महासमुन्द
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
महासमुंद,6 जुलाई। हाथकरघा उद्योग में रोजगार की विपुल संभावनाओं और हाथकरघा बुनाई की समृद्ध परम्परा, हाथकरघा बुनकरों और हाथकरघा उद्योग को और अधिक बढ़ावा देने के लिये शासन द्वारा विभिन्न योजनाएं एवं कार्यक्रम संचालित की जा रही है। महासमुंद जिले में भी सैंकड़ों परिवार को प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से बुनाई एवं सिलाई के माध्यम से रोजगार मिल रहा है। पड़ोसी राज्य ओडि़शा के अलावा महासमुंद जिले के कुछ हिस्सों में भी संबलपुरी साड़ी का उत्पादन किया जाता है। सरायपाली क्षेत्र के ग्राम अमरकोट, कसडोल सहित कई गांवों के बुनकर परिवार मिलकर हाथ से बुनाई कर संबलपुरी साड़ी बनाने का काम करते हंै।
सरायपाली के ग्राम सिंघोड़ा निवासी संजय मेहेर 40 साल से यह परम्परागत व्यवसाय का कार्य कर रहे हैं। उन्होंने पढ़ाई के दौरान 14 वर्ष की उम्र से बुनकर का काम शुरू किया था। आज उन्हें अपने इस काम में महारथ हासिल है। वे अपने इस बुनकर काम को बखूबी कर अपनी आर्थिक स्थिति पहले से बहुत मजबूत कर ली है। वे कहते हैं कि अपने हुनर से जमीन, मकान बनवा लिया है। उनके दादा और पिताजी भी इसी कार्य से जुड़े थे। तब वह ओडिय़ा साड़ी दो नग टाई डाई साड़ी बुनकर घूम.घूम कर शहर, गांव और देहात में बेचा करते थे। तब और अब में काफी अंतर आ गया है।
अब संजय 1000 से 10000 टाई डाई तक की विभिन्न डिजाइन की हाथ से बुनी संबलपुरी साड़ी बनाने का काम करते हंै। इस प्रक्रिया से साड़ी बनने तक एक सप्ताह तक का समय लग जाता है। हाथ से बनी संबलपुरी साडिय़ां हजारों रुपए में बाजार में बिकती है। अब पहले के मुकाबले साड़ी की कीमत अच्छी मिल रही है। कम से कम 2500 से 3000 तक एक साड़ी आसानी से बिकती हैं। शहर, गांव में बिक्री के लिए नहीं घूमना पड़ता। संजय कादम्बनी नाम से साड़ी का उत्पादन कर विलासा हैंडलूम को बिक्री करते हंै। इस काम के साथ-साथ संजय खेती के सीजन में खेती का भी काम करते हैं।