राष्ट्रीय
रीवा, 25 दिसंबर | कोरोना संक्रमण के कारण शिक्षण संस्थान बंद चल रहे हैं और बच्चों के सामूहिक मेल मुलाकात पर रोक लगी हुई है। इस आपदा के काल को मध्य प्रदेश के कई हिस्सों के बच्चों ने अवसर में भी बदला है और वे तकनीक के दोस्त बन गए हैं। शिक्षण संस्थानों के बंद होने के बाद ऑनलाइन कक्षाओं की शुरूआत हुई। बीते नौ माह से यह सिलसिला जारी है। बड़ी संख्या में बच्चे ऐसे थे जो ऑनलाइन पढ़ाई से कतराते रहे हैं और माता-पिता की बात को भी नहीं सुनते थे, मगर कोरोना काल में उन्होंने ऑनलाइन पढ़ाई की और वे इस तकनीक से भी बेहतर तरीके से वाकिफ हुए हैं।
रीवा के छात्र अखिल पटेल बताते हैं कि, "कोरोना काल में उनकी पढ़ाई ऑनलाइन हुई है, पहले ऑनलाइन पढ़ाई करने का मन नहीं करता था, मगर स्कूल बंद होने के बाद ऑनलाइन पढ़ाई करने लगे हैं। तकनीक को भी अब बेहतर तरीके से जानने लगे हैं।"
छात्रा अवनी एंगल कहती हैं कि, "यह बात सही है कि कोरोना कॉल को छात्रों ने अवसर में बदला है और ऑनलाइन पढ़ाई की है, मगर अब वे परेशान हैं और चाहते हैं की स्कूल पहले की तरह खुल जाएं।"
रीवा के गैर सरकारी संगठन रिएक्ट संस्था के मुकेश एंगल कहते हैं कि, "बच्चों में अब बोरियत बढ़ने लगी है, बच्चों की बोरियत को कम करने के लिए चाइल्ड राइट ऑब्जर्वेटरी ने तरह-तरह के ऑनलाइन कार्यक्रमों का आयोजन किया, मुखौटा बनाना, पेंटिग, कहानी, स्वास्थ्य संबंधी समस्या, सुरक्षा आदि पर सोशल मीडिया के प्लेटफार्म पर खुलकर संवाद हुआ। इससे जहां बच्चों ने विविध कलाओं को सीखा, वहीं व्यस्त भी रहे। अब बच्चों की इच्छा यही है कि स्कूल खुल जाएं ताकि पहले जैसी जिंदगी जी सकें।"
वे आगे कहते हैं कि, "यह बात सही है कि ऑन लाइन से अब बच्चे बेहतर तरीके से वाकिफ हो गए है, कुल मिलाकर इस मामले में आपदा बच्चों के लिए अवसर बनी है। बच्चों के लिए ऑन लाइन पढ़ाई या सोशल मीडिया के प्लेटफार्म पर संवाद उलझन भरा नहीं रहा है।"
जानकारों का मानना है कि स्कूल को लोग सिर्फ पढ़ाई का स्थान मानते हैं, जबकि यह बच्चों के लिए अलग ही दुनिया है, यहां बच्चे अपने में खोए रहते हैं उनका तरह-तरह के शिक्षकों से मिलना जुलना होता है। (आईएएनएस)
जम्मू, 25 दिसम्बर | नियंत्रण रेखा (एलओसी) पर लगातार संघर्ष विराम उल्लंघन जारी रखते हुए पाकिस्तान ने फिर से जम्मू एवं कश्मीर के पुंछ जिले में शुक्रवार को भारतीय चौकियों को निशाना बनाते हुए भारी गोलाबारी की, जिसमें दो सेना के पोटर्स घायल हो गए। पुलिस सूत्रों ने कहा कि पाकिस्तान ने शुक्रवार को पुंछ जिले में नियंत्रण रेखा (एलओसी) पर भारतीय सेना की बांदी पोस्ट को निशाना बनाया।
सूत्रों ने कहा, "पाकिस्तान द्वारा गोलीबारी में अल्ताफ हुसैन और मोहम्मद सुलेमान के रूप में पहचाने जाने वाले सेना के लिए काम करने वाले दो पोटर्स घायल हो गए। घायल पोर्टरों को इलाज के लिए अस्पताल भेज दिया गया है।"
आपको बता दें, पोटर्स वो होते हैं, जो सेना के सहयोगी के तौर पर उनका समान उठाने का काम करते हैं। खासतौर से पहाड़ी इलाकों में।
इस साल की शुरूआत से ही पाकिस्तान साल 1999 में दोनों देशों द्वारा हस्ताक्षरित द्विपक्षीय युद्धविराम समझौते का लगातार उल्लंघन करता आ रहा है।
जम्मू एवं कश्मीर में इस साल एलओसी पर पाकिस्तान द्वारा करीब 3,200 बार संघर्ष विराम उल्लंघन किया गया है, जिसमें 30 नागरिक मारे गए हैं और 102 से अधिक घायल हुए हैं। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 25 दिसंबर | केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता राज्य मंत्री रामदास आठवले ने तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग को लोकतंत्र के लिए खतरा बताया है। उन्होंने कहा है कि कानून वापस लेना नामुमकिन है। केंद्रीय राज्य मंत्री आठवले ने अपने चिरपरिचित अंदाज में पंचलाइन देते हुए कहा- "कानून वापस लेना नहीं आसान, फिर क्यों कर रहे हो आंदोलन किसान।" केंद्रीय राज्य मंत्री रामदास आठवले ने अपने एक बयान में कहा, "आने वाले बजट सेशन में कृषि कानूनों में कुछ सुधार हो सकता है। ऐसे में किसानों को सरकार के प्रस्ताव को मानकर आंदोलन खत्म करना चाहिए। मुझे लगता है कि तीनों कानून किसानों के भले के लिए हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कई राज्यों के किसानों के साथ बात करते हुए उनकी शंकाएं दूर की हैं।"
रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया(ए) के राष्ट्रीय अध्यक्ष और मोदी सरकार में मंत्री रामदास आठवले ने किसानों से आंदोलन खत्म करने की अपील की है। उन्होंने कहा है कि फिर प्रधानमंत्री मोदी ने साफ कर दिया है कि किसानों को मजबूत करने और उनकी आमदनी बढ़ाने के लिए सरकार सत्ता में आई है। मोदी सरकार ज्यादा से ज्यादा किसानों के लिए कार्य कर रही है। वर्ष 2014 से लेकर 2020 तक ज्यादा से ज्यादा बजट किसानों के लिए दिया है।
रामदास आठवले ने कहा कि वर्ष 2013-14 में किसानों के लिए यूपीए सरकार में 21,900 करोड़ रुपये का वार्षिक बजट था, लेकिन मोदी सरकार का 2020-21 का बजट 1 लाख 34 हजार 339 करोड़ रुपये का है।
केंद्रीय राज्य मंत्री रामदास आठवले ने कहा, "कृषि कानून वापस लेना नामुमकिन है। कानून वापस लेने की मांग लोकतंत्र में खतरा पैदा करने वाली है। कुछ नेता किसानों को गुमराह करने की बात कर रहे हैं। मैं आंदोलनरत किसानों निवेदन करना चाहता हूं कि ये काला कानून नहीं है। ये कानून किसानों की भलाई का कानून है। इसलिए आप लोग सरकार से बातकर आंदोलन को वापस लीजिए।" (आईएएनएस)
सुमित कुमार सिंह
नई दिल्ली, 25 दिसंबर | आतंकवाद से निपटने के लिए अपनी क्षमता बढ़ाने के उद्देश्य से भारत की घरेलू खुफिया एजेंसी और आंतरिक सुरक्षा की निगरानी करने वाली इंटेलिजेंस ब्यूरो (आईबी) अपने मल्टी-एजेंसी सेंटर (मैक) नेटवर्क को जिला स्तर तक बढ़ा रही है।
आईबी का मैक नेटवर्क अब पूरे देश में 825 स्थानों को कवर करेगा।
वर्तमान में मैक के नेटवर्क में कुल 374 स्थान कवर होते हैं, जिसे दिसंबर 2001 में कारगिल संघर्ष के बाद बनाया गया था। इसे आतंकवाद से संबंधित सभी खुफिया सूचनाओं को साझा करने और उनका विश्लेषण करने के उद्देश्य से एक मंच के रूप में स्थापित किया गया था।
नेटवर्क को अब राज्य पुलिस प्रमुखों के परामर्श से चयनित 475 जिलों तक बढ़ाया जा रहा है। 475 चिन्हित स्थानों में से 451 को कनेक्टिविटी प्रदान करने के लिए संभव पाया गया है, जिसमें से 174 जिले पहले से ही जुड़े हुए हैं। जब इस पर काम पूरा हो जाएगा, तो यह नेटवर्क देश के 825 स्थानों को कवर करेगा।
21 दिसंबर को संसद में रखी गई गृह मंत्रालय की अनुदान मांगों पर राज्यसभा में कांग्रेस के उपनेता आनंद शर्मा की अध्यक्षता में गृह मामलों की संसदीय स्थायी समिति की एक रिपोर्ट में यह खुलासा किया गया।
मैक ने आतंकवाद से संबंधित जानकारी और डेटा को साझा करने के लिए संचार और कनेक्टिविटी की एक व्यापक प्रणाली स्थापित की है।
इस उद्देश्य के लिए राष्ट्रीय राजधानी 25 केंद्रीय सदस्य एजेंसियों और सभी राज्यों की राजधानियों से जुड़ी हुई है।
सरकार ने अब मैक नेटवर्क बेस का विस्तार करने की योजना बनाई है।
आईबी की अध्यक्षता फिलहाल 1984 बैच के आईपीएस अधिकारी अरविंद कुमार कर रहे हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है, "एनएमबी सॉफ्टवेयर में सभी मैक और राज्य पुलिस सर्वरों पर इस्तेमाल किया गया है। इंटेलिजेंस ब्यूरो और कुछ अन्य राज्यों सहित कई अन्य एजेंसियों की ओर से डेटाबेस पर पहले ही बड़ी मात्रा में डेटा अपलोड किया जा चुका है।"
इसके अलावा मैक संबंधित एजेंसियों से संबंधित औसतन हर दिन लगभग 150 इनपुट्स को इकट्ठा करता है, स्टोर करता है और इनके साथ साझा करता है। इसके बाद विशेष अलर्ट जारी किया जाता है। (आईएएनएस)
चंडीगढ़, 25 दिसंबर | पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की 96वीं जयंती के अवसर पर पंजाब और हरियाणा में प्रदर्शनकारी किसानों और भाजपा कार्यकर्ताओं के बीच शुक्रवार को तनाव बना रहा। किसान भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार की ओर से लाए गए तीन कृषि कानूनों का विरोध कर रहे हैं।
पंजाब और हरियाणा के कुछ स्थानों पर भाजपा कार्यकर्ता और किसानों के बीच मामूली झड़पें हुईं। पंजाब के बठिंडा और जालंधर और हरियाणा के कैथल शहर में झड़प देखी गई।
बठिंडा में उत्तेजित किसान उस स्थान पर पहुंचे, जहां भाजपा कार्यकर्ता वाजपेयी की जयंती मनाने के लिए एक समारोह आयोजित करने जा रहे थे। आरोप लगाया गया है कि उनके साथ कथित तौर पर मार-पिटाई की गई और पथराव किया गया।
प्रदर्शनकारियों को खदेड़ने के लिए पुलिस को हलका बल प्रयोग करना पड़ा।
बाद में किसान वहां धरने पर बैठ गए।
किसान यूनियन भाकियू (एकता उग्राहन) के नेता मोथू कोटरा ने कहा, "किसान दिल्ली की सीमाओं पर भीषण ठंड के बावजूद खुले में बैठे हैं और भाजपा यहां कुछ जश्न मना रही थी। विरोध के तौर पर हमने उन्हें समारोह को करने की अनुमति नहीं दी।"
उन्होंने कहा, "राज्य के भाजपा नेताओं के खिलाफ हमारा विरोध तीन महीने से अधिक समय से चल रहा है।"
इसी तरह किसानों ने भाजपा को जालंधर शहर में भी ऐसा ही आयोजन नहीं करने दिया।
हरियाणा के कैथल शहर में भी किसान काफी आक्रामक देखे गए। किसानों के विरोध के चलते प्रदेश में भाजपा की सहयोगी जननायक जनता पार्टी (जजपा) के विधायक ईश्वर सिंह को 'सुशासन दिवस' के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम बीच में ही छोड़ना पड़ा। उन्हें किसानों के सामूहिक विरोध का सामना करना पड़ा, जिसके बाद वह कार्यक्रम छोड़ने को मजबूर हो गए।
कार्यक्रम स्थल को छोड़ते समय पुलिस ने विधायक को सुरक्षा की दृष्टि से वहां से निकलने में मदद की।
तीन विवादास्पद कृषि कानूनों के खिलाफ अपना विरोध दर्ज कराने के लिए किसानों ने शुक्रवार को पूरे हरियाणा में तीन दिनों के लिए टोल प्लाजा पर विरोध जताने का निर्णय लिया है। (आईएएनएस)
लॉकडाउन के दौरान लुटते पिटते घर लौटते प्रवासी कामगारों में से कुछ अब अपना कारोबार शुरू कर चुके हैं. कोई मोबाइल स्टोर खोल चुका है तो कोई इलेक्ट्रिशियन का काम करने लगा है. भारत में चुपचाप ये बदलाव भी हुआ है.
