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‘छत्तीसगढ़’ का संपादकीय : सैम पित्रोदा के नाम से परे सिर्फ इस अमरीकी टैक्स पर सोचकर देखें, बुरा क्या है?
24-Apr-2024 5:47 PM
‘छत्तीसगढ़’ का  संपादकीय :  सैम पित्रोदा के नाम से परे  सिर्फ इस अमरीकी टैक्स पर सोचकर देखें, बुरा क्या है?

यूपीए के प्रधानमंत्री रहे मनमोहन सिंह की न कही हुई बातों को लेकर भी जिस तरह आज चुनावी बयानबाजी में उन पर तोहमतें लगाई जा रही हैं, उनको देखना भी भयानक है। किसी की बातों को तोडऩा-मरोडऩा तक तो ठीक है, लेकिन किसी की बातों के गोले का चूरा बनाकर, उसे मिट्टी की तरह सानकर उससे क्यूब की तरह चौकोन ढांचा बना देना तो कुछ ज्यादती ही है। गनीमत यह है कि मनमोहन सिंह की कही बातें वीडियो पर दर्ज हैं, ये एक अलग बात है कि आज के चुनावी माहौल के बिना भी जिन लोगों को झूठ फैलाना है, उन्हें कोई वीडियो सूबूत रोक नहीं पाता। मनमोहन सिंह ने देश के साधनों पर दलित, आदिवासियों, पिछड़े लोगों, और मुस्लिमों के पहले हक होने की जो बात कही थी, उसमें से पहले के तीनों तबकों को हटाकर सिर्फ मुस्लिम का नाम लेकर यह दहशत पैदा करना कि कांग्रेस आएगी तो हिंदू महिलाओं का मंगलसूत्र छीनकर उसे घुसपैठियों में बांट देगी, बयानबाजी के अब तक के स्तर को भी एकदम से पीछे छोडऩे वाली बात रही। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अभी हाल ही में तो देश की आर्थिक स्थिति अच्छी रहने के लिए मनमोहन सिंह की तारीफ कर रहे थे, लेकिन फिर वे पहले दौर के मतदान के बाद एकदम से जाने क्यों हिंदू-मुस्लिम, और घुसपैठिया-आबादी पर उतर आए हैं।

खैर, इस हड़बड़ी की जो भी वजह हो हम उसे चुनावी रूझान से जोडक़र देखना नहीं चाहते, लेकिन कल से कांग्रेस के एक दूसरे नेता के एक बयान को लेकर भाजपा के नेता टूट पड़े हैं। विदेश में बसे इंडिया ओवरसीज कांग्रेस के चेयरमैन सैम पित्रोदा ने अभी अमरीका के उत्तराधिकार टैक्स की तारीफ की है, और कहा है कि यह एक दिलचस्प कानून है जिसमें किसी दौलतमंद के मरने पर उसके बच्चों को सिर्फ 45 फीसदी संपत्ति मिलती है, और 55 फीसदी संपत्ति सरकार ले लेती है। उन्होंने कहा कि यह बड़ा दिलचस्प कानून है कि आप जीते-जी संपत्ति जुटाओं लेकिन जब आप जा रहे हैं तो संपत्ति का एक हिस्सा जनता के लिए छोडऩा होगा, पूरी संपत्ति नहीं, आधा हिस्सा। उन्होंने कहा कि भारत में ऐसा नहीं है, किसी अरबपति के जाने पर सब कुछ उसके बच्चों को ही मिलता है, देश या समाज को कुछ नहीं मिलता। सैम पित्रोदा की बात पर हमने अमरीका के इस कानून को पढ़ा तो यह वहां के कुछ राज्यों में ही लागू दिख रहा है, और मृतक के जीवनसाथी कोई टैक्स नहीं देना पड़ता, करीबी रिश्तेदारों को बहुत कम टैक्स देना पड़ता है। यह टैक्स अधिक पैसेवालों पर ही लागू है।

