राष्ट्रीय
बिहार चुनाव अभियान में 'पंद्रह साल' का ज़िक्र बार-बार सुनाई दे रहा है. लालू के 15 साल की तुलना नीतीश के 15 साल से की जा रही है.
15 वर्षों के बाद एक और कार्यकाल के लिए मुख्यमंत्री पद के राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के दावेदार नीतीश कुमार अपनी चुनावी सभाओं में 'लालू यादव के जंगल राज' की अक्सर याद दिलाते हैं. कई बार अपने 'सुशासन' के दावे से भी बढ़कर.
नीतीश लोगों को 15 साल पहले के बिहार की तस्वीर दिखाते हुए पूछ रहे हैं, "हमारे शासन से पहले बिहार का क्या हाल था? शाम के बाद किसी को अपने घर से निकलने की हिम्मत थी? कितनी घटनाएँ घटती थीं सामूहिक नरसंहार की?''
वो कहते हैं, ''पहले अपहरण, सांप्रदायिक दंगे, और कितना कुछ होता था. लेकिन जब आप लोगों ने काम करने का मौक़ा दिया, तो हमने क़ानून का राज कायम किया. जंगल राज से मुक्ति दिलाई."
नीतीश कुमार तथाकथित जंगल राज की याद जिस तरह से दिला रहे हैं उसे समझना पहली बार वोट देने वाले नौजवानों के लिए ज़रा मुश्किल है.
दरअसल, बिहार में युवा वोटरों ने केवल घर के बड़े-बुज़ुर्गों से 1990 से 2005 वाले दौर के क़िस्से सुने होंगे.
18-35 आयु वर्ग वाले मतदाताओं की संख्या इस बार के चुनाव में लगभग 50 फ़ीसदी है यानी लगभग आधे वोटर 36 साल से कम उम्र के हैं.
नीतीश कुमार 2005 से 2020 तक बिहार के मुख्यमंत्री रहे हैं. मई 2014 से नौ महीने छोड़कर, जब जीतनराम मांझी को उन्होंने मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बिठा दिया था.
अपने 15 साल के बही-खाते से ज़्यादा लालू राज के 15 साल के हिसाब-किताब की ज़रूरत भला उन्हें क्यों आन पड़ी है?
लालू के बिहार और नीतीश के बिहार को करीब से देखने वाले वरिष्ठ समाजशास्त्री शैबाल गुप्ता कहते हैं, "पहले बिहार में शासन नाम की चीज़ नहीं थी. नीतीश जब सत्ता में आए तो उन्होंने सबसे पहला काम शासन स्थापित करने का किया.''
''आगे के वर्षों में उसी शासन को मजबूत करने की कोशिश की. जनता में सत्ता के अधिकार और उसके प्रति विश्वास जगाया. वो ऐसा इसलिए कर पाए क्योंकि उन्होंने कई बड़े अपराधियों जैसे आंनद मोहन और मुन्ना शुक्ला को जेल भेजा. इससे अपराधियों में डर पैदा हुआ".
शैबाल कहते हैं, "नीतीश राज के पहले क्राइम करने के बाद अपराधी हीरो बन जाता था और अगले चुनाव में उसकी उम्मीदवारी पक्की मानी जाती थी लेकिन नीतीश राज में इस बात पर रोक लग गई."
नीतीश के कार्यकाल में बिहार में अपराध में कमी आई है, ऐसा वरिष्ठ पत्रकार कन्हैया भेलारीका मानना है.
बीबीसी से बातचीत में कन्हैया कहते हैं, "मेरा पैतृक घर रोहतास ज़िले में पड़ता है लेकिन लालू के दौर में मैं शाम को काम ख़त्म करने के बाद पटना से रोहतास जाने में डरता था लेकिन आज के दौर में आप रात को गाँव की शादी में शामिल होकर सुबह पटना अपने काम पर लौट सकते हैं. सड़कें अब बेहतर हो गई हैं. बिजली भी घंटों तक रहती है. अपराध कम हुए हैं."
नीतीश अपनी रैलियों में दावा करते हैं कि अपराध के मामले में एनसीआरबी की रिपोर्ट के मुताबिक़ बिहार 23वें स्थान पर है.
बीबीसी ने अपराध से जुड़े बिहार पुलिस के आँकड़ों का अध्ययन किया और उनमें क्या पाया, ये आप इस ग्राफ़ से समझ सकते हैं.
राज्य में विकास के सवाल पर वरिष्ठ पत्रकार कन्हैया भेलारी एक क़िस्सा सुनाते हैं.
वो याद करते हैं,"ट्रैफ़िक पुलिस में तैनात मेरे एक मित्र ने सड़क पर नियम तोड़ते हुए फर्राटा भर रही एक फॉर्च्यूनर गाड़ी को नहीं रोका लेकिन उसके पीछे चल रही स्कॉर्पियो गाड़ी को रोक लिया.''
''मैने उनसे पूछा कि ऐसा क्यों? तो मेरे मित्र ने जवाब दिया कि पहले गाँव का मुखिया बोलेरो से चलता था और नेता स्कॉर्पियो से. लेकिन नीतीश राज में विकास ऐसा हुआ कि अब मुखिया स्कॉर्पियो से चलता है और नेताओं ने फॉर्च्यूनर ख़रीद ली है. फॉर्च्यूनर में नेताजी थे, इसलिए उनको नहीं रोका".
कन्हैया कहते हैं, "सबकी सम्पत्ति पाँच साल में दोगुनी हो गई है. मुखिया हो या नेता. ये विकास नहीं तो और क्या है?"
कन्हैया भेलारी ने बिहार में हुए विकास को जिस अंदाज़ में समझाया उससे आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि वहाँ की राजनीति में पिछले 15 साल में क्या बदला है.
वो कहते हैं, "लालू के राज में क्राइम का ग्राफ़ जितना ऊपर था, उतना ही नीतीश के राज में भ्रष्टाचार का ग्राफ़ ऊपर है. बिना पैसों के न तो पंचायत में काम होता है, न ब्लॉक के स्तर पर".
लेकिन सुशासन का दावा करने वाली पार्टी जेडीयू इन आरोपों को ग़लत ठहराती है और लालू के राज के चारा घोटाले की याद दिलाती है.
ऐसा वाक़ई हुआ है या नहीं, इसे साबित करने के लिए कोई सरकारी आँकड़ा मौजूद नहीं है लेकिन आम धारणा है कि भ्रष्टाचार बढ़ा है.
ये बात बिहार की राजनीति को क़रीब से जानने-समझने वाले कई पत्रकार भी कहते हैं.
कई योजनाओं और क़ानूनों को इसके लिए ज़िम्मेदार भी माना जाता है. सबसे ताज़ा उदाहरण है शराबबंदी कानून का.
बिहार के पूर्व डीजीपी अभयानंद शराबबंदी क़ानून की नाकामी को आर्थिक नज़रिए से देखते हैं.
वो कहते हैं, "शराबबंदी में पैसे का रोल सबसे अधिक है. शराबबंदी करके सरकार ने कुछ लोगों को बहुत अमीर बना दिया है. ये ज़रूर है कि पुलिसकर्मियों को क़ानून के उल्लंघन में और लापरवाही में पकड़ा गया है, मगर वो बहुत छोटे लोग हैं, बहुत कम हैं. असली लोग न तो पकड़े जा रहे हैं, ना ही उन पर बात की जा रही है. क्योंकि वो बड़े लोग हैं."
बिहार क्या खुले में शौच से मुक्त हो गया?
यही बात शैबाल गुप्ता भी कहते हैं. उनके मुताबिक़ इसी वजह से नीतीश के मौजूदा कार्यकाल में सरकार की साख ख़राब हुई है.
एक अप्रैल 2016 को बिहार में शराबबंदी क़ानून लागू किया गया था. सरकार को इस वजह से तगड़ा राजस्व घाटा भी हुआ, लेकिन राज्य सरकार ने समाज सुधार के नाम पर इसे लागू करने का फ़ैसला लिया.
शराबबंदी क़ानून पर जानकारों की राय है कि वो फैसला साहसिक था, लेकिन उसे लागू करने में कई कमियाँ रहीं. ये नीतीश के इस कार्यकाल के सबसे अहम फ़ैसलों में से एक माना जाता है.
बिहार की राजनीति पर पकड़ रखने वाले पत्रकार और जानकार मानते हैं कि 2005 से 2010 तक नीतीश कुमार ने वाक़ई में जनता के जीवन में सुधार के लिए काम किया.
लेकिन 2010 से 2015 के दौरान नीतीश में राष्ट्रीय राजनीति की महत्वाकांक्षा जाग गई और वो प्रधानमंत्री पद के सपने संजोने लगे. उस वक़्त बिहार विकास की पटरी से जो उतरा, तो आगे उतरता ही चला गया.
उस दौर को याद करते हुए शैबाल कहते हैं, "ये बात बिल्कुल सही है. 2013 के आसपास नीतीश उस क़द के नेता थे, जो नरेन्द्र मोदी को चुनौती दे सकते थे. चाहे सरकार चलाने की बात हो या फिर बोलने की कला, नीतीश का उस दौर में कोई सानी नहीं था."
इसी जोश में उन्होंने कई फै़सले भी लिए. बाढ़ग्रस्त बिहार को गुजरात से मिली मदद वापस करने की घोषणा तक कर दी थी. जीतनराम मांझी को नौ महीने के लिए प्रदेश का मुख्यमंत्री भी नियुक्त कर दिया था.
बिहार के वो लोग जो उसी की राजधानी में प्रवासी की तरह रह रहे हैं?
वरिष्ठ पत्रकार अजय सिंह को नीतीश कुमार को क़रीब से समझने वाले पत्रकारों में से एक माना जाता है.
2017 में आरजेडी से रिश्ता तोड़ने के नीतीश के फ़ैसले पर उन्होंने एक लेख लिखा था. उस लेख में 2013 में एनडीए छोड़ने से लेकर 2017 में आरजेडी गठबंधन से नाता तोड़ने तक के चार सालों को उन्होंने नीतीश कुमार के राजनीतिक जीवन का सबसे 'मूर्खतापूर्ण दौर' बताया था.
उस लेख के मुताबिक़ 2013 और 2015, दोनों ही समय नीतीश का आकलन ग़लत साबित हुआ.
2013 के दौर में नीतीश को लगा कि आरएसएस नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का दावेदार नहीं बनाएगी. 2015 में उनका अनुमान था कि वो पाँच साल आरजेडी के साथ सरकार चला लेंगे लेकिन उनके दोनों ही अनुमान ग़लत निकले.
एनडीए से निकलने के बाद नीतीश कुमार को विपक्ष में उस वक़्त स्वीकार्यता नहीं मिली. उस दौरान जब वो राहुल गांधी से मिलने पहुँचे तो दोनों की मुलाक़ात बहुत छोटी रही थी. 2014 के लोकसभा चुनाव में जनता दल यूनाइडेट का प्रदर्शन भी बहुत ख़राब रहा था.
उसी दौरान नीतीश कुमार ने जीतनराम मांझी को बिहार के मुख्यमंत्री की गद्दी पर बिठा दिया.
तब लोगों को समझ में नहीं आया कि नीतीश ने ऐसा क्यों किया. कई राजनीतिक जानकारों ने उनके फैसले की आलोचना भी की. छह महीने के अंदर मांझी के सुर बदल गए और 2015 के चुनाव में नीतीश ने आरजेडी के साथ गठबंधन किया और एक बार फिर बिहार की सत्ता संभाली.
ये गठबंधन भी लंबा नहीं चल सका और दो साल से भी कम वक़्त में उन्होंने आरजेडी का साथ छोड़कर एक बार फिर बीजेपी के साथ सरकार बना ली.
इसके बाद विपक्ष के नेता नीतीश कुमार को 'पलटूराम' तक कहने लगे.
