जन्म देते समय अपनी जिंदगी गंवा देती हैं या बच्चे को खो देती हैं. जो महिलाएं इनसे बच जाती हैं उन्हें भी जिंदगी भर गंभीर स्वास्थ्यगत समस्याओं या शर्मिंदगी का सामना करना पड़ता है.
महिलाओं के स्वास्थ्य के प्रति होने वाली उदासीनता, इलाज में मदद में देरी आदि के प्रति जागरूकता पैदा करने के लिए हर साल 23 मई को ‘इंटरनेशनल डे टु एंड ऑब्स्टेट्रिक फिस्टुला' मनाया जाता है, ताकि इस समस्या की वजह से किसी भी महिला को परेशानी न उठानी पड़े. इसकी शुरुआत 23 मई 2013 को हुई थी.
महिलाओं के साथ भेदभाव
दाद ने कहा कि बहुत से लोग उन्हें शर्मिंदा करने लगे. वह कहती हैं, "मैं जहां भी जाती, लोग मुझे घूरने लगते थे. लोग मेरा मजाक उड़ाते थे, अपमानित करते थे और कहते थे कि मैं अब कभी बच्चे पैदा नहीं कर पाऊंगी. कोई भी मेरे करीब नहीं आना चाहता था. जब मेरे ससुराल वाले देखते थे कि मुझे पेशाब लीक हो रहा है, तो वे हंस पड़ते थे. दिन में कई बार मेरी सलवार और पैंट धोयी जाती थी."
दाद के पिता ने इस स्थिति में उनकी काफी मदद की. उन्हें इलाज कराने में साथ दिया. वह कहती हैं, "मेरे पिता मुझे इलाज के लिए सिंध और पंजाब ले गए. आने-जाने के दौरान बस के चालक गाली-गलौज और अपमान करते थे, लेकिन उन्होंने चुपचाप सब बर्दाश्त किया." दाद की इलाज करने वाली एक महिला डॉक्टर ने उन्हें आश्वस्त किया कि कराची के कूही गोथ महिला अस्पताल में इसका इलाज किया जा सकता है. इसके बाद, उनका परिवार उन्हें तुरंत कराची ले गया. मार्च 2021 में उनके ऑब्स्टेट्रिक फिस्टुला का ऑपरेशन हुआ.
दाद कहती हैं, "अब, मैं पूरी तरह स्वस्थ हूं और प्रसव में सहायता देनेवाली दाई का कोर्स कर रही हूं. मैं इस बीमारी के बारे में जागरूकता पैदा करना चाहती हूं." हालांकि, वह अभी भी इस बीमारी की कीमत चुका रही हैं. वह कहती हैं, "मेरे तीन बच्चे हैं, लेकिन मेरे पति ने उनमें से दो को छीन लिया है. मैं महीनों से अपने बच्चे को नहीं देख पाई हूं." जिस अस्पताल में दाद का इलाज किया गया था, उस अस्पताल में कार्यरत स्त्री रोग विशेषज्ञ और एंडोस्कोपिक सर्जन डॉ. सना अशफाक ने कहा कि वह ऐसी कठिनाइयों का सामना करने वाली कई पाकिस्तानी महिलाओं में से एक थी.
वह कहती हैं, "ऐसी महिलाएं जिनकी उम्र ज्यादातर 18 से 35 के बीच होती है, अक्सर परिवार से अलग हो जाती हैं. उन्हें तलाक दे दिया जाता है. साथ ही, उन्हें अपमानित किया जाता है, गालियां दी जाती हैं, और कई अन्य समस्याओं का सामना करना पड़ता है." अशफाक ने बताया कि इन महिलाओं के लिए यात्रा करना भी बुरा सपना बन जाता है, क्योंकि पेशाब लीक होने की वजह से कभी-कभी बस चालक उन्हें गाड़ी से उतार देते हैं.
बेघर हो जाती हैं महिलाएं
कराची की रहने वाली डॉक्टर शाहीन जफर ने डॉयचे वेले को बताया, "ऐसी महिलाओं को काफी ज्यादा ताने सुनने पड़ते हैं. लोग कहते हैं कि जरूर इसने (पीड़ित महिला) कोई पाप किया होगा या इसके अंदर कोई बुरी आत्मा है. पहले उनके पति उन्हें बिस्तर से और फिर घरों से बाहर निकाल देते हैं. महिलाओं के साथ ऐसी बीमारी के लिए भेदभाव किया जाता है जिसका आसानी से इलाज किया जा सकता है. समय पर इलाज कराने से यह बीमारी दूर हो सकती है."
अशफाक ने बताया कि इस स्थिति से सबसे ज्यादा पीड़ित वे महिलाएं हैं जो देश के दूर-दराज वाले इलाकों में रहती हैं और जिनके पास अस्पताल जाने के लिए पर्याप्त पैसे नहीं हैं. वह कहती हैं, "कूही गोथ अस्पताल में ऐसी महिलाओं का मुफ्त में इलाज होता है. वहीं, निजी अस्पतालों में इसकी शुरुआती जांच के दौरान 20 से 35 हजार रुपये और सर्जरी कराने में काफी पैसे खर्च हो सकते हैं. इन्हीं तमाम खर्च को देखते हुए, लोग फकीरों या झोलाछाप डॉक्टरों के पास जाते हैं. यहां स्थिति और खराब होने लगती है."
जफर का मानना है कि गांव की अप्रशिक्षित दाई भी इस समस्या को जटिल बनाने में जिम्मेदार हैं. वह कहती हैं कि इस बीमारी पर काफी कम शोध किया गया है. वह फिस्टुला फाउंडेशन के डेटा पर भरोसा करती हैं. इस संगठन का दावा है कि पाकिस्तान में हर साल ऑब्स्टेट्रिक फिस्टुला के लगभग 3,000 से 3,500 मामले सामने आते हैं. वह कहती हैं, "कूही में हम हर महीने 20 से 25 महिलाओं का ऑपरेशन करते हैं, लेकिन 22 करोड़ की आबादी वाले देश में सिर्फ यही एक अस्पताल है जहां इसका इलाज होता है." (dw.com)
आने वाले दशकों में शहरों की बढ़ती आबादी को देखते हुए लाखों घरों की जरूरत होगी. निर्माण सेक्टर ग्रीन हाउस गैसों का प्रमुख उत्सर्जक है, ऐसे में सीओटू में कटौती को लेकर उद्योग जगत के पास क्या उपाय हैं, ये सवाल उभरे हैं.
डॉयचे वैले पर नताली मुलर की रिपोर्ट-
जर्मनी के पर्यावरण मंत्रालय के अनुसार यहां निर्माण परियोजनाएं हर रोज 52 हेक्टेयर जमीन निगल रही हैं. ये फुटबॉल के 73 मैदानों के बराबर है. इन परियोजनाओं का एक बड़ा हिस्सा आवासों के साथ साथ उद्योग और वाणिज्य ठिकानों के निर्माण पर केंद्रित है. लगातार निर्माण, पर्यावरण पर भी असर डालता है- वो वन्यजीव रिहाइश, कृषि योग्य मिट्टी, कार्बन भंडारण और बाढ़ के पानी की निकासी को भी प्रभावित कर सकता है.
सरकार ने 2030 तक 30 हेक्टेयर नयी भूमि पर ही विकास की सीमा निर्धारित करने का फैसला किया है. इसी दौरान, सस्ते आवास की गंभीर किल्लत से निपटने के लिए हर साल उसने चार लाख नयी इकाइयों के निर्माण का संकल्प भी किया है. जर्मन सस्टेनेबेल बिल्डिंग काउंसिल में शोध और विकास की निदेशक आना ब्राउने के मुताबिक जलवायु संकट से जूझते हुए और शहरी आवास की मांग को पूरा करते हुए, जगह के समुचित इस्तेमाल के बारे में फिर से सोचे जाने की जरूरत भी है.
ग्रीन फेंस पॉडकास्ट पर उन्होंने डीडब्ल्यू को बताया, "पिछले 50 साल में हमने अपनी निजी स्पेस को दोगुना किया है. हमें अभी भी बड़ी जगहों का ही ख्याल आता है, परिवार के लिए निर्माण करने का, अगर बच्चे हैं तो आमतौर पर 20 साल के लिए ही ये ठिकाना इस्तेमाल होता है. और फिर सब इधर-उधर चले जाते हैं और कुछ और करने लगते हैं. मैं नहीं समझती कि यह भविष्य के लिए बहुत आकर्षक है.”
1960 में औसत जर्मन व्यक्ति के पास सिर्फ 19 वर्ग मीटर की लिविंग स्पेस हुआ करती थी. तीन दशक बाद वो स्पेस बढ़कर 34 वर्ग मीटर हो गई. और आज तीस साल और हो चुके हैं ये स्पेस 47 वर्गमीटर है. इसकी बहुत सी वजह हैं, जैसे कि संपत्ति का ऊंचा होता स्तर, ज्यादा से ज्यादा अकेले रहते लोग, और बूढ़ी होती आबादी क्योंकि उम्र के साथ अकेले रहने वालों का अनुपात बढ़ता जाता है. वरिष्ठ नागरिकों वाले घरों में अक्सर एक या दो लोग ही होते हैं और प्रति व्यक्ति औसत लिविंग स्पेस (60 वर्ग मीटर) युवा घरों (40 वर्गमीटर) के मुकाबले ज्यादा पाई जाती है.
ज्यादा स्पेस का मतलब है ज्यादा सीओटू
हमारे घरों का आकार महत्त्वपूर्ण है क्योंकि आमतौर पर जगह जितना ज्यादा होगी, उतना ज़्यादा निर्माण सामग्री की जरूरत होगी और गर्मी या ठंडक के लिए उतनी ही ज्यादा ऊर्जा की जरूरत होगी. ब्राउने कहती हैं, "प्रत्येक वर्ग मीटर की बचत का मतलब है आधा टन कार्बन उत्सर्जन में कटौती.” यूं समझिए कि यहां आधा टन सीओटू उत्सर्जन उतना ही है जितना की लंदन से सिंगापुर की एकतरफा उड़ान में प्रति यात्री होने वाला सीओटू उत्सर्जन.
जर्मनी में निर्माण से करीब 40 फीसदी ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन होता है. ऊर्जा के बेहतर इस्तेमाल और जलवायु अनुकूल सामग्रियों के इस्तेमाल से कार्बन फुटप्रिंट को कम किया जा सकता है. फिर भी ब्राउने कहती हैं कि जगह की भूमिका को लेकर और अधिक जागरूकता होनी चाहिए. उनके मुताबिक 47 वर्ग मीटर के बजाय 20-30 वर्ग मीटर जगह एक औसत व्यक्ति के लिए उपयुक्त होनी चाहिए.
यूरोपीय औसत की अपेक्षा जर्मनों के पास थोड़ा ज्यादा लिविंग स्पेस होती है. नाइजीरिया के लोगों की स्पेस का ये करीब आठ गुना ज्यादा है. उधर अमेरिका में यूरोपीय लोगों की स्पेस की करीब दोगुना स्पेस का दावा किया जाता है.
