महासमुन्द
ग्राफ के अनुसार ताना बांधते हैं फिर कलर करते हैं
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
महासमुंद, 26 फरवरी। महासमुंद जिले के सरायपाली क्षेत्र स्थित खैरझिटकी,बेलमुण्डी,झिलमिला,अमरकोट,कसडोल सहित कई गांवों के बुनकर परिवार हाथ बुनाई से संबलपुरी साड़ी बनाने का काम करते हैं। ग्राम खैरझिटकी के ग्रामीण बताते हैं कि महीने में लगभग 15-20 हजार रुपए की कमाई हो जाती है। ओडि़शा बार्डर के कारण बरगढ़ से ज्यादा आर्डर मिलता है। इस काम के साथ-साथ सीजन में खेती का भी काम होता है। हालांकि इस तरह की साडिय़ां ओडि़शा में बनाई जाती हैं लेकिन अब सरायपाली के लोगों के लिए भी यह जीविकोपार्जन का साधन बन चुका है।
ये बताते हैं कि संबलपुरी साड़ी बनाने में पूरे 7 दिन लगते हैं। अच्छी गुणवत्ता और आकर्षक होने के कारण बाजार में इसकी मांग भी अधिक रहती है। संबलपुरी साडिय़ों को बनाने के लिए पहले बाजार से धागा(ताना) लाते हैं। उसे चावल के पानी में भिगोकर अलग-अलग करते हैं। उसके बाद ग्राफ के अनुसार ताना बांधते हैं फिर कलर करते हैं। कलर करने के बाद फनी में जोड़ते हंै फिर उसे लम्बा करके आगे लेना पड़ता है। पीछे से लकड़ी के सहारे लपेटकर मांगा में लगाया जाता है। साड़ी में डिजाईन बनाने के लिए धागा को असारी में लपेटते हंै। उसके पश्चात ग्राफ से लकीर बनाते हुए कपड़े में ग्राफ के हिसाब से डिजाइन बनाया जाता है।
इसके लिए मांगा सबसे जरूरी सामान होता है। मांगा साड़ी बनाने का एक मशीन है। उसके पनिया में सुखाए हुए लम्बे धागे को एक-एक करके डालते हैं। उसके पश्चात नाड़ा लगाकर बुनाई का कार्य प्रारंभ करते हैं। रेशम और सूती दोनों ही धागों से यह साडिय़ां बनती हैं। इस मशीन की सहायता से एक बार में दो साड़ी बनती है। इस प्रक्रिया से साड़ी बनने तक एक सप्ताह तक का समय लग जाता है। हाथ से बनी संबलपुरी साडिय़ां हजारों रुपए के दाम बाजार में बिकती हैं।
फनी में जोडक़र धागा मांगा में लगाते हैं
डिजाईन बनाने के लिए धागे को असारी में लपेटा जाता है, ग्राफ से लकीर बनाते हुए कपड़े में डिजाइन बनाया जाता है