शैबाल गुप्ता कहते हैं, एक के बाद एक कई घटानाएँ ऐसी हुईं जिनकी वजह से सत्ता में रहते हुए नीतीश थोड़े कमज़ोर हुए. इस वजह से उनकी अब तक की 'सुशासन बाबू' वाली छवि को धक्का पहुँचा और एक बात साबित हुई कि वो अकेले के दम पर चुनाव नहीं जीत सकते.
इतिहासकार रामचन्द्र गुहा ने 2017 में नीतीश कुमार के लिए कहा था, "देश में एक असली लीडर है और वो हैं नीतीश कुमार. नीतीश कुमार बिना पार्टी के लीडर हैं और कांग्रेस पार्टी के पास लीडर नहीं है, इसलिए कांग्रेस अगर नीतीश कुमार को यूपीए के नेतृत्व का मौका देती है, तो उसका भविष्य बेहतर हो सकता है." उनके इस बयान की तब ख़ूब चर्चा हुई थी.
शैबाल गुप्ता भी रामचन्द्र गुहा की उस बात को सही मानते हैं.
वो कहते हैं, " 2015 में नीतीश को अकेले चुनाव लड़ना चाहिए था लेकिन वो अकेले दम पर चुनाव लड़ने का 'रिस्क' नहीं ले सके. उनके पास इसके लिए पार्टी का तंत्र नहीं था.''
''दूसरी बात ये कि नीतीश अफ़सरों के साथ केवल सरकारी तंत्र चला सकते हैं, पार्टी नहीं. पार्टी चलाना और सरकारी तंत्र चलाना दो अलग-अलग बातें हैं. इतने सालों में भी वो अपनी पार्टी का संगठन नहीं तैयार कर पाए और इसीलिए वो अकेले चुनाव नहीं लड़ सकते."
वहीं, कन्हैया भेलारी के मुताबिक, ऐसा नहीं है कि नीतीश कुमार सिर्फ़ गठबंधन की बैसाखी के सहारे 15 साल तक सत्ता में रहे. कई काम भी उन्होंने किए, जिनकी वजह से पार्टियाँ उनके साथ गठबंधन की राजनीति करना चाहती थीं.
नीतीश कुमार ने अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई का इस्तेमाल सरकार चलाने में किया. उनके इस प्रयोग को जानकार 'सोशल इंजीनियरिंग' की संज्ञा देते हैं.
चाहे इस बार के टिकट बँटवारे की बात हो या सरकार में रहते हुए नई योजनाएँ लागू करने की बात हो, दोनों में उनके 'सोशल इंजीनियरिंग' की छाप देखने को मिली. महादलितों और महिलाओं के लिए किए गए उनके काम को लोग इसके उदाहरण के तौर पर गिनाते हैं.
बिहार में दलितों की कुल आबादी 16 फ़ीसदी है और चुनावी राजनीति में इनके वोट की अहम भूमिका है. 1990 से 2000 तक पिछड़े जाति के इन लोगों को लालू यादव ने अपने साथ जोड़ना चाहा, फिर रामविलास पासवान ने इन्हें अपने पाले में लाने की कोशिश की.
लेकिन 'मास्टर स्ट्रोक' तो नीतीश कुमार ने अपने पहले ही कार्यकाल में चला. नीतीश ने पासवान जाति को छोड़कर दलित मानी जाने वाली अन्य 21 उप-जातियों के लिए 'महादलित' कैटेगरी बनाकर उन्हें कई सहूलियतें दीं. बाद में 2018 में जब लोक जनशक्ति पार्टी से उनके रिश्ते बेहतर हुए तो इस लिस्ट में पासवान जाति को भी शामिल कर लिया गया.
कई राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि नीतीश कुमार के इस 'मास्टर स्ट्रोक' से लोक जनशक्ति पार्टी की ज़मीन खिसकती चली गई.
इसी तरह महिला वोटरों को अपने साथ करने के लिए नीतीश कुमार ने कई नए और ऐतिहासिक फैसले लिए.
मुख्यमंत्री बालिका साइकिल योजना, नीतीश सरकार ने 2007 में शुरू की थी. शुरुआत में आठवीं पास करने के बाद पढ़ने वाली छात्राओं को साइकिल के लिए 2000 रुपये दिए जाते थे. अब इस राशि को बढ़ा कर 3000 रुपये कर दिया गया है.
इतना ही नहीं, छात्राओं को स्कूल यूनिफ़ॉर्म के लिए पैसे दिए जाने लगे. स्कूलों में छात्राओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए उनके इस फैसले को 'गेम-चेंजर' तक कहा गया.
बिहार देश का पहला राज्य है, जिसने पंचायत और नगर निकायों के चुनाव में महिला आरक्षण लागू किया. हालांकि गाँवों में महिला सरपंच होने के बावजूद सरपंच पतियों का चलन बिहार में खूब है लेकिन कई महिला मुखिया ऐसी भी हैं जिन्होंने बेहतर काम किया और नाम कमाया.
रितु जायसवाल का नाम भी इसी लिस्ट में आता है, जो अब विधानसभा का चुनाव लड़ रही हैं.
बाल विवाह रोकने और महिला शिक्षा को बढ़ावा देने के उद्देश्य से नीतीश सरकार ने 12वीं पास करने वाली अविवाहित लड़कियों को 10 हजार रुपये और स्नातक करने वाली लड़कियों को 25 हज़ार रुपये की प्रोत्साहन राशि देने का भी प्रवाधान जोड़ा.
ऐसी धारणा है कि नीतीश ने महादलितों और महिलाओं के लिए जो काम किए, उनकी बदौलत ये दोनों ही समूह उनसे जुड़ गए.
किसी भी राज्य के विकास के लिहाज से इन तीन पैमानों को सबसे अहम माना जाता है.
आँकड़ों की बात करें तो बिहार की जनता दल यूनाइडेट सरकार का दावा है कि पिछले पंद्रह सालों में एक लाख किलोमीटर ग्रामीण सड़क का निर्माण हुआ है.
अगर आप 15-20 साल पहले तक बिहार में रहे हों तो बहुत मुमकिन है कि आप कटिया डालकर बिजली कनेक्शन जोड़ने के तरीक़े से वाक़िफ़ होंगे लेकिन अब हालात बहुत बदल चुके हैं.
हाँलाकि बिहार मे 24 घंटे बिजली होने का दावा अतिशयोक्ति होगी, लेकिन अब ऐसा नहीं है कि वहाँ के बच्चे लालटेन और ढिबरी की रोशनी में पढ़ रहे हैं.
हर घर नल योजना के जरिए सब तक साफ़ पानी पहुँचाने का काम चल रहा है और नीतीश सरकार का दावा है कि अब तक 80 फ़ीसदी घरों में पानी पहुँच चुका है.
राजनीति में धारणा बहुत मायने रखती है. नीतीश कुमार ने अपने पहले कार्यकाल में विकास के कई ऐसे काम किए, जिससे उनकी 'सुशासन बाबू' की छवि बनी, जिसे उन्होंने जमकर भुनाया भी.
लेकिन उन्हीं के शासन काल में बिहार में सृजन घोटाला, टॉपर घोटाला, मुज़फ़्फ़रपुर बालिका गृह कांड भी हुए. उनके शासन पर ये दाग़ भी हैं.
भले ही कभी सीधे मुख्यमंत्री की कुर्सी पर भ्रष्टाचार का दाग़ ना लगा हो, लेकिन नीतीश बेदाग़ भी नहीं हैं.
सृजन घोटाले में पर्दाफ़ाश हुआ कि कैसे सरकारी पैसे एनजीओ के खाते में ट्रांसफ़र होते रहे और प्रशासन को ख़बर तक नहीं लगी.
मुज़फ़्फ़रपुर बालिका गृह कांड में बच्चियों के साथ दुर्व्यवहार की ख़बरें नेशनल टीवी चैनलों पर भी दिखाई दीं लेकिन आरोपी मंजू वर्मा को जेडीयू ने इस बार भी टिकट दे ही दिया.
पटना के एएन सिन्हा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल स्टडीज़ के पूर्व निदेशक डॉक्टर डीएम दिवाकर कहते हैं, "बिहार में इन पंद्रह सालों में विकास हुआ है, ख़र्च करने की लोगों की क्षमता बढ़ी है लेकिन दो-चार पैमाने ऐसे भी हैं जिन पर 2005 और 2020 के बिहार में ज्यादा फ़र्क़ नहीं आया है, वो हैं गरीबी, शिक्षा, स्वास्थ्य और बेरोज़गारी."
आज भी तीन साल का कोर्स बिहार में पूरा करने में चार-पाँच साल लग जाते हैं. बिहार में अच्छे कॉलेजों की कमी है. जिस तरह के शिक्षकों की भर्ती हुई है ये बात किसी से छिपी नहीं है.
2016 के टॉपर घोटाले की कहानी नेशनल न्यूज़ में 'विकसित बिहार' की छवि को झुठलाने के लिए काफी थी, जब आर्ट्स सब्जेक्ट की टॉपर रूबी राय ने पॉलिटिकल साइंस को खान-पान से जुड़ा विषय बताया था.
परीक्षा में छात्रों को खिड़की से नकल कराते परिवार वालों की फोटो भी बिहार की शिक्षा व्यवस्था की पोल खोलने के लिए काफ़ी थी. इन वजहों से भी नीतीश के शासन की खूब किरकिरी हुई.
शिक्षकों की भर्ती में भी नियमों की अनदेखी के आरोप नीतीश सरकार पर लगे और 'समान पद समान वेतन' के मुद्दे को विपक्ष इस बार भी चुनाव में जमकर उठा रहा है.
रोज़गार के क्षेत्र में भी नीतीश कुमार कुछ कमाल नहीं कर पाए.
12 अक्टूबर की चुनावी रैली में नीतीश कुमार ने कहा, "राज्य में बड़े उद्योग नहीं लगे. जो राज्य समुद्र के किनारे होते हैं, वहीं उद्योग वाले जाते हैं. बावजूद इसके राज्य में विकास दर 10 फ़ीसदी से ज़्यादा है."
लेकिन विपक्ष उनकी इसी बात को ले उड़ा. बड़े उद्योग नहीं लगे इसलिए युवाओं को रोज़गार नहीं मिला और इसी वजह से पलायन हुआ, विपक्ष ने ऐसा नैरेटिव खड़ा किया.
महागठबंधन ने अपने घोषणापत्र में 10 लाख नौकरियों का वादा किया है. अब बीजेपी ने भी अपने संकल्प पत्र में 19 लाख रोज़गार देने की बात कही है.
जेडीयू के नेता पिछले 15 सालों में 6 लाख 10 हजार नौकरियाँ देने का दावा कर रहे है, लेकिन आरजेडी से 10 लाख नौकरियों के वादे का रोड मैप माँग रहे हैं.
स्वास्थ्य व्यवस्था का भी नीतीश राज में हाल बुरा ही है. कोरोना से अब तक राज्य के दो मंत्री, दो विधायकों और 31 डॉक्टरों की मौत हो चुकी है.
कोरोना संकट के बीच बिहार के कुछ सरकारी अस्पतालों की तस्वीरें भी सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुईं, जिनमें ना तो डॉक्टर दिखे, ना ही मरीज़ों के लिए बेड. कुछ अस्पतालों में तो बारिश का पानी छत से टपकता दिखाई दिया.
चमकी बुख़ार ने 2019 में राज्य में जो क़हर ढाया, वो भी सबने देखा.
इसके बाद भी नीतीश कुमार का दावा है कि 2005 में जहाँ प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में प्रतिमाह 39 मरीज़ आते थे, 2020 में ये संख्या बढ़ कर 10 हजार मरीज़ों तक पहुँच गई है.
