मनोरंजन
मुंबई, 7 अक्टूबर | सुपरस्टार सलमान खान ने 'बिग बॉस 16' के मेजबान के रूप में वापसी की है और पिछले सीजन के विपरीत इस बार वह 'शुक्रवार का वार' के एक विशेष एपिसोड में साप्ताहिक गतिविधियों का आकलन करेंगे। सलमान ताजिकिस्तान के गायक और प्रतियोगी अब्दु रोजिक को 2 किलो डम्बल का एक सेट भेंट करके शुरूआत करेंगे।
शो के निर्माताओं ने प्रसारण से पहले एपिसोड का प्रोमो जारी किया। बाद में वह घर के दस कंटेस्टेंट के लिए एक पार्टी का आयोजन करते हैं। डिनर शुरू होने से पहले होस्ट प्रतियोगियों को कुछ सलाह देंगे।
श्रीजिता डे और पूर्व मिस इंडिया उपविजेता मान्या सिंह, दोनों को एक बहस और लड़ाई में देखा जाएगा। उन्हें एक-दूसरे का अपमान करते हुए देखा जाएगा। 'बिग बॉस 16' कलर्स पर प्रसारित होता है। (आईएएनएस)|
मुंबई, 7 अक्टूबर | पति-पत्नी निर्देशक जोड़ी पुष्कर-गायत्री, जिनकी हाल ही में रिलीज हुई दो-नायकों वाली फिल्म 'विक्रम वेधा' में बॉलीवुड के स्टार हीरो ऋतिक रोशन और सैफ अली खान ने मुख्य भूमिकाओं में अभिनय किया, ने अभिनेत्री राधिका आप्टे को फिल्म में कास्ट करने के पीछे के कारण पर खुल कर बात की है। उसी पर विस्तार से, दोनों ने एक संयुक्त बयान में कहा, "हम चाहते थे कि प्रिया की भूमिका निभाने के लिए कोई महान अभिनय कला हो। इसके लिए किसी ऐसे व्यक्ति की आवश्यकता थी जो विक्रम (सैफ द्वारा अभिनीत) और वेधा (ऋतिक द्वारा अभिनीत) दोनों के लिए खड़ा हो सके। राधिका आप्टे इसके लिए एकदम सही थीं। और हमारी पसंद सही साबित हुई।
राधिका ने फिल्म में वेधा के वकील और विक्रम की पत्नी की भूमिका निभाई है।
निर्देशकों ने आगे उल्लेख किया, "जब हम उनसे पहली बार मिले थे, तो यह लगभग एक लंबे समय से खोए हुए दोस्त से मिलने जैसा था। वह पूरी तरह से पेशेवर हैं, जो अपेक्षा से अधिक करने के लिए हमेशा तैयार रहती हैं। उनके साथ काम करना एक परम आनंद था।"
'विक्रम वेधा' उसी नाम की 2017 की तमिल ब्लॉकबस्टर की आधिकारिक रीमेक है, जिसमें विजय सेतुपति और आर. माधवन ने अभिनय किया था। तमिल फिल्म का निर्देशन भी पुष्कर-गायत्री ने किया था। (आईएएनएस)|
मुंबई, 7 अक्टूबर | '3 इडियट्स', 'केदारनाथ' और 'शक्तिमान' जैसी फिल्मों और कई शो में प्रभावशाली भूमिकाएं करने वाले 79 वर्षिय वरिष्ठ अभिनेता अरुण बाली का शुक्रवार की सुबह 4:30 बजे मुंबई में निधन हो गया। अभिनेता एक दुर्लभ न्यूरोमस्कुलर बीमारी से पीड़ित थे, जिसे मायस्थेनिया ग्रेविस के नाम से जाना जाता है।
उन्हें हाल ही में आमिर खान और करीना कपूर अभिनीत फिल्म - 'लाल सिंह चड्ढा' में देखा गया था, उन्होंने ट्रेन में आमिर के चरित्र के सह-यात्री की भूमिका निभाई।
अरुण ने हिंदी, तेलुगु, पंजाबी फिल्मों के साथ-साथ कई टीवी शो में अपने अभिनय से सभी को प्रभावित किया।
अभिनेता ने 1991 के ऐतिहासिक नाटक 'चाणक्य' में राजा पोरस का किरदार निभाया था। इसके बाद उन्होंने दूरदर्शन के बहुत लोकप्रिय शो 'स्वाभिमान' में कुंवर सिंह का किरदार निभाया।
अरुण बाली 2000 के दशक में 'कुमकुम' में हर्षवर्धन वाधवा जैसे दादा की भूमिकाओं के लिए प्रसिद्ध हुए। उन्हें 'दूसरा केवल' में देखा गया था जिसमें शाहरुख खान ने भी अभिनय किया था।
उनका अंतिम संस्कार शनिवार को मुंबई में किया जाएगा। उनकी दो बेटियां अमेरिका में रहती हैं, वो मुंबई आ रही हैं। (आईएएनएस)|
मुंबई, सात अक्टूबर। मशहूर अभिनेता अरुण बाली का शुक्रवार सुबह उपनगरीय मुंबई में उनके आवास पर निधन हो गया। वह 79 वर्ष के थे।
बाली को धारावाहिक ‘स्वाभिमान’ और हिट फिल्म ‘3 इडियट्स’ में निभाए उनके किरदार के लिए काफी सराहना मिली थी।
बाली के बेटे अंकुश ने बताया कि उनके पिता ‘मायस्थेनिया ग्रेविस’ से पीड़ित थे। उन्हें इस साल की शुरुआत में एक अस्पताल में भर्ती भी कराया गया था।
अंकुश के मुताबिक, इलाज का उनके पिता पर असर दिख रहा था, लेकिन सुबह करीब साढ़े चार बजे उनका निधन हो गया।
अंकुश ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘मेरा पिता हमें छोड़ गए। वह ‘मायस्थेनिया ग्रेविस’ से पीड़ित थे। हर दो-तीन दिन में उनके स्वभाव में बदलाव दिखता था। उन्होंने उनकी देखभाल करने वाले को कहा कि उन्हें शौचालय जाना है और वापस आने के बाद कहा कि वह बैठना चाहते हैं और फिर वह नहीं उठे।’’
बाली ने अपने अभिनय करियर की शुरुआत प्रसिद्ध फिल्म निर्माता लेख टंडन के टीवी शो ‘दूसरा केवल’ से की थी, जिसमें शाहरुख खान भी नजर आए थे। उन्होंने ‘चाणक्य’, ‘स्वाभिमान’, ‘देस में निकला होगा चंद’, ‘कुमकुम-एक प्यारा सा बंधन’ जैसे धारावाहिकों में भी अहम किरदार निभाए थे।
बाली ‘सौगंध’, ‘राजू बन गया जेंटलमैन’, ‘खलनायक’, ‘सत्या’, ‘हे राम’, ‘लगे रहो मुन्ना भाई’, ‘3 इडियट्स’, ‘रेडी’, ‘बर्फी’, ‘मनमर्जियां’, ‘केदारनाथ’, ‘सम्राट पृथ्वीराज’ और ‘लाल सिंह चड्ढा’ जैसी फिल्मों में भी नजर आए थे।
उनकी आखिरी फिल्म ‘गुडबॉय’ इस शुक्रवार यानी आज ही रिलीज हुई है। फिल्म में अमिताभ बच्चन और रश्मिका मंदाना लीड किरदारों में हैं।
बाली के परिवार में उनका एक बेटा और तीन बेटियां हैं। (भाषा)
मुंबई, 6 अक्टूबर। सुपरस्टार चिरंजीवी की तेलुगु फिल्म ‘गॉडफादर’ ने पहले ही दिन दुनिया भर में करीब 38 करोड़ रुपये की कमाई की है। फिल्म के निर्माताओं ने बृहस्पतिवार को यह जानकारी दी।
यह फिल्म बुधवार को प्रदर्शित हुई थी। ‘गॉडफादर’ राजनीतिक एक्शन थ्रिलर फिल्म है। यह वर्ष 2019 में पृथ्वीराज सुकुमारन निर्देशित मलयालम फिल्म ‘लुसिफेर’ का रीमेक है। मलयालम फिल्म में मोहनलाल मुख्य भूमिका में थे।
फिल्म का निर्माण करने वाली कोनीडेला प्रोडक्शन कंपनी ने ट्वीट कर पहले दिन की कमाई की जानकारी दी।
कंपनी ने ट्वीट किया,‘‘ ब्लॉकबस्टर गॉडफादर ने शानदार शुरुआत की है। इसने प्रदर्शन के पहले दिन पूरी दुनिया में 38 करोड़ रुपये की कमाई की है।’’ (भाषा)
दक्षिण भारतीय फ़िल्म ‘आरआरआर’ ने ऑस्कर अवॉर्ड की रेस में शामिल होने के लिए निजी श्रेणी में आवेदन किया है.
कुछ समय पहले तक फ़िल्म के निर्माता उम्मीद लगा रहे थे कि भारत सरकार की ओर से इस फ़िल्म को ऑस्कर में नामांकित किया जाएगा.
लेकिन डायरेक्टर पान नलिन की गुजराती फ़िल्म 'छेल्लो शो' को भारत की ओर से 95वें ऑस्कर्स के लिए आधिकारिक रूप से भेजा गया.
इसके बाद सोशल मीडिया पर आरआरआर फ़िल्म के प्रशसंकों में निराशा देखी गयी थी.
लेकिन अब एसएस राजामौली की फ़िल्म आरआरआर ने ऑस्कर की सभी मुख्य श्रेणियों में आवेदन किया है.
आरआरआर ने बेस्ट पिक्चर, बेस्ट डायरेक्टर, बेस्ट एक्टर, स्क्रीनप्ले, ऑरिजिनल स्कोर, एडिटिंग, सिनेमेटोग्राफ़ी, साउंड और प्रोडक्शन डिज़ाइन से लेकर वीएफ़एक्स आदि श्रेणियों में आवेदन किया है.
इसके बाद लॉस एंजेल्स के चीनी थिएटर में इस फ़िल्म की मेग्रा स्क्रीनिंग हुई. (bbc.com/hindi)
दक्षिण भारतीय फ़िल्म ‘आरआरआर’ ने ऑस्कर अवॉर्ड की रेस में शामिल होने के लिए निजी श्रेणी में आवेदन किया है.
कुछ समय पहले तक फ़िल्म के निर्माता उम्मीद लगा रहे थे कि भारत सरकार की ओर से इस फ़िल्म को ऑस्कर में नामांकित किया जाएगा.
लेकिन डायरेक्टर पान नलिन की गुजराती फ़िल्म 'छेल्लो शो' को भारत की ओर से 95वें ऑस्कर्स के लिए आधिकारिक रूप से भेजा गया.
इसके बाद सोशल मीडिया पर आरआरआर फ़िल्म के प्रशसंकों में निराशा देखी गयी थी.
लेकिन अब एसएस राजामौली की फ़िल्म आरआरआर ने ऑस्कर की सभी मुख्य श्रेणियों में आवेदन किया है.
आरआरआर ने बेस्ट पिक्चर, बेस्ट डायरेक्टर, बेस्ट एक्टर, स्क्रीनप्ले, ऑरिजिनल स्कोर, एडिटिंग, सिनेमेटोग्राफ़ी, साउंड और प्रोडक्शन डिज़ाइन से लेकर वीएफ़एक्स आदि श्रेणियों में आवेदन किया है.
इसके बाद लॉस एंजेल्स के चीनी थिएटर में इस फ़िल्म की मेग्रा स्क्रीनिंग हुई. (bbc.com/hindi)
सुधा जी तिलक
भारत के जाने-माने फ़िल्म निर्देशक मणिरत्नम की नई फिल्म पोन्नियिन सेलवन:1 की काफ़ी चर्चा हो रही है. बॉक्स ऑफ़िस पर इस तमिल फ़िल्म को बेहतरीन प्रतिक्रिया मिल रही है, लेकिन आख़िर ऐसा इस फ़िल्म में क्या है जिसके कारण ये लोगों को थिएटर तक खींचने में सफल साबित हो रही है.
भारत के महानतम सम्राटों में से एक पर आधारित पोन्नियिन सेलवन उपन्यास को तमिल में लिखा गया अब तक का सबसे बेहतरीन उपन्यास माना जाता है.
ये नाम राजराज चोल को उनकी वफ़ादार प्रजा ने दिया था- जिसका अर्थ है राजाओं का राजा. वह उस चोल वंश के राजा थे जिसने 9वीं शताब्दी से लेकर 13वीं शताब्दी तक दक्षिण भारत के बड़े इलाके पर राज किया.
राजराज चोल वंश के पहले शासक नहीं थे, लेकिन उन्होंने चोल साम्राज्य को अपने चरम पर पहुंचाया और एक अपेक्षाकृत छोटे से हिस्से से भारत का प्रमुख साम्राज्य बनाया. उनका राजनीतिक प्रभाव श्रीलंका, मालदीव, थाईलैंड और मलेशिया तक फैला. साथ ही इस साम्राज्य के संबंध चीन के भी साथ थे.
इतिहासकार सुनील खिलनानी ने लिखा कि राजराज ने "ऐसा काम किया जो उनके पहले किसी भी भारतीय शासक ने नहीं किया था. उन्होंने व्यापारिक नौकाओं का अधिग्रहण किया, लकड़ी से चलने वाले बड़े जहाज़ का अधिग्रहण किया और इस तरह समुद्री मार्ग के ज़रिए यात्राएं बढ़ाईं जिससे दूर-दराज़ के हिस्से से व्यापार करना संभव हो पाया."
कई फ़िल्मी स्टार्स वाली इस फ़िल्म को 500 करोड़ के बजट में बनाया गया है. फ़िल्म 'पोन्नियिन सेलवन' के राजगद्दी पर बैठने के इर्द-गिर्द घूमती है, उनके पिता अपने बिगड़ते स्वास्थ्य के कारण शाही कर्तव्यों से खुद को दूर करने का फ़ैसला ले लेते हैं और उन्हें पदभार संभालना होता है, लेकिन ये इतना आसान नहीं है, महल में चल रही साज़िश और तख़्तापलट की कोशिशों में ये कहानी उलझी हुई है.
शाही परिवार के प्रतिद्वंद्वी राजराज से सिंहासन हड़पने की साज़िश रचते हैं और दुश्मन उनकी हत्या की साज़िश रचते हैं.