लॉकडाउन के दौरान शुभम सक्सेना ने इलेक्ट्रिशियन बनने का ऑनलाइन कोर्स शुरू किया. उनके ज्यादातर छात्र प्रवासी कामगार थे. क्लास के शुरुआती दिनों तो शुभम यही समझाते रहे कि स्मार्टफोन पर म्यूट बटन कैसे इस्तेमाल करें.
भारत में कोरोना वायरस के कारण लगाए गए लॉकडाउन ने लाखों प्रवासी कामगारों की रोजी रोटी छीन ली. मार्च से लेकर जून की शुरुआत तक लगे लॉकडाउन की सबसे बुरी मार इन्हीं लोगों पर पड़ी. लाखों प्रवासी कामगार तपिश भरी गर्मी के बीच जब घर लौट रहे थे, तब उनकी तस्वीरें पलायन की त्रासदी बता रही थीं. वापसी की उस पीड़ा के बाद कइयों ने ठान लिया कि अब वे वापस शहर नहीं लौटेंगे. हालांकि गांव देहातों में रोजगार कैसे शुरू किया जाए? यह एक बड़ी समस्या है.
ऑनलाइन ट्रेनिंग
इसी दौरान शुभम सक्सेना ने ऑनलाइन ट्रेनिंग कोर्स शुरू किया. 26 साल के शुभम कहते हैं, "प्रतिक्रिया उत्साह बढ़ाने वाली थी और हमने अपने छात्रों को खुद की दुकान खोलने के लिए प्रेरित किया.” ऑनलाइन पढ़ाई के लिए प्लेटफॉर्म स्पायी और जस्टरोजगार जैसी स्टार्टअप कंपनी ने तैयार किए हैं.
शुभम इसे बड़ा बदलाव कहते हैं, "सच तो यह है कि लॉकडाउन के दौरान कई कामगार उद्यमी बन गए, कुछ ने अपना फूड स्टॉल शुरू किया, सब्जियां बेचनी शुरू की और कुछ ने छोटा मोटा कारोबार शुरू किया.”
एक अनुमान के मुताबिक 10 करोड़ भारतीय दिहाड़ी कामगार हैं. उनके पास कोई रोजगार सुरक्षा नहीं है. ये वो लोग हैं जो भारत की शहरी अर्थव्यवस्था की जान थे. भवन निर्माण, कारखाने खड़े करना, सड़कें बनाना, टैक्सी चलाना या फिर सर्विस सेक्टर, ये सारी चीजें इन्हीं लोगों के जिम्मे रहती हैं. लेकिन इसके बावजूद लॉकडाउन के दौरान उन्हें मायूसी के साथ घर लौटना पड़ा.
सरकारी योजनाएं
घर लौटे प्रवासी कामगारों के लिए कुछ राज्य सरकारों ने रोजगार योजनाएं भी चलाईं हैं. भारत सरकार के स्किल इंडिया कार्यक्रम का लक्ष्य 2022 तक 40 करोड़ लोगों को नए हुनर सिखाना है. कुछ ऐसे ऐप्स भी बनाए गए हैं जो कामगारों को अपने कारोबार शुरू करने में मदद करें.
कौशल निर्माण मंत्रालय के सचिव प्रवीण कुमार कहते हैं, "जवनरी में हम एक पायलट प्रोजेक्ट शुरू कर रहे हैं, जिसके तहत जिला समितियां इस बात का पता लगाएंगी कि कौन सा हुनर सिखाकर इन कर्मचारियों को बेहतर रोजगार खोजने में मदद मिलेगी. ”
कुमार कहते हैं, "नया ऐप यूजर फ्रेंडली होगा, ये कई भाषाओं में होगा और कामगार अपनी योग्यता को पहचान सकेंगे. हम सस्ते स्मार्टफोनों के लिए भी कोर्स तैयार कर रहे हैं ताकि कामगार इसे इस्तेमाल कर सकें. इसमें प्रैक्टिकल और ऑलाइन ट्रेनिंग मॉड्यूल भी होंगे.”
22 साल के अंकित कुमार इलेक्ट्रिशियन बनाना चाहते हैं. वह शुभम सक्सेना की ऑनलाइन क्लासेज ले रहे हैं. उत्तराखंड के हरिद्वार जिले में रहने वाले अंकित कहते हैं, "मेरे गांव में लॉकडाउन के दौरान करीब 90 फीसदी लोग बेरोजगार हो चुके हैं.”
अंकित अपनी कहानी बताते हुए कहते हैं, "मैंने कॉलेज बीच में ही छोड़ दिया और एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी करने लगा. लेकिन अब मैं कुछ नया सीखना चाहता हूं. इस कोर्स की वजह से मैं बाहर नौकरी खोज सकूंगा और शायद ज्यादा पैसा भी कमा सकूंगा. हो सकता है कि मैं इलेक्ट्रिशियन के तौर पर अपनी दुकान ही शुरू कर दूं.”
नौकरी छोड़ खुद का काम
सेवार्थ संस्था आजीविका ब्यूरो के प्रोग्राम मैनेजर संजय चित्रोरा कहते हैं, "इन कोर्सों की मदद से कामगारों को जोखिम भरे और जिंदगी भर चलने वाले गैर उत्पादक रोजगार से अलग होने का मौका मिलेगा.”
आजीविका ब्यूरो कई स्किल सेंटर चला रहा है. संस्था के मुताबिक कम अवधि के कोर्सों में बड़ी संख्या में लोगों ने खुद को रजिस्टर कराया है. सबसे ज्यादा डिमांड मोटर साइकिल रिपयेरिंग कोर्स की है.
पश्चिमी राजस्थान के राजसमंद जिले में पिछले हफ्ते ही महादेव मोबाइल स्टोर खुला है. स्टोर के मालिक 23 साल के गणेश मेघवाल हैं. लॉकडाउन से पहले वह पड़ोसी राज्य गुजरात में कबाड़ का काम कर रहे थे. लॉकडाउन लगते ही जामनगर में गणेश की नौकरी चली गई.
आपाधापी में घर लौटे गणेश कहते हैं, "मैं डरा हुआ था और जान बचाने की फिक्र थी. मुझे एक महीने तक खुद को क्वारंटीन करना पड़ा. फिर मैंने 100 दिन ग्रामीण कामगार योजना में काम किया. फिर मैंने मोबाइल रिपेयर कोर्स किया और अब मेरी अपनी दुकान है.”
अब गणेश अपने घरवालों के साथ ही रहते हैं. मां बाप भी खुश है कि बेटा उनके साथ रह रहा है. आमदनी के बारे में गणेश कहते हैं, "यहां बहुत सारे मोबाइल स्टोर नहीं हैं और मैं सब कुछ करता हूं, मोबाइल रिपेयर भी करता हूं, रिचार्ज भी. मैं बिल जमा करने में लोगों की मदद भी करता हूँ और एसेसेरीज भी बेचता हूं.”
गणेश की पत्नी भी कुछ नया करना चाहती है, "मैं अब अपनी पत्नी के लिए उसकी पसंद का स्किल कोर्स खोज रहा हूं. मैं कोशिश कर रहा हूं कि वह एक कंप्यूटर कोर्स करे लेकिन उसे टेलरिंग ज्यादा पसंद हैं. कोर्स पूरा होने के बाद वह भी अपना काम शुरू कर सकती है.”
इस बीच शुभम सक्सेना के इलेक्ट्रिशियन ट्रेनिंग कोर्स में नए स्टूडेंट आए हैं. कोर्स चार महीने का है. शुभम कहते हैं, "इंटरनेट की कनेक्टिविटी चुनौती नहीं है, असली चैलेंज लोगों की सोच में बदलाव का है. उन्हें नौकरी करने वाली सोच को बदलकर नई शुरुआत करनी होगी. ये हमेशा आसान नहीं होता.”
ओएसजे/एनआर (थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन)
बिहार में लड़कियों को साइकिल देने की मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पहल ने सुर्खियां बटोरी थीं. आधी आबादी सशक्त तो हो रही है तो लिंगानुपात में भारी गिरावट आई है. प्रगतिवाद की आड़ में रूढ़िवादी अवधारणाएं आज भी मजबूत हैं.
डॉयचे वैले पर मनीष कुमार का लिखा-
बिहार, 25 दिसम्बर | नारी सशक्तिकरण के विभिन्न उपायों, खासकर बेटियों की शिक्षा ने बिहार में विभिन्न क्षेत्रों में नई इबारत लिखी है, किंतु बीते पांच साल में बेटियों की संख्या में आई गिरावट चिंताजनक है. पाचवें राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण की रिपोर्ट से जाहिर है कि राज्य में प्रति हजार नवजात लड़कों की तुलना में लड़कियों की संख्या में और 26 फीसदी की गिरावट हुई है. पांच साल पहले यानी 2015-16 के चौथे सर्वेक्षण में प्रति एक हजार लड़के पर लड़कियों की संख्या जहां 934 थी, 2019-20 में वह घटकर 908 हो गई. वैसे यह सुकून की बात है कि प्रदेश में नवजात शिशुओं की मृत्युदर में दो प्रतिशत की कमी आई है. चौथे सर्वेक्षण में यह आंकड़ा 36.7 फीसद था जो पांचवें सर्वेक्षण में घटकर 34.5 प्रतिशत रह गया है. ऐसा शायद इसलिए संभव हुआ है कि महिलाओं में अस्पतालों में प्रसव, वैक्सीनेशन व मां के दूध के प्रति जागरुकता बढ़ी है. संस्थागत प्रसव में 19.5 फीसद की बढ़ोतरी हुई है.
ग्रामीण क्षेत्रों में पहले से 11 प्रतिशत वहीं शहरी क्षेत्रों में 14 फीसद अधिक महिलाएं प्रसव कराने अस्पताल पहुंचने लगी हैं. आंकड़े बताते हैं कि अस्पतालों में डिलीवरी 76.2 प्रतिशत पर पहुंच गई है जबकि 12 से 23 महीने के बच्चों के वैक्सीनेशन के मामले में पांच साल पहले के 61.7 प्रतिशत की तुलना में आंकड़ा 71 प्रतिशत पर पहुंच गया है. अगर परिवार नियोजन की बात करें तो राज्य में महिलाएं पुरुषों की अपेक्षा ज्यादा सक्रिय हैं. विगत पांच वर्षों में महिला बंध्याकरण करीब 21 प्रतिशत से बढ़कर 35 प्रतिशत हो गया है. गर्भ निरोध के अन्य तरीके अपनाने के मामले में भी पुरुष महिलाओं से पीछे हैं. बिहार में कुल प्रजनन दर (टीएफआर) में भी कमी आई है. चौथे सर्वेक्षण की तुलना में बिहार में यह आंकड़ा 3.4 से घटकर तीन फीसद हो गया है.
