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ममता बनर्जी का रवैया पार्थ चटर्जी और अनुब्रत मंडल पर अलग क्यों, उठ रहे सवाल?
17-Aug-2022 11:39 AM
ममता बनर्जी का रवैया पार्थ चटर्जी और अनुब्रत मंडल पर अलग क्यों, उठ रहे सवाल?

-प्रभाकर मणि तिवारी

तृणमूल कांग्रेस की स्थापना के समय से ही ये दोनों नेता पार्टी प्रमुख और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के काफ़ी करीबी रहे हैं.

लेकिन मंत्रिमंडल में नंबर दो और पार्टी में तीसरे स्थान पर रहे पार्थ चटर्जी जब अपनी महिला मित्र के साथ गिरफ्तार हुए तो ममता ने कई दिनों तक चुप्पी साध रखी थी.

उन्होंने अपनी चुप्पी तोड़ी भी तो यह एलान करने के लिए कि पार्थ को मंत्रिमंडल से हटा दिया गया है.

उसी दिन शाम को सांसद अभिषेक बनर्जी के नेतृत्व में हुई पार्टी की अनुशासन समिति की बैठक में पार्थ को तमाम पदों से हटाते हुए जाँच पूरी नहीं होने तक निलंबित करने का भी फ़ैसला किया गया.

उसी समय राजनीतिक हलकों में इसे पार्थ के राजनीतिक करियर के अंत की शुरुआत के तौर पर देखा गया था.

लेकिन दूसरी ओर, सीबीआई ने जब पशु तस्करी मामले में बीरभूम के तृणमूल कांग्रेस प्रमुख अनुब्रत मंडल को उनके घर से गिरफ्तार किया तो ममता अपनी पूरी ताक़त के साथ उनके समर्थन में खड़ी नज़र आ रही हैं.

ये तब है जबकि वे महज़ एक ज़िला अध्यक्ष थे. ममता ने उनकी गिरफ्तारी के बाद केंद्र, बीजेपी, सीबीआई और ईडी के ख़िलाफ़ तो आक्रामक रवैया अपना ही रखा है, इसके ख़िलाफ़ जेल भरो आंदोलन का भी एलान किया है.

दोनों नेताओं के मामले में ममता के अलग-अलग रवैए से राजनीतिक हलकों में सवाल उठ रहा है कि आख़िर इसकी वजह क्या है?

बंगाल की राजनीति
पार्थ शुरू से ही मंत्रिमंडल में ममता के बेहद करीबी रहे थे. उनकी अहमियत का अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है कि तृणमूल कांग्रेस में महासचिव का पद ख़ास तौर पर उनके लिए ही बनाया गया था. जबकि अनुब्रत मंडल कभी किसी सरकारी पद पर नहीं रहे.

तृणमूल कांग्रेस के एक नेता बताते हैं, "पार्थ चटर्जी के महिला मित्रों के खुलासे और अर्पिता मुखर्जी के घर से करोड़ों की नक़दी और दूसरे सामान मिलने के बाद ममता समझ गईं कि इस मामले में पार्थ का बचना मुश्किल है. इसलिए क़रीब पाँच दिनों की चुप्पी के बाद उन्होंने पार्थ को मंत्रिमंडल और पार्टी से हटाने का फ़ैसला किया."

उसके पहले तक तृणमूल कांग्रेस के प्रवक्ता कुणाल घोष लगातार कहते रहे थे कि अदालत में दोषी साबित होने के बाद ही पार्थ के ख़िलाफ़ कार्रवाई की जाएगी.

दोनों नेताओं के मामले में ममता का रवैया आख़िर अलग-अलग क्यों रहा? इस सवाल का जवाब जानने और समझने के लिए पहले अनुब्रत के राजनीतिक करियर पर एक निगाह डालना ज़रूरी है.

बंगाल की राजनीति पर निगाह रखने वालों के लिए अनुब्रत का नाम कोई अनजाना नहीं है.