भविष्य में निर्माण की चुनौती
कार्बन उत्सर्जन पर काबू रखते हुए, दुनिया की बढ़ती हुई आबादी के लिए पर्याप्त आवास व्यवस्था मुहैया कराना आने वाले दशकों में एक बहुत बड़ी चुनौती बनने वाला है. इमारत और निर्माण के वैश्विक गठबंधन के मुताबिक 2060 में जितनी इमारतें अस्तित्व में आ जाने का अनुमान लगाया गया है, उनकी आधी अभी बनी भी नहीं हैं.
अगले 30 साल में और ढाई अरब लोग शहरों का रुख कर रहे होंगे, खासकर अफ्रीका और एशिया में. ब्राउने कहती हैं, "इसमें कोई शक नहीं है कि उन तमाम लोगों के लिए हमें जगह बनानी होंगी लेकिन अभी सवाल ये है कि वो हम कैसे करेंगे और कहां हम उन्हें मुहैया कराएंगे- न सिर्फ मकान बल्कि साफसुथरी जीवन स्थितियां भी.” वह कहती हैं कि शहरी आवास और स्पेस की कमी से निपटने की एक संभावना खुलती है साझेदारी यानी शेयरिंग में.
सह-आवास की अवधारणा का फिर से उदय
ब्रिटेन की न्यूकासल यूनिवर्सिटी में सोशल ज्यॉगफ्री की प्रोफेसर हेलेन जारविस ने ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन और दूसरे देशों में सह-आवास व्यवस्थाओं पर शोध किया है. कोहाउसिंग यानी सह-आवास एक ऐसी सामुदायिक व्यवस्था है जो बहुत सारे लोग या परिवार संयुक्त स्वामित्व और प्रबंधन में चलाते हैं. व्यक्तियों के पास अपनी निजी स्पेस विशेषतौर पर रहती है लेकिन वे सबके लिए उपलब्ध कॉमन एरिया का भी उपयोग कर सकते हैं जहां साझा सुविधाएं हैं जैसे कि लॉन्ड्ररी कक्ष, टूल वर्कशॉप या बैठक या डाइनिंग कक्ष.
जारविस कहती हैं, "मैं भविष्य को इस तरह देखती हूं कि वहां शेयरिंग का बुनियादी ढांचा होगा ना कि निजी स्वामित्व. जाहिर तौर पर सस्ती रिहाइश और पारिस्थितिकीय टिकाऊपन जैसी जरूरत को भी वहीं जगह मिलेगी.” वह कहती हैं कि सामूहिक रिहाइश उतनी ही पुरानी है जितना कि आवासीय व्यवस्था फिर भी आज इसमें एक नया उभार तो देखा ही जा रहा है.
छोटी छोटी जगहों का उपयोग
हाल के दशकों में जिस एक और प्रवृत्ति ने ध्यान खींचा है वो है- टाइनी हाउस मूवमेंट यानी लघु आवास आंदोलन. ये आंशिक रूप से पर्यावरणीय चिंताओं और सस्ते आवास की जरूरत से निकला है. बर्लिन स्थित वास्तुकार फान बो ले-मेंत्सेल ने टाइनी हाउस यूनिवर्सिटी नाम से एक एनजीओ 2015 में खोला था. मकसद था उसके दायरे में 10 वर्ग मीटर वाले छोटे छोटे, सस्ते घरों का निर्माण. भले ही वे मानते हैं कि आकार में कटौती एक अच्छा कदम है लेकिन उनका जोर इस बात पर भी है कि छोटी जगहें, समस्या का समाधान नहीं हैं.
ले-मेंत्सेल कहते हैं, "अगर आप जबरन या विवश होकर एक छोटी जगह में रहते हैं, तो कुछ ही समय में आप पागल हो सकते हैं. ” वह कहते हैं कि इसके बजाय, अपेक्षाकृत थोड़ा बड़े घर या सामुदायिक रिहाइश के साझेदारी वाले किसी बड़े घर के एक विस्तार के रूप में- ऐसे लघु घर उपयोगी हो सकते हैं. ले-मेंत्सेल का कहना है, "लेकिन अगर आप ये सुनिश्चित करना चाहते हैं कि सात अरब लोगों को एक सामुदायिक स्पेस मिल सके तो जाहिर है व्यक्तिगत स्पेस को तो छोटा होना ही होगा.”
अपेक्षाकृत छोटी जगहें सस्ती हो सकती हैं और उनसे सीओटू उत्सर्जन भी कम हो सकता है लेकिन ले-मेंत्सेल कहते है कि टाइनी हाउस मूवमेंट को गंभीरता से देखने की जरूरत हैः "छोटे घर के खरीदार अक्सर न सिर्फ एक बल्कि दो अपार्टर्मेंटों और बहुत सारे मकानों के मालिक होते हैं और इसके अलावा अपनी संपत्ति में वो एक प्यारा सा नन्हा घर भी जोड़ लेते हैं.”
मौजूदा इमारतों का दोबारा उपयोग भी, एक अविकसित जमीन को इस्तेमाल किए बिना घर बनाने का एक तरीका है. जर्मनी में डार्मश्टाट टेक्निकल यूनिवर्सिटी और एडुआर्ड पेस्टेल इन्स्टीट्यूट के एक अध्ययन के मुताबिक जर्मनी के अंदरूनी शहरी इलाकों में दफ्तरों, प्रशासनिक भवनों, दवा फैक्ट्रियों और पार्किंग गैरेजों के ऊपर मंजिलें बनाकर करीब 27 लाख अपार्टमेंट निकाले जा सकते हैं.
महामारी से उभरी अकेलेपन की समस्या
कोरोनावायरस की महामारी की वजह से इमारती और निर्माण सेक्टर से होने वाले सीओटू उत्सर्जन में वैश्विक गिरावट देखी गई है. इमारतों और निर्माण की वैश्विक हालात रिपोर्ट के मुताबिक 2007 से ऐसी गिरावट नहीं देखी गई थी. हालांकि माना जाता है कि ये मंदी ज्यादा दिन नहीं रहने वाली है.
प्रोफेसर जारविस कहती हैं कि पिछले दो साल में आवास के मायने बदले भी हैं. वह कहती हैं, "महामारी ने अकेलेपन पर वाकई रोशनी डाली है. अकेले रहते लोग, सामाजिक अलगाव और बूढ़ी होती आबादी- सह-आवास की अवधारणा पर फिर से नजर डालने के लिए एक बड़े उत्प्रेरक की तरह हैं.” उनके मुताबिक, "हमें एकल पारिवारिक रिहाइशों में ही नहीं रहना चाहिए जहां हम चार में से एक व्यक्ति- कई, कई सारे दशकों तक हर हाल में अकेला रहने वाला सिर्फ एक व्यक्ति होगा.” (dw.com)
पूरी दुनिया लीथिएम के भंडार खोज रही है. लेकिन सर्बिया में लीथिएम खनन के विरोध में ऐसे प्रदर्शन हुए कि सरकार को दिग्गज खनन कंपनी का बोरिया बिस्तर बांधना पड़ा.
डॉयचे वैले पर अलेक्स बैरी, ओंकार सिंह जनौटी की रिपोर्ट-
सर्बिया की प्रधानमंत्री अना बर्नाबिच ने लीथियम खनन योजना रद्द कर दी है. सरकार के साथ हुए समझौते के तहत दिग्गज खनन कंपनी रियो टिंटो को पूर्वी यूरोप के इस देश में सफेद सोना कहा जाने वाला लीथियम खोदना था.
खनन के विरोध में कई हफ्तों से प्रदर्शन हो रहे थे. हजारों प्रदर्शनकारी सड़कों पर आ रहे थे. चुनाव करीब आते ही सरकार को यह फैसला करना पड़ा. टेलीविजन पर देश को संबोधित करते हुए बर्नाबिच ने कहा, "हमने पर्यावरण संबंधी प्रर्दशनों की सभी मांगें पूरी कर दी हैं और सर्बिया गणराज्य में रियो टिंटो का काम खत्म कर दिया है."
कितनी बड़ी कंपनी है रियोटिंटो
रियो टिंटो 150 साल पुरानी एंग्लो-ऑस्ट्रेलियन कंपनी है. यह बहुराष्ट्रीय कंपनी खनन क्षेत्र की सबसे बड़ी कंपनियों में है. कंपनी ने 2020 में टैक्स चुकाने के बाद 10.4 अरब डॉलर का मुनाफा कमाया. लेकिन रियो टिंटो पर पर्यावरण को ताक पर रखने और दस्तावेजों में धांधली के आरोप भी लगते रहे हैं.
अफ्रीकी देश मोजाम्बिक के कोयला कारोबार के चलते रियो टिंटो पर अमेरिका में मुकदमा चल रहा है. 2017 में धांधली के आरोप में ब्रिटेन में भी कंपनी पर 2.74 करोड़ पाउंड का जुर्माना ठोंका गया.
रियो टिंटो के अनुमान के मुताबिक सर्बिया में इतना लीथियम भंडार है कि देश दुनिया के टॉप-10 लीथियम उत्पादकों में शामिल हो सकता है. कंपनी का दावा है कि सर्बिया की खदान हर साल 10 लाख इलेक्ट्रिक कारों के लिए बैटरी बनाने में मदद कर सकती है.
सर्बिया के लोजनिका इलाके में 2004 में रियो टिंटो ने लीथियम भंडार की खोज की. उसके साथ ही माइनिंग कंपनी ने वहां जमीन खरीद ली. कंपनी वहां 2.4 अरब डॉलर का निवेश कर लीथियम की खुदाई करना चाहती थी. लीथियम बीते 20 साल से दुनिया के सबसे अहम खनिजों में से एक है. अत्याधुनिक मशीनों के लिए लीथियम से ही बैटरी बनाई जाती है. लीथियम आयन बैटरी पर स्मार्टफोन, ड्रोन और इलेक्ट्रिक कारें भी निर्भर हैं.
प्रदर्शन की नौबत क्यों आई?
लीथियम के लिए सर्बिया की जिस जदार खदान की पहचान की गई, वहां 100 मीटर से 600 मीटर की गहराई तक लीथियम है. लेकिन खदान चालू चलने, स्टोरेज फैसिलिटी बनाने और लीथियम की सफाई के दौरान पैदा होने वाला कचरा कहां जाएगा, इसका ठोस प्लान न सरकार दे सकी, न कंपनी.
प्रदर्शनकारी लीथियम खनन के चलते होने वाले प्रदूषण को लेकर चिंतित थे. रियो टिंटो के साथ हुए समझौते के विरोध में प्रदर्शनकारियों ने कई अहम सड़कें बंद कर दी. राजधानी बेलग्राद समेत प्रदर्शन देश के कई इलाकों तक फैल गए.
सर्बिया यूरोप के सबसे प्रदूषित देशों में से एक है. 69.1 लाख की आबादी वाला सर्बिया यूरोपीय संघ का सदस्य बनना चाहता है, लेकिन ईयू के पर्यावरण संबंधी लक्ष्यों को पूरा करना आसान नहीं. कुछ अनुमानों के मुताबिक इन लक्ष्यों को हासिल करने के लिए अरबों यूरो खर्च होंगे.