बाधक है सामाजिक सोच
लिंगानुपात में आई कमी यह बताने को काफी है कि रूढ़िगत सामाजिक अवधारणाएं अब भी बरकरार है. समाजविज्ञानी एके पांडेय बताते हैं, "इस गिरावट का बड़ा कारण भ्रूण हत्या है. महिला के गर्भधारण करते ही पूरे परिवार की इच्छा यह जानने की होती है कि गर्भस्थ शिशु आखिर नर है या मादा. जैसे ही उन्हें लड़की के बारे में पता चलता है, वे गर्भपात की दिशा में बढ़ जाते हैं." चिकित्सक श्रीनिवास सिंह कहते हैं, "यह कहना गलत नहीं होगा कि आज भी राज्यभर में भ्रूण हत्या का काम निर्बाध जारी है. परिस्थिति के अनुसार डायग्नोस्टिक सेंटर वाले इसके लिए मनमानी कीमत वसूलते हैं. कहने के लिए तो लिंग परीक्षण प्रतिबंधित है किंतु ये खेल बदस्तूर जारी है. पकड़े जाने पर महज तीन साल की सजा का प्रावधान होने के कारण लोगों में बहुत डर भी नहीं रह गया है. इस घृणित व जघन्य कार्य में कुछ चिकित्सक भी संलग्न हैं."
साफ है कि जब सोच यही रहेगी तो स्थिति बदतर होती ही जाएगी. दरअसल आज भी भारतीय समाज में लड़कियों को बोझ माना जाता है. सामाजिक कार्यकर्ता संतोष कहते हैं, "समाज का स्वरुप परिवर्तित हुआ है, सोच नहीं. परंपराओं व मान्यताओं की वजह से समाज की वे बेड़ियां नहीं टूट सकी हैं जिसकी वजह से लड़कियों का लालन-पोषण कठिन माना जाता है. यह एक बड़ी वजह है जिसके कारण लोग लड़की के जन्म पर आज भी नाक-मुंह सिकोड़ने से गुरेज नहीं करते."
चहुंमुखी विकास योजनाओं का असर
सर्वेक्षण के आंकड़े गवाह हैं कि महिलाओं ने अन्य क्षेत्रों में कमोबेश खासी प्रगति की है. ऐसा प्रतीत होता है कि बिहार में लड़कियों को शिक्षित करने की विभिन्न सरकारी योजनाओं ने अपना असर दिखाया है. इनमें साइकिल, पोशाक व छात्रवृति जैसी योजनाएं हैं जिनकी वजह से बेटियों की शिक्षा में आठ फीसद का इजाफा हुआ है. लड़कियों में शिक्षा की दर 49.6 फीसद थी जो बढ़कर अब 58 प्रतिशत हो गई है. हालांकि साक्षर महिलाओं की संख्या अभी भी पुरुषों की तुलना में करीब 21 प्रतिशत कम है. लगता है कि शिक्षा की लौ शहरों की तुलना में ग्रामीण इलाकों में ज्यादा रोशन हुई है. इसलिए शहरी क्षेत्र में चार तो ग्रामीण इलाके में नौ प्रतिशत का इजाफा हुआ है. शिक्षा का ही असर है कि 15 से 24 वर्ष की लड़कियों द्वारा सैनिटरी पैड का इस्तेमाल भी बढ़ा है. 31 फीसद की जगह अब 59 प्रतिशत महिलाएं इसका उपयोग कर रहीं हैं. जाहिर है, महिलाएं हाइजीन के प्रति जागरुक हुई हैं.
चहुंमुखी विकास की इन योजनाओं का असर ही है कि बिहार की 86.5 प्रतिशत शादीशुदा महिलाएं घर के फैसले खुद करतीं हैं. चौथे सर्वेक्षण में यह संख्या 75 फीसद थी. मुख्यमंत्री नारी शक्ति योजना से जुड़े कार्यों का ही नतीजा है कि महिलाएं सशक्त हुईं हैं और घर के निर्णयों में इनकी भागीदारी बढ़ी है. महिलाओं के पास बैंक अकाउंट होने की संख्या में खासी वृद्धि दर्ज की गई है. 2015-16 के सर्वेक्षण के अनुसार 26.4 प्रतिशत महिलाओं के पास अपना बैंक अकाउंट था तो 2019-20 में यह आंकड़ा उछल कर 76.7 प्रतिशत पर पहुंच गया है. पत्रकार कौशल किशोर कहते हैं, "इससे इनकार नहीं किया जा सकता है कि आधी आबादी की दिशा और दशा, दोनों में ही सुधार हुआ है. सर्वेक्षण के आंकड़ों से यह साफ परिलक्षित हो रहा है. उम्मीद है जैसे- जैसे शिक्षा की लौ तेज होगी, सामाजिक समस्याएं भी उसी अनुपात में दूर होती जाएंगी." (dw.com)
प्रयागराज, 25 दिसम्बर | जाने-माने सहित्यकार और पद्मश्री शम्सुर रहमान फारूकी का शुक्रवार को निधन हो गया। उन्होंने प्रयागराज स्थित अपने घर में अंतिम सांस ली। उन्हें 23 नवंबर को दिल्ली के हॉस्पिटल से छुट्टी मिली थी। कोरोना संक्रमित होने के बाद उन्हें यहां भर्ती किया गया था। लेकिन, कोरोना से उबरने के बाद उनकी सेहत लगातार बिगड़ती जा रही थी। उनके निधन से पूरे सहित्य जगत में शोक की लहर है। डॉक्टरों की सलाह पर शुक्रवार को ही एयर एंबुलेंस से बड़ी बेटी वर्जीनिया में प्रोफेसर मेहर अफशां और भतीजे महमूद गजाली नई दिल्ली से उन्हें इलाहाबाद लेकर पहुंचे थे। घर पहुंचने के करीब 1 घंटे बाद ही उनकी सांसे थम गयीं।
शम्सुर रहमान के निधन से प्रयागराज समेत पूरा साहित्य जगत में शोक की लहर है। निधन की खबर सुनकर न्याय मार्ग स्थित आवास पर करीबियों-शुभचिंतकों के आने का सिलसिला जारी है।
अनेक पुरस्कारों से सम्मानित पद्मश्री फारूकी का जाना उर्दू अदब का बहुत बड़ा नुकसान है। उनके इंतकाल की खबर सुनकर न्याय मार्ग स्थित आवास पर करीबियों शुभचिंतकों के आने का सिलसिला शुरू हो गया।
साहित्यकार शम्सुर रहमान का जन्म 30 सितंबर 1935 में प्रयागराज में हुआ था। उन्होंने 1955 में इलाहाबाद विश्वविद्याल से अंग्रेजी में (एमए) की डिग्री ली थी। उनके माता-पिता अलग-अलग पृष्ठभूमि के थे - पिता देवबंदी मुसलमान थे, जबकि मां का घर काफी उदार था। उनकी परवरिश उदार वातावरण में हुई, वह मुहर्रम और शबे बारात के साथ होली भी मनाते थे।
शम्सुर फारुकी कवि, उर्दू आलोचक और विचारक के रूप में प्रख्यात हैं। उनको उर्दू आलोचना को टीएस इलिएट के रूप में माना जाता है और सिर्फ यही नहीं उन्होंने साहित्यिक समीक्षा के नए प्रारूप भी विकसित किए हैं। इनके द्वारा रचित एक समालोचना तनकीदी अफकार के लिए उन्हें सन 1986 में साहित्य अकादमी पुरस्कार (उर्दू) से भी सम्मानित किया गया था।
वरिष्ठ सहित्यकार और आलोचक वीरेंद्र यादव ने कहा कि, "शम्सुर रहमान उर्दू के ही नहीं बल्कि समस्त भारतीय भाषाओं की बड़ी प्रतिभा थे। बड़े आलोचक होने के साथ-साथ एक उपान्यासकार के रूप में उन्हें प्रसिद्धी प्राप्त थी। यह अत्यन्त दुर्लभ है। फारूखी साहब हिन्दुस्तानी बौद्धिक परंपरा के शीर्ष प्रतिनिधि थे। उनके निधन से समूचे भारतीय सहित्य की बड़ी क्षति हुई है। समस्त सहित्य समाज उनकी कमी को हमेशा महसूस करता रहेगा।"
साहित्यकार, पत्रकार और प्रोफेसर धनंजय चोपड़ा ने कहा कि, "फारूकी साहब समाज को जोड़े रखने वाली विरासत को आगे बढ़ाने में लगे थे। साहित्य की दुनिया उन्हें उर्दू के बड़े समालोचक की तरह देखती है, लेकिन वे इससे कहीं आगे बढ़कर एक ऐसे रचनाधर्मी थे, जो साहित्य को इंसानियत के लिए जरूरी मानते थे। वे कहते थे कि साहित्य ही है, जो हमारी गंगा-जमुनी विरासत को बचाए रख सकता है।" (आईएएनएस)
उमरिया, 25 दिसंबर | मध्य प्रदेश के उमरिया जिले में स्थित बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान के वन्य प्राणियों को पर्यटक आसमान से भी निहार सकेंगे, यहां 'बफर में सफर' योजना में हॉट एयर बैलून सफारी की शुरुआत की गई है। हॉट एयर बैलून सफारी की शुरुआत करते हुए राज्य के वन मंत्री कुंवर विजय शाह ने कहा है कि भारत की यह पहली बैलून सफारी है, जो किसी राष्ट्रीय उद्यान से जुड़े क्षेत्रों में पर्यटक वन्य प्राणी और प्राकृतिक हरियाली के अनुपम ²श्यों का आसमान से नराजा ले सकेंगे।
वनमंत्री शाह ने हॉट बैलून में बैठक कर उड़ान भरी। उन्होंने अपना अनुभव साझा करते हुए बताया कि 400 मीटर की ऊंचाई पर पहुंचकर आसमान से वन्य प्राणियों के अलार्मकाल और टाइगर की ग्राउलिंग की आवाज का ²श्य अलौकिक था। उन्होंने कहा कि बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान में अब सैलानी इस नई सुविधा का लुफ्त उठा सकेंगे।
वन मंत्री शाह ने बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व के बफर क्षेत्रों में नाइट सफारी प्रारंभ करने की घोषणा की, इससे लोगों को सूर्यास्त के बाद भी बफर क्षेत्रों में सफारी की सुविधा मिल सकेगी, इसके लिए शुल्क वही रहेगा जो दिन के लिए है।
उल्लेखनीय है कि सैलानी इसके पहले बांधवगढ़ राष्ट्रीय उद्यान में मौजूद दुर्लभ वन्य प्राणियों का दीदार जिप्सी और हाथी पर बैठक कर पाते थे। संभावना इस बात की है कि नई व्यवस्था से पर्यटकों की आवाजाही में बढ़ोतरी होगी। (आईएएनएस)
पटना, 25 दिसंबर | केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने शुक्रवार को कहा कि आयुर्वेद चिकित्सा में रस औषधियों का अपना एक विशेष स्थान रहा है। वास्तव में रस औषधियों का प्रचलन ही आशुकारी चिकित्सा के रूप में हुआ था। उन्होंने कहा कि कोरोना संक्रमण को भी रोकने में रस औषधियां विशेष रूप से प्रभावकारी हैं। प्रभावशाली रस औषधियों का निर्माण किया जाता है। कोविड-19 भी एक संक्रामक बीमारी है और इनमें भी आशुकारी चिकित्सा की जरूरत है।
पटना के राजकीय आयुर्वेदिक महाविद्यालय में दो दिवसीय 'रोल अफ रस औषधि इन मैनेजमेंट ऑफ कोविड-19' विषय पर आयोजित सेमिनार के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए केंद्रीय मंत्री ने कहा कि कोविड-19 निश्चित रूप से मानव जाति के लिए बहुत बड़े खतरे के रूप में उत्पन्न हुआ है।
इतिहास गवाह है कि जब-जब मानव जाति पर किसी भी प्रकार का आक्रमण हुआ है, हमारे ऋषि-महर्षियों ने उस आक्रमण से विश्व का बचाव किया है। आयुर्वेद की उत्पत्ति में भी कुछ इसी प्रकार की बातें देखने को मिलती हैं।
