अंतरराष्ट्रीय
काठमांडू, 10 अगस्त। पिछले दिनों राम के जन्मस्थान को लेकर नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के बयान से विवाद खड़ा हो गया था और अब विवाद की कड़ी में ताजा नाम गौतम बुद्ध का है।
शनिवार को भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) के एक कार्यक्रम में भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा था- ऐसे कौन से महानतम भारतीय हैं, जिन्हें आप याद रख सकते हैं। तो मैं कहूँगा एक हैं गौतम बुद्ध और दूसरे महात्मा गांधी।
बस फिर क्या था नया विवाद खड़ा हो गया। नेपाल के विदेश मंत्रालय ने इस पर बयान जारी कर कहा कि ऐतिहासिक और पुरातात्विक साक्ष्यों से यह एक स्थापित और निर्विवाद तथ्य है कि गौतम बुद्ध का जन्म नेपाल के लुम्बिनी में हुआ था। बुद्ध का जन्मस्थान लुम्बिनी बौद्ध धर्म के उत्पत्ति का स्थान है, जो यूनेस्को की विश्व धरोहर में से एक है। नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री माधव कुमार नेपाल ने कहा कि गौतम बुद्ध के बारे में भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर का बयान आपत्तिजनक है।
फेसबुक पर जारी अपने बयान में माधव कुमार नेपाल ने लिखा है- भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर का नेपाल के लुम्बिनी में जन्मे गौतम बुद्ध पर बयान अवास्तविक और आपत्तिजनक है। भारतीय नेताओं की ओर से व्यक्त असंवेदनशील बयान और गलतफहमियों का दोनों देशों के बीच संबंधों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। मैं नेपाल सरकार से अनुरोध करता हूं कि वे औपचारिक रूप से भारत से बात करे।
हालांकि भारतीय विदेश मंत्रालय ने बाद में एक बयान जारी करके इस विवाद को ठंडा करने की कोशिश की। भारतीय विदेश मंत्रालय ने अपने बयान में कहा- विदेश मंत्री साझा बौद्ध विरासत का जिक्र कर रहे थे। इसमें कोई संदेह नहीं है कि गौतम बुद्ध का जन्म लुम्बिनी में हुआ था, जो नेपाल में है। हालांकि विदेश मंत्रालय ने ये स्पष्ट नहीं किया कि विदेश मंत्री एस जयशंकर ने गौतम बुद्ध को भारतीय क्यों कहा। नेपाल और भारत के बीच पिछले कुछ महीनों से तनाव चल रहा है। नेपाल ने इस साल मई में अपना नया नक्शा जारी किया था, जिसमें लिपुलेख, लिम्पियाधुरा और कालापानी को अपना इलाका दिखाया था. ये तीनों इलाके अभी भारत में हैं लेकिन नेपाल दावा करता है कि ये उसका इलाका है जबकि भारत इसे अपना इलाका मानता है।
नेपाल के विदेश मंत्रालय ने अपने बयान में 2004 के भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेपाल दौरे का भी जिक्र किया है, जिसमें नरेंद्र मोदी ने कहा था कि नेपाल वो देश हैं, जहां दुनिया भर में शांति के दूत गौतम बुद्ध का जन्म हुआ था।
नेपाली विदेश मंत्रालय ने अपने बयान में आगे कहा है- ये सच है कि बौद्ध धर्म नेपाल से दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में फैला। ये विषय विवाद का विषय नहीं और न ही इस पर कोई संदेह है। इसलिए ये बहस का मुद्दा नहीं हो सकता। पूरा अंतरराष्ट्रीय समुदाय इससे अवगत है। (bbc.com/hindi)
-राहुल कुमार
नई दिल्ली, 9 अगस्त (आईएएनएस)| पाकिस्तान, चीन के जितना करीब जा रहा है, बलूचिस्तान उससे (पाकिस्तान) उतना ही दूर होता जा रहा है। बढ़ते बलूच राष्ट्रवाद को सिंध में एक नया साझीदार-समर्थक संगठन मिल गया है, जो चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) का विरोध करने की योजना भी बना रहा है, जो 62 अरब डॉलर का एक बड़ा इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट है।
बलूचिस्तान में पहले से ही बलूच लिबरेशन आर्मी (बीएलए), बलूचिस्तान लिबरेशन फ्रंट (बीएलएफ), बलूच रिपब्लिकन आर्मी (बीआरए) और बलूच रिपब्लिकन गार्डस (बीआरजी) हैं, जो पाकिस्तान से आजादी की लड़ाई लड़ रहे हैं। अब इन चारों ने सीपीईसी का विरोध करने के उद्देश्य से बलूच राजी अजोई संगर (बीआरएएस) के गठन के लिए सिंधुदेश रिवोल्यूशनरी आर्मी (एसआरए) के साथ हाथ मिलाया है। सीपीईसी के बारे में इनका कहना है कि यह पंजाब-बहुल क्षेत्रों को लाभ पहुंचाने के लिए स्थानीय लोगों का शोषण कर रहा है।
बीआरएएस के प्रवक्ता बलूच खान ने कहा कि संगठनों ने एक अज्ञात स्थान पर एक सत्र आयोजित किया था, जहां उन्होंने बलूचिस्तान और सिंध को पाकिस्तान से मुक्त करने की रणनीति बनाई। स्वतंत्रता-समर्थक संगठनों ने यह भी कहा कि बलूचिस्तान और सिंध के लोग अपने-अपने क्षेत्रों में हजारों वर्षों से रह रहे हैं और इनकी मजबूत सांस्कृतिक और ऐतिहासिक संबंध हैं।
बीआरएएस के एक बयान में कहा गया है, "चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) के माध्यम से, पाकिस्तान और चीन का उद्देश्य सिंध और बलूचिस्तान से अपने राजनीतिक, आर्थिक और सैन्य हितों को हासिल करना है और बादिन से ग्वादर तक के तटों और संसाधनों पर कब्जा करना चाहते हैं।"
सीपीईसी को ज्यादातर लोग बड़े पैमाने पर खनिज समृद्ध बलूचिस्तान के लिए एक शोषणकारी परियोजना के रूप में देखते हैं जो पाकिस्तान के पंजाब प्रांत को लाभान्वित करना चाहता है। 70 साल से अधिक समय के बाद भी, बलूचिस्तान खराब शैक्षिक और स्वास्थ्य प्रणाली के साथ अत्यधिक अविकसित और गरीबी से त्रस्त क्षेत्र बना हुआ है।
चीन का इरादा सैन्य उद्देश्यों के लिए ग्वादर बंदरगाह का उपयोग करने का है, जिससे लगता है कि बलूचिस्तान में अपने स्वयं के सुरक्षाकर्मियों को तैनात करना चाहता है और कई मजबूत परिसरों का निर्माण किया है। यहां तक कि पाकिस्तान, चीन के इशारे पर, स्थानीय लोगों की इच्छाओं के खिलाफ इलाके में सेना का जमावड़ा लगा रहा है।
राष्ट्रवादियों ने न केवल सार्वजनिक रूप से सीपीईसी के विरोध में घोषणा की है, बल्कि चीनी हितों पर कई हमले किए हैं-अभी एक महीने पहले ही बीएलए ने पाकिस्तान स्टॉक एक्सचेंज, 2019 में पांच सितारा पर्ल कॉन्टिनेंटल होटल और यहां तक कि 2018 में कराची में चीनी वाणिज्य दूतावास पर हमला किया था।
पिछले कुछ महीनों में, बलूचों ने घात लगाकर अधिकारियों सहित पाकिस्तानी सेना के जवानों को मार डाला है।
सुमी खान
ढाका, 9 अगस्त (आईएएनएस)| बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने कहा कि मेरी मां बंगामाता फाजिलातुन्नेस मुजीब के महत्वपूर्ण समय में किए गए एक सही फैसले ने देश के राजनीतिक इतिहास में बदलाव लाया था।
बंगामाता फाजिलातुन्नेस मुजीब की 90 वीं जयंती के उपलक्ष्य में एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि उनकी मां ने पैरोल पर बंगबंधु शेख मुजीबुर रहमान की रिहाई के प्रस्ताव को ठुकराते हुए सही निर्णय लिया था। जबकि इससे उनकी जिंदगी को खतरा था। फाजिलातुन्नेस मुजीब का जन्म 8 अगस्त 1930 को गोपालगंज के तुंगीपारा गांव में हुआ था। 15 अगस्त, 1975 को शेख मुजीबुर रहमान के हत्यारों ने उनकी बेरहमी से हत्या कर दी थी।
हसीना ने शनिवार को कहा, "उस समय लिए गए सही निर्णय ने पाकिस्तानी सैन्य तानाशाह अयूब खान को 'अगरतला षड्यंत्र' केस वापस लेने और बांग्लादेश के राजनीतिक इतिहास के पाठ्यक्रम को बदलने के लिए मजबूर कर दिया था।"
उन्होंने आगे कहा, "मेरी मां के राजनीतिक क्षेत्र में दिए गए योगदान के बारे में सबसे अच्छी बात यह थी कि मेरी मां ने महत्वपूर्ण समय पर सही फैसले लिए थे। जबकि दुर्भाग्य से कई शीर्ष नेता ऐसा करने में असफल रहे थे।"
हसीना, फाजिलतुन्नेस मुजीब की बड़ी बेटी हैं।
श्रीलंका के संसदीय चुनाव में श्रीलंका पीपल्स पार्टी (एसएलपीपी) और उसके सहयोगियों ने दो तिहाई बहुमत से जीत हासिल की है. 225 सदस्यीय संसद में एसएलपीपी और उसके सहयोगियों ने 150 सीटों पर जीत दर्ज की है. कोरोना वायरस महामारी के बीच श्रीलंका में बुधवार को आम चुनाव हुए थे. इससे पहले दो बार महामारी के कारण चुनाव टाल दिए गए थे. गोटबाया राजपक्षे ने चुनाव से पहले ही दो तिहाई बहुमत से जीत का भरोसा जताया था. वे बतौर राष्ट्रपति अपनी शक्तियों को बढ़ाना चाहते हैं ताकि वे संविधान में बदलाव कर पाएं. उनका कहना है कि संविधान में बदलाव कर वे छोटे से देश को आर्थिक और सैन्य रूप से सुरक्षित कर पाएंगे.