प्रधानमंत्री के एलान के बावजूद प्रदर्शनकारी नरम नहीं पड़े हैं. वे सरकार से लीथियम के साथ साथ बोरैट खनन पर बैन लगाने की मांग कर रहे हैं. पीएम के टीवी संबोधन के बाद प्रदर्शन की अगुवाई करने वाले सावो मांजिलोविच ने ट्ववीट किया, "एक कदम और! हम मंजिल के करीब हैं."
चुनावी बादलों ने फिजा बदली
सर्बिया में अप्रैल में चुनाव हैं. सरकार का हृदय परिवर्तन इससे ठीक पहले हुआ है. सत्ताधारी सर्बियन प्रोग्रेसिव पार्टी (एसएनएस) ने शुरुआत में खनन नीति का समर्थन किया, लेकिन ऐसा करने के बाद से ही पार्टी की लोकप्रियता गिरती गई.
पुरुष टेनिस में दुनिया के नंबर एक खिलाड़ी नोवाक जोकोविच भी प्रदर्शनों का समर्थन कर रहे हैं. सर्बिया में बेहद लोकप्रिय जोकोविच ने दिसंबर में स्वच्छ हवा के समर्थन में बातें कीं.
प्रधानमंत्री बर्नाबिच ने पहले कहा कि लीथियम खदान पर फैसला चुनाव के बाद किया जाएगा, लेकिन गुरुवार को उन्हें कहना पड़ा कि, "हम अपने लोगों की आवाज सुन रहे हैं और यह हमारी जिम्मेदारी है कि अलग सोच रखने के बावजूद हम उनके हितों की रक्षा करें."
(रॉयटर्स, एएफपी, एपी)
आजतक ऐसा माना जाता था कि बॉडी के बाहर स्पर्म कुछ सेकंड्स या मिनट्स तक जिंदा रहते हैं. लेकिन अब जो खबर सामने आई है, उसे जानने के बाद शायद इस फैक्ट पर सवाल उठने लगेंगे. पलिस्तीन के एक आतंकवादी ने लोगों के साथ अपनी बीवी को जेल में बैठे-बैठे चार बार प्रेग्नेंट करने का तरीका बताया. इस दावे के बाद कई सवाल उठने लगे हैं. आतंकवादी का कहना है कि उसने जेल से टिफिन में अपना स्पर्म भेजकर अपनी बीवी को चार बार प्रेग्ननेंट किया.
पलिस्तीन के आतंकवादी रफत अल करावी ने एक टीवी चैनल को दिए इंटरव्यू में ये दावा किया. रफत बीते 15 साल से जेल में बंद था. लेकिन इस दौरान उसकी बीवी ने चार बच्चों को जन्म दिया. इन प्रेग्नेंसी को लेकर पलिस्तीन के आतंकवादी ने कहा कि ये चारों उसके ही बच्चे हैं. जब उससे पूछा गया कि जब वो जेल में बंद था तब उसकी बीवी कैसे प्रेग्नेंट हो गई तो उसने इसका शॉकिंग तरीका शेयर किया.
sperm smugglingजेल से स्मगल स्पर्म से पैदा हुए हैं 101 बच्चे
रफत का कहना है कि उसने जेल से चिप्स के पैकेट में भरकर अपना स्पर्म बीवी को दिया था. इसी स्पर्म को उसकी बीवी अपने अंदर डाल लेती थी, जिससे वो चार बार प्रेग्ननेंट हो पाई. पलिस्तीनी अथॉरिटी टेलीविजन को दिए इंटरव्यू में रफत ने ये दावा किया. वैसे तो स्पर्म कुछ ही देर तक बॉडी के बाहर जिंदा रहता आतंकवादी ने दावा किया कि जेल के अंदर से आतंकवादी इसी तरह प्लास्टिक की थैलियों में भरकर अपना स्पर्म बाहर स्मगल करते हैं. कैंटीन से कैदी अपने परिवार को पांच चीज भेज सकते हैं. इन्हीं चीजों में कैदी स्पर्म भी भेजते हैं.
sperm smugglingघर ले जाकर स्पर्म को बॉडी में डालती हैं महिलाएं
रफत ने आगे खुलासा किया कि जब सामान भेजने का समय आता था उसके कुछ ही सेकंड पहले वो स्पर्म निकाल प्लास्टिक में भरते हैं. इसके बाद प्लास्टिक पर मार्क किया जाता है कि किसमें किसका स्पर्म है. पलस्तीनी मीडिया के मुताबिक़, जेल से स्मगल हुए स्पर्म से अभी तक 101 बच्चे पैदा हो चुके हैं. हालांकि, मेडिकल एक्सपर्ट्स ने इसे नामुमकिन कहा है. वहीं जेल ने भी इस दावे को झूठा कहा है.
"इस्लामिक स्टेट" के लड़ाकों ने अपने साथियों को छुड़ाने के लिए सीरिया की अल-हसाका जेल पर हमला किया है. एक मानवाधिकार संगठन के मुताबिक आईएसआईएस के हमले के बाद कुछ कैदी भागने में सफल रहे.
सीरिया में कुर्द नेतृत्व वाली सीरियन डेमोक्रेटिक फोर्सेज (एसडीएफ) ने एक बयान में कहा कि स्वघोषित इस्लामिक आतंकवादी "इस्लामिक स्टेट" के लड़ाकों ने अपने साथियों को छुड़ाने के लिए जेल पर हमला किया. जेल चलाने वाले कुर्द बलों का कहना है कि भागने की कोशिश नाकाम कर दी गई.
एसडीएफ के मुताबिक उसने हमले को नाकाम कर दिया. जबकि यूके स्थित सीरियन ऑब्जर्वेटरी फॉर ह्यूमन राइट्स ने कहा कि "कई कैदी भागने में सफल रहे." एसडीएफ ने अपने बयान में किसी भी कैदी के भागने का जिक्र नहीं किया.
अमेरिका समर्थित एसडीएफ का कहना है कि आईएसआईएस से जुड़े "स्लीपर सेल के सदस्य... आसपास के क्षेत्र में घुसपैठ करने में कामयाब रहे हैं और उनके आंतरिक सुरक्षा बलों से भिड़ गए हैं." एसडीएफ ने यह भी कहा कि जेल से भागने की कोशिश को नाकाम कर दिया गया.
यह घटना घवेरन जेल के प्रवेश द्वार पर एक कार बम विस्फोट के साथ हुई, जो उत्तर-पूर्वी सीरिया में कुर्द अधिकारियों द्वारा नियंत्रित अर्ध-स्वायत्त क्षेत्र में आईएस लड़ाकों को रखने वाली सबसे बड़ी सुविधाओं में से एक है. कुछ अपुष्ट रिपोर्टों के मुताबिक एसडीएफ नियंत्रित जेलों से भागने के प्रयासों की एक नई लहर हमलों से पहले जेल के अंदर एक विद्रोह के साथ शुरू हुई, जिसमें कुछ कैदी मारे गए.
कुर्द नियंत्रित जेलों में आईएसआईएस कैदी
इन जेलों के प्रभारी कुर्द अधिकारियों के मुताबिक 50 से अधिक देशों के लोगों को विभिन्न जेलों में रखा गया है. इन जेलों में इस्लामिक स्टेट के 12,000 से अधिक संदिग्ध बंद हैं. बंदी फ्रांस से लेकर ट्यूनीशिया तक के देशों से हैं, लेकिन उन देशों के अधिकारी सार्वजनिक प्रतिक्रिया के डर से उन्हें वापस लेने से हिचक रहे हैं. कुछ बंदियों के रिश्तेदारों का यह भी आरोप है कि इन जेलों में किशोर और कई अन्य हैं जिन्हें या तो बहुत मामूली आरोप में या एसडीएफ बलों की भर्ती नीति की अवहेलना करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया.
एक समय था जब आतंकवादी संगठन इस्लामिक स्टेट ने सीरिया और इराक के बड़े क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया था, लेकिन फिर अमेरिका और अन्य देशों द्वारा समर्थित दोनों देशों के कुर्द बलों के साथ एक लंबे युद्ध के बाद इसका अधिकांश क्षेत्र आईएस से आजाद हुआ. लड़ाई के परिणामस्वरूप इस्लामिक स्टेट नेटवर्क से जुड़े बाकी लड़ाकों को उनके रेगिस्तानी गढ़ों में वापस धकेल दिया गया. हालांकि अब वे सीरियाई सरकार और गठबंधन सेना को परेशान करने के लिए वहां से हमले करना जारी रखते हैं.
एए/सीके (रॉयटर्स, एएफपी)
बीते कुछ सालों में पर्यटन के मकसद से अंतरिक्ष में जाने की होड़ शुरू हुई है. यही होड़ अब फिल्म उद्योग में शुरू हो सकती है. इसकी शुरुआत रूस ने की थी, जिसे टॉम क्रूज की फिल्म आगे बढ़ाने जा रही है.
डॉयचे वैले पर विशाल शुक्ला की रिपोर्ट
हॉलीवुड अभिनेता टॉम क्रूज की अगली स्पेस फिल्म के सह-निर्माता 'स्पेस एंटरटेनमेंट एंटरप्राइस' (SEE) ने धरती से चार सौ किलोमीटर ऊपर अंतरिक्ष में एक फिल्म स्टूडियो बनाने का एलान किया है. क्रूजअपनी इस फिल्म की शूटिंग अंतरिक्ष में करेंगे. कंपनी के मुताबिक उनकी योजना इसे दिसंबर 2024 तक तैयार करने की है.
SEE के इस स्टूडियो का नाम SEE-1 होगा, जो अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन (ISS) की व्यापारिक शाखा एक्सियम स्टेशन पर बनेगा. तैयार होने के बाद अन्य कंपनियां भी शूटिंग के लिए इसका इस्तेमाल कर सकेंगे, लेकिन SEE की योजना अपना कॉन्टेंट तैयार करने की भी है. 2028 में एक्सियम स्टेशन ISS से अलग हो जाएगा. एक्सियम ने इसी महीने व्यापारिक शाखा तैयार करने का ठेका हासिल किया है.
अंतरिक्ष में फिल्म बनाने में भी रेस
एक्सियम की योजना टॉम क्रूज और डायरेक्टर डग लीमन को इस साल फिल्म की शूटिंग करने के लिए ISS पर भेजने की है. ऐसा होता है, तो यह अंतरिक्ष में शूट होने वाली दूसरी फिल्म होगी. वैसे तो योजना यह थी कि यह अंतरिक्ष में शूट होने वाली पहली फिल्म होगी, लेकिन इसकी जानकारी आने के बाद रूसी फिल्म निर्माताओं ने 'द चैलेंज' नाम की एक फिल्म अंतरिक्ष में शूट की, जो यह तमगा हासिल करने वाली पहली फिल्म बन गई.
हालांकि, पहले टॉम क्रूज फिल्म की शूटिंग के लिए अक्टूबर 2021 में अंतरिक्ष में जाने वाले थे, बाद में यह योजना टल गई. कथित तौर पर इसकी वजह फिल्म का 20 करोड़ डॉलर का बजट बताया गया. रूसी फिल्म 'द चैलेंज' को अक्टूबर 2021 में ही ISS पर शूट किया गया था. इसकी शूटिंग 12 दिनों तक चली थी.
