धमतरी

भगवान के भजन से काम, क्रोध, मद, लोभ, अहंकार होते हैं दूर-पं.त्रिपाठी
20-Dec-2022 7:30 PM
भगवान के भजन से काम, क्रोध, मद, लोभ, अहंकार होते हैं दूर-पं.त्रिपाठी

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
धमतरी, 20 दिसंबर।
श्रीमद् भागवत महापुराण ज्ञान यज्ञ कथा के चौथे दिन कथा वाचक पं. ऋषभ त्रिपाठी ने कृष्ण जन्म की कथा का वर्णन करते हूए कहा कि जब जब पृथ्वी में पाप बढ़ते हैं, तब तब भगवान किसी न किसी रूप में अवतरित होते हैें। उन्होंने कहा कि काम, क्रोध, मद, लोभ, अहंकार आदि विकार भगवान के भजन से ही भागते हैं। कृष्ण जन्मोत्सव धूमधाम से मनाया गया।

चौथे दिन की कथा में वामन अवतार का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि भगवान विष्णु के पांचवे अवतार है वामन। भगवान ब्राम्हण बालक के रूप में धरती पर आये थे और प्रहलाद के पौत्र राजा बली से दान में तीन पग धरती मांगी थी। तीन कदम में वामन देव ने अपने पैर से तीनों लोक नापकर राजा बली का घमंड तोड़ा था। 

उन्होंने कहा कि हमें भी किसी भी चीज का घमंडी नहीं करना चाहिए। समुद्र मंथन का वर्णन करते हुए उन्होंने बताया कि देवराज इंद्र को दुर्वासा ऋषि के शाप के कारण कष्ट भोगने पड़ रहे थे, और उधर दैत्यराज बलि ने तीनों लोकों पर अधिकार कर लिया था। दैत्यराज के अधिकार और उसकी दुष्टता के बाद सभी देवता परेशान हुए और उस स्थिति से निवारण के लिए वे सभी देवता भगवान विष्णु के पास पहुंचे। तब भगवान विष्णु ने देवताओं के कल्याण का उपाय समुद्रमंथन बताया और कहा कि क्षीरसागर के गर्भ में अनेक दिव्य पदार्थों के साथ-साथ अमृत भी छिपा है। उसे पीने वाले के सामने मृत्यु भी पराजित हो जाती है। इसके लिए तुम्हें समुद्र मंथन करना होगा। भगवान विष्णु के सुझाव के अनुसार इन्द्र सहित सभी देवता दैत्यराज बलि के पास संधि का प्रस्ताव लेकर गए और उन्हें अमृत के बारे में बताकर समुद्र मंथन के लिए तैयार किया। समुद्र मंथन के लिए समुद्र में मंदराचल को स्थापित कर वासुकि नाग को रस्सी बनाया गया। तत्पश्चात दोनों पक्ष अमृत-प्राप्ति के लिए समुद्र मंथन करने लगे। अमृत पाने की इच्छा से सभी बड़े जोश और वेग से मंथन कर रहे थे। यह लीला आदि शक्ति ने भगवान विष्णु के कच्छप अवतार और सृष्टि के संचालन के लिए रची थी। देव और दैत्यों ने मिलकर समुद्र मंथन किया तो उसमें से 14 रत्न निकले, जिनका बंटवारा देव और दैत्यों के बीच हुआ।

उन्होंने बताया कि समुद्र मंथन के दौरान सबसे पहले जल का हलाहल यानी विष निकला। इस हलाहल की ज्वाला बहुत ही तीव्र थी। इस जहर की ज्वाला की तीव्रता के प्रभाव से सभी देव और देत्य जलने लगे। तभी सभी ने मिलकर भगवान शिव से जहर को झेलने की प्रार्थना की इसलिए भगवान शिव ने उस विष को इसे मुंह में भर लिया। शिवजी ने इस विष को गले में ही रखा, इस कारण उनका गला नीला हो गया और शिवजी का नाम नीलकंठ पड़ा।

कृष्ण जन्म का वर्णन करते हुए उन्होंने कहा कि द्वापर युग में भोजवंशी राजा उग्रसेन मथुरा में राज्य करता था। उसके आततायी पुत्र कंस ने उसे गद्दी से उतार दिया और स्वयं मथुरा का राजा बन बैठा। कंस की एक बहन देवकी थी, जिसका विवाह वसुदेव नामक यदुवंशी सरदार से हुआ था।एक समय कंस अपनी बहन देवकी को उसकी ससुराल पहुंचाने जा रहा था। रास्ते में आकाशवाणी हुई- हे कंस, जिस देवकी को तू बड़े प्रेम से ले जा रहा है, उसी में तेरा काल बसता है। इसी के गर्भ से उत्पन्न आठवां बालक तेरा वध करेगा। यह सुनकर कंस वसुदेव को मारने के लिए उद्यत हुआ। तब देवकी ने उससे विनयपूर्वक कहा- मेरे गर्भ से जो संतान होगी, उसे मैं तुम्हारे सामने ला दूंगी। बहनोई को मारने से क्या लाभ है? कंस ने देवकी की बात मान ली और मथुरा वापस चला आया। उसने वसुदेव और देवकी को कारागृह में डाल दिया। वसुदेव-देवकी के एक-एक करके सात बच्चे हुए और सातों को जन्म लेते ही कंस ने मार डाला। और आठवे संतान के रूप में भगवान विष्णु ने कृष्ण के रूप में जन्म लिया। कृष्ण जन्मोत्सव का पर्व धूमधाम से मनाया। चौथे दिन की कथा में विधायक रंजना डीपेन्द्र साहू, प्रखर समाचार के प्रधान संपादक दीपक लखोटिया, लक्ष्मण हिन्दूजा, विक्रांत शर्मा, पीयूष पांडे ने व्यास पीठ की पूजा अर्चना कर भगवताचार्य से आशीर्वाद प्राप्त किया।
 

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