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अमेरिकी बाजार में गिरावट के साथ मंदी का डर बढ़ा
27-Sep-2022 12:52 PM
अमेरिकी बाजार में गिरावट के साथ मंदी का डर बढ़ा

अमेरिकी शेयर सूचकांक डाऊ जोंस में सोमवार को 1.1 प्रतिशत की गिरावट हुई और इस तरह जनवरी से अब तक यह 20 प्रतिशत गिर चुका है. यह आधिकारिक तौर पर बाजार के ‘बेयर मार्केट’ हो जाने का संकेत है.

   डॉयचे वैले पर विवेक कुमार की रिपोर्ट

अमेरिका के तीन प्रमुख शेयर सूचकाकों में से सबसे पुराना सूचकांक डाउ जोंस अब आधिकारिक तौर पर ‘बेयर मार्केट' हो गया है. सोमवार को 1.1 प्रतिशत की गिरावट के साथ इसने नौ महीने में 20 प्रतिशत की गिरावट का आंकड़ा पार कर लिया, जिसे बेयर मार्केट की साधारण परिभाषा कहा जाता है.

अमेरिका के संघीय बैंक द्वारा महंगाई कम करने के लिए ब्याज दरों के बढ़ाए जाने से बाजार में चिंता है कि अर्थव्यवस्था मंदी की ओर चली जाएगी. इसलिए 2022 में शेयर बाजार लगातार लुढ़कता रहा है और अब यह बेयर हो गया है.

एसएंडपी (500) और नैस्डैक पहले ही क्रमशः 23 और 32 फीसदी नीचे गिर चुके हैं. यानी डाऊ जोंस का लुढ़कना अब इस साल की बाजार की उथल पुथल का आखरी पड़ाव था. वैसे तो डाऊ जोंस में सिर्फ 30 कंपनियां शामिल हैं और इसका दायरा अन्य सूचकांकों से काफी छोटा है लेकिन ऐतिहासिक रूप से इसे सबसे अहम प्रतीक के रूप में देखा जाता रहा है.

क्या होता है बुल और बेयर मार्केट?
शेयर बाजार में बुल और बेयर शब्दों का इस्तेमाल शेयर बाजार के चढ़ने व गिरने के लिए किया जाता है. यानी कीमतें जब लगातार ऊपर की ओर जा रही हों तो उसे बुलिश मार्केट कहा जाता है. इसी तरह जब कीमतें लगातार गिर रही हों तो उसे बेयर मार्केट कहा जाता है. लेकिन किसी बाजार को पूरी तरह बेयर मार्केट सिर्फ कीमतों के कुछ समय तक जारी गिरावट के आधार पर नहीं कहा जाता.

कुछ विशेषज्ञों के लिए यह शब्दावली ज्यादा मायने नहीं रखती और वे कंपनियों की आय, कीमत, ब्याज दरों और आर्थिक परिस्थितियों जैसी तमाम बातों की गणना करने को जरूरी मानते हैं. कुछ निवेशक मानते हैं कि किसी बाजार का अपने सर्वोच्च स्तर से 20 फीसदी नीचे चले जाना इस बात का संकेत है कि बाजार बेयरिश हो गया है यानी अब गिरावट वाले क्षेत्र में चला गया है.

इसी तरह कुछ निवेशक मानते हैं कि जब बाजार अपने सबसे निचले स्तर से 20 प्रतिशत ऊपर चला जाए तो बाजार को बुलिश कहा जा सकता है यानी अब वह ऊपर की ओर चढ़ने के क्षेत्र में आ गया है.

ऑस्ट्रेलिया के मेलबर्न में रहने वाले निवेशक और ग्लो ट्रे़ड प्राइवेट लिमिटेड के सीईओ अतीव डांग कहते हैं कि डाऊ जोंस 4 जनवरी के अपने स्तर से 20.5 फीसदी नीचे आ चुका है, जिसका अर्थ है कि अब बाजार बेयरिश हो चुका है. हालांकि यह अपने आप में कोई अनोखी बात नहीं है. डांग बताते हैं, “19 फरवरी 2020 से 23 मार्च 2020 तक इंडेक्स एक महीने में 34 प्रतिशत गिरा था. यह बेयरिश मार्किट की अब तक की सबसे छोटी अवधि थी.”