इन नतीजों के बाद पूरी संभावना है कि वे अपने बड़े भाई और पूर्व राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे को दोबारा प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बिठाएंगे. दोनों भाइयों को 2009 में एलटीटीई को देश से खत्म करने के लिए जाना जाता है. चरमपंथी संगठन एलटीटीई अल्पसंख्यक तमिलों के लिए अलग राज्य के लिए लड़ाई लड़ रहा था. 2009 में जब गृहयुद्ध खत्म हुआ तो उस वक्त छोटे भाई राष्ट्रपति थे. उन पर यातना और आम नागरिकों की हत्या के आरोप भी लगे थे.
श्रीलंका में चुनाव नतीजे आने के बाद भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने श्रीलंका के प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे को फोन कर बधाई दी. बातचीत के बाद मोदी ने अपने ट्वीट में कहा, "हम द्विपक्षीय सहयोग के सभी क्षेत्रों को आगे बढ़ाने और अपने विशेष संबंधों को हमेशा नई ऊंचाइयों तक ले जाने के लिए मिलकर काम करेंगे" महिंदा राजपक्षे ने भी ट्वीट कर बधाई के लिए मोदी का धन्यवाद किया. उन्होंने अपने ट्वीट में लिखा, "श्रीलंका के लोगों के मजबूत समर्थन के साथ, हम दोनों देशों के बीच लंबे समय से चले आ रहे सहयोग को और बढ़ाने के लिए आपके साथ मिलकर काम करना चाहते हैं. श्रीलंका और भारत दोस्त हैं."
पर्यटन पर निर्भर दो करोड़ से अधिक आबादी वाला देश पिछले साल चर्च, होटल पर हुए आतंकी हमले के बाद से ही अपनी अर्थव्यवस्था को लेकर जूझ रहा है. इस आतंकी हमले की जिम्मेदारी इस्लामिक स्टेट ने ली थी. इसके बाद कोरोना वायरस के कारण देश में लॉकडाउन लगाया गया जिससे आर्थिक गतिविधियां ठप सी हो गई.
एए/सीके (एएफपी, रॉयटर्स)(dw)
इस्लामाबाद/नई दिल्ली, 8 अगस्त (आईएएनएस)| सऊदी अरब ने इमरान खान सरकार द्वारा कश्मीर मुद्दे पर इस्लामिक देशों के संगठन (ओआईसी) को विभाजित करने की धमकी देने के बाद पाकिस्तान के लिए ऋण पर तेल के प्रावधान को रोक दिया है। अक्टूबर 2018 में सऊदी अरब ने पाकिस्तान को तीन साल के लिए 6.2 अरब डॉलर का वित्तीय पैकेज देने का ऐलान किया था। इसमें तीन अरब डॉलर की नकद सहायता शामिल थी, जबकि बाकी के पैसों के एवज में पाकिस्तान को तेल और गैस की सप्लाई की जानी थी।
एक गंभीर आर्थिक संकट से घिरे पाकिस्तान ने सऊदी अरब से ऋण लिया था। पाकिस्तान के हालिया बर्ताव के कारण सऊदी ने अपने वित्तीय समर्थन को वापस ले लिया है।
पाकिस्तानी मीडिया ने शनिवार को कहा कि इस्लामाबाद के लिए प्रावधान दो महीने पहले समाप्त हो गया है और इसे रियाद द्वारा नवीनीकृत नहीं किया गया है।
द एक्सप्रेस ट्रिब्यून ने पेट्रोलियम डिवीजन के प्रवक्ता साजिद काजी के हवाले से कहा कि इस्लामाबाद ने समय से चार महीने पहले ही एक अरब डॉलर का सऊदी का ऋण लौटा दिया है।
हाल ही में पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने एक समाचार चैनल पर एक टॉक शो के दौरान धमकी दी थी कि अगर सऊदी अरब के नेतृत्व वाले ओआईसी ने कश्मीर मुद्दे पर मुस्लिम देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक नहीं बुलाई, तो प्रधानमंत्री इमरान खान अपने सहयोगी इस्लामी देशों के बीच बैठक करेंगे, जो इस मुद्दे पर पाकिस्तान का साथ दे सकें।
पाकिस्?तानी न्?यूज चैनल एआरवाई को दिए साक्षात्?कार में कुरैशी ने कहा, मैं एक बार फिर से पूरे सम्?मान के साथ ओआईसी से कहना चाहता हूं कि विदेश मंत्रियों की परिषद की बैठक हमारी अपेक्षा है। यदि आप इसे बुला नहीं सकते हैं तो मैं प्रधानमंत्री इमरान खान से यह कहने के लिए बाध्?य हो जाऊंगा कि वह ऐसे इस्?लामिक देशों की बैठक बुलाएं जो कश्?मीर के मुद्दे पर हमारे साथ खड़े होने के लिए तैयार हैं।
विश्व में इस्लामी देशों के सबसे बड़े संगठन ओआईसी से पाकिस्तान कई बार गुजारिश कर चुका है कि वह कश्मीर मुद्दे पर एक बैठक आयोजित करे, मगर संगठन ने हर बार उसकी अपील को दरकिनार किया है। यही वजह है कि पाकिस्तान बौखलाया हुआ है।
दरअसल ओआईसी में किसी भी कदम के लिए सऊदी अरब का साथ सबसे ज्?यादा जरूरी होता है। ओआईसी पर सऊदी अरब और उसके सहयोगी देशों का दबदबा है। कश्?मीर पर सऊदी अरब के कदम नहीं उठाने से पाकिस्?तान की कुंठा बढ़ती ही जा रही है।
पिछले साल अगस्त में भारत ने जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले अनुच्छेद-370 को निरस्त कर दिया था, जिसके बाद जम्मू-कश्मीर दो हिस्सों लद्दाख व जम्मू-कश्मीर में केंद्र शासित प्रदेश के तौर पर बांट दिया गया। पाकिस्तान भारत के इस कदम का विरोध कर रहा है और इमरान खान सरकार इस मुद्दे पर 57 सदस्यीय ओआईसी का समर्थन मांग रही है।
बीजिंग, 8 अगस्त (आईएएनएस)| अमेरिका में कोरोना वायरस का कहर लगातार बढ़ता जा रहा है, अब तक 48 लाख लोग संक्रमित हो चुके हैं, जबकि एक लाख 60 हजार लोगों की मौत हो गयी है। इस बीच एक चौकाने वाली अध्ययन रिपोर्ट की मानें तो यह वायरस अल्पसंख्यक जाति के बच्चों और कमजोर सामाजिक आर्थिक पृष्ठभूमि के बच्चों को अपनी चपेट में ज्यादा ले रहा है। इस स्टडी के दौरान वाशिंगटन में 21 मार्च से 28 अप्रैल के बीच एक हजार बाल रोगियों का परीक्षण किया गया। अध्ययन में पाया गया कि श्वेत बच्चों में से केवल 7.3 फीसदी ही कोविड-19 पॉजिटिव पाए गए। जबकि 30 प्रतिशत अश्वेत बच्चे वायरस से संक्रमित पाए गए। वहीं हिस्पैनिक बच्चों में वायरस के संक्रमण की दर 46.4 फीसदी थी।
शोधकर्ताओं ने पेडियाट्रिक्स जर्नल में लिखा है कि अश्वेत बच्चों में श्वेत बच्चों की तुलना में वायरस का जोखिम तीन गुना ज्यादा था। इस बाबत सभी रोगियों की बुनियादी जनसांख्यिकीय जानकारी जुटाई गयी, उसके बाद अनुसंधान टीम ने उक्त लोगों के परिवार की आय का अनुमान लगाने के लिए सर्वेक्षण डेटा का उपयोग किया।
परीक्षण किए गए रोगियों में से लगभग एक तिहाई अश्वेत थे, जबकि लगभग एक चौथाई हिस्पैनिक थे।