रस शास्त्र एवं भैषज्य कल्पना विभाग द्वारा आयोजित इस सेमिनार में चौबे ने कहा कि, "आज वैज्ञानिकों चिकित्सकों की जो यह बड़ी-बड़ी गोष्ठी आयोजित हो रही हैं। ऐसा पूर्व से हमारे इस महान देश में होता आ रहा है। चरक संहिता में तो कई स्थानों पर इस प्रकार की गोष्ठियों का वर्णन भी मिलता है।"
उन्होंने कहा, "मैंने देखा है कि कोविड-19 के इस संक्रमण काल में करोड़ों-करोड़ों भारतीय आयुष काढ़ा एवं आयुर्वेद में बताए गए इम्युनिटी बढ़ाने वाले उपाय एवं योग तथा प्राणायाम का सहारा लेकर अपने आप को सुरक्षित रख सके हैं।"
इस कार्यक्रम में साइंटिफिक स्टेशन के मुख्य वक्ता डॉ. प्रोफेसर आर के शर्मा, प्रोफेसर संजय कुमार, ने भी अपना व्याख्यान प्रस्तुत किया।
महाविद्यालय के प्राचार्य डा़ दिनेश्वर प्रसाद ने केंद्रीय मंत्री चौबे से संस्थान को राष्ट्रीय स्तर पर बनाने और राजगीर में नया राष्ट्रीय स्तर का आयुर्वेदिक संस्थान बनाने में अपना सहयोग देने का आग्रह किया। (आईएएनएस)
श्रीनगर, 25 दिसंबर | जम्मू और कश्मीर के शोपियां जिले में आतंकवादियों और सुरक्षा बलों के बीच शुक्रवार को मुठभेड़ शुरू हो गई। अधिकारियों ने यह जानकारी दी। सुरक्षाबलों ने आतंकवादियों के कनिंगम क्षेत्र में छिपे होने की खुफिया सूचना के आधार पर क्षेत्र को चारों तरफ से घेर लिया और तलाशी अभियान शुरू किया।
जैसे ही सुरक्षा बल आतंकवादियों के छिपे हुए स्थान की ओर आगे बढ़ने लगे, उन्होंने ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू कर दी।
पुलिस ने कहा, "जिसके बाद शोपियां के कनिंगम इलाके में मुठभेड़ शुरू हो गई। पुलिस और सुरक्षा बल काम में लगे हुए हैं।"
इससे पहले गुरुवार को बारामूला के करेरी क्षेत्र में सुरक्षाबलों के साथ मुठभेड़ में दो आतंकवादी ढेर हो गए थे। (आईएएनएस)
हैदराबाद, 25 दिसंबर | हैदराबाद में अवैध लोन ऐप्स मामले में जारी छापेमारी के बीच शुक्रवार को एक कॉल सेंटर पर छापे के दौरान गिरफ्तार चार लोगों में से एक चीनी नागरिक भी शामिल है। साइबराबाद की साइबर क्राइम पुलिस ने क्यूबेवो टेक्नोलॉजी प्राइवेट लिमिटेड (स्काइलाइन) कॉल सेंटर पर छापा मारा और चार कर्मचारियों- चीनी नागरिक यी बाई उर्फ डेनिस, सत्य पाल ख्यालिया, अनिरुद्ध मल्होत्रा (दोनों राजस्थान के रहने वाले) और आंध्र प्रदेश के मुरथोटी रिची हेमंत सेठ को गिरफ्तार किया।
साइबराबाद के पुलिस आयुक्त वी.सी. सज्जनार ने कहा कि एक अन्य चीनी नागरिक जिक्सिया झांग मामले का मुख्य आरोपी है और वह एक अन्य आरोपी उमापति उर्फ अजय के साथ फरार है।
जिक्सिया ने उमापति के साथ मिलकर डिजिपेर्गो टेक प्राइवेट लिमिटेड की शुरुआत पिछले साल की थी। उन्होंने सिंगापुर स्थित जिकाई होल्डिंग प्राइवेट लिमिटेड की मदद से एक और कंपनी स्काइलाइन इनोवेशन टेक्नोलॉजी इंडिया प्राइवेट लिमिटेड को शामिल किया। उसने इंस्टेंट लोन ऐप्लिकेशंस विकसित किए और उन्हें गूगल प्ले स्टोर पर होस्ट किया। उसने भारत में विभिन्न स्थानों पर कॉल सेंटर के रूप में कुछ और कंपनियों की स्थापना की और ग्राहकों से पुनर्भुगतान एकत्र करने के लिए टेली कॉलर को काम पर रखा।
कमिश्नर के अनुसार, आरोपी ने 11 इंस्टेंट लोन ऐप्लिकेशन विकसित किए जो व्यक्तियों को ऋण प्रदान करते हैं और ब्याज, प्रसंस्करण शुल्क, जीएसटी, डिफॉल्ट शुल्क, और ऋण अवधि की समाप्ति के बाद एक प्रतिशत जुर्माना सहित भारी भुगतान एकत्र करते हैं। वे चलाए जा रहे कॉल सेंटरों के माध्यम से डिफॉल्टरों को परेशान करते और धमकियां देते। उन्होंने कर्जदारों के रिश्तेदारों और परिवार के सदस्यों को फर्जी कानूनी नोटिस भेजकर कर्जदारों को ब्लैकमेल भी किया।
लोन ऐप्स में लोन ग्राम, कैश ट्रेन, कैश बस, ट्रिपल ए कैश, सुपर कैश, मिंट कैश, हैप्पी कैश, लोन कार्ड, रीपे वन, मनी बॉक्स, मंकी बॉक्स आदि हैं।
साइबर अपराध पुलिस स्टेशन ने हाल ही में एक नागरिक की शिकायत के बाद लोन ऐप्लिकेशन के खिलाफ आठ मामले दर्ज किए थे। शिकायतकर्ता ने कहा कि उसने 28 इंस्टेंट लोन ऐप से 1.20 लाख रुपये का ऋण प्राप्त किया और हालांकि, उसने 2 लाख रुपये की ऋण राशि का भुगतान किया, लेकिन उसे अपमानजनक और धमकी भरे कॉल मिले।
इन कंपनियों द्वारा विकसित किए गए ऐप्लिकेशंस साइबरबाद, हैदराबाद और राचकोंडा पुलिस कमिश्नरेट में दर्ज 11 अलग-अलग मामलों में शामिल थे।
पुलिस ने बैंक खातों से दो करोड़ रुपये, दो लैपटॉप और चार मोबाइल फोन जब्त किए।
यह पुलिस द्वारा की गई नवीनतम कार्रवाई है। इससे पहले 22 दिसंबर को हैदराबाद और साइबराबाद पुलिस ने हैदराबाद और गुरुग्राम में मारे गए छापे में 17 लोगों को गिरफ्तार करने की घोषणा की थी।
पिछले सप्ताह ऑनलाइन लोन ऐप के कर्मचारियों द्वारा उत्पीड़न के कारण तीन लोगों द्वारा आत्महत्या करने के बाद पुलिस हरकत में आ गई। एक तकनीकी विशेषज्ञ और एक सरकारी महिला कर्मचारी उन लोगों में से थे जिन्होंने खुदकुशी कर ली थी।
हैदराबाद पुलिस आयुक्त अंजनी कुमार ने कहा कि चार कंपनियों ने करोड़ों के अवैध कारोबार को चलाने के लिए लगभग 1,100 एक्जीक्यूटिव को काम पर रखा था।
कंपनियों की पहचान लियुफैंग टेक्नोलॉजीज प्राइवेट लिमिटेड, हॉटफुल टेक्नोलॉजीज प्राइवेट लिमिटेड, पिनपॉइंट टेक्नोलॉजीज और नैबलूम टेक्नोलॉजीज प्राइवेट लिमिटेड के रूप में की गई थी और इन्हें बेंगलुरु में पंजीकृत किया गया था। (आईएएनएस)
वाराणसी, 25 दिसम्बर | पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी के नाम पर बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में देश का पहला सेंटर फॉर स्टडीज सेंटर खुलने जा रहा है। समाजिक विज्ञान संकाय में चलने वाले इस केंद्र में देश की जानी-मानी राजनीतिक हस्तियों के पूरे जीवन के इतिहास-विकास का पूर्ण अध्ययन और शोध होगा। बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के सामाजिक विज्ञान संकाय के डीन प्रो. कौशल किशोर मिश्रा ने आईएएनएस से बातचीत में बताया कि, "भारत रत्न देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल जी के नाम पर बीएचयू में अटल अध्ययन केंद्र स्थापित किया जा रहा है। इसमें करीब 1 दर्जन से ज्यादा पाठ्यक्रम की शुरूआत होगी।"
उन्होंने बताया कि, "अटल अध्ययन केंद्र में अटल के जीवन के साथ, मोदी, योगी युग तक की राजनीति, प्राचीन भारतीय राजनीतिक चिंतन, आधुनिक राजनीतिक चिंतन, राष्ट्रधर्म, हिन्दुत्व, पुराषार्थ, लोकतंत्र, संविधान, रोजगार सृजन के तरीके, भारतीय राजनीतिक चिंतन पद्धति, स्वतंत्र भारत की विकास यात्रा, सांस्कृतिक राष्ट्रवाद, लोकतंत्र संविधान आदि विषयों पर अध्ययन और शोध चलेगा। यह अपने आप में देश का पहला प्रस्तावित सेंटर है।"
उन्होंने बताया कि, "सेंटर फॉर अटल स्टडीज का पहले विभाग स्तर पर प्रारूप बन रहा है। फिर नीति निर्धारक कमेटी में जाएगा। इसके बाद एकेडमिक कांउसिल में डिस्कस होगा। फिर वहां से पास होंने के बाद एग्जिक्यूटिव कमेटी कांउसिल में पास जाएगा। इसके बाद इसे केंद्र सरकार को भेज दिया जाएगा। पहला अध्ययन केंद्र बनने के बाद इसमें विभिन्न पाठ्यक्रम चलेंगे। फरवरी के अखिरी तक समाजिक विज्ञान केंद्र शुरू हो जाएगा।"
कौशल किशोर ने बताया कि प्राचीन मध्यकालीन आधुनिक भारत की ज्ञान परंपरा को उद्घाटित करना और युवाओं को प्रेरित करना इस सेंटर का उद्देश्य है। इसमें गांधी, नेहरू, अटल के अलावा अन्य कई बड़े राजनीतिज्ञ के व्यक्तित्व का अध्ययन होगा। यह किसी विचार धारा से प्रेरित नहीं होगा। यह होलस्टिक सेंटर है। भारत के समाजिक विज्ञान के जरिए युवाओं को प्रेरित करना इस सेंटर का लक्ष्य है। (आईएएनएस)
बांदा (उत्तर प्रदेश), 25 दिसंबर | उत्तर प्रदेश के बांदा जिले के एक गांव में रहने वाले दलित व्यक्ति ने आरोप लगाया है कि जब सरकार द्वारा लगाए गए हैंड पंप से वह पानी लेने के लिए गया, तो उसकी पिटाई कर दी गई। 45 वर्षीय इस शख्स ने कहा है कि तेंदुरा गांव के लोगों ने उसके द्वारा हैंड पंप के इस्तेमाल किए जाने को लेकर आपत्ति जताते हुए उसकी पिटाई कर दी।
रामचंद्र रैदास ने अपनी प्राथमिकी में आरोप लगाया है कि राम दयाल यादव नामक एक शख्स के परिवार के सदस्यों ने उस वक्त उस पर लाठी से हमला किया, जब शुक्रवार की सुबह वह हैंड पंप से पानी लेने के लिए जा रहा था।
इस हमले में रैदास को चोटें आई हैं। इसके बाद उसे प्राथमिकी स्वास्थ्य केंद्र में भर्ती कराया गया।
स्टेशन हाउस ऑफिसर (एसएचओ) नरेंद्र प्रताप सिंह के अनुसार, रैदास ने यह भी आरोप लगाया है कि राम दयाल यादव ने कुछ दो महीने पहले दलित परिवार को हैंड पंप से पानी लाने पर प्रतिबंध लगा दिया था।
उन्होंने आगे कहा, हालांकि अतर्रा के उप-मंडल मजिस्ट्रेट द्वारा मामले में हस्तक्षेप किए जाने के बाद इसे सुलझा लिया गया है। आगे की जांच जारी है। (आईएएनएस)
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को किसान सम्मान निधि के तहत 18 हजार करोड़ रुपये से अधिक की नई किस्त नौ करोड़ किसानों के बैंक खाते में ट्रांसफर की. इस दौरान मोदी ने छह राज्यों के किसानों से बातचीत भी की.
