रायपुर
केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री को ज्ञापन
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
रायपुर, 23 जुलाई। आईएमए ने मेडिकल कॉलेजों में शिक्षकों के रूप में केवल मेडिकल स्नातकोत्तर की नियुक्ति के मुद्दे पर ऑल इंडिया प्री एंड पैरा क्लिनिकल मेडिकोज एसोसिएशन (एआईपीपीसीएमए) और अन्य एसोसिएशन द्वारा शांतिपूर्ण विरोध के लिए अपना समर्थन व्यक्त करता है।
आईएमए रायपुर के अध्यक्ष डॉ. राकेश गुप्ता और सचिव डॉ. दिग्विजय सिंह ने केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. मनसुख मंडाविया को दिए ज्ञापन में मेडिकल कॉलेजों में गैर-मेडिकल संकाय सदस्यों की बढ़ती संख्या पर चिंता जताई। एमसीआई के नियमों के तहत मेडिकल स्नातकोत्तर की कमी के कारण गैर-मेडिकल स्नातकोत्तर को विभागों (एनाटॉमी, फिजियोलॉजी, बायोकैमिस्ट्री। फार्माकोलॉजी और माइक्रोबायोलॉजी) में नियुक्त किया गया था। हालाँकि, प्री और पैरा क्लिनिकल विषयों में स्नातकोत्तर (एमडी) अध्ययन के लिए अर्हता प्राप्त करने वाले मेडिकल स्नातकों (एमबीबीएस) की संख्या में वृद्धि हुई है।
आईएमए का मानना है कि मेडिकल स्नातकोत्तर (एमबीबीएस, एमडी) रोगी देखभाल के प्रबंधन में अनुभव, आवश्यक अनुप्रयोग प्रदान करने के लिए विशिष्ट रूप से सुसज्जित है, जो कि जरूरूी है।
आईएमए का दृढ़ विश्वास है कि इस युग में जहां प्री और पैरा-क्लिनिकल क्षेत्र में हजारों स्नातकोत्तर चिकित्सा शिक्षक उपलब्ध हैं, ऐसे गैर-चिकित्सा शिक्षकों को, जिन्हें एप्लाइड मेडिसिन और एमबीबीएस के स्नातक पाठ्यक्रम का कोई ज्ञान नहीं है, स्वायत्त निकायों सहित किसी भी चिकित्सा संस्थानों में इस विषय पर पढ़ाने की अनुमति देकर चिकित्सा शिक्षा के मानक के साथ समझौता करना उचित नहीं है।
आईएमए ने एनएमसी और मंत्रालय से अपील की है कि कृपया हमारे देश में सर्वश्रेष्ठ सेवारत डॉक्टर तैयार करने के लिए चिकित्सा शिक्षा के न्यूनतम आवश्यक मानकों को बनाए रखें और एनएमसी द्वारा निर्धारित न्यूनतम मानदंडों में ढील न दें। केवल चिकित्सा शिक्षक ही सीबीएमई पाठ्यक्रम को गुणवत्ता और लागू के साथ पढ़ाने में सक्षम हैं। मेडिकल कॉलेज में नॉन मेडिकल संकाय जारी रहेंगे।