जिन एक हजार लोगों का टेस्ट किया गया, उनमें से 207 वायरस से संक्रमित हुए थे, उनमें से उच्च आय वर्ग के महज 9.7 फीसदी ही संक्रमित थे, जबकि सबसे कम आय वर्ग के 37.7 प्रतिशत लोग वायरस की चपेट में आए थे।
विशेषज्ञों का कहना है कि वायरस के संक्रमण को लेकर इतनी असमानता की वजह स्वास्थ्य देखभाल और संसाधनों तक सीमित पहुंच, साथ ही पूर्वाग्रह और भेदभाव आदि के चलते हो सकती हैं। हालांकि शोधकर्ताओं ने कहा कि इसका सटीक कारण समझने के लिए और अधिक शोध की आवश्यकता है।
वैसे यह बात जाहिर है कि अल्पसंख्यक और कमजोर सामाजिक आर्थिक वर्ग के लोगों की प्राथमिक स्वास्थ्य कर्मियों तक कम पहुंच होती है, जिसका मतलब यह है कि इस अध्ययन में असमानता वास्तविकता से अधिक बड़ी हो सकती है।
जिस तरह से अमेरिका में कमजोर वर्ग और आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों में वायरस के संक्रमण के मामले ज्यादा देखे गए हैं, उससे पता चलता है कि विश्व के सबसे शक्तिशाली देश में सामाजिक असमानता बहुत बढ़ गयी है। क्योंकि इससे पहले भी अमेरिका में वयस्क नागरिकों को लेकर इसी तरह की रिपोर्ट सामने आयी थी जिसमें श्वेत लोगों में वायरस के संक्रमण की दर कम पायी गयी थी।
जिनेवा, 8 अगस्त (आईएएनएस)| विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने वैक्सीन पर राष्ट्रवाद के खिलाफ चेतावनी दी है। उन्होंने अमीर देशों को आगाह करते हुए कहा कि यदि वे खुद के लोगों के उपचार में लगे रहते हैं और अगर गरीब देश बीमारी की जद में हैं तो वे सुरक्षित रहने की उम्मीद नहीं कर सकते हैं। डब्लूएचओ के महानिदेशक ट्रेडोस अधनोम गेब्रेयसस के अनुसार, यह अमीर देशों के हित में होगा कि वे हर देश को बीमारी से बचाने में मदद करें।
गार्डियन के अनुसार, ट्रेडोस ने कहा कि वैक्सीन पर राष्ट्रवाद अच्छा नहीं है, यह दुनिया की मदद नहीं करेगा।
ट्रेडोस ने जिनेवा में डब्ल्यूएचओ के मुख्यालय से वीडियो-लिंक के माध्यम से अमेरिका में एस्पन सिक्योरिटी फोरम को बताया, "दुनिया के लिए तेजी से ठीक होने के लिए, इसे एक साथ ठीक होना होगा, क्योंकि यह एक वैश्वीकृत दुनिया है। अर्थव्यवस्थाएं आपस में जुड़ी हुई हैं। दुनिया के सिर्फ कुछ हिस्से या सिर्फ कुछ देश सुरक्षित या ठीक नहीं हो सकते।"
उन्होंने यह भी कहा कि कोविड-19 तब कम हो सकता है जब वे देश जिसके पास धन है, वे इससे निपटने के लिए प्रतिबद्ध हों।
रिपोर्ट के अनुसार, कई देश कोरोनोवायरस के लिए वैक्सीन खोजने की दौड़ में हैं। इस बीमारी से वैश्विक स्तर पर 7,00,000 से अधिक लोग मारे गए हैं।
बेरुत, 7 अगस्त (आईएएनएस)| लेबनान की राजधानी बेरुत में दो घातक विस्फोटों के मामले में राजधानी के बंदरगाह के 16 कर्मचारियों को गिरफ्तार कर लिया गया है। विस्फोटों में कम से कम 149 लोगों की जान चली गई है और हजारों लोग घायल हो गए। समाचार एजेंसी सिन्हुआ के मुताबिक, गुरुवार शाम को सैन्य न्यायाधिकरण के सरकारी आयुक्त जज फादी अकीकी ने कहा कि अब तक 18 से अधिक लोगों से पूछताछ की गई है, जिसमें बंदरगाह और सीमा शुल्क अधिकारियों के साथ-साथ हैंगर में रखरखाव के प्रभारी लोग भी शामिल हैं जहां विस्फोटक सामग्री वर्षों से रखा हुआ था।
इस बीच, बेरुत के पहले इन्वेस्टिगेटिव जज गसान ओयुदैत ने बंदरगाह के सात अधिकारियों की यात्रा पर प्रतिबंध लगाने का निर्णय जारी किया।
दो बड़े विस्फोटों से मंगलवार शाम को बेरुत बंदरगाह दहल गया, जिसमें कम से कम 149 लोग मारे गए हैं और लगभग 5,000 अन्य घायल हुए हैं जबकि शहर में बड़े पैमाने पर नुकसान हुआ हैं।
प्रारंभिक जानकारी से पता चला है कि बंदरगाह के गोदाम नंबर 12 में 2014 से रखा अमोनियम नाइट्रेट विस्फोटों का कारण हो सकता है।
वाशिंगटन, 7 अगस्त (आईएएनएस)| जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी के अनुसार, वैश्विक स्तर पर कोरोनावायरस मामलों की कुल संख्या 1.9 करोड़ के आंकड़े को पार कर गई है, वहीं मौतों की संख्या बढ़कर 713,000 से अधिक हो गई है।
विश्वविद्यालय के सेंटर फॉर सिस्टम साइंस एंड इंजीनियरिंग (सीएसएसई) ने अपने ताजा अपडेट में खुलासा किया है कि शुक्रवार की सुबह तक कुल मामलों की संख्या 19,007,938 हो गई थी। वहीं अब तक इस घातक वायरस के कारण दुनिया में 7,13,406 लोगों की मौत हो चुकी थी।
सीएसएसई के अनुसार, अमेरिका अब भी दुनिया में सबसे अधिक कोरोना प्रभावित देश बना हुआ है। यहां 48,81,974 मामले और 1,60,090 मौतें दर्ज हो चुकी हैं। इसके बाद ब्राजील 29,12,212 मामलों और 98,493 मौतों के साथ दूसरे स्थान पर है।
संक्रमण के मामलों की बात करें तो भारत 19,64,536 संख्या के साथ तीसरे नंबर पर है। उसके बाद रूस (8,70,187), दक्षिण अफ्रीका (5,38,184), मैक्सिको (4,62,690), पेरू (4,47,624), चिली (3,66,671), कोलंबिया (3,45,714), ईरान (3,20,117), स्पेन (3,09,855), ब्रिटेन (3,09,784), सऊदी अरब (2,84,226), पाकिस्तान (2,81,863), बांग्लादेश (2,49,651), इटली (2,49,204), तुर्की (2,37,265), फ्रांस (2,31,310), अर्जेंटीना (2,28,195), जर्मनी (2,15,039), इराक (1,40,603), कनाडा (1,20,387), फिलीपींस (1,19,460), इंडोनेशिया (1,18,753) और कतर (1,12,092) हैं।
वहीं ऐसे देश जिनमें 10 हजार से अधिक मौतें हुई हैं, उनमें मेक्सिको (50,517), ब्रिटेन (46,498), भारत (40,699), इटली (35,187), फ्रांस (30,308), स्पेन (28,500), पेरू (20,228), ईरान (17,976), रूस (14,579) और कोलम्बिया (11,624) शामिल हैं।
Horrifying footage shows the scary moment a Lebanese bride had to run for cover as she was posing for wedding photographs with her groom in central Beirut just moments before a massive explosion rocked the capital and turned so many of its landmarks into rubble. (Video courtesy of Mahmoud Nakib)
This is insane.
