राष्ट्रीय
-अमित गंजू
कानपुर. वैसे तो अब तक डाक टिकट देश के महान विभूतियों, स्मारकों व धरोहर के नाम पर ही छपते हैं, लेकिन कानपुर में डाक विभाग ने अंडरवर्ल्ड डॉन माफिया का भी डाक टिकट जारी कर दिया. प्रधान डाक घर से अंडरवर्ल्ड डॉन छोटा राजन और बागपत जेल में मारे गए मुन्ना बजरंगी के नाम से डाक टिकट जारी हुआ है. डाक विभाग की योजना माय स्टाम्प के तहत ये डाक टिकट जारी किये गए हैं.
पांच रुपए वाले 12 डाक टिकट छोटा राजन और 12 मुन्ना बजरंगी के हैं. डाक विभाग को इसके लिए निर्धारित 600 रुपए फीस अदा की गई. इस योजना की पोल उस वक्त खुली, जब टिकट छापने से पहले न फोटो की पड़ताल की गई और न किसी तरह का प्रमाणपत्र मांगा गया. फिलहाल मामले में जांच के आदेश दे दिए गए हैं.
क्या है माय स्टाम्प योजना?
दरअसल, साल 2017 में इस योजना की शुरुआत केंद्र सरकार द्वारा की गई. इसके तहत कोई भी व्यक्ति अपनी या अपने परिजनों की फोटो वाली 12 डाक टिकट छपवा सकता है. इसके लिए 300 रुपये का शुल्क अदा करना होता है. ये डाक टिकट अन्य टिकटों की तरह ही मान्य होते हैं, लेकिन इसकी प्रक्रिया इतनी आसान नहीं है. इन्हें बनवाने के लिए आवेदक को पासपोर्ट साइज की फोटो और पूरा ब्योरा देना पड़ता है. एक फार्म भरवाया जाता है, जिसमें पूरी जानकारी ली जाती है. डाक टिकट केवल जीवित व्यक्ति का ही बनता है, जिसके सत्यापन के लिए उसे खुद डाक विभाग आना पड़ता है. लेकिन, इस मामले में डाक विभाग के कर्मियों ने लापरवाही बरती.
जांच के आदेश
डाक विभाग के पोस्ट मास्टर जनरल वीके वर्मा ने कहा कि इसके लिए एक नियम बना हुआ है. इसके तहत टिकट जारी करवाने वाले शख्स को खुद डाक घर आना होता है. जहां वेबकैम के जरिए उसकी तस्वीर ली जाती है. अगर किसी गुंडे या माफिया के नाम डाक टिकट जारी हुए हैं तो उसकी जांच कर दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी.
-मनीष कुमार
लखनऊ. अब यूपी पुलिस और परिवहन विभाग उन गाड़ियों का चालान काट रहे हैं जिनपर जातिसूचक कोई शब्द लिखा है. ये बदलाव तब आया जब किसी व्यक्ति ने इण्टीग्रेटेड ग्रिवान्स रिड्रेसल सिस्टस पर इसकी शिकायत की. इसे एक अच्छी शुरुआत की तरह देखा जा रहा है, लेकिन मोटर व्हीकल एक्ट का उल्लंघन अभी भी धड़ल्ले से जारी है. कानून कहता है कि गाड़ियों के नंबर प्लेट पर नंबर के अलावा कुछ भी लिखना गलत है. यहां तक की नंबर के फॉण्ट साइज और उसकी स्टाइल भी नियम के अनुकूल होनी चाहिए लेकिन, क्या ऐसा है?
जाति को छोड़ दें तो नंबर प्लेटों पर बहुत कुछ लिखा होता है. लखनऊ की सड़कों पर आपको सुबह शाम एक कतार से सैकड़ों गाड़ियां देखने को मिल जायेंगी जिनके नंबर प्लेटों पर उत्तर प्रदेश सरकार, यूपी पुलिस, न्यायाधीश, वकील, पत्रकार, डिफेन्स, विधायक और सांसद, यहां तक की छोटा पूर्व और बड़ा विधायक भी दिख जायेगा. केन्द्र सरकार के मोटर रूल्स का ये खुला उल्लंघन है. एक्ट में इसके उल्लंघन का दण्ड भी निर्धारित है लेकिन, इस ओर अभी पुलिस और परिवहन विभाग का शायद ध्यान नहीं गया है. परिवहन विभाग में एडिशनल ट्रांसपोर्ट कमिश्नर (राजस्व) अरविंद पांडेय ने विस्तार से बताया कि क्या गलत है और क्या सही?
सवाल - गाड़ियों के नंबर प्लेट पर क्या क्या नहीं लिख सकते हैं ?
जवाब - देखिये CMVR - CENTRAL MOTOR VEHICLE RULES हमें ये बताता है कि हमारी गाड़ी और उसपर नंबर प्लेट कैसी होनी चाहिए. रूल्स में साफ साफ ये बताया गया है कि गाड़ी की नंबर प्लेट कैसी होनी चाहिए. उसपर निर्धारित फॉर्मेट के अतिरिक्त कुछ भी नहीं लिखा होना चाहिए. मोटर व्हीकल एक्ट की धारा 177 में इसके लिए दण्ड का प्रावधान किया गया है. पहली बार उल्लंघन करने पर 500 रूपये और दूसरी बार करने पर 1500 रूपये का चालान काटा जायेगा.
सवाल - गाड़ी के नंबर प्लेट के अलावा गाड़ियों के शीशे पर बहुत कुछ लिख दिया जाता है. क्या ऐसा करने पर भी चालान काटा जा सकता है ?
जवाब - देखिये ऐसा कोई प्राहिबिटरी क्लॉज नहीं है कि आप शीशे पर नहीं लिख सकते हैं या गाड़ी के किसी हिस्से पर नहीं लिख सकते हैं लेकिन, कहीं ये प्रॉविजन भी नहीं कि ये लिख सकते हैं. यदि ऐसा कोई करता है तो उसे भी एक्ट की धारा 177 के तहत ही कवर किया जायेगी और कार्रवाई की जायेगी. यानी ऐसा करने पर भी गाड़ी का चालान किया जा सकता है.
ट्रांसपोर्ट कमिश्नर धीरज शाहू से भी न्यूज़ 18 ने बता की. हमने उनसे ये जानना चाहा कि भले ही जाति सूचक शब्द लिखने पर कार्रवाई हो रही है लेकिन, बाकी शब्दों के लिखे जाने पर भी कार्रवाई क्यों नहीं होती ? शाहू ने बताया कि ऐसा नहीं है. प्रवर्तन दल हमेशा ही इस तरह के विशेष अभियान चलाया करता है. साथ ही अब गाड़ियों पर हाई सेक्यूरिटी नंबर प्लेट भी जल्दी लग जायेंगे जिससे ये समस्या खत्म हो जायेगी. आयुक्त धीरज शाहू ने स्पष्ट किया कि इस नियम के उल्लंघन में गाड़ी के सीज़ किये जाने का कोई प्रावधान नहीं है बल्कि सिर्फ जुर्माना ही वसूला जायेगा.
बता दें कि यूपी में जिस नियम के उल्लंघन में गाड़ियों का धड़ाधड़ चालान किया जा रहा है उसकी शिकायत महाराष्ट्र के एक व्यक्ति ने की थी. हर्षल प्रभु नाम के एक व्यक्ति ने शिकायत की थी कि जाति सूचक शब्द लिखना नियमों का उल्लंघन है. इनकी शिकायत के बाद ही गाड़ियों का चालान किया जा रहा है. प्रभु ने ये भी मांग की थी कि ऐसी गाड़ियों को सीज किया जाना चाहिए. हालांकि एक्ट में इस अपराध के लिए गाड़ियों के सीज करने का प्रावधान नहीं है.
लखनऊ. उत्तर प्रदेश में लगभग एक महीने पहले 'लव जिहाद' को लेकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार ने कानून लागू कर दिया. राज्यपाल से मंजूरी मिलने के बाद पूरे प्रदेश में धर्मांतरण रोधी अध्यादेश के लागू होते ही सबसे पहले बरेली में गिरफ्तारी हुई. इसके बाद तो मानों ऐसे मुकदमों की झड़ी लग गई. एटा, ग्रेटर नोएडा, सीतापुर, शाहजहांपुर और आजमगढ़ जैसे कई जिलों में इस कानून का उल्लंघन करने वालों पर पुलिस-प्रशासन ने कार्रवाई की. लखनऊ में अंतर-धार्मिक विवाह रुकवाने तक की खबरें आईं. कानून के तहत औसतन हर रोज एक से अधिक लोगों की गिरफ़्तारी हुई है और अब तक 35 लोग गिरफ्तार किए जा चुके हैं.
‘उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश-2020’ को 27 नवंबर को राज्यपाल की मंजूरी मिलने के बाद से पुलिस ने एक दर्जन से ज्यादा मुकदमे दर्ज करते हुए राज्य में करीब 35 लोगों को गिरफ्तार किया है. आधिकारिक बयान के अनुसार प्रदेश के एटा से आठ, सीतापुर से सात, ग्रेटर नोएडा से चार, शाहजहांपुर और आजमगढ़ से तीन-तीन, मुरादाबाद, मुज़फ़्फरनगर, बिजनौर एवं कन्नौज से दो-दो तथा बरेली और हरदोई से एक-एक गिरफ्तारी हुई है. यूपी में लागू हुए इस कानून के बाद देश के अन्य राज्यों में भी 'लव जिहाद' को लेकर कानून बनाने की चर्चाएं शुरू हो गई हैं.
बरेली में दर्ज हुआ पहला मुकदमा
अध्यादेश के लागू होने के ठीक एक दिन बाद बरेली के देवरनिया थाने में पहला मुकदमा दर्ज किया गया. इसमें लड़की के पिता शरीफनगर गांव निवासी टीकाराम राठौर ने शिकायत की कि उवैश अहमद (22) ने उनकी बेटी से दोस्ती करने का प्रयास किया और धर्म परिवर्तन के लिए जबरन दबाव बनाया तथा लालच देने की कोशिश की. बरेली की देवरनिया पुलिस ने मुकदमा दर्ज करने के बाद 3 दिसंबर को उवैश अहमद को गिरफ्तार कर लिया. इसी प्रकार लखनऊ पुलिस ने राजधानी में एक विवाह समारोह रोक दिया. मुज़फ़्फरनगर जिले में नदीम नामक व्यक्ति और उसके साथी को 6 दिसंबर को एक विवाहित हिंदू महिला को धर्म परिवर्तन के लिए मजबूर करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया. हालांकि बाद में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इस मामले में यूपी पुलिस को कोई कठोर कार्रवाई न करने का निर्देश दिया. मुरादाबाद में धर्मांतरण रोधी अध्यादेश के तहत गिरफ्तार किए गए दो भाइयों को मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (सीजेएम) की अदालत ने रिहा कर दिया.
समर्थन में BJP, चिंता में सामाजिक कार्यकर्ता
भारतीय जनता पार्टी (BJP) के वरिष्ठ नेताओं ने ‘लव जिहाद’ के मामले को लेकर आक्रामक बयान दिए. इस अध्यादेश के लागू होने के पहले उपचुनाव के दौरान जौनपुर और देवरिया की चुनावी रैलियों को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा था, ' बहन-बेटियों का सम्मान नहीं करने वालों का राम नाम सत्य हो जाएगा.’’ वहीं, सामाजिक कार्यकर्ता शांतनु शर्मा ने इस अध्यादेश के बारे में कहा, ' हमें नए अध्यादेश से कोई समस्या नहीं है, लेकिन इसके लागू होने से लोगों को परेशान नहीं किया जाना चाहिए और यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि इसका दुरुपयोग न हो.' उन्होंने कहा, 'यह भविष्यवाणी करना जल्दबाजी होगा कि यह अपने उद्देश्य में सफल होगा या नहीं लेकिन इसका सावधानी से प्रयोग होना चाहिए.'
पूर्व DGP बोले- वर्तमान समय के लिए जरूरी
उत्तर प्रदेश के पूर्व पुलिस महाानिदेशक यशपाल सिंह ने कहा, ' देखिए, आधुनिक युग में आजादी की जो परिभाषा है, उसके हिसाब से लोगों को यह अध्यादेश पसंद नहीं आएगा, लेकिन समाज का जो वर्तमान स्वरूप है उसमें कानून-व्यवस्था के लिए जो समस्या खड़ी हो जाती, उसमें काफी राहत मिलेगी.' पूर्व पुलिस प्रमुख ने कहा, ' कोई लड़की जब किसी के साथ चली जाती है तो उसकी बरामदगी के लिए दबाव बढ़ता है और लड़की के भागने पर दंगे जैसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है.' उन्होंने कहा, ' सामाजिक व्यवस्था के हिसाब से ठीक है और इससे उत्पीड़न नहीं होगा लेकिन आधुनिक लोगों को लगेगा कि हमारी आजादी पर सरकार ने पहरा बिठा दिया है.'
संवैधानिक अधिकारों की भी उठी बात
उच्च न्यायालय के अधिवक्ता संदीप चौधरी ने कहा, 'यह अध्यादेश व्यक्तिगत स्वतंत्रता, निजता, मानवीय गरिमा जैसे मौलिक अधिकारों के खिलाफ है.' उन्होंने बताया कि कानून को चुनौती देने के लिए इलाहाबाद उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका पहले ही दायर की जा चुकी है और अब अदालत को फैसला करना है. उच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश सरकार से एक याचिका पर जवाब देने को कहा है जिसमें नए अध्यादेश को लेकर सवाल उठाए गए हैं. इसमें सुनवाई के दौरान उच्च न्यायालय ने कोई अंतरिम राहत नहीं दी और राज्य सरकार को चार जनवरी तक जवाबी हलफनामा दायर करने को कहा है. कपटपूर्ण ढंग से शादी करने और जबरन या छल से धर्म परिवर्तन कराने पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से उत्तर प्रदेश मंत्रिमंडल ने अध्यादेश को मंजूरी दी थी जिसे राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने अपनी स्वीकृति दे दी. इस अध्यादेश में 10 वर्ष तक के कारावास का प्रावधान किया गया है.