डॉक्टर डीएम दिवाकर कहते हैं, "2000 के लालू यादव के बिहार में और 2005 के बाद के नीतीश कुमार के बिहार में बदलाव साफ़ देखा जा सकता था. ऐसा इसलिए संभव था क्योंकि दोनों कार्यकाल में तुलना दो अलग-अलग मुख्यमंत्रियों के काम की थी. लेकिन 2010 के बिहार की तुलना 2005 से करें तो थोड़ा मुश्किल होगा''
डॉक्टर दिवाकर कहते हैं कि 2015 की तुलना 2010 से करना और ज्यादा मुश्किल है क्योंकि पिछले पन्द्रह साल में नीतीश ने शुरुआती सालों में जनता के मन में जो आकांक्षाएँ जगाई थीं, उनको लागू करने की स्पीड में पिछले दिनों कमी आई है. इसलिए नीतीश कुमार को अब सत्ता विरोधी लहर का सामना करना पड़ रहा है."(bbc)
मिर्जापुर, 25 अक्टूबर | उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले में अपना दल की सांसद अनुप्रिया पटेल ने वेब सीरीज 'मिर्जापुर 2' पर प्रतिबंध लगाने की मांग करते हुए कहा है कि यह सीरीज जातीय विद्वेष फैला रही है। सांसद ने यह भी आरोप लगाया है कि हाल ही में एमेजॉन प्राइम पर जारी की गई यह सीरीज मिर्जापुर की 'हिंसक' क्षेत्र की छवि बना रही है।
उन्होंने संवाददाताओं से कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में मिर्जापुर एक 'सौहार्द का केंद्र' बन चुका है। इसकी छवि को खराब करने वाले जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई होनी चाहिए।"
बता दें कि 'मिजार्पुर 2' परिवारों, राजनीति और चुनावों के बीच संघर्ष की एक हिंसक कहानी है। इसमें श्वेता त्रिपाठी शर्मा, पंकज त्रिपाठी, अली फजल और दिव्येंदु शर्मा ने मुख्य भूमिकाएं निभाईं हैं।(आईएएनएस)
बुलंदशहर, 25 अक्टूबर भीम आर्मी के प्रमुख चंद्रशेखर अपने उम्मीदवार हाजी यामीन के समर्थन के साथ बुलंदशहर में रविवार को रैली को संबोधित करके आगामी उत्तर प्रदेश उपचुनाव के लिए अपने प्रचार अभियान की शुरुआत करेंगे। इस रैली से भीम आर्मी उत्तर प्रदेश में चुनावी आगाज को चिह्न्ति करेगा। गौरतलब है कि यह पार्टी राज्य में दलितों के बीच एक ताकत के रूप में उभरा है।
नुमाइश मैदान में आयोजित होने वाली रैली में 20,000 से अधिक समर्थकों के शामिल होने की संभावना है।
भीम आर्मी के कार्यकर्ता समर्थन जुटाने और रैली में बड़े पैमाने पर उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए घर-घर जाकर मुहिम में शामिल होने की अपील कर रहे हैं।
बुलंदशहर सीट भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के विधायक वीरेंद्र सिरोही के पास थ। हालांकि मार्च में उनकी मृत्यु के बाद यह सीट खाली है।
भाजपा ने दिवंगत विधायक की पत्नी ऊषा सिरोही को मैदान में उतारा है, वहीं राष्ट्रीय लोकदल-समाजवादी पार्टी ने संयुक्त उम्मीदवार प्रवीण कुमार के नाम की घोषणा की है।
बहुजन समाज पार्टी ने शमसुद्दीन रायन को मैदान में उतारा है, जबकि कांग्रेस के उम्मीदवार सुशील चौधरी हैं।
यह उपचुनाव सात सीटों के लिए 3 नवंबर को होने वाले हैं।
चंद्रशेखर ने पहले ही घोषणा कर दी थी कि उनकी पार्टी 'आजाद समाज पार्टी' के नाम के साथ राजनीति में उतरेगी, जबकि भीम आर्मी संगठन के रूप में काम करना जारी रखेगी।
वह हाल ही में बिहार की यात्रा पर गए थे, जहां उन्होंने पप्पू यादव की जन अधिकार पार्टी के साथ गठबंधन किया था और चुनावी प्रचार करते देखे गए थे।(आईएएनएस)
"एक पनडुब्बी कब्र की तरह शांत हो सकती है."
वॉइस एडमिरल जीएम हीरानंदानी (सेवानिवृत्त) ने 'ट्रांज़िशन टू गार्डियनशिप - द इंडियन नेवी 1991-2000' में ये लिखा था, जिसे आधिकारिक रूप से रक्षा मंत्रालय ने प्रकाशित किया था.
शायद ये शब्द इस बात को समझाने के लिए काफ़ी हैं कि भारत ने म्यांमार को आधिकारिक तौर पर एक पनडुब्बी सौंप दी लेकिन इसे लेकर चर्चा बहुत कम क्यों हुई?
15 अक्टूबर को, विदेश मंत्रालय के संयुक्त सचिव अनुराग श्रीवास्तव से भारत द्वारा 'म्यांमार को एक पनडुब्बी गिफ्ट करने' की ख़बरों पर स्पष्टीकरण मांगा गया.
उन्होंने जवाब दिया, "भारत म्यांमार नौसेना को एक किलो क्लास की पनडुब्बी आईएनएस सिंधुवीर देगा. हमारी समझ के मुताबिक यह म्यांमार नौसेना के लिए पहली पनडुब्बी होगी.
"ये SAGAR (सेक्योरिटी एंड ग्रोथ फॉर आल इन द रीजन- क्षेत्र में सभी के लिए सुरक्षा और विकास) के आधार पर किया गया है. हम सभी पड़ोसी देशों को क्षमता और आत्मनिर्भरता प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध हैं."
सरकार ने बस इतना ही बताया, इससे जुड़ी कोई प्रेस रिलीज़ भी जारी नहीं की गई.
भारत हेलीकॉप्टर और अन्य हथियारों सहित जहाजों और विमानों का निर्यात करता है. लेकिन जानकार कहते हैं कि एक पनडुब्बी सौंपना अलग कहानी है.
इसके अलावा, निर्यात उन चीज़ों का किया जाता है जो किसी के पास अधिक मात्रा में हों. लेकिन क्या भारतीय नौसेना के पानी के नीचे के बेड़े के बारे में ऐसा कहा जा सकता है?
आईएनएस सिंधुवीर को पूर्व सोवियत संघ ने भारत को दिया था. 11 जून, 1988 को ये भारतीय बेड़े में शामिल हुआ.
रूसी इसे 877 इकेएम क्लास कहते हैं (नाटो कोड नाम: किलो क्लास) और ये डीज़ल-बिजली से चलने वाली बिना न्यूक्लियर पावर वाली पनडुब्बियां हैं. ये पानी के नीचे 300 मीटर तक गोता लगा सकती हैं और 45 दिनों के लिए बिना बाहरी मदद के काम कर सकती हैं. इसे चलाने के लिए 53 सदस्यीय चालक दल की आवश्यकता होती है.
मैंने सुना है कि नौसेना के अधिकारी इनकी क्षमता के कारण ईकेएम पनडुब्बियों को 'समुद्र में ब्लैक होल ' कहते हैं.
भारतीय सेना में मुस्लिम रेज़िमेंट होने के दावे का सच क्या है?
वास्तव में, नौसेना के आधिकारिक इतिहास की इस जानकारी से भारत के शुरुआती दृष्टिकोण का पता चलता है.
कमांडर (बाद में कप्तान बने) केआर अजरेकर ने रूस में प्रशिक्षण लिया और वो सिंधुघोष जो कि पहली ईकेएम पनडुब्बी थी, उसके कमांडिंग ऑफिसर थे.
वो याद करते हैं, "हाइड्रो-डायनामिक रूप से पानी के नीचे काम करने के लिहाज़ से इसका कंफ़िग्यूरेशन सबसे अच्छा था, ईकेएम के पानी के नीचे का प्रदर्शन बेहतरीन है. इसके अलावा शिकार करने के लिए सोनार है जो बहुत उपयोगी है."
आश्चर्य की बात नहीं है कि भारत ने रूस से ऐसी 10 पनडुब्बियां ख़रीद लीं.
इसके अलावा, निर्यात उन चीज़ों का किया जाता है जो किसी के पास अधिक मात्रा में हों. लेकिन क्या भारतीय नौसेना के पानी के नीचे के बेड़े के बारे में ऐसा कहा जा सकता है?
एक नए अधिग्रहण कार्यक्रम में भी देरी हो रही है, ऐसे में पानी के नीचे काम करने की पूर्ण योग्यता पा लेने से अभी हम दूर हैं.
भारत से म्यांमार तक
इस मामले की समझ रखने वाले दो अधिकारियों ने मुझे बताया कि आईएनएस सिंधुवीर को म्यांमार को भारत का 'उपहार' कहना गलत है. उनमें से एक ने सबसे पहली बात कही, "मामला अति गोपनीय है."
"मैं आपको बता सकता हूं कि ये निश्चित अवधि के लिए लीज़ पर है. ये राजस्व अर्जित करने के लिए नहीं किया गया है. "
भारत और म्यांमार में क्या हुआ, इसे समझने के लिए सिर्फ भारत और म्यांमार को नहीं देखना चाहिए.
कई अधिकारियों से मैंने बात कि जिन्होंने बताया कि भारत 'बांग्लादेश के साथ जो हुआ, उसे दोहराने से बचना चाहता है.' उनमें से एक ने समझाया, "2016-17 में, बांग्लादेश ने चीनी पनडुब्बियों का अधिग्रहण किया. चीनी पनडुब्बियों के माध्यम से, चीनी कर्मचारियों को बंगाल की खाड़ी में प्रवेश करने का एक रास्ता मिल गया."
"हालाँकि, उन पनडुब्बियों का उपयोग करते हुए बांग्लादेश का अनुभव, जहां तक हमें पता है, उतना अच्छा नहीं रहा है."
"इससे हमें म्यांमार नौसेना के साथ इस मामले पर चर्चा करने में मदद मिली, जो पानी के नीचे की अपनी क्षमताओं को बढ़ाना चाह रहे थे. हमने उनके क्रू की ट्रेनिंग शुरू की और हम आज भी उनसे जुड़े हुए हैं और सहायता दे रहे हैं."
लेकिन चुप्पी का कारण क्या है?
एक अधिकारी के मुताबिक, "दोनों देशों में से कोई भी इस पर ध्यान नहीं खींचना चाहता है. ये अभी शुरुआत है. इसके अलावा म्यांमार के चीनियों के साथ भी गहरे संबंध हैं. "
इंडियन मेरिटाइम फाउंडेशन के उपाध्यक्ष,रिटायर्ड कॉमोडोर अनिल जय सिंह ने अपने तीन दशकों के अनुभव में चार पनडुब्बियों की कमान संभाली है. वो कहते हैं, "शायद ही कभी एक पनडुब्बी एक देश द्वारा दूसरे देश को लीज़ पर दी जाती है. हालांकि, बड़ी तस्वीर को देखते हुए, हम बंगाल की खाड़ी को चीन के हाथों नहीं खो सकते हैं. इसलिए यह नौसेनाओं के मिलन की दिशा में एक प्रगतिशील कदम है."
उनके अनुसार वह दिन दूर नहीं जब चीनी पनडुब्बियां हिंद महासागर में अक्सर तैनात रहेंगी.
वो कहते हैं,"और याद रखें कि पाकिस्तान को चीन से आठ पनडुब्बियां मिल रही हैं, जो हमारे लिए (पश्चिमी तट पर भी) बड़ी चिंता का विषय है"
भारत की कितनी क्षमता है?
आईएनएस सिंधुवीर को छोड़ दें तो आज भारत के पास कुल आठ ईकेएम पनडुब्बियां, चार जर्मन निर्मित एचडीडब्ल्यू पनडुब्बियां और दो फ्रांसीसी-डिज़ाइन की स्कॉर्पीन पनडुब्बियां हैं.