— Mike Leslie (@MikeLeslieWFAA) August 5, 2020
A bride taking wedding photos as the explosion happens in Beirut.
And she’s one of the lucky ones, fortunate to survive.
(video by Mahmoud Nakib) pic.twitter.com/1zpE7YcB7M
बीजिंग (आईएएनएस)| दुनिया के सबसे पावरफुल देश में आजकल कोरोना वायरस महामारी ने कोहराम मचा रखा है। इसके साथ ही नवंबर में होने वाले चुनावों की आहट भी है, वहीं चीन के साथ रिश्ते भी खराब हो रहे हैं। इस सबके बीच अमेरिका में रहने वाले चीनी लोगों को रेसिज्म यानी नस्लभेद का शिकार होना पड़ रहा है। चीन-अमेरिका संबंधों और कोविड-19 के कहर से अमेरिका में रहने वाले तमाम छात्र प्रभावित हो रहे हैं। हालिया रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका के विभिन्न शिक्षण संस्थानों में लगभग 3 लाख 60 हजार चीनी छात्र पढ़ते हैं। हालांकि अमेरिका के तमाम संस्थानों ने बयान जारी कर कहा है कि वे चीनी छात्रों का स्वागत करते हैं।
लेकिन पिछले कुछ समय से चीनी स्टूडेंट्स की चिंताएं बहुत बढ़ गयी हैं। जहां एक ओर कोरोना वायरस के कारण अमेरिका में लगभग डेढ़ लाख से अधिक नागरिकों की मौत हो चुकी है। जबकि 47 लाख से ज्यादा वायरस से संक्रमित हुए हैं। इस दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति व अन्य नेता बार-बार वायरस के प्रसार के लिए चीन को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। इसका असर लोगों की मानसिकता पर भी पड़ता है, वैसे भी अमेरिका में रेसिज्म की घटनाएं आम हैं। कुछ समय पहले अश्वेत अमेरिकी जार्ज फ्लॉयड की मौत ने अमेरिकन सिस्टम पर तमाम सवाल खड़े किए हैं। वहीं अमेरिका में एशियाई मूल के लोग भी नस्लभेद का सामना कर रहे हैं।
यहां हम चीनी युवती श चंगथिए का उदाहरण देना चाहेंगे, जो कई साल पहले अमेरिका के आहायो में पढ़ाई करने के लिए गयी थी। अभी वह अमेरिका के जॉन्स हॉपकिन्स यूनिवर्सिटी में अध्ययन-रत है। उसने ऊई अमेरिकन ड्रीम देखा था, लेकिन हाल के दिनों में माहौल बहुत खराब हो गया है। वह कहती हैं, हमें अब यहां दुश्मन की तरह देखा जा रहा है।
अमेरिका में स्टडी करने वाले कई अन्य चीनी छात्र भी कुछ इसी तरह की स्थिति का सामना कर रहे हैं। उन्होंने पिछले कुछ महीनों में, दो ऐतिहासिक घटनाओं का अनुभव किया है, एक कोरोना महामारी और दूसरा अमेरिका व चीन के बीच बढ़ता तनाव। इन वजहों से इन युवाओं को भविष्य की चिंता सता रही है।
वहीं सायराकूज यूनिवर्सिटी में एसोसिएट प्रोफेसर यिंगई मा ने जनवरी महीने में चीनी छात्र-छात्राओं के अनुभवों पर 'महत्वाकांक्षी और चिंता' नामक एक पुस्तक लिखी थी। लेकिन उनका कहना है कि, अगर अभी उन्हें किताब लिखने का मौका मिलता तो, उसका शीर्षक सिर्फ 'चिंता' होगा।
बीजिंग, 7 अगस्त (आईएएनएस)| ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन ने अमेरिका के ऐस्पन सुरक्षा मंच में भाग लेते हुए कहा कि वर्तमान में कोई सबूत नहीं है कि ऑस्ट्रेलिया में चीनी कंपनी टिक टॉक पर प्रतिबंध लगाया जाए। और इस बात का कोई संकेत नहीं है कि इन अनुप्रयोगों ने ऑस्ट्रेलिया के सुरक्षा हितों या ऑस्ट्रेलियाई नागरिकों के व्यक्तिगत हितों को नुकसान पहुंचाया है। स्कॉट मॉरिसन ने जोर देते हुए कहा कि ऑस्ट्रेलियाई लोगों को सतर्क रहना चाहिए, क्योंकि न केवल टिक टॉक के साथ इस तरह की समस्या है, बल्कि फेसबुक जैसे अमेरिकी सोशल मीडिया प्लेटफार्मों को भी यूजर्स से बहुत सारी जानकारी मिलती है।
ध्यान रहे, इससे पहले अमेरिकी सरकार ने तथाकथित 'राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरे में डालने के संदेह' के कारण टिक टॉक को पूरी तरह से अवरुद्ध करने की घोषणा की।
चीनी प्रौद्योगिकी कंपनियों के लिए अमेरिका के खतरे के साथ, तीन प्रमुख यूरोपीय आर्थिक समुदाय में टिक टॉक पर प्रतिबंध लगाने की कोई योजना नहीं है।
ब्लूमबर्ग न्यूज की रिपोर्ट के अनुसार ब्रिटिश और फ्रांसीसी सरकारों के प्रवक्ताओं ने कहा कि उनके देशों में टिक टॉक पर प्रतिबंध लगाने की कोई योजना नहीं है। इसके अलावा, जर्मन सरकार के एक अधिकारी ने कहा कि जर्मनी टिक टॉक पर प्रतिबंध नहीं लगा रहा है।
उधर कई पक्षों ने टिक टॉक पर प्रतिबंध लगाने के लिए अमेरिकी सरकार की कार्यवाही की निंदा की है।
टोरंटो(आईएएनएस)| टोरंटो के बाहरी इलाके में भारतीय प्रभुत्व वाले शहर ब्रैम्पटन के एक पंजाबी पार्षद (काउंसलर) को एक महिला द्वारा लगाए गए यौन उत्पीड़न के आरोपों के बाद निलंबित कर दिया गया है।
नगर परिषद ने दो बार के पार्षद गुरप्रीत ढिल्लन को 90 दिनों के लिए निलंबित कर दिया है और उनके इस्तीफे की मांग करते हुए एकमत प्रस्ताव भी पारित किया गया है।
लगभग 700,000 की आबादी के साथ ब्रैम्पटन को कनाडा में एक 'भारतीय शहर' के रूप में जाना जाता है, क्योंकि इसमें भारतीय समुदाय की बड़ी संख्या है, जो शहर की आबादी का लगभग 25 प्रतिशत हिस्सा हैं।
एक स्थानीय सैलून की मालिक ने ढिल्लन पर यौन शोषण का आरोप लगाया। महिला ने कहा कि जब वह दोनों नवंबर 2019 में कनाडा तुर्की व्यापार परिषद के प्रतिनिधिमंडल के हिस्से के रूप में तुर्की गए थे, तब ढिल्लन ने उनका यौन शोषण किया।
शहर के मेयर को दी गई अपनी शिकायत में महिला ने कहा कि ढिल्लन ने उस समय उनके साथ बदसलूकी की, जब वह अपने होटल के कमरे में थीं।
महिला ने होटल के कमरे में पार्षद के साथ हुए घटनाक्रम की रिकॉडिर्ंग दिखाने के लिए मेयर से मिली। इसके अलावा महिला ने अपने दावे को मजबूत करने के लिए मेयर को कुछ टैक्स्ट मैसेज भी दिखाए।
मेयर ने शहर में संबंधित अधिकारी को आरोपों की जांच करने के लिए कहा और जांच में ढिल्लन के खिलाफ यौन उत्पीड़न के आरोपों को सच पाया गया।
नगर परिषद ने ढिल्लन को न केवल निलंबित कर दिया है, बल्कि उन्हें इस्तीफा देने के लिए भी कहा है।
ढिल्लन ने हालांकि उन पर लगे आरोपों से इनकार किया है और साथ ही कहा है कि वह इस्तीफा नहीं देंगे।
वाशिंगटन/नई दिल्ली, 6 अगस्त। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में जम्मू एवं कश्मीर पर एक चर्चा शुरू कराने की बीजिंग की असफल कोशिश के बाद नई दिल्ली ने भारत के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने की कोशिश के खिलाफ चीन को गुरुवार को चेतावनी दी है। विदेश मंत्रालय द्वारा जारी एक बयान में सरकार ने कहा कि यह पहली बार नहीं है, जब चीन ने एक ऐसे विषय को उठाने की मांग की है, जो पूरी तरह से भारत का आंतरिक मामला है।