इस शाही दांव-पेच की कमान संभालती हैं एक बेहद शक्तिशाली और गूढ़ महिला नंदिनी, नंदिनी का किरदार निभाया है एश्वर्या राय बच्चन ने. नंदिनी अपने पूर्व प्रेमी (जिसका किरदार दक्षिण के स्टार विक्रम ने निभाया है.) को बर्बाद करना चाहती है.
नंदिनी की प्रतिद्वंदी हैं कुंडावई, इस किरदार को निभाया है तमिल की जानी-मानी अभिनेत्री त्रिशा ने. कुंडावई हर साज़िश को ध्वस्त करके अपने भाई को बचाती है और ये चाहती है कि उसका भाई जो सिंहासन का असली उत्तराधिकारी है वही राजगद्दी पर बैठे.
अभिनेता कार्ति ने वंदियाथेवन की भूमिका निभाई है जो एक तेजतर्रार योद्धा है और शाही राजकुमारों का वफ़ादार दोस्त है.
उनका किरदार एक बहादुर योद्धा का है जो महिलाओं के बीच चर्चित है, वह बेहद चालाक और होनहार है जो राजकुमार के खिलाफ़ हर तरह की साज़िशों को नाकाम साबित करता है.
तमिल में उपन्यास को कल्ट का दर्जा
पोन्नियिन सेलवन चोल वंश की महिमा का एक काल्पनिक साहित्यिक रिकॉर्ड है जिसका सांस्कृतिक योगदान आधुनिक तमिलनाडु में दिखाई देता है. इस साम्राज्य की छाप तंजावुर शहर में एक विशाल ग्रेनाइट मंदिर की मूर्तियों और शिलालेखों में देखी जा सकती है, जहां चोल वंश का शासन था.
पोन्नियिन सेलवन की कहानी को 1955 में लेखक और पत्रकार कल्कि कृष्णमूर्ति ने एक तमिल पत्रिका कल्कि में क्रमबद्ध तरीके से प्रकाशित किया था. ये लगभग 2,000 पन्नों का ऐतिहासिक उपन्यास है जिसके कई संस्करण हैं और अंग्रेजी में अनुवाद प्रकाशित किए जा चुके हैं.
बच्चों की कॉमिक्स और थिएटरों में प्ले के ज़रिए इस उपन्यास को लोगों के जहन में ज़िंदा रखा गया है.
चेन्नई में रहने वाले फिल्मों के जानकार प्रीतम चक्रवर्ती कहते हैं, " इस उपन्यास को तमिल में एक कल्ट का दर्जा मिला है जिसके बड़ी संख्या में प्रशंसक हैं. यह देखना दिलचस्प होगा कि 21वीं सदी के दर्शक जिन्होंने गेम ऑफ थ्रोन्स और देसी फ़ैंटेसी फ़िल्म बाहुबली जैसी फ़िल्में देखी हैं वो 10 वीं शताब्दी की इस तमिल शाही कहानी पर आधारित फिल्म पर क्या प्रतिक्रिया देंगे."
एक हालिया इंटरव्यू में मणिरत्नम ने कहा कि वह चाहते हैं कि पोन्नियन सेलवन दर्शकों को एक बेहतरीन अनुभव दे.
बेहतरीन सिनोमेटोग्राफ़ी जिसकी हो रही तारीफ़
फ़िल्म की बेहतरीन सिनेमेटोग्राफ़ी की ख़ूब तारीफ़ की जा रही है. समंदर की लहरों में बड़े जहाज़, युद्ध के ऐतिहासिक दृश्य और समंदर में डूबते जहाज़ों के सीन इस सिनेमा को दर्शकों के लिए एक विज़ुअल ट्रीट बनाते हैं. फ़िल्म के डायलॉग मध्यकालीन तमिल भाषा में लिखे गए हैं, लेकिन उन्हें इस तरह सजाया गया है कि वह भाषा आज की जनता के लिए समझने में आसान हो.
फ़िल्म के संगीत निर्देशक एआर रहमान हैं और उन्होंने इसके लिए पश्चिमी राग का मिश्रण, फ़ोक ड्रम बीट्स, और सूफ़ी धुनों का इस्तेमाल किया है.
आलोचकों ने मणिरत्नम की पांच-भाग वाले उपन्यास को दो भागों के सिनेमा में बांटने के सफल प्रयासों की सराहना की है- अभी फ़िल्म का पहला भाग रिलीज़ किया गया है और दूसरा भाग अगले साल रिलीज़ होने वाला है.
फ़िल्म की शूटिंग 150 दिनों में पूरी की गई. वीकेंड पर पोन्नियिन सेलवन को ज़ोरदार ओपनिंग मिली है.
चेन्नई के सिनेमा हॉल में टिकट के लिए बॉक्स ऑफ़िस आधी रात से ही खुल गए. सिनेमा हॉल के बाहर लंबी क़तारें देखी गईं. पूरे तमिलनाडु में फिल्म की रिलीज का जश्न मनाने वाले प्रशंसक सिनेमाघरों के बाहर ढोल की थाप पर नाचते दिखे.
फ़िल्म के पहले भाग का अंत ऐसे प्वाइंट पर किया गया है जिसके आगे क्या होगा ये जानने के लिए दर्शक दूसरे भाग का दिल थामकर इंतज़ार कर रहे हैं, जो अगले साल आएगी.
मुंबई, 3 अक्टूबर | अमिताभ बच्चन और रश्मिका मंदाना-स्टारर 'गुडबाय' के निर्माताओं ने घोषणा की है कि फिल्म की टिकट की कीमत पहले दिन 150 रुपये होगी, जो 7 अक्टूबर को रिलीज हो रही है।
'गुडबाय' फिल्म की रिलीज के दिन 150 रुपये प्रति टिकट की कम मूल्य निर्धारण नीति अपनाने वाली पहली फिल्म बन गई है।
अमिताभ बच्चन ने एक विशेष वीडियो के माध्यम से यह घोषणा की, जो सिनेमाघरों में जाना पसंद करने वाले लोगों के लिए बड़ी खबर की पुष्टि करता है और उन्हें 7 अक्टूबर को बड़े पर्दे पर भारत भर में आश्चर्यजनक रूप से कम कीमत पर 'गुडबाय' रिलीज होने के लिए प्रोत्साहित करता है।
'गुडबाय' को विकास बहल ने डायरेक्ट किया है।
फिल्म में नीना गुप्ता के साथ सुनील ग्रोवर, पावेल गुलाटी, आशीष विद्यार्थी, एली अवराम, साहिल मेहता और शिविन नारंग सहायक भूमिकाओं में हैं।
गुड कंपनी के सहयोग से एकता आर कपूर की बालाजी मोशन पिक्च र्स द्वारा निर्मित, 'गुडबाय' 7 अक्टूबर, 2022 को सिनेमाघरों में दुनिया भर में रिलीज के लिए तैयार है। (आईएएनएस)|
मुंबई, 3 अक्टूबर | बॉलीवुड एक्ट्रेस परिणीति चोपड़ा ने मालदीव से अपने 'बिकिनी शूट' की एक झलक साझा की जिसमें वह काफी प्यारी लग रही हैं। परिणीति ने इंस्टाग्राम पर तस्वीर साझा की। तस्वीर में एक्ट्रेस नियॉन कलर की बिकनी पहने बीच पर बैठी नजर आ रही हैं।
परिणीति ने कैप्शन के लिए एक डीप मैसेज के बजाय एक वायरल मीम चुना।
उसने लिखा, "'बिगिनी शूट"' (यदि आप जानते हैं, तो आप जानते हैं)।
एक्ट्रेस फिलहाल अपनी अपकमिंग फिल्म 'कोड नेम तिरंगा' की रिलीज का इंतजार कर रही हैं।
परिणीति और हार्डी संधू की मुख्य भूमिका वाली इस फिल्म में शरद केलकर, रजित कपूर, दिब्येंदु भट्टाचार्य, शिशिर शर्मा, सब्यसाची चक्रवर्ती और दीश मारीवाला जैसे अनुभवी कलाकार भी साथ आएंगे।
एक जासूसी एक्शन थ्रिलर, 'कोड नेम: तिरंगा' एक जासूस की कहानी है जो अपने राष्ट्र के लिए एक अडिग और निडर मिशन पर है जहां बलिदान उसकी एकमात्र पसंद है।
परिणीति एक रॉ एजेंट की भूमिका निभाएंगी जो कई देशों में एक लंबी यात्रा पर है। हार्डी संधू, जो एक स्थापित और मांग वाले गायक हैं, फिल्म में अपने अभिनय कौशल से दर्शकों को आश्चर्यचकित करेंगे।
यह फिल्म 14 अक्टूबर को रिलीज होगी। (आईएएनएस)|
-वंदना
फ़िल्म में जेल का एक सीन- एक क़ैदी है जिस पर क़त्ल का इल्ज़ाम है और एक पुलिस अफ़सर है जो जेल में उससे बात करने आया है.
पुलिस अफ़सर- विजय ये मत भूलो कि मैं यहाँ तुम्हारे बाप की हैसियत से नहीं, पुलिस ऑफ़िसर की हैसियत से बात कर रहा हूँ.
विजय- कौन-सी नई बात है. आपने मुझसे हमेशा एक पुलिस ऑफ़िसर की हैसियत से ही बात की है.
पुलिस अफ़सर- देखो विजय अगर तुम्हें मुझसे कोई गिला है कोई शिकायत है, वो ग़लत है, सही है, वो अपनी जगह है. लेकिन यहाँ तुम्हें भूल जाना चाहिए कि तुम मेरे बेटे हो.
पुसिल वर्दी की गरिमा और सीमाएँ समझाता एक बाप और जेल में बेक़सूर बेटे के कटाक्ष के पीछा छिपा कड़वापन, ये बताने के लिए काफ़ी है कि दोनों के बीच किस क़दर दूरियाँ हैं.
जब एक अक्टूबर 1982 को निर्देशक रमेश सिप्पी की फ़िल्म शक्ति रिलीज़ हुई और इसमें पुलिस अधिकारी के रोल में दिलीप कुमार और उनके बेटे के रूप में अमिताभ बच्चन को लोगों ने देखा तो ये किसी तहलके से कम नहीं था.
ये वो दौर था जब ज़ंजीर, शोले और दीवार जैसी दमदार फ़िल्मों के बाद सुपरस्टार के तौर पर अमिताभ बच्चन का जलवा था. दिलीप कुमार अपने करियर की दूसरी पारी में नए दमदार किरदारों की तलाश में थे. ऐसे में दिलीप कुमार और अमिताभ बच्चन का आमने सामने होना, अपने आप में एक ख़बर थी.
शक्ति, 1 अक्तूबर 1982
निर्देशक- रमेश सिप्पी
कास्ट- दिलीप कुमार, अमिताभ बच्चन, राखी, स्मिता पाटिल
अमिताभ और दिलीप कुमार पहली बार एक साथ
बेस्ट एक्टर अवॉर्ड - दिलीप कुमार
दिलीप कुमार बनाम अमिताभ बच्चन
शक्ति बाप-बेटे की कहानी है जिनके बीच ग़लतफ़हमियों, नाइत्तेफ़ाक़ी, ख़ामोशियों और दूरियों की ऐसी गहरी खाई थी जो त्रासदी बनकर पूरे परिवार को ज़हनी तौर पर तोड़ कर रख देती है.
इस अलगाव की बड़ी वजह होती है बचपन की एक घटना -पुलिस अधिकारी अश्विनी कुमार (दिलीप कुमार) और उनकी पत्नी राखी (शीतल) अपने बेटे विजय (यानी अमिताभ बच्चन) के साथ हँसी ख़ुशी रहते हैं.
बचपन में एक बार स्मगलर जेके (अमरीश पुरी) के गुंडे विजय को उठाकर ले जाते हैं और दिलीप कुमार के सामने शर्त रखते हैं कि वो उनके साथी को जेल से छोड़ दे वरना विजय यानी अमिताभ को मार देंगे.
फ़ोन पर डरा हुआ बच्चा पिता से बचाने की गुहार लगाता है. लेकिन फ़र्ज़ की राह पर डटे पुलिस अधिकारी (दिलीप कुमार) कहते हैं कि वो क़ैदी को रिहा नहीं करेंगें. हालांकि फ़ोन टैप करने के बाद दिलीप कुमार वहाँ पहुँच जाते हैं और इस बीच विजय भी वहाँ से भाग निकलता है जिसमें एक गुंडा ही उसकी मदद करता है.
बचपन की ये घटना मनोवैज्ञानिक स्तर पर विजय के मन में ऐसा घर कर जाती है कि वो पिता से बेज़ार और कटा हुआ रहने लगता है और बड़े होकर ये खाई बढ़ती ही जाती है.
अमिताभ नहीं राज बब्बर थे पहली पसंद
वैसे फ़िल्म शक्ति के किरदार कैसे चुने गए इसकी भी दिलचस्प कहानी है. डीसीपी के दमदार रोल के लिए दिलीप कुमार हमेशा से ही पहली पसंद थे. चूँकि दिलीप कुमार का रोल युवा हीरो के मुक़ाबले ज़्यादा सशक्त माना जा रहा था, इसलिए इगो क्लैश न हो इसलिए नए हीरो की तलाश शुरु हुई.
2015 में फ़िल्मफ़ेयर को दिए इंटरव्यू में रमेश सिप्पी बताते हैं, "हमने एक नए हीरो का ऑडिशन तो ले लिया लेकिन वो इंटेन्सिटी कहाँ से लाते. इस बीच अमिताभ को पता चला कि हमें इस तरह के किरदार की तलाश है और उन्होंने पूछा कि मुझे क्यों नहीं लिया गया. मैंने अमिताभ को साफ़ बता दिया कि आपका रोल सीधा-सा है. उसमें लार्जर दैन लाइफ़ की गुंजाइश नहीं है. उन्हें दिलीप कुमार के साथ काम करने का आइडिया बहुत पंसद आया. उन्हें ख़ुद पर विश्वास था. राखी को अमिताभ की माँ का रोल करने के लिए मनाना पड़ा. मैंने उनसे कहा कि दिलीप कुमार के साथ काम करने का मौक़ा फिर कहाँ मिलेगा."
वो रोल दरअसल शुरु में राज बब्बर को दिया गया था. लेकिन दिलीप कुमार के साथ काम करने का मौक़ा मिला अमिताभ बच्चन को.
