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बुधवार को हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट जारी होने के बाद अडानी ग्रुप की कंपनियों की कुल बाजार संपत्ति में लगभग 11 अरब डॉलर की गिरावट आई. कौन है यह हिंडनबर्ग ग्रुप और अब क्यों आई उसकी रिपोर्ट?
डॉयचे वैले पर विवेक कुमार की रिपोर्ट-
भारत के सबसे धनी व्यक्ति गौतम अडानी की कंपनियों के शेयरों में बुधवार को भारी गिरावट आई, जब अमेरिकी रिसर्च ग्रुप हिंडनबर्ग ने ऐलान किया कि वह इस कंपनी में अपनी हिस्सेदारी बेच रहा है. हिंडनबर्ग रिसर्च ने एक रिपोर्ट जारी की है जिसमें अडानी ग्रुप पर कई गंभीर आरोप लगाए गए हैं.
रिपोर्ट में कहा गया है कि अडानी ग्रुप के ऊपर कर्ज बहुत ज्यादा है जिसके कारण उसकी कंपनियों की स्थिरता पर संदेह है. यह रिपोर्ट कहती है कि अडानी ग्रुप ने टैक्स हेवन माने जाने वाले देशों का अनुचित इस्तेमाल भी किया है.
‘अडानी ग्रुपः हाउ द वर्ल्ड थर्ड रिचेस्ट मैन इज पुलिंग द लारजेस्ट कॉन इन कॉरपोरेट हिस्ट्री' नाम की यह रिपोर्ट 27 जनवरी से सिर्फ दो दिन पहले जारी हुई है जब गौतम अडानी की कंपनी शेयर बाजार में सेकेंड्री शेयर जारी करने वाली है. इसके जरिए ग्रुप को 2.5 अरब डॉलर जुटाने की उम्मीद है जिससे कुछ कर्ज उतारा जाएगा.
क्या है हिंडनबर्ग?
अमेरिकी निवेश कंपनी हिंडनबर्ग रिसर्च को नेट एंडरसन नामक उद्योगपति ने स्थापित किया है. इस कंपनी का दावा है कि वह फॉरेंसिक फाइनेंशल रिसर्च में विशेषज्ञता रखती है और उसके पास निवेश का दशकों का अनुभव है. अपनी वेबसाइट पर कंपनी कहती है, "हम निवेश करने के अपने फैसलों के लिए मूलभूत विश्लेषण को आधार बनाते हैं, लेकिन हम असामान्य सूत्रों से मिली ऐसी जानकारियों के आधार पर शोध करने में यकीन करते हैं जिन्हें खोजना मुश्किल होता है.”
हिंडनबर्ग रिसर्च इस तरह की कार्रवाइयों से पहले भी कई कंपनियों के शेयरों के भाव गिरा चुका है. 2020 में उसने अमेरिकी ट्रक निर्माता कंपनी निकोला और सोशल मीडिया कंपनी ट्विटर में भी अपनी हिस्सेदारी बेची थी, जिससे दोनों कंपनियों के शेयरों के भावों में खासी गिरावट आई थी. 2016 से अब तक हिंडनबर्ग रिसर्च ने दर्जनों ऐसी कंपनियों के बारे में रिपोर्ट प्रकाशित की हैं और उनकी कथित धोखाधड़ी उजागर की है.
कंपनी का नाम हिंडनबर्ग भी एक विशेष मकसद से रखा गया है. वेबसाइट के मुताबिक यह एक ऐसी त्रासदी पर आधारित है जिसे पूरी तरह से टाला जा सकता था. 6 मई 1937 लगभग सौ लोगों को लेकर जा रहा हिंडनबर्ग एयलाइंस का एक विमान अमेरिका के न्यू जर्सी में मैनचेस्टर कस्बे में हादसे का शिकार हो गया था. इस घटना में 37 लोगों की मौत हो गई थी.
अडानी ग्रुप को बताया सबसे बड़ा फ्रॉड
हिंडनबर्ग ने अडानी पर अपनी रिपोर्ट में ग्रुप की गतिविधियों पर गंभीर सवाल उठाए हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि अडानी ग्रुप ने विदेशों में बनाई अपनी कंपनियों का इस्तेमाल टैक्स बचाने के लिए किया है. रिपोर्ट में आरोप लगाया गया है कि मॉरिशस और कैरेबियाई द्वीपों जैसे टैक्स हेवन में बनाई गईं कई बेनामी कंपनियां हैं जिनके पास अडानी की कंपनियों में हिस्सेदारी है.
उसने यह भी कहा है कि अडानी की शेयर बाजारों में सूचीबद्ध कंपनियों पर "भारी कर्ज” है जिसने पूरे ग्रुप को एक "अस्थिर वित्तीय स्थिति” में डाल दिया है. रिपोर्ट में कहा गया है कि अडानी ग्रुप की सात सूचीबद्ध कंपनियों के "आसमान से ऊंचे मूल्यांकन” के कारण उनके शेयरों की कीमत मूलभूत आधार से 85 प्रतिशत तक ज्यादा हैं.
हिंडनबर्ग का कहना है कि उसकी रिपोर्ट दो साल तक चली रिसर्च के बाद तैयार हुई है और इसके लिए अडानी ग्रुप में काम कर चुके पूर्व अधिकारियों के साथ-साथ कई अन्य लोगों से भी बात की गई है और कई दस्तावेजों को आधार बनाया गया है.
31 मार्च 2022 को खत्म हुए वित्त वर्ष में अडानी ग्रुप पर कर्ज 40 प्रतिशत बढ़कर 2.2 खरब रुपये हो गया था. रेफिनिटिव ग्रुप द्वारा जारी डेटा दिखाता है कि अडानी ग्रुप की सात सूचीबद्ध कंपनियों पर कर्ज उनके इक्विटी से ज्यादा है. अडानी ग्रीन एनर्जी पर तो इक्विटी से दो हजार प्रतिशत ज्यादा कर्ज है.
अडानी ग्रुप ने क्या कहा?
हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट पर अडानी ग्रुप ने तीखी प्रतिक्रिया दी है. कंपनी के चीफ फाइनेंशल ऑफिसर जुगेशिंदर सिंह ने एक बयान जारी कर कहा कि यह रिपोर्ट "चुनिंदा गलत सूचनाओं और निराधार व यकीन ना किए जाने लायक आरोपों का एक दुर्भावनापूर्ण मिश्रण है.”
उन्होंने रिपोर्ट में लगाए गए किसी आरोप पर तो जवाब नहीं दिया लेकिन कहा कि उनकी कंपनी "हमेशा कानूनों का पालन करती है.” उन्होंने रिपोर्ट आने के वक्त पर सवाल उठाए और कहा, "इस रिपोर्ट का इस वक्त आना निष्पक्षता के नियम का बेशर्म उल्लंघन है और दिखाता है कि अडानी इंटरप्राइजेज के पब्लिक ऑफरिंग को नुकसान पहुंचाने के मकसद से अडानी ग्रुप की छवि को धक्का पहुंचाने की दुर्भावना के चलते ऐसा किया गया है.”
यह रिपोर्ट आने के बाद अडानी ग्रुप की कई कंपनियों के शेयरों में बड़ी गिरावट देखी गई. अडानी ट्रांसमिशन के शेयर नौ फीसदी तक गिर गए. अडानी पोर्ट्स एंड स्पेशल इकनॉमिक जोन के शेयरों में 6.3 प्रतिशत की कमी आई जबकि अडानी इंटरप्राइजेज 1.5 फीसदी नीचे गिरी. इस रिपोर्ट के कारण अडानी ग्रुप के कुल मार्किट मूल्यांकन में 10.73 अरब डॉलर का नुकसान दर्ज हुआ.
पिछले सितंबर में फिच ग्रुप ने भी अडानी ग्रुप को लेकर ऐसी ही रिपोर्ट जारी की थी जिसमें उसके वित्तीय आधारों पर सवाल उठाए गए थे. हालांकि बाद में उसने कुछ आंकड़ों में बदलाव किया था लेकिन कहा था कि अडानी ग्रुप को लेकर वह अपनी चिंताओं पर कायम है. (dw.com)
नई दिल्ली, 27 जनवरी । दिल्ली में पिछले हफ़्ते हुए अखिल भारतीय पुलिस महानिदेशक और महानिरीक्षक सम्मेलन में कुछ पुलिस अधिकारियों ने देश में बढ़ते कट्टरपंथ में इस्लामी संगठनों के साथ-साथ हिंदू संगठनों की भूमिका को रेखांकित किया है.
इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित ख़बर के मुताबिक़, ये जानकारी इस बैठक में शामिल हुए अधिकारियों की ओर से दिए गए दस्तावेज़ों से निकलकर आई है.
ये दस्तावेज़ कुछ समय के लिए सम्मेलन की वेबसाइट पर मौजूद रहे, लेकिन बीते बुधवार को इन्हें हटा दिया गया.
20 से 22 जनवरी तक चले इस सम्मेलन में पीएम नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह भी शामिल हुए थे.
इनमें से एक दस्तावेज़ में विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल जैसे संगठनों को कट्टरपंथी संगठन बताया गया है.
एक अन्य दस्तावेज़ में कहा गया है कि बाबरी मस्जिद विध्वंस, हिंदू राष्ट्रवाद में बढ़ोतरी, गौमांस को लेकर होती हत्याएं और घर वापसी आंदोलन आदि युवाओं को कट्टर बनाने के लिए ब्रीडिंग ग्राउंड के रूप में इस्तेमाल किए जा रहे हैं.
इन बिंदुओं को इस्लामी कट्टरपंथ और पॉपुलर फ़्रंट ऑफ़ इंडिया जैसे संगठनों की विचारधारा का सामना करने के लिए ज़रूरी उपाय तलाशने की पृष्ठभूमि में उठाया गया था.
कई अधिकारियों का ये भी मानना था कि मुसलमानों को कट्टर बनने से रोकने के लिए राज व्यवस्था में उन्हें ज़्यादा प्रतिनिधित्व देने के साथ-साथ आरक्षण दिया जाना चाहिए.
एसपी रैंक के एक अधिकारी की ओर से पेश किए गए पेपर में लिखा है - 'अति दक्षिणपंथी व्यक्तियों या संगठनों का देश को लेकर एक बेहद स्वेच्छाचारी विचार है जिसमें राष्ट्र और उसमें रहने वाले लोग मूल रूप से पहचान के स्तर पर एक ही हैं और उन्हें एक इकाई में समाहित हो जाना चाहिए. भारत एक बहुलतावादी समाज है लेकिन दिखाया ये जा रहा है कि यह समाज बहुसंख्यकवाद की ओर बढ़ रहा है. कुछ संगठनों के नाम लिए जाएं तो ये आनंद मार्ग, विश्व हिंदू परिषद और हिंदू सेना आदि हैं.'
इस अधिकारी ने इस्लामी कट्टरपंथियों को एक बड़ा ख़तरा बताया है.
इस अधिकारी ने अपने पेपर में लिखा है - 'इस्लामी विचार मूल रूप से दुनिया को दो भागों में बांटता है जिसमें एक तरफ़ मुसलमान समुदाय है और दूसरी तरफ़ शेष दुनिया है. इस सोच को रखने वालों के उदाहरण पीएफ़आई और उससे जुड़े संगठन, दावते-इस्लामी, तौहीद, केरला नदवातुल मुजाहिद्दीन आदि हैं.' (bbc.com/hindi)
25 जनवरी को प्रलय-घड़ी ने दिखाया कि मानवजाति विनाश से सिर्फ 90 सेकंड दूर है. यह घड़ी ‘अंतिम समय’ के इतना करीब कभी नहीं आई थी और पिछले तीन साल से सौ सेकंड की दूरी बनी हुई थी. क्या है प्रलय-घड़ी?
25 जनवरी को ‘प्रलय-घड़ी' दस सेकंड और खिसक गई और अंतिम समय यानी 12 बजने में 90 सेकंड रह गए. इसके बाद रूसी सरकार ने चेतावनी जारी करते हुए कहा कि परमाणु युद्ध को रोकने की कोशिशें की जानी चाहिए.
परमाणु वैज्ञानिकों ने इस प्रलय घड़ी का वक्त बदला है. दरअसल यह एक प्रतीकात्मक घड़ी है, जो दिखाता है कि मानव जाति अपने समूल नाश से कितनी दूर है. रात 12 बजे का समय उस वक्त का प्रतीक है जबकि प्रलय हो जाएगी और जीवन नष्ट हो जाएगा. 25 जनवरी को यह वक्त सिर्फ डेढ़ मिनट दूर रह गया था.
प्रलय के ये खतरे राजनीतिक तनावों, हथियारों, तकनीक, जलवायु परिवर्तन और महामारी आदि से पैदा हो सकते हैं. वैज्ञानिक अध्ययन करते हैं कि किसी खास वक्त पर खतरा कितना बड़ा और गंभीर है और उसके आधार पर ही घड़ी का वक्त बदला जाता है.
कैसे काम करती है घड़ी?
यह घड़ी बनाई है अमेरिका के शिकागो से काम करने वाले एक समाजसेवी संस्थान बुलेटिन ऑफ द अटॉमिक साइंटिस्ट्स ने. यह संस्था धरती पर जीवन को मौजूद खतरों का सालाना आकलन करती है और उसके हिसाब से घड़ी का वक्त बदलती
खतरों का आकलन करने के लिए वैज्ञानिकों और अन्य विशेषज्ञों का एक समूह अध्ययन करता है. इन विशेषज्ञों में 13 नोबल पुरस्कार विजेताओं के अलावा परमाणु तकनीक और जलवायु परिवर्तन के जानकार भी शामिल हैं. यही लोग मिलकर तय करते हैं कि घड़ी पर कितना वक्त होना चाहिए.
