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रायपुर, 6 अप्रैल। यदि भारत को विश्व गुरू बनाना है और भारत के स्वाधीनता के दायित्व को पूर्ण करना है तो इस देश के प्रत्येक युवा को पढ़ाई के बाद अपना कैरियर शुरू करने के पहले दो वर्ष भारत माता की सेवा करने का संकल्प लेना होगा। स्वाधीनता मिली बलिदानों से है और उसके स्वप्न को साकार भी बलिदान से किया जा सकता है।
यह संकल्प लेकर युवा जीवन को सार्थक करें। यह बातें मैट्स यूनिवर्सिटी में स्वाधीनता का दायित्व विषय पर आयोजित परिचर्चा में भारतीय शिक्षण मंडल के अखिल भारतीय संगठन मंत्री मुकुल कानिटकर ने मुख्य वक्ता के रूप में कहीं।
श्री कानिटकर ने बताया कि आज जब स्वाधीनता के 75 वर्ष का उत्सव सारा देश मना रहा है तब हमें यह स्मरण करने की आवश्यकता है कि स्वाधीनता की खातिर कितने ही वीरों ने बलिदान किया, अपने जीवन को हंसते-हंसते न्यौछावर कर दिया। अपने आपको समर्पित कर दिया, अपने यौवन को लगा दिया।
श्री कानटकर ने कहा कि हमारे वनवासी क्षेत्र के जनजाति भाइयों ने जो संघर्ष किया, वहां से प्रारंभ होते हुए फिर 1857 की लड़ाई और विभिन्न प्रकार के आंदोलन। कितने लोगों ने अपने जीवन का सर्वस्व होम कर दिया।
युवावस्था में ही अपने जीवन के सपनों को मातृभूमि के लिए न्यौछावर करने वाले हजारों वीरों के बलिदान से हमारा देश आज स्वतंत्र है। इस स्वाधीनता का दायित्व क्या है, जो स्वाधीनता बलिदान के बाद मिली है हमें अपने जीवन में उसका दायित्व निभाना पड़ेगा।
इस देश के हर युवा को अपने जीवन की दिशा तय करने से पहले, अपने कैरियर का निर्माण करने से पहले यह निर्णय लेना होगा कि वे कम से कम दो वर्ष तक भारत माता की सेवा करें। इस देश के लिए अपना बलिदाने देने वाले वीरों के स्वप्न अभी भी अधूरे हैं जिन्हें पूर्ण करना हम सबकी जवाबदारी है।