सपा-बसपा की तीखी प्रतिक्रिया
राज्यपाल की मंजूरी मिलने के बाद समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा था कि जब यह विधेयक के रूप में उप्र विधानमंडल में पेश होगा तो उनकी पार्टी इसका पुरजोर विरोध करेगी. बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष मायावती ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा था, ' लव जिहाद पर अध्यादेश जल्दबाजी में लाया गया है और यह संदेह तथा अनेक आशंकाओं से भरा हुआ है.’’ उन्होंने कहा कि इस संबंध में कई कानून पहले से ही प्रभावी हैं और सरकार इस पर पुनर्विचार करे. हालांकि भाजपा नेताओं का कहना है, 'लव जिहाद के खिलाफ एक सख्त कानून की जरूरत थी, ताकि मुस्लिम पुरुषों के कथित प्रेम की आड़ में हिंदू महिलाओं को धर्म परिर्वतन की साजिश का शिकार न होना पड़े.
नई दिल्ली, 28 दिसंबर| नए साल की शुरूआत से पहले ही, भारतीय इस्पात क्षेत्र ने नवंबर में कच्चे इस्पात के उत्पादन में 3.5 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज करते हुए अपनी खोई हुई चमक वापस पा ली है। वर्ल्ड स्टील एसोसिएशन (डब्ल्यूएसए) की ओर से उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के अनुसार, देश का कच्चा इस्पात उत्पादन नवंबर महीने में 92.45 लाख टन रहा, जबकि पिछले साल इसी महीने के दौरान उत्पादन 89.33 लाख टन रहा था, जो आर्थिक गतिविधियों में एक बड़ी तेजी का संकेत दे रहा है।
इस्पात उत्पादन में वृद्धि बुनियादी ढांचे के क्षेत्र में देखी जाने वाली वृद्धि का एक संकेतक भी है, जहां अर्थव्यवस्था को सामान्य स्थिति में लाने के लिए सरकार की ओर से बहुत सी परियोजनाओं को आगे बढ़ाने पर जोर दिया जा रहा है।
डब्ल्यूएसए ने अपनी नवीनतम रिपोर्ट में यह भी दिखाया है कि इस्पात उद्योग न केवल भारत में रिकवरी के रास्ते पर है, बल्कि यहां के विकास में लगभग 64 प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में कच्चे इस्पात के उत्पादन के साथ एक बड़ी वैश्विक रिकवरी का हिस्सा भी है।
कोविड-19 महामारी के कारण मौजूदा कठिनाइयों को देखते हुए इस महीने के आंकड़े को अगले महीने के उत्पादन अनुमान के साथ संशोधित किए जाने की संभावना है।
रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि भारत 2019 में कच्चे इस्पात का दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश बन गया, जिसने जनवरी-दिसंबर की अवधि में पिछले वर्ष की इसी अवधि के मुकाबले 1.8 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 28 दिसम्बर| 18 दिसंबर को कोरोनावायरस से पॉजिटिव पाए जाने वाले उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को सोमवार को अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) दिल्ली में भर्ती कराया गया है, क्योंकि देहरादून में होम आइसोलेशन में रहने के दौरान उनके सीने में संक्रमण का प्रभाव बढ़ गया। इसकी जानकारी सूत्रों ने आईएएनएस को दी। रावत को एम्स ट्रॉमा सेंटर में रखा गया है और अस्पताल के निदेशक के नेतृत्व में डॉक्टरों की एक टीम उनके स्वास्थ्य की जांच कर रही है।
सूत्रों ने आईएएनएस को बताया कि मुख्यमंत्री को न्यूमोनिया हो गया, जिसके कारण उनकी हालत बिगड़ गई और उन्हें दिल्ली के एम्स में भर्ती कराया गया।
इससे पहले, रावत को बुखार की शिकायत के बाद रविवार को देहरादून के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया था। वहां के डॉक्टरों द्वारा की गई जांच से पता चला है कि रावत के सीने में संक्रमण फैल रहा है। बाद में डॉक्टरों की सलाह के बाद रावत को सोमवार को एम्स दिल्ली ले जाया गया।
18 दिसंबर को कोरोनावायरस जांच रिपोर्ट में पॉजिटिव पाए जाने के बाद मुख्यमंत्री ने खुद को होम आइसोलेट कर लिया था। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 28 दिसंबर | पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी और पार्टी के पूर्व प्रमुख राहुल गांधी की अनुपस्थिति में कांग्रेस ने अपना 136वां स्थापना दिवस मनाया। इस खास मौके पर पार्टी के वरिष्ठ नेता ए.के. एंटनी ने पार्टी का झंडा फहराया। पार्टी की महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा सहित कई वरिष्ठ कांग्रेस नेता पार्टी की स्थापना दिवस के अवसर पर 24 अकबर रोड पर स्थित पार्टी के मुख्यालय पर मौजूद रहे।
इस दौरान मीडिया से बात करते हुए प्रियंका गांधी ने किसानों के प्रदर्शन को राजनीतिक षडयंत्र करार देने के लिए सरकार की आलोचना की।
उन्होंने कहा, "इसे एक राजनीतिक षडयंत्र या साजिश कहा जाना गलत है। मुझे लगता है कि किसानों के लिए जिन शब्दों का इस्तेमाल किया जा रहा है, वह बिल्कुल ही अनुचित है। सरकार किसानों के प्रति जवाबदेह है और सरकार को किसानों से बात करनी चाहिए और कानून वापस लेने चाहिए।"
उन्होंने आगे कहा, "देश की सीमाओं की रक्षा करने वाले सैनिक किसानों के पुत्र हैं और सरकार को यह समझना चाहिए कि किसान देश के अन्नदाता हैं।"(आईएएनएस)
मुंबई, 28 दिसंबर| शिवसेना के मुख्य प्रवक्ता संजय राउत की पत्नी वर्षा राउत को प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा समन जारी होने के एक दिन बाद महाराष्ट्र में सत्तारूढ़ महा विकास अघाड़ी की सहयोगी पार्टियां भारतीय जनता पार्टी के विरोध में उतर गई है। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) और कांग्रेस ने शिव सेना नेताओं के साथ मिलकर विपक्षी नेताओं को निशाना बनाने के लिए भाजपा पर हमला बोला और कहा कि भाजपा की नीतियों के खिलाफ बोलने वालों को टारगेट किया जाता है।
राउत ने एक ट्वीट किया, जो 1981 के एक लोकप्रिय बॉलीवुड गीत, आ देखें जरा, किसमे कितना है दम, जम के रखना कदम, मेरे साथिया पर आधारित था।
यह कहते हुए कि उन्हें इस तरह के नोटिस के बारे में परवाह नहीं है, राउत ने स्पष्ट किया कि अगर ईडी अपना काम कर रहा है तो यह कानूनी होना चाहिए, लेकिन अगर अवैध है, तो उसे (ईडी) अधिक सावधान रहना चाहिए।
यह कहते हुए कि कोई ईडी नोटिस नहीं मिला है, राउत ने भाजपा पर निशाना साधा - मैंने अपने आदमी को बीजेपी कार्यालय में भेजा है। अगर ईडी नोटिस वहां भेजा गया है, तो हमें पता चल जाएगा।
राकांपा नेता और गृह मंत्री अनिल देशमुख ने कहा कि केंद्र में भाजपा राजनीतिक विरोधियों के बीच भय पैदा करने के लिए ईडी और सीबीआई जैसी केंद्रीय एजेंसियों का दुरुपयोग कर रही है, जो एक शर्मनाक बात है।
देशमुख ने कहा, जो भी भाजपा या उसकी नीतियों के खिलाफ बोलने की हिम्मत करता है, उसे ईडी-सीबीआई द्वारा निशाना बनाया जाता है। हमने इस तरह की राजनीति कभी नहीं देखी।
कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष और राजस्व मंत्री बालासाहेब थोराट ने कहा कि जब से भाजपा ने केंद्र में सत्ता संभाली है, केंद्रीय एजेंसियों को विपक्षी दलों पर इस तरह से निशाना बनाने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है, लेकिन हमारी सरकार इस तरह की धमकी से डरने वाली नहीं है।
शिवसेना के पर्यटन मंत्री आदित्य ठाकरे ने भी ईडी नोटिस को राजनीति बताया, जबकि पूर्व केंद्रीय मंत्री और राकांपा नेता प्रफुल्ल पटेल ने कहा, ईडी के नोटिसों को गंभीरता से लेने की आवश्यकता नहीं है।
पटेल ने कहा कि ऐसे कई लोग हैं, जिन्हें ऐसे व्यक्तियों की संलिप्तता के बिना ईडी नोटिस मिलता है। अगर कोई वास्तव में दोषी है, तो यह सामने आएगा और यहां तक कि इसके पीछे की राजनीति भी पहचानी जाएगी।
मुंबई के गार्डियन मंत्री असलम खान ने कहा कि इससे पहले कि कोई भी भाजपा के खिलाफ बोले तो उसे ईडी-सीबीआई से ऐसे नोटिस के लिए तैयार रहना चाहिए। ये सब भाजपा के शासन में पिछले कुछ वर्षों में आदर्श बन गए हैं।
बता दें कि ईडी ने वर्षा राऊत को पूछताछ के लिए 29 दिसंबर को बुलाया है, जिसके बाद 30 दिसंबर को वरिष्ठ राकांपा नेता एकनाथ खडसे को नोटिस दिया गया - जिन्होंने पिछले अक्टूबर में भाजपा छोड़ दी। इसके अलावा एक अन्य वरिष्ठ नेता प्रताप सरनायक और उनके परिवार के खिलाफ भी जांच चल रही है।
खडसे को पुणे भूमि सौदे के बारे में समन भेजा गया है जबकि वर्षा राउत को पीएमसी बैंक से संबंधित एक मामले में पेश होना है।
भाजपा की ओर से, महाराष्ट्र के नेता किरीट सोमैया ने राउत को इस मामले में निर्दोष साबित करने को कहा और पूछा कि क्या उनका परिवार पीएमसी बैंक घोटाले में लाभार्थी है?