यह घड़ी 1947 में तैयार की गई थी. जिन वैज्ञानिकों ने मिलकर यह घड़ी बनाई थी उनमें सर्वकालीन महानतम वैज्ञानिकों में गिने जाने वाले अल्बर्ट आइंस्टाइन के अलावा वे वैज्ञानिक थे जिन्होंने मैनहटन प्रोजेक्ट में काम किया और दुनिया का पहला परमाणु बम बनाया था. इसी प्रोजेक्ट में बने बमों को नागासाकी और हिरोशिमा पर गिराया गया था.
अब घड़ी में कितना बजा है?
25 जनवरी को घड़ी का वक्त बदला गया तब रात के 11.58.30 बज गए थे. यानी 12 बजने में 90 सेकंड बाकी थे. यह 12 बजे के अब तक का सबसे करीब वक्त है. इससे पहले सबसे करीब 2020 में हुआ था जब 12 बजने में सौ सेकंड का समय बाकी रह गया था.
ताजा वक्त को बदले जाने में रूस के यूक्रेन पर आक्रमण के कारण पैदा हुए परमाणु युद्ध के खतरे को ध्यान में रखा गया है. हालांकि वैज्ञानिकों ने कहा है कि घड़ी का वक्त बदले जाने में यूक्रेन युद्ध एक कारक है और सिर्फ यही वजह नहीं है.
जब 75 साल पहले यह घड़ी बनाई गई थी तब सबसे पहले समय 11.53.00 रखा गया था यानी प्रलय से इंसान सात मिनट दूर था. हालांकि बाद में यह अवधि बढ़ गई थी और 1991 में शीत युद्ध के खत्म होने के बाद तो सबसे अधिक थी जबकि 12 बजने में 17 मिनट बाकी थे. तब अमेरिका और रूस के बीच स्ट्रैटिजिक आर्म्स रिडक्शन ट्रीटी हुई थी. इस समझौते के तहत दोनों सबसे बड़ी परमाणु ताकतों ने अपने परमाणु हथियार खत्म करने पर सहमति जताई थी.
वीके/एए (रॉयटर्स)
इस साल भारत के गणतंत्र दिवस आयोजन में मुख्य अतिथि हैं मिस्र के राष्ट्रपति अब्देल फतेह अल-सीसी. मोदी सरकार ने सीसी को निमंत्रण दे कर एक साथ कई लक्ष्य साधने की कोशिश की है.
डॉयचे वैले पर चारु कार्तिकेय की रिपोर्ट-
भारत सरकार के निमंत्रण पर सीसी बुधवार 24 जनवरी को भारत पहुंच गए थे. 25 जनवरी को राष्ट्रपति भवन में उनका स्वागत किया गया और वो राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से मिले. उसी दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और विदेश मंत्री एस जयशंकर उनसे मिले और उनसे दोनों देशों के आपसी रिश्तों पर चर्चा की.
दोनों देशों के बीच कूटनीतिक रिश्ते स्थापित हुए 75 साल बीत चुके हैं लेकिन यह पहली बार है जब मिस्र के राष्ट्रपति को भारतीय गणतंत्र दिवस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि बनाया गया है. सीसी के दफ्तर के प्रवक्ता ने भारत के निमंत्रण को दोनों देशों के बेहतरीन रिश्तों और मिस्र के लोगों और नेतृत्व के प्रति भारत की सराहना का सबूत बताया.
नई दिल्ली के हैदराबाद हाउस में मोदी और सीसी के नेतृत्व में दोनों देशों के प्रतिनिधि मंडलों के बीच कई विषयों पर बातचीत हुई. इस मौके पर दोनों देशों के रिश्तों को 'सामरिक साझेदारी' का दर्जा दिया गया. इसके अलावा साइबर सुरक्षा, सूचना प्रौद्योगिकी, संस्कृति, युवा मामले और प्रसारण के क्षेत्रों में संधियों पर हस्ताक्षर भी किए गए.
प्रधानमंत्री मोदी ने ट्वीट कर बताया कि सामरिक साझेदारी के तहत दोनों देश राजनीतिक, सुरक्षा, आर्थिक एवं वैज्ञानिक क्षेत्रों में और अधिक सहयोग करेंगे. साथ ही दोनों देशों के रक्षा उद्योगों के बीच सहयोग को और मजबूत करने और आतंकवाद के मुकाबले से संबंधित सूचना एवं इंटेलिजेंस का आदान-प्रदान भी बढ़ाने का भी फैसला किया गया.
क्यों महत्वपूर्ण है मिस्र
मिस्र को 75 सालों में पहली बार गणतंत्र दिवस के लिए निमंत्रण देना कई कारणों से महत्वपूर्ण है. यूं तो दोनों देशों के बीच कई दशकों से करीबी रिश्ते रहे हैं. भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और मिस्र के दूसरे राष्ट्रपति गमाल अब्देल नासेर ने तत्कालीन यूगोस्लाविया के राष्ट्रपति जोसिप ब्रोज टीटो के साथ मिल कर गुटनिरपेक्ष आंदोलन की नींव रखी थी.
उसके बाद से आज तक दोनों देशों के रिश्ते स्थिर और दोस्ताना रहे हैं. मिस्र की राजनीति में लंबे उथल पुथल के बावजूद दोनों देशों के संबंधों में स्थिरता रही. दोनों देशों के नेता भी एक दूसरे के देशों में आधिकारिक दौरे पर जाते रहे हैं और उसके अलावा अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों में मिलते रहे हैं.
पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह 2009 में मिस्र गए थे. मोदी अभी तक मिस्र की यात्रा पर नहीं गए हैं, लेकिन पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज 2015 में मिस्र गई थीं. मोदी सीसी से अलग अलग अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों में कम से कम दो बार मिल चुके हैं और कई बार फोन पर बात कर चुके हैं.
सीसी सितंबर 2016 में भारत भी आए थे और दोनों नेताओं की मुलाकात तब भी हुई थी. मिस्र अफ्रीका में भारत के सबसे महत्वपूर्ण व्यापारिक साझेदारों में से है. मिस्र इन दिनों आर्थिक संकट से गुजर रहा है और भारत से मदद चाह रहा है. उसे उम्मीद है कि भारत सरकार और उद्योगपति मिस्र में निवेश बढ़ाएंगे.
"मॉडरेट इस्लाम" का प्रतिनिधि
भारत के लिए मिस्र की जरूरत सामरिक दृष्टिकोण से ज्यादा महत्वपूर्ण है. मिस्र एक अरब देश है और उसके साथ संबंधों को और मजबूत करना अरब देशों के साथ साझेदारी बढ़ाने की भारत सरकार की रणनीति का हिस्सा है.
वरिष्ठ पत्रकार संजय कपूर मानते हैं कि मिस्र "मॉडरेट इस्लाम" का प्रतिनिधित्व करता है और सीसी को निमंत्रण देकर मोदी भारत के अंदर और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी यह संदेश देना चाहते हैं कि उनकी सरकार मुस्लिम-विरोधी नहीं है.
दिलचस्प है कि जून 2022 में बीजेपी की पूर्व प्रवक्ता नूपुर शर्मा के पैगम्बर मोहम्मद पर की गई विवादास्पद टिप्पणी से जन्मे विवाद पर जहां कई अरब देशों ने कड़ी निंदा की थी, उस समय मिस्र की तरफ से इस मामले पर कोई आधिकारिक टिप्पणी नहीं की गई थी.
मिस्र इस्लामी देशों के संगठन ओआईसी का भी सदस्य है और भारत के इस कदम को ओआईसी में पाकिस्तान के प्रभाव को टक्कर देने के लिए मिस्र को खड़ा करने के उद्देश्य से भी प्रेरित माना जा रहा है. (dw.com)
74वें गणतंत्र दिवस से पहले परेड में पंजाब राज्य की झांकी नहीं शामिल करने को लेकर विवाद खड़ा हो गया. आखिर कैसे चुनी जाती है झांकी.
डॉयचे वैले पर आमिर अंसारी की रिपोर्ट-
हर साल गणतंत्र दिवस के मौके पर दिल्ली के कर्तव्यपथ पर देश की सैन्य शक्ति और सांस्कृतिक विविधता का एक अनूठा मिश्रण पेश किया जाता है. लेकिन हर साल राज्यों की झांकी को लेकर भी राजनीति खूब होती है. झांकियों को शामिल करने और नहीं करने को लेकर सालों से विवाद होता आया है.
इस बार पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने गणतंत्र दिवस परेड में पंजाब की झांकी शामिल नहीं करने पर बीजेपी और केंद्र सरकार की आलोचना की है. उन्होंने कहा है कि इससे ज्यादा शर्मनाक कुछ नहीं हो सकता है.
मान ने एक बयान में कहा कि हर साल गणतंत्र दिवस परेड समारोह में शानदार औपचारिक झांकियां शामिल होती हैं, जो विभिन्न राज्यों की झांकी के माध्यम से भारत, इसकी विविधता में एकता और इसकी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को श्रद्धांजलि है.
उन्होंने कहा कि पंजाब नियमित रूप से झांकी परेड में शामिल होता रहा है. मान ने कहा कि पंजाब अपने समृद्ध इतिहास, रंगीन और जीवंत संस्कृति और महान देश के इतिहास को आकार देने वाली घटनाओं को परिभाषित करने के लिए महत्वपूर्ण बिंदु के साथ इस सीमावर्ती राज्य के महत्वपूर्ण महत्व को प्रदर्शित करता है.
झांकी पर राजनीति
गणतंत्र दिवस परेड में पंजाब की झांकी को शामिल नहीं करने पर केंद्र सरकार की आलोचना करते हुए मुख्यमंत्री मान ने कहा कि केंद्र सरकार का यह पंजाब विरोधी रुख अनुचित और अवांछनीय है.
उन्होंने कहा कि यह बड़ी निराशा की बात है कि इस साल वतन के रखवाले- भारत की सैन्य शक्ति और अन्नदाता, नारी शक्ति में पंजाब की महत्वपूर्ण भूमिका पर जोर देने जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर चयन समिति के सामने विचारों की प्रस्तुति के बावजूद पंजाब राज्य की झांकी को गणतंत्र दिवस परेड के लिए नहीं चुना गया.
मान ने कहा कि हालांकि चयन समिति ने विचारों की सराहना भी की लेकिन यह निराशाजनक है कि पूरी दुनिया के साथ-साथ इस महान देश के लोग उस समृद्ध सांस्कृतिक और ऐतिहासिक श्रद्धांजलि से महरूम हो जाएंगे जो पंजाब ने दिखाया है.
कैसे चुनी जाती हैं झांकियां
रक्षा मंत्रालय गणतंत्र दिवस परेड के लिए जिम्मेदार है और झांकी के लिए समन्वय निकाय है. गणतंत्र दिवस परेड के लिए झांकियों का चयन रक्षा मंत्रालय की विशेषज्ञ कमेटी ही करती है. अलग-अलग क्षेत्रों के विशिष्ट व्यक्तियों की समिति प्रस्तावों में से सर्वश्रेष्ठ झांकी का चयन करती है. इस साल 17 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों की 23 झांकियों को चुना गया है.
कला, संस्कृति, चित्रकला, मूर्तिकला, संगीत, वास्तुकला, नृत्यकला के प्रमुख लोगों की विशेषज्ञ समिति शॉर्टलिस्टिंग करती है. चुनी हुई और अंतिम चयन के प्रस्तावों का मूल्यांकन करने के लिए वे छह से सात दौर की बैठकें करते हैं. जब कमेटी द्वारा अनुमोदित हो जाता है तो उसके बाद प्रतिभागियों को अपने प्रस्तावों के त्रिआयामी मॉडल पेश करने होते हैं.
फिर अंतिम चयन के लिए विशेषज्ञ पैनल द्वारा त्रिआयामी मॉडल की फिर से जांच की जाती है. अंतिम चयन दृश्य अपील, जनता पर प्रभाव, इसके पीछे के विचार और संगीत पर आधारित होती है.
पिछले साल पश्चिम बंगाल की झांकी शामिल नहीं की गई थी. जिसपर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने केंद्र के इस फैसले की निंदा की थी. इससे पहले वर्ष 2015, 2017 और 2018 में भी बंगाल की झांकी को अनुमति नहीं मिली थी. (dw.com)
जैसे-जैसे कांग्रेस नेता राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ अपने अंतिम पड़ाव की ओर पहुंच रही है, कई विशेषज्ञ मान रहे हैं कि उनकी छवि सुधरी है. हालांकि सोशल मीडिया पर ‘फर्जी वीडियो’ ने उनका पीछा नहीं छोड़ा है.
क्या राहुल गांधी ने भारत जोड़ो यात्रा के दौरान फोन पर अश्लील नाच देखा? क्या कांग्रेस नेता ने यात्रा के दौरान राहुल गांधी के पांव छुए? क्या भारत जोड़ो यात्रा के दौरान पाकिस्तान का झंडा लहराया गया? इन सारे सवालों के जवाब ना में हैं.
ये सवाल उन फर्जी वीडियो संदेशों से निकले हैं जिन्हें भारत जोड़ो यात्रा के दौरान सोशल मीडिया पर प्रसारित किया जाता रहा. हालांकि इस दुष्प्रचार के बावजूद बहुत से विशेषज्ञ मान रहे हैं कि यात्रा से राहुल गांधी की छवि में सुधार हुआ है और वह ‘प्ले बॉय' की अपनी इमेज से निकलकर एक गंभीर नेता के रूप में स्वीकार्यता बढ़ाने में कामयाब रहे हैं.