संख्या के लिहाज़ से भारत के पास अगस्त 2013 के बराबर पनडुब्बियां है. उस समय आईएनएस सिंधुरक्षक जो कि एक और ईकेएम पनडुब्बी थी, उसमें मुंबई नौसेना डॉकयार्ड के अंदर विस्फोट हो गया था और सभी लोग मारे गए थे.
नौसेना के एक अधिकारी के मुताबिक "हम उम्मीद कर रहे हैं कि बाकी चार स्कॉर्पीन 2022 के अंत तक जुड़ जाएंगी."
वर्तमान में, जर्मन एचडीडब्ल्यू पनडुब्बी का बेड़ा 26 से 34 वर्ष पुराना है. ईकेएम क्लास 20 से 34 वर्ष के बीच हैं. पहले, औसतन 28 साल इस्तेमाल के बाद पनडुब्बियां रिटायर कर दी जाती थीं.
सिंह, जो कि ब्रिटेन में भारत के नेवल एडवाइज़र रह चुके हैं, उनके मुताबिक, "मैं इसे लेकर काफी चिंतित हूं. (पनडुब्बी) अधिग्रहण धीमी गति से हो रहा है. आगे की राह साफ़ नहीं है."
''पनडुब्बियां महंगी आती हैं. दिसंबर महीने में, नौसेना प्रमुख एडमिरल करमबीर सिंह ने कहा था, "रक्षा बजट में नौसेना का हिस्सा 2012 के 18% से घटकर वर्तमान वित्तीय वर्ष 2019-20 में 13% हो गया है. उस समय कोरोना संक्रमण के मामले भी नहीं थे. "
कश्मीर का वो गांव जहां पाकिस्तान के बम गिरते रहते हैं
म्यांमार को सहायता देने का निर्णय भारत ने सोच-समझ कर लिया है.
बांग्लादेश और थाईलैंड भारत के पुराने पार्टनर रह चुके हैं. भारतीय नौसेना ने म्यांमार के साथ 2013 में नौसैनिक अभ्यास शुरू किया. बांग्लादेश के साथ अभ्यास 2019 में शुरू हुआ.
बीबीसी मॉनिटरिंग की रिपोर्ट के मुताबिक, म्यांमार की समाचार वेबसाइट इरवाडी ने 16 जुलाई, 2019 को बताया था कि कैसे रूस की यात्रा के दौरान म्यांमार के कमांडर-इन-चीफ सीनियर-जनरल मिन औंग ह्लाइंग ने रूसी सेना के उप प्रमुख से एक उन्नत पनडुब्बी खरीदने पर चर्चा की.
11 दिसंबर, 2019 को म्यांमार टाइम्स ने बताया कि भारत के एक्शन पर थाईलैंड की किस तरह की प्रतिक्रिया थी.
अखबार ने लिखा, "रॉयल थाई नौसेना उस परिस्थिति से निपटने के लिए तैयारियां कर रही है जिसे वो उसके सामने एक 'नई स्थिति' कहती है. ये जानने के बाद कि म्यांमार अपनी पनडुब्बी को अंडमान सागर में सुरक्षा मिशनों के लिए भेजने वाला है, थाईलैंड चीन से तीन पनडुब्बियां खरीदने की प्रक्रिया में है."
वाइस एडमिरल हीरानंदानी के मुतबिक, "समुद्र पनडुब्बी को इलेक्ट्रोमैगनेटिक तरीके से कवच प्रदान करता है."
पनडुब्बी के लिए सबसे बड़ी चुनौती भी समुद्र ही है. वह लिखते हैं,"अगर पनडुब्बी से निकलने वाली आवाज़ को समुद्र की प्राकृतिक आवाज़ से भी कम कर दिया जाए, तो पनडुब्बी अपने आप को समुद्र में छुपा सकती है."
वहीं, अगर कोई है जो समुद्र के नीचे शांति से साझेदारी बढ़ाना चाहता है, तो वो भारत और म्यांमार हैं.(bbc)
नई दिल्ली, 25 अक्टूबर | राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने रविवार को विजयादशमी उत्सव के संबोधन के दौरान कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने, नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) और राम मंदिर का खास तौर से जिक्र किया। उन्होंने कहा कि देश और दुनिया में जितने भी विषयों पर चचार्एं हो रहीं थीं, वह सब कोरोना काल में दब गईं। कोरोना के कारण नागपुर के रेशमबाग में सिर्फ 50 स्वयंसेवकों के साथ आयोजित इस कार्यक्रम को लेकर मोहन भागवत ने कहा कि संघ के इतिहास में पहली बार इतने कम स्वयंसेवकों की उपस्थिति में यह उत्सव हो रहा है। मोहन भागवत का संबोधन सुनने के लिए देश और दुनिया के स्वयंसेवक ऑनलाइन जुड़े। भागवत ने कहा कि मार्च महीने में लॉकडाउन शुरू हुआ। बहुत सारे विषय उस दौरान दुनिया में चर्चा में थे। वे सारे दब गए। उनकी चर्चा का स्थान महामारी ने ले लिया। मोहन भागवत ने पिछले साल जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने और संसद में पास हुए नागरिकता संशोधन कानून का भी उल्लेख किया। उन्होंने कहा, विजयादशमी के पहले ही 370 प्रभावहीन हो गया था। संसद में उसकी पूरी प्रक्रिया हुई। वहीं विजयादशमी के बाद नौ नवंबर को राम मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट का असंदिग्ध फैसला आया। जिसे पूरे देश ने स्वीकार किया। पांच अगस्त को राम मंदिर निर्माण का जो पूजन हुआ, उसमें भी, उस वातावरण की पवित्रता को देखा और संयम और समझदारी को भी देखा।
आरएसएस के इस प्रमुख वार्षिक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए मोहन भागवत ने कहा, नागरिकता संशोधन कानून भी संसद की पूरी प्रक्रिया के बाद पास हुआ। पड़ोसी देशों में दो तीन देश ऐसे हैं, जहां सांप्रदायिक कारणों से उस देश के निवासियों को प्रताड़ित करने का इतिहास है। उन लोगों को जाने के लिए दूसरी जगह नहीं है, भारत ही आते हैं। विस्थापित और पीड़ित यहां पर जल्दी बस जाएं, इसलिए अधिनियम में कुछ संशोधन करने का प्रावधान था। जो भारत के नागरिक हैं, उनके लिए कुछ खतरा नहीं था।
मोहन भागवत ने कहा कि नागरिकता संशोधन अधिनियम कानून का विरोध करने वाले भी थे। राजनीति में तो ऐसा चलता ही है। ऐसा वातावरण बनाया कि इस देश में मुसलमानों की संख्या न बढ़े, इसलिए नियम लाया। जिससे प्रदर्शन आदि होने लगे। देश के वातावरण में तनाव होने लगा। इसका क्या उपाय हो, यह सोच विचार से पहले ही कोरोना काल आ गया। मन की सांप्रदायिक आग मन में ही रह गई। कोरोना की परिस्थिति आ गई। जितनी प्रतिक्रिया होनी थी, उतनी नहीं हुई। पूरी दुनिया में ऐसा ही दिखता है। बहुत सारी घटनाएं हुईं हैं, लेकिन चर्चा कोरोना की ही हुई।(आईएएनएस)
बलिया (उप्र), 25 अक्टूबर | बलिया गोलीकांड की घटना के मुख्य आरोपी का बचाव करने पर विवादों में घिरे भाजपा विधायक सुरेंद्र सिंह पर उप्र भाजपा के अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह द्वारा फूलों की बरसात करने का वीडियो सामने आया है। जबकि कुछ ही दिन पहले इन्हीें विधायक को पार्टी ने बलिया मामले को लेकर चेतावनी जारी की थी। भाजपा के व्हाट्सएप ग्रुपों पर यह वीडियो जमकर वायरल हो रहा है। इस वीडियो में स्वंतत्र देव सिंह सिकंदरपुर क्षेत्र के कठौड़ा गांव में एक कृष्ण मंदिर के 'भूमि पूजन' कार्यक्रम में हैं और दोनों नेता साथ बैठे हैं। यह कार्यक्रम शुक्रवार की शाम को हुआ था। कार्यक्रम के दौरान राज्य के भाजपा प्रमुख स्वतंत्र देव सिंह विधायक सुरेंद्र सिंह पर फूलों की पंखुड़ियों की वर्षा करते नजर आते हैं और विधायक हाथ जोड़कर खड़े हैं।
इस कार्यक्रम में भाजपा के सलेमपुर के सांसद रवींद्र कुशवाहा भी मौजूद थे। जब उनसे इस बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि केवल स्वंतत्र देव सिंह ही इस बारे में बता सकते हैं।
वहीं स्वतंत्र देव सिंह ने फोन कॉल का जवाब नहीं दिया और ना ही कोई अन्य भाजपा नेता इस घटना पर टिप्पणी देने के लिए राजी हुआ।
बता दें कुछ ही दिन पहले भाजपा की राज्य इकाई ने विधायक को लखनऊ बुलाकर राज्य सरकार को शमिर्ंदा करने वाले बयान जारी करने के खिलाफ चेतावनी दी थी। इतना ही नहीं भाजपा अध्यक्ष जे.पी. नड्डा ने भी उप्र भाजपा प्रमुख से विधायक के व्यवहार पर नाराजगी जताई थी।
15 अक्टूबर को राशन की दुकान के आवंटन को लेकर हुए झगड़े में 46 वर्षीय व्यक्ति की गोली मार कर हत्या कर दी गई थी। इस घटना के मुख्य आरोपी धीरेन्द्र प्रताप सिंह का विधायक सुरेंद्र सिंह खुलकर बचाव कर रहे थे। विधायक ने प्रशासन पर पक्षपात करने का आरोप लगाते हुए और आरोपी का बचाव करते हुए कहा था कि उसने आत्मरक्षा में गोली चलाई थी। साथ ही उन्होंने दूसरे पक्ष के खिलाफ कार्रवाई करने की भी मांग की थी। (आईएएनएस)
पटना, 25 अक्टूबर | बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर अब सभी राजनीतिक दल मतदाताओं को आकर्षित करने के लिए पूरा जोर लगाए हुए हैं। इसी क्रम में शनिवार को चुनावी रैलियों में भाग लेने पहुंची केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने भी जहां विरोधियों पर निशाना साधा वहीं केंद्र सरकार द्वारा किए गए विकास कार्यो को भी गिनाया। ईरानी शनिवार को पटना और गोपालंगज में चुनावी रैली को संबोधित करते हुए बोलीं, "जब कोई व्यक्ति लक्ष्मी के सामने सिर झुकाता है तो पाता है कि लक्ष्मी जब घर आती हैं, तब हाथ पकड़ कर नहीं आती हैं और लालटेन लेकर नहीं आती हैं। लक्ष्मी जब आती हैं तब कमल पर बैठकर आती हैं।"
उन्होंने राजद के अध्यक्ष लालू प्रसाद पर कटाक्ष करते हुए कहा, "बिहार के स्वाभिमानी नागरिक जब भगवान से याचना करते हैं कि या मां भगवती से आशीर्वाद मांगते हैं, तो कहते हैं कि मेरे बाजुओं में इतना बल दे कि मैं भी मेहनत से दो वक्त की इज्जत की रोटी कमा सकूं। बिहार का स्वभिमानी व्यक्ति कभी नहीं कहता है कि हे भगवान मुझे मौका दे कि मैं भी चारा घोटाले में पैसा कमा सकूं।"
ईरानी ने कहा कि आपने 15 साल विनाश करने वाली सरकार को देखा है और उसके बाद 15 साल से लगातार विकास कर रही सरकार को भी देख रहे हैं।
उन्होंने विकास की यह निरंतरता बनाए रखने के लिए राजग को मजबूत करने की अपील करते हुए कहा कि बिहार एलइडी युग में हैं, फिर से लालटेन युग को अपने यहां प्रवेश न करने दें।
केंद्रीय मंत्री ने महागठबंधन को आड़े हाथों लेते एक तरफ लालटेन पर निशाना साधा, तो वहीं दूसरी ओर राममंदिर के बहाने कांग्रेस को भी आड़े हाथों लिया।
उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी के कार्यकाल में देश रोजाना विकास के नये-नये आयाम बना रहा है। प्रधानमंत्री ने गरीब महिलाओं के स्वास्थ्य का ध्यान रखते हुए, गैस सिलेंडर दिए वहीं आयुष्मान भारत योजना के तहत गरीबों को इलाज की सुविधा दी। (आईएएनएस)
पणजी, 25 अक्टूबर | गोवा के एआईसीसी प्रभारी सचिव दिनेश गुंडू राव ने शनिवार को कहा केंद्र सरकार की प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) और आयकर विभाग ने पिछले छह वर्षों में भाजपा नेताओं से जुड़े मामलों में शायद ही कभी छापेमारी की हो। राव ने पणजी में एक संवाददाता सम्मेलन के दौरान कहा, "भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की भावनाएं भड़क रही हैं, क्योंकि पार्टी या सरकारी कार्यक्रम अब कोई मायने नहीं रखते। अर्थव्यवस्था गिर गई है, हमारी सीमाओं को खतरा है, हमारी विदेश नीति ध्वस्त हो गई है और हम अपने पड़ोस में मित्रहीन हैं, महिलाओं और दलितों के लिए कोई सुरक्षा नहीं है।"
उन्होंने कहा, "धर्म और राष्ट्रवाद का उपयोग अब राजनीतिक छोर के लिए किया जा रहा है। पिछले छह वर्षों में, मुझे एक भाजपा नेता दिखाओ, जिसे ईडी या आईटी ने नोटिस जारी किया गया हो। इसलिए कई सरकारें अपंग हो गई हैं। क्या ईडी या आईटी विभाग को इसकी जानकारी नहीं है?"