डॉयचे वैले पर आमिर अंसारी का लिखा
दिल्ली की सीमाओं पर चल रहे किसानों के आंदोलन का आज तीसवां दिन है. शुक्रवार को आंदोलन के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने छह राज्यों के करीब दो करोड़ किसानों से वर्चुअल संवाद किया. किसानों से बातचीत के बाद मोदी ने विपक्ष पर जमकर हमला बोला. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से लेकर वाम दलों और कांग्रेस पर निशाना साधा. मोदी ने विपक्ष पर निशाना साधते हुए कहा कि जिन्हें जनता ने खारिज कर दिया है वे "इवेंट मैनेजमेंट" कर रहे हैं. मोदी ने विशेष तौर पर पश्चिम बंगाल की सरकार पर कहा, "मुझे आज इस बात का अफसोस है कि मेरे पश्चिम बंगाल के 70 लाख से अधिक किसान भाई-बहनों को इसका लाभ नहीं मिल पाया है. बंगाल के 23 लाख से अधिक किसान इस योजना का लाभ लेने के लिए ऑनलाइन आवेदन कर चुके हैं. लेकिन राज्य सरकार ने वेरिफिकेशन की प्रक्रिया को इतने लंबे समय से रोक रखा है." उन्होंने कहा जो दल बंगाल के किसानों के हित में नहीं बोलते वे दिल्ली के नागरिकों को परेशान करने पर लगे हुए हैं. मोदी ने कहा, "ये लोग देश की अर्थव्यस्था को किसान के नाम पर बर्बाद करने में लगे हुए हैं." गौरतलब है कि मोदी ने पश्चिम बंगाल में होने वाले विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए खास तौर वहां के किसानों का जिक्र किया.
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की जयंती पर आयोजित किसान संवाद में मोदी ने 18,000 करोड़ रुपये का किसान सम्मान निधि धन नौ करोड़ किसान के बैंक खातों में ट्रांसफर किया. मोदी ने कहा कि अब तक पीएम किसान निधि के तहत एक लाख 10 हजार करोड़ से ज्यादा की रकम किसानों के खाते में सीधे पहुंच चुकी है, अब ना कोई कमीशन है ना कोई कट है.
किसान आंदोलन पर मोदी ने कहा कि किसानों के बीच झूठ फैलाया जा रहा है और भोल-भाले किसानों को बहकाया जा रहा है. उन्होंने कहा कि कुछ लोग भ्रम फैला रहे हैं कि नए कृषि कानूनों से किसानों की जमीन चली जाएगी. मोदी ने साथ ही कहा कि सरकार चर्चा के लिए खुले मन से तैयार है. दिल्ली की सीमाओं पर पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के किसान पिछले 30 दिनों से तीन नए कृषि कानूनों को वापस लिए जाने की मांग को लेकर दिन और रात आंदोलन कर रहे हैं. किसान संगठनों की सरकार से कई दौर की बातचीत भी हो चुकी है लेकिन अब तक नतीजा नहीं निकल पाया है. किसानों का कहना है कि उन्हें इन कानूनों से नुकसान होगा और सरकार का कहना है कि नए कानून उनकी भलाई के लिए ही बनाए गए हैं.
मोदी के भाषण के बाद दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने ट्वीट किया, "बीजेपी का कहना है इन कानूनों से किसानों का कोई नुकसान नहीं होगा, पर फायदा क्या होगा? ये कहते हैं अब किसान मंडी के बाहर कहीं भी फसल बेच पाएगा, पर मंडी के बाहर तो आधे दाम में फसल बिकती है? ये 'फायदा' कैसे हुआ? सच्चाई ये है कि इन कानूनों से ढेरों नुकसान हैं और एक भी फायदा नहीं."
कार्यक्रम की शुरुआत करते हुए केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने आंदोलन कर रहे किसानों से विरोध प्रदर्शन खत्म कर सरकार से बातचीत करने की अपील की. तोमर ने कहा कि पंजाब के थोड़े से किसान भ्रमित होकर नए कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन कर रहे हैं.
आम आदमी पार्टी के दो सांसदों ने सेंट्रल हॉल में उस वक्त नारेबाजी की जब पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को श्रद्धांजलि देने के लिए मोदी पहुंचे थे. आप सांसद संजय सिंह और भगवंत मान ने किसान के समर्थन में नारे लगाए और तीनों कानून को वापस लेने की मांग की. संजय सिंह ने नारेबाजी का वीडियो भी साझा किया है.
गौरतलब है कि कोरोना वायरस के कारण इस बार संसद का शीतकालीन सत्र नहीं हो रहा है. कांग्रेस समेत अन्य विपक्षी दलों की मांग है कि संसद का सत्र बुलाया जाए.
प्रयागराज, 25 दिसंबर | एक ऐतिहासिक फैसले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि "राज्य में कानून-व्यवस्था की स्थिति पर असहमति व्यक्त करना हमारे संवैधानिक उदार लोकतंत्र की पहचान है और इसी चीज को संवैधानिक रूप से संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत संरक्षित किया गया है।" कोर्ट ने यह टिप्पणी एक व्यक्ति पर दायर एक प्राथमिकी को खारिज करते हुए की। दरअसल व्यक्ति ने कहा था कि "उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने राज्य को जंगल राज में बदल दिया है, जिसमें कोई कानून और व्यवस्था नहीं है।"
यशवंत सिंह ने अपने ट्विटर हैंडल पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के खिलाफ यह टिप्पणी की थी। सिंह द्वारा दायर एक रिट याचिका को अनुमति देते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि एफआईआर में जिन दो धाराओं के तहत अपराध लगाए गए हैं, इसमें दूर तक वह अपराध नजर नहीं आ रहा है।
यह एफआईआर 2 अगस्त, 2020 को कानपुर देहात जिले के भोगनीपुर पुलिस स्टेशन में सूचना प्रौद्योगिकी (संशोधन) अधिनियम की धारा 500 (मानहानि) और 66-डी (कंप्यूटर संसाधन का उपयोग करके व्यक्ति द्वारा धोखाधड़ी करने के अपराध) के तहत दर्ज की गई थी।
प्राथमिकी में आरोप लगाया गया था कि सिंह ने अपने ट्वीट में अपहरण, फिरौती और हत्या जैसी विभिन्न घटनाओं का जिक्र किया।
याचिकाकर्ता के वकील ने अदालत के समक्ष एफआईआर को चुनौती दी, जिसमें कहा गया था कि राज्य के मामलों पर टिप्पणी करने का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत परिकल्पित उसके संवैधानिक अधिकार के भीतर है।
वकील ने कहा, "असहमति अपराध नहीं है। राज्य सरकार के खिलाफ अपने असंतोष को व्यक्त करने से रोकने के लिए याचिकाकर्ता के साथ जबरदस्ती करने के लिए प्राथमिकी दर्ज की गई है। इसलिए, उसके खिलाफ कोई अपराध नहीं बनता है।"
हालांकि, कोर्ट की कार्यवाही के दौरान, राज्य के वकील ने याचिकाकर्ता के वकील के प्रस्तुतीकरण का विरोध किया।
न्यायमूर्ति पंकज नकवी और न्यायमूर्ति विवेक अग्रवाल की खंडपीठ ने कहा, "हम, एफआईआर में लगाए गए आरोपों के संबंध में उपरोक्त प्रावधानों का विश्लेषण करने के बाद, धारा 66-डी के तहत कोई अपराध नहीं पाते हैं।"(आईएएनएस)
नई दिल्ली, 25 दिसंबर | केंद्र सरकार ने शुक्रवार को कहा कि उसने अगले सप्ताह से आंध्र प्रदेश, असम, गुजरात और पंजाब में कोविड-19 वैक्सीन की खुराक के लिए एक पूर्वाभ्यास (ड्राई रन) की योजना बनाई है। वास्तविक रूप से टीका कार्यक्रम प्रभावी रूप से चले, इसलिए यह अभ्यास किया जा रहा है। स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, प्रत्येक राज्य दो जिलों में पूर्वाभ्यास की योजना बनाएंगे और इसे विभिन्न सत्रों में जिला अस्पताल, शहरी स्थल, निजी स्वास्थ्य सुविधा, ग्रामीण इत्यादि जगहों पर किया जाएगा।
मंत्रालय ने एक बयान में कहा, "इस अभ्यास से कोविड-19 टीकाकरण और एंड टू एंड मोबिलाइजेशन प्रकिया को सक्षम बनाया जाएगा। इस अभ्यास के जरिए इसे वास्तविक माहौल में टेस्ट किया जाएगा।"
यह योजना, कार्यान्वयन और रिपोर्टिग तंत्रों के बीच संबंधों को भी सक्षम करेगा और वास्तविक कार्यान्वयन से पहले चुनौतियों की पहचान करेगा।
यह विभिन्न स्तरों पर प्रोग्राम मैनेजरों को हाथों-हाथ अनुभव प्रदान कराएगा। इस दो दिवसीय गतिविधि की योजना 28 और 29 दिसंबर को बनाई गई है।
इस पूर्वाभ्यास में कोविड-19 वैक्सीन के लिए कोल्ड स्टोरेज और परिवहन व्यवस्था का परीक्षण किया जाएगा। साथ ही पर्याप्त दूरी के साथ भीड़ प्रबंधन का भी अभ्यास किया जाएगा।
पूर्वाभ्यास एक महत्वपूर्ण उद्देश्य टीकाकरण के बाद किसी भी संभावित प्रतिकूल घटनाओं के प्रबंधन पर होगा।
मंत्रालय ने कहा, "मॉक ड्रिल में ब्लॉक और जिला स्तरों पर बराबर निगरानी और समीक्षा शामिल होगी। साथ ही राज्य और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के साथ साझा किए जाने वाले फीडबैक की तैयारी की जाएगी। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा विस्तृत चेकलिस्ट तैयार किया गया है और पूर्वाभ्यास के मार्गदर्शन के लिए चार राज्यों के साथ इसे साझा किया गया है।"
भारत में आठ कोविड-19 वैक्सीन कैंडिडेट हैं, जिनमें तीन स्वदेशी टीके शामिल हैं, जो क्लिनिकल परीक्षणों के विभिन्न चरणों में हैं और निकट भविष्य में प्रयोग के लिए तैयार हो सकते हैं।(आईएएनएस)
चेन्नई, 25 दिसंबर (आईएएनएस)| तमिलनाडु भाजपा को शुक्रवार को कमल हासन की एमएनएम पार्टी के महासचिव अरुणाचलम के भगवा ब्रिगेड में शामिल होने के रूप में क्रिसमस का तोहफा मिल गया। पत्रकारों से बात करते हुए अरुणाचलम ने कहा कि वह भाजपा में शामिल हो गए क्योंकि एमएनएम पार्टी तीनों कृषि कानूनों पर उनके विचारों से सहमत नहीं थी।
केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावडेकर की उपस्थिति में अरुणाचलम भाजपा में शामिल हुए।
अरुणाचलम ने कहा कि उन्होंने एमएनएम से आग्रह किया था कि वे भाजपा सरकार द्वारा लाए गए तीनों कृषि कानूनों का विरोध न करें, बल्कि किसानों के लिए अच्छा होने के कारण उनका समर्थन करें।
उन्होंने कहा कि इसके बाद भी एमएनएम ने कृषि कानूनों का विरोध करने का फैसला किया।
मनोज पाठक
पटना, 25 दिसंबर| देश की राजधानी के बाहर हो रहे किसान आंदेालन के वरिष्ठ नेता से लेकर बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव तक बिहार के किसानों से किसान आंदोलन का समर्थन करने की अपील कर चुके है, लेकिन अब तक बिहार के किसान इस आंदोलन को लेकर सडकों पर नहीं उतरे हैं।
बिहार में विपक्षी दल इस आंदोलन के जरिए भले ही गाहे-बगाहे सडकों पर दिखाई दिए, लेकिन विपक्ष की इस मुहिम ने भी किसान आंदोलन के जरिए सरकार पर दबाव नहीं बना पाई। इसके इतर, विपक्ष में टकराव देखने को मिला।
कांग्रेस के विधायक शकील अहमद खान ने पिछले दिनों इशारों ही इशारों में राजद नेता तेजस्वी यादव पर निशाना साधते हुए कहा था कि बिहार में किसानों के नाम पर दिखावटी आंदोलन हो रहा है। इसमें हमें हकीकत में नजर आना चाहिए, तकनीक के सहारे उपस्थिति नहीं चलने वाली है। यदि महागठबंधन के नेता सही में आंदोलन को तेज करना चाहते हैं, तो उन्हें ठोस रणनीति बना कर इसमें खुद भी शामिल होना होगा।
इसके बाद भी अब तक महागठबंधन में इसे लेकर कोई ठोस रणनीति बनती नहीं दिखाई दे रही है। कांग्रेस और राजद के नेता संवाददाता सम्मेलन कर कृषि कानून को लेकर भले ही राज्य और केंद्र सरकार पर निशाना साध रहे हैं। जन अधिकार पार्टी इस आंदोलन को लेकर मुखर जरूर नजर आई है।
केंद्र सरकार के हाल में बनाए गए कृषि कानूनों के विरोध में दिल्ली की सीमाओं पर चल रहे किसान आंदोलन से जुड़े संयुक्त किसान मोर्चा के वरिष्ठ नेता गुरनाम सिंह चढ़ूनी भी बिहार की राजधानी पटना पहुंचे और यहां के किसानों से किसान आंदोलन में साथ देने की अपील की, इसके बावजूद भी यहां के किसान अब तक सड़कों पर नहीं उतरे।
बिहार में दाल उत्पादन के लिए चर्चित टाल क्षेत्र के किसान और टाल विकास समिति के संयोजक आंनद मुरारी कहते हैं कि यहां के किसान प्रारंभ से ही व्यपारियों के भरोसे हैं, जो इसकी नियति मान चुके हैं। उन्होंने कहा कि यहां के किसान मुख्य रूप से पारंपरिक खेती करते हैं और कृषि कानूनों से उनको ज्यादा मतलब नहीं है।
उन्होंने हालांकि यह भी कहा कि 2017 में यहां किसान आंदोलन हुआ था, जिसका लाभ भी यहां के किसानों को मिला था। विपक्षी नेताओं के आंदेालन के समर्थन मांगने के संबंध में पूछे जाने पर मुरारी कहते हैं कि बिहार के किसान गांवों में रहते हैं। नेता पटना मंे आकर समर्थन किसानों से मांग रहे हैं।
इधर, औरंगाबाद जिले के किसान श्याम जी पांडेय कहते हैं कि हरियाणा और पंजाब में कृषि में मशीनीकरण का समावेश हो गया तथा वहां किसानों का संगठन मजबूत है। उन्होंने भी माना कि यहां के किसानों के पास पूंजी भी नहीं है। उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि यहां के किसान आंदोलन करेंगे तो खेतों में काम कौन करेगा?