'द चैलेंज' एक सर्जन की कहानी थी, जो अंतरिक्ष में बीमार पड़े एक ऐसे अंतरिक्ष यात्री का ऑपरेशन करता है, जिसके पास बीमारी की वजह से धरती पर लौटकर इलाज कराने की गुंजाइश नहीं होती है. यह फिल्म इस साल के आखिरी में रिलीज होनी है.
नया नहीं है फितूर
वैसे डॉक्युमेंट्री फिल्मों में अंतरिक्ष में शूट हुए वीडियो का इस्तेमाल होना कोई नई बात नहीं है. ऐसी फुटेज ज्यादातर अंतरिक्ष यात्रियों द्वारा शूट किए हुए होते हैं. वहीं फिल्म निर्माता धरती पर भी जीरो ग्रैविटी और छोटी जगहों पर लंबे समय तक बंद रहने के डर और इससे उपजने वाली झल्लाहट का माहौल बनाकर फिल्में शूट कर चुके हैं.
इसी का एक उदाहरण 10 करोड़ डॉलर में बनी सैंड्रा बुलक और जॉर्ज क्लूनी की फिल्म 'ग्रैविटी' थी. इसने दुनियाभर में 70 करोड़ डॉलरसे ज्यादा कमाई की थी और सात ऑस्कर जीते थे. वर्षोंके रिसर्च पर आधारित इस फिल्म में दोनों अभिनेताओं ने अपना वजन महसूस न करते हुए शूटिंग की थी. उन्होंने अंतरिक्ष में होने वाले फ्री-फॉल का अनुभव भी किया था.
चिंताएं भी कम नहीं है
यह स्टूडियो तैयार करनेवाली कंपनी एक्सियम स्पेस टूरिज्म के क्षेत्र में भी काम करेगी. बीते कुछ बरसों से पर्यटन के मकसद से अंतरिक्ष में जाने की होड़ नए स्तर पर पहुंच गई है. एमेजॉन के मालिक जेफ बेजोस से लेकर टेस्ला के मुखिया एलन मस्क और वर्जिन गैलेक्टिक के रिचर्ड ब्रैनसन तक इस दिशा में काम कर रहे हैं. हालांकि, इस पर सवाल भी खूब उठते हैं.
आलोचक कहते हैं कि एक ओर दुनिया में तमाम लोग भुखमरी के शिकार हैं, दूसरी ओर कुछ लोग अथाह पैसा खर्च करके अंतरिक्ष में घूमने जा रहे हैं. पर्यावरण भी एक बड़ा मुद्दा है. एक रॉकेट लॉन्च किए जाने पर धरती के ऊपरी वायुमंडल में 300 टन कार्बन डाईऑक्साइड का उत्सर्जन होता है, जो वहां बरसों तक रह सकती है. रॉकेट से होने वाला कार्बन उत्सर्जन एयरक्राफ्ट इंडस्ट्री के मुकाबले कम जरूर है, लेकिन यह लगातार बढ़ रहा है.
रॉकेट से लेकर हवाई जहाज तक में जो ईंधन इस्तेमाल होता है, वह ओजोन परत को भी नुकसान पहुंचाता है. वहीं विशेषज्ञ बताते हैं कि स्पेस टूरिज्म की एक फ्लाइट से कार्बन डाई ऑक्साइड का जितना उत्सर्जन होता है, उतना कम आय वाला एक आम व्यक्ति पूरे जीवन में नहीं करता है. विशेषज्ञ चिंता जताते हैं कि अभी तो अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता कि स्पेस टूरिज्म इंडस्ट्री कितना बड़ा आकार लेने वाली है. (dw.com)
चीन में ऐसे गिनती के खिलाड़ी हैं, जिन्होंने सार्वजनिक तौर पर अपनी लैंगिकता को स्वीकार किया है.वहां एलजीबीटीक्यू खिलाड़ियों को तभी तक बर्दाश्त किया जाता है, जब तक वे इस बात को खुद तक सीमित रखें.
डॉयचे वैले पर श्टेफान नेस्टलर की रिपोर्ट
ली यिंग 'स्टील रोजेज' टीम में वापस आ गई हैं. चीन की राष्ट्रीय महिला फुटबॉल टीम की पहली नेशनल महिला कोच शुई किंगशिया ने 29 साल की स्ट्राइकर यिंग को भारत में आयोजित हो रहे एएफसी विमेन्स एशियन कप के लिए टीम में शामिल किया है.
पहली नजर में यह कोई बड़ी बात नहीं है. यिंग ने 2018 के टूर्नामेंट में पांच मैचों में सात गोल किए थे और गोल्डन बूट भी जीता था. 2019 में फ्रांस में हुए वर्ल्ड कप में स्टील रोजेज ने जो इकलौता गोल किया था, वह यिंग ने ही किया था. ग्रुप स्टेज के उस मैच में चीन ने दक्षिण अफ्रीका को 1-0 से हराया था.
लेकिन, चीन की राष्ट्रीय टीम के लिए खेले 100 मैचों में 30 गोल करने के बावजूद यिंग को पिछले साल टोक्यो ओलंपिक से पहले टीम से बाहर कर दिया गया था. कयास लगाए गए कि शायद इसके पीछे उनका अपनी पूरी असली पहचान जाहिर करना हो सकता है.
असली पहचान के साथ सामने आईं यिंग
ओलिंपिक के उद्घाटन समारोह से कुछ दिनों पहले यिंग ने एक पोस्ट लिखी थी, जो वायरल हो गई थी. इस पोस्ट में यिंग ने चीन के वीबो प्लेटफॉर्म पर इन्फ्लूएंसर चेन लीली के प्रति अपने प्रेम को सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया था. अपने रिश्ते की पहली सालगिरह पर उन्होंने लिखा था, "तुम मेरी सारी कोमलता की स्रोत हो और यह तुम्हारे लिए है".
इसके बाद चीन के चर्चित फुटबॉल पत्रकार और ब्लॉगर ने लिखा था, "यह कोई छिपी हुई बात नहीं है कि समलैंगिक भी महिला फुटबॉल टीम का हिस्सा हैं, लेकिन ली यिंग अपनी लैंगिकता और अपनी गर्लफ्रेंड को सार्वजनिक रूप से स्वीकारने की हिम्मत दिखाने वाली पहली खिलाड़ी हैं. मैं उनके इस साहस के लिए उन्हें बधाई देता हूं."
लेकिन यिंग को मिली सभी प्रतिक्रियाएं सकारात्मक नहीं थीं. कुछ तो बेहद होमोफोबिक यानी समलैंगिकों के प्रति घृणा और भय से भरी हुई थीं. यिंग के सोशल मीडिया पर उनका मेसेज पोस्ट करने के कुछ ही देर बाद यह गायब हो गया. क्या ऐसा किसी बाहरी दबाव में किया गया था?
'हां, मैं गे हूं'
चीन में जिन महिला और पुरुष खिलाड़ियों ने अपने समलैंगिक होने की बात सार्वजनिक रूप से स्वीकार की है, उनकी संख्या इतनी कम है कि उन्हें उंगलियों पर गिना जा सकता है. ली यिंग के बाद पिछले साल सितंबर में वॉलीबॉल टीम की स्टार सुन वेनजिंग ने अपना समलैंगिक होना स्वीकार किया. हालांकि, वह दो साल पहले ही अपने खेल जीवन से संन्यास ले चुकी थीं.
2018 में प्रोफेशनल सर्फर शू जिंगसेन चीन के पहले पुरुष खिलाड़ी थे, जिन्होंने गे होना स्वीकार किया था. उन्होंने तब पैरिस में आयोजित होने जा रहे गे गेम्स में हिस्सा लेने की इच्छा जाहिर करते हुए वीबो पर अपनी समलैंगिकता का एलान किया था. शू ने लिखा था, "हां, मैं गे हूं. हमें अपना प्रेम चुनने और प्रेम किए जाने का अधिकार है. लिंग, उम्र और त्वचा का रंग कोई बेड़ियां नहीं हैं." इसके साथ उन्होंने इंद्रधनुषी झंडे के आगे सर्फबोर्ड पर अपनी तस्वीरें साझा की थीं.
इसके बाद शू ने पैरिस में हुए खेलों में शिरकत की थी. अगले गे गेम्स 2022 में हांग कांग में होने थे, लेकिन कोरोना वायरस की वजह से इन्हें नवंबर 2023 तक के लिए आगे बढ़ा दिया गया है. ताइवान के गे खिलाड़ी पहले ही अपनी सुरक्षा का हवाला देते हुए इन खेलों में हिस्सा लेने से इनकार कर चुके हैं.
सोशल मीडिया अकाउंट ब्लॉक होना
2019 में ताइवान समलैंगिक शादियों को मान्यता देने वाला एशिया का पहला देश बन गया था, लेकिन चीन में इस पर प्रतिबंध है. यौन विविधता को सभी कम्युनिस्ट शासकों के दौर में बर्दाश्त किया जाता रहा है, लेकिन सिर्फ तभी तक, जब तक लोग अपनी लैंगिकता अपने तक सीमित रखें.
यौन विविधता को सार्वजनिक तौर पर जाहिर करने की किसी भी गतिविधि को विरोध का सामना करना ही पड़ता है. शंघाई प्राइड चीन के सबसे पुराने और बड़े एलजीबीटीक्यू आयोजनों में से एक था. इसमें साइकल से परेड निकाली जाती थी, लोग पैदल निकलते थे. पार्टियां और प्रदर्शनियां आयोजित की जाती थीं, लेकिन 2020 में इसे बंद कर दिया गया था.
इससे पहले भी ऐसे आयोजनों को सरकारी उत्पीड़न का सामना करना पड़ता रहा है. जुलाई 2021 में नागरिक मामलों के मंत्रालय ने सैकड़ों एलजीबीटीक्यू वेबसाइटों और सोशल मीडिया अकाउंट्स को बंद कर दिया था और हटा दिया था. इनमें से ज्यादातर यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाले लोग थे.
सरकारी अखबार 'ग्लोबल टाइम्स' के संपादक हू शीजिन ने सरकार के फैसलों का बचाव करते हुए अपने ब्लॉग में लिखा, "इस मुद्दे पर चीन का पूरी दुनिया में सिरमौर बनना नामुमकिन है. कुछ मामलों में हमारा रूढ़िवादी होना अपरिहार्य है और उचित भी है."
सतर्क हो गया है एलजीबीटीक्यूसमुदाय
प्रशासन का चाबुक देखते हुए एलजीबीटीक्यू समुदाय सावधान भी हो गया है. गुमनामी की शर्त पर चीन के एक एलजीबीटीक्यू ऐक्टिविस्ट डीडब्ल्यू से बातचीत में कहते हैं, "जब से प्रशासन ने कॉलेजों में एलजीबीटीक्यू अधिकारों का समर्थन करने वाले संगठनों पर डंडा चलाना शुरू किया है, तब से हम और ज्यादा सावधान हो गए हैं और एलजीबीटीक्यू से जुड़ा कोई कार्यक्रम आयोजित नहीं कर रहे हैं."