सोमैया ने रविवार देर रात सोशल मीडिया पर एक ट्वीट और वीडियो में कहा, मैंने संजय राउत परिवार को ईडी के नोटिस के बारे में सुना। क्या श्री राउत हमें बताएंगे कि उनका परिवार लाभार्थी है? क्या इससे पहले उन्हें किसी भी जांच में नोटिस मिले हैं? पीएमसी बैंक घोटाले में 10 लाख जमाकर्ता पीड़ित हैं। अगर ईडी को कोई जानकारी चाहिए तो राजनीतिक संरक्षण एक स्वस्थ विचार नहीं है। सभी पीएमसी बैंक के पुनरुद्धार चाहते हैं। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 28 दिसंबर | नेशनल स्टूडेंट युनियन ऑफ इंडिया (एनएसयूआई) ने कांग्रेस पार्टी के 136वें स्थापना दिवस पर सोमवार को किसानों की आवाज बुलंद करने के लिए तथा किसानों की पीड़ा को उजागर करने के लिए तिरंगा मार्च का आयोजन किया। तिरंगा मार्च एनएसयूआई कार्यालय से शुरू होकर जंतर मंतर पर जाकर समाप्त हो गया जिसमें एनएसयूआई के सैकड़ो कार्यकर्ताओं ने किसानों के समर्थन में अपनी आवाज बुलंद की। तिरंगा मार्च में अंबानी-अडानी के मास्क लगा कर दो लोगों को सबसे आगे शामिल किया। इसके साथ ही किसान आंदोलन के समर्थन में गले में फांसी का फंदा लटकाए मास्क के साथ किसान को भी शामिल किया गया। एनएसयूआई ने मोदी सरकार के लाए गए तीनों काले कानून की प्रतियां भी जलाई और केंद्र सरकार से जल्द से जल्द काले कानून वापस लेने को कहा।
एनएसयूआई के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीरज कुंदन ने इस दौरान कहा कि, आज कांग्रेस पार्टी के स्थापना दिवस पर किसानों की यह दुर्दशा देखकर हम विचलित हो गये हैं। कांग्रेस पार्टी की स्थापना का मतलब ही किसानों को मजबूत करना था लेकिन वर्तमान में मोदी सरकार ने काले कानून लाकर किसानों को मजबूर कर दिया है।
उन्होंने कहा, आज देश का अन्नदाता पिछले एक महीने से अपना घर एवं खेत छोड़कर दिल्ली के बॉर्डर पर कड़कड़ाती ठंड में बैठा है। किसान हमारे देश की रीढ़ है हम उसके खिलाफ अन्याय बर्दाश्त नही करेंगे। (आईएएनएस)
नई दिल्ली, 28 दिसंबर | नये कृषि कानून के विरोध में लामबंद हुए किसानों को अब तक सरकार गुमराह बता रही थी, लेकिन अब एक किसान नेता का कहना है कि सरकार खुद कृषि सुधार को लेकर गुमराह है। किसान नेता जोगिंदर सिंह कहते हैं कि कृषि सुधार का जो मॉडल विदेशों में फेल हो चुका है उसे भारत में लागू कर सरकार किसानों की तकदीर बदलना चाहती है। जोगिंदर सिंह पंजाब का संगठन भारतीय किसान यूनियन (एकता-उग्राहां) के प्रेसीडेंट हैं। उन्होंने कहा कि सरकार कृषि सुधार को लेकर खुद गुमराह है क्योंकि अमेरिका में ये मॉडल विफल रहा है उसे सरकार भारत में आजमाने जा रही है।
रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने विपक्ष पर किसानों को गुमराह करने का आरोप लगाते हुए कहा कि 1991 में जब (तत्कालीन प्रधानमंत्री) नरसिंह राव ने आर्थिक सुधार का आगाज किया तो उसके सकारात्मक परिणाम आने में चार-पांच साल लग गए। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा लागू कृषि सुधार के अच्छे नतीजे देखने के लिए अगर हम चार-पांच साल इंतजार नहीं कर सकते तो कम से कम दो साल तो इंतजार कर ही सकते हैं।
रक्षामंत्री के इस बयान को लेकर पूछे गए सवाल पर जोगिंदर सिंह ने कहा कि मंडी कानून बिहार में 2006 में ही समाप्त कर दिया गया था और आज बिहार के किसानों का क्या हाल है, यह सबको मालूम है। उन्होंने कहा, इसलिए नये कानून के नतीजे देखने के लिए ज्यादा इंतजार करने की जरूरत नहीं है बल्कि हमारे पास उदाहरण पहले से ही मौजूद हैं। बता दें कि बिहार में 2006 में प्रदेश सरकार ने एपीएमसी काननू को निरस्त कर दिया था।
केंद्र सरकार द्वारा लागू नये कृषि कानूनों को लेकर दिल्ली की सीमाओं पर किसानों का आंदोलन सोमवार को 33वें दिन जारी है। आंदोलनकारी किसान संगठनों के नेता कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) कानून 2020, कृषक (सशक्तीकरण एवं संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा करार कानून 2020 और आवश्यक वस्तु (संशोधन) कानून 2020 को निरस्त करने की मांग कर रहे हैं। संसद के मानसून सत्र में पेश तीन अहम विधेयकों के दोनों सदनों में पारित होने के बाद इन्हें सितंबर में लागू किया गया। हालांकि इससे पहले अध्यादेश के आध्यम से ये कानून पांच जून से ही लागू हो गए थे।
इन तीनों कानूनों को लेकर सरकार और किसान संगठनों के बीच जारी गतिरोध दूर करने और किसान आंदोलन को समाप्त करने के लिए 29 नवंबर को अगले दौर की वार्ता प्रस्तावित है। किसान संगठनों की ओर से इस वार्ता के लिए जो एजेंडा सरकार के पास भेजा गया है उसमें शामिल चार मुद्दों में तीनों केंद्रीय कृषि कानूनों को निरस्त करने के लिए अपनाए जाने वाली क्रियाविधि पहले नंबर पर है।
इसके अलावा, सभी किसानों और कृषि वस्तुओं के लिए राष्ट्रीय किसान आयोग द्वारा सुझाए लाभदायक एमएसएपी पर खरीद की कानूनी गारंटी देने की प्रक्रिया और प्रावधान पर वे सरकार से बातचीत करना चाहते हैं। अगले दौर की वार्ता के लिए प्रस्तावित अन्य दो मुद्दों में राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और आसपास के क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता प्रबंधन के लिए आयोग अध्यादेश, 2020 में ऐसे संशोधन जो अध्यादेश के दंड प्रावधानों से किसानों को बाहर करने के लिए जरूरी हैं और किसानों के हितों की रक्षा के लिए विद्युत संशोधन विधेयक 2020 के मसौदे में जरूरी बदलाव शामिल हैं। (आईएएनएस)
बिहार में तमाम प्रयासों के बावजूद बाल विवाह पर पूरी तरह लगाम नहीं लगा है. अभी भी 41 प्रतिशत लड़कियां शादी की वैध उम्र से पहले ब्याही जा रहीं हैं. शहरों की तुलना में देहातों में बाल विवाह व यौन हिंसा के मामले ज्यादा हैं.
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आजादी के 73 साल बाद भी बिहार में बाल विवाह का प्रचलन जारी है. करीब 41 प्रतिशत लड़कियों की शादी 18 वर्ष से पहले हो जा रही है. इनमें ग्रामीण इलाकों की 43 से ज्यादा और शहरी क्षेत्रों की 28 प्रतिशत लड़कियां शामिल हैं. अहम यह है कि इनमें से 11 प्रतिशत लड़कियां 15-19 वर्ष की आयु में ही मां बन गई थीं. नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे की पांचवीं रिपोर्ट से साफ है कि बाल विवाह की स्थिति में अपेक्षित सुधार नहीं हुआ है. हां, इतना जरूर है कि 2015-16 की पिछली रिपोर्ट की तुलना में थोड़ी कमी जरूर आई है. बाल विवाह का आंकड़ा 42.5 प्रतिशत से घटकर 41 प्रतिशत पर आ गया है. वहीं पुरुषों की बात करें तो 30.5 फीसद लड़कों की शादी 21 साल की उम्र से पहले हो चुकी थी. पिछले रिपोर्ट में यह आंकड़ा 35.3 प्रतिशत था.
बाल विवाह के आंकड़ों में जो भी थोड़ा बहुत सुधार दिख रहा है वह सरकारी व गैर सरकारी एजेंसियों के कार्यक्रमों का असर हो सकता है. जानकार बताते हैं कि बाल विवाह के अधिकतर मामलों का सीधा जुड़ाव बच्चों के माता-पिता की आय से होता है. इसकी वजह है कि बच्चियों को वे बोझ मानते हैं. आर्थिक रूप से सुदृढ़ परिवारों में बाल विवाह के मामले नहीं के बराबर दिखते हैं. बिहार राज्य महिला आयोग की निवर्तमान अध्यक्ष दिलमणि मिश्रा कहती हैं, "बाल विवाह को रोकने का सबसे बड़ा साधन जागरूकता है. निचले तबके के लोगों में शैक्षिक व सामाजिक स्तर पर सुधार की वजह से ऐसे मामलों में एक हद तक कमी आई है. शिकायत आने पर आयोग द्वारा बच्ची के माता-पिता की काउंसिलिंग कर यह सुनिश्चित किया जाता है कि भविष्य में उस लड़की के साथ ऐसा न हो."
सरकार सक्रिय पर नतीजे निराशाजनक
ऐसा नहीं है कि बिहार सरकार इस दिशा में सक्रिय नहीं है. सरकार की ओर से महिला विकास निगम जनवरी 2020 से बाल विवाह व दहेज प्रथा की रोकथाम के लिए "बाल विवाह एवं दहेजमुक्त हमारा बिहार” नामक अभियान चला रही है. निगम के प्रोजेक्ट डायरेक्टर अजय कुमार श्रीवास्तव कहते हैं, "समाज जागरूक हुआ है और इसी वजह से ऐसे मामलों में कमी आई है. यही वजह है कि बीते साल बाल विवाह के 37 मामलों को रोका गया." वैसे भी खासकर ग्रामीण इलाकों में आंगनबाड़ी सेविकाएं, एएनएम व आशा कार्यकर्ता इन पर कड़ी नजर रखती है. ऐसी किसी सूचना को नजरअंदाज नहीं किया जाता है.
बाल विवाह का एक प्रमुख कारण विवाह होने तक लड़कियों को परिवार में मेहमान माना जाना है. समाजशास्त्र के व्याख्याता एलबी सिंह कहते हैं, "दरअसल समाज में आज भी लड़कियों को बोझ माना जाता है. बच्चियों का विवाह माता-पिता के लिए सदैव एक समस्या के तौर पर उनके समक्ष खड़ा होता है. पितृसत्तात्मक समाज होने के कारण लड़कियों का दर्जा लड़कों से नीचे ही है. सोच यह रहती है कि जितनी जल्दी हो सके, इसे निपटाया जाए. सामाजिक दबाव भी रहता ही है. आर्थिक व शैक्षिक रूप से पिछड़े तबके में यह धारणा ज्यादा बलवती है."
यौन हिंसा में भी पहले की ही तरह जारी
बाल विवाह की तरह ही यौन हिंसा भी जारी है, हालांकि पिछले पांच साल में इनमें कमी जरूर आई है. 2015-16 की रिपोर्ट के अनुसार 18 से 29 आयु वर्ग की महिलाओं में 14.2 प्रतिशत यौन हिंसा का शिकार हुईं थीं वहीं 2019-20 की रिपोर्ट में यह आंकड़ा 8.3 प्रतिशत पर आ गया है. इनमें शहरों की तुलना में ग्रामीण इलाकों में यौन हिंसा के ज्यादा मामले दर्ज किए गए. 18 से 29 आयु वर्ग में शहरी इलाके में 7 प्रतिशत तो गांवों में 8.5 फीसद महिलाएं यौन हिंसा की शिकार हुईं. वहीं पतियों द्वारा शारीरिक प्रताड़ना या यौन हिंसा की बात करें तो 18 से 49 आयु वर्ग की 40 प्रतिशत महिलाएं उत्पीड़न की शिकार हुईं. वहीं गर्भावस्था के दौरान 2.8 फीसद शारीरिक प्रताड़ना की शिकार हुईं.
पत्रकार एसके पांडेय कहते हैं, "महिलाओं के यौन उत्पीड़न के मामलों में जितनी ही कमी आई है, उसमें सर्वाधिक योगदान शराबबंदी का है. जो पुरुष शराब से दूर हुए, वे परिवार पर ध्यान देने लगे. आर्थिक कलह उत्पीड़न का सबसे कारण माना जा सकता है. जहां तक गांवों में यौन हिंसा की बात है, उसमें शहरी बुराइयों का बड़ा योगदान है जो इंटरनेट या फिर अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के सहारे वहां तक पहुंच गईं हैं."
कोरोना के दौरान घरेलू हिंसा भी बढ़ी
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण की रिपोर्ट से इतर कोरोना महामारी के कारण लॉकडाउन के दौरान महिलाओं के प्रति घरेलू हिंसा में खासा इजाफा हुआ. महिला थाने की प्रभारी आरती कुमारी जायसवाल कहतीं हैं, "लॉकडाउन के कारण घरेलू हिंसा के मामलों में दो से तीन फीसद का इजाफा हुआ. यही वजह है इस साल यहां 142 ऐसे मामले दर्ज किए गए."
मनोचिकित्सक रमण कुमार कहते हैं, "लॉकडाउन के कारण आर्थिक तंगी, धैर्य की कमी और फिर सेक्सुअल डिमांड पति-पत्नी के बीच विवाद का कारण बना जिसकी परिणति अंतत: उत्पीड़न के तौर पर सामने आई." वजह चाहे जो भी हो समाज का नजरिया महिलाओं के प्रति आज भी उतना उदार नहीं है. जबतक दृष्टिकोण परिवर्तित नहीं होगा, तबतक ऐसी कुरीतियों का अस्तित्व समाज में बरकरार ही रहेगा.
लेबनान के सैन्य अधिकारियों का कहना है कि सीरियाई शरणार्थियों और एक स्थानीय नियोक्ता के बीच लेनदेन के विवाद के बाद शिविरों में आग लगा दी गई, जिससे सैकड़ों लोग बेघर हो गए हैं.
संयुक्त राष्ट्र और लेबनान के अधिकारियों ने रविवार को कहा कि उत्तरी लेबनान में एक शरणार्थी शिविर में आग लग गई थी, जिससे लगभग 300 सीरियाई शरणार्थी बेघर हो गए हैं. खबरों के मुताबिक एक स्थानीय नियोक्ता और शरणार्थियों के बीच पैसे को लेकर विवाद हुआ, जिसके कारण शिविर में आग लगा दी गई. यूएनएचसीआर का कहना है कि मिन्या इलाके में सीरियाई शरणार्थी के करीब 75 परिवार उन शिविर में रह रहे थे जिसमें आग पकड़ ली थी.
लेबनान के एक सरकारी अधिकारी ने नाम नहीं छापने की शर्त पर एसोसिएटेड प्रेस को बताया कि लेबनानी सेना आग के कारणों की जांच कर रही है और जिम्मेदार लोगों को गिरफ्तार करने के लिए छापेमारी हो रही है. एक अन्य सैन्य सूत्र ने समाचार एजेंसी एएफपी को बताया कि स्थानीय लोगों के लिए काम करने वाले सीरियाई शरणार्थियों में मजदूरी को लेकर विवाद था और फिर दोनों पक्षों के बीच लड़ाई हुई थी.
लेबनान में संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी के प्रवक्ता खालिद कबारा ने कहा कि अस्थायी शिविर किराए की जमीन पर स्थित थे और वहां लगभग 375 शरणार्थियों को रखा गया था. उन्होंने बताया है कि शिविर पूरी तरह से जल गए हैं. उन्होंने कहा, "आग के कारण शिविरों में रखे गैस सिलेंडरों में भी विस्फोट हो गया, जिससे कुछ परिवार डर की वजह से भाग गए."
लेबनान का कहना है कि उसने लगभग 15 लाख सीरियाई शरणार्थियों को शरण दी है, जिनमें से लगभग दस लाख ने संयुक्त राष्ट्र के साथ पंजीकरण कराया है. अधिकारियों का कहना है कि शरणार्थियों को अब अपने वतन लौटना चाहिए, लेकिन मानवाधिकार समूहों का कहना है कि युद्ध ग्रस्त सीरिया अभी भी सुरक्षित जगह नहीं है. 2011 में सीरिया संकट के बाद से ही वहां से लोग जान बचाकर भाग रहे हैं और पड़ोसी देशों में शिविरों में रहने को मजबूर हैं.