फ़िल्म शक्ति को याद करते हुए फ़िल्म समीक्षक रामचंद्रन श्रीनिवासन बताते हैं, "ये फ़िल्म 1977 में लॉन्च हुई थी. सीन वो था जब अमिताभ बच्चन चॉपर से उतरते हैं और दिलीप कुमार से मिलते हैं. लेकिन रमेश सिप्पी को पहले फ़िल्म शान पूरी करनी थी इसलिए शक्ति को टाल दिया गया. नीतू कपूर हीरोइन थीं लेकिन चूँकि फ़िल्म टल गई तो शक्ति में स्मिता पाटिल को लिया गया क्योंकि नीतू सिंह ने काम करना छोड़ दिया था."
वो बताते हैं, "एक किस्सा ये भी है कि दिलीप कुमार चाहते थे कि अमिताभ उनके भाई के रोल में हों लेकिन सलीम जावेद ने मनाया कि अमिताभ का बेटा होना ही अहम है और मुझे ये भी चित्रण बहुत पसंद आया. अमिताभ को गोली मारने के बाद जब दिलीप कुमार ख़ामोश खड़े हैं वो ख़ामोशी बहुत कुछ कह जाती है. बहुत उम्दा सीन है. वहाँ ड्रैमेटिक होने का ख़तरा था लेकिन दिलीप कुमार ने बख़ूबी निभाया."
जब अमिताभ को नहीं मिला था दिलीप कुमार का ऑटोग्राफ़
अमिताभ बच्चन के लिए दिलीप कुमार क्या मायने रखते थे ये बात उन्होंने अपने ब्लॉग में साझा की है.
वो लिखते हैं, "जब मैं छोटा था तो किसी रेस्त्रां में हमें दिलीप कुमार दिख गए. मैंने हिम्मत करके उनसे ऑटोग्राफ़ माँगने का सोचा. मैं उत्साह से कांप रहा था. लेकिन मेरे पास ऑटोग्राफ़ बुक नहीं थी. मैं दौड़ कर गया और ऑटोग्राफ़ बुक लेकर आया और राहत की साँस ली कि वे रेस्त्रां में ही थे. वो बातचीत में पूरी तरह मगन थे. मैंने उनसे कुछ कहा और बुक आगे बढ़ा दी. उनकी कोई प्रतिक्रिया नहीं थी. उन्होंने मेरी तरफ़ या मेरी बुक की तरफ़ देखा नहीं. थोड़ी देर बाद वो चले गए. मैं ऑटोग्राफ़ बुक हाथ में लेकर खड़ा रहा. लेकिन वो ऑटोग्राफ़ अहम नहीं था. अहम थी उनकी मौजूदगी."
शोले की शैली से एकदम अलग फ़िल्म शक्ति में न तो मनोरंजक पंच लाइन हैं, न कॉमेडी, न भरा पूरा रोमांस और न वैसे डायलॉग.
शक्ति में एक तरफ़ पुलिस अफ़सर दिलीप कुमार हैं जो फ़र्ज़ की राह में हद से भी आगे जाकर डटे रहते हैं. उनका एक डायलॉग है, 'अब फ़र्ज़ निभाने की आदत-सी हो गई है. इस सबमें बेटा कब पीछे छूट जाता है उसे ख़ुद भी पता भी नहीं चलता.'
दूसरी ओर बेटा विजय यानी अमिताभ बच्चन अपने अंदर की चोट और पिता के प्रति बग़ावत को ही अपना मक़सद मान चुका है. वो शब्दों से कुछ नहीं कहता लेकिन अपनी ख़ामोशी से सब कुछ कह जाता है. अंग्रेज़ी में जिसे ब्रूडिंग इंटेन्सिटी कहते हैं, वो अमिताभ की ख़ासियत है इस रोल में.
एक दिन ऐसा भी आता है जब स्मगलर गैंग में शामिल होने के बाद बेटा ख़ुद को पुलिस की वर्दी पहने बाप के सामने खड़ा पाता है और बीच में है क़ानून की ज़ंजीर. क़ानून के प्रति फ़र्ज़ को लेकर पिता में जो जुनून है वो बेटे और बाप के बीच दीवार बन चुका है.
सलीम जावेद का बेहतरीन स्क्रीनप्ले
इसे फ़िल्म की कामयाबी ही कहा जाएगा कि दर्शक के तौर पर आप ये फ़ैसला ही नहीं कर पाते कि कौन सही है और कौन ग़लत, कोई ग़लत है भी या नहीं. सही और ग़लत के बीच का जो स्याह रास्ता होता है उसी रास्ते पर चलती है ये फ़िल्म.
स्क्रीनप्ले के हिसाब से सलीम-जावेद की सबसे बेहतर पटकथाओं में से एक मानी जाती है शक्ति. दो लोगों के रिश्तों के टकराव को दिखाती इतनी कसी हुई कहानी कि फ़िल्म की शुरुआत में ही ये जानते हुए भी कि फ़िल्म का अंत क्या होगा, आप आख़िर तक बंधे रहते हैं.
ख़ासकर वो तमाम सीन जहाँ दिलीप कुमार और अमिताभ बच्चन आमने-सामने होते हैं. पूरी फ़िल्म में बाप और बेटे का टकराव जिस तरह संवादों में उतारा गया है वो भी अपना असर छोड़ जाता है. और उनके बीच की ख़ामोशी भी.
फ़िल्म समीक्षक रामचंद्रन श्रीनिवासन कहते हैं, "दर्शकों को सिनेमाहॉल तक लाने के लिए उन दिनों सलीम जावेद का स्क्रीनप्ले बड़ा रोल अदा करता था. उनकी सृजनात्मकता ने कई कलाकारों और फ़िल्मकारों की किस्मत बदल दी. 'एंग्री यंग मैन' उनकी ही देन है. एंग्री यंग मैन वाली छवि को सलीम जावेद ने इस फ़िल्म में आगे बढ़ाया. स्क्रीनप्ले इतना कसा हुआ है कि ऐसा लगता है कि अगर सलीम जावेद की कहानी नहीं होती तो ये फ़िल्म काम ही नहीं करती. शक्ति की ही तरह शहरी परिवेश में बनी रमेश सिप्पी की फ़िल्म शान नहीं चली थी. लेकिन रमेश सिप्पी ने शक्ति बनाई क्योंकि इसका स्क्रीनप्ले सही और कमाल का था."
फ़िल्म का एक सीन ख़ासतौर दिल को छूने वाला है. राखी यानी अमिताभ की माँ और दिलीप कुमार की पत्नी की मौत हो जाती है. उस वक़्त अमिताभ जेल में होते हैं जिसे ख़ुद उनके पिता डीसीपी अश्विनी कुमार (दिलीप कुमार) ने ही गिरफ़्तार किया होता है.
माँ के अंतिम दर्शन के लिए जब अमिताभ जेल से कुछ देर के लिए आते हैं तो कोने में फ़र्श पर बैठे टूट चुके पिता को देखते हैं. अमिताभ उनके पास जाकर ज़मीन पर बैठते हैं, दोनों के बीच कोई बात नहीं होती.
अमिताभ बस धीमे से अपना हाथ उनके बाज़ू पर रख देते हैं. जिस तरह के कैमरा एंगल से सीन फ़िल्माया गया है, दोनों की नज़रें तक मिलती हैं, जब एक की नज़र उठती है तो दूसरी की झुकी रहती है. कोई कुछ नहीं कहता, फिर भी दोनों एक दूसरे से सबकुछ कह जाते हैं. ग़म और मौत के उस पल में जैसे कुछ देर के लिए दोनों एक हो गए थे. इस सीन को देखकर लगता है कि वाक़ई आप दो दिग्गज कलाकारों को एक साथ देख रहे हैं.
अमिताभ की रिहर्सल के लिए चिल्ला पड़े थे दिलीप कुमार
दिलीप कुमार के साथ काम करने के अनुभव के बारे में अमिताभ ने अपने ब्लॉग पर लिखा था, "शक्ति में मुझे दिलीप कुमार के साथ काम करने का पहली बार मौक़ा मिला, वो कलाकार जो मेरा आदर्श रहा था. फ़िल्म के आख़िर में मेरी मौत का सीन था जो मुंबई एयरपोर्ट के अंदर फ़िल्माया गया था. तब उसे सहार एयरपोर्ट कहते थे. हमें ख़ास अनुमति मिली थी. जब मैं मौत वाले सीन की अकेले ही रिहर्सल कर रहा था, तब प्रोडक्शन और क्रू की ओर से बहुत शोर हो रहा था."
"उस वक़्त दिलीप कुमार रिहर्सल नहीं कर रहे थे. लेकिन शोर सुनकर वो अचानक चिल्लाए और ज़ोर से सबको चुप रहने के लिए कहा. उन्होंने कहा था कि जब कोई कलाकार रिहर्सल कर रहा हो तो उस पल की अहमियत समझनी चाहिए और उस स्पेस की इज़्ज़त करनी चाहिए. दिलीप कुमार जैसे दिग्गज कलाकार के लिए किसी दूसरे कलाकार के लिए ऐसा करना उनकी महानता को दर्शाता है."
फ़िल्म देखते हुए आप इसी कश्मकश में रहते हैं कि काश दोनों ने कभी एक दूसरे से बात की होती. दिलीप कुमार एक ऐसे व्यक्ति के रूप में उभरते हैं जो अपनी भावनाएँ ज़ाहिर करना नहीं जानता. वो तो नर्स को ये भी नहीं बता पाता कि अंदर जिस औरत ने एक बच्चे को जन्म दिया है वो उसकी पत्नी है.
वहीं अमिताभ बच्चन एक ऐसा नौजवान है जिसने अपने सारे ज़ख़्म और ग़ुस्सा अंदर दबा कर रखा है जो एक दिन बग़ावत बनकर फूटता है.
आँखों से अभिनय करने वाले अमिताभ
आमतौर पर फ़िल्मों में अमिताभ बच्चन की धमाकेदार, धाँसू एंट्री होती है लेकिन शक्ति में उनका पहला सीन है जहाँ वो मरीन ड्राइव पर बेरोज़गार, टीन के डिब्बे को ठोकर मारते हुए बस यूँ ही टहल रहे हैं.
कहानी की माँग के अनुसार शक्ति में स्क्रीनप्ले में वो गुजाइंश ही नहीं रखी गई थी. बच्चन के किरदार को जो कहना होता है वो या तो उसकी ख़ामोशी कहती है या वो कुछ संवाद जो उसके अंदर के ग़ुस्से दर्शाते हैं.
मसलन वो अपने पिता के लिए कहता है, "नफ़रत है मुझे दुनिया के उस हर क़ानून से जिसे मेरा बाप मानता है. आज से मैं अपना क़ानून ख़ुद बनाऊंगा. ज़िंदगी में जो कुछ भी देखा उसके बाद ये नाम... बेटा, किसी गंदी गाली की तरह लगता है."
स्मिता पाटिल की कॉमर्शियल फ़िल्म
शक्ति में स्मिता पाटिल का रोल छोटा है जो अमिताभ की ज़िंदगी में उनका प्यार बनकर आती हैं. उस दौर की बहुत सारी फ़िल्मों से अलग इसमें स्मिता एक ऐसी लड़की का रोल करती हैं जो काम करती है, उसका अपना घर है.
जब अमिताभ से मुलाक़ात होती है तो एक तरह से रिश्ते में पहल वो करती हैं जब वो घर पर कॉफ़ी के लिए बुलाती हैं. जब अमिताभ बेघर हो जाते हैं तो बिना ये सोचे कि लोग क्या कहेंगे उसे अपने घर में रहने के लिए कहती हैं और बाद में अमिताभ के साथ लिव-इन में रहती हैं.
शक्ति से पहले अमिताभ के साथ उनकी फ़िल्म नमक हलाल रिलीज़ हो चुकी थी. आर्ट फ़िल्मों के साथ कॉमर्शियल फ़िल्मों में वो अपनी जगह बना रही थीं. शक्ति में दिलीप कुमार का सहारा स्मिता पाटिल ही बनती हैं.
अमिताभ बच्चन और दिलीप कुमार की टक्कर
हालांकि फ़िल्म का मुख्य आकर्षण दिलीप कुमार और अमिताभ बच्चन का आमना सामना ही है.
जैसे, वो सीन जब समुंदर किनारे बाप-बेटे मिलते हैं और दिलीप कुमार जुर्म की दुनिया में जा चुके बेटे को कहते हैं, "विजय मैं आज एक बाप की हैसियत से समझा रहा हूँ. कल पुलिस अफ़सर की हैसियत से मैं तुम्हारे साथ कोई रियायत नहीं कर सकूँगा न हमदर्दी. अगली बार तुम बाप से मिलोगे या पुलिस अफ़सर से इसका फ़ैसला तुम्हे ख़ुद करना है."
जवाब में बच्चन कहते हैं, "इसका फ़ैसला तो आप कई बरस पहले बचपन में ही कर चुके हैं जब मैं उन बदमाशों के अड्डे में क़ैद था. मैंने फ़ोन पर अपने बाप से बात की थी और दूसरी तरफ़ से एक पुलिस अफ़सर की आवाज़ सुनाई दी. आज भी आपकी आवाज़ से एक पुलिस अफ़सर के लहजे की बू आ रही है."
फ़िल्म में ऐसा लगता है कि मानों दोनों के बीच एक तरह की जुगलबंदी चल रही हो.
अमिताभ बच्चन और दिलीप कुमार की टक्कर
हालांकि फ़िल्म का मुख्य आकर्षण दिलीप कुमार और अमिताभ बच्चन का आमना सामना ही है.
जैसे, वो सीन जब समुंदर किनारे बाप-बेटे मिलते हैं और दिलीप कुमार जुर्म की दुनिया में जा चुके बेटे को कहते हैं, "विजय मैं आज एक बाप की हैसियत से समझा रहा हूँ. कल पुलिस अफ़सर की हैसियत से मैं तुम्हारे साथ कोई रियायत नहीं कर सकूँगा न हमदर्दी. अगली बार तुम बाप से मिलोगे या पुलिस अफ़सर से इसका फ़ैसला तुम्हे ख़ुद करना है."
जवाब में बच्चन कहते हैं, "इसका फ़ैसला तो आप कई बरस पहले बचपन में ही कर चुके हैं जब मैं उन बदमाशों के अड्डे में क़ैद था. मैंने फ़ोन पर अपने बाप से बात की थी और दूसरी तरफ़ से एक पुलिस अफ़सर की आवाज़ सुनाई दी. आज भी आपकी आवाज़ से एक पुलिस अफ़सर के लहजे की बू आ रही है."