वह कहते हैं, "निश्चित तौर पर सरकार ने एलजीबीटीक्यू संगठनों पर अपना रुख और नियंत्रण कड़ा कर लिया है, लेकिन समुदाय के सदस्य इवेंट आयोजित करने का कोई न कोई रास्ता निकाल ही लेंगे. हम चीन के नए माहौल में खुद को ढाल रहे हैं. अब हम ज्यादा बुद्धिमानी से कदम उठा रहे हैं." (dw.com)
दार एस सलाम, 21 जनवरी | तंजानिया के स्वास्थ्य अधिकारियों ने कहा कि नए संक्रमणों को नियंत्रित करने के लिए कम से कम 200,000 अपंजीकृत एचआईवी रोगियों का पता लगाने की योजना है। समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, स्वास्थ्य, सामुदायिक विकास, लिंग, वरिष्ठ और बच्चों के मंत्री उम्मी मवालिमु ने कहा कि वर्तमान में तंजानिया में 1.7 मिलियन एचआईवी रोगी हैं, लेकिन केवल 1.5 मिलियन पंजीकृत हैं, जिनमें से 200,000 अपंजीकृत हैं।
म्वालिमु ने कहा कि हमें उन 200,000 अपंजीकृत एचआईवी रोगियों का पता लगाना है जो नए संक्रमणों के प्रसार में आसानी से योगदान दे सकते हैं।
उन्होंने कहा कि 200,000 एचआईवी रोगियों का पता उन परीक्षणों के माध्यम से लगाया जा सकता है जो कि गांव स्तर, वार्ड स्तर से जिला स्तर तक किए गए हो, और कहा कि सरकार का इरादा 2030 तक एचआईवी को खत्म करना है। (आईएएनएस)
सियोल, 21 जनवरी | सियोल में हजारों बौद्ध भिक्षुओं ने शुक्रवार को एक रैली की, जिसमें राष्ट्रपति मून जे-इन से मांग की गई कि वे सरकार के 'बौद्ध विरोधी पूर्वाग्रह' के लिए माफी मांगें। दरअसल, एक सत्तारूढ़ पार्टी के सांसद ने मंदिरों पर पर्यटकों से राष्ट्रीय उद्यानों में प्रवेश शुल्क इक्ठ्ठा करने का आरोप लगाया है। समाचार एजेंसी योनहाप की रिपोर्ट के अनुसार, सत्तारूढ़ डेमोक्रेटिक पार्टी के विधायक, जंग चुंग-राय, दक्षिण कोरिया के सबसे बड़े बौद्ध संप्रदाय जोग्ये ऑर्डर की आलोचनाओं के दौर से गुजर रहे हैं, क्योंकि उन्होंने सांस्कृतिक संपत्ति देखने के शुल्क इक्ठ्ठा करने वाले मंदिरों की तुलना एक प्रसिद्ध ठग से की है।
राष्ट्रीय उद्यानों में स्थित मंदिरों ने सभी पार्क के पर्याटकों से फीस में प्रति व्यक्ति 3,000-4,000 लिए हैं, चाहे वे मंदिरों में जाते हों या नहीं।
मंदिरों का तर्क है कि वे इस तरह की फीस के हकदार हैं क्योंकि पैसे का उपयोग मंदिर की संपत्ति और पार्कों के अंदर मंदिरों से संबंधित निजी क्षेत्रों की देखभाल के लिए किया जाता है।
मध्य सियोल में जोग्ये ऑर्डर के मुख्यालय में आयोजित शुक्रवार की रैली ने ध्यान आकर्षित किया क्योंकि यह ऐसे समय में आया जब राष्ट्रपति पद की दौड़ इस अटकल के बीच गर्म हो रही थी कि बौद्धों में सरकार विरोधी भावना सत्तारूढ़ पार्टी के उम्मीदवार ली जे-म्युंग की संभावनाओं को प्रभावित कर सकती है।
यह 28 वर्षों में पहली बार चिह्न्ति हुआ है कि जोग्ये ऑर्डर ने 1994 में संप्रदाय के सुधार के लिए आयोजित की गई रैली के बाद से बौद्ध भिक्षुओं के राष्ट्रीय सम्मेलन के नाम पर देश भर से मोंक की एक बड़ी रैली का आयोजन किया है।
रैली से पहले जारी एक बयान में, जोग्ये ऑर्डर और प्रतिभागियों ने राष्ट्रपति मून की माफी, बौद्ध धर्म के खिलाफ और धार्मिक पूर्वाग्रह को रोकने के लिए कानूनों के अधिनियमन और राष्ट्रीय विरासत को संरक्षित करने के उपायों के बारे में कहा है। (आईएएनएस)
जिनेवा, 21 जनवरी | विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के महानिदेशक ट्रेडोस एडनॉम घेब्रेयसस ने विश्व नेताओं को चेतावनी जारी करते हुए कहा है कि कोविड-19 महामारी 'कहीं खत्म नहीं हुई है।' बीबीसी ने बताया कि डब्ल्यूएचओ प्रमुख ने इस धारणा के खिलाफ आगाह किया कि नया प्रमुख ओमिक्रॉन वेरिएंट काफी हल्का है और इसने वायरस से उत्पन्न खतरे को समाप्त कर दिया है।
डब्ल्यूएचओ ने यह चेतावनी तब दी है, जब कुछ यूरोपीय देशों ने रिकॉर्ड नए मामले सामने आ रहे हैं।
जिनेवा में डब्ल्यूएचओ मुख्यालय में एक संवाददाता सम्मेलन के दौरान बोलते हुए, ट्रेडोस ने संवाददाताओं से कहा कि ओमिक्रॉन वेरिएंट के पिछले एक सप्ताह में दुनिया भर में 18 मिलियन नए संक्रमण सामने हैं।
उन्होंने कहा कि यह भ्रामक है कि यह एक हल्की बीमारी है।
उन्होंने कहा, "कोई गलती न करें, ओमिक्रान अस्पताल में भर्ती होने और मौतों का कारण बन रहा है।"
उन्होंने वैश्विक नेताओं को चेतावनी दी कि 'विश्व स्तर पर ओमिक्रॉन की अविश्वसनीय वृद्धि के साथ, नए वेरिएंट उभरने की संभावना है, यही वजह है कि ट्रैकिंग और मूल्यांकन महत्वपूर्ण हैं।"
उन्होंने कहा, "मैं कई देशों के बारे में विशेष रूप से चिंतित हूं, जहां टीकाकरण की दर कम है, क्योंकि लोगों को गंभीर बीमारी और मृत्यु का खतरा कई गुना अधिक होता है, यदि वे टीकाकरण नहीं करवाते हैं।"
डब्ल्यूएचओ के आपात निदेशक, माइक रयान ने भी चेतावनी दी है कि ऑमिक्रोन की बढ़ी हुई संचरण क्षमता से अस्पताल में भर्ती होने और मौतों में वृद्धि होने की संभावना है, खासकर उन देशों में जहां कम लोगों को टीका लगाया जाता है। (आईएएनएस)
चीन में 44 साल के यु की आपबीती माइग्रेंट कामगारों के संघर्ष को दिखाती है. बेहतर मौकों के लिए लोगों के पास बडे़ शहरों में आने के अलाव कोई रास्ता नहीं. लोग आर्थिक असमानता और संसाधनों के असमान वितरण पर भी सवाल उठा रहे हैं.
चीन की सोशल मीडिया पर इन दिनों अपने गुमशुदा बेटे की तलाश में जुटे एक मजदूर की आपबीती की बहुत चर्चा हो रही है. इस प्रकरण के चलते चीन में बढ़ रही आर्थिक असमानता और छोटे कस्बों और गांवों से शहर आने वाले कामगारों की जिंदगी पर बहस छिड़ी है.
क्या है मामला?
यह आपबीती है, 44 साल के यु की. वह मध्य चीन के हेनान प्रांत के रहने वाले मछुआरे हैं. पिछले साल वह राजधानी बीजिंग आए. यहां आने का मकसद था, अपने गुमशुदा बेटे यु युतोंग की तलाश करना. युतोंग चीन के उन 28 करोड़ प्रवासी कामगारों में से एक है, जो बेहतर मौकों की तलाश में बड़े शहर आ जाते हैं.
युतोंग भी काम की तलाश में घर छोड़कर बड़े शहर चला गए थे. वह रसोइये का काम करते थे. अगस्त 2020 से परिवार को युतोंग की कोई खबर नहीं है. अपने बेटे को खोजने के लिए यु ने कई शहरों और प्रांतों का चक्कर लगाया. इसी क्रम में वह राजधानी बीजिंग भी आए. यहां बेटे को खोजने के साथ-साथ गुजारा चलाने के लिए छोटे-मोटे काम करते रहे. कभी कचरा उठाया, तो कभी निर्माण स्थल पर सामान ढोया. यु पर छह लोगों का परिवार चलाने की जिम्मेदारी है. इनमें उनके लकवाग्रस्त पिता भी शामिल हैं.
यु की कहानी कैसे आई सामने?
चीन में ओमिक्रॉन वैरिएंट के मद्देनजर अतिरिक्त सावधानी बरती जा रही है. नए साल की छुट्टियों और विंटर ओलिंपिक के चलते कोरोना पर हाई अलर्ट है. इसी क्रम में 19 जनवरी को बीजिंग के अधिकारियों ने एक कोरोना केस की जानकारी दी. उन्होंने बताया कि 44 साल के एक आदमी को कोरोना पॉजिटिव पाया गया है. यह कोरोना संक्रमित व्यक्ति यु ही थे.
कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग करते हुए यु की हालिया गतिविधियां ट्रेस की गईं. ट्रेसिंग के दौरान पता चला कि वह शहर के अलग-अलग हिस्सों में खूब आते-जाते थे. कभी देर रात, कभी तड़के. तब पता चला कि यु अपने लापता बेटे को खोजते हुए इतना भटकते थे और इसी दौरान उन्हें कोरोना हुआ. ये जाने के बाद लोग भावुक हो गए.
लोगों की प्रतिक्रिया
सोशल मीडिया पर बड़ी संख्या में लोग यु के बारे में लिख रहे हैं. कई लोगों ने यु को 'काम की तलाश में जगह-जगह जाते लोगों के बीच सबसे मेहनती आदमी' बताया है. चीनी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 'वाइबू' पर यु से जुड़े हैशटैग को छह करोड़ से ज्यादा व्यू मिले. इसी संदर्भ में आर्थिक असमानता और माइग्रेंट आबादी की मुश्किलों को लेकर भी चर्चा होने लगी.
एक यूजर ने लिखा, "मुझे नहीं पता कि समान संपन्नता केवल खोखले शब्द हैं या नहीं, मगर हर मजदूर इज्जत से जिंदगी बसर कर सके, यह सुनिश्चित करना सरकार की जिम्मेदारी है." 2021 में चीन के राष्ट्रपति शी चिनपिंग ने समान संपन्नता का यह शब्द इस्तेमाल किया था. उन्होंने चीन में मौजूद आर्थिक असमानता का जिक्र करते हुए लोगों के लिए समान संपन्नता हासिल करने का लक्ष्य रखा था.
यु अब कहां हैं?