राहुल गांधी की 3,500 किलोमीटर लंबी भारत जोड़ो यात्रा अगले हफ्ते पूरी हो रही है. 52 वर्षीय गांधी ने दक्षिण से अपनी यात्रा शुरू करके उत्तरी राज्यों तक पूरे भारत का सफर किया है. इस यात्रा को भारत के मुख्य धारा के मीडिया ने बहुत कम जगह दी लेकिन सोशल मीडिया पर लोग इसके बारे में बात करते रहे.
इसी दौरान एक के बाद एक दर्जनों ऐसे वीडियो सोशल मीडिया पर प्रसारित हुए जिनमें गलत-सलत दावे किए गए थे. मसलन एक वीडियो में राहुल गांधी को एक अश्लील बोलों वाला गीत फोन पर देखते दिखाया गया. हालांकि बाद में पता चला कि वीडियो में ऑडियो बाद में जोड़ी गई थी और यह एक बॉलीवुड गीत था जिस पर गलत ऑडियो लगा दिया गया था.
भाजपा की तरफ से फर्जी वीडियो
एक अन्य वीडियो में दावा किया गया कि राहुल गांधी की मेज पर शराब परोसी गई. यह वीडियो भी डिजिटल छेड़छाड़ करके तैयार किया गया था. भारतीय जनता पार्टी के आईटी सेल के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित मालवीय ने ट्विटर पर एक वीडियो शेयर करते हुए दावा किया कि एक वरिष्ठ कांग्रेस नेता ने राहुल गांधी के फीते बांधे.
मालवीय ने लिखा, "पूर्व केंद्रीय मंत्री भंवर जीतेंद्र सिंह ने घुटनों पर झुककर राहुल गांधी के फीते बांधे. यह घमंडी बिगड़ैल अपने आप काम करने के बजाय उनकी पीठ थपथपाता दिखा.” यह वीडियो दस लाख से ज्यादा बार देखा गया.
हालांकि यह दावा गलत साबित हुआ. भवंर जींतेंद्र सिंह ने कहा, "यात्रा में चलते हुए मेरे जूते के फीते खुल गए, तभी राहुल गांधी जी की नजर पड़ी और उन्होंने मुझे फीते बांध लेने को कहा. इस छोटी सी बात को गलत तरीके से पेश कर देश को गुमराह करने के लिए राहुल गांधी जी से माफी मांगे अमित मालवीय.” यह वीडियो दो लाख से भी कम लोगों तक पहुंचा.
इस बारे में समाचार एजेंसी एएफपी ने मालवीय से टिप्पणी चाही लेकिन कोई जवाब नहीं मिला. अमित मालवीय द्वारा साझा किए गए वीडियो को दस लाख से ज्यादा बार देखा गया. बाद में ट्विटर ने उसे ‘संदर्भ से बाहर जाकर पेश किया गया' बताते हुए टैग कर दिया.
एएफपी और अन्य समाचार एजेंसियों वह फैक्ट चेकिंग का काम करने वाली कई वेबसाइटों ने ऐसे 30 से ज्यादा फर्जी दावों की सच्चाई पेश की, जो भारत जोड़ो यात्रा के दौरान सोशल मीडिया पर फैलाए गए.
‘बौखला गई है बीजेपी'
कांग्रेस की सोशल मीडिया टीम की प्रमुख सुप्रिया श्रीनेत कहती हैं कि भारतीय जनता पार्टी ने कम से कम 10-15 ‘बड़े झूठ' फैलाए जिनमें राहुल गांधी के खाने-पीने और पहनने से लेकर उन्होंने कैसे पूजा की, यह तक शामिल था. श्रीनेत कहती हैं, "बीजेपी बौखला गई है. यह पहली बार नहीं है जब उन्होंने राहुल गांधी की छवि बिगाड़ने की कोशिश की है. और वे फिर ऐसा करेंगे. यह एक सोची-समझी मशीनरी है जो मीडिया और बड़े कॉरपोरेट घरानों के साथ मिलकर उन्हें निशाना बना रही है."
भारत में फर्जी खबरें और गलत दावों का सोशल मीडिया पर विस्फोट का दौर चल रहा है. हाल के सालों में ऐसे संदेशों का जमकर प्रसार हुआ जो ना सिर्फ गलत थे बल्कि जिनके कारण लोगों की जान तक गई. मिशीगन यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ इन्फॉर्मेशन में एसोसिएट प्रोफेसर जॉयजीत पॉल कहते हैं कि फैक्ट चेकिंग से इन फर्जी खबरों को रोकने में ज्यादा मदद नहीं मिल रही है.
प्रोफेसर पाल ने कहा, "भारत में जिस तरह का ध्रुवीकरण हम देख रहे हैं, लोग सच के बजाय उस बात पर यकीन करेंगे या कम से कम यकीन करने का दावा करेंगे, जो उनकी सोच को सही ठहराता है.”
छवि में सुधार
पांच महीने तक पैदल चलने के दौरान राहुल गांधी ने भारत की सड़कें ही नहीं नापीं, उन्होंने यह दिखाने की भी कोशिश की कि वह एक शाही राजनीतिक परिवार की संतान नहीं बल्कि एक आम आदमी हैं. उनके आलोचक भी मान रहे हैं कि इस यात्रा ने राहुल गांधी की छवि सुधारने में मदद की है.
राजनीतिक विश्लेषक पारसा वेंकटेश्वर जूनियर कहते हैं, "गलत हो या सही, बीजेपी के प्रचार के कारण उन्हें लोग एक निकम्मे व्यक्ति के रूप में देखने लगे थे. वह उसे बदलने में कामयाब रहे हैं.”
नई दिल्ली में काम करने वालीं राजनीति विश्लेषक जोया हसन कहती हैं, "राहुल गांधी ने खुद कहा है कि उनके पास इस यात्रा के जरिए लोगों के पास जाने और सोशल मीडिया पर इसके बारे में लिखने के अलावा कोई चारा नहीं था.” हसन कहती हैं कि जो भी विपक्ष की आलोचना हो वही प्राइम न्यूज बन जाती है और जो लोगों को साथ लाने वाली सकारात्मक बातें हों, उनकी कोई खबर नहीं हो रही है.
हालांकि राव को इस बात पर संदेह है कि राहुल गांधी की इस यात्रा या छवि में सुधार से कांग्रेस को मत मिलेंगे. वह कहते हैं, "उन्होंने अपनी सार्वजनिक छवि तो सुधार ली है लेकिन इससे वोट मिलेंगे या नहीं इस बारे में मैं पक्के तौर पर कुछ नहीं कह सकता.”
वीके/एए (एएफपी, एपी)
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर बनी बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री को दिखाने और ना दिखाने को लेकर देश के कई विश्वविद्यालयों में बवाल हो रहा है. विपक्षी दल डॉक्यूमेंट्री पर बैन पर सवाल उठा रहे हैं.
बीबीसी ने दो भाग में डॉक्यूमेंट्री बनाई है जिसका नाम है - इंडिया: द मोदी क्वेश्चन. डॉक्यूमेंट्री को लेकर भारत पहले ही ऐतराज जता चुका है और इसको ट्विटर और यूट्यूब पर बैन कर चुका है. यह डॉक्यूमेंट्री नरेंद्र मोदी के गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए राज्य में 2002 में हुए दंगे को लेकर है . गोधरा कांड के बाद गुजरात में हुए दंगों में हजारों लोग मारे गए थे और डॉक्यूमेंट्री मोदी की भूमिका पर सवाल उठाती है.
दो भाग वाली डॉक्यूमेंट्री इंडिया: द मोदी क्वेश्चन भारत में बीबीसी द्वारा प्रसारित नहीं की गई है, लेकिन केंद्र सरकार ने इसकी क्लिप सोशल मीडिया पर साझा करने से प्रतिबंधित कर दिया है. सूचना प्रौद्योगिकी कानूनों के तहत आपातकालीन शक्तियों का हवाला देते हुए भारत सरकार ने ऐसा किया है. सरकार के आदेश के बाद ट्विटर और यूट्यूब ने अनुरोध का अनुपालन किया और डॉक्यूमेंट्री के कई लिंक हटा दिए.
डॉक्यूमेंट्री पर बैन की आलोचना
डॉक्यूमेंट्री पर प्रतिबंध लगाने को लेकर विपक्षी दलों और अधिकार समूहों में आलोचना की एक लहर पैदा कर दी, जिन्होंने इसे प्रेस की स्वतंत्रता पर हमला बताया.
डॉक्यूमेंट्री पर बैन के कारण इसकी ओर और भी लोगों का अधिक ध्यान आकर्षित हुआ है, जिसके बाद कई सोशल मीडिया यूजर्स ने फिल्म की क्लिप्स को व्हॉट्सऐप, टेलीग्राम और ट्विटर पर शेयर किया.
आलोचना को दबाने का आरोप
हाल के सालों में भारत में प्रेस की स्वतंत्रता गिरी है. रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स के मुताबिक वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स में भारत की रैंकिंग 142 से आठ स्थान गिरकर 150 हो गई है. संस्था का आरोप है कि मोदी सरकार आलोचना को दबाती है खासकर ट्विटर पर होने वाली आलोचनाओं को. सत्ताधारी पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने इससे इनकार किया है, भले ही मोदी सरकार नियमित रूप से ट्विटर पर ऐसी सामग्री को प्रतिबंधित करने के लिए दबाव डालती रही है जिसे वह प्रधानमंत्री या उनकी पार्टी के लिए महत्वपूर्ण मानती है.
पिछले साल सरकार ने देश में ट्विटर के कर्मचारियों को आलोचकों द्वारा चलाए जा रहे खातों पर प्रतिबंध लगाने से इनकार करने पर गिरफ्तार करने की धमकी दी थी. सरकार ने सोशल मीडिया कंपनियों के लिए नियमों में व्यापक बदलाव लागू किए हैं.
इस बीच प्रतिबंध ने ट्विटर के आलोचकों को कंपनी पर सेंसरशिप का आरोप लगाने का मौका दे दिया है. ट्विटर के सीईओ इलॉन मस्क ने ट्वीट कर ऐसे ही एक आरोप का जवाब दिया "मैंने ऐसा सुना है. मेरे लिए ट्विटर के हर पहलू को दुनियाभर में रातोंरात ठीक करना संभव नहीं है."
बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री पर बैन ऐसे समय में लगा है जब हाल ही में केंद्र सरकार ने सूचना प्रौद्योगिकी नियम, 2021 में एक नए संशोधन का प्रस्ताव रखा है, जिसके तहत प्रेस सूचना ब्यूरो या सरकार की दूसरी कोई संस्था जिस भी खबर को 'फेक न्यूज' बताएगी उस खबर को सभी समाचार और सोशल मीडिया संस्थानों को अपनी वेबसाइटों से हटाना होगा . पत्रकारों और मीडिया संस्थानों के संगठन एडिटर्स गिल्ड ने इसका विरोध किया है. एक आधिकारिक बयान जारी करते हुए गिल्ड ने कहा है कि फेक न्यूज निर्धारण करने की शक्ति के सिर्फ सरकार के हाथ में होने से प्रेस की सेंसरशिप होगी.
यूनिवर्सिटी परिसर में डॉक्यूमेंट्री पर बवाल
इस बीच बुधवार को राजधानी दिल्ली में बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री को जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी में दिखाने को लेकर तनाव की स्थिति पैदा हो गई. जहां छात्रों के एक समूह ने डॉक्यूमेंट्री को दिखाने की योजना बनाई थी. जिसके बाद यूनिवर्सिटी के बाहर भारी संख्या में पुलिस तैनात की गई.
सादी वर्दी में तैनात पुलिस वालों की झड़प कुछ छात्रों के साथ हुई है और आधा दर्जन छात्रों को पुलिस ने हिरासत में ले लिया.
इससे पहले मंगलवार को राजधानी के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय की बिजली काट दी गई. विश्वविद्यालय में छात्रों के एक गुट ने डॉक्यूमेंट्री दिखाने की योजना बनाई थी. लेकिन बिजली की कटौती के बाद छात्रों ने लैपटॉप और मोबाइल पर डॉक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग की. वहीं हैदराबाद विश्वविद्यालय के अधिकारियों ने 21 जनवरी को डॉक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग के बाद जांच शुरू कर दी है. गुरूवार को दोबारा इस डॉक्यूमेंट्री को स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया ने दिखाई.
इसके बाद एबीवीपी ने कैंपस में विवादित फिल्म द कश्मीर फाइल्स को परिसर में दिखाई है.
पिछले हफ्ते सरकार ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर डॉक्यूमेंट्री की आलोचना करते हुए इसे 'पक्षपातपूर्ण प्रोपेगेंडा' करार दिया है. विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा, "डॉक्यूमेंट्री उस एजेंसी पर प्रतिबिंब है जिसने इसे बनाया है. हमें लगता है कि यह बदनाम करने के लिए डिजाइन किया गया प्रचार का हिस्सा है. पूर्वाग्रह, निष्पक्षता की कमी और निरंतर औपनिवेशिक मानसिकता स्पष्ट रूप से दिखाई दे रही है. इसे भारत में प्रदर्शित नहीं किया गया है."
कांग्रेस के नेता राहुल गांधी ने भी बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री पर बीते दिनों कहा था, "सच्चाई हमेशा सामने आती है. आप उसे कैद नहीं कर सकते हैं. आप मीडिया को दबा सकते हैं. आप संस्थानों को नियंत्रित कर सकते हैं, आप सीबीआई, ईडी और सभी चीजों का इस्तेमाल कर सकते हैं लेकिन सच तो सच होता है."