अनुब्रत मंडल का सिक्का
क़रीब तीन दशकों से राजनीति में सक्रिय अनुब्रत का सिक्का सिर्फ़ बीरभूम ही नहीं बल्कि उससे सटे बर्दवान ज़िले में भी चलता था. यह कहना ज़्यादा सही होगा कि उनकी मर्ज़ी के बिना इन दोनों ज़िलों में एक पत्ता तक नहीं खड़कता था.

लंबे राजनीतिक करियर के दौरान कई बार उनके ख़िलाफ़ चुनावी धांधली, पशु तस्करी, कोयले और बालू-पत्थर की अवैध खनन जैसे कई आरोप लगे, लेकिन शीर्ष नेतृत्व का वरदहस्त होने की वजह से अब तक उन पर कोई हाथ नहीं डाल सका था.

यह बात भी शायद कम लोग ही जानते हैं कि वर्ष 2021 के विधानसभा चुनाव से पहले बंगाल में तृणमूल कांग्रेस ने 'खेला होबे' का जो मशहूर नारा दिया था वह भी अनुब्रत के दिमाग़ की ही उपज थी.

यही वजह है कि एक पत्रकार चंद्रनाथ बनर्जी ने अनुब्रत की जो जीवनी लिखी है उसका नाम भी 'खेला होबे' ही है. उस पुस्तक के लोकार्पण समारोह में शिक्षा मंत्री ब्रत्य बसु समेत तमाम नेता मौजूद थे. यह भी दिलचस्प है कि तृणमूल कांग्रेस में ममता के बाद अणुब्रत अकेले ऐसे नेता हैं जिनकी जीवनी लिखी गई है.

सीबीआई का दावा
अनुब्रत अपनी टिप्पणियों और बयानों के लिए अक्सर सुर्खियों में रहे हैं. अनुब्रत के बयानों पर कई बार विवाद भी हुआ.

लेकिन ममता का वरदहस्त होने की वजह से उनका कुछ नहीं बिगड़ा.

ख़ुद तृणमूल में अनुब्रत को नापसंद करने वाले नेताओं की कमी नहीं है. लेकिन ममता की वजह से तमाम लोग चुप्पी साधे रहते हैं.

सीबीआई के हाथों गिरफ़्तारी के बाद चुप्पी साधे रहने वाले अनुब्रत ने ममता का समर्थन पाते ही हिरासत में अपने सुर बदल लिए हैं.

सीबीआई सूत्रों का कहना है कि अब वे जाँच में असहयोग कर रहे हैं और किसी भी मामले में अपनी किसी भूमिका से साफ़ इनकार कर रहे हैं.

लेकिन सीबीआई का दावा है कि बीरभूम और मुर्शिदाबाद के अलावा कोलकाता में भी अणुब्रत की करोड़ों की नामी-बेनामी संपत्ति है.

दरअसल, पशु तस्करी मामले की जाँच कर रही सीबीआई ने पहले मंडल के बॉडीगार्ड एस हुसैन को गिरफ्तार किया था.

उनसे पूछताछ के दौरान मिली जानकारी के आधान पर ही अनुब्रत को कम से कम दस बार समन भेजा गया था. लेकिन वे महज़ एक बार ही जाँच एजेंसी के समक्ष पेश हुए थे.

उसके बाद हर बार स्वास्थ्य का हवाला देकर वे बचते रहे थे. इसलिए सीबीआई की टीम ने उनको उनके घर से ही गिरफ्तार किया.

अनुब्रत की गिरफ्तारी के बाद ममता ने पहली बार एक जनसभा में इस मुद्दे पर उनके साथ खड़े रहने का भरोसा देते हुए सवाल किया कि आख़िर अनुब्रत को क्यों गिरफ्तार किया गया? उन्होंने क्या किया था?

यही नहीं, गिरफ़्तारी के बाद पार्टी ने अनुब्रत के ख़िलाफ़ अब तक कोई कार्रवाई नहीं की है.