फिलहाल बीजिंग के एक अस्पताल में यु का इलाज हो रहा है. उन्होंने चाइना न्यूज वीकली को बताया, "मुझे नहीं लगता कि मुझपर तरस खाया जाना चाहिए. मैं बस अच्छे से अपना काम करना चाहता हूं. चुराना या लूटना नहीं चाहता हूं. मैं अपनी ताकत पर, अपने इन दो हाथों पर भरोसा करना चाहता हूं, ताकि मैं कुछ पैसे कमा सकूं और अपने बेटे को खोज सकूं."
बीजिंग न्यूज को दिए इंटरव्यू में यु ने बताया कि उनका बेटा इस साल 21 का हो जाएगा. उन्होंने बताया कि अगस्त 2020 में लापता होने से पहले उनके बेटे को आखिरी बार शानदोंग प्रांत के रोंगचेंग बस अड्डे पर देखा गया था. हालांकि यह इंटरव्यू बाद में डिलीट कर दिया गया. रोंगचेंग पुलिस ने स्थानीय पत्रकारों को बताया कि वह मामले की जांच कर रहे हैं.
एसएम/एनआर (रॉयटर्स)
इस्राएल और जर्मनी के राजदूतों ने कहा है कि होलोकॉस्ट से इनकार दुनिया भर में शांतिपूर्ण सहअस्तित्व के लिए खतरा है. उनकी अपील वानसे कांफ्रेंस की 80वीं वर्षगांठ पर आई है.
80 साल पहले इसी कांफ्रेंस में नाजियों ने यूरोप से यहूदियों का सफाया करने की चर्चा की थी. इस्राएल और जर्मनी ने संयुक्त राष्ट्र आम सभा से कहा है कि वह होलोकॉस्ट से किसी भी इनकार की निंदा करने और उसे खारिज करने के लिए आम सहमति से एक प्रस्ताव पारित करे. इस्राएल में जर्मनी की राजदूत सुजाने वासुम राइनर और उनके इस्राएली समकक्ष जेरेमी इसाचाराओफ ने न्यूयॉर्क में गुरुवार को आमसभा की बैठक से पहले एक संयुक्त अपील जारी की.
अपील में दोनों राजनयिकों की तरफ से लिखा गया है, "यह प्रस्ताव उन सभी देशों और समाजों के लिए उम्मीद की किरण होगा जो सहिष्णुता और विविधता के लिए खड़े होते हैं साथ ही जो समन्वय के लिए प्रयास करते हैं और यह समझते हैं कि होलोकॉस्ट को याद करना इस तरह के अपराध को दोबारा होने से रोकने के लिए जरूरी है."
जर्मन अखबार टागेसश्पीगल और इस्राएली अखबार मारीव ने उनकी अपील छापी है.
दोनों राजनयिकों ने कहा है कि होलोकॉस्ट से इनकार पीड़ियों और उनके वारिसों, यहूदियों पर हमला है और साथ ही "शांतिप्रिय समाजों और दुनिया भर में शांतिपूर्ण सहअस्तित्व पर भी."
यह अपील वानसे कांफ्रेंस की 80वीं वर्षगांठ के मौके पर की गई है. बर्लिन के पास वानसे झील के खिनारे एक विला में नाजी नेता इस कांफ्रेंस के लिए जमा हुए थे और यहीं उन्होंने यूरोप में चरणबद्ध तरीके से 1.1 करोड़ यहूदियों के हत्या पर चर्चा की थी.
संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव में यहूदीविरोधवाद की एकसमान परिभाषा तय करने और जागरुकता बढ़ाने के साथ ही शिक्षा में निवेश की बात कही गई है. इसमें यह भी आग्रह किया गया है कि सोशल मीडिया कंपनियां होलोकॉस्ट से इंकार के खिलाफ प्रभावी कदम उठाएं.
जर्मनी "कभी नहीं भूलेगा"
जर्मन विदेश मंत्री अनालेना बेयरबॉक ने कहा है कि 80 साल बीतने के बावजूद यह याद करना जरूरी है कि कैसे जर्मन राजनयिक नाजी अपराधों में संलिप्त हुए थे. बेयरबॉक का कहना है, "विदेश सेवा के जिन अधिकारियों ने नाजी सत्ता के अपराधों और नरसंहारों में अपनी सेवा दी वो भी पीड़ितों के कष्ट के लिए आरोपी हैं."
उन्होंने होलोकॉस्ट के पीड़ितों को याद किया और शपथ ली, "जर्मनी ने उनके साथ जो किया वो हम कभी नहीं भूलेंगे."
संयुक्त राष्ट्र आम सभा ने 27 जनवरी को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर होलोकॉस्ट के पीड़ितों को याद करने का दिन घोषित किया है. यह वो दिन है जब आउशवित्स कैंप से लोगों को आजादा कराया गया था. इसे अंतरराष्ट्रीय होलोकॉस्ट स्मृति दिवस भी कहा जाता है.
एनआर/आरपी (एपी, डीपीए, केएनए)
सत्तारूढ़ बीजेपी के एक सांसद का दावा है कि चीनी सैनिकों ने अरुणाचल प्रदेश से एक भारतीय किशोर का "अपहरण" कर लिया है. मामले पर भारतीय सेना ने चीनी सेना से संपर्क साधा है.
डॉयचे वैले पर आमिर अंसारी की रिपोर्ट-
अरुणाचल (पूर्व) से बीजेपी के सांसद तापिर गाओ ने 19 जनवरी को ट्वीट कर दावा किया कि चीनी सेना ने 17 वर्षीय लड़के मिराम टैरॉन को अगवा कर लिया है. उन्होंने अपने ट्वीट में लिखा, "मिराम टैरॉन को पीएलए ने मंगलवार को सियुंगला क्षेत्र के लुंगटा जोर इलाके से अगवा किया." गाओ ने लोअर सुबनसिरी जिले के मुख्यालय जिरो से फोन पर पत्रकारों को बताया कि भागने में सफल रहे टैरॉन के दोस्त जॉनी यायिंग ने पीएलए द्वारा अपहरण के बारे में अधिकारियों को सूचित किया.
किशोर को छुड़ाने की अपील
गाओ ने ट्वीट किया था, "चीनी पीएलए ने जिदो गांव के 17 साल के मिराम टैरॉन का अपहरण कर लिया है. 18 जनवरी को भारतीय क्षेत्र के अंदर से, लुंगटा जोर क्षेत्र जहां चीन ने 2018 में भारत के अंदर 3-4 किलोमीटर सड़क बनाई थी." यह सियुंगला क्षेत्र के तहत आता है.
बीजेपी सांसद गाओ ने अपने ट्वीट में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को टैग करते हुए कहा कि भारत सरकार की सभी एजेंसियों से अनुरोध है कि अपहृत किशोर को जल्द से जल्द रिहा कराया जाए.
भारतीय मीडिया में रक्षा सूत्रों के हवाले से कहा जा रहा है कि मिराम टैरॉन के लापता होने की घटना के संबंध में भारतीय सेना ने तुरंत पीएलए से संपर्क किया. पीएलए से उसके क्षेत्र में व्यक्ति का पता लगाने और उसे प्रोटोकॉल के मुताबिक वापस करने के लिए सहायता मांगी है.
विपक्ष के निशाने पर मोदी
कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने किशोर के कथित तौर पर अगवा होने पर केंद्र सरकार पर निशाना साधा है और प्रधानमंत्री मोदी को आडे़ हाथों लिया है. उन्होंने अपने ट्वीट में लिखा, "गणतंत्र दिवस से कुछ दिन पहले भारत के एक भाग्य विधाता का चीन ने अपहरण किया है- हम मिराम टैरॉन के परिवार के साथ हैं और उम्मीद नहीं छोड़ेंगे, हार नहीं मानेंगे. PM की बुजदिल चुप्पी ही उनका बयान है- उन्हें फर्क नहीं पड़ता!"
वहीं अरुणाचल प्रदेश में कांग्रेस के विधायक निनोंग एरिंग ने इस कथित अपहरण पर दुख जताया है और कहा है कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि चीनी सेना भारतीय क्षेत्र में घुसपैठ कर रही है. बताया जा रहा है कि घटना उस स्थान के पास हुई जहां से त्सांगपो नदी भारत में प्रवेश करती है. भारत ने अभी तक कथित अपहरण पर कोई टिप्पणी नहीं की है. इस संबंध में विभिन्न पत्रकारों द्वारा विदेश मंत्रालय से पूछे गए सवालों पर कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है.
जिस क्षेत्र से किशोर लापता हुआ है, वह वही इलाका है जहां 2018 में चीनी और भारतीय सेनाओं के बीच सड़क निर्माण को लेकर विवाद हुआ था. इससे पहले सितंबर 2020 में पीएलए ने ऊपरी सुबनसिरी जिले से पांच लड़कों का अपहरण कर लिया था. हालांकि एक हफ्ते बाद सेना के दखल के बाद उनको रिहा किया गया था.
चीन अरुणाचल प्रदेश पर अपना दावा करता आया है, बीजिंग का कहना है कि यह दक्षिणी तिब्बत क्षेत्र का हिस्सा है. भारत ने हमेशा से इस दावे का खंडन किया है और प्रदेश को भारत का अभिन्न अंग बताया है.
यह घटना ऐसे समय में हुई है जब पूर्वी लद्दाख में भारतीय सेना और पीएलए के बीच सैन्य गतिरोध अप्रैल 2020 से जारी है. इस गतिरोध को हल करने के लिए दोनों देशों के बीच राजनयिक और सैन्य स्तर पर अब तक कई बैठकें हो चुकी हैं, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला है.
सेना प्रमुख जनरल एम एम नरवणे ने पिछले दिनों कहा था कि भारतीय सेना पूर्वी लद्दाख में चीन की पीपल्स लिबरेशन आर्मी के साथ दृढ़ता एवं मजबूत तरीके से निपटना जारी रखेगी और वह क्षेत्र में सर्वोच्च स्तर की अभियान संबंधी तैयारियां रख रही है.
(dw.com)
पहाड़ों पर बर्फ ज्यादा जम जाए, तो उसके गिरने से भारी नुकसान हो सकता है. देखिए कनाडा ने इसके लिए क्या रास्ता निकाला है.
ब्रिटिश कोलंबिया प्रांत में हिमस्खलन रोकने और तमाम रास्तों को बंद होने से बचाने के लिए कनाडा अब बम गिराकर बर्फ तोड़ने की कोशिश कर रहा है. पिछले कई दशकों में यह पहला मौका है, जब कनाडा के इस प्रांत में ठंड इतनी ज्यादा है कि बर्फ बेहद मोटी और सख्त हो गई है. इसकी वजह से यहां हिमस्खलन की आशंका पैदा हो गई है.
ब्रिटिश कोलंबिया कनाडा के सबसे पश्चिमी हिस्से में बसा प्रांत है. यह प्रशांत महासागर और उसके करीब की पर्वत श्रृंखला के सबसे नजदीक है. यहां ग्लेशियर भी हैं. बर्फ इतनी ज्यादा होती है कि लोग हाइकिंग करते हैं, स्कीइंग करते हैं. 2010 में यहां विंटर ओलिंपिक भी हो चुके हैं. अब इस इलाके में कनाडा को कुछ बड़े कदम उठाने पड़ रहे हैं.