पिछले महीने उत्तरी लेबनान के शहर बशारा में एक सीरियाई शरणार्थी पर एक लेबनानी की गोली मारकर हत्या करने का आरोप लगा था. जिसके बाद तनाव बढ़ गया था और 270 शरणार्थी परिवारों को इस क्षेत्र से जाना पड़ा था. देश में चल रहे गृहयुद्ध के कारण वहां से भाग रहे सीरियाई शरणार्थियों के बीच तनाव अब आम बात है. लेबनान की आर्थिक स्थिति पहले से ही खराब है और वहां लाखों सीरियाई शरणार्थियों के रहने से देश के बुनियादी ढांचे पर भारी दबाव पड़ रहा है.
एए/एके (डीपीए, रॉयटर्स, एएएफपी)
किसान संगठनों और केंद्र के बीच नए कृषि कानून को लेकर जारी विवाद अब दोबारा बातचीत की पटरी पर लौटता दिख रहा है. मंगलवार सुबह किसान संगठनों के प्रतिनिधि और सरकार के बीच बातचीत हो सकती है.
डॉयचे वैले पर आमिर अंसारी का लिखा-
नए कृषि कानूनों के विरोध 26 नवंबर से किसान दिल्ली में प्रदर्शन कर रहे हैं. उनका कहना है कि नए कानून लागू होने के बाद वे सरकार की तरफ से निर्धारित न्यूनतम समर्थन मूल्य पर अपनी फसल नहीं बेच पाएंगे और वे कोरपोरेट कंपनियों के मोहताज हो जाएंगे. रविवार को किसानों ने रेडियो कार्यक्रम 'मन की बात' के दौरान थाली पीट कर प्रधानमंत्री का विरोध किया.
दिल्ली और आसपास के इलाकों में इस वक्त कड़ाके की सर्दी पड़ रही है और किसानों का दिल्ली की सीमाओं के पास विरोध प्रदर्शन 33वें दिन भी उसी जोश के साथ जारी है जैसे कि पहले दिन था. किसानों के समर्थन में अलग-अलग तबके के लोग भी अपने हिसाब से मदद की पेशकश कर रहे हैं. गुजरते वक्त के साथ किसानों का दिल्ली की सीमाओं पर जमावड़ा भी बढ़ता जा रहा है.
किसानों का कहना है कि जब तक कानून वापस नहीं हो जाते, वे अपने घर नहीं लौटेंगे. यूपी गेट पर किसान नेता राकेश सिंह टिकैत ने "बिल वापसी नहीं तो घर वापसी नहीं" का नारा देकर आंदोलन तेज करने की धमकी दी है. यूपी गेट पर उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के किसान लगातर पहुंच रहे हैं और उनकी संख्या बढ़ती देख पुलिस भी अलर्ट हो गई है.
दूसरी ओर सिंघु बॉर्डर पर किसान 31 दिनों से प्रदर्शन कर रहे हैं. उन्होंने सरकार के बातचीत के प्रस्ताव पर मिलने का समय तय कर दिया है. सिंघु बॉर्डर पर पुलिस ने बढ़ती संख्या को देखते हुए आठ और सीसीटीवी कैमरे लगाए हैं. वहीं एक और प्रदर्शन स्थल टीकरी बॉर्डर पर भी प्रदर्शनकारियों की संख्या बढ़ती देख ड्रोन कैमरे की संख्या को पुलिस ने बढ़ा दी है. यहां रविवार को काफी लोग पहुंचे और वहां लंगर भी लगाया.
मन की बात का विरोध
रविवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रेडियो कार्यक्रम मन की बात के दौरान प्रदर्शनकारी किसानों ने पूर्व घोषित कार्यक्रम के तहत विरोध में ताली और थाली बजाई. किसानों का कहना है कि उन्होंने साल के आखिरी 'मन की बात' में किसानों का जिक्र नहीं किया.
दूसरी ओर रविवार को कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन में शामिल पंजाब के वकील अमरजीत सिंह ने टीकरी बॉर्डर के पास आत्महत्या कर ली. अमरजीत पंजाब में फाजिल्का जिले के जलालाबाद के रहने वाले थे और कुछ मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक उन्होंने कृषि कानूनों के विरोध में खुदकुशी कर ली और उनके पास से सुसाइड नोट भी मिला है. उन्होंने कथित सुसाइड नोट में लिखा है कि वह किसान आंदोलन के समर्थन में और कृषि कानूनों के खिलाफ अपनी जान दे रहे हैं, ताकि सरकार जनता की आवाज सुनने को मजबूर हो जाए.
किसानों के समर्थन में आ रहे आम लोग
आम दिनों की तरह अलग-अलग आंदोलन स्थलों पर 11-11 किसानों की क्रमिक भूड़ताल भी जारी है. प्रदर्शन स्थलों पर किसान अलग-अलग टीम बनाकर 24 घंटे की भूड़ हड़ताल कर रहे हैं. वहीं सिंघु बॉर्डर, यूपी गेट और टीकरी बॉर्डर पर आंदोलनकारी किसानों के समर्थन में आम लोग, गैर सरकारी संगठन और अन्य एजेंसियां किसानों की मदद के लिए दवाई, कंबल, टेंट और खाद्य सामग्री पहुंचा रहे हैं. हर दिन प्रदर्शन स्थलों पर लंगर चला जा रहा है और स्वयंसेवी संगठन लोगों की सेहत के लिए मुफ्त मेडिकल सुविधा भी दे रही है.
किसान संगठनों के प्रतिनिधियों और सरकार के बीच कृषि कानून के मुद्दे पर छह दौर की बात हो चुकी है. सरकार कानूनों में कुछ संशोधन करने को राजी हैं, जबकि किसानों का कहना है कि तीनों कानून वापस होने चाहिए.-
लखनऊ, 28 दिसंबर| उत्तर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू और दूसरे कांग्रेसी नेताओं को पार्टी के स्थापना दिवस पर सोमवार को यहां गांधी प्रतिमा पर माल्यार्पण करने से रोका गया। जैसे ही लल्लू और अन्य पार्टी कार्यकर्ता कांग्रेस मुख्यालय के गेट से बाहर निकले, उन्हें पुलिस और जिला अधिकारियों ने रोक दिया।
अधिकारी ने कहा कि उनके पास हजरतगंज जाने की अनुमति नहीं है जहां गांधी प्रतिमा स्थापित है।
इसके बाद लल्लू और पुलिस के बीच गरमागरम बहस होने लगी।
कांग्रेस नेताओं ने इसके विरोध में पार्टी कार्यालय पर ही उपवास शुरू कर दिया। (आईएएनएस)
जौनपुर (उप्र) 28 दिसंबर | जौनपुर से भारतीय जनता पार्टी के विधायक रमेश मिश्रा ने बलुआ गांव में शहीद स्मारक पर शिलान्यास स्थल पर अपना नाम नहीं देखने के बाद विवाद खड़ा कर दिया। वहीं नींव पूजन में खुद को आमंत्रित न किए जाने के कारण उन्होंने पूजा स्थल पर रखे आसनों और अन्य वस्तुओं को लात मारकर हंगामा खड़ा कर दिया।
रमेश मिश्रा द्वारा हंगामा करने का एक वीडियो सोशल मीडिया पर काफी वायरल हो रहा है। वीडियो में देखा जा सकता है कि वह मौके पर जाते हैं और वहां खड़े लोगों से पूछते हैं कि यहां क्या हो रहा है।
लोगों ने उन्हें सूचित किया कि शहीद स्मारक के नवीनीकरण के एक गेट के लिए नींव रखने की योजना बनाई गई है, यह सुनते ही मिश्रा कथित तौर पर गुस्सा हो गए और सवाल किया कि स्थानीय विधायक होने के बावजूद उन्हें क्यों नहीं बुलाया गया।
मिश्रा ने कहा कि विधानसभा क्षेत्र में शिलान्यास समारोह के दौरान यह अनिवार्य है कि नींव पत्थर पर क्षेत्र के प्रतिनिधि का नाम होना चाहिए।
बाद में मिश्रा ने कहा कि वह मुख्यमंत्री से इसकी शिकायत करेंगे।
हालांकि बाद में एक संदेश के माध्यम से उन्होंने स्पष्ट किया कि वह ऐसे कार्यक्रमों में निर्वाचित प्रतिनिधियों की उपस्थिति के बारे में अधिकारियों को सरकारी आदेश की याद दिला रहे थे।
मिश्र जौनपुर में बदलापुर निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं। (आईएएनएस)
कथित सुसाइड नोट में अमरजीत सिंह ने लिखा है कि वह किसान आंदोलन के समर्थन में और कृषि कानूनों के खिलाफ जान दे रहे हैं, ताकि सरकार जनता की आवाज सुनने को मजबूर हो जाए. पुलिस का कहना है कि वह 18 दिसंबर को लिखे गए सुसाइड नोट की सच्चाई की जांच कर रही है
नई दिल्ली, 28 दिसंबर| प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को दिल्ली मेट्रो की मजेंटा लाइन पर देश की पहली ड्राइवरलेस ट्रेन सेवा के साथ एयरपोर्ट एक्सप्रेस लाइन पर नेशनल कॉमन मोबिलिटी कार्ड सर्विस शुरू करने के दौरान केंद्र सरकार के इस दिशा में चल रहे प्रयासों की जानकारी दी। प्रधानमंत्री मोदी ने आंकड़ों के जरिए वर्ष 2014 के बाद से देश में तेजी से मेट्रो सेवाओं के विस्तार की जानकारी दी। उन्होंने देश की पहली मेट्रो सेवा शुरू करने का श्रेय पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, साल 2014 में देश में सिर्फ 248 किलोमीटर मेट्रो लाइन्स आपरेशनल थीं। आज ये करीब तीन गुनी यानी सात सौ किलोमीटर से ज्यादा है। वर्ष 2025 तक हम इसका विस्तार 1700 किलोमीटर तक करने का प्रयास कर रहे हैं।
प्रधानमंत्री मोदी ने बताया कि वर्ष 2014 में सिर्फ 5 शहरों में मेट्रो रेल थी। आज 18 शहरों में मेट्रो रेल की सेवा है। वर्ष 2025 तक 25 से ज्यादा शहरों तक मेट्रो सेवाओं का विस्तार करने की तैयारी है। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, ये सिर्फ आंकड़े नहीं हैं ये करोड़ों भारतीयों के जीवन में आ रही ईज ऑफ लिविंग के प्रमाण हैं। ये सिर्फ ईंट पत्थर, कंक्रीट और लोहे से बने इंफ्रास्ट्रक्च र नहीं हैं बल्कि देश के नागरिकों, देश के मिडिल क्लास की आकांक्षा पूरा होने के साक्ष्य हैं।
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, हमारी सरकार ने मेट्रो पॉलिसी बनाई और उसे चौतरफा रणनीति के साथ लागू भी किया। हमने जोर दिया स्थानीय मांग के हिसाब से काम करने पर, हमने जोर दिया स्थानीय मानकों को बढ़ावा देने पर, हमने जोर दिया मेक इन इंडिया विस्तार पर, हमने जोर दिया आधुनिक टेक्नोलॉजी के उपयोग पर।
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि कुछ दशक पहले जब शहरीकरण का असर और इसका भविष्य, दोनों ही बिल्कुल साफ था तो उस समय एक अलग ही रवैया देश ने देखा। भविष्य की जरुरतों को लेकर उतना ध्यान नहीं था, आधे-अधूरे मन से काम होता था, भ्रम की स्थिति बनी रहती थी। आधुनिकीकरण के लिए एक ही तरह के मानक और सुविधाएं उपलब्ध कराना बहुत जरूरी है।
प्रधानमंत्री मोदी ने राष्ट्रीय स्तर पर कॉमन मोबिलिटी कार्ड को इस दिशा में एक बड़ा कदम बताते हुए कहा, आप जहां कहीं से भी यात्रा करें, आप जिस भी पब्लिक ट्रांसपोर्ट से यात्रा करें, ये एक कार्ड आपको इंटीग्रेटेड एक्सेस देगा।
इससे पहले प्रधानमंत्री ने वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से जनकपुरी पश्चिम-बोटोनिकल गार्डेन के बीच दिल्ली मेट्रो की मजेंटा लाइन पर देश के पहली ड्राइवरलेस ट्रेन परिचालन सेवा का शुभारंभ किया। दिल्ली मेट्रो की मजेंटा लाइन पर सेवा की शुरूआत के बाद पिंक लाइन पर भी 2021 के मध्य तक ड्राइवरलेस ट्रेन की सुविधा शुरू होगी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस दौरान संबोधन में कहा, मुझे आज से लगभग 3 साल पहले मजेंटा लाइन के उद्घाटन का सौभाग्य मिला था। आज फिर इसी रुट पर देश की पहली ऑटोमेटेड मेट्रो का उद्घाटन करने का अवसर मिला। ये दिखाता है कि भारत कितनी तेजी से स्मार्ट सिस्टम की तरफ आगे बढ़ रहा है। (आईएएनएस)