सरकार ने कहा, पहले की तरह ही इस बार भी चीन के इस प्रयास को अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से बहुत कम समर्थन मिला। हम भारत के आंतरिक मामलों में चीन के हस्तक्षेप को खारिज करते हैं। साथ ही चीन से अपील करते हैं कि वह इस तरह के निष्फल प्रयासों के बाद समुचित निष्कर्ष निकाले।
सरकार को बुधवार को अमेरिकी प्रतिनिधि सभा की विदेश मामलों की समिति से समर्थन को लेकर एक का पत्र मिला है, जिसमें लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर चीन की ओर से दिखाई जा रही आक्रामकता के लिए उसे जिम्मेदार ठहराया गया है।
प्रतिनिधि सभा की विदेश मामलों की समिति के अध्यक्ष और डेमोक्रेट रैंकिंग सदस्य एलियॉट एंगल एवं रैंकिंग रिपब्लिकन सदस्य माइकल टी मैक्कॉल ने संयुक्त रूप से यह पत्र लिखा है। उन्होंने कहा कि वे अमेरिका-भारत संबंधों के लिए मजबूत द्विदलीय समर्थन प्रदर्शित करना चाहते हैं।
उन्होंने कहा, दोनों दलों के सदस्य भारत एवं अमेरिका के बीच मजबूत संबंधों के 21वीं सदी पर मजबूत प्रभाव को समझते हैं। जैसा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस साल फरवरी में कहा था कि हमारे संबंध अब केवल साझेदारी नहीं हैं, बल्कि ये पहले से कहीं अधिक मजबूत एवं करीबी हैं। ये मजबूत संबंध ऐसे समय में और अधिक महत्वपूर्ण हैं, जब भारत चीन के साथ लगती सीमा पर उसके (चीन के) आक्रामक रुख का सामना कर रहा है। चीन का यह व्यवहार हिंद प्रशांत में चीन सरकार के अवैध कदमों और उसकी आक्रामकता का हिस्सा है।
विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा कि अमेरिका अपनी संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा करने के भारत के प्रयासों के समर्थन में अडिग रहेगा।
अमेरिकी हाउस कमेटी ने अपने पत्र में जम्मू-कश्मीर में चल रही गंभीर सुरक्षा और आतंकवाद जैसी चिंताओं को भी स्वीकार किया और कहा कि वह लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए हमारी साझा प्रतिबद्धताओं को बनाए रखते हुए भारत सरकार के साथ इन चिंताओं को दूर करने के लिए काम करना चाहते हैं।
उन्होंने कहा, द्विपक्षीय संबंधों को हमारे समर्थन के साथ ही, हम इस बात पर चिंता जताते हैं कि जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को निरस्त किए जाने और उसे केंद्र शासित प्रदेश बनाए जाने के बाद पिछले एक साल में वहां हालात सामान्य नहीं हुए हैं।(ians)
लेबनान की राजधानी बेरुत में मंगलवार शाम हुए विनाशकारी धमाके में अब तक 135 लोगों की जान जा चुकी है और 4000 से ज़्यादा लोग ज़ख़्मी हुए हैं.
राहत बचावकर्मी अब भी मलबे में दबे लोगों को निकालने की कोशिश कर रहे हैं. धमाके में लेबनान का मुख्य अन्नागार भी बर्बाद हो गया है. इस तबाही के बाद लेबनान के पास एक महीने से भी कम का सुरक्षित अनाज बचा है.
बुधवार को लेबनान के वित्त मंत्री राउल नेह्मे ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स से कहा कि इस धमाके बाद लेबनान के पास एक महीने से भी कम के सुरक्षित अनाज बचे हैं लेकिन आटा पर्याप्त है इसलिए संकट से बचा जा सकता है.
वित्त मंत्री ने कहा कि कम से कम तीन महीने के सुरक्षित अनाज होने चाहिए. धमाके के पहले से ही लेबनान आर्थिक संकट से जूझ रहा है और अनाज आयात करने के लिए उसके पास पैसे नहीं हैं. वित्त मंत्री ने कहा कि धमाके में तबाह हुए अनाज गोदामों में कम से कम 15 हज़ार टन अनाज की बर्बादी हुई है हालांकि इनकी क्षमता एक लाख 20 हज़ार टन की है.
लेबनान ज़्यादातर खाद्य सामग्री आयात करता है और अनाज का बड़ा हिस्सा पोर्ट पर स्टोर करके रखा जाता है. लेकिन धमाके में ये स्टोर किए अनाज भी पूरी तरह से बर्बाद हो गए हैं. लेबनान खाद्य संकट के मुहाने पर खड़ा है.
बेरुत में हुए धमाके की अहम बातें जानिए-
क्या हुआ?
मंगलवार की शाम शुरू में बेरुत के तटीय इलाक़े में धमाके की ख़बर आई. चश्मदीदों का कहना है कि इसके बाद आग लगी और छोटे धमाके हुए, जिनकी आवाज़ पटाखे की तरह थी.
सोशल मीडिया पर पोस्ट किए गए वीडियो में दिख रहा है कि सफ़ेद धुएं के गुबार एक गोदाम से उठ रहे हैं. पास में ही एक अनाज का गोदाम था. इसके ठीक पहले एक विनाशकारी धमाका हुआ था और ये इतना ज़ोरदार था कि पूरे शहर में आग की लपटें और धुएं के गुबार फैल गए.
दूसरा धमाका पोर्ट के कऱीब की इमारतों के पास हुआ और इसका असर पूरे बेरुत शहर पर पड़ा. बेरुत 20 लाख लोगों का घर है. देखते ही देखते अस्पताल पीड़ितों से भर गए. लेबनानी रेडक्रॉस के प्रमुख जॉर्ज केटैनी ने कहा, ''हमलोग विनाशकारी मंजर के गवाह बने. चारों तरफ़ ज़ख़्म और तबाही का आलम था.''
धमाका कितना शक्तिशाली था?
विशेषज्ञों को धमाकों के आकार के बारे में पता नहीं चल पाया है लेकिन यह इतना ज़ोरदार था कि जहां धमाका हुआ वहां से 9 किलोमीटर दूर बेरुत इंटरनेशनल एयरपोर्ट के शीशे टूटने लगे.
वहां से 200 किलोमीटर दूर साइप्रस में धमाके की गूंज सुनाई पड़ी. अमरीका के भूकंप विज्ञानियों का कहना है कि यह धमाका 3.3 मैग्निट्यूड के भूकंप के बराबर था.
धमाके की वजह क्या है?
लेबनान के राष्ट्रपति माइकल इयोन का कहना है कि पोर्ट पर एक गोदाम में 2,750 टन अमोनियम नाइट्रेट असुरक्षित तरीक़े से रखा हुआ था. इस धमाके लिए राष्ट्रपति इयोन ने इसी अमोनियम नाइट्रेट को ज़िम्मेदार ठहराया है. इसी मात्रा में 2013 में एक पोत से केमिकल जब्त किया गया था. अमोनियम नाइट्रेट क्रिस्टल की तरह होता है.
सामान्य तौर पर इसका इस्तेमाल नाइट्रोजन के रूप में खेती में उर्वरक के लिए होता है. लेकिन इसका इस्तेमाल ईंधन तेल के साथ विस्फोटक बनाने में भी किया जाता है. यह खनन और कंस्ट्रक्शन इंडस्ट्री में काम आता है.
अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को लगता है कि बेरुत धमाका किसी भयावह हमले का नतीजा है. लेकिन अमरीकी अधिकारियों ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स से कहा है कि हमले की आशंका के पक्ष में कोई ठोस तर्क नहीं है. शुरुआती जाँच में यही पता चला है कि धमाका लापरवाही का नतीजा है.
विशेषज्ञों का कहना है कि अगर अमोनियम नाइट्रेट को ठीक से रखा जाए तो यह बाक़ी केमिकलों की तुलना में सुरक्षित है. हालांकि बड़ी मात्रा में अमोनियम नाइट्रेट लंबे समय तक रखा जाता है तो इसमें विघटन शुरू हो जाता है और आगे चलकर विस्फोटक साबित होता है.
ईंधन तेल के साथ मिलने के बाद ऊष्मा पैदा होती है और आख़िरकार विस्फोट तक पहुंच जाता है. अमोनियम नाइट्रेट से अक्सर दुनिया भर में जानलेवा औद्योगिक हादसे में हुए हैं.
आरोप किस पर है?
