महासमुन्द
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
महासमुंद, 10 अगस्त। विश्व आदिवासी दिवस पर कल जिला मुख्यालय सहित सभी ब्लॉकों में जमकर आदिवासियों का उत्साह छलका। जिला मुख्यालय में पक्षियों के पंखों से बनी कलगी तथा टंगिया, तीर-कमान के साथ आदिवासियों ने रैली निकाली। वहीं बागबाहरा में बस्तर के प्रसिद्ध कुलदेव आंगा देवता और जंवारे के साथ रैली निकाली गई। जिले के बसना में भी रैली की खबर है।
मिली जानकारी मुताबिक महासमुंद में मणिपुर में हिंसा के विरोध सहित अनेक मांगों को लेकर विश्व आदिवासी दिवस के अवसर पर आदिवासी ध्रुव गोंड़ महासभा ने कल शहर में विशाल रैली निकाली। यह रैली बागबाहरा मार्ग स्थित शंकराचार्य भवन से प्रारंभ होकर शहर के मुख्य मार्ग होते हुए रानी दुर्गावती चौक पहुंची। जहां रानी दुर्गावती के आदमकद प्रतिमा पर माल्यार्पण किया गया।
इसके पूर्व भाजपा जिला उपाध्यक्ष योगेश्वर राजू सिन्हा ने रूद्राभिषेक स्थल पर पुष्प वर्षा कर रैली का स्वागत किया। पश्चात समाजजन राष्ट्रपति के नाम ज्ञापन सौंपने वाले थे, लेकिन अवकाश की वजह से ज्ञापन नहीं सौंप पाए। आदिवासियों ने विज्ञप्ति में बताया कि आदिवासी समुदाय लगातार अनेक समस्याओं से जूझ रहा है। देश भर के आदिवासी समुदाय में दहशत और डर का माहौल पैदा किया जा रहा है। इसलिए देश के लगभग सभी आदिवासी इस दिवस को आक्रोश रैली के रूप में मनाने के लिए मजबूर हैं। उनका कहना था कि हम राष्ट्रपति तक पहुंचाकर इन गंभीर मुद्दों पर ध्यान आकर्षित करना चाहते हैं।
बताया कि मणिपुर में आदिवासियों के साथ हो रहे हिंसा, अमानवीय कृत्य, महिलाओं के साथ दुव्र्यवहार को रोकने व दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई कर राज्य में शांति बहाली हेतु कार्रवाई सुनिश्चित करने एक कानून बनाई जावे। समान नागरिक संहिता बिल यूसीसी को आदिवासी वर्ग से पृथक रखा जावे। चूंकि आदिवासी समुदाय अपने अलग रीति-रिवाज, परम्परा व रूढि़वादिता से शासित होने वाला समुदाय है। अत: इन परम्परागत पद्धतियों के लुप्त व अवरूद्ध होने से हम आदिवासियों के साथ ही पर्यावरण पर भी गंभीर प्रभाव पडऩे खतरा है। अत: समान नागरिक संहिता से आदिवासी समुदाय को पृथक रखा जावे। साथ ही पर्यावरण एवं वनों की सुरक्षा हेतु वन संरक्षण कानून में संशोधन कर अनुसूचित जनजातीय क्षेत्रों से पृथक रखने या अपवाद व उपांतरण के साथ लागू करने की संवैधानिक व्यवस्था सुनिश्चित किया जावे।
पेसा कानून के मंशा अनुरूप क्रियान्वयन हर राज्य सरकारें सुनिश्चित करें और वर्तमान में व्याप्त सभी कानूनों में पेसा कानून के अनुसार बदलाव सुनिश्चित किया जावे। आदिवासियों ने कहा कि यह समुदाय पिछले कई वर्षों से अधिकार, मांग एवं प्रताडऩा को लेकर छत्तीसगढ़ शासन, प्रशासन को आवेदन देने उपरांत चरणबद्ध आंदोलन, धरना प्रदर्शन, चक्काजाम, आर्थिक नाकेबंदी,मालवाहक वाहन एवं ट्रेन और विधानसभा घेराव किया। आदिवासी समाज के आरक्षित विधायकों का निवास भी घेरा। लेकिन शासन प्रशसन की ओर से कोई संतोषप्रद आश्वासन एवं निराकरण नहीं हुआ। जिससे आदिवासी समाज क्षुब्ध है।