एए/सीके (एपी, रॉयटर्स)
नई दिल्ली, 27 जनवरी | भारत-मिस्र के राजनयिक संबंधों की सबसे पहली दर्ज घटना तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व की है, जब भारतीय सम्राट अशोक महान ने अपने दूतों को मिस्र के शासक टॉलेमी द्वितीय फिलाडेल्फस के दरबार में भेजा था, जिन्होंने बदले में एक राजदूत डायोनिसियस को पाटलिपुत्र के मौर्य दरबार में भेजा था। आधुनिक समय में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और मिस्र के राष्ट्रपति नासिर के नेतृत्व में दो नव-स्वतंत्र राष्ट्रों के बीच संबंध विशेष रूप से मजबूत हुए।
शीत युद्ध के वर्षो के दौरान नेहरू और नासिर गुटनिरपेक्ष आंदोलन (एनएएम) के संस्थापक सदस्य थे। 1956 के स्वेज संकट के दौरान मिस्र पर अंग्रेजी, फ्रांसीसी और इजरायल के हमले की भारत की स्पष्ट निंदा सबसे बड़े राष्ट्र और अरब दुनिया की सबसे महत्वपूर्ण शक्तियों में से एक के विश्वास और दोस्ती को सुरक्षित करने में अत्यधिक प्रभावी थी।
साल 1983 की नई दिल्ली एनएएम शिखर सम्मेलन के दौरान राजनयिक अशुद्धियों की एक कथित घटना को लेकर भारत-मिस्र के द्विपक्षीय संबंध अधर में लटक गए। नवंबर 2008 में राष्ट्रपति होस्नी मुबारक के भारत लौटने पर बर्फ पिघलने में चौथाई सदी लग गई। जुलाई 2009 में एनएएम शिखर सम्मेलन के दौरान भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने मिस्र की यात्रा की थी।
इसके बाद मुबारक के उत्तराधिकारी मोहम्मद मुर्सी ने उसी वर्ष अपने पद से हटाने से पहले भारत-मिस्र द्विपक्षीय संबंधों को बढ़ावा देने के लिए 2013 में नई दिल्ली का दौरा किया।
हालांकि, शासन परिवर्तन की इन लगातार घटनाओं का भारत के साथ मिस्र के संबंधों पर शायद ही कोई असर पड़ा हो।
मिस्र के मौजूदा और छठे राष्ट्रपति, अब्देल फतह अल सिसी 2014 में पदभार ग्रहण करने के बाद से ही नई दिल्ली के लिए गंभीर और ईमानदार पहल कर रहे हैं।
गुरुवार को राष्ट्रपति सिसी ने मुख्य अतिथि के रूप में दिल्ली में गणतंत्र दिवस परेड की शोभा बढ़ाई, 2015 और 2016 में दो क्रमिक प्रवासों के बाद राष्ट्रीय राजधानी में अपनी तीसरी यात्रा की।
हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अभी तक काहिरा का दौरा नहीं किया है, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह (सितंबर, 2022) और विदेश मंत्री एस. जयशंकर (अक्टूबर, 2022) की यात्राओं के परिणामस्वरूप दोनों देशों की वायुसेना द्वारा पहली बार संयुक्त सामरिक अभ्यास किया गया।
भारतीय और मिस्र की सेनाओं द्वारा 14-दिवसीय संयुक्त अभ्यास राजस्थान में भी अपनी तरह का पहला, द्विपक्षीय रक्षा सहयोग में एक और महत्वपूर्ण मील का पत्थर था।
जब भारत 2021 में कोविड-19 महामारी से गंभीर रूप से प्रभावित हुआ था, तब सद्भावना के एक उल्लेखनीय संकेत में, मिस्र ने रेमडेसिविर की 300,000 खुराक सहित चिकित्सा आपूर्ति के तीन विमान लोड भेजे थे। रूसी आक्रमण के कारण यूक्रेन से देश का गेहूं का आयात रुका हुआ था।
मिस्र में भारत के लिए एक निवेश गंतव्य के रूप में भी काफी संभावनाएं हैं। मिस्र में निवेश करने वाली भारतीय कंपनियों में चेन्नई स्थित सनमार समूह (पोर्ट सईद में कास्टिक सोडा संयंत्र), आदित्य बिड़ला समूह (अलेक्जेंड्रिया में कार्बन ब्लैक सुविधा), एशियन पेंट्स, डाबर, यूफ्लेक्स फिल्म्स, बजाज ऑटो और अन्य शामिल हैं।
इन कंपनियों द्वारा दी गई प्रतिक्रिया सकारात्मक रही है, जो अपने देश के वातावरण को अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के अनुकूल बनाने में मिस्र के अधिकारियों की वास्तविक चिंताओं और हितों की गवाही देती है।
मिस्र और चीन के बीच संयुक्त साझेदारी के तहत निर्मित स्वेज नहर आर्थिक क्षेत्र इस संबंध में विशेष उल्लेख का पात्र है। हालांकि मिस्र के स्वेज शहर के पास स्थित 455 वर्ग किमी का एससीजोन चीनी कंपनियों के लिए अपने उद्योग स्थापित करने के लिए बनाया गया था। यह भारतीय कंपनियों को भी आकर्षक संभावनाएं प्रदान करता है। गुरुग्राम स्थित रिन्यू पावर ने जोन में एक ग्रीन हाइड्रोजन सुविधा स्थापित करने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। उम्मीद है कि अन्य भारतीय कंपनियां इस सूट का पालन करेंगी।
मिस्र के राष्ट्रपति सिसी की नवीनतम यात्रा भारतीय व्यापार प्रतिष्ठान को रणनीतिक रूप से स्थित इस औद्योगिक क्षेत्र में अपने पैर जमाने का एक उत्कृष्ट अवसर प्रदान कर सकती है, जो अन्य बातों के साथ-साथ आकर्षक कर प्रोत्साहन, सस्ती और प्रचुर भूमि और यूरोपीय बाजारों तक आसानी से पहुंच प्रदान करता है। (आईएएनएस)|
हैदराबाद, 27 जनवरी | मराठा शासक छत्रपति शिवाजी के 13वें वंशज और पूर्व सांसद छत्रपति संभाजीराजे ने गुरुवार को यहां मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव से मुलाकात की। मुख्यमंत्री कार्यालय (सीएमओ) के अनुसार, कोल्हापुर रियासत के उत्तराधिकारी और स्वराज आंदोलन के कार्यकर्ता साहू महाराज के पोते ने मुख्यमंत्री से शिष्टाचार मुलाकात की।
प्रगति भवन में केसीआर ने संभाजीराजे का शॉल और फूलों का गुलदस्ता भेंट कर स्वागत किया। मुख्यमंत्री ने संभाजीराजे के लिए दोपहर के भोजन की मेजबानी की और कई मुद्दों पर चर्चा की।
संभाजीराजे ने कम समय में तेलंगाना द्वारा प्राप्त जन कल्याण और विकास के बारे में पूछताछ की और देश के लिए एक आदर्श के रूप में खड़े हुए।
वह किसानों, एससी, एसटी, बीसी और अल्पसंख्यकों सहित सभी वर्गो के लोगों को बड़ा कल्याण प्रदान करने के लिए तेलंगाना राज्य सरकार द्वारा अपनाई जाने वाली परिचालन प्रक्रियाओं को जानने के इच्छुक थे।
संभाजीराजे ने इच्छा व्यक्त की कि तेलंगाना विकास मॉडल और कल्याणकारी योजनाओं को महाराष्ट्र में भी लागू किया जाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि 'शानदार' तेलंगाना विकास मॉडल को यहीं तक सीमित नहीं रखा जाना चाहिए, बल्कि महाराष्ट्र सहित अन्य सभी राज्यों में भी इसका विस्तार किया जाना चाहिए।
विकास के मुद्दों के अलावा, सीएम केसीआर और संभाजीराजे ने देश में राजनीतिक स्थिति पर लंबी चर्चा की।
मुख्यमंत्री और पूर्व सांसद ने कहा कि जनता के विकास और देश की अखंडता के लिए जनकल्याण के उद्देश्य से एक अभिनव एजेंडा लोगों के सामने आना आवश्यक है।
उन्होंने फिर से मिलने और अवसर के आधार पर यदि आवश्यक हो तो सभी मुद्दों पर चर्चा करने का निर्णय लिया।
इस मौके पर सीएम केसीआर और संभाजीराजे ने शंभाजीराजे के पूर्वजों द्वारा शिवाजी महाराज से लेकर साहू महाराज तक देश के लिए की गई सेवाओं को याद किया।
केसीआर ने कहा कि समानता और जनकल्याण की दिशा में उनका शासन देश के इतिहास में सुनहरे अक्षरों में रहेगा।
चर्चा में मुख्यमंत्री ने स्पष्ट किया कि उनकी प्रेरणा से तेलंगाना में बिना जाति और धर्म के भेदभाव के लोगों का शासन चलता रहेगा। (आईएएनएस)|
जयपुर, 27 जनवरी | राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने गुरुवार को अपने पूर्व डिप्टी सचिन पायलट पर परोक्ष रूप से निशाना साधते हुए कहा कि कांग्रेस ने 2018 में पिछले कार्यकाल (2008-2013) में अपने सुशासन मॉडल के कारण सरकार बनाई थी। न कि अपने जूनियर पार्टी सहयोगी की 'कड़ी मेहनत' के कारण। जयपुर के एसएमएस स्टेडियम में गणतंत्र दिवस समारोह में शामिल होने के बाद मीडिया से बातचीत करते हुए मुख्यमंत्री ने यह बात कही।
गहलोत ने पार्टी कार्यकर्ताओं को 'मिशन-156' (1998 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस द्वारा जीती गई सीटों की संख्या के संदर्भ में) पर काम करने का आह्वान करते हुए कहा कि पार्टी पांच साल पहले अपने सुशासन मॉडल के कारण सत्ता में आई थी, जो कि 2008 से 2013 तक दिया गया।
उन्होंने कहा, "हमारी पार्टी को 1998 में 156 सीटें मिली थीं.. उस समय मैं प्रदेश अध्यक्ष था। अब फिर से हमें मिशन-156 पर काम करना है। उतनी ही सीटें जीतनी हैं।"
उन्होंने कहा, "2018 के चुनाव के दौरान लोगों के मन में था कि पिछली बार (2013 के चुनाव में) उन्होंने सरकार बदलकर गलती की थी। उनके दिमाग में पहले से ही था कि कांग्रेस की सरकार बने और अशोक गहलोत मुख्यमंत्री बनें। यह जनता की आवाज थी, और जनता की आवाज भगवान की आवाज है।"
गहलोत ने कहा, "पार्टी के जनादेश खोने के छह महीने बाद लोगों को कांग्रेस सरकार की याद आने लगी। वे याद करने लगे कि गलती हुई थी और पिछली सरकार अच्छी थी।"
उन्होंने कहा, "मैं बिना सोचे-समझे नहीं बोलता, मैं गॉड गिफ्टेड हूं, मैं दिल से बोलता हूं, मेरे दिल की आवाज मेरी जुबान पर आती है, इसलिए बोल रहा हूं। मुझे लगता है कि इस बार जनता मेरा साथ देगी।"
गहलोत ने कहा, "2013 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक भ्रम पैदा किया था और इसलिए, हम 21 सीटों तक सीमित हो गए।" (आईएएनएस)|
लखनऊ, 27 जनवरी | उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले में एक स्थानीय पत्रकार के 20 वर्षीय बेटे की अज्ञात लोगों ने रॉड से हमला कर हत्या कर दी। मृतक विशाल पांडे पत्रकार उमेश पांडे का बेटा थे। उमेश एक हिंदी अखबार में काम करते हैं। जिला मुख्यालय से करीब 50 किलोमीटर दूर अतरसुई बादली का पुरवा गांव में रोड़ गांव निवासी विशाल को कथित तौर पर एक कार ने टक्कर मारी और फिर रॉड से पीट-पीटकर मार डाला।
पुलिस को शक है कि इस जघन्य हत्या के पीछे आरोपी और मृतक के पिता के बीच पुरानी रंजिश है।
एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया कि पीड़ित परिवार ने पूर्व ग्राम प्रधान रंग बहादुर समेत सात लोगों के खिलाफ मामला दर्ज कराया है।
उन्होंने बताया कि पुलिस अधीक्षक सतपाल अंतिल ने ड्यूटी में शिथिलता बरतने के आरोप में थाना प्रभारी अवन दीक्षित को निलंबित कर दिया है।
उन्होंने कहा कि पीड़िता के शव को पोस्टमॉर्टम के लिए भेज दिया गया है और आगे की जांच की जा रही है। (आईएएनएस)|
सिंगापुर, 27 जनवरी | सिंगापुर में एक कंपनी के निदेशक से 6,800 डॉलर की रिश्वत लेने के आरोप में एक फूड डिस्ट्रीब्यूशन फर्म के भारतीय मूल के दो पूर्व कर्मचारियों पर 24,000 सिंगापुर डॉलर का जुर्माना लगाया गया है। द स्ट्रेट्स टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, 27 वर्षीय महेश्वरन एम रतिनासावपति और 31 वर्षीय रेनिथा मुरलीधरन सोनामेरा के लिए काम करते थे। उन्हें गुरुवार को भ्रष्टाचार के तीन आरोपों में दोषी ठहराया गया है।
अभियोजन पक्ष ने अदालत को बताया कि गोदाम पर्यवेक्षक महेश्वरन को जनशक्ति सेवाओं के प्रावधान के लिए हेमा सुथन नायर अच्युतन्नयार से सिफारिश करने के बदले में पैसा मिला था।
प्राप्त 6,800 डॉलर में से, महेश्वरन ने अपनी तत्कालीन सहयोगी रेनिथा को 3,400 डॉलर का कमीशन दिया।
उप लोक अभियोजक जेन लिम ने अदालत को बताया, मार्च 2020 में मलेशिया जाने वाली हेमा अभी भी फरार है।
अदालत को बताया गया कि महेश्वरन ने जून 2019 में हेमा से मुलाकात की, और जुलाई 2019 में सोनामेरा को जनशक्ति सेवाओं की आपूर्ति करने के लिए हेमा की कंपनी की सिफारिश करने के लिए रेनिथा के साथ अपनी योजना साझा की।
अभियोजक ने अदालत को बताया कि रेनिथा, जिसे बताया गया था कि उसे कमीशन दिया जाएगा, ने कोई आपत्ति नहीं जताई।
आरोप साबित होने पर कोर्ट ने उन पर 24,000 सिंगापुर डॉलर का जुर्माना लगाया है।