क्यों जरूरत पड़ रही है इसकी?
साल 2021 में ब्रिटिश कोलंबिया को कई प्राकृतिक समस्याओं का सामना करना पड़ा था. पहले तो यहां रिकॉर्ड-तोड़ लू दर्ज की गई. जंगलों में आग लग गई थी. फिर अप्रत्याशित बारिश की वजह से हाइवे क्षतिग्रस्त हो गए थे, जिससे वैंकूवर का बाकी देश से संपर्क टूट गया था. वैंकूवर कनाडा का प्रमुख शहर है, जहां देश का व्यस्ततम बंदरगाह है. यह कनाडा की तीसरी सबसे ज्यादा आबादी वाला प्रांत है.
अब यहां सड़कों को सुरक्षित रखने के मकसद से हेलिकॉप्टर के जरिए बम गिराए जाएंगे. रिमोट से होने वाले धमाकों का इस्तेमाल किया जाएगा और कनाडा की सेना की ओर से हॉओइत्जर बंदूक का भी इस्तेमाल किया जाएगा. हालांकि, अब भी हो रहे हिमस्खलन की वजह से वैंकूवर जाने के अहम रास्ते बार-बार बाधित हो रहे हैं.
बर्फ में आने लगी हैं दरारें
वेदर नेटवर्क चैनल के अनुसार इस महीने की शुरुआत में ब्रिटिश कोलंबिया के ऊंचे पहाड़ों पर जमी स्नोपैक यानी मोटी बर्फ औसत से 15 फीसदी ज्यादा थी. स्नोपैक उस बर्फ को कहते हैं, जो अपने ही वजन से दबती जाती है और इसकी वजह से बेहद सख्त और भारी हो जाती है. बीते कुछ वक्त से यहां ठंड भी ज्यादा पड़ रही है.
नवंबर में यहां मूसलाधार बारिश हुई थी. फिर दिसंबर के आखिर में ठंड बहुत ज्यादा हो गई. जनवरी की शुरुआत में बर्फ पिघलने भी लगी थी. इन सबकी वजह से पर्वतों पर जमी बर्फ में दरारें आने लगी हैं. ऐसे में जो सीधे और ऊंचे पहाड़ खड़े हैं, उन पर जमी बर्फ के गिरने की आशंका बढ़ गई है. दिक्कत यह है कि यह बर्फ नीचे घाटी में कभी भी गिर सकती है और कोई इसका अनुमान भी नहीं लगा पाएगा.
वेदर नेटवर्क के मौसम विज्ञानी टाइलर हैमिल्टन बताते हैं, "इस साल पतझड़ और ठंड का मौसम बेहद अप्रत्याशित और अस्थिर रहा है. हमने दिसंबर में ब्रिटिश कोलंबिया के कई इलाकों में भारी हिमस्खलन की चेतावनी जारी की थी. हालांकि, अंदरूनी इलाकों में यह खतरा अब भी बरकरार है."
किन हिस्सों में होंगी गतिविधियां?
एवेलांच (हिमस्खलन) कंट्रोल मिशन का काम यह है कि जब टीम पर्वतों पर जमा सख्त बर्फ के छोटे-छोटे हिस्सों को विस्फोटकों की मदद से तोड़कर नीचे गिराए, तो वे उस समय हाइवे के उन हिस्सों को बंद रखें, जहां लोग मौजूद हो सकते हैं. बर्फ गिराने का मकसद यह है कि वह सख्त, मोटी और वजनी होकर इतनी अस्थिर न हो जाए कि बहुत बड़े हिस्से में टूटकर नीचे गिरने लगे. मिशन में सैनिक भी शामिल किए जाते हैं.
ब्रिटिश कोलंबिया के परिवहन और बुनियादी ढांचा मंत्रालय के मुताबिक इस साल सर्दियों में फ्रेजर घाटी से गुजरने वाले हाइवे 1 के एक हिस्से में बीते 25 बरसों में पहली बार मानवीय रूप से हिमस्खलन कराने की जरूरत पड़ी है. हाइवे 99 के पास इस साल औसत से तीन गुना ज्यादा एवेलांच कंट्रोल गतिविधियों की जरूरत पड़ी है, क्योंकि इस बार हिमस्खलन का असर हाइवे तक पर पड़ने लगा था.
वीएस/एमजे (रॉयटर्स)
बीते सालों से ताइवान के प्रति चीन की आक्रामकता बढ़ी है. चीन ताइवान को कूटनीतिक स्तर पर अलग-थलग करने की कोशिश में है. चीन के साथ संघर्ष की आशंका के बीच ताइवान अपनी सुरक्षा बढ़ा रहा है. उसका सबसे करीबी सहयोगी अमेरिका है.
ताइवान के उपराष्ट्रपति लाइ चिंग ते उर्फ विलियम लाई अगले हफ्ते अमेरिका जाएंगे. वह होंडूरास की अपनी यात्रा के दौरान अमेरिका जाकर वहां नेताओं से बातचीत करेंगे. 20 जनवरी को राष्ट्रपति के दफ्तर ने यह जानकारी दी.
ताइवान और चीन के बीच बढ़े तनाव के बीच विलियम लाई की यह यात्रा अहम होगी. चीन हमेशा से ही अपनी 'वन चाइना पॉलिसी' के तहत ताइवानी लीडरों के अमेरिका जाने पर सख्त आपत्ति जताता आया है.
क्या है चीन और ताइवान के संबंधों का इतिहास?
चीन, ताइवान को अपना भूभाग मानता है. दोनों देशों के बंटवारे का अतीत चीनी गृह युद्ध से जुड़ा है. गृह युद्ध में माओ की कम्युनिस्ट पार्टी चीन की तत्कालीन सत्ताधारी क्यूमिनतांग पार्टी और उसके लीडर च्यांग काई शेक से लड़ रही थी.
1949 में कम्युनिस्ट धड़े को जीत की तरफ बढ़ते देखकर च्यांग काई शेक चीन की मुख्यभूमि से भागकर ताइवान आ गए थे. उन्होंने ताइवान का नाम 'रिपब्लिक ऑफ चाइना' रखा. च्यांग का दावा था कि वह चीन के वैध शासक हैं. उधर कम्युनिस्ट पार्टी ने गृह युद्ध में अपनी जीत के बाद सत्ता संभाली और देश का नाम रखा, पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना.
ताइवान में लोकतंत्र मजबूत हुआ
आगे चलकर ताइवान में लोकतंत्र की मांग उठी. 1996 में यहां पहली बार निष्पक्ष चुनाव हुए. साल 2000 में हुए चुनाव में क्यूमिनतांग पार्टी की जगह 'डेमोक्रैटिक प्रोग्रेसिव पार्टी' (डीपीपी) सत्ता में आई.
क्यूमिनतांग पार्टी जहां चीन और ताइवान के एकीकरण की समर्थक थी, वहीं डीपीपी ताइवान को स्वतंत्र और संप्रभु देश मानती थी. वह ताइवान और चीन के एकीकरण का समर्थन नहीं करती थी. आगे के सालों में ताइवान में अलग अस्तित्व और स्वतंत्र पहचान का मुद्दा जोर पकड़ता गया.
वन चाइना पॉलिसी
चीन की कम्युनिस्ट सरकार ताइवान के इस रुख का विरोध करती है. अपनी 'वन चाइना पॉलिसी' के तहत चीन कहता है कि ताइवान के किसी और देश के साथ कूटनीतिक संबंध नहीं हो सकते हैं. ताइवान इसका विरोध करता है.
वहां 2016 और 2020 के राष्ट्रपति चुनावों में भी चीन का मुद्दा सबसे अहम रहा था. इन चुनावों में डीपीपी को मिली जीत को ताइवान के स्वतंत्र अस्तित्व पर जनता की मुहर के तौर पर देखा गया.
अमेरिका-ताइवान के रिश्ते
ताइवान में मजबूत हो रही स्वतंत्र अस्तित्व की मांगों के बीच पिछले कुछ सालों से चीन लगातार दबाव बढ़ा रहा है. ताइवान का कहना है कि चीन आक्रामकता दिखाकर और शक्ति प्रदर्शन करके उससे अपनी संप्रभुता मनवाना चाहता है. चीन की बढ़ती आक्रामकता के चलते ताइवान की सुरक्षा चिंताएं बढ़ी हैं. अनुमान है कि उपराष्ट्रपति विलियम लाई सुरक्षा से जुड़ी चिंताओं पर बातचीत के लिए ही अमेरिका जा रहे हैं.
ताइवान और अमेरिका के बीच आधिकारिक कूटनीतिक रिश्ते नहीं हैं. मगर अमेरिका उसका सबसे मजबूत सहयोगी है. वह ताइवान को हथियारों की भी आपूर्ति करता है. चीन, अमेरिका और ताइवान के रिश्तों का विरोधी है. वह ताइवान को अपने और अमेरिका के बीच का सबसे संवेदनशील मुद्दा बताता है.
होंडूरास और ताइवान के संबंध
चीन की 'वन चाइना पॉलिसी' के चलते केवल 14 देशों के ताइवान के साथ आधिकारिक संबंध हैं. होंडूरास इनमें से एक है. हालांकि यह रिश्ता अभी नाजुक स्थिति में है. इसी के मद्देनजर विलियम लाई होंडूरास की यात्रा पर जा रहे हैं.
वह होंडूरास के नए राष्ट्रपति सिओमारा कास्त्रो के शपथ ग्रहण कार्यक्रम में शरीक होंगे. ताइवान सरकार ने कहा है कि वह कास्त्रो के साथ मिलकर होंडूरास के साथ अपने संबंध प्रगाढ़ करना चाहता है. मगर आशंका है कि कास्त्रो शायद ताइवान का साथ छोड़कर चीन के खेमे में चले जाएं.
निकारागुआ ने ताइवान ने रिश्ते तोड़ लिए थे
चीन ताइवान के सीमित कूटनीतिक संबंधों को खत्म करवाने की कोशिश कर रहा है. उसने कहा है कि वह ताइवान के कूटनीतिक सहयोगियों की संख्या शून्य करना चाहता है. दिसंबर 2021 में निकारागुआ ने ताइवान के साथ अपने कूटनीतिक रिश्ते तोड़ लिए थे.
इसके बाद जनवरी 2022 की शुरुआत में चीन ने निकारागुआ में अपना दूतावास खोल दिया. होंडूरास के राष्ट्रपति सिओमारा कास्त्रो ने भी ताइवान से रिश्ते तोड़कर चीन के साथ जाने के संकेत दिए हैं.
एसएम/एनआर (रॉयटर्स)
संयुक्त राष्ट्र ने बीते दिनों जर्मनी की पूर्व चांसलर अंगेला मैर्केल के सामने एक जिम्मेदारी का प्रस्ताव रखा था, जिसे उन्होंने ठुकरा दिया. उन्होंने रिटायरमेंट के बाद की योजनाओं के बारे में भी ज्यादा कुछ नहीं बताया.
