महासमुन्द

प्रेमचंद जयंती पर श्रृंखला की काव्य गोष्ठी
04-Aug-2023 7:27 PM
प्रेमचंद जयंती पर श्रृंखला की काव्य गोष्ठी

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता

पिथौरा, 4 अगस्त। श्रृंखला साहित्य मंच द्वारा कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद की जयंती मनाई गई। इस अवसर पर रचनाकारों ने कहानी, कविता, व्यंग्य और लघु कथा का पठन करते हुये मुंशी प्रेमचंद को श्रद्धांजलि अर्पित की।

 श्रृंखला साहित्य मंच द्वारा काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया। गोष्ठी की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार अनूप दीक्षित ने की। उन्होंने मुंशी प्रेमचंद के छाया चित्र पर माल्यार्पण व दीप प्रज्वलन कर गोष्ठी का शुभारंभ किया। 

संस्था के वरिष्ठ सदस्य उमेश दीक्षित ने कार्यक्रम की पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालते हुए कहा कि मुंशी प्रेमचंद हिंदी साहित्य का पर्याय है प्रेमचंद बनना कोई सहज नहीं है स्वयं मुंशी प्रेमचंद को भी हिंदी साहित्य का किवदंती बनने के लिये अनेक संघर्षों , यातनाओं का सामना करना पड़ा तथापि प्रेमचंद का समग्र साहित्य जन सरोकार में डूबा होने के कारण प्रेमचंद और उनका साहित्य आज भी जीवित है । गोष्ठी को आगे बढ़ाते हुये युवा रचनाकार निर्वेश दीक्षित ने कहा कि हिंदी साहित्य में प्रेमचंद का वही स्थान है जो अंग्रेजी साहित्य में शेक्सपियर का है । उनकी कृतियों का विवेचन करते हुये निर्वेश ने कहा कि पंच परमेश्वर आदर्श वादी कथा है जबकि कालांतर में लिखा गया गोदान यथार्थवाद का जीवंत उदाहरण है। हिंदी साहित्य में प्रेमचंद का युग स्वर्णिम अध्याय रहा।

कवियों ने अपनी कविताओं के माध्यम से प्रेमचंद को काव्यांजलि अर्पित की।

जिसके अंतर्गत  संजय गोयल —-

 तुझसे से दिल्लगी करके

धोखा खा गए हम ।

लालच था लाल लाल पाने का

पर भाव सुनकर

 ललिया गए हम ।

सरोज साव —-

सुमधुर संगीत सा वीणा के

 तार  में गुंजित ध्वनि है हिंदी ।

जैसे  शोभायमान हो रहा भारत

माता के माथे पर है बिंदी ।

बंटी छत्तीसगढिय़ा —-

    दुनिया भर म आज मनखे बने

   भगवान हे

 प्रेम ल जानत हे चंद झन

 बाकी अनजान हे ।

संतोष गुप्ता —-

   रिमझिम बारिश में

हँसती प्रकृति के रंग ।

 देख अँखियाँ हर्षित हुईं

खिल उठे अंग अंग ।।

जितेश्वरी  साहू —-

     जख्म सिलने लगे च्च्सचेता च्च् आहट से जिनकी ।

    ऐसा जादूगर सा कोई तबीब

 आ रहा है ।।

उत्तरा डड़सेना —-

   भाग्य बदल दे मानव का पानी  बिन निष्प्राण ।

   हलधर हल को लिये कांधे हल ।

एफ ए नंद —-

  कांपते पहाड़ पिघलते पत्थर

सहमते झरने ,बिलखती नदियां ।

आज नोंचा है बाजों ने

 मासूम परिंदों को ।

एसकेडी डड़सेना —-

 नौ   महीना अपन कोंख म राखे

जनम दे अचरा के छैहिंया में पाले

अंगरी धर के रेंगना सिखाये

अब ले ये घर पर पहुना हो गेंव ।

  गुरप्रीत कौर —

खुदी से ईश्क किये जा रहा हूँ

   मैं तो चमन ।

वफा को कद्र नहीं मिलती

  दुनियादारी में ।

        कार्यक्रम के आखरी में वरिष्ठ साहित्यकार अनूप दीक्षित ने कहा कि प्रेमचंद महान इसलिये हुये क्योंकि उन्होंने जो लिखा उसको जीया देश के लिये उन्होंने सरकारी नौकरी छोड़ दी जब सोजे वतन लिखा तो अंग्रेज दहल गये उन्हें गिरफ्तार तक किया गया लेकिन ना इरादों को डिगा पाये और ना ही कलम की ताकत को हरा पाये मुंशी जी जन जन के लेखक थे। आज लमही की पहचान प्रेमचंद के कारण बनी हुई है। रितेश महांति ने स्व . शिवा महांति की रचनाओं का पाठ किया। गोष्ठी का संचालन वरिष्ठ साहित्यकार उमेश दीक्षित ने किया ।

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