द स्ट्रेट्स टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, महेश्वरन, जिसने सोनामेरा को 2,600 सिंगापुरी डॉलर चुकाए थे, को भी 829 सिंगापुरी डॉलर का जुर्माना भरने का आदेश दिया गया।
अदालत ने आदेश दिया कि रेनिथा, जिसने फर्म का भुगतान नहीं किया है, को 3,379 डॉलर का जुर्माना देना होगा। (आईएएनएस)|
मेरठ, 27 जनवरी | उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले में एक चौंकाने वाली घटना सामने आई है, जिसमें एक झोलाछाप डॉक्टर द्वारा सी-सेक्शन सर्जरी के दौरान नस कट जाने से एक महिला और उसके नवजात बच्चे की मौत हो गई। नस कटने से खून की कमी हो गई, जिससे महिला और बच्चे की मौत हो गई।
घटना मवाना शहर के परीक्षितगढ़ रोड स्थित रतन नर्सिग होम की है। पीड़ित परिवार ने डॉक्टरों पर इलाज में लापरवाही का आरोप लगाया है।
गर्भवती महिला को प्रसव पीड़ा शुरू होने पर नर्सिग होम लाया गया।
प्रसव के दौरान डॉक्टर ने महिला की एक नस काट दी। इससे खून बह गया और अंत में जच्चा-बच्चा दोनों की मौत हो गई।
घटना के बाद महिला के परिजनों ने नर्सिग होम में हंगामा किया और तोड़फोड़ की। विरोध को देख डॉक्टर व नसिर्ंग होम के कर्मचारी मौके से फरार हो गये।
पुलिस ने महिला के शव को पोस्टमॉर्टम के लिए भेज दिया है।
पीड़ित परिवार ने डॉक्टरों पर लापरवाही का आरोप लगाते हुए मवाना पुलिस में शिकायत दर्ज कराई है।
महिला के पति कृष्णा दत्त ने कहा, मैंने अपनी पत्नी सीमा को प्रसव पीड़ा होने पर मवाना के रतन नर्सिग होम में भर्ती कराया। नर्सिग होम के स्टाफ ने मुझे बताया कि उसे सी-सेक्शन की सर्जरी करनी होगी। सर्जरी के दौरान कथित रूप से झोलछाप डॉक्टर ने पेट की एक नस काट दी, जिससे खून बहने लगा। इससे नर्सिग होम के कर्मचारियों में खलबली मच गई और उन्होंने मुझे अपनी पत्नी को दूसरे अस्पताल ले जाने की सलाह दी। लेकिन कुछ ही मिनटों के बाद मेरी पत्नी और शिशु की मौत हो गई।
थाना प्रभारी ने बताया कि मामले की जांच की जा रही है। (आईएएनएस)|
अलीगढ़ (उप्र), 27 जनवरी | इगलास के एक सरकारी प्राथमिक विद्यालय के एक मुस्लिम शिक्षक ने राष्ट्रगान गाने और भारत माता और देवी सरस्वती की तस्वीरों पर पुष्पांजलि अर्पित करने से इनकार कर दिया है। यह घटना स्कूल में गणतंत्र दिवस समारोह के दौरान हुई। इस घटना का एक वीडियो क्लिप अब सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है।
हसमुद्दीन ने कथित तौर पर कहा कि, उनका धर्म उन्हें केवल अल्लाह के सामने अपना सिर झुकाने की अनुमति देता है और वह किसी अन्य संस्था के लिए गान नहीं गाएगा।
वीडियो क्लिप में अन्य शिक्षकों को हसमुद्दीन को रस्मों का पालन करने के लिए मनाने की कोशिश करते देखा जा सकता है।
बेसिक शिक्षा अधिकारी (बीएसए) सत्येंद्र सिंह ने कहा कि, उन्हें वीडियो क्लिप से अवगत कराया गया है और मामले को गंभीरता से लिया है।
उन्होंने कहा, मैंने जांच के आदेश दिए हैं और जैसे ही मुझे रिपोर्ट दी जाएगी, मैं कड़ी कार्रवाई शुरू करूंगा। (आईएएनएस)|
लखनऊ, 27 जनवरी | पुलिस ने सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे एक वीडियो की जांच शुरू कर दी है, जिसमें लड़कों का एक ग्रुप तिरंगे का अपमान करता नजर आ रहा है। लड़के चलती कार के बोनट पर बगल में झंडा बांधे बैठे नजर आ रहे हैं।
जाहिर तौर पर यह वीडियो गणतंत्र दिवस पर बनाया गया था और गुरुवार शाम को वायरल हो गया।
एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने शुक्रवार को कहा, हम मामले की जांच कर रहे हैं और आरोपियों की पहचान की जा रही है। कानून के अनुसार कार्रवाई की जाएगी। (आईएएनएस)|
कानपुर, 27 जनवरी | उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले में एक जोड़े ने मामूली विवाद को लेकर चलती ट्रेन के आगे कूद कर आत्महत्या कर ली। राज किशोर और उनकी पत्नी अंजना एक निजी कंपनी में कार्यरत थे और वे चौबेपुर पुलिस सर्कल के तहत मंधाना स्टेशन से ट्रेन से एक साथ यात्रा करते थे।
अंजना दोस्त की बर्थडे पार्टी में शामिल होने गई थी और देर शाम रेलवे स्टेशन पर पहुंची। इससे राज किशोर नाराज हो गए और उन्होंने उसे फटकार लगाई।
इसके बाद दंपति ने लड़ाई की और जैसे ही ट्रेन करीब आई, दोनों रेलवे ट्रैक पर जा गिरे। दोनों की मौके पर ही मौत हो गई।
देर रात तक जब वे घर नहीं लौटे तो उनकी तीन बेटियां और एक बेटा उनकी तलाश में निकले और उन्हें घटना की जानकारी हुई।
शवों को पोस्टमॉर्टम के लिए भेज दिया गया है। (आईएएनएस)|
अरुल लुइस
न्यूयॉर्क, 27 जनवरी | रक्षा विभाग के अनुसार अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने भारतीय-अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री राजा चारी को वायु सेना के ब्रिगेडियर जनरल के पद पर पदोन्नति के लिए चंद्रमा मिशन टीम में नामित किया है। गुरुवार को घोषित नामांकन की पुष्टि सीनेट द्वारा की जानी होगी।
चारी चंद्रमा पर जाने के अमेरिकी मिशन की तैयारी कर रहे अंतरिक्ष यात्रियों की आर्टेमिस टीम के सदस्य हैं।
2021 में उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन में एक राष्ट्रीय वैमानिकी और अंतरिक्ष प्रशासन (एनएएसए) के चालक दल की कमान संभाली, जहां उन्होंने 177 दिनों तक सेवा की और स्पेसवॉक किया।
नासा में शामिल होने से पहले चारी वैमानिकी और अंतरिक्ष विज्ञान में मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से मास्टर डिग्री के साथ वायु सेना के परीक्षण पायलट थे। (आईएएनएस)|
गोरखपुर, 27 जनवरी | एक चौंकाने वाली घटना में जिले के छपिया उमरो गांव में एक 70 वर्षीय व्यक्ति ने अपनी 28 वर्षीय बहू से शादी कर ली। सोशल मीडिया पर कपल की तस्वीरें वायरल हो रही हैं। बड़हलगंज थाने में चौकीदार के तौर पर काम करने वाले कैलाश यादव की पत्नी की 12 साल पहले मौत हो गई थी और उनके तीसरे बेटे की भी कुछ समय बाद मौत हो गई।
कैलाश ने अपनी विधवा बहू पूजा की दूसरी शादी करवा दी, लेकिन शादी ज्यादा नहीं चली। इसके बाद वह घर लौट आई और अपने पूर्व पति के घर रहने लगी।
कैलाश ने आस-पड़ोस या गांव में किसी को बताए बिना चुपचाप पूजा से शादी कर ली और फोटो वायरल होने के बाद लोगों को इस बारे में पता चला।
बड़हलगंज थाने के इंस्पेक्टर जे एन शुक्ला ने कहा कि उन्होंने सोशल मीडिया पर फोटो देखी है और अब शादी के बारे में पूछताछ करेंगे। (आईएएनएस)|
काहिरा, 27 जनवरी | मिस्र के प्रसिद्ध पुरातत्वविद् जही हवास ने गीजा के पिरामिडों के पास सक्कारा नेक्रोपोलिस में 4300 साल पुरानी ममी खोजने की घोषणा की है। यह ममी एक पुरुष की है। समाचार एजेंसी शिन्हुआ ने गुरुवार को एक संवाददाता सम्मेलन में हवास के हवाले से कहा, यह ममी मिस्र में आज तक पाई गई सबसे पुरानी ममी है।
पुरातत्वविद् ने कहा कि 15 मीटर गहरे शाफ्ट के नीचे स्थित एक कमरे में बड़े आयताकार चूना पत्थर के सरकोफैगस के अंदर सोने की पत्ती से ढकी ममी पाई गई।
उन्होंने कहा कि सरकोफेगस के आसपास पत्थर के कई बर्तन देखे गए थे, जो मिशन द्वारा खोजे जाने पर सील कर दिए गए है।
सक्कारा में गिसर एल-मुदिर क्षेत्र में प्राचीन वस्तुओं की सर्वोच्च परिषद के साथ काम करने वाली मिस्र की खुदाई टीम के निदेशक हवास ने कहा, सबसे पुरानी ममी साम्राज्य के पांचवें और छठे राजवंशों की कब्रों के एक समूह की महत्वपूर्ण खोज का हिस्सा है।
उन्होंने समझाया कि नई खोजों से संकेत मिलता है कि साइट में एक बड़ा कब्रिस्तान शामिल है।
हवास के अनुसार नई खोजों में सबसे महत्वपूर्ण एक मकबरा है, जो पांचवे वंश के अंतिम राजा खानुमजेडेफ का था।
खानुमदजेदफ का मकबरा दैनिक जीवन के शिलालेखों से सजाया गया है।
दूसरा सबसे बड़ा मकबरा मेरी का था, जो रहस्यों का रक्षक था और महल के महान नेता का सहायक था।
मिशन को मेस्सी के लिए एक तीसरा मकबरा भी मिला। जिसमें नौ खूबसूरत मूर्तियां हैं।
हवास ने कहा कि मिशन ने एक और 10-मीटर-गहरे शाफ्ट को उजागर किया, जिसमें सुंदर लकड़ी की मूर्तियों का एक सेट, फेटेक नाम के एक व्यक्ति का प्रतिनिधित्व करने वाली तीन पत्थर की मूर्तियां, एक मेज और एक पत्थर का सरकोफैगस था, जिसमें ममी थी।
उन्होंने कहा कि मिस्र के मिशन को साइट पर कई ताबीज, पत्थर के पात्र, दैनिक जीवन के उपकरण और अंत्येष्टि देवता पंह-सोकर की मूर्तियां भी मिलीं। (आईएएनएस)|
नोएडा, 27 जनवरी | नोएडा में अब 10 साल पुरानी डीजल गाड़ियां और 15 साल पुरानी पेट्रोल गाड़ियों को जब्त करने की कार्रवाई 1 फरवरी से शुरू होगी। इसके लिए परिवहन विभाग की तरफ से छह टीमों का गठन किया गया है। 1 अक्टूबर 2022 से जिले में पेट्रोल कि 15 साल और डीजल के 10 साल पुरानी गाड़ियों का पंजीकरण निरस्त करने के बाद अब परिवहन विभाग यह कार्रवाई शुरू कर रहा है। दरअसल पुरानी गाड़ियों को स्क्रैप करने के केंद्र सरकार की तरफ से घोषित स्क्रैप पॉलिसी के प्रति दिलचस्पी ना दिखाने के बाद यह निर्णय परिवहन विभाग की तरफ से ये निर्णय लिया गया है। गौतमबुद्ध नगर में यूपी 16 से यूपी 16 जेड से शुरू होने वाले नंबर इन 15 साल पुराने वाहनों की श्रेणी में आते हैं।
गौरतलब है कि एनजीटी के आदेश के बाद गौतमबुद्ध नगर में परिवहन विभाग ने 15 साल पुरानी 1,19,612 गाड़ियों का पंजीकरण निरस्त किया है। नोएडा में अब ऐसी गाड़ियां दिखने पर इनको जब्त करने का विशेष अभियान शुरू हो जाएगा। परिवहन विभाग के अधिकारी बताते हैं कि 15 साल से ज्यादा पुरानी सभी गाड़ियों को नोटिस 2 माह पहले ही जारी किया जा चुका है। ऐसे वाहन मालिकों को स्क्रैप पॉलिसी के तहत छूट या परिवहन विभाग की तरफ से एनओसी लेकर दूसरे जिले में वाहन ले जाने की छूट है। ऐसे वाहन स्वामी की तरफ से स्क्रैप पॉलिसी वा एनओसी को लेकर अपेक्षा के अनुरूप दिलचस्पी ना दिखाए जाने के कारण ही विशेष अभियान शुरू करने का निर्णय लिया गया है। (आईएएनएस)|
मुजफ्फरपुर, 27 जनवरी | बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के कांटी थाना क्षेत्र में एक गहरे तालाब में डूब कर तीन बच्चों सहित एक गर्भवती महिला की मौत हो गई। सभी शवों को तालाब से बाहर निकाल लिया गया है। कुछ लोग इसे आत्महत्या से भी जोड़कर देख रहे हैं। पुलिस के एक अधिकारी ने शुक्रवार को बताया कि शाहपुर पंचायत के शाहबाजपुर गांव में पशुओं का चारा लाने के दौरान दर्दनाक हादसा हुआ। शुक्रवार को सभी शवों को तालाब से निकाल लिया गया है।
बताया जाता है कि गुरुवार की देर शाम महिला अपने तीन बच्चों को लेकर चारा लाने गई थी, इसी दौरान यह घटना घटी। शाहपुर पंचायत के मुखिया मिथिलेश पासवान ने कहा कि महिला काफी गरीब थी किसी तरह अपना गुजर-बसर करती थी। आशंका व्यक्त की जा रही है कि घास काटने गई महिला फिसल गई और तालाब में डूब गई।
मृतकों में रीमा देवी और उसके तीन बच्चे रिचा कुमारी, राधिका कुमारी और प्रीति उर्फ रोशनी कुमारी शालि हैं।
बताया जाता है कि मृतका का पति भीम रजक मजदूरी कर अपने परिवार का भरण पोषण करता था और अभी वर्तमान में उसके पैर की हड्डी टूटी हुई है।
मुजफ्फरपुर (पश्चिम) के डीएसपी अभिषेक आनंद ने कहा कि सभी शवों को बरामद कर लिया गया है तथा पूरे मामले की छानबीन की जा रही है। शवों को पोस्टमार्टम के लिए अस्पताल भेज दिया गया है। (आईएएनएस)|
फ़ैसल मोहम्मद अली
"बिलकिस बानो पसमांदा समाज से ही संबंध रखती हैं, उनके बलात्कारियों और परिवार की हत्या करने वालों को बीजेपी ने टिकट देकर जिताया, मोदी चाहते हैं पसमांदा मसले का इस्तेमाल कर मुसलमानों को अगड़ों-पिछड़ों में बांटकर राजनीतिक लाभ लिया जाए."