संयुक्त राष्ट्र के महासचिव अंटोनियो गुटेरेश ने जर्मनी की पूर्व चांसलर अंगेला मैर्केल के सामने एक जिम्मेदारी का प्रस्ताव रखा था, जिसे मैर्केल ने अस्वीकार कर दिया है. यह जानकारी बुधवार को मैर्केल के दफ्तर और संयुक्त राष्ट्र के सूत्रों की ओर से दी गई.
मैर्कल के दफ्तर की ओर से दी गई जानकारी में कहा गया है, "मैर्केल ने पिछले सप्ताह संयुक्त राष्ट्र के महासचिव से मुलाकात की थी. मैर्केल ने यह प्रस्ताव दिए जाने के लिए शुक्रिया अदा किया और जानकारी दी कि वह अभी यह जिम्मेदारी स्वीकार नहीं कर पाएंगी."
क्या जिम्मेदारी की गई थी ऑफर?
संयुक्त राष्ट्र के सूत्रों के मुताबिक गुटेरेश ने मैर्केल के सामने 'वैश्विक सार्वजनिक सामग्री' पर संयुक्त राष्ट्र की एक शीर्ष समिति की अध्यक्षता करने का प्रस्ताव रखा था. यह सलाहकार समिति संयुक्त राष्ट्र की अहम सुधार परियोजनाओं में से एक है, जिसका प्रस्ताव गुटेरेश ने संयुक्त राष्ट्र में अपने दूसरे कार्यकाल में रखा था. इसकी शुरुआत जनवरी से हुई है.
समिति सार्वजिनक रूप से इस्तेमाल होने वाले उन सामानों और दूसरी चीजों को चिह्नित करेगी, जहां बेहतर संचालन की सबसे ज्यादा जरूरत है. जर्मनी के मीडिया में संयुक्त राष्ट्र के सूत्रों के हवाले छपी खबरों की मुताबिक यह समिति अपनी ओर से विकल्प भी सुझाएगी कि जरूरत वाली जगहों पर कैसे बेहतर संचालन हो सकता है.
वैश्विक सार्वजनिक इस्तेमाल की चीजों में ओजोन परत, वैक्सीन और वैश्विक व्यापार जैसी चीजें शामिल हैं.
रिटायरमेंट के बाद मैर्कल की योजना
16 साल तक जर्मनी के चांसलर की जिम्मेदारी संभालने के बाद 67 साल की मैर्केल ने अपने चौथे कार्यकाल के आखिरी साल राजनीति से संन्यास ले लिया. वह पिछले साल सितंबर में हुए आम चुनावों में नहीं खड़ी हुईं. इस चुनाव में सोशल डेमोक्रेट नेता ओलाफ शॉल्त्स ने जीत हासिल की थी.
हालांकि, अपना पद छोड़ने से पहले भी मैर्केल ने अपनी सियासी जिम्मेदारियों को छोड़कर निजी जिंदगी के बारे में कुछ नहीं बताया. रिटायरमेंट के बारे में पूछे जाने पर भी उन्होंने अपनी योजनाएं जाहिर नहीं की. एक जर्मन पत्रिका के मुताबिक मैर्केल इन दिनों लंबे समय तक अपने सहयोगी रहे बीट बाउमन के साथ अपने राजनीतिक संस्मरण पर काम कर रही हैं.
बाउमन से बातचीत के आधार पर पत्रिका ने लिखा है कि इस संस्मरण में मैर्केल की पूरी जिंदगी के बारे में जानकारियां दर्ज नहीं होंगी, बल्कि मैर्केल अपनी सियासी फैसलों के बारे में अपने शब्दों में कुछ बातें बताएंगी और जीवन के अपने सफर के बारे में कुछ बातें दर्ज करेंगी.
वीएस/एनआर(डीपीए, रॉयटर्स)
बीजिंग. रूस ने एंटी-सैटेलाइट मिसाइल परीक्षण से अपने ही एक सैटेलाइट को 1500 टुकड़ों में बदल दिया था. इस कार्रवाई से उसे अंतरराष्ट्रीय समुदाय की नाराजगी झेलनी पड़ रही है. अब चीन अंतरिक्ष एजेंसी ने बताया कि रूस के पुराने सैटेलाइट के मलबे से चीन की सैटेलाइट की टक्कर होते होते बची. इसके लिए चीन के वैज्ञानिकों ने कड़ी मशक्कत की और इस टक्कर को नाकाम किया. अंतरिक्ष के मलबों पर निगाह रखने वाली संस्था चाइना नेशनल स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन ने कहा कि इस मलबे से भविष्य में खतरा बना रहेगा.
चाइना नेशनल स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन ने कहा कि सिंघुआ साइंस सैटेलाइट, 14.5 मीटर लंबे अंतरिक्ष मलबे की टक्कर से बाल-बाल बची है. इस टक्कर से अंतरिक्ष में मौजूद दूसरी सैटेलाइटों को भी गंभीर खतरा पैदा हो सकता था. सरकारी मीडिया ने बताया कि नवंबर में रूस के एंटी-सैटेलाइट मिसाइल परीक्षण के नतीजे के बाद छोड़े गए मलबे के 1500 टुकड़ों में से एक की चीनी उपग्रह की निकट टक्कर हो सकती थी. मॉस्को ने नवंबर में एक मिसाइल परीक्षण में अपने पुराने उपग्रहों में से एक को उड़ा दिया था. इससे पृथ्वी की कक्षा के चारों ओर अंतरिक्ष मलबे बिखर गया था. इसके कारण अंतरराष्ट्रीय समुदाय उससे नाराज है. अमेरिकी अधिकारियों ने रूस पर खतरनाक और गैर-जिम्मेदार हमला करने का आरोप लगाया है.
रूस ने उन चिंताओं को खारिज कर दिया और इनकार किया कि अंतरिक्ष मलबे से कोई खतरा है लेकिन चीनी उपग्रह के साथ एक नई घटना कुछ और ही बताती है. सरकारी ग्लोबल टाइम्स ने भी बताया चीन का सिंघुआ विज्ञान उपग्रह मलबे के एक टुकड़े से 14.5 मीटर के करीब आया. यह ‘बेहद खतरनाक’ घटना मंगलवार को हुई थी.
अंतरिक्ष मलबे विशेषज्ञ लियू जिंग ने ग्लोबल टाइम्स को बताया कि मलबे और अंतरिक्ष यान दोनों बेहद करीब थे. इस बार टकराव की संभावना थी. कुछ देशों के पास एंटी-सैटेलाइट हथियार जैसी उच्च तकनीक वाली मिसाइलें हैं. इस कदम ने अंतरिक्ष में हथियारों की बढ़ती दौड़ के बारे में चिंता जताई है. इसमें लेजर हथियारों से लेकर उपग्रहों तक सब कुछ शामिल है जो दूसरों को कक्षा से बाहर धकेलने में सक्षम हैं.
लाहौर, 20 जनवरी। पाकिस्तान के पंजाब प्रांत की राजधानी लाहौर में एक शक्तिशाली विस्फोट में कम से कम दो लोगों की जान चली गई और दर्जनों लोग घायल हो गए, जिसे एक लक्षित आतंकवादी हमले के रूप में देखा जा रहा है।
प्रतिबंधित बलूच नेशनल आर्मी ने हमले की जिम्मेदारी ली है।
स्थानीय लोगों के अनुसार, लोहारी गेट क्षेत्र के आसपास स्थित लाहौर के थोक बाजारों का केंद्र, जो एक भीड़भाड़ वाला और घनी आबादी वाला इलाका है, एक शक्तिशाली विस्फोट से हिल गया, जिसमें एक किशोर सहित कम से कम दो लोगों की जान चली गई और कम से कम 25 अन्य घायल हो गए। घायलों में 22 पुरुष जबकि तीन महिलाएं शामिल हैं।
इलाके के एक स्थानीय दुकानदार ने कहा, विस्फोट इतना शक्तिशाली था कि हम चीजों को हवा में उड़ते हुए देख सकते थे।
अधिकारियों को संदेह है कि विस्फोट एक इम्प्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस (आईईडी) से किया गया है, क्योंकि विस्फोट स्थल पर एक गहरा गड्ढा बन गया है।
डीआईजी ऑपरेशन, लाहौर डॉ. मुहम्मद आबिद खान ने कहा, जांच प्रारंभिक चरण में है और जांच के बिना विस्फोट की प्रकृति का पता नहीं लगाया जा सकता है।
विस्फोट स्थल के सबसे नजदीक मेओ अस्पताल में अब तक कम से कम 27 लोग आ चुके हैं, जिनमें से कम से कम दो लोगों की मौत हो गई है, जबकि 25 अन्य का इलाज चल रहा है। अस्पताल के अधिकारियों का कहना है कि कम से कम 5 और लोगों की हालत गंभीर है।
विस्फोट इतना शक्तिशाली था कि एक निजी बैंक सहित कम से कम नौ दुकानें और प्रतिष्ठान क्षतिग्रस्त हो गए, जबकि दर्जनों मोटरबाइक और सड़क किनारे बिक्री के मौजूद स्टॉल और अन्य चीजों को नुकसान पहुंचा और आसपास आग भी लग गई।
प्रतिबंधित समूह की ओर से हमले की जिम्मेदारी ले ली गई है, वहीं दूसरी ओर सुरक्षा बलों ने इस दुखद घटना की जांच के लिए इलाके की घेराबंदी कर दी है।
बता दें कि लोहारी गेट क्षेत्र लाहौर के पुराने शहर का हिस्सा है, जहां संकरी गलियां और भीड़भाड़ वाले इलाके हैं। बाजार में निम्न वर्ग और गरीब लोग अक्सर आते हैं, क्योंकि वे यहां से अपने लिए सस्ती चीजें खरीदने के लिए बाजार आते हैं।
विस्फोट के वक्त बाजार में बड़ी संख्या में स्थानीय लोग मौजूद थे। (आईएएनएस)
सियोल, 20 जनवरी | प्योंगयांग के राज्य मीडिया ने गुरुवार को कहा कि उत्तर कोरिया ने इस महीने के अंत में अपने दिवंगत नेताओं के जयंती समारोह के अवसर पर दोषी लोगों को माफी देने का फैसला किया है। स्थायी समिति द्वारा किए गए एक निर्णय में, किम इल-सुंग और किम जोंग-इल की 110 वीं और 80 वीं जयंती मनाने के लिए 'देश और लोगों के खिलाफ अपराधों' के लिए दोषी ठहराए गए लोगों को क्षमा प्रदान की जाएगी। सुप्रीम पीपुल्स असेंबली, उत्तर की आधिकारिक कोरियन सेंट्रल न्यूज एजेंसी ने जानकारी दी।
योनहाप न्यूज एजेंसी ने केसीएनए के हवाले से कहा कि माफी 30 जनवरी से प्रभावी होगी, कैबिनेट और संबंधित अंग उन्हें सामान्य कामकाजी जीवन में बसने में मदद करने के लिए व्यावहारिक उपाय करेंगे।
वर्तमान नेता किम जोंग-उन के दिवंगत पिता किम जोंग-इल की जयंती 16 फरवरी को पड़ती है और उनके दिवंगत दादा किम इल-सुंग की जयंती 15 अप्रैल को होती है, जो दोनों प्रमुख उत्सव हैं। (आईएएनएस)