फ़िल्म में ऐसा लगता है कि मानों दोनों के बीच एक तरह की जुगलबंदी चल रही हो.
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आख़िरी मुलाकात में मधुबाला ने दिलीप कुमार से कहा...
मुंबई एयरपोर्ट पर शूट हुआ क्लाइमैक्स
फ़िल्म का क्लाइमैक्स दिलीप कुमार के शब्दों को सही ठहराता हुआ सा लगता है जब क़ानून से भागे बेटे को पकड़ते वक़्त पुलिस की वर्दी पहने पिता कोई रियायत नहीं करता और उस पर गोली चला देता है.
पिता की बाहों में दम तोड़ता बेटा अपनी पूरी ज़िंदगी में पहली बार कहता है कि उसने बहुत कोशिश की अपने दिल से बाप की मोहब्बत निकाल दूँ लेकिन हमेशा प्यार करता रहा. और जब दिलीप कुमार कहते हैं कि मैं भी तुमसे मोहब्बत करता हूँ तो अमिताभ बोलते हैं कि कभी कहा क्यों नहीं डैड.
इस पूरी कहानी का क्लाइमैक्स और सार सिर्फ़ इस एक बात में छिपा हुआ सा नज़र आता है, 'कभी कहा क्यूँ नहीं.'
दिलीप कुमार को बेस्ट एक्टर अवार्ड
इस फ़िल्म को लेकर तब ये चर्चा ख़ूब हुई थी कि दिलीप कुमार और अमिताभ बच्चन में से कौन किस पर भारी पड़ा.
फ़िल्म पत्रकार रामचंद्रन श्रीनिवासन के मुताबिक, "फ़िल्म शक्ति में अमिताभ बच्चन और दिलीप कुमार दोनों ने ज़बरदस्त काम किया है. उन दिनों अमिताभ एक तरह से वन स्टॉप शॉप एन्टरटेनर हुआ करते थे. बहुत से लोगों ने रमेश सप्पी को सलाह दी थी कि वो शक्ति में भी मनोरंजक किस्म के सीन डाल दें. रमेश सिप्पी को भी लगा कि फ़िल्म काफ़ी गंभीर है. लेकिन ये फ़िल्म ऐसी थी जिसमें बेहतरीन अभिनय की ज़रूरत थी. रमेश सिप्पी ने किसी भी तरह का समझौता करने से मना कर दिया. ये एक बड़ा कारण रहा कि सबका काम लाजवाब था. मुझे लगता है कि अमिताभ इस बात से ख़ुश रहे होंगे कि इस फ़िल्म में आख़िर में उनकी मौत हो जाती है क्योंकि अमिताभ बच्चन की जिन फ़िल्मों में उनके किरदार की मौत हो जाती थी वो हिट हुआ करती थीं."
फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कारों में दिलीप कुमार को डीसीपी अश्विनी कुमार के रोल के लिए बेस्ट एक्टर का अवॉर्ड मिला. हालांकि अमिताभ बच्चन भी नामांकित हुए थे.
उस वक़्त 'इंडिया टुडे' मैगज़ीन में छपे फ़िल्म रिव्यू में छपा था, "ऐसा हमेशा नहीं होता कि बॉम्बे फ़िल्म इंडस्ट्री एक ऐसी फ़िल्म बनाए जो तकनीकी रूप से शानदार हो और बड़े स्टार कास्ट वाली बड़ी बजट की फ़िल्म हो, जिसमें आर्ट सिनेमा का दिखावा न हो. शक्ति वैसी फ़िल्म है. 1950 में बाप-बेटे की ऐसी कहानी सबसे पहले फ़िल्म संग्राम में आई थी. फिर 1974 में तेलुगू फ़िल्म थंगापट्कम आई जिसमें शिवाजी गणेशन ने बाप-बेटे को रोल किया."
रमेश सिप्पी शक्ति से कुछ साल पहले शोले बना चुके थे जो अपने आप में इतिहास है लेकिन इसके बाद उन्होंने बच्चन के साथ ही शान भी बनाई जो चल नहीं पाई थी. शक्ति उनके लिए भी एक तरह का शक्ति परिक्षण था.
हालांकि दोनों की कहानी और परिस्थतियाँ एकदम अलग हैं लेकिन एक फ़िल्म के तौर पर देखा जाए तो शक्ति में कहीं न कहीं मदर इंडिया का साया नज़र आता है.
मदर इंडिया में नरगिस राह से भटके बेटे से प्यार तो करती है लेकिन जब वो हद से आगे बढ़ जाता है तो उसे अपने ही हाथों गोली चलाकर मारने से भी नहीं हिचकिचाती. गोली मारने के बाद वो बेटे को बाँहों में भर लेती है. शक्ति में भी दिलीप कुमार कुछ ऐसा ही करते हैं.
पहली और आख़िरी बार दिखे साथ
शक्ति को 1983 में कुल चार फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार मिले थे. मुशिर-रियाज़ की जोड़ी ने बेस्ट पिक्चर अवॉर्ड जीता, सलीम जावेद ने सर्वश्रेष्ठ स्क्रीनप्ले और पी हरिकिशन ने बेस्ट साउंड डिज़ाइन.
फ़िल्म से जुड़ा एक ट्रिविआ ये भी है कि एक मवाली के रोल में सतीश शाह का छोटा-सा सीना था. तब उन्हें कोई ठीक से जानता नहीं था. इसके एक साल बाद ही 'जाने भी दो यारों' आ गई थी.
1982 में आई शक्ति में छोटे से स्पेशल रोल में युवा अनिल कपूर भी दिलीप कुमार के पोते के रोल में दिखते हैं. उन दिनों अनिल कपूर कई छोटे रोल किया करते थे. लेकिन शक्ति के अगले ही साल 'वो सात दिन' रिलीज़ हुई और अनिल कपूर बतौर हीरो स्थापित हो गए. 1983 में उन्हें मशाल में दिलीप कुमार के साथ काम करने का मौक़ा मिला और 1986 में कर्मा में.
शक्ति वो पहली और आख़िरी फ़िल्म थी जिसमें दिलीप कुमार और अमिताभ बच्चन ने एक साथ काम किया. (bbc.com/hindi)
(मुंबई में मौजूद बीबीसी की सहयोगी पत्रकार मधु पाल के इनपुट के साथ)
बिहार के बेगूसराय ज़िले की एक अदालत ने जानी-मानी फ़िल्म निर्माता-निर्देशक एकता कपूर और उनकी मां शोभा कपूर के ख़िलाफ़ गिरफ़्तारी वारंट जारी किया है.
ये कार्रवाई उनकी वेब सिरीज़ 'XXX' के दूसरे सीज़न में सैनिकों का अपमान करने और उनके परिवार के सदस्यों की भावनाओं को आहत करने के आरोप में की गई है.
समाचार एजेंसी पीटीआई के अनुसार, न्यायाधीश विकास कुमार की अदालत ने एक पूर्व सैन्यकर्मी और बेगूसराय निवासी शंभू कुमार की ओर से दर्ज कराई गई शिकायत के आधार पर गिरफ़्तारी वारंट जारी किया है.
शंभू कुमार ने साल 2020 में दर्ज की अपनी इस शिकायत में आरोप लगाया था कि ट्रिपल एक्स सिरीज़ के सीज़न-2 में सेना के जवानों की पत्नियों से जुड़े कई आपत्तिजनक दृश्य थे.
एकता कपूर और शोभा कपूर के समन जारी करने के बाद भी पेश ना होने पर कोर्ट ने ये वॉरंट जारी किया है.
शिकायतकर्ता का क्या कहना है?
शंभू कुमार के वकील ऋषिकेश पाठक कहते हैं, "ये सिरीज़ ALTBalaji नाम के ओटीटी प्लेटफॉर्म पर आई थी. ये ओटीटी प्लेटफॉर्म एकता कपूर के बालाजी टेलीफिल्म्स लिमिटेड का ही है. शोभा कपूर भी बालाजी टेलीफिल्म्स से जुड़ी हुई हैं."
उन्होंने कहा, "कोर्ट ने एकता कपूर और शोभा कपूर दोनों को समन भेजे थे और इस मामले में अदालत में पेश होने को कहा था. हालांकि, उन्होंने अदालत को ये जानकारी दी थी कि सिरीज़ के कुछ आपत्तिजनक सीन हटा दिए गए हैं लेकिन वो अदालत में पेश नहीं हुए. इसके बाद उन दोनों के ख़िलाफ़ गिरफ़्तारी वारंट जारी किया गया है."
एकता कपूर की इस वेब सिरीज़ को लेकर विवाद कोई नया नहीं है. ओटीटी प्लेटफॉर्म ऑल्ट बालाजी पर कई एडल्ट सिरीज़ आ चुकी हैं.
बात सरहद पार
ट्रिपल एक्स-2 सिरीज़ में एक आर्मी के अफसर की पत्नी के उनके बॉयफ़्रेंड के साथ फिल्माए सीन को लेकर सोशल मीडिया पर एकता कपूर को जमकर ट्रोल किया गया. उन पर आरोप लगे कि इस वेब सिरीज़ के ज़रिए उन्होंने भारतीय सेना और उसकी वर्दी का अपमान किया है. मामले ने तूल पकड़ा और लोग एकता कपूर की गिरफ़्तारी की मांग करने लगे.
इस वेब सिरीज़ को लेकर एकता कपूर के ख़िलाफ़ पहले भी अन्य जगहों पर शिकायत दर्ज कराई जा चुकी है.
मध्य प्रदेश के इंदौर में उनके ख़िलाफ़ धार्मिक भावनाएं आहत करने, सैनिकों का अपमान करने और राष्ट्रीय चिन्ह का अनुपयुक्त इस्तेमाल करने को लेकर एक एफ़आईआर दर्ज की गई है.
शिकायतकर्ता नीरज याज्ञनिक का कहना है कि वेब सिरीज़ में राष्ट्रीय चिह्न और सेना की वर्दी का आपत्तिजनक इस्तेमाल देखने के बाद शिकायत की गई है. इसी तरह की एक और शिकायत बिहार के मुज़फ़्फ़रपुर कोर्ट में दर्ज है.
बिग बॉस सीज़न 13 के प्रतिभागी रह चुके विकास पाठक (हिंदुस्तानी भाऊ) ने एकता कपूर के ख़िलाफ़ खार पुलिस थाने में शिकायत दर्ज कराई थी.
गुरुग्राम के पालम विहार थाने में एकता कपूर के खिलाफ़ 'मार्टर वेल्फेयर फाउंडेशन' के अध्यक्ष व पूर्व सैनिक मेजर टी. राव ने भी शिकायत कराई गई थी. इसमें ड्यूटी के दौरान सैनिकों के घरों से दूर रहने पर पत्नियों द्वारा दूसरों के साथ यौन संबंध बनाए जाने संबंधी सीन पर कड़ी आपत्ति जताई गई थी. इस शिकायत में सेना के चित्रण पर भी आपत्ति दर्ज कराई गई थी.
अरेस्ट वारंट जारी होने के बाद कुछ लोग इसे गलत ठहरा रहे हैं तो कुछ सोशल मीडिया यूज़र्स एकता कपूर से पद्मश्री पुरस्कार वापस लिए जाने तक की मांग कर रहे हैं.
क्या कहा था एकता कपूर ने?
विवाद बढ़ने के बाद सोशल मीडिया पर जमकर बवाल हुआ और फिर एकता कपूर ने अपनी सफाई पेश की थी.
एकता कपूर ने कहा था, "एक नागरिक और एक संगठन के तौर पर हम भारतीय सेना का बेहद सम्मान करते हैं. इसमें कोई शक नहीं है कि हमारी देखरेख और सुरक्षा में उनका बेहद अहम योगदान है. अगर किसी मान्यता प्राप्त सैन्य संगठन की तरफ से हमसे माफी मांगने के लिए कहा जाता है तो हम बिना शर्त माफ़ी मांगने के लिए तैयार हैं."
एकता कपूर ने इस पूरे विवाद के बाद मिल रही रेप की धमकियों पर भी शोभा डे से बात की थी और कहा, "हम असभ्य तरीके की सायबर बुलिंग और असामाजिक तत्वों द्वारा दिए जा रहे रेप की धमकियों के आगे नहीं झुकनेवाले हैं." एकता ने इस बातचीत में बताया कि कैसे एक सेक्स सीन को लेकर न सिर्फ उन्हें बल्कि उनकी 76 वर्षीय मां (शोभा कपूर) को भी रेप की धमकियां दी जा रही थीं. ट्रोल्स की इस हरकत को एकता ने बेहद शर्मनाक ठहराया था.