राष्ट्रपति इओन ने इस मामले की पारदर्शी जाँच का वादा किया है. दुर्घटना स्थल पर बुधवार को जाने के बाद उन्होंने कहा, ''हम इसकी तत्काल जाँच कराएंगे और पता लगाया जाएगा कि ये धमाके किन परिस्थितियों में हुए हैं. पूरे मामले में जिनकी भी लापरवाही सामने आएगी उन्हें सज़ा मिलेगी.''
प्रधानमंत्री हसन दिआब ने भी इस लापरवाही को अस्वीकार्य बताया है. पोर्ट के महाप्रबंधक हसन कोरयातम और लेबनानी कस्टम के महानिदेशक बाद्री दाहेर ने बुधवार को कहा कि अमोनियम नाइट्रेट को रखने के मामले में लापरवाही बरती गई है.(bbc)
कोलंबो, 5 अगस्त। श्रीलंका के संसदीय चुनाव के लिए बुधवार दोपहर तक लगभग 40 प्रतिशत मतदान दर्ज किया गया। मतदान सुबह सात बजे शुरू हुआ।
समाचार एजेंसी सिन्हुआ के अनुसार, एक सरकारी अधिकारी ने कहा कि कई जिलों में 40 प्रतिशत से थोड़ा अधिक मतदान दर्ज किया गया, जिसमें सबसे ज्यादा 48 प्रतिशत मतदान नुवेरा एलिया में दर्ज किया गया, और उसके बाद 46 प्रतिशत मतदान माताले में दर्ज किया गया।
राजधानी कोलंबो में दोपहर तक 34 प्रतिशत मतदान दर्ज किया गया।
अधिकारी ने कहा कि संसदीय चुनाव के लिए मतदान शाम पांच बजे समाप्त होगा।
निर्वाचन आयोग ने कहा कि बुधवार के मतदान के लिए लगभग 1.62 करोड़ लोग मतदान के पात्र हैं। इस चुनाव के जरिए 225 सदस्यीय एक नई संसद चुनी जाएगी।
देशभर में मतदान के लिए 12,000 से अधिक मतदान बूथ बनाए गए हैं, जबकि स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव के लिए 69,000 पुलिस अधिकारी तैनात किए गए हैं।
इसके अतिरिक्त सभी मतदान बूथों पर 8,000 स्वास्थ्य सेक्टर के कर्मचारी तैनात किए गए हैं, क्योंकि कोविड-19 महामारी के कारण सख्त स्वास्थ्य दिशानिर्देशों का पालन किया जा रहा है। इस बीमारी से अबतक देश में 2,800 लोग संक्रमित हो चुके हैं।
राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे ने कोलंबो के मिरिहाना में बुधवार सुबह मतदान किया, जबकि प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे ने दक्षिण में हंबनटोटा में मतदान किया और पूर्व प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे ने कोलंबो में अपना वोट डाला।
सभी मतदाताओं और ड्यूटी पर तैनात अधिकारियों के लिए फेस मास्क अनिवार्य था और हाथ की सफाई का भी ख्याल रखा गया। मतदाताओं को अपने वोट को मार्क करने के लिए काली या नीली स्याही की पेन साथ लाने के लिए प्रोत्साहित किया गया था।(ians)
दुबई, 5 अगस्त (आईएएनएस)| कोविड-19 महामारी के बीच भारत की तरफ से इस बारे में कोई स्पष्टीकरण नहीं है कि विजिट वीजा होल्डर्स को यूएई यात्रा की कब अनुमति दी जाएगी, ऐसे में परेशान भारतीय माता-पिता अपने बच्चों को भारत से अमेरिका भेज रहे हैं, ताकि वे वहां से यूएई की यात्रा कर सकें। यूएई स्थित भारतीय राजदूत पवन कपूर ने सोमवार को खलीज टाइम्स से कहा कि भारत सरकार ने अभी इस बारे में कोई निर्णय नहीं लिया है कि वह अपने नागरिकों को विजिट वीजा पर यात्रा की अनुमति देगी या नहीं।
खलीज टाइम्स की रपट के अनुसार, माता-पिता के पास कोई विकल्प नहीं है और वे अपने बच्चों को अपने पास बुलाने के लिए अब कठोर उपाय अपना रहे हैं।
दुबई के एक निवासी साहाद सत्तार ने कहा कि उनके दो किशोर बेटे दक्षिण भारतीय राज्य केरल में मार्च से फंसे पड़े थे। उन्होंने दुबई के लिए उड़ान पकड़ने से पहले कालिकट से दिल्ली और फिर शिकागो की 46 घंटे लंबी यात्रा की।
इस उपाय से प्रेरित और भी पैरेंट्स इस रास्ते को अपना रहे हैं।
ऑनलाइन पहल 'टेकमेटोमम' में एक प्रशासक, नीता सलाम ने कहा कि कई सारे माता-पिता यूएई के लिए इस रास्ते के बारे में पूछ रहे हैं। टेकमेटोमम समूह की स्थापना 200 से अधिक उन भारतीय माताओं ने किया है, जिनके बच्चे भारत में फंसे पड़े हैं।
सलाम ने कहा, "कम से कम छह पैरेंट्स ने मुझसे इस विकल्प के बारे में संपर्क किया है। यह एक हताशा भरा कदम है। लेकिन पैरेंट्स को लगता है कि उनके पास कोई दूसरा विकल्प नहीं है।"
दुबई स्थित एक पैरेंट, जिसका बेटा नई दिल्ली में फंसा पड़ा है, ने खलीज टाइम्स से कहा, "मैंने अपने बेटे के लिए मंगलवार को वाशिंगटन के लिए टिकट बुक किया। विचित्र बात यह है कि जब अमेरिका और भारत में लॉकडाउन घोषित हुआ था, मैंने उसे अमेरिका से भारत भेज दिया यह सोचकर कि वहां से उसे यूएई लाने में आसानी होगी। वह एक अमेरिकी विश्वविद्यालय का छात्र है। अब उसे वापस अमेरिका लौटना पड़ रहा है।"
चूंकि अमेरिका में अलग-अलग राज्य के अलग-अलग कानून हैं, लिहाजा बच्चों को 14 दिनों के क्वोरंटीन के लिए नहीं कहा जाता है।
बेरुत, अगस्त 5 (आईएएनएस)| लेबनान की राजधानी बेरूत में हुए दो बड़े विस्फोटों में अब तक 50 से अधिक लोग के मारे जाने और करीब ढाई हजार लोगों के घायल होने की सूचना मिली है। स्वास्थ्य मंत्री हमद हसन ने ये जानकारी दी है। समाचार एजेंसी सिन्हुआ ने बताया कि विस्फोट मंगलवार शाम (लगभग 6.10 बजे - स्थानीय समय) पर हुए। ये विस्फोट इतने शक्तिशाली थे कि इससे पूरे शहर की इमारतें थर्रा गईं, जो इतने बड़े इंसानी नुकसान का कारण बनीं।
अल-जेडेड टीवी ने हसन हवाले से कहा विस्फोटों में 50 से अधिक लोग मारे गए हैं और करीब 2,500 लोग घायल हो हुए।
मरने वालों की गिनती अभी जारी है, लिहाजा हताहतों की संख्या बढ़ने की आशंका है।
लेबनान के प्रधानमंत्री हसन दीब ने अपने सहयोगी देशों से आग्रह किया है कि वे लेबनान को विनाशकारी विस्फोटों के नतीजों से उबरने में मदद करें।
इस बीच डायब ने विस्फोटों में मारे गए लोगों के शोक में बुधवार को राष्ट्रीय शोक दिवस घोषित किया है।
लेबनान के राष्ट्रपति मिशेल एउन ने विस्फोटों के कारणों और नतीजों पर चर्चा करने के लिए उच्च रक्षा परिषद की एक आपात बैठक बुलाई है। अब तक धमाकों के पीछे के कारणों का पता नहीं चला था। लेकिन लेबनान के आंतरिक मंत्री मोहम्मद फहमी ने आशंका जताई कि पोर्ट ऑफ बेरूत में संग्रहीत विस्फोटक रसायन इन धमाकों के लिए जिम्मेदार हो सकते हैं।
फहमी ने कहा, "सीमा शुल्क अधिकारियों से पोर्ट ऑफ बेरूत में ऐसी रासायनिक सामग्री के भंडारण के पीछे के कारणों के बारे में पूछा जाना चाहिए।"
विस्फोट से हुए नुकसान को लेकर इस क्षेत्र के कई देशों ने लेबनान के साथ सहानुभूति जताई है। कोविड-19 महामारी और उसके कारण आर्थिक संकट से जूझ रहे लेबनान के लिए ये विस्फोट एक और बड़ा झटका हैं।
GOD BLESS LEBANON pic.twitter.com/nRvN3nmgBN
— Vinod Kapri (@vinodkapri) August 4, 2020
ईरान के विदेश मंत्री मोहम्मद जवाद जरीफ ने मंगलवार को कहा कि वह लेबनान को मदद देने के लिए तैयार है। जरीफ ने ट्वीट किया, "हमारी प्रार्थनाएं लेबनान के लोगों के साथ हैं। हमेशा की तरह ईरान हर आवश्यक सहायता देने के लिए पूरी तरह से तैयार है।"
Our hearts go out to you in your time of sorrow Lebanon.