अमरीका के इस उत्तराधिकार कानून पर अधिक चर्चा आज का मकसद नहीं है, लेकिन चूंकि सैम पित्रोदा इस बात पर भाजपा ने कांग्रेस की जमकर निंदा की है, और खुद कांग्रेस ने इसे सैम की निजी राय बताया है, और कहा है कि वे स्वतंत्र विचारक भी हैं, और हर बार वे कांग्रेस का रूख नहीं बोलते हैं। कांग्रेस के  संचार प्रमुख जयराम रमेश ने कहा है कि  उनके बयान को बिना किसी संदर्भ के भारत के बारे में यह कहकर पेश करना कि कांग्रेस की सरकार बनने पर लोगों की आधी संपत्ति चली जाएगी, एक बहुत ही झूठा चुनाव प्रचार है। खुद सैम पित्रोदा ने भाजपा के खड़े किए हुए विवाद पर कहा कि उन्होंने निजी तौर पर अमरीका के उत्तराधिकारी टैक्स के बारे में जो कहा उसे तोड़-मरोडक़र गोदी मीडिया इस तरह पेश कर रही है। उन्होंने कहा कि यह बात तो किसी ने नहीं कही है कि भारत में लोगों की 55 फीसदी संपत्ति छीन ली जाएगी। उन्होंने कहा कि क्या बातचीत में अमरीका की मिसाल देना गलत है?

इस विवाद को हम यही पर छोड़ते हैं, और इसके साथ-साथ अमरीका के इस टैक्स के बारे में बात करते हैं क्या सचमुच ही यह टैक्स बहुत खराब है? आज भी भारत में मां-बाप की छोड़ी हुई जमीन को बेचने पर लोगों को एक कैपिटेशन टैक्स देना पड़ता है जो कि उस जमीन की खरीदी कीमत, और उसके बाद कीमत में बढ़ोतरी का हिसाब लगाकर बिक्री के वक्त होने वाले मुनाफे पर लगने वाला टैक्स है। इसी तरह अगर भरत में संपन्नता के एक स्तर के ऊपर अगर उत्तराधिकार टैक्स किसी शक्ल में लगता भी है, तो उसमें क्या बुराई है? देश के आर्थिक आंकड़े बताते हैं कि सबसे अमीर लोग और अधिक अमीर होते चल रहे हैं, और गरीबों की हालत और अधिक खराब होते चल रही है। यह फासला बढ़ते जा रहा है। ऐसे में अगर एक सीमा से अधिक अमीर लोगों के गुजरने पर इस देश में उनकी की गई कमाई पर अगर उत्तराधिकार टैक्स लगता है, तो उसका इस्तेमाल देश के उस ढांचे पर किया जा सकता है जिस ढांचे की वजह से देश में उद्योग-कारोबार चल रहे हैं, और कमा रहे हैं। हमारा ख्याल है कि किसी की संपत्ति छीने बिना संपन्नता के एक दर्जे के ऊपर अगर ऐसा टैक्स लगाकर देश को मजबूत किया जा सकता है, तो उस पर बात तो होनी चाहिए। यह वह देश है जहां पर 25 करोड़ लोगों को बिना भुगतान के अनाज मिलने पर ही वे भुखमरी से बचते हैं। ऐसे में देश के सबसे संपन्न दो-चार फीसदी लोगों की संपत्ति को अगली पीढ़ी तक जाते हुए कुछ कम कर दिया जाए, तो उससे क्या अमीरों का हौसला एकदम ही पस्त हो जाएगा? इस बात को सैम पित्रोदा के नाम से जोडक़र न देखें, इसे डोनल्ड ट्रम्प के नाम से जोडक़र देख लें, जो कि अभी पिछली बार तक अमरीका के राष्ट्रपति थे, अभी फिर राष्ट्रपति बनने की दौड़ में हैं, और नरेन्द्र मोदी के दोस्त भी हैं। 

 (क्लिक करें : सुनील कुमार के ब्लॉग का हॉट लिंक) 

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