पसमांदा मुस्लिम महाज़ के नेता और जनता दल यूनाइटेड के राज्यसभा सांसद रहे अली अनवर अंसारी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बयान पर कुछ इस तरह की प्रतिक्रिया दी.
पिछले हफ़्ते हुई भारतीय जनता पार्टी की कार्यकारिणी की बैठक में प्रधानमंत्री ने बीजेपी कार्यकर्ताओं से कहा, "आप लोग पसमांदा मुसलमान, बोहरा समुदाय के लोगों और शिक्षित मुसलमानों से वोट की चिंता किए बिना मिलें."
पसमांदा मुसलमान जैसे जुलाहे, धुनिया, घासी, क़साई, तेली और धोबी वग़ैरह, जिन्हें भारतीय परिवेश में निचली जातियों में गिना जाता है, लंबे समय से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के फ़ोकस में रहे हैं, लेकिन पार्टी की पिछली दो कार्यकारिणियों, 2022 में हैदराबाद और जनवरी 2023 में दिल्ली में ख़ास तौर पर उन्होंने उनका ज़िक्र किया.
पसमांदा मुस्लिम समाज के इर्द-गिर्द राजनीति भारत में नई नहीं है, बल्कि बीसवीं सदी से ही अंजुमन-ए-इस्लाह बिलफ़्लहा, फ़लाह-उल-मोमिनीन और जमीयत-उल-मोमिनीन जैसे संगठनों के रूप में सामने आती रही है.
जमीयत-उल-मोमिनीन ही बाद में ऑल इंडिया मोमिन कॉंफ्रेंस की शक्ल में सामने आया जिसके सबसे बड़े नेताओं में से एक थे अब्दुल क़यूम अंसारी. इन दिनों बीजेपी उन्हें अपने एक आइकन के रूप में अपनाने की ओर बढ़ रही है.
अब्दुल क़यूम अंसारी पिछड़े मुसलमानों के नेता थे, बिहार से आने वाले अंसारी ने लंबे समय तक भारत के विभाजन का विरोध किया था, उन्होंने भारत के विभाजन को अशराफ़ (ऊँची जाति) मुसलमानों का प्रोजेक्ट बताया था.
अब्दुल क़यूम अंसारी की पुण्यतिथि और बीजेपी
बिहार विधान परिषद सभागार में अब्दुल क़यूम अंसारी की पुण्यतिथि पर 18 जनवरी को एक कार्यक्रम आयोजित किया गया जिसकी देख-रेख बीजेपी विधायक संजय पासवान कर रहे थे. संजय पासवान की ही देख-रेख में पिछले साल दिसंबर में पसमांदा मुस्लिम समाज से जुड़ा एक कार्यक्रम हुआ था जिसमें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के राम माधव शामिल हुए थे.
दूसरी तरफ़, पसमांदा समाज के मौजूदा वरिष्ठ नेता, अली अनवर अंसारी समुदाय को नरेंद्र मोदी और बीजेपी से दूर रहने की चेतावनी दे रहे हैं.
वे कहते हैं, "मोदी को न तो मुसलमानों से प्रेम है, न ही पसमांदा से, उनके लोग गाय व्यापार के नाम पर जो लिंचिग करते हैं उसे लेकर बुलडोज़र चलाने और फल-सब्ज़ी वाले लोगों के बायकॉट का सबसे ज़्यादा असर पसमांदा समाज से ताल्लुक़ रखने वाले मुसलमानों पर ही पड़ता है."
अली अनवर अंसारी ने प्रधानमंत्री को इस मामले में हैदराबाद बीजेपी बैठक के बाद ही एक लंबी चिट्ठी लिखी थी.
इस पत्र में उन्होंने दलित मुसलमानों के लिए शिक्षण संस्थानों-नौकरियों में आरक्षण के सवाल को उठाया था, मंत्रियों की हेट-स्पीच का ज़िक्र किया गया था. इसमें आरोप लगाया गया था कि बीजेपी की पूरी पसमांदा पहल वोट बैंक पॉलटिक्स के सिवा कुछ नहीं है, जिसे मुसलमानों को मुसलमानों से लड़ाकर हासिल करने की कोशिश की जा रही है.
अली अनवर मांग करते हैं कि मुसलमानों में हलालख़ोर, धोबी, मोची, भटियारा, गदेही जैसे दर्जनों समुदाय हैं जिन्हें सच्चर कमेटी और रंगनाथ मिश्रा कमेटी ने अनुसूचित जाति का दर्जा दिए जाने की सिफ़ारिश की थी उसे तुरंत लागू किया जाए.
वो पूछते हैं कि क्या सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में नहीं कहा है कि वो इन सिफ़ारिशों को नहीं मानेगी?
बीबीसी से फ़ोन पर हुई एक लंबी बातचीत में उन्होंने कहा कि पत्र के प्रधानमंत्री कार्यालय में पहुँचने की रसीद उनके पास है, लेकिन साल भर बीत जाने के बावजूद उन्हें किसी तरह का जवाब हासिल नहीं हुआ है.
जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वद्यालय में राजनीति शास्त्र के प्रोफ़ेसर मुजीब-उर-रहमान कहते हैं, "जवाब है ही नहीं तो मिलेगा कैसे? जिस पार्टी के मूल विचार में एंटी-मुस्लिम एजेंडा रहा है वो अचानक से इसे कैसे छोड़ देगी और अगर ऐसा हुआ तो उसके कोर वोटर का क्या होगा?"
मुजीब-उर-रहमान मानते हैं कि बीजेपी ने कुछ दलित और धर्मनिरपेक्ष संगठनों की रणनीति की काट खोजी है, जिसमें वो दलितों और मुसलमानों को साथ लाकर भारतीय समाज-राजनीति में उच्च वर्ग के दबदबे को चैलेंज करना चाहते थे, मोदी ने प्रगतिशील वर्ग (लिबरल्स) को उन्हीं के शब्दों में इसका जवाब दे दिया है.
अली अनवर कहते हैं उन्हें अभी तक पीएम नरेंद्र मोदी को लिखी चिट्ठी का जवाब नहीं मिला है
बिना मुसलमान के हिंदुत्व नहीं: संघ
बात सिर्फ मोदी के पसमांदा, मुसलमानों तक पहुँच की नहीं है, ये भी याद रखा जाना चाहिए कि हिंदुत्व की विचारधारा के सबसे बड़े संगठन, राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ (आरएसएस) के मोहन भागवत भी कह रहे हैं कि बिना मुसलमानों के हिंदुत्व नहीं.
एक ओर नरेंद्र मोदी जहाँ बार-बार 'पिछड़े मुसलमानों का हिस्सा सैयदों-पठानों ने हड़प लिया', की बात कर रहे हैं और 'अल्पसंख्यकों के साथ नए सामाजिक समीकरण तैयार करने' का मुद्दा उठा रहे हैं. वहीं आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत लेफ्टिनेंट जनरल ज़मीरूद्दीन शाह, पूर्व चुनाव आयुक्त एसवाई क़ुरैशी, उर्दू के वरिष्ठ पत्रकार शाहिद सिद्दीक़ी से लेकर जमीयत-ए-उलेमा-ए-हिंद के मौलाना अरशद मदनी तक से मिलते रहे हैं.
संघ का संगठन मुस्लिम राष्ट्रीय मंच पिछले लगभग 15 वर्षों से समुदाय के भीतर पहुंच बनाने में लगा है.
नरेंद्र मोदी ने पहली बार सीधे तौर पर मुसलमानों के भीतर पिछड़े समुदाय का ज़िक्र साल 2017 में यानी प्रधानमंत्री का पद समंभालने के दो साल बाद ही पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में किया था, जिसमें उन्होंने कहा था "मुसलमानों और दूसरे धर्मों में भी पिछड़ी जातियाँ मौजूद हैं. पिछड़ी जातियों को मिलने वाली सुविधाएं मुसलमानों के पिछड़े वर्गों तक भी पहुंचनी चाहिए. सैयद और पठान इन सुविधाओं को हथिया लेते हैं."
साल 2022 में हैदराबाद में उन्होंने कहा कि समुदायों को केवल एक वर्ग के तौर पर नहीं देखा जाना चाहिए क्योंकि उसके भीतर भी समाज में स्थान के आधार पर अलग-अलग हित और विचार होते हैं.
हैदराबाद में पसमांदा मुसलमानों में पार्टी के प्रति भरोसे की कमी को 'स्नेह यात्राओं' के ज़रिए पाटने की बात कही गई थी.
नरेंद्र मोदी ने उत्तर प्रदेश के पसमांदा मुसलमानों के एक प्रतिनिधि मंडल से लंबी मुलाक़ात की थी जिसके कुछ ही माह बाद पार्टी की यूपी इकाई ने अपने यहाँ बुनकर सेल की स्थापना कर दी थी.
दर्जनों पसमांदा संगठन कार्यरत
बेंगलुरू स्थित अज़ीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी में समाजशास्त्र के प्रोफ़ेसर ख़ालिद अनीस अंसारी कहते हैं कि सबका विकास, सबका विश्वास, सबका प्रयास वाला नरेंद्र मोदी का नारा काम करता दिख रहा है, उत्तर प्रदेश में 2022 के चुनाव में अंदाज़न आठ फीसदी मुसलमान वोट पार्टी के खाते में गए हैं.
ख़ालिद अनीस अंसारी कहते हैं कि बीजेपी को अगर आठ या उससे अधिक फ़ीसद मुसलमान वोट हासिल हो जाते हैं तो उनके लिए तो ये दोनों हाथों में लड्डू वाली बात होगी क्योंकि ये वोट तो दूसरे दलों का रहा है, जैसे समाजवादी, कांग्रेस या बहुजन समाज पार्टी से छिनकर ही उनके खाते में जाएगा.
इस समय उत्तर से लेकर पश्चिम भारत तक ऑल इंडिया बैकवॉर्ड मुस्लिम मोर्चा, पसमांदा फ्रंट, पसमांदा समाज, महाराष्ट्र की अखिल भारतीय मुस्लिम मराठी साहित्य सम्मेलन जैसी दर्जनों से अधिक संस्थाएँ काम कर रही हैं. इसके अलावा बीजेपी के उत्तर प्रदेश अल्पसंख्यक मोर्चा के अध्यक्ष कुंवर बासित अली आधे दर्जन पसमांदा समूहों का नाम गिनवाते हैं जो उनके साथ काम कर रही हैं.
बीजेपी अल्पसंख्यक मोर्चा पिछले साल से लेकर अब तक दो बड़े पसमांदा सम्मेलन लखनऊ और रामपुर में सीधे तौर पर कर चुकी है, उससे जुड़े संगठन भारतीय मुस्लिम पसमांदा मंच, उत्तर प्रदेश मुस्लिम पसमांदा काउंसिल जैसे संगठनों के अलावा.
बासित अली कहते हैं कि जल्द ही काशी, मुरादाबाद, सहारनपुर, संभल, गोरखपुर में पसमांदा सम्मेलनों की योजना है जिसमें वो समुदाय के लोगों से कहेंगे कि हुकूमत ने जो 45 लाख मकान बनाकर दिए उसमें से 19 लाख मुसलमानों के हिस्से में गए. वही स्थिति आयुष्मान भारत के तहत मिलने वाले लाभ, शौचालय निर्माण और शिक्षा के लिए स्कॉलरशिप की है.