उन्होंने कहा कि यह दर्शाता है कि गैर-भाजपा सरकारों के समय पर विधायकों को लुभाने के लिए बड़ी रकम का लेन-देन किया गया था।
दो दिवसीय यात्रा पर गोवा आए राव ने तटीय राज्य में विपक्षी पार्टी के मामलों के लिए नया कार्यभार संभालने के बाद यह भी कहा कि वह पार्टी के स्थानीय ब्लॉकों को मजबूत करने और संगठन के निर्माण पर ध्यान केंद्रित करेंगे।
कांग्रेस नेता ने यह भी कहा कि पार्टी 2022 के राज्य विधानसभा चुनावों में सभी 40 सीटों पर चुनाव लड़ने पर विचार कर रही है।
उन्होंने खराब प्रशासन के लिए मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत की अगुवाई वाले सत्तारूढ़ दल की आलोचना भी की।
राव इससे पहले कर्नाटक के पूर्व अध्यक्ष की जिम्मेदारी भी संभाल चुके हैं।
राव ने कहा, "यह सरकार विफल रही है। मुख्यमंत्री अपने अधिकार का प्रयोग करने में विफल रहे हैं। उनकी सरकार के मंत्रियों का केवल एक एजेंडा है, लूटो और खिसक जाओ।"(आईएएनएस)
बेंगलुरु, 25 अक्टूबर | कर्नाटक प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डी.के. शिवकुमार ने शनिवार को मतदाताओं से अपील करते हुए कहा कि उन विधायकों को वोट मत दीजिए, जिन्होंने आपके जनादेश को पैसे के लिए बेचा है। शिवकुमार दरअसल भाजपा उम्मीदवार एन.मुनिरत्ना पर निशाना साध रहे थे।
आर.आर नगर विधानसभा सीट में एक चुनावी रैली को संबोधित करते हुए, शिवकुमार ने मुनिरत्ना को इस उपचुनाव का जिम्मेदार बताया। उन्होंने कहा, "इस विधानसभा क्षेत्र के लोगों को अब कम से कम जाग जाना चाहिए और ऐसे व्यापारियों को सबक सिखाना चाहिए, जो अपने फायदे के लिए जनादेश को भी बेचने में नहीं हिचकिचाते।"
वहीं इस क्षेत्र के लिए कांग्रेस उम्मीदवार एच कुसुम ने कहा कि वह इस क्षेत्र में पैदा हुई हैं और यहां की बेटी हैं। उन्होंने लोगों से अपील करते हुए कहा कि कृपया अपनी बेटी के लिए वोट करें।(आईएएनएस)
चंडीगढ़, 25 अक्टूबर | भाजपा किसान मोर्चा के पंजाब प्रमुख तरलोचन सिंह गिल ने शनिवार को कृषि विधेयक कानून को लेकर इस्तीफा दिया। तरलोचन सिंह ने मीडिया से कहा, "मैंने पार्टी में कृषि विधेयक कानून के खिलाफ आवाज उठाई थी, लेकिन मुझे नजरअंदाज कर दिया गया।"
गिल ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि किसानों के विरोध के कारण पार्टी अधिनियमों को वापस लेगी।
इससे पहले, भाजपा महासचिव और कोर कमेटी के सदस्य मालविंदर कांग ने इसी मुद्दे को लेकर पार्टी से इस्तीफा दे दिया था।(आईएएनएस)
शिवहर (बिहार), 25 अक्टूबर | बिहार के शिवहर विधानसभा क्षेत्र के जनता दल (राष्ट्रवादी) के प्रत्याशी श्रीनारायण सिंह की शनिवार की शाम अपराधियों ने उस समय गोली मारकर हत्या कर दी, जब वे जनसंपर्क अभियान में हथसार गांव पहुंचे थे। प्रत्याशी की हत्या से आक्रोशित कार्यकर्ताओं ने भाग रहे एक आरोपी को धर दबोचा और उसकी भी पीट-पीटकर हत्या कर दी। पुरनहिया के थाना प्रभारी मुन्ना कुमार गुप्ता ने आईएएनएस को बताया कि नया गांव के रहने वाले प्रत्याशी सिंह शनिवार को हथसार गांव में प्रचार करने पहुंचे थे। उनके साथ 25 से 30 उनके समर्थक भी साथ थे। गांव में जनसंपर्क के दौरान एक बाइक पर सवार होकर आए अपराधियों ने प्रत्याशी पर अंधाधुंध गोलीबारी कर दी, जिससे वे बुरी तरह घायल हो गए।
आनन-फानन में इन्हें स्थानीय अस्पताल ले जाया गया, जहां से चिकित्सकों ने इन्हें अन्यत्र रेफर कर दिया गया। इसी क्रम में सिंह को सीतामढ़ी ले जाया जा रहा था कि रास्ते में उनकी मौत हो गई।
थाना प्रभारी गुप्ता ने आगे बताया कि घटना को अंजाम देकर भाग रहे अपराधियों में से एक अपराधी को सिंह के कार्यकर्ताओं ने पकड़ लिया और उसकी जमकर पिटाई कर दी, जिससे उसकी भी घटनास्थल पर ही मौत हो गई। मृतक की अब तक पहचान नहीं हो पाई है।
पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी घटनास्थल पर पहुंचकर पूरे मामले की छानबीन शुरू कर दी है।
पुलिस अभी घटना के कारणों को लेकर कुछ भी बोलने से परहेज कर रही है। इधर, सूत्रों का कहना है कि मृतक पर कई आपराधिक मामले दर्ज हैं। सूत्र इसे आपसी विवाद में हत्या बता रहे हैं।(आईएएनएस)
श्रीनगर, 24 अक्टूबर | भारतीय सेना ने जम्मू एवं कश्मीर के केरन सेक्टर में नियंत्रण रेखा(एलओसी) के समीप एक क्वाडकॉप्टर को मार गिराया। अधिकारिक सूत्रों ने यह जानकारी दी। सेना ने एक बयान में कहा, "एक क्वाडकॉप्टर(डीजेआई मेविक 2 प्रो मॉडल) को शनिवार सुबह भारतीय सेना ने कुपवाड़ा जिले में एलओसी के पास मार गिराया।"
यह पहली बार नहीं है, जब भारतीय सेना ने जम्मू एवं कश्मीर से लगी सीमा के पास क्वाडकॉप्टर मार गिराया है।
जून में, बीएसएफ ने जम्मू में अंतर्राष्ट्रीय सीमा के पास हीरानगर सेक्टर में एक पाकिस्तानी ड्रोन को मार गिराया था। सेना ने एक एम-4 यूएस राईफल समेत हथियार जब्त किए थे।
बीते महीने, रजौरी सेक्टर में आतंकी संगठन के लिए हथियारों की खेप एक ड्रोन के जरिए गिराई गई थी। इस सिलसिले में तीन आतंकवादियों को उस वक्त पकड़ा गया था, जब वह हथियारों की इस खेप को लेने जा रहे थे।
--आईएएनएस
नई दिल्ली, 24 अक्टूबर | केंद्र सरकार ने करदाताओं को एक बड़ी राहत देते हुए, शनिवार को आयकर रिटर्न दाखिल करने की अंतिम तिथि को और एक महीना बढ़ाकर 31 दिसंबर, 2020 किए जाने की घोषणा की है। पहले इसके लिए अंतिम तारीख 30 नवंबर 2020 तय की गई थी।
वित्त मंत्रालय से मिली जानकारी के अनुसार, अब वैसे करदाता, जिनके रिटर्न में ऑडिट रिपोर्ट नहीं लगती है, वह 31 दिसंबर 2020 तक अपना रिटर्न दाखिल कर सकते हैं। वैसे करदाता, जिनके रिटर्न में ऑडिट रिपोर्ट लगानी पड़ती है, उनके लिए आईटी रिटर्न दाखिल करने की अंतिम तारीख 31 जनवरी, 2021 तय की गई है।
वित्त मंत्रालय ने एक बयान में कहा कि टैक्स रिटर्न भरने के लिए किया गया विस्तार कोविड-19 के प्रकोप के कारण वैधानिक और नियामक अनुपालन को पूरा करने में करदाताओं के सामने आने वाली चुनौतियों के मद्देनजर दिया गया है।
स्व मूल्यांकन कर भुगतान के लिए छोटे और मध्यम वर्ग के करदाताओं को राहत देते हुए करदाताओं की इस श्रेणी द्वारा कर रिटर्न भी अब 31 जनवरी, 2021 तक दाखिल किया जा सकता है।
यह विस्तार उन करदाताओं के लिए उपलब्ध होगा जिनकी स्व-मूल्यांकन कर देयता एक लाख रुपये तक है।
सरकार 31 मार्च, 2020 को कराधान और अन्य कानून (कुछ प्रावधानों की छूट) अध्यादेश, 2020 लेकर आई थी, जिसमें विभिन्न समय सीमाओं को बढ़ाया गया है। यह अध्यादेश कराधान और अन्य कानूनों (रियायत और कुछ प्रावधानों के संशोधन) अधिनियम की जगह लाया गया है।
--आईएएनएस
चेन्नई, 24 अक्टूबर| द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) के अध्यक्ष एम.के. स्टालिन ने शनिवार को कहा कि उनकी पार्टी तब तक विरोध प्रदर्शन करती रहेगी, जब तक कि राज्यपाल बनवारीलाल पुरोहित तमिलनाडु में मेडिकल कॉलेज में सरकारी स्कूलों के छात्रों के लिए आरक्षण देने वाले विधेयक को मंजूरी नहीं दे देते।
विधेयक को मंजूरी के लिए करीब 40 दिन से राज्यपाल के पास भेजा गया है और डीएमके इसे मंजूरी देने के लिए बड़े स्तर पर मांग कर रही है। स्टालिन ने कहा कि सत्ता में आने के बाद पार्टी राष्ट्रीय पात्रता-सह-प्रवेश परीक्षा (एनईईटी) से राज्य को छूट दिलाने के लिए सभी कानूनी प्रयास करेगी।
तमिलनाडु गवर्नमेंट स्कूल्स बिल, 2020 छात्रों को मेडिसिन, डेंटिस्ट्री, इंडियन मेडिसिन और होम्योपैथी के अंडरग्रेजुएट कोर्सेज में एडमिशन पाने के लिए राज्य के सरकारी स्कूलों से पास हुए छात्रों को 7.5 प्रतिशत का आरक्षण देता है।
सत्तारूढ़ अन्नाद्रमुक सरकार की निंदा करते हुए स्टालिन ने सवाल उठाया कि मुख्यमंत्री के.पलानीस्वामी राज्यपाल से विधेयक पर अपनी सहमति देने का आग्रह क्यों नहीं कर रहे हैं।
विधानसभा में विपक्ष के नेता स्टालिन ने कहा कि नीट से छूट की मांग करने वाले दो विधेयकों को 2017 में विधानसभा में सर्वसम्मति से पारित किया गया था और राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के पास उनकी सहमति के लिए भेजा गया था। हालांकि, बिलों को सात महीने बाद तमिलनाडु वापस भेज दिया गया था। अब यह मामला 23 महीने बाद एक कोर्ट केस के कारण सार्वजनिक तौर पर सामने आया है।