उल्लेखनीय है कि बिहार में एपीएमसी एक्ट साल 2006 में ही समाप्त कर दिया गया है।
जनता दल यूनाइटेड के प्रवक्ता राजीव रंजन का दावा है कि बिहार का कृषि मॉडल पूरे देश के लिए नजीर है, इसलिए भी बिहार में कहीं कोई किसान आंदोलन नहीं हो रहा। इससे पहले पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी कह चुके हैं कि यहां के किसान राजग के साथ हैं और उन्हें मालूम है कि किसान हित में क्या है। (आईएएनएस)
-श्रुति मेनन
किसानों के लगातार जारी आंदोलन के बीच भारत सरकार इस बात पर ज़ोर दे रही हैं कि बदलाव किसानों की ज़िंदगी को बेहतर बनाएंगे.
साल 2016 में प्रधानमंत्री और उनकी पार्टी बीजेपी ने वादा किया था कि 2022 तक वो किसानों की आय को दोगुनी कर देंगे.
लेकिन क्या इस बात का कोई सबूत है कि गांव में रहने वालों कि ज़िंदगी में सकारात्मक बदलाव आए हैं?
ग्रामीण इलाकों में आय की हालत?
वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 40 प्रतिशत से अधिक काम करने वाले लोग खेती से जुड़े हुए हैं.
ग्रामीण भारत की घरेलू आय से जुड़े हाल के कोई आंकड़े नहीं है, लेकिव कृषि मजदूरी, जो कि ग्रामीण आय का एक अहम हिस्सा है, उससे जुड़े कुछ आंकड़े मौजूद है. इसके मुताबिक साल 2014 से 2019 के बीच विकास की दर धीमी हुई है.
भारत में महंगाई दर पिछले कुछ सालों में बढ़ी है, वर्ल्ड बैंक के डेटा के मुताबिक उपभोक्ता मूल्य मुद्रास्फीति 2017 में 2.5% से थोड़ी कम थी जो कि बढ़कर 2019 में लगभग 7.7% हो गई
इसलिए मजदूरी में मिले लाभ का कोई फ़यदा नहीं हुआ. ऑर्गेनाइज़ेशन फॉर इकॉनॉमिक को-ऑपरेशन एंड डेवलेपमेंट की रिपोर्ट के मुताबिक 2013 से 2016 के बीच सही मायने में किसानों की आय केवल 2 प्रतिशत बढ़ी है.
इस रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि इनकी आय ग़ैर-किसानी वाले परिवारों का एक तिहाई भर है.
कृषि मामलों के जानकार देवेंद्र शर्मा का मानना है कि किसानों की इनकम नहीं बढ़ी है, और मुमकिन है कि पहले से ये कम ही हो गई है.
"अगर हम महंगाई को देखें तो महीने के दो हज़ार रुपये बढ़ जाने से बहुत ज़्यादा फ़र्क नहीं पड़ता."
शर्मा खेती से जुड़े सामानों की बढ़ती कीमतों की ओर भी इशारा करते हैं, और बाज़ार में उत्पादन के घटते बढ़ते दामों को लेकर भी चिंतित हैं.
ये भी बताता ज़रूरी है कि हाल के सालों में मौसम ने भी कई जगहों पर साथ नहीं दिया. सूखे के कारण किसानों की आय पर बुरा असर पड़ा है.
क्या सरकार अपना टारगेट पूरा कर पाई है?
2017 में एक सरकारी कमेटी ने रिपोर्ट दी थी कि 2015 के मुकाबले 2022 में आय दोगुनी करने के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए किसानों को 10.4 प्रतिशत की दर से बढ़ना होगा.
इसके अलावा, ये भी कहा गया था कि सरकार को 6.39 बिलियन रुपये का निवेश खेती के सेक्टर में करना होगा.
2011-12 में सरकार का कुल निवेश केवल 8.5 प्रतिशत था. 2013-14 में ये बढ़कर 8.6 प्रतिशत हुआ और इसके बाद इसमें गिरावट दर्ज की गई. 2015 से ये निवेश 6 से 7 प्रतिशत भर ही रह गया है.
कर्ज़ में डूबते किसान
साल 2016 में नेशनल बैंक फॉर एग्रीकल्चर एंड रूरल डेवलपमेंट ने एक सरकारी सर्वे में पाया था कि तीन सालों में किसानों का कर्ज़ करीब दोगुना बढ़ गया था.
केंद्र और राज्य सरकारों की तरफ़ से पिछले कुछ सालों में कोशिश की गई है कि किसानों को सीधे वित्तीय सहायता दी जाए और दूसरे कदम उठाकर भी मदद की जाए, जैसे कि उर्वरक और बीज पर सब्सिडी और कुछ क्रेडिट स्कीम देना.
2019 में केंद्र सरकार ने ऐलान किया कि 8 करोड़ लोगों की कैश ट्रांसफर से मदद ली जाएगी.
इस स्कीम के तहत केंद्र सरकार ने ऐलान किया कि किसानों को हर साल 6000 रुपये की मदद की जाएगी.
देश के 6 राज्य इससे पहले से ही कैश ट्रांसफर स्कीम चला रहे थे.
देवेंद्र शर्मा के मुताबिक इनसे किसानों की आय बढ़ी है.
वो कहते हैं, "सरकार सीधे किसानों को सपोर्ट करने की स्कीम लेकर आई,ये एक सही दिशा में उठाया गया कदम था."
लेकिन इन स्कीम ने काम किया या नहीं, ये बताने के लिए हमारे पास डेटा उपलब्ध नहीं है.
किसानों की आय बढ़ाने के लिए बना सरकार की एक कमेटी के चेयरमेन अशोक दलवाई के मुताबिक सरकार सही दिशा में आगे बढ़ रही है.
वो कहते हैं, "हमें डेटा का इंतज़ार करना चाहिए. लेकिन मैं यह कह सकता हूं कि पिछले तीन सालों में विकास की रफ़्तार तेज़ हुई है, और आने वाले समय में यह और बढ़ेगी."
दलवाई कहते हैं कि उनके 'आंतरिक मूल्यांकन' के मुताबिक वो 'सही दिशा में हैं.' (bbc.com)
-अनंत प्रकाश
साल 2019 में वायु प्रदूषण की वजह से भारत में 16.7 लाख लोगों की मौत हुई है. इतना ही नहीं, वायु प्रदूषण के कारण देश को 260,000 करोड़ रुपये से ज़्यादा का आर्थिक नुकसान हुआ है.
यह जानकारी केंद्र सरकार की संस्था आईसीएमआर की एक रिपोर्ट में सामने आई है. लेकिन क्या ये आँकड़े आपके लिए कुछ मायने रखते हैं?
दिल्ली से लेकर उत्तर प्रदेश और बिहार समेत भारत का एक बड़ा हिस्सा एक लंबे समय से लगातार वायु प्रदूषण की चपेट में है.
बारिश के महीनों को छोड़ दिया जाए तो हरियाणा, उत्तर प्रदेश, दिल्ली और बिहार जैसे राज्यों में रहने वाले लोग लगभग पूरे साल प्रदूषण की मार झेलते हैं.
ये ख़बर लिखे जाते समय दिल्ली में बेहद बारीक प्रदूषक पीएम 2.5 का सूचकांक 462 था जो कि 50 से भी कम होना चाहिए.
ब्रिटेन की राजधानी लंदन में इसी पीएम 2.5 का स्तर 17 है, न्यू यॉर्क में 38 है, बर्लिन में 20 है, और बीजिंग में 59 है.
सरल शब्दों में कहें तो दिल्ली से लेकर लखनऊ (पीएम 2.5 - 440) में रहने वाले लोग इस समय जिस हवा में साँस ले रहे हैं वो स्वस्थ लोगों को भी बीमार बना सकती है और पहले से बीमार लोगों के लिए गंभीर ख़तरे पैदा कर सकती है.
प्रदूषण से हुई मौत...मतलब क्या है?
इंडियन काउंसिल फ़ॉर मेडिकल रिसर्च ने अपनी हालिया रिपोर्ट में बताया है कि भारत में साल 2019 में 16.7 लाख लोगों की मौत के लिए वायु प्रदूषण को ज़िम्मेदार ठहराया जा सकता है.
इस रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि घरेलू वायु प्रदूषण की वजह से होने वाली मौतों में 1990 से 2019 तक 64 फ़ीसदी की कमी आई है लेकिन इसी बीच हवा में मौजूद प्रदूषण की वजह से होने वाली मौतों में 115 फ़ीसदी का इज़ाफा हुआ है.
शोधकर्ताओं ने इस रिपोर्ट में लोगों की मृत्यु, उनकी बीमारियों और उनके प्रदूषित वातावरण में रहने की अवधि का अध्ययन किया है.