एकता कपूर ने कहा था, "शो में विवादित सीन का चित्रण काल्पनिक था और इसे लेकर हमारी ओर से गलती हुई थी जिसे हमने सुधार लिया गया और इस मामले में मेरे लिए माफी मांगना कोई बड़ी बात नहीं है, मगर इसे लेकर जिस तरह की धमकियां मिल रहीं हैं, उसे कतई सभ्य नहीं कहा जा सकता." (bbc.com/hindi)
हैदराबाद, 29 सितंबर | साउथ के सबसे लोकप्रिय फिल्मी सितारों में से एक होने के बावजूद, 'पुष्पा' फेम अल्लू अर्जुन दिल से एक पारिवारिक व्यक्ति हैं। अपने डाउन-टू-अर्थ सोच लिए अल्लू अर्जुन को जाना जाता है। हाल ही में अल्लू अर्जुन अपनी पत्नी स्नेहा रेड्डी का जन्मदिन मनाने के लिए परिवार के साथ अमृतसर गए। सोशल मीडिया पर अल्लू अर्जुन की परिवार के साथ तस्वीरें वायरल हो रही हैं जिसमें देखा जा सकता है कितनी खुबसूरती के साथ एक्टर दर्शन करने पहुंचे हैं। सुपरस्टार अपनी पत्नी और बच्चों के साथ पारंपरिक पोशाक में नजर आए।
उन्होंने मंदिर में आशीर्वाद लेते हुए अपना और अपने परिवार का एक वीडियो भी साझा किया।
वर्तमान में, अखिल भारतीय स्टार पुष्पा की सफलता और 'पुष्पा 2' की शुरूआत के आधार पर काम कर रहा है।
सुकुमार द्वारा निर्देशित अल्लू अर्जुन स्टारर 'पुष्पा: द राइज' ने बॉक्स ऑफिस पर अच्छा प्रदर्शन किया और बॉक्स ऑफिस पर कई रिकॉर्ड तोड़े और हिंदी बाजार में 100 करोड़ रूपए और दुनिया भर में 300 करोड़ रु. का कारोबार किया।
यह साल स्टार के लिए बहुत सफल साल रहा है, खासकर जब फिल्म से उनके हुक स्टेप्स वायरल हो गए और गणेश पंडाल में उनके लघु चित्रों का इस्तेमाल किया गया। उन्हें न्यूयॉर्क में भारत दिवस परेड में विश्व स्तर पर भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए भी देखा गया था।
वर्कफ्रंट की बात करें तो वह रश्मिका मंदाना के साथ पुष्पा 2 में दिखाई देंगे। (आईएएनएस)|
फिल्म: वो 3 दिन, अवधि: 103 मिनट, आईएएनएस रेटिंग: ****, निर्देशक: राज आशू।
कलाकार: संजय मिश्रा, राजेश शर्मा, चंदन रॉय सान्याल, पायल मुखर्जी, पूर्व पराग और अमजद कुरैशी।
कुछ फिल्में सिर्फ फिल्में नहीं होतीं बल्कि वे वास्तविक जीवन का इतना शानदार चित्रण करती हैं कि वे आपके अनुभवों को समृद्ध बनाती हैं। इस शुक्रवार को रिलीज होने वाली 'वो 3 दिन' भी एक ऐसी ही शानदार फिल्म है।
यह खास और बेहतरीन फिल्म न केवल बहुत ही अनोखे तरीके से आपका मनोरंजन करती है, बल्कि देश के ग्रामीण और दूरदराज के इलाकों में कठोर जीवन से भी परिचय कराती है।
छोटे बजट में बनी इस फिल्म की कहानी शुरु होती है उत्तर प्रदेश के एक गांव से, जहां बड़े दिल वाले रिक्शा चालक रामभरोसे अपनी आजीविका कमाने के लिए दिन-रात मेहनत करते हैं। वह अपनी पत्नी और बेटी को एक अचछा जीवन प्रदान करने का सपना देखता है।
रामभरोसे के कैरेक्टर के जरिए फिल्म तुलनात्मक रूप से दिखाती है कि कैसे शहरों में जीवन की तुलना में ग्रामीण जीवन कहीं अधिक कठिन है।
रामभरोसे और उनके परिवार के गांव में जिंदा रहने के संघर्ष को दिल को गहराई से चित्रित किया गया है जो आपके दिल को छू लेगा।
रामभरोसे का जीवन पूरी तरह तब बदल जाता है जब वह एक यात्री से मिलता है जो 'तीन दिनों' के लिए उससे रिक्शा किराए पर लेता है। अजनबी के इरादों से अनजान, रामभरोसे उसे अपने रिक्शे पर जहां भी जाना होता है, ले जाता है। ऐसा करने पर, रामभरोसे इस अजनबी के साथ यात्रा करते समय रास्ते में कई रहस्यों को जानकर हैरान रह जाता है।
अपने चरित्र रामभरोसे के माध्यम से, अभिनेता संजय मिश्रा एक बार फिर साबित करते हैं कि उन्हें हमारे समय के सबसे विश्वसनीय और बहुमुखी अभिनेताओं में से एक क्यों माना जाता है।
राजेश शर्मा, पायल मुखर्जी, चंदन रॉय सान्याल, पूर्वा पराग और अमजद कुरैशी ने भी अपने-अपने हिस्से का किरदार बखूबी निभाया है।
सीपी झा का लेखन बारीक है और राज आशू का निर्देशन बहुत प्रभावशाली है।
फिल्म का हर सीन और हर किरदार इतना दमदार है कि इसे बड़े पर्दे पर अनुभव करने की जरूरत है। आप किसका इंतजार कर रहे हैं? जाइए अपना टिकट बुक करिए!
हैदराबाद, 29 सितंबर | टॉलीवुड स्टार अल्लारी नरेश की अगली फिल्म नवंबर में रिलीज होगी। निर्माताओं ने गुरुवार को फिल्म की रिलीज की तारीख की घोषणा की। 'इट्लू मारेदुमिली प्रजानीकम' 11 नवंबर को दुनियाभर में रिलीज होगी। अनाउंसमेंट पोस्टर में नरेश अपने साथियों और पुलिस अधिकारियों के साथ आदिवासी इलाके में घूमते हुए दिख रहे हैं।
'इट्लू मारेदुमिली प्रजानीकम' का निर्देशन ए.आर. मोहन ने किया है, फिल्म फिलहाल पोस्ट-प्रोडक्शन स्टेज में हैं।
टीजर को मिली सकारात्मक प्रतिक्रिया के बाद फिल्म ने खूब चर्चा बटोरी है। फिल्म की कहानी का अनावरण करने वाले वीडियो ने अल्लारी नरेश को एक सरकारी अधिकारी के रूप में एक गहन चरित्र में प्रस्तुत किया, जिसे आदिवासी क्षेत्र- मेरेदुमुल्ली में चुनावी ड्यूटी पर भेजा जाता है, जहां उसे कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
हस्या मूवीज के राजेश डंडा, जी स्टूडियो के सहयोग से फिल्म का निर्माण कर रहे हैं।
आनंदी फिल्म की प्रमुख महिला हैं, जबकि वेनेला किशोर, प्रवीण और संपत राज महत्वपूर्ण भूमिकाओं में नजर आएंगे।
बालाजी गुट्टा फिल्म के सह-निर्माता हैं, जिसमें श्रीचरण पकाला ने संगीत दिया है, जबकि राम रेड्डी ने छायांकन को संभाला है। अब्बूरी रवि ने संवाद लिखे हैं। ब्रह्मा कदली कला निर्देशक हैं और छोटा के. प्रसाद संपादक हैं। (आईएएनएस)|
मुंबई, 28 सितंबर | अभिनेता सनी कौशल बुधवार को 33 साल के हो गए। ऐसे में जन्मदिन के खास अवसर पर अभिनेता भाई विक्की कौशल और भाभी कैटरीना कैफ ने उनको जन्मदिन की शुभकामनाएं दीं। कैटरीना ने पिछले साल हुई अपनी शादी की एक तस्वीर इंस्टाग्राम पर शेयर की थी। तस्वीर में सनी कैटरीना के पैर छूते नजर आ रहे हैं और एक्ट्रेस उन्हें आशीर्वाद देती नजर आ रही हैं।
जन्मदिन की बधाई देते हुए कटरीना ने कैप्शन में लिखा है, "जीतो रहो, खुश रहो।"
वहीं विक्की कौशल ने भी भाई सन्नी कौशल की बेहद प्यारी तस्वीर शेयर करके जन्मदिन पर बधाई दी।
उन्होंने लिखा, "सर्वगुण संपन्न कौशल को जन्मदिन की बधाई! लव यू सन्नी कौशल।"
वर्कफ्रंट की बात करें तो सनी कौशल जल्द ही 'लेटर्स टू मिस्टर खन्ना' में दिग्गज अभिनेत्री नीतू कपूर के साथ स्क्रीन स्पेस साझा करते हुए दिखाई देंगे। (आईएएनएस)|
-प्रदीप सरदाना
आशा पारेख को उनके 80 वें जन्म दिन से ठीक पहले दादा साहब फाल्के पुरस्कार मिलना उनके लिए एक खूबसूरत सौगात है. उनका 2 अक्टूबर को 80वां जन्म दिन है. जबकि इस बार का राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार समारोह 30 सितंबर को होना निश्चित हुआ है.
हिन्दी सिनेमा की दिलकश और बेहद सफल अभिनेत्री आशा पारेख ने अपने फ़िल्म करियर में एक से एक यादगार फ़िल्म की है. जब प्यार किसी से होता है, तीसरी मंज़िल, लव इन टोक्यो, दो बदन, उपकार, कन्यादान, आन मिलो सजना, कटी पतंग, समाधि और मैं तुलसी तेरे आँगन की.
इधर आशा पारेख को सन 2020 के लिए भारतीय सिनेमा का यह शिखर पुरस्कार मिलना और भी बड़ी बात है, क्योंकि भारत सरकार ने 37 साल बाद किसी फ़िल्म अभिनेत्री को फाल्के सम्मान दिया है. पिछली बार वर्ष 1983 के लिए अभिनेत्री दुर्गा खोटे को यह सम्मान मिला था, अन्यथा फाल्के पुरस्कार पर अधिकतर पुरुषों का वर्चस्व रहा है.
जबकि फाल्के पुरस्कार की शुरुआत सन 1969 में अभिनेत्री देविका रानी के साथ हुई थी, जब 1970 में 17 वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कारों में देविका को इस पुरस्कार से सम्मानित किया गया था, लेकिन बाद में पुरुष ही इस पुरस्कार को ज्यादा पाते रहे.
आशा के बाद अब फिर आशा
जहां तक किसी महिला को फाल्के सम्मान मिलने की बात है तो कोई महिला फिर 22 साल बाद फाल्के सम्मान से पुरस्कृत होगी. दिलचस्प यह है कि 2000 में भी फाल्के सम्मान आशा को मिला था, गायिका आशा भोसले को, और अब भी आशा, आशा पारेख को.
आशा पारेख से मेरी अक्सर फोन पर बात होती रहती है. मैं उन्हें जब भी यह कहता था कि उन्हें फाल्के पुरस्कार मिलना चाहिए तो वह मुस्कुराकर बस यही कहतीं, "क्या कह सकते हैं."
अभी जब उन्हें यह पुरस्कार मिलने की घोषणा हुई तो वह अमेरिका में हैं, लेकिन उनकी कज़िन अमीना ने बताया कि वह 29 सितंबर को मुंबई पहुँच जाएंगी और फिर दिल्ली में यह पुरस्कार लेने के लिए उपस्थित रहेंगी.
दादा साहब फाल्के से पहले आशा पारेख 1992 में पद्मश्री से सम्मानित हो चुकी हैं.
बाल कलाकार के रूप में की थी शुरुआत
गुजरात में 2 अक्तूबर 1942 को जन्मी आशा पारेख के पिता बच्चूभाई पारेख एक हिन्दू गुजराती परिवार से थे, जबकि उनकी माँ सुधा उर्फ़ सलमा एक मुसलमान परिवार से थीं. बचपन में ही आशा पारेख ने क्लासिकल डांस सीखना शुरू कर दिया था. साल 1952 में 10 साल की उम्र में ही उन्हें बाल कलाकार के रूप में एक फ़िल्म मिल गई थी, जिसका नाम था 'माँ'.
असल में फ़िल्मों में जब उस दौर के मशहूर फ़िल्मकार बिमल रॉय ने बेबी आशा के एक डांस को देखा तो उन्हें अपनी फ़िल्म 'माँ' में एक भूमिका दे दी. इस फ़िल्म में भारत भूषण, लीला चिटनिस और श्यामा मुख्य भूमिकाओं में थे.
यहीं से आशा का फ़िल्मों में शौक़ जागा. इसके बाद बाल कलाकार के रूप में आशा ने आसमान, धोबी डॉक्टर, बाप बेटी, चैतन्य महाप्रभु, अयोध्यापति और उस्ताद जैसी कुछ और फ़िल्में भी कीं.
सुबोध मुखर्जी ने दिया पहला ब्रेक
बतौर नायिका आशा को पहला ब्रेक निर्माता सुबोध मुखर्जी ने दिया फ़िल्म 'दिल देके देखो' से. जब आशा ने इस फ़िल्म की शूटिंग शुरू की तब वह 16 बरस की थीं. इस फ़िल्म के नायक थे शम्मी कपूर और निर्देशक नासिर हुसैन.
यह फ़िल्म जब 1959 में प्रदर्शित हुई तो हिट हो गई. इसी के साथ फ़िल्म क्षितिज पर एक नई तारिका आशा चमक उठी. शम्मी कपूर के साथ भी आशा पारेख की जोड़ी काफ़ी पसंद की गई.
आशा पारेख
आशा पारेख ने शम्मी कपूर के साथ मैंने 'पगला कहीं का', 'जवां मोहब्बत' और 'तीसरी मंज़िल' जैसी फिल्में कीं, बाद में कुछ और भी.
उधर 'दिल देके देखो' से आशा इसके निर्देशक नासिर हुसैन को अपना दिल दे बैठीं. दोनों का नाता ऐसा जुड़ा जो सदा के लिए बना रहा. दोनों का प्रेम किसी से छिपा नहीं था, लेकिन नासिर हुसैन पहले से ही शादीशुदा थे. इसलिए सम्मान और मर्यादाओं के चलते दोनों ने शादी नहीं की.
हालांकि नासिर हुसैन के साथ आशा पारेख ने सात फ़िल्में कीं जिनमें जब प्यार किसी से होता है, फिर वही दिल लाया हूँ, तीसरी मंज़िल, बहारों के सपने, प्यार का मौसम, कारवां में आशा नायिका थीं. जबकि 1984 में नासिर की एक और फिल्म 'मंज़िल मंज़िल' में भी आशा थीं.
यहाँ तक आशा पारेख ने फिर किसी से शादी की ही नहीं, जबकि सन 1960 से 1970 के दौर में उनकी दीवानगी देखते ही बनती थी. कितने ही लोग आशा के साथ शादी के लिए मचलते थे.
हालांकि आशा पारेख ने अपनी अविवाहित ज़िंदगी को ख़ूब मजे़ से जिया. उन्हें यात्राओं का भी अच्छा शौक रहा है. फ़िल्मों में अभिनय से दूर होने पर वह सीरियल आदि के निर्माण में व्यस्त रहीं तो समाज सेवा के लिए भी वह काफ़ी कुछ करती रहती हैं.
जब तक उनकी माँ सुधा जीवित थीं, तब तक वह उनके साथ रहती थीं, लेकिन जब सुधा पारेख बीमार रहने लगीं तो उन्हें बेटी की चिंता होने लगी कि बाद में वह अकेली कैसे रहेगी, लेकिन उनकी माँ की यह चिंता दूर कि सुधा की दोस्त शम्मी आंटी ने.
शम्मी आंटी फ़िल्मों की पुरानी अभिनेत्री थीं, बाद में वह सीरियल निर्माता के रूप में भी काफ़ी मशहूर रहीं.