लेकिन मौजूदा गिरावट को डांग अहम मानते हैं. वह कहते हैं कि यह लंबे समय तक बनी रह सकती है. डीडब्ल्यू से बातचीत में उन्होंने कहा, “मुझे लगता है कि यह सिर्फ एक शुरुआत और अभी हालात और खराब होंगे. वैश्विक मंदी का डर, बढ़ती ब्याज दरें और विकसित अर्थव्यवस्थाओं की धराशायी होतीं मुद्राएं मिलकर बताती हैं कि निवेशकों की खतरे उठाने की क्षमताएं और कम होंगी. इस कारण बाजार का वापसी करना मुश्किल होगा.”

सरकार के लिए महंगाई प्राथमिकता
अमेरिकी अधिकारी शेयर बाजार की उथल-पुथल पर नजर बनाए हुए हैं लेकिन उनका कहना है कि महंगाई सरकार की प्राथमिकता है. क्लीवलैंड संघीय बैंक की अध्यक्ष लोरेटा मेस्टर ने कहा कि वित्तीय बाजारों की अस्थिरता से निवेशकों के फैसले प्रभावित होते हैं और डॉलर की कीमत से अमेरिकी अर्थव्यवस्था प्रभावित होती है लेकिन कीमतों की स्थिरता पहला मकसद है.

मेस्टर ने कहा, "लक्ष्यों के लिहाज हम अपन नीति बनाने में इस माहौल का ध्यान रखेंगे ताकि अमेरिका में कीमतों की स्थिरता हासिल की जा सके." मसैचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में एक कार्यक्रम में मेस्टर ने कहा कि मुद्रास्फीति नियंत्रित करने के लिए जरूरत से ज्यादा कदम ना उठाना ज्यादा महंगा पड़ सकता है.

अटलांटा के संघीय बैंक के अध्यक्ष रफाएल बोस्टिक ने भी कहा कि इस वक्त मुद्रास्फीति नियंत्रण ज्यादा जरूरी है. निवेशकों के रवैये को लेकर पूछे गए एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा, "मुझे नहीं पता कि वे अति-आशावान हैं या नहीं, जरूरी बात यह है कि हमें मुद्रास्फीति को काबू में लाना है. जब तक ऐसा नहीं होगा, तब तक हर दिशा में अस्थिरता दिखाई देगी.”

भारत पर असर
अगस्त में भारत में खुदरा बाजार में महंगाई दर में अनुमान से ज्यादा वृद्धि हुई और यह 7 प्रतिशत पर पहुंच गई. खाद्य पदार्थों और ईंधन की लगातार बढ़ती कीमतों के कारण मुद्रास्फीति उच्च स्तर पर बनी हुई है.

बीते साल के मुकाबले खाद्य पदार्थों की कीमत में अगस्त महीने 7.62 प्रतिशत की वृद्धि हुई जबकि ईंधन और बिजली की कीमतें 10.78 फीसदी बढ़ीं. कपड़ों व जूतों के दाम में 9.91 फीसदी बढ़त हुई जबकि घरों की कीमतें 4.06 फीसदी बढ़ीं.

अतीव डांग कहते हैं कि भारत को सुरक्षित मानना सही नहीं है. वह कहते हैं, “जब वैश्विक मंदी आती है तो कोई बाजार सुरक्षित नहीं होता. हमने देखा था कि सोमवार को भारतीय शेयर दो प्रतिशत तक गिर गए थे. इस हफ्ते आरबीआई 0.35 से 0.5 फीसदी तक ब्याज दर बढ़ा सकता है. और बढ़ती ब्याज दरें शेयर बाजारों की सबसे बड़ी दुश्मन होती हैं.”

डांग ध्यान दिलाते हैं कि अमेरिकी डॉलर के मजबूत होने का अर्थ यह भी है कि विदेशी संस्थागत निवेशक भारतीय बाजारों से अपना धन निकाल लेंगे. वह कहते हैं, “शुक्रवार को ही निवेशकों ने 29 अरब रुपये के शेयर बेचे हैं. नेशनल स्टॉक एक्सचेंज के मुताबिक मई और जून में ही विदेशी निवेशकों ने 90 हजार करोड़ रुपये निकाले हैं. हालांकि आशा की हल्की किरण के रूप में अगस्त में 51 हजार करोड़ रुपये निवेश भी किए गए हैं लेकिन सितंबर में के दूसरे हिस्से में फिर निकासी जारी रही.”

वह चेतावनी देते हैं कि विदेशी निवेशकों द्वारा शेयरों की बिक्री एक दुष्चक्र की शुरुआत कर सकती है क्योंकि इससे शेयर बाजार तेजी से गिरते हैं. (dw.com)
 

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