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लखनऊ, 28 दिसंबर | उत्तर प्रदेश की राजधनी लखनऊ में अब गाय के गोबर से गमले बन रहे हैं। इससे पौधों को नया जीवन और तेजी से विकास होगा। इसके लिए नगर निगम ने एक निजी संस्था से करार किया है। इसकी शुरूआत आगामी 14 जनवरी को कान्हा उपवन में होगी। सिटिजन डेवलपमेंट फाउंडेशन की अध्यक्ष शालिनी सिंह ने बताया कि गमले बनाने के लिए गोबर का इस्तेमाल किया जा रहा है। इसके अलावा गेंहू की पराली, मैदा व लकड़ी की छाल का इस्तेमाल होगा। मैदा लकड़ी, छाल, गोबर और पराली के मिश्रण को मजबूती देगा और गिरने पर यह गमले जल्दी टूटेंगे नहीं। इन्हें खूबसूरत बनाने के लिए रंगा भी जाएगा। गमले बनाने की मशीन भी आ चुकी है। इसमें स्वयं सहयता समूह की महिलाओं को प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है।
नगर-निगम के संयुक्त निदेशक अरविंद कुमार राव ने कहा कि पर्यावरण को बचाने और वृक्षों के विकास को देखते हुए अपने यहां गोबर के गमले बनाने का उत्पादन हो रहा है। इसे बेचने की जिम्मेदारी संस्था की होगी। इससे नगर निगम की आय होगी। लोगों की भी सेहत ठीक रहेगी। (आईएएनएस)
पटना, 28 दिसंबर| मानव बलि मामले में जमुई पुलिस ने दो महिलाओं सहित और तीन लोगों को गिरफ्तार किया है, जिसके बाद गिरफ्तार हुए लोगों की संख्या पांच हो गई। मृतक सौरभ कुमार (7) की हत्या उसके चाचा तूफानी यादव (35) ने 22 दिसंबर को की थी। उसने अपने छोटे भाई कारू यादव और एक तांत्रिक जनार्दन गिरि (50) की बातों में आकर घटना को अंजाम दिया।
जमुई के एसपी प्रमोद कुमार मंडल ने कहा कि तूफानी यादव कारू यादव के माध्यम से गिरि के संपर्क में आया था। बलिदान के दिन तीनों ने 22 दिसंबर को सोनो पुलिस स्टेशन के अंतर्गत आने वाले कोहिला गांव में तूफानी यादव की झोपड़ी में एक तंत्र- अनुष्ठान किया था। उन्होंने बलिदान को अंजाम देने से पहले ताड़ी (नशीला पेय पदार्थ) पी थी।
मंडल ने कहा, "अनुष्ठान के बाद तूफानी घर गया और सौरभ को गांव की सड़क के बीच लेकर आया, इससे पहले उसने उसे पास की दुकान से बिस्किट का पैकेट खरीद कर दिया था। इसके बाद तूफानी ने एक तलवार की मदद से सौरभ की बलि दे दी।"
मंडल ने बताया कि सौरभ तूफानी यादव के बड़े भाई केवल यादव का बेटा था। वे गांव में अलग-अलग रहते थे। तूफानी यादव के पहले बेटे की बीमारी के कारण पिछले साल मृत्यु हो गई थी और उनकी तीन महीने की बेटी भी पिछले कुछ दिनों से बीमार थी। कथित तौर पर कारू यादव और जनार्दन गिरि ने उसे अपनी बेटी की जान बचाने के लिए मानव बलि देने का सुझाव दिया था।
हत्या के बाद तूफानी, कारू और जनार्दन गांव से सटे पास के जंगल में भाग गए थे। ग्रामीणों में से किसी ने भी उनका पीछा करने की हिम्मत नहीं की, क्योंकि तूफानी के हाथ में तलवार थी।
अधिकारी ने कहा "हमने तूफानी की मां कुंती देवी (60) और पत्नी सिंधु देवी (31) को गिरफ्तार किया है, उन्होंने तूफानी को उकसाने की भूमिका निभाई थी और उन्हें 24 घंटे के भीतर गिरफ्तार कर लिया गया था। दो अलग-अलग टीमों द्वारा तूफानी और कारू को शनिवार को जंगल से और जनार्दन को झारखंड में जिला गिरिडीह से गिरफ्तार किया गया।"
(आईएएनएस)
शामली (उप्र), 28 दिसंबर। एक व्यक्ति ने अपनी नव-विवाहित पत्नी के खिलाफ शिकायत दर्ज की है, जिसमें उसने कहा है कि उसकी पत्नी नकदी और सोने के आभूषण लेकर घर से भाग गई। शामली पुलिस स्टेशन में दर्ज अपनी शिकायत में, पिंकू, जो शामली जिले के सिंबलका गांव का निवासी है, ने कहा कि उसकी शादी 25 नवंबर को हुई थी। बागपत जिले की निवासी उसकी पत्नी 26 दिसंबर की रात से लापता है।
पिंकू ने आरोप लगाया कि उसकी पत्नी घर से भाग गई है और 70,000 रुपये नकद और सोने के गहने साथ ले गई है।
पुलिस प्रवक्ता के अनुसार, पत्नी के गांव में पूछताछ से पता चला कि उसका परिवार भी अपने घर से 'लापता' है।
(आईएएनएस)
नई दिल्ली, 28 दिसंबर | पार्टी के स्थापना दिवस से ठीक एक दिन पहले कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी अपनी व्यक्तिगत यात्रा पर विदेश चले गए हैं। कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने इस बात की पुष्टि की है। उनकी यात्रा ऐसे समय में हुई है जब पार्टी सोमवार को अपना स्थापना दिवस मना रही है और देश भर में तिरंगा यात्रा निकाल रही है।
राहुल गांधी ने गुरुवार को कृषि कानूनों के खिलाफ राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से मिलने के लिए एक प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व किया था और उन्हें एक ज्ञापन सौंपकर आग्रह किया था कि वो सरकार से किसानों की मांगों पर विचार करने के लिए कहें।
उन्होंने संसद के संयुक्त सत्र बुलाकर कृषि कानूनों को वापस लेने की भी मांग की थी।
(आईएएनएस)
जेल में ज़िंदगी मुश्किल होती है लेकिन हाल के कुछ हफ़्तों में भारत के जेल अधिकारियों ने क़ैदियों की ज़िंदगी और दुश्वारियों भरी बना दी है और उनके प्रति क्रूरता से पेश आ रहे हैं.
ख़ास तौर पर उन क़ैदियों के ख़िलाफ़ जो सरकार को लेकर मुखर आलोचक रहे हैं जबकि अंतरराष्ट्रीय अधिकार समूहों ने इन्हें 'मानव अधिकारों को बचाव करने वाला' बताया है.
इस महीने की शुरुआत में बॉम्बे हाई कोर्ट ने मुंबई के तालोजा जेल के अधिकारियों को इस बात की याद दिलाई थी कि वो क़ैदियों की ज़रूरतों को लेकर 'मानवतावादी' का रुख़ अपनाएं.
जस्टिस एसएस शिंदे और एमएस कार्निक ने कहा था, "हमें जेलरों के लिए वर्कशॉप करने की ज़रूरत है. कैसे इतनी छोटी ज़रूरतों को पूरा करने से मना किया जा सकता है. ये सब मानवता के दायरे में आते हैं."
यहाँ जिन 'छोटी ज़रूरतों' की बात की गई है वो एक्टिविस्ट गौतम नवलखा का चश्मा है. जिसे देने से उन्हें जेल के अंदर मना कर दिया गया था.
जजों की ये टिप्पणी तब आई थी जब गौतम के परिवार वालों ने मीडिया में यह बात कही थी कि उनका चश्मा जेल में चोरी हो गया है और जब परिवार वालों ने नया चश्मा भेजा तब जेल के अधिकारियों ने उसे लेने से मना कर दिया.
उनकी साथी साहबा हुसैन कहती हैं, "उन्हें 30 नवंबर को उनका चश्मा चोरी होने के तीन दिन बाद मुझे कॉल करने की इजाज़त दी गई. वो 68 साल के हैं. उन्हें अधिक पावर के चश्मे की ज़रूरत पड़ती है. उसके बिना वो लगभग अंधे हो जाते हैं."
मार्च में कोरोना की वजह से लॉकडाउन होने के बाद परिवार वालों और वकीलों को जेल जाकर मिलने पर पाबंदी लगा दी गई है. जेल में बंद क़ैदियों को पार्सल लेने की भी इजाज़त नहीं है.
साहबा हुसैन कहती हैं कि गौतम नवलखा ने उन्हें बताया था कि उन्होंने जेल अधीक्षक से बात की है और अधीक्षक ने इस बात का भरोसा दिया है कि उन्हें उनका चश्मा मिल जाएगा.
दिल्ली में रहने वाली साहबा हुसैन तुरंत बाज़ार गईं और उन्होंने नया चश्मा खरीद उसे तीन दिसंबर को डाक से भेज दिया.
वो बताती हैं, "मैंने तीन-चार दिनों के बाद जब चेक किया तब पता चला कि पार्सल पाँच दिसंबर को जेल पहुँच चुका था लेकिन उसे लेने से मना कर दिया गया और पार्सल वापस लौटा दिया गया."
इसके बाद ही जजों ने 'मानवता' याद दिलाने वाली टिप्पणी की. सोशल मीडिया पर भी तब इसे लेकर लोगों का ग़ुस्सा फूटा. जेल अधिकारियों ने फिर जाकर उन्हें एक नया चश्मा दिया.
गौतम नवलखा कोई मामूली क़ैदी नहीं हैं. वो एक ग़ैर सरकारी संगठन पीपल्स यूनियन फोर डेमोक्रेटिक राइट्स के पूर्व सचिव हैं. उन्होंने अपना पूरा जीवन लोगों के लिए नागरिक अधिकार मिलने की लड़ाई में बिताया है. उनके काम को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सराहा गया है.
वो अप्रैल से भीमा कोरेगांव मामले में जेल में हैं. वो उन 16 कार्यकर्ताओं, कवियों और वकीलों में से एक हैं जिन्हें भीमा कोरेगाँव में आयोजित दलितों की रैली में उन्हें हिंसा करने के लिए भड़काने के मामले में गिरफ़्तार किया गया है. यह रैली एक जनवरी, 2018 को आयोजित की गई थी. इन सभी क़ैदियों ने अपने ऊपर लगे आरोपों से इनकार किया है.
गौतम नवलखा अकेले ऐसे नहीं हैं जिन्हें जेल के अंदर इस तरह की बुनियादी ज़रूरतों को देने से मना किया गया है.
फादर स्टेन स्वामी
father stan swamy photo by ravi prakash
अभी कुछ दिनों पहले ही फादर स्टेन स्वामी को जेल में स्ट्रॉ और सिपर देने से मना कर दिया गया. वो भी भीमा कोरेगाँव मामले में ही जेल में बंद हैं.
83 साल के एक्टिविस्ट और पादरी फादर स्टेन स्वामी पर्किंसन की बीमारी से पीड़ित हैं. उनके वकीलों ने कोर्ट में बताया है कि वो कप को अपने हाथों से पकड़ कर नहीं रख सकते हैं क्योंकि उनके हाथ कांपते रहते हैं.
कई लोगों ने सोशल मीडिया पर अपना ग़ुस्सा निकालते हुए इसे एक घटिया हरकत बताया है और उन्हें तालोजा जेल में सीपर भेजने को लेकर एक अभियान चलाया गया. इसके बाद जल्द ही सिपर फॉर स्टेन ट्विटर पर ट्रेंड करने लगा. कई लोगों ने जेल भेजने के लिए ऑनलाइन ख़रीदे सिपर की स्क्रीनशॉट भी शेयर की.
मुंबई के रहने वाले दीपक वेंकटेशन ने फ़ेसबुक पर लिखा, "जेल में स्ट्रॉ और सिपर की बाढ़ ला दीजिए. पूरी दुनिया को बता दीजिए कि हम अब भी एक राष्ट्र के तौर पर इंसानी जज्बा रखते हैं. हो सकता है कि हमने ग़लत नेता चुन लिया हो लेकिन हमारे अंदर इंसानियत अब भी बाक़ी है. एक 83 साल के बुज़ुर्ग को स्ट्रॉ नहीं मिल रहा हो, जिस देश में हम रहते, वो ऐसा तो नहीं हो सकता."
तीन हफ़्ते बाद फादर स्टेन स्वामी के वकील जब कोर्ट में इसे लेकर गए तो जेल के अधिकारियों ने बताया कि उन्हें सिपर दिया जा चुका है.
वरवर राव
ververa rao, photo from twitter
पिछले महीने 80 साल के माओवादी विचारक वरवर राव को कोर्ट के दखल देने के बाद अस्पताल में इलाज के लिए भर्ती कराया गया.
उनकी वकील इंदिरा जय सिंह ने बॉम्बे हाई कोर्ट में कहा कि उनके मुवक्किल बिस्तर पर बीमार पड़े हुए हैं और उन्हें कोई मेडिकल सहायता नहीं दी जा रही है. उनका कैथेटर तीन महीने से नहीं बदला गया."
उन्होंने सरकार पर लापरवाही का इल्ज़ाम लगाते हुए कहा कि वरवर राव की जेल में ही मौत हो सकती है.
जुलाई में वरवर राव को जेल में कोविड-19 हो गया था. उनके परिवार ने जब इसे लेकर प्रेस कॉन्फ्रेंस की और बयान दिया तब जाकर उन्हें अस्पताल ले जाया गया.
लाइव लॉ वेबसाइट के संस्थापक और भारतीय अपराध क़ानून के विशेषज्ञ एमए राशिद कहते हैं, "पिछले पाँच छह सालों से राजनीतिक कार्यकर्ताओं को ग़ैर-क़ानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत जेल में डाल कर राजनीतिक असहमति को कुचलने की कोशिश सरकार की ओर से की जा रही है. "
"इनमें से कई पर राजद्रोह का मामला चलाकर उन्हें 'एंटी-नेशनल' भी घोषित किया गया है. ऐसे क़ैदियों को, भले ही उनके मामले में अभी सुनवाई चल रही हो, जेल के अंदर दयनीय हालत में सालों अपनी सुनवाई के इंतज़ार में रहने पर मजबूर किया जा रहा है."