अंग्रेजी अख़बार द हिंदू में प्रकाशित ख़बरके मुताबिक़, आईसीएमआर के महानिदेशक बलराम भार्गव ने बताया है कि इस अध्ययन के नतीजे बताते हैं कि वायु प्रदूषण फेंफड़ों से जुड़ी बीमारियों के चालीस फीसदी मामलों के लिए ज़िम्मेदार है. वहीं, इस्केमिक हार्ट डिज़ीज, स्ट्रोक, डायबिटीज़ और समय से पहले पैदा होने वाले नवजात बच्चों की मौत के लिए वायु प्रदूषण 60 फ़ीसदी तक ज़िम्मेदार है.
यह पहला मौका नहीं है जब किसी रिपोर्ट में ये बताया गया हो कि वायु प्रदूषण हानिकारक और जानलेवा है. लेकिन यह पहली बार है जब सरकार ने वायु प्रदूषण से होने वाली मौतों और आर्थिक नुकसान के सटीक आँकड़े जनता के सामने रखे हैं.
रिपोर्ट यह भी बताती है कि अगर कुछ न किया गया तो वायु प्रदूषण से होने वाली मौतें, बीमारियां और आर्थिक नुकसान की वजह से भारत का साल 2024 तक पाँच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने का सपना टूट सकता है.
ऐसे में सवाल उठता है कि क्या ये रिपोर्ट एक जनआंदोलन को जन्म देगी या दूसरी अन्य रिपोर्ट्स की तरह भुला दी जाएगी?
दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में लंग कैंसर विशेषज्ञ डॉक्टर अरविंद कुमार मानते हैं कि अब वो वक़्त आ गया है जब लोगों को वायु प्रदूषण के ख़तरों के प्रति अवश्य ही सचेत हो जाना चाहिए.
वो कहते हैं, “जब आईसीएमआर की रिपोर्ट में वायु प्रदूषण के ख़तरे स्पष्ट हो गए हैं तो लोगों को ये माँग ज़रूर करनी चाहिए कि सरकार उनके लिए बेहतर शहर बनाए. लेकिन अगर आप पूछें कि क्या लोग ऐसा करेंगे तो मुझे अभी भी पूरा यकीन नहीं है. क्योंकि यह एक रिपोर्ट है. बहुत सारी अन्य रिपोर्ट्स की तरह कुछ दिन तक इस पर अख़बारों में लेख आएंगे, विचार-विमर्श होंगे, कुछ समय के बाद कुछ नयी चीज़ आ जाएगी. कहीं कोई दुर्घटना हो जाएगी और ये रिपोर्ट भी इतिहास के पन्नों में दर्ज हो जाएगी.''
''यहाँ पर मैं डॉक्टर्स का बहुत अहम रोल मानता हूँ. मैंने हमारे 'डॉक्टर्स फ़ॉर क्लीन एयर मूवमेंट' से जुड़े डॉक्टरों में ये रिपोर्ट शेयर की है और कहा है कि वे इसे बेहद गंभीरता से लें और लोगों को वायु प्रदूषण के ख़तरों के बारे में रोज सचेत कर सकें.”
वायु प्रदूषण का ख़तरा कितना संगीन?
भारत में वायु प्रदूषण का ख़तरा कितना संगीन है, इस बात का अंदाज़ा इससे लगाया जा सकता है कि साल 2019 में जितनी मौतें प्रदूषण की वजह से हुईं, उतनी मौतें सड़क दुर्घटनाओं, आत्महत्या और आतंकवाद जैसे कारणों को मिलाकर भी नहीं हुईं.
आईसीएमआर की रिपोर्ट बताती है कि साल 2019 में हुई 18 फ़ीसदी मौतों के लिए वायु प्रदूषण को ज़िम्मेदार ठहराया जा सकता है.
ऐसे में सवाल उठता है कि अगर इस स्तर पर आकर भी सरकार और समाज की ओर से सही कदम नहीं उठाए गए तो क्या होगा?
डॉक्टर अरविंद का मानना है कि वायु प्रदूषण आने वाले सालों में एक व्यापक समस्या बनकर उभरने जा रहा है.
वो कहते हैं, “हमारे पास सख़्त कदम उठाकर वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के सिवा कोई और रास्ता नहीं है. मैं ये मानता हूँ कि अगर हम ज़मीनी स्तर पर ही कुछ कदम उठाएं तो एक हद तक समाधान निकल सकता है.''
''हमारे नगर निगमों को अपने काम करने के ढंग में मूलभूत बदलाव करना होगा. जिस तरह सड़कें खोदकर छोड़ दी जाती हैं और धूल का अंबार उठता है, वो पार्टिकुलेट मैटर यानी प्रदूषक को हवा में लाने में एक बड़ी भूमिका निभाता है.''
''समस्या का ग्राफ़ धीरे धीरे बढ़ रहा है. मैं बार-बार इस बात को कह रहा हूँ कि पहले मैं लंग कैंसर 50-60 बरस की उम्र वाले मरीज़ों में देखता था. 30 साल पहले जब एम्स में मेरे पास 45 साल की उम्र का लंग कैंसर मरीज आ जाए तो डुगडुगी बज जाती थी कि ये क्या हो रहा है, इतनी कम उम्र के व्यक्ति को लंग कैंसर कैसे हो रहा है. अब गंगाराम हॉस्पिटल में मेरी सबसे युवा लंग कैंसर पेशेंट की उम्र मात्र 28 साल थी.''
डॉक्टर अरविंद कहते हैं, ''सोचने की बात है कि किसी लड़की को 28 साल की उम्र में लंग कैंसर कैसे हो गया? क्योंकि वो जहाँ पर पैदा हुई थी, वो एक प्रदूषित जगह थी. तो उन्होंने अपनी ज़िंदगी के पहले दिन से प्रदूषण झेला. सिगरेट को लंग कैंसर के लिए ज़िम्मेदार ठहराया जाता है.''
वायु प्रदूषण के ख़तरे को इस तरह समझा जा सकता है कि अगर आज दिल्ली में पीएम 2.5 सूचकांक 300 पर है तो दिल्ली में रहने वाले प्रति व्यक्ति ने 15 सिगरेट पीने के बराबर नुकसान झेला है. इसमें नवजात बच्चे भी शामिल हैं.
ऐसे में जब ऐसे बच्चे अपनी ज़िंदगी के 25 से 30 साल दिल्ली में गुजार लेंगे तो वे 25-30 साल के स्मोकर हो जाएंगे और उनके टिश्यूज़ कैंसरस होने के लिए तैयार हो जाएंगे.
पूरे देश में ज़्यादातर लंग कैंसर एक्सपर्ट ये बता रहे हैं कि उनके 50 फीसदी से ज़्यादा मरीज नॉन-स्मोकर हैं. इनमें महिलाओं की संख्या बढ़ रही है.
डॉक्टर अरविंद बताते हैं, ''युवाओं में लंग कैंसर बढ़ रहा है. मैं ये भी कहना चाहता हूँ कि अगले 10 साल में स्थिति न सुधरी तो भारत में लंग कैंसर का इपिडेमिक (महामारी) आने जा रहा है.”
डॉक्टर अरविंद समेत देश के कई विशेषज्ञ मानते हैं कि लोगों को वायु प्रदूषण के ख़तरे के प्रति ज़्यादा संजीदा होना चाहिए.
लेकिन क्या ये बात पूरी तरह सही है कि लोग वायु प्रदूषण को लेकर गंभीर नहीं हैं? क्योंकि बीते कुछ सालों में एयर प्यूरीफ़ायर की माँग जिस तेजी से बढ़ी है, वो लोगों में इस ख़तरे के प्रति संज़ीदगी को दिखाती है.
मगर प्यूरीफ़ायर की बात करते ही एक नया सवाल खड़ा होता है कि क्या इस समस्या का हल निजी स्तर पर निकाला जा सकता है?
क्या एयर प्यूरीफ़ायर एक समाधान है?
इस समय बाज़ार में 3,000 रुपये से लेकर एक लाख रुपये तक का एयर प्यूरीफ़ायर मौजूद है लेकिन एम्स के पल्म्नोलॉजी विभाग के प्रमुख डॉक्टर अनंत मोहन मानते हैं कि ये समस्या का हल नहीं है.
वो कहते हैं, “अगर लोग वायु प्रदूषण से बचना चाहते हैं तो उन्हें सबसे पहले तो इसके ख़िलाफ़ ही कदम उठाने चाहिए.”
वहीं, डॉक्टर अरविंद मानते हैं कि वायु प्रदूषण एक जन समस्या है और उसका हल निजी स्तर पर नहीं तलाशना चाहिए.
वो कहते हैं, “वायु प्रदूषण का समाधान एयर प्यूरीफ़ायर में तलाशना वैसा ही है, जैसा लोगों ने बिजली की कमी पूरी करने के लिए इनवर्टर का इस्तेमाल किया था. पर्याप्त बिजली देना सरकार की ज़िम्मेदारी थी.''
''सरकार को ये ज़िम्मेदारी पूरी करनी चाहिए थी. लेकिन सरकार ने ऐसा नहीं किया और लोगों ने इस समस्या का हल अपने स्तर पर निकाला. उन्होंने घरों में जेनरेटर और इनवर्टर रखना शुरू कर दिए.''
डॉक्टर अरविंद कहते हैं, ''समस्या का सही समाधान ये रहता कि ज़्यादा पावर प्लांट लगाकर सभी को बिजली दी जाती. क्योंकि लोगों ने इस पर बेतहाशा धन खर्च किया. अगर उसे पावर हाउस पर लगा दिया जाता तो संभवत: लोगों को कम दाम पर अच्छी बिजली मिल जाती. लेकिन ऐसा नहीं हुआ.''
''जनता की यही अप्रोच पानी के मामले में भी देखने को मिली. सरकार को साफ पानी देना था, सरकार नहीं दे पाई. ऐसे में शहर की जल आपूर्ति को साफ करने की बजाए लोगों ने वाटर प्यूरीफायर खरीदने शुरू कर दिए. बोतल बंद पानी पीना शुरू कर दिया.''
ये दो ऐसे उदाहरण हैं जब लोगों ने एक जन समस्या का हल निजी स्तर पर निकाला. और समाधान निकला भी. लेकिन इन दोनों जन समस्याओं का हल चुनाव आधारित था.
इसे ऐसे समझ सकते हैं. मान लीजिए कि आपको प्यास लगी है तो आप साफ पानी के लिए एक घंटे तक भी इंतज़ार कर सकते हैं.
ऐसा करने से आप मर नहीं जाएंगे. लेकिन हवा के मामले में ऐसा नहीं है. हम तीन मिनट से ज़्यादा साँस लिए बिना नहीं रह सकते हैं. ऐसे में इस समस्या का हल निजी स्तर पर नहीं निकल सकता है.”
लेकिन अगर जब इस समस्या का हल निजी स्तर पर नहीं निकल सकता है तो आम लोग क्या कर सकते हैं?
आम लोग आख़िर क्या कर सकते हैं?
सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायरनमेंट से जुड़ीं पर्यावरण विशेषज्ञ अनुमिता रॉय चौधरी मानती हैं कि लोगों को जितना जागरूक इस ख़तरे के प्रति होना चाहिए, उतना ही जागरुक इसके समाधान के लिए होना चाहिए.
वो कहती हैं, “लोगों में जागरुकता ख़तरे के साथ-साथ इसके समाधान को लेकर भी होनी चाहिए. क्योंकि आगे चलकर हमें जो कदम उठाने हैं, वो काफ़ी सख़्त होंगे. अगर राजनीतिक और सामाजिक स्तर पर हम इन कड़े कदमों के प्रति समर्थन नहीं जुटा पाएंगे तो इस समस्या का हल जानते हुए भी उसे अमल में लाना बेहद मुश्किल होगा.''
''क्योंकि हम दिल्ली में प्रदूषण के बारे में बात करते हैं और जब सरकार की ओर से कहा गया कि वो निजी गाड़ियों पर रोक लगाना चाहती है और पब्लिक ट्रांसपोर्ट को बढ़ाना चाहती है तो मध्यम वर्ग सरकार के ख़िलाफ़ चला गया.''
इसके साथ ही आजकल मल्टी-सेक्टर क्लीन एयर एक्शन प्लान की बात हो रही है. सरकार की ओर से नेशनल क्लीन एयर एक्शन प्लान बनाया गया है, जिसके तहत वाहनों, उद्योग, पावर प्लांट और भवन निर्माण से जुड़ी गतिविधियों के साथ -साथ कचरा जलाने तक के लिए नियम बनाए गए हैं.