प्रधानमंत्री मोदी के उस बयान को बासित अली सामने रखते हैं जिसमें उन्होंने कहा था कि वो मुसलमानों के एक हाथ में क़ुरान और दूसरे में लैपटॉप देखना चाहते हैं.
पसमांदा समुदाय केरल में और तमिलनाडु में ओसान (नाई) और पुसुलार (मछुआरे) ख़ुद अपनी तंज़ीमें बनाकर आवाज़ उठाने की कोशिश में हैं.
ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज़ में भी फूट
इधर अली अनवर अंसारी की ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज़ में भी फूट दिखती है.
ख़ुद को पसमांदा मुस्लिम महाज़ के एग्ज़ीक्यूटिव डायरेक्टर बताने वाले मुहम्मद यूनुस मोदी के कार्यकारिणी में दिए गए बयान का स्वागत करते हुए कहते हैं कि लाभार्थी के तौर पर ये पसमांदा समाज को और अधिक मात्रा में समर्थन देने के लिए प्रेरित करेगा.
मोहम्मद यूनुस ने दावा किया कि महाज़ ने अपनी शाखाएँ बिहार के बाद उत्तर प्रदेश, झारखंड, उत्तराखंड, दिल्ली, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र को मिलाकर दस राज्यों में शुरू कर दी हैं.
सब चाहते हैं 'हमारी बोली लगे', ख़ालिद अनीस अंसारी हंसते हुए कहते हैं.
मोहम्मद यूनुस कहते हैं ''हम विधायक, सासंद का पद नहीं चाहते, हमारी मांग है कि सरकार पसमांदा समाज को शिक्षा, स्वास्थ्य, नौकरियाँ दे.''
मगर उनसे सवाल किया गया कि सरकार तो दलित मुसलमानों को रिज़र्वेशन देने के पक्ष में नहीं, जबकि सवर्ण हिंदुओं तक को आर्थिक आधार पर आरक्षण दे दिया गया तो उनका कहना था कि आरक्षण के मामले को उन्होंने सरकार से अलग से उठाया है.
कामकाज के लिए वो चाहते हैं कि कम-से-कम छोटा-मोटा क़र्ज़ ही बैंक से मिल जाए ताकि पसमांदा समाज के लोग रोज़गार शुरू कर पाएँ.
हिंदू वोट एकजुट, मुसलमान वोट में फूट
नरेंद्र मोदी जब गुजरात में मुख्यमंत्री थे तब उनके बेहद क़रीबी समझे जाने वाले, लेकिन अब दूर हो गए ज़फ़र सरेशवाला का भी मानना है कि पीएम की पहल को स्वीकार करना ही होशमंदी का काम होगा.
सुन्नी बोहरा समुदाय से ताल्लुक़ रखने वाले ज़फ़र सरेशवाला कहते हैं, "बहुत सारी बातें आज मुसलमानों के दायरे से बाहर चली गई हैं, जैसे नागरिकता क़ानून बनवाना या ख़त्म करवाना, राजनीति में उनकी हिस्सेदारी इस तरह ख़त्म कर दी गई है मानो मुसलमानों के वोट की कोई औक़ात नहीं. समुदाय को शिक्षा, रोज़गार इन दो चीज़ों पर ध्यान केंद्रित कर देना चाहिए, और इनमें जो मदद मिल सके वो किसी भी तरह से सरकार के माध्यम से ही हासिल करने की कोशिश करें."
जफ़र सरेशवाला कहते हैं कि छवि के उलट उनकी जानकारी में नरेंद्र मोदी ने बहुत सारे काम किए हैं जो पसमांदा मुसलमानों के हित के रहे हैं.
सरेशवाला कहते हैं, "उन्होंने बहुत सारे मुस्लिम युवकों को जेल से बाहर करवाने में हमारी मदद की. साल 2009 में शाहपुर दरवाज़े के बाहर जब साढ़े तीन सौ मकान टूटने की नौबत आई तो उन्होंने म्युनिसिपल कमिश्नर से मेरे सामने फ़ोन कर उसे रुकवाया."
पेशे से बड़े व्यवसायी ज़फ़र सरेशवाला मानते हैं कि हो सकता है कि मोदी का हालिया बयान राजनीति से प्रेरित हो. वे कहते हैं, "हिंदुओं का वोट तो उनके पास है ही, कम या ज़्यादा होगा वो भी तो उसी में से होगा, अगर कमी हुई तो उसे तो कहीं-न-कहीं से पूरा करना होगा."
इस्लामिक स्टडीज़ के जाने-माने विद्वान अ़ख्तरूल वासे नरेंद्र मोदी-आरएसएस की पूरी पहल के बारे में कहते हैं, "एक तरफ़ हिंदू समाज की खाइयों को पाटने की कोशिश हो रही है, दूसरी तरफ़ मुस्लिमों में उसे बढ़ाने की."
अशोका यूनिवर्सिटी में राजनीति शास्त्र के प्रोफेसर अली ख़ान महमूदाबाद के मुताबिक़, "इसका असली मक़सद है मुसलमान आपस के झगड़ों में उलझा रहे और वोट बंटता रहे."
पहले शिया-दरगाही, अब पसमांदा
ये पहली बार नहीं कि बीजेपी-आरएसएस ने मुसलमानों के भीतर किसी ख़ास वर्ग को साधने की कोशिश की हो, पहले वो सूफ़ी-ख़ानकाहों से जुड़े लोगों और फिर शिया समुदाय से जुड़ने की कोशिश कर चुके हैं, लेकिन दोनों में उसे कोई बड़ी सफलता नहीं हासिल हुई.
बीजेपी के कई नेता लखनऊ में मोहर्रम के माह में जलसा-जुलूसों में शामिल रहे हैं और शिया समुदाय को लेकर बयान भी दिए हैं, लेकिन शायद अब ये एहसास हो चला है कि उनकी तादाद कुल मुस्लिम आबादी में बहुत थोड़ी है.
हालांकि पसमांदा मुस्लिम समुदाय की आबादी को लेकर काई ठोस आंकड़ा फ़िलहाल मौजूद नहीं क्योंकि 1931 के बाद जातिगत जनगणना का काम बंद कर दिया गया है लेकिन एक अनुमान है कि पसमांदा मुसलमान, कुल मुस्लिम आबादी का 80 से 85 फ़ीसदी तक हो सकता है.
मंडल कमीशन ने कम-से-कम 82 सामाजिक समूहों की पहचान की थी जिसे उसने पिछड़े मुसलमानों की श्रेणी में रखा था.
नेशनल सैंपल सर्वे ऑर्गनाइज़ेशन (एनएसएसओ) के अनुसार, मुसलमानों में ओबीसी जनसंख्या 40.7 फ़ीसद है जो कि देश के कुल पिछड़े समुदाय की तादाद का 15.7 फ़ीसदी है.
अली अनवर अंसारी ने प्रधानमंत्री को ख़त भेजने के साथ ही विपक्षी दलों को भी चिट्ठी भेजी थी जिसमें उन्होंने पसमांदा वर्गों के प्रतिनिधित्व की बात उठाई थी, साथ ही, ये भी पूछा था कि वो दलित मुसलमानों-ईसाइयों के आरक्षण के मुद्दे पर ख़ामोश क्यों हैं?
विपक्ष की ओर से भी चिट्ठी का जवाब अब तक नहीं आया है.
अली अनवर दावे करते हैं, "मुसलमानों का वोट बीजेपी के खाते में नहीं जाएगा, दलित मुसलमान भी रेलवे के कंपार्टमेंट की तरह है, जनरल, एसी वन, टू, थ्री. हो सकता है कुछ लोग बिक जाएँ".
उनके अनुसार पसमांदा लोगों को बीजेपी वालों के ज़रिये तीन-चार बातें समझाई जा रही हैं -'हम हाथ बढ़ा रहे हैं, तुम भी बढ़ाओ, जिसको वोट दे रहे थे अब तक वो तो तुम्हारा नाम भी लेने से डरता है, तीसरा, हम तो जानेवाले नहीं 2024 में फिर आएंगे...'
संजय पासवान कहते हैं कि ये सही है कि मुसलमान अब तक बीजेपी को वोट नहीं दे रहा मगर ये जो नोटा की श्रेणी में मतपत्रों पर ठप्पे लग रहे हैं ये कांग्रेस और सोशलिस्टों को रिजेक्ट कर रहे वोटर हैं.
वो थोड़ा रूककर कहते हैं, "और किसने सोचा था, यादव कभी मोदी को वोट देगा?" (bbc.com/hindi)
हर साल भारत के सर्वश्रेष्ठ तकनीकी संस्थानों में छात्रों को मिलने वाले करोड़ों के जॉब ऑफर खबरों में रहते थे. लेकिन मंदी और भारी छंटनी के मौजूदा दौर में बड़ी अमेरिकी कंपनियों ने जैसे आईआईटी से भी मुंह मोड़ लिया.
डॉयचे वैले पर प्रभाकर मणि तिवारी की रिपोर्ट-
आईआईटी में दाखिले को अमेजन, गूगल, मेटा, माइक्रोसाफ्ट और ट्विटर जैसी अमेरिकी कंपनियों में नौकरी पाकर सात समंदर पार जाने का सबसे आसान रास्ता माना जाता था. इस साल ऐसी ज्यादातर कंपनियों ने या तो प्लेसमेंट में हिस्सा ही नहीं लिया या फिर अंगुली पर गिने जाने लायक नौकरी के ऑफर दिए. दिसंबर से शुरू हुए प्लेसमेंट सीजन में तमाम आईआईटी में तस्वीर कमोबेश एक जैसी ही है.
वैश्विक मंदी और बड़े पैमाने पर जारी छंटनी के बीच भारतीय तकनीकी संस्थानों (आईआईटी) में वर्ष 2022-23 प्लेसमेंट सीजन में अमेरिका की दिग्गज तकनीकी कंपनियों की ओर से मिलने वाले नौकरी के प्रस्तावों में भारी गिरावट दर्ज की गई है. अमेजन, माइक्रोसॉफ्ट, गूगल और मेटा जैसी कंपनियों ने इस बार आईआईटी से कैंपस प्लेसमेंट के जरिए छात्रों को या तो नौकरियां नहीं दी हैं या फिर खानापूर्ति के नाम पर बहुत कम छात्रों को ऑफर दिया है.
ज्यादातर बड़ी अमेरिकी कंपनियों ने हाल के दिनों में बड़े पैमाने पर छंटनी का एलान किया है. गूगल ने हाल में करीब छह फीसदी यानी 12 हजार कर्मचारियों की छंटनी का फैसला किया है. इसी तरह माइक्रोसॉफ्ट ने 10 हजार कर्मचारी घटाने का फैसला किया है. अमेजन पहले ही 18 हजार नौकरियां घटाने का फैसला कर चुका है. यह किसी भी अमेरिकी तकनीकी कंपनी की ओर से सबसे बड़ी छंटनी है. पहले यह तादाद 10 हजार होने का अनुमान था. इससे एक ओर जहां तकनीकी विशेषज्ञों के सामने बेरोजगारी की समस्या पैदा हो गई हैं, वहीं आईआईटी में प्लेसमेंट पर भी इसका प्रतिकूल असर पड़ा है.
भारतीय तकनीकी संस्थानों में अमूमन दो चरणों में प्लेसमेंट होता है. इसका पहला चरण दिसंबर में और दूसरा जनवरी और जून के बीच आयोजित किया जाता है. पश्चिम बंगाल के खड़गपुर स्थित आईआईटी में अब तक महज 45 अंतरराष्ट्रीय ऑफर मिले हैं. लेकिन इनमें से अमेरिकी कंपनियों की ओर से महज तीन ऑफर मिले हैं. जापान, ताइवान और सिंगापुर की कंपनियों ने क्रमशः 28, नौ और दो छात्रों को नौकरी दी है.
आईआईटी, मद्रास के सलाहकार (प्लेसमेंट) सथ्यन सुब्बैया कहते हैं, "इस साल अमेजन तो प्लेसमेंट के लिए आई ही नहीं. गूगल और माइक्रोसॉफ्ट जरूर आए थे. लेकिन उनके ऑफर बीते साल के मुकाबले बहुत सीमित रहे.” आईआईटी, दिल्ली की तस्वीर भी एक जैसी ही है. संस्थान की करियर सेवा के प्रमुख ए. मदान के मुताबिक, अमेजन ने प्राथमिक टेस्ट के बाद प्लेसमेंट प्रक्रिया में हिस्सा ही नहीं लिया. गूगल और अमेजन ने बीते साल आईआईटी, रूड़की में नौकरियों और प्री-प्लेसमेंट (पीपीओ) के कई ऑफर दिए थे. लेकिन इस साल दोनों नदारद रहीं. आईआईटी, मंडी में बीते साल गूगल ने तीन छात्रों को नौकरी दी थी. लेकिन इस साल उसने खाता भी नहीं खोला. माइक्रोसाफ्ट ने जरूर 11 छात्रों को नौकरियां दी हैं.
विशेषज्ञों का कहना है कि कोविड-19 के बाद अचानक काम बढ़ने पर ज्यादातर कंपनियों ने बड़े पैमाने पर भर्तियां की थी. लेकिन अब स्थिति सामान्य होने के बाद उनको खर्चों में कटौती के लिए मजबूरन छंटनी का रास्ता अख्तियार करना पड़ रहा है.
