रायपुर
रायपुर, 21अक्टूबर। नवरात्रि व विजयादशमी के पावन अवसर पर छात्रों को प्रेरक व्याख्यान सत्र की श्रृंखला में विप्र महाविद्यालय में अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त राम भक्त डॉ .आदित्य शुक्ल( वैज्ञानिक ,कवि ,लेखक एवं प्रेरक वक्त बेंगलुरु) ने क्या हम राम बन सकते हैं ? विषय पर रोचक एवं प्रेरक उद्बोधन में बताया कि सद्गुणों का संग्रहण और विकारों का परित्याग कर हम भी राम बन सकते हैं राम को पहले गुरु के रूप में स्वीकार करें और उनके सद्गुणों को अपने आचरण में उतार कर अपने दिव्यता को प्रकट करें तब उनके भगवान स्वरूप का हमें अनुभव होगा।
डॉ. आदित्य शुक्ला ने कहा ग्रंथ और पुराण को पढऩे या सुनने से मुक्ति नहीं मिलती युक्ति मिलती है और युक्ति का अपने जीवन में उपयोग करने से मुक्ति मिलती है। राम के स्वरूप का स्मरण और राम के चरित्र का चिंतन से आत्मा के सहज गुणों पवित्रता, प्रसन्नता ,शांति,प्रेम ,ज्ञान, सरलताऔर शक्ति आदि को हम आत्मसात करते हैं और मन के विकार काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार आदि दूर होते हैं। राम बनने के लिए राम जैसे बनने की इच्छा रखना पहला कदम है। फिर जितना हम अपने अंदर के सद्गुणों का संग्रहण एवं विकास करते जाएंगे राम के करीब पहुंचते जाएंगे। उन्होंने कहा लक्ष्य और साधन के बीच का सामंजस्य ही सफलता है और राम के जीवन से हम यह अच्छी तरह सीख सकते हैं।
डॉ. आदित्य शुक्ल ने शिक्षा नीति की समस्या को बताते हुए कहा कि इतिहास सिर्फ घटनाक्रम का वर्णन करता है, जो विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम में शामिल है । जबकि धर्म ग्रंथो में पौराणिक पात्रों को नायक, मार्गदर्शन एवं गुरु कहा जाता है जो जीवन मूल्य का महत्व बताता है । नैतिक गुणों के विकास के उपाय बताते हैं,परंतु हमारे पुराण या धर्म ग्रंथो को हमने सीनियर सिटीजन के लिए छोड़ कर रख दिया है।