अनुमिता कहती हैं, ''इस एक्शन प्लान को लागू किए जाने में कमी दिखाई पड़ती है. ऐसे में लोगों को कड़े कदमों के लिए भी जागरूक और तैयार होना होगा.”
क्या भारतीय कानून प्रदूषण से बचा सकता है?
इस सवाल के साथ ही प्रदूषण पर जारी बहस धरातल पर उतर आती है. क्योंकि अगर कोई शख़्स आपको शारीरिक या मानसिक स्तर पर नुकसान पहुँचाता है, तो भारतीय कानून के तहत उसके ख़िलाफ़ आपराधिक मुकद्दमा दायर किया जा सकता है.
लेकिन क्या प्रदूषण के मामले में ऐसा करना संभव है? क्या प्रदूषण के मामले में आप किसी शख़्स, संस्था या सरकार के ख़िलाफ़ आपराधिक मुकदमा दाख़िल करा सकते हैं?
पिछले एक दशक से राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण में पर्यावरण से जुड़े कानूनी मसले देखने वाले वकील विक्रांत तोंगड़ मानते हैं कि वायु प्रदूषण के मामले में ऐसा करना थोड़ा मुश्किल है.
वो कहते हैं, “डॉक्टर कहते हैं कि वायु प्रदूषण ख़तरनाक है लेकिन उसको हुए नुकसान की वजह दर्ज किए जाते वक़्त किसी बीमारी का नाम लिखा जाता है, वायु प्रदूषण का नाम नहीं लिखा जाता है. अभी ब्रिटेन में सात साल लंबी कानूनी लड़ाई के बाद कोर्ट ने आख़िरकार एक बच्ची की मौत के लिए वायु प्रदूषण को ज़िम्मेदार ठहराया है. लेकिन भारत में ऐसे मामले दिखाई नहीं देते हैं.”
भारत में वायु प्रदूषण की रोकथाम के लिए साल 1981 में एक एयर एक्ट लागू किया गया था. लेकिन ये क़ानून कितना मजबूत है, ये इस बात से तय होता है कि पिछले 40 साल में इस क़ानून के तहत दर्ज किए गए मुकदमों की संख्या न के बराबर है, जबकि पिछले 40 बरसों में भारतीय शहरों में वायु प्रदूषण गंभीर स्तर पर पहुँच चुका है.
ऐसे में सवाल उठता है कि जब वायु प्रदूषण को लेकर न्यायिक स्तर पर शिकायत समाधान प्रक्रिया आसान और त्वरित नहीं है, सरकारी अमले में एक उदासीनता है तो आम लोगों के पास क्या विकल्प शेष हैं.
अनुमिता रॉय चौधरी मानती हैं कि जब तक वायु प्रदूषण के मुद्दे को चुनावी राजनीति से नहीं जोड़ा जाता है तब तक सरकारी तबके से सक्रियता की उम्मीद करना बेमानी सा है.
वो कहती हैं, “मतदाताओं को ये समझना पड़ेगा कि साफ हवा मिलना एक बहुत बड़ा मुद्दा है और इसे राजनीतिक मुद्दा बनाए जाने की ज़रूरत है. और ये चुनावी मुद्दा तभी बनेगा जब सरकार और राजनीतिक दल ये समझेंगे कि लोगों के लिए ये मुद्दा अहम है.”
“क्योंकि बीते कुछ दिनों में कई स्तर पर प्रगतिशील नीतियां और एक्शन प्लान बने हैं लेकिन उनके सख़्त अमलीकरण के लिए ज़रूरी है कि स्वच्छ वायु एक राजनीतिक मुद्दे में तब्दील हो. क्योंकि ऐसा होने पर सरकारें जब सही और सख़्त कदम उठाएंगी तो उन्हें पहले से पता होगा कि इन कदमों को उठाते हुए जनता का समर्थन मिलेगा.” (bbc.com)
नई दिल्ली, 25 दिसंबर | कें द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने शुक्रवार को अटल जयंती पर महरौली के किशनगढ़ गौशाला में संबोधन के दौरान आंकड़ों के जरिए मोदी सरकार को कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए की सरकार से कहीं ज्यादा किसान हितैषी बताया। शाह ने कहा कि यूपीए सरकार ने दस साल में सिर्फ 60 हजार करोड़ रुपये की कर्जमाफी की, लेकिन मोदी सरकार ने ढाई साल में ही दस करोड़ किसानों के खाते में 95 हजार करोड़ रुपये भेजे। सीधे खाते में धनराशि जाने से बीच में एक पैसा बिचौलियों के पास नहीं गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संबोधन सुनने के लिए आयोजित हुए इस कार्यक्रम में गृहमंत्री अमित शाह ने भारत रत्न पंडित मदन मोहन मालवीय और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को उनकी जयंती पर याद करते हुए संबोधन शुरू किया। भारत माता की जय के नारे लगवाते हुए उन्होंने किसानों को लेकर मोदी सरकार की संचालित एक-एक योजनाओं का हवाला दिया। इस दौरान उन्होंने किसानों के मुद्दे पर कांग्रेस सांसद राहुल गांधी और पूर्व की मनमोहन सरकार पर निशाना भी साधा।
अमित शाह ने कहा, जब प्रधानमंत्री मोदी किसान सम्मान निधि योजना लेकर आए तो राहुल बाबा ने कहा किसानों का कर्ज माफ करो। 10 साल यूपीए की सरकार रही। सिर्फ 60 हजार करोड़ का लोन माफ किया था। नरेंद्र मोदी ने ढाई साल के अंदर ही 10 करोड़ किसानों को 95 हजार करोड़ रुपये सीधे बैंक अकाउंट में दिया। आज और 18 हजार करोड़ रुपया किसानों के खाते में जाएगा। बीच में कोई बिचौलिया नहीं होगा। इसको कहते हैं किसानों का हितैषी होना।
गृहमंत्री अमित शाह ने इस दौरान आंकड़ों के जरिए बताया कि सोनिया-मनमोहन के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार की तुलना में मोदी सरकार ने किसानों के लिए कई गुना बजट बढ़ाया है। उन्होंने कहा, किसान हितों की बात करने वाले राहुल बाबा से पूछना चाहते हूं कि उनकी सरकार किसानों को कितना बजट देती थी? 2013-14 में जब यूपीए की सरकार थी, तब किसानों का बजट था 21,900 करोड़ रुपए। अभी प्रधानमंत्री मोदी ने किसानों के लिए अंतरिम बजट 21,900 करोड़ से बढ़ाकर 1,34,399 करोड़ रुपये किया।
गृहमंत्री अमित शाह ने बताया कि कांग्रेस की यूपीए सरकार में 265 मिलियन टन फसल उत्पादन था, जो आज मोदी सरकार में बढ़कर 296 मिलियन टन हो गया है। गृहमंत्री अमित शाह ने आरोप लगाया कि विपक्ष के नेताओं के पास कोई मुद्दा नहीं बचा है, वो झूठ बोलकर किसानों को गुमराह करने की कोशिश कर रहे हैं।
अमित शाह ने कहा, एमएसपी बंद होने का झूठ फैलाया जा रहा है। पीएम ने स्पष्ट कर दिया है और मैं भी स्पष्ट कर रहा हूं कि एमएसपी थी, है और हमेशा के लिए रहने वाली है। यूपीए वालों को एमएसपी के लिए बोलने का अधिकार नहीं है। नरेंद्र मोदी की सरकार ने वर्ष 2014-19 के बीच किसानों को लागत से डेढ़ गुना भाव दिया। 2009 से 2014 के बीच धान और गेहूं की खरीद के लिए तीन लाख 74 हजार करोड़ रुपया खर्च होता था। जबकि मोदी सरकार ने वर्ष 2014-19 में आठ लाख 22 हजार करोड़ रुपये खर्च किया। मोदी सरकार ने किसानों की बेहतरी के लिए मुद्रा स्वास्थ्य सहित कई योजनाएं संचालित कीं हैं। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 25 दिसंबर | प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को पीएम-किसान सम्मान निधि योजना की सातवीं किस्त के तौर पर योजना के एक साथ नौ करोड़ से ज्यादा लाभार्थियों के खाते में 18,000 करोड़ रुपये से ज्यादा की राशि भेजने के कार्य का बटन दबा कर शुभारंभ किया। इससे पहले कार्यक्रम को संबोधित करते हुए केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि योजना के 9.04 करोड़ किसानों के बैंक खाते में दो घंटे के भीतर 18,058 करोड़ रुपये पहुंच जाएंगे।
उन्होंने बताया कि पीएम किसान योजना के तहत 11 करोड़ 4 लाख किसानों का पंजीयन किया जा चुका है और इस योजना के तहत इससे पहले देश के 10 करोड़ 59 लाख किसानों को 96,000 करोड़ रुपये से ज्यादा की राशि सीधे उनके बैंक खाते में पहुंचाई गई है। पीएम किसान योजना का सालाना बजट लगभग 75,000 करोड़ रुपये है।(आईएएनएस)
चंडीगढ़, 25 दिसंबर | किसानों ने तीन विवादास्पद कृषि कानूनों के खिलाफ अपने आंदोलन के तहत शुक्रवार को पूरे हरियाणा में तीन दिनों तक टोल प्लाजाओं पर डेरा जमा लिया है। पड़ोसी राज्य पंजाब में, टोल प्लाजाओं को प्रदर्शनकारी किसानों ने कुछ समय के लिए खोल दिया है।
हरियाणा में, किसानों ने राष्ट्रीय राजमार्ग 44 के बसतारा टोल प्लाजा और करनाल-जिंद राष्ट्रीय राजमार्ग 709ए के पिओंट टोल प्लाजा के पास डेरा जमा लिया है।
इसी तरह से, किसान हिसार-राजागढ़ हाईवे पर शंभू टोल प्लाजा और चौधरी टोल प्लाजा पर वाहनों को जाने दे रहे हैं।(आईएएनएस)
तिरुवनंतपुरम, 25 दिसंबर कोविड-19 महामारी के बीच, केरल में काफी सावधानी के साथ क्रिसमस मनाया जा रहा है। ईसाई समुदाय के लोगों ने कई कार्यक्रमों में भाग लिया और राज्य भर के चचरें में मध्यरात्रि प्रार्थना सभाओं का आयोजन किया गया। कोच्चि में मध्यरात्रि 'होली मास' का नेतृत्व आर्कबिशप ऑफ साइरो मालाबार चर्च कार्डिनल जॉर्ज एलनचेरी ने किया।
कार्डिनल जॉर्ज एलनचेरी ने अपने संबोधन में लोगों से एक दूसरे से प्यार करने और यीशु मसीह के संदेश को फैलाने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि प्रेम सार्वभौमिक भाषा है और कोविड की मुश्किल घड़ी में, मानव पीढ़ी केवल मनुष्यों के प्रति दिखाए गए प्रेम और करुणा के कारण बच गई।
राज्य की राजधानी में सेंट थॉमस मलंकरा सीरियन कैथोलिक कैथ्रेडल में मध्यरात्रि 'होली मास' का नेतृत्व मेजर आर्कबिशप, कार्डिनल बेसेलियोस मार क्लेमिस ने किया।
उन्होंने लोगों को कठिन मार्ग में जीने और दूसरों के प्रति प्रेम जगाने का आह्वान किया। उन्होंने लोगों को एक-दूसरे की मदद करने के लिए कहा और बताया कि कैसे कोविड महामारी के बीच सहयोग की वजह से लोगों को मदद मिली।
कोझिकोड के सेवानिवृत्त भौतिकी के प्रोफेसर जॉर्ज चेरियन ने कहा, "क्रिसमस ट्री और अंकल सांता और चमकते सितारों के साथ, लोगों के पास कुछ ऐसा है, जिससे वह महामारी के कठिन समय में आनन्दित हो सकते हैं। हालांकि, हम चर्च नहीं जा पा रहे हैं और होली मास में शामिल नहीं हो पा रहे हैं, लेकिन हमने लाइव स्ट्रीम में भाग लिया और प्रार्थना की।(आईएएनएस)