— Arjun (@arjundsage) August 5, 2020
Words seem inadequate to express the sadness we feel.
May the comfort of God help you during this difficult time.
It’s important for the world to stand up #PrayForLebanon
pic.twitter.com/IhAX5vx7eR
इसके अलावा तुर्की, मिस्त्र और फिलीस्तीन ने भी इस विस्फोट में मारे गए लोगों और उनके परिवारों के प्रति अपनी संवदेनाएं जताईं हैं। साथ ही लेबनान के साथ एकजुटता दिखाते हुए मदद का भरोसा दिलाया है।
अमेरिका के वाशिंगटन में भारतीय समुदाय के लोग कैपिटल हिल पर इकट्ठा होकर रामजन्मभूमि भूमिपूजन की ख़ुशी मना रहे हैं.. (ANI)
बीजिंग, 4 अगस्त (आईएएनएस)| डब्ल्यूएचओ स्वास्थ्य आपातकालीन परियोजना के प्रधान माइकल रयान ने कहा कि चीन के वूहान शहर में क्यों नये कोरोनावायरस संक्रमण का पता चला क्योंकि इसकी ऐसी निगरानी प्रणाली उपलब्ध है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि वूहान शहर नये कोरोनावायरस का उद्गम स्थल है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक ट्रेडोस ने घोषित किया कि विश्व भर के लोगों को मास्क पहनने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा। भीड़-भाड़ वाले स्थलों पर मास्क पहनने की बड़ी जरूरत है, जो कि वायरस को रोकने के लिए आवश्यक है और इससे एकता का प्रतीक का भी पता चलता है।
उन्होंने कहा कि चिकित्सकों को जरूर मास्क पहनना चाहिए और साथ ही भीड़ों से बचना, खांसी होने पर मुंह ढकना तथा अकसर हाथ धोने का आदत बनाये रखना चाहिये। चीन, दक्षिण कोरिया, इटली आदि देशों के तथ्यों से यह साबित है कि महामारी को नियंत्रित करना और वायरस के प्रसार को रोकना संभव है।
ट्रेडोस ने कहा कि वर्तमान में कोविड -19 के लिए कोई रामबाण नहीं है, और शायद ऐसी दवा कभी होगी भी नहीं। वर्तमान में प्रकोप को रोकने के लिए सार्वजनिक स्वास्थ्य और रोग नियंत्रण के बुनियादी उपकरणों पर निर्भर है।
बीजिंग, 4 अगस्त (आईएएनएस)| अमेरिका के जॉन्स हॉपकिन्स विश्वविद्यालय द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार अमेरिका में कोविड-19 के पुष्ट मामलों की कुल संख्या 46 लाख से अधिक हो गई है और मौत के मामलों की संख्या 1 लाख से ज्यादा है। देखा जा सकता है कि महामारी अब भी अमेरिका में तेजी से फैल रही है। पिछले जनवरी में देश में पहला मामला आने के बाद अमेरिका ने महामारी को राजनीतिक मुद्दा बनाने की कोशिश शुरू की। इसके अतिरिक्त नस्लवाद विरोधी प्रदर्शन बार-बार हुए और अर्थव्यवस्था को बचाने में भारी राशि का इस्तेमाल किया गया।
सर्वविदित है कि अमेरिका में आम चुनाव होने वाले हैं। महामारी को राजनीतिक मसला बनाना अपरिहार्य है। लेकिन यह स्पष्ट है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का सार्वजनिक विश्वास महामारी की वजह से कमजोर हो रहा है।
अमेरिकी विश्वविद्यालय द्वारा जारी जनमत संग्रह के परिणाम के अनुसार कोरोना वायरस से जुड़ी सूचनाओं की चर्चा में 65 प्रतिशत उत्तरदाता पूर्ण रूप से अमेरिकी संक्रामक रोग विशेषज्ञ एंथोनी फौसी पर विश्वास करते हैं, जबकि 67 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने कहा कि वे ट्रंप पर भरोसा नहीं करते हैं।
हालांकि विपक्षी पार्टी ने विरोध किया, लेकिन ट्रंप और उप राष्ट्रपति माइक पेंस लंबे समय तक सार्वजनिक स्थलों में मास्क पहनने से परहेज करते रहे, जिससे मास्क विवाद का केंद्र बना।
इसके अतिरिक्त, कोविड-19 महामारी से अमेरिका में चिकित्सा व्यवस्था की कमी भी दिखाई गई। निजी विभाग अमेरिका में चिकित्सा सेवा के मुख्य प्रदाता हैं, जिसके कारण सरकार को सभी मरीजों का इलाज करने के लिए भारी कीमत चुकानी पड़ती है।
जॉन्स हॉपकिन्स विश्वविद्यालय के प्रोफेसर विलियम चेक्ली ने कहा कि समस्या यह है कि अमेरिका के अस्पतालों में गैर बीमा मरीजों को भर्ती नहीं किया जा सकता है।
दरअसल, दुनिया में सबसे विकसित देश होने के नाते अमेरिका में सबसे श्रेष्ठ चिकित्सा उपकरण और तकनीकें मौजूद हैं, औद्योगिक विनिर्माण का आधार भी मजबूत है। अगर अमेरिका समस्या को स्वीकार करे और अन्य देशों के साथ कोरोना वायरस के खिलाफ लड़ाई लड़ेगा, तो महामारी पर जल्द ही काबू पाया जा सकेगा।
हमजा अमीर
इस्लामाबाद, 4 अगस्त (आईएएनएस)| इस्लामाबाद हाईकोर्ट (आईएचसी) ने कुलभूषण जाधव मामले में प्रधानमंत्री इमरान खान की संघीय सरकार से भारत को कानूनी प्रतिनिधि नियुक्त करने के लिए और समीक्षा ट्रायल को सिविल कोर्ट के जरिए होने देने का एक और मौका देने को कहा है।
यह निर्देश सोमवार को दिया गया, जब आईएचसी की दो सदस्यीय पीठ भारतीय नागरिक के मामले की सुनवाई कर रही थी, जिन्हें पाकिस्तानी सैन्य अदालत द्वारा मौत की सजा दी गई है।
अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (आईसीजे) के निर्णय के अनुरूप रक्षा सचिव द्वारा दायर की गई याचिका में जाधव के लिए एक कानूनी प्रतिनिधि (वकील) नियुक्त करने की मांग की गई है।
पाकिस्तान के अटॉर्नी जनरल (एजीपी) खालिद जावेद खान ने अदालत को सूचित किया कि जाधव को अवैध रूप से पाकिस्तान में प्रवेश करने के लिए तीन मार्च 2016 को गिरफ्तार किया गया था। खान ने अदालत को बताया कि 'जाधव एक भारतीय जासूस है, जो भारत के रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) के साथ काम कर रहा था और उसने मजिस्ट्रेट के सामने अपने बयान में जासूसी गतिविधियों में शामिल होने की बात कबूल की है।'
एजीपी खान ने कहा, सैन्य अदालत ने आर्मी एक्ट और ऑफिशियल सीक्रेट एक्ट के अनुसार जाधव को ट्रायल करने के बाद सजा सुनाई थी, जिसके बाद 2017 में भारत ने आईसीजे का दरवाजा खटखटाया।
पीठ में हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश अतहर मिनल्ला और न्यायमूर्ति मियांगुल हसन औरंगजेब शामिल हैं। पीठ ने सरकार से भारत को एक और मौका देने और मामले में कानूनी प्रतिनिधि नियुक्त करने की पेशकश करने को कहा।
मुख्य न्यायाधीश ने कहा, चूंकि अब यह विषय हाईकोर्ट में है, ऐसे में भारत को दूसरा मौका क्यों नहीं दिया जा रहा। भारत सरकार या जाधव अपने फैसले पर पुनर्विचार कर सकते हैं।