राशिद बताते हैं कि कैदियों को संविधान के अंतर्गत अधिकार मिले हुए हैं. उन्हें मेडिकल सुविधाएं मुहैया कराने या फिर सिपर या स्ट्रॉ जैसी बुनियादी ज़रूरत की चीज़ें नहीं देना भारतीय न्यायव्यवस्था को अनसुना करना है.
वो बताते हैं, "सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस वीआर कृष्ण अय्यर ने अपने 1979 के ऐतिहासिक फ़ैसले में यह कहा था कि क़ैदियों को भी सम्मान के साथ जीने का हक़ है. उनके मौलिक अधिकार नहीं छीने जा सकते हैं."
"तब से सुप्रीम कोर्ट और दूसरे कोर्ट हमेशा क़ैदियों के मानवाधिकारों को बरकरार रखने को लेकर फ़ैसले देते रहे हैं."
लेकिन जिन लोगों ने जेल में वक़्त बिताया है, उनका कहना है कि भारत के जेलों में मानव अधिकार है ही नहीं.
सफ़ूरा ज़रगर
दिल्ली के तिहाड़ जेल में 74 दिनों तक रहने वालीं एक गर्भवती छात्र सफ़ूरा ज़रगर ने हाल ही में मुझ से कहा था कि उन्हें और दूसरे क़ैदियों को जेल में बुनियादी चीज़ें भी देने से मना किया गया.
दिल्ली में भड़की हिंसा के मामले में उन्हें अप्रैल में गिरफ़्तार किया गया था. उनके ऊपर हिंसा भड़काने का आरोप लगाया गया है. उनकी गिरफ़्तारी से लोगों में ग़ुस्से की भावना देखी गई. उन्हें जून में जमानत पर रिहा किया गया.
उन्होंने बताया, "मैं नंगे पाँव सिर्फ़ दो जोड़ी कपड़ों के साथ जेल गई थी. मेरे पास एक बैग था जिसमें शैम्पू, साबुन, टूथपेस्ट, टूथब्रश जैसी चीज़ें थीं. लेकिन उसे अंदर नहीं ले जाने दिया गया. मुझे मेरे जूते भी बाहर खुलवा दिए गए थे. मेरे जूते थोड़े हील वाले थे. मुझे बताया गया कि इसकी इजाज़त नहीं है."
उन्हें तब हिरासत में लिया गया था जब कोविड-19 की वजह से पूरे देश में लॉकडाउन लगा हुआ था.
वो बताती हैं, "मैं किसी भी मिलने आने वाले से मिल नहीं सकती थी. ना ही पार्सल ले सकती थी और ना ही पैसे ले सकती थी. पहले 40 दिनों तक मुझे घर पर कॉल करने की भी इजाज़त नहीं थी. इसलिए मैं हर छोटी चीज़ के लिए दूसरे क़ैदियों के रहम पर निर्भर थी."
अप्रैल में जब सफ़ूरा ज़रगर की गिरफ़्तार हुई थीं तब वो उस समय तीन महीने की गर्भवती थीं. वो बताती हैं कि साथ के क़ैदियों ने उन्हें चप्पल, अंडर गारमेंट्स और कंबल दिए.
जेल में कई हफ़्तों तक रहने के बाद उनके वकील ने कोर्ट में याचिका डाली ताकि उन्हें पाँच जोड़ी कपड़े मिल सके.
फरवरी में दिल्ली में दंगे भड़के थे जिसमें 53 लोगों की मौत हुई थी. इनमें से ज़्यादातर मुसलमान थे. इन दंगों के आरोप में ज़रगर समेत कई मुसलमान स्टूडेंट एक्टिविस्ट को गिरफ़्तार किया गया है.
अभियुक्तों का कहना है कि वे विवादास्पद नागरिकता संशोधन क़ानून का विरोध कर रहे थे और उनकी दंगे में कोई भूमिका नहीं थी.
इन गिरफ़्तारियों का वकीलों, कार्यकर्ताओं और अंतरराष्ट्रीय अधिकार समूहों ने निंदा की है.
लेकिन जो लोग गिरफ़्तार हुए वो जेल में ही रहने पर मजबूर हैं. उनकी ज़मानत की अर्जी लगातार ख़ारिज की जा रही है और वो अपनी बुनियादी ज़रूरत की चीज़ों के लिए कोर्ट का दरवाज़ा खटखटा रहे हैं.
पिछले महीने जेल में बंद 15 में से सात कार्यकर्ताओं ने चप्पल और गर्म कपड़े नहीं मिलने की शिकायत की थी. एक जज ने तब मजबूर होकर जेल के अधिकारियों को चेतावनी दी थी कि वे ख़ुद जाकर जेल का दौरा करेंगे.
सफ़ूरा ज़रगर बताती हैं, "चूंकि हम लोग आवाज़ उठाते हैं इसलिए जेल के अधिकारी हमें पंसद नहीं करते थे. वो हर हफ़्ते नए कायदे-क़ानून लेकर जा जाते थे और इसका इस्तेमाल हमें परेशान करने के लिए करते थे. "
कोविड-19 की वजह से लगी पाबंदियाँ अब भी लागू हैं. कैदियों के परिवार के लोगों का कहना है कि वो इस हालात में कुछ खास नहीं कर सकते सिवाए बहुत आपात स्थिति में कोर्ट में अपील करने के जैसा कि साहबा हुसैन ने नवलखा को चश्मे दिलवाने के मामले में किया है. (bbc)
दिल्ली में चल रहे विरोध प्रदर्शनों के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसानों के नाम जो संदेश दिया, उसमें छिपे संकेतों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। क्रिसमस के दिन उन्होंने पीएम किसान सम्मान योजना में शामिल किसानों के खातों में 18,000 करोड़ रुपये सीधे ट्रांसफर करने का बटन दबाया।
ठीक उसी वक्त, मुझे सांता क्लॉस और उनके तोहफों वाली कहानियां याद आईं और मैंने खुद को समझाया कि हो सकता है कि त्योहारों के मौसम में ऐसी किसी चीज की उम्मीद की जा रही हो। लेकिन अगले ही पल मोदी ने कहा, "क्रिसमस के दिन, यह किसानों के लिए तोहफा है।"
केंद्रीय कृषि व किसान कल्याण मंत्री के मुताबिक प्रधानमंत्री ने वर्चुअल तरीके से तकबरीन 8 करोड़ किसानों को संबोधित किया। इसका मतलब यह है कि उन्होंने खेती-किसानी में लगे देश के कुल किसानों में से 50 फीसदी से ज्यादा को संबोधित किया। इस लिहाज से उनका यह संबोधन 'ऐतिहासिक' हुआ, जैसा कि उनके द्वारा लिया गया लगभग हर कदम और फैसला आधिकारिक रूप से ऐतिहासिक ही होता है।
उन्होंने आश्वासन दिलाया कि सरकार द्वारा न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) हटाने और कृषि को कॉरपोरेट के हवाले करने को लेकर किसानों के मन में जो डर है, वो बेमतलब है। उन्होंने कई बार इस बात को दोहराया, "सरकार ऐसा नहीं कर रही है।"
हालांकि, उनके संबोधन का एक बड़ा भाग विपक्षी पार्टियों के नाम समर्पित रहा कि कैसे पार्टियों ने किसानों और उनकी परेशानियों का 'राजनीतिकरण' कर दिया है। उन्होंने एक के बाद एक कई बिंदु गिनाए कि कैसे विपक्षी पार्टियां या गैर-भाजपाई दल राजनीति में प्रासंगिक बने रहने के लिए कृषि संकट का इस्तेमाल कर रहे हैं।
उन्होंने अपनी सरकार की योजनाएं गिनाते हुए कई बार दोहराया कि, "जब वे दशकों तक सरकार में थे, तो कुछ भी नहीं हुआ। छोटे किसान गरीब होते गए और वे चुनावों पे चुनाव जीतते गए। मेरी सरकार कृषि में एक नई सोच ला रही है।"
देश के हर क्षेत्र से चुने गए किसानों के साथ अपनी बातचीत में उन्होंने दो सवाल पूछे: "क्या निजी कंपनियों के साथ व्यापार करने से आपको अपनी ज़मीन खोनी पड़ी?" और "क्या सरकारी नियंत्रण वाले बाजारों के बाहर माल बेचने से आपकी ज्यादा कमाई नहीं हो रही है?"
उनसे बात करने वाले किसानों ने इनकार में जवाब दिया। उन्होंने किसानों से अनुरोध किया कि वे अपने गावों में इस संदेश को फैलाएं।
लेकिन विपक्षी पार्टियों पर किसानों के मुद्दों का राजनीतिकरण करने का आरोप लगाते हुए उन्होंने एक ऐसा एजेंडा सेट कर दिया, जिसको लेकर खुश हुआ जा सकता है कि किसान और किसानी राजनीति की मुख्यधारा में आ चुकी है।
उन्होंने जिक्र किया कि कैसे पश्चिम बंगाल सरकार ने अब तक पीएम किसान योजना को भी लागू नहीं किया है। इस राज्य में जल्द ही चुनाव होने वाले हैं, और भाजपा कि कोशिश है कि ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली तृणमूल कांग्रेस को सत्ता से हटा सके।
उन्होंने जिक्र किया कि क्यों अब तक केरल ने कृषि उपज विपणन समिति स्थापित नहीं की है, जबकि सत्ताधारी पार्टी दिल्ली और पंजाब में किसानों का समर्थन कर रही थी। भाजपा केरल में भी रास्ता बनाने की कोशिश कर रही है।
उन्होंने ये भी कहा की कैसे राजस्थान के स्थानीय चुनावों में, जो लोग तीन कृषि कानूनों का विरोध कर रहे थे, उनकी हार हुई। उन्होंने कहा- "चुनावी नतीजे हमारे कानूनों का समर्थन करते हैं।"
विरोध प्रदर्शन कर रहे किसानों की मांगों को बिना संबोधित किए उन्होंने यह साफ कर दिया कि यह सत्ताधारी और विपक्षी पार्टियों के बीच की जंग है। प्रदर्शन कर रहे किसानों को उन्होंने अपने भाषण से बाहर ही रखा।
लेकिन जिस बात के लिए खुश होना चाहिए वो ये है कि किसानों के प्रदर्शन ने प्रधानमंत्री का ध्यान खींचा, वो भी ऐसे कि उन्हें किसानों की समस्याओं पर चर्चा करने के लिए इस प्रभावशाली आयोजन की मदद लेनी पड़ी। इस मुद्दे को सत्ताधारी और विपक्षी पार्टियों के बीच का मुद्दा बनाकर वे कृषि को राजनीतिक संवाद में ले आए। (downtoearth)
नई दिल्ली, 28 दिसंबर | मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने केंद्र सरकार के तीनों कृषि कानूनों पर बहस की चुनौती दी तो भाजपा की दिल्ली इकाई ने उनके लिए कुर्सी लगवाकर आमंत्रित किया। पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और सांसद मनोज तिवारी के आवास पर प्रदेश अध्यक्ष आदेश कुमार गुप्ता और सभी भाजपा नेता मुख्यमंत्री केजरीवाल का इंतजार करते रहे। आदेश गुप्ता और मनोज तिवारी ने कहा कि आज भले ही मुख्यमंत्री केजरीवाल अपनी व्यस्तता के कारण न पहुंचे हों, लेकिन आगे वे अपनी सुविधानुसार समय और स्थान बताएं तो भाजपा नेता उन्हें तीनों कृषि कानूनों के फायदे बताएंगे।
तिवारी ने कहा कि उन्होंने आज केजरीवाल को चर्चा के दौरान पिलाने के लिए स्पेशल चाय की भी व्यवस्था की थी, लेकिन बुलावे के बाद भी मुख्यमंत्री नहीं आ रहे हैं।
दरअसल, मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने रविवार को सिंघु बॉर्डर पर जाकर प्रदर्शनकारी किसानों से मुलाकात कर केंद्र सरकार से तीनों कानूनों को वापस लेने की मांग की। इस दौरान उन्होंने कानूनों पर बहस की चुनौती देते हुए कहा, "मैं किसी भी केंद्रीय मंत्री को चुनौती देता हूं कि वह किसानों के साथ खुली बहस करें, जिससे पता चल जाएगा कि ये कृषि कानून लाभदायक हैं या हानिकारक।"
केंद्र सरकार के किसी मंत्री ने उनकी चुनौती तो नहीं स्वीकार की, लेकिन दिल्ली भाजपा इकाई ने जरूर उन्हें बहस के लिए आमंत्रित किया। इसकी पहल भाजपा सांसद मनोज तिवारी ने की। मनोज तिवारी के 24, मदर टेरेसा क्रिसेंट रोड स्थित आवास पर दिल्ली भाजपा अध्यक्ष आदेश कुमार गुप्ता भी पहुंचे।
आदेश गुप्ता ने कहा कि दूसरे राज्यों मे जाकर मुख्यमंत्री केजरीवाल कहते हैं कि कृषि कानून के क्या लाभ हैं, उन्हें यह समझाने के लिए कोई नहीं आया। आज जब उनको यह समझाने के लिए बुलाया, तो वे आए नहीं।
मनोज तिवारी ने कहा कि कुछ दिनों पहले निगम के तीनों महापौर मुख्यमंत्री के दरवाजे के बाहर कई दिनों तक रहे, लेकिन केजरीवाल बाहर निकलकर मिलने तक नहीं आए। अब कृषि कानूनों पर बहस के लिए बुलावे के बाद भी वह नहीं आए।
--आईएएनएस
उत्तर प्रदेश से रणविजय सिंह, मध्यप्रदेश से राकेश कुमार मालवीय, छत्तीसगढ़ से शिरीष खरे और हरियाणा से शाहनवाज आलम की रिपोर्ट
पीएम किसान सम्मान योजना के तहत 11.40 करोड़ किसान पंजीकृत हैं, लेकिन 7वीं किस्त नौ करोड़ किसानों को देने की बात कही जा रही है। डाउन टू अर्थ ने उन किसानों से बात की, जिन्हें पैसा नहीं मिल रहा है। पीएम किसान की वेबसाइट के मुताबिक अगस्त-नवंबर 2020-21 तिमाही की किस्त 10,07,30,803 किसानों को भेजी गई है, जबकि इससे पहले की तिमाही में यह संख्या अधिक थी। अप्रैल-जुलाई 2020-21 में 10,46,07,572 किसानों को 2,000 रुपए की राशि भेजी गई थी।
हालांकि केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने कहा था कि लगभग 14.5 करोड़ किसानों को पीएम किसान सम्मान की राशि दी जा सकती है, लेकिन अब तक 11.40 करोड़ किसानों का ही पंजीकरण किया गया है। किसानों को यह राशि क्यों नहीं मिल रही है? डाउन टू अर्थ ने उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के किसानों से बात की-
उत्तर प्रदेश
"सरकार किसानन के दुई हजार रुपया देत हय, लेकिन हमका एकव नाई मिला," किसान सम्मान निधि को लेकर यह बात यूपी के सीतापुर जिले के बरोए गांव के रहने वाले किसान संजय कुमार (36) कहते हैं।संजय ने बताया कि किसान सम्मान निधि के लिए रजिस्ट्रेशन कराने के बाद वह कई बार ब्लॉक पर गए हैं। हर बार उनसे कहा गया कि अब से 2 हजार रुपए आना शुरू हो जाएगा, लेकिन अभी तक एक किश्त भी नहीं आई है। संजय को उम्मीद है कि 25 दिसंबर को जब प्रधानमंत्री देश के 9 करोड़ किसानों के खाते में 2 हजार रुपए की सातवीं किश्त भेजेंगे तो उनके खाते में भी पैसा आ जाएगा। हालांकि फिलहाल यह मूमकिन नहीं लगता, क्योंकि जिन किसानों की पिछली किश्तें बकाया हैं उनकी सातवीं किश्त 25 दिसंबर को नहीं आएगी।
उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले के बरोए गांव के रहने वाले किसान संजय कुमार। फोटो: रणविजय सिंह
यूपी में ऐसे किसानों की संख्या करीब 28 लाख है। इन 28 लाख किसानों में किसी को एक भी किश्त नहीं मिली, किसी को एक-दो किश्तें मिली हैं तो किसी का पैसा गलत बैंक खाते में जा रहा है। इन किसानों से बात करने पर पता चला कि यह छोटी मोटी गड़बड़ियां है जो जानकारी दर्ज करते वक्त हुई हैं। जैसे - किसी का आधार नंबर गलत हो गया तो किसी का खाता संख्या ही गलत चढ़ चुका है। अब इसे ठीक कराने के लिए यह ब्लॉक और लेखपाल के चक्कर काट रहे हैं।
इन गड़बड़ियों पर यूपी के प्रमुख सचिव कृषि देवेश चतुर्वेदी ने 'डाउन टू अर्थ' से बताया कि "हमें ऐसी गड़बड़ियों की जानकारी है। शिकायत मिलने पर इसे सही किया जाता है। किसान सम्मान निधि के तहत प्रदेश में 2 करोड़ 41 लाख किसानों का पंजीकरण हुआ है। इतने किसानों को किश्तें मिलनी चाहिए। इसमें से लगभग 14 लाख किसानों की किश्तें इसलिए नहीं मिल पा रही कि इनका आधार नंबर गलत चढ़ गया है या फिर इनका नाम गलत है। यह संख्या पहले बहुत थी जिसे हम कम करके 14 लाख पर लाए हैं।
देवेश चतुर्वेदी ने बताया कि 25 दिसंबर को यूपी के 2 करोड़ 13 लाख किसानों को सातवीं किश्त मिलेगी। इसके अलावा प्रदेश के 14 लाख किसान ऐसे हैं जिनकी पिछली किश्तें बकाया हैं, जब उनको पिछली किश्तें मिल जाएंगी तब सातवीं किश्त उनको भेजी जाएगी। 14 लाख वह किसान जिनके खातों में गड़गड़ियां हैं और अन्य 14 लाख वह किसान जिनकी पिछली किश्तें बकाया है।
सीतापुर जिले के बरोसा गांव के अजीत प्रताप सिंह (32) भी उन 28 लाख किसानों में शामिल हैं जिनके खाते में गड़बड़ी देखने को मिल रही है। अजीत के खाते में शुरुआत की तीन किश्तें तो आईं हैं लेकिन चौथी और पांचवी किश्त किसी दूसरे के खाते में चली गई। अजीत कहते हैं, "मैंने कई बार शिकायत की। हरगांव ब्लॉक पर लेखपाल से भी मिलकर आया, लेकिन कोई समाधान नहीं हुआ। मेरे नाम से आया पैसा किसी दूसरे के खाते में जा रहा है और मैं कुछ नहीं कर सकता।"
इसी तरह बागपत जिले के शाहपुर बड़ौली गांव के किसान राम कुमार (41) ने अक्टूबर 2019 में पीएम किसान सम्मान निधि के लिए रजिस्ट्रेशन कराया। राम कुमार बताते हैं, “रजिस्ट्रेशन कराए हुए साल भर से ज्यादा हो गया। अभी तक एक भी किश्त नहीं आई है। पहले मैंने खूब भाग दौड़ की। कई महीने तक ब्लॉक के चक्कर काटे, अब छोड़ दिया है।”
डाउन टू अर्थ ने इसी साल अप्रैल के महीने में यूपी में पीएम किसान सम्मान निधि की गड़बड़ियों पर एक खबर की थी। उस खबर में सीतापुर जिले के बरोए गांव के रहने वाले 71 साल के ललऊ की कहानी थी। ललऊ ने तब बताया था कि पीएम किसान सम्मान निधि पाने के लिए खूब भाग दौल की, लेकिन उनका पैसा नहीं आया। अब करीब 6 महीने बीतने के बाद भी ललऊ के खाते में एक भी किश्त नहीं पहुंची है, जबकि उनका रजिस्ट्रेशन पिछले साल हो चुका था।
मध्य प्रदेश
मध्यप्रदेश के पन्ना जिले के शिवदत्त पाठक ने एक साल किसान सम्मान निधि के लिए जरूरी प्रक्रिया पूरी कर पंजीयन करा लिया था। उनका पंजीयन सफल भी हो गया। पर अभी तक उन्हें इस सम्मान निधि की राशि नहीं मिल पाई है। होशंगाबाद जिले के रोहना गांव के किसान राजेश सामले भी अपने पिताजी मृत्यु के बाद एक साल पहले इस योजना में पंजीयन करवा चुके हैं। पर उन्हें भी अब सम्मान राशि नहीं मिल पाई है।
दमोह जिले की हटा तहसील के बरखेड़ा चैन निवासी ओमप्रकाश पटेल की तीन किश्तों के बाद राशि नहीं आई है। ओमप्रकाश ने यह सोचा कि लॉकडाउन और महामारी की वजह से सरकार ने इस योजना का पैसा अभी खाते में नहीं डाला है, इसलिए उन्होंने इसके बारे में पता भी नहीं किया है।
रीवा जिले के किसान राजमन यादव चौकिया डभौरा बस्ती में रहते हैं। उन्होंने भी इस योजना में पंजीयन करवाया था और सभी दस्तावेज जमा किए थे। इसके बावजूद उन्हें एक भी किस्त नहीं मिल सकी है। इस बारे में जब पटवारी से पूछा तो वह भी कोई जवाब नहीं दे पा रहा है।
नरोत्तम लाल पटेल हटा दमोह जिले के किसान हैं। उन्होंने भी आनलाइन आवेदन किया था। उन्हें इस योजना की एक भी किस्त नहीं मिली थी। उनके बेटे छत्रसाल ने जब पोर्टल पर चेक किया तो पता चला कि खाता संख्या में एक अंक ज्यादा दर्ज था, जबकि इसके पंजीयन के वक्त पासबुक की फोटो कॉपी भी लगाई थी। इसके बाद खाता संख्या को अपडेट करवा गया। इस प्रक्रिया को पूरा करने के बाद एक दिन छोड़कर तीन किस्तें उनके खाते में जमा हो पाईं।
होशंगाबाद जिले के एक गांव में कॉमन सर्विस सेंटर के संचालक प्रकाश ने बताया कि इस साल जो लोग भी अपना पंजीयन करवा रहे हैं उनके पंजीयन अप्रूव नहीं हो रहे हैं। पंजीयन के लिए लाइन तो ओपन है, लेकिन जब तक अप्रूवल नहीं मिलेगा, तब तक इस योजना का लाभ किसानों को नहीं मिल सकेगा।
पन्ना जिले के इंद्रसिंह पटी कल्याणपुर गांव के युवा हैं। एक संस्था के साथ जुड़कर वह अपने गांव में लोगों को मनरेगा, पीएम किसान और अन्य योजनाओं का लाभ दिलवाने की कोशिश कर रहे हैं। इंद्र ने बताया कि सबसे बड़ी समस्या थी कि लोगों को इसके बारे में पर्याप्त जानकारी ही नहीं थी, लोगों के पास स्मार्ट फोन नहीं है, और उन्हें उसका उपयोग करना भी नहीं आता।
उन्होंने पिछले आठ महीने में सौ से ज्यादा किसानों के आवेदन करवाए हैं, जिससे लोगों को लाभ मिलना शुरु भी हुआ है। जिन लोगों को पंजीयन के बावजूद लाभ नहीं मिलता उनमें सबसे ज्यादा मुश्किल आधार कार्ड, बैंक खातों की गलत एंट्री से संबंधित है। लेकिन हर पंचायत में इंद्र जैसे नौजवान नहीं हैं, जो अपने दूसरे कामों के साथ लोगों को इस तरह भी मदद कर सकें।
छत्तीसगढ़
आरती दानी छत्तीसगढ़ में दुर्ग जिले के सिलतारा गांव की एक महिला किसान हैं। वे अपनी सवा एकड़ की जमीन पर पति के साथ मिलकर मक्का की खेती करती हैं। अपने चार सदस्यों वाले इस छोटे से परिवार की आजीविका का मुख्य जरिया खेती ही है। प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि में पंजीयन कराने के बाद इसी साल मई में उनके बैंक खाते में पहली किस्त के तौर पर 2,000 रुपए की राशि जमा हुई। लेकिन, उसके बाद अगली किस्त के तौर पर अगस्त में मिलने वाली 2,000 रुपए की राशि उनके खाते में नहीं पहुंची। अब उन्हें दिसंबर में मिलने वाली 2,000 रुपए की किस्त का इंतजार है।
आरती दानी बताती हैं, "एक बार जब मेरा पंजीयन हो चुका है और एक लाभार्थी के रुप में जब मैं इसके पात्र हूं, यहां तक की मुझे मेरी पहली किस्त का पैसा भी दिया जा चुका है तो समझ नहीं आता कि अगली किस्त क्यों रोक दी गई।" आरती ने इस बारे में जानने की कोशिश भी की। लेकिन, उन्हें अपने सवाल का जवाब नहीं मिला। असल में उन्हें नहीं पता कि उनके सवाल का जवाब देने वाली एजेंसी कौन-सी है।
आमतौर पर एक सामान्य किसान यह जानने के लिए हद से हद पटवारी और तहसीलदार तक ही जा सकता है। लेकिन, आरती की तरह कई किसानों को पटवारी और तहसीलदार से भी कोई स्पष्ट जवाब नहीं मिल रहा है। वहीं, आरती की तरह बतौर लाभार्थी कई किसानों के नाम प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि के पोर्टल में तो दर्ज दिखाए दे रहे हैं, लेकिन उनकी शिकायत है कि उन्हें इस योजना का पैसा मिलना बंद हो गया है।
छत्तीसगढ़ के किसान नेता राजकुमार गुप्ता बताते हैं कि इस राज्य में पांच एकड़ से कम रकबा वाले करीब 32 लाख किसान हैं। किंतु, प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि के तहत करीब 24 लाख किसानों का पंजीयन हुआ। हर किस्त के बाद केंद्र सरकार द्वारा जो सूची अपडेट होनी चाहिए, शायद वह सूची अपडेट नहीं हो रही है।
जांजगीर जिले के तीन लाख 29 हजार किसानों का पंजीयन किया गया था। यहां पहली किस्त दो लाख 40 हजार किसानों के खाते में आई। फिर दूसरी किस्त एक लाख 83 हजार किसानों को ही मिली। उसके बाद तीसरी किस्त 75 हजार किसानों को ही दी गई। अंत में चौथी किस्त 35 हजार किसानों तक ही आई। दुर्ग जिले में कुंडा गांव के बुजुर्ग किसान आई के वर्मा को भी पिछली दो किस्तों का पैसा नहीं मिला है।
हरियाणा
कैथल जिले के पुंडली तहसील के गांव फरल के किसान गुणी प्रकाश ठाकुर के पास तीन एकड़ जमीन है। 64 वर्षीय किसान गुणी प्रकाश को पीएम किसान सम्मान की एक भी किस्त नहीं मिली। गुणी प्रकाश का कहना है कि जमाबंदी के वक्त मेरा नाम गुण प्रकाश कर दिया गया, जबकि मेरे आधार, राशन कार्ड और बैंक अकाउंट में नाम गुणी प्रकाश है। नाम के अंतर को लेकर शपथ पत्र भी दिया, लेकिन अब तक कुछ नहीं हुआ। जमाबंदी सही करवाने के लिए जन्म प्रमाण पत्र और पुरानी खतियान मांगी जा रही है। आधार, राशन कार्ड और बैंक में नाम बदलवाना भी संभव नहीं है। अब हार कर मैंने उम्मीद ही छोड़ दी।
इसी तरह फरल गांव के ही कलेक्टर सिंह का कहना है कि उनके पिता के नाम दली राम की स्पेलिंग गलती होने की वजह से अब तक उन्हें सम्मान निधि नहीं मिला है। सुखबीर सिंह के जमा बंदी में पिता का नाम हिन्दी में ज्ञान सिंह की जगह 'गयान' लिखा है। कृषि विभाग कहता है कि गयान और ज्ञान एक ही नहीं है। यह कहकर आवेदन रद्द कर दिया। दो बार आवेदन रद्द होने के बाद अब तक आवेदन नहीं किया है। इस गांव के किसानों का दावा है कि एक साल तक आवेदन लंबित होने के बाद उन्हें अब रद्द किया जा रहा है। करीब 200 किसानों के आवेदन रद्द किए जा चुके है।
वहीं, तीन एकड़ जमीन के मालिक गुरुग्राम (गुड़गांव) के पातली गांव के किसान अशोक कुमार कहते है, उन्होंने बीते वर्ष सितंबर में इस योजना के तहत रजिस्टर्ड कराया था। पहली बार इस साल उन्हें 18 अप्रैल को 2000 रुपये मिला है। अभी तक उन्हें अगस्त से नवंबर के बीच मिलने वाली किस्त भी नहीं मिली है।
पहली किस्त के वक्त पूरे प्रदेश में 19,23,238 किसान पंजीकृत थे और 18,69,950 किसानों को लाभ मिला था, वहीं छठीं किस्त के वक्त 14,64,657 पंजीकृत किसान थे और 1168389 किसानों को लाभ मिला, जबकि सातवीं किस्त के लिए हरियाणा सरकार ने 12,53,982 किसानों को चिह्नित किया है। जिसे सम्मान निधि मिलेगा।
विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है, इस योजना का लाभ लेने के लिए जिन किसानों ने सीएससी सेंटरों पर जाकर रजिस्ट्रेशन करवाया था, उन किसानों की जमीन की तस्दीक नहीं हो पाई। कई किसानों के जमाबंदी, अकाउंट या आधार कार्ड में गलती होने की वजह से भी सम्मान निधि नहीं मिल पा रही है। बता दें कि सातवीं किस्त के लिए कृषि विभाग द्वारा जमीन की तस्दीक के लिए एक फॉर्म जारी किया गया है। इसे किसानों को भरकर खंड कृषि कार्यालय में जमा कराने के बाद फॉर्म को गांव का नंबरदार व हलका पटवारी तस्दीक कराना होगा। इसमें साफ लिखा है कि उन किसानों को ही योजना का लाभ दिया जाएगा जो एक फरवरी 2019 से पहले जमीन पर मालिकाना हक रखते हैं।
पीएम किसान सम्मान निधि के नोडल अधिकारी सुनील का कहना है कि इस योजना में पहले कई अपात्र लोग शामिल हो गए थे। पीएम किसान सम्मान निधि योजना का लाभ ले रहे लाभार्थियों का वेरिफिकेशन किया जा रहा है। जो अपात्र लोग इस योजना का लाभ ले रहे थे, उनका लिस्ट से नाम हटा दिया गया है। पैसे सीधे लाभार्थी के अकाउंट में जाता है इसलिए सभी जानकारी देनी अनिवार्य है। (downtoearth)
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल कृषि क़ानून के ख़िलाफ़ काफ़ी मुखर हैं.