शम्मी आंटी ने एक बार मुझे बताया था- सुधा पारेख ने अपनी बीमारी के दिनों में मुझसे कहा- "आशा ने शादी नहीं की, मेरे बाद उसका ध्यान कौन रखेगा. यह चिंता मुझे बहुत सताती है. तब मैंने उनसे कहा-जब तक मैं ज़िंदा हूँ मैं उसकी देखभाल करूंगी."
शम्मी आंटी ने अपना यह वचन मरते दम तक यानी 6 मार्च 2018 तक निभाया, जबकि शम्मी, आशा से 16 बरस छोटी थीं, लेकिन दोनों में दोस्ती का रिश्ता रहा. बाद में दोनों ने मिलकर कुछ सीरियल भी बनाए.
वहीदा रहमान और हेलन हैं ख़ास दोस्त
आशा पारेख की फ़िल्मी दुनिया में यूं बहुत से दोस्त रहे, लेकिन उनकी सबसे ज़्यादा दोस्ती वहीदा रहमान और हेलन के साथ है. ये तीनों अक्सर साथ घूमती-फिरती भी हैं, तो आए दिन कभी किसी के घर तो कभी किसी के घर मिलती भी रहती हैं.
आशा पारेख बताती हैं, "हम तीनों में बहुत अच्छी दोस्ती है. हम कभी भी रविवार को किसी के भी घर लांच पर मिलते हैं. मज़े से साथ खाते हैं, ख़ूब गप्पें मारते हैं, मस्ती करते हैं."
हालांकि इससे पहले आशा पारेख कि इस दोस्त मंडली में शम्मी आंटी, साधना और शशि कला भी थीं, लेकिन उनके निधन के बाद इनकी यह टोली छोटी हो गई.
यहाँ यह भी दिलचस्स्प है कि पिछले कुछ बरसों से फाल्के सम्मान की मीटिंग में जिन अभिनेत्रियों के नाम की चर्चा होती है, उनमें वहीदा रहमान और हेलन का नाम भी शामिल है, लेकिन यह बाज़ी आशा पारेख ने जीत ली है.
राजेश, धर्मेन्द्र, शशि और जीतेंद्र के साथ जमी जोड़ी
आशा पारेख की जोड़ी शम्मी कपूर के साथ तो जमी ही, लेकिन मनोज कुमार, राजेश खन्ना, शशि कपूर, धर्मेन्द्र और जीतेंद्र जैसे हीरो के साथ भी इनकी जोड़ी ख़ूब जमी.
धर्मेन्द्र के साथ आशा पारेख ने 'मेरा गाँव मेरा देश','आया सावन झूम के','शिकार', 'आए दिन बहार के' और 'समाधि' जैसी फ़िल्में करके बॉक्स ऑफ़िस पर भी धूम मचा दी थी.
फिर मनोज कुमार के साथ भी आशा ने 'अपना बनाके देखो' और 'साजन' जैसी फ़िल्में कीं, लेकिन 'दो बदन' और 'उपकार' इनकी सुपर हिट फ़िल्म थी.
उधर शशि कपूर के साथ भी आशा की 'कन्या दान', 'प्यार का मौसम' जैसी दो फ़िल्में तो बहुत पसंद की गईं. यूं 'पाखंडी', 'रायजादे' और 'हम तो चले परदेस' में भी ये दोनों थे.
आशा की जोड़ी जॉय मुखर्जी के साथ भी तब सुपर हिट रही, जब ये दोनों फ़िल्म 'लव एंड टोक्यो' और 'फिर वही दिल लाया हूँ' में आए. वैसे एक और फिल्म 'जिद्दी' में भी इन्हें पसंद किया गया.
जीतेंद्र के साथ आशा पारेख की जोड़ी की बात करें तो इनकी 'कारवां' फिल्म सबसे ऊपर आएगी जिसने लोकप्रियता का नया इतिहास लिख दिया था. साथ ही 'नया रास्ता' और 'उधार का सिंदूर' भी इनकी सफल और अच्छी फिल्मों में आती है.
वहीं राजेश खन्ना के साथ तो आशा पारेख की अपने करियर की तीन बेहद लोकप्रिय फिल्में हैं. 'बहारों के सपने', 'आन मिलो सजना' और 'कटी पतंग'. ये तीनों फिल्में अपने गीत संगीत के लिए भी बहुत लोकप्रिय रहीं.
आशा पारेख ने यूं अपनी फिल्मों में चुलबुली, चंचल और शोख भूमिकाओं को एक नया आयाम दिया है. वहाँ शक्ति सामंत ने 'कटी पतंग' में उन्हें संजीदा भूमिका देकर उनके करियर को एक नई मंज़िल दे दी थी.
'कटी पतंग' के लिए आशा पारेख को सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का फिल्मफेयर अवॉर्ड भी मिला, जबकि 'कटी पतंग' की रिलीज़ से पहले कुछ लोगों का मत था कि आशा पारेख ने एक विधवा के रूप वाली भूमिका करके अपने करियर का अंत कर दिया है, लेकिन गुलशन नंदा के उपन्यास पर बनी इस फिल्म के बाद आशा पारेख के करियर और अभिनय में और भी चमक आ गई.
हालांकि इससे पहले राज खोसला अपनी 'दो बदन' और 'चिराग' जैसी दो फिल्मों में गंभीर और त्रासदी भूमिकाएं देकर उनके अभिनय कौशल को दिखा चुके थे जिसे खोसला ने 1978 में 'मैं तुलसी तेरे आँगन की' फिल्म में फिर दोहराया. यह फिल्म आशा पारेख की ज़िंदगी में मील का नया पत्थर साबित हुई.
और भी हैं कई यादगार फिल्में
आशा पारेख ने जहां 1952 में बाल कलाकार के रूप में शुरुआत की, वहाँ उनकी अंतिम फिल्म 1999 में आई 'सर आँखों पर'. इससे उनका कुल सक्रिय फिल्म करियर 47 साल का रहा, लेकिन बतौर नायिका वह 1959 में आईं और 1995 में उन्होंने 'आंदोलन' फिल्म के बाद फिल्मों में काम करना बंद कर दिया था. इस हिसाब से उनका करियर 36 साल का रहा. उनके करियर को ध्यान से देखें तो उसमें लगभग 75 फिल्में हैं, लेकिन उनमें हिट फिल्में काफी हैं.
आशा पारेख की अन्य प्रमुख फिल्मों में घराना, मेरी सूरत तेरी आँखें, भरोसा, मेरे सनम, ज्वाला, राखी और हथकड़ी, हीरा, रानी और लाल पारी, ज़ख्मी, बिन फेरे हम तेरे, सौ दिन सास के, कालिया, हमारा खानदान, लावा, बंटवारा और प्रोफेसर की पड़ोसन जैसी फिल्में भी हैं.
उन्होंने गुजराती, पंजाबी और कन्नड की तीन भाषाओं की कुछेक फिल्मों में भी काम किया है.
सीरियल निर्माण के साथ समाज सेवा
आशा पारेख ने 1990 के दशक में गुजराती सीरियल 'ज्योति' बनाकर सीरियल निर्माण की दुनिया में भी क़दम रखा. बाद में उन्होंने हिन्दी में भी बाजे पायल, दाल में काला, कोरा कागज और कंगन जैसे सफल सीरियल भी बनाए.
आशा पारेख ने एक बार बताया था कि नृत्य उनका पहला प्यार है. फिल्मों में तो वह डांसिंग स्टार के रूप में मशहूर रही हीं. मंच पर भी वह अक्सर डांस शो करती रहीं, लेकिन कुछ बरस पहले अपने कमर दर्द के चलते उन्होंने डांस करना बंद कर दिया था.
लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि नृत्य कला को बढ़ावा देने के लिए आशा पारेख ने मालाबार हिल, मुंबई में 'गुरुकुल' के नाम से अपना एक डांस स्कूल भी खोला था.
उधर वह समाज सेवा में भी हमेशा आगे रही हैं. सांताक्रुज मुंबई में उनके सहयोग से 'आशा पारेख हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर' का संचालन भी लंबे समय तक होता रहा, लेकिन कुछ समय पहले आशा पारेख ने दुख के साथ बताया था कि अनुदान आदि ना मिलने के कारण अब वह अस्पताल चल नहीं पा रहा है.
उधर फिल्म कलाकारों के कल्याण के लिए मुंबई फिल्म उद्योग की संस्था 'सिंटा' के साथ जुड़कर कभी पदाधिकारी के रूप में तो कभी बाहर से वह कई तरह की मदद करती रही हैं.
सेंसर बोर्ड की भी रहीं अध्यक्ष
आशा पारेख सेंसर बोर्ड की भी 1998 से 2001 तक अध्यक्ष रहीं, हालांकि फिल्मों को पास करने के मामले में उनका सख्त व्यवहार शेखर कपूर, देव आनंद, सावन कुमार और फिरोज खान जैसे कई फ़िल्मकारों को पसंद नहीं आया.
इस पर आशा पारेख ने कहा था, "मुझे सरकार ने जो ज़िम्मेदारी सौंपी है मैं उसका पालन नियमानुसार करूंगी. फिल्मों में मेरे बहुत दोस्त हैं, लेकिन दोस्ती निभाने के लिए मैं आँख बंद करके फिल्में पास नहीं कर सकती."
बहरहाल अब आशा पारेख को दादा साहब फाल्के पुरस्कार मिलने से उनके अभिनय कौशल और उनके फिल्मों में किए गए योगदान को भी एक बड़ा प्रमाण मिल गया है. एक ऐसा पुरस्कार जिसे पाने का सपना फिल्मों से जुड़ा बड़े से बड़ा इंसान भी देखता है. (bbc.com/hindi)
बार्सिलोना, 27 सितंबर। स्पेन के एक न्यायाधीश ने मंगलवार को कर धोखाधड़ी के आरोप में कोलंबियाई पॉप गायिका शकीरा के खिलाफ मुकदमे की मंजूरी दे दी।
स्पेनिश अभियोजकों ने 2018 में गायिका पर 2012 और 2014 के बीच अर्जित आय पर 1.45 करोड़ यूरो (1.39 करोड़ डॉलर) के कर का भुगतान करने में विफल रहने का आरोप लगाया।
अभियोजक कर चोरी के दोषी पाए जाने पर आठ साल की जेल की सजा और भारी जुर्माना की मांग कर रहे हैं।
शकीरा (45) कोई भी गलत काम से बार-बार इनकार करती रही हैं और मुकदमे से बचने के लिये अधिकारियों के साथ एक समझौते के प्रस्ताव को उन्होंने खारिज कर दिया था।
उनके लिये जनसंपर्क का काम देखने वाली कंपनी ने कहा कि उन्होंने (शकीरा ने) पहले ही समूचा बकाया चुका दिया है और ब्याज के तौर पर 30 लाख यूरो (28 लाख डॉलर) का भी भुगतान किया है।
मुकदमे की तारीख अभी तय नहीं हुई है।
मामला 2012-14 के दौरान का है जब शकीरा वहां रहती थीं। बार्सिलोना में अभियोजकों ने आरोप लगाया है कि ग्रैमी विजेता ने उस अवधि में आधे से अधिक समय स्पेन में बिताया और उन्हें देश में करों का भुगतान करना चाहिए था, भले ही उनका आधिकारिक निवास बहामास में था।
शकीरा का पूरा नाम शकीरा इसाबेल मेबारक रिपोल है और वह तबसे स्पेन से जुड़ी हैं जब वह फुटबॉल खिलाड़ी गेरार्ड पिक के साथ रिश्ते की शुरुआत कर रही थीं।
युगल बार्सिलोना में रहता था और उनके दो बच्चे भी हैं हालांकि हाल ही में उन्होंने अपना 11 साल पुराना रिश्ता खत्म कर लिया था।
स्पेन पिछले एक दशक में लियोनेल मेसी और क्रिस्टियानो रोनाल्डो जैसे फुटबॉल सितारों पर करों का पूरा भुगतान नहीं करने के लिए कार्रवाई कर चुका है।
दोनों खिलाड़ियों को चोरी का दोषी पाया गया और उन्हें जेल की सजा मिली थी हालांकि पहली बार अपराध करने के चलते इसे माफ कर दिया गया था। (एपी)
चेन्नई, 27 सितंबर | अभिनेत्री एमी जैक्सन ने ईरान की महिलाओं को अपना समर्थन दिया है, जो महसा अमिनी की निर्मम हत्या का विरोध कर रही हैं। 22 वर्षीय महसा अमिनी को ईरान की पुलिस ने बाल दिखाने और सख्त ड्रेस कोड कानूनों का पालन नहीं करने के लिए बेरहमी से मार डाला था।
महसा अमिनी की हत्या के बाद देश भर में विरोध शुरू हो गया। प्रदर्शनकारी अधिनायकवादी शासन के खिलाफ खड़े हैं, 'महिलाओं को अपनी आजादी जीने दो' और 'जिसने मेरी बहन को मार डाला मैं उसे मार दूंगा' जैसे नारे लगा रहे हैं।
अभिनेत्री ने ईरान की महिलाओं के साथ अपनी एकजुटता व्यक्त करने के लिए इंस्टाग्राम का सहारा लिया, जो अब विरोध में अपने बाल छोटे कर रही हैं और अपने हिजाब जला रही हैं।
ईरान में जो भी हो रहा है, उसे समझाते हुए चित्रों और पाठ अंशों की एक श्रृंखला साझा करते हुए, अभिनेत्री ने लिखा, "हम आपको देखते हैं, हम आपको सुनते हैं और हम आपके साथ हैं हैशटैग-महसाअमिनी"।
अभिनेत्री ने संयुक्त राष्ट्र महासभा सत्र में ईरानी राष्ट्रपति इब्राहिम रायसी के लिए रेड कार्पेट बिछाने के अमेरिकी सरकार के फैसले पर भी चुटकी ली और पश्चिमी मीडिया को इस बात के लिए लताड़ा कि उसने पूरे मामले पर चुप्पी साधी हुई है।
मुंबई, 27 सितंबर | अनिल कपूर ने नवरात्रि को अपने पसंदीदा त्यौहारो में से एक बताते हुए कुछ पुरानी यादो को साझा किया है। अनिल ने इंस्टाग्राम पर 1988 में आई फिल्म 'तेजाब' का एक सीन शेयर किया, जिसमें वह डांस करते और डांडिया बजाते नजर आ रहे हैं।