स्टालिन ने कहा, "नीट के नतीजे आ चुके हैं और जल्द काउंसलिंग शुरू होनी चाहिए। अगर राज्यपाल विधेयक को मंजूरी देते हैं, तो सरकारी स्कूलों के 300 छात्रों को मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश मिलेगा वरना केवल 8 छात्रों को प्रवेश मिलेगा।"
गुरुवार को स्टालिन ने कहा था कि उनकी पार्टी पुरोहित के पत्र का जवाब मिलने तक राजभवन के बाहर बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन जारी रखेगी। वहीं पुरोहित ने कहा है कि उन्हें तमिलनाडु के सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले छात्रों को मेडिकल कॉलेज में 7.5 प्रतिशत का आरक्षण देने वाले बिल पर निर्णय लेने के लिए 3 से 4 सप्ताह का समय चाहिए। (आईएएनएस)
विशाल गुलाटी
कुल्लू (हिमाचल प्रदेश), 24 अक्टूबर| कोरोनावायरस महामारी ने न केवल इंसान प्रभावित हुए हैं, बल्कि देवी-देवता भी इसके प्रभाव से वंचित नहीं रह पाए हैं क्योंकि इस साल 240 दैवीय शक्तियों पर भी लॉकडाउन की प्रक्रिया लागू कर दी गई है।
सात दिवसीय कुल्लू दशहरा महोत्सव में इस बार केवल सात देवता ही अपनी उपस्थिति दर्ज कराएंगे और ऐसा लगभग 400 सालों में पहली बार होने जा रहा है। महोत्सव का शुभारंभ 25 अक्टूबर यानि कि कल से होने जा रहा है।
आयोजकों ने रविवार को बताया कि इस साल महोत्सव में सभी परंपराओं का पालन सीमित रूप में किया जाएगा और केवल उन्हीं 200 लोगों को रघुनाथ की रथयात्रा में शामिल होने दिया जाएगा, जो कोविड-19 की जांच में नेगेटिव पाए गए हैं।
यह एक 383 साल पुरानी रीति है, जहां दशहरा या विजयादशमी के पहले वाले दिन, जब पूरे देश में त्यौहार का समापन होता है, उस दिन यहां कुल्लू घाटी के मुख्य देवता भगवान रघुनाथ के रथ को सुल्तानपुर के ऐतिहासिक मंदिर से हजारों भक्तों द्वारा निकाला जाता है।
इस शोभायात्रा में 250 देवी-देवताओं का दैवीय मिलन हर साल देखने को मिलता है। त्यौहार के खत्म होने तक इन्हें ढालपुर के मैदान में रखा जाता है।
महोत्सव की मुख्य आयोजक उपायुक्त ऋचा शर्मा ने आईएएनएस को बताया, "सोशल डिस्टेंसिंग की बात को ध्यान में रखते हुए हमने आमंत्रित किया है, बल्कि अनुमति दी है कि इस साल दशहरा उत्सव में केवल सात प्रमुख देवताओं को ही शामिल किया जाएगा।"
प्रमुख देवताओं में बिजली महादेव, मनाली की माता हिडिम्बा सहित अन्य पांच देवताओं को आमंत्रित किया गया है। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 24 अक्टूबर| पंजाब में बिहार के प्रवासी मजदूर की छह वर्षीय बेटी के साथ दुष्कर्म और हत्या की घटना पर केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावडेकर ने राज्य की कांग्रेस सरकार और राहुल गांधी पर निशाना साधा है। उन्होंने कहा है कि पॉलिटिकल टूर करने की जगह राहुल गांधी को टांडा जाना चाहिए, जहां बिहार की छह साल की बेटी के साथ इतनी बड़ी घटना हुई। केंद्रीय मंत्री ने अब तक आरोपियों की गिरफ्तारी न होने पर नाराजगी जताते हुए पंजाब की कांग्रेस सरकार के रवैये पर सवाल उठाए हैं। केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री प्रकाश जावडेकर ने कहा, "पंजाब के टांडा गांव में बिहार के दलित प्रवासी मजदूर की छह वर्ष की बेटी को दुष्कर्म के बाद मार दिया गया। इस दर्दनाक और शर्मसार करने वाली घटना में अभी तक अपराधी पकड़े नहीं गए हैं। हम पंजाब सरकार से अपराधियों को पकड़ने और कड़ी कार्रवाई की मांग करते हैं।"
केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावडेकर ने पंजाब शासित राजस्थान और पंजाब में बेटियों के साथ दरिंदगी की घटनाओं पर चुप्पी साधने को लेकर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी पर निशाना साधा। उन्होंने कहा, "राहुल गांधी पॉलिटिकल टूर पर जाते हैं, इसके बजाय उन्हें टांडा में जाना चाहिए। राजस्थान में जाना चाहिए। जहां उनकी सरकारें हैं, वहां महिलाओं के साथ कैसे अन्याय और दुष्कर्म हो रहा है, यह वो नहीं देखते। बच्ची के साथ हुई इस घटना पर न राहुल, प्रियंका गए न कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कोई टिप्पणी नहीं की।"
केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावडेकर ने कहा, "टांडा गांव में जिस दलित बच्ची के साथ दुष्कर्म हुआ वह बिहार की बेटी है। हमारे पूर्व केंद्रीय मंत्री विजय सांपला जाकर पीड़ित परिवार से मिले। लेकिन कांग्रेस जिनकी वहां सरकार है, उनका कोई व्यक्ति नहीं मिला। इस घोर अन्याय और अत्याचार की हम निंदा करते हैं।"
प्रकाश जावडेकर ने कांग्रेस शासित पंजाब में बिहार की दलित बच्ची के साथ हुई इस घटना पर राजद नेता तेजस्वी यादव की खामोशी पर भी सवाल खड़े किए। उन्होंने तेजस्वी यादव से कहा, " बिहार की बेटी पर अत्याचार पर चुप रहने वालों के साथ वो बिहार का चुनाव प्रचार करते हैं। ऐसे कैसे चलेगा? बिहार की दलित बेटी के साथ जिस तरह से टांडा गांव में अत्याचार हुआ, वह मनुष्यता पर लांछन लगाने वाली घटना है। हाथरस और बाकी जगह जाकर फोटो का अवसर तलाशने वाले राहुल गांधी टांडा क्यों नहीं जाते। राजस्थान में 10 जगह बलात्कार की घटनाएं हुईं, वहां क्यों नहीं गए। इस तरह की राजनीति नहीं चलती।" (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 24 अक्टूबर| प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए गुजरात को तीन अहम परियोजनाओं की सौगात दी। उन्होंने कहा कि आज किसान सूर्योदय योजना, गिरनार रोपवे और देश के बड़े और आधुनिक कार्डियो हॉस्पिटल गुजरात को मिल रहे हैं। ये तीनों एक प्रकार से गुजरात की शक्ति, भक्ति, स्वास्थ्य के प्रतीक हैं। प्रधानमंत्री ने कहा, "बिजली के क्षेत्र में बरसों से गुजरात में जो काम हो रहे थे, वो इस योजना का बहुत बड़ा आधार बने हैं। एक समय था जब गुजरात में बिजली की बहुत किल्लत रहती थी, 24 घंटे बिजली देना बहुत बड़ी चुनौती रहती थी। गुजरात देश का पहला राज्य था जिसने सौर ऊर्जा के लिए एक दशक पहले ही व्यापक नीति बनाई थी।"
उन्होंने कहा कि जब साल 2010 पाटन में सोलार पावर प्लांट का उद्घाटन हुआ था तब किसी ने कल्पना भी नहीं की थी कि एक दिन भारत दुनिया को 'वन वल्र्ड, वन ग्रिड' का रास्ता दिखाएगा। आज तो भारत सोलर पावर के उत्पादन और उसके उपयोग, दोनों मामलों में दुनिया के अग्रणी देशों में है।
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि बीते 6 सालों में देश सोलर उत्पादन के मामले में दुनिया में पांचवे स्थान पर पहुंच चुका है और लगातार आगे बढ़ रहा है। गुजरात ने तो बिजली के साथ सिंचाई और पीने के पानी के क्षेत्र में भी शानदार काम किया है। बीते दो दशकों के प्रयासों से आज गुजरात उन गांवों तक भी पानी पहुंच गया है, जहां कोई पहले सोच भी नहीं सकता था।
प्रधानमंत्री मोदी ने बताया कि गुजरात के करीब 80 प्रतिशत घरों में आज नल से जल पहुंच चुका है। बहुत जल्द गुजरात देश के उन राज्यों में होगा जिसके हर घर में पाइप से जल पहुंचेगा। (आईएएनएस)
मुंबई, 24 अक्टूबर| देश के जाने-माने बैंड इंडियन ओशन ने आगामी टीवी शो 'भारत के महावीर' के एंथम के माध्यम से कोविड-19 के नायकों को सम्मानित किया है। गाने के बोल कुछ इस प्रकार हैं, "मंजिले हमसे खुद आज कहने लगीं, दिल में है हौंसला, जीतेगी जिंदगी।" गाने के वीडियो में शो के मेजबान दीया मिर्जा और सोनू सूद सहित भारत में कोविड-19 के कुछ नायकों को शामिल किया गया है। शनिवार को संयुक्त राष्ट्र की 75 वीं वर्षगांठ पर गान का शुभारंभ किया गया।
बैंड ने अपने एक संयुक्त बयान में कहा, "हमें लगता है कि नकारात्मकता की इस घड़ी में सकारात्मक कहानियों को सामने लाया जाना बेहद जरूरी है। यही एक खास वजह है कि हम इस एंथम को बनाने के लिए 'भारत के महावीर' के साथ जुड़े हैं। यह इस भावना को उजागर करती है कि अगर हम सभी अच्छी सोच के साथ एकजुट होकर सामूहिक रूप से प्रयास करते हैं, तो हम इस मुश्किल स्थिति से जरूर उबर पाएंगे।"
इस एंथम के बारे में बात करते हुए दीया ने कहा, "यह उम्मीद, एकजुटता, एकता और भाईचारे की बात करती है। आज की इस मुश्किल घड़ी में भारत सहित दुनिया को इसी एक संदेश की जरूरत है।"