बीजेपी, कांग्रेस से लेकर अकाली दल इस मुखरता को 'केजरीवाल की अवसरवादिता' क़रार दे रहे हैं.
वहीं, आम आदमी पार्टी का दावा है कि वो किसानों के साथ उस दिन से खड़ी है जब से ये क़ानून लोकसभा और राज्य सभा में पास किए गए थे.
इस मुद्दे पर पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह बादल और केजरीवाल के बीच पिछले कई हफ़्तों से 'ट्विटर जंग' छिड़ी हुई रही.
कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कहा, "इन कृषि क़ानूनों के बारे में किसी भी मीटिंग में कोई चर्चा नहीं की गई थी और अरविंद केजरीवाल आपके बार-बार दोहराये गए झूठ से ये नहीं बदलने वाला है. और बीजेपी भी मुझपर दोहरे मापदंड रखने का आरोप नहीं लगा सकती है क्योंकि आपकी तरह मेरा उनसे किसी किस्म का गठजोड़ नहीं है."
नोटिफ़ाई किया तो सदन में कानून क्यों फाड़ा?
विपक्षी पार्टियों का सवाल है कि जब दिल्ली सरकार ने कृषि क़ानून को नोटिफ़ाई कर दिया तो उसके बाद उन्हें सदन में फाड़ने का मतलब क्या है?
इस बारे में आप विधायक जर्नेल सिंह ने बीबीसी से बातचीत में कहा, "जिस दिन किसी क़ानून पर राष्ट्रपति के हस्ताक्षर हो जाते हैं, उस दिन उसे नोटिफाई या डिनोटिफाई करने की किसी स्टेट की ताक़त नहीं रह जाती है. अगर राज्य सरकार के हाथ में होता तो पंजाब सरकार अपने यहाँ रद्द कर लेती तो किसानों को इतने महीनों से यहाँ बैठने और धक्के खाने की क्या ज़रूरत थी?"
वो कहते हैं, "ये सिर्फ़ गुमराह करने के लिए बोला जा रहा है. आम आदमी पार्टी ने दिल्ली की विधानसभा में भी और आंदोलन के पहले दिन से अपना रुख़ स्पष्ट किया है."
लेकिन सवाल अब भी बना हुआ है कि जब पंजाब सरकार ने क़ानून को नोटिफ़ाई नहीं किया तो आम आदमी पार्टी ने ऐसा क्यों किया?
क्या ये सब चुनावी रणनीति का हिस्सा है?
पंजाब में आम आदमी पार्टी की राजनीति को क़रीब से देखने वाले वरिष्ठ पत्रकार जगतार सिंह मानते हैं कि वो पंजाब में कांग्रेस और अकालियों के ख़िलाफ़ एंटी-इन्कमबेंसी (सत्ता विरोधी लहर) के कारण ख़ुद को दोबारा ज़िंदा करने की कोशिश में लगी है.
जगतार सिंह कहते हैं, "आम आदमी पार्टी की ओर से जिस तरह तीन कृषि क़ानूनों को असेंबली में फाड़कर फेंका गया, उसे देखकर ऐसा लगता है कि वो ख़ुद को इस तरह पेश करके साल 2022 के पंजाब विधानसभा चुनाव में किसानों का समर्थन हासिल कर सकते हैं."
"पिछले चुनावों में पंजाब में इनकी काफ़ी सक्रियता थी. ऐसा लगता था कि आम आदमी पार्टी सरकार भी बना सकती है. जनता ने इन्हें समर्थन भी दिया. लेकिन इनसे कुछ ग़लतियां हुईं. उस ज़माने में इनके साथ कुछ अति महत्वाकांक्षी लोग भी थे. इससे इन्होंने अपना ही नुकसान कर लिया."
साल 2017 में आम आदमी पार्टी ने पंजाब के चुनाव में 20 सीटें हासिल करके प्रमुख विपक्षी दल के रूप में पंजाब की राजनीति में एक जगह हासिल की थी. लेकिन इसके बाद आम आदमी पार्टी में कई स्तरों पर आपसी कलह सामने आई.
जगतार सिंह बताते हैं, "पंजाब में जब आम आदमी पार्टी को विपक्षी दल का मैंडेट दिया गया तब उसे ये संभाल नहीं पाए. इनके 20 विधायक भी एक साथ नहीं रह पाए. पार्टी बँट गई. इन्हें बहुत अच्छा मौक़ा मिला था. लेकिन इन्होंने जनता के मैंडेट के साथ धोखा किया."
"इसके बाद से अभी तक लोग इन पर भरोसा करने के लिए तैयार नहीं है. हालाँकि मैं ये भी कहता हूँ कि पंजाब की राजनीति में एक तीसरी पार्टी की जगह बनी हुई है और ये लोग उसी स्पेस के लिए संघर्ष कर रहे हैं."
जगतार सिंह कहते हैं, "ऐसे में मुझे लगता है कि जिस तरह वे अपनी राजनीति को किसानों पर केंद्रित कर रहे हैं, वो इसी वजह से है. क्योंकि इन्होंने उस क़ानून को नोटिफ़ाई भी किया है और ऐसा करने का ठीक-ठीक जवाब नहीं दे सके."
गुजरात से लेकर उत्तर प्रदेश तक आम आदमी पार्टी
एक ओर आम आदमी पार्टी पंजाब की राजनीति में दख़ल बढ़ाती हुई दिख रही है, वहीं पार्टी ने गुजरात और उत्तर प्रदेश की राजनीति में प्रवेश करने का एलान कर दिया है.
पार्टी ने 2022 में उत्तर प्रदेश और गुजरात के विधानसभा चुनाव को लड़ने का फ़ैसला कर लिया है. इसके साथ साथ पार्टी ने अपनी तरह की राजनीति को भी शुरू कर दी है.
आम आदमी पार्टी को आंदोलन के दिनों से देखने वाले वरिष्ठ पत्रकार प्रमोद जोशी मानते हैं कि पार्टी के हालिया राजनीतिक कदमों में चुनावी रणनीति की झलक मिलती है.
वो कहते हैं, "इस समय मैं जो कुछ देख रहा हूँ, उससे ऐसा लगता है कि आम आदमी पार्टी एक तरफ पंजाब और हरियाणा की राजनीतिक ज़मीन छोड़ना नहीं चाहती है. क्योंकि ये जो किसान आंदोलन है, वो मूलत: पंजाब और हरियाणा के ही किसानों का आंदोलन है. ऐसे में वह इस क्षेत्र की राजनीति में अपने दख़ल को बनाए रखना चाहते हैं. यही नहीं, वो वहां मजबूती से अपने पैर जमाना चाहते हैं."
लेकिन सवाल उठता है कि क्या आम आदमी पार्टी उत्तर प्रदेश जैसे राजनीतिक जटिलता वाले राज्य में उतर सकती है. क्योंकि जहां दिल्ली के चुनाव जनता की मूल ज़रूरतें जैसे बिजली और पानी के मुद्दे पर जीते जाते हैं.
इसके अलावा, उत्तर प्रदेश की राजनीतिक सत्ता की सीढ़ी जाति, धर्म और बाहुबल से होकर गुजरती है.
ऐसे में सवाल उठता है कि क्या आम आदमी पार्टी उस जगह पहुँच चुकी है जहाँ वो उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में बीजेपी, समाजवादी और बहुजन समाज पार्टी को टक्कर दे सके.
उत्तर प्रदेश की राजनीति को एक लंबे अरसे से देखने वाले वरिष्ठ पत्रकार शरत प्रधान मानते हैं कि अब उत्तर प्रदेश में भी वह राजनीतिक जगह बनने लगी है जिसे आम आदमी पार्टी हासिल कर सकती है.
वो कहते हैं, "उत्तर प्रदेश की राजनीति में अखिलेश यादव की चुप्पी से एक ऐसी जगह खाली हुई है जिसे आम आदमी पार्टी भर सकती है. हालाँकि, इनके पास अभी ज़मीन पर नेटवर्क नहीं है. लेकिन इनके पास वक़्त है."
शरत प्रधान के मुताबिक़, "उत्तर प्रदेश में पिछले कुछ बरसों में एक ऐसे मतदाता वर्ग का विकास हुआ है, जो नेता की छवि और उसके काम के आधार पर उसे वोट देना चाहता है. वो तलाश रहा है कि वह किसे वोट दे."
"ये वोटर बीजेपी को नहीं डालना चाहता, मायावती को भी नहीं डालना चाहता है और अखिलेश से वह नाउम्मीद हो गया है. कांग्रेस से किसी तरह की उम्मीद होने का सवाल ही नहीं उठता है. ये मतदाता वर्ग यूपी में बैठकर दिल्ली को देख रहा है, अपने रिश्तेदारों से दिल्ली सरकार के हालचाल ले रहा है."
"लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि आम आदमी पार्टी दिल्ली की तरह पहली बार में यूपी की राजनीति में इतिहास रच देगी. अभी इसका संघर्ष अपनी जगह बनाने का है और इसके लिए भी इसे कड़ी मेहनत करनी होगी."
आम आदमी पार्टी जिस तरह से आगामी चुनावों के लेकर अपनी रणनीति बना रही है, उससे इतना तय है कि पार्टी इन राज्यों में अपना विकास करने की कोशिश करेगी.
सवाल ये भी है कि उत्तर प्रदेश और गुजरात में भी नेतृत्व दिल्ली की ओर से जाएगा या वहाँ के स्थानीय नेतृत्व पर आम आदमी पार्टी पर भरोसा करके चुनाव में उतरेगी.?
फ़िलहाल जरनैल सिंह दावा कर रहे हैं कि उत्तर प्रदेश में भी उनकी पार्टी 'काम की राजनीति' करने के लिए ही उतरेगी. (BBC)