अदालत ने सुनवाई के लिए एक बड़ी पीठ का गठन करने का भी फैसला किया और वरिष्ठ वकीलों आबिद हसन मंटो, आबिद खान और मखदूम अली खान को एमिकस क्यूरी नियुक्त किया।
इस मामले की सुनवाई तीन सितंबर तक के लिए स्थगित कर दी गई है।
सुनवाई के दौरान एजीपी ने कहा, आईसीजे के आदेशों का पालन करते हुए एक अध्यादेश जारी किया गया है और जाधव को उनकी सजा के खिलाफ पुनर्विचार (समीक्षा) याचिका दायर करने का मौका दिया गया है।
उन्होंने कहा, जाधव को उनकी मौत की सजा के खिलाफ पुनर्विचार अपील दायर करने का पूरा अधिकार दिया गया है। भारत अब आईसीजे के फैसले से भाग रहा है।
जाधव को 'जासूसी' के आरोप में पाकिस्तान की सैन्य अदालत ने अप्रैल 2017 में मौत की सजा सुनाई थी। भारत ने इस फैसले को चुनौती देने के लिए आईसीजे का दरवाजा खटखटाया था। हेग स्थित आईसीजे ने मौत की सजा पर रोक लगा दी थी और कहा था कि पाकिस्तान को जाधव को दोषी ठहराने और सजा की प्रभावी समीक्षा करनी चाहिए और बिना देरी भारत को राजनयिक पहुंच प्रदान करनी चाहिए।
अफगानिस्तान की जेल पर हमला करके बहुत से लोगों को मारने वाले एक आत्मघाती बमबाज के बारे में एक पत्रकार और लेखक राहुल पंडित ने लिखा है कि कालूकेट्टिया पुरायिल इजास नाम का यह व्यक्ति केरल का रहने वाला है। उन्होंने यह जानकारी खुफिया सूत्रों से मिली हुई बताई है। उन्होंने लिखा है कि यह आदमी अपने परिवार के साथ 2016 में हैदराबाद से मशकट होते हुए अफगानिस्तान चले गया था, और उसकी पत्नी और बच्चा अभी अफगान अधिकारियों के कब्जे में है।
इस्लामिक स्टेट गु्रप के उग्रवादियों ने सोमवार की सुबह अफगानिस्तानी सुरक्षा बलों के साथ जलालाबाद के पूर्वी भाग में संघर्ष को अंजाम दिया। अधिकारियों ने बताया कि इस्लामिक स्टेट के लड़ाकों ने जेल तोडक़र कैदियों को निकाल बाहर करने के लिए पूरी रात सुरक्षा बलों के साथ संघर्ष किया। यह संघर्ष अभी जारी है।
पुलिस अधिकारियों ने बताया कि इस लड़ाई की शुरूआत रविवार की शाम को हुई जब कारागार के गेट पर कार में बम धमाका हुआ। उन्होंने कहा कि हमने इसके बाद एक के बाद एक कई धमाकों की जोरदार आवाजें सुनीं और आईएस बंदूकधारियों ने सुरक्षा गार्ड पर भी गोलियां चलाई।
नान्गरहर प्रांत के अधिकारियों ने बताया कि रात भर चली गोलीबारी में 21 नागरिकों की जान चली गई और करीब 43 लोग घायल हो गए। इस घटना से मची अफरातफरी में करीब 75 कैदी जेल से भाग निकले। पुलिस उन्हें दोबारा पकड़ कर जेल में डालने के लिए अभियान चला रही है।
इस हमले की जिम्मेदारी आईएस ने ली है। अफगानिस्तान की खुफिया एजेंसी ने बताया कि स्पेशल फोर्सेस ने जलालाबाद के नजदीक आईएस समूह के सीनियर कमांडर को मार गिराया। इस घटना के बाद जेल तोडक़र कैदियों को छुड़ाने की घटना घटी। इस हमले की जिम्मेदारी आईएस ने ले ली।
सोहराब कादरी प्रांत के काउंसिल मेंबर ने कहा कि कारागार के बाहर कार में बम का धमाका बहुत जोरदार हुआ। इसके बाद दो थोड़े कम शक्तिशाली बम धमाके हुए। इसके बाद हमलावरों और पुलिस के बीच संघर्ष शुरू हो गया और यह रविवार की शाम को शुरू हुआ और सोमवार की सुबह तक चलता रहा।
सैन फ्रांसिस्को, 4 अगस्त (आईएएनएस)| ट्विटर पर सबसे बड़े हैक को अंजाम देने वाले लड़के को गिरफ्तार कर लिया गया है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, इस शख्स ने 30 लाख डॉलर यानी लगभग 22.5 करोड़ रुपये के बराबर बिटकॉइन कमाए हैं। 17 वर्षीय ग्राहम ईवान क्लार्क फ्लोरिडा से है, जिसने अपने दो साथियों की मदद से पिछले महीने बराक ओबामा, जो बिडेन, बिल गेट्स, जेफ बेजोस, इलॉन मस्क सहित 130 नामी-गिरामी हस्तियों के ट्विटर प्रोफाइल को हैक कर सबको चौंका दिया था। अमेरिकी न्याय विभाग द्वारा ग्राहम और उसके साथियों को दोषी करार दिया गया है।
टाम्पा बे टाइम्स के मुताबिक, फ्लोरिडा के टाम्पा से ताल्लुक रखने वाले इन लड़कों को इस सप्ताहांत में पहली बार कोर्ट में पेश किया गया और अपने इस काम को अंजाम देने के बारे में उन्होंने विस्तार से बताया।
क्लार्क को एक छोटे से कोर्टरूम में वीडियो स्क्रीन पर काउंटी जज जोएल एन ओबर के सामने पेश किया गया।
फ्लोरिडा के कानून के तहत क्लार्क के लंबित मुकदमे को निस्तारित करने के लिए तय की गई जमानत की राशि 750,000 डॉलर का दस प्रतिशत यानी 72,500 डॉलर लगेगा, क्योंकि उसकी उम्र कम है।
क्लार्क ने इस काम के लिए ऑरलैंडो के 22 वर्षीय नीमा फैजली और ब्रिटेन के 19 वर्षीय मेसन शेपर्ड से इस काम के लिए मदद ली थी।
न्याय विभाग ने पिछले हफ्ते अपने एक बयान में कहा, क्लार्क पर संचार धोखाधड़ी के 17 आरोप, व्यक्तिगत जानकारी के फर्जी उपयोग के लिए 11 और संगठित धोखाधड़ी के लिए एक-एक आरोप लगे हैं।
ब्रिटेन के 19 वर्षीय मेसन शेपर्ड पर वायर धोखाधड़ी, मनी लॉन्ड्रिंग की साजिश रचने और एक संरक्षित कम्प्यूटर के साथ जानबूझकर छेड़खानी करने के आरोप लगे हैं।
22 वर्षीय नीमा फैजली पर संरक्षित कम्प्यूटर के साथ जानबूझकर छेड़खानी करने और इस काम में बाकियों की सहायता करने के आरोप लगे हैं।
रियाद, 4 अगस्त (आईएएनएस)| सऊदी अरब में कोविड-19 महामारी के बीच इस साल की हज यात्रा संपन्न हुई। यहां के स्वास्थ्य अधिकारियों ने कहा कि हज यात्रा के दौरान पवित्र स्थलों पर कोरोनावायरस का कोई भी मामला सामने नहीं आया। समाचार एजेंसी सिन्हुआ की रिपोर्ट के अनुसार, हज की रस्में पूरी होने के बाद तीर्थयात्रियों ने सोमवार को मक्का से विदा ली।
ग्रैंड मस्जिद और पैगंबर की मस्जिद के मामलों की सामान्य प्रेसीडेंसी ने कोविड -19 के खिलाफ एहतियाती उपाय सुनिश्चित करते हुए तीर्थयात्रियों के लिए सभी जरूरी सुविधाएं प्रदान की थीं।
बता दें कि इस साल कोविड-19 महामारी के चलते तीर्थयात्रियों की सीमित संख्या के साथ राज्य ने एक असाधारण हज सीजन का आयोजन किया था। इस सीजन में केवल उन घरेलू तीर्थयात्रियों को ही हज करने की अनुमति दी गई जो या तो सऊदी अरब में रहते हैं या यहां के नागरिक हैं।
इस बीच, स्वास्थ्य मंत्रालय ने सोमवार को कोविड-19 के 1,258 नए मामलों की घोषणा की। इसके बाद यहां कुल संक्रमितों की संख्या बढ़कर 2,80,093 हो गई। वहीं अब तक 2,42,053 लोग इस बीमारी से उबर चुके हैं।
हालांकि पिछले 24 घंटों के दौरान 32 लोगों की मौत के साथ मरने वालों की कुल संख्या बढ़कर 2,949 हो गई है।