'भारत के महावीर' एक सीरीज है, जिसे तीन भागों में पेश किया जाएगा। इसमें 12 कहानियां शामिल हैं, जो समन्वयता की भावनाओं पर आधारित है। इसके पहले चरण को नवंबर में डिस्कवरी चैनल और डिस्कवरी प्लस ऐप पर प्रसारित किया जाएगा। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 24 अक्टूबर। मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने कहा कि चीन कितनी भी कोशिश कर ले, लेकिन राज्य की जनता और भारतीय सेना इस इलाके में डटी रहेगी। जरूरत पडऩे पर प्रदेश के लोग चीन के खिलाफ भारतीय सेना के साथ मिलकर लड़ेंगे।
लद्दाख में भारतीय सीमा पर चीन के साथ जारी विवाद के बीच अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने साफ किया कि चीन अरुणाचल प्रदेश पर चाहे जितना भी दावा जताता रहे, लेकिन राज्य की जनता और भारतीय सेना इससे पीछे नहीं हटेगी।
अरुणाचल प्रदेश में भारत-तिब्बत सीमा पर बूम ला दर्रे में शुक्रवार को आयोजित एक कार्यक्रम में सीएम पेमा खांडू ने कहा कि आज के हालात साल 1962 से अलग हैं. चीन कितनी भी कोशिश कर ले, लेकिन राज्य की जनता और भारतीय सेना इस इलाके में डटी रहेगी।
सीएम खांडू साल ने 1962 के भारत-चीन युद्ध में शहीद हुए सैनिक सूबेदार जोगिन्द्र सिंह के सम्मान में आयोजित एक कार्यक्रम में कहा कि, अब 2020 चल रहा है, ये 1962 नहीं है, अब वक्त बदल चुका है। उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक हम पूरी तरह चीन से मुकाबला करने के लिए तैयार हैं। उन्होंने चीन को चुनौती देते हुए कहा कि जरूरत पडऩे पर अरुणाचल प्रदेश के लोग भी भारतीय सेना के साथ खड़े होंगे।
चीन अरुणाचल प्रदेश पर करता है दावा
दरअसल चीन हमेशा ही अरुणाचल प्रदेश को भारतीय राज्य न मानकर इसे दक्षिण तिब्बत का हिस्सा बताता रहा है. वहीं भारत हमेशा चीन के इस दावे को खारिज करता रहा है।
चीन के साथ अरुणाचल प्रदेश की 3,488 किमी लंबी सीमा लगती है, लेकिन चीन अपने रवैये पर कायम है, चीन हमेशा ही राज्य पर अपना दावा दिखाता रहा है, चीन ने साल 1951 में तिब्बत पर कब्जा किया था, लेकिन साल 1938 में खींची गई मैकमोहक लाइन के मुताबिक अरुणाचल प्रदेश भारत का हिस्सा है। (भाषा)
अर्चना शर्मा
जयपुर, 24 अक्टूबर| राजस्थान के पूर्व मुख्य सचिव सलाउद्दीन अहमद को लगता है कि सोशल मीडिया और टीवी चैनल समाज में दरार पैदा कर रहे हैं। सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी अहमद ने हाल ही में 91 पूर्व ब्यूरोक्रेट्स के साथ मिलकर सुदर्शन न्यूज के 'यूपीएससी जिहाद' प्रोमो के खिलाफ कार्रवाई की मांग की गई थी।
"हमने संबंधित अधिकारियों को एक पत्र लिखा था, क्योंकि हम 91 लोग हिंदू या मुसलमानों का प्रतिनिधित्व नहीं करते। हम भारतीय सिविल सर्वेंट थे, जो चाहते थे कि यूपीएससी जैसी शीर्ष संस्थान का अपमान नहीं होना चाहिए। टीवी चैनलों की तो इसे लेकर ज्यादा जिम्मेदारी बनती है क्योंकि उनके प्रसारण को कई घरों में देखा जाता है।"
राजस्थान में पहले मुस्लिम मुख्य सचिव रहे अहमद इस बात को खारिज करते हैं कि भारत में हिंदुत्व अपना कब्जा जमा रहा है, लेकिन वो कहते हैं कि टीवी चैनल और सोशल मीडिया ऐसे दावे फैला रहे हैं जो किसी भी लोकतांत्रिक देश के लिए अच्छा नहीं है।
उन्होंने कहा, "सोशल मीडिया पर जहर उगलने वाले बहुत लोग हैं और उनके फॉलोअर्स भी बहुत हैं। लेकिन एक शिक्षित समाज के रूप में, हमें खड़े होना चाहिए और ऐसे पोस्ट और टीवी चैनलों से बचना चाहिए।"
सेवानिवृत्ति के बाद पूर्व मुख्य सचिव शहर की भगदड़ से दूर एक लंबी-चौड़ी जमीन पर फैले आलीशान विला में अपना जीवन बिता रहे हैं। यहां बड़ी तादाद में पेड़ लगे हैं। शहरी जीवन से दूर रहने के बावजूद वे भारतीय जनता पर सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव से चिंतित है। उन्होंने कहा कि कुछ टीवी चैनल भी समाज में जहर फैला रहे हैं।
आईएएनएस से बात करते हुए अहमद कहते हैं, "कुछ भारतीय चैनल भी समाज में एक दरार बनाने की कोशिश कर रहे हैं, जिसे स्वीकार नहीं किया जाना चाहिए। अलग-अलग कैडरों के हमारे कई दोस्त इस मुद्दे पर आवाज उठाने के लिए साथ आए हैं।"
अहमद उन 101 सिविल सर्वेंट में शामिल थे जिन्होंने राज्यों के मुख्यमंत्रियों और सभी केंद्र शासित प्रदेशों के लेफ्टिनेंट गवर्नरों को एक पत्र लिखा था, जिसमें कोरोना प्रसार के दौरान हुए तबलीगी जमात विवाद के कारण देश के मुस्लिमों को उत्पीड़ित किया गया था।
यह पूछे जाने पर कि क्या उन्हें वास्तव में लगता है कि मुसलमानों के खिलाफ किसी भी तरह का पूर्वाग्रह है। इस पर उन्होंने कहा, "भारत ऐसा देश है, जो कई धर्मों का प्रतिनिधित्व करता है और जाति से संबंधित मुद्दे अभी भी हमारे समाज में मजबूती से जमे हुए हैं। आरक्षण और जातियों के पक्षपाती रवैये पर सभी जातियों को लेकर सामान्य रूप से चर्चा की जा रही है लेकिन एक विशेष समुदाय के खिलाफ ऐसा नहीं हैं।"
उन्होंने आगे कहा, "मुझे पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के कार्यकाल में सर्वश्रेष्ठ पद मिले और भगवा पार्टी के तहत काम करना अजीब नहीं लगा। लेकिन हो सकता है कि मुख्यमंत्री के रूप में योगी के साथ काम करना मुश्किल हो गया हो, क्योंकि चीजें बदल रही हैं।"
मुस्लिमों की स्थिति को लेकर उन्होंने कहा, "शिक्षित होने की आवश्यकता है। मुसलमानों की सामाजिक-आर्थिक दुर्दशा बदल सकती है अगर वे अपने दम पर खड़े होकर शिक्षित होना सीखें।"
1975 बैच के इस भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) अधिकारी का कहना है कि उनके पिता ने उन्हें इलाहाबाद विश्वविद्यालय में दाखिला दिलाया था क्योंकि उन दिनों वह आईएएस फैक्ट्री माना जाता था। वहीं उनकी मां उन्हें राज्य के मुख्य सचिव के रूप में देखना चाहती थीं, उनका यह सपना पूरा हुआ। (आईएएनएस)
डब्ल्यूएचओ का कहना है कि फ्लाइट में कोरोना से संक्रमित होने का खतरा बहुत कम है लेकिन शून्य नहीं है. संगठन के मुताबिक फ्लाइट में प्रसार मुमकिन है लेकिन खतरा बेहद कम है. क्योंकि यात्रियों की संख्या सीमित होती है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा कि फ्लाइट में कोविड-19 के फैलने का जोखिम "बहुत कम" है लेकिन इसके प्रसार से इनकार नहीं किया जा सकता है. कुछ शोधों में फ्लाइट में कोरोना फैलने की बात कही गई थी. पिछले दिनों फ्लाइट में कोरोना फैलने को लेकर को दो स्टडी हुई थी और उसमें कहा गया था कि उड़ान के दौरान वायरस का प्रसार हो सकता है. डब्ल्यूएचओ ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को दिए बयान में कहा, "फ्लाइट के दौरान संक्रमण संभव है लेकिन विमान में यात्रियों की संख्या और मामलों की संख्या को देखते हुए इसका खतरा बहुत कम नजर आता है."
दरअसल पिछले हफ्ते अमेरिकी रक्षा विभाग ने भी अपने शोध में पाया था कि उड़ान के दौरान कोरोना के प्रसार का खतरा "बहुत कम" रहता है. शोध के मुताबिक विमान में हेपा एयर फिल्टर के कारण कोरोना वायरस के संक्रमण की संभावनाएं घट जाती हैं. हालांकि कुछ एयरलाइंस ने उड़ान के दौरान प्रसार की संभावना को कम बताने के लिए काफी कड़ी भाषा का इस्तेमाल किया है. साउथवेस्ट एयरलाइंस और यूनाइटेड एयरलाइंस दोनों ने कहा है कि हाल के अध्ययनों में पाया गया है कि जोखिम "वास्तव में अस्तित्वहीन" है.
साउथवेस्ट एयरलाइंस बीच वाली सीट खाली रखती है हालांकि अब उसका कहना है कि इस नए शोध के बाद वह मिडिल सीट पर बैठने की रोक हटा लेगी. वैश्विक एयरलाइंस संघ आईएटीए ने 8 अक्टूबर को कहा था कि इस साल 1.4 अरब यात्रियों में संक्रमण के केवल 44 संभावित मामले पाए गए थे.
डब्ल्यूएचओ ने कहा कि वह कम से कम दो केस रिपोर्ट अध्ययनों के बारे में जानता है जिनमें लंदन से हनोई और सिंगापुर से चीन तक की उड़ानों में इन फ्लाइट ट्रांसमिशन का जिक्र किया गया है. डब्ल्यूएचओ ने साथ ही कहा है कि बीमार और संक्रमित लोगों को यात्रा की इजाजत नहीं दी जानी चाहिए. उसके मुताबिक आधुनिक विमानों में एयर फिल्टर वायरस और रोगाणुओं को तेजी से फिल्टर कर सकते हैं.
एए/सीके (रॉयटर्स)(dw)
अबुजा, 24 अक्टूबर | नाइजीरिया के राष्ट्रपति मुहम्मदु बुहारी ने कहा है कि देश में पुलिस क्रूरता के खिलाफ विरोध प्रदर्शन में 69 लोग मारे गए हैं।
मरने वालों में मुख्य रूप से नागरिक हैं लेकिन पुलिस अधिकारी और सैनिक भी शामिल हैं।
उनके प्रवक्ता ने बीबीसी को बताया कि राष्ट्रपति ने नाइजीरिया के पूर्व नेताओं के साथ एक आपात बैठक में मृतकों की घोषणा की। बैठक का उद्देश्य अशांति को समाप्त करने के तरीके को खोजना था।
एक समूह जिसने प्रदर्शनों को आयोजित करने में अहम भूमिका निभाई, उसने अब लोगों से घर पर रहने का आग्रह किया है।
फेमिनिस्ट कोअलिशन ने भी लोगों को अपने राज्यों में जगह-जगह किसी भी कर्फ्यू का पालन करने की सलाह दी।
विरोध प्रदर्शन काफी कम हो गया है लेकिन कई शहरों में एक असहज शांति बनी हुई है।
अधिकारियों ने कहा कि लागोस राज्य में लगाए गए कर्फ्यू में ढील दी जाएगी।
नाइजीरिया में विरोध प्रदर्शन 7 अक्टूबर को शुरू हुआ, जिसमें ज्यादातर युवा एक कुख्यात पुलिस इकाई, स्पेशल एंटी-रॉबरी स्क्वाड (सार्स) को हटाने की मांग कर रहे थे।
यूनिट को कुछ दिनों के बाद भंग कर दिया गया था, लेकिन विरोध जारी रहा। लोगों ने नाइजीरिया के शासन के तरीके में व्यापक सुधार की मांग की।
देश के सबसे बड़े शहर लागोस में मंगलवार को गोलीबारी के बाद प्रदर्शन बढ़ गए। अधिकार समूह एमनेस्टी इंटरनेशनल का कहना है कि सुरक्षाबलों ने कम से कम 12 लोगों को मार डाला। नाइजीरिया की सेना ने किसी भी संलिप्तता से इनकार किया है।
77 साल के राष्ट्रपति बुहारी की शुक्रवार की वर्चुअल बैठक में कहा गया कि उनका प्रशासन प्रदर्शनकारियों की मांगों को पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध है। लेकिन उन्होंने कहा कि उनकी सरकार उन अपराधियों को अनुमति नहीं देगी जिन्होंने विरोध प्रदर्शनों की आड़ में 'गुंडागर्दी' जारी रखना चाहते हैं।
उनके प्रवक्ता ने बताया कि राष्ट्रपति ने बैठक में बताया कि विरोध प्रदर्शन के दौरान 51 नागरिक, 11 पुलिस अधिकारी और सात सैनिक मारे गए है। यह तुरंत स्पष्ट नहीं था कि इन आंकड़ों में मंगलवार को लागोस में सुरक्षा बलों द्वारा कथित तौर पर मारे गए प्रदर्शनकारियों को शामिल किया गया है या नहीं।
राष्ट्रपति ने इससे पहले टेलीविजन पर संबोधित किया, जिसमें उन्होंने प्रदर्शनकारियों से प्रदर्शन को रोकने और इसके बजाय 'समाधान खोजने में' सरकार के साथ सहयोग करने सका आग्रह किया।(आईएएनएस)
नई दिल्ली, 24 अक्टूबर | नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी) कतर से एक मुस्लिम जोड़े को वापस लाने के लिए कूटनीतिक रास्ता अपनाएगा, जिन्हें ड्रग्स तस्करी के आरोपों के बाद वहां गिरफ्तार किया गया था। जांच में पाया गया था कि वह 'अनजाने में' अपने सामान के साथ ड्रग्स लेकर जा रहे थे, जो उनके रिश्तेदार द्वारा तम्बाकू या 'जर्दा' की आड़ में रखा गया था। रिश्तेदार ने युगल (कपल) को हनीमून पैकेज प्रदान किया था।
मोहम्मद शारिक और ओनिबा कौसर शकील अहमद को दोहा के हमाद अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर ड्रग प्रवर्तन एजेंसियों ने पिछले साल छह जुलाई को गिरफ्तार किया था। उनके सामान में 4.1 किलोग्राम हशीश (चरस) पाई गई थी।
उनके सामान में नशीले पदार्थ की जब्ती के बाद, दंपति को 10 साल की जेल की सजा सुनाई गई थी और उनमें से प्रत्येक पर 300,000 रियाल का जुर्माना भी लगाया गया था।
एनसीबी के एक अधिकारी ने आईएएनएस को बताया, "यह मामला हमारे संज्ञान में तब आया, जब ओनिबा के पिता शकील अहमद कुरैशी ने एनसीबी से संपर्क किया और आरोप लगाया कि उनकी बेटी और दामाद को भारत से कतर जाने पर गिरफ्तार कर लिया गया और फिलहाल वह वहां कारावास में हैं।"
अधिकारी ने कहा कि एनसीबी के निदेशक को लिखे अपने पत्र में कुरैशी ने आरोप लगाया है कि उनकी बेटी और दामाद को एक महिला तबस्सुम रियाज कुरैशी, जो शारिक की चाची हैं, और उनके सहयोगी निजाम कारा ने हनीमून पैकेज की आड़ में उनके साथ धोखा किया है।
उन्होंने कहा कि तबस्सुम निजाम कारा ने उनके सामान में ड्रग्स छुपा दी थी। ये दोनों ही मुंबई के निवासी हैं।
अधिकारी ने कहा कि कुरैशी ने संबंधित दस्तावेज और शिकायत के साथ अपने दामाद और तबस्सुम के बीच बातचीत की ऑडियो रिकॉडिर्ंग युक्त एक कॉम्पैक्ट डिस्क प्रदान की है।
अधिकारी ने कहा कि एनसीबी की ओर से शिकायत प्राप्त होने के बाद, कुरैशी द्वारा लगाए गए आरोपों की विस्तृत जांच शुरू की गई है। यह पता चला कि कारा द्वारा तबस्सुम और अन्य लोगों के साथ मिलकर एक सुव्यवस्थित ड्रग ट्रैफिकिंग सिंडिकेट चलाया जा रहा है।
अधिकारी ने कहा कि एनसीबी की ओर से ड्रग सिंडिकेट सदस्यों पर कड़ी निगरानी रखी गई है।
अधिकारी ने कहा कि पिछले साल 22 दिसंबर को मुंबई पुलिस ने एक मामला दर्ज किया था और जांच के दौरान कारा और तब्बसुम को 13 ग्राम कोकीन के साथ गिरफ्तार किया गया था।
अधिकारी ने कहा कि कुछ विश्वसनीय इनपुट के आधार पर, 26 फरवरी को एनसीबी टीम ने चंडीगढ़ में इस सिंडिकेट से संबंधित 1.474 किलोग्राम चरस की एक खेप को भी पकड़ा था और चार व्यक्तियों - वेद राम, महेश्वर, शाहनवाज गुलाम और शबाना को गिरफ्तार किया गया था।
अधिकारी ने कहा, "हम राजनयिक स्तर पर इस मुद्दे को उठाने के लिए संबंधित अधिकारियों से संपर्क कर रहे हैं।"
आईएएनएस ने ओनिबा के परिवार के सदस्यों से संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन उनके भाई ने इस मामले पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया।(आईएएनएस)
लखनऊ, 24 अक्टूबर | योगी सरकार के अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री मोहसिन रजा ने कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने का विरोध करने वाली महबूबा मुफ्ती पर निशाना साधा है और कहा कि वह पाकिस्तान चली जाएं। योगी सरकार के अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री मोहसिन रजा ने वीडियो जारी कर कहा कि नजरबंदी से बाहर आकर महबूबा मुफ्ती ने जिस प्रकार की भाषा बोली है, साफ दर्शाता है कि वह पाकिस्तान और कांग्रेस की भाषा बोल रही हैं। ये लोग भारत तेरे टुकड़े होंगे गैंग के लोग हैं।
अनुच्छेद 370 और तिरंगे को लेकर उनके एलान पर मोहसिन रजा ने कहा कि महबूबा मुफ्ती इमरान खान और राहुल गांधी की भाषा बोल रही हैं। भाजपा ने देश हित में 370 हटाने का फैसला लिया है।
रजा ने कहा कि महबूबा मुफ्ती कश्मीर में अनुच्छेद 370 वापस लागू करने की चाहत दिल में लेकर चली जाएंगी, लेकिन अब यह हो नहीं सकता है। इसलिए बेहतर है कि वह पाकिस्तान जाने का निर्णय ले लें, जो ज्यादा अच्छा होगा।(आईएएनएस)
जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री और पीडीपी की अध्यक्ष महबूबा मुफ़्ती ने भारतीय जनता पार्टी पर आरोप लगाया है कि वो भारत के संविधान की जगह अपनी पार्टी के मैनिफ़ेस्टो को लागू करना चाहती है.
शुक्रवार को उन्होंने पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि फ़ारूक़ अब्दुल्लाह की नेशनल कॉन्फ़्रेंस और दूसरी छोटी पार्टियों के साथ बना राजनीतिक गठबंधन पाँच अगस्त, 2019 को 'कश्मीर के क़ानूनी और संवैधानिक अधिकारों पर क़ब्ज़े' के ख़िलाफ़ संघर्ष करता रहेगा.
पाँच अगस्त, 2019 को मोदी सरकार ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत कश्मीर को मिलने वाले विशेष राज्य के दर्जे को ख़त्म कर दिया था और जम्मू-कश्मीर राज्य को ख़त्म कर उसे दो केंद्र शासित प्रदेश में बाँट दिया था.
भारत सरकार के इस फ़ैसले को उन्होंने 'डाकाज़नी' क़रार दिया और कहा, "जब तक हमलोगों को अपना (जम्मू-कश्मीर) झंडा वापस नहीं मिल जाता, हमलोग भारतीय झंडे को भी नहीं उठाएंगे."
संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत कश्मीर को जो विशेष राज्य का दर्जा हासिल था उसमें उसे राज्य का अलग झंडा रखने का भी अधिकार था.
अनुच्छेद 370 हटाने का फ़ैसला
लेकिन अनुच्छेद 370 के हटने के साथ ही जम्मू-कश्मीर से यह अधिकार छीन लिए गए.
महबूबा मुफ़्ती को दो और पूर्व मुख्यमंत्रियों और सैंकड़ो नेताओं के साथ चार अगस्त, 2019 को ही सरकार ने हिरासत में ले लिया था. बाद में उन पर पब्लिक सेफ़्टी एक्ट भी लगा दिया गया था.
लगभग 14 महीनों तक हिरासत में रहने के बाद इसी महीने सरकार ने उनकी नज़रबंदी ख़त्म करते हुए उन्हें रिहा कर दिया था.
महबूबा मुफ़्ती ने कहा कि राज्य की आंशिक स्वायत्ता को ख़त्म करने और राज्य का दर्जा घटाकर उसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में बाँटने के फ़ैसले ने आम कश्मीरियों को सबसे ज़्यादा मानसिक आघात पहुँचाया है.
उनका कहना था, "बीजेपी की सरकार जम्मू-कश्मीर में भारत-समर्थक राजनीति को बदनाम करने की कोशिश कर रही है, लेकिन मेरे कार्यकर्ता मज़बूती से अड़े हुए हैं. मेरी पार्टी भी अछूती है सिवाए कुछ लोगों के जो भटक गए हैं."
59 साल की महबूबा मुफ़्ती ने मोदी सरकार पर देश की अत्यावश्यक मामलों को सुलझाने में नाकाम रहने का आरोप लगाया.
मोदी सरकार पर हमला करते हुए उन्होंने कहा, "जब सरकार अर्थव्यवस्था को संभालने में और लोगों के सशक्तिकरण में फ़ेल हो जाती है तो वो अल्पसंख्यकों और कश्मीर को निशाना बनाती है."
उन्होंने कहा कि अगर कश्मीर का मसला हल नहीं किया गया तो इसके नतीजे बहुत गंभीर होंगे.
उनका कहना था, "मेरे पिता मुफ़्ती साहब (मुफ़्ती मोहम्मद सईद) ने कश्मीर समस्या के शांतिपूर्ण हल का सपना देखा था. आप उस कबूतर की नक़ल नहीं कर सकते हैं जो बिल्ली के सामने अपनी आंखें बंद कर देता है. अगर आप आंखें बंद करते हैं तो बिल्ली आपको खा जाएगी. कश्मीर समस्या के समाधान की ज़रूरत है. इस समस्या का समाधान नहीं होने से इसने लद्दाख़ जैसी दूसरी चिंताओं को जन्म दिया है."
महबूबा के अनुसार भारत सरकार समझती है कि कश्मीर के लोगों की बलि दी जा सकती है.
उनका कहना था, "पाँच अगस्त, 2019 तक भारत सरकार का जम्मू-कश्मीर पर जायज़ नियंत्रण था. लेकिन उन्होंने हमें बेइज़्ज़त कर यह साबित कर दिया कि उन्हें सिर्फ़ हमारी भूमि चाहिए हमारे लोग नहीं. हमें यह पसंद नहीं है और यह इस तरह से नहीं चल सकता है. लाखों लोगों ने शांति और अपनी इज़्ज़त के लिए जान गंवाई हैं. उनका यह बलिदान बेकार नहीं जाएगा."
महबूबा मुफ़्ती ने इस बात पर ज़ोर दिया कि राज्य के संवैधानिक स्वायत्ता को वापस लाना एक राजनैतिक लड़ाई है.
उनका कहना था, "यह लंबी लड़ाई है. सभी राजनेता एक साथ आएं हैं, अब लोगों को भी एक हो जाना चाहिए. हमलोग मिलकर यह करेंगे." (bbc)