तृणमूल कांग्रेस
बीरभूम जिला तृणमूल कांग्रेस की बैठक में भी अनुब्रत की कुर्सी ख़ाली ही नज़र आई थी. इससे साफ़ है कि इस मामले में पार्टी पूरी तरह अनुब्रत के साथ है. यह पार्थ के मामले में हुई कार्रवाइयों से अलग है.

अनुब्रत जो पार्टी और इलाके में केष्टो के नाम से मशहूर हैं, के मुद्दे पर ममता ने मोदी सरकार को भी आड़े हाथों लिया है.

उनका कहना था, "साल 2024 में मोदी सरकार सत्ता में नहीं रहेगी. केंद्र ने महाराष्ट्र में सरकार गिराई और अब बंगाल में भी यही प्रयास कर रही है. लेकिन बंगाल रॉयल बंगाल टाइगर है. यहाँ उसकी कोशिशें नाकाम ही रहेंगी. ममता ने चुनौती देते हुए कहा कि आख़िर वह लोग कितने नेताओं को गिरफ्तार करेंगे. मैं जेल भरो आंदोलन शुरू करूँगी."

ममता ने जिस दिन अनुब्रत के साथ खड़े रहने का भरोसा दिया था उसी दिन बीरभूम जिला तृणमूल कांग्रेस की बैठक में आम राय से फ़ैसला किया गया कि केष्टो के मुद्दे पर कोई टिप्पणी नहीं की जाएगी.

बदले हुए रवैये की वजह
बीरभूम जिला तृणमूल कांग्रेस उपाध्यक्ष और ज़िले में पार्टी के प्रवक्ता मलय मुखर्जी कहते हैं, "हमने फ़ैसला किया है कि अनुब्रत के रहते जो फ़ैसले किए गए थे उन पर अमल किया जाएगा. इस दौरान कोई नया फ़ैसला नहीं किया जाएगा."

"इसी के तहत 15 अगस्त को हमने स्वाधीनता दिवस का पालन किया और 16 को 'खेला होबे दिवस' मनाया. अब पाँच सितंबर को शिक्षक दिवस भी मनाया जाएगा. ज़िले में फ़िलहाल एक समिति का गठन किया गया है जो अनुब्रत की ग़ैर-मौजूदगी में पार्टी से संबंधित तमाम फैसले लेगी."

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि अनुब्रत के मामले में ममता के बदले हुए रवैये की वजह आगामी लोकसभा चुनाव और इलाक़े में अनुब्रत की मज़बूत पकड़ है. अनुब्रत के रहते ममता को कम से कम दो ज़िलों के बारे में ज़्यादा चिंता करने की ज़रूरत नहीं पड़ती थी.

राजनीतिक विश्लेषक प्रोफ़ेसर समीरन पाल कहते हैं, "ममता और तृणमूल के लिए अनुब्रत की बेहद अहमियत है. अनुब्रत ने अकेले अपने बूते न सिर्फ़ बीरभूम में तृणमूल कांग्रेस को अजेय बनाया बल्कि सीपीएम के गढ़ रहे बर्दवान ज़िले में भी लाल क़िले को ढहाने में अहम भूमिका निभाई थी."

"यही वजह थी कि ममता बड़ी से बड़ी गलती के बावजूद उनको हल्की झिड़की देकर माफ़ कर देती थीं. अब लोकसभा चुनावों से पहले पार्टी के इस मज़बूत स्तंभ के सीबीआई की गिरफ्तार में आने की वजह से पार्टी की चुनावी संभावनाओं पर प्रभाव पड़ने का अंदेशा है."

वह कहते हैं कि पार्थ पहले सरकार में और पार्टी में बड़े पदों पर रहे हों, ज़मीनी स्तर पर उनकी ख़ास पकड़ नहीं थी. वे ख़ुद ममता के बूते जीतते रहे थे. अपने बूते एक भी सीट जिताने की क्षमता उनके पास नहीं थी. दोनों नेताओं में यह अंतर ही उनके मामलों में ममता के भिन्न रवैए की सबसे बड़ी वजह है. (bbc.com)

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