आईआईटी, गुवाहाटी के एक छात्र नाम नहीं छापने की शर्त पर बताते हैं, "वैश्विक मंदी और छंटनी का असर प्लेसमेंट पर साफ नजर आ रहा है. बीते साल कुछ छात्रों को विदेशी स्टार्टअप कंपनियों में नौकरियों के ऑफर मिले थे. लेकिन आर्थिक मंदी के चलते उनको अब तक ज्वाइन करने की तारीख नहीं बताई गई है. इसी तरह कुछ कंपनियों ने अपने ऑफर वापस ले लिए हैं. लेकिन कई कंपनियां ऐसी हैं जिन्होंने न तो ऑफर वापस लिया है और न ही ज्वाइनिंग की तारीख बताई है.”
आईआईटी, मंडी की प्लेसमेंट सेल के प्रोफेसर तुषार जैन कहते हैं, "मंदी के कारण इस साल स्टार्टअप कंपनियों की प्लेसमेंट में भागीदारी काफी कम रही है.”
कोलकाता में एक प्रबंधन संस्थान में प्रोफेसर डॉ. सुमन घोष बताते हैं, "महामारी के दौरान पूरी दुनिया में लोग घर से काम कर रहे थे. इससे आनलाइन गतिविधियां तेजी से बढ़ी. लेकिन अब हालात सामान्य होने के बाद ऑनलाइन गतिविधियों में तेजी से गिरावट आ रही है. नतीजतन आनलाइन प्लेटफार्म पर काम घटा है और नुकसान बढ़ा है. इस नुकसान की भरपाई के लिए ज्यादातर कंपनियां छंटनी का सहारा ले रही हैं.”
क्या आने वाले दिनों में हालात में सुधार की कोई संभावना है? इस सवाल पर डा. घोष कहते हैं, "फिलहाल यह कहना मुश्किल है. यह इस बात पर निर्भर है कि वैश्विक मंदी से दिग्गज कंपनियों का कामकाज कितना प्रभावित होता है और बड़े पैमाने पर छंटनी के बावजूद ऐसी कंपनियां मुनाफे की राह पर बढ़ती हैं या नहीं."
अमेरिकी कंपनियों के मुकाबले आईआईटी के छात्रों को एशियाई देशों के ऑफर ज्यादा मिले हैं. वहीं कुछ छात्रों को घरेलू कंपनियोंने भी करोड़ से ज्यादा का सालाना पैकेज दिया है. लेकिन हर हाल में उनका 'अमेरिकन-ड्रीम' तो धुंधलाने ही लगा है. (dw.com)
18वीं और 19वीं सदी में एक दूसरे से लड़ते रहे जर्मनी और फ्रांस ने अपनी दोस्ती की 60 वीं वर्षगांठ मनाई है. सदियों की दुश्मनी के बाद दशकों की दोस्ती. क्या भारत और पाकिस्तान कभी दोस्त बन पाएंगे?
डॉयचे वैले पर महेश झा की रिपोर्ट-
पेरिस की विश्वप्रसिद्ध सॉरबॉन यूनिवर्सिटी में एलिजे संधि की 60वीं वर्षगांठ मनाई गई. वह संधि, जिसने फ्रांस और जर्मनी की सदियों पुरानी दुश्मनी पर मरहम लगाना शुरू किया. नतीजा ये है कि आज 60 साल बाद दोनों देशों की दोस्ती को शांति और यूरोप के विकास की धुरी माना जाता है. लेकिन दोस्ती की ये प्रक्रिया आसान नहीं रही है. दुश्मनी के घाव काफी गहरे थे.
आज जैसे भारत और पाकिस्तान की धुर दुश्मनी की बात होती है, वैसे ही कभी जर्मनी और फ्रांस की भी होती थी. दुश्मनी तब धुर दुश्मनी में बदल जाती है जब कई पीढ़ियां उस दुश्मनी को जारी रखती हैं. 19वीं सदी में यूरोप में राष्ट्रवाद उफान पर था, जिसमें सत्ता संघर्ष और राज्यों के बीच प्रतिस्पर्धा को आम जनता के बीच दुश्मनी का नाम दिया जाता था. सरकारें एक दूसरे का विरोध करने में लगी हों तो आम लोगों के लिए दोस्त बने रखना मुश्किल हो जाता है. यह हम आज भारत और पाकिस्तान के मामले में भी देख रहे हैं.
दुश्मन कैसे बने दोस्त
जर्मनी और फ्रांस का झगड़ा 17वीं सदी में लुडविष 16वें के रियूनियन युद्ध और जर्मनी के पलैटिनेट में उत्तराधिकार के झगड़े में हस्तक्षेप से लेकर 1870-71 में जर्मन एकीकरण से पहले के युद्ध और उसके बाद पहले और दूसरे विश्व युद्ध तक चला. पहले जर्मन एकीकरण से पहले जर्मनी के रजवाड़े रोमन साम्राज्य का हिस्सा हुआ करते थे जो एकल रजवाड़ों की संप्रभुता को मान्यता देता था. इसलिए जर्मनी की कोई साझा विदेश नीति नहीं हुआ करती थी. लेकिन रजवाड़ों के मामलों में हस्तक्षेप के कारण लड़ाइयां होती रहीं. नेपोलियन ने जर्मनी को जीता तो जर्मन राष्ट्रवादियों ने नेपोलियन के खिलाफ आजादी का संघर्ष किया.
दोनों देश सदियों तक एक दूसरे को रौंदते और अपमानित करते रहे. उन्होंने एक दूसरे को नीचा दिखाने का कोई मौका नहीं गंवाया. पहले विश्व युद्ध में जर्मनी की हार के बाद अपमानजनक वर्साय संधि और दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान फ्रांस पर नाजी जर्मनी के कब्जा और विरोधियों के बेदर्दी से दमन ने इस अविश्वास को और हवा दी. दोनों ही ओर अविश्वास का घना बादल था, जिसका छंटना इतना आसान नहीं दिखता था.
ऐसे रखी दोस्ती की नींव
वर्षगांठ समारोह के मौके पर फ्रांस के राष्ट्रपति इमानुएल माक्रों ने जर्मनी और फ्रांस को एक छाती में दो आत्माओं की संज्ञा दी तो जर्मनी के चांसलर ओलाफ शॉल्त्स ने दोस्ती के लिए फ्रांसीसी लोगों का आभार व्यक्त किया. 1950 के दशक में यूरोपीय समुदाय के गठन के साथ चिर परिचित दुश्मनी का अंत शुरू हुआ और 1963 में एलिजे संधि के साथ दोनों देशों के बीच दोस्ती की शुरुआत हुई. इसके पीछे फ्रांस और जर्मनी के तत्कालीन नेताओं की अपनी अपनी सोच थी. फ्रांस के राष्ट्रपति चार्ल द गॉल जर्मनी को फ्रांस के साथ इसलिए जोड़ना चाहते थे कि वह ब्रिटेन और अमेरिका के साथ उनके देश के खिलाफ मोर्चा न बनाए. दूसरी ओर जर्मनी के चांसलर कोनराड आडेनावर फ्रांस के करीब जाकर यूरोप में जर्मनी के खिलाफ व्याप्त संदेह को दूर करना चाहते थे.
फ्रांस और जर्मनी की दोस्ती को पुख्ता बनाने वाली एलिजे संधि में ये तय किया गया कि दोनों देशों के नेता आपसी मेलमिलाप बढ़ाएंगे, सरकार प्रमुख साल में कम से कम दो बार, विदेश और रक्षा मंत्री हर तीन महीने पर और सेना प्रमुख हर दो महीने पर मिलेंगे. विदेश नीति का लक्ष्य जितना संभव हो, साझा रुख की ओर पहुंचना था. इसके अलावा सांस्कृतिक आदान-प्रदान बढ़ाने के लिए एक दूसरे की भाषा सीखने को प्रोत्साहन देने, शोध में सहयोग बढ़ाने और युवा लोगों के आदान-प्रदान का फैसला लिया गया. ये संधि का सबसे सफल नतीजा माना जाता है. अब तक दोनों देशों के करीब एक करोड़ युवा इस आदान-प्रदान में हिस्सा ले चुके हैं और अपनी स्कूल या कॉलेज का कुछ समय एक दूसरे के देश में गुजार चुके हैं.
दोस्ती की अड़चनें
उस जमाने में सब इस संधि से खुश भी नहीं थे. अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी को दोनों देशों के करीब आने से चिंता हो रही थी क्योंकि फ्रांस नाटो को पूरी तरह अस्वीकार कर रहा था. उन्होंने इस संमधि को रोकने की भी कोशिश की थी. लेकिन जर्मनी ने अमेरिका के साथ निकटता का इजहार कर इस संधि को बचा लिया.
बीस साल पहले संधि की 40वीं वर्षगांठ पर दोनों देशों ने मंत्रिमंडलों की साझा बैठक करने का फैसला लिया, जो आज भी जारी है. ये फॉरमेट इतना लोकप्रिय हो चुका है कि इस बीच जर्मनी भारत के साथ भी मंत्रिमंडल स्तरीय शिखर भेंट करता है. जर्मनी और फ्रांस की संधि की पराकाष्ठा 50वीं वर्षगांठ पर दोनों देशों की संसदों की संयुक्त बैठक थी.
हिम्मत दिखानी होगी
इस सबके बावजूद ऐसा नहीं है कि दोनों देशों के बीच मतभेद नहीं हैं. मतभेद उभरते रहते हैं और पिछले सालों में बनी संस्थाओं के जरिए उन्हें सुलझाने का प्रयास भी जारी रहता है. अभी भी चाहे यूक्रेन को हथियार देने की बात हो या अर्थव्यवस्था में ग्रीन बदलाव की, दोनों देश पूरी तरह सहमत नहीं दिखते. साझा नीति तय करने में समय जरूर लगता है, लेकिन आखिरकार वे साझा नतीजों पर पहुंचते हैं.
भारत और पाकिस्तान भी जर्मनी और फ्रांस की मिसाल लेकर शांति की ओर बढ़ सकते हैं. लेकिन इसके लिए उन्हें साझा मूल्यों पर बात करनी होगी. शांति और विकास के लक्ष्य के साथ समानता और लोकतंत्र, वे मूल्य हैं जो दोनों देशों को करीब ला सकते हैं. और उन मूल्यों के आधार पर कुछ संस्थाएं बनानी होंगी, पारस्परिक सहयोग को प्रोत्साहन देने वाली संस्थाएं, युवाओं को करीब लाने वाली संस्थाएं, जो भविष्य में दोस्ती को पुख्ता करेंगी और बनाए रख सकेंगी. और ऐसा तभी हो पाएगा जब दोनों ही देशों के नेता हिम्मत दिखाएंगे और साहसिक फैसले लें. (dw.com)
दुनिया के आठ अरब लोगों में से करीब पांच अरब लोगों को 'ट्रांस फैट्स' की वजह से दिल की बीमारियों का खतरा है. आम तौर पर औद्योगिक पैमाने पर उत्पादित इस वसा का उपयोग खाना पकाने के तेल, बेकरी उत्पादों में किया जाता है
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की ताजा रिपोर्ट के अनुसार ट्रांस फैट दुनिया में एक बड़ी स्वास्थ्य समस्या बन गई है. मिस्र, पाकिस्तान, ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण कोरिया ट्रांस फैट से होने वाली बीमारियों से सबसे ज्यादा प्रभावित देशों में से हैं.
डब्ल्यूएचओ के आंकड़ों के अनुसार औद्योगिक रूप से उत्पादित वसा का यह प्रकार हृदय रोगों का कारण बनता है और सालाना लगभग पांच लाख लोगों की अकाल मृत्यु का कारण बनता है.
डब्ल्यूएचओ ने 2018 में 2023 तक दुनिया भर से भोजन में औद्योगिक रूप से उत्पादित फैटी एसिड को खत्म करने की अपील जारी की थी. तब इस बात के सबूत थे कि औद्योगिक रूप से उत्पादित वसायुक्त सामग्री ने एक वर्ष में पांच लाख लोगों की जान ले ली.
अरबों लोग फैटी एसिड से असुरक्षित
रिपोर्ट के मुताबिक 2.8 अरब लोगों की संयुक्त आबादी वाले 43 देशों ने अब इस संदर्भ में सर्वोत्तम अभ्यास नीतियां लागू की हैं, लेकिन दुनिया में करीब पांच अरब लोग अभी भी ऐसे फैटी एसिड से असुरक्षित हैं .
रिपोर्ट के मुताबिक इस तरह के फैटी एसिड को लेकर सही नीतियों के अभाव में दक्षिण एशियाई देश जैसे पाकिस्तान में दिल की बीमारियां बढ़ रही हैं.
यह वसा हृदय की धमनियों में रक्त परिसंचरण को प्रभावित करती है और अक्सर इसका उपयोग डिब्बाबंद खाद्य पदार्थों, तले हुए खाद्य पदार्थों और खाना पकाने के तेलों में किया जाता है.
ट्रांस फैट एक विषैला रसायन
डब्ल्यूएचओ के मुताबिक, "ट्रांस फैट एक विषैला, घातक रसायन है जिसका भोजन में कोई स्थान नहीं होना चाहिए."
डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक तेद्रोस अधनोम गेब्रयेसुस ने रिपोर्ट जारी करते हुए कहा, "अब इससे छुटकारा पाने का समय आ गया है. यह पदार्थ भारी स्वास्थ्य जोखिम पैदा करता है और स्वास्थ्य प्रणाली पर भारी लागत लगाता है."
ट्रांस वसा का उपयोग खाद्य निर्माताओं द्वारा किया जाता है क्योंकि वे उत्पादों के शेल्फ जीवन को बढ़ाते हैं और ये फैटी एसिड सस्ते होते हैं.
एए/सीके (एएफपी)