क्लिप के कैप्शन में एक्टर ने लिखा, "सभी को नवरात्रि की शुभकामनाएं! साल का यह समय मुझे हमेशा एन. चंद्रा द्वारा इतनी खूबसूरती से संकल्पित तेजाब के इस ²श्य पर वापस ले जाता है। मैं यह कभी नहीं भूल सकता कि हमने कितनी आसानी और सहजता से इस पूरे सीन को शूट किया, एक रात में डांडिया का ²श्य। यह त्योहार की मेरी पसंदीदा यादों में से एक।"
बता दें फिल्म 'तेजाब' में माधुरी दीक्षित भी थीं। इस फिल्म ने अभिनेत्री माधुरी दीक्षित को पहला बड़ा ब्रेक दिया, जिससे वह रातोंरात स्टार बन गईं। वहीं मिस्टर इंडिया के बाद इस फिल्म ने भी अनिल कपूर की सफलता की पुष्टि की।
'तेजाब' को 'एक दो तीन' गाने के लिए जाना जाता है, जो जबरदस्त हिट हुई थी।
वर्कफ्रंट की बात करें तो अनिल के पास 'फाइटर', 'नो एंट्री में एंट्री' और 'एनिमल' हैं। उन्होंने 'द नाइट मैनेजर' के भारतीय रीमेक की शूटिंग भी पूरी कर ली है। (आईएएनएस)|
मुंबई, 27 सितंबर (आईएएनएस)| अभिनेत्री ईशा कोप्पिकर ने नवरात्रि के शुभ अवसर को मनाने की अपनी योजना पर चर्चा की और उत्सव के प्रत्येक दिन से जुड़े विभिन्न रंगों के बारे में भी जानकारी दी। उन्होंने कहा है, "जैसा कि हम सभी जानते हैं, नवरात्रि का प्रत्येक दिन एक विशेष रंग के लिए होता है और इसका कुछ महत्व होता है, इसलिए मैं प्रत्येक दिन के लिए परिभाषित रंगों के साथ समन्वय करने की कोशिश करती हूं। नवरात्रि उत्सव के प्रत्येक दिन का एक समर्पित रंग और महत्व जुड़ा होता है।"
उनके अनुसार हर रंग का एक अलग अर्थ होता है।
अभिनेत्री ने समझाया, "नौ रंग अर्थात् नारंगी, सफेद, लाल, शाही नीला, पीला हरा, ग्रे, बैंगनी और गुलाबी रंग क्रमश: ऊर्जा, पवित्रता, निर्भयता, समृद्धि, खुशी, विकास, शक्ति, बुद्धि की शक्ति और करुणा का प्रतीक है।"
ईशा कई तमिल, तेलुगु कन्नड़ और हिंदी फिल्मों का हिस्सा रही हैं जिनमें 'दिल का रिश्ता', 'क्या कूल हैं हम', 'फिजा' और अन्य शामिल हैं।
इस खास त्यौहार की योजनाओं के बारे में बात करते हुए अभिनेत्री ने आगे समझाया, "यह त्योहार अपने साथ एक अलग स्तर की खुशी लेकर आता है, जो सभी उम्र के लोगों को प्रभावित करती है। इस साल, मैं निश्चित रूप से समय निकाल कर पारंपरिक डांडिया का आनंद लूंगी। मैं इस साल दिल से नाचने और नवरात्र का जश्न मनाने के लिए उत्साहित हूं।"
ईशा 'लव यू लोकतंत्र' में एक राजनेता की भूमिका निभाते हुए दिखाई देंगी।
चेन्नई, 26 सितम्बर | मशहूर निर्देशक सुंदर सी ने कहा कि उनकी अगली आगामी रोमांटिक, फील-गुड, कॉमेडी एंटरटेनर, 'कॉफी विद कधल' एक कहानी है जो तीन भाइयों के इर्द-गिर्द घूमती है। सोमवार को लीला पैलेस में आयोजित फिल्म के ऑडियो और ट्रेलर लॉन्च कार्यक्रम में भाग लेते हुए, सुंदर सी ने कहा, "'कॉफी विद कधल' एक रोमांटिक ड्रामा है, एक पारिवारिक मनोरंजन है, एक प्रफुल्लित करने वाली कॉमेडी है। यह सब कुछ एक में है। संक्षेप में, यह एक फील गुड एंटरटेनर है।"
"फिल्म श्रीकांत, जीवा और जय द्वारा निभाए गए तीन भाइयों के बारे में है। तीनों भाइयों के चरित्र एक दूसरे के विपरीत हैं। जबकि श्रीकांत एक अंतमुर्खी हैं, जय फिल्म में एक बहिमुर्खी की भूमिका निभाते हैं। जीवा एक होने के बीच संतुलन बनाता है। कहानी उन पर आधारित है, उनके रोमांटिक रिश्ते, उनका पारिवारिक बंधन, उनके बीच उभरने वाली समस्याएं।"
उन्होंने कहा, "फिल्म में छह मुख्य भूमिकाएं हैं। संयुक्ता, रायजा विल्सन, दिव्यदर्शिनी, मालविका शर्मा, ऐश्वर्या दत्ता और अमृता अय्यर। इनमें से प्रत्येक पात्र कहानी को आगे बढ़ने में मदद करता है।"
निर्देशक ने खुलासा किया कि फिल्म में कुल आठ गाने थे और संगीत निर्देशक युवान शंकर राजा फिल्म के लिए एक बड़ी ताकत थे।
सुंदर की पत्नी कुशभु की अवनी सिनेमैक्स द्वारा निर्मित यह फिल्म इस साल 7 अक्टूबर को उदयनिधि स्टालिन की रेड जाइंट मूवीज द्वारा प्रस्तुत की जानी है। (आईएएनएस)|
मुंबई, 26 सितंबर | अभिनेत्री परिणीति चोपड़ा ने खुलासा किया है कि वह और सह कलाकार हार्डी संधु दोनों 'कोड नेम तिरंगा' के सेट पर पंजाबी में बात करते हैं। अभिनेत्री ने कहा है, "हार्डी और मैंने एक-दूसरे से सेट पर मुलाकात की, ऐसा लगता था जैसे हम एक-दूसरे को सालों से जानते हैं। यह देखते हुए कि हम दोनों पंजाबी हैं, हम हर समय अपनी मातृभाषा में बात करते हैं। हम जिन दो चीजों से सबसे अधिक जुड़े हैं वो है संगीत और भोजन।"
हार्डी की तारीफ करते हुए अभिनेत्री ने कहा कि उनके साथ काम करना एक ट्रीट रहा है।
उन्होंने कहा, "हार्डी एक अच्छे अभिनेता हैं, मुझे लगता है कि दर्शक हमारे काम को देख सकते हैं और इसलिए वे हमारी जोड़ी को एक फ्रेश जोड़ी कह रहे हैं और वे हमारी केमिस्ट्री को स्क्रीन पर देखने के लिए उत्सुक हैं। मुझे आशा है कि वे स्क्रीन पर हमारे काम को पसंद करेंगे।"
रिभु दासगुप्ता के निर्देशन में बनी 'कोड नेम तिरंगा' 14 अक्टूबर को सिनेमाघरों में रिलीज होगी। (आईएएनएस)
मुंबई, 25 सितंबर | अनुभवी अभिनेता राजेश खट्टर, जो वेब सीरीज 'कर्म युद्ध' में एक पैराप्लेजिक कैरेक्टर वर्धन रॉय की भूमिका निभा रहे हैं, ने स्क्रीन पर एक विशेष रूप से विकलांग व्यक्तित्व को चित्रित करते समय आई चुनौतियों के बारे में बात की। "एक विशेष रूप से विकलांग चरित्र को निभाना काफी चुनौतीपूर्ण हो जाता है क्योंकि हम अभिनेता आम तौर पर हमारे शरीर को उपकरण के रूप में इस्तेमाल करते हैं। हाथ के इशारे, चलने की शैली, या यहां तक कि कंधे को सिकोड़ने जैसी छोटी-छोटी हरकतें इस बारे में बहुत कुछ बताती हैं। लेकिन जब आप इन सब से अलग हो जाते हैं, तो आपके पास केवल चेहरा ही रह जाता है।"
रवि अधिकारी द्वारा निर्देशित, श्रृंखला में सतीश कौशिक, राजेश खट्टर, आशुतोष राणा, पाओली डैम, अंकित बिष्ट, प्रणय पचौरी, सौंदर्या शर्मा, चंदन सान्याल और अन्य शामिल हैं।
राजेश ने आगे कहा, "वर्धन के मामले में, वह अपने चेहरे का भी इस्तेमाल नहीं कर सकता था, इसलिए मेरे पास भावनाएं व्यक्त करने के लिए केवल आंखों का ही सहारा था। वह जिस भावनाओं से गुजर रहा था, उसे उसकी आंखों के माध्यम से व्यक्त किया जाना था।"
55 वर्षीय अभिनेता ने 'आहट', 'जुनून', 'कुमकुम', 'बेहद' जैसे टीवी शो में अपनी भूमिकाओं से मनोरंजन उद्योग में अपनी पहचान बनाई।
इसके साथ ही उन्होंने 'सूर्यवंशम', 'डॉन 2', 'खिलाड़ी 786' सहित कई फिल्मों में अभिनय भी किया।
उन्होंने अपने शोध और अपनी टीम के साथ इस किरदार को निभाने के लिए खुद को कैसे तैयार किया, इस पर उन्होंने विस्तार से बताया।
उन्होंने कहा, "कैरेक्टर को सही तरीके से निभाने के लिए मैंने वास्तविक जीवन के कुछ मामलों का अध्ययन किया, लेकिन काफी हद तक मुझे अपने और हमारे निर्देशक रवि जी के इनपुट पर निर्भर रहना पड़ा। चूंकि मेरे अधिकांश ²श्य पाओली के साथ थे, इसलिए मैंने उनका फीडबैक लिया।"
हैप्पी डिजिटल (श्री अधिकारी ब्रदर्स) प्रोडक्शन के गौतम अधिकारी, मकरंद अधिकारी और कैलाशनाथ अधिकारी द्वारा निर्मित, 'कर्म युद्ध' डिज्नी प्लस हॉटस्टार पर 30 सितंबर से स्ट्रीमिंग होगी। (आईएएनएस)|
वंदना
"आप भी औरों की तरह मर्द ही निकले जो औरत को औरत नहीं जायदाद समझते हैं. लेकिन मैं कोई जायदाद नहीं. मैं जीती जागती औरत हूँ. कोई लाश नहीं जो मर्दाना समाज अपनी मर्ज़ी से क़ब्रें बदलता रहे. आप मुझे क्या छोड़ेंगे. मैं ही आपको छोड़ रही हूँ."
40 साल पहले 24 सितंबर 1982 को रिलीज़ हुई और ट्रिपल तलाक़ के मुद्दे पर बनी फ़िल्म निकाह के ऐसे कितने ही डायलॉग हैं जिन पर उस वक़्त थिएटर में तालियाँ बजीं.
"आज भी मेरे कानों में दर्शकों की वे तालियाँ गूँजती हैं जो वे मेरे संवादों पर बजाते थे. ये फ़िल्म रिलीज़ होने के बाद की बात है. नासिक के पास धुले में मुझसे मिलने कई महिलाएं पहुंचीं. एक महिला ने बताया कि उनके प्रोफेसर पति ने उन्हें महज़ इसलिए तीन बार तलाक़ बोलकर रिश्ता तोड़ दिया था क्योंकि वो समय पर खाना नहीं दे पाई थीं. तो दूसरी को उनके शौहर ने फोन पर तलाक़ दे दिया था."
फ़िल्म निकाह को लिखने वाली अचला नागर ने ये क़िस्सा बीबीसी को दिए इंटरव्यू में बताया था जो ज़हन में रह गया. निकाह 1982 में बनी बेहद कामयाब फ़िल्म थी जिसमें पाकिस्तानी मूल की सलमा आग़ा, राज बब्बर और दीपक पराशर ने काम किया था. पाकिस्तानी ग़ज़ल गायक ग़ुलाम अली का चुपके-चुपके रात दिन आसूँ बहाना याद है, फज़ा भी है, जवां-जवां और सलमा आग़ा के गाए गाने दिल के अरमां आँसूओं में....बहुत मक़बूल हुए थे.
रवि के संगीत वाले हसन कमाल के बोल भी कमाल के थे -मसलन जब वो लिखते हैं कि हर एक पलों को ढ़ूँढता हर एक पल चला गया तो आप गाने वाले की उदासी को महसूस करत सकते हैं.
निकाह की कहानी ऐसी थी जिससे बहुत सारी मिडल क्लास मुस्लिम औरतें ख़ुद को आईडेंटिफ़ाई कर पा रही थीं कि शादी के रिश्ते के बावजूद वो कई बार कितनी कमज़ोर स्थिति में होती हैं.
सबीहा सुमर, पाकिस्तानी निर्देशक
निकाह निलोफ़र नाम की एक युवा लड़की की कहानी है जो वसीम से प्यार करती है और उसी से शादी भी करती है. लेकिन बढ़ते झगड़ों के बीच पति अचानक तीन बार तलाक़ तलाक़ तलाक़ कहते हुए निलोफ़र से अलग हो जाता है..
जानी मानी लेखिका अचला नागर ने बताया था कि पाकिस्तान की कई महिलाओं ने भी उस समय उनसे निकाह की कहानी को लिखने के लिए शुक्रिया कहा था.
पाकिस्तान की सबीहा सुमर ख़ामोश पानी जैसी पुरस्कृत फ़िल्मों की निर्देशक हैं, जिसमें भारतीय कलाकारों ने काम किया था.. सुबीहा निकाह को याद करते हुए कराची से बताती हैं, "मुझे याद है 80 के दशक में पाकिस्तान में वीसीआर पर पाइरेटिड बॉलीवुड की फ़िल्में देखी जाती थीं.''
''मैंने तब स्कूल ख़त्म ही किया था और कॉलेज में गई थी. निकाह का औरतों पर ख़ासा असर पड़ा था. पाकिस्तान में बहुत औरतों ने निकाह देखी थी, मेरे घर में भी मेरी माँ और बहन ने देखी. मुझे लगता है कि निकाह की कहानी ऐसी थी जिससे बहुत सारी मिडल क्लास मुस्लिम औरतें ख़ुद को आईडेंटिफ़ाई कर पा रही थीं कि शादी के रिश्ते के बावजूद वो कई बार कितनी कमज़ोर स्थिति में होती हैं. मैंने हसन कमाल जी से भी कुछ दिन पहले बात की थी जिन्होंने निकाह के गाने लिखे थे. हसन कमाल के गानों ने भी इस फ़िल्म की इमोश्नल अपील में बड़ा रोल अदा किया."
बीआर चोपड़ा ने जब 80 के दशक में तीन तलाक़ के मुद्दे पर ये फ़िल्म बनाई थी, तो धार्मिक विवाद पैदा हो गया था.
बीबीसी के लिए वरिष्ठ फ़िल्म समीक्षक प्रदीप सरदाना को 2019 में दिए इंटरव्यू में अचला नागर ने बताया था, "फ़िल्म किसी मज़हब को ध्यान में रखकर नहीं बनाई गई थी बल्कि उसका मक़सद ये बताना था कि औरत को भी इंसान समझा जाए.''
''लेकिन फिर भी विवाद उठ ही गए. फ़िल्म रिलीज़ होने के चौथे दिन ही किसी ने मुस्लिम बहुल इलाक़े भिंडी बाज़ार में पोस्टर लगा दिए कि इस फ़िल्म में मज़हब के ख़िलाफ़ बातें की गई हैं. फ़तवे जारी कर दिए गए थे. तब रातोरात विरोध करने वाले को बुलाकर फ़िल्म दिखाई गई थी."
तीन तलाक़ का मुद्दा पाँच साल पहले फिर से सुर्ख़ियों में आ गया था जब 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने ट्रिपल तलाक़ को असंवैधानिक क़रार दे दिया था. 2019 में संसद ने बिल पारित कर इसे आपराधिक जुर्म बना दिया. ये मुद्दा लंबे समय से विवादित रहा है, जिसमें अलग-अलग तर्क और दलीलें रही हैं.
तीन तलाक़ को लेकर क़ानूनी लड़ाई लड़ने वाली सुप्रीम कोर्ट की वकील फराह फ़ैज़ के मामा उमर ख़ैय्याम सहारनपुरी ने बीआर चोपड़ा की फ़िल्म निकाह के लिए धार्मिक मामलों के सलाहकार के तौर पर काम किया था.
उमर ख़ैय्याम सहारनपुरी का नाम फ़िल्म की क्रेडिट लिस्ट में भी देखा जा सकता है. फरहा ने जनवरी 2016 में तीन तलाक़ के ख़िलाफ़ याचिका दायर की थी.
बीबीसी को दिए एक पुराने इंटरव्य में फ़राह ने बताया था, "उस वक़्त मैं 8 साल की थी. तब फ़िल्म निकाह पर क़रीब 20 केस हुए थे. 15-20 दारुलइफ़्ताओं के दिए फ़तवे तो मेरे मामू ख़ुद इकट्ठे करके लाए थे. हमारे घर में तभी से इस मुद्दे पर चर्चा होती है. मैं आज इस मुद्दे को ख़िलाफ़ हूँ तो इसकी वजह वही लोग हैं जिनसे लड़ते हुए मैंने अपने मामू को देखा."
सलमा आग़ा और राज कपूर से नाता
फ़िल्म निकाह के लिए लेखिका अचला नागर को सर्वश्रेष्ठ डायलॉग के लिए फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार मिला तो पाकिस्तानी मूल की सलमा आग़ा को फ़िल्मफ़ेयर का सर्वश्रेष्ठ गायिका का पुरस्कार मिला था.
निकाह की सफलता के बाद सलमा आग़ा ने 1982 से लेकर 1990 तक कई हिंदी फ़िल्मों में काम किया जैसे क़सम पैदा करने वाले की, सलमा, पति-पत्नि और तवायफ़, ऊँचे लोग. लेकिन उन्हें वो सफलता नहीं मिली जो निकाह में उन्होंने देखी थी.
इंटरव्यू के दौरान सलमा आग़ा ने बताया कि उनका भारतीय फ़िल्म इंडस्ट्री से अनोखा नाता है.
उनके मुताबिक़ "फ़िल्मों में ये हमारी चौथी पीढ़ी है. 30 के दशक में जो सबसे पहली हीर-रांझा फ़िल्म बनी थी, उसमें मेरे नाना जुगल किशोर मेहरा ने रांझा और नानी ने हीर का किरदार निभाया था. मेरे नाना पृथ्वी राजकपूर के मामा थे. पृथ्वी राजकपूर की मां और मेरे नाना सगे बहन भाई थे. मेरी माँ ने मशहूर फ़िल्म 'शाहजहां' में काम किया था जिसमें 'जब दिल ही टूट गया तो जी के क्या करेंगे' जैसा मशहूर गाना था. मेरी बेटी ने 'औरंगज़ेब' में काम किया है."
बातचीत में सलमा आग़ा ने मुझे बताया, "मेरी माँ अमृतसर में पैदा हुईं. मेरे पिता का अमृतसर में ही बार था. वो ईरानी मूल के थे. मेरा बचपन भारत में ही गुज़रा. पर पढ़ाई लंदन में हुई. मेरे पिता ड्राई फ़्रूट्स का बिज़नेस करते थे. उनका लंदन आना-जाना लगा रहता था. मेरे नाना, पिता और माँ के पास ब्रिटिश पासपोर्ट था. मेरे बच्चे भी ब्रिटेन में ही पैदा हुए.
पाकिस्तान से रिश्ते पर वो सिर्फ़ इतना ही बोली थीं कि उन्होंने पाकिस्तानी फ़िल्मों में काम तो किया है. लेकिन वो ब्रिटेन की नागरिक हैं.
एक दिलचस्प बात ये भी है कि सलमा के करियर का आगाज़ बीबीसी लंदन में 'नई ज़िंदगी नया जीवन' कार्यक्रम से हुआ था.
ओवरसीज़ सिटिज़न ऑफ़ इंडिया कार्ड
2016 में सलमा ने ओवरसीज़ सिटिज़न ऑफ़ इंडिया कार्ड के लिए आवेदन किया था, जिसके बाद वो व्यक्ति कितनी भी बार भारत आ सकता है और पुलिस को रिपोर्ट भी नहीं करना पडता. उस वक़्त वो यूके की नागरिक थी.
एएनआई के एक इंटरव्यू में सलमा ने कहा था कि वो लोगों को बताना चाहती हैं कि वो हिंदुस्तानी हैं. बाद में सलमा को ओवरसीज़ सिटिज़न ऑफ़ इंडिया का कार्ड मिल गया था.
सलमा अपनी बेटी ज़ारा ख़ान के साथ भारत में रहती हैं. ज़ारा ने 2013 में फ़िल्म औरंगज़ेब में अर्जुन कपूर के साथ बतौर अभिनेत्री शुरुआत की थी लेकिन इन दिनों वो बतौर गायिका ज़्यादा जानी जाती हैं. ज़ारा ने सत्यमेव जयते-2 और जुग-जुग जियो जैसी फ़िल्मों में गाने गाए हैं.
पत्रिका में छपी कहानी तोहफ़ा बनी फ़िल्म निकाह
फ़िल्म निकाह पर लौटें तो इसके बनने की कहानी भी बेहद दिलचस्प है. फ़िल्म को बनाया था बीआर चोपड़ा ने जो उस समय के दिग्गज निर्माता-निर्देशक थे और कई सामाजिक मुद्दों पर फ़िल्में बना चुके थे. एक बार इंटरव्यू के दौरान बीआर चोपड़ा की मुलाक़ात लेखिका अचला नागर से हुई.
उन दिनों अचला नागर आकाशवाणी मथुरा में काम करती थीं.
अचला नागर ने बताया था, "मैं कुछ न कुछ लिखती रहती थी. 'निकाह' की कहानी मैंने 'माधुरी' नाम की पत्रिका के लिए लिखी थी. कहानी का नाम था तोहफ़ा. दरअसल, एक दिन मैंने ख़बर पढ़ी थी कि संजय ख़ान ने अपनी फ़िल्म 'अब्दुल्लाह' की शूटिंग के दौरान ज़ीनत अमान से शादी करने के बाद उन्हें तलाक़ दे दिया.''
''लेकिन अब वह हलाला की रस्म करके फिर से शादी करना चाहते हैं. बस उसी के बाद मेरे दिमाग़ में इस कहानी का जन्म हुआ. 'माधुरी' में यह अक्टूबर 1981 में प्रकाशित हुई. उससे पहले ही मैं कहानी को नाटक का रूप देकर आकाशवाणी मथुरा से प्रसारित कर चुकी थी. जब एक मुलाक़ात के दौरान बीआर चोपड़ा को इस कहानी के बारे में पता चला तो उन्होंने फ़िल्म बनाने का फ़ैसला कर लिया."
निर्देशक बीआर चोपड़ा
रिलीज़- 24 सिंतबर 1982
अचला नागर की कहानी तोहफ़ा पर आधारित
फ़िल्म फ़ेयर अवॉर्ड- सर्वश्रेष्ठ डायलॉग( अचला नागर)
सिंगर- महेंद्र कपूर, ग़ुलाम अली, सलमा आग़ा
ये वो दौर था जब मुस्लिम समाज के फ़िल्म जॉनर लोकप्रिय हुआ करता था यानी ऐसी फ़िल्में जिसमें परिवेश और किरदार मुख्यत मुस्लिम समाज का हो जैसे पाकीज़ा, मेरे महबूब, चौदहवीं का चाँद, लैला मजनू, महबूब की मेंहदी, बाज़ार.
फ़िल्म निकाह भी उसी मुस्लिम सोशल जॉनर की एक कड़ी थी जिसमें निर्देशक और लेखिका ने औरत के नज़रिए से कई सवाल उठाने की कोशिश की थी.
निकाह की कहानी
फ़िल्म की कहानी कुछ यूँ है कि नए नवेले जोड़े निलोफ़र (सलमा आग़ा) और वसीम (दीपक पराशर ) के बीच लगातार फ़ासले बढ़ रहे हैं.
वसीम न अपनी पत्नी की परवाह करते हैं और न उनकी सहमति की. ग़ुस्से में वो पत्नी को ट्रिपल तलाक़ दे देता है. तलाक़ के बाद निलोफ़र की ज़िंदगी में हैदर (राज बब्बर) आता है जो कॉलेज के दिनों से ही उसे चाहता था.
निलोफ़र हैदर से निकाह कर बेहद ख़ुश हैं. हालांकि पहली शादी से मिले घाव अभी ज़िंदा हैं जो वो अपनी डायरी में दर्ज करती रहती है जिसमें कई बार वसीम का ज़िक्र होता है. एक दफ़े हैदर (राज बब्बर) वो डायरी पढ़ लेता है और ये मान लेते है कि उसकी पत्नी आज भी पहले पति से ही प्यार करती है और उसे तलाक़ देने का मन बना लेता है.
निलोफ़र के जन्मदिन पर वो बतौर तोहफ़ा उसके पहले पति को साथ में लेकर आता है जो सच में निलोफ़र को वापस हासिल करना चाहता है.
यानी दो मर्द मिलकर निलोफ़र की किस्मत का फ़ैसला कर रहे थे और वो बिना उसकी मर्ज़ी की, बिना उससे कुछ पूछे. और निलोफ़र (सलमा आग़ा) दोनों से तीखे सवाल पूछती हैं.
- पहली हिंदी फ़िल्म निकाह- 24 सितंबर 1982
- फ़िल्मफ़ेयर पुस्कार (बेस्ट गायिका)- निकाह
- कई पाकिस्तानी, हिंदी फ़िल्मों में काम किया
- कपूर ख़ानदान से है नाता
- अब भारत में रहती हैं सलमा आग़ा
'आप होते कौन हैं मुझे आज़ाद करने वाले'
निलोफ़र यानी सलमा आग़ा को भी ऐसी औरत के रूप में दिखाया गया है जो प्रेम तो करती है पर झुकती नहीं. मसलन झगड़े के बाद एक दिन वसीम (दीपक पराशर) अपनी पत्नी को दोस्तों से माफ़ी माँगने का हुक़म देता है और अपनी सफ़ाई में कहता है कि उसने हमेशा बेइंतन्हा प्यार किया है. लेकिन निलोफ़र को बेचारी बनकर रहना गवारा नहीं और वो जवाब देती है कि रोज़ रात को साथ में सो जाने को प्यार नहीं कहते.
या फिर वो क्लाइमेक्स जहाँ मौजूदा पति (राज बब्बर) बिना निलोफ़र की मर्ज़ी के उसे अपने पहले पति (राज बब्बर) से मिलवाने का फ़ैसला ले लेता है और तलाक़ देकर आज़ाद करने का भी.
तब निलोफ़र का विद्रोह कुछ यूँ फूटता है- "आप होते कौन हैं मुझे आज़ाद करने वाले. मैं न तुम्हारी जेब में पड़ा हुआ नोट हूँ जिसे तुम जब चाहो ख़ैरात में दे दो. जो शादी मेरी मर्ज़ी के बग़ैर हो ही नही सकती उसके टूटने या तोड़ने में मेरी हाँ या न का दख़ल क्यों ज़रूरी नहीं. एक मर्द ने तलाक़ गाली की तरह दिया तो एक ने तलाक़ तोहफ़े की तरह. एक न तलाक़ देकर अपना हक़ जताया. और आप तलाक़ देकर अपनी क़ुर्बानी का एहसास दिलाना चाहते हैं. दोनों ही सूरत में दाँव पर तो औरत ही लगी न."
ट्रिपल तलाक़ असंवैधानिक
उस समय के हालात के हिसाब से बीआर चोपड़ा ने तीन तलाक़ के मुद्दे पर फ़िल्म बनाई थी जो 80 के दशक की स्तिथि को बयाँ करती है
इस्लाम में तलाक़ के अलग-अलग तरीके प्रचलित रहे हैं लेकिन भारत में आम तौर पर मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत एक साथ तीन तलाक़ को ही तलाक़ स्वीकार कर लिया जाता था. नए क़ानून के तहत ट्रिपल तलाक़ अंसवैधानिक और आपराधिक जुर्म है जिसे लेकर आज भी समाज में राय बटी हुई है.
और बंटवारे के बीच मझधार में फँसी वो औरते भी हैं जिन्हें नए क़ानून से पहले ही तलाक़ दे दिया गया था, लेकिन क़ानून के बावजूद पति ने सुलह करने से इनकार कर दिया और उन्हें मालूम नहीं कि उनकी शादी क़ायम है या वो तलाक़शुदा